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सुनील गावस्कर को मिलेगा लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और दुनिया के सर्वकालिक श्रेष्ठ सलामी बल्लेबाजों में से एक सुनील मनोहर गावस्कर को 11 दिसंबर को लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा. उन्हें ये सम्मान स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ मुंबई (SJAM) की ओर से दिया जाएगा.

गावस्कर को वानखेड़े स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट के चौथे दिन अवॉर्ड से नवाजा जाएगा. SJAM की ओर से यह जानकारी दी गई. SJAM ने पहला लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड सितंबर 2013 में बैडमिंटन खिलाड़ी नंदू नाटेकर को दिया गया था.

बता दें कि इसी महीने गावस्कर के क्रिकेट से जुड़ाव के 50 साल पूरे हुए हैं. उन्होंने अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच वजीर सुल्तान इलेवन के लिए डूंगरपुर इलेवन के खिलाफ अक्टूबर 1966 में खेला था. ये मैच मोइन-उद-दोवलाह गोल्ड कप का क्वार्टर फाइनल था. रणजी ट्रॉफी में गावस्कर की शुरुआत बंबई के लिए मार्च 1970 में मैसूर के खिलाफ सेमीफाइनल मैच से हुई थी.

इसके बाद वेस्ट इंडीज दौरे (1970-71) के लिए गावस्कर को चुना गया और उन्होंने इतिहास रच दिया. इस सीरीज में गावस्कर ने 774 रनों का अंबार खड़ा किया. इसके बाद हुए इंग्लैंड दौरे में भी गावस्कर ने बल्ले से शानदार प्रदर्शन किया. गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में 10,000 रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी बने.

गावस्कर ने टेस्ट करियर में 125 टेस्ट में 34 शतकों के साथ 10,122 रन बनाए. गावस्कर ने 108 वनडे मैच भी खेले, जिनमें उन्होंने 3,000 से ज्यादा रन बनाए. 1987 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी गावस्कर क्रिकेट से जुड़ी कई प्रशासनिक भूमिकाओं में दिख चुके हैं. इसके अलावा कमेंटेटर के तौर पर भी उनकी मजबूत पहचान है.

सोशल मीडिया पर किया गलत व्यवहार तो नहीं मिलेगा लोन

अब सोशल मीडिया पर किसी का पीछा करना या उसे ट्रोल करना आपके आर्थिक भविष्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है. अब अगर आपको लोन लेना है तो सोशल मीडिया पर शिष्टाचार सीख लीजिए क्योंकि अब इसी से तय होगा कि आपको पर्सनल लोन पर 30% ब्याज देना होगा या 9%. इंस्टापैसा, गोपेसेंस, फेयरसेंट, कैशकेयर और वोटफॉरकैश जैसी नए समय की ऑनलाइन लोन देने वाली संस्थाएं और क्रेडिटमंत्री व बैंकबाजार.कॉम जैसे क्रेडिट मार्केटप्लेस लोन लेने वाले ग्राहकों की जानकारी के लिए केवल पेस्लिप या बैंक स्टेटमेंट तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह आपके फोन लोकेशन डेटा, एसएमस और सोशल मीडिया पर आपके व्यवहार पर भी पैनी नजर बनाए रखती हैं. इनके पर्सनैलिटी स्कोर के आधार पर ही लोन लेने वाले की विश्वसनीयता को जांचा जाएगा.

ऐसी अनैलेसिस से वकील, फ्रीलांसर और कंसल्टेंट जैस लोग जिनको तनख्वाह नहीं मिलती है, उनकी जानकारी के लिए काफी महत्वपूर्ण है. बैंक ज्यादातर ऐसे लोगों को लोन देने में काफी सावधानी बरतते हैं. केवल 1 से 7 दिन के भीतर लोन दिलाने वाली अर्लीसैलरी.कॉम जीपीएस लोकेशन, फेसबुक और लिंक्डइन के डेटा पर नजर रखता है. 

नकल का धंधा हावी

देश में परीक्षाएं मखौल बन गई हैं और कहीं भी किसी तरह की परीक्षा ले लें, परीक्षा देने वाले अपना समय व शक्ति नकल करने, पेपर लीक करवाने, परीक्षा हौल में उत्तर पुस्तिका बदलवाने और बाद में अंक बढ़वाने में लग जाते हैं. बिहार में एक लड़की जो लगभग अनपढ़ सी थी, 10वीं  कक्षा में परीक्षा धांधली के कारण टौप कर गई. मध्य प्रदेश में मैडिकल कालेजों के प्रवेश पर 2013 में एक परीक्षा में 415 छात्रों का परिणाम निरस्त कर दिया गया जिस से उन का कालेजों में लिया गया दाखिला भी समाप्त हो गया.

नकल करने कराने में तो हजारों गए ही, मैडिकल कालेज में जमने में हुए खर्च और बेकार हुए सालों का हिसाब लगाया जाए तो जो कुछ कमाने की उम्मीद थी, वह नर्मदा में बह गई.

मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पेचीदा हो गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट बच्चों को सजा देने के खिलाफ था, क्योंकि उन की गलती यह थी कि उस दिन मास कौपिंग हुई थी और कहना मुश्किल था कि कौन शरीफ था कौन नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला फिलहाल सुनाया है वह हिंदी फिल्म ‘प्यारा दुश्मन’ की तरह का है जिस में ट्रक ड्राइवर को जिस के ट्रक के नीचे आ कर एक व्यक्ति मारा गया था, उसी मृतक के घर रहने का आदेश दिया गया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिश की है कि ये छात्र जिन्हें निलंबित किया गया, पढ़ाई पूरी करें, फिर डाक्टर बन कर 5 साल तक समाज की सेवा के लिए बिना वेतन सरकारी अस्पतालों में काम करें. अगर उन्हें सेना के मैडिकल कोर में भेजा जाए तो और अच्छा रहेगा, क्योंकि वहां अनुशासन रहेगा और खानेरहने की सुविधाएं भी मिलेंगी.

यह उपाय चाहे कितना अच्छा हो पर नकल को बंद करेगा, असंभव है. परीक्षा में बेईमानी करना हमारे बेईमान समाज की रगरग में भरा है. और सिफारिश और रिश्वत के महामंत्र मानने की आदत पहले दिन से आरतियां सुनते हुए पड़ने लगती है. भारतीयों की लगातार हार, गरीबी, भुखमरी, बेचारगी की वजह बेईमानी है जो हमारे समाज का तमगा है.

सुप्रीम कोर्ट को समझ आ रहा था कि इस समस्या का हल आसान नहीं. 400 से ज्यादा बच्चों को पूरे जीवन की सजा देना भी गलत है और नकल का महिमामंडन करना भी ठीक नहीं. मामले का अंत नहीं हुआ है पर जब भी होगा, रोचक होगा. यह पक्का है कि नकल का धंधा रुकेगा नहीं. धर्म के धंधे की तरह यह शरीफों की जान लेता रहेगा, पाखंडियों का पेट भरता रहेगा.

अब नहीं बनेगी फरहान अख्तर की फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’

इन दिनों बौलीवुड संकट के दौर में फंस हुआ है. सूत्रों की माने तो जब से ‘रिलायंस इंटरटेनमेंट’ के बाद ‘डिज्नी स्टूडियो’ के अलावा एकता कपूर की कंपनी ने हिंदी फिल्मों के निर्माण से तौबा की है, तब से कई घोषित फिल्मों के निर्माण पर सवालिया निशान लग गया है. मजेदार बात यह है कि इस का शिकार फरहान अख्तर और कृति सैनन की फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’भी हुई है.

सूत्रों के अनुसार जेल के कैदियों द्वारा शुरू किए गए एक म्यूजिकल बैंड की कहानी वाली फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’ को लेकर फरहान अख्तर और कृति सैनन दोनों काफी उत्साहित थे. ज्ञातब्य है कि 2008 में जब फरहान अख्तर ने पहली बार ‘राक आन’ में गायक व अभिनेता के रूप में करियर शुरू किया था, उस वक्त इस फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की थी. इसी वजह से फरहान अख्तर ‘‘राक आन’’ का सिक्वअल ‘‘राक आन 2’’ लेकर आ रहे हैं, ‘राक आन 2’ भी संगीत प्रधान फिल्म होने के साथ साथ एक राक बैंड की कहानी है.

इसी सोच के साथ फरहान अख्तर ने फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ की घोषणा की थी. फिल्म ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी की ही कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेट’ करने वाली थी. जिसे किसी न किसी स्टूडियों के साथ जोड़ने की भी योजना थी. इस फिल्म का निर्देशन निखिल अडवानी करने वाले थे. पर अब सूत्रों का दावा है कि ‘एक्सेल इंटरटेनमेट’ ने ‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण करने से हाथ खड़ा कर दिए हैं.

फरहान अख्तर के अति नजदीकी सूत्रों पर यकीन करें, तो इन दिनों फरहान अख्तर ग्यारह नवंबर को प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्म ‘‘राक आन 2’’ को लेकर काफी परेशान हैं. सूत्रों के अनुसार फरहान अख्तर पिछले दो माह से इस फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं, पर उन्हे अभी तक अपेक्षित रिस्पांस नहीं मिल पाया है. जबकि वह इस फिल्म के गीत जारी करने के साथ साथ म्यूजिकल कंसर्ट भी कर चुके हैं. तो वहीं विदेशों में होने वाला उनका ‘राक आन 2’ का म्यूजिकल कंसर्ट रद्द हो चुका है. इतना ही नहीं प्राची देसाई की नाराजगी के चलते काफी विवाद हुआ. अंततः प्राची देसाई को संतुष्ट करने के लिए कुछ सीन पुनः फिल्माकर फिल्म में जोड़े गए. इससे भी फरहान काफी परेशान हैं.

बौलीवुड के कुछ सूत्र तो फरहान अख्तर को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. वास्तव में फरहान अख्तर और उनके पी आर को फिल्म ‘राक आन 2’ को प्रमोट करने की वर्तमान शैली पर विचार करने की जरुरत है.

बहरहाल, ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ से जुड़े यह तो दावा कर रहे हैं कि यह कंपनी अब ‘‘लखनऊ सेंट्रल’’ का निर्माण नहीं करने वाली है, पर वजह बताने को कोई तैयार नहीं है. जबकि बौलीवुड में हो रही चर्चाएं तो यही हैं कि ‘राक आन 2’ को मिल रहे ठंडे रिस्पांस के ही चलते ‘लखनऊ सेंट्रल’ के बंद होने की नौबत आयी है.

