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‘कुछ नहीं’ से ‘कुछ बनने की कहानी’ पर प्यार की दास्तान हो गयी हावी

बायोपिक फिल्म और वह भी क्रिकेटर की जिंदगी पर बायोपिक फिल्म बनाना आसान नहीं होता है. कुछ समय पहले मो. अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म ‘अजहर’ का बाक्स ऑफिस पर जो हश्र हुआ था, वह किसी से छिपा नहीं है.

अब ‘ए वेडनेस्ड’, ‘बेबी’, ‘स्पेशल छब्बीस’ जैसी फिल्मों के सर्जक नीरज पांडे मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक फिल्म लेकर आए हैं. उन्होंने इस फिल्म की कथा को 2011 के विश्व कप क्रिकेट विजय पर जाकर खत्म कर दिया. जब एम एस धोनी का करियर सर्वोच्च शिखर पर था.

इस फिल्म में एम एस धोनी की निजी जिंदगी की प्रेमकथा को कुछ ज्यादा ही महत्व दिया गया है. फिल्म की लचर पटकथा, निर्देशकीय कमी और फिल्म की लंबाई फिल्म दर्शकों को बोर कर सकती है. मगर फिल्म के कैमरामैन के अलावा एडीटर बधाई के पात्र हैं. उन्होंने क्रिकेट के कुछ मशहूर मैचों में एडीटिंग टेबल पर बड़ी खूबसूरती से एम एस धोनी की जगह सुशांत सिंह राजपूत का चेहरा बैठा दिया है.

फिल्म के निर्देशक नीरज पांडे ने अपने इंटरव्यू में दावा किया था कि उन्होंने यह फिल्म किसी इंसान को अगरबत्ती दिखाने यानी कि धोनी को महिमा मंडित करने के लिए नहीं बनायी है, मगर पूरी फिल्म में वह यही करते नजर आए हैं. एम एस धोनी से जुड़े विवादों को उन्होंने नजरंदाज कर दिया है.

फिल्म ‘एम एस धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी’ की शुरूआत रांची के अस्पताल में महेंद्र सिंह धोनी के जन्म से शुरू होती है. पहली बेटी के बाद बेटे के जन्म से पान सिंह धोनी (अनुपम खेर) काफी खुश होते हैं. पान सिंह एक स्टेडियम व उस क्षेत्र की रिहायषी कॉलोनी में पानी के वितरण करने वाले पंप रूम में नौकर हैं.

उनका बेटा महेंद्र पढ़ाई में कम फुटबॉल में ज्यादा दिलचस्पी लेता है. पर स्कूल की टीम में विकेट कीपर की जरुरत होने पर स्कूल के शिक्षक बनर्जी उसे विकेट कीपिंग करने के लिए तैयार करते हैं. उसके बाद महेंद्र की रूचि क्रिकेट की तरफ हो जाती है. पिता चाहते हैं कि उसे सरकारी नौकरी मिल जाए. मगर महेंद्र सिंह क्रिकेट खेलते रहते हैं.

माही की किस्मत साथ देती है और उन्हें रेलवे में टीसी की नौकरी मिल जाती है. पर वह ज्यादा समय तक नौकरी नही करते. नौकरी छोड़कर क्रिकेट में रम जाते हैं. पर एक ऑफर ऐसा आता है, जिससे माही की जिंदगी बदल जाती है.

वह रांची से दिल्ली पहुंच जाते हैं. फिर सफलता ही सफलता उनके कदम चूमती है. माही की जिंदगी में प्रियंका (दिशा पटनी) आती हैं, जो कि उन्हें हवाई जहाज में यात्रा करते हुए मिली थी. उनकी प्रेम कहानी आगे बढ़ती है. पर जब माही पाकिस्तान में क्रिकेट मैच खेलने जाते हैं, तभी एक कार दुर्घटना में प्रियंका की मौत हो जाती है. फिर माही की जिंदगी में साक्षी आ जाती है. साक्षी (कियारा अडवाणी) से शादी और विश्वकप जीत के साथ फिल्म खत्म हो जाती है.

माही ने छोटे व बड़े क्रिकेट के कई मैच होते हैं, उन सबको समेटने के चक्कर में कई जगह यह फिल्म डाक्यूमेंटरी लगने लगती है. निर्देशक की गलतियां गिनाने बैठा, तो पेज भर जाएंगे. इंटरवल के बाद फिल्म पर से निर्देशक की पकड़ धीमी पड़ जाती है, क्योंकि तब उनका ध्यान प्रेम कहानी पर ज्यादा हो जाता है. निर्देशक माही के संघर्ष को भी सही ढंग से उकेर नही पाए, बल्कि ऐसा लगता है कि माही को तो सारे अवसर मिलते जा रहे हैं. कोई न कोई शुभचिंतक हमेशा उन्हें आगे बढ़़कर कुछ न कुछ ऑफर दे रहा है. वैसे भी जिंदा इंसान पर फिल्म बनाना कठिन होता है. ऐसे में उस इंसान के काले पक्ष को फिल्म मे दिखाना असंभव हो जाता है. जबकि हर इंसान के कुछ स्याह पन्ने होते ही हैं. मगर निर्देशक ने सिर्फ अच्छी बातों पर ही जोर दिया है.

फिल्म का सकारात्मक पक्ष यह है कि फिल्म में माही के किरदार को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से जीवंत किया है. सुशांत सिंह राजपूत के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. अनुपम खेर, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा भी अपनी जगह ठीक हैं. फिल्म का संगीत भी ठीक है.

तीन घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ के निर्माता अरूण पांडे व फॉक्स स्टार स्टूडियो, निर्देशक नीरज पांडे, कहानी व पटकथा लेखक नीरज पांडे व दिलीप झा, कैमरामैन संतो थोडियाल, एडीटर श्री नारायण सिंह हैं.

