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गोरेपन की चाह, आखिर किस कीमत पर..?

एक रिटायर्ड पिता पत्नी से एक कप और कौफी की मांग करता है. पत्नी झिड़कते हुए कहती है, दूध नहीं है. बेटी की कमाई यूं ही पीते जा रहे हो. यह सुनकर पिता कहता है – काश, हमारा एक बेटा होता! यह सुनकर बेटी के आंखों से आंसू झरने लगे. तभी मां बेटी के लिए कौफी लेकर आती है. बेटी नहीं पीती और सिसकने लगती है और वह अखबार में नौकरी ढूंढ़ने लगती है. एयरहोस्टेज की नौकरी के क्लासिफाइड पर नजर पड़ती है. पर अपनी त्वचा की रंगत उसे मायूस कर देती है. तभी टीवी पर फेयर एंड लवली का विज्ञापन दिखता है, जिसमें फेयर एंड लवली का फोर स्टैंड एक्शन एक, धूप से बचाता है; दूसरा, चिपचिपाहट हटाए; तीसरा, चेहरे से दाग हटाए; चौथा, भीतर से निखारे; के बारे में बताया जाता है. फेयर एंड लवली के इन्हीं चार एक्शन के बल पर लड़की इंटरव्यू टेबिल तक पहुंच जाती है और इसे बखूबी से क्रैक कर लेती और अपने पिता को बड़े-से होटल में ले जाती है. पिता कहते हैं – एक कप कौफी मिलेगी?

यह तो हुई फेयर एंड लवली की कहानी. अब इसके पुरुष संस्करण की बात करते हैं यानि फेयर एंड हैंडसम की. एक युवक है जो स्टंट के लिहाज से बड़ा हैंडसम है. शाहरूख के लिए स्टंट करता है. उसका परफौर्मेंस भी काबिले तारीफ है. उसकी कमतरी है उसकी त्वचा का रंग. वह सांवला है. यह सांवलापन उसकी तरक्की के रास्ते में बड़ा अड़चन है. वह लड़कियों का सामना करने से बचता है. लड़कियों को देखते ही अपना मुंह छिपा लेता है. तभी शाहरूख उससे कहता है – कब तक लड़कियों से मुंह छिपाते फिरोगे. छुपो नहीं, खुलकर जियो. यह कह कर शाहरूख उसे फेयर एंड हैंडसम लगाने की सलाह दे डालता है. फेयर एंड हैंडसम के साथ युवक की दुनिया बदल जाती है. वह के साथ हीरो बन जाता है.

ऐसे लुभाने वाले बहुत सारे विज्ञापन हम आए दिन इसीलिए देख रहे हैं, क्योंकि भारत में गोरेपन की कद्र है. काली तो क्या सांवली त्वचा भी किसीको पसंद नहीं. कुछ माता-‍पिता या घर-परिवार आज भी हैं जिनके मन में लड़की के पैदा होने का मलाल भले न हो, लेकिन लड़की सांवली पैदा हो गयी तो चिंता जरूर बढ़ जाती है. सांवली लड़की पैदा होने पर माता-पिता के माथे पर यह सोच कर बल पड़ जाते हैं कि शादी में बड़ी अड़चन आएगी. और रिश्तेदार सलाह देने में जरा भी देर नहीं करते कि इस लड़की की शादी में मोटा दहेज देना होगा, अभी से दहेज जोड़ना शुरू कर दो. जाहिर है ऐसे देश में फेयरनेस क्रीम की कद्र बढ़नी है. और ऐसे क्रीम की जितनी कद्र बढ़ेगी, बाजार में हर रोज नए फेयरनेस उत्पाद की बाढ़ आ जाएगी. क्रीम से लेकर साबुन और पाउडर तक. सबके दावे एक से बढ़ कर एक – गोरेपन के साथ चेहरे के दाग-धब्बे-काली भाइयां सब दूर करने का दावा करते हैं ये उ‍त्पाद. जाहिर है गांव कस्बे से लेकर शहरों में बड़ी कद्र है इन उत्पादों की.

दरअसल, भारत में ब्रिटिश राज के बाद से गोरे रंग को लेकर एक खास तरह की कमजोरी हमलोगों के मन में गहरे पैठ गयी. लोगों ने मान लिया कि गोरापन ही खूबसूती है. सफेद त्वचा ही असली सूबसूरती है. रही-सही कसर पूरी कर दी वर्ण व्यवस्था ने पूरी कर ‍दी. इस वर्ण व्यवस्था ने इस धारणा को जन्म दिया कि ब्राह्मण गोरे पैदा होते हैं और दलित या निम्न वर्ण सांवली त्वचा लेकर जन्मते हैं. इसके बाद गोरापन आसमान का चंद बन गया. वैवाहिक विज्ञापनों में सुंदर, सुशील और पढ़ी-लिखी लड़की की कामना के साथ गोरा पहली शर्त हुआ करती है. धीरे-धीरे यह धारणा विस्तार पाने लगी. अब तो लड़का हो या लड़की – गोरा दिखने की चाह हर कोई पालने लगा.

