story in hindi
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सवाल
मैं एक लड़के से प्यार करने लगी हूं. वह लड़का मुझ से प्यार नहीं करता, यह बात मैं अच्छी तरह जानती और समझती हूं. मैं ने उस लड़के के कारण खानापीना कम कर दिया है, किसी दूसरे लड़के से या अपने किसी और दोस्त से बातचीत नहीं करती.
उस लड़के से एक बार बात करने से ही मेरा मन खिल उठता है, और जब बात न हो तो किसी चीज में मन नहीं लगता.
मैं उस लड़के की दोस्त हूं और दोस्त बन कर रहने में मुझे परेशानी नहीं, लेकिन जब भी वह किसी और लड़की से बात करता है या किसी और का नाम लेता है तो मेरे मन में टीस उठने लगती है. मैं उस की दोस्त बन कर रहना चाहती हूं लेकिन अपने दिल को कैसे संभालूं, समझ नहीं आता.
जवाब
दोस्त से प्यार हो जाना जायज है. आखिर वह आप के साथ रहता है, आप से अपने मन का हाल कहता है, आप का हाल सुनता है और समझता है तो ऐसे में लगता है कि यही व्यक्ति मेरे लिए सब से सही है. पर दोस्ती में यदि एकतरफा प्यार हो तो फिर दोस्ती दांव पर लग जाती है जिसे बचाना बेहद मुश्किल है.
आप को इस दोस्ती और अपने मन की खुशी में से किसी एक को चुनने की जरूरत है और यकीनन आप को खुद को ही चुनना चाहिए.
अगर आप अपने दोस्त से लगातार बात करती रहेंगी, उस के हमेशा करीब रहेंगी और अपने मन की टीस को लगातार बढ़ने देंगी तो आप हमेशा घुटती ही रहेंगी.
आप का दोस्त आप के सामने किसी और लड़की के बारे में बातें करेगा और आप का दिल टूटेगा. यह सही नहीं है. आप अपने दोस्त से दूरी बना कर रखने की कोशिश कीजिए. वह सवाल करे कि आप का व्यवहार क्यों बदल रहा है तो आप उस से कह सकती हैं कि आप अकेले रहना चाहती हैं.
थोड़ी दूरी बनाने से, उस की पलपल की अपडेट न मिलने से, उस के बारे में हर बात न जान पाने से आप को बेचैनी तो होगी लेकिन कुछ दिनों के लिए ही.
कुछ दिनों बाद जब आप अपने दोस्त से दूर रहने की आदी हो जाएंगी तो शायद एक बार फिर खुश रह पाएंगी.
मेरे बचपन का दोस्त रमेश काफी परेशान और उत्तेजित हालत में मुझ से मिलने मेरी दुकान पर आया और अपनी बात कहने के लिए मुझे दुकान से बाहर ले गया. वह नहीं चाहता था कि उस के मुंह से निकला एक शब्द भी कोई दूसरा सुने.
‘‘मैं अच्छी खबर नहीं लाया हूं पर तेरा दोस्त होने के नाते चुप भी नहीं रह सकता,’’ रमेश बेचैनी के साथ बोला.
‘‘खबर क्या है?’’ मेरे भी दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं.
‘‘वंदना भाभी को मैं ने आज शाम नेहरू पार्क में एक आदमी के साथ घूमते देखा है. वह दोनों 1 घंटे से ज्यादा समय तक साथसाथ थे.’’
‘‘इस में परेशान होने वाली क्या बात है?’’ मेरे मन की चिंता काफी कम हो गई पर बेचैनी कायम रही.
‘‘संजीव, मैं ने जो देखा है उसे सुन कर तू गुस्सा बिलकुल मत करना. देख, हम दोनों शांत मन से इस समस्या का हल जरूर निकाल लेंगे. मैं तेरे साथ हूं, मेरे यार,’’ रमेश ने भावुक हो कर मुझे अपनी छाती से लगा लिया.
‘‘तू ने जो देखा है, वह मुझे बता,’’ उस की भावुकता देख मैं, मुसकराना चाहा पर गंभीर बना रहा.
‘‘यार, उस आदमी की नीयत ठीक नहीं है. वह वंदना भाभी पर डोरे डाल रहा है.’’
‘‘ऐसा तू किस आधार पर कह रहा है?’’
‘‘अरे, वह भाभी का हाथ पकड़ कर घूम रहा था. उस के हंसनेबोलने का ढंग अश्लील था…वे दोनों पार्क में प्रेमीप्रेमिका की तरह घूम रहे थे…वह भाभी के साथ चिपका ही जा रहा था.’’
जो व्यक्ति वंदना के साथ पार्क में था, उस के रंगरूप का ब्यौरा मैं खुद रमेश को दे सकता था पर यह काम मैं ने उसे करने दिया.
‘‘क्या तू उस आदमी को पहचानता है?’’ रमेश ने चिंतित लहजे में प्रश्न किया.
मैं ने इनकार में सिर दाएंबाएं हिला कर झूठा जवाब दिया.
‘‘अब क्या करेगा तू?’’
‘‘तू ही सलाह दे,’’ उस की देखादेखी मैं भी उलझन का शिकार बन गया.
‘‘देख संजीव, भाभी के साथ गुस्सा व लड़ाईझगड़ा मत करना. आज घर जा कर उन से पूछताछ कर पहले देख कि वह उस के साथ नेहरू पार्क में होने की बात स्वीकार भी करती हैं या नहीं. अगर दाल में काला होगा… उन के मन में खोट होगा तो वह झूठ का सहारा लेंगी.’’
‘‘अगर उस ने झूठ बोला तो क्या करूं?’’
‘‘कुछ मत करना. इस मामले पर सोचविचार कर के ही कोई कदम उठाएंगे.’’
‘‘ठीक है, पूछताछ के बाद मैं बताता हूं तुझे कि वंदना ने क्या सफाई दी है.’’
‘‘मैं कल मिलता हूं तुझ से.’’
‘‘कल दुकान की छुट्टी है रमेश, परसों आना मेरे पास.’’
रमेश मुझे सांत्वना दे कर चला गया. घर लौटने तक मैं रहरह कर धीरज और वंदना के बारे में विचार करता रहा.
हमारी शादी को 5 साल बीत चुके हैं. वंदना उस समय भी उसी आफिस में काम करती थी जिस में आज कर रही है. धीरज वहां उस का वरिष्ठ सहयोगी था. शादी के बाद जब भी वह आफिस की बातें सुनाती, धीरज का नाम वार्तालाप में अकसर आता रहता.
वंदना मेरे संयुक्त परिवार में बड़ी बहू बन कर आई थी. आफिस जाने वाली बहू से हम दबेंगे नहीं, इस सोच के चलते मेरे मातापिता की उस से शुरू से ही नहीं बनी. उन की देखादेखी मेरा छोटा भाई सौरभ व बहन सविता भी वंदना के खिलाफ हो गए.
सौरभ की शादी डेढ़ साल पहले हुई. उस की पत्नी अर्चना, वंदना से कहीं ज्यादा चुस्त व व्यवहारकुशल थी. वह जल्दी ही सब की चहेती बन गई. वंदना और भी ज्यादा अलगथलग पड़ गई. इस के साथ सब का क्लेश व झगड़ा बढ़ता गया.
अर्चना के आने के बाद वंदना बहुत परेशान रहने लगी. मेरे सामने खूब रोती या मुझ से झगड़ पड़ती.
‘‘आप की पीठ पीछे मेरे साथ बहुत ज्यादा दुर्व्यवहार होता है. मैं इस घर में नहीं रहना चाहती हूं,’’ वंदना ने जब अलग होने की जिद पकड़ी तो मैं बहुत परेशान हो गया.
मुझे वंदना के साथ गुजारने को ज्यादा समय नहीं मिलता था. उस की छुट्टी रविवार को होती और दुकान के बंद होने का दिन सोमवार था. मुझे रात को घर लौटतेलौटते 9 बजे से ज्यादा का समय हो जाता. थका होने के कारण मैं उस की बातें ज्यादा ध्यान से नहीं सुन पाता. इन सब कारणों से हमारे आपसी संबंधों में खटास और खिंचाव बढ़ने लगा.
यही वह समय था जब धीरज ने वंदना के सलाहकार के रूप में उस के दिल में जगह बना ली थी. आफिस में उस से किसी भी समस्या पर हुई चर्चा की जानकारी मुझे वंदना रोज देती. मैं ने साफ महसूस किया कि मेरी तुलना में धीरज की सलाहों को वंदना कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण, सार्थक और सही मानती थी.
‘‘आप का झुकाव अपने घर वालों की तरफ सदा रहेगा जबकि धीरज निष्पक्ष और सटीक सलाह देते हैं. मेरे मन की अशांति दूर कर मेरा हौसला बढ़ाना उन्हें बखूबी आता है,’’ वंदना के इस कथन से मैं भी मन ही मन सहमत था.
घर के झगड़ों से तंग आ कर वंदना ने मायके भाग जाने का मन बनाया तो धीरज ने उसे रोका. घर से अलग होने की वंदना की जिद उसी ने दूर की. उसी की सलाह पर चलते हुए वह घर में ज्यादा शांत व सहज रहने का प्रयास करती थी.
इस में कोई शक नहीं कि धीरज की सलाहें सकारात्मक और वंदना के हित में होतीं. उस के प्रभाव में आने के बाद वंदना में जो बदलाव आया उस का फायदा सभी को हुआ.
पत्नी की जिंदगी में कोई दूसरा पुरुष उस से ज्यादा अहमियत रखे, ये बात किसी भी पति को आसानी से हजम नहीं होगी. मैं वंदना को धीरज से दूर रहने का आदेश देता तो नुकसान अपना ही होता. दूसरी तरफ दोनों के बीच बढ़ती घनिष्ठता का एहसास मुझे वंदना की बातों से होता रहता था और मेरे मन की बेचैनी व जलन बढ़ जाती थी.
धीरज को जाननासमझना मेरे लिए अब जरूरी हो गया. तभी मेरे आग्रह पर एक छुट्टी वाले दिन वंदना और मैं उस के घर पहुंच गए. मेरी तरह उस दिन वंदना भी उस के परिवार के सदस्यों से पहली बार मिली.
धीरज की मां बड़ी बातूनी पर सीधीसादी महिला थीं. उस की पत्नी निर्मला का स्वभाव गंभीर लगा. घर की बेहतरीन साफसफाई व सजावट देख कर मैं ने अंदाजा लगाया कि वह जरूर कुशल गृहिणी होगी.
