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नेताओं के भरोसे प्रदर्शित हो सकेगी ‘ऐ दिल है मुश्किल’..?

करण जोहर हवा में उड़ रहे हैं. करण जोहर को लग रहा है कि उन्होंने देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अपनी फिल्म के सुचारू रूप से प्रदर्शन की हरी झंडी ले चुके हैं. उन्हे लग रहा है कि उन्होने महाराष्ट् के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे के संग बैठक कर अपनी फिल्म के प्रदर्शन के लिए रास्ता साफ कर लिया है. इसलिए अब उन्हे काहे का डर..मगर बौलीवुड के सूत्रों की माने तो अभी भी करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ के प्रदर्शन और फिल्म की सफलता को लेकर मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं. यूं तो इसका ईशारा राज ठाकरे अपने बयान में भी कर चुके हैं. राज ठाकरे ने मीडिया से कहा था-‘‘मनसे फिल्म के रिलीज का विरोध नहीं करेगी. मगर लोग तो बहिष्कार करेंगे ही.’ करण जोहर को इसके मायने तलाशने होंगे.

करण जोहर ने जिस तरह से फिल्म इंडस्ट्री की एसोसिएशनों को दरकिनार करते हुए राजनेताओें के साथ बैठकें कर समझौते किए हैं, उससे फिल्म इंडस्ट्री के अंदर भी उनके खिलाफ एक माहौल बन गया है. आधे से ज्यादा बौलीवुड इस तरह के समझौते का विरोध कर रहा है. उधर भारतीय सेना भी खिलाफ है. कई पूर्व सैनिको ने बयान जारी कर कहा है कि सैनिकों के वेलफेअर फंड में किसी से जबरन वसूली वाला पांच करोड़ नहीं चाहिए.

उधर महाराष्ट्, गोवा, गुजरात व कर्नाटक इन चार राज्यों के सिंगल सिनेमा घर मालिको की एसोसिएशन के अध्यक्ष नितिन दातार ने करण जोहर पर फिल्म एक्जबीटरों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए ऐलान किया है कि उनकी एसोसिएशन करण की फिल्म को रिलीज नहीं करेगी. नितिन दातार का आरोप है कि करण जोहर अखबारों में विज्ञापन देकर भ्रम फैलाने के अलावा फिल्म एक्जबीटरों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं कि उनकी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ सिंगल थिएटर में रिलीज होगी. जबकि हकीकत यह है कि नितिन दातार की एसोसिएशन में 450 सदस्य हैं, जो कि फिल्म को रिलीज नही करेंगे, इसमें से सिर्फ 80 सिंगल थिएटर मुंबई में हैं.

इतना ही नही बौलीवुड के सूत्र दावा कर रहे हैं कि करण जोहर ने राजनीतिक हस्तियों के साथ मेल मिलाप कर लिया, मगर देश की आम जनता से सीधे बात करना उन्होंने जरूरी नहीं समझा. करण को देश की जनता की भावनाओं व संवेदनाओं को भी समझना होगा. अंततः राजनेता नहीं देश की जनता ही तय करेगी कि वह ‘ऐ दिल है मुश्किल’ देखना चाहती है या नहीं..यानी कि अभी भी ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की राह आसान हुई है, ऐसा नहीं लगता..

सपा परिवार में बनते बनते बिगड़ गई बात

मुलायम परिवार में विवाद को लेकर जुटे परिवार के बीच सबकुछ सुलह समझौते के बीच पहुंच कर भी बात बिगड़ गई. समाजवादी पार्टी के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी सुबह से ही जमावड़ा लगना शुरू हो गया. नेताओं के अलग अलग गुट के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गये. इनको रोकने के लिये पुलिस को लगाना पड़ा और मीटिग का समय 10 बजे के बजाये 11 बजे का रखा गया. मीटिंग के शुरू होने पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी बात रखी, जिसमें उन्होंने शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह का पक्ष लिया. मुलायम ने विस्तार से बताया कि शिवपाल और अमर सिंह उनके लिये कितना अहम स्थान रखते हैं. मुलायम ने यह बताया कि किस तरह से लाठी खाकर पार्टी बनाई है. कैसे अमर ने मुसीबत के समय उनकी मदद की. मुलायम ने अमर सिंह को अपना भाई कहा.

मुलायम के बाद मीटिंग में अखिलेश और शिवपाल ने अपनी अपनी बात रखी. मीटिंग को एक मुकाम पर ले जाकर खत्म करने के तहत मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ चलने का संदेश दिया. अखिलेश और शिवपाल गले मिले. मुलायम ने कहा कि अखिलेश सरकार चलाएं और शिवपाल संगठन. ऐसे में लगा कि यह विवाद यहीं खत्म हो जायेगा. इस बीच अखिलेश ने अमर सिंह के एक पत्र का जिक्र किया. जिसमें अखिलेश को मुसलिम विरोधी कहा गया था. इसके प्रमाण के रूप में सपा नेता आशू मलिक को गवाह के रूप में बुलाया गया. आशू मलिक ने अपनी बात रखनी शुरू कि तो धक्का मुक्की शुरू हो गई. जिसमें एक बार फिर से शिवपाल और अखिलेश आमने सामने आ गये. जो बात बनती दिख रही थी वह बिगड़ गई.