ज्ञातब्य है कि ‘राक आन 2’ का निर्माण भी एक्सेल इंटरटेनमेंट ने किया है, मगर इसके निर्माण के साथ स्टूडियो के तौर पर ‘ईरोज इंटरनेशनल’ भी जुड़ा हुआ है. कुछ सूत्र ‘‘लखनऊ सेंट्रल’ ’के स्थगित होने के लिए इसके निर्देशक निखिल अडवाणी निर्देशित दो फिल्मों की असफलता के साथ जोड़कर देख रहे हैं. 2015 में प्रदर्शित निखिल अडवाणी निर्देशित दो फिल्मों ‘हीरो’ और ‘कट्टी बट्टी’ ने बाक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगा था. इन फिल्मों की असफलता के चलते निखिल अडवाणी के सितारे भी गर्दिश में चल रहे हैं. 2015 में इन दोनों फिल्मों की अफसलता के बाद बतौर निर्देशक निखिल अडवाणी को कोई काम नहीं मिला. शायद  ‘लखनऊ सेंट्रल’ का निर्माण स्थगित होने की वजह से ही निखिल अडवाणी भी छोटे परदे पर सीरियल ‘‘युद्ध के बंदी’’ के निर्देशन में व्यस्त हो गए हैं.

धोनी ने तोड़ा सचिन का रिकॉर्ड

भारतीय वनडे टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने एक बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है. उन्होंने मोहाली वनडे के दौरान न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलते हुए महान पूर्व बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के एक विशाल रिकॉर्ड को तोड़ डाला.

सबसे ज्यादा छक्के

भारत की तरफ से वनडे क्रिकेट में अब तक सबसे ज्यादा छक्का लगाने का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नाम पर था. सचिन से ठीक पीछे इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर भारतीय वनडे क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी थे.

सचिन ने अपने करियर में खेले 463 वनडे मैचों में कुल 195 छक्के लगाए थे. वहीं धोनी ने न्यूजीलैंड के खिलाफ मोहाली में अपने वनडे करियर के 281वें मैच में ही इस रिकॉर्ड को तोड़ डाला. धोनी ने इस मैच में 91 गेंदों पर 80 रनों की पारी खेली जिसमें 6 चौके और 3 छक्के शामिल रहे.

माही अब वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा छक्के लगाने के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर पहुंच गए हैं. उनसे ज्यादा छक्के इन बल्लेबाजों के नाम दर्ज हैं.

शाहिद अफरीदी (पाकिस्तान) – 351 छक्के

सनथ जयसूर्या (श्रीलंका) – 270 छक्के

क्रिस गेल (वेस्टइंडीज) – 238 छक्के

ब्रेंडन मैकुलम (न्यूजीलैंड) – 200 छक्के

महेंद्र सिंह धोनी (भारत) – 196 छक्के

9000 वनडे रन भी पूरे

महेंद्र सिंह धोनी ने मोहाली वनडे में अपने वनडे करियर के 9000 रन भी पूरे कर लिए. वो ऐसा करने वाले दुनिया के 17वें खिलाड़ी बन गए हैं. उनसे पहले ये कमाल सिर्फ चार भारतीय बल्लेबाज कर पाए हैं.

ये भारतीय बल्लेबाज हैं सचिन तेंदुलकर (18426), सौरव गांगुली (11363), राहुल द्रविड़ (10889) और मोहम्मद अजहरुद्दीन (9378). धोनी ने अपने वनडे करियर के 281वें मैच में ये रिकॉर्ड हासिल किया है. वहीं, वो 244 पारियों में 9000 रन बनाकर ये आंकड़ा सबसे तेज हासिल करने के मामले में दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गए हैं.

होम अलोन किड्स और पेरेंट्स की ज़िम्मेदारी

माता-पिता  सिर्फ मातापिता  होते है अर्थात उनकी जगह और कोई नहीं ले सकता. किसी भी मातापिता के लिए उनके बच्चे ही उनकी दुनिया होते हैं और बच्चों की उपस्थिति मात्र से ही उनकी जिंदगी अर्थपूर्ण हो जाती है. अभिभावक होने के नाते मातापिता बच्चों की सभी इच्छाओं एवं सपनों को पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं और इस कोशिश में उन्हें न चाहते हुए भी बच्चों को घर पर अकेले छोड़ने का कठोर एवं अपरिहार्य निर्णय लेना पड़ता है. माना कि बच्चों को घर पर अकेला छोड़ना 21वीं सदी की एक आवश्यकता और पेरेंट्स के लिए एक मजबूरी बन गई है. लेकिन यह मजबूरी आपके नौनिहालों के व्यक्तित्व और व्यवहार में क्या बदलाव ला सकती है यह  किसी भी पेरेंट्स  के लिए जानना बेहद ज़रूरी  है.

शेमरोक एंड शेमफ़ोर्ड ग्रुप ऑफ़ स्कूल्स की डायरेक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार मातापिता की अनुपस्थिति में अकेले रहने वाले बच्चों के व्यवहार में निम्न समस्याएँ देखने में आती हैं –

डरने की प्रवृत्ति

घर पर अकेले रहने से बच्चों में खाली घर में सामान्य से शोर से डरने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है क्योंकि उन्हें बाहरी दुनिया का बहुत कम अनुभव होता है.  इसके अतिरिक्त अकेले रहने वाले  बच्चे अपने पैरेंट्स से अपने डर शेयर नहीं करते क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन्हें अभी भी बच्चा समझा जाये. कई बार बच्चे अपनी सुरक्षा को लेकर पैरेंट्स को चिंतित नहीं  करना चाहते इसलिए भी वे अपने मन की बात छुपा जाते हैं.

