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बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं जगाती ‘शिवाय’

एक्शन और रोमांच से भरपूर  अजय देवगन निर्देशित फिल्म का बजट लगभग एक सौ दस करोड़ रूपए है. यह फिल्म बाक्स ऑफिस पर अपनी लागत वूसल कर पाएगी, इसमें संशय है. अजय देगवन का दावा है कि यह फिल्म पिता पुत्री के रिश्तों की कहानी है, मगर इसमें फिल्म पूरी तरफ से सफल नहीं हो पाती. फिल्म में एक्शन की भरमार है, मगर भावनात्मक दृष्य ठीक से नहीं उभरे हैं. अगर शिवाय देखते हुए आपको हॉलीवुड फिल्म “टेकन” की याद आ जाए, तो आश्चर्य करने की जरूरत नहीं, क्यूंकि शिवाय की कहानी वहीं से ली गई लगती है. 

फिल्म ‘‘शिवाय’’ की कहानी शिवाय (अजय देवगन) से शुरू होती है, जो कि ऊंची से ऊंची हिमालय की चोटियों में आराम से चढ़ जाता है. उसे ट्रेकिंग में महारत हासिल है. वह पर्वतारोहण का इंचार्ज है. एक दिन जब वह कुछ देसी व विदेशी सैनानियों को ट्रेकिंग पर हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर ले जाता है, तो जिस पहाड़ी पर वह होते हैं, वहां बादल फटने लगता है. पर शिवाय चलाकी से सभी को वहां से दूसरी पहाड़ी पर भेज देता है और अंत में वह बुलगैरिया से आयी सैलानी ओलगा (इरिका कर) को बचाने जाता है, तो उसी वक्त पहाड़ी दो टुकडे़ में फट जाती है. पर उससे पहले वह खुद ओलगा के साथ बचाने में सफल हो जाता है.

दोनों के बीच प्यार पनपने के साथ ही शारीरिक संबंध बन जाते हैं और फिर ओलगा जिद करती है कि उसे वापस अपने देश बुलगेरिया जाना है. ओलगा का मानना है कि उसे अपने देश में बहुत काम करना है. और शिवाय के साथ उसका जो भी संबंध था, वह उतने दिन के लिए ही था. पर वह उससे प्यार करती रहेगी. लेकिन तभी पता चलता है कि वह गर्भवती है. अब शिवाय कि जिद है कि वह बच्चे को जन्म देने के बाद ही बुलगैरिया जा सकती है. शिवाय की जिद के चलते ओलगा एक बेटी गौरा (अबिगेल याम्स) को जन्म देती है. पर उसका ना नाम रखती हैं ना चेहरा देखती है. वापस अपने वतन बुलगैरिया चली जाती है. इधर शिवाय अकेले ही अपनी बेटी को पालता है. पर्वतारोहण के समय उसे अपने साथ ले जाता हैं.

गौरा गूंगी है,पर ट्रेकिंग में वह भी माहिर है. एक दिन गौरा को अपनी मां की फोटो और उनकी लिखी चिट्ठी मिल जाती है, जिन्हें पढ़कर वह शिवाय से जिद करती है कि वह उसे बुलगैरिया ले जाए. बेटी की खुशी के लिए वह उसे लेकर बुलगैरिया जाता है. बुलगैरिया में वह जिस होटल में रुकता है, उस होटल के एक कमरे में एक नाबालिग बच्चे को यौन शोषण से मुक्त कराकर अपराधी को पुलिस के हवाले कर देता है. फिर ओलगा की तलाश के लिए वह भारतीय दूतावास में मदद मांगने जाता है, जहां उसकी मुलाकात अनुष्का (साएशा सहगल) से होती है.

बाहर निकलकर शिवाय एक रेस्टारेंट में  बैठकर कुछ खाना चाहता है कि तभी गौरा का अपहरण हो जाता है. शिवाय गौरा के अपहरणकर्ताओं का पीछा करता है, उसके हाथ से कई खून हो जाते हैं. पर अपहरणकर्ता भाग जाते हैं. पुलिस शिवाय को पकड़कर उस पर  आरोप लगाती है कि वह ह्यूमन ट्रेफीकिंग व जिस्म फरोशी का धंधा करवाता है और उसने कुछ लोगों की हत्या की है. भारतीय दूतावास शिवाय की मदद के लिए वकील भेजता है. पर वकील ज्यादा मदद नही कर पाता. शिवाय को पता चलता है कि यदि तीन दिन में उसकी बेटी नही मिली, तो उसकी बेटी को दूसरे देश पहुंचा दिया जाएगा. क्योंकि वहां पर बच्चों के साथ यौनशोषण और ह्यूमन ट्रेफीकिंग का धंधा काफी बड़े पैमाने पर होता है.

जब पुलिस उसे अदालत ले जा रही होती है, तभी वह सभी पुलिस वालों को मारकर भागता है. फिर एक देहव्यापार के अड्डे पर जाकर सभी लड़कियों को छुड़ाता है. फिर अनुष्का को बुलाता है. अनुष्का उसे पुलिस के सामने समर्पण की सलाह देती है. पर वह तैयार नही है. तभी वहां पुलिस पहुंच जाती है. शिवाय अकेले उन सभी पुलिस वालों को मार कर वहां से निकल जाता है. अपने पिता (गिरीष कर्नाड) के कहने पर अनुष्का, शिवाय की मदद करना चाहती है. अब अनुष्का के कहने पर अनुष्का का प्रेमी व मशहूर हैकर वाग उसकी मदद के लिए आता है. पता चलता है कि गौरा कहां है, पर  वहां शिवाय व अनुष्का के पहुंचने से पहले उस शख्स को मार दिया जाता है.

अंत में पता चलता है कि इसका सरगना पुलिस अफसर चंगेज है. तथा गौरा को एक वैन में भरकर देश की सीमा की तरफ ले जाया जा रहा है. खैर, शिवाय वैन तक पहुंच जाता है. उसमें से वह गौरा के साथ साथ दूसरे तमाम बच्चों को भी छुड़ा लेता है. तभी वहां हैलीकोप्टर से चंगेज पहुंच जाता है. फिर चंगेज व दूसरे पुलिस वालों के साथ शिवाय की मारामारी होती है. अंततः सभी पुलिस वाले और चंगेजा मारा जाता है. शिवाय अस्पताल पहुंच जाता है. स्वस्थ होने पर वह ओलगा के घर गौरा को लेने जाता है, जहां वह पाता है कि गौरा, ओलगा के घर में ज्यादा खुश है. इसलिए गौरा को छोड़कर भारत वापस आने लगता है. एयरपोर्ट पर अनुष्का उसे समझाती है, तो शिवाय सोच में पड़ जाता है कि वह भारत वापस जाए या ना जाए. इसी बीच वहां गौरा पहुंचती हैं और शिवाय से झगड़ती है कि वह उसे छोडकर क्यों जा रहा था. गौरा, शिवाय की एअर टिकट फाड़ कर फेंक देती है. शिवाय, गौरा को गोद में उठा लेता है.

