Download App

दोबारा कैसे हासिल करूं पति का भरोसा?

सवाल

मैं 2 वर्षीया बेटी की मां हूं. मेरे कुछ लोगों से नाजायज संबंध हो गए थे. अब पति को मालूम होने पर बड़ी विकट समस्या उत्पन्न हो गई है. मुझे किसी से कोई लगाव नहीं था. सो, संबंध तोड़ने में कठिनाई नहीं हुई.पहले तो मेरे पति ने सब बातें बड़े प्रेम से पूछ लीं और कहा कि तुम पश्चात्ताप कर लो लेकिन अब वे बहुत दुखी रहते हैं. उन्हें मुझ पर विश्वास ही नहीं होता. मुझ से उन का दुख नहीं देखा जाता. दिल करता है कि आत्महत्या कर लूं. लेकिन अपनी बच्ची का मोह इस संसार से बांधे हुए है. मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं.

जवाब

आप कोई गलत कदम उठाने से पहले क्यों नहीं सोचतीं कि इस का अंजाम कितना बुरा होगा. आप ने जानबूझ कर सरासर गलत काम किए हैं व अपने पति के साथ विश्वासघात किया है. दूसरे, आप ने पति को सबकुछ बता कर भी गलती की है. इस से अविश्वास बढ़ेगा ही, घटेगा नहीं.

आत्महत्या करना कायरता है. आज भी आप स्वयं को सुधार कर अपने परिवार की खुशियां लौटा सकती हैं. अब आप को संयम से काम लेना चाहिए और अपने पति का फिर से विश्वास प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए. खोया विश्वास जगाना आसान नहीं है, लेकिन जीजान से किया गया प्रयत्न कभी बेकार नहीं जाता. आप को पति का विश्वासपात्र बनने के लिए पति द्वारा बताए रास्ते पर चलना चाहिए. आप निष्ठापूर्वक सेवा व प्यार से ही उन का विश्वास पा सकती हैं. कोई भी ऐसा मौका न दें जिस से आप की बीती बातों की झलक मिले.

प्यार या सिर्फ शारीरिक आकर्षण: ऐसे करें लव और लस्ट की पहचान

रिलेशनशिप में हम अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों का उपयोग अधिक करते हैं. लेकिन शब्दों पर क्या पूरी तरह से भरोसा किया जा सकता है. हालांकि हमारा शरीर झूठ नहीं बोलता. जब हम किसी के सामने होते हैं तो हम कुछ बौडी लैंगवेज का इस्तेमाल करते हैं. बौडी लैंगवेज किसी भी इंसान के वास्तविक इरादों को दर्शाती है. बहुत बार शब्दों से आकर्षित होकर आप समझ बैठते हैं कि जिस रिश्ते में आप है उसकी नींव प्यार है लेकिन कुछ समय बाद आपको पता चलता है कि उसमें प्यार नहीं केवल शारीरिक आकर्षण है. हालांकि आप अपने रिश्ते को परख कर फर्क जान सकती हैं कि ये प्यार हैं या केवल शारीरिक आकर्षण.

  1. क्या आपका पार्टनर केवल शारीरिक सम्बंधो को महत्व देता है:

एक स्वस्थ रिश्ते में शारीरिक सम्बंधो का होना जरुरी है. अगर आप में से कोई एक केवल और केवल सेक्स के बारे में ही सोचता है और शारीरिक सम्बंधो को ही महत्व देता हो तो आपको वास्तव में सोचने की ज़रूरत है कि क्या ये प्यार है. प्यार का अर्थ होता है विश्वास, प्रतिबद्धता और संचार लेकिन यदि आपका साथी हर वक्त ये सोचता हैं कि ‘हम अभी क्यों सेक्स नहीं कर रहे हैं?’ तो आपको एक कदम पीछे ले लेना चाहिए और उस रिश्ते को आगे बढ़ाने से पहले एक बार फिर सोचें. किसी भी रिश्ते में कमिटमेंट तभी करें जब यह केवल प्रेम के आधार पर बना हो.

2. अगर आपके रिश्ते में प्यार फीका पड़ने लगे:

हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि जब आप किसी प्रेम सम्बंध में हैं तो उससे प्यार कभी फीका नहीं होता और अगर ये सिर्फ शारीरिक आकर्षण है तो आप एक-दूसरे से बहुत जल्दी ऊब जाते हैं. अगर आपके रिश्ते में फिजिकल इंटिमेसी की बजाय इमोशनल इंटिमेसी ज्यादा है तो आपके रिश्ते का आधार वास्तव में प्यार है. लेकिन अगर कुछ समय बाद आपके रिश्ते में प्यार फीका हो जाएं तो समझ लें कि ये रिश्ता केवल शारीरिक आकर्षण के लिए बनाया गया था.

3. बाहरी सुंदरता:

कभी-कभी आप किसी इंसान को उसकी बाहरी सुंदरता के लिए पसंद करते हैं. अगर आपके लिए किसी इंसान की केवल बाहरी सुंदरता मायने रखती हैं तो ध्यान रखें कि आप उस इंसान से प्यार नहीं करते हैं. कुछ समय बाद आपको एहसास होगा कि आपने कभी उस इंसान स प्यार किया ही नहीं था. बल्कि आपका प्यार उसकी बाहरी और शारीरिक सुंदरता के लिए था.

4. आप रिश्ते के वास्तविक पहलुओं पर ध्यान देते हैं:

किसी भी व्यक्ति के लिए रिश्ता निभाना आसान नहीं होता. हर एक रिश्ते में बुरा वक्त आता ही है. लेकिन आप इससे कैसे सुलझाते हैं वह आपके रिश्ते को और मजबूत बनाता है. जब आप सच्चे रिश्ते में होते हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं तो आप रिश्ते के वास्तविक पहलुओं के बारे में सोचते हैं. साथ ही यह सोचते हैं कि आपके रिश्ते को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है. लेकिन जब आप केवल शारीरिक आकर्षण के लिए इस रिश्ते में होते हैं तो रिश्ते के बारे में नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के बारे में सोचते हैं. अगर आपको लगता है कि आपका साथी ऐसा सोचता है तो उस रिश्ते में अपने समय और प्रयास ना निवेश करें.

मासूम कातिल : मां और बेटी दोनों का इमरान ने कैसे किया शोषण

यह एक अजीबोगरीब केस है, दर्दभरी दास्तान. आप सुनेंगेपढ़ेंगे तो दुख आप को भी होगा. पढि़ए और सोचिए, मैं गलत था या सही. फैसला आप को करना है.

मकतूल एक दौलतमंद और रसूख वाला आदमी था जबकि कातिल 2 औरतें थीं. मां सुहाना और बेटी अदीना. सुहाना की उम्र करीब 38 साल थी और अदीना की 19 साल. वह बेहद हसीन व शोख लड़की थी. उस के चेहरे पर गजब की मासूमियत थी.

सुहाना भी खूबसूरत औरत थी, लेकिन उस के चेहरे पर उदासी और आंखों में समंदर की गहराई थी. दोनों मांबेटी कोर्ट में मुसकराती हुई आती थीं और बड़े फख्र से कहती थीं कि उन्होंने इमरान हसन को कत्ल किया है. अदीना कहती थी, ‘‘मैं ने एक ठोस डंडे से उस की पिंडलियों पर वार किए थे. वह नीचे गिर पड़ा.’’

सुहाना कहती थी, ‘‘जब वह नीचे गिरा तो मैं ने उसी ठोस डंडे से उस के सीने पर मारना शुरू किया, इस से उस की पसलियां टूटने की आवाज आने लगी. फिर मैं ने अपनी अंगुलियों के नाखून उस की दोनों आंखों में उतार दिए.’’

मांबेटी दोनों बड़े फख्र से ये कारनामा सुनाती थीं और मैं भी उन के गुरूर को सही समझता था. लाश बुरी हालत में मिली थी. डंडे से उस का सिर फोड़ दिया गया था. मैं जानता था, मासूम चेहरे वाली इन मांबेटी को कड़ी सजा मिलेगी. पर उन के चेहरे पर डर या वहशत नहीं थी. वे दोनों बड़े सुकून और इत्मीनान से बैठी रहती थीं. इस के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी थी. मैं आप को वही कहानी सुनाऊंगा, जो मुझे सुहाना ने कोर्ट के अंदर सुनाई थी.

आप यह सोच कर सुहाना की कहानी सुनें कि आप ही उस का इंसाफ करने वाले जज हैं. सुहाना ने मुझे बताया, ‘‘मेरी मां का नाम नसीम था. हमारा घर पुराना पर अच्छा था. घर में हम 3 लोग थे. मैं मेरी मां और मेरे अब्बू. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. हमारे रिश्तेदार और अब्बू के दोस्त आते रहते थे. अब्बू काफी मिलनसार थे.

बदनसीबी कहिए या कुछ और, अब्बू बीमार पड़ गए. 3 दिन अस्पताल में भरती रहे और चौथे दिन चल बसे. हम लोगों की दुनिया अंधेरी हो गई. कुछ दिनों तक दोस्तों व रिश्तेदारों ने साथ निभाया, लेकिन फिर सब अपनीअपनी राह लग गए. अब मैं बची थी और मेरी मजबूर मां. न कोई मददगार न सिर पर हाथ रखने वाला.

उस वक्त मैं बीए के पहले साल में थी, पर अब पढ़ाई जारी रखने जैसे हालात नहीं बचे थे. पड़ोसी भी शुरू में मोहब्बत से पेश आए लेकिन धीरेधीरे सब ने निगाहें फेर लीं. गनीमत यही थी कि हमारा घर अपना था. सिर छिपाने को आसरा था हमारे पास, पर खाने के लाले पड़ने लगे थे.

अम्मा ने घरों में काम करने की बात की, पर मुझ से यह बरदाश्त नहीं हुआ. मैं ने अम्मा को बहुत समझाया और खुद नौकरी करने की बात की. मैं इंग्लिश मीडियम से पढ़ी थी, मेरी अंगरेजी और मैथ्स बहुत अच्छा था. बहुत कोशिश करने पर मुझे एक औफिस में जौब मिल गई. वेतन ज्यादा तो नहीं था, पर गुजारा किया जा सकता था.

शुरू में लोगों ने बातें बनाईं कि खूबसूरती के चलते यह नौकरी मिली है. अम्मा बहुत डरती, घबराती, लोगों की बातों से दहशत खाती. मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘अम्मा, लोग सिर्फ बातें बनाते हैं. वे हमें खिलाने नहीं आएंगे. हमें अपना बोझ खुद उठाना है. लोगों को भौंकने दें.’’

अम्मा को बात समझ में आ गई. फिर भी उन्होंने नसीहत दी, ‘‘बेटी, दुनिया बहुत बुरी है. तुम बहुत मासूम और नासमझ हो. फूंकफूंक कर कदम रखना, हर मोड़ पर इज्जत के लुटेरे बैठे हैं.’’

मैं ने उन्हें दिलासा दी, ‘‘अम्मी, आप फिक्र न करें, मैं अपना भलाबुरा खूब समझती हूं. जिस फर्म में मैं काम करती हूं, वहां भेड़िए नहीं, बहुत नेक और भले लोग हैं.’’

एकाउंटेंट अली रजा बूढ़े आदमी थे. बहुत ही सीधे व मोहब्बत करने वाले. मुझे नौकरी दिलाने में भी उन्होंने मेरी मदद की थी और पहले दिन से ही मुझे गाइड करना और सिखाना भी शुरू कर दिया था. वैसे मैं काफी जहीन थी. जल्द ही सारा काम बहुत अच्छे से करने लगी.

औफिस में सभी लोग अली रजा साहब की बहुत इज्जत करते थे. हां, फर्म के बौस इमरान हसन से मेरी अब तक मुलाकात नहीं हुई थी. सुना था, बहुत रिजर्व रहते हैं. काम से काम रखने वाले व्यक्ति हैं.

फर्म के लोग मालिक इमरान हसन से खुश थे. सब उन की तारीफ करते थे. मुझे वहां काम करते एक महीना हो गया था. पहली तनख्वाह मिली तो अम्मा बड़ी खुश हुईं. तनख्वाह इतनी थी कि हम मांबेटी का गुजारा आसानी से हो जाता और थोड़ा बचा भी सकते थे. फर्म में 4-5 लड़कियां और भी थीं. उन से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. बौस पिछले दरवाजे से आतेजाते थे, इसलिए उन से मेरा कभी आमनासामना नहीं हुआ.