अकेलापन

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों को उनके दोस्तों से मिलनेकिसी भी एक्स्ट्रा-करिकुलर ऐक्टिवटी में भाग लेने अथवा कोई सोशल स्किल विकसित करने की अनुमति नहीं होती इससे उनकी सोशल लाइफ प्रभावित होती है और वे अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे बच्चे अपनी चीजों को शेयर करना भी नहीं सीख पाते हैं. ऐसे बच्चे अकेले रहने के कारण आत्मकेंद्रित हो जाते हैं और बाहर की दुनिया से कटे रहने के कारण वे स्वार्थी, दब्बू और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

सेहत के लिए खतरा

घर पर रहने वाले बच्चे शरीर को ऐक्टिव रखने वाली कोई भी आउटडोर एक्टिविटी नहीं करते जिससे आलस बढ़ता है और अधिकांश बच्चे मोटे हो जाते हैं. ऐसे बच्चों में खानपान, सेहत व विकास संबंधी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. अकेले रहने के कारण ऐसे बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं. उन की रोजमर्रा की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है. कई बार समय न होने की कमी के चलते अभिभावक बच्चों की हर जिद पूरी करते हैं जो उन्हें स्वार्थी बना देती है और वे अपनी हर जरूरी व गैरजरूरी जिद, हर मांग पूरी करवाने लगते हैं.

जिद्दी  व स्वार्थी

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों के लिए माता-पिता कुछ नियम तय करते हैं जैसे कि टीवी देखने से पहला अपना होमवर्क पूरा करना, अजनबियों से बात नहीं करनाउनकी अनुपस्थिति में किसी दूसरे व्यक्ति को घर में नहीं आने देना आदि आदि, लेकिन ऐसे में अगर उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं हो, तो उन्हें अपनी मनमर्जी से सब कुछ करने की आजादी मिल सकती है इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

हालांकि कोई भी  दो बच्चे एक जैसे नहीं होते वे भिन्न परिस्थितियों में अलगअलग तरह से व्यवहार करते हैं. इसलिएयह जानना पैरेंट्स की ही अकेली जिम्मेदारी होती है कि क्या उनके बच्चे वास्तव में घर पर अकेले रहने के लिए तैयार हैं.अगर हाँ , तो बच्चों को घर पर अकेला छोड़ने से पहले कुछ खास बातों को ध्यान में  रखना चाहिये. जैसे कि बच्चे की उम्र एवं मैच्युरिटी. उदाहरण के लिए घर पर छोड़े गये बच्चे की उम्र 7 साल से कम नहीं होनी चाहियेउनके घर पर अकेले रहने का समयउदाहरण के लिए 11-12 साल के बच्चों को कुछ घंटों के लिए घर पर अकेले छोड़ा जा सकता है और वह सिर्फ दिन के समयबच्चों पर नजर रखने के लिए पड़ोसियों की सुरक्षा एवं सहयोगी पड़ोसियों की उपलब्धताऔर सबसे महत्वपूर्णजब बच्चे को घर पर छोड़ा जाये तो वह वहां सुरक्षित महसूस करे.

निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए यदि आप अपने बच्चे को घर में छोड़ने का मन बना लिया है तो उनकी सुरक्षा के लिए निम्न उपायों को जरूर अपनायें.

·       बच्चे से संपर्क का एक समय निर्धारित कर लें. इससे आपको ये पता रहेगा कि बच्चा सुरक्षित है या नहीं.  घर से दूर रहते समय भी उन पर निगरानी रखें .दिन में बच्चों को फोन करके उनकी खैरियत पूछते रहें. उन्होंने लंच किया कि नहीं स्कूल में उन का दिन कैसे बीता, स्कूल या पढ़ाई से संबंधित उन की समस्याओं की जानकारी लें और उन का समाधान सुझायें. आपका ऐसा करना आपको बच्चों से जोड़े रखेगा.

 

·       उनको बताएं कि दरवाजा किसी अजनबी के के लिए कतई न खोलें. इसके अलावा दरवाजे की घंटी कोई बजाए तो विंडो या डोर आई से देखें कौन है अगर कोई जानकार या कोई रिश्तेदार या पड़ोसी है तो तुरंत पेरेंटस को सूचना दें. घर को चाइल्ड प्रूफ्र  रखें.घर में सिक्योरिटी गजेट्स लगवाएं. ताकि आपके पीछे से बच्चों के साथ कोई दुर्घटना न घटे और बच्चे सुरक्षित रहें

·       बच्चों को को इस बात की भी जानकारी दें कि  घर परिवार के बारे में क्या बातें किसी को  बतानी है और कितनी बतानी है. यही नहींउन्हें बड़ों की अनुपस्थिति में स्टोव या किसी अन्य धारदार वस्तु पर काम करने की कतई अनुमति न दें. 

·       घर  में एल्कोहल या  किसी भी प्रकार का नशीला पदार्थ न रखें. कार या  बाइक की की चाबी  घर में न छोड़ें . 

