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दीवाली पर कबाड़ निकाल फेंकें

कहने को ही हम भारतीय साफसफाई से परहेज नहीं करते लेकिन पुराने सामान से हमारा मोह जगजाहिर है जिस का आधार उस का उपयोगी या अनुपयोगी कतई नहीं रहता. खरीदी गई किसी भी चीज की पूरी कीमत वसूलने की मानसिकता ने हर एक घर को एक तरह से कबाड़खाना बना रखा है. रेलवे स्टेशन पर देख लें, स्टेशन से निकलते समय पानी की खाली बोतल कम ही लोग फेंकते हैं. वे उसे घर ले जाते हैं जहां धीरेधीरे वह कबाड़ की शक्ल में स्टोररूम का स्थायी हिस्सा बन जाती है. किसी भी घर का मुखिया या गृहिणी अगर ईमानदारी से अनुपयोगी सामान यानी कबाड़े की लिस्ट बनाने बैठे तो पाएगा कि घर में 40 फीसदी सामान बेकार पड़ा है. कई बेकार चीजें तो सालों से घर की शोभा बढ़ा रही हैं, बस फेंकी नहीं गईं. फिर कभी काम आएगा, यह सोच कर उसे बारबार अनुपयोगी सामान की सूची से बाहर कर घर में रख लिया जाता है. यह कबाड़ की परिभाषा भी है और उदाहरण भी कि हर दीवाली लोग सोचते हैं कि कुछ भी हो जाए, इस बार जरूर बेकार की सारी चीजें बाहर फेंक देंगे, कबाड़ी को या ओएलएक्स पर बेच देंगे लेकिन…

…लेकिन होता यह है कि जैसे ही बेकार का कोई सामान, मसलन पुराना बेकार और खराब हो गया बटन वाला मोबाइल फोन हाथ में आ जाए तो उसे बेचते या फेंकते नहीं बनता. वह फिर वापस रख लिया जाता है. घरों में पुराने अनुपयोगी सामान का भंडार इसी व्यर्थ मोह के चलते बढ़ता जाता है और दीवाली की साफसफाई के नाम पर लोग फिर पुरानी चीजों का भंडार लगा लेते हैं.

स्वच्छ भारत अभियान राजनीतिक स्वार्थों की बलि भर नहीं चढ़ा है बल्कि इस के पीछे शाश्वत भारतीय मानसिकता का भी हाथ है. लोग सोचते हैं कि जब ऐसे भी काम चल रहा है तो साफसफाई की जरूरत क्या है. साफसफाई का मतलब सिर्फ झाड़ू लगाना नहीं है बल्कि यह भी है कि लोग कम से कम सामान में काम चलाएं जिन की कोई उपयोगिता हो. दवाई की 4 साल पुरानी बोतल, जिस की एक्सपायरी डेट कब की निकल चुकी है, घर में क्यों रखी है? इस का तार्किक जवाब शायद ही कोई दे पाए सिवा इस कुतर्क के कि रखने की जगह है तो क्या फर्क पड़ता है.

फर्क पड़ता है

सामानों को संग्रहित करने का फर्क हमारी मानसिकता पर भी पड़ता है और सेहत पर भी. फ्रिज के कार्टन पर धूलमिट्टी जमती जा रही है लेकिन उसे फेंकने का मन नहीं कर रहा. बापदादों के जमाने का टूटाफूटा फर्नीचर यह खोखली दलील देते कबाड़ी को नहीं दिया जाता कि इस की लकड़ी कीमती है और पूर्वजों की निशानी है. फिलहाल रख देते हैं, फिर कभी देखेंगे. यह ‘फिर कभी’ दीवाली दर दीवाली निकलता जाता है और कबाड़ा ज्यों का त्यों पड़ा मुंह चिढ़ाता रहता है. आजकल घर बहुत बड़े नहीं रह गए हैं. मध्यवर्गियों को 900 से 1,200 वर्गफुट के मकान से काम चलाना पड़ रहा है. जिस में हरेक कमरे में सामान है. ड्राइंगरूम में एलसीडी आ गया है पर पुराना खराब पड़ा टीवी  कबाड़ी को नहीं दिया जा रहा. वह मुद्दत से कोने की शोभा बढ़ा रहा है. तब 15 हजार रुपए में लिया था और अब कौड़ी के दाम में ही बिकेगा. पर लोगों से बरदाश्त नहीं होता और वे फिर उस टीवी को यथास्थान पर रखा रहने देते हैं. यही हाल कल तक उस को ढोने वाली प्लास्टिक की ट्राली या स्टैंड और बेकार हो चुके उस के रिमोट का भी है.