एक दिन एक कलीग रशना की सालगिरह थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे अपने घर आने की दावत दी. इस प्रोग्राम में बौस समेत औफिस के सभी लोग जाने वाले थे. मुझे भी वादा करना पड़ा. अम्मा से इजाजत  लेने में मुश्किल हुई, क्योंकि वह मेरे अकेले जाने से परेशान थीं. रशना के यहां पहुंचने पर मेरा शानदार वेलकम हुआ. वहां बहुत धूमधाम थी. केक काटा गया. पार्टी भी बढि़या थी.

मैं अपनी प्लेट ले कर एक कोने में खड़ी थी. उसी वक्त एक गंभीर नशीली आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘आप कैसी हैं मिस सुहाना?’’

मैं ने सिर उठा कर सामने देखा. एक बेहद हैंडसम यूनानी हुस्न का शाहकार सामने खड़ा था. शानदार पर्सनैलिटी, तीखे नैननक्श, ऊंची नाक, नशीली आंखें. मैं बस देखती रह गई. मेरी आवाज नहीं निकल सकी. रशना ने कहा, ‘‘सुहाना, बौस तुम से कुछ पूछ रहे हैं.’’

मैं जैसे होश में आ गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ठीक हूं सर.’’

‘‘हमारी फर्म में कोई परेशानी तो नहीं है?’’

‘‘नहीं सर, कोई प्रौब्लम नहीं है. सब ठीक है.’’

मैं बौस को देख कर हैरान रह गई. कितने खूबसूरत, कितने शानदार पर उतने ही मिलनसार और विनम्र. अभी खाना चल ही रहा था कि बादल घिरने लगे. जब मैं घर जाने के लिए खड़ी हुई तो अच्छीखासी बारिश होने लगी. रशना भी सोच में पड़ गई. जब हम बाहर निकले तो बौस इमरान साहब कहने लगे, ‘‘सुहाना, अभी टैक्सी मिलना मुश्किल है. तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें तुम्हारे घर ड्रौप कर दूंगा.’’

रशना ने फोर्स कर के मुझे उन की कार में बिठा दिया.

मैं सकुचाते हुए बैठ गई. मैं जिंदगी में इतने खूबसूरत मर्द के साथ पहली बार बैठी थी. मेरा दिल अजीब से अंदाज से धड़क रहा था. मैं ने कहा, ‘‘सर, आप ने मेरे लिए बेवजह तकलीफ उठाई. आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

इमरान साहब हंस पड़े, फिर कहा, ‘‘नहीं भई, हम इतने अच्छे इंसान नहीं हैं. अगर तुम भीग जाती तो बीमार पड़ जातीं. 2-3 दिन हमारे औफिस को इतनी अच्छी वर्कर से महरूम रहना पड़ता और फिर ये मेरा फर्ज भी तो है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप बेहद शरीफ इंसान हैं, बहुत नेक और बहुत खयाल रखने वाले.’’

उन्होंने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप को मुझ पर यकीन है तो मेरी एक बात मानेंगी?’’

‘‘जी कहिए, आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘सामने एक अच्छा रेस्टोरेंट है, वहां एक कप कौफी पी जाए.’’

मैं सोच में पड़ गई, ‘‘मैं कभी ऐसे होटल में नहीं गई. मुझे वहां के तौरतरीके नहीं आते. मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ मैं ने कहा.

इमरान साहब बोले, ‘‘कोई बात नहीं, हालात सब सिखा देते हैं. आप की इस बात ने मेरी नजरों में आप की इज्जत और भी बढ़ा दी. क्योंकि आप ने मुझ से अपनी हालत छिपाई नहीं, यह अच्छी बात है.’’

उन्होंने कार रेस्टोरेंट के सामने रोक दी. हम अंदर गए, बहुत शानदार हौल था. वहां का माहौल खुशनुमा था. मैं इस से पहले कभी किसी होटल में नहीं गई थी. इमरान साहब ने कौफी का और्डर दिया, फिर मेरे काम की, मेरे मिजाज की तारीफ करते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘अच्छा ये बताइए, आप मेरे बारे में क्या सोचती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘आप ने पार्टी में मुझे मेरा नाम ले कर पुकारा था, आप तो मुझ से मिले भी नहीं थे?’’

‘‘आप के सवाल में बड़ी मासूमियत है. आप मेरे औफिस में काम करती हैं और एक अच्छा बौस होने के नाते मुझे अपने साथियों के बारे में पूरी जानकारी रखना चाहिए. मैं तो यह भी जानता हूं कि आप औफिस की दूसरी लड़कियों से अलग हैं. अपने काम से काम रखने वाली.’’

मैं हैरान रह गई. हम कौफी पी कर बाहर आ गए. वह कहने लगे, ‘‘बहुत शुक्रिया, आप ने अपना समझ कर मुझ पर यकीन किया. आज तो आप से ज्यादा बातें न हो सकीं. खैर, अगली मुलाकात में बातें होंगी.’’

मैं देर होने से अम्मा के लिए परेशान थी. मैं ने सोच लिया था कि उन्हें इमरान साहब के बारे में कुछ नहीं बताऊंगी वरना उन की नींद उड़ जाएगी. मेरा घर आ गया. मैं ने गली के बाहर ही गाड़ी रुकवाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे यहीं उतार दें.’’

‘‘मैं आप की मजबूरी समझता हूं. मैं तो चाहता था कि आप को आप के दरवाजे पर ही उतारूं.’’

मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.

दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.

कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?

उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’

मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.

करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’

मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’

मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’

इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’

‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’

‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’

उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.

शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’

मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’

मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.

वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.

जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा. उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’

‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’

‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’

वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’

‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’

‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’

मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.

दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’

फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.

‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’

‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’

‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’

शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’

इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’

इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’

मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’

अम्मा को इत्मीनान हो गया.

दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’

मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैं ने शरमा कर कहा, ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’

‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’

मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’

‘‘रजा साहब बाकायदा मेरा रिश्ता ले कर तुम्हारी अम्मा के पास जाएंगे. तुम्हारी अम्मा को राजी कर लेंगे, पर पहले तुम्हारी मंजूरी जरूरी है.’’

मैं उन के कदमों में झुक गई. उन्होंने मुझे उठा कर सीने से लगा लिया. मेरे तड़पते दिल व प्यासी रूह को जैसे सुकून मिल गया. हम दोनों रोज मिलने लगे पर दुनिया से छिप कर. मैं तो अपने महबूब को पा कर जैसे पागल हो गई थी. सब से बड़ी खुशी की बात यह थी कि उन्होंने अपनी मोहब्बत का इजहार शादी के पैगाम के बाद किया था. वह कहते थे, ‘‘सुहाना, मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी देना चाहता हूं.’’

और मैं कहती, ‘‘बस थोड़ा सा इंतजार मेरे महबूब.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी.’’ कह कर वह चुप हो जाते.

अब हालात बदल गए थे. मैं औफिस में उन के करीब रहती, हमारे बीच में बहुत से फैसले हो गए थे. मां की आंखों की रोशनी चली गई थी. हमारी मोहब्बत तूफान की तरह बढ़ रही थी. मैं अपनी मां की नसीहत, अपनी मर्यादा भूल कर सारी हदें पार कर गई. औफिस के बाद हम काफी वक्त साथ गुजारते. इमरान साहब ने मुझे कीमती जेवर, महंगे तोहफे और कार देनी चाही, पर मैं ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ये सब मैं शादी के बाद कबूल करूंगी.

मैं ने उन पर अपना सब कुछ निछावर कर दिया. एक गरीब लड़की को ऐसा खूबसूरत और चाहने वाला मर्द मिले तो वह कहां खुद पर काबू रख सकती है. मैं शमा की तरह पिघलती रही, लोकलाज सब भुला बैठी.

अली रजा साहब उन दिनों छुट्टी पर गए हुए थे. मैं ने इमरान हसन से कहा, ‘‘अब आप अम्मा से मेरे रिश्ते के लिए बात कर लीजिए. आप अम्मा के पास कब जाएंगे?’’

‘‘जब तुम कहोगी, तब चले जाएंगे.’’

‘‘अच्छा, परसों चले जाइएगा.’’

‘‘जानेमन, अभी अली रजा साहब छुट्टी पर हैं. वह आ जाएं, कोई बुजुर्ग भी तो साथ होना चाहिए.’’

मैं खामोश हो गई. अब वही मेरी जिंदगी थे. दिन गुजरते रहे वह अम्मा के पास न गए. अली रजा साहब भी पता नहीं कितनी लंबी छुट्टी पर गए थे. धीरेधीरे इमरान साहब का रवैया मेरे साथ बदलता जा रहा था. अली रजा साहब छुट्टी से वापस आ गए. मैं ने इमरान साहब से कहा, ‘‘आप कुछ उलझेउलझे से नजर आते हैं. क्या बात है?’’

‘‘कुछ बिजनैस की परेशानियां हैं. लाखों का घपला हो गया है. मुझे देखने के लिए बाहर जाना पड़ेगा.’’

‘‘आप अम्मा से मिल लेते तो बेहतर था.’’

‘‘हां, उन से भी मिल लेंगे, पहले ये मसला तो देख लें. लाखों का नुकसान हो गया है.’’

उन का लहजा रूखा और सर्द था. उन्होंने मुझ से कभी इस तरह बात नहीं की थी. मैं परेशान हो गई. रात भर बेचैन रही. मैं ने फैसला कर लिया कि सवेरे अली रजा साहब से कहूंगी कि वह इमरान साहब को ले कर अम्मा के पास मेरे रिश्ते के लिए जाएं. वह मुझे बहुत मानते हैं, वह जरूर ले जाएंगे.

दूसरे दिन मैं इमरान के औफिस में बैठी उन का इंतजार कर रही थी. 12 बजे तक वह नहीं आए, मैं अली रजा साहब के पास गई और उन से पूछा, ‘‘सर, अभी तक बौस नहीं आए?’’

अली रजा साहब बोले, ‘‘वह तो कल रात को फ्लाइट से स्वीडन चले गए.’’

मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह मुझे बिना बताए बाहर चले गए. मुझ से मिले भी नहीं.

‘‘मेरे लिए कुछ कह गए हैं?’’

‘‘हां, इमरान साहब की वापसी का कोई यकीन नहीं है. 7-8 महीने या साल-2 साल भी लग सकते हैं. कारोबार वहीं से चलता है. उन्हें वहां का बिगड़ा हुआ इंतजाम संभालना है. आप अपनी सीट पर वापस आ जाइए.’’ अली रजा साहब ने सपाट लहजे में कहा.

मुझे चक्कर सा आ गया. मैं ने एक हफ्ते की छुट्टी ली और घर आ गई.

कुदरत के भी अजीब खेल हैं. मां की रोशनी इसलिए छिन गई थी ताकि वह मेरी यह हालत न देख सकें. मैं अपने कमरे में पड़ी रहती, रोती रहती. मुझे एक पल का चैन नहीं था. पलपल मर रही थी मैं.

एक हफ्ते बाद एक उम्मीद ले कर औफिस पहुंची. शायद कोई अच्छी खबर आई हो. मैं ने अली रजा साहब से पूछा, ‘‘इमरान साहब की कोई खबर आई?’’

‘‘हां आई, ठीक हैं. औफिस के बारे में डिसकस करते रहे. क्या तुम्हें उन का इंतजार है?’’

‘‘जी, मैं उन की राह देख रही हूं.’’

‘‘बेकार है, जब वे आएंगे तो तुम्हें भूल चुके होंगे.’’

मेरी आंखों से आंसू बह निकले. उन्होंने दुख से कहा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता तुम्हें क्या कहूं? तुम जैसी मासूम व बेवकूफ लड़कियां आंखें बंद कर के भेडि़ए के सामने पहुंच जाती हैं. तुम्हारे घर वाले लड़कियों को अक्ल व दुनियादारी की बात क्यों नहीं सिखाते? तुम्हें यह क्यों नहीं समझाया गया, जहां तुम जा रही हो, वे लोग कैसे हैं. उन का स्टाइल क्या है. वहां तुम जैसी लड़कियों की क्या कीमत है. सब जानते हैं, ये अमीरजादे साथ नहीं निभाते, बस कुछ दिन ऐश करते हैं. पर तुम लोग उन्हें जीवनसाथी समझ कर खुद को लुटा देती हो.’’