एक के बाद एक नेता मीटिंग से बाहर चले गये. अब मीटिंग की बात को सुलझाने के लिये फिर से अलग अलग नेताओं में मिलने का दौर शुरू हो गया. मीटिंग के आखिर में हुई इस घटना से यह पता चल गया है कि सपा की रार खत्म नहीं हुई है. अब नई तरह से इसको सुलझाने का प्रयास होगा. समाजवादी पार्टी के ज्यादातर नेता चाहते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी मुलायम खुद संभाले इसके बाद ही समाजवादी पार्टी एकजुट रह पायेगी. इस राह में रोडा दिख रहे अखिलेश यादव खुद कह चुके हैं कि वह नेताजी का हर कहा मानेंगे. जिस तरह से अखिलेश यादव के पक्ष में विधायकों का एक गुट सामने आ रहा है उससे साफ है कि सत्ता के लिये रस्साकशी चलेगी.

यह बात मुलायम भी समझते हैं कि अखिलेश को कुर्सी से हटाना सरल नहीं है. इस वजह से ही वह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और लोकदल नेता चौधरी अजीत सिंह से भी बात कर चुके है. मुलायम ने यह साफ कर दिया है कि उनको बूढ़ा न समझा जाये. वह अभी भी पार्टी को संभाल सकते हैं. खबर है कि कांग्रेस और लोकदल मदद के लिये आगे आ सकती है. सपा की लड़ाई में हर घंटे नये बदलाव आ रहे हैं. ऐसे में पल पल राजनीति के रंग बदलेंगे.                        

 

अमर और शिवपाल को नहीं छोड़ सकते मुलायम

समाजवादी पार्टी में परिवार के अंदर चल रही रार अब खुलकर बाहर आ गई है. अखिलेश यादव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से जब शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से बाहर किया, तो सपा प्रमुख मुलायम सिह यादव ने रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर कर दिया. यही नहीं, शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को भाजपा के साथ मिला हुआ बता कर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया और तर्क दिया कि वह अपने पुत्र और बहू को सीबीआई जांच से बचाने के लिये भाजपा से मिलकर मुख्यमंत्री अखिलेश को गुमराह कर रहे हैं. रामगोपाल भी ऐसे आरोप शिवपाल पर लगाते अपने पत्र में लिखते हैं कि मुलायम सिंह यादव इस समय ‘आसुरी शक्तियों’ से घिरे हुये हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल और उनके समर्थक मंत्रियों को यह कहते बाहर किया कि यह लोग अमर सिंह के कहने पर काम कर रहे हैं.

सपा परिवार की इस लड़ाई में बारबार बाहरी लोगों को नाम लिया जा रहा है. असल में परिवार में विवाद की वजह घर के अंदर है. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का परिवार 2 खेमे में बंटा हुआ है. एक में अखिलेश और रामगोपाल यादव हैं. दूसरे खेमे में मुलायम की दूसरी पत्नी साधना, बहू अपर्णा बेटा प्रतीक और भाई शिवपाल यादव हैं. दोनो गुटों के बीच असल टकराव उत्तराधिकार का है. अखिलेश यह बात जानते हैं कि अगर असल बात सामने रखी गई तो पिता मुलायम सीधे निशाने पर आ जायेंगे. ऐसे में सपा प्रमुख को चाहने वाले नेता और कार्यकर्ता उनसे कट जायेंगे. ऐसे में अखिलेश अकेले पड़ जायेंगे. इस लिये बारबार वह बाहरी लोगों काम नाम ले रहे हैं.

घर की लड़ाई सडक पर आई, तो कार्यकर्ताओं का टकराव होने लगा. इससे पार्टी सहम गई. मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के खिलाफ खुलकर सामने आना पडा. इस लड़ाई में अखिलेश अकेले पड़ गये हैं. सपा प्रमुख मुलायम ने कहा कि वह अमर सिंह और शिवपाल सिंह यादव को छोड़ नहीं सकते. ऐसे में मुलायम और अखिलेश के बीच टकराव टूट की कगार पर आ गया है. मुलायम सिंह परिवार के बीच टूटन को भले ही रोक ले पर जो गांठ परिवार के बीच पड़ गई वह बनी रहेगी. ऐसे में कार्यकर्ता और समर्थक अमंजस में है कि वह किसकी तरफ रहे. नेताओं से ज्यादा उनके बीच टकराव दिख रहा है.                  

समाजवादी पार्टी: चुनाव से पहले कुनबे में कलह

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. अगले साल फरवरी-मार्च में मतदान हो सकता है. लगभग सभी विपक्षी दल पिछले कई महीने से तैयारियों में जुटे हैं. जो समाजवादी पार्टी 2012 से सत्तारूढ़ है, उससे भी ऐसी ही अपेक्षा थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम से लगता है कि सपा में दूसरी ही तैयारी हो रही है.

मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी को उन्होंने पच्चीस साल में खून-पसीना बहाकर इस स्थिति तक पहुंचाया है, वह परिवार के अंदरूनी तनाव, झगड़ों और वर्चस्व की जंग में टूट के कगार पर पहुंच जाएगी. वह भी विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले.

पिछले चौबीस घंटे के भीतर घटनाएं इतनी तेजी से घटी हैं कि हर कोई हतप्रभ है. वैसे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कभी अपने पिता और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की हुक्म उदूली नहीं की, परन्तु पिछले छह महीने में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जब उन्होंने मुलायम की इच्छा के खिलाफ जाकर फैसले करने का साहस दिखाया है. तीन महीने पहले तक भी कुनबे के बहुत से विवाद परदे के पीछे थे परन्तु जब से मुलायम ने अमर सिंह को सपा में लेने और राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है, तब से झगड़े बढ़ गए हैं. अब बात घर से निकलकर सड़कों पर आ चुकी है.

अखिलेश यादव अपने सगे चाचा शिवपाल यादव को पसंद नहीं करते. शिवपाल अखिलेश को नापसंद करते हैं और जब 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया था, तब से ही वे नाखुश हैं. चीजें दबी छिपी रहीं परन्तु परदे के पीछे ऐसी बहुत सी बातें चलती रहीं, जिनके चलते अंतत: अखिलेश यादव का धैर्य जवाब दे गया. उनके विरोध के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बाहुबलि की पार्टी के सपा में विलय का फैसला बदलना पड़ा था, जो शिवपाल यादव की पहल पर हुआ था. बाद में एक दिन खबर आई कि मुलायम ने अखिलेश को भरोसे में लिए बिना प्रदेश अध्यक्ष पद मुख्यमंत्री से छीनकर शिवपाल यादव को सौंप दिया है. जवाब में अखिलेश ने शिवपाल से कई विभाग छीन लिए और अपनी नाराजगी का एहसास कराया.

सुलह सफाई के बाद उन्हें महकमे लौटा दिए गए परन्तु प्रदेशाध्यक्ष के नाते शिवपाल ने अखिलेश के कई करीबियों को जब बाहर का रास्ता दिखाया तो बात बनने के बजाय बिगड़ती चली गई. जो हालात इस समय बने हैं, वह देर-सबेर बनने ही थे. अखिलेश यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं कि पांच साल तक यूपी में सरकार वह चलाएं और विधानसभा चुनाव के वक्त प्रत्याशी कोई और तय करे. टिकट उनके वह चाचा बांटें, जो हमेशा उन्हें नीचा दिखाते आ रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी दो पाटों में बंटी हुई दिखाई देने लगी. महासचिव और राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव यहां अखिलेश के साथ खड़े नजर आने लगे वहीं अमर सिंह शिवपाल यादव के साथ गलबहियां डालते देखे गए. अखिलेश और उनके सर्मथकों का मानना है कि यही लोग मुलायम के कान भरकर माहौल खराब करने में लगे हैं.

सपा में जो टूट के हालात बन गए हैं, उसकी एकमात्र वजह यही है कि संगठन पर किसका वर्चस्व हो, अब इसके लिए संघर्ष शुरू हो गया है. अखिलेश किसी भी हालत में यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं कि संगठन पर कोई और कब्जा करे. टिकट कोई और बांटे. पार्टी फंड पर किसी और का आधिपत्य हो. अखिलेश ने रविवार को जहां शिवपाल सहित पांच मंत्रियों को बर्खास्त किया, वहीं इसकी प्रतिक्रिया में शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को छह साल के लिए निष्कासित करने का ऐलान कर दिया. यह जंग यहीं खत्म होने वाली नहीं है. सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि मुलायम का अगला कदम क्या होने वाला है? वे बेटे के साथ खड़े होंगे या शिवपाल यादव और अमर सिंह के साथ खड़े दिखेंगे. अगले कुछ दिनों में समाजवादी पार्टी दो फाड़ होती नजर आए तो किसी को ताज्जुब नहीं होगा.

हालांकि उत्तर प्रदेश के सियासी घमासान को देखने के दो तरीके हो सकते हैं. एक तो यह कि इसे पूरी तरह सत्ता में बैठे परिवार का अंदरूनी झगड़ा मान लिया जाए. इसे प्रदेश के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव के परिवार की वैसी ही सियासी लड़ाई मान ली जाए, जैसी हमने कुछ समय पहले तमिलनाडु में एम करुणानिधि के परिवार में देखी थी. अभी तक तो इसे इसी रूप में देखा जा रहा था और यह माना जा रहा था कि परिवार के बड़े-बुजुर्ग की तरह मुलायम सिंह यादव आगे बढ़ेंगे और सारी कड़वाहट खत्म हो जाएगी. खुद मुलायम सिंह भी यही कोशिश कर रहे थे और एक समय लगने भी लगा था कि मामला अब खत्म ही होने वाला है. लेकिन कल लखनऊ में जिस तरह की राजनीति हुई, और दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी चालें चलीं, उनको देखते हुए यही लगता है कि अब बात शायद उनकी कोशिशों से कहीं आगे बढ़ गई है.