फिल्म में कामिक्स को लेकर कई घटिया व गलत संवाद हैं. फिल्म का सबसे बड़ा कमजोर पक्ष इसकी लंबाई है. फिल्म के कथानक वगैरह को देखते हुए यह फिल्म दो घंटे में आराम से समेटी जा सकती थी. इंटरवल के बाद फिल्म के पटकथा लेखक बुरी तरह से मात खा गए हैं. कैमरामैन बधाई के पात्र हैं. बेहतरीन लोकेशन हैं. उन्होंने कई दिल दहलाने वाले सीन फिल्माए हैं. उनकी फोटोग्राफी हालीवुड फिल्मों की याद दिला देती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो एक्शन दृश्यों में अजय देवगन बहुत अच्छे उभरते हैं, मगर भावनात्मक दृश्यों में अजय देवगन और इरिका कर दोनों ही निराश करते हैं. गिरीष कर्नाड ने अपने करियर में इससे अधिक कमजोर किरदार कभी नहीं निभाया होगा. इस फिल्म से साएशा सहगल अपने करियर की शुरुआत कर रही हैं. जबकि यदि उनके किरदार को फिल्म से हटा दिया जाए, तो भी कथानक पर कोई असर न पड़ता. मगर इस फिल्म से वह अभिनय करियर शुरू कर रही हैं, तो उनका ग्लैमरस दिखना जरुरी था. इसी कारण उन्हे बाथटब में स्नान करते हुए भी दिखा दिया गया. बाल कलाकार अबिगेल याम्स ने एक गूंगी लड़की का किरदार बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है. सौरभ शुक्ला के हिस्से में करने को कुछ है ही नहीं.

दो घंटे 52 मिनट यानी कि लगभग तीन घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘शिवाय’’ के निर्माता, निर्देशक व कहानीकार अजय देवगन, पटकथा व संवाद संदीप श्रीवास्तव, संगीतकार मिठुन, कैमरामैन असीम बजाज तथा कलाकर हैं- अजय देवगन, साएशा सहगल, इरिका कर, अबिगेल याम्स, वीर दास, गिरीष कर्नाड, सौरभ शुक्ला व अन्य..

इस त्योहार घर का करें मेकओवर

देश का इकलौता त्योहार है दीवाली कि जब घर की साफसफाई और सजावट पर जोर दिया जाता है. होली जैसे त्योहार तो घर का रंगरूप ही बिगाड़ देते हैं. ऐसे में जब इस त्योहार का आधार ही घरों को नया रंगरूप दे कर सजाना हो तो क्यों न सजावट को नए रचनात्मक आयाम देते हुए कुछ खास किया जाए. घर की सजावट 2 मोरचों पर करनी जरूरी है. पहला सफाई के मोरचे पर और दूसरा सजावटी सामान के सहारे उसे नया लुक देने के मोरचे पर. जाहिर है इस दिन हर कोई चाहता है कि उस का आशियाना चांद की तरह चमके. हालांकि अगर सही समझ और तरीकों को न आजमाया जाए तो यह सजावट कई बार आप की जेब पर भारी भी पड़ सकती है. इसलिए हम आप को बता रहे हैं सजावट के कुछ नए, सस्ते और रचनात्मक ठिकाने जिस से आप के घर का ‘दीवाली मेकओवर’ हो जाए.

सजावट का साजोसामान

घर की सजावट को सिर्फ सफाई, बैडशीट, कुशन बदलने या बिजली की झालरें लगाने तक सीमित मत रखिए,  बाजार जाइए और इस के लिए थोड़ी सी मेहनत व जेब ढीली करनी पड़े तो संकोच मत कीजिए. सजावट के लिए जरूरी सामान की बात करें तो इस में कैंडल्स, फूल, रंगगुलाल,  दीए,  बंदनवार, रंगोली, लाइटिंग के अलावा घर के इंटीरियर के लिए रंगीन कुशंस, परदे, प्लांट्स और रंगबिरंगी इलैक्ट्रिक झालरें प्रमुख तौर पर काम आती हैं. इन के इर्दगिर्द ही घर की सारी साजसज्जा सिमटती है.  जरूरी नहीं है कि घर की सजावट में सिर्फ नई चीजें ही इस्तेमाल की जाएं, कुछ पुरानी और विंटेज कलैक्शन टाइप चीजें भी आप के आशियाने को नया आकर्षण दे सकती हैं.

कहते हैं कि पहला इम्प्रैशन ही आखिरी इम्प्रैशन होता है. अगर आप भी अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों की नजर में अपने घर का इम्प्रैशन जरा जोरदार डालना चाहते हैं तो घर के मुख्यद्वार से शुरुआत कीजिए. घर के प्रवेशद्वार को आकर्षक बनाने के लिए आप फूलों या मिट्टी के सजावटी सामान इस्तेमाल कर सकते है. इस के अलावा रंगोली के साथ भी कई तरह के प्रयोग किए जा सकते हैं. फर्श का एक छोटा हिस्सा इस्तेमाल कर चाक से रंगोली का आकार बना सकते हैं. इस के बाद गुलाल के विभिन्न रंगों और चावलों से उसे सजाएं. चावलों को विभिन्न रंगों में रंग कर भी रंगोली बना सकते हैं. समतल रंगोली बनाएं, स्थान को अच्छी तरह धो कर सुखा लें. अगर आप को रंगोली बनानी नहीं आती तो मार्केट में रंगोली के बेहतरीन डिजाइनर खांचे मौजूद हैं. आप को सिर्फ उन में रंग भरना है. रेडीमेड रंगोली स्टिकर्स की भी बाजार में भरमार है. रंगोली पर कुछ दीये रखना बिलकुल न भूलें. द्वार पर रंगबिरंगी विंड चाइम भी लगा सकते हैं. यह उत्सव के माहौल को संगीतमय बनाने के लिए काफी हैं. गमलों या बरतनों में पानी भर कर उस में फूल डाल कर सजा सकते हैं.

इंटीरियर की बारी

रंगरोगन करवाने भर से घर की चारदीवारी और इंटीरियर चमक उठता है. अगर आप किसी वजह से घर में पेंट नहीं करवा पाए हैं तो सब से अच्छा तरीका है वालपेपर्स और पेंटिंग्स. अपनी पसंद और रंग के वालपेपर्स और पेंटिंग्स के जरिए आप घर को नई थीम भी दे सकते हैं. मानो आप को समंदर बहुत पसंद है. सो, आप बीच पेंटिंग्स या बीच कलर के वालपेपर्स से घर की दीवारें सजाएं और घर को बीच थीम में रंग कर नया माहौल बना सकते हैं. फर्नीचर में सोफा, कुरसी और परदों के साथ भी कई रचनात्मक प्रयोग कर सकते हैं. मसलन, ऐंटिक लुक का फर्नीचर खरीद लें. डिजाइनर और नक्काशीदार आर्टिफेक्ट्स से ड्राइंगरूम को सजाएं.

इंटीरियर डिजाइनर अंकित जैन के मुताबिक, दीवाली में घर के साथ न्यू थीम, विंटेज लुक और लाइट इफैक्ट चलन में हैं. फिलिप्स कंपनी ने तो रिमोट कंट्रोल्ड लाइट भी बाजार में उतारी हैं जिन में घर के मूड के हिसाब से दीवारों और कमरे का रंग बदलने वाली लाइट्स होती हैं. इस में मैचिंग का विशेष ध्यान रखें. बहुत चटक या चुभने वाले रंग न हों. बैड, अलमारी और आईने के लिए अलगअलग लाइट रखें. लिविंगरूम में फोकल लाइटिंग का इस्तेमाल करें. घर के किसी कोने को उभारने के लिए फेयरी लाइट्स बेहतर हैं. 

