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मूल की खोट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों से राहुल गांधी पर बोलना कम करते यह जिम्मेदारी पार्टी के दूसरी पंक्ति के नेताओं को सौंप दी है जिस के पीछे सोच यह है कि वे अगर राहुल के खिलाफ बोलते हैं तो राहुल खामखां वजन मिलता है यानी राहुल का कद छोटा करने के लिए मोदी को उन पर न बोलना बेहतर लग रहा है. खून की दलाली की बात राहुल गांधी ने कही तो जवाबी हमले में अमित शाह ने कह डाला कि उन के मूल में ही खोट है. मूल के कई शाब्दिक अर्थ होते हैं लेकिन अमित शाह की मंशा डीएनए का हिंदीकरण करने की थी जिस पर कांग्रेसी तिलमिलाए और चिंता यह जता दी कि उन्हें भाजपा से इतने नीचे गिरने की उम्मीद नहीं थी. बकौल कपिल सिब्बल, तड़ीपार अमित शाह उन्हें न सिखाएं कि किस के मूल में खोट है. यानी मूल के खोट की सियासत अभी और खिंचेगी. हालांकि जड़ें तो सब की खोखली ही हैं.

अम्मा बीमार, शासन की रार

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और एलजी नजीब जंग की हाहाकारी जंग का असर अब तमिलनाडु में भी दिखाई दे रहा है जहां के राज्यपाल सी.एम. विद्यासागर ने तमिलनाडु के 2 वरिष्ठ मंत्रियों और मुख्य सचिव को बुला कर यह पूछा कि यहां आखिरकार सरकार कौन चला रहा है, कौन आदेश जारी कर रहा है और राज्य में उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने जैसे हालात तो नहीं हैं. भाजपा के सुब्रह्मणयम स्वामी ने तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाने तक की मांग कर डाली.

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की बीमारी को ले कर खासा बवाल मच चुका था. ऐसे में विद्यासागर को राज्य की चिंता और अपने ‘हक’ याद आ गए तो बात कतई हैरत की नहीं. यह जताने में वे कामयाब रहे कि राज्यपाल आखिर कोई नुमाइशभर का पद नहीं है. लेकिन वे यह भूल गए कि जयललिता का रसूख अस्पताल में भरती हो जाने से कम नहीं हुआ है, वहां उन के चहेतों, चाटुकारों की भरमार है और तमिलनाडु तमिलनाडु है, दिल्ली नहीं. हालांकि अब वित्त मंत्री ओ पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री जयललिता के सभी विभाग सौंप दिए गए हैं ताकि शासन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे.

जीवन की मुसकान

मैं जिस महल्ले में रहती हूं वहां से थोड़ा हट कर एक बहुत बड़ा क्लीनिक है. यह क्लीनिक डा. डेविड जान बास्की नामक सर्जन का है जो ईसाई हैं. वे हिंदुओं के त्योहार से कोई मतलब नहीं रखते हैं मगर उन के कई सहयोगी हिंदू हैं. आज से 2 साल पहले दीवाली के दिन क्लीनिक के सभी कर्मी छुट्टी पर चले गए जिस वजह से क्लीनिक बंद रखना पड़ा. चूंकि महल्ले में पटाखों की धूमधड़ाम मच रही थी, इसलिए डेविड साहब ने अपने क्लीनिक के गेट में ताला लगवा दिया और खुद क्लीनिक के ऊपरी तल्ले पर आराम करने के लिए चले गए.

रात्रि के 9 बजे चीखपुकार मच गई क्योंकि पड़ोस में रहने वाले प्रकाश सिन्हा के 5 वर्षीय बेटे ने पटाखे से अपना हाथ जला लिया और अंगूठा अलग हो गया. इस से प्रकाश सिन्हा बदहवास हो गए और बच्चे को ले कर डाक्टर की तलाश में जाने लगे. तभी डाक्टर डेविड जान ने अपने क्लीनिक का गेट खोल दिया और बच्चे को भीतर ले गए. उन्होंने बड़ी कुशलता से अंगूठे को जोड़ दिया.

प्रेमशीला गुप्ता, देवघर (झा.)