जल्द बिना एटीएम कार्ड के ही निकलेंगे पैसे

जरा सोच के देखिए कि बिना एटीएम कार्ड के अगर पैसे निकलने लगें तो कैसा होगा. अगर आप भी चाहते हैं कि बिना एटीएम कार्ड के ही आप अपने खाते से एटीएम का इस्तेमाल करके पैसे निकाल सकें तो जल्द ही आपकी ये चाहत पूरी होने वाली है.

1 जनवरी 2017 से ऐसे एटीएम आ जाएंगे, जहां से पैसे निकालने के लिए आपको किसी एटीएम कार्ड की जरूरत नहीं होगी, बल्कि सिर्फ फिंगरप्रिंट के आधार पर ही इन एटीएम से पैसे निकाले जा सकेंगे.

रिजर्व बैंक ने लिया फैसला

भारतीय रिजर्व बैंक ने गुरुवार को बैंकों से कहा है कि वह 1 जनवरी 2017 तक एटीएम का एक नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें, जिसमें एटीएम से पैसे कार्ड से तो निकाले ही जा सकेंगे, साथ ही आधार कार्ड आधारित बायोमीट्रिक जानकारी के समायोजन से फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल करके भी पैसे निकाले जा सकेंगे.

रुकेगी धोखाधड़ी

इस तरह से एटीएम का इस्तेमाल करके होने वाली धोखाधड़ी पर भी लगाम लगेगी. इतना ही नहीं, जब ऐसा हो जाएगा तो कार्ड से होने वाली खरीदारी के जरिए की जाने वाली धोखाधड़ी भी रुकेगी.

जल्द ही स्वाइप मशीन में भी कार्ड को स्वाइप करने के बाद आपको पिन नंबर की जगह फिंगर प्रिंट देने होंगे, जिनसे धोखाधड़ी के मामलों के तेजी से कमी आएगी.

कई झंझटों से मिलेगी मुक्ति

इस सुविधा के बाद किसी को भी एटीएम मशीन पर कार्ड लेकर नहीं जाना होगा. सिर्फ फिंगरप्रिंट से व्यक्ति की पहचान कर ली जाएगी. ऐसे में आपको कार्ड रखने के झंझट और उसके खोने से होने वाली परेशानी के झंझट से भी मुक्ति मिल जाएगी.

किसी भी कार्ड से ट्रांजैक्शन अधिक सुरक्षित नहीं था, इसलिए उसके साथ पिन नंबर भी अनिवार्य किया गया, लेकिन पिन नंबर लीक हो जाने से बहुत से फर्जीवाड़े की खबर आती है. यही कारण है कि अब आधार कार्ड आधारित बायोमीट्रिक पहचान का इस्तेमाल किया जा रहा है.

ऐमजॉन का ‘ग्रेट इंडियन फेस्टिवल’ धमाका शुरू

त्योहारी सीजन शुरू होने के साथ ही ई-कॉमर्स साइटों पर सेल की शुरुआत हो गई है. सेल की शुरुआत में सबसे पहले बाजी मारी है ऐमजॉन ने. ऐमजॉन ने 'द ग्रेट इंडियन फेस्टिवल' नाम से सेल की शुरुआती की है जो 1-5 अक्टूबर के बीच ग्राहकों के लिए जारी रहेगी. हालांकि देसी ई-कॉमर्स साइट फ्लिपकॉर्ट और स्नैपडील भी 2 अक्टूबर से अलग-अलग नामों से सेल का बोर्ड टांगने वाली हैं. फ्लिपकॉर्ट 'बिग बिलियन डेज' तो स्नैपडील 'अनबॉक्स दिवाली' नाम से दीवाली धमाका पेश करने वाले हैं. फ्लिपकॉर्ट और स्नैपडील की सेल 2 अक्टूबर से शुरू होकर 5 अक्टूबर तक चलेगी.

ऐमजॉन ने सेल में ग्राहकों के साल की सबसे बड़ी छूट देने का दावा किया है. ऐमजॉन ऑनलाइन सेल में आप कम कीमत में मोटो जी 4, रेडमी नोट 3, 13 इंच का मैकबुक प्रो आई 5 प्रोसेसर के साथ, कैनन 1200 डी कैमरे और माइक्रोमैक्स LED टीवी समेत कई इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर भारी छूट पा सकते हैं. इसके अलावा कुछ बैंकों के डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर कंपनी 10 पर्सेंट कैशबैक का ऑफर भी दे रही है. लेकिन इसके लिए आपकी खरीदारी 6,000 रुपये से ऊपर की होनी चाहिए. अधिकतम 1,500 रुपये आपको कैशबैक के तौर पर मिल सकते हैं. ऐमजॉन गिफ्ट कार्ड पर भी कैशबैक ऑफर दिया जा रहा है.

प्राइज भी मिलेगा

ग्रेट इंडियन फेस्टिवल के दौरान ऐमजॉन करीब 4 करोड़ रुपये का प्राइज भी देगा. 200 लकी विजेता ऐमजॉन के खर्चे पर दुबई की यात्रा पर जाएंगे. 10 लकी विजेताओं को सेवरले गाड़ी उपहार के तौर पर मिलेगी. एक भाग्यशाली विजेता को बेंगलुरू में 2BHK का फ्लैट गिफ्ट में मिलेगा.

1-5 अक्टूबर के दौरान ऐमजॉन की साइट से कूपॉनदुनिया से खरीदारी करने वाले को गिफ्ट ड्रॉ के बाद 400 ऐमजॉन गिफ्ट सर्टिफिकेट मिलेंगे. ऐमजॉन की इस सेल में अलग-अलग समय पर ग्राहकों के लिए बेस्ट ऑफर हैं. अगर आप सुबह-सुबह खरीदारी करना चाहते हैं तो सुबह 8 बजे से (कई जगह सुबह 6 बजे से ही) आपको कई ऑफर मिल सकते हैं. इसके अलावा दोपहर 12 बजे, शाम 4 और 6 बजे भी आपको कई आकर्षक ऑफर मिल सकते हैं.