फेयरनेस क्रीम भले ही कितना बड़ा दावा करें, वैज्ञानिक सचाई यह है कि त्वचा का रंग कैसा हो इसमें मेलानिन नामक पिगमेंट की भूमिका अहम होती है. मेलानिन की कितनी मात्रा और इसका गठन ही यह तय करता है. जेनेटिक लाइनेज यानि पूर्वजों की त्वचा का रंग ही आगामी पीढ़ी की त्वचा का रंग तय करता है. त्वचा विशेषज्ञों का मानना है कि त्वचा की रंगत में महज 20 प्रतिशत बदलाव हो सकता है. इससे ज्यादा नहीं. बाजारू फेयरनेस क्रीम बहुत हुआ तो सूरज की पराबैंगनी किरण को रोक सकती है. ऐसा करने से मेलानिन का स्राव कम होता है और त्वचा की रंगत कम काली होती है. लेकिन कोई भी क्रीम, वह कितना भी कीमती क्यों न हो – त्वचा की रंगत को बदल नहीं सकती.

गोरेपन का बाजार

जाहिर है कौस्मेटिक कंपनियों ने अपना व्यवसायिक फोकस गोरेपन की क्रीम पर कर लिया. और फिर फेयरनेस क्रीम का एक बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो गया. होता भी क्यों नहीं! बौलीवुड, मौलीवुड, पौलीवुड, कौलीवुड से लेकर टौलीवुड के नामी-गिरामी अभिनेता-अभिनेत्रियां ऐसे फेयरनेस क्रीम को एंडोर्स जो करते हैं. ACNielsen नाम की शोध संस्था ने 2010 में भारत में फेयरनेस  क्रीम के बाजार का मूल्यांकन किया था. शोध संस्था ने पाया कि 2010 में 432 मिलियन डौलर का बाजार था, जिसमें हर साल 18 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी. एक अन्य शोध से पता चला है कि भारत में गोरेपन की क्रीम का बाजार 2010 में 2,600 करोड़ रुपये था। 2012 में 233 टन गोरेपन की उत्पादों का प्रयोग भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा किया गया।

बदसूरती की कीमत पर गोरापन!

1978 में पहली बार भारतीय बाजार में फेयर एंड लवली उतारा गया. इस उत्पाद का प्रचार कुछ इस तरह किया गया गोया फेयरनेस क्रीम के एक ट्यूब में भारतीय नारी को उम्मीद मिलेगी. कंपनी की ओर से दावा कुछ ऐसा किया किया गया था कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा को गोरापन देने का गुण पाया गया है. पर यह निकोटिनामाइड दरअसल, क्या है, इस बारे में विकीपिडिया पढ़ लेने से पता चल जाएगा. यहां सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा में गोरापन लाने का गुण है तो जरूर, लेकिन इसके साथ इस रासायनिक में मन में उतावलापन के साथ कैंसरकारक तत्व भी मौजूद हैं.

हालांकि बताया जाता है कि अब ये दोनों रासायनिक तत्व क्रीम में नहीं होते हैं. पर आज इनकी जगह स्टेरोयड पाए जाते हैं और जब से इस बात का खुलासा हुआ है फेयरनेस क्रीम तैयार करनेवाली कंपनियां तरह-तरह के सवालों से घिर गयी हैं. हाल ही में सेंटर फौर साइंस एंड एनवारंमेंट नामक संस्था द्वारा कराए गए एक शोध के नतीजे में भारत में पाए जानेवाले 44 प्रतिशत लोकप्रिय फेयरनेस क्रीम में मरक्यूरी यानि पारा पाए जाने का पता खुलासा हुआ है. ओले नेचुरल ह्वाइट (33.4 प्रतिशत), पोंड्स ह्वाइट ब्यूटी (25.2), फेयर एंड लवली एंटी मार्क्स (15), लोरियल पर्ल एफेक्ट (12.9), रेवलोन टच एंड ग्लो (4.6) गारनियर मेन पावर लाइट (4.4), विवेल एक्टिव फेयर (4.3), इमामी मलाई केशर कोल्ड क्रीम (4.1), लेक्मे परफेक्ट रेडियंस (3.5) में पारा की माथा पायी गयी है. गौरतलब बात यह है कि क्रीम की सामग्री में कहीं पारे की मौजूदगी का जिक्र नहीं होता है. जबकि कौस्मेटिक एंड ड्रग अधिनियम में पारा को निषिद्ध घोषित किया गया है.

इसी तरह स्टेरौयड भी त्वचा को तो नकुसान पहुंचाता ही है, कभी-कभी महिलाओं में पुरुषोचित शारीरिक बदलाव के लिए भी यह जिम्मेवार होता है. जान कर हैरानी होगी कि स्टेरौयड वाली फेयरनेस क्रीम का बाजार लगभग 1400 करोड़ रु. का है. कोलकाता के एक त्वचा विशेषज्ञ संजय घोष का कहना है कि सफेद दाग, एग्जिमा जैसे त्वचा संबंधी बीमारी में स्टेरौयड  तत्व वाली क्रीम कारगर होती है. लेकिन इन बीमारियों में भी डॉक्टर की सलाह से ही ऐसे क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए. वह भी बहुत कम मात्रा में.