किचन को गौर से देखें तो वहां स्टील, प्लास्टिक के पुराने डब्बे खाली पड़े हैं और जगह घेर रहे हैं. पुराने चम्मच शान बढ़ा नहीं रहे, बल्कि घटा रहे हैं. ऊपर लाफ्ट में गैस के 2 पुराने चूल्हे रखे हैं. सालों पुराने टूटेफूटे पीतल के बरतन भी विरासती धरोहर के नाम पर रखे हैं. किचन में आरओ लग गया है पर जाने क्यों, खराब और कबाड़ हो चुके वाटर फिल्टर को कोने में सहेज कर रखा गया है. बैडरूम का नजारा भी अलग नहीं. अलमारियों में कपड़े ठुंसे पड़े हैं. रद्दी और भद्दी हो चले कपड़ों की मानो सेल लगी हुई है और साडि़यों की तो बात ही करना बेकार है, जिन का काम महज संख्या बढ़ाना भर रह गया है. बच्चा अब बड़ा हो गया है लेकिन उस के छोटे कपड़े करीने से रखे गए हैं. गनीमत है डायपर सहेज कर नहीं रखे जा सकते वरना वे भी घर के कबाड़ को बढ़ा रहे होते. शादी के बाद खरीदी गई बैडशीट्स भी फोल्ड कर रख दी गई हैं, उन्हें भी फेंकने की इच्छा नहीं होती.

बरामदे में 20 साल पहले खरीदा गया टिन का कूलर स्टैंड दरवाजे के पीछे अंगद की तरह पांव जमाए खड़ा है. उस के साथ ही मौजूद है एक सैंट्रल टेबल और उस पर रखे 4 टूटे पौट, 3 दीवार घडि़यां जो वक्त नहीं बतातीं पर उन्हें देख याद किया जाता है कि वे किस वक्त, कहां से और कितने में खरीदी गई थीं. त का हाल तो और बेहाल है जहां विकलांग गमलों की भरमार है. 3 नग पुराने सूटकेस दर्जनों बारिश झेलने के बाद सड़ने के कगार पर हैं. उन पर फफूंद पल रही है, रैगजीन उखड़ चुकी है और हैंडल के अतेपते नहीं हैं. ऐसा दर्जनों सेवानिवृत्त सामान छत के माने खत्म कर रहा है पर उन्हें कबाड़े में बेचते नहीं बन रहा. किसी न किसी रूप में घर का यह हाल है जिस से उसे खासा यूनिक कहा जा सकता है. कोई नहीं सोचता कि बेवजह जगह घेरता यह कबाड़ा आखिर क्यों नुमाइश के लिए रखा गया है जो जगह भी घेरता है और तरहतरह की बीमारियों के बैक्टीरिया और वाइरस भी पालता है.

ऐसा नहीं है कि लोगों के पास नया सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं है बल्कि ऐसा है कि कबाड़ा फेंकने की हिम्मत लोगों में नहीं. जबकि च्चों और नई पीढ़ी को इस कबाड़ प्रेम या मोह पर सख्त एतराज है. उन्हें समझा दिया जाता है कि हमारे जिंदा रहने तक रहने दो. जब हम न हों तो इसे भी ठिकाने लगा देना. इस इमोशनल ब्लैकमेलिंग के शिकार युवा अस्तव्यस्त घर देख झल्ला उठते हैं कि ये प्लास्टिक की दर्जनों थैलियां और पन्नियां क्यों संभाल कर रखी गई हैं, इन्हें क्यों कबाड़ी को नहीं दे देते.

इस बार निकाल ही दें

यह ठीक है कि कबाड़ का कुछ सामान अभावों और संघर्ष के दिनों की याद दिलाता है लेकिन कबाड़ के दर्शन के तहत यह भी खयाल रखना चाहिए कि जिस तरह पुराने विचार नए विचार के आगमन में बाधक हैं, वही हालत पुराने सामान की भी है. व्यावहारिक बात यह भी है कि अब घर छोटे हो चले हैं जिन में एक सीमा तक ही सामान को रखा जा सकता है. उस से ज्यादा में वे अजायबघर लगने लगते है जो आनेजाने वालों को आप पर हंसने और तरस खाने का मौका देते हैं. तमाम बड़े शहरों में रह रहे नए दंपती कम से कम सामान में ज्यादा से ज्यादा काम चला रहे हैं. वे वक्त की मांग पर न केवल खरे उतर रहे हैं बल्कि साफसफाई से भी रह रहे हैं और जगह की बचत करते कबाड़ से होने वाले नुकसानों जैसे बीमारियों आदि से बचे भी रहते हैं.