दिल्ली के जनपथ, खानपुर बाजार और हौजखास में आप के मतलब का सामान मिल जाएगा. अगर अलगअलग राज्यों की थीम पर घर सजाने का इरादा है तो दिल्ली में कई राज्यों के एंपोरियम हैं. घर के पायदान बदल कर नए लगाएं, सोफे के कुशनकवर बदलें, फर्नीचर को रिअरेंज करें,  घर के इनडोर प्लांट्स के गमले पेंट करें,  परदों का कौम्बिनेशन और कलर थीम बदलें, किचन को मौड्यूलर अंदाज में सजाएं. घर के लिविंगरूम की सजावट के लिए सोफे या अन्य फर्नीचर के ऊपर की तरफ शेड लगा कर दीवार पर आर्ट वर्क कर सकते हैं. आजकल पेपरवर्क, पेपरपेस्टिंग बहुत ज्यादा चलन में हैं. अपने घर के फर्श पर आर्टिफिशियल फ्लोरिंग भी करवा सकते हैं. पुराने परदों के रंग से मेल खाते रिबन या गोटे से उन्हें सजा सकते हैं.

छोटे बजट में मोटी शौपिंग   

दवाली पर सब से ज्यादा उत्साह घर को सजाने के लिए सामान की खरीदारी को ले कर भी रहता है. बच्चे अपने कमरे के लिए डिस्को लाइट चाहते हैं जबकि घर के बड़़े म्यूजिकल फाउंटेन पर जोर देते हैं. अगर दिल्ली में हैं तो शौपिंग लोकल मार्केट के बजाय चांदनी चौक, करोल बाग, कनाट प्लेस, दिल्ली हाट, कृष्णा नगर, लाजपत नगर और सदर बाजारों जैसे थोक बाजार से करें. इस के कई फायदे हैं. पहला तो यह कि सामान की वृहद वैरायटी मिलेंगी और दूसरा, अन्य जगहों के मुकाबले यहां जेब कम ढीली करनी पड़़ेगी. सजावटी कैंडल्स जहां 30 से 350 रुपए के बीच आसानी से मिलती हैं वहीं रंगोली के पैटर्न स्टिकर्स आप को महज 15 से 20 रुपए में आसानी से मिल जाएंगे. इस के अलावा सजावट की झालरें और कैंडल भी 60 रुपए से शुरू हो कर 800 रुपए तक आसानी से उपलब्ध हैं. दीवारों पर लगाने के लिए चाइनीज 3डी पेंटिंग्स भी 40 रुपए से ले कर 500 रुपए तक खरीदी जा सकती हैं.

कमरों में छोटेबड़े आकार के कुशन एथनिक लुक देते हैं. आजकल यहां मिरर वर्क, कढ़ाई, बीड वर्क, एप्लिक वर्क, डोरी वर्क आदि सामान ट्रैंड में हैं जो 100-500 रुपए के बीच आसानी से मिल जाते हैं. दीवाली पर झालर न लें, ऐसा हो ही नहीं सकता. अगर साइज को ले कर दिक्कत है तो घबराएं नहीं, इस का भी हल है. बाजार में छोटे से ले कर बड़े घरों को डैकोरेट करने के लिए लंबाई के आधार पर पहले से सैट की हुई झालरें मौजूद हैं जो करीब 800 रुपए से 1,500 रुपए में उपलब्ध हैं. चीनी सामानों में आजकल एलईडी प्रोडक्ट ज्यादा मिल रहे हैं, मसलन म्यूजिकल लाइट ट्री. इस बार जो प्रोडक्ट आप को पहली झलक में पसंद आ सकता है, उस में पहला नाम म्यूजिकल लाइट ट्री का ही है. करीब 3 से 4 फुट लंबे म्यूजिकल ट्री को आप अपने लिविंगरूम में लगा सकते हैं. ये 400 से 500 रुपए में मिल जा जाते हैं. इसी तरह सदर बाजार में ग्लोब, लोटस, या फुटबौल की शेप लिए शोपीस में रंगबिरंगी एलईडी लाइट्स का प्रयोग किया आइटम मिल रहा है. इन की लाइट्स अलग दिशा और स्पीड में रोटेट करती हैं. कीमत 300 से 500 रुपए के बीच ही है. कंदील जहां आप को 150 रुपए से 250 रुपए के बीच मिल जाएगा वहीं  रंगबिरंगी रोशनी देने वाली ये झालरें 80 रुपए से ले कर 500 रुपए तक में मिल जाएंगी.

डीएलएफ फेज फोर स्थित गैलेरिया मार्केट में दीवाली की जबरदस्त सजावट की गई है. यहां से भी खरीदारी कर सकते हैं क्योंकि यहां पर देसी दीये से ले कर इलैक्ट्रिकल दीये, तोरण, बंदनवार, गिफ्ट, गिफ्ट पैकिंग की विभिन्न वैरायटी, इलैक्ट्रौनिक से ले कर क्रिस्टल गिफ्ट आइटम, फूलों से ले कर चादर, सोफाकवर, कुशनकवर आदि की बड़ी रेंज मौजूद हैं. इसी तरह शहर के गोल्फ कोर्स रोड स्थित सैंट्रल प्लाजा और सुशांत लोक स्थित सुपर मार्ट वन में घरों की सजावट के सामान से ले कर दीवाली गिफ्ट तक की पूरे रेंज उपलब्ध हैं.

कुल मिला कर इस दीवाली पर आप अपने घर को बिना किसी इंटीरियर डिजाइनर की मदद के भी रंग, रोशनी, और फूलों से न सिर्फ महका सकते हैं बल्कि इस दीवाली को सजावट के खास अंदाज से कुछ अलग और यादगार भी बना सकते हैं.

घर में लाएं रौनक

–       सजावट के कुछ सामान जैसे शोपीस आइटम्स और भारी लाइट्स किराए पर भी ले सकते हैं.

–       दरवाजों को ट्रेडिशनल लुक देने के लिए बंदनवार या बिजली की झालर भी लगाई जा सकती हैं.

–       ईकोफ्रैंडली सजावट करें और ईकोफ्रैंडली पटाखे खरीदें.

–       मिट्टी के दीये जलाएं और और्गेनिक गिफ्ट्स दें.

–       घर में प्रवेश करते ही सामने एक्वेरियम लगाएं.

–       एक एंटीक से बड़े बरतन में मिट्टी के दीये जलाए जा सकते हैं.

–       कढ़ाई, बीड वर्क, एप्लिक वर्क, डोरी वर्क आदि सामान ट्रैंड में हैं, इन्हें इस्तेमाल करें.

–       रंगोली के खांचे और बंदनवार पड़ोसी से अदलबदल कर नए लेनें से बचें.

