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शौहर ही बन गया ‘गब्बर’

मनोज ने बांहों में जोर से कस कर अपनी बीवी फूलकुमारी को जकड़ लिया और भाभी सविता देवी ने उस के जिस्म पर गरम सलाखों से मारना शुरू कर दिया. बीचबीच में मनोज का बड़ा भाई सरोज उसे उकसाता रहा. फूलकुमारी रोतीचिल्लाती, तो उसे फिल्म ‘शोले’ की हीरोइन बसंती की तरह नाचने के लिए कहा जाता. जब वह नाचने से इनकार करती, तो गरम सलाखों से दागा जाता. दर्द से तड़पती फूलकुमारी नाचने की कोशिश करती, पर गश खा कर जमीन पर गिर पड़ती थी. चेहरे पर पानी डाल कर उसे होश में लाया जाता और उस के बाद फिर से उसे नाचने का फरमान सुना दिया जाता. फिल्म ‘शोले’ के खतरनाक विलेन गब्बर सिंह की हैवानियत को भी फूलकुमारी के पति और ससुराल वालों ने मात दे दी थी.

फूलकुमारी के बेटी को जन्म देने के साथ ही परेशानियों का सिलसिला शुरू हो गया था और उस की शादीशुदा और पारिवारिक जिंदगी लगातार खराब होती गई थी. बेटी को जनने वाली फूलकुमारी पर उस के सास, ससुर, भैसुर, गोतनी और उस के पति का जोरजुल्म शुरू हो गया. फूलकुमारी और उस के मांबाप को परेशान करने के लिए मनोज ने यह रट लगानी शुरू कर दी कि उसे दहेज में मोटरसाइकिल नहीं मिली है. वह फूलकुमारी पर दबाव बनाने लगा कि वह अपने मांबाप से मोटरसाइकिल दिलाए, नहीं तो तलाक के लिए तैयार हो जाए. मनोज की इस कारिस्तानी में गांव का ही रामानंद केवट भी बढ़चढ़ कर मदद करने लगा. रामानंद केवट पर औरतों को सताने के पहले से कई मुकदमे दर्ज हैं. उस ने अपने बड़ी बहू को इस कदर तंग किया था कि उस ने फांसी लगा कर अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली थी. वह छोटी बहू को भी डराधमका कर रखता है और कहीं बाहर आनेजाने भी नहीं देता है. फूलकुमारी देवी बताती है कि मनोज ने मायके वालों से फोन पर बात करने पर भी पाबंदी लगा दी. 4 जून, 2016 को उसे घर के एक कमरे में धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया गया और सास मुन्नी देवी पहरेदार के रूप में बाहर डंडा ले कर बैठी रहती थीं.

24 मई, 2014 को बिहार की राजधानी पटना के दीघा थाने की बिंद टोली में काफी धूमधाम से मनोज और फूलकुमारी की शादी हुई थी. भोजपुर जिले के आरा शहर के रघु टोला में रहने वाले किसान रामदयाल केवट और मुन्नी देवी के बेटे मनोज के साथ फूलकुमारी आरा आ गई  इस बीच मनोज के बड़े भाई धनोज की बीवी रिंकू ने 6 मार्च, 2015 को बेटी को जन्म दिया. घर में खुशियां मनाई गईं और जम कर पार्टी हुई. उस के बाद जनवरी, 2016 को धनोज और रिंकू मुंबई चले गए. धनोज मुंबई में गरम मसाले का कारोबार करता है. उस के बाद मनोज और फूलकुमारी देवी के घर भी 27 अक्तूबर, 2015 को बेटी का जन्म हुआ. फूलकुमारी के बेटी होने के बाद पूरे घर में कुहराम मच गया. जब फूलकुमारी के पिता रवींद्र महतो को अपनी बेटी की दर्दभरी कहानी का पता चला, तो वे बेटी की ससुराल आरा पहुंचे. उन्हें बेटी से नहीं मिलने दिया गया और बेइज्जत कर के घर से भगा दिया गया.

उस के बाद रवींद्र महतो महिला थाने पहुंचे और इंचार्ज पूनम कुमारी से मिल कर पूरी घटना की जानकारी दी. रवींद्र ने जब एफआईआर दर्ज करने की गुजारिश की, तो थाना इंचार्ज ने उन से कहा कि आप लोग पटना के दीघा थाना इलाके में रहते हैं, इसलिए आरा में एफआईआर दर्ज करने से आप लोगों को बारबार पटना से आरा आनेजाने में काफी पैसा और समय बरबाद होगा. आरा के सभी मामले पटना में ही रैफर कर दिए जाते हैं, इसलिए दीघा थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराएं, तो अच्छा रहेगा. थानाध्यक्ष पूनम कुमारी ने कहा कि दीघा थाने के थानाध्यक्ष के पास जा कर मामला दर्ज कराएं. पूनम कुमारी ने यह भी भरोसा दिलाया कि अगर दीघा थानाध्यक्ष मामला दर्ज नहीं करेंगे, तो उन से उन की बात करा देना. महिला थाने से निराशा हाथ लगने के बाद रवींद्र महतो पटना के दीघा थाने गए. वहां पर पुलिस वालों को बेटी के साथ हुए अत्याचार की कहानी सुनाई और एफआईआर दर्ज करने की गुहार लगाई. रवींद्र की बातों को सुनने के बाद पुलिस वालों ने साफतौर पर कहा कि यह मामला तो भोजपुर जिले के आरा शहर का है, इसलिए यहां तो किसी भी हालत में एफआईआर दर्ज नहीं होगी. आरा में जा कर ही मामला दर्ज कराएं.

इस के बाद फूलकुमारी के पिता रवींद्र महतो थाने में ही बैठ कर रोने लगे और बेटी को इंसाफ दिलाने की रट लगाने लगे. इस के बाद भी पुलिस वालों ने उन की मदद नहीं की. पटना पुलिस हैडक्वार्टर के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, 9 जून, 2016 को दोपहर में महिला थाने की थानाध्यक्ष पूनम कुमारी ने रिपोर्ट में कहा था कि घायल के परिजन खुद ही इंजरी रिपोर्ट और एफआईआर दर्ज नहीं कराना चाह रहे थे. उन का कहना था कि पटना में एफआईआर दर्ज करेंगे. इस से यह साफ हो जाता है कि महिला थानों में भी औरतों के मामले को ले कर किस कदर लापरवाही बरती जाती है.

राफेल के बहाने

नरेंद्र मोदी सरकार का मेक इन इंडिया लगातार बेमतलब सा दिख रहा है. देश की रक्षा के लिए सरकार ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू हवाईजहाजों को खरीदने का फैसला किया है. यानी हम अभी भी इस तरह के हवाईजहाज खुद नहीं बना सकते, चाहे कितने ही दावे कर लें. इस सौदे में 16 सौ करोड़ रुपए का एक हवाईजहाज होगा. 36 हवाईजहाजों से भारत जैसे देश का कुछ बनताबिगड़ता नहीं, यह पक्का है. हां, पाकिस्तान, जिसे हम अपना अकेला दुश्मन मानते हैं, उसी के मुकाबले के लड़ाकू हवाईजहाज खरीदेगा.