30 साल पुरानी टूटी मिक्सी या टेबल फैन को रखने की कोई तुक नहीं है, न ही दीवार से टिके लोहे के जंग खाए पलंग किसी काम के हैं. इसलिए इस दीवाली खुद से सख्ती करें और ऐसा कूड़ाकरकट, कबाड़ खरीदने वाले को दे दें, वह जो कीमत देगा यकीन मानें वही उस का वास्तविक मूल्य बचा था. व्यवस्थित तरीके से रहने के लिए जरूरी है कि घर में बेकार का पुराना सामान न हो जो रोजमर्राई कामों में व्यवधान पैदा करता हो. बाथरूम में पुराने प्लास्टिक के टंगे स्टैंड बेकार हो चले हैं, उन्हें निकालें और लेटेस्ट डिजाइन के लाएं जिस से बाथरूम की खूबसूरती बढ़े, यही बात पूरे घर पर लागू होती है. जिन चीजों का कोई मूल्य नहीं होता वे अकसर अनुपयोगी होती हैं और अनुपयोगी आइटम मूल्य रहित होते हैं जिन्हें महज कबाड़ प्रेम के सनातनी मोह के तहत रखना, खुद की जिंदगी में खलल पैदा करना है. घर साफसुथरा और अनावश्यक चीजों से रहित हो तो ज्यादा सुंदर दिखेगा और आप भी सुकून महसूस करेंगे. बेहतर होगा इस दीवाली पुराना उपयोगी सामान, जो आप इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, नौकरों या जरूरतमंदों को दे दें. जरूरत इस बात की है कि लोग सामान को अखबार की तरह देखना शुरू करें जिस की उपयोगिता या जरूरत बहुत जल्द खत्म हो जाती है. कुछ महत्त्वपूर्ण आइटम पत्रिकाओं की तरह सहेज कर रखे जा सकते हैं पर खयाल रखें वे भी बहुत ज्यादा न हों.

तो आइए बाहर ठेले या लोडिंग आटो में घूमघूम कर चिल्ला रहे कबाड़ी, पुराना सामान दे दो, को वाकई कबाड़ा दे दें और यह संकल्प भी लें कि अब भविष्य में कबाड़ा इकट्ठा नहीं करेंगे. इस के लिए जरूरी है कि गैरजरूरी खरीदारी से बचें खासतौर से महिलाएं जो इन दिनों औनलाइन शौपिंग के जरिए अनापशनाप खरीदारी कर भविष्य का कबाड़ इकट्ठा कर रही हैं. याद रखें, कूड़ाकबाड़ा न सिर्फ घरों में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है बल्कि धूलमिट्टी व बैक्टीरिया की शक्ल में कई अनचाही बीमारियों को आमंत्रण भी देता है. इसलिए सफाई के दौरान इस त्योहार आप की पहली प्राथमिकता घर को कबाड़ से मुक्त करने की हो.

एन चंद्रशेखरन बन सकते हैं टाटा के नए ‘रतन’

टाटा समूह के नए चेयरमैन के लिए संभावित उम्मीदवारों में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) एन. चंद्रेशखरन सबसे आगे चल रहे हैं. इसके अलावा जेगुआर एंड लैंडरोवर (जेएलआर) के सीईओ राल्फ स्पेथ और ट्रेंट के प्रमुख नोएल टाटा का भी नाम चेयरमैन के लिए शीर्ष तीन दावेदारों में माना जा रहा है.

टाटा के भरोसेमंद चंद्रा

उद्योग जगत में चंद्रा के नाम से मशहुर चंद्रशेखरन रतन टाटा के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों में शामिल हैं. उनके नेतृत्व में टीसीएस उस दौर में मोटा मुनाफा कमा रही है जब अन्य सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां मुश्किलों की सामना कर रही हैं.