धीरज का बेटा नीरज 12वीं में और बेटी निशा कालिज में पढ़ते थे. उन्होंने हमारे 3 वर्षीय बेटे सुमित से बड़ी जल्दी दोस्ती कर उस का दिल जीत लिया.
कुल मिला कर हम उन के घर करीब 2 घंटे तक रुके थे. वह वक्त हंसीखुशी के साथ गुजरा. मेरे मन में वंदना व धीरज के घनिष्ठ संबंधों को ले कर खिंचाव न होता तो उस के परिवार से दोस्ती होना बड़ा सुखद लगता.
‘‘तुम्हें धीरज से अपने संबंध इतने ज्यादा नहीं बढ़ाने चाहिए कि लोग गलत मतलब लगाने लगें,’’ अपनी आंतरिक बेचैनी से मजबूर हो कर एक दिन मैं ने उसे सलाह दी.
‘‘लोगों की फिक्र मैं नहीं करती. हां, आप के मन में गलत तरह का शक जड़ें जमा रहा हो तो साफसाफ कहो,’’ वंदना ध्यान से मेरे चेहरे को पढ़ने लगी.
‘‘मुझे तुम पर विश्वास है,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘और इस विश्वास को मैं कभी नहीं तोड़ूंगी,’’ वंदना भावुक हो गई, ‘‘मेरे मानसिक संतुलन को बनाए रखने में धीरज का गहरा योगदान है. मैं उन से बहुत कुछ सीख रही हूं…वह मेरे गुरु भी हैं और मित्र भी. उन के और मेरे संबंध को आप कभी गलत मत समझना, प्लीज.’’
धीरज के कारण वंदना के स्वभाव में जो सुखद बदलाव आए उन्हें देख कर मैं ने धीरेधीरे उन के प्रति नकारात्मक ढंग से सोचना कम कर दिया. अपनी पत्नी के मुंह से हर रोज कई बार उस का नाम सुनना तब मुझे कम परेशान करने लगा.
उस दिन रात को भी वंदना ने खुद ही मुझे बता दिया कि वह धीरज के साथ नेहरू पार्क घूमने गई थी.
‘‘आज किस वजह से परेशान थीं तुम?’’ मैं ने उस से पूछा.
‘‘मैं नहीं, बल्कि धीरज तनाव के शिकार थे,’’ वंदना की आंखों में चिंता के भाव उभरे.
‘‘उन्हें किस बात की टैंशन है?’’
‘‘उन की पत्नी के ई.सी.जी. में गड़बड़ निकली है. शायद दिल का आपरेशन भी करना पड़ जाए. अभी दोनों बच्चे छोटे हैं. फिर उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं है. इन्हीं सब बातों के कारण वह चिंतित और परेशान थे.’’
कुछ देर तक खामोश रहने के बाद वंदना ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और भावुक लहजे में बोली, ‘‘जो काम धीरज हमेशा मेरे साथ करते हैं, वह आज मैं ने किया. मुझ से बातें कर के उन के मन का बोझ हलका हुआ. मैं एक और वादा उन से कर आई हूं.’’
‘‘कैसा वादा?’’
‘‘यही कि इस कठिन समय में मैं उन की आर्थिक सहायता भी करूंगी. मुझे विश्वास है कि आप मेरा वादा झूठा नहीं पड़ने देंगे. हमारे विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने में उन का बड़ा योगदान है. अगर उन्हें 10-20 हजार रुपए देने पड़ें तो आप पीछे नहीं हटेंगे न?’’
वंदना के मनोभावों की कद्र करते हुए मैं ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘अपने गुरुजी के मामलों में तुम्हारा फैसला ही मेरा फैसला है, वंदना. मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं. हमारा एकदूसरे पर विश्वास कभी डगमगाना नहीं चाहिए.’’
अपनी आंखों में कृतज्ञता के भाव पैदा कर के वंदना ने मुझे ‘धन्यवाद’ दिया. मैं ने हाथ फैलाए तो वह फौरन मेरी छाती से आ लगी.
इस समय वंदना को मैं ने अपने हृदय के बहुत करीब महसूस किया. धीरज और उस के दोस्ताना संबंध को ले कर मैं रत्ती भर भी परेशान न था. सच तो यह था कि मैं खुद धीरज को अपने दिल के काफी करीब महसूस कर रहा था.
धीरज को अपना पारिवारिक मित्र बनाने का मन मैं बना चुका था.
2 दिन बाद रमेश परेशान व उत्तेजित अवस्था में मुझ से मिलने पहुंचा. वक्त की नजाकत को महसूस करते हुए मैं ने भी गंभीरता का मुखौटा लगा लिया.
‘‘क्या वंदना भाभी ने उस व्यक्ति के साथ नेहरू पार्क में घूमने जाने की बात तुम्हें खुद बताई, संजीव?’’ रमेश ने मेरे पास बैठते ही धीमी, पर आवेश भरी आवाज में प्रश्न पूछा.
‘‘हां,’’ मैं ने सिर हिलाया.
‘‘अच्छा,’’ वह हैरान हो उठा, ‘‘कौन है वह?’’
‘‘उन का नाम धीरज है और वह वंदना के साथ काम करते हैं.’’
‘‘उस के साथ घूमने जाने का कारण भाभी ने क्या बताया?’’
‘‘किसी मामले में वह परेशान थे. वंदना से सलाह लेना चाहते थे. उस से बातें कर के मन का बोझ हलका कर लिया उन्होंने,’’ मैं ने सत्य को ही अपने जवाब का आधार बनाया.
‘‘मुझे तो वह परेशान या दुखी नहीं, बल्कि एक चालू इनसान लगा है,’’ रमेश भड़क उठा, ‘‘उस ने भाभी का कई बार हाथ पकड़ा… कंधे पर हाथ रख कर बातें कर रहा था. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि भाभी को ले कर उस की नीयत खराब है.’’
‘‘मेरे भाई, तेरा अंदाजा गलत है. वंदना धीरज को अपना शुभचिंतक व अच्छा मित्र मानती है,’’ मैं ने उसे प्यार से समझाया.
‘‘मित्र, पराए पुरुष के साथ शादीशुदा औरत की मित्रता कैसे हो सकती है?’’ उस ने आवेश भरे लहजे में प्रश्न पूछा.
‘‘एक बात का जवाब देगा?’’
‘‘पूछ.’’
‘‘हम दोस्तों में सब से पहले विकास की शादी हुई थी. अनिता भाभी के हम सब लाड़ले देवर थे. उन का हाथ हम ने अनेक बार पकड़ कर उन से अपने दिल की बातें कही होंगी. क्या तब हमारे संबंधों को तुम ने अश्लील व गलत समझा था?’’
‘‘नहीं, क्योंकि हम एकदूसरे के विश्वसनीय थे. हमारे मन में कोई खोट नहीं था,’’ रमेश ने जवाब दिया.
‘‘इस का मतलब कि स्त्रीपुरुष के संबंध को गलत करार देने के लिए हाथ पकड़ना महत्त्वपूर्ण नहीं है, मन में खोट होना जरूरी है?’’
‘‘हां, और तू इस धीरज…’’
‘‘पहले तू मेरी बात पूरी सुन,’’ मैं ने उसे टोका, ‘‘अगर मैं और तुम हाथ पकड़ कर घूमें… या वंदना तेरी पत्नी के साथ हाथ पकड़ कर घूमे…फिल्म देख आए…रेस्तरां में कौफी पी ले तो क्या हमारे और उन के संबंध गलत कहलाएंगे?’’
‘‘नहीं, पर…’’
‘‘पहले मुझे अपनी बात पूरी करने दे. हमारे या हमारी पत्नियों के बीच दोस्ती का संबंध ही तो है. देख, पहले की बात जुदा थी, तब स्त्रियों का पुरुषों के साथ उठनाबैठना नहीं होता था. आज की नारी आफिस जाती है. बाहर के सब काम करती है. इस कारण उस की जानपहचान के पुरुषों का दायरा काफी बड़ा हुआ है. इन पुरुषों में से क्या कोई उस का अच्छा मित्र नहीं बन सकता?’’
‘‘हमें दूसरों की नकल नहीं करनी है, संजीव,’’ मेरे मुकाबले अब रमेश कहीं ज्यादा शांत नजर आने लगा, ‘‘हम ऐसे बीज बोने की इजाजत क्यों दें जिस के कारण कल को कड़वे फल आएं?’’
‘‘मेरे यार, तू भी अगर शांत मन से सोचेगा तो पाएगा कि मामला कतई गंभीर नहीं है. पुरानी धारणाओं व मान्यताओं को एक तरफ कर नए ढंग से और बदल रहे समय को ध्यान में रख कर सोचविचार कर मेरे भाई,’’ मैं ने रमेश का हाथ दोस्ताना अंदाज में अपने हाथों में ले लिया.
कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने सोचपूर्ण लहजे में पूछा, ‘‘अपने दिल की बात कहते हुए जैसे तू ने मेरा हाथ पकड़ लिया, क्या धीरज को भी वंदना भाभी का वैसे ही हाथ पकड़ने का अधिकार है?’’
‘‘बिलकुल है,’’ मैं ने जोर दे कर अपनी राय बताई.
‘‘स्त्रीपुरुष के रिश्ते में आ रहे इस बदलाव को मेरा मन आसानी से स्वीकार नहीं कर रहा है, संजीव,’’ उस ने गहरी सांस खींची.
‘‘क्योंकि तुम भविष्य में उन के बीच किसी अनहोनी की कल्पना कर के डर रहे हो. अब हमें दोस्ती को दोस्ती ही समझना होगा…चाहे वह 2 पुरुषों या 2 स्त्रियों या 1 पुरुष 1 स्त्री के बीच हो. रिश्तों के बदलते स्वरूप को समझ कर हमें स्त्रीपुरुष के संबंध को ले कर अनैतिकता की परिभाषा बदलनी होगी.
‘‘देखो, किसी कुंआरी लड़की के अपने पुरुष प्रेमी से अतीत में बने सैक्स संबंध उसे आज चरित्रहीन नहीं बनाते. शादीशुदा स्त्री का उस के पुरुष मित्र से सैक्स संबंध स्थापित होने का हमारा भय या अंदेशा उन के संबंध को अनैतिकता के दायरे में नहीं ला सकता. मेरी समझ से बदलते समय की यही मांग है. मैं तो वंदना और धीरज के रिश्ते को इसी नजरिए से देखता हूं, दोस्त.’’