सवाल तो यह उठना चाहिए कि जब अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस अपनेआप ये हवाईजहाज बना सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? हम से तो अपनी रोज की जरूरत के मोबाइल भी नहीं बन रहे. हम चीन जैसे देश से 46.08 खरब रुपए का सामान खरीदते हैं और उसे बस 53 अरब रुपए का सामान बेच पाते हैं, जिस में ज्यादातर कच्चा माल है  राफेल जैसे हवाईजहाज खरीदने का फैसला नरेंद्र मोदी सरकार को करना पड़ा, यह और अफसोस की बात है क्योंकि उम्मीद थी कि 2014 की उन की जीत के बाद देश तेजी से आगे बढ़ेगा और हम एक गरीब देश के बिल्ले से छुटकारा पा जाएंगे. पर यहां तो हमें ताबड़तोड़ रक्षा के हथियार भी खरीदने पड़ रहे हैं और रोजमर्रा के लिए जरूरी मोबाइल भी. हमारे बाजार विदेशी नामों से भरे हैं. सड़कों पर विदेशी नामों वाली गाडि़यां दौड़ रही हैं. घरों में टैलीविजन, एयरकंडीशनर, कंप्यूटर, कपड़े, कैमरे सभी तो विदेशी तकनीक पर बने हैं. ऐसे में रक्षा के लिए भी यदि हर चीज विदेशी होगी, तो हम कहां से अपना सिर उठा सकेंगे. बच्चे पैदा करना ही हमारा अपना काम रह गया है. उस में भी दवाइयां अब विदेशी नामों की हैं. विदेशी मशीनों से अस्पताल भरे हैं. हम किस तरह के लोग हैं, जो अपना काम खुद नहीं कर पा रहे. मजेदार बात यह है कि इस तरह के सवाल पूछे जाएं, तो जवाब दिया जाता है कि 18वीं सदी का सामान इस्तेमाल करो. खादी पहनो, बैलगाड़ी पर चलो.

विदेशी लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां, तोपें, राइफलें खरीदना जरूरी है, पर देश का माहौल तो ऐसा होना चाहिए न कि हर चीज हम बनाए ही नहीं, दूसरों को भरभर कर भेजें. अभी तो बस आदमी बाहर भेज पा रहे हैं, क्योंकि बच्चे बनाने में तेज हैं.

मत कहो, मुझे सब पता है

‘मुझे सब पता है,’ अकसर यह जुमला आप ने अपने घर में बच्चेबड़े सभी के मुंह से सुना होगा, लेकिन क्या आप को लगता है कि यह सही है? हो सकता है आप को वह बात न पता हो जो सामने वाला बताने जा रहा है. इसलिए जरूरी है कि हर बात में यह बोलने से पहले कि मुझे सब पता है एक बार सोच लें अन्यथा इस के नैगेटिव प्रभाव मन में मलाल पैदा करेंगे. क्या है ‘मुझे सब पता है’

ओवर कौन्फिडैंस : ऐसे लोगों को लगता है कि उन्हें सब पता है, किसी से कुछ जानने की उन्हें आवश्यकता ही नहीं है, लेकिन जब वे अपने इस ओवर कौन्फिडैंस के चलते बिना सोचेसमझे और बिना जाने कोई कदम उठाते हैं और नुकसान होने पर उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है तो उन्हें समझ आता है कि वाकई उन्हें इस बात की जानकारी सामने वाले से कम थी और उन के इसी ओवर कौन्फिडैंस के कारण बनता काम बिगड़ गया.

घमंड : ‘मैं किसी से क्यों सीखूं, मैं तो जीनियस हूं?’ सोचने वाले लोगों को अपनी अक्ल से ज्यादा अपने पैसे, रुतबे और शोहरत का घमंड होता है. उन्हें लगता है कि किसी से कुछ पूछना मतलब अपनी नाक कटवाना. अगर कुछ न भी पता हो तो भी उन्हें किसी और से पूछना अपनी तोहीन लगती है. ऐसे लोग मुंह पर भले बोल दें कि उन्हें सब पता है लेकिन चोरीछिपे उस बात के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को उत्सुक रहते हैं.

कुछ नया न सीखने की इच्छा रखना : हमेशा कुछ नया सीखना आगे बढ़ने के लिए अच्छा होता है लेकिन कुछ लोगों में यह आदत होती है कि वे हर नई चीज को जानने व सीखने से बचना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि गाड़ी चल तो रही है, फिर अपने दिमाग में एक चीज और डाल कर उसे कष्ट क्यों देना.

पुरातनवादी सोच होना : ऐसे लोग लकीर के फकीर होते हैं. वे अपनी घिसीपिटी, पुरानी परिपाटी पर चलते रहते हैं. जब उन्हें कोई नई बात बताई जाए तो वे कहते हैं कि यह तो हमें पता है और इस काम को जैसा हम करते आ रहे हैं वैसे ही ठीक है.

आलसी : कुछ स्टूडैंट इतने आलसी होते हैं कि उन्हें ढंग की या मतलब की बात बताओ तो भी वे सुनने की जहमत नहीं उठाते, क्योंकि उन का दिमाग तो टीवी, गर्लफ्रैंड या फिर कहीं और चल रहा होता है इसलिए सामने वाले की बात सुनने का उन के पास टाइम नहीं होता. जब उन्हें उस काम को करने की आवश्यकता पड़ती है तब समझ आता है कि काश सामने वाले की बात उस वक्त सुन ली होती, तो अब परेशानी न होती. इन्हें लापरवाह भी कह सकते हैं.

बड़बोला होना :  इन्हें पतावता कुछ होता नहीं, लेकिन प्रैजेंट ऐसे करते हैं जैसे दुनिया भर की खबर इन के पास ही है. बातें बनाने में नंबर वन होते हैं. हर चीज के लिए कह देते हैं कि इस में क्या है यह तो मुझे पता है, यह तो बहुत आसान है, लेकिन करने के नाम पर इन के पसीने छूटने लगते हैं, क्योंकि काम करना तो दूर उस की एबीसीडी तक इन्हें पता नहीं होती.

नुकसान

लोग आप से कटने लगेंगे : अगर आप खुद को ज्यादा स्मार्ट समझते हैं और आप को लगता है कि आप को सब पता है, किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं है, तो लोग आप से बात करने में हिचकिचाने लगेंगे, आप से कटने लगेंगे, क्योंकि उन्हें लगेगा कि आप को सब पता है तो कुछ बताने की जरूरत ही नहीं है. ऐसे में आप को न तो कोई नई बात पता चलेगी और न ही कोई नेक सलाह मिलेगी. इस में नुकसान आप का ही होगा.