जल्दी करें खरीदारी, कहीं चूक न जाएं मौका

कई शानदार ऑफर कुछ घंटों के लिए ही है. कुछ सामान की सेल तो शुरू होने के कुछ ही मिनटों में खत्म हो के आसार हैं. इसलिए अगर आप इस धमाकेदार सेल में खरीदारी करना चाहते हैं तो कमर कस लें और पूरी रिसर्च के बाद खरीदारी करें.

ऐमजॉन प्राइम है आपके लिए

आप ऐमजॉन प्राइम सब्सक्राइव करके साइट पर 30 मिनट पहले ही खरीदारी की तैयारी कर सकते हैं. ऐमजॉन प्राइम 30 दिन के ट्रायल पर फ्री में उपलब्ध है.

गिफ्ट वाउचर भी

ऐमजॉन से खरीदारी पर आपको गिफ्ट वाउचर भी मिल सकते हैं. इन वाउचर से आप पिज्जा हट, बुक माई शो, हाइपर सिटी, लाइफस्टाइल, मेक माई ट्रिप जैसी जगहों पर छूट पा सकते हैं. तो इसलिए आज से शुरू हो जाएं शानदार खरीदारी के लिए.

और भी मौके हैं

ऐमजॉन के अलावा भी आपके पास सेल में खरीदारी के और भी मौके हैं. फ्लिपकार्ट का 'बिग बिलियन डेज' और स्नैपडील का 'अनबॉक्स दिवाली' सेल भी रविवार से शुरू हो रही है. फ्लिपकार्ट फर भी आपको फैशन, टीवी, और घरेलू इस्तेमाल में आने वाली सामानों की सेल मिलने वाली है. फ्लिपकार्ट कपड़ों, फुटवियर और अन्य सामानों पर 50-80 पर्सेंट छूट देने का वादा कर रही है. 

भारत-पाक को अलग ग्रुपों में रखे ICC: BCCI

भारत और पाकिस्तान के बिगड़ते रिश्तों के बीच बीसीसीआई ने फैसला किया कि भारत कई देशों के टूर्नामेंटों में भी पाकिस्तान के साथ खेलने से बचना चाहेगा. बीसीसीआई ने आइसीसी से कहा है कि भविष्य में वह दोनों देशों की टीमों को एक ग्रुप में न रखे.

उड़ी पर आतंकी हमले और उसके बाद भारतीय सेना के एलओसी के पार सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. इस मसले पर यहां एसजीएम से इतर चर्चा की गई.

बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा, 'सरकार ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नई रणनीति अपनाई है. उसे और देश की जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हमने आइसीसी से आग्रह किया है कि वह कई देशों के टूर्नामेंट में भारत और पाकिस्तान को एक ही ग्रुप में नहीं रखे. अगर दोनों टीमें नॉकआउट मुकाबले में आमने-सामने होती हैं तो यह अलग तरह की स्थिति होगी, जिससे बचा नहीं जा सकता.'

डीजल सस्ता तो पेट्रोल हुआ महंगा

पेट्रोल के दाम में 28 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गयी. हालांकि डीजल के दाम में 6 पैसे की कमी की गयी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों की प्रवृत्ति को देखते हुए यह कदम उठाया गया है. दो महीने में यह लगातार तीसरा मौका है जब पेट्रोल के दाम बढ़ाये गये हैं. वहीं, डीजल के मामले में इस महीने दूसरी बार दाम में कमी की गयी है.

देश की सबसे बड़ी खुदरा ईंधन कंपनी इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने कहा कि पेट्रोल की कीमत में 28 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गयी गयी है जबकि डीजल के दाम 6 पैसे प्रति लीटर कम किये गये हैं. इसमें राज्यों के शुल्क शामिल नहीं हैं. पेट्रोल पर 27 प्रतिशत वैट को शामिल करने के बाद दिल्ली में पेट्रोल 36 पैसा प्रति लीटर महंगा होगा. वहीं, डीजल के मामले में 17.42 प्रतिशत वैट को शामिल करने पर कटौती 7 पैसे होगी. इससे दिल्ली में पेट्रोल का दाम 64.57 रुपये प्रति लीटर हो गया जो 64.21 रुपये था.

इसी तरह दिल्ली में डीजल 52.52 रुपये लीटर उपलब्ध हो गया जो 52.59 रुपये था. इससे पहले, 16 सितंबर को पेट्रोल के दाम में 58 पैसे लीटर (राज्य के शुल्क को छोड़कर) की वृद्धि की गयी थी. राज्य के वैट को जोड़ने पर दिल्ली में पेट्रोल 78 पैसे लीटर महंगा हुआ था. वहीं डीजल के दाम में 31 पैसे की कटौती की गयी थी. वैट को शामिल करने पर यह कटौती 35 पैसे थी. आईओसी ने एक बयान में कहा, 'अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों और रुपये-डॉलर के एक्सचेंज रेट को देखते हुए पेट्रोल के दाम में वृद्धि तथा डीजल के मूल्य में कमी जरूरी हो गयी थी.'

काटजू शैली

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने पर उन्हें अर्धशिक्षित, धोखेबाज और कट्टरपंथी तक कह डाला पर इस पर कोई कांवकांव नहीं हुई. आलोचना की यह काटजू  शैली कोई भेदभाव नहीं करती, इस का यह मतलब नहीं कि वे हमेशा सटीक होती है, बल्कि इस का एक मतलब यह है कि देश में एक बड़ा वर्ग है जो इस तरह के धार्मिक ढकोसलों से इत्तफाक नहीं रखता क्योंकि ये मूलतया धर्म की दुकानदारी बढ़ाने के लिए किए जाते हैं.

वैसे भी हमारे देश में संतमहात्माओं का टोटा नहीं है. ऐसे में क्रिश्चियन ही सही, एक और संत पैदा हो गया तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ना है. मौजूदा ब्रैंडेड संतों के लक्षण तो उन से भी गए बीते हैं जो काटजू ने टेरेसा में गिनाए. धर्मांधों और दानदाताओं को तो खुश होना चाहिए कि एक और नई गुल्लक मार्केट में आ गई.