हाल के दिनों में गोरेपन की क्रीम से बहुत सारी महिलाओं की त्वचा में कई तरह की जटिल बीमारियां देखने में आ रही है. त्वचा रोग के विशेषज्ञ और आईएडीवीएल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कौशिक लाहिड़ी का कहना है कि उनके चेंबर में हर रोज फेयरनेस क्रीम के मारे कम से कम दस मरीज आते हैं. डॉ. लाहिड़ी कहते हैं कि स्टेरौयड वाली क्रीम केवल त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाती है, बल्कि ये क्रीम त्वचा को भेद कर अंदर भी जाते हैं. लंबे समय तक इनका इस्तेमाल किए जाने पर त्वचा को इसकी लत लग जाती है. जिसका परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है.

त्वचा विशेषज्ञ जिन लक्षणों से दो-चार हो रहे थे वे वाकई चिंताजनक हैं. किसी को गाल या पूरे चेहरे में आग से झुलसने जैसे निशान बन रहे हैं तो किसीका चेहरा गोरा दिखने के बजाए धूप की गर्मी से त्वचा की रंगत जलकर सांवले नजर आने लगे. वहीं किन्हीं की शिकायत यह कि क्रीम लगाकर धूप में निकलने त्वचा पर चेहरे में असहनीय जलन महसूस होती है. यहां तक कि कुछ महिलाओं ने हारमोन्स में भी गड़बड़ी की शिकायत की, जिसकी वजह से उनकी दाढ़ी-मूंछे निकलने लगी हैं. ये क्रीम सूबसूती के बजाए बदसूरती दे रही है. जाहिर है बदसूरती की कीमत पर गोरापन भला कौन कबूल करेगा!

हरकत में सरकार

त्वचा विशेषज्ञों की राष्ट्रीय स्तर की ईकाई आईएडीवीएल यानि इंडियन एसोसिएशन औफ डर्माटोलौजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) वेनेरियोलौजिस्ट (यौनरोग विशेषज्ञ) और लेप्रोलौजिस्ट (कुष्ठरोग विशेषज्ञ) ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ऐसे गोरेपन की क्रीम से त्वचा को होनेवाले नुकसान के प्रति अगाह करते हुए पत्र लिख कर कड़े कदम उठाने का अनुरोध किया गया. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर विभाग ने ऐसे क्रीम को शिड्यूल एच तालिका में शामिल कर लिया है. 12 अगस्त 2016 को स्वास्थ्य मंत्रालय को इसकी जानकारी एक गजट के माध्यम से दे दी गयी. नियमानुसार एक तय समय (45 दिन) के अंदर इसके खिलाफ आपत्ति पर विचार किया जाता है. लेकिन इस मामले में बताया जाता है कि किसी भी तरह की आपत्ति टिक नहीं पायी. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर का फैसला लागू हो गया. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अओर से घोषणा कर दी गयी कि ऐसे क्रीम डौक्टर के पर्ची के बगैर न तो खरीदे जा सकते हैं और बेचे जाने पर रोक लगा दिया है.

फिलहाल फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हिमाचल प्रदेश में सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद बनानेवाले एक कंपनी टौरक्यू फर्मा जो नो स्कार्स क्रीम बनाती है, को नोटिस भेजा है और कंपनी द्वारा निर्मित दो क्रीम को जब्त किया है. बताया जाता है कि इन दोनों क्रीमों में फ्लूसिनोलोन एसिटोनिड और मोमेटासोम जैसे स्टेरौयड के साथ ब्लीचिंग एजेंट भी पाया गया है. कोलकाता के जानेमाने त्वचा विशेषज्ञ डॉ. सुस्मित हलदार का कहना है कि  मोमेटासोम एक स्टेरौयड है. इसका दुष्प्रभाव चेहरे पर अवांक्षित बाल, रैश, बर्रेदार मुहासे और लाली में देखा जा सकता है. वहीं फ्लूसिनोलोन, हाइड्रोक्वीनोन और ट्रेटिनोइन का लंबे समय तक इस्तेमाल त्वचा के लिए हानिकारक होता है. त्वचा पर झाइंया पड़ सकती है. चेहरे की कांति जाती रहती है. चेहरा बदरंग हो सकता है.

फ्लिपकार्ट, एमेजन फिर ला रहें हैं ‘बिग सेल’

दशहरे के मौके पर ई-कॉमर्स पोर्टल्स जैसे फ्लिपकार्ट और एमेजन ने मेगा सेल चलाया था. अगर आप इस सेल में खरीदारी का मौका चूक गए तो परेशान होने की जरूरत नहीं. ई-कॉमर्स के दोनों दिग्गजों ने फिर एक 'मेगा सेल' की घोषणा की है.

ऐमजॉन जहां 'द ग्रेट इंडियन फेस्टिवल' के नाम से सेल लेकर आ रही है, वहीं फ्लिपकार्ट पर 'बिग दिवाली सेल' मिलेगी. 'बिग सेल' का यह तीसरा राउंड 25 अक्टूबर को आधी रात से 28 अक्टूबर की रात 11:59 तक चलेगा. दोनों ई-कॉमर्स पोर्टल पर कपड़े, गैजेट्स, स्मार्टफोन्स समेत तमाम चीजों पर डिस्काउंट ऑफर किया जाएगा.