आप को बदतमीज समझेंगे : अकसर बड़े लोगों को लगता है कि छोटे उन के द्वारा बताई जाने वाली हर बात को सुनें, क्योंकि उन्हें जिंदगी का ज्यादा अनुभव है और अगर वे कुछ बता रहे हैं तो सोचसमझ कर भले के लिए ही बता रहे हैं, लेकिन जब वह बात नहीं सुनी जाती या फिर उसे इग्नोर किया जाता है तो बड़ों को अपना अपमान लगता है और वे बच्चे को बदतमीज समझते हैं. इसलिए अगर आप नहीं चाहते कि लोग आप को बदतमीज समझें तो उन की बात को सुनें. वैसे भी वह है तो आप के भले के लिए ही. अगर अच्छी लगी तो अपना लें वरना एक कान से सुनें और दूसरे से निकाल दें.

अपना मजाक खुद उड़वाएंगे इसलिए मजाक का पात्र न बनें : किसी के कुछ बताने पर आप का यह कहना कि मुझे सब पता है जैसे कि अगर आप को कोई एड्रैस, जहां आप को पहुंचना है, की लोकेशन बताना चाहे और आप तुरंत कह दें कि मुझे पता है, वह एरिया, मेरा देखाभाला है, तो सामने वाला आप का जवाब सुन कर चुप हो जाएगा, लेकिन जब आप उस जगह पहुंचेंगे और आप को वहां सारी बिल्डिंगें एक सी लगेंगी और कोई लैंडमार्क नहीं होने की वजह से आप रास्ता भटकेंगे तो पछताएंगे कि पहले रास्ता समझ लिया होता तो कितना अच्छा होता. ऐसे में जब आप दोबारा उस से फोन कर के लोकेशन के बारे में पूछेंगे तो उस की नजरों में गिर जाएंगे और मजाक का पात्र बनेंगे. सामने वाला मजाक बनाता हुआ कह सकता है, ‘भाई, अब क्यों पूछ रहा है, तुझे तो सब पता है?’

बात के मालूम न होने पर जब गलती होगी तो लोगों के ताने सुनने को मिलेंगे : बात के मालूम न होने पर जब बात बिगड़ जाएगी तो घर वालों, दोस्तों और रिश्तेदारों को आप की उस नादानी पर गुस्सा आना स्वाभाविक है, क्योंकि समय रहते आप ने उस बात को महत्त्व नहीं दिया और उस गलती का खमियाजा सब को भुगतना पड़ता है.

एक अच्छी और नई बात सीखने से अनभिज्ञ रह जाएंगे : कुछ बातें ऐसी होती हैं कि जिस वक्त हमें कोई बता रहा होता है उस वक्त तो हमारे लिए उन बातों का कोई महत्त्व नहीं होता, लेकिन कुछ समय बीतने पर जब उन से संबंधित कोई अन्य घटना या बात हमारे सामने आती है तो हमें एहसास होता है कि काश हम ने उस समय ध्यान से उस की बात सुनी होती, तो आज ऐसी स्थिति उत्पन्न न होती.

क्या करें

बात को काटें नहीं सुनें : किसी भी दूसरे व्यक्ति की बात बीच में ही काटने से पहले एक बार पूरी बात अवश्य सुन लें, हो सकता है वह आप को कुछ ऐसी बात बता रहा हो जो आप को न पता हो या उस के बारे में आप को आधीअधूरी जानकारी हो. ऐसा करने से फायदा आप को ही होगा.

शालीनता का परिचय दें बदतमीजी का नहीं : अगर कोई बड़ा कोई बात बताने की कोशिश कर रहा है तो उस की बात ध्यान से सुनें, फिर चाहे वह बात आप को पता ही क्यों न हो. जब उन की बात खत्म हो जाए तब आप आराम से उन्हें वह बताएं जो आप को पता था और उस बारे में डिस्कस करें.

मुंहफट न बनें : मुंहफट न बनें, बल्कि अगर किसी बात के लिए इनकार भी करना है तो उसे समझाते हुए और उस बात को न माने जाने की वजह बताते हुए बातचीत को आगे बढ़ाएं न कि एकदम मुंह पर साफ मना कर दें.

समझें, फिर रिऐक्ट करें : सामने वाला जो कह रहा है उस बात को समझें, फिर रिऐक्ट करें. हो सकता है वह बात आप के भले की ही हो.

जानकारी हासिल करें : अगर आप को कोई बात नहीं पता है, तो निसंकोच अपने किसी परिचित से उस के बारे में जानकारी हासिल करें. ऐसा कर के आप उस की नजरों में और भी अच्छे बन जाएंगे कि आप को कोई बात पूछने में किसी से कोई भी ईगो नहीं है.

खुद को अपडेट रखें : उस वक्त वह बात ध्यान से सुन ली होती तो इतनी परेशानी न होती. हमेशा खुद को अपडेट करते रहना चाहिए. नई बातें और जानकारी हासिल करते रहना ज्ञान में वृद्धि करता है. ऐसा कर के आप समय के साथ चल पाते हैं और लोगों के बीच बैठ कर किसी भी नए टौपिक पर बात कर सकते हैं, क्योंकि आप के पास लोगों की अपेक्षा अधिक जानकारी होगी.                                       

‘मुझे सब पता है,’ न कहने के फायदे

–       सुनने की क्षमता विकसित होती है. सिर्फ अच्छे वक्ता ही नहीं बल्कि अच्छे श्रोता भी कहलाते हैं.

–       इस में नुकसान तो कोई नहीं. अलबत्ता कोई काम की ही बात पता चल जाती है.

–       लोगों की नजरों में एक अच्छी इमेज बनती है कि आप सीरियस हैं और हर बात को ध्यान से सुनते हैं.

–       इधरउधर से बातें ध्यान से सुनने के कारण नौलेज ज्यादा हो जाती है, जो कभी न कभी काम आ ही जाती है.

–       हर वह बात जो अन्य लेगों को देर से पता चलती है, आप को सब से पहले पता चलेगी.

सोन दियारा: एके-47 की गूंज और खून के छींटे

बिहार में सोन नदी के दियारा इलाके में बालू माफिया की करतूत देख कर साफ हो जाता है कि उसे पुलिस का कोई खौफ ही नहीं है. दियारा के आसपास के इलाकों के लोग फौजी और सिपाही नाम से मशहूर 2 गिरोहों का साथ देते हैं. मनेर के दियारा इलाके की एक बड़ी खासीयत यह है कि वहां के तकरीबन हर घर में एक फौजी है. फौज में रहने के दौरान उन की पोस्टिंग जब जम्मू व कश्मीर में होती है, तो वे वहां अपने नाम से राइफल या बंदूक का लाइसैंस जारी करा लेते हैं और दियारा इलाके में बालू के गैरकानूनी खनन में लगे अपराधी गिरोहों को ढाईतीन हजार रुपए के मासिक किराए पर दे देते हैं.

बालू निकालने के लिए जिन जेसीबी और पोकलेन मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, वे लोकल बाहुबलियों की होती हैं. एक मशीन की कीमत 40 लाख से 50 लाख रुपए होती है और उसे खरीदना आम आदमी के बूते की बात नहीं है. सोन नदी से गैरकानूनी रूप से बालू निकालने और उस से करोड़ों रुपए की कमाई करने वाले शंकर दयाल सिंह उर्फ फौजी और उमाशंकर सिंह उर्फ सिपाही को पटना, भोजपुर और सारण जिलों की पुलिस पिछले कई सालों से ढूंढ़ रही है, पर उन पर हाथ नहीं डाल सकी है.