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एक बार मैं अपने परिवार सहित फिल्म देख कर सिनेमाहाल से बाहर निकल रही थी, इतने में ही एक बच्चा, जो पानी के बुलबुले बनाने वाला खिलौना बेच रहा था, मेरे पास आया और बोला, ‘आंटी, सिर्फ 10 रुपए का है, ले लो.’ इस पर मैं ने उसे 10 रुपए देते हुए कहा, ‘बेटा, ये पैसे आप रखो और यह खिलौना भी आप ही रखो क्योंकि इस से खेलने वाला मेरे घर में कोई छोटा बच्चा नहीं है.’ इस पर पैसे लेने से इनकार करते हुए उस ने कहा, ‘आंटी, मेरे पापा कहते हैं कि कभी भी किसी से कुछ मुफ्त में नहीं लेना चाहिए, मेहनत कर के खाना चाहिए.’ उस की यह बात मेरे दिल को छू गई.

चंद्रा गुप्ता, रोहिणी (न.दि.)

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हमारे घर के लौन में एक विचित्र मगर खूबसूरत पक्षी जमीन पर बैठा था. शायद वह अपने झुंड से बिछड़ गया था. हम उसे एक हवादार डलिया में रख कर कानपुर प्राणी उद्यान ले गए जो हमारे घर के पास ही है. वहां इन के संरक्षक देखते ही समझ गए कि यह दुर्लभ प्रजाति का उल्लू है. वहां के संरक्षक बेजबान जीवों व पक्षियों का दर्द पढ़ना जानते हैं. उसे कुछ दवाएं वगैरा देने के लिए ले गए. उजड़ते वनों के कारण इन के प्राकृतिक आवास घट रहे हैं. इस के कारण इन की अनेक प्रजातियां नष्ट हो रही हैं. इस के लिए हर व्यक्ति को सजग रहना होगा ताकि प्रकृति की अनमोल विरासत बची रह सके.

सिद्धांत कटियार, कानपुर (उ.प्र.)

यह भी खूब रही

हमारे कसबे में बंदरों का उत्पात आतंक का विषय है. कुछ उत्पाती बंदरों की आदत यह है कि वे सामान या कपड़े ले कर छत पर भाग जाते हैं. उन्हें यदि उस समय कुछ खाने को तुरंत न दिया जाए तो वे उस सामान या कपड़े को नष्ट करने या फाड़ने लगते हैं. पिछली दीवाली के दिन एक उत्पाती बंदर मेरे पति का 10 हजार रुपए का नया मोबाइल ले कर भागा और छत पर चढ़ गया. हमारे तो होश उड़ गए. तभी मेरे पति को याद आया कि मोबाइल में दीवाली के कारण लड़के ने पटाखों की आवाज का रिंगटोन लगा रखा है. उन्होंने घर के एक दूसरे मोबाइल से उस पर फोन कर दिया. पटाखों की अपने हाथ में आवाज सुन कर बंदर मोबाइल को छत पर छोड़ कर बहुत तेज दूर भाग गया. इस तरह मेरे पति का महंगा मोबाइल बच गया.

माधुरी मौर्यबंशी, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)

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मेरा एक मित्र हास्य कवि है. उस का बेटा विवाहयोग्य हुआ तो एक लड़की वाले उस के घर रिश्ता ले कर आए. नाश्ते के बाद लड़की का पिता बोला, ‘‘जी, हम आप के सुपुत्र का हाथ अपनी कन्या के लिए चाहते हैं.’’ मित्र ने यह सुनते ही जवाब दिया, ऐसा काम न कीजिए जिस से दरार आए रिश्तों में. मांगना है तो पूरा वर मांगिए. अलगअलग अंग क्यों मांग रहे हैं किस्तों में.’’ मित्र के जवाब से वातावरण में खुशी की लहर दौड़ गई.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

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बात तब की है जब मेरी शादी हो रही थी. जयमाला के बाद हम लोग स्टेज पर बैठे थे. मायके व ससुराल के लोग बारीबारी स्टेज पर आ कर हमारे साथ फोटो खिंचवाते, शगुन देते और हमारे सिरों के ऊपर से वारफेर कर के काम करने वालों को पकड़ा देते. पुरुष मेरे पति से हाथ मिलाते और स्त्रियां हाथ जोड़ कर नमस्ते करतीं. मेरे पिताजी के एक मित्र जब हमारे ऊपर से वारफेर कर के जाने लगे तो मेरे पति ने उन से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो उन्होंने वारफेर कर के 10 रुपए इन्हें पकड़ा दिए. मेरे पति हाथ से ना ना करते रहे कि उन का उद्देश्य पैसे लेना नहीं, बल्कि हाथ मिलाना है. परंतु लोगों की भीड़भाड़ और फोटो खिंचवाने की जल्दबाजी के कारण मेरे वे अंकल वारफेर के 10 रुपए इन्हें दे कर चल दिए. यह दृश्य देख कर दोनों तरफ के रिश्तेदार और मैं अपनी मुसकान न रोक सके.