इसके अलावा फ्लैश सेल का भी ऑप्शन होगा, जिसमें आधे घंटे के लिए कुछ सामान भारी डिस्काउंट पर उपलब्ध होंगे. सेल के दौरान रिटेलरों की तरफ से टाइमर और बचे सामानों का प्रतिशत भी दिखाया जाता रहेगा. इसकी मदद से कस्टमर स्टॉक खत्म होने से पहले सही समय पर सामान खरीद सकेंगे. डील के बारे में अभी और जानकारियां आनी बाकी हैं.

अब आप इसे सुपर सेल सीजन कहें या यह मान लें कि सामान नहीं बिकने की वजह से सेल का तीसरा राउंड आया है. कंपनियों का दावा है कि एक महीने के भीतर तीसरी बार लग रहा यह मेगा सेल कस्टमर्स के लिए विन-विन सिचुएशन वाला होगा. ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्नैपडील जैसे दूसरे दिग्गज भी त्योहारी मौसम में सेल की घोषणा कर सकते हैं.

स्मार्टफोन ओवरहीटिंग से हैं परेशान?

स्मार्टफोन्स की प्रोसेसिंग पावर लगातार बढ़ रही है और इस हिसाब से उनमें बैटरीज भी बड़ी लगाई जा रही हैं. चार्ज होने में ज्यादा वक्त न लगे, इसलिए फास्ट चार्जिंग टेक्नॉलजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. मगर कई बार स्मार्टफोन गर्म हो जाते हैं. चार्जिंग करते वक्त, गेम खेलते वक्त या फिर हेवी ऐप्स इस्तेमाल करते वक्त इस तरह की समस्या आती है.

वैसे तो फोन के गर्म होने के पीछे आमतौर पर हार्डवेयर की दिक्कत होती है, मगर आप कुछ बातों का ख्याल रखकर उसे गर्म होने से बचा सकते हैं. जानें, कैसे…

1. केस या कवर हटाएं

स्मार्टफोन को कवर केस में रखने से हीट अंदर ही रहती है और यह गर्म होने लगता है. कवर हटाने से हीटिंग की समस्या से काफी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है.

2. चार्ज करते वक्त ठोस सतह पर रखें

फोन को चार्ज करते वक्त इसे बेड वगैरह के बजाय किसी ठोस सतह पर रखना चाहिए. नरम चीजें हीट को सोख लेती हैं. चार्जिंग के दौरान निकलने वाली हीट स्मार्टफोन को और गरम कर देती है.

3. रात भर फोन को चार्ज न करें

बहुत से लोग स्मार्टफोन को रात भर चार्जिंग पर लगाकर छोड़ देते हैं. इससे न सिर्फ बैटरी की लाइफ पर असर पड़ता है, यह हीटअप भी होती है. कई मामलों में तो ओवरचार्ज की गई बैटरियां फट भी चुकी हैं.

4. हेवी ऐप्स को बंद करें

बहुत से ऐप्स ऐसे होते हैं जो हेवी ग्राफिक्स इस्तेमाल करते हैं. इसमें प्रोसेसिंग पावर भी ज्यादा लगती है और डिवाइस गर्म भी होने लगते हैं. इस तरह से ऐप्स को इस्तेमाल न करने पर किल कर देना चाहिए यानी पूरी तरह क्लोज कर देना चाहिए.

5. धूप में न रखें

स्मार्टफोन्स को, खासकर प्लास्टिक के बैक पैनल वाले फोनों को सीधी धूप में कभी नहीं रखना चाहिए. प्रोसेसिंग की वजह से पैदा होने वाली हीट और धूप की गर्मी स्मार्टफोन को और गर्म कर देती हैं. इससे फोन को नुकसान भी पहुंच सकता है.

6. थर्ड पार्टी चार्जर और बैटरीज यूज न करें

कई बार थर्ड पार्टी चार्जर या बैटरीज से भी फोन गर्म हो जाते हैं. अलग वाट के चार्जर से फोन चार्ज करने भी फोन गर्म हो जाते हैं. फोन को नुकसान पहुंचता है सो अलग.

अब नर्सिंग असिस्टेंट का काम करेंगे रोबोट

अगली बार जब आपको अस्पताल जाना पड़े तो संभव है कि नर्सिंग सहयोगी कोई इंसान नहीं बल्कि रोबोट हो. इसके लिए हमें वैज्ञानिकों का शुक्रगुजार होना पड़ेगा जिन्होंने रोबोट को इंसान के स्वाभाविक कामों की नकल का प्रशिक्षण दिया है.

इटली के पॉलिटेक्नीको डि मिलानो की एलेना डि मॉमी और उनके सहयोगियों द्वारा किये गये अनुसंधान में इस बात के संकेत मिलते हैं कि सर्जरी और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर इंसान और रोबोट प्रभावी तरीके से अपनी क्रियाओं को समन्वित कर सकते हैं.

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि दूसरी बात ये है कि रोबोट इंसानों की तरह थकते नहीं है और इससे गलती की गुंजाइश में कमी आयेगी और सेवाओं में सुधार होगा. इस अनुसंधान का प्रकाशन फ्रंटियर्स इन रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नामक जर्नल में हुआ.

FIDE OPEN: अभिजीत ने रचा इतिहास

ग्रैंडमास्टर और राष्ट्रमंडल विजेता अभिजीत गुप्ता ने हुगेवीन अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट में इतिहास रच दिया. वह यह खिताब लगातार दो बार जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं.