मूल रूप से कैमूर जिले के रहने वाले फौजी पर दर्जनों हत्याओं और पुलिस पर गोलियां चलाने का आरोप है. सिपाही गिरोह का सरगना मनेर थाने की सूअरमरवा भरवा पंचायत का मुखिया है. इन दोनों के बीच बालू घाट पर कब्जा जमाने को ले कर अकसर खूनी भिड़ंत होती रहती है. 30 और 31 जुलाई, 2016 को इन दोनों गुटों के बीच अंधाधुंध फायरिंग से सोन का दियारा का इलाका थर्रा उठा था. फायरिंग में कोइलवर के प्रमोद पांडे की मौत हो गई थी और दोनों ओर के दर्जनों लोग घायल हो गए थे. प्रमोद फौजी गिरोह का सदस्य था. 30 मार्च, 2014 को पुलिस ने फौजी को उस के 9 गुरगों के साथ पकड़ा था. उस के पास से बड़े पैमाने पर देशी और विदेशी हथियारों का जखीरा बरामद किया गया था, लेकिन जेल से छूटने के बाद वह फिर से बालू खनन के गैरकानूनी काम में लग गया.

दियारा के जिस इलाके को ले कर खूनी जंग छिड़ी हुई है, उस जमीन के बारे में सरकार और प्रशासन के बीच ही विवाद का माहौल बना हुआ है. 2 अगस्त, 2016 को पटना और भोजुपर जिले के एसपी और 3 ब्लौकों के सर्किल अफसरों की बैठक में जमीन को ले कर बातचीत हुई. पटना और भोजपुर को जोड़ने वाले महुई हाल का इलाका साल 1920 के सर्वे के हिसाब से पटना को मिल गया था. साल 1972 में हुए सर्वे के मुताबिक उसे भोजपुर का हिस्सा करार दिया गया, लेकिन आज तक उसे मंजूरी नहीं मिल सकी. इस लिहाज से उसे पटना का ही इलाका बताया जा रहा है. बिहटा और आनंदपुर गांव के किसान भी इस सरकारी हेरफेर से उलझन में हैं. किसानों की जमीन की रसीद पटना जिले से ही कट रही है.

फौजी ने इन्हीं किसानों से बालू निकालने का एग्रीमैंट कर रखा है. सिपाही गुट जबतब इस एग्रीमैंट का विरोध कर अपना कब्जा जमाना चाहता है, जिस से गोलीबारी होती है. सिपाही गिरोह का कहना है कि यह जमीन सरकार की है. बालू वाली जमीन ठेके पर लेने के बाद सरगना वहां से बालू निकालने के लिए पोकलेन मशीन और नावों का इंतजाम कराता है. गौरतलब है कि सड़क रास्ते से बालू ढोने वाली गाडि़यों का चालान काटा जाता है, पर नदी रास्ते से जाने वाली नावें बंदूक के जोर पर ही चलती हैं. महुई महाल से बालू निकाल कर माफिया वाले उसे नाव के जरीए छपरा ले जाते हैं और बेच देते हैं. दियारा इलाके के काफी दूर होने की वजह से अपराधी गिरोह जम कर चांदी काटते हैं. वहां पुलिस और प्रशासन के अफसरों का पहुंचना काफी मुश्किल है. इस का फायदा उठाते हुए फौजी और सिपाही गिरोह ने अपनीअपनी चैकपोस्ट भी बना रखी हैं और उस रास्ते से गुजरने वाली नावों से टैक्स वसूलते हैं.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने सोन नदी में नाव चलाने पर रोक लगा दी थी, इस के बाद भी बालू माफिया नाव चला रहे हैं और बालू को निकालने में लगे हैं. दिनरात सैकड़ों नावें बालू ढोने में लगी हैं. नाविकों का कहना है कि उन के पास रोजीरोटी का दूसरा कोई जरीया नहीं है. सरकार पहले किसी दूसरे रोजगार का इंतजाम करे, उस के बाद ही नाव चलाने और बालू ढोने पर रोक लगाए. गौरतलब है कि नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मनेर के पास सोन नदी के दियारा इलाकों के चौरासी, रामपुर और सूअरमरवा में बालू निकालने की मंजूरी नहीं दी है. उस के बाद भी गैरकानूनी तरीके से बालू की निकासी जारी है.  सोन नदी में रोज 2 हजार से ज्यादा नावें बालू ढोती हैं. एक नाव पर 8 से 10 आदमी काम करते हैं. मनेर के पास सोन नदी से उठाई गई बालू को डपरा के डोरीगंज, मांझी, पहलेजा, सिंगही, झौवाढाला वगैरह घाटों पर उतारा जाता है. लोकल ठेकेदार उस बालू को खरीद कर जमा करते हैं. उस के बाद बालू को उत्तरपश्चिमी बिहार के अलगअलग जिलों में ऊंची कीमतों पर बेचा जाता है.

पुलिस सूत्र बताते हैं कि गैरकानूनी रूप से बालू खनन करने वाले माफिया की पहुंच पुलिस और सरकार के आला अफसरों तक है, जिस की वजह से उन लोगों के खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हो पाती है. सोन नदी से बालू निकालने की खबर मिलने के बाद 4 अगस्त, 2016 को पुलिस दियारा इलाके में दलबल के साथ पहुंच तो गई, पर किसी तरह की कार्यवाही नहीं कर सकी और न ही नावों को जब्त कर सकी. पुलिस टीम में कोई ऐसा नहीं था, जिसे नाव का इंजन स्टार्ट करना आता हो. पुलिस को देखते ही बालू मजदूर नावों को छोड़ कर नदी में कूद गए. पुलिस उन्हें ढूंढ़ती रह गई, पर एक भी मजदूर हाथ नहीं आ सका

पिछले दिनों हुई खूनी भिड़ंत के बाद पुलिस ने दियारा के आसपास के इलाकों में ताबड़तोड़ छापामारी की और फौजी के एक भाई कृष्ण सिंह और उस के 2 बेटों अभिमन्यु सिंह और नीरज सिंह को दबोच लिया. साथ ही, फौजी के 3 गुरगों अनिल कुमार, रामबाबू राय और शशि कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से पुलिस ने 3 पिस्तौल और 7 जिंदा कारतूस बरामद किए. तीनों को भोजपुर और मनेर से पकड़ा गया था. फौजी के भाई और बेटों ने पुलिस को बयान दिया कि उस के भाई और पिता क्या काम करते हैं, उन्हें कुछ भी पता नहीं है. पुलिस ने 24 पोकलेन मशीनों और 4 नावों को भी कब्जे में ले लिया है. एसएसपी मनु महाराज का दावा है कि सोन के दियारा इलाकों में हर हाल में गैरकानूनी बालू का खनन रोका जाएगा. इस के लिए पटना, भोजपुर और सारण की पुलिस मिल कर घाटों की निगरानी करेगी. यहां पुलिस बल तैनात किए जाएंगे. दियारा इलाके में पुलिस के पहुंचने में काफी समय लग जाता है, इसलिए वहां स्थायी रूप से पुलिस बलों की तैनाती जरूरी है.