·       आपकी अनुमति के बिना उन्हें आस-पड़ोस के घर में अकेले  नहीं जाने का निर्देश दें लेकिन साथ ही उन्हें इमरजेंसी की स्थिति में पड़ोस में किसी एक  ऐसे पडोसी के बारे में ज़रूर बताएँ ताकि इमरजेंसी की स्थिति में आपके घर पहुँचने तक वह उनके संपर्क में रहे. यही नहींफोन पर उनसे नियमित संपर्क में रहें और उनके संपर्क में रहें.

·       इमरजेंसी काल की स्थिति में उन्हें नंबर्सस्थानीय अथवा दूर के रिश्तेदार के नंबरों की सूची बनाकर उन्हें दें. अपने अच्छे पड़ोसी को अपनी अनुपस्थिति के बारे में सूचित करें और उनसे नियमित बच्चों की देखरेख करने के लिए कहें.

गोरेपन की चाह, आखिर किस कीमत पर..?

एक रिटायर्ड पिता पत्नी से एक कप और कौफी की मांग करता है. पत्नी झिड़कते हुए कहती है, दूध नहीं है. बेटी की कमाई यूं ही पीते जा रहे हो. यह सुनकर पिता कहता है – काश, हमारा एक बेटा होता! यह सुनकर बेटी के आंखों से आंसू झरने लगे. तभी मां बेटी के लिए कौफी लेकर आती है. बेटी नहीं पीती और सिसकने लगती है और वह अखबार में नौकरी ढूंढ़ने लगती है. एयरहोस्टेज की नौकरी के क्लासिफाइड पर नजर पड़ती है. पर अपनी त्वचा की रंगत उसे मायूस कर देती है. तभी टीवी पर फेयर एंड लवली का विज्ञापन दिखता है, जिसमें फेयर एंड लवली का फोर स्टैंड एक्शन एक, धूप से बचाता है; दूसरा, चिपचिपाहट हटाए; तीसरा, चेहरे से दाग हटाए; चौथा, भीतर से निखारे; के बारे में बताया जाता है. फेयर एंड लवली के इन्हीं चार एक्शन के बल पर लड़की इंटरव्यू टेबिल तक पहुंच जाती है और इसे बखूबी से क्रैक कर लेती और अपने पिता को बड़े-से होटल में ले जाती है. पिता कहते हैं – एक कप कौफी मिलेगी?

यह तो हुई फेयर एंड लवली की कहानी. अब इसके पुरुष संस्करण की बात करते हैं यानि फेयर एंड हैंडसम की. एक युवक है जो स्टंट के लिहाज से बड़ा हैंडसम है. शाहरूख के लिए स्टंट करता है. उसका परफौर्मेंस भी काबिले तारीफ है. उसकी कमतरी है उसकी त्वचा का रंग. वह सांवला है. यह सांवलापन उसकी तरक्की के रास्ते में बड़ा अड़चन है. वह लड़कियों का सामना करने से बचता है. लड़कियों को देखते ही अपना मुंह छिपा लेता है. तभी शाहरूख उससे कहता है – कब तक लड़कियों से मुंह छिपाते फिरोगे. छुपो नहीं, खुलकर जियो. यह कह कर शाहरूख उसे फेयर एंड हैंडसम लगाने की सलाह दे डालता है. फेयर एंड हैंडसम के साथ युवक की दुनिया बदल जाती है. वह के साथ हीरो बन जाता है.

ऐसे लुभाने वाले बहुत सारे विज्ञापन हम आए दिन इसीलिए देख रहे हैं, क्योंकि भारत में गोरेपन की कद्र है. काली तो क्या सांवली त्वचा भी किसीको पसंद नहीं. कुछ माता-‍पिता या घर-परिवार आज भी हैं जिनके मन में लड़की के पैदा होने का मलाल भले न हो, लेकिन लड़की सांवली पैदा हो गयी तो चिंता जरूर बढ़ जाती है. सांवली लड़की पैदा होने पर माता-पिता के माथे पर यह सोच कर बल पड़ जाते हैं कि शादी में बड़ी अड़चन आएगी. और रिश्तेदार सलाह देने में जरा भी देर नहीं करते कि इस लड़की की शादी में मोटा दहेज देना होगा, अभी से दहेज जोड़ना शुरू कर दो. जाहिर है ऐसे देश में फेयरनेस क्रीम की कद्र बढ़नी है. और ऐसे क्रीम की जितनी कद्र बढ़ेगी, बाजार में हर रोज नए फेयरनेस उत्पाद की बाढ़ आ जाएगी. क्रीम से लेकर साबुन और पाउडर तक. सबके दावे एक से बढ़ कर एक – गोरेपन के साथ चेहरे के दाग-धब्बे-काली भाइयां सब दूर करने का दावा करते हैं ये उ‍त्पाद. जाहिर है गांव कस्बे से लेकर शहरों में बड़ी कद्र है इन उत्पादों की.

दरअसल, भारत में ब्रिटिश राज के बाद से गोरे रंग को लेकर एक खास तरह की कमजोरी हमलोगों के मन में गहरे पैठ गयी. लोगों ने मान लिया कि गोरापन ही खूबसूती है. सफेद त्वचा ही असली सूबसूरती है. रही-सही कसर पूरी कर दी वर्ण व्यवस्था ने पूरी कर ‍दी. इस वर्ण व्यवस्था ने इस धारणा को जन्म दिया कि ब्राह्मण गोरे पैदा होते हैं और दलित या निम्न वर्ण सांवली त्वचा लेकर जन्मते हैं. इसके बाद गोरापन आसमान का चंद बन गया. वैवाहिक विज्ञापनों में सुंदर, सुशील और पढ़ी-लिखी लड़की की कामना के साथ गोरा पहली शर्त हुआ करती है. धीरे-धीरे यह धारणा विस्तार पाने लगी. अब तो लड़का हो या लड़की – गोरा दिखने की चाह हर कोई पालने लगा.