गत चैंपियन अभिजीत ने अपनी शीर्ष वरीयता के मुताबिक प्रदर्शन करते हुए नौ में से 7.5 अंक जुटाए. जिससे उन्होंने दूसरे स्थान पर काबिज ग्रैंडमास्टर संदीपन चंदा पर एकल बढ़त बनाई. टूर्नामेंट में एक तरह से भारतीय खिलाड़ियों का ही कब्जा रहा. ग्रैंडमास्टर एमआर ललित बाबू ने तीसरा और ग्रैंडमास्टर एम श्याम सुंदर ने चौथा स्थान हासिल किया. युवा भारतीय खिलाडि़यों में राकेश कुमार जेना और दुष्यंत वर्मा ने भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया.

अभिजीत ने लगातार चार जीत अपने नाम की थीं और फिर ललित बाबू से ड्रॉ खेला. छठे दौर में अभिजीत ने माइकल डि जोंग पर जीत दर्ज की, जबकि सातवीं बाजी में उन्होंने हमवतन एस नितिन को आसानी से पराजित कर दिया. अभिजीत ने फिर संदीपन से ड्रॉ खेलकर अंतिम दौर से पहले आधे अंक की बढ़त बना ली थी. अंतिम बाजी में उन्होंने लुकास वान फोरीस्ट से ड्रॉ खेला.

जीत दर्ज करने के बाद अभिजीत ने कहा, 'वैसे तो सारे मुकाबले बहुत अच्छे थे लेकिन जान वेर्ले के साथ बाजी यादगार रही. यह काफी कठिन मुकाबला था, जिससे मैंने लय पकड़ी. आमतौर पर सभी बाजियां काफी अच्छी थीं. यह उपलब्धि शानदार है और शायद अंतरराष्ट्रीय ओपन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है. इसमें शुरू से ही भारतीय दबदबा रहा. पहले मैंने और ललित ने और अंत में संदीपन ने कुछ बेहतरीन शतरंज खेली.'

RBI जल्‍द जारी करेगा 2,000 रुपए का नोट

जल्‍द ही आपके हाथ में 2,000 रुपए के नोट आने वाला है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया 2,000 रुपए का नया करेंसी नोट जारी करने की तैयारी में है. दूसरी ओर कई विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को बड़े नोट पर रोक लगानी चाहिए, इससे काले धन पर रोक लगाने में मदद मिलेगी.

सूत्रों के मुताबिक 2000 रुपए के नए नोट की छपाई मैसूर करेंसी प्रिंटिंग प्रेस में शुरू हो चुकी है. हालांकि, न तो सरकार ने और न ही केंद्रीय बैंक  ने इसकी कोई पुष्टि की है. भारत में करेंसी नोट और सिक्‍कों की छपाई व ढलाई सिक्‍यूरिटी प्रिंटिंग एंड माइनिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसएमपीसीआईएल) की आठ इकाइयों में की जाती है. यह वित्‍त मंत्रालय के अधीन कार्यरत सार्वजनिक कंपनी है.

– एसएमपीसीआईएल की मध्‍य प्रदेश के देवास और महाराष्‍ट्र की नाशिक यूनिट में देश की कुल करेंसी नोट का 40 फीसदी हिस्‍सा छपता है.

– एसएमपीसीआईएल की मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता और नोएडा यूनिट में सिक्‍कों की ढलाई की जाती है.

– 1938 में आरबीआई 10,000 का नोट छापती थी, जो बाद में 1946 में बंद कर दिया गया.

– आरबीआई ने दोबारा 1954 में 10,000 का नोट छापना शुरू किया और इसे 1978 में दोबारा बंद कर दिया गया.

– नोट छापने में उपयोग होने वाला कागज कपास और कपास रेशे से बना होता है.

– आरबीआई की सलाह पर सरकार ढलाई के लिए सिक्‍कों की मात्रा तय करती है.

– आरबीआई इकोनॉमी की ग्रोथ रेट, इनफ्लेशन रेट, रिपलेसमेंट डिमांड और रिजर्व स्‍टॉक रिक्‍वायरमेंट के आधार पर बैंक नोट की मांग निर्धारित करता है.

– करेंसी नोट नाशिक, देवास, मैसूर और सालबोनी यूनिट में छापे जाते हैं.

-लसिक्‍कों की ढलाई मुंबई, नोएडा, कोलकाता और हैदराबाद युनिट में की जाती है.

– आरबीआई अपना करेंसी ऑपरेशन 19 इश्‍यू ऑफि‍स के जरिये चलाती है. यह ऑफि‍स अहमदाबाद, बेंगलुरु, बेलापुर, भोपाल, भुवनेश्‍वर, चंडीगढ़, चेन्‍नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जम्‍मू, कानपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नागपुर, नई दिल्‍ली, पटना, तिरुवनंतपुरम में हैं.