मैं सिसकने लगी, ‘‘रजा साहब, मैं ने ये सब जानबूझ कर नहीं किया, दिल के हाथों मजबूर थी. उन की झूठी मोहब्बत को सच्चाई समझ बैठी.’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘सुहाना, अगर तुम अपनी इज्जत गंवा चुकी हो तो चुप हो जाओ, चिल्लाने से कुछ हासिल नहीं होगा. वह लौट कर नहीं आएगा, ऐसा वह कई लड़कियों के साथ पहले भी कर चुका है. अब तुम अपने फ्यूचर की फिक्र करो. बाकी सब भूल जाओ.’’

सुहाना अपनी कहानी सुनाते हुए बोली, ‘‘मैं ने सब समझ लिया. वक्त से पहले अपनी बरबादी को स्वीकार कर लिया. मेरे पास सिवा पछताने के और कुछ नहीं बचा था. मैं ने औफिस जाना छोड़ दिया. मां से बहाना कर दिया. उन्होंने ज्यादा पूछताछ की तो झिड़क दिया.’’

वक्त गुजरता रहा. मां चुप सी हो गईं. गुजरबसर जैसेतैसे हो रही थी. चंद माह गुजर गए और फिर पड़ोसियों ने मां से कह दिया. अम्मा ने मुझे टटोल कर देखा और एक दर्दभरी चीख के साथ बेहोश हो कर नीचे गिर गई. सदमा इतना बड़ा था कि वह बरदाश्त न कर सकी और फिर कभी नहीं उठ सकीं.

पेट में पलती औलाद ने मुझे खुदकशी करने न दी. फिर मेरी बदनसीब बेटी अदीना पैदा हो गई. मेरे जिस्म का एक टुकड़ा मेरी गोद में था. मैं ने अपना घर बेच दिया, एक गुमनाम मोहल्ले में एक कमरा खरीद कर रहने लगी. मैं ने अपनी पुरानी सब बातें भुला दीं. मकान से अच्छी रकम मिली थी. फिर मैं थोड़ाबहुत सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी.

हम मांबेटी की अच्छी गुजर होने लगी. मैं ने अपनी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश की. उसे दुनिया की हर ऊंचनीच समझाई. उस से वादा लिया कि वह मुझ से कोई बात नहीं छिपाएगी. अदीना बेइंतहा हसीन निकली. मैं ने उसे अच्छी तालीम दिलाई. वह बीएससी कर रही थी. एक दिन वह मुझ से कहने लगी, ‘‘मम्मी, मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘कहो.’’

‘‘मैं नौकरी करना चाहती हूं. मेरे एग्जाम भी पूरे हो गए हैं. रिजल्ट भी जल्द आएगा.’’

‘‘नहीं बेटी, नौकरी ढूंढना और करना बड़ा कठिन है.’’

‘‘मम्मी, मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई है.’’

‘‘कहां मिल गई नौकरी तुम्हें?’’

‘‘एक प्राइवेट फर्म है. फर्म के मालिक ने मुझे खुद नौकरी का औफर दिया है. मेरी इमरान साहब से कालेज के फंक्शन में मुलाकात हुई थी. वह चीफ गेस्ट थे. इतने नेक और सादा मिजाज आदमी हैं कि देख कर आप दंग रह जाएंगी.’’

‘‘कौन?’’ मुझे जैसे बिच्छू ने डंक मारा.

‘‘इमरान हसन साहब. बड़े हमदर्द इंसान हैं.’’ अदीना उन के बारे में पता नहीं क्याक्या बोलती रही. मुझे लगा, मेरे चारों तरफ जहन्नुम की आग दहक रही हो. फिर मैं ने खुद पर काबू पाया और कुछ सोच कर अदीना को नौकरी की इजाजत दे दी.

वह मेरी हां सुन कर खुशी से खिल उठी. साथ ही मैं ने एक काम किया. चुपचाप उस का पीछा करना शुरू कर दिया. मैं ने इमरान हसन को देखा, वह उतना ही खूबसूरत और डैशिंग था.

उम्र की अमीरी ने उसे और ग्रेसफुल बना दिया था. मैं उस के एकएक रूप एकएक चाल से वाकिफ थी. फिर मैं ने अदीना को अपनी गमभरी दास्तान सुनाई. वह कांप उठी, उस ने चीख कर पूछा, ‘‘ममा, कौन था वह कमीना बेदर्द इंसान?’’

‘‘मैं खुद उस बेगैरत की तलाश में हूं.’’

‘‘काश! वह मिल जाए.’’ अदीना ने गुर्राते हुए कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या करेगी तू उस का?’’

‘‘खुदा की कसम है मम्मी, मैं उसे जान से मार डालूंगी. ऐसा हाल करूंगी कि दुनिया देखेगी.’’

मुझे सुकून मिल गया, मैं ने अदीना की परवरिश इसी तरह की थी. ऐसा ही बनाया था उसे. मेरी निगरानी जारी थी. मैं चुपचाप उस का पीछा करती रही. उस दिन भी मैं अदीना से ज्यादा दूर नहीं थी, जब वह अदीना को अपनी शानदार कार में कहीं ले जा रहा था. वह अदीना को अपने घर ले गया. मैं भी छिप कर अंदर आ गई और दरवाजे के पीछे खड़ी हो गई.

मैं सारे रास्तों से वाकिफ थी. घर सुनसान पड़ा था. हलका अंधेरा था. मेरे कानों में इमरान हसन की नशीली आवाज पड़ी, ‘‘अदीना, तुम मेरी जिंदगी में बहार बन कर आई हो. मैं ने सारी जिंदगी तुम जैसी हसीना की तलाश में तनहा गुजार दी.’’

‘‘सर, ये आप क्या कह रहे हैं. मैं तो आप पर बहुत ऐतमाद करती थी. आप पर बहुत भरोसा है मुझे.’’

‘‘हां ठीक है, पर मोहब्बत तो उफनती नदी है. उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. तुम्हारी चाहत मेरी रगरग में समा गई है. मेरी जान, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘सर, ये आप गलत कर रहे हैं. आप मुझे यहां यह कह कर लाए थे कि कुछ लेटर्स भेजने हैं.’’

‘‘ये मेरा घर है और तुम अपनी मरजी से मेरे घर आई हो. अब यहां जो कुछ होगा, उस में तुम्हारी रजा भी समझी जाएगी. इस में मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर तुम बदनाम हो जाओगी. लोग कहेंगे तुम मेरे सूने घर में क्यों आई थीं?’’

‘‘सर, आप मुझे काम के बहाने लाए थे.’’

‘‘कौन सुनेगा, तुम्हारी बकवास.’’ वह हंस कर आगे बढ़ा. उसी वक्त मैं अंदर दाखिल हो गई. मैं ने कहा, ‘‘अदीना, यही है वह आदमी जिस की कहानी मैं ने तुम्हें सुनाई थी. यही है वह वहशी दरिंदा, जिस ने मेरी इज्जत लूटी थी.’’

इमरान मुझे देख कर हैरान रह गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘इमरान, ये तेरी बेटी है. तेरा गुनाह है.’’

फिर हम दोनों मसरूफ हो गए. अदीना ने अपना वादा निभाया. उसे कोने में रखा डंडा मिल गया. हम ने अपना इंतकाम लिया. इज्जत के लुटेरे उस शैतान को हम ने खत्म कर दिया. हम ने बहुत बड़ा नेक काम किया है और कई लड़कियों की इज्जत बचाई है. भले ही आप हमें सजा दीजिए, हमें मंजूर है. सुहाना चुप हो गई.

यह मेरी जिंदगी का सब से संगीन केस था. मैं बड़ी उलझन में था. अदालत में मैं सरकारी वकील की हैसियत से खड़ा था. मुझे इन मांबेटी पर संगीन जुर्म साबित करना था. उन के खिलाफ बोलना था, पर मेरा जमीर इस बात पर राजी नहीं था. मेरा दिल कहता था कि मैं यह मुकदमा हार जाऊं.

मुझे नहीं मालूम मैं ये मुकदमा ठीक से लड़ पाऊंगा या नहीं. मेरी जबान जैसे गूंगी हो गई थी. मैं अपनी बात कह नहीं पा रहा था. जुबान लड़खड़ा रही थी. और सचमुच मैं यह मुकदमा हार गया. मांबेटी सजा से बच गईं. मैं सही था या नहीं, कह नहीं सकता. आप खुद फैसला कीजिए.

(प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन)

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो

और मैं अवतरित हो गया इस धरती पर. मांबाप का अकेला बेटा, 2 बहनों का इकलौता भाई, घर का नूर, खानदान का चिराग, नाममात्र की जायदाद का वारिस व वंश वृद्धि का बायस. ‘‘तुझे पैदा करने के लिए मैं ने क्याक्या जतन किए, तुझे क्या मालूम है? मैं चाहती थी कि मेरी गोद में भी मेरा बेटा खेले, खानदान का नाम रोशन करने वाला, मेरा सिर ऊंचा करने वाला. बेटी पैदा होने पर  वह गुरूर नहीं महसूस होता है जो बेटा पैदा होने पर होता है. क्याक्या नहीं किया हम ने तेरे पैदा होने पर, सोहर गवाए, लड्डू बंटवाए, पूरे गांव को खाना खिलाया. आखिर अब मैं भी एक बेटे वाली मां जो थी,’’ मां कहतीं. मैं कुलबुला कर रह जाता, ‘‘स्वार्थी कहीं की. मुझे मालूम है, मां मुझे क्यों पैदा करना चाहती थीं ताकि मैं बड़ा हो कर उन का सहारा जो बनूंगा. कितने बेवकूफ हैं मेरे मांबाप. बेटा पैदा करने के साथ उस के लिए एक अच्छी नौकरी भी तो पैदा करनी चाहिए थी. अब भुगतो. जब तक नौकरी नहीं मिलती तब तक इस सहारे को सहारा दो.’’

मुझे बचपन से ही मांबाप तैयार कर रहे थे अपने बुढ़ापे के लिए, ‘हाय मेरा बचपन,’ मैं और मेरी बहनें टीवी देखते रहते. मां आवाज लगातीं, ‘बबलू, चलो पढ़ने बैठो.’ मैं ठुनकता, ‘नहीं मां, मुझे अभी टीवी देखना है.’ लेकिन वे मुझे जबरदस्ती उठा देतीं, ‘नहीं, पहले पढ़ाई. टीवी तो बाद में भी देखा जा सकता है.’ मैं बहनों की तरफ देख कर कहता, ‘पर मां, ये भी तो देख रही हैं, इन्हें क्यों नहीं पढ़ने बैठातीं?’

मां बेरुखी से कहतीं, ‘इन्हें कौन सा पढ़लिख कर कलैक्टर बनना है. कलैक्टर तो तू बनेगा, मेरा राजा बेटा.’ मैं बहनों को ईर्ष्या से देखता हुआ, मन मार कर पढ़ने बैठता. मैं सोचता ‘काश मैं भी लड़की होता.’ मेरे मांबाप के सपनों की तलवार हर समय मेरे सिर पर लटकी रहती, ‘तुम्हें बड़ा हो कर यह बनना है, वह बनना है.’ मेरा पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लगता था. मैं बड़ी हसरत से अपनी बहनों को इधरउधर डोलते, आसपास की लड़कियों के साथ गपशप करते, फोन पर फ्रैंड्स के साथ गपें मारते, टीवी देखते, हंसीमजाक करते देखता रहता था. मन हुआ तो पढ़ा नहीं तो कोई बात नहीं. उन को कहने वाला कोई नहीं था. पर मैं, मैं तो बेटा था न, मुझे तो पढ़ना था, पढ़लिख कर नौकरी के लिए घिसटना था. अच्छी नौकरी पानी थी. तो मैं झूलता रहता घर, कालेज, ट्यूशन और होमवर्क के बीच. जैसेतैसे मेरी पढ़ाई पूरी हुई. अब नौकरी की तलाश. जितना मैं नौकरी पाने की कोशिश करता उतना वह मुझ से दूर छिटकती, किसी मगरूर प्रेमिका की तरह. मेरे पिता मेरे नौकरी पाने के प्रयासों को समझते नहीं, उलटा मेरे घर में घुसते ही शुरू हो जाते. ‘आ गए साहबजादे मटरगश्ती कर के, कभी सोचा भी है कि किस तरह दिनरात खूनपसीना एक कर के अपना पेट काटकाट कर तुम्हें पढ़ायालिखाया है. अब तुम्हारा फर्ज बनता है कि इस बुढ़ापे में हमें सहारा दो.’