खाट की हाट

सरकारी खजाने से लैपटौप और स्मार्टफोन बांटना आसान है और अरबों रुपए डकारने वाले विजय माल्या को बाइज्जत विदेश भागने देना भी सरल है. ऐसे में कुछ सौहजार खाटें राहुल गांधी ने बजाय बांटने के लुटवा दीं तो कोई अजूबा नहीं हो गया है. इस बहाने कम से कम शहरी पीढ़ी खाट से परिचित तो हुई.

उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में कौन किस की खाट खड़ी करेगा, यह तो वक्त बताएगा लेकिन मनोरंजन का सिलसिला शुरू हो गया है. खाट कांड तो इस का एक उदाहरण है, अभी तो जानें क्याक्या लुटेगा और बंटेगा. ऐसे मामले सियासी पाखंडों की देन हैं. उत्तर प्रदेश आज भी पिछड़ा है जिस की जड़ में जातिवाद है. जातिवाद बना रहे, यह जरूर सभी राजनेता और दल चाहते हैं. मुमकिन है कोई दूसरा दल खाट लूटने वालों को कंबलतकिया और गद्दे देदे या लुटा दे, जिस से वे खाट पर लेट कर तय कर पाएं कि अपना अमूल्य मत किसे देना है.

मोदी-महबूबा का असफल प्रयोग

कश्मीर समस्या को हल करने के लिए श्रीनगर गई सर्वदलीय कमेटी छोटा मुंह लटका कर लौट आई है. अलगाववादियों ने आजादी के सिवा किसी मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया और वे भारतीय संविधान के बाहर बात करना चाहते हैं. यह नरेंद्र मोदी और महबूबा मुफ्ती की मिलीजुली सरकार के प्रयोग की असफलता है.

कश्मीर अलग होना चाहता है, पाकिस्तान से मिलना चाहता है, दिल्ली के कठोर नियंत्रण से मुक्त होना चाहता है, सेना हटवाने की इच्छा रखता है, सब बेमतलब की दिखावटी बातें हैं. असल बात यह है कि 1947 से अब तक हम भारतीय, कश्मीरियों को भरोसा न दिला पाए कि उन की प्रगति, विकास व सुरक्षा भारत के हाथों में ज्यादा कामयाब रहेगी. अलगाववादी धर्म के नाम पर कश्मीरियों को आम भारतीयों से अलग रखने में सफल रहे हैं. कोई भी भूखंड तब देश बनता है जब उस के निवासी चाहें कि वे एक नेता, एक कानून, एक झंडे, एक फौज, एक प्रशासन के अंतर्गत ज्यादा सुखी रहेंगे. वह युग गया जब तलवार या तोपों के बल पर देश बनाए जाते थे. पर इस का यह मतलब भी नहीं कि शतप्रतिशत निवासी ही यह चाहें. कुछ ऐतिहासिक कारणों से और कुछ सामाजिक कारणों से देश बनतेबिगड़ते रहे हैं.

1971 में पाकिस्तान को अपना विभाजन उसी तरह झेलना पड़ा जैसा भारत को 1947 में झेलना पड़ा था. हर देश में कुछ लोग अलग होने की मांग को ले कर सरकार से नाराजगी जताएंगे ही पर दूसरों का काम है कि वे ज्यादातर को भरोसा दिलाएं कि वे एक देश में ही अच्छे रहेंगे. 1947 से ही, पहले कांगे्रस ने और फिर भारतीय जनता पार्टी ने देश की जनता से कश्मीरियों को अपनाने को कभी नहीं कहा. कश्मीरी भारत में रह कर अपने को अगर बेगानेपराए समझते रहे हैं तो यह हमारे नेतृत्व की कमी रही है. हम सोचते रहे हैं कि सेना के बल पर आज नहीं तो कल, हम अलगाववादियों की हिम्मत तोड़ देंगे. पर यह 70 साल में हुआ नहीं है. देश भी मनाने से ज्यादा धमकाने में लगा रहा. जिस तरह भारत ने सिखों को मनाया, वह कोशिश कश्मीरियों के साथ हुई हो, लगता नहीं. हमारे देश का ऊंचे वर्णों वाला नेतृत्व उसी तरह कश्मीरियों से व्यवहार करने की कोशिश करता रहा, जैसा वह दलितों व पिछड़ों के साथ सदियों से करता रहा, चाहे इस कारण उस ने 2,000 साल की राजनीतिक गुलामी सही थी. भारत का अति धर्मांध बन जाना भी दोनों के बीच एक दीवार बन गया है. पिछले 70 सालों में वैज्ञानिकता व तार्किकता को नकारा गया है लेकिन उसी की देन तकनीक जरूर अपनाई गई है. इस से कश्मीरियों को धर्म का सहारा मिला है और वे भारत को विधर्मी भी मानने लगे हैं जबकि यहां भी 17 करोड़ मुसमलान हैं. सर्वदलीय कमेटी के पास लंबेचौड़े फार्मूले नहीं थे पर कश्मीरियों से बात तक न हो पाना बेहद अफसोस की बात है.

जीवन आगे बढ़ने का नाम है

यह जरूरी नहीं है कि जिस संबंध में बहुत ज्यादा प्यार, समर्पण और विश्वास है, वह हमेशा बना रहेगा. जीवन में ऐसे निर्णायक क्षण भी आते हैं जब न चाहते हुए, आप को अपने सब से प्यारे रिश्ते को छोड़ कर आगे बढ़ना पड़ जाता है. कारण कुछ भी हो सकते हैं. आप को अपनी नौकरी, दोस्त या जीवनसाथी को छोड़ कर कब आगे बढ़ना है, इस बात का एहसास आप को खुदबखुद हो जाता है.