घर में न कराएं पोंगापंथी रंगरोगन

दीवाली के मौके पर घरों के रंगरोगन कराने की पुरानी लेकिन स्वस्थ परंपरा रही है. आज  के मौडर्न जमाने में रंगरोगन को ‘वाल फैशन’ भी कहा जाने लगा है. रोशनी के पर्व से पहले घर की साफसफाई और रंगरोगन कराने के पीछे वैज्ञानिक सोच भी है. रंगरोगन से जहां समूचा घर चमक उठता है वहीं दीवारों, खिड़की के पल्लों और कोने में पनपे कई तरह के कीड़ों व बैक्टीरिया की भी सफाई हो जाती है. रंगरोगन की वैज्ञानिक सोच को भी पाखंडी पंडितों और बाबाओं ने अंधविश्वास से जोड़ दिया है. अब वास्तुशास्त्र के हिसाब से घरों की बाहरी दीवारों, कमरों, बरामदे, रसोईघर और स्टडीरूम की रंगाईपुताई कराई जाने लगी है. अकसर लोग घर का रंगरोगन कर उसे चमकाने के बजाय उस पर अंधविश्वास की कालिख पोत डालते हैं, जिस में उन की ऊर्जा व धन दोनों बरबाद होते हैं.

रंगरोगन में पोंगापंथ की बातें बाद में करते हैं, पहले रंगरोगन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के साथ उस की तैयारियों के बारे में जान लेते हैं. रंगरोगन कराने से पहले उस का बजट बना लेना जरूरी है. इस से खर्च सीमित होगा और पैसों की बरबादी भी नहीं होगी. इंटीरियर डैकोरेटर अनुपम राज बताती हैं, ‘‘घर का रंगरोगन कराने से पहले खर्च का हिसाब बना लें. कई ब्रैंडैड कंपनियों के तरहतरह के रंग बाजार में हैं. उन की कीमतों का पता करने के साथ पेंटर के चार्ज का भी पता कर लें. कई पेंट कंपनियां रंगों के साथसाथ अब पेंटर भी मुहैया करा रही हैं. इस से पेंटर को ढूंढ़ने और उन से मजदूरी का मोलभाव तय करने की किचकिच से छुटकारा मिल जाता है. खास बात यह भी है कि फ्रीलांस पेंटरों के बजाय पेंट कंपनियों के पेंटरों की मजदूरी की दर कम होती है.’’

घर का रंग उस में रहने वालों के व्यक्तित्व का आईना होता है. घर का रंग बता देता है कि उस के भीतर रहने वाले इंसानों की सोच और समझ कैसी है. इसलिए घर को पेंट कराना है तो अच्छे ब्रैंड के पेंट का इस्तेमाल करें. लोकल और घटिया पेंट कंपनियों के झांसे में नहीं फंसें. कम पैसों में मिलने वाले घटिया पेंट से न तो घर चमकेगा और न ही अपने घर को देख कर आप का चेहरा खिल सकेगा. कंपनियों के पेंट, कीमत और उस के रखरखाव आदि के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद ही पेंट खरीदें. पेंटर की सलाह पर कभी भी कम कीमत वाले पेंट का उपयोग न करें, क्योंकि लोकल कंपनियां पेंटरों को कमीशन दे कर अपना उल्लू सीधा करती हैं.

ब्रैंडैड कंपनियों के पेंट थोड़े महंगे जरूर होते हैं लेकिन उन की चमक लंबे समय तक बरकरार रहती है. खास बात यह भी है कि अच्छे पेंट के 1 या 2 कोट से ही दीवारें चमक उठेंगी, वहीं कम कीमत वाले घटिया कंपनियों के पेंट के 3-4 कोट कराने के बाद भी चमक नहीं आती. आमतौर पर घर की बाहरी दीवारों पर पेंट करने का चार्ज 4 से 8 रुपए प्रति वर्गफुट है. वहीं अंदर की दीवारों को पेंट करने का चार्ज पेंट के हिसाब से होता है. जहां डिस्टैंपर कराने पर 4 से 7 रुपए प्रति वर्गफुट का खर्च आएगा, वहीं प्लास्टिक पेंट कराने के लिए 15 से 20 रुपए प्रति वर्गफुट चुकाने पड़ेंगे. टैक्स्चर पेंट कराने के लिए 30 से 60 रुपए प्रति वर्गफुट के हिसाब से जेब ढीली करनी होगी.

रंगों का चुनाव

पेंट खरीदने से पहले घर के सभी सदस्यों के साथ बैठ कर रंगों का चुनाव कर लेना चाहिए. बच्चे, बीवी और घर के बुजुर्गों के कमरों को उन की पसंद के रंग से ही रंग कराएंगे तो उन के लिए त्योहार का आनंद दोगुना हो जाएगा. ड्राइंगरूम का रंग अपने मन के मुताबिक चुनें. उस कमरे के रंग सफेद, क्रीम, आसमानी आदि हों, जो आंखों को ठंडक दें. लाइट शेड्स के कलर कराने से ड्राइंगरूम में रखे सजावटी समान खिल कर सामने आएंगे और उन की खूबसूरती निखरेगी. इस बात का खास ध्यान रखें कि रंगरोगन कराना ही है तो दीवाली से एक महीने पहले कराने की कोशिश करें. इस से पेंटर आसानी से मिल जाएंगे और उन से ज्यादा किचकिच नहीं करनी पड़ेगी. दीवाली के ऐन पहले पेंट कराने से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पेंटर आसानी से नहीं मिलेंगे और मिलेंगे भी तो जैसेतैसे काम निबटा कर भागने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उस दौरान उन के ऊपर काम का काफी बोझ होता है. उन की डिमांड बढ़ी हुई भी रहती है. पेंटर के हड़बड़ी में काम करने से पेंट ठीक से नहीं हो पाता और पैसे की बरबादी अलग होती है.

घर का रंगरोगन कराने के बाद पेंटर का ही जिम्मा होता है कि वह फर्श पर गिरे रंगों को साफ करे. इस के लिए अलग से मजदूर रखने या खुद मेहनत करने की जरूरत नहीं है. ज्यादातर पेंटर फर्श पर जहांतहां गिरे पेंट के धब्बों को साफ करने में आनाकानी करते हैं या साफ किए बगैर ही भाग जाते हैं. इस बात पर खास ध्यान रखने की दरकार है. पेंट का काम खत्म होने के बाद पेंट करने वाले ब्रश, दीवारों को साफ करने वाले तार के ब्रश, झाड़ू आदि को पौलिथीन में बांध कर सहेज कर रख दें. इस से अगली बार पेंट कराने पर इन पर होने वाले खर्च में कुछ कमी आएगी. अब रंगरोगन में घुसे या साजिश के तहत घुसाए गए पोंगापंथ के बारे में भी थोड़ी जानकारी लेनी जरूरी है. वास्तुशास्त्र और फेंगशुई के मकड़जाल में फंस कर लोग घरों को पेंट करवाने लगे हैं. सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा की थोथी दलील दे कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है और लोग आसानी से गुमराह हो भी रहे हैं. इस के नाम पर कई पंडित और ज्योतिषी अपना धंधा चमका रहे हैं.