मैं ने साफ महसूस किया कि रमेश मेरे तर्क व नजरिए से संतुष्ट नहीं था.
‘‘तेरीमेरी सोच अलगअलग है यार. बस, तू चौकस और होशियार रहना,’’ ऐसी सलाह दे कर रमेश नाराज सा नजर आता दुकान से बाहर चला गया.
मेरा उखड़ा मूड धीरेधीरे ठीक हो गया. बाद में घर पहुंच कर मैं ने वंदना को शांत व प्रसन्न पाया तो मूड पूरी तरह सुधर गया.
हां, उस दिन मैं जरूर चौंका था जब हम रामलाल की दुकान में गए थे और वहां रमेश की पत्नी किसी के हाथों से गोलगप्पे खा रही थी और रमेश मजे में आलूचाट की प्लेट साफ करने में लगा था. यह आदमी कौन था मैं अच्छी तरह जानता था. वह रमेश के मकान में ऊपर चौथी मंजिल पर रहता है और दोनों परिवारों में खासी पहचान है. मैं ने गहरी सांस ली, एक और चेला, गुरु से आगे निकल गया न.
मेरी नजरें पंखे की ओर थीं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैं पंखे से झूल रहा हूं और कमरे के अंदर मेरी पत्नी चीख रही है. धीरेधीरे उस की चीख दूर होती जा रही थी. सालों के बाद आज मुझे उस झुग्गी बस्ती की बहुत याद आ रही थी जहां मैं ने 20-22 साल अपने बच्चों के साथ गुजारे थे.
मेरे पड़ोसी साथी चमनलाल की धुंधली तसवीर आंखों के सामने घूम रही थी. वह मेरी खोली के ठीक सामने आ कर रहने लगा था. उसी दिन से वह मेरा सच्चा यार बन गया था. उस के छोटेबड़े कई बच्चे थे. समय का पंछी तेजी से पंख फैलाए उड़ता जा रहा था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. चमनलाल का बड़ा बेटा जो 20-22 साल का था, बुरी संगत में पड़ कर आवारागर्दी करने लगा. घर में हुड़दंग मचाता. छोटे भाईबहनों को हर समय मारतापीटता.
चमनलाल उसे समझाबुझा कर थक चुका था. मैं ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. जब भी चमनलाल से इस बारे में बात होती तो मैं उसे ही कुसूरवार मान कर लंबाचौड़ा भाषण झाड़ता. शायद उस के जख्म पर मरहम लगाने के बजाय और हरा कर देता.
सुहानी शाम थी. सभी अपनेअपने कामों में मसरूफ थे. तभी पता चला कि चमनलाल की बेटी अपने महल्ले के एक लड़के के साथ भाग गई. चमनलाल हांफताकांपता सा मेरे पास आया और यह खबर सुनाई तो उस के जख्म पर नमक छिड़कते हुए मैं बोला, ‘‘कैसे बाप हो? अपने बच्चों की जरा भी फिक्र नहीं करते. कुछ खोजखबर ली या नहीं? चलो साथ चल कर ढूंढ़ें. कम से कम थाने में तो गुमशुदगी की रिपोर्ट करा ही दें.’’
चमनलाल चुपचाप खड़ा मेरी ओर देखता रहा. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. मैं ने अपनी पत्नी से जब यह कहा तो वह रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘गरीब अपनी बेटी के हाथों में मेहंदी लगाए या उस के अरमानों की अर्थी उठाए…’’
मैं अपनी पत्नी का मुंह देखता रह गया, कुछ बोल नहीं पाया. जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई. लोग तरहतरह के लांछन लगाने लगे. जिस के मुंह में दांत भी नहीं थे, वह भी अफवाहें उड़ाने और चमनलाल को बदनाम कर के मजा लूट रहा था. किसी ने भी एक गरीब लाचार बाप के दर्द को समझने की कोशिश नहीं की. किसी ने आ कर हमदर्दी के दो शब्द नहीं बोले.
चमनलाल अंदर ही अंदर टूट गया था. उस ने चिंताओं के समंदर से निकलने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. गम कम होने के बजाय और बढ़ता गया. घर की सुखशांति छिन गई. रोज शाम को वह नशे की हालत में घर आता और घर से चीखपुकार, गालीगलौज, लड़ाईझगड़ा शुरू हो जाता. चमनलाल जैसा हंसमुख आदमी अब पत्नी को पीटने भी लगा था. वह गंदीगंदी गालियां बकता था.
इधर, मिल में हड़ताल हो गई थी. दूसरे मजदूरों के साथसाथ चमनलाल की गृहस्थी का पत्ता धीरेधीरे पीला होने लगा था. आधी रात को चमनलाल ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मेरे बच्चे सो रहे थे. मैं ने दरवाजा खोला और चमनलाल को बदहवास देखा तो घबरा गया.
‘‘क्या बात है चमनलाल?’’ मैं ने हैरानी से पूछा. चमनलाल उस वक्त बिलकुल भी नशे में नहीं था. वह रोनी सूरत बना कर बोला, ‘‘मेरा बड़ा बेटा दूसरी जात की लड़की को ब्याह लाया है और उसे इसी घर में रखना चाहता है लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं रहने दे सकता.’’
मैं ने कहा, ‘‘उसे कहा नहीं कि दूसरी जगह ले कर रखे?’’ ‘‘नहीं, वह इसी घर में रहना चाहता है. मेरी उस से बहुत देर तक तूतू मैंमैं हो चुकी है,’’ चमनलाल बोला. मैं ने कहा, ‘‘रात में हंगामा खड़ा मत करो. अभी सो जाओ. सुबह देखेंगे.’’
अगली सुबह मैं जरा देर से उठा. बाहर भीड़ जमा थी. मैं हड़बड़ा कर उठा. बाहर का सीन बड़ा भयावह था. चमनलाल की पंखे से लटकी हुई लाश देख कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.
उस के बाद से पुलिस का आनाजाना शुरू हो गया. कभी भी, किसी भी समय आती और लोगों से पूछताछ कर के लौट जाती. चमनलाल की मौत से लोग दुखी थे वहीं पुलिस से तंग आ गए थे. मेरे मन में कई बुरे विचार करवट लेते रहे. क्या चमनलाल ने खुदकुशी की थी या किसी ने उस की… फिर… किस ने…? कई सवाल थे जिन्होंने मेरी नींद चुरा ली थी.
मेरी पत्नी और बच्चे डरेसहमे थे. पुलिस बारबार आती और एक ही सवाल दोहराती. हम लोग इस हरकत से परेशान हो गए थे. इस बेजारी के चलते और बच्चों की जिद पर मैं उस महल्ले को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया और उस कड़वी यादों को भुलाने की कोशिश करने लगा.
लेकिन सालों बाद चमनलाल की याद और उस की रोनी सूरत आंखों के सामने घूमने लगी. उस का दर्द आज मुझे महसूस होने लगा, क्योंकि आज मेरी बड़ी बेटी पड़ोसी के अवारा लड़के के साथ… वह मेरी… नाक कटा गई थी. मैं खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा था. आज मैं चमनलाल की जगह खुद को पंखे से लटका हुआ देख रहा था.
Loksabha Election 2024:रायबरेली लोकसभा सीट को उत्तर प्रदेश ही नहीं, देशभर में कांग्रेस का सब से मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को संसद में पहुंचाने वाली इस सीट से कांग्रेस ने 16 बार जीत हासिल की है. रायबरेली की सीट भाजपा के लिए हमेशा से चुनौती रही है. रायबरेली में 2 बार 1996 और 1998 भाजपा को जीत मिली है.
रायबरेली को गांधी परिवार का हिस्सा बनाने का काम सब से पहले इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने किया. इस के बाद इंदिरा और सोनिया गांधी भी यहां से सांसद बनीं. कांग्रेस यहां इस कदर मजबूत हुई कि 1957 से अब तक मात्र 3 बार लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है. सब से चर्चित चुनाव 1977 का रहा, जब भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े समाजवादी धड़े के नेता राज नारायण ने इंदिरा गांधी को हरा दिया था. सोनिया गांधी पहली बार रायबरेली से 2004 में चुनाव लड़ीं और तब से अब तक वे यहां की सांसद हैं.
रायबरेली में ब्राह्मणों की आबादी 11 फीसदी, ठाकुरों की 9 फीसदी, यादव 7 फीसदी, एससी 34 फीसदी, मुसलिम 6 फीसदी, लोध 6 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी और अन्य आबादी 23 फीसदी है. यहां कुल मतदाताओं की संख्या 7,79,813 है. रायबरेली सीट पर पासी जाति का प्रभाव माना जाता है. इस के अलावा ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय जातियों के लोकल नेता निकाय चुनाव व विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनावों तक प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.
गांधी परिवार के नाम पर यहां सारी गुटबाजी खत्म हो जाती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सब से अधिक चर्चा इस बात को ले कर हो रही है कि रायबरेली से गांधी परिवार चुनाव लड़ेगा या नहीं? पूरे देश की निगाहें इसी पर है. अगर प्रियंका गांधी यहां से चुनाव मैदान में उतरती हैं तो उन की जीत में कोई शकशुबहा नहीं है. सोनिया गांधी पूरे कार्यकाल बीमार रही हैं. अब वे राज्यसभा से सांसद हैं. ऐसे में रायबरेली में उन के खिलाफ कोई माहौल नहीं है जिस का खराब प्रभाव पड़े.
प्रिंयका गांधी ने पिछले चुनाव में और पहले से भी यहां सोनिया गांधी का चुनाव संचालन करती रही हैं. ऐसे में वे क्षेत्र की जनता के लिए अनजान नहीं हैं. रायबरेली की जनता के बीच लोकप्रिय हैं. रायबरेली ही नहीं, अमेठी में भी प्रियंका चुनाव संचालन करती रही हैं. दोनों ही लोकसभा सीटों पर वे प्रभावी हैं. अगर प्रियंका गांधी चुनाव नहीं लड़तीं तब कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकती है. प्रियंका गांधी अभी तक चुनावी राजनीति का हिस्सा नहीं हैं. वे राहुल गांधी और सोनिया गांधी का चुनाव प्रबंध संभालती रही हैं.