राल्फ ने जेएलआर को चमकाया

जर्मनी के राल्फ स्पेथ वर्ष 2010 से जेएलआर के मुख्य कार्यकारी हैं. वह 2007 में जेएलआर से जुड़े थे. फोर्ड ने घाटे में चल रही जेएलआर को वर्ष 2008 में टाटा मोटर्स को बेच दिया. लेकिन राल्फ ने जेएलआर को चमकाकर कमाऊ कंपनी बना दिया. जेएलआर के पास वर्तमान में करीब 30,000 करोड़ रुपये की नकदी है. टाटा मोटर्स के कुल मुनाफे में जेएलआर की सबसे अधिक हिस्सेदारी है.

नोएल भी दावेदार

रतन टाटा के सौतेले भाई और साइरस मिस्त्री के बहनोई नोएल टाटा समूह की कंपनी ट्रेंट के चेयरमैन और टाटा इंटरनेशनल के प्रबंध निदेशक हैं. उन्होंने फ्रांस के इनसीड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया है. साइरस मिस्त्री से पहले ही भी वह टाटा संस के चेयरमैन पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे थे.

भारत, नरेंद्र मोदी और बढ़ता युद्ध उन्माद

भारत में अभी भूख, गरीबी, कुपोषण और बेरोजगारी से ज्यादा आर्थिक विकास के लिये अर्थव्यवस्था का निजीकरण और सर्जिकल स्ट्राइक, भाजपा की मोदी सरकार की नामालूम उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है. राष्ट्रवाद देशभक्ति और युद्ध के उन्माद को बढ़ाया जा रहा है. यह प्रमाणित किया जा रहा है, कि मोदी हैं तो देश हैं, दुनिया में देश का सम्मान है. इसलिये हमें मोदी को बचाना होगा, मोदी को बढ़ाना होगा, मोदी के लिये अपने जान की कुर्बानी देनी होगी. इस पागलपन को ऐसे बढ़ाया जा रहा है, जैसे मोदी नहीं थे, तो देश नहीं था, देश में सरकार नहीं थी. ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे देश और सेना का सम्मान और गरिमा हो.

क्या आपको ऐसा नहीं लग रहा है, कि कोई हमारे दिल, दिमाग और हमारे पेट को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है? पेट पर लात मार रहा है, दिमाग को निजी कंपनियों के माल गोदामों में डाल रहा है, और दिल में जहर घोल रहा है? यह समझा रहा है – देश के लिये जियो, दल के लिये जियो, अपने नेता के लिये जियो. जो कामचोर है, वो गरीब है. उनके बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. जो उद्यमी हैं, वो अपने लिये काम खुद ही निकाल लेते हैं. इसलिये उद्यमी बनो. पराक्रमी बनो. देशभक्त बनो.

सरकार देशभक्तों के साथ है, पराक्रमियों के साथ है, उद्यमियों के साथ है. स्टार्टअप इण्डिया भी एक प्रोग्राम है. स्टैण्डअप इण्डिया भी एक प्रोग्राम है. ‘मेक इन इण्डिया‘ तो प्रोग्रामों का बाप है. काम ही काम है. यह सब मोदी का वरदान है.

दुश्मन भूख नहीं. दुश्मन गरीबी और कुपोषण नहीं. दुश्मन बेरोजगारी और आम आदमी की बदहाली नहीं. दुश्मन पाकिस्तान है, चीन है. दुश्मन आतंकवाद है. उसको पनाह देने वाले देश हैं.

आतंकवाद के खिलाफ सरकर है, आतंकवाद के खिलाफ सेना है, आतंकवाद के खिलाफ आम जनता को भी होना ही होगा. जो आतंकवाद के खिलाफ नहीं है, वह आतंकवादी है, देशद्रोही है. मगर अमेरिकी सरकार, उसके सहयोगी देश आतंकवादी नहीं हैं – जो आतंकवाद का उत्पादन करते हैं. अमेरिकी सरकार अपने से असहमत देशों को आतंकी हमलों की धमकी देती है. युद्ध को अनिवार्य बनाती है.

नरेंद्र मोदी आतंकवाद के खिलाफ मरने-मारने को तैयार हैं. उन्होंने भारत को ‘अमेरिकी आतंकवाद विरोधी युद्ध‘ में शामिल कर दिया है. पाकिस्तान में घुसकर आतंकी शिविरों को नष्ट करने के पक्ष में अमेरिकी सरकार है. ये वो ही आतंकी हैं, जिन्हें सीआईए ने पाला-पोसा है, प्रशिक्षित किया है, पाक को अपना जरिया बनाया है. मारने और मरने वाले अमेरिकी खैरख्वाह और पालतू हैं. भारत-पाक युद्ध के करीब खिसक रहे हैं, जिनकी हालत ‘ग्लोबल हंगर इन्डेक्स‘ 2016 में बदतर है. भुखमरी और कुपोषण के शिकार 118 देशों में भारत यदि 97वां देश है, तो पाकिस्तान का नंबर 107 है. आप समझ सकते हैं, कि हालत कितनी खराब है? इंडेक्स के आधार पर भारत में 28.5 प्रतिशत लोग भुखमरी के और 39 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. भारत उन देशों में शामिल है, जहां स्थितियां जरूरत से ज्यादा गंभीर हैं.