मैं मन ही मन उबल पड़ता, ‘मैं ने कहा था कि मुझे पढ़ाओलिखाओ. मुझ पर खर्च करो. पढ़लिख कर, पढ़पढ़ कर मेरा दिमाग खराब हो गया, वह दिखाई नहीं देता. मुझे पढ़ाने के बजाय ‘थ्री-पी’ यानी कि पहुंच, पहचान और पैसे का जुगाड़ किया होता, तो आज कहीं का कहीं पहुंच जाता.’ मरी बहनें भी मेरे कमा न पाने पर मेरी योग्यता पर प्रश्नचिह्न टांगें खड़ी रहतीं. उन्हें देखदेख कर मेरा और जी जलता रहता, ‘क्या आराम की जिंदगी है. न पढ़नेलिखने की चिंता न नौकरी की. जितना है उस में शादी तो हो ही जाएगी. कोई न कोई तो मिल ही जाएगा. एक मैं हूं, न नौकरी मिलती है न छोकरी. कहीं सारी जिंदगी कुंआरा ही न रहना पड़े. इस के लिए भी मेरे मांबाप मुझे ही दोषी ठहराते रहते.’

‘कहीं छोटीमोटी जौब कर ली होती तो यह नौबत नहीं आती.’ ‘आप ने भी क्लर्की के बजाय कलैक्टरी कर ली होती तो यह नौबत न आती.’ मेरे पिता यह सुन कर बिसुरने लगते. नालायक व बदतमीज औलाद पाने पर खुद को कोसने लगते. गिनाने लगते कि यह वही औलाद है जिस को पाने के लिए उन्होंने इतने पापड़ बेले. मैं कहता, ‘तो मुझे पा लिया न, अब और क्या चाहिए, आखिर देने वाले की भी तो कुछ सीमाएं होती हैं. आप को बेटा चाहिए था, मिल गया. आप ने यह थोड़ी ही कहा था कि कमाऊ बेटा चाहिए.’  मेरी बहनें सब से निर्लिप्त टीवी देखती रहतीं या आंगन में खड़ी पड़ोसिन की बेटी के साथ गपशप करती रहतीं. किसी बात की चिंता नहीं, शादी की भी नहीं, वह भी उन के मांबाप की है. उन का तो काम है कि मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में. तौबा, क्या मेरी जिंदगी है, बेटा बन कर क्या मिला मुझे? पढ़ाई का बोझ, नौकरी का टैंशन, छोकरी का गम. काश, इस से तो अच्छा कि मैं लड़की होता. कम से कम अपनी मरजी से तो कुछ कर पाता. पेंटिंग, ड्रैस डिजाइनिंग, कुकिंग, डांस, सिंगिंग, जो मुझे पढ़ना होता पढ़ता. नहीं तो छोड़ देता. जबरदस्ती डाक्टरी, इंजीनियरिंग, एमबीए में नहीं घिसटना पड़ता. लड़की होता तो मैं भी अपनी लाइफ ऐंजौय कर पाता. शादी से पहले भी शादी के बाद भी. न कमाने का झंझट. न नालायक, नकारा, कामचोर जैसे शब्दों से नवाजा जाता. जिस ने भी मुझे बनाया वह इस बार मेरी अर्जी पर ध्यान दे, इस जनम में भले मेरे बाप की सुन ली पर अब मेरी ही सुनियो और अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो…

मैंने शादी से पहले गर्भपात करवाया था, उस के बाद से ही मेरा पीरियड अनियमित हो गया है, अब क्या करूं?

सवाल
मेरी उम्र 30 साल है. शादी को 2 साल हो गए हैं. शादी के बाद से ही गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हूं. मैं ने शादी से पहले गर्भपात करवाया था. उस के बाद से ही मेरा पीरियड अनियमित हो गया है और पीरियड के दौरान स्राव भी बहुत कम होता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब
पीरियड के दौरान कम रक्तस्राव होने के कई कारण हो सकते हैं. इस का पता लगाने के लिए प्रारंभिक परीक्षण के तौर पर आप के पैल्विक का अल्ट्रासाउंड करना होगा, जिस में आप के गर्भाशय की भीतरी परत की मोटाई  की माप ली जाएगी. हारमोन का भी ठीक से पता लगाया जाएगा. उस के बाद अश्रमैंस सिंड्रोम पता लगाने के लिए हिस्टेरोस्कोपी जांच महत्त्वपूर्ण होगी. इस के अलावा जननांग की तपेदिक का पता लगाने के लिए बायोप्सी कर जांच के लिए भेजी जाएगी, क्योंकि पीरियड के दौरान कम रक्तस्राव होने का यह एक सामान्य कारण है.

डिलिवरी के बाद रहना चाहती हैं फिट तो फौलो करें ये टिप्स

शिल्पा शेट्टी या मलाइका अरोड़ा की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उस के लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं.

नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है. जबकि हकीकत यह है कि बच्चा पैदा होने के बाद यदि थोड़ा सा भी ध्यान खुद पर दिया जाए तो कोई भी महिला इन अभिनेत्रियों की तरह सुंदर दिख सकती है.

आइए जानते हैं कि कैसे डिलिवरी के बाद भी अपने को फिट और खूबसूरत रख सकती हैं.

कब शुरू करें व्यायाम

दिल्ली के सार्थक मैडिकल सैंटर की डायरैक्टर (गाइने) डाक्टर निम्मी रस्तोगी का कहना है, ‘‘अगर डिलिवरी सामान्य हुई हो तो डिलिवरी के 6 हफ्तों के बाद कोई भी महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है और अगर डिलिवरी सिजेरियन हुई हो तो 3 महीनों के बाद महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है.’’

डिलिवरी के समय वेट गेन होना यानी वजन का बढ़ना स्वाभाविक है. हर महिला 9 किलोग्राम से 11 किलोग्राम तक वेट गेन करती है. चूंकि इस समय फिजिकल ऐक्टिविटीज नहीं होती और घी, ड्राई फू्रट्स आदि हाईकैलोरी वाली चीजों का सेवन ज्यादा किया जाता है, तो वजन बढ़ ही जाता है. अगर नियमित रूप से व्यायाम और खानपान का ध्यान रखा जाए तो बढ़े वजन को घटाया जा सकता है.

कैसे करें ऐक्सरसाइज

सब से अच्छी ऐक्सरसाइज वाकिंग है. जितना अधिक चल सकें चलें, पानी बौडी को मूव करती रहें. शुरुआत सरल व्यायाम से करें. शुरू में 15 मिनट ही व्यायाम करें. धीरेधीरे व्यायाम का समय बढ़ा कर 45 मिनट करें. टोनिंग, ब्रीदिंग आदि ऐक्सरसाइज करें. ध्यान रहे हैवी  पीरियड्स के दौरान ऐक्सरसाइज न करें. ऐक्सरसाइज उतनी ही करें जिस से थकान न हो. ऐसी ऐक्सरसाइज भी न करें जिस से शरीर में खिंचाव या दर्द महसूस हो. डिलिवरी के बाद हारमोनों के प्रभाव से जोड़ों में ढीलापन आ जाता है. पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं. ऐसे में व्यायाम द्वारा उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है.

केगेल ऐक्सरसाइज

डिलिवरी के बाद योनि पर नियंत्रण कम होने से हंसते या खांसते समय यूरिन पास होने लगता है. इस समस्या के लिए केगेल ऐक्सरसाइज बहुत जरूरी है. यह ढीली हो चुकी योनि को मजबूत बनाती है. इस ऐक्सरसाइज द्वारा योनि को संकुचित किया जाता है. इस ऐक्सरसाइज में सांस को रोक कर योनि को 10-15 सैकंड तक सिकोड़ कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें.

इस ऐक्सरसाइज को दिन में 5 बार करें. इस से योनि की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, उन का ढीलापन कम होता है.

पेट की ऐक्सरसाइज

पेट की मांसपेशियों के लिए पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ लें. पेट पर दोनों हाथ क्रौस की मुद्रा में रखें. फिर सिर को उठाएं. सिर उठाने पर पेट की मांसपेशियां सख्त हो जाएंगी. फिर एक गहरी सांस लें. फिर सांस छोड़ते हुए सिर और कंधों को 45 डिग्री के कोण तक उठाएं और पेट की मांसपेशियों को सख्त कर लें. धीरेधीरे वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं. इस व्यायाम को धीरेधीरे बढ़ाते हुए रोज 50 बार करें.

मौर्निंग वाक के फायदे

यदि आप हमेशा फिट रहना चाहती हैं और अपने चेहरे की चमक भी बरकरार रखनी है तो प्रतिदिन वाकिंग को अपनी आदत में शामिल करें. इस से ब्लड में कोलैस्ट्रौल कम होने के साथसाथ हृदयरोग का खतरा भी कम होता है. जोड़ भी मजबूत होते हैं और शरीर में मैटाबोलिज्म की गति तीव्र होती है. वाक आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. इस से इमोशनल सपोर्ट भी मिलता है.

खानपान कैसा हो

आप प्रोटीनयुक्त भोजन करें तो ज्यादा फायदा होगा. हम जो भोजन करते हैं उस में 60% कार्बोहाइड्रेट और 25 से 40% वसा होती है जबकि प्रोटीन कम होता है. कार्बोहाइड्रेट व वसा की मात्रा कम कर के यदि प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें तो मोटापा आसानी से कम किया जा सकता है.

पनीर: यह दांतों के लिए बेहद लाभकारी होता है. इस में पाए जाने वाले खनिज, लवण, कैल्सियम और फास्फोरस दांतों के इनैमल की रक्षा करते हैं. पनीर हड्डियों को भी मजबूत बनाता है.

अंकुरित अनाज: अंकुरित अनाज में बहुत सारे प्रोटीन होते हैं, जो शरीर को मजबूत रखते हैं और बीमारियों से बचाते हैं. यह पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिन ए,बी,सी भरपूर होते हैं.

फाइबरयुक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आप का पाचनतंत्र मजबूत बनता है. अंकुरित अनाज में कैलोरी बहुत कम होती है.

पपीता: पपीते में विटामिन ए, बी, सी और डी, प्रोटीन तथा बीटा कैरोटिन जैसे तत्त्व पाए जाते हैं. पपीता वजन कम करने में बेहद सहायक है.

हरी पत्तेदार सब्जियां लौहयुक्त होती हैं. इन्हें खाने से डिलिवरी के बाद लौह की कमी से होने वाले एनीमिया से बचाव होता है. महिलाओं को प्रतिदिन

100 ग्राम हरी सब्जियां जरूरी खानी चाहिए. ये हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाती हैं और आंखों के लिए भी लाभदायक होती हैं. ये ब्रैस्ट कैंसर व लंग्स कैंसर की रोकथाम में भी कारगर हैं. सब्जियों में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है.

दिल्ली के तारकोर इन इंडिया जिम सैंटर के फिटनैस ऐक्सपर्ट पीयूष कुमार के अनुसार, ‘‘डिलिवरी के बाद ऐसी ऐक्सरसाइज करें जिस से स्टमक पर ज्यादा जोर न पड़े. इस के लिए हलकी स्ट्रैचिंग, नौर्मल क्रंच आदि करें. बैठेबैठे पैरों को क्रौस कर हिलाएं. पीठ के बल लेट कर घुटनों को मोड़ सकती हैं. पैरों को 10 बार ऊपरनीचे करें. खड़े हो कर दोनों हाथों को ऊपर की तरफ खींचें. सीधी खड़ी हो कर लैफ्टराइट मूव करें.’’

