माता-पिता सिर्फ मातापिता होते है अर्थात उनकी जगह और कोई नहीं ले सकता. किसी भी मातापिता के लिए उनके बच्चे ही उनकी दुनिया होते हैं और बच्चों की उपस्थिति मात्र से ही उनकी जिंदगी अर्थपूर्ण हो जाती है. अभिभावक होने के नाते मातापिता बच्चों की सभी इच्छाओं एवं सपनों को पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं और इस कोशिश में उन्हें न चाहते हुए भी बच्चों को घर पर अकेले छोड़ने का कठोर एवं अपरिहार्य निर्णय लेना पड़ता है. माना कि बच्चों को घर पर अकेला छोड़ना 21वीं सदी की एक आवश्यकता और पेरेंट्स के लिए एक मजबूरी बन गई है. लेकिन यह मजबूरी आपके नौनिहालों के व्यक्तित्व और व्यवहार में क्या बदलाव ला सकती है यह किसी भी पेरेंट्स के लिए जानना बेहद ज़रूरी है.
शेमरोक एंड शेमफ़ोर्ड ग्रुप ऑफ़ स्कूल्स की डायरेक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार मातापिता की अनुपस्थिति में अकेले रहने वाले बच्चों के व्यवहार में निम्न समस्याएँ देखने में आती हैं –
डरने की प्रवृत्ति
घर पर अकेले रहने से बच्चों में खाली घर में सामान्य से शोर से डरने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है क्योंकि उन्हें बाहरी दुनिया का बहुत कम अनुभव होता है. इसके अतिरिक्त अकेले रहने वाले बच्चे अपने पैरेंट्स से अपने डर शेयर नहीं करते क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन्हें अभी भी बच्चा समझा जाये. कई बार बच्चे अपनी सुरक्षा को लेकर पैरेंट्स को चिंतित नहीं करना चाहते इसलिए भी वे अपने मन की बात छुपा जाते हैं.
अकेलापन
घर पर अकेले रहने वाले बच्चों को उनके दोस्तों से मिलने, किसी भी एक्स्ट्रा-करिकुलर ऐक्टिवटी में भाग लेने अथवा कोई सोशल स्किल विकसित करने की अनुमति नहीं होती इससे उनकी सोशल लाइफ प्रभावित होती है और वे अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे बच्चे अपनी चीजों को शेयर करना भी नहीं सीख पाते हैं. ऐसे बच्चे अकेले रहने के कारण आत्मकेंद्रित हो जाते हैं और बाहर की दुनिया से कटे रहने के कारण वे स्वार्थी, दब्बू और चिड़चिड़े हो जाते हैं.
सेहत के लिए खतरा
घर पर रहने वाले बच्चे शरीर को ऐक्टिव रखने वाली कोई भी आउटडोर एक्टिविटी नहीं करते जिससे आलस बढ़ता है और अधिकांश बच्चे मोटे हो जाते हैं. ऐसे बच्चों में खानपान, सेहत व विकास संबंधी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. अकेले रहने के कारण ऐसे बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं. उन की रोजमर्रा की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है. कई बार समय न होने की कमी के चलते अभिभावक बच्चों की हर जिद पूरी करते हैं जो उन्हें स्वार्थी बना देती है और वे अपनी हर जरूरी व गैरजरूरी जिद, हर मांग पूरी करवाने लगते हैं.
जिद्दी व स्वार्थी
घर पर अकेले रहने वाले बच्चों के लिए माता-पिता कुछ नियम तय करते हैं जैसे कि टीवी देखने से पहला अपना होमवर्क पूरा करना, अजनबियों से बात नहीं करना, उनकी अनुपस्थिति में किसी दूसरे व्यक्ति को घर में नहीं आने देना आदि आदि, लेकिन ऐसे में अगर उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं हो, तो उन्हें अपनी मनमर्जी से सब कुछ करने की आजादी मिल सकती है इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.