‘1984 के दंगे, दंगे नहीं कत्लेआम थे’: शिवाजी पाटिल

महाराष्ट्र में जलगांव के एक पिछड़े गांव मांदोड़े से फिल्मों में कुछ करने की तमन्ना लेकर मुंबई पहुंचे शिवाजी लोटन पाटिल ने काफी संघर्ष किया. सहायक निर्देशक से निर्देशक बनने तक की यात्रा काफी कठिन रही. पर अपनी लगन व मेहनत के बल पर उन्होंने सफलता का मुकाम पाया. मराठी भाषा में ‘बवंडर’ और ‘धग’ फिल्मों का निर्देशन तथा ‘धग’के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के बाद वह पहली हिंदी फिल्म ’31 अक्टूबर’ लेकर आए हैं, जो कि 1984 के सिख दंगों पर आधारित है. फिल्म की काफी आलोचनाएं हो रही हैं.

शिवाजी लोटन पाटिल का दावा है कि फिल्म के 40 दृश्य सेंसर बोर्ड ने काटकर यह स्थिति पैदा कर दी. हाल ही में हुई शिवाजी लोटन पाटिल से एक मुकालात में हमने उनसे पूछा कि आपकी नजर में 31 अक्टूबर 1984 की घटना क्या थी? इस पर शिवाजी ने कहा, ‘हम इसे दंगे नहीं कह सकते. यह एक तरफा कत्लेआम था. जब हमने इस पर शोध कार्य किया, तो हमें इतनी कहानियां मिली कि बता नहीं सकता. हर परिवार पर एक बेहतरीन कहानी वाली फिल्म बन सकती है. मैंने तो अपनी फिल्म में सिर्फ एक परिवार को लिया है. उस वक्त जो कुछ घटा, वह अखबारों में बहुत कम छपा. मगर आप गूगल पर सर्च करेंगे, तो आपको हजारों वीडियो मिल जाएंगे.’

देश की आजादी के समय भी काफी दर्दनाक घटनाएं घटी थी. उन घटनाओं की तुलना आप 31 अक्टूबर 1984 की घटनाओं से किस तरह करेंगे? इस सवाल पर शिवाजी ने कहा, ‘देखिए, हमें अपने देश के इतिहास को समझना पड़ेगा. हमने इतिहास में पढ़ा है कि हमारे देश में पहले मुस्लिम नहीं थे. वह बाहर से आए. जब मुस्लिम आ गए, तो हमने उन्हें अपना लिया. अंग्रेजों से हिंदू, मुस्लिम सिख सबने मिलकर लड़ाई लड़ी. जब देश के आजाद होने का समय आया, तो एक बंदे के दिमाग में घुस गया कि पाकिस्तान बनाओ. जिससे उस वक्त दुश्मनी का भाव पैदा हो गया था. वह दौर नफरत का दौर था. पर 31 अक्टूबर को जो घटना घटी, वहां नफरत की कोई बात नहीं थी. सब कुछ राजनीतिक सोच का मामला था.’

उन्होंने आगे कहा,‘सच कहूं तो आजादी के वक्त जो कत्लेआम हुआ था,उसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों मारे गए थे. महात्मा गांधी की हत्या के बाद भी इस बड़े पैमाने पर कत्लेआम नहीं हुआ था. पर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक राजनीतिक दल के चार लोगों ने जो कत्लेआम मचवाया था, उसे कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता. जो मर रहा था, उसे खुद पता नहीं था कि उसे क्यों मौत के घाट उतारा जा रहा है.’

कोई ऐसी घटना जिसने आपको अंदर तक सोचने पर मजबूर कर दिया हो, पर आप उसे फिल्म में न रख पाए हों? इस सवाल पर शिवाजी लोटन पाटिल ने कहा, ‘हमने बलात्कार का दृष्य रखा था. एक लड़की का उसके माता पिता के सामने बलात्कार किया गया था. यह एक सत्य घटना है. गूगल पर वीडियो मौजूद है, जिसमें एक पिता बताता है कि उसकी बेटी के साथ क्या व कैसे किया गया था. उस पिता की बात सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं सोच में पड़ गया था कि क्या इतने दरिंदे भी हो सकते हैं?’

खतरे का संकेत है अखिलेश की बदली ‘बौडी लैंग्वेज’

साढ़े चार साल पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने जिस अखिलेश यादव की मधुर मुस्कान, सौम्य बातचीत और आम नेताओं से अलग ‘बौडी लैंग्वेज’ दिखती थी अब वह बदल गई है. अखिलेश जिन बातों का जबाव नहीं देना चाहते हैं उनसे बचने के लिये जब वह दूसरा जवाब देते हैं तो उसमें उनकी एग्रेशन दिखने लगी है.

समाजवादी पार्टी के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में जब उनसे पूछा गया कि वह इस कार्यक्रम में रहेंगे तो जबाव में गेहूं चावल की बात करने लगे. देखने में वह यह बात हंस कर रहे थे. उनकी हंसी के पीछे छिपा एग्रेशन नजर आ रहा था. पहले इस बात के सवालों को टालते हुये अखिलेश यादव जो बात कहते थे उसमें वह सौम्य नजर आते थे.

पारिवारिक विवाद में समाजवादी पार्टी को लेकर तमाम तरह की धारणायें बन रही है. इससे परिवार और पार्टी दोनों की छवि खराब हो रही है. पहले जो बात परिवार के अंदर की थी अब बाहर आ गई है. पार्टी के कार्यकर्ता जिस तरह से खेमे बंदी कर रहे हैं उससे उनको लाभ हो या नहीं पर पार्टी का नुकसान तय है. मुलायम परिवार का भला पार्टी के भले में ही निहित है.