ज्योतिषी बताता है कि किस कमरे में कौन सा रंग करवाना बेहतर होता है. कमरे की चारों दीवारों को अलगअलग रंग से रंगवा कर ज्योतिषी यह यकीन दिलाता है कि ऐसा करने से घर में शांति आएगी. इतना ही नहीं, रसोई, स्टडीरूम, बाथरूम, सीढ़ी, बरामदे आदि की दीवारों को रंग वास्तु के हिसाब से कराया जाता है. हैरत की बात यह है कि इस भेड़चाल में अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी शामिल हैं. कत्थक नृत्य करने वाली किरण कुमारी कहती हैं, ‘‘घर में शांति, खुशहाली और तरक्की उस में रहने वाले इंसानों की सोच, समझ व कामकाज से आती है, न कि रंगों और दीवारों से.’’ पटना के रहने वाले शेयरब्रोकर विनोद पांडे बताते हैं, ‘‘वास्तुशास्त्र के जाल में फंस कर मैं ने भी अपने औफिस की दीवारों का रंगरोगन वास्तुशास्त्र के हिसाब से करवाया. पंडित की सलाह के मुताबिक, पूरब की दीवार का रंग हरा, दक्षिण की दीवार का रंग लाल, पश्चिमी दीवार का रंग सफेद और उत्तर की ओर पड़ने वाली दीवार का रंग आसमानी करवाया. पंडित ने बताया कि ऐसा करने के 3 महीने के भीतर ही उन के कारोबार में तेजी से उछाल आएगा. पंडित के बताए रंगों के हिसाब से दीवारों को रंगवाया और अब एक साल बीत चुका है लेकिन कारोबार में कोई तरक्की नहीं हो सकी है.’’

नियमित साफसफाई

ज्यादातर घरों में यह देखा जाता है कि लोग साफसफाई को ले कर गंभीर नहीं होते. सफाई के लिए दीवाली या किसी और त्योहार के इंतजार में नहीं रहें. लोग कीमती फर्नीचर्स और झाड़फानूसों से ड्राइंगरूम सजा लेते हैं, उम्दा क्वालिटी का बैडरूम, किचन, डाइनिंगरूम, परदे, बाथरूम आदि बड़े ही शौक के साथ बना लेते हैं, पर उन की नियमित सफाई नहीं कर पाते हैं. इस से घर के अधिकांश हिस्सों में और कीमती चीजों पर धूल की मोटी परत जमी दिखाई देती है. दीवारों पर जहांतहां मकड़ी के जाले लटके नजर आते हैं. कुल मिला कर कहा जाए तो अच्छेखासे घर को कबाड़खाना बना कर रखा जाता है. इस के पीछे लोग अकसर यह तर्क देते हैं कि सफाई के लिए फुरसत ही नहीं मिलती है. समाजसेविका डाक्टर नीना कुमार कहती हैं, ‘‘घर की सफाई को ले कर समय की कमी का रोना रो कर लोग अकसर अपने आलस्य को छिपाते हैं जबकि इस काम में ज्यादा समय और मेहनत की दरकार ही नहीं होती है. नियम बना कर अगर हर रविवार को थोड़ा समय सफाई करने में दें तो घर की खूबसूरती हर समय कायम रह सकती है.’’

घर हो या औफिस, वह साफसफाई से ही निखरता है और आप के सम्मान में चारचांद भी लगाता है. इस के लिए ज्यादा मेहनत और समय की आवश्यकता नहीं है. इंटीरियर डैकोरेटर पल्लवी सिन्हा कहती हैं, ‘‘रोज सफाई का नियम बना लें. इस काम में पति और बच्चों को भी शामिल करें. अगर रोज सवेरे कुछ समय साफसफाई पर दिया जाए तो घर हमेशा चमकता रह सकता है. पर अकसर लोग महीने या 2 महीने में सफाई का प्लान बनाते हैं, तब तक दीवारों और खिड़कियों पर मकड़ी के जालों की भरमार हो जाती है. फर्नीचर्स, टैलीविजन, फानूसों, फ्रिज, एसी, कूलर, पंखों, पलंग के नीचे, किचन, बाथरूम आदि जगहों पर धूल व कचरे का ढेर जम जाता है. जिसे साफ करने में काफी समय लगता है, ठीक से सफाई भी नहीं हो पाती है और थकान भी बहुत हो जाती है. अधिकतर लोगों की यह आदत होती है कि वे बेकार की चीजों को घर में जहांतहां ठूंस कर रख देते हैं. इस के पीछे उन का यह तर्क होता कि कोई भी चीज बेकार नहीं होती है, कभी न कभी इस्तेमाल में आ ही जाती है. इस के लिए वे इलैक्ट्रौनिक सामानों के बड़ेबड़े कार्टन, प्लास्टिक के डब्बे, शीशी, लकड़ी के टुकड़े आदि को किसी कोने, बौक्स, स्टोररूम या सीढ़ी के पास ठूंस कर रख देते हैं. लंबे समय तक पड़े रहने पर वे सड़गल जाते हैं और उन में कीड़े भी लग जाते हैं. बाद में उन्हें फेंकना ही पड़ता है. बेहतर है कि कार्टनों को कबाड़ी वाले को बेच दें तो अच्छे पैसे मिल जाएंगे, घर में फालतू का कचरा और गंदगी भी जमा नहीं होगी.

जीवनसाथी के साथ स्वस्थ और मस्त दीवाली

रोशनी का त्योहार दीवाली यानी चारों ओर जगमगाहट, घर की खास साजसजावट की तैयारियां, दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए उपहारों की खरीदारी, खानपान में सबकुछ खास. आप कहेंगे ये सब तो हम हर साल ही करते हैं, इस में नया क्या है. आप ने सही कहा, ये सब तो आप हर साल ही करते हैं. इसीलिए इस दीवाली इस सब के अलावा आप की दीवाली को स्वस्थ और मस्त बनाने के लिए हम आप को कुछ ऐसा करने को कह रहे हैं कि जिस से आप की दीवाली रोशन होने के साथसाथ यादगार भी बन जाएगी. आइए आप को बताते हैं कि आप को क्या करना और कैसे करना है.

दिन को करें रोशन

दीवाली की सारी तैयारियों, मेहमानों की आवभगत और अन्य कामों के बीच आप को निकालने हैं अपने लिए दिन के 2 घंटे और इस 2 घंटे में आप के साथ सिर्फ और सिर्फ होंगे आप के पति. उस दौरान आप दोनों के बीच और कोई नहीं होगा. यकीन मानिए इन 2 घंटों में बिताए गए एकदूसरे के साथ के अंतरंग पल हमेशा के लिए यादगार पल बन जाएंगे. दूसरे लोगों के लिए तो दीवाली रात को रोशन होती है लेकिन आप दोनों के लिए आप का दिन भी एकदूसरे के साथ बिताए खुशनुमा लमहों से रोशन हो जाएगा.

आइए, जानते हैं अंतरंग पलों के इस खास साथ के लिए आप को क्या खास तैयारी करनी है :

डैकोरेशन :  वह जगह जहां आप को एकदूसरे के साथ 2 घंटे बिताने हैं, दिन को रोशन करना है, खास होना चाहिए, इसलिए उसे डैकोरेट करें.

रोशनी से जगमगाए कमरा : पूरे कमरे को सैंटेड ऐरोमैटिक कैंडल्स की रोशनी से सराबोर कर दें. कमरे के हर कोने को जगमगाती कैंडल्स से सजाएं. आप चाहें तो कमरे में हार्टशेप्ड पेपर लैंटर्न भी लगा सकते हैं. जिस से छन कर आती रोशनी आप के प्यार भरे पलों को और रोमांच से भर देगी.

महके कमरे का हर कोना : कमरे को रोमानी बनाने के लिए कमरे को ताजे लाल गुलाब, कारनेशन व रजनीगंधा के फूलों से सजाएं. इस महकते कमरे को देख कर आप को यकीनन अपनी सुहागरात यानी फर्स्ट नाइट याद आ जाएगी और साथ ही याद आ जाएंगे पहले के एकदूसरे के साथ बिताए अंतरंग पल.