महत्त्वपूर्ण है सार्वजनिक शिष्टाचार

विनम्रता, सद्भावना और प्यार से परिपूर्ण व्यवहार जो दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ता है, को ही शिष्टाचार कहते हैं. हमें समाज में सभ्यता और सम्मान से रहना चाहिए. शिष्टाचार के नियमों का पालन हमें खुद भी सख्ती से करना चाहिए और अपने बच्चों को भी मैनर्स सिखाते रहना चाहिए. जब बात सार्वजनिक स्थानों पर शिष्टाचार की हो तो मैनर्स की हमें ज्यादा परवा नहीं रहती, इस से साफ जाहिर है कि शिष्टाचार पर हमारा सारा फोकस घर और जानपहचान वालों तक ही सीमित है. जिस समाज और देश में हम रहते हैं क्या उस के प्रति हमारी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं हैं? जिन रास्तों से हम रोज गुजरते हैं, जिन सार्वजनिक स्थानों पर हम सैरसपाटे के लिए जाते हैं, जो सार्वजनिक वाहन हमें अपने गंतव्य तक पहुंचाते हैं क्या उन्हें साफसुथरा रखना हमारा नैतिक दायित्व नहीं बनता?

कैसे डैवलप करें शिष्टाचार

आजकल बच्चों को शिष्टाचार और संस्कार सिखाने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इन की आवश्यकता उन घरों में ज्यादा है, जहां बच्चों की परवरिश मेड या नौकरों द्वारा होती है. आजकल अधिकांश घरों में पेरैंट्स के पास बच्चों के साथ बैठने का वक्त ही नहीं होता. पुराने समय में घरों में बड़ेबुजुर्गों और मांबाप के संरक्षण में पैदा होते ही बच्चों की पाठशालाकार्यशाला शुरू हो जाती थी. दरअसल, बड़ों के अनुशासन में बच्चे शिष्टाचार में निपुणता हासिल करते हैं, इसीलिए संस्कारी घरों में बच्चों के थोड़ा समझदार होते ही बड़े भी अपने व्यवहार को बदलना शुरू कर देते हैं, ताकि बच्चा शिष्ट बने, जोकि एक बेहद अच्छी सोच है. अपनी कमियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है. आजकल के बच्चे काफी समझदार व स्मार्ट हैं. वे अकसर अभिभावकों से सवाल पूछते हैं कि जो काम आप खुद करते हैं, तो फिर हमें उसे करने से क्यों रोकते हैं?

प्रश्न उठता है कि किशोर शिष्टाचार को कैसे अपनी लाइफ का हिस्सा बनाएं? इस के लिए एक शिष्ट इंसान का छद्म मुखौटा लगा लेना काफी नहीं है. समाज में यदि सचमुच अपनी इमेज एक सभ्य व्यक्ति की बनानी है, तो शिष्टाचार को गहराई से जीवन में अपनाना होगा. इस के लिए अपने ऊपर कंट्रोल की जरूरत होती है. विनम्रता और सद्भाव शिष्टाचार की प्रथम सीढ़ी हैं, फिर धीरेधीरे अनुशासन और अभ्यास से शिष्ट आचरण को जीवन में ढालना ज्यादा मुश्किल नहीं है. कई बार किशोर जानते हैं कि हमारा व्यवहार ठीक नहीं है फिर भी वैसा ही व्यवहार रखते हैं. गलती बारबार रिपीट करना अशिष्टता है.

घर बाहर की दुनिया और शिष्टाचार

घर और बाहर के समाज में जमीनआसमान का फर्क होता है, उदाहरण के लिए घर की स्वच्छता का तो हम बहुत ध्यान रखते हैं, लेकिन सड़क या किसी सार्वजनिक स्थान पर कौन सफाई करता है? लेकिन कम से कम हम उसे और गंदा करने से तो बचा ही सकते हैं.

आइए, सीखें कुछ सामान्य शिष्टाचार, जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जाते समय ध्यान में रखना चाहिए :

–       जब भी कहीं बाहर अपने या सार्वजनिक वाहन से जाएं तो ध्यान रखें खानेपीने की चीजों के खाली पैकेट व फलों के छिलके सड़क पर न फेंकें, इस के लिए घर से खाली पौलिथीन साथ ले कर चलें.

–       रास्ते या दीवार पर थूकना, भद्दे कमैंट्स लिखना, पान की पीक जहांतहां फेंकना ठीक नहीं है. खाली बोतल या किसी तरह का अन्य बेकार सामान डस्टबिन में ही डालें.

–       सार्वजनिक स्थल पर मित्रों के साथ धीमी आवाज में बात करें, गाली व अभद्र भाषा का प्रयोग कतई न करें. पेड़पौधों व सजावटी वस्तुओं को नुकसान न पहुंचाएं.

–       रास्ते में पड़ा सामान जैसे पत्थर आदि किसी दुर्घटना का कारण बन सकते हैं, इसे एक तरफ हटा दें.

– भीड़भाड़ वाली जगहों पर ट्रेन, मैट्रो व बस आदि में चढ़तेउतरते समय धक्कामुक्की न करें, विकलांगों, महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता दें.

–       सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान व नशा न करें.

–       सार्वजनिक सभा या लोगों के बीच किसी से इशारे या कानाफूसी न करें, उसी भाषा का प्रयोग करें जिसे सभी लोग समझ सकें. तीखी आवाज में बोलना, छींकना, खांसना, ठहाके लगा कर हंसना अशिष्टता है, इन से बचें.

–       किसी सार्वजनिक शोक सभा में प्रसंग से हट कर बातें शुरू

करना, दुखी व्यक्ति की बात न सुनना, अशिष्टता ही नहीं अमानवीयता भी है.

–       अस्पताल में बीमार व्यक्ति के साथ कम शब्दों में बात कर उसे जल्दी ठीक होने का आश्वासन दें, निराशाजनक बातें न करें.

–       सार्वजनिक स्थलों पर खासतौर से भीड़भाड़ वाली जगहों पर ड्राइव करते समय ट्रैफिक नियमों का पालन अवश्य करें. अपना फोन साइलैंट रखें. यदि ज्यादा आवश्यक हो तो मैसेज से या वाहन एक तरफ रोक कर संक्षिप्त बात करें. आजकल महानगरों में पार्किंग को ले कर काफी दुर्घटनाएं होने लगी हैं इसलिए किसी भी कंट्रोवर्सी से बचने के लिए पार्किंग स्थल पर ही गाड़ी पार्क करें.

–       स्मार्टफोन पर हर समय चिपके रहना आज किशोरों का शौक बन गया है. अकसर ऐसे समय में साथ वाले व्यक्ति

की उपेक्षा होती है. जरूरी बातों के बीच फोन को साइलैंट रखें.