पारिवारिक विवाद की बातें बाहर आने के बाद से पार्टी का नुकसान होने लगा है. शुरूआत में यह माना जा रहा था कि परिवार की बात परिवार के अंदर सुलझ जायेगी. अब यह विवाद बालू की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. ऐसे में अगर जल्द इसका सकारात्मक हल नहीं निकला तो मुठ्ठी खाली रह जायेगी.

असल में अब तक समझौते की मुद्रा में चल रहे अखिलेश यादव अब अपने को बदल चुके हैं. अब वह गुस्से में नजर आने लगे हैं. जानकार लोग कहते हैं कि अखिलेश यादव ने जिस समय अपने स्वभाव को बदला है वह सही समय नहीं है. उनके गुस्से से पार्टी टूट सकती है. जो परिवार, पार्टी और प्रदेश के हित में किसी भी तरह से नहीं है. यह सच है कि अखिलेश यादव को लेकर जिस तरह से चर्चायें चलती रही है उनको परिवार के अंदर से हवा दी जाती रही है.

इसके बाद भी मुख्यमंत्री जैसे पद पर होने के नाते उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह पार्टी को टूटने नहीं देंगे. परिवार के झगड़े का असर पार्टी पर न पड़े इसमें बाकी लोगों के साथ अखिलेश की भी जिम्मेदारी है. यह बात सही हो सकती है कि परिवार के इस विवाद में बाहरी लोगों की साजिश हो सकती है.अब साजिश से बचना और पार्टी को बचाना अखिलेश के लिये बड़ी चुनौती है. नहीं तो इस बात की तोहमत उन पर लगेगी कि वह प्रदेश चला पाये न पार्टी.                 

 

फिल्म ‘रा वन’ का बनेगा सिक्वअल

2011 में दिवाली के समय अनुभव सिन्हा निर्देशित और शाहरुख खान के अभिनय से सजी बड़े बजट की फिल्म ‘रा वन’ प्रदर्शित हुई थी. बौलीवुड में ‘रा वन’ की गिनती असफल फिल्म के रूप में होती है, पर इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए फिल्मकार अनुभव सिन्हा तैयार नहीं है. अनुभव सिन्हा का मानना है कि फिल्म ‘रा वन’ को असफल कहना एक फैशन बन गया है.

गौरतलब है की ‘रा वन’ के बाद उन्होंने फिल्म निर्देशन से तौबा कर ली थी. अब पूरे 5 साल बाद वह अपनी पहली और स्लीपर हिट फिल्म ‘तुम बिन’ का सिक्वअल ‘तुम बिन 2’ लेकर आ रहे हैं, मगर अनुभव सिन्हा ‘तुम बिन 2’ को सिक्वअल फिल्म नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि ‘तुम बिन 2’ की कहानी अलग है.

हाल ही में अनुभव सिन्हा से ‘सरिता पत्रिका’ की मुलाकात हुई. हमने उनसे एक सीधा सवाल किया कि 2011 में फिल्म ‘रा वन’ के एक्शन दृष्यों की चर्चा हुई थी, मगर ‘रा वन’ को बॉक्स ऑफिस पर सफलता क्यों नहीं मिली थी. इस पर ‘सरिता पत्रिका’ से अनुभव सिन्हा ने कहा, ‘ऐसा लोगों ने प्रचारित किया, पर यह हकीकत नहीं है. मैं ‘रा वन’ को बिलकुल असफल नही मानता. मुझे एक बहुत बड़ा तबका मिलता है, जिसे ‘रा वन’ बहुत पसंद है और लगभग उतना ही बड़ा तबका मिलता है, जिसे ‘रा वन’ से नफरत है. 2011 में ‘रा वन’ ने करीबन 155 करोड़ रूपए कमाए थे. पर लोगों के लिए फैशन हो गया है, यह कहना कि ‘रा वन’ असफल फिल्म थी. इसके निर्माता ने मुझे बताया कि उन्होंने इस फिल्म से पैसा कमाया है. लेकिन मैं अपने आपको बरी नहीं कर रहा हूं. मैं इस बात को मानता हूं कि मुझे ‘रा वन’ को जितनी अच्छी फिल्म बनाना चाहिए था, उतनी अच्छी फिल्म नही बना पाया था.’

जब हमने पूछा कि ‘रा वन’ में गड़बड़ी कहां हुई थी? तो अनुभव सिन्हा ने कहा, ‘फिल्म रा वन खास दर्शकों की फिल्म थी. यह फिल्म बच्चों और युवा वर्ग की थी. फिल्म वीडियो गेम को लेकर थी. पर मुझे लगा कि मैं इस फिल्म के साथ भाभीयों, मांओं व बुआओं को भी जोड़ सकता हूं. इन लोगों को जोड़ने के लिए मैंने इस फिल्म में कुछ चीजें डाल दीं. पर मैं इन लोगों को फिल्म के साथ नहीं जोड़ पाया. मेरी पहली गलती यह रही कि मैं माओं, बुआओं व भाभीयों को फिल्म के साथ जोड़ने में असफल रहा. दूसरी गलती मैंने यह की कि इन्हें जोड़ने के चक्कर में पूरी फिल्म को भ्रमित कर दिया. इसके कारण जिन्हें यह फिल्म पसंद आ सकती थी, उन्होंने भी इस फिल्म को ठुकरा दिया था.’