फर्निशिंग : कमरे के बैडकवर, परदे, कुशंस सभी हों सिंबल औफ लव वाले यानी जिन्हें देखते ही आप एकदूसरे में खो जाएं. रैड हार्टशेप्ड वाले कुशंस, रैड इरोटिक इमेजवाला बैडकवर आप का मूड बनाने करने में मदद करेगा.

खुद भी चकमें दमकें : घर की साजसजावट तो आप ने अच्छे से कर ली, अब बारी है आप दोनों के सजनेसंवरने की. इन खास पलों के लिए खुद का सौंदर्यीकरण करवाएं. चाहें तो पार्लर या स्पा जा कर खुद को रिफ्रैश करें. इस से आप नई ताजगी से भरपूर होंगे. इन सब तैयारियों से आप दोनों का प्यार एकदूसरे के लिए दोगुना हो जाएगा और आप दोनों एकदूसरे की खूबसूरती में खो जाएंगे. साथ ही, उन खास पलों के लिए हौट सैक्सी लिंगरी की शौपिंग करना न भूलें.

फूड से बनाएं मूड :  उन 2 घंटों के साथ के लिए कुछ स्पैशल फूड, जैसे चौकलेट, चौकलेट केक, आइसक्रीम, रंगबिरंगे मौकटेल तैयार रखें. ध्यान रहे, खाने की सभी चीजें ऐसी हों कि आप दोनों के दिल की बात फूड के जरिए एकदूसरे तक पहुंच जाए और आप उन पलों का भरपूर मजा ले सकें.

रोमांटिक नोट्स :  एकदूसरे के साथ इन पलों को रोमांटिक बनाने के लिए कमरे में जगहजगह रंगबिरंगे पेपर्स पर एकदूसरे के लिए रोमांटिक मैसेजेस वाले लवनोट्स लिख कर रख दें. इन्हें पढ़ कर प्यार के ये पल और मस्तीभरे हो जाएंगे. ऐसा कर के एकदूसरे को सरप्राइज करें. ये लवनोट्स आप दोनों को सैक्सुअल प्लेजर देने का काम करेंगे.

एकदूसरे में खो जाएं : सामान्य दिनों से अलग आप ने अपने मिलन की खास तैयारी तो कर ली जहां कोई आप को डिस्टर्ब नहीं करेगा. आप दोनों पूरे 2 घंटे तक एकदूसरे के साथ रहेंगे. अब इन लमहों को खास बनाने के लिए अपनाएं ये टिप्स-

शुरुआत करें छेड़छाड़ से :  सैक्सोलौजिस्ट मानते हैं कि जहां प्यार में छेड़छाड़ होती है वहां प्यार अधिक गहरा होता है. इसलिए सैक्स की शुरुआत छेड़छाड़ और फ्लर्टिंग से करें ताकि सैक्स का पूरा फायदा उठाया जा सके. पतिपत्नी के बीच सैक्स से पहले फ्लर्टिंग उन के उत्साह को बढ़ाती है जिस से सैक्स करते समय बोरियत नहीं होती और नयापन बना रहता है. छेड़छाड़ के दौरान पत्नी को चाहिए कि वह पति को अपनी अदाओं से रिझाए ताकि पति खुल कर इस मौके का लुत्फ ले सके. आप चाहें तो इस दौरान अपने खुशनुमा सैक्स पलों को याद कर सकते हैं या फिर कोई शौर्ट रोमांटिक मूवी साथ में देख सकते हैं ताकि सैक्स के लिए मूड बन सके. ध्यान रहे, इस दौरान आप दोनों का ध्यान पूरी तरह एकदूसरे पर ही रहे व आप इधरउधर की बातों के बजाय सिर्फ और सिर्फ सैक्स व रोमांस की बातें करें. सैक्स गेम खेलें और खुल कर मजा लें. आंखों ही आंखों में बातें करें ताकि साथ में बिताए ये पल हमेशा के लिए आप दोनों की यादों में बस जाएं.

हर पल को रोमानी बनाएं : चूंकि आप दोनों एकदूसरे से अनजान नहीं हैं, इसलिए बिना समय गंवाए एकदूसरे के जिस्म के हौट पार्ट्स के साथ खेलें और प्यार के उन पलों को यादगार बनाएं. प्यार के उन पलों में जब आप एकदूसरे के साथ हों तो ध्यान रखें आप किसी और चीज के बारे में न सोचें और जीभर एकदूसरे को सैक्सुअल प्लेजर दें.

दीवाली के दिन 2 घंटों का प्यारभरा यह साथ न केवल आप के आपसी रिश्तों को खुशनुमा बनाएगा बल्कि आप की दीवाली को यादगार भी बना देगा. दीवाली को नए तरह से मनाने का यह तरीका आप दोनों की बोरियतभरी जिंदगी में प्यार की फुलझडि़यां जलाएगा और आप के सैक्सुअल रिश्तों को नएपन की मिठास से भरेगा.

तो फिर, तैयार हैं न आप, दीवाली की रात में, नहींनहीं दिन में, हमतुम एक कमरे में बंद हों… गुनगुनाते हुए स्पैशल तरीके से एकदूसरे के साथ दीवाली मनाने के

लिए. हमें पूरा विश्वास है कि इस अनोखे तरीके से दीवाली मनाने के बाद आप हमें मन ही मन थैंक्स जरूर कहेंगे.      

करों व कानूनों का जंजाल

केंद्र सरकार जोरशोर से गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी को अंतिम तौर पर कानून बनवाने में लग गई है जिसे देश के आर्थिक विकास के लिए सपाट रेसट्रैक माना जा रहा है. यह सही है कि बीसियों तरह के सामानों पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों के कारण हर व्यवसायी का काफी समय सेवा, उत्पाद, बिक्री, चुंगी आदि करों को देने में लगता है. ऐसे में जीएसटी कानून का सपना पूरा हो गया तो देश को एक करने में आसानी होगी और सामान इधर से उधर ले जाने में कठिनाइयां काफी कम हो जाएंगी.

सभी पार्टियों ने मिल कर काफी जद्दोजेहद के बाद आवश्यक संविधान संशोधन तो कर दिया और जीएसटी परिषद की बैठकें भी शुरू हो गई हैं पर यह बदलाव लागू हो जाएगा, इस का भरोसा अभी नहीं है. कारण यह है कि देश में सब से बड़ी शक्ति नेताओं की नहीं, जनता की नहीं बल्कि नौकरशाही की है जो आसानी से घूस का पैसा हथियाने के अवसर नहीं खोने देना चाहती. जीएसटी का जो सपना दिखाया जा रहा है उस में रिश्वत की गुंजाइश बहुत कम रह जाएगी. हर उत्पाद पर हर स्तर पर जीएसटी लगेगा और आखिरी उपभोक्ता ही असल में इसे देगा. बाकी सब के बीच में उस का क्रैडिट मिलता चला जाएगा यानी उस के पिछले सेवा देने वाले या उत्पादक को जिस ने दिया है वह उसे वापस मिलता जाएगा.