–       किसी भी समारोह में खानेपीने संबंधी शिष्टाचार के लिए

अपनी प्लेट में जरूरत भर का खाना परोसें. अपने साथ आए लोगों को भी विनम्रता से खाना ला कर दें.

–       पिक्चर हौल में जोरजोर से बातें करना, किसी दृश्य पर चीख कर कमैंट्स करना या पिक्चर की कहानी पहले बता कर सारा सस्पैंस खत्म कर देना अशिष्टता है, इस से दूसरे दर्शकों को बुरा लग सकता है और उन के मनोरंजन का सारा मजा किरकिरा हो सकता है. पिक्चर हौल में गर्लफ्रैंड के साथ अश्लील हरकतें करना शिष्टाचार के खिलाफ है.

अत: जीवन में हर जगह शिष्टाचार की आवश्यकता होती है. व्यक्ति में कोई खास योग्यता या आकर्षण न भी हो, फिर भी वह शिष्टाचार के माध्यम से दूसरे के हृदय में अपने लिए सम्मान और एक विशिष्ट स्थान बना सकता है. मन की शांति और समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए भी हमारा शिष्ट होना बेहद जरूरी है.

आजकल हमारे समाज में अशिष्टता का माहौल बड़ी तेजी से फैल रहा है. अपनेआप में सीमित होते लोगों के बीच स्वार्थ और अमानवीयता ज्यादा बढ़ रही है, जो देश, समाज और खुद हमारी न्यू जनरेशन के लिए बहुत घातक है. आज उच्चशिक्षित लोग भी कृत्रिम शिष्टाचार को निभाते दिखते हैं. शिक्षा का उद्देश्य किशोरों को समाज के लिए सभ्य इंसान बनाना है. किशोरों को यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि अफसर बनना, अमीर बनना, महंगी गाडि़यों में घूमना या करोड़ों के सुविधाजनक घरों में रहना ही जीवन नहीं है. इन सभी के नशे में शिष्टाचार न भूलें. जीवन में और भी बातों के साथ अपनी सभ्यता, संयम, विनयशीलता, सभी के साथ आदरपूर्ण व्यवहार भी बहुत ही जरूरी है.                       

मैं 2 साल पहले रिलेशन में थी. पर वह लड़का आज भी मुझे दिमाग से नहीं निकाल पा रहा. क्या करूं.

सवाल

मैं 17 वर्षीय लड़की हूं. 2 साल पहले मैं एक लड़के के साथ रिलेशन में थी. मैं आज भी उसे मैसेज करती हूं, पर वह मुझे दिमाग से नहीं निकाल पा रहा. मैं क्या करूं?

जवाब

आप अपनी तरफ से ही श्योर नहीं हैं कि आप उस से आज भी रिश्ता रखे हुए हैं कि नहीं. यदि आप के मन में उस के प्रति हमदर्दी नहीं है तो यह सोचना छोड़ दें कि वह आप को दिमाग से नहीं निकाल पा रहा, और अगर आप अब भी उस की वैलविशर हैं तो उसे समझाइए कि वर्तमान में जीना सीखे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. आप उस से अच्छी दोस्ती रख कर भी ये सब कर सकती हैं.

17 साल की उम्र वह अवस्था है जहां विचार बदलते रहते हैं. आज कोई अच्छा लगता है तो कल कोई. आकर्षण के इस भंवर में खो कर ही वह आप को दिमाग से नहीं निकाल पा रहा है.

 

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नेताओं के भरोसे प्रदर्शित हो सकेगी ‘ऐ दिल है मुश्किल’..?

करण जोहर हवा में उड़ रहे हैं. करण जोहर को लग रहा है कि उन्होंने देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अपनी फिल्म के सुचारू रूप से प्रदर्शन की हरी झंडी ले चुके हैं. उन्हे लग रहा है कि उन्होने महाराष्ट् के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे के संग बैठक कर अपनी फिल्म के प्रदर्शन के लिए रास्ता साफ कर लिया है. इसलिए अब उन्हे काहे का डर..मगर बौलीवुड के सूत्रों की माने तो अभी भी करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ के प्रदर्शन और फिल्म की सफलता को लेकर मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं. यूं तो इसका ईशारा राज ठाकरे अपने बयान में भी कर चुके हैं. राज ठाकरे ने मीडिया से कहा था-‘‘मनसे फिल्म के रिलीज का विरोध नहीं करेगी. मगर लोग तो बहिष्कार करेंगे ही.’ करण जोहर को इसके मायने तलाशने होंगे.

करण जोहर ने जिस तरह से फिल्म इंडस्ट्री की एसोसिएशनों को दरकिनार करते हुए राजनेताओें के साथ बैठकें कर समझौते किए हैं, उससे फिल्म इंडस्ट्री के अंदर भी उनके खिलाफ एक माहौल बन गया है. आधे से ज्यादा बौलीवुड इस तरह के समझौते का विरोध कर रहा है. उधर भारतीय सेना भी खिलाफ है. कई पूर्व सैनिको ने बयान जारी कर कहा है कि सैनिकों के वेलफेअर फंड में किसी से जबरन वसूली वाला पांच करोड़ नहीं चाहिए.

उधर महाराष्ट्, गोवा, गुजरात व कर्नाटक इन चार राज्यों के सिंगल सिनेमा घर मालिको की एसोसिएशन के अध्यक्ष नितिन दातार ने करण जोहर पर फिल्म एक्जबीटरों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए ऐलान किया है कि उनकी एसोसिएशन करण की फिल्म को रिलीज नहीं करेगी. नितिन दातार का आरोप है कि करण जोहर अखबारों में विज्ञापन देकर भ्रम फैलाने के अलावा फिल्म एक्जबीटरों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं कि उनकी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ सिंगल थिएटर में रिलीज होगी. जबकि हकीकत यह है कि नितिन दातार की एसोसिएशन में 450 सदस्य हैं, जो कि फिल्म को रिलीज नही करेंगे, इसमें से सिर्फ 80 सिंगल थिएटर मुंबई में हैं.

इतना ही नही बौलीवुड के सूत्र दावा कर रहे हैं कि करण जोहर ने राजनीतिक हस्तियों के साथ मेल मिलाप कर लिया, मगर देश की आम जनता से सीधे बात करना उन्होंने जरूरी नहीं समझा. करण को देश की जनता की भावनाओं व संवेदनाओं को भी समझना होगा. अंततः राजनेता नहीं देश की जनता ही तय करेगी कि वह ‘ऐ दिल है मुश्किल’ देखना चाहती है या नहीं..यानी कि अभी भी ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की राह आसान हुई है, ऐसा नहीं लगता..

