एक रिटायर्ड पिता पत्नी से एक कप और कौफी की मांग करता है. पत्नी झिड़कते हुए कहती है, दूध नहीं है. बेटी की कमाई यूं ही पीते जा रहे हो. यह सुनकर पिता कहता है – काश, हमारा एक बेटा होता! यह सुनकर बेटी के आंखों से आंसू झरने लगे. तभी मां बेटी के लिए कौफी लेकर आती है. बेटी नहीं पीती और सिसकने लगती है और वह अखबार में नौकरी ढूंढ़ने लगती है. एयरहोस्टेज की नौकरी के क्लासिफाइड पर नजर पड़ती है. पर अपनी त्वचा की रंगत उसे मायूस कर देती है. तभी टीवी पर फेयर एंड लवली का विज्ञापन दिखता है, जिसमें फेयर एंड लवली का फोर स्टैंड एक्शन एक, धूप से बचाता है; दूसरा, चिपचिपाहट हटाए; तीसरा, चेहरे से दाग हटाए; चौथा, भीतर से निखारे; के बारे में बताया जाता है. फेयर एंड लवली के इन्हीं चार एक्शन के बल पर लड़की इंटरव्यू टेबिल तक पहुंच जाती है और इसे बखूबी से क्रैक कर लेती और अपने पिता को बड़े-से होटल में ले जाती है. पिता कहते हैं – एक कप कौफी मिलेगी?
यह तो हुई फेयर एंड लवली की कहानी. अब इसके पुरुष संस्करण की बात करते हैं यानि फेयर एंड हैंडसम की. एक युवक है जो स्टंट के लिहाज से बड़ा हैंडसम है. शाहरूख के लिए स्टंट करता है. उसका परफौर्मेंस भी काबिले तारीफ है. उसकी कमतरी है उसकी त्वचा का रंग. वह सांवला है. यह सांवलापन उसकी तरक्की के रास्ते में बड़ा अड़चन है. वह लड़कियों का सामना करने से बचता है. लड़कियों को देखते ही अपना मुंह छिपा लेता है. तभी शाहरूख उससे कहता है – कब तक लड़कियों से मुंह छिपाते फिरोगे. छुपो नहीं, खुलकर जियो. यह कह कर शाहरूख उसे फेयर एंड हैंडसम लगाने की सलाह दे डालता है. फेयर एंड हैंडसम के साथ युवक की दुनिया बदल जाती है. वह के साथ हीरो बन जाता है.
ऐसे लुभाने वाले बहुत सारे विज्ञापन हम आए दिन इसीलिए देख रहे हैं, क्योंकि भारत में गोरेपन की कद्र है. काली तो क्या सांवली त्वचा भी किसीको पसंद नहीं. कुछ माता-पिता या घर-परिवार आज भी हैं जिनके मन में लड़की के पैदा होने का मलाल भले न हो, लेकिन लड़की सांवली पैदा हो गयी तो चिंता जरूर बढ़ जाती है. सांवली लड़की पैदा होने पर माता-पिता के माथे पर यह सोच कर बल पड़ जाते हैं कि शादी में बड़ी अड़चन आएगी. और रिश्तेदार सलाह देने में जरा भी देर नहीं करते कि इस लड़की की शादी में मोटा दहेज देना होगा, अभी से दहेज जोड़ना शुरू कर दो. जाहिर है ऐसे देश में फेयरनेस क्रीम की कद्र बढ़नी है. और ऐसे क्रीम की जितनी कद्र बढ़ेगी, बाजार में हर रोज नए फेयरनेस उत्पाद की बाढ़ आ जाएगी. क्रीम से लेकर साबुन और पाउडर तक. सबके दावे एक से बढ़ कर एक – गोरेपन के साथ चेहरे के दाग-धब्बे-काली भाइयां सब दूर करने का दावा करते हैं ये उत्पाद. जाहिर है गांव कस्बे से लेकर शहरों में बड़ी कद्र है इन उत्पादों की.
दरअसल, भारत में ब्रिटिश राज के बाद से गोरे रंग को लेकर एक खास तरह की कमजोरी हमलोगों के मन में गहरे पैठ गयी. लोगों ने मान लिया कि गोरापन ही खूबसूती है. सफेद त्वचा ही असली सूबसूरती है. रही-सही कसर पूरी कर दी वर्ण व्यवस्था ने पूरी कर दी. इस वर्ण व्यवस्था ने इस धारणा को जन्म दिया कि ब्राह्मण गोरे पैदा होते हैं और दलित या निम्न वर्ण सांवली त्वचा लेकर जन्मते हैं. इसके बाद गोरापन आसमान का चंद बन गया. वैवाहिक विज्ञापनों में सुंदर, सुशील और पढ़ी-लिखी लड़की की कामना के साथ गोरा पहली शर्त हुआ करती है. धीरे-धीरे यह धारणा विस्तार पाने लगी. अब तो लड़का हो या लड़की – गोरा दिखने की चाह हर कोई पालने लगा.