यह दिखने में चाहे आसान लगे, लेकिन इसे ठोस शक्ल देना आसान नहीं है. पहली बात जो आड़े आ रही है वह यह है कि कुछ राज्यों में केवल उपभोक्ता ही हैं. उन्हें जीएसटी का लाभ मिलेगा. दूसरे राज्यों में उत्पादक ज्यादा हैं. वहां की राज्य सरकारों को कम पैसा मिलेगा अगर उन का बनाया गया सामान दूसरे राज्यों में चला गया. हालांकि, केंद्र सरकार उस की भरपाई करने की नीति बना रही है. दूसरी समस्या यह है कि किन व्यवसायियों पर जीएसटी लगे. बड़े तो खैर इसे अपना लेंगे और कागजी कार्यवाही कर लेंगे पर छोटों पर नहीं लादा गया तो कैसे होगा. अंतिम कर कौन देगा. 10 लाख या 20 लाख रुपए के टर्नओवर तक का धंधा करने वालों को छोड़ देने की बात हो रही है पर इस पर सभी राज्य एकमत हों, जरूरी नहीं है.

एक और समस्या विलासिता की चीजों पर अतिरिक्त कर की है कि शराब, सिगरेट, तंबाकू पर कितना कर लगे. वैसे ही, अधिकतम कर कितना हो, उस पर ही विवाद रहा है. कांगे्रस चाहती थी कि यह सीमा संविधान में दर्ज कर दी जाए और 15-16 प्रतिशत से ज्यादा न हो. पर भारतीय जनता पार्टी सरकार अपने हाथ बंधने नहीं देना चाहती थी. यह न भूलें कि उसी कांगे्रस की सरकार ने कुछ सेवाओं पर 2 प्रतिशत सेवा कर शुरू किया था जो अब 15 प्रतिशत हो गया है. बहरहाल, जीएसटी इस देश का उद्धार करेगा, यह सपना ही है. देश में उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कामगारों और व्यवसायियों में देश के प्रति जो उत्साह व कर्मठता होनी चाहिए, वह कहीं नहीं दिखती और जीएसटी कोई जादुई छड़ी नहीं, कि वह इसे ला दे. देश उसी तरह से चलता रहेगा. न रिश्वतखोरी कम होगी, न मुनाफाखोरी और न ही करचोरी. नई विदेशी तकनीक के कारण जो उत्पादकता बढ़ेगी, उस का लाभ अवश्य मिलेगा पर उस के लिए विदेशी वैज्ञानिकों को शाबाशी दें, देशी नेताओं और नौकरशाहों को नहीं. करों और कानूनों का जंजाल इस देश को सदियों से घुन की तरह खा रहा है और यह घुन आसानी से समाप्त नहीं होने वाला.

हमारी बेडि़यां

मेरे मित्र का नया मकान बन रहा था. राजमिस्त्री ने उसे एक लिस्ट थमाते हुए कहा कि जाओ, तुरंत ये सामान हार्डवेयर की दुकान से ले कर आओ. मेरा मित्र सारा सामान खरीद कर ले आया परंतु शनिवार होने की वजह से उस ने लोहे की कीलें नहीं खरीदीं. लोहे की कीलें न आने से उस दिन शटरिंग का काम नहीं हो सका, जिस की वजह से मेरे मित्र को 2 हजार रुपयों की चपत लग गई. उस की रुढि़वादी सोच से उस का आर्थिक नुकसान हो गया था.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

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मैथिल ब्राह्मण समाज में सावन के महीने में नवविवाहित स्त्रियां मधुश्रावणी पूजा करती हैं. यह सावन पंचमी से शुरू हो कर 15 दिनों तक चलती है. इस पर्व में देवताओं की पूजा होती है. इस दौरान नवविवाहित स्त्रियां 14 दिनों तक पौराणिक कथाएं भी सुनती हैं. कथा समाप्ति के 15वें दिन नवविवाहित स्त्रियों को दोनों घुटने तथा दोनों पैरों पर बत्ती जला कर दागा जाता है.

ऐसी मान्यता है कि जिस के जितने फफोले उठेंगे उस के सुहाग की उम्र उतनी ही लंबी होगी. इसी मान्यता के तहत मेरी एक सहेली को जलती हुई बत्ती से इतनी जोर से दागा गया कि उस के दोनों घुटने बुरी तरह जल गए. डाक्टर से उस का इलाज कराना पड़ा. फिर भी हम ऐसे बेवकूफीभरे रिवाजों से मुक्त नहीं हो पाते. हम आधुनिक शिक्षित समाज में रहते हैं, आदमयुग में नहीं.   

– डा. संजु झा

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मेरी सब से बड़ी मौसी बहुत ही रूढि़वादी थीं. बातबात पर पुरानी परंपराओं का हवाला दे कर अपनी बातें मनवाती थीं. उन का एकमात्र बेटा विजातीय लड़की से जब प्रेम विवाह कर लाया तो उन की किरकिरी हो गई. अब वे सारा आक्रोश बहू पर निकालतीं. एक बार किसी आयोजन में मैं उन के घर गई. पहले ब्राह्मण भोज था. उस के बाद बिरादरी भोज होना था. मौसी ने अपनी गर्भवती बहू से पूजा, अनुष्ठान के बहाने से कड़कड़ाती सर्दी में पूरा दालान धुलवाया, फिर गंगाजल का छिड़काव करवाया. ठंडे पानी से स्नान कर के पूजा के समय पहनने वाली विशेष सूती धोती पहनने को कहा.

बहू को तेज बुखार आ गया. जब मैं वहां पहुंची तो बहू बुखार और सर्दी से कांप रही थी. मैं ने मौसा व मौसी के बेटे से डाक्टर बुलाने को कहा. तब तक बहू बेहोश हो चुकी थी. अस्पताल में कड़ी देखभाल से बहू और उस के गर्भस्थ शिशु को बचाया गया. सब ने मौसी को आड़े हाथों लिया. तब से मौसी ने पुरानी, सड़ीगली रूढि़यों और रिवाजों से तौबा कर ली.     

– नीलू चोपड़ा, जनकपुरी (न.दि.)

परिवार विवाद है मुलायम का ‘गेम प्लान’

पहलवान से नेता बने मुलायम सिंह यादव अपने चरखा दांव से विरोधी नेताओं को चित्त करते रहे हैं. समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार से सत्ता विरोधी मतों का पलायन रोकने के लिये मुलायम ने चरखा दांव की जगह पर नया गेम प्लान तैयार किया है. जिससे सरकार और संगठन से जुड़े लोगों को अलग अलग खुश रखा जा सके.

एक तरफ अखिलेश यादव खुद का भरोसा दिखाते अपने आत्मविश्वास का प्रदर्शन करेंगे, तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव सांप्रदायिक शक्तियों के विरोध को रोकने के नाम पर कई दलों का साथ लेकर चलने की योजना बनायेंगे. विरोधी भाजपा और बसपा इस भ्रम में रहेंगे कि परिवार में लड़ाई है. असल में परिवार एक जुट है और वह मुलायम के गेम प्लान में फंस कर सपा को कमजोर समझने की भूल कर बैठेंगे. ऐसे में सपा बाजी मार ले जायेगी.