दिल्ली के ब्यूटी ऐक्सपर्ट साक्षी थडानी का कहना है कि डिलिवरी के बाद महिलाओं में हारमोनल बदलाव की वजह से थकावट सी रहती है. वे पार्लर में जाने से आलस करती हैं. ऐसे में वे घर बैठे ही खूबसूरती को कायम रख सकती हैं. क्लींजर या टोनर से चेहरे की मसाज कर के चेहरा साफ कर लें. फिर चेहरे पर लाइट बेस पाउडर लगाएं. लिप कलर लाइट कलर का ही लगाएं.

घर पर ही किसी ब्यूटीशियन को बुला कर थ्रैडिंग, वैक्सिंग कराएं. थ्रैडिंग करवाने से चेहरा साफ दिखेगा. औलिव औयल से पूरी बौडी की मालिश करवाएं और फेशियल जरूर करवाएं.

डिलिवरी के बाद ब्यूटी टिप्स

अधिकतर महिलाएं डिलिवरी के बाद अपने लुक के प्रति सतर्क नहीं रहतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि घर से बाहर तो जाना नहीं है, फिर भला क्यों बनावशृंगार किया जाए. परिणामस्वरूप उन की त्वचा डल सी दिखने लगती है. अगर आप थोड़ा सा समय निकाल कर दिल्ली की ब्यूटी ऐक्सपर्ट रेनू महेश्वरी के बताए निम्न ब्यूटी टिप्स पर अमल करें तो डिलिवरी के बाद भी आप की त्वचा चमकदार और खूबसूरत दिखेगी.

  1. डिलिवरी के बाद स्किन बहुत ड्राई हो जाती है. अत: केले को मसल कर चेहरे की हलके हाथों से मसाज करें.
  2. लिवरी के बाद बौडी में स्वैलिंग आ जाती है. ऐसे में चेहरे पर कोई फ्रूट पैक लगा कर थोड़ी देर रैस्ट करें.
  3. पपीते को मैश कर के फेस पर लगाने से स्किन ग्लोइंग और मुलायम हो जाती है और रिंकल्स भी खत्म हो जाती हैं.
  4. चेहरे की क्लीनिंग और टोनिंग जरूर करें. इस के बाद चेहरा कौटन से पोंछ कर मौइश्चराइजर लगाएं.
  5. हफ्ते में 2 बार स्क्रब जरूर करें. चाहे स्क्रब घरेलू हो या फिर रेडीमेड.
  6. अगर चेहरे पर दाने से निकलते हैं, तो लगातर स्किन टोनर का प्रयोग करें.
  7. ऐक्यूप्रैशर से खुद अपने हाथों से मसाज करें. पैरों को गोलगोल घुमाएं.
  8. गरम पानी में नीबू के छिलके या सी साल्ट डाल कर पैरों को डिप करें. इस से थकावट दूर होगी और पैर खूबसूरत हो जाएंगे.
  9. डिलिवरी के बाद पूरे शरीर की अरोमा औयल से मसाज करें. इस से रक्तसंचार बढ़ता है और त्वचा में चमक आती है. हां, अगर सिजेरियन डिलिवरी हुई हो तो पेट की मसाज न करें.
  10. 1 चम्मच मौइश्चराइजर में 3-4 बूदें नैरोली औयल की मिला कर मसाज करें.
  11. डिलिवरी के बाद बेचैनी और रात को नींद नहीं आती हो तो अपने तकिए पर कुछ बूंदें नैरोली औयल की डाल लें. इस से नींद अच्छी आती है. भरपूर नींद लेना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है और यह खूबसूरती भी बढ़ाती है.
  12. केशों के लिए विटामिन ई औयल से रोज हलके हाथों से मसाज करें. कंघी भी हलके हाथों से करें. इस से केशों के झड़ने की समस्या दूर होती है.
  13. केले को मैश कर के केशों में लगाने से केश नर्म, मुलायम और चमकदार हो जाते हैं.
  14. खूब पानी पीना और अपनी डाइट को संतुलित रखना बहुत जरूरी है. इस से चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं रहेगा और त्वचा भी खिलीखिली लगेगी.

इसमें बुरा क्या है : महेश और आभा ने मां के साथ क्या किया

महेश और आभा औफिस जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि आभा का मोबाइल बज उठा. आभा ने नंबर देखा, ‘रुक्मिणी है,’ कहते हुए फोन उठाया. कुछ ही पलों बाद ‘ओह, अच्छा, ठीक है,’ कहते हुए फोन रख दिया. चेहरे पर चिंता झलक रही थी. महेश ने पूछा, ‘‘कहीं छुट्टी तो नहीं कर रही है?’’

‘‘3 दिन नहीं आएगी. उस के घर पर मेहमान आए हैं.’’ दोनों के तेजी से चलते हाथ ढीले पड़ गए थे. महेश ने कहा, ‘‘अब?’’

‘‘क्या करें, मैं ने पिछले हफ्ते 2 छुट्टियां ले ली थीं जब यह नहीं आई थी और आज तो जरूरी मीटिंग भी है.’’

‘‘ठीक है, आज और कल मैं घर पर रह लेता हूं. परसों तुम छुट्टी ले लेना,’’ कह कर महेश फिर घर के कपड़े पहनने लगे. उन की 10वीं कक्षा में पढ़ रही बेटी मनाली और चौथी कक्षा में पढ़ रहा बेटा आर्य स्कूल के लिए तैयार हो चुके थे. नीचे से बस ने हौर्न दिया तो दोनों उतर कर चले गए. आभा भी चली गई. महेश ने अंदर जा कर अपनी मां नारायणी को देखा. वे आंख बंद कर के लेटी हुई थीं. महेश की आहट से भी उन की आंख नहीं खुली. महेश ने मां के माथे पर हाथ रख कर देखा, बुखार तो नहीं है?

मां ने आंखें खोलीं. महेश को देखा. अस्फुट स्वर में क्या कहा, महेश को समझ नहीं आया. महेश ने मां को चादर ओढ़ाई, किचन में जा कर उन के लिए चाय बनाई, साथ में एक टोस्ट ले कर मां के पास गए. उन्हें सहारा दे कर बिठाया. अपने हाथ से टोस्ट खिलाया. चाय भी चम्मच से धीरेधीरे पिलाई. 90 वर्ष की नारायणी सालभर से सुधबुध खो बैठी थीं. वे अब कभीकभी किसी को पहचानती थीं. अकसर उन्हें कुछ पता नहीं चलता था. रुक्मिणी को उन्हीं की देखरेख के लिए रखा गया था. रुक्मिणी के छुट्टी पर जाने से बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती थी. इतने में साफसफाई और खाने का काम करने वाली मंजू बाई आई तो महेश ने कहा, ‘‘मंजू, देख लेना मां के कपड़े बदलने हों तो बदल देना.’’

मां का बिस्तर गीला था. मंजू ने ही उन्हें सहारा दे कर खड़ा किया. बिस्तर महेश ने बदल दिया. ‘‘मां के कपड़े बदल दो, मंजू,’’ कह कर महेश कमरे से बाहर गए तो मंजू ने नारायणी को साफ धुले कपड़े पहनाए और मां को फिर लिटा दिया.

नारायणी के 5 बेटे थे. सब से बड़ा बेटा नासिक के पास एक गांव में रहता था. बाकी चारों बेटे मुंबई में ही रहते थे. महेश घर में सब से छोटे थे. नारायणी ने हमेशा महेश के ही साथ रहना पसंद किया था. महेश का टू बैडरूम फ्लैट एक अच्छी सोसाइटी में दूसरे फ्लोर पर था. एक वन बैडरूम फ्लैट इसी सोसाइटी में किराए पर दिया हुआ था. पहले महेश उसी में रहते थे पर बच्चों की पढ़ाई और मां की दिन पर दिन बढ़ती अस्वस्थता के चलते बाकी भाइयों के आनेजाने से वह फ्लैट काफी छोटा पड़ने लगा था. तो वे इस फ्लैट में शिफ्ट हो गए थे. मां की सेवा और देखरेख में महेश और आभा ने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी. कुछ महीनों पहले जब नारायणी चलतीफिरती थीं, रुक्मिणी का ध्यान इधरउधर होने पर सीढि़यों से उतर कर नीचे पहुंच जाती थीं. फिर वाचमैन ही उन्हें ऊपर तक छोड़ कर जाया करता था. महेश के सामने वाले फ्लैट में रहने वाले रिटायर्ड कुलकर्णी दंपती ने हमेशा महेश के परिवार को नारायणी की सेवा करते ही देखा था. उन के दोनों बेटे विदेश में कार्यरत थे. आमनेसामने दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. पर जब से नारायणी बिस्तर तक सीमित हो गई थीं, सब की जिम्मेदारी और बढ़ गई थी.

बच्चे स्कूल से वापस आए तो महेश ने हमेशा की तरह पहले मां को बिठा कर अपने हाथ से खिलाया. उस के औफिस में रहने पर रुक्मिणी ही उन का हर काम करती थी. फिर बच्चों के साथ बैठ कर खुद लंच किया. मां की हालत देख कर महेश की आंखें अकसर भर आती थीं. उसे एहसास था कि उस के पैदा होने के एक साल बाद ही उस के पिता की मृत्यु हो गई थी. पिता गांव के साधारण किसान थे. 5 बेटों को नारायणी ने कई छोटेछोटे काम कर के पढ़ायालिखाया था. अपने बच्चों को सफल जीवन देने में जो मेहनत नारायणी ने की थी उस के कई प्रत्यक्षदर्शी रिश्तेदार थे जिन के मुंह से नारायणी के त्याग की बातें सुन कर महेश का दिल भर आता था. यह भी सच था कि जितनी जिम्मेदारी और देखरेख मां की महेश करते थे उतनी कोई और बेटा नहीं कर पाया था. शायद, इसलिए नारायणी हमेशा महेश के साथ ही रहना पसंद करती थीं.

नारायणी को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा जाता था, यहां तक कि घूमनेफिरने का प्रोग्राम भी इस तरह बनाया जाता था कि कोई न कोई घर पर उन के पास रहे. मनाली की इस साल 10वीं बोर्ड की परीक्षा थी. तो वह अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी. शाम को महेश के बड़े भाई का फोन आया कि वे होली पर मां को देखने सपरिवार आ रहे हैं. मनाली के मुंह से तो सुनते ही निकला, ‘‘पापा, उस दौरान बोर्ड की परीक्षाएंशुरू होंगी. मैं सब लोगों के बीच कैसे पढ़ूंगी?’’ ‘‘ओह, देखते हैं,’’ महेश इतना ही कह पाए. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था पर आजकल मां को देखने के नाम पर जो भीड़ अकसर जुटती रहती थी उस से महेश और आभा को काफी असुविधा हो रही थी. हर भाई के 2 या 3 बच्चे तो थे ही, सब आते तो उन की आवभगत में महेश या आभा को औफिस से छुट्टी करनी ही पड़ती थी, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान पड़ता. मां को देखने आने का नाम ही होता, उन के पास बैठ कर उन की सेवा करने की इच्छा किसी की भी नहीं होती. सब घूमतेफिरते, अच्छेअच्छे खाने की फरमाइश करते. भाभियां तो मां के गीले कपड़े बदलने के नाम से ही कोई बहाना कर वहां से हट जातीं. आभा ही रुक्मिणी के साथ मिल कर मां की सेवा में लगी रहती. अब महेश थोड़ा चिंतित हुए, दिनभर सोचते रहे कि क्या करें, मां की तरफ से भी लापरवाही न हो, बच्चों की पढ़ाई में भी व्यवधान न हो.

महेश और आभा दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पदों पर थे. आर्थिक स्थिति अच्छी ही थी, शायद इसलिए भी दिनभर कई तरह की बातें सोचतेसोचते आखिर एक रास्ता महेश को सूझ ही गया. रात को आभा लौटी तो महेश, भाई के सपरिवार आने का और मनाली की परीक्षाओं का एक ही समय होने के बारे में बताते हुए कहने लगे, ‘‘आभा, दिनभर सोचने के बाद एक बात सूझी है. मैं दूसरा फ्लैट खाली करवा लेता हूं. मां को वहां शिफ्ट कर देते हैं. मां के लिए किसी अतिविश्वसनीय व्यक्ति का उन के साथ रहने का प्रबंध कर देते हैं.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो महेश? मां अकेली रहेंगी?’’