समाजवादी पार्टी के इस घमासान को देखने का दूसरा नजरिया यह हो सकता है कि यह दो पीढ़ियों का संघर्ष है, जो ऐन चुनाव से पहले सतह पर आ गया है. एक तरफ शिवपाल यादव हैं, जो पुरानी तरह की राजनीति के समर्थक हैं. वोट लेने और सरकार चलाने तक उनके सारे औजार वही हैं, जिनका एक जमाने से भारतीय राजनीति में दबदबा रहा है. दूसरी तरफ, पार्टी के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं, जो पद संभालने के बाद से नई तरह की राजनीति करते आए हैं. सरकार चलाने और राजनीति करने, दोनों में उन्होंने अपनी छवि का पूरा-पूरा ख्याल रखा है. बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कॉल सेंटर खोलने जैसे कदम उनकी आधुनिक सोच को दर्शाते हैं.

समाजवादी पार्टी में घमासान चूंकि अभी जारी है, इसलिए ठीक से यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि यह लड़ाई सिर्फ परिवार के भीतर का मामला होकर रह जाएगी या फिर दो पीढ़ियों के संघर्ष के रूप में यह किसी अंजाम तक पहुंचेगी. कहीं न कहीं यह उम्मीद बची हुई है कि अगर मुलायम सिंह यादव सक्रिय हुए, तो मामला यहीं पर खत्म हो सकता है. दोनों पक्षों के बीच मेल-जोल की कोशिशों के कुछ संकेत मिले भी हैं और कुछ फॉर्मूलों की चर्चा भी हो रही है. एक-दूसरे से शिकवे-शिकायतों के बावजूद दोनों पक्ष इस बात को समझते ही होंगे कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह का घमासान उन्हें कितना नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में अपने-अपने लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की राजनीति इस लड़ाई का एक बड़ा कारण है.

कुछ भी हो, यह घमासान प्रदेश के विरोधी दलों के लिए एक अच्छी खबर है. वे यह मान रहे हैं कि कुछ महीने बाद जब प्रदेश में चुनाव होंगे, तब समाजवादी पार्टी को जितना परेशान एंटी इन्कंबेन्सी नहीं करेगी, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसे इस घमासान की वजह से पार्टी की छवि की पहुंची क्षति के कारण होगा. इसी के साथ यह गणना भी शुरू हो गई है कि किस वर्ग के कितने मतदाता समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया था और बिना किसी सहयोगी के अपने बूते पर सरकार बनाई. उसकी सरकार के पास गिनाने के लिए कई उपलब्धियां और आंकड़े भी हैं.

सुनील गावस्कर को मिलेगा लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और दुनिया के सर्वकालिक श्रेष्ठ सलामी बल्लेबाजों में से एक सुनील मनोहर गावस्कर को 11 दिसंबर को लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा. उन्हें ये सम्मान स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ मुंबई (SJAM) की ओर से दिया जाएगा.

गावस्कर को वानखेड़े स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट के चौथे दिन अवॉर्ड से नवाजा जाएगा. SJAM की ओर से यह जानकारी दी गई. SJAM ने पहला लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड सितंबर 2013 में बैडमिंटन खिलाड़ी नंदू नाटेकर को दिया गया था.

बता दें कि इसी महीने गावस्कर के क्रिकेट से जुड़ाव के 50 साल पूरे हुए हैं. उन्होंने अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच वजीर सुल्तान इलेवन के लिए डूंगरपुर इलेवन के खिलाफ अक्टूबर 1966 में खेला था. ये मैच मोइन-उद-दोवलाह गोल्ड कप का क्वार्टर फाइनल था. रणजी ट्रॉफी में गावस्कर की शुरुआत बंबई के लिए मार्च 1970 में मैसूर के खिलाफ सेमीफाइनल मैच से हुई थी.

इसके बाद वेस्ट इंडीज दौरे (1970-71) के लिए गावस्कर को चुना गया और उन्होंने इतिहास रच दिया. इस सीरीज में गावस्कर ने 774 रनों का अंबार खड़ा किया. इसके बाद हुए इंग्लैंड दौरे में भी गावस्कर ने बल्ले से शानदार प्रदर्शन किया. गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में 10,000 रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी बने.

गावस्कर ने टेस्ट करियर में 125 टेस्ट में 34 शतकों के साथ 10,122 रन बनाए. गावस्कर ने 108 वनडे मैच भी खेले, जिनमें उन्होंने 3,000 से ज्यादा रन बनाए. 1987 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी गावस्कर क्रिकेट से जुड़ी कई प्रशासनिक भूमिकाओं में दिख चुके हैं. इसके अलावा कमेंटेटर के तौर पर भी उनकी मजबूत पहचान है.