शालिनी, यमुनानगर (हरि.)

हिजाब पहनने की शर्त, छोड़ा शूटिंग चैंपियनशिप

मौजूदा चैंपियन हिना सिद्धू ने दिसंबर में तेहरान में होने वाले एशियन एयरगन शूटिंग चैंपियनशिप से अपना नाम वापस ले लिया है. इसके पीछे की वजह इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान में महिलाओं के हिजाब का ड्रेस कोड में शामिल होना है.

हिना ने एक अंग्रेजी अखबार से कहा, 'टूरिस्ट अथवा विदेशी मेहमानों को हिजाब पहनने के लिए जबर्दस्ती करना खेल भावना के विरुद्ध है. मुझे यह पसंद नहीं इसलिए मैंने अपना नाम वापस ले लिया.'

हिना से जब पूछा गया कि आखिर जब अन्य निशानेबाजों ने इस नियम को मानते हुए शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेने का फैसला कर लिया है तो आखिर वह ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं. तो उन्होंने इसे निजी पसंद का मसला बनाया.

इस भारतीय पिस्टल शूटर ने कहा, 'आप अपने धर्म का पालन कीजिए, मुझे मेरा धर्म मानने दीजिए. अगर आप अपनी धार्मिक मान्यताओं को मुझे मानने के लिए विवश करेंगे तो मैं इस प्रतियोगिता में भाग नहीं लूंगी.'

3 से 9 दिसंबर के बीच होने वाली इस प्रतियोगिता के आयोजकों ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर साफ कर दिया है, 'शूटिंग रेंज और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के कपड़े इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के नियम-कायदों के तहत होने चाहिए.'

यह पहली बार नहीं है जब हिना ने ईरान में होने वाली किसी प्रतियोगिता से अपना नाम वापस लिया है. वह पहले भी ऐसा कर चुकी हैं. कई इस्लामिक देशों की यात्रा कर चुकीं हिना ने कहा, 'जी, मैं पहले भी एक बार ऐसा कर चुकी हूं. करीब दो साल पहले भी मैंने इसी कारण से ईरान न जाने का फैसला किया था. सिर्फ ईरान ऐसा करता है. और किसी देश में ऐसा नहीं होता.'

नई दिल्ली में हुए प्रतियोगिता के पिछले संस्करण में हिना ने गोल्ड मेडल हासिल किया था. इसके साथ ही उन्होंने भारत को टीम गोल्ड जीतने में भी मदद की थी. इस प्रतियोगिता में भारत ने कुल मिलाकर 17 पदक जीते थे.

हिना ने कहा कि उन्होंने करीब तीन हफ्ते पहले ही नैशनल राइफल असोसिएशन ऑफ इंडिया को अपने फैसले से अवगत करा दिया है. उन्होंने कहा, 'मैंने असोसिएशन को 20 दिन पहले ही पत्र लिखकर इस बारे में बता दिया था.'

उनके स्थान पर 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में हरवीन सराओ को भेजा जा रहा है. इसके अलावा एयर पिस्टल टीम में रुचिका विनरेकर और सर्वेश तोमर को भी भेजा जाएगा.

इस बीच, राइफल असोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह का कहना है कि भारतीय निशानेबाजों ने हमेशा ईरानी परंपराओं का सम्मान किया है. उन्होंने कहा, 'ईरानी शूटिंग फेडरेशन के साथ हमारे संबंध अच्छे हैं और हम वहां की संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हैं. ईरान जाने वाली सभी महिलाएं चाहें वे यात्री हों या फिर डिप्लोमैट सभी हिजाब पहनती हैं. हिना को छोड़कर अन्य सभी भारतीय महिला शूटर्स ने इस फैसले को स्वीकार किया है.