प्रियंका ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आधे उत्तर प्रदेश को संभाला और 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी महासचिव का काम देखा. प्रियंका गांधी कांग्रेस में क्राइसेस मैनेजमैंट का काम देखती हैं. चाहे संकट मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश कहीं का हो, बिगड़े काम और संबंध बनाने का काम प्रिंयका ही करती हैं. कांग्रेस के बड़े फैसले परिवार के 3 लोग मिल कर ही लेते हैं. घर के बाहर किसी तरह का आपसी विवाद नहीं दिखता. राहुल की सब से बड़ी ताकत वे हैं. ऐसे में वे चुनावी राजनीति की जगह पर पार्टी संगठन में ही काम करना पसंद करती हैं.
प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद अगर वे जीत गईं तो संसद में एक ही परिवार के 3 सदस्य हो जाएंगे जो आलोचना को हवा देने का काम करेगा. दूसरे, पार्टी के अंदर ही एक अलग पावर सैंटर बनने लगेगा. इन से बचने के लिए प्रियंका गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. पार्टी अगर फैसला करती है तो प्रिंयका गांधी उस फैसले का सम्मान करेंगी. ऐसा भी नहीं है कि रायबरेली की जीत का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश की सीटों पर पड़ेगा कि जिस से कांग्रेस 17 में से 10 सीटें जीत जाएगी. अगर प्रियंका हार गईं तो आलोचना करने वालों को मौका मिल जाएगा.
अमेठी निर्वाचन क्षेत्र 1967 में बनाया गया था. इस के पहले सांसद कांग्रेस के विद्या धर बाजपेयी थे, जो 1967 में चुने गए थे. 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह सांसद बने. 1980 में कांग्रेस के संजय गांधी ने रवींद्र प्रताप सिंह को हराया था. उसी साल संयज गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस के कारण 1981 में उपचुनाव कराना पड़ा जिसे उन के भाई राजीव गांधी ने जीता. राजीव गांधी 1991 तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे. लिबरेशन टाइगर्स औफ तमिल ईलम (एलटीटीई) द्वारा राजीव गांधी की हत्या किए जाने के के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने जीत हासिल की.
1996 में सतीश शर्मा फिर से निर्वाचित हुए. 1998 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के संजय सिंह ने सतीश शर्मा को हराया. राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने 1999 से 2004 तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. उन के बेटे राहुल गांधी 2004 में चुने गए. वे 1980 के बाद से इस सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले नेहरूगांधी परिवार के चौथे सांसद थे. 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को चुनाव हरा दिया. भाजपा ने यह मान लिया कि कांग्रेस का किला ध्वस्त कर दिया.
अमेठी लोकसभा में भी गांधीनेहरू परिवार हर चुनावी समीकरण से ऊपर है. दरअसल अमेठी और रायबरेली का मतदाता पूरे प्रदेश के मतदाता से अलग सोचता है. उसे लगता है कि वह प्रधानमंत्री या उस स्तर के नेता को वोट दे रहा है. इन दोनों क्षेत्रों के मतदाताओं में एक अलग भाव दिखता है. 2019 में स्मृति ईरानी के जीतने के बाद यह भाव जनता में नहीं बन पा रहा है. ऐसे में उस की पहली पसंद राहुल गांधी ही हैं.
भाजपा ने राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ स्मृति ईरानी का प्रयोग तो किया लेकिन उन को कोई अलग अधिकार नहीं दिया. वे संसद में या संसद परिसर में ही बोलती दिखती हैं. ऐसे में अमेठी की जनता बदलाव चाहती है. उसे अपना वीवीआईपी स्तर वापस चाहिए. इस कारण राहुल गांधी की मांग वहां है वे चुनाव जीत सकते हैं.
राहुल गांधी सपाट तरह से सोचते हैं. उन को लगता है कि वे वायनाड और अमेठी दोनों चुनाव जीत गए तो कहां से इस्तीफा देंगे, यह सरल काम नहीं होगा. अमेठी उन का पुराना क्षेत्र है. उस से लगाव है. वायनाड ने राहुल गांधी को उस समय चुनाव जितवाया जब अमेठी से चुनाव हार गए. राहुल गांधी के लिए वायनाड और अमेठी से चुनाव जितना सरल है लेकिन किसी एक चुनाव क्षेत्र को छोड़ना मुश्किल होगा. यही दुविधा उन को फैसले लेने से रोक रही है. कांग्रेस को दक्षिण भारत में अधिक स्कोप दिख रहा है. ऐसे में वायनाड राहुल गांधी के लिए खास है.
अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय वित्तीय और व्यावसायिक समाचार वैबसाइट बिजनैस इनसाइडर के मुताबिक साल 2021 में पोर्न फिल्मों का कारोबार 7.4 लाख करोड़ रुपए का था जिस के अब कई गुना बढ़ जाने की उम्मीद है. उस वक्त दुनियाभर में ढाई करोड़ से भी ज्यादा पोर्न वैबसाइट्स वजूद में थीं. जाहिर हैं इन की तादाद भी बढ़ी होगी.
इन दिनों हर कोई पोर्न फिल्में देख रहा है. 4 साल पहले के एक आंकड़े की मानें तो कुल वैब ट्रैफिक में पोर्न साइट्स की भागीदारी 30 फीसदी थी. अकेले अमेरिका में नियमित पोर्न साइट्स देखने वालों की तादाद 5 करोड़ के लगभग है, दूसरे नंबर पर यूके और तीसरे नंबर पर भारत है जहां पोर्न फिल्में इफरात से देखी जाती हैं.
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कम हैरानी की बात नहीं कि भारत में 30 फीसदी से भी ज्यादा महिलाएं पोर्न फ़िल्में देखती हैं. हालांकि हर उम्र के लोग पोर्न देखते हैं लेकिन सब से ज्यादा 25 से ले कर 34 साल के युवा पोर्न फिल्में देखते हैं. इन की संख्या 35 फीसदी है जबकि 18 से 24 साल तक के युवाओं की भागीदारी 25 फीसदी के लगभग है. 35 से ले कर 44 साल तक के 17 फीसदी लोग पोर्न देखते हैं. यानी, 33 फीसदी के लगभग उम्रदराज लोग भी पोर्न फिल्मों का शौक फरमाते हैं.
अरबोंखरबों के इस कारोबार की गंगा में अगर प्रज्वल रेवन्ना भी हाथ धो रहा था तो इकलौती हैरानी इस बात की ज्यादा है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा का पोता है और कर्नाटक की हासन लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहा था. साल 2019 के चुनाव में उस ने इसी सीट से जनता दल एस के उम्मीदवार की हैसियत से भाजपा के ए मंजू को 1.5 लाख के लगभग वोटों से शिकस्त देते अपने दादा की सीट पर कब्जा जमाए रखा था.
2014 में एच डी देवगौड़ा ने भी ए मंजू को ही एक लाख वोटों से हराया था जो उस वक्त कांग्रेस में हुआ करते थे. इस बार जनता दल एस और भाजपा के गठबंधन के तहत यह सीट जनता दल एस के खाते में आई थी जिस पर प्रज्वल का मुकाबला कांग्रेस के श्रेयस पटेल से है. इस सीट पर 26 अप्रैल को वोटिंग के बाद उम्मीदवार और कार्यकर्ता चुनावी थकान पूरी तरह उतार भी नहीं पाए थे कि सनसनाती खबर आई कि प्रज्वल पोर्न फिल्मों का न केवल डायरैक्टर-प्रोडूसर है बल्कि ऐक्टर भी है. यह सिलसिला हालांकि 25 अप्रैल की शाम से ही शुरू हो गया था लेकिन इस ने तूल वोटिंग के बाद ज्यादा पकड़ा.
33 वर्षीय प्रज्वल साफ दिख रहा है कि कोई मामूली हस्ती नहीं है जिसे पैसों की खातिर या दूसरी किसी मजबूरी के चलते पोर्न फिल्मों के कारोबार में कूदना पड़ा हो. इस युवा मैकेनिकल इंजीनियर के पिता विधायक हैं और चाचा एच डी कुमारस्वामी का नाम किसी पहचान का मुहताज नहीं जो कुछ अरसा पहले तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. तो फिर क्यों प्रज्वल इस धंधे में था, यह गुत्थी तो मामले की पूरी जांच के बाद एक हद तक ही सुलझ पाएगी. हालांकि पोर्न फिल्मों से होने वाला तगड़ा मुनाफा ही इस की पहली वजह लगती है लेकिन प्रज्वल में किसी कौम्प्लैक्स या सैक्सुअल फ्रस्ट्रेशन के होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
दूसरे चरण की वोटिंग के एक दिन पहले यानी 25 अप्रैल की शाम से हासन सहित कर्नाटक में कुछ वीडियो क्लिप्स वायरल होना शुरू हुई थीं जो पोर्न थीं और उन में प्रज्वल साफ तौर पर पहचाना जा सकता था. मामला पूरी तरह खुल कर सामने आ पाता, इस के पहले ही प्रज्वल विदेश भाग गया जिस से लोगों का शक यकीन में बदल गया कि प्रज्वल दोषी है. जैसे ही उस के वीडियो वायरल होना शुरू हुए तो पुलिस हरकत में आ गई. ये वीडियो पेनड्राइव के जरिए भी बांटे गए थे.
पुलिस ने इन्वैस्टीगेशन शुरू किया ही था कि तभी कर्नाटक राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागलक्ष्मी चौधरी ने भी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और आला पुलिस अफसरों को इस बाबत खत लिख डाला क्योंकि मामला महिलाओं के यौन शोषण से भी जुड़ा हुआ था. नागलक्ष्मी ने अपनी चिट्ठी में मांग की थी कि हासन में महिलाओं के अश्लील वीडियो पेनड्राइव में बांटे जा रहे हैं. इन्हें सोशल मीडिया पर भी शेयर किया गया जो बहुत चिंताजनक है. इस शिकायत की बिना पर कर्नाटक सरकार ने जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया, तब तक प्रज्वल के बारे में खुलासा हो चुका था कि वह यूरोप की तरफ भाग गया है.
मामला चूंकि हाई प्रोफाइल था और एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता हुआ था इसलिए हल्ला भी खूब मचा और राजनीति भी गरमाई. कांग्रेस ने जनता दल एस से ज्यादा भाजपा को घेरा कि वह किस मुंह से औरतों के हक और स्वाभिमान की बात किया करती है जबकि उसे यह मालूम था कि प्रज्वल इस गंदे धंधे में लिप्त है. वह बलात्कारी है जिसे भाजपा ने गले लगाया.