सपा परिवार में बनते बनते बिगड़ गई बात

मुलायम परिवार में विवाद को लेकर जुटे परिवार के बीच सबकुछ सुलह समझौते के बीच पहुंच कर भी बात बिगड़ गई. समाजवादी पार्टी के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी सुबह से ही जमावड़ा लगना शुरू हो गया. नेताओं के अलग अलग गुट के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गये. इनको रोकने के लिये पुलिस को लगाना पड़ा और मीटिग का समय 10 बजे के बजाये 11 बजे का रखा गया. मीटिंग के शुरू होने पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी बात रखी, जिसमें उन्होंने शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह का पक्ष लिया. मुलायम ने विस्तार से बताया कि शिवपाल और अमर सिंह उनके लिये कितना अहम स्थान रखते हैं. मुलायम ने यह बताया कि किस तरह से लाठी खाकर पार्टी बनाई है. कैसे अमर ने मुसीबत के समय उनकी मदद की. मुलायम ने अमर सिंह को अपना भाई कहा.

मुलायम के बाद मीटिंग में अखिलेश और शिवपाल ने अपनी अपनी बात रखी. मीटिंग को एक मुकाम पर ले जाकर खत्म करने के तहत मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ चलने का संदेश दिया. अखिलेश और शिवपाल गले मिले. मुलायम ने कहा कि अखिलेश सरकार चलाएं और शिवपाल संगठन. ऐसे में लगा कि यह विवाद यहीं खत्म हो जायेगा. इस बीच अखिलेश ने अमर सिंह के एक पत्र का जिक्र किया. जिसमें अखिलेश को मुसलिम विरोधी कहा गया था. इसके प्रमाण के रूप में सपा नेता आशू मलिक को गवाह के रूप में बुलाया गया. आशू मलिक ने अपनी बात रखनी शुरू कि तो धक्का मुक्की शुरू हो गई. जिसमें एक बार फिर से शिवपाल और अखिलेश आमने सामने आ गये. जो बात बनती दिख रही थी वह बिगड़ गई.

एक के बाद एक नेता मीटिंग से बाहर चले गये. अब मीटिंग की बात को सुलझाने के लिये फिर से अलग अलग नेताओं में मिलने का दौर शुरू हो गया. मीटिंग के आखिर में हुई इस घटना से यह पता चल गया है कि सपा की रार खत्म नहीं हुई है. अब नई तरह से इसको सुलझाने का प्रयास होगा. समाजवादी पार्टी के ज्यादातर नेता चाहते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी मुलायम खुद संभाले इसके बाद ही समाजवादी पार्टी एकजुट रह पायेगी. इस राह में रोडा दिख रहे अखिलेश यादव खुद कह चुके हैं कि वह नेताजी का हर कहा मानेंगे. जिस तरह से अखिलेश यादव के पक्ष में विधायकों का एक गुट सामने आ रहा है उससे साफ है कि सत्ता के लिये रस्साकशी चलेगी.

यह बात मुलायम भी समझते हैं कि अखिलेश को कुर्सी से हटाना सरल नहीं है. इस वजह से ही वह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और लोकदल नेता चौधरी अजीत सिंह से भी बात कर चुके है. मुलायम ने यह साफ कर दिया है कि उनको बूढ़ा न समझा जाये. वह अभी भी पार्टी को संभाल सकते हैं. खबर है कि कांग्रेस और लोकदल मदद के लिये आगे आ सकती है. सपा की लड़ाई में हर घंटे नये बदलाव आ रहे हैं. ऐसे में पल पल राजनीति के रंग बदलेंगे.                        

 

अमर और शिवपाल को नहीं छोड़ सकते मुलायम

समाजवादी पार्टी में परिवार के अंदर चल रही रार अब खुलकर बाहर आ गई है. अखिलेश यादव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से जब शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से बाहर किया, तो सपा प्रमुख मुलायम सिह यादव ने रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर कर दिया. यही नहीं, शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को भाजपा के साथ मिला हुआ बता कर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया और तर्क दिया कि वह अपने पुत्र और बहू को सीबीआई जांच से बचाने के लिये भाजपा से मिलकर मुख्यमंत्री अखिलेश को गुमराह कर रहे हैं. रामगोपाल भी ऐसे आरोप शिवपाल पर लगाते अपने पत्र में लिखते हैं कि मुलायम सिंह यादव इस समय ‘आसुरी शक्तियों’ से घिरे हुये हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल और उनके समर्थक मंत्रियों को यह कहते बाहर किया कि यह लोग अमर सिंह के कहने पर काम कर रहे हैं.

सपा परिवार की इस लड़ाई में बारबार बाहरी लोगों को नाम लिया जा रहा है. असल में परिवार में विवाद की वजह घर के अंदर है. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का परिवार 2 खेमे में बंटा हुआ है. एक में अखिलेश और रामगोपाल यादव हैं. दूसरे खेमे में मुलायम की दूसरी पत्नी साधना, बहू अपर्णा बेटा प्रतीक और भाई शिवपाल यादव हैं. दोनो गुटों के बीच असल टकराव उत्तराधिकार का है. अखिलेश यह बात जानते हैं कि अगर असल बात सामने रखी गई तो पिता मुलायम सीधे निशाने पर आ जायेंगे. ऐसे में सपा प्रमुख को चाहने वाले नेता और कार्यकर्ता उनसे कट जायेंगे. ऐसे में अखिलेश अकेले पड़ जायेंगे. इस लिये बारबार वह बाहरी लोगों काम नाम ले रहे हैं.

घर की लड़ाई सडक पर आई, तो कार्यकर्ताओं का टकराव होने लगा. इससे पार्टी सहम गई. मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के खिलाफ खुलकर सामने आना पडा. इस लड़ाई में अखिलेश अकेले पड़ गये हैं. सपा प्रमुख मुलायम ने कहा कि वह अमर सिंह और शिवपाल सिंह यादव को छोड़ नहीं सकते. ऐसे में मुलायम और अखिलेश के बीच टकराव टूट की कगार पर आ गया है. मुलायम सिंह परिवार के बीच टूटन को भले ही रोक ले पर जो गांठ परिवार के बीच पड़ गई वह बनी रहेगी. ऐसे में कार्यकर्ता और समर्थक अमंजस में है कि वह किसकी तरफ रहे. नेताओं से ज्यादा उनके बीच टकराव दिख रहा है.                  

समाजवादी पार्टी: चुनाव से पहले कुनबे में कलह

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. अगले साल फरवरी-मार्च में मतदान हो सकता है. लगभग सभी विपक्षी दल पिछले कई महीने से तैयारियों में जुटे हैं. जो समाजवादी पार्टी 2012 से सत्तारूढ़ है, उससे भी ऐसी ही अपेक्षा थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम से लगता है कि सपा में दूसरी ही तैयारी हो रही है.

मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी को उन्होंने पच्चीस साल में खून-पसीना बहाकर इस स्थिति तक पहुंचाया है, वह परिवार के अंदरूनी तनाव, झगड़ों और वर्चस्व की जंग में टूट के कगार पर पहुंच जाएगी. वह भी विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले.

पिछले चौबीस घंटे के भीतर घटनाएं इतनी तेजी से घटी हैं कि हर कोई हतप्रभ है. वैसे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कभी अपने पिता और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की हुक्म उदूली नहीं की, परन्तु पिछले छह महीने में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जब उन्होंने मुलायम की इच्छा के खिलाफ जाकर फैसले करने का साहस दिखाया है. तीन महीने पहले तक भी कुनबे के बहुत से विवाद परदे के पीछे थे परन्तु जब से मुलायम ने अमर सिंह को सपा में लेने और राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है, तब से झगड़े बढ़ गए हैं. अब बात घर से निकलकर सड़कों पर आ चुकी है.