फेयरनेस क्रीम भले ही कितना बड़ा दावा करें, वैज्ञानिक सचाई यह है कि त्वचा का रंग कैसा हो इसमें मेलानिन नामक पिगमेंट की भूमिका अहम होती है. मेलानिन की कितनी मात्रा और इसका गठन ही यह तय करता है. जेनेटिक लाइनेज यानि पूर्वजों की त्वचा का रंग ही आगामी पीढ़ी की त्वचा का रंग तय करता है. त्वचा विशेषज्ञों का मानना है कि त्वचा की रंगत में महज 20 प्रतिशत बदलाव हो सकता है. इससे ज्यादा नहीं. बाजारू फेयरनेस क्रीम बहुत हुआ तो सूरज की पराबैंगनी किरण को रोक सकती है. ऐसा करने से मेलानिन का स्राव कम होता है और त्वचा की रंगत कम काली होती है. लेकिन कोई भी क्रीम, वह कितना भी कीमती क्यों न हो – त्वचा की रंगत को बदल नहीं सकती.

गोरेपन का बाजार

जाहिर है कौस्मेटिक कंपनियों ने अपना व्यवसायिक फोकस गोरेपन की क्रीम पर कर लिया. और फिर फेयरनेस क्रीम का एक बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो गया. होता भी क्यों नहीं! बौलीवुड, मौलीवुड, पौलीवुड, कौलीवुड से लेकर टौलीवुड के नामी-गिरामी अभिनेता-अभिनेत्रियां ऐसे फेयरनेस क्रीम को एंडोर्स जो करते हैं. ACNielsen नाम की शोध संस्था ने 2010 में भारत में फेयरनेस  क्रीम के बाजार का मूल्यांकन किया था. शोध संस्था ने पाया कि 2010 में 432 मिलियन डौलर का बाजार था, जिसमें हर साल 18 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी. एक अन्य शोध से पता चला है कि भारत में गोरेपन की क्रीम का बाजार 2010 में 2,600 करोड़ रुपये था। 2012 में 233 टन गोरेपन की उत्पादों का प्रयोग भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा किया गया।

बदसूरती की कीमत पर गोरापन!

1978 में पहली बार भारतीय बाजार में फेयर एंड लवली उतारा गया. इस उत्पाद का प्रचार कुछ इस तरह किया गया गोया फेयरनेस क्रीम के एक ट्यूब में भारतीय नारी को उम्मीद मिलेगी. कंपनी की ओर से दावा कुछ ऐसा किया किया गया था कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा को गोरापन देने का गुण पाया गया है. पर यह निकोटिनामाइड दरअसल, क्या है, इस बारे में विकीपिडिया पढ़ लेने से पता चल जाएगा. यहां सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा में गोरापन लाने का गुण है तो जरूर, लेकिन इसके साथ इस रासायनिक में मन में उतावलापन के साथ कैंसरकारक तत्व भी मौजूद हैं.

हालांकि बताया जाता है कि अब ये दोनों रासायनिक तत्व क्रीम में नहीं होते हैं. पर आज इनकी जगह स्टेरोयड पाए जाते हैं और जब से इस बात का खुलासा हुआ है फेयरनेस क्रीम तैयार करनेवाली कंपनियां तरह-तरह के सवालों से घिर गयी हैं. हाल ही में सेंटर फौर साइंस एंड एनवारंमेंट नामक संस्था द्वारा कराए गए एक शोध के नतीजे में भारत में पाए जानेवाले 44 प्रतिशत लोकप्रिय फेयरनेस क्रीम में मरक्यूरी यानि पारा पाए जाने का पता खुलासा हुआ है. ओले नेचुरल ह्वाइट (33.4 प्रतिशत), पोंड्स ह्वाइट ब्यूटी (25.2), फेयर एंड लवली एंटी मार्क्स (15), लोरियल पर्ल एफेक्ट (12.9), रेवलोन टच एंड ग्लो (4.6) गारनियर मेन पावर लाइट (4.4), विवेल एक्टिव फेयर (4.3), इमामी मलाई केशर कोल्ड क्रीम (4.1), लेक्मे परफेक्ट रेडियंस (3.5) में पारा की माथा पायी गयी है. गौरतलब बात यह है कि क्रीम की सामग्री में कहीं पारे की मौजूदगी का जिक्र नहीं होता है. जबकि कौस्मेटिक एंड ड्रग अधिनियम में पारा को निषिद्ध घोषित किया गया है.

इसी तरह स्टेरौयड भी त्वचा को तो नकुसान पहुंचाता ही है, कभी-कभी महिलाओं में पुरुषोचित शारीरिक बदलाव के लिए भी यह जिम्मेवार होता है. जान कर हैरानी होगी कि स्टेरौयड वाली फेयरनेस क्रीम का बाजार लगभग 1400 करोड़ रु. का है. कोलकाता के एक त्वचा विशेषज्ञ संजय घोष का कहना है कि सफेद दाग, एग्जिमा जैसे त्वचा संबंधी बीमारी में स्टेरौयड  तत्व वाली क्रीम कारगर होती है. लेकिन इन बीमारियों में भी डॉक्टर की सलाह से ही ऐसे क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए. वह भी बहुत कम मात्रा में.