सोशल मीडिया पर किया गलत व्यवहार तो नहीं मिलेगा लोन

अब सोशल मीडिया पर किसी का पीछा करना या उसे ट्रोल करना आपके आर्थिक भविष्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है. अब अगर आपको लोन लेना है तो सोशल मीडिया पर शिष्टाचार सीख लीजिए क्योंकि अब इसी से तय होगा कि आपको पर्सनल लोन पर 30% ब्याज देना होगा या 9%. इंस्टापैसा, गोपेसेंस, फेयरसेंट, कैशकेयर और वोटफॉरकैश जैसी नए समय की ऑनलाइन लोन देने वाली संस्थाएं और क्रेडिटमंत्री व बैंकबाजार.कॉम जैसे क्रेडिट मार्केटप्लेस लोन लेने वाले ग्राहकों की जानकारी के लिए केवल पेस्लिप या बैंक स्टेटमेंट तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह आपके फोन लोकेशन डेटा, एसएमस और सोशल मीडिया पर आपके व्यवहार पर भी पैनी नजर बनाए रखती हैं. इनके पर्सनैलिटी स्कोर के आधार पर ही लोन लेने वाले की विश्वसनीयता को जांचा जाएगा.

ऐसी अनैलेसिस से वकील, फ्रीलांसर और कंसल्टेंट जैस लोग जिनको तनख्वाह नहीं मिलती है, उनकी जानकारी के लिए काफी महत्वपूर्ण है. बैंक ज्यादातर ऐसे लोगों को लोन देने में काफी सावधानी बरतते हैं. केवल 1 से 7 दिन के भीतर लोन दिलाने वाली अर्लीसैलरी.कॉम जीपीएस लोकेशन, फेसबुक और लिंक्डइन के डेटा पर नजर रखता है. 

नकल का धंधा हावी

देश में परीक्षाएं मखौल बन गई हैं और कहीं भी किसी तरह की परीक्षा ले लें, परीक्षा देने वाले अपना समय व शक्ति नकल करने, पेपर लीक करवाने, परीक्षा हौल में उत्तर पुस्तिका बदलवाने और बाद में अंक बढ़वाने में लग जाते हैं. बिहार में एक लड़की जो लगभग अनपढ़ सी थी, 10वीं  कक्षा में परीक्षा धांधली के कारण टौप कर गई. मध्य प्रदेश में मैडिकल कालेजों के प्रवेश पर 2013 में एक परीक्षा में 415 छात्रों का परिणाम निरस्त कर दिया गया जिस से उन का कालेजों में लिया गया दाखिला भी समाप्त हो गया.

नकल करने कराने में तो हजारों गए ही, मैडिकल कालेज में जमने में हुए खर्च और बेकार हुए सालों का हिसाब लगाया जाए तो जो कुछ कमाने की उम्मीद थी, वह नर्मदा में बह गई.

मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पेचीदा हो गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट बच्चों को सजा देने के खिलाफ था, क्योंकि उन की गलती यह थी कि उस दिन मास कौपिंग हुई थी और कहना मुश्किल था कि कौन शरीफ था कौन नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला फिलहाल सुनाया है वह हिंदी फिल्म ‘प्यारा दुश्मन’ की तरह का है जिस में ट्रक ड्राइवर को जिस के ट्रक के नीचे आ कर एक व्यक्ति मारा गया था, उसी मृतक के घर रहने का आदेश दिया गया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिश की है कि ये छात्र जिन्हें निलंबित किया गया, पढ़ाई पूरी करें, फिर डाक्टर बन कर 5 साल तक समाज की सेवा के लिए बिना वेतन सरकारी अस्पतालों में काम करें. अगर उन्हें सेना के मैडिकल कोर में भेजा जाए तो और अच्छा रहेगा, क्योंकि वहां अनुशासन रहेगा और खानेरहने की सुविधाएं भी मिलेंगी.

यह उपाय चाहे कितना अच्छा हो पर नकल को बंद करेगा, असंभव है. परीक्षा में बेईमानी करना हमारे बेईमान समाज की रगरग में भरा है. और सिफारिश और रिश्वत के महामंत्र मानने की आदत पहले दिन से आरतियां सुनते हुए पड़ने लगती है. भारतीयों की लगातार हार, गरीबी, भुखमरी, बेचारगी की वजह बेईमानी है जो हमारे समाज का तमगा है.

सुप्रीम कोर्ट को समझ आ रहा था कि इस समस्या का हल आसान नहीं. 400 से ज्यादा बच्चों को पूरे जीवन की सजा देना भी गलत है और नकल का महिमामंडन करना भी ठीक नहीं. मामले का अंत नहीं हुआ है पर जब भी होगा, रोचक होगा. यह पक्का है कि नकल का धंधा रुकेगा नहीं. धर्म के धंधे की तरह यह शरीफों की जान लेता रहेगा, पाखंडियों का पेट भरता रहेगा.