अब हीरे में डेटा स्टोरेज ‘सदा के लिए’

अगर आप अपनी उंगली में हीरा पहनते हैं और उसमें कोई खामी हो तो इसके लिए आप अपने स्वंय को या अपने साथी को दोष न दें. क्योंकि हो सकता है कि आप भविष्य में इस बात पर शान दिखाएं कि आपकी उंगलियों पर आप का सारा डेटा स्टोरेज है.

साइंस अडवांसेज में पब्लिश हुए एक पेपर के मुताबिक लंबे समय तक डेटा स्टोरेज के लिए हीरे का इस्तेमाल किया जा सकता है. अभी चावल के दाने से भी छोटा हीरा किसी डीवीडी से सौ गुना ज्यादा डेटा स्टोर कर सकता है. भविष्य में, संभव है कि वैज्ञानिक हीरे का इस्तेमाल डीवीडी से लाखों गुना ज्यादा डेटा स्टोरेज के लिए करने लगें. आजकल पूरी दुनिया में हम लोग सेल्फी लेने से लेकर क्रेडिट कार्ड स्वैप करने तक भारी संख्या में डेटा जेनरेट कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने इस डेटा को स्टोर करने के लिए डीएनए, होलोग्राम, मैग्नेटिक टेप और कई तरीकों पर विचार किया है. इसके साथ ही, वैज्ञानिकों ने क्वांटम डेटा स्टोरेज का भी सुझाव दिया है जो एक तरह से टेलिपोर्टेशन जैसा है.

हीरा के बीचोंबीच एक एटॉमिक साइज की खामी होती है जिसे नाइट्रोजन वैकेंसी सेंटर कहते हैं. यह खामी कभी-कभी नाइट्रोजन एटम कार्बन स्ट्रक्चर के बीच बिखरने से बनती है. नाइट्रोजन के पास से एक कार्बन एटम को हटा कर डेटा के लिए जगह बनाई जा सकती है. इस पर रिसर्च करने के लिए अमेरिका की सिटी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दागी हीरे का प्रयोग किया जो लगभग 150 डॉलर का होता है.

हालांकि, डीवीडी की तरह यहां भी डेटा रीड करने के लिए लाइट का इस्तेमाल किया गया लेकिन यह उससे थोड़ा अलग है. इस विषय पर स्टडी करने वाले जैकब हेन्शॉ ने कहा, 'एक डीवीडी दोआयामी (2D) पहेली की तरह होती है जबकि डायमंड तकनीक में 3D मॉडल की तरह है. 

सपा का फैमिली ड्रामा

इस दफा लगता नहीं कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज यादव कुनबे की फूट कोई ड्रामा या नूराकुश्ती थी. अखिलेश यादव को गुमान हो आया है कि वे बगैर पिता के भी यूपी फतह कर सकते हैं, तो मुलायम सिंह चिंतित हैं कि बेटे में सब को साथ ले कर चलने की सियासी समझ नहीं है. सार यह है कि पितापुत्र में मतभेद हो चुके हैं और फौरीतौर पर हुए समझौते के तहत दोनों अपनीअपनी चलाते रहेंगे जिस का फायदा बाहरी उठाएंगे और कुछ अंदरूनी लोग भी. विवाद की वजह बाहरी लोग कम, अखिलेश की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं ज्यादा हैं. इस सब के चलते मुलायम सिंह का सियासी वजूद दांव पर लगा है. इसलिए दोनों का आत्मविश्वास डगमगाता दिख रहा है जिस का सीधा असर सपा कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है जो इन दोनों को समझा नहीं पा रहे कि यह पारिवारिक और व्यक्तिगत कलह कहीं का नहीं छोड़ेगी. मनमानी किसी एक की चलेगी, दोनों की नहीं.

अवसाद में ठाकरे ब्रदर्स

सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अहम मसले पर भी अपनी भूमिका तय नहीं कर पाने वाले उद्धव और राज ठाकरे लंबे समय से अवसाद में हैं. दोनों बारबार नरेंद्र मोदी और भाजपा को कोसते हैं, फिर प्रतिक्रियाहीनता देख कर एकदूसरे का मुंह ताकने लगते हैं कि अब क्या करें. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाक कलाकारों को वापस जाने का फरमान भी ज्यादा तूल नहीं पकड़ पाया यानी बाल ठाकरे के ये दोनों होनहार उत्तराधिकारी भाजपाई चक्रव्यूह में घिरे हुए हैं. शिवसेना की साख महाराष्ट्र में गिर रही है और कांग्रेस व एनसीपी की बढ़ रही है. भाजपा अभी तटस्थ रुख अख्तियार किए हुए है. जाहिर है इन दोनों को वापसी के लिए कुछ हाहाकारी काम करना पड़ेगा वरना यों खिसियाते रहने से तो दुकानदारी चलने से रही.