जिनसे लड़ने के झूठे वायदों के अलावा मोदी सरकार के पास कुछ भी नहीं है. उसने नवउदारवादी जिस अर्थव्यवस्था से भारतीय अर्थव्यवस्था को जोड़ दिया है, वहां समाज के बहुसंख्यक वर्ग के लिये भूख, गरीबी, कुपोषण और अबाध शोषण एवं दमन के साथ युद्ध है. हथियारों की होड़ और युद्ध उन्माद है.

ऐसा भी होता है

प्राध्यापिका पद के साक्षात्कार हेतु अपनी पत्नी के साथ मैं वरुणा ऐक्सप्रैस से लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. गाड़ी छूटने में थोड़ा समय था. हम लोगों को छोड़ने के लिए आए एयरफोर्स में जेसीओ मेरे साढ़ू से मैं कोच के बाहर बात कर रहा था. भीतर उन की पत्नी मेरी पत्नी के साथ बात कर रही थीं. हमारा ब्रीफकेस पत्नी के पास बर्थ से टिका कर रखा था. सामने की बर्थ पर एक अन्य यात्री बैठा था. गाड़ी छूटने के 5 मिनट पहले मैं भीतर गया तो देखा ब्रीफकेस गायब था. और सामने बैठा वह आदमी भी नहीं था. मैं समझ गया कि यह किस का काम है. ब्रीफकेस में अहम दस्तावेज व प्रमाणपत्र थे. हम ने एकएक कोच को अंदर से देखना शुरू किया. संयोगवश वह आदमी 5वीं कोच में बैठा मिल गया. हम दोनों उस के पास जा कर बैठ गए और पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

वह बोला, ‘‘वाराणसी.’’

‘‘यह ब्रीफकेस तुम्हारा है?’’ साढ़ू ने पूछा.

‘‘हां, क्यों आप को कोई शक?’’ वह बोला.

साढ़ू ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ा और पूछा, ‘‘इस में क्याक्या रखा है? इस की चाबी से इसे खोलो.’’ उस आदमी की घबराहट देखने लायक थी. वह उठ कर ब्रीफकेस छोड़ कर जाने लगा. इतने में गाड़ी ने सीटी दे दी. साढ़ू ने फिर एक झन्नाटेदार चाटा जड़ते हुए कहा, ‘‘समय नहीं है, वरना इस उठाईगीरी की सजा तुम्हें जेल में ही दिलवाते.’’

आशीष कुमार, लखनऊ (उ.प्र.)

*

मैं घर से पत्रकारपुरम चौराहा जा रहा था. अचानक लाल रंग की एक नई कार मेरे पास आ कर रुक गई. उस में बैठा युवक बोला, ‘‘अंकल, मुझे आप से मदद चाहिए. मेरी आंटी अस्पताल में भरती हैं. मुझे उन की दवा लेनी है. मेरा पर्स गिर गया. क्या आप मुझे 300-400 रुपए दे सकते हैं. आप के रुपए शाम तक वापस कर दूंगा.’’ मैं ने कहा, ‘‘भाई, मेरे पास इस समय इतने रुपए नहीं हैं. हां, मेरा घर पास में है. चलो, घर से रुपए दे कर तुम्हारी मदद जरूर करूंगा. बस, कार मेरे घर पर खड़ी कर दो और चाबी दे दो. शाम को जब पैसे लौटाने मेरे पास आओगे तब अपनी कार वापस ले जाना.’’

यह सुन कर उस युवक ने मुझे घूरा और कार बढ़ा कर खिसक लिया.