फेयरनेस क्रीम भले ही कितना बड़ा दावा करें, वैज्ञानिक सचाई यह है कि त्वचा का रंग कैसा हो इसमें मेलानिन नामक पिगमेंट की भूमिका अहम होती है. मेलानिन की कितनी मात्रा और इसका गठन ही यह तय करता है. जेनेटिक लाइनेज यानि पूर्वजों की त्वचा का रंग ही आगामी पीढ़ी की त्वचा का रंग तय करता है. त्वचा विशेषज्ञों का मानना है कि त्वचा की रंगत में महज 20 प्रतिशत बदलाव हो सकता है. इससे ज्यादा नहीं. बाजारू फेयरनेस क्रीम बहुत हुआ तो सूरज की पराबैंगनी किरण को रोक सकती है. ऐसा करने से मेलानिन का स्राव कम होता है और त्वचा की रंगत कम काली होती है. लेकिन कोई भी क्रीम, वह कितना भी कीमती क्यों न हो – त्वचा की रंगत को बदल नहीं सकती.
गोरेपन का बाजार
जाहिर है कौस्मेटिक कंपनियों ने अपना व्यवसायिक फोकस गोरेपन की क्रीम पर कर लिया. और फिर फेयरनेस क्रीम का एक बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो गया. होता भी क्यों नहीं! बौलीवुड, मौलीवुड, पौलीवुड, कौलीवुड से लेकर टौलीवुड के नामी-गिरामी अभिनेता-अभिनेत्रियां ऐसे फेयरनेस क्रीम को एंडोर्स जो करते हैं. ACNielsen नाम की शोध संस्था ने 2010 में भारत में फेयरनेस क्रीम के बाजार का मूल्यांकन किया था. शोध संस्था ने पाया कि 2010 में 432 मिलियन डौलर का बाजार था, जिसमें हर साल 18 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी. एक अन्य शोध से पता चला है कि भारत में गोरेपन की क्रीम का बाजार 2010 में 2,600 करोड़ रुपये था। 2012 में 233 टन गोरेपन की उत्पादों का प्रयोग भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा किया गया।
बदसूरती की कीमत पर गोरापन!
1978 में पहली बार भारतीय बाजार में फेयर एंड लवली उतारा गया. इस उत्पाद का प्रचार कुछ इस तरह किया गया गोया फेयरनेस क्रीम के एक ट्यूब में भारतीय नारी को उम्मीद मिलेगी. कंपनी की ओर से दावा कुछ ऐसा किया किया गया था कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा को गोरापन देने का गुण पाया गया है. पर यह निकोटिनामाइड दरअसल, क्या है, इस बारे में विकीपिडिया पढ़ लेने से पता चल जाएगा. यहां सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा कि नियासिनामाइड या निकोटिनामाइड में त्वचा में गोरापन लाने का गुण है तो जरूर, लेकिन इसके साथ इस रासायनिक में मन में उतावलापन के साथ कैंसरकारक तत्व भी मौजूद हैं.
हालांकि बताया जाता है कि अब ये दोनों रासायनिक तत्व क्रीम में नहीं होते हैं. पर आज इनकी जगह स्टेरोयड पाए जाते हैं और जब से इस बात का खुलासा हुआ है फेयरनेस क्रीम तैयार करनेवाली कंपनियां तरह-तरह के सवालों से घिर गयी हैं. हाल ही में सेंटर फौर साइंस एंड एनवारंमेंट नामक संस्था द्वारा कराए गए एक शोध के नतीजे में भारत में पाए जानेवाले 44 प्रतिशत लोकप्रिय फेयरनेस क्रीम में मरक्यूरी यानि पारा पाए जाने का पता खुलासा हुआ है. ओले नेचुरल ह्वाइट (33.4 प्रतिशत), पोंड्स ह्वाइट ब्यूटी (25.2), फेयर एंड लवली एंटी मार्क्स (15), लोरियल पर्ल एफेक्ट (12.9), रेवलोन टच एंड ग्लो (4.6) गारनियर मेन पावर लाइट (4.4), विवेल एक्टिव फेयर (4.3), इमामी मलाई केशर कोल्ड क्रीम (4.1), लेक्मे परफेक्ट रेडियंस (3.5) में पारा की माथा पायी गयी है. गौरतलब बात यह है कि क्रीम की सामग्री में कहीं पारे की मौजूदगी का जिक्र नहीं होता है. जबकि कौस्मेटिक एंड ड्रग अधिनियम में पारा को निषिद्ध घोषित किया गया है.