एक हद तक इस बात में दम भी था और सचाई भी थी क्योंकि इन वीडियो क्लिप्स की गूंज जून 2023 में भी सुनाई दी थी. तब भी ये सार्वजनिक हुए थे लेकिन तब प्रज्वल ने एकदो नहीं बल्कि 86 मीडिया संस्थानों और 3 लोगों पर अदालत में मुकदमा दायर किया था. उस ने इन वीडियोज को एडिटेड बताया था और इन के किसी भी तरह के सार्वजनिक होने देने पर रोक लगाने की मांग की थी. इन 3 लोगों में से एक उस का ड्राइवर कार्तिक भी शामिल था जिसे फ़िल्मी तर्ज पर देवगौड़ा परिवार घर के सदस्य की तरह ट्रीट करता था.
धीरेधीरे यह कहानी ब्लैकमेलिंग और राजनीतिक होती गई. कार्तिक के हाथ प्रज्वल के ये पोर्न वीडियो लगे तो उस ने अपने छोटे मालिक को डरानाधमकाना शुरू कर दिया. गुलशन नंदा और सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यासों की तरह इस में सस्पैंस, थ्रिल, सैक्स और ब्लैकमेलिंग सब होता रहा लेकिन बहुत ज्यादा हल्ला नहीं मचा क्योंकि परदे के पीछे सौदेबाजी और सैटलमैंट का खेल भी चल रहा था.
कहानी में एक और उपन्यासी मोड़ तब आया जब दिसंबर 2023 में कार्तिक ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस की पत्नी को प्रज्वल ने किडनैप कर लिया है और एवज में वे उस की 13 एकड़ जमीन की मांग कर रहे हैं. ‘जर, जोरू और जमीन झगड़े की जड़ तीन’ की तर्ज पर यह लड़ाई बहुत ज्यादा परवान नहीं चढ़ पा रही थी क्योंकि प्रज्वल कोई ऐरागैरा, उठाईगिरा नहीं था जिसे पुलिस एक मामूली ड्राइवर की शिकायत पर थाने घसीट ले जाती. वह खुद सांसद था, उस के पिता विधायक, चाचा राज्य के मुख्यमंत्री और दादा देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, इसलिए बिसात की दूसरी तरफ किसी पेशेवर खिलाड़ी का होना जरूरी था.
यह शर्त या जरूरत भी जल्द पूरी हो गई. बड़े नाटकीय तरीके से इस ड्रामे में एक भाजपा नेता देवराजे गौड़ा की एंट्री हुई. कार्तिक ने उन्हें वह पेनड्राइव सौंप दी जिस में प्रज्वल की रासलीलाएं कैद थीं. देवराजे ने इस पेनड्राइव के हवाले से कन्नड़ में आलाकमान को चिट्ठी भी लिखी थी कि प्रज्वल को टिकट मिला तो किरकिरी होगी. लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि मामला जनता दल एस का था. अब उम्मीद से ज्यादा किरकिरी हो भी रही है जिस का भाजपा जवाब नहीं दे पा रही है कि क्यों उस ने जानतेसमझते बलात्कारी का साथ दिया.
इधर, देवराजे गौड़ा ने देवगौड़ा परिवार से अपना पुराना सियासी हिसाब चुकता कर लिया. उन्हें प्रज्वल के पिता एच डी रेवन्ना ने विधानसभा चुनाव में नरसीपुर सीट से हराते उन पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की थी.
बाद में सब रूटीनी और उबाऊ ढंग से संपन्न हुआ. प्रज्वल को पार्टी से सस्पैंड कर दिया गया. हर किसी ने कहा कि वह अगर दोषी है तो जांच होगी और उसे सजा भी होगी वगैरहवगैरह. लेकिन किसी नेता का पोर्न वीडियो उजागर होने का यह पहला या आखिरी मामला नहीं है. ऐसे रंगीनमिजाज और शौकीन नेताओं की लिस्ट में कई छोटेबड़े नाम शामिल हैं, मसलन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे धाकड़ नेता नारायण दत्त तिवारी जिन का पोर्न वीडियो पब्लिक हुआ था तो लोग इस बात पर ज्यादा हैरान हुए थे कि एक इतना बूढ़ा आदमी भी इतनी दमदारी से सैक्स कर सकता है.
ऐसे ही एक बुजुर्ग थे विदिशा, मध्यप्रदेश के 79 वर्षीय राघवजी भाई जो मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री थे और बचपन से ही आरएसएस से जुड़ गए थे. साल 2013 में उन का भी एक पोर्न वीडियो उजागर हुआ था जिस में वे अपने नौकर राजकुमार के साथ यौनक्रियाएं करते नजर आ रहे थे. सालोंसाल राजकुमार राघवजी की सैक्स जरूरतें पूरी करता रहा लेकिन बाद में उसे लगा कि इस की कीमत ज्यादा मिलनी चाहिए तो उस ने राघवजी को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. जब राघवजी आजिज आ गए तो उन्होंने भी कह दिया कि जा, जो करना हो, सो कर ले.
इस पर झल्लाए राजकुमार ने थाने में रिपोर्ट लिखा दी. हल्ला मचा, राघवजी को मंत्री पद से हाथ ढोना पड़ा, उन की खूब बदनामी हुई लेकिन पिछले ही साल अदालत से वे बरी हो गए क्योंकि राजकुमार अपने लगाए आरोप साबित नहीं कर पाया था. इन दिनों राघवजी भाई विदिशा से भाजपा उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं.
सैक्स स्कैंडल के चलते 2013 में ही राजस्थान के बाबूलाल नागर को भी मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था जिन पर एक महिला ने आरोप लगाया था कि उन्होंने बिस्तर गरम करने के एवज में सरकारी नौकरी देने का लालच उसे दिया था. नौकरी तो एक तरफ गई, हद तो तब हो गई जब पीड़िता के मुताबिक बाबूलाल उसे ही पोर्न वीडियो की बिना पर मुंह बंद रखने की धमकी देने लगे थे. लिहाजा वह पुलिस में गई.
इस मामले के एक साल पहले 2012 में नामी वकील और कांग्रेसी सांसद अभिषेक मनु सिंघवी भी सैक्स स्कैंडल से घिर गए थे. बात दिलचस्प और हैरानी की इस लिहाज से थी कि सिंघवी सुप्रीम कोर्ट के अपने ही चैंबर में यौनक्रिया करते वीडियो में नजर आ रहे थे. प्रज्वल मामले की तरह तब भी घर का भेदी उन का ड्राइवर मुकेश लाल निकला था जिस ने अपने साहब या मालिक, कुछ भी कह लें, की पोर्न वीडियो बनाई थी और उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था. बदनामी और नुकसान दोनों इस दिग्गज वकील को भी झेलना पड़ा था. उन्हें कांग्रेस प्रवक्ता पद के साथसाथ स्थायी संसदीय कमेटी के चेयरमेन की कुरसी छोड़नी पड़ी थी.
लिस्ट बहुत लंबी है जिस में बड़े और चर्चित नामों में से एक हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा का भी है जिन पर एक एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा का भी है. कांडा के यौनशोषण का शिकार रही दीपिका ने साल 2012 में आत्महत्या कर ली थी जिस के चलते गोपाल कांडा को भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
हालांकि 2014 में राघवजी भाई और दूसरों की तरह वे भी अदालत से बरी हो गए थे. दामन में दाग तो 2011 में राजस्थान के कांग्रेसी नेता महिपाल मेदरना पर भी लगा था. इस मामले में भंवरी बाई नाम की महिला और महिपाल का यौनक्रियाएं करता वीडियो वायरल हुआ था जिस के चलते उन्हें भी अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था.
भाजपा नेता संजय जोशी को भी दुश्वारियां झेलनी पड़ी थीं तो 2003 में उत्तरप्रदेश के कद्दावर ब्राह्मण नेता अमरमणि त्रिपाठी को भी मायावती मंत्रिमंडल से न केवल इस्तीफा देना पड़ा था बल्कि अपनी प्रेमिका की हत्या के आरोप में सजा भी भुगतनी पड़ी थी. उन पर मधुमति शुक्ला नाम की 24 वर्षीया बेइंतिहा खूबसूरत कवयित्री की हत्या का आरोप लगा था.
इस मामले में मधुमति प्रैगनैंट हो गई थी और अमरमणि के बारबार कहने पर भी एबौर्शन नहीं करा रही थी जिस की साल 2003 में हत्या कर दी गई थी. उत्तराखंड के दिग्गज नेता हरक सिंह रावत पर भी असम की एक महिला इंदिरा देवरा उर्फ़ जेनी ने यौनशोषण और गर्भवती कर देने का आरोप लगाया था लेकिन वह कोर्ट में आरोप साबित नहीं कर पाई थी जिस से रावत बरी हो गए थे.
इस से काफी पहले 1997 में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे और एक डांसर बरखा पाटिल के सैक्स किस्से चटखारे ले कर सुने और सुनाए जाते थे. तब लेकिन सोशल मीडिया आज जितना बड़ा और आम नहीं था. जो भी सामने आता था वह प्रिंट मीडिया के जरिए फोटोग्राफ्स की शक्ल में ही आता था. आपातकाल के बाद जब बाबू जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय हो गया था तब मेनका गांधी ने अपनी मैगजीन सूर्या में उन के बेटे सुरेश के एक महिला के साथ अंतरंग फोटो छाप दिए थे जिस से जगजीवन राम को पीएम पद की दावेदारी से पीछे हटना पड़ा था.
अब प्रज्वल रेवन्ना जैसे सैक्स कांड और पोर्न वीडियो बेहद आम हो चले हैं जिन में कई नेताओं के नाम शुमार हैं. इन पर अब लोग ज्यादा ध्यान भी नहीं देते शायद इसलिए कि उन्होंने एक कुदरती जरूरत के तौर पर स्वीकार लिया है. अब पतिपत्नी और प्रेमीप्रेमिका साथ बैठ कर पोर्न देखते हैं और इस में कोई हर्ज उन्हें नजर नहीं आता है तो प्रज्वल सिर्फ अपनी नौकरानी के यौनशोषण का ही मुजरिम ठहराया जा सकता है, वह भी उस सूरत में जब पीड़िता आरोप साबित कर पाए तो.
खुद भाजपा आलाकमान गिरते मतदान को ले कर किस तरह चिंतित है, यह खीझ उस के एक बयान से समझ में भी आती है जिस में कहा गया है कि कम मतदान का मतलब यह भी हो सकता है कि जो मतदाता विपक्ष और उस की दिशा व नेतृत्व की कमी से निराश हैं वे वोट देने के लिए नहीं जा रहे हैं. कम मतदान का यह मतलब कतई नहीं है कि लोग सत्तारूढ़ दल के प्रति उदासीन हैं.