लखनऊ में आयोजित यश भारती सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिह यादव दोनों को मौजूद रहना था. परिवार में आई दूरी को दिखाने के लिये मुलायम इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने नहीं गये. इसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पहल पर यश भारती सम्मान पाने वाले प्रमुख लोगों से मुलायम सिंह यादव अपने घर पर मिले. इस मुलाकात के समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ उनकी पत्नी डिम्पल यादव भी मौजूद थी. घर की पूरी मेजबानी डिम्पल यादव के जिम्मे थी. करीब एक घंटे तक मुलायम सिंह यादव यश भारती सम्मान पाने वालों से मिले. समारोह में हिस्सा लेने वाले यश भारती पाने वालों ने कहा कि वहां का माहौल बहुत अच्छा था.

असल में समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज है. 2012 में उसने बहुमत से सरकार बनाई थी. उस समय ही मुलायम सिह यादव ने अखिलेश को न केवल मुख्यमंत्री बनाया, बल्कि जीत का पूरा श्रेय अखिलेश यादव को दिया था. उस समय ही यह तय हो गया था कि अखिलेश ही मुलायम के उत्ताधिकारी हैं. ऐसे में पूरे 5 साल तक किसी को भी कोई आपत्ति नहीं थी. ऐसे में अचानक यह विवाद कैसे खड़ा हो गया, यह समझ से परे आने वाली बात है? मुलायम ने बड़े बेटे अखिलेश को अपना उत्तराधिकारी बना दिया, तो छोटे बेटे प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव को भी राजनीति में उतार दिया. उनको विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट दे दिया. जिसके बाद यह साफ हो गया कि परिवार में सत्ता को लेकर कोई विवाद नहीं है.

अचानक पूरे प्रकरण में अमर सिंह का नाम आता है. उन पर घर तोड़ने का आरोप लगने के बाद यादव परिवार विवादों के घेरे में आ गया. परिवार और सरकार में भूचाल आ गया. ऐसा लगा जैसे परिवार और पार्टी दोनों दो टुकड़ों में बंट जायेगी. मंच पर खुलेआम नेताओं और कार्यकर्ताओं में मारपीट तक हो गई. कार्यकर्ता अलग अलग गुट में बंट गये.

प्रदेश भर में कार्यकर्ता अपने अपने नेताओं के गुट का समर्थन करते मैदान में एक दूसरे के स्वाभिमान के लिये कमर कस के खडे हो गये. असल में यही मुलायम का गेम प्लान है. वह कार्यकर्ताओं को एक जुट करना चाहते थे. सत्ता के साथ खड़े लोग अखिलेश के पीछे हैं और संगठन के साथ खड़े लोग शिवपाल के पीछे हैं. अखिलेश और शिवपाल दोनो मुलायम के पीछे खड़े हैं. अखिलेश और शिवपाल दोनों बारबार कह रहे हैं कि जो नेताजी कहेंगे वह लोग करेंगे. ऐसे में साफ है कि अलग अलग गुटों में बंटी सपा बाद में एकजुट हो जायेगी.        

बीजिंग ओलिंपिक के 9 खिलाड़ी डोपिंग टेस्ट में फेल

छह पदक विजेताओं समेत नौ और एथलीटों को पूर्व तिथि से 2008 के बीजिंग ओलिंपिक से अयोग्य ठहरा दिया गया, जब वो अपने डोप के नमूने की दोबारा जांच में फेल हो गए.      

अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति ने एथलीटों पर ताजा प्रतिबंधों की घोषणा अपने फैसले में की. इन एथलीटों के भंडारित नमूने डोप में सकारात्मक पाए गए, जब सुधरे हुए तरीके से उसकी दोबारा जांच की गई.

चार एथलीटों से रजत पदक छीन लिया गया जबकि दो एथलीटों से कांस्य पदक छीना गया. ये पदक भारोत्तोलन, कुश्ती और महिलाओं के स्टीपलचेज में जीते गए थे. सभी छह एथलीट पूर्व सोवियत देशों-रूस, बेलारूस, यूक्रेन, उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान से आते हैं और सब स्टेरॉयड लेने के लिए जांच में सकारात्मक पाए गए.

सिरफिरी हवाएं

अंधेरों से दुश्मनी कई दुश्मन बना देती है

सरफिरी हवाएं अकसर दीया बुझा देती हैं

कटी पतंगों से मैं ने जाना है

बुरी मोहब्बत ऊंचे किरदार गिरा देती है

परिंदों को तालीम उड़ने की कौन देता है?

पंखों की छटपटाहट उड़ना सिखा देता है

किताबों के साथ मैं रास्ते भी पढ़ लेता हूं

किताबों से ज्यादा, ठोकर सिखा देती है

आशिक और जिहादी मुझे एक से दिखते हैं

नादानी इन दोनों को काफिर बना देती है.

       

– दिनेश कुमार ‘डीजे’

 

अमेरिका हार रहा है

सब जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप किस तरह अमेरिकी लोकतंत्र के आधारभूत व पुराने मूल्यों पर हमले कर रहे हैं. अमेरिका के लोकतंत्र का यह बुनियादी उसूल रहा है कि हारने वाला उम्मीदवार विजेता की जीत का एहतराम करता है, और विजेता हारे हुए प्रतिद्वंद्वी को राजनीतिक अखाड़े में आजमाइश की इजाजत देता है. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने पिछली बहस में अपनी शिकस्त के लिए प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन पर धोखाधड़ी का आरोप लगाकर और अपने राष्ट्रपति बनने की सूरत में हिलेरी को जेल भेजने की धमकी देकर दरअसल अमेरिका के गणतंत्र के इस स्तंभ को ही नकार दिया है.

सिर्फ इसी स्तंभ की बेइज्जती नहीं हुई है, ट्रंप ने जिस तरह से सच्चाई के प्रति लापरवाही भरा रुख अपनाया है, वह भी अमेरिका के लोकतंत्र पर एक तरह का हमला ही है. सभी राजनेता सच को तोड़ते-मरोड़ते हैं, पर उनकी गलतबयानी में भी अमूमन सच एक टुकड़ा जरूर रहता है. बिना यह माने कि तथ्य और सबूत महत्वपूर्ण चीज हैं, कोई भी प्रामाणिक बहस नहीं हो सकती.

ठीक वैसे ही, जैसे इनके बिना शासन करना असंभव है. इसलिए दोनों ही पक्षों (हिलेरी व ट्रंप) को बजट के आंकड़ों पर बहस करने से पहले यह मान लेना चाहिए कि दो और दो का जोड़ चार ही होता है. ट्रंप अपनी वैकल्पिक हकीकत गढ़ डालते हैं और अपने समर्थकों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे इस हकीकत को जिएं.

उन्होंने दावा किया कि न्यू जर्सी के हजारों मुसलमानों ने 11 सिंतबर, 2001 के आतंकी हमले का जश्न मनाया था. या यह कि अनेक लोगों ने सैन बर्नार्डिनो के हमलावरों के अपार्टमेंट के आस-पास बम देखे थे, मगर इसकी रिपोर्ट लिखाने की जरूरत उन्होंने महसूस नहीं की. वास्तव में, ये दोनों ही दावे गलत हैं, बावजूद इसके ट्रंप लगातार इन्हें दोहराते रहे और अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने जैसी अपनी अन्यायपूर्ण नीतियों को जायज ठहराने के लिए इनका इस्तेमाल करते रहे. ट्रंप जिस तरह से सच को पेश कर रहे हैं, उसे देखते हुए आशंका है कि आखिरी बहस अपने पारंपरिक रूप में संपन्न हो सकेगी.

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