हाल के दिनों में गोरेपन की क्रीम से बहुत सारी महिलाओं की त्वचा में कई तरह की जटिल बीमारियां देखने में आ रही है. त्वचा रोग के विशेषज्ञ और आईएडीवीएल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कौशिक लाहिड़ी का कहना है कि उनके चेंबर में हर रोज फेयरनेस क्रीम के मारे कम से कम दस मरीज आते हैं. डॉ. लाहिड़ी कहते हैं कि स्टेरौयड वाली क्रीम केवल त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाती है, बल्कि ये क्रीम त्वचा को भेद कर अंदर भी जाते हैं. लंबे समय तक इनका इस्तेमाल किए जाने पर त्वचा को इसकी लत लग जाती है. जिसका परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है.

त्वचा विशेषज्ञ जिन लक्षणों से दो-चार हो रहे थे वे वाकई चिंताजनक हैं. किसी को गाल या पूरे चेहरे में आग से झुलसने जैसे निशान बन रहे हैं तो किसीका चेहरा गोरा दिखने के बजाए धूप की गर्मी से त्वचा की रंगत जलकर सांवले नजर आने लगे. वहीं किन्हीं की शिकायत यह कि क्रीम लगाकर धूप में निकलने त्वचा पर चेहरे में असहनीय जलन महसूस होती है. यहां तक कि कुछ महिलाओं ने हारमोन्स में भी गड़बड़ी की शिकायत की, जिसकी वजह से उनकी दाढ़ी-मूंछे निकलने लगी हैं. ये क्रीम सूबसूती के बजाए बदसूरती दे रही है. जाहिर है बदसूरती की कीमत पर गोरापन भला कौन कबूल करेगा!

हरकत में सरकार

त्वचा विशेषज्ञों की राष्ट्रीय स्तर की ईकाई आईएडीवीएल यानि इंडियन एसोसिएशन औफ डर्माटोलौजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) वेनेरियोलौजिस्ट (यौनरोग विशेषज्ञ) और लेप्रोलौजिस्ट (कुष्ठरोग विशेषज्ञ) ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ऐसे गोरेपन की क्रीम से त्वचा को होनेवाले नुकसान के प्रति अगाह करते हुए पत्र लिख कर कड़े कदम उठाने का अनुरोध किया गया. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर विभाग ने ऐसे क्रीम को शिड्यूल एच तालिका में शामिल कर लिया है. 12 अगस्त 2016 को स्वास्थ्य मंत्रालय को इसकी जानकारी एक गजट के माध्यम से दे दी गयी. नियमानुसार एक तय समय (45 दिन) के अंदर इसके खिलाफ आपत्ति पर विचार किया जाता है. लेकिन इस मामले में बताया जाता है कि किसी भी तरह की आपत्ति टिक नहीं पायी. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर का फैसला लागू हो गया. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अओर से घोषणा कर दी गयी कि ऐसे क्रीम डौक्टर के पर्ची के बगैर न तो खरीदे जा सकते हैं और बेचे जाने पर रोक लगा दिया है.

फिलहाल फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हिमाचल प्रदेश में सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद बनानेवाले एक कंपनी टौरक्यू फर्मा जो नो स्कार्स क्रीम बनाती है, को नोटिस भेजा है और कंपनी द्वारा निर्मित दो क्रीम को जब्त किया है. बताया जाता है कि इन दोनों क्रीमों में फ्लूसिनोलोन एसिटोनिड और मोमेटासोम जैसे स्टेरौयड के साथ ब्लीचिंग एजेंट भी पाया गया है. कोलकाता के जानेमाने त्वचा विशेषज्ञ डॉ. सुस्मित हलदार का कहना है कि  मोमेटासोम एक स्टेरौयड है. इसका दुष्प्रभाव चेहरे पर अवांक्षित बाल, रैश, बर्रेदार मुहासे और लाली में देखा जा सकता है. वहीं फ्लूसिनोलोन, हाइड्रोक्वीनोन और ट्रेटिनोइन का लंबे समय तक इस्तेमाल त्वचा के लिए हानिकारक होता है. त्वचा पर झाइंया पड़ सकती है. चेहरे की कांति जाती रहती है. चेहरा बदरंग हो सकता है.

फ्लिपकार्ट, एमेजन फिर ला रहें हैं ‘बिग सेल’

दशहरे के मौके पर ई-कॉमर्स पोर्टल्स जैसे फ्लिपकार्ट और एमेजन ने मेगा सेल चलाया था. अगर आप इस सेल में खरीदारी का मौका चूक गए तो परेशान होने की जरूरत नहीं. ई-कॉमर्स के दोनों दिग्गजों ने फिर एक 'मेगा सेल' की घोषणा की है.

ऐमजॉन जहां 'द ग्रेट इंडियन फेस्टिवल' के नाम से सेल लेकर आ रही है, वहीं फ्लिपकार्ट पर 'बिग दिवाली सेल' मिलेगी. 'बिग सेल' का यह तीसरा राउंड 25 अक्टूबर को आधी रात से 28 अक्टूबर की रात 11:59 तक चलेगा. दोनों ई-कॉमर्स पोर्टल पर कपड़े, गैजेट्स, स्मार्टफोन्स समेत तमाम चीजों पर डिस्काउंट ऑफर किया जाएगा.