चैतन्य कुमार श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

सफर अनजाना

मेरी बड़ी बहन के लड़के की शादी दिल्ली में थी. मैं ने पति और मेरे छोटे भाईभाभी के साथ 2 जून का एसी-3 टायर कोच में आरक्षण करा लिया. परंतु मेरे भाई से गलती यह हो गई कि यह नहीं देखा कि टिकटें 2 जून की न हो कर 3 जून की थीं. हम 2 जून को ठीक समय पर बांद्रा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में अपनी सीट नंबर देख कर बैठ गए. बांद्रा से चल कर ट्रेन बोरीवली पर रुकी. वहां पर मुसाफिर चढ़े. उन्होंने हम से कहा कि ये सीटें तो उन की हैं. मेरे भाई ने कहा कि ये सीटें हमारी हैं. बहसबाजी में किसी ने टिकटें नहीं देखीं. ट्रेन चल पड़ी. थोड़ी देर बाद टिकटचैकर चार्ट ले कर आया जिस पर रिजर्वेशन हमारा न हो कर उन यात्रियों का था. चैकर ने हमारी टिकटें देखीं और कहा कि ये तो कल 3 जून की हैं. हम चारों टैंशन में आ गए. चैकर ने हमें अगले स्टेशन पर उतर जाने को कहा. यदि वह चाहता तो उस स्टेशन तक का किराया जुर्माने के साथ ले लेता. इतना ही नहीं, उस ने फोन से संदेश भेज कर अपने आदमी के साथ हमें स्टेशन के बाहर निकालने में भी मदद की. उस चैकर और उस दिन के सफर को हम कभी नहीं भुला सकते.     

कृष्णा कुमार, मुंबई (महा.)

*

हम दोनों वृद्ध पतिपत्नी राजधानी ऐक्सप्रैस से दिल्ली से मुंबई अपने बेटे से मिलने जा रहे थे. एसी सैकंड क्लास में हमारी लोअर बर्थ थीं. हमारे पास सामान काफी था. दिल्ली से कुछ आगे पहुंचने पर एक अधेड़ उम्र के महाशय हमारी बर्थ पर आ कर बैठ गए. उन की बर्थ ऊपर की थी और वे भी मुंबई जा रहे थे. वे सज्जन मेरी बर्थ पर बैठे रहे. खाना भी वहीं खाया. हमें काफी असुविधा हो रही थी. कहने के बाद आखिरकार रात में वे सज्जन अपनी बर्थ पर चले गए.

सुबह जब आंख खुली, पता चला कि ट्रेन मुंबई पहुंच चुकी है. हमें बोरीवली स्टेशन पर उतरना था. हम लोग परेशान होने लगे कि इतना भारीभरकम सामान ले कर स्टेशन पर कैसे उतर पाएंगे. पता चला कि अगला स्टेशन बोरीवली आएगा. गाड़ी सिर्फ 2-3 मिनट ही रुकेगी. इतने में वे सज्जन ऊपर अपनी बर्थ से उतरे और हम से पूछा कि कहां उतरना है? हम ने बोरीवली बताया. इतने में बोरीवली स्टेशन आ गया. उन्होंने स्वयं हमारे बैग उठाए. हमें ट्रेन से उतार कर हमारा सामान प्लेटफौर्म पर रख दिया. हमारा बेटा भी वहां पहुंच गया. उन्होंने बेटे से हाथ मिला कर बड़े प्रेम से हमें विदा किया. हम इतने शर्मिंदा थे कि उन से आंख नहीं मिला पाए.

बी डी जोशी, पिथौरागढ़ (उ.खं.)

इन्हें भी आजमाइए

– दीवाली की तैयारी आप अकेले नहीं कर सकते, जैसे घर की साफसफाई, साजसज्जा, व्यंजन बनाना, उपहार खरीदना, मेहमानों का आना, आप का उन के घर जाना आदि. सो, कामों की एक सूची बनाएं और परिवार में सब को कुछकुछ काम सौंप दें. जो काम हो जाए उसे मार्क कर दें.

– बाथरूम की दीवार पर सीढ़ी बनवाएं. इस से घर का लुक भी नया आएगा और इस सीढ़ी पर आप अपने टौवल व कपड़े भी रख सकते हैं. ऐसा बाथरूम, एक आम बाथरूम से हट कर लगता है.

– जिन लोगों का ज्यादा रक्तचाप हो जाता है उन्हें एक दिन में कम से कम 4 इलायची का सेवन करना चाहिए. अगर आप इसे खाने में   डालना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं, यों ही चबा कर खा जाएं.

– दीवाली पर घर के कोनों में लाइट लगाएं. अलमारियों पर कंसील लाइट लगाएं. डाइनिंग टेबल पर भी प्रौपर लाइट रखें ताकि एक अलग सा फील आए.