पर हकीकत यह है कि भाजपा आलाकमान ने खुलेतौर पर हिटलरी फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं. भाजपा की राज्य इकाइयों से कम मतदान के बाबत लिखित में सफाई मांगी गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो मध्यप्रदेश के राजगढ़ से यह एलान कर दिया है कि जिन मंत्रियों के इलाकों से मतदान कम होगा उन से मंत्री पद छीन लिया जाएगा और जो विधायक ज्यादा मतदान कराएंगे उन्हें मंत्री पद से नवाजा जाएगा.
भाजपा की बड़ी चिंता हिंदीभाषी राज्य उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्यप्रदेश ज्यादा हैं. इन चारों ही राज्यों में मतदान प्रतिशत गिरा है. उत्तरप्रदेश में दूसरे चरण में केवल 54.85 फीसदी मतदान हुआ जबकि 2019 में 62 फीसदी वोटिंग हुई थी. राजस्थान में भी 2019 के मुकाबले 5 फीसदी कम वोटिंग हुई और मध्यप्रदेश में भी 8 फीसदी के लगभग मतदान कम हुआ.
भाजपाई चिंता की दूसरी बड़ी वजह महिलाओं की मतदान में कम होती दिलचस्पी है. मध्यप्रदेश में महिला मतदान में 11 फीसदी की अहम गिरावट दर्ज हुई है. लगभग यही आंकड़ा दूसरे हिंदीभाषी राज्यों का है, जहां से भाजपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी लेकिन अब उस का भरोसा डगमगाने लगा है. यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के बाद एक इंग्लिश अखबार को दिए स्पैशल इंटरव्यू से भी साबित होती है कि भाजपा अब तेजी से मुद्दे बदलने को मजबूर हो गई है.
एक तरह से सियासी हलकों में इसे इंडिया गठबंधन और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कामयाबी ही माना जा रहा है कि वे जो भी कहते हैं उस के चंद घंटों के भीतर ही भगवा गैंग उस पर स्पष्टीकरण देना शुरू कर देता है. राहुल गांधी ने कहा कि भाजपा आरक्षण हटाने की साजिश कर रही है तो पूरी भाजपा लाइन में लगे स्कूली बच्चों की तरह मिमियाती नजर आई कि, यह गलत है, हम तो आरक्षण के प्रबल पक्षधर हैं. लोग भरोसा करें, इस के लिए यह बात आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भी कहनी पड़ी. यह और बात है कि इस से दलित, आदिवासियों का भरोसा नहीं बढ़ा, उलटे, शक और गहराने लगा.
राहुल गांधी जब यह आरोप लगाते हैं कि भाजपा संविधान बदल देगी तो भाजपा संविधान को गीता, कुरान और बाइबिल बताने लगती है. विपक्ष के हमलों पर जितनी सफाई भाजपा देती जा रही है उतनी ही घिरती भी जा रही थी, इसलिए नरेंद्र मोदी ने पहले राम-श्याम किया और फिर कोई चारा न देख सीधे हिंदूमुसलिम पर उतर आए. बांसवाड़ा में दिए उन के आधेअधूरे और तोड़मरोड बयानों से भी बात बनती नजर नहीं आई तो वे सीधे एक इंग्लिश दैनिक अखबार के सामने यह कहते नजर आए-
– तीसरे कार्यकाल में समान नागरिक संहिता और वन नेशन वन इलैक्शन पर हम ठोस कदम उठाएंगे.
– हम 400 सीटें जीतना चाहते हैं जिस से कि एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारों की रक्षा हो सके और उन का आरक्षण व अधिकार छीन कर अपने वोटबैंक को बढ़ाने की विपक्षी दलों की नापाक साजिशें नाकाम हो जाएं.
आखिरी महत्त्वपूर्ण बात महिलाओं को लुभाती हुई थी कि कांग्रेस हर घर में छापा मारेगी. वह किसानों की जमीन और महिलाओं के गहनों पर धावा बोलेगी. इस के बाद वे शौचालय और उज्ज्वला योजना की महिमा भी गाते नजर आए.
400 सीटें जीत कर दलित आदिवासियों और पिछड़ों के हक व उन के रिजर्वेशन को सलामत रखने की बात विकट की विरोधाभाषी और हास्यास्पद है जिस के जरिए नरेंद्र मोदी चुनाव को पूरी तरह हिंदू बनाम मुसलमान बना देने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं. इन तीनों तबकों के लोगों ने अयोध्या के राम मंदिर से न कोई वास्ता रखा है और न ही कोई दिलचस्पी दिखाई है क्योंकि यह एक क्या, तमाम मंदिर ऊंची जाति वालों के लिए होते हैं. छोटी जाति वालों ने खुद अपने छोटेछोटे देवीदेवताओं के छोटेछोटे मंदिर गलीमहल्लों में बना लिए हैं. जब वे धर्म और मंदिरों के नाम पर घेरे में नहीं आ रहे तो अब उन्हें यह डर दिखा कर उन के हिंदू होने का एहसास कराया जा रहा है कि भाजपा को वोट नहीं दिया तो आरक्षण न केवल छिन जाएगा बल्कि यह मुसलमानों को दे दिया जाएगा.
लेकिन दलित, आदिवासी, पिछड़ा भाजपा पर विश्वास नहीं कर रहा है क्योंकि 400 सीटें जीत कर संविधान बदलने की बात कर्नाटक के अनंत कुमार हेगड़े सहित भाजपा के ही 4 सांसदों और खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डाक्टर विवेक ओबेराय ने कही थी. दूसरे, यह हर कोई जानता है कि आरक्षण कांग्रेस और डाक्टर भीम राव आंबेडकर की देन है जिसे ले कर आज तक देशभर के सवर्ण रोते-झींकते कांग्रेस को कोसते रहते हैं. अब ये सवर्ण असमंजस में हैं कि भाजपा को कोसें या न. चूंकि धार्मिक पार्टी और सरकार है, इसलिए कोसने में कोफ़्त होती है, सो, बीच का रास्ता यह है कि वोट ही न दिया जाए.
यही अघोषित बहिष्कार भाजपा के गले की हड्डी बन गया है जिस का एक समीकरण यह भी बनता है कि भाजपा का कोर वोटर ही बूथ तक नहीं जा रहा, इसलिए वोटिंग कम हो रही है और जो वोट डालने जा रहे हैं वे भाजपा के कोर वोटर नहीं हैं, इसलिए उस पर सवर्णों जैसा अंधा यकीन नहीं कर पा रहे, खासतौर से मोदीभक्त महिलाएं जिन का मोह भगवा से भंग हो रहा है.
यूसीसी से आम हिंदुओं को क्या हासिल होगा, यह भी खुद कट्टर भाजपाइयों को समझ नहीं आ रहा है कि इस से मुसलमानों के लिए तो कई दिक्कतें खड़ी होंगी लेकिन जिन दिक्कतों से हम जूझ रहे हैं उन का क्या होगा. जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 के बेअसर होने से हिंदुओं को किसी भी तरह का फायदा नहीं हुआ है. हां, कुछ भक्तों को जरूर यह आत्मिक सुख मिला कि मुसलमानों से कुछ छिना.
यही बात तीन तलाक पर लागू होती है जिस से हिंदू महिलाओं को कुछ हासिल नहीं हुआ है. उन के तलाक के मसले सालोंसाल अदालत में चलते हैं, इस दौरान वे एक अभिशप्त सामाजिक जीवन जीती हैं. इसे दूर करने के लिए भाजपा कोई कानून न तो कभी बना पाई और न ही अभी कोई पहल कर रही.
हिंदू महिलाएं सब से ज्यादा दहेज और घरेलू हिंसा व प्रताड़ना का शिकार होती हैं. यूसीसी क्या उन्हें इस से छुटकारा दिला पाएगा, इस सवाल का जवाब तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से महिलाओं को मांगना ही चाहिए.
साल 2022 में 6.4 हजार युवतियां दहेज की बलि चढ़ी थीं यानी मार दी गई थीं. यानी, घोषित तौर पर एक दिन में 20 दहेज हत्याए होती हैं. दहेज के लिए तो हर तीसरी महिला प्रताड़ना का शिकार होती है जिन में से 90 फीसदी घुटघुट कर जीती हैं. वे कहीं शिकवाशिकायत ही नहीं करतीं क्योंकि इस से घर टूटने के डर के साथसाथ खुद के पारिवारिक व सामाजिक तौर पर बहिष्कृत होने और अकेले पड़ जाने की सजा सिर पर खड़ी रहती है.
जो महिलाएं अदालत की चौखट तक जाती हैं वे भी सालोंसाल उस पर एड़ियां रगड़ती रहती हैं. इधर मंदिर की चौखट पर भगवान इन की नहीं सुनता तो अदालत में जज साहब और बाबू लोग इन्हें तारीख के नाम पर नचाते रहते हैं जिस से वे थकहार कर न्याय के लिए लड़ने की हिम्मत छोड़ दें. इन दोनों सहित महिलाओं की दूसरी अधिकतर मुसीबतें धर्म की देन हैं, इसलिए किसी की हिम्मत इस बाबत पहल करने की नहीं पड़ती. मुसलिम महिलाओं को एक कुरीति से मुक्त कराने का स्वागत उसी स्थिति में किया जा सकता है जब हिंदू महिलाओं को भी उन की दुश्वारियों से आजाद कराने की पहल कोई सरकार करे.
अब चूंकि महिलाओं को समझ आने लगा है कि 10 साल मोदी सरकार महिलाओं के नाम पर ढिंढोरा ही पीटती रही है, जमीनी तौर पर कुछ नहीं हुआ है तो वे वोट डालने नहीं जा रहीं जिस के बाबत गरमी सहित तरहतरह के बहाने बनाए जा रहे हैं. वोट से सामाजिक बदहाली सुधरने की उम्मीद एक सपना ही है क्योंकि मोदी सरकार तो अपने राजनीतिक वादों पर भी खरी नहीं उतरी है.
पीएम उज्ज्वला योजना इस की बड़ी मिसाल है जिस की बाबत हर कभी हर कहीं से खबरें आती रहती हैं कि जिन महिलाओं को गैस सिलैंडर दिए गए उन में से आधे से ज्यादा के पास उस में गैस भरवाने के लिए पैसे ही नहीं. नतीजतन, वे चूल्हे पर ही खाना बना रही हैं और धुएं से मुक्ति भाजपा के विज्ञापनों में ही शोभा देती है.