अखिलेश यादव अपने सगे चाचा शिवपाल यादव को पसंद नहीं करते. शिवपाल अखिलेश को नापसंद करते हैं और जब 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया था, तब से ही वे नाखुश हैं. चीजें दबी छिपी रहीं परन्तु परदे के पीछे ऐसी बहुत सी बातें चलती रहीं, जिनके चलते अंतत: अखिलेश यादव का धैर्य जवाब दे गया. उनके विरोध के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बाहुबलि की पार्टी के सपा में विलय का फैसला बदलना पड़ा था, जो शिवपाल यादव की पहल पर हुआ था. बाद में एक दिन खबर आई कि मुलायम ने अखिलेश को भरोसे में लिए बिना प्रदेश अध्यक्ष पद मुख्यमंत्री से छीनकर शिवपाल यादव को सौंप दिया है. जवाब में अखिलेश ने शिवपाल से कई विभाग छीन लिए और अपनी नाराजगी का एहसास कराया.

सुलह सफाई के बाद उन्हें महकमे लौटा दिए गए परन्तु प्रदेशाध्यक्ष के नाते शिवपाल ने अखिलेश के कई करीबियों को जब बाहर का रास्ता दिखाया तो बात बनने के बजाय बिगड़ती चली गई. जो हालात इस समय बने हैं, वह देर-सबेर बनने ही थे. अखिलेश यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं कि पांच साल तक यूपी में सरकार वह चलाएं और विधानसभा चुनाव के वक्त प्रत्याशी कोई और तय करे. टिकट उनके वह चाचा बांटें, जो हमेशा उन्हें नीचा दिखाते आ रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी दो पाटों में बंटी हुई दिखाई देने लगी. महासचिव और राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव यहां अखिलेश के साथ खड़े नजर आने लगे वहीं अमर सिंह शिवपाल यादव के साथ गलबहियां डालते देखे गए. अखिलेश और उनके सर्मथकों का मानना है कि यही लोग मुलायम के कान भरकर माहौल खराब करने में लगे हैं.

सपा में जो टूट के हालात बन गए हैं, उसकी एकमात्र वजह यही है कि संगठन पर किसका वर्चस्व हो, अब इसके लिए संघर्ष शुरू हो गया है. अखिलेश किसी भी हालत में यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं कि संगठन पर कोई और कब्जा करे. टिकट कोई और बांटे. पार्टी फंड पर किसी और का आधिपत्य हो. अखिलेश ने रविवार को जहां शिवपाल सहित पांच मंत्रियों को बर्खास्त किया, वहीं इसकी प्रतिक्रिया में शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को छह साल के लिए निष्कासित करने का ऐलान कर दिया. यह जंग यहीं खत्म होने वाली नहीं है. सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि मुलायम का अगला कदम क्या होने वाला है? वे बेटे के साथ खड़े होंगे या शिवपाल यादव और अमर सिंह के साथ खड़े दिखेंगे. अगले कुछ दिनों में समाजवादी पार्टी दो फाड़ होती नजर आए तो किसी को ताज्जुब नहीं होगा.

हालांकि उत्तर प्रदेश के सियासी घमासान को देखने के दो तरीके हो सकते हैं. एक तो यह कि इसे पूरी तरह सत्ता में बैठे परिवार का अंदरूनी झगड़ा मान लिया जाए. इसे प्रदेश के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव के परिवार की वैसी ही सियासी लड़ाई मान ली जाए, जैसी हमने कुछ समय पहले तमिलनाडु में एम करुणानिधि के परिवार में देखी थी. अभी तक तो इसे इसी रूप में देखा जा रहा था और यह माना जा रहा था कि परिवार के बड़े-बुजुर्ग की तरह मुलायम सिंह यादव आगे बढ़ेंगे और सारी कड़वाहट खत्म हो जाएगी. खुद मुलायम सिंह भी यही कोशिश कर रहे थे और एक समय लगने भी लगा था कि मामला अब खत्म ही होने वाला है. लेकिन कल लखनऊ में जिस तरह की राजनीति हुई, और दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी चालें चलीं, उनको देखते हुए यही लगता है कि अब बात शायद उनकी कोशिशों से कहीं आगे बढ़ गई है.

समाजवादी पार्टी के इस घमासान को देखने का दूसरा नजरिया यह हो सकता है कि यह दो पीढ़ियों का संघर्ष है, जो ऐन चुनाव से पहले सतह पर आ गया है. एक तरफ शिवपाल यादव हैं, जो पुरानी तरह की राजनीति के समर्थक हैं. वोट लेने और सरकार चलाने तक उनके सारे औजार वही हैं, जिनका एक जमाने से भारतीय राजनीति में दबदबा रहा है. दूसरी तरफ, पार्टी के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं, जो पद संभालने के बाद से नई तरह की राजनीति करते आए हैं. सरकार चलाने और राजनीति करने, दोनों में उन्होंने अपनी छवि का पूरा-पूरा ख्याल रखा है. बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कॉल सेंटर खोलने जैसे कदम उनकी आधुनिक सोच को दर्शाते हैं.

समाजवादी पार्टी में घमासान चूंकि अभी जारी है, इसलिए ठीक से यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि यह लड़ाई सिर्फ परिवार के भीतर का मामला होकर रह जाएगी या फिर दो पीढ़ियों के संघर्ष के रूप में यह किसी अंजाम तक पहुंचेगी. कहीं न कहीं यह उम्मीद बची हुई है कि अगर मुलायम सिंह यादव सक्रिय हुए, तो मामला यहीं पर खत्म हो सकता है. दोनों पक्षों के बीच मेल-जोल की कोशिशों के कुछ संकेत मिले भी हैं और कुछ फॉर्मूलों की चर्चा भी हो रही है. एक-दूसरे से शिकवे-शिकायतों के बावजूद दोनों पक्ष इस बात को समझते ही होंगे कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह का घमासान उन्हें कितना नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में अपने-अपने लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की राजनीति इस लड़ाई का एक बड़ा कारण है.

कुछ भी हो, यह घमासान प्रदेश के विरोधी दलों के लिए एक अच्छी खबर है. वे यह मान रहे हैं कि कुछ महीने बाद जब प्रदेश में चुनाव होंगे, तब समाजवादी पार्टी को जितना परेशान एंटी इन्कंबेन्सी नहीं करेगी, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसे इस घमासान की वजह से पार्टी की छवि की पहुंची क्षति के कारण होगा. इसी के साथ यह गणना भी शुरू हो गई है कि किस वर्ग के कितने मतदाता समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया था और बिना किसी सहयोगी के अपने बूते पर सरकार बनाई. उसकी सरकार के पास गिनाने के लिए कई उपलब्धियां और आंकड़े भी हैं.

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