– पटाखे से जल गए हैं तो उस पर तुरंत ही ऐलोवेरा का जैल निकाल कर लगाएं. इसे सीधे ही जले पर लगाएं, इस से जलन कम हो जाएगी और छाले भी नहीं पड़ेंगे.

– मिक्सर में नमक डाल कर चला देने से मिक्सर के ब्लेड तेज हो जाते हैं.

फ्रेंच ओपनः दूसरे राउंड में बाहर हुईं सिंधू

रियो ओलंपिक की रजत पदक विजेता पीवी सिंधू को डेनमार्क के बाद फ्रेंच ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट के भी दूसरे राउंड में हार का सामना करना पड़ा. सिंधू दूसरे राउंड में हारने के बाद टूर्नामेंट से बाहर हो गईं. वहीं पुरूष एकल में एच एस प्रणय को भी हार का सामना करना पड़ा, जिसके साथ भारतीय चुनौती भी समाप्त हो गयी है.

चीन की बिंगजियाओ के हाथों हारकर हुईं बाहर

टूर्नामेंट में सिंधू महिला एकल के दूसरे दौर में चीन की बिंगजियाओ के हाथों 41 मिनट में 20-22, 17-21 से हारकर बाहर हो गयीं. विश्व में 10वीं रैकिंग की भारतीय खिलाड़ी सिंधू ने डेनमार्क में बिंगजियाओ को पहले ही दौर में हराकर बाहर किया था. लेकिन इस बार चीनी खिलाड़ी ने अपनी हार का बदला चुकता कर लिया. दोनों खिलाड़ियों के बीच यह पांचवीं भिड़ंत थी जिसमें चीनी खिलाड़ी 3-2 से आगे हैं.

पहला गेम में रहा कड़ा मुकाबला

दोनों खिलाड़ियों के बीच पहला गेम कड़े मुकाबले वाला रहा और सिंधू ने 7-7, 15-15 और 16-16 पर चीनी खिलाड़ी से बराबरी की. लेकिन अंत में बिंगजियाओ ने लगातार चार अंक लेकर 22-20 से गेम जीत लिया.

दूसरे गेम में सिंधू फिर कुछ खास संघर्ष नहीं कर सकीं और चीनी खिलाड़ी ने उन्हें 10-5 से और 18-9 से पीछे छोड़कर एकतरफा बढ़त बनाई. जिसके बाद 21-17 से आसानी से गेम और मैच जीत क्वार्टरफाइनल में प्रवेश कर लिया.

प्रणय को चू तिएन चेन ने दिया मात

वहीं पुरूष एकल के दूसरे दौर में प्रणय को पांचवीं सीड चीनी ताइपे के खिलाड़ी चू तिएन चेन ने 42 मिनट में 21-19, 21-16 से हराकर बाहर कर दिया. प्रणय और सिंधू के हारने के साथ फ्रेंच ओपन में भी भारतीय चुनौती समाप्त हो गयी है.

यश भारती पर ‘अपयश’

उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार होती है, यश भारती पुरस्कार बांटे जाते हैं. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इन पुरस्कारों की शुरुआत तब की थी जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. मुलायम के बाद जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो दोबारा यश भारती पुरस्कार बांटने शुरू किये गये. यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश में रहने वाले तमाम क्षेत्रों के उन लोगों को दिया जाता है जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन करते है.

इसके लिये उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग यश भारती के हकदार लोगों का नाम चयन करने की प्रक्रिया के तहत पहले सूचना जारी करता है. यश भारती चाहने वालों के प्रार्थना पत्रों पर विचार कर योग्य लोगों का चयन करता है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यश भारती में मिलने वाली पुरस्कार राशि को बढाकर 11 लाख कर दिया और यश भारती पाने वालों को 50 हजार पेंशन देने की घोषणा भी कर दी. इसके बाद यश भारती के लिये आने वाले नामों की लिस्ट लगातार लंबी होती गई.