मुक्केबाजी संघ को खेल मंत्रालय से मिली मान्यता

खेल मंत्रालय ने हाल ही में स्थापित भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) को राष्ट्रीय खेल महासंघ के रूप में मान्यता दे दी. बीएफआई ने 25 सितंबर को बोर्ड के चुनाव कराए थे, जिसे मुक्केबाजी की अंतर्राष्ट्रीय संस्था एआईबीए ने भी मान्यता दे दी.

स्पाइसजेट एयरलाइंस के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक उत्तराखंड के अजय सिंह को बीएफआई का अध्यक्ष चुना गया है. खेल मंत्रालय ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है, “खेल मंत्रालय भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) को मुक्केबाजी के राष्ट्रीय खेल महासंघ के रूप में मान्यता देता है.”

मंत्रालय ने आगे कहा है, “बीएफआई को मान्यता मिलने से भारतीय मुक्केबाजों को टोक्यो ओलम्पिक 2020 और अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारियों के लिए प्रोत्साहन मिलेगा.”

ऐ दिल है मुश्किलः निर्देशक व पटकथा लेखक हैं कमजोर कड़ी

फिल्म की कहानी लंदन में रह रहे अयान (रणबीर कपूर) और अलीजेह (अनुष्का शर्मा) के इर्दगिर्द घूमती है. अमीर परिवार के अयान अपने पिता के डर से एमबीए की पढ़ाई कर रहा है, जबकि उसे गायक बनना है. एक दिन अयान की मुलाकात अलीजेह से हो जाती है और वह उससे इकतरफा प्यार करने लगता है. अलिजेह का मानना है कि इकतरफा प्यार एक कमजोरी है. अलिजेह ने प्यार में बहुद दर्द सहा है. अलिजेह, अयान से अपने रिश्तों को दोस्ती का नाम देती है. वह लखनऊ में अली (फवाद खान) से प्यार करती थी. पर एक दिन अली उसे धोखा देकर चला जाता है.

तब वह डॉ.फजाद के संग रिश्ता बना लेती है, पर वह अली द्वारा दिए गए दर्द को भूली नहीं है. एक दिन जब अयान के साथ अलिजेह पेरिस पहुंचती है, तो वहां उसकी मुलाकात डीजे बन चुके अली से होती है. पुराना प्यार जागता है और वह अयान को अकेले पेरिस से लंदन भेज देती है. कुछ दिन बाद अलिजेह फोन करके अयान को लखनऊ बुलाती है और बताती है कि वह अली के संग शादी कर रही है. अयान लखनऊ पहुंचता है और सोचता है कि शायद अलिजेह का मन बदल जाए, पर वह निराश होकर वहां से लौटता है और एअरपोर्ट पर उसकी मुलाकात मशहूर शायरा सबा तालियार खान (ऐश्वर्या राय बच्चन) से होती है, जिसका मानना है कि एक तरफा प्यार में बड़ी ताकत होती है.

अयान व सबा करीब आते हैं और एक दिन अयान विएना जाकर सबा के घर रहने लगता है. दोनों के बीच संबंध बनते हैं. एक दिन अयान यह बात अलिजेह को बताता है. अलिजेह, अयान से मिलने विएना आती है. सबा से भी मिलती है और यहां एक बार फिर अलिजेह के प्रति अयान का प्यार जागता है. पर अलिजेह उसे सिर्फ दोस्त कहकर चली जाती है. 2 साल बाद पता चलता है कि अलिजेह व अली के बीच बातचीत नहीं है. अयान, अलिजेह की खोज करता है. जब अलिजेह मिलती है, तो पता चलता है कि वह कैंसर की मरीज है. यानी कि प्यार कैंसर बन गया है. इस बीच अयान मशहूर गायक बन चुका है. अलिजेह अभी भी अयान को दोस्त मानती है, जबकि अयान कहता है कि वह उससे प्यार करता है. पर अंततः एकतरफा प्यार जीतता है.

फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में भी पटकथा के स्तर पर काफी कमियां हैं. यूं तो करण जौहर ने इस फिल्म में रिश्तों, प्यार व भावनाओं को परिभाषित करने का सफल प्रयास किया है. पर वह नई व पुरानी पीढ़ी के बीच के अंतर को पाटने के चक्कर में फिल्म को बर्बाद कर बैठे. इंटरवल से पहले की फिल्म पूरी तरह से वर्तमान समय के टीनएजर की सोच के अनुसार है. वर्तमान पीढ़ी सोचती है कि प्यार ‘कैफे काफी डे’ पर शुरू होकर ‘कैफे काफी डे’ पर खत्म हो जाता है. इंटरवल तक टीनएजर वाला धमाल व मस्ती है, पागलपन है. बहुत ही सतही स्तर का रिश्ता है.

मगर इंटरवल के बाद ऐश्वर्या के किरदार के आने के साथ फिल्म अलग रूप ले लेती है. तब परिपक्व प्यार की बात होती है. शायरी गुनगुनायी जाती हैं. प्यार के मायनों की बात होती है, मगर फिर पटकथा की ऐसी गड़बड़ होती है कि फिल्म संभलने की बजाय बर्बाद हो जाती है.

कुछ नई बात कहते कहते अचानक करण जौहर फिल्म पर अपनी पुरानी फिल्मों वाली छाप छोड़ने के चक्कर में प्यार को कैंसर बता गए. इंटरवल से पहले संवाद लेखक ने पुरानी फिल्मों के कुछ संवादों, कुछ पुरानी फिल्मों के नाम व सनी लियोनी के नाम का उपयोग कर स्तरहीन सेवाद लिखें हैं. जिन्हें सुनकर टीनएजर भी बोर होने लगते हैं. इंटरवल से पहले अयान का संवाद है ‘चांटा प्यार का एहसास करा गया. दूसरा चांटा प्यार का दर्द दे गया.’ यह बात समझ से परे है. फिल्म में कुछ अच्छी शायरी है.

करण ने फिल्म को सफल बनाने के लिए सारे मसाले डाल दिए हैं. इस के चलते शाहरुख खान, आलिया भट्ट व लिसा हेडन भी गेस्ट एपियरेंस में नजर आ गए. मगर जहां तक अभिनय का सवाल है, तो इस फिल्म में एक बार फिर अनुष्का ने अपनी चिरपरिचित अभिनय शैली के साथ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही हैं. ऐश्वर्या का किरदार बहुत बड़ा नहीं है. इंटरवल के बाद फिल्म में उनके आने से कुछ उम्मीदें बंधती है मगर वह बहुत जल्द खत्म हो जाती हैं.

छोटे किरदार में भी ऐश्वर्या इंटीमसी के दृश्य देकर चौंकाती हैं. मगर शाहरूख के किरदार के आने के बाद लगता है कि कहानी में नया मोड़ आएगा. क्योंकि सबा बता चुकी है कि शाहरूख का किरदार यानी कि तालियार खान से उनका तलाक हो चुका है, पर वह अभी भी अच्छे दोस्त हैं. लेकिन सबा व तालियार खान की मुलाकात अयान की मौजूदगी में क्यों करवायी गई, पता ही नहीं चलता. फिल्म में रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा के बीच केमिस्ट्री सही ढ़ग से नहीं उभर पाती, जिसका असर कथा कथन पर भी पड़ता है. अलिजेह ने प्यार में कई धोखे खाए हैं, उसका प्रभाव उभर कर नही आता. फवाद खान प्रभावित करने में असफल रहे.

फिल्म की अवधि 2 घंटे 37 मिनट है, मगर फिल्म जिस तरह से बढ़ती है, उससे दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म कब खत्म होगी, यह बात निर्देशक व पटकथा लेखक की कमजोरी की ओर इशारा करती है. फिल्म का अंत करते समय अलिजेह को कैंसर का मरीज बताकर फिल्म को बर्बाद करने की ही कोशिश कही जाएगी. रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा,फवाद खान जैसे बेहतरीन कलाकारों, लंदन व पेरिस की खूबसूरत लोकेशन का सही उपयोग करने में निर्देशक बुरी तरह से मात खा गए.

 

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