खुद पैट्रोलियम और प्राक्रतिक गैस राज्यमंत्री रामेश्वर तेली राज्यसभा में लिखित में मान चुके हैं कि उज्ज्वला योजना के तहत 4.13 करोड़ लाभार्थियों ने एक बार भी रसोई गैस सिलैंडर को रीफिल नहीं कराया है. और तो और, 7.67 करोड लाभार्थियों ने एक बार ही सिलैंडर भरवाया है. यानी, कम से कम 12 करोड़ लोगों की आमदनी इतनी भी नहीं है कि वे गैस सिलैंडर भरवा सकें. तो जाहिर है कि ये यूसीसी, विश्वगुरु, तीसरी बड़ी व्यवस्था जैसे हजारों दावे उसी तरह खोखले हैं जिस तरह आज भी महिलाएं शौच के लिए खुले में जाने को मजबूर हैं.
यूनिसेफ और डब्लूएचओ की ताजा रिपोर्ट व आंकड़ों के मुताबिक भारत की ग्रामीण आबादी का 6ठा हिस्सा अभी भी खुले में शौच के लिए मजबूर है. चुनावी दावों की पोल तो हर कहीं खुली पड़ी है. भोपाल के प्रैस कौम्प्लैक्स के पास के 2 शौचालयों में अब आवारा कुत्तों का डेरा है. शहर से दूर किसी भी दिशा में चले जाएं, तो ये शौचालय टूटफूट चुके हैं जिन में मवेशी आराम फरमाते दिख जाएंगे या शाम को शराबी और जुआरी कसीनो व बार की तरह इन में बैठे नजर आएंगे. ऐसे में महिलाएं क्यों वोट डालें, यह न केवल भाजपा को बल्कि सभी दलों सहित जिम्मेदार नागरिकों को भी सोचना चाहिए कि जरूरी क्या है- यूसीसी, वन नैशन वन इलैक्शन या ये बुनियादी सहूलियतें.
पूर्वी चंपारण में जिला मुख्यालय मोतिहारी शहर के बरियारपुर स्थित एक बालिका गृह से 28 अप्रैल को 9 लड़कियां फरार हो गईं. घटना का खुलासा हुआ तो हड़कंप मच गया. एसपी कांतेश कुमार मिश्र के निर्देश पर त्वरित कार्रवाई करते हुए पुलिस ने दो बच्चियों को बरामद कर लिया मगर 7 अभी भी लापता हैं, जिन की तलाश जारी है. एक साथ 9 बच्चियों के बालिका गृह से फरार होने के बाद बालिका गृह की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है. निश्चित ही ये बच्चियां उत्पीड़न से परेशान हो कर यहां से भागीं.
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पिछले साल दिसंबर में छपरा में बालिका गृह की खिड़की तोड़ कर 5 लड़कियां भाग गई थीं. इस से पहले नवंबर में मुरादाबाद के सिविल लाइन थाना क्षेत्र के एक बालिका गृह से 3 किशोरियां भाग निकली थीं. 9 महीने पहले बोधगया में बालिका गृह से एक नाबालिग लड़की फरार हो गई थी. वह करीब 13 दिनों से इस बालिका गृह में रह रही थी. किशोर गृहों, बालिकागृहों और अनाथाश्रमों से बच्चों के भाग जाने की खबरें लगभग हर दिन अखबारों के किसी न किसी कोने में होती हैं जिन पर सरसरी निगाह डाल कर हम पन्ना पलट देते हैं.
बात 2012 की है. इलाहाबाद जिसे योगी सरकार में अब प्रयागराज कहा जाता है, यहां के सरकारी शिशुगृह शिवकुटी से एक 7 साल की बच्ची को एक युगल ने गोद लिया था. यह बच्ची जब इस युगल के साथ उन के घर जाने के लिए तैयार हुई तो उस के चंद कपड़े भी युगल के सुपुर्द कर दिए गए. घर पहुंच कर जब मांबाप ने बच्ची के कपड़े खोल कर देखे तो उन्हें उस पर खून के धब्बे दिखाई दिए. शक होने पर उन्होंने बच्ची से प्यार से पूछताछ की कि उस के साथ आश्रम में क्या होता था? थोड़ा सा प्यार पा कर बच्ची हिलकने लगी और उस ने रोरो कर एक भयावह कहानी बयां की, जिसे सुन कर उस को गोद लेने वाले मांबाप अवाक रह गए. इस बच्ची से शिशुगृह का चौकीदार विद्याभूषण ओझा अकसर बलात्कार करता था.
वह युगल सीधे शिशुगृह की सुपरिंटेंडेंट उर्मिला गुप्ता के पास पहुंचा. उर्मिला गुप्ता को जब उन्होंने सारी बात बताई तो उस का रिएक्शन कुछ ख़ास नहीं था. जाहिर था कि वहां क्या चल रहा है इस बात की उसे पूरी जानकारी थी. मगर वह इतना समझ गई कि यदि उस ने खुद कोई कदम नहीं उठाया तो वह दंपत्ति पुलिस और मीडिया तक जा सकता है.
लिहाजा उर्मिला गुप्ता को मजबूरीवश पूरी बात इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी के संज्ञान में लानी पड़ी, जिस के बाद हुई कार्रवाई में चौकीदार विद्याभूषण ओझा को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उजागर हुआ कि वह उस गृह की कई बच्चियों के साथ बलात्कार करता है. उस के साथ रसोइया भी इस कुकर्म में शामिल रहता है.
हैरत की बात यह कि 50 वर्षीय वह चौकीदार उस शिशुगृह में पिछले 6 सालों से तैनात था. सुपरिंटेंडेंट उर्मिला गुप्ता अकसर उस के साथ अनेक बच्चियों को इलाज आदि के लिए सरकारी अस्पताल भी भेजती थी. यह घटना थर्रा देने वाली थी.
चौकीदार विद्याभूषण ओझा ने 7 से 9 वर्ष आयु वर्ग की जिन बच्चियों का बलात्कार किया उन में से 2 बच्चियां मानसिक रोगी थीं. इस मामले में 11 अप्रैल 2012 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी को तलब किया और पूरे कांड की जांच के लिए एक कमेटी गठित की. इस कमिटी ने जब शिशुगृह में जा कर बच्चों से बात की तो चौकीदार और रसोइये की घिनौनी हरकतों की परतें उधड़ती चली गईं.
हैरत की बात है कि इस शिशुगृह में इस चौकीदार की ड्यूटी सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक होती थी. उस की हिम्मत की इन्तहा यह थी कि वह दिन के उजाले में बच्चियों के साथ बलात्कार करता रहा और बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदार सुपरिंटेंडेंट से ले कर पूरा स्टाफ आंखें मूंदे बैठा रहा.
इस घटना के खुलासे के बाद इस शिशुगृह में तैनात सभी कर्मचारियों को निलंबित किया गया और सुपरिंटेंडेंट उर्मिला गुप्ता को गिरफ्तार कर चौकीदार और रसोइये के साथ नैनी जेल भेजा गया. इन के साथ बाल गृह की एक आया रमापति को भी जेल भेजा गया, जिस को चौकीदार और रसोइये के कुकृत्यों की पूरी जानकारी थी. चौकीदार ओझा की ड्यूटी इस आया और रसोइये के साथ दोपहर का खाना तैयार करने के लिए किचन में लगाई जाती थी, जहां एक कोने में ये बच्चियों को ले जा कर उन से दुराचार करता था.
मासूम बच्चियों के साथ शिशु गृहों और किशोर गृहों के कर्मचारियों द्वारा बलात्कार की घटना दिल दहला देने वाली है. अधिकांश जगहों पर कमोबेश यही हालत है. इस से इनकार नहीं किया जा सकता है. देश में शिशुगृहों और किशोरगृहों से लड़कियों के भाग निकलने की घटनाएं आयदिन होती हैं. जाहिर है कि बच्चियां न तो इन शिशु गृहों और किशोर गृहों में सुरक्षित हैं और न खुश हैं.
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत दर्ज नीतिनियमों का कोई पालन किसी राजकीय गृह में नहीं हो रहा है. न तो बच्चों की कोई उचित शिक्षा हो रही है, न उन की काउंसलिंग. यही वजहें हैं कि बहुत सारे अपराधी बच्चे भी जो सजा काट कर समाज में वापस जाते हैं, पुन: अपराध के दलदल में समा जाते हैं.
काउंसलिंग और पुनर्वास के अभाव में वेश्यालय, कारखानों, खदानों, मिलों आदि से छुड़ाए गए बच्चे, इन राजकीय गृहों की यातनाओं से तंग आ कर मौका पाते ही यहां से भाग निकलते हैं और फिर उन्हीं जगहों पर जा कर काम करने लगते हैं. वजह एक ही है. इन गृहों में रक्षक ही भक्षक बन चुके हैं. नन्हींनन्हीं बच्चियां यहां दुराचार का शिकार हो रही हैं. उन की चीखें सुनने वाला कोई नहीं है.
बच्चे मिट्टी का लोंदा होते हैं. उन्हें जिस सांचे में ढालें, उसी में ढलते चले जाते हैं. बड़े खुशनसीब होते हैं वे बच्चे जिन्हें मांबाप का भरपूर लाड़प्यार, अच्छी शिक्षा और स्वस्थ माहौल मिलता है, लेकिन बड़े ही अभागे हैं वे बच्चे, जिन के बचपन को किसी शाप ने डस लिया है, जो यतीम हैं, लावारिस हैं, अपने परिवार से बिछड़ गए हैं या अपराध की दलदल से निकाले गए हैं और सरकारी बाल गृहों, यतीम गृहों या सम्प्रेक्षण गृहों में यातनापूर्ण जीवन जी रहे हैं, छटपटा रहे हैं, तिलतिल मर रहे हैं. जहां न मां की गोद है, न बाप का प्यार, न सुरक्षा न अपनापन, अगर कुछ है तो बस सरकारी कर्मचारियों का गुस्सा, आतंक, पिटाई, भूख, नशा, बीमारी, बलात्कार और मौत.