‘‘अकेली कहां? हम वहां आतेजाते ही रहेंगे. पूरी नजर रहेगी वहां हमारी. जो भी रिश्तेदार उन्हें देखने के नाम से आते हैं, वहीं रह लेंगे और यहां भी आने की किसी को मनाही थोड़े ही होगी. मैं ने बहुत सोचा है इस बारे में, मुझे इस में कुछ गलत नहीं लग रहा है. थोड़े खर्चे बढ़ जाएंगे, 2 घरों का प्रबंध देखना पड़ेगा, किराया भी नहीं आएगा. लेकिन हम मां की देखरेख में कोई कमी नहीं करेंगे. बच्चों की पढ़ाई भी डिस्टर्ब नहीं होने देंगे.’’

‘‘महेश, यह ठीक नहीं रहेगा? मां को कभी दूर नहीं किया हम ने,’’ आभा की आंखें भर आईं.

‘‘तुम देखना, यह कदम ठीक रहेगा. किसी को परेशानी नहीं होगी. और अगर किसी को भी तकलीफ हुई तो मां को यहीं ले आएंगे फिर.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगे.’’

अगला एक महीना महेश और आभा काफी व्यस्त रहे. दूसरा फ्लैट बस 2 बिल्ंडग ही दूर था. किराएदार भी महेश की परेशानी समझ जल्दी से जल्दी फ्लैट खाली करने के लिए तैयार हो गए. महेश ने स्वयं उन के लिए दूसरा फ्लैट ढूंढ़ने में सहयोग किया. महेश की रिश्तेदारी में एक लता काकी थीं, जो विधवा थीं, जिन की कोई संतान भी नहीं थी. वे कभी किसी रिश्तेदार के यहां रहतीं, कभी किसी आश्रम में चली जातीं. महेश ने उन की खोजबीन की तो पता चला वे पुणे में किसी रिश्तेदार के घर में हैं. महेश खुद कार ले कर उन्हें लेने गए. नारायणी जब स्वस्थ थीं, वे तब कई बार उन के पास मिलने आती थीं. महेश को देख कर लता काफी खुश हुईं और जब महेश ने कहा, ‘‘बस, मैं आप पर ही मां की देखभाल का भरोसा कर सकता हूं काकी, आप उन के साथ रहना, घर के कामों के लिए मैं एक फुलटाइम मेड का प्रबंध कर दूंगा,’’ लता खुशीखुशी महेश के साथ आ गईं.

दूसरा फ्लैट खाली हो गया. एक फुलटाइम मेड राधा का प्रबंध भी हो गया था. एक रविवार को मां को दूसरे फ्लैट में ले जाया जा रहा था. महेश और आभा ने उन के हाथ पकड़े हुए थे. वे बिलकुल अंजान सी साथ चल रही थीं. सामने वाले फ्लैट के मिस्टर कुलकर्णी पूरी स्थिति जानते ही थे. वे कह रहे थे, ‘‘महेशजी, आप ने सोचा तो सही है पर आप की भागदौड़ और खर्चे बढ़ने वाले हैं.’’

‘‘हां, देखते हैं, आगे समझ आ ही जाएगा, यह सही है या नहीं?’’ आभा ने वहां किचन पूरी तरह से सैट कर ही दिया था. लता काकी को सब निर्देश दे दिए गए थे. महेश ने उन्हें यह भी संकेत दे दिया था कि वे उन्हें हर महीने कुछ धनराशि भी जरूर देंगे. वे खुश थीं. उन्हें अब एक ठिकाना मिल गया था. सोसाइटी में पहले तो जिस ने सुना, हैरान रह गया. कई तरह की बातें हुईं. किसी ने कहा, ‘यह तो ठीक नहीं है, बूढ़ी मां को अकेले घर में डाल दिया.’ पर समर्थन में भी लोग थे. उन का कहना था, ‘ठीक तो है, मां जी को देखने इतना आनाजाना होता है, लोगों की भीड़ रहती थी, यह अच्छा विचार है.’ महेश और बाकी तीनों भी मां के आसपास ही रहते, जिस को समय मिलता, वहीं पहुंच जाता. मां अब किसी को पहचानती तो थीं नहीं, पर फिर भी सब ज्यादा से ज्यादा समय वहीं बिताते. वहां की हर जरूरत पर उन का ध्यान रहता. मिस्टर कुलकर्णी ने अकसर देखा था महेश सुबह औफिस जाने से पहले और आने के बाद सीधे वहीं जाते हैं और छुट्टी वाले दिन तो अकसर सामने ताला रहता, मतलब सब नारायणी के पास ही होते. 3 महीने बीत गए. होली पर भाई सपरिवार आए. पहले तो उन्हें यह प्रबंध अखरा पर कुछ कह नहीं पाए. आखिर महेश ही थे जो सालों से मां की सेवा कर रहे थे. मनाली की परीक्षाएं भी बिना किसी असुविधा के संपन्न हो गई थीं. मां की हालत खराब थी. उन्होंने खानापीना छोड़ दिया था. डाक्टर को बुला कर दिखाया गया तो उन्होंने भी संकेत दे दिया कि अंतिम समय ही है. कभी भी कुछ हो सकता है. बड़ी मुश्किल से उन के मुंह में पानी की कुछ बूंदें या जूस डाला जाता. लता काकी को इन महीनों में एक परिवार मिल गया था.

मां को कुछ होने की आशंका से लता काकी हर पल उदास रहतीं और एक रात नारायणी की सांसें उखड़ने लगीं तो लता काकी ने फौरन महेश को इंटरकौम किया. महेश सपरिवार भागे. मां ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं. सब बिलख उठे. महेश बच्चे की तरह रो रहे थे. आभा ने सब भाइयों को फोन कर दिया. सुबह तक मुंबई में ही रहने वाले भाई पहुंच गए, बाकी रिश्तेदारों का आना बाकी था. सोसाइटी में सुबह खबर फैलते ही लोग इकट्ठा होते गए. भीड़ में लोग हर तरह की बातें कर रहे थे. कोई महेश की सेवा के प्रबंध की तारीफ कर रहा था, वहीं सोसाइटी के ही दिनेशजी और उन की पत्नी सुधा बातें बना रहे थे, ‘‘अंतिम दिनों में अलग कर दिया, अच्छा नहीं किया, मातापिता बच्चों के लिए कितना करते हैं और बच्चे…’’

वहीं खड़े मिस्टर कुलकर्णी से रहा नहीं गया. उन्होंने कहा, ‘‘भाईसाहब, महेशजी ने अपनी मां की बहुत ही सेवा की है, मैं ने अपनी आंखों से देखा है.’’

‘‘हां, पर अंतिम समय में दूर…’’

‘‘दूर कहां, हर समय तो ये सब उन के आसपास ही रहते थे. उन की हर जरूरत के समय, वे कभी अकेली नहीं रहीं, आर्थिक हानिलाभ की चिंता किए बिना महेशजी ने सब की सुविधा का ध्यान रखते हुए जो कदम उठाया था, उस में कुछ भी बुरा नहीं है. आप के बेटेबहू भी तो अपने बेटे को ‘डे केयर’ में छोड़ कर औफिस जाते हैं न, तो इस का मतलब यह तो नहीं है न, कि वे अपने बेटे से प्यार नहीं करते. आजकल की व्यस्तता, बच्चों की पढ़ाई, सब ध्यान में रखते हुए कुछ नए रास्ते सोचने पड़ते हैं. इस में बुरा क्या है. बातें बनाना आसान है. जिस पर बीतती है वही जानता है.  महेशजी और उन का परिवार सिर्फ प्रशंसा का पात्र है, एक उदाहरण है.’’ वहां उपस्थित बाकी लोग मिस्टर कुलकर्णी की बात से सहमत थे. दिनेशजी और उन की पत्नी ने भी अपने कहे पर शर्मिंदा होते हुए उन की बात के समर्थन में सिर हिला दिया था.

इस में गलत क्या है : आखिर मेरी क्या गलती थी

मेरी छोटी बहन रमा मुझे समझा रही है और मुझे वह अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही है. यह समझती क्यों नहीं कि मैं अपने बच्चे से कितना प्यार करती हूं.

‘‘मोह उतना ही करना चाहिए जितना सब्जी में नमक. जिस तरह सादी रोटी बेस्वाद लगती है, खाई नहीं जाती उसी तरह मोह के बिना संसार अच्छा नहीं लगता. अगर मोह न होता तो शायद कोई मां अपनी संतान को पाल नहीं पाती. गंदगी, गीले में पड़ा बच्चा मां को क्या किसी तरह का घिनौना एहसास देता है? धोपोंछ कर मां उसे छाती से लगा लेती है कि नहीं. तब जब बच्चा कुछ कर नहीं सकता, न बोल पाता है और न ही कुछ समझा सकता है.

‘‘तुम्हारे मोह की तरह थोड़े न, जब बच्चा अपने परिवार को पालने लायक हो गया है और तुम उस की थाली में एकएक रोटी का हिसाब रख रही हो, तो मुझे कई बार ऐसा भी लगता है जैसे बच्चे का बड़ा होना तुम्हें सुहाया ही नहीं. तुम को अच्छा नहीं लगता जब सुहास अपनेआप पानी ले कर पी लेता है या फ्रिज खोल कर कुछ निकालने लगता है. तुम भागीभागी आती हो, ‘क्या चाहिए बच्चे, मुझे बता तो?’

‘‘क्यों बताए वह तुम्हें? क्या उसे पानी ले कर पीना नहीं आता या बिना तुम्हारी मदद के फल खाना नहीं आएगा? तुम्हें तो उसे यह कहना चाहिए कि वह एक गिलास पानी तुम्हें भी पिला दे और सेब निकाल कर काटे. मौसी आई हैं, उन्हें भी खिलाए और खुद भी खाए. क्या हो जाएगा अगर वह स्वयं कुछ कर लेगा, क्या उसे अपना काम करना आना नहीं चाहिए? तुम क्यों चाहती हो कि तुम्हारा बच्चा अपाहिज बन कर जिए? जराजरा सी बात के लिए तुम्हारा मुंह देखे? क्यों तुम्हारा मन दुखी होता है जब बच्चा खुद से कुछ करता है? उस की पत्नी करती है तो भी तुम नहीं चाहतीं कि वह करे.’’

‘‘तो क्या हमारे बच्चे बिना प्यार के पल गए? रातरात भर जाग कर हम ने क्या बच्चों की सेवा नहीं की? वह सेवा उस पल की जरूरत थी इस पल की नहीं. प्यार को प्यार ही रहने दो, अपने गले की फांसी मत बना लो, जिस का दूसरा सिरा बच्चे के गले में पड़ा है. इधर तुम्हारा फंदा कसता है उधर तुम्हारे बच्चे का भी दम घुटता है.’’

‘‘सुहास ने तुम से कुछ कहा है क्या? क्या उसे मेरा प्यार सुहाता नहीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे नहीं, दीदी, वह ऐसा क्यों कहेगा. तुम बात को समझना तो चाहती नहीं हो, इधरउधर के पचड़े में पड़ने लगती हो. उस ने कुछ नहीं कहा. मैं जो देख रही हूं उसी आधार पर कह रही हूं. कल तुम भावना से किस बात पर उलझ रही थीं, याद है तुम्हें?’’

‘‘मैं कब उलझी? उस ने तेरे आने पर इतनी मेहनत से कितना सारा खाना बनाया. कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेती कि क्या बनाना है.’’

‘‘क्यों पूछ लेती? क्या जराजरा सी बात तुम से पूछना जरूरी है? अरे, वही

4-5 दालें हैं और वही 4-6 मौसम की सब्जियां. यह सब्जी न बनी, वह बन गई, दाल में टमाटर का तड़का न लगाया, प्याज और जीरे का लगा लिया. भिंडी लंबी न काटी गोल काट ली. मेज पर नई शक्ल की सब्जी आई तो तुम ने झट से नाकभौं सिकोड़ लीं कि भिंडी की जगह परवल क्यों नहीं बनाए. गुलाबी डिनर सैट क्यों निकाला, सफेद क्यों नहीं. और तो और, मेजपोश और टेबल मैट्स पर भी तुम ने उसे टोका, मेरे ही सामने. कम से कम मेरा तो लिहाज करतीं. वह बच्ची नहीं है जिसे तुम ने इतना सब बिना वजह सुनाया.