कभी किसी दोस्त, जिस के साथ आप की गहरी दोस्ती थी, के व्यवहार में आप के प्रति आया बदलाव आप को खटक जाता है और आप की दोस्ती टूट जाती है. इसी तरह से आप जिस से बेशुमार प्यार करती हैं, उस की कही बात या उस के व्यवहार में आप के प्रति नकारे जाने या फिर बेरुखी की भावना आप को उस से दूर कर देती है. इस संबंध में रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना का कहना है कि कोई भी संबंध चाहे वह पतिपत्नी का हो या फिर प्रेमीप्रेमिका का, तभी तक निभ पाता है जब तक उस में प्यार और समर्पण की भावना हो. नातेरिश्तेदार और दोस्ती का संबंध भी तभी तक चल पाता है, जब उस में प्यार और विश्वास समाहित होता है. जैसे ही आप को इस बात का एहसास होने लगे कि आप जिस संबंध को जी रही हैं उस में एकरसता और अकेलेन का भाव आता जा रहा है, आप का साथी आप को महत्त्व नहीं दे रहा है, तो अंदर ही अंदर घुटने के बजाय उस संबंध में उस से खुल कर बात करें. बात करने के बाद अगर आप को लगता है कि आप अपने संबंधों को एक और मौका दे सकती हैं, तो जरूर दें. लेकिन आप के संबंधों में एकदूसरे पर दोषारोपण और छोटीछोटी बातों पर तकरार होने लगे, तो यह समझ लें कि अब आप के संबंधों में दूरी आने लगी है और इस का चल पाना मुश्किल है. ऐसे में रोजरोज की कलह के बजाय आगे बढ़ना ही बेहतर विकल्प है.

आप को इस बात का एहसास बड़ी आसानी से हो जाता है कि अब आप जिस संबंध को जी रहे हैं, उस की उम्र खत्म हो रही है और आप को जीवन के नए सफर की शुरुआत करनी है. कुछ ऐसी बातें हैं जो यह जता देती हैं कि आप को अपने जीवन में जो हो रहा है, उसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने की जरूरत है.

संबंधों में औपचारिकता

अकसर आप न चाहते हुए भी किसी अनचाहे रिश्ते को सिर्फ इस वजह से निभाती हैं कि अगर संबंध टूटेगा, तो लोग क्या कहेंगे, तो यह बात सही नहीं है. इस से न केवल आप के जीवन से खुशियां रूठ जाती हैं, बल्कि आप के व्यक्तित्व में नकारात्मक भावों का समावेश भी होने लगता है. जैसे ही आप को इस बात का एहसास हो कि अब आप के संबंधों में प्यार नहीं सिर्फ औपचारिकता रह गई है, तो रिश्ते को घसीटने के बजाय उस संबंध को छोड़ आगे बढ़ना ही बेहतर विकल्प है. यह सच है कि किसी भी संबंध को एक झटके में तोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आप के संबंध इतने ज्यादा खराब हो जाएं कि कभी सामना होने पर आप एकदूसरे को देख कर मुसकरा भी न सकें, तो इस से अच्छा यही है कि आप अपने रिश्ते को एक खूबसूरत मोड़ दे कर आगे बढ़ें.

जब कुछ भी अच्छा न लगे

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. नितिन शुक्ला के अनुसार, यह जरूरी नहीं है कि आप की परेशानी का कारण हर बार आप के संबंध ही होते हैं. कई बार आप जिस जगह काम कर रहे हैं, बेहतर जीवन के लिए वहां से मूव करने की भी जरूरत होती है. ऐसी स्थिति तब आती है जब सबकुछ बेहतर होने के बावजूद खुशी का एहसास न हो. इस का यह मतलब है कि आप के जीवन में कोई ऐसी चीज है जो आप को खटक रही है. यह स्थिति आपसी संबंधों के अलावा आप जिस जगह पर काम कर रही हैं, वहां का माहौल या फिर वहां के काम करने का तरीका भी हो सकता है, जो आप को रास नहीं आ रहा है. ऐसे में अपनी ऊर्जा को वहां नष्ट करने के बजाय तुरंत वहां से काम छोड़ कर नई जगह पर काम तलाशने की शुरुआत करनी जरूरी होती है. कहीं नौकरी न भी मिल पाए, तो भी वहां से काम छोड़ देना ही उचित है.

प्यार के बदले प्यार न मिलना

आप को इस बात का एहसास होने लगे कि आप तो अपने संबंधों की मजबूती के लिए जीजान से लगी हुई हैं, लेकिन आप को अपने प्यार और समर्पण के बदले थोड़ा सा भी प्यार और सम्मान नहीं मिल रहा है, तो इस का अर्थ यह है कि आप को अपने संबंध को दोबारा से समझने की जरूरत है. सच तो यह है कि कोई भी संबंध तभी सहजता से चल पाता है जब दोनों तरफ से एक बराबर प्रयास किए जाएं. जब आप को अपने प्यार के बदले प्यार न मिले तो मन में खालीपन और नकारे जाने का एहसास पनपने लगता है. इस की वजह से आप के अंदर नकारात्मक भावनाएं आने लगती हैं. इस से बचने के लिए यह जरूरी है कि आप को जिस रिश्ते में भरपूर प्यार व सम्मान न मिल रहा हो, उस से दूर ही रहें.

ऐसी दोस्ती से दूरी भली

आप औफिस का जरूरी काम कर रही हैं या फिर बच्चे को पढ़ा रही हैं, उसी समय आप की सहेली का फोन आ जाता है, जो फोन पर अपनी परेशानियों का पिटारा खोल कर बैठ जाती है. एकदो बार के लिए तो यह ठीक है, लेकिन अगर यह रोज की बात बन जाए, तो हर दिन की उस की समस्याओं को सुलझातेसुलझाते आप को झुंझलाहट होने लगती है. कारण, उस की नकारात्मक बातें आप के पारिवारिक संबंधों और औफिस के काम पर असर डालती हैं. इस स्थिति से बचने के लिए ऐसी सहेली से अपने संबंधों को टाटा बायबाय कह दें.

जहां आप की कद्र न हो

जिंदगी में खुश रहने के लिए जरूरी है कि आप जिन लोगों के संपर्क में जिस भी जगह रहें वहां आप को पूरा मानसम्मान और प्यार मिले. लेकिन आप का रिश्ता कितना ही गहरा क्यों न हो, जैसे ही आप को इस बात का एहसास हो कि उस रिश्ते में आप को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है और आप की भावनाओं व विचारों की कद्र नहीं हो रही है, वहां से हटना ही बेहतर विकल्प है भले ही वह आप की ससुराल हो या मायका.  

