मेरे मित्र का नया मकान बन रहा था. राजमिस्त्री ने उसे एक लिस्ट थमाते हुए कहा कि जाओ, तुरंत ये सामान हार्डवेयर की दुकान से ले कर आओ. मेरा मित्र सारा सामान खरीद कर ले आया परंतु शनिवार होने की वजह से उस ने लोहे की कीलें नहीं खरीदीं. लोहे की कीलें न आने से उस दिन शटरिंग का काम नहीं हो सका, जिस की वजह से मेरे मित्र को 2 हजार रुपयों की चपत लग गई. उस की रुढि़वादी सोच से उस का आर्थिक नुकसान हो गया था.

- प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

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मैथिल ब्राह्मण समाज में सावन के महीने में नवविवाहित स्त्रियां मधुश्रावणी पूजा करती हैं. यह सावन पंचमी से शुरू हो कर 15 दिनों तक चलती है. इस पर्व में देवताओं की पूजा होती है. इस दौरान नवविवाहित स्त्रियां 14 दिनों तक पौराणिक कथाएं भी सुनती हैं. कथा समाप्ति के 15वें दिन नवविवाहित स्त्रियों को दोनों घुटने तथा दोनों पैरों पर बत्ती जला कर दागा जाता है.

ऐसी मान्यता है कि जिस के जितने फफोले उठेंगे उस के सुहाग की उम्र उतनी ही लंबी होगी. इसी मान्यता के तहत मेरी एक सहेली को जलती हुई बत्ती से इतनी जोर से दागा गया कि उस के दोनों घुटने बुरी तरह जल गए. डाक्टर से उस का इलाज कराना पड़ा. फिर भी हम ऐसे बेवकूफीभरे रिवाजों से मुक्त नहीं हो पाते. हम आधुनिक शिक्षित समाज में रहते हैं, आदमयुग में नहीं.   

- डा. संजु झा

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मेरी सब से बड़ी मौसी बहुत ही रूढि़वादी थीं. बातबात पर पुरानी परंपराओं का हवाला दे कर अपनी बातें मनवाती थीं. उन का एकमात्र बेटा विजातीय लड़की से जब प्रेम विवाह कर लाया तो उन की किरकिरी हो गई. अब वे सारा आक्रोश बहू पर निकालतीं. एक बार किसी आयोजन में मैं उन के घर गई. पहले ब्राह्मण भोज था. उस के बाद बिरादरी भोज होना था. मौसी ने अपनी गर्भवती बहू से पूजा, अनुष्ठान के बहाने से कड़कड़ाती सर्दी में पूरा दालान धुलवाया, फिर गंगाजल का छिड़काव करवाया. ठंडे पानी से स्नान कर के पूजा के समय पहनने वाली विशेष सूती धोती पहनने को कहा.

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