अब नहीं बनेगी फरहान अख्तर की फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’

इन दिनों बौलीवुड संकट के दौर में फंस हुआ है. सूत्रों की माने तो जब से ‘रिलायंस इंटरटेनमेंट’ के बाद ‘डिज्नी स्टूडियो’ के अलावा एकता कपूर की कंपनी ने हिंदी फिल्मों के निर्माण से तौबा की है, तब से कई घोषित फिल्मों के निर्माण पर सवालिया निशान लग गया है. मजेदार बात यह है कि इस का शिकार फरहान अख्तर और कृति सैनन की फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’भी हुई है.

सूत्रों के अनुसार जेल के कैदियों द्वारा शुरू किए गए एक म्यूजिकल बैंड की कहानी वाली फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’ को लेकर फरहान अख्तर और कृति सैनन दोनों काफी उत्साहित थे. ज्ञातब्य है कि 2008 में जब फरहान अख्तर ने पहली बार ‘राक आन’ में गायक व अभिनेता के रूप में करियर शुरू किया था, उस वक्त इस फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की थी. इसी वजह से फरहान अख्तर ‘‘राक आन’’ का सिक्वअल ‘‘राक आन 2’’ लेकर आ रहे हैं, ‘राक आन 2’ भी संगीत प्रधान फिल्म होने के साथ साथ एक राक बैंड की कहानी है.

इसी सोच के साथ फरहान अख्तर ने फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ की घोषणा की थी. फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी की ही कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेट’ करने वाली थी. जिसे किसी न किसी स्टूडियों के साथ जोड़ने की भी योजना थी. इस फिल्म का निर्देशन निखिल अडवानी करने वाले थे. पर अब सूत्रों का दावा है कि ‘एक्सेल इंटरटेनमेट’ ने ‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण करने से हाथ खड़ा कर दिए हैं.

फरहान अख्तर के अति नजदीकी सूत्रों पर यकीन करें, तो इन दिनों फरहान अख्तर ग्यारह नवंबर को प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्म ‘‘राक आन 2’’ को लेकर काफी परेशान हैं. सूत्रों के अनुसार फरहान अख्तर पिछले दो माह से इस फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं, पर उन्हे अभी तक अपेक्षित रिस्पांस नहीं मिल पाया है. जबकि वह इस फिल्म के गीत जारी करने के साथ साथ म्यूजिकल कंसर्ट भी कर चुके हैं. तो वहीं विदेशों में होने वाला उनका ‘राक आन 2’ का म्यूजिकल कंसर्ट रद्द हो चुका है. इतना ही नहीं प्राची देसाई की नाराजगी के चलते काफी विवाद हुआ. अंततः प्राची देसाई को संतुष्ट करने के लिए कुछ सीन पुनः फिल्माकर फिल्म में जोड़े गए. इससे भी फरहान काफी परेशान हैं.

बौलीवुड के कुछ सूत्र तो फरहान अख्तर को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. वास्तव में फरहान अख्तर और उनके पी आर को फिल्म ‘राक आन 2’ को प्रमोट करने की वर्तमान शैली पर विचार करने की जरुरत है.

बहरहाल, ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ से जुड़े यह तो दावा कर रहे हैं कि यह कंपनी अब ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’ का निर्माण नहीं करने वाली है, पर वजह बताने को कोई तैयार नहीं है. जबकि बौलीवुड में हो रही चर्चाएं तो यही हैं कि ‘राक आन 2’ को मिल रहे ठंडे रिस्पांस के ही चलते ‘लखनऊ सेंट्रल’ के बंद होने की नौबत आयी है.

ज्ञातब्य है कि ‘राक आन 2’ का निर्माण भी एक्सेल इंटरटेनमेंट ने किया है, मगर इसके निर्माण के साथ स्टूडियो के तौर पर ‘ईरोज इंटरनेशनल’ भी जुड़ा हुआ है. कुछ सूत्र ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ ’के स्थगित होने के लिए इसके निर्देशक निखिल अडवाणी निर्देशित दो फिल्मों की असफलता के साथ जोड़कर देख रहे हैं. 2015 में प्रदर्शित निखिल अडवाणी निर्देशित दो फिल्मों ‘हीरो’ और ‘कट्टी बट्टी’ ने बाक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगा था. इन फिल्मों की असफलता के चलते निखिल अडवाणी के सितारे भी गर्दिश में चल रहे हैं. 2015 में इन दोनों फिल्मों की अफसलता के बाद बतौर निर्देशक निखिल अडवाणी को कोई काम नहीं मिला. शायद  ‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण स्थगित होने की वजह से ही निखिल अडवाणी भी छोटे परदे पर सीरियल ‘‘युद्ध के बंदी’’ के निर्देशन में व्यस्त हो गए हैं.

धोनी ने तोड़ा सचिन का रिकॉर्ड

भारतीय वनडे टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने एक बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है. उन्होंने मोहाली वनडे के दौरान न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलते हुए महान पूर्व बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के एक विशाल रिकॉर्ड को तोड़ डाला.