रिश्तों का बोझ न ढोएं

जिस जगह पर आप को उस रूप में न स्वीकार किया जाए जैसी आप हैं, वह जगह आप के लिए नहीं है. बेहतर यही होगा कि आप उस जगह से तुरंत हट जाएं.

किसी भी काम को तभी करें जब आप उसे करना चाहती हों और किसी संबंध को तभी निबाहें, जब आप को उस में सहजता महसूस हो. जहां आप को इस बात का एहसास हो कि आप जो काम कर रही हैं, उस काम को करने में खुशी नहीं मिल रही है और जिस रिश्ते को निभा रही हैं, वह आप के लिए बोझ बनता जा रहा है, तो उसे छोड़ने में हिचकें नहीं. डर कर किसी भी संबंध का निर्वाह न करें.

शरीयत के नाम पर फना होती मुसलिम महिलाएं

 तीन तलाक को ले कर भारत की मुसलिम महिलाएं लामबंद हुई हैं. खासतौर पर तालीमयाफ्ता मुसलिम महिलाएं. उत्तराखंड की सायरा बानो, जो समाजशास्त्र की स्नातक है, ने मुसलिम समाज में तलाक और मुसलिम महिलाओं के अधिकार को ले कर अदालत का दरवाजा खटखटाया. सायरा खुद तलाक की आकस्मिक ‘पीडि़त’ है. पिछले साल अक्तूबर में सायरा बहुत ही लंबे समय के बाद अपने मायके गई थी बीमार पिता को देखने के लिए. 15 सालों तक दांपत्य जीवन गुजार चुकी, 2 बच्चों की मां सायरा को मायके में एक दिन अचानक तलाकनामा मिला. हैरानपरेशान सायरा ने शौहर से संपर्क करने की बारबार कोशिश की. पर नाकाम रही. आखिरकार फरवरी में उस ने अपने अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसी तरह इसी साल 29 जुलाई को इशरत जहां नाम की महिला ने भी तीन बार मौखिक तौर पर तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. इशरत ने अपनी याचिका में तीन तलाक की इसलामी प्रथा को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन कहते हुए इसे खत्म करने का अर्ज सुप्रीम कोर्ट में किया.

सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम महिलाओं के अधिकार के सवाल पर कोई फैसला सुनाने के बजाय खुली बहस में जाने का फैसला किया. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम पर्सनल ला में सुधार के लिए तमाम कानूनी पक्षों को खंगालने का मन बनाया. इसी संदर्भ में औल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड यानी एआईएमपीएलबी से अपना पक्ष रखने को कहा था.

अपना पक्ष रखते हुए एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश करते हुए कहा कि समाज सुधार के नाम पर शरीयत कानून को नए सिरे से नहीं बनाया जा सकता है, न ही इस तर्क को तरजीह दी जा सकती है कि शरीयत कानून संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के लिए चुनौती है. उलटे, इस से छेड़छाड़ करना संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन है.

यहां सवाल यह उठता है कि आखिर मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड तीन तलाक के पक्ष में क्यों है? इस का जवाब बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए अपने हलफनामे में कुछ इस तरह से दिया है, ‘‘हर हाल में बोर्ड इस बात के हक में है कि तीन तलाक बहाल रहे.’’

यहां यह जिक्र करना भी लाजिमी होगा कि मुसलिम पर्सनल ला मुसलिम पुरुषों को बहुविवाह की इजाजत देता है. इस बारे में बोर्ड का कहना है कि यह इजाजत मुसलमान पुरुषों को ऐयाशी के लिए नहीं दी जाती है, बल्कि सामाजिक व पारिवारिक जरूरत को पूरा करने के  लिए दी जाती है. यानी साफ है शौहर अपनी बीवी का कत्ल न कर दे, इस से कहीं बेहतर है तीन बार तलाक का चाबुक. कम से कम दोनों जिंदगियां तो रहेंगी. अदालत के फैसले का लंबा इंतजार भी नहीं करना पड़ता है और न ही वक्त की बरबादी होती है. हलफनामे का लब्बोलुआब यह है कि शरीयत कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती. शरीयत कानून से छेड़छाड़ करना संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होगा.

तीन तलाक की गाज

मेरठ में हाल ही में 25 साल की एक महिला के साथ उस के पड़ोसी ने अपने कुछ मित्रों के साथ गैंगरेप किया. तन और मन से लहूलुहान हुई महिला ने दुबई में पति से अपने दर्द को बयान किया तो उसे दिलासा देने के बजाय महाशय ने दुबई से एसएमएस के जरिए, ‘तलाक तलाक तलाक’ लिख भेजा. एसएमएस के जरिए तलाक के एक ढूंढि़ए, हजारों मामले सामने आ जाएंगे.

93 हजार महिलाएं एकजुट

एसएमएस, व्हाट्सऐप, स्काइप हो या तीन बार तलाक शब्द का मौखिक उच्चारण — मुसलिम समाज में दांपत्य संबंधों को खत्म करने के इस एकतरफा चलन के खिलाफ हैं लगभग 93 हजार भारतीय मुसलिम महिलाएं. हालांकि मुसलिम महिला संगठन के साझा संगठन भारतीय मुसलिम महिला आंदोलन (संक्षेप में बीएमएमए) की ओर से प्रधानमंत्री समेत कई मंत्रियों को पत्र लिख कर मुसलिम पर्सनल ला में सुधार किए जाने की मांग की गई है. आजादी के बाद यह पहला मौका है जब भारतीय मुसलिम महिलाएं अपने अधिकार के लिए इतने बड़े पैमाने पर एकजुट हुई हैं.