हालांकि कोई भी दो बच्चे एक जैसे नहीं होते वे भिन्न परिस्थितियों में अलगअलग तरह से व्यवहार करते हैं. इसलिए, यह जानना पैरेंट्स की ही अकेली जिम्मेदारी होती है कि क्या उनके बच्चे वास्तव में घर पर अकेले रहने के लिए तैयार हैं.अगर हाँ , तो बच्चों को घर पर अकेला छोड़ने से पहले कुछ खास बातों को ध्यान में रखना चाहिये. जैसे कि बच्चे की उम्र एवं मैच्युरिटी. उदाहरण के लिए घर पर छोड़े गये बच्चे की उम्र 7 साल से कम नहीं होनी चाहिये; उनके घर पर अकेले रहने का समय; उदाहरण के लिए 11-12 साल के बच्चों को कुछ घंटों के लिए घर पर अकेले छोड़ा जा सकता है और वह सिर्फ दिन के समय; बच्चों पर नजर रखने के लिए पड़ोसियों की सुरक्षा एवं सहयोगी पड़ोसियों की उपलब्धता; और सबसे महत्वपूर्ण, जब बच्चे को घर पर छोड़ा जाये तो वह वहां सुरक्षित महसूस करे.
निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए यदि आप अपने बच्चे को घर में छोड़ने का मन बना लिया है तो उनकी सुरक्षा के लिए निम्न उपायों को जरूर अपनायें.
· बच्चे से संपर्क का एक समय निर्धारित कर लें. इससे आपको ये पता रहेगा कि बच्चा सुरक्षित है या नहीं. घर से दूर रहते समय भी उन पर निगरानी रखें .दिन में बच्चों को फोन करके उनकी खैरियत पूछते रहें. उन्होंने लंच किया कि नहीं स्कूल में उन का दिन कैसे बीता, स्कूल या पढ़ाई से संबंधित उन की समस्याओं की जानकारी लें और उन का समाधान सुझायें. आपका ऐसा करना आपको बच्चों से जोड़े रखेगा.
· उनको बताएं कि दरवाजा किसी अजनबी के के लिए कतई न खोलें. इसके अलावा दरवाजे की घंटी कोई बजाए तो विंडो या डोर आई से देखें कौन है अगर कोई जानकार या कोई रिश्तेदार या पड़ोसी है तो तुरंत पेरेंटस को सूचना दें. घर को चाइल्ड प्रूफ्र रखें.घर में सिक्योरिटी गजेट्स लगवाएं. ताकि आपके पीछे से बच्चों के साथ कोई दुर्घटना न घटे और बच्चे सुरक्षित रहें
· बच्चों को को इस बात की भी जानकारी दें कि घर परिवार के बारे में क्या बातें किसी को बतानी है और कितनी बतानी है. यही नहीं, उन्हें बड़ों की अनुपस्थिति में स्टोव या किसी अन्य धारदार वस्तु पर काम करने की कतई अनुमति न दें.
· घर में एल्कोहल या किसी भी प्रकार का नशीला पदार्थ न रखें. कार या बाइक की की चाबी घर में न छोड़ें .
· आपकी अनुमति के बिना उन्हें आस-पड़ोस के घर में अकेले नहीं जाने का निर्देश दें लेकिन साथ ही उन्हें इमरजेंसी की स्थिति में पड़ोस में किसी एक ऐसे पडोसी के बारे में ज़रूर बताएँ ताकि इमरजेंसी की स्थिति में आपके घर पहुँचने तक वह उनके संपर्क में रहे. यही नहीं, फोन पर उनसे नियमित संपर्क में रहें और उनके संपर्क में रहें.
· इमरजेंसी काल की स्थिति में उन्हें नंबर्स, स्थानीय अथवा दूर के रिश्तेदार के नंबरों की सूची बनाकर उन्हें दें. अपने अच्छे पड़ोसी को अपनी अनुपस्थिति के बारे में सूचित करें और उनसे नियमित बच्चों की देखरेख करने के लिए कहें.