सबसे ज्यादा छक्के

भारत की तरफ से वनडे क्रिकेट में अब तक सबसे ज्यादा छक्का लगाने का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नाम पर था. सचिन से ठीक पीछे इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर भारतीय वनडे क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी थे.

सचिन ने अपने करियर में खेले 463 वनडे मैचों में कुल 195 छक्के लगाए थे. वहीं धोनी ने न्यूजीलैंड के खिलाफ मोहाली में अपने वनडे करियर के 281वें मैच में ही इस रिकॉर्ड को तोड़ डाला. धोनी ने इस मैच में 91 गेंदों पर 80 रनों की पारी खेली जिसमें 6 चौके और 3 छक्के शामिल रहे.

माही अब वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा छक्के लगाने के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर पहुंच गए हैं. उनसे ज्यादा छक्के इन बल्लेबाजों के नाम दर्ज हैं.

शाहिद अफरीदी (पाकिस्तान) – 351 छक्के

सनथ जयसूर्या (श्रीलंका) – 270 छक्के

क्रिस गेल (वेस्टइंडीज) – 238 छक्के

ब्रेंडन मैकुलम (न्यूजीलैंड) – 200 छक्के

महेंद्र सिंह धोनी (भारत) – 196 छक्के

9000 वनडे रन भी पूरे

महेंद्र सिंह धोनी ने मोहाली वनडे में अपने वनडे करियर के 9000 रन भी पूरे कर लिए. वो ऐसा करने वाले दुनिया के 17वें खिलाड़ी बन गए हैं. उनसे पहले ये कमाल सिर्फ चार भारतीय बल्लेबाज कर पाए हैं.

ये भारतीय बल्लेबाज हैं सचिन तेंदुलकर (18426), सौरव गांगुली (11363), राहुल द्रविड़ (10889) और मोहम्मद अजहरुद्दीन (9378). धोनी ने अपने वनडे करियर के 281वें मैच में ये रिकॉर्ड हासिल किया है. वहीं, वो 244 पारियों में 9000 रन बनाकर ये आंकड़ा सबसे तेज हासिल करने के मामले में दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गए हैं.

होम अलोन किड्स और पेरेंट्स की ज़िम्मेदारी

माता-पिता  सिर्फ मातापिता  होते है अर्थात उनकी जगह और कोई नहीं ले सकता. किसी भी मातापिता के लिए उनके बच्चे ही उनकी दुनिया होते हैं और बच्चों की उपस्थिति मात्र से ही उनकी जिंदगी अर्थपूर्ण हो जाती है. अभिभावक होने के नाते मातापिता बच्चों की सभी इच्छाओं एवं सपनों को पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं और इस कोशिश में उन्हें न चाहते हुए भी बच्चों को घर पर अकेले छोड़ने का कठोर एवं अपरिहार्य निर्णय लेना पड़ता है. माना कि बच्चों को घर पर अकेला छोड़ना 21वीं सदी की एक आवश्यकता और पेरेंट्स के लिए एक मजबूरी बन गई है. लेकिन यह मजबूरी आपके नौनिहालों के व्यक्तित्व और व्यवहार में क्या बदलाव ला सकती है यह  किसी भी पेरेंट्स  के लिए जानना बेहद ज़रूरी  है.

शेमरोक एंड शेमफ़ोर्ड ग्रुप ऑफ़ स्कूल्स की डायरेक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार मातापिता की अनुपस्थिति में अकेले रहने वाले बच्चों के व्यवहार में निम्न समस्याएँ देखने में आती हैं –

डरने की प्रवृत्ति

घर पर अकेले रहने से बच्चों में खाली घर में सामान्य से शोर से डरने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है क्योंकि उन्हें बाहरी दुनिया का बहुत कम अनुभव होता है.  इसके अतिरिक्त अकेले रहने वाले  बच्चे अपने पैरेंट्स से अपने डर शेयर नहीं करते क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन्हें अभी भी बच्चा समझा जाये. कई बार बच्चे अपनी सुरक्षा को लेकर पैरेंट्स को चिंतित नहीं  करना चाहते इसलिए भी वे अपने मन की बात छुपा जाते हैं.

अकेलापन

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों को उनके दोस्तों से मिलनेकिसी भी एक्स्ट्रा-करिकुलर ऐक्टिवटी में भाग लेने अथवा कोई सोशल स्किल विकसित करने की अनुमति नहीं होती इससे उनकी सोशल लाइफ प्रभावित होती है और वे अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे बच्चे अपनी चीजों को शेयर करना भी नहीं सीख पाते हैं. ऐसे बच्चे अकेले रहने के कारण आत्मकेंद्रित हो जाते हैं और बाहर की दुनिया से कटे रहने के कारण वे स्वार्थी, दब्बू और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

सेहत के लिए खतरा

घर पर रहने वाले बच्चे शरीर को ऐक्टिव रखने वाली कोई भी आउटडोर एक्टिविटी नहीं करते जिससे आलस बढ़ता है और अधिकांश बच्चे मोटे हो जाते हैं. ऐसे बच्चों में खानपान, सेहत व विकास संबंधी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. अकेले रहने के कारण ऐसे बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं. उन की रोजमर्रा की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है. कई बार समय न होने की कमी के चलते अभिभावक बच्चों की हर जिद पूरी करते हैं जो उन्हें स्वार्थी बना देती है और वे अपनी हर जरूरी व गैरजरूरी जिद, हर मांग पूरी करवाने लगते हैं.