इसके अलावा फ्लैश सेल का भी ऑप्शन होगा, जिसमें आधे घंटे के लिए कुछ सामान भारी डिस्काउंट पर उपलब्ध होंगे. सेल के दौरान रिटेलरों की तरफ से टाइमर और बचे सामानों का प्रतिशत भी दिखाया जाता रहेगा. इसकी मदद से कस्टमर स्टॉक खत्म होने से पहले सही समय पर सामान खरीद सकेंगे. डील के बारे में अभी और जानकारियां आनी बाकी हैं.

अब आप इसे सुपर सेल सीजन कहें या यह मान लें कि सामान नहीं बिकने की वजह से सेल का तीसरा राउंड आया है. कंपनियों का दावा है कि एक महीने के भीतर तीसरी बार लग रहा यह मेगा सेल कस्टमर्स के लिए विन-विन सिचुएशन वाला होगा. ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्नैपडील जैसे दूसरे दिग्गज भी त्योहारी मौसम में सेल की घोषणा कर सकते हैं.

स्मार्टफोन ओवरहीटिंग से हैं परेशान?

स्मार्टफोन्स की प्रोसेसिंग पावर लगातार बढ़ रही है और इस हिसाब से उनमें बैटरीज भी बड़ी लगाई जा रही हैं. चार्ज होने में ज्यादा वक्त न लगे, इसलिए फास्ट चार्जिंग टेक्नॉलजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. मगर कई बार स्मार्टफोन गर्म हो जाते हैं. चार्जिंग करते वक्त, गेम खेलते वक्त या फिर हेवी ऐप्स इस्तेमाल करते वक्त इस तरह की समस्या आती है.

वैसे तो फोन के गर्म होने के पीछे आमतौर पर हार्डवेयर की दिक्कत होती है, मगर आप कुछ बातों का ख्याल रखकर उसे गर्म होने से बचा सकते हैं. जानें, कैसे…

1. केस या कवर हटाएं

स्मार्टफोन को कवर केस में रखने से हीट अंदर ही रहती है और यह गर्म होने लगता है. कवर हटाने से हीटिंग की समस्या से काफी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है.

2. चार्ज करते वक्त ठोस सतह पर रखें

फोन को चार्ज करते वक्त इसे बेड वगैरह के बजाय किसी ठोस सतह पर रखना चाहिए. नरम चीजें हीट को सोख लेती हैं. चार्जिंग के दौरान निकलने वाली हीट स्मार्टफोन को और गरम कर देती है.

3. रात भर फोन को चार्ज न करें

बहुत से लोग स्मार्टफोन को रात भर चार्जिंग पर लगाकर छोड़ देते हैं. इससे न सिर्फ बैटरी की लाइफ पर असर पड़ता है, यह हीटअप भी होती है. कई मामलों में तो ओवरचार्ज की गई बैटरियां फट भी चुकी हैं.

4. हेवी ऐप्स को बंद करें

बहुत से ऐप्स ऐसे होते हैं जो हेवी ग्राफिक्स इस्तेमाल करते हैं. इसमें प्रोसेसिंग पावर भी ज्यादा लगती है और डिवाइस गर्म भी होने लगते हैं. इस तरह से ऐप्स को इस्तेमाल न करने पर किल कर देना चाहिए यानी पूरी तरह क्लोज कर देना चाहिए.

5. धूप में न रखें

स्मार्टफोन्स को, खासकर प्लास्टिक के बैक पैनल वाले फोनों को सीधी धूप में कभी नहीं रखना चाहिए. प्रोसेसिंग की वजह से पैदा होने वाली हीट और धूप की गर्मी स्मार्टफोन को और गर्म कर देती हैं. इससे फोन को नुकसान भी पहुंच सकता है.

6. थर्ड पार्टी चार्जर और बैटरीज यूज न करें

कई बार थर्ड पार्टी चार्जर या बैटरीज से भी फोन गर्म हो जाते हैं. अलग वाट के चार्जर से फोन चार्ज करने भी फोन गर्म हो जाते हैं. फोन को नुकसान पहुंचता है सो अलग.

अब नर्सिंग असिस्टेंट का काम करेंगे रोबोट

अगली बार जब आपको अस्पताल जाना पड़े तो संभव है कि नर्सिंग सहयोगी कोई इंसान नहीं बल्कि रोबोट हो. इसके लिए हमें वैज्ञानिकों का शुक्रगुजार होना पड़ेगा जिन्होंने रोबोट को इंसान के स्वाभाविक कामों की नकल का प्रशिक्षण दिया है.

इटली के पॉलिटेक्नीको डि मिलानो की एलेना डि मॉमी और उनके सहयोगियों द्वारा किये गये अनुसंधान में इस बात के संकेत मिलते हैं कि सर्जरी और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर इंसान और रोबोट प्रभावी तरीके से अपनी क्रियाओं को समन्वित कर सकते हैं.

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि दूसरी बात ये है कि रोबोट इंसानों की तरह थकते नहीं है और इससे गलती की गुंजाइश में कमी आयेगी और सेवाओं में सुधार होगा. इस अनुसंधान का प्रकाशन फ्रंटियर्स इन रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नामक जर्नल में हुआ.

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