तलाक और सर्वेक्षण के नतीजे

बीएमएमए की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात निकल कर आई है कि देश की 90 प्रतिशत मुसलिम महिलाएं तीन तलाक की लटकती तलवार से मुक्ति चाहती हैं और शरीयत के इस कानून में तलाक के अलावा बहुविवाह, निकाह के समय दिए जाने वाले मेहर और दत्तक कानून जैसे मुद्दों में भी वे सुधार चाहती हैं. इस के अलावा 93 प्रतिशत मुसलिम महिलाएं चाहती हैं कि तलाक से पहले मध्यस्थता अनिवार्य हो. मौखिक तौर पर दिए गए तलाक के आधार पर नोटिस भेजे जाने के लिए 89 प्रतिशत महिलाएं उलेमा, काजी और मौलवियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही के पक्ष में हैं.

सर्वेक्षण के नतीजे कहते हैं कि शहर की तुलना में गांवदेहात की महिलाएं मौखिक तलाक से कहीं अधिक पीडि़त हैं. निम्नवर्ग में आर्थिक रूप से शौहर पर निर्भर रहने वाली महिलाओं के लिए तलाक बड़ी समस्या है.

समय के अनुरूप मुसलिम राष्ट्रों ने अपने शरीयत कानून में सुधार किया है. पड़ोसी देश पाकिस्तान इन में से एक है. केवल पाकिस्तान ही नहीं, बंगलादेश

में भी मौखिक तलाक का कोई मोल नहीं है. इस के अलावा मोरक्को, ट्यूनीशिया, यमन, तुर्की, मालदीव, इराक, इंडोनेशिया, मिस्र, अलजीरिया जैसे बहुत सारे देशों में समय के अनुरूप बदलाव किए गए हैं.

धर्म व राजनीति का गठबंधन

भारत में चूंकि मुसलिम आबादी का इस्तेमाल वोट की राजनीति में एक मोहरे के तौर पर होता रहा है, इसीलिए यह हमेशा से एक विवादित विषय रहा है. राजनीतिक पार्टियों के लिए मुसलिम महिलाओं के बजाय इमाम, मुफ्ती, मौलवी, मदरसा और इफ्तार पार्टी का महत्त्व कहीं अधिक है. इन के आगे महिलाओं की क्या बिसात? मुसलिम महिलाएं अपने पुरुषशासित समाज में केवल इन के हुक्म की गुलाम हैं. धर्म और राजनीति के इस गठबंधन का खमियाजा महिलाओं को अपना बलिदान करके चुकाना पड़ता है. इस की सब से बड़ी मिसाल हैं शाहबानो.

1985 में इंदौर की शाहबानो का मामला चर्चित हुआ था. शाहबानो को उस के वकील पति मोहम्मद अहमद खान ने तलाक दे दिया था. अपने भरणपोषण के लिए अदालत से उस ने गुहार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के हक में जिस दिन अपना फैसला सुनाया था, उस दिन कठमुल्लों ने मुसलिम पर्सनल कानून का हवाला देते हुए बहुत बवाल मचाया था. कहा गया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता. आखिरकार वोट की राजनीति के चलते शाहबानो के अधिकार की कुरबानी ले ली गई.

राजीव गांधी सरकार ने मुसलिम महिला ( तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 बिल पारित किया, जिस के तहत तलाक के बाद मुसलिम महिलाएं भरणपोषण का दावा नहीं कर सकती हैं. इस से पहले एक मुसलिम तलाकशुदा महिला पुनर्विवाह करने तक अपने पूर्व पति से जीवननिर्वाह के लिए भत्ता प्राप्त करने हेतु धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आवेदन कर सकती थी और भरणपोषण की रकम प्राप्त कर सकती थी. लेकिन इस कानून के पारित होने के बाद यह असंभव हो गया.

जाहिर है 1986 के कानून के बाद मुसलिम महिलाओं के अधिकार को झटका लगा. अब मुसलिम तलाकशुदा महिला इस कानून की धारा 5 के अंतर्गत भरणपोषण के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन वह केवल उन व्यक्तियों से जीवननिर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकती है जो उस की मृत्यु के बाद उस की संभावित संपत्ति के वारिस हो सकते हैं या फिर वक्फ बोर्ड से यह भत्ता प्राप्त कर सकती है.

शरीयत द्वारा फना इमराना

तलाक के मामले का जिक्र हो तो इमराना को भला कैसे भूला जा सकता है. 2005 में मुजफ्फरनगर में 5 बच्चों की मां 28 वर्षीय इमराना का उस के 61 वर्षीय ससुर अली मोहम्मद ने बलात्कार किया. शरीयत मुफ्ती (पंचायत) ने अपना फैसला सुनाया कि इमराना अब अपने पति नूर इलाही के साथ नहीं रह सकती, क्योंकि ससुर के साथ संबंध बन जाने पर नूर इलाही अब उस का पति नहीं रह गया. इसीलिए उस के अन्य बच्चों में नूर इलाही भी एक माना जाएगा. इमराना को अली मोहम्मद की बीवी और नूर इलाही को उस का बेटा घोषित कर दिया गया. मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड ने भी मुफ्ती के इस फैसले को जायज ठहरा दिया. नूर इलाही को इमराना को तलाक देने को मजबूर किया गया. इमराना ने मुफ्ती के फैसले का विरोध किया.

बहरहाल, शरीयत के खिलाफ इमराना ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी. अंत में समाज के चौतरफा दबाव में वह तलाक मान लेने को बाध्य हो गई. जो कुसूर उस ने किया नहीं, उस की सजा उस को मिली. हालांकि भारतीय फौजदारी कानून के तहत अली मोहम्मद की गिरफ्तारी हुई. इलाहाबाद अदालत का फैसला आतेआते 8 साल लग गए. इस बीच, बलात्कारी ससुर के बचाव की पूरी कोशिश की गई. अदालत ने उसे 10 हजार रुपए का जुर्माना और 8 हजार रुपए इमराना को हर्जाने के रूप में देने की सजा सुनाई. यह और बात है कि इमराना ने वह रकम स्वीकार नहीं की.