गौरतलब है कि भिन्नभिन्न आयु वर्ग और भिन्न परिस्थितियों से आए बच्चों के लिए हर राज्य सरकार चार प्रकार के गृहों का संचालन करती है –
1. औब्जरवेशन होम्स
2. स्पैशल होम्स
3. बाल गृह
4. शेल्टर होम्स
औब्जरवेशन होम्स में उन बच्चों को रखा जाता है, जिन्हें किसी अपराध में लिप्त पाया जाता है. अदालत में जितने साल तक उन के केस की सुनवाई चलती है उतने साल ये बच्चे औब्जरवेशन होम में रहते हैं.
अदालत से उन के अपराध की सजा तय हो जाने के बाद बच्चों को औब्जरवेशन होम से स्पैशल होम में भेज दिया जाता है. जहां उन के जीवन में सुधार लाने के लिए बेहतर खानपान, व्यायाम, काउंसलिंग, शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा दिए जाने का प्रावधान जुवेनाइल एक्ट में दिया गया है.
बाल गृहों में वे बच्चे रखे जाते हैं, जिन्हें बंधुआ मजदूरी, वेश्यावृत्ति के अड्डों, मिलों, कारखानों, खदानों इत्यादि से छुड़ाया जाता है. इनमें शिशु और किशोर बालक बालिकाएं आती हैं.
शेल्टर होम्स वे जगहें हैं, जहां बच्चे सर्वप्रथम ला कर कुछ दिनों के लिए बच्चे रखे जाते हैं.
इन चारों प्रकार के गृहों में सरकार की तरफ से उन सारी सुविधाओं का होना आवश्यक है जिस से बच्चे का पूर्ण विकास हो सके, उन को बेहतर शिक्षा दी जा सके और पर्याप्त काउंसलिंग के जरिए उन के जीवन में ऐसा सुधार लाया जाए ताकि जब वे यहां अपना वक्त बिता कर वापस अपने समाज और परिवार में जाएं तो एक अच्छे नागरिक के रूप में आगे का सफर तय कर सकें, लेकिन अफसोस, कि ‘सुधार गृहों’ के नाम पर चल रहे देश के तमाम सरकारी गृहों में जीवन काट रहे बच्चों के जीवन में सुधार लाने जैसी कोई गतिविधि कहीं नहीं हो रही है, अलबत्ता इन सरकारी गृहों का निरीक्षण करने पर पता चलता है कि यहां बच्चों का जीवन कितना नारकीय और यातनापूर्ण है.
सरकारी घरों में बच्चों को भरपेट भोजन न मिलना, कोई गलती हो जाने पर उन्हें भूखा रखना, उन की बीमारी में उन्हें उचित इलाज न मिलना, उन्हें खेलकूद की सुविधाएं उपलब्ध न होना, छोटीछोटी बातों पर उन को बुरी तरह पीटना जैसे तमाम अमानवीय और क्रूर व्यवहार बहुत आम हैं.
सरकारी अनाथाश्रमों एवं किशोर गृहों में नन्हें मासूम बच्चों की दयनीय दशा और उन के साथ सरकारी कर्मचारियों का बर्बर सलूक बताता है कि ‘सुधार गृहों’ का बोर्ड लगा कर चल रहे इन जेल सरीखे आश्रम ‘यातना गृहों’ में तब्दील हो चुके हैं जहां बच्चों के साथ मारपीट से ले कर बलात्कार तक हो रहे हैं, लेकिन मासूमों की चीखें इन चारदीवारियों से बाहर नहीं आ पातीं. यही वजह है कि सुधार गृहों की यातनाओं से तंग आ कर बच्चों के वहां से भाग निकलने की खबरें आएदिन अखबार की सुर्खियां बनती हैं.
राजकीय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की तरफ सर्वप्रथम शीला वारसे नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता का ध्यान गया था. पश्चिम बंगाल और खासतौर पर कोलकाता की जेलों में बने बाल सुधार गृहों में बच्चों की दयनीय हालत देख कर वे हैरान थीं. यहां उन बच्चों की हालत बेहद नाजुक थी जो मानसिक रूप से अस्वस्थ थे अथवा मिर्गी के रोगी थे. इन सभी बच्चों को स्वस्थ बच्चों के साथ ही रखा जाता था. इन की देखभाल के लिए किसी भी मानसिक चिकित्सक की कोई व्यवस्था नहीं थी, नतीजतन वार्ड के स्वस्थ बच्चे और कभी कभी जेलकर्मी इन मानसिक रोगी बच्चों की हरकतों से खीज कर उन्हें बुरी तरह मारते पीटते थे और उन्हें बांध कर भूखा रखते थे. शीला वारसे ने 27 जनवरी 1989 को तत्कालीन चीफ जस्टिस औफ इंडिया आर एस पाठक को एक संवेदनशील पत्र लिख कर उन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था.
शीला वारसे के पत्र को चीफ जस्टिस औफ इंडिया ने एक जनहित याचिका के रूप में लिया और मामला सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय में आया. लम्बी चली सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय में जस्टिस बी पी जीवन रेड्डी एवं जस्टिस एन के मुखर्जी की बेंच ने 5 सितम्बर 1995 को देश के तमाम उच्च न्यायालयों को आदेशित किया कि वे सरकारी अनाथाश्रमों, बाल एवं किशोर सुधार गृहों में रह रहे बच्चों और किशोरों के उचित संरक्षण और उचित सुविधाएं देने के लिए राज्य सरकारों को आदेश पारित करें.
बच्चों की स्थिति को कैसे सुधारा जाए, उन की देखभाल, पोषण, शिक्षा और सुरक्षा कैसे की जाए, उन की काउंसलिंग किस प्रकार हो तथा उन का पुनर्वास कैसे कराया जाए इस को देखने और आदेश पारित करने की जिम्मेदारी उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को सौंपी गई. उच्च न्यायालयों में यह मामला क्रिमिनल मिसलेनियस पिटीशन नंबर 505/1994 इन रिट पिटीशन (क्रिमिनल न. 237/1989 शीला बारसे बनाम यूनियन औफ इंडिया) के तौर पर दर्ज है.
अदालतों के संज्ञान में आने के बाद कई राज्यों ने सुधार गृहों के संबंध में नए कानून भी बनाए, लेकिन वर्तमान समय में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 ही सब से ज्यादा मान्य है, जिसमें अनाथ या अपराधी बच्चों की देखभाल, सुरक्षा, पुनर्वास इत्यादि के विषय में कुछ नियम तय हैं, जैसे –
प्रत्येक बच्चे के विकास के लिए 40 स्क्वायर फीट स्पेस का होना सुनिश्चित किया गया है. इस के अतिरिक्त सरकारी गृहों में प्रति 25 बच्चों के पीछे दो डोरमेट्रीज, दो कक्षाएं, एक चिकित्सा कक्ष, एक किचेन, एक खाने का कमरा, एक स्टोर रूम, एक मनोरंजन कक्ष, एक लाइब्रेरी, 5 बाथरूम, 8 शौचालय, एक सुप्रिटेंडेंट का औफिस, एक काउंसलिंग रूम, एक वर्कशौप रूम, सुप्रिटेंडेंट का आवास, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड या वेलफेयर कमेटी के लिए एक औफिस एवं एक खेल का मैदान होना आवश्यक है.
इन सभी जरूरतों के लिए एक सरकारी गृह के पास कम से कम 8495 स्क्वायर फीट की जगह होनी जरूरी है. लेकिन अधिकांश राज्य सरकारों के पास और खासतौर पर उत्तर प्रदेश सरकार के पास इन बच्चों को रखने के लिए अपनी इमारतें तक नहीं हैं. तमाम राजकीय गृह किराए के छोटेछोटे घरों में चलाए जा रहे हैं. राज्य में ऐसे सुधार गृह गिनती के हैं, जिन में बच्चों के खेलने के लिए खेल के मैदान हों. हालत इतनी बदत्तर है कि छोटेछोटे चारपांच कमरों में 40-40 से 50-50 और कहींकहीं तो 100-100 बच्चे भेड़ बकरियों की तरह रहने के लिए मजबूर हैं.
देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने अनाथाश्रमों एवं सुधार गृहों में रह रहे बच्चों के संबंध में समयसमय पर राज्य सरकारों को कई दिशानिर्देश भी दिए हैं, लेकिन सरकार द्वारा बच्चों के उद्धार के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए गए हैं, उल्टे सरकारों ने इन बच्चों को संभालने की अपनी जिम्मेदारियों को स्वयं सेवी संस्थाओं की तरफ खिसका दिया है, जो अब धन कमाने और बच्चों के उत्पीड़न के बड़ेबड़े अड्डे बन चुके हैं.
प्रयागराज में शिवकुटी का शिशुगृह हो या मम्फोर्डगंज का बालिका आश्रम, सभी जगह एक जैसा हाल है. 11 से 18 वर्ष तक की बालिकाओं के लिए चल रहे राजकीय बाल गृह में 40 बालिकाओं के रहने के लिए मात्र 4 छोटे छोटे कमरे हैं. एक किचन, दो शौचालय, दो स्नानागार, एक छोटा बरामदा, जिस में सुप्रिटेंडेंट का औफिस चलता है. शौचालयों की साफसफाई इन्हीं बच्चियों से करवाई जाती है. दोदो, तीनतीन बच्चियां एक ही तख्त पर सोती हैं. न तो यहां खेलने का मैदान था और न मनोरंजन का अन्य कोई साधन.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूरे देश देश के बाल सुधार गृहों की स्थिति के अध्ययन के लिए न्यायाधीश मदन बी. लोकर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी. इस न्यायिक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के सरकारी बाल सुधार गृहों में रह रहे 40 प्रतिशत “विधि विवादित बच्चे” बहुत चिंताजनक स्थिति में रहते हैं. यहां उन्हें रखने का मकसद उन में सुधार लाना है, लेकिन हमारे बाल सुधार गृहों की हालत वयस्कों के कारागारों से भी बदतर है.
किशोर न्याय अधिनियम के कई सारे प्रावधान जैसे सामुदायिक सेवा, परामर्श केंद्र और किशोरों की सजा से संबंधित अन्य प्रावधान जमीन पर लागू होने के बजाय अभी भी कागजों पर ही हैं. सुधार और आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चे खासकर लड़कियां बिलकुल सुरक्षित नही हैं. सब से चिंताजनक बात यह है कि गृहों में बच्चियों के साथ बलात्कार, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के ज्यादातर मामलों में वहां के कर्मचारी और अधिकारी ही शामिल होते हैं. और क्या खबर कि पैसे की हवस में इन बच्चियों को रात के अंधेरे में देह के भूखे भेड़ियों के पास भी भेजा जाता हो.