हर साल दिये जाने वाला यश भारती सम्मान 2016 में 2 बार दिया गया. पहली बार 50 से उपर और दूसरी बार 70 से उपर लोगों को यश भारती सम्मान दिया गया. यही नहीं जिन लोगों के नामों का चुनाव यश भारती सम्मान पाने वालों में नहीं भी शामिल हुआ, उनको सम्मान समारोह स्थल पर ही सम्मान देने की घोषणा कर दी गई. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की इस कार्यशैली ने यश भारती सम्मान को सवालों के घेरे में खडा कर दिया. जिससे इस सम्मान की गरिमा को तो ठेस लगी ही लोगों को यश भारती पर सवाल उठाने का मौका मिल गया. अक्टूबर माह में बांटे गये यश भारती सम्मान की लिस्ट में शामिल नामों में अतिम समय तक फेरबदल होता रहा. इसके बाद भी 2 लोगों को समारोह स्थल पर ही यश भारती सम्मान दिया गया जिनके नाम इसमें शामिल भी नहीं थे.

कल्चरल फेस्ट संस्था की सचिव और वरिष्ठ नृत्यांगना सुरभि सिंह टण्डन ने कहा ‘यश भारती रेवडी की तरह बांटे जा रहे हैं. तमाम ऐसे लोगों को यश भारती सम्मान से दूर रखा गया, जिन्होंने प्रदेश का मान सम्मान बढाया है. जिनको सम्मान मिला, उनसे कोई परेशानी नहीं, पर सरकार को इस तरह से काम करना चाहिये जिससे यश भारती का सम्मान बना रहे. दूसरे प्रमुख लोगों को भी उनके अधिकार मिल सके.’ अकेली सुरभि ही नहीं इस तरह की बात कहने वाले दूसरे तमाम कलाकार भी है.

यश भारती सम्मान की राजनीतिक अलोचना तो पहली भी होती रही है. मुख्यमंत्री मायावती ने इन अलोचनाओं को समझते हुये अपने कार्यकाल में इसको बंद कर दिया था. मायावती ने कहा था कि यह पुरस्कार सही तरह से नहीं दिया जाता. मायावती के बाद जब सपा की सरकार बनी तो यश भारती फिर से शुरू हो गई. अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख कलाकार भी इसके विरोध में आवाज मुखर करने लगे हैं. जिससे यश भारती सम्मान अपयश का शिकार हो रहा है. बेहतर होगा कि यश भारती सम्मान योग्य लोगो को दिया जाये और इनके चयन में पारदर्शिता का ख्याल रखा जाये.

भारत के साथ व्यापार रोक सकता है पाकिस्तान..!

पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार जारी रखने या रोकने पर विचार कर सकता है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी व्यापार पर नजर रखने वाली संस्था ने ऐलान किया है कि अगर दोनों देशों के बीच कायम संघर्षपूर्ण माहौल में सुधर नहीं होता है तो वह भारत के साथ अपना व्यापार फिलहाल रोक (निलंबित) कर सकता है.

पाकिस्तानी अखबार डॉन में छपी खबर के मुताबिक, द फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (FPCCI) के अध्यक्ष अब्दुल रऊफ आलम ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान तनावपूर्ण स्थिति में भारत के साथ व्यापार बहाल रखने को लेकर किसी तरह से भी बाध्य नहीं है.

आलम ने सार्क चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री की भूमिका की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इसने उनके सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा है, सिवा ECO (इकनॉमिक कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन) और D-8 (डिवेलपिंग-8) देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते को बढ़ावा देने के.

गौरतलब है कि साल 1985 में पाकिस्तान और तुर्की ने मिलकर इकनॉमिक कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन का गठन किया. 1992 तक इसमें सात अन्य देश शामिल हो गए. ये सात देश अफगानिस्तान, अजरबैजान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान हैं. वहीं, डिवेलपिंग 8 या D-8 देशों में पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, मिस्त्र, इंडोनेशिया, ईरान, मलयेशिया, नाइजीरिया और तुर्की शामिल हैं.

दीया जला कर रखना

खुद को पाना है तो

उस के लिए कुछ करना

ये मोहब्बत है

मोहब्बत की तुम खता करना

चांद की रात है

शायद वे बाम पे आए

घर के जीने पे दीया

एक तुम जला कर रखना

कैसी मेहंदी रचे हाथों से

वो दस्तक देगी

रात में घर के किवाड़ों को

तुम खुला रखना

वो भी शबनम की तरह

रात में न रो जाए

अश्क मोती है

रुलाने की खता मत करना

वो जुदा हो के भी

हम से जुदा नहीं होगी

दिल में रहती है

खयालों से मत जुदा करना

वक्त किसकिस को बताए कि

प्यार नेमत है

बांट देने से ये बढ़ती है

मत बचा कर रखना.

 

– राकेश भ्रमर

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