तलाक और शरीयत कानून

शरीयत में तलाक प्रक्रिया लंबी और जटिल है. तलाक की प्रक्रिया तो तभी पूरी मानी जाती है जब संबंधित महिला को 3 मासिक स्राव यानी कम से कम 3 महीने का समय दिया गया हो. इसी के साथ शरीयत एकसाथ 3 बार लगातार तलाक शब्द का उच्चारण कर के दांपत्य संबंध तोड़ने की अनुमित नहीं देती है. कुरआन कहता है हजरत मोहम्मद निकाह के पक्ष में थे, तलाक के नहीं. उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा था कि वे निकाह करें, लेकिन तलाक न दें, अगर तलाक देना ही है तो इद्दत यानी एक निश्चित अवधि तक का इंतजार करें.

गौरतलब है कि कोई शौहर अगर अपनी बीवी को तलाक देना चाहता है तो उसे मुकम्मल तौर पर 3 महीने के समय तक इंतजार करना होता है. इस अवधि के दौरान एक तरफ आपसी विरोध को सुलझाने की गुंजाइश भी होती है तो दूसरी तरफ इद्दत के समय तक महिला का गर्भवती होना या न होना भी सुनिश्चित हो जाता है. इद्दत तक बीवी का खर्च उठाना शौहर का दायित्व है. पहली बार तलाक शब्द का उच्चारण करने के बाद 3 महीने के इद्दत के दौरान पतिपत्नी एकसाथ रहते हैं. इस बीच, अगर सुलह हो गई तो तलाक नहीं होता है. सुलह न होने पर तलाक हो जाता है.

लेकिन तलाक हो जाने के बाद अगर पतिपत्नी को अपनी गलती का एहसास हो और वे फिर से एकसाथ गृहस्थी चलाना चाहते हैं तो इस स्थिति में बड़ी अड़चन है-हलाला. पत्नी को किसी और पुरुष से निकाह कर के कम से कम 4 महीने बिताने के बाद बाकायदा उस शौहर से तलाक ले कर ही वह फिर से पहले पति से निकाह कर के वापस लौट सकती है. इसी प्रक्रिया को ‘हलाला’ कहते हैं.

हालांकि यह प्रथा दुनिया के बहुत सारे मुसलिम राष्ट्रों में प्रतिबंधित है. हलाला को छोड़ भी दें तो विडंबना यह है कि भारत में तलाक के मामले में शरीयत का हवाला तो जरूर दिया जाता है लेकिन शरीयत में तलाक के लिए बताई गई प्रक्रिया की

अनदेखी ही की जाती है.

अपनी सहूलियत, अपना कानून

सवाल उठता है कि भारत में शरीयत कानून में सरकारी नियंत्रण संभव है? मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड ऐसी किसी संभावना को सिरे से नकार देता है. जमायते हिंद के बंगाल प्रदेश इकाई के मोहम्मद नूरुद्दीन इस में किसी तरह के बदलाव को सिरे से खारिज करते हैं.

मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड का मानना है कि कुरआन और हदीस में एकसाथ 3 बार लगातार तलाक शब्द का उच्चारण करना अपराध है, लेकिन अगर ऐसा कर दिया गया हो तो तलाक पूरा हो जाता है. इस से साफ है कि ऐसे अपराध को मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड मान्यता दे रहा है.

हालांकि 2004 में तलाक समस्या के समाधान के लिए मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड ने आदर्श निकाहनामा तैयार किया. लेकिन तब भी यही कहा गया कि चूंकि निकाह करार में आर्थिक जिम्मेदारी पुरुष की होती है, इसीलिए तलाक का अधिकार भी उसे ही मिलना चाहिए. इस के बाद खानापूर्ति के तौर पर निकाहनामा में एक वाक्य जोड़ दिया गया कि तीन तलाक दरअसल, ‘पाप’ है और सच्चे मुसलमान को इस से बचना चाहिए. फिर भी मौखिक तलाक होते हैं.

साफ है महिलाओं के तमाम अधिकार तय करने के मामले में मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड अभिभावक बन बैठा है. जबकि जीवन जीने और आजीविका के मामले में मुसलिम पुरुष इसलाम के निर्देश को दरकिनार कर देते हैं. मसलन, फोटो खिंचना या खिंचवाना इसलाम में हराम माना गया है, लेकिन मतदाता परिचयपत्र से ले कर स्कूलदफ्तर या पासपोर्ट के लिए फोटो खिंचाने में गुरेज नहीं है. इसलाम में ब्याज भी हराम माना गया है, फिर चाहे वह लेना हो या देना. लेकिन बैंकिंग, घर व कार के लिए लोन लेने में यह सब चलता है.

इन मामलों में मुसलिम धर्मगुरु कोई फतवा जारी नहीं करते. यानी इसलाम के निर्देश के बावजूद इन सब को मुसलिम समाज में मान्यता मिल गई है. पहले मौलवी व काजी द्वारा मौखिक रूप से निकाह पढ़ा दिया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. निकाह को पंजीकृत न कराए जाने से जमीन, जायदाद व परिचयपत्र हासिल करने में समस्या पेश आ सकती है, इस वास्तविकता को देखते हुए इस में भी बदलाव आ गया है. निकाहनामा के जरिए बाकायदा ब्याह को पंजीकृत किया जा रहा है. सहूलियत के हिसाब से शरीयत कानून में हेरफेर की और भी बहुत सारी मिसालें हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर मौखिक निकाह का चलन नहीं है तो मौखिक तलाक क्यों?  

भारतीय मुसलिम महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही हैं. तभी तो मुर्शिदाबाद की रुकय्या नारी उन्नयन समिति की खदीजा बानो का कहना है कि अगर मुसलिम राष्ट्रों में शरीयत कानून में सुधार व संशोधन हो सकता है तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में क्यों नहीं. बैंक, बीमा या फौजदारी मामले में मुसलमान अगर शरीयत को दरकिनार कर के देश के कानून को मान कर चलते हैं तो तलाक, संपत्ति के उत्तराधिकार और दत्तक कानून के मामले में शरीयत कानून को इतना अधिक तरजीह देना, आखिर क्यों?   

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