‘‘सच तो यह है, इतनी सुंदर सजी मेज देख कर तुम से बरदाश्त ही नहीं हुआ. तुम से सहा ही नहीं गया कि तुम्हारे सामने किसी ने इतना अच्छा खाना सजा दिया. तुम्हें तो प्रकृति का शुक्रगुजार होना चाहिए कि बैठेबिठाए इतना अच्छा खाना मिल जाता है. क्या सारी उम्र काम करकर के तुम थक नहीं गईं? अभी भी हड्डियों में इतना दम है क्या, जो सब कर पाओ? एक तरफ तो कहती हो तुम से काम नहीं होता, दूसरी तरफ किसी का किया तुम से सहा नहीं जाता. आखिर चाहती क्या हो तुम?

‘‘तुम तो अपनी ही दुश्मन आप बन रही हो. क्या कमी है तुम्हारे घर में? आज्ञाकारी बेटा है, समझदार बहू है. कितनी कुशलता से सारा घर संभाल रही है. तुम्हारे नातेरिश्तेदारों का भी पूरा खयाल रखती है न. कल सारा दिन वह मेरे ही आगेपीछे डोलती रही. ‘मौसी यह, मौसी वह,’ मैं ने उसे एक पल के लिए भी आराम करते नहीं देखा और तुम ने रात मेज पर उस की सारे दिन की खुशी पर पानी फेर दिया, सिर्फ यह कह कर कि…’’

चुप हो गई रमा लेकिन भन्नाती रही देर तक. कुछ बड़बड़ भी करती रही. थोड़ी देर बाद रमा फिर बोलने लगी, ‘‘तुम क्यों बच्चों की जरूरत बन कर जीना चाहती हो? ठाट से क्यों नहीं रहती हो. यह घर तुम्हारा है और तुम मालकिन हो. बच्चों से थोड़ी सी दूरी रखना सीखो. बेटा बाहर से आया है तो जाने दो न उस की पत्नी को पानी ले कर. चायनाश्ता कराने दो. यह उस की गृहस्थी है. उसी को उस में रमने दो. बहू को तरहतरह के व्यंजन बनाने का शौक है तो करने दो उसे तजरबे, तुम बैठी बस खाओ. पसंद न भी आए तो भी तारीफ करो,’’ कह कर रमा ने मेरा हाथ पकड़ा.

‘‘सब गुड़गोबर कर दे तो भी तारीफ करूं,’’ हाथ खींच लिया था मैं ने.

‘‘जब वह खुद खाएगी तब क्या उसे पता नहीं चलेगा कि गुड़ का गोबर हुआ है या नहीं. अच्छा नहीं बनेगा तो अपनेआप सुधारेगी न. यह उस के पति का घर है और इस घर में एक कोना उसे ऐसा जरूर मिलना चाहिए जहां वह खुल कर जी सके, मनचाहा कर सके.’’

‘‘क्या मनचाहा करने दूं, लगाम खींच कर नहीं रखूंगी तो मेरी क्या औकात रह जाएगी घर में. अपनी मरजी ही करती रहेगी तो मेरे हाथ में क्या रहेगा?’’

‘‘अपने हाथ में क्या चाहिए तुम्हें, जरा समझाओ? बच्चों का खानापीना या ओढ़नाबिछाना? भावना पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. घर संभालती है, तुम्हारी देखभाल करती है. तुम जिस तरह बातबात पर तुनकती हो उस पर भी वह कुछ कहती नहीं. क्या सब तुम्हारे अधिकार में नहीं है? कैसा अधिकार चाहिए तुम्हें, समझाओ न?

‘‘तुम्हारी उम्र 55 साल हो गई. तुम ने इतने साल यह घर अपनी मरजी से संभाला. किसी ने रोका तो नहीं न. अब बहू आई है तो उसे भी अपनी मरजी करने दो न. और ऐसी क्या मरजी करती है वह? अगर घर को नए तरीके से सजा लेगी तो तुम्हारा अधिकार छिन जाएगा? सोफा इधर नहीं, उधर कर लेगी, नीले परदे न लगाए लाल लगा लेगी, कुशन सूती नहीं रेशमी ले आएगी, तो क्या? तुम से तो कुछ मांगेगी नहीं न?

‘‘इसी से तुम्हें लगता है तुम्हारा अधिकार हाथ से निकल गया. कस कर अपने बेटे को ही पकड़ रही हो…उस का खानापीना, उस का कुछ भी करना… अपनी ममता को इतना तंग और संकुचित मत होने दो, दीदी, कि बेटे का दम ही घुट जाए. तुम तो दोनों की मां हो न. इतनी तंगदिल मत बनो कि बच्चे तुम्हारी ममता का पिंजरा तोड़ कर उड़ जाएं. बहू तुम्हारी प्रतिद्वंद्वी नहीं है. तुम्हारी बच्ची है. बड़ी हो तुम. बड़ों की तरह व्यवहार करो. तुम तो बहू के साथ किसी स्पर्धा में लग रही हो. जैसे दौड़दौड़ कर मुकाबला कर रही हो कि देखो, भला कौन जीतता है, तुम या मैं.

‘‘बातबात में उसे कोसो मत वरना अपना हाथ खींच लेगी वह. अपना चाहा भी नहीं करेगी. तुम से होगा नहीं. अच्छाभला घर बिगड़ जाएगा. फिर मत कहना, बहू घर नहीं देखती. वह नौकरानी तो है नहीं जो मात्र तुम्हारा हुक्म बजाती रहेगी. यह उस का भी घर है. तुम्हीं बताओ, अगर उसे अपना घर इस घर में न मिला तो क्या कहीं और अपना घर ढूंढ़ने का प्रयास नहीं करेगी वह? संभल जाओ, दीदी…’’

रमा शुरू से दोटूक ही बात करती आई है. मैं जानती हूं वह गलत नहीं कह रही मगर मैं अपने मन का क्या करूं. घर के चप्पेचप्पे पर, हर चीज पर मेरी ही छाप रही है आज तक. मेरी ही पसंद रही है घर के हर कोने पर. कौन सी चादर, कौन सा कालीन, कौन सा मेजपोश, कौन सा डिनर सैट, कौन सी दालसब्जी, कौन सा मीठा…मेरा घर, मैं ने कभी किसी के साथ इसे बांटा नहीं. यहां तक कि कोने में पड़ी मेज पर पड़ा महंगा ‘बाऊल’ भी जरा सा अपनी जगह से हिलता है तो मुझे पता चल जाता है. ऐसी परिस्थिति में एक जीताजागता इंसान मेरी हर चीज पर अपना ही रंग चढ़ा दे, तो मैं कैसे सहूं?

‘‘भावना का घर कहां है, दीदी, जरा मुझे समझाओ? तुम्हें जब मां ने ब्याह कर विदा किया था तब यही समझाया था न कि तुम्हारी ससुराल ही तुम्हारा घर है. मायका पराया घर और ससुराल अपना. इस घर को तुम ने भी मन से अपनाया और अपने ही रंग में रंग भी लिया. तुम्हारी सास तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं. तुम गुणी थीं और तुम्हारे गुणों का पूरापूरा मानसम्मान भी किया गया. सच पूछो तो गुणों का मान किया जाए तभी तो गुण गुण हुए न. तुम्हारी सास ने तुम्हारी हर कला का आदर किया तभी तो तुम कलावंती, गुणवंती हुईं.

वे ही तुम्हारी कीमत न जानतीं तो तुम्हारा हर गुण क्या कचरे के ढेर में नहीं समा जाता? तुम्हें घर दिया गया तभी तो तुम घरवाली हुई थीं. अब तुम भी अपनी बहू को उस का घर दो ताकि वह भी अपने गुणों से घर को सजा सके.’’

रमा मुझे उस रात समझाती रही और उस के बाद जाने कितने साल समझाती रही. मैं समझ नहीं पाई. मैं समझना भी नहीं चाहती. शायद, मुझे प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है कि अपने सिवा मुझे कोई भी पसंद नहीं. अपने सिवा मुझे न किसी की खुशी से कुछ लेनादेना है और न ही किसी के मानसम्मान से. पता नहीं क्यों हूं मैं ऐसी. पराया खून अपना ही नहीं पाती और यह शाश्वत सत्य है कि बहू का खून होता ही पराया है.

आज रमा फिर से आई है. लगभग 9 साल बाद. उस की खोजी नजरों से कुछ भी छिपा नहीं. भावना ने चायनाश्ता परोसा, खाना भी परोसा मगर पहले जैसा कुछ नहीं लगा रमा को. भावना अनमनी सी रही.

‘‘रात खाने में क्या बनाना है?’’ भावना बोली, ‘‘अभी बता दीजिए. शाम को मुझे किट्टी पार्टी में जाना है देर हो जाएगी. इसलिए अभी तैयारी कर लेती हूं.’’

‘‘आज किट्टी रहने दो. रमा क्या सोचेगी,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप तो हैं ही, मेरी क्या जरूरत है. समय पर खाना मिल जाएगा.’’

बदतमीज भी लगी मुझे भावना इस बार. पिछली बार रमा से जिस तरह घुलमिल गई थी, इस बार वैसा कुछ नहीं लगा. अच्छा ही है. मैं चाहती भी नहीं कि मेरे रिश्तेदारों से भावना कोई मेलजोल रखे.

मेरा सारा घर गंदगी से भरा है. ड्राइंगरूम गंदा, रसोई गंदी, आंगन गंदा. यहां तक कि मेरा कमरा भी गंदा. तकियों में से सीलन की बदबू आ रही है. मैं ने भावना से कहा था, उस ने बदले नहीं. शर्म आ रही है मुझे रमा से. कहां बिठाऊं इसे. हर तरफ तो जाले लटक रहे हैं. मेज पर मिट्टी है. कल की बरसात का पानी भी बरामदे में भरा है और भावना को घर से भागने की पड़ी है.

‘‘घर वही है मगर घर में जैसे खुशियां नहीं बसतीं. पेट भरना ही प्रश्न नहीं होता. पेट से हो कर दिल तक जाने वाला रास्ता कहीं नजर नहीं आता, दीदी. मैं ने समझाया था न, अपनेआप को बदलो,’’ आखिरकार कह ही दिया रमा ने.

‘‘तो क्या जाले, मिट्टी साफ करना मेरा काम है?’’

‘‘ये जाले तुम ने खुद लगाए हैं, दीदी. उस का मन ही मर चुका है, उस की इच्छा ही नहीं होती होगी अब. यह घर उस का थोड़े ही है जिस में वह अपनी जानमारी करे. सच पूछो तो उस का घर कहीं नहीं है. बेटा तुम से बंधा कहीं जा नहीं सकता और अपना घर तुम ने बहू को कभी दिया नहीं.

‘‘मैं ने समझाया था न, एक दिन तुम्हारा घर बिगड़ जाएगा. आज तुम से होता नहीं और वह अपना चाहा भी नहीं करती. मनमन की बात है न. तुम अपने मन का करती रहीं, वह अपने मन का करती रही. यही तो होना था, दीदी. मुझे यही डर था और यही हो रहा है. मैं ने समझाया था न.’’

रमा के चेहरे पर पीड़ा है और मैं यही सोच कर परेशान हूं कि मैं ने गलती कहां की है. अपना घर ही तो कस कर पकड़ा है. आखिर इस में गलत क्या है?

मल्हार : वास्तविक मार्मिक दृश्यों के साथ इंसानों को बांटने वाली धर्म की लकीर पर चोट

(तीन स्टार)

देश के प्रधानमंत्री इस लोकसभा चुनाव के दौरान हिंदू व मुसलिमों को बांटने की बात करते रहे,
वहीं फिल्मकार विशाल कुम्भार हिंदी और मराठी दो भाषाओं में उन्हीं के गुजरात के कच्छ की
पृष्ठभूमि में धर्म को देखने के नजरिए पर बात करने वाली विचारोत्तेजक फिल्म ‘मल्हार’ ले कर
आए हैं, जोकि 6 जून को सिनेमाघरों में पहुंची है.