तो क्या निर्देशक के तौर पर फिल्म ‘रा वन’ के समय अनुभव सिन्हा अपने व्यक्तित्व से अलग हो गए थे? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘नहीं! मैंने अपने दिमाग का बहुत ज्यादा उपयोग किया था. फिल्म बड़े बजट की व बडे़ स्टार के साथ थी. तो मेरे दिमाग में आया कि बडे़ दर्शक वर्ग तक इस फिल्म को पहुंचाया जाए. जबकि मेरी फिल्म की कहानी इतने बडे़ दर्शक वर्ग के लिए थी ही नहीं. यह फिल्म बच्चों और युवा वर्ग के लिए ही थी. यही गलती मुझसे हुई थी. लोगों को शिकायत यह है कि ‘रा वन’ को ढाई सौ करोड़ कमाने चाहिए थे, पर कमा नहीं पायी. खैर, चिंता ना करें. मैं इसे फिर से बनाने जा रहा हूं.’

जब हमने कहा अच्छा तो अब आप ‘रा वन’ का सिक्वअल बनाने जा रहे हैं, तो इसे लगभग स्वीकार करते हुए अनुभव सिन्हा ने कहा, ‘जी हां. ‘रा वन’ का सिक्वअल बनाने वाला हूं. इस बार हमारी यह फिल्म 500 नहीं 700 करोड़ कमाएंगी. पर मैं इसे सिक्वअल नहीं कहूंगा. क्योंकि कहानी अलग होगी. इस फिल्म में शाहरूख खान होंगे या नहीं, यह भी अभी नहीं कह सकता.’

 उन्होंने आगे कहा, ‘देखिए,2011 में मैंने जो ‘रा वन’ बनायी थी, उससे मेरे अंदर यह आत्म विश्वास पैदा हुआ कि मुझे उस जॉनर की फिल्म दुबारा बनानी चाहिए. पिछली बार मैंने जो गलतियां की थी, वह भी समझ आ रही हैं. इसलिए उससे बेहतर बनाउंगा. आप मानकर चलें कि ‘रा वन’ का जो जॉनर है, उसका भविष्य उज्ज्वल है.’

‘ऐ दिल है मुश्किल’: किसकी जीत?

एक माह के विवाद के बाद अंततः करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ के प्रदर्शन का रास्ता साफ हो गया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे, करण जोहर व प्रोड्यूसर गिल्ड के नेताओं ने एक बैठकर कर निर्णय लिया.

इस बैठक के बाद प्रोड्यूसर्स गिल्ड के मुकेश भट्ट ने कहा कि फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ के प्रदर्शन की राह साफ हो गयी है. मुकेश भट्ट व करण जोहर इसे अपनी जीत बता रहे हैं. मुकेश भट्ट ने कहा कि देश की भावनाओं की कद्र करते हुए प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने तय किया है कि अब आगे से किसी पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम नहीं करेंगे.

उसके बाद राज ठाकरे ने प्रेस काँफ्रेंस करके मीडिया को बताया कि प्रोड्यूर्स गिल्ड ने उनकी तीन मांगे मान ली, इसलिए अब वह फिल्म के प्रदर्शन में रूकावट नहीं डालेंगे. लेकिन उम्मीद है कि लोग बहिष्कार करेंगें.

राज ठाकरे ने कहा- ‘‘करण जोहर ने आश्वासन दिया है कि फिल्म की शुरूआत से पहले सैनिकों को सलामी दी जाएगी. प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने आश्वस्त किया है कि अब पाकिस्तानी गायक, अभिनेता या किसी भी पाकिस्तानी तकनीशियन को लेकर बौलीवुड में फिल्म नहीं बनेगी. इसके अलावा जिस फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार हैं, उस फिल्म का निर्माता आर्मी रिलीफ फंड में पांच करोड़ रूपए देगा. फिल्म के प्रदर्शन से पहले निर्माता को यह बात लिखकर देनी होगी.’’

ज्ञातव्य है कि करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान ने अभिनय किया है. और पिछले एक माह से करण जोहर व प्रोडूसर्स गिल्ड के मुकेष भट्ट, अनुराग कश्यप, हंसल मेहता व महेश भट्ट चिल्ला रहे थे कि पाकिस्तानी कलाकारों पर बैन लगाना उचित नही है. पर अब प्रोड्यूसर्स गिल्ड कह रहा है कि वह पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम नहीं करेंगे.

बहरहाल, इस निर्णय के बाद बौलीवुड के बिचौलिए चर्चा कर रहे हैं कि करण जोहर व उनकी टीम पिछले एक माह से विवाद की शक्ल देकर अपनी फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को चर्चा में बनाए हुए थे. करण जोहर की टीम अपनी फिल्म को फायदा दिलाने के लिए ही काम कर रही थी. अन्यथा करण जोहर पहले दिन ही इसी तरह की बैठक कर यही फैसला ले सकते थे.

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