जिद्दी  व स्वार्थी

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों के लिए माता-पिता कुछ नियम तय करते हैं जैसे कि टीवी देखने से पहला अपना होमवर्क पूरा करना, अजनबियों से बात नहीं करनाउनकी अनुपस्थिति में किसी दूसरे व्यक्ति को घर में नहीं आने देना आदि आदि, लेकिन ऐसे में अगर उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं हो, तो उन्हें अपनी मनमर्जी से सब कुछ करने की आजादी मिल सकती है इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

हालांकि कोई भी  दो बच्चे एक जैसे नहीं होते वे भिन्न परिस्थितियों में अलगअलग तरह से व्यवहार करते हैं. इसलिएयह जानना पैरेंट्स की ही अकेली जिम्मेदारी होती है कि क्या उनके बच्चे वास्तव में घर पर अकेले रहने के लिए तैयार हैं.अगर हाँ , तो बच्चों को घर पर अकेला छोड़ने से पहले कुछ खास बातों को ध्यान में  रखना चाहिये. जैसे कि बच्चे की उम्र एवं मैच्युरिटी. उदाहरण के लिए घर पर छोड़े गये बच्चे की उम्र 7 साल से कम नहीं होनी चाहियेउनके घर पर अकेले रहने का समयउदाहरण के लिए 11-12 साल के बच्चों को कुछ घंटों के लिए घर पर अकेले छोड़ा जा सकता है और वह सिर्फ दिन के समयबच्चों पर नजर रखने के लिए पड़ोसियों की सुरक्षा एवं सहयोगी पड़ोसियों की उपलब्धताऔर सबसे महत्वपूर्णजब बच्चे को घर पर छोड़ा जाये तो वह वहां सुरक्षित महसूस करे.

निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए यदि आप अपने बच्चे को घर में छोड़ने का मन बना लिया है तो उनकी सुरक्षा के लिए निम्न उपायों को जरूर अपनायें.

·       बच्चे से संपर्क का एक समय निर्धारित कर लें. इससे आपको ये पता रहेगा कि बच्चा सुरक्षित है या नहीं.  घर से दूर रहते समय भी उन पर निगरानी रखें .दिन में बच्चों को फोन करके उनकी खैरियत पूछते रहें. उन्होंने लंच किया कि नहीं स्कूल में उन का दिन कैसे बीता, स्कूल या पढ़ाई से संबंधित उन की समस्याओं की जानकारी लें और उन का समाधान सुझायें. आपका ऐसा करना आपको बच्चों से जोड़े रखेगा.

 

·       उनको बताएं कि दरवाजा किसी अजनबी के के लिए कतई न खोलें. इसके अलावा दरवाजे की घंटी कोई बजाए तो विंडो या डोर आई से देखें कौन है अगर कोई जानकार या कोई रिश्तेदार या पड़ोसी है तो तुरंत पेरेंटस को सूचना दें. घर को चाइल्ड प्रूफ्र  रखें.घर में सिक्योरिटी गजेट्स लगवाएं. ताकि आपके पीछे से बच्चों के साथ कोई दुर्घटना न घटे और बच्चे सुरक्षित रहें

·       बच्चों को को इस बात की भी जानकारी दें कि  घर परिवार के बारे में क्या बातें किसी को  बतानी है और कितनी बतानी है. यही नहींउन्हें बड़ों की अनुपस्थिति में स्टोव या किसी अन्य धारदार वस्तु पर काम करने की कतई अनुमति न दें. 

·       घर  में एल्कोहल या  किसी भी प्रकार का नशीला पदार्थ न रखें. कार या  बाइक की की चाबी  घर में न छोड़ें . 

·       आपकी अनुमति के बिना उन्हें आस-पड़ोस के घर में अकेले  नहीं जाने का निर्देश दें लेकिन साथ ही उन्हें इमरजेंसी की स्थिति में पड़ोस में किसी एक  ऐसे पडोसी के बारे में ज़रूर बताएँ ताकि इमरजेंसी की स्थिति में आपके घर पहुँचने तक वह उनके संपर्क में रहे. यही नहींफोन पर उनसे नियमित संपर्क में रहें और उनके संपर्क में रहें.

·       इमरजेंसी काल की स्थिति में उन्हें नंबर्सस्थानीय अथवा दूर के रिश्तेदार के नंबरों की सूची बनाकर उन्हें दें. अपने अच्छे पड़ोसी को अपनी अनुपस्थिति के बारे में सूचित करें और उनसे नियमित बच्चों की देखरेख करने के लिए कहें.

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