इस दफा लगता नहीं कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज यादव कुनबे की फूट कोई ड्रामा या नूराकुश्ती थी. अखिलेश यादव को गुमान हो आया है कि वे बगैर पिता के भी यूपी फतह कर सकते हैं, तो मुलायम सिंह चिंतित हैं कि बेटे में सब को साथ ले कर चलने की सियासी समझ नहीं है. सार यह है कि पितापुत्र में मतभेद हो चुके हैं और फौरीतौर पर हुए समझौते के तहत दोनों अपनीअपनी चलाते रहेंगे जिस का फायदा बाहरी उठाएंगे और कुछ अंदरूनी लोग भी. विवाद की वजह बाहरी लोग कम, अखिलेश की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं ज्यादा हैं. इस सब के चलते मुलायम सिंह का सियासी वजूद दांव पर लगा है. इसलिए दोनों का आत्मविश्वास डगमगाता दिख रहा है जिस का सीधा असर सपा कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है जो इन दोनों को समझा नहीं पा रहे कि यह पारिवारिक और व्यक्तिगत कलह कहीं का नहीं छोड़ेगी. मनमानी किसी एक की चलेगी, दोनों की नहीं.