इसी तरह स्टेरौयड भी त्वचा को तो नकुसान पहुंचाता ही है, कभी-कभी महिलाओं में पुरुषोचित शारीरिक बदलाव के लिए भी यह जिम्मेवार होता है. जान कर हैरानी होगी कि स्टेरौयड वाली फेयरनेस क्रीम का बाजार लगभग 1400 करोड़ रु. का है. कोलकाता के एक त्वचा विशेषज्ञ संजय घोष का कहना है कि सफेद दाग, एग्जिमा जैसे त्वचा संबंधी बीमारी में स्टेरौयड तत्व वाली क्रीम कारगर होती है. लेकिन इन बीमारियों में भी डॉक्टर की सलाह से ही ऐसे क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए. वह भी बहुत कम मात्रा में.
हाल के दिनों में गोरेपन की क्रीम से बहुत सारी महिलाओं की त्वचा में कई तरह की जटिल बीमारियां देखने में आ रही है. त्वचा रोग के विशेषज्ञ और आईएडीवीएल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कौशिक लाहिड़ी का कहना है कि उनके चेंबर में हर रोज फेयरनेस क्रीम के मारे कम से कम दस मरीज आते हैं. डॉ. लाहिड़ी कहते हैं कि स्टेरौयड वाली क्रीम केवल त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाती है, बल्कि ये क्रीम त्वचा को भेद कर अंदर भी जाते हैं. लंबे समय तक इनका इस्तेमाल किए जाने पर त्वचा को इसकी लत लग जाती है. जिसका परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है.
त्वचा विशेषज्ञ जिन लक्षणों से दो-चार हो रहे थे वे वाकई चिंताजनक हैं. किसी को गाल या पूरे चेहरे में आग से झुलसने जैसे निशान बन रहे हैं तो किसीका चेहरा गोरा दिखने के बजाए धूप की गर्मी से त्वचा की रंगत जलकर सांवले नजर आने लगे. वहीं किन्हीं की शिकायत यह कि क्रीम लगाकर धूप में निकलने त्वचा पर चेहरे में असहनीय जलन महसूस होती है. यहां तक कि कुछ महिलाओं ने हारमोन्स में भी गड़बड़ी की शिकायत की, जिसकी वजह से उनकी दाढ़ी-मूंछे निकलने लगी हैं. ये क्रीम सूबसूती के बजाए बदसूरती दे रही है. जाहिर है बदसूरती की कीमत पर गोरापन भला कौन कबूल करेगा!
हरकत में सरकार
त्वचा विशेषज्ञों की राष्ट्रीय स्तर की ईकाई आईएडीवीएल यानि इंडियन एसोसिएशन औफ डर्माटोलौजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) वेनेरियोलौजिस्ट (यौनरोग विशेषज्ञ) और लेप्रोलौजिस्ट (कुष्ठरोग विशेषज्ञ) ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ऐसे गोरेपन की क्रीम से त्वचा को होनेवाले नुकसान के प्रति अगाह करते हुए पत्र लिख कर कड़े कदम उठाने का अनुरोध किया गया. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर विभाग ने ऐसे क्रीम को शिड्यूल एच तालिका में शामिल कर लिया है. 12 अगस्त 2016 को स्वास्थ्य मंत्रालय को इसकी जानकारी एक गजट के माध्यम से दे दी गयी. नियमानुसार एक तय समय (45 दिन) के अंदर इसके खिलाफ आपत्ति पर विचार किया जाता है. लेकिन इस मामले में बताया जाता है कि किसी भी तरह की आपत्ति टिक नहीं पायी. सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर का फैसला लागू हो गया. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अओर से घोषणा कर दी गयी कि ऐसे क्रीम डौक्टर के पर्ची के बगैर न तो खरीदे जा सकते हैं और बेचे जाने पर रोक लगा दिया है.
फिलहाल फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हिमाचल प्रदेश में सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद बनानेवाले एक कंपनी टौरक्यू फर्मा जो नो स्कार्स क्रीम बनाती है, को नोटिस भेजा है और कंपनी द्वारा निर्मित दो क्रीम को जब्त किया है. बताया जाता है कि इन दोनों क्रीमों में फ्लूसिनोलोन एसिटोनिड और मोमेटासोम जैसे स्टेरौयड के साथ ब्लीचिंग एजेंट भी पाया गया है. कोलकाता के जानेमाने त्वचा विशेषज्ञ डॉ. सुस्मित हलदार का कहना है कि मोमेटासोम एक स्टेरौयड है. इसका दुष्प्रभाव चेहरे पर अवांक्षित बाल, रैश, बर्रेदार मुहासे और लाली में देखा जा सकता है. वहीं फ्लूसिनोलोन, हाइड्रोक्वीनोन और ट्रेटिनोइन का लंबे समय तक इस्तेमाल त्वचा के लिए हानिकारक होता है. त्वचा पर झाइंया पड़ सकती है. चेहरे की कांति जाती रहती है. चेहरा बदरंग हो सकता है.