यह फिल्म मोरपंख को ‘भगवान कृष्ण का मुकुट’ बताने के साथ ही मुसलिम धर्म में ‘इबादत व
दुआ के लिए पाक’ कह कर एक अद्भुत संदेश देती है. फिल्म धर्म के भेदभाव पर कटाक्ष करने,
सभी धर्म के इ्र्रश्वर एक हैं की बात करने के साथ ही झूठी सामाजिक मानमर्यादा से ले कर पुरूष
की नपुंसकता पर भी बिना किसी भाषणबाजी के चोट करती है.

यह एक एंथेलौजी वाली फिल्म है. यानी कि फिल्म में 3 कहानियां हैं जो कि समानांतर चलते हुए
भी एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं. कहानियां गुजरात के कच्छ के एक दूरदराज गांव की है, जिस में एक
कहानी दो बालकों की है, जो कि अच्छे दोस्त हैं. एक जावेद (विनायक पोतदार) है, जिस के पिता
परवेज मुसलिम कब्रिस्तान में शव दफन का काम कर के घर चलाते हैं. उस की बड़ी बहन
जस्मिन (अक्षता आचार्य) व छोटी बहन जमीला है. जबकि दूसरा हिंदू लड़का भैरव (श्रीनिवास
पोकले) है, जिस के दादाजी संगीतज्ञ हैं और अपने पोते भैरव को भी संगीत सिखाने का प्रयास
करते रहते हैं.

भैरव को सुनाई नहीं देता. वह कान में सुनने का यंत्र यानी कि श्रवण यंत्र लगा कर रखता है. गांव
के तालाब में भैरव का श्रवण यंत्र खराब हो जाता है, दोनों बालक अपने स्तर पर श्रवण यंत्र की
मरम्मत के लिए संघर्ष करते हैं तो पता चलता है कि इस की मरम्मत नहीं हो सकती. नया

खरीदने के लिए 1500 रूपए एकत्र करने के लिए दोनों बालकों के संघर्ष के साथ कहानी चलती
है.

दूसरी तरफ गांव के सरपंच (रवि झांकल) के परिवार की कहानी है. सरपंच के बेटे लक्ष्मण (ऋषि
सक्सेना) की शादी केसर (अंजली पाटिल) से हुई है, पर वह मां नहीं बन पाई है. लक्ष्मण की
कमजोरी के चलते केसर पर बांझ होने का आरोप लगता है. लक्ष्मण के मातापिता व दादी चाहते
हैं कि वह लक्ष्मण की दूसरी शादी करा दे. ऐसे में केसर अपनी शादी व अपने प्यार को बचाने के
साथ ही पति व परिवार की इज्जत को बचाने के लिए एक अनूठा कदम उठाती है. जिस में वह
एक सेल्समैन के रूप में कार्यरत मोहन (शारिब हाशमी) की मदद लेती है.

तीसरी कहानी गांव में दूध की डेयरी चलाने वाले शमशेर के बेटे जतिन (मोहम्मद सामद) और
जावेद की बहन जस्मिन की प्रेम कहानी है. यह तीनों कहानियां समानांतर चलते हुए भी एक
दूसरे से जुड़ी हुई हैं.

निर्देशक विशाल कुम्भार ने अपने कुशल निर्देशन के माध्यम से देश की ग्रामीण संरचना,
अंर्तविरोध, बच्चों की दिल को छू लेने वाली दोस्ती, मार्मिक संघर्ष, इंसानी जीवन की त्रासदी, सच्चे
प्यार की परिभाषा के साथ ही इस बात को भी रेखांकित किया है कि बच्चों के लिए सभी धर्म,
भगवान या अल्लाह एक ही हैं. मगर कुछ समाज व धर्म के ठेकेदार अपना वर्चस्व कायम रखने
के लिए धर्म के आधार पर ऐसी लकीर खींचते हैं, जो कि इंसान की जान ले लेती है.

बतौर निर्देशक विशाल कुम्भार ने फिल्म में भाषणबाजी नहीं की है, मगर कुछ खूबसूरत दृश्यों को
पिरो कर दर्शकों के दिलों तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे हैं. मसलन- भैरव के लिए नया
श्रवण यंत्र खरीदने में मदद की गुहार लगाने के लिए जावेद और भैरव का एक साथ हनुमान के
मंदिर जाना, हनुमान की मूर्ति से जावेद का अपने पिता की आर्थिक हालत सुधारने की मांग
करना हो या फिर हिंदू लड़के जतिन का अपनी प्रेमिका जस्मिन के साथ मजार पर जा कर
विनती करना हो. या अपनी मुसलिम प्रेमिका की खातिर जतिन द्वारा उर्दू जुब़ान सीखने व
साहिर को पढ़ने का दृश्य हो.

फिल्म की कमजोर कड़ी इस की पटकथा है. फिल्म की गति भी धीमी है. लेखकों ने कहानी तो
फैला दी, पर उसे समेटने में इतनी जल्दबाजी कर दी कि दर्शक को झटका सा लगता है. लेखकों

ने इस बात पर रोशनी नहीं डाली कि भैरव के पिता को कैसे पता चला कि भैरव का श्रवण यंत्र
खराब हो गया है. इसी तरह जस्मिन ने आत्महत्या की या… इस पर भी फिल्म खुल कर कुछ
नहीं कहती. पर पटकथा लेखकों ने केसर के बांझ होने की वजह पर अंत तक जिस तरह से
दर्शकों के मन में एक उत्सुकता जगा कर रखी है, वह काबिले तारीफ है, जिसे क्लाइमैक्स से पहले
उजागर किया जाता है कि लक्ष्मण में पुरूष या स्त्री किसी के प्रति कोई आकर्षण नहीं है. उस ने
तो अपने सरपंच पिता की इज्जत को तारतार होने से बचाने के लिए केसर से विवाह किया था.
फिल्मकार ने पति व परिवार की झूठी सामाजिक मानमर्यादा को बचाने के लिए केसर द्वारा
उठाए गए कदम की नैतिकता पर सवाल न उठाते हुए सामाजिक ढकोसले पर कटाक्ष किया है.
इतना ही नहीं लेखकों की इस बात के लिए सरहाना की जानी चाहिए कि वह दोस्ती, प्रेम, विवाह
और अल्पसंख्यक समुदाय के संघर्षों को बिना मेलोड्रामा के सूक्ष्म स्पर्श के साथ पेश करने में
सफल रहे हैं.

फिल्म के संवाद लेखकों सिद्धार्थ साल्वी और स्वप्निल सीताराम के चुतीले संवाद सीधे दिल पर
चोट करते हुए बहुत कुछ कह जाते हैं. फिल्म में जस्मिन का संवाद है, ‘‘प्यार दो तरफा होता है,
जान भी लेता है और जनाजे पर मातम भी मनाता है.’’ यह संवाद बहुत कुछ कह जाता है. तो
वहीं एक जगह चांद के संदर्भ में जतिन कहता है, ‘‘करवा चौथ का चांद हो या ईद का चांद हो,
चांद तो चांद ही होता है.’’ केसर का प्यार को ले कर कहा गया संवाद, ‘‘बिस्तर पर साथ होना ही
प्यार नहीं होता, एकदूसरे को स्वीकार करना भी प्यार होता है.’’ पतिपत्नी के बीच के रिश्ते पर
रोशनी डालता है.

दो अलगअलग धर्म के होने के चलते प्रेमियों के एक न होने पर प्रेमिका मरने से पहले अपने
प्रेमी को लिखे पत्र में अपने पिता को दोष देने या उन्हें गलत बताने की बजाय लिखती है-
“गलत तो वक्त था और वक्त से कोई नहीं जीत सकता.’’

क्लायमैक्स में जतिन के लिए जस्मीन द्वारा लिखा गया दिल दहला देने वाला पत्र दर्शकों के
दिलोंदिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ता है. फिल्म का क्लाइमैक्स सोचने पर विवश कर एक नए
समाज की संरचना का संकेत देता है. जस्मिन पत्र में लिखती है, ‘‘इस मोरपंख को न मंदिर में
रखना न मस्जिद में, इसे दफना देना…’’ अर्थात फिल्म अंत में इंसानों के बीच लकीर खींचने वाले
धर्म को दफनाने का संदेश देती है.

फिल्म में 3 कहानियां जरुर हैं, मगर फिल्म की कहानी के केंद्र में दो बालकों की दोस्ती व दोस्त
की मदद का संघर्ष ही है. भैरव के किरदार में श्रीनिवास रोकाले और जावेद के किरदार में
विनायक पोतदार अपने स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों को अंत तक बांध कर रखते हैं. इन के बीच
की बचकानी मासूमियत, बचकानी शरारत और अटूट वफादारी का चित्रण दिल छू लेता है.
केसर के किरदार में अंजली पाटिल ने एक बार फिर अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाने में
सफल रही है. इस से पहले दर्शक उन्हें ‘चक्रव्यूह’ और ‘न्यूटन’ जैसी फिल्मों में पसंद कर चुके हैं.
मोहन के छोटे किरदार में शारिब हाशमी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. वैसे शारिब हाशमी के किरदार
को ठीक से गढ़ा नहीं गया. जतिन के किरदार में मोहम्मद समद व जस्मिन के किरदार में
अक्षता आचार्य ने साबित किया कि उन के अंदर अपार अभिनय क्षमता है. सरपंच के अति छोटे
किरदार में रवि झांकल और लक्ष्मण के किरदार में ऋषि सक्सेना ठीक ठाक रहे.

अति आवश्यक और ज्वलंत सामाजिक मुद्दे को उकेरने वाली यह फिल्म कितने दर्शकों तक
पहुंच सकेगी, यह कहना मुश्किल है. इन दिनों बौलीवुड के हालात काफी गड़बड़ हैं. इस फिल्म को
मुंबई में बामुश्किल चारपांच शो ही मिले हैं.

राजनीति में सवर्ण एससी एसटी प्रेम विवाह : प्रेम के लिए या सत्ता के लिए?

राजनीतिक गलियारों में प्रेम कहानियां कोई नहीं बात नहीं है. भारतीय राजनीति में ऐसे कई नेता रहे हैं, जो अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर अक्सर सुर्खियों में छाए रहे. इन राजनेताओं को पिछड़ी जाति में प्यार हुआ और ये महज सिर्फ प्रेम कहानी तक ही सीमित नहीं रही, ये कहानी शादी में भी तब्दील हुई. हालांकि गांव या छोटे शहरों में सवर्ण घरों में आज भी एससी एसटी को हीन भावना से देखा जाता है, शादी तो बहुत दूर की बात है, लोग इनके साथ खाना खाने से भी कतराते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि राजनीतिक घरानों में सवर्ण और एससी एसटी की शादियां चुनाव के दौरान वोट बैंक भरने के लिए है या सिर्फ प्रेम के लिए?

 

देश की कोई भी ऐसी राजनीतिक पार्टियां नहीं है, जिसमें सभी जातियों के लिए काम किया जाता हो. हर पार्टी में किसी जाति विशेष के प्रति झुकाव देखा गया है
तो क्या ये सवर्ण और एससी एसटी शादियां भी सिर्फ दिखावे के लिए है? इस सवाल का जवाब आपको इस आर्टिकल में मिलेगा.

रामविलास पासवान (लोकजनशक्ति पार्टी, बिहार )

स्वर्गिय रामविलास पासवान जीवन के अंतिम दौर में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. ये दलित वर्ग के नेता थे, इनके पर्सनल लाइफ की बात करें, तो इन्होंने दोदो शादियां की थी. ये अपनी पहली पत्‍नी को तलाक देकर एयर होस्‍टेस रीना शर्मा से लव मैरिज की. रीना शर्मा पंजाबी हिंदू हैं. रामविलास पासवान दलित नेता थे, जिस वजह से यह शादी उन दिनों काफी चर्चे में रही. जनता के बीच उनकी इमेज भी खराब हुई, पहली पत्नी को छोड़कर उन्होंने दूसरी शादी की.  हालांकि इस शादी से रामविलास पासवान को सत्ता में कोई फायदा भी नहीं होने वाला था. उन्होंने दूसरी शादी सिर्फ प्रेम के लिए की थी.

राजीव गांधी (कांग्रेस)

स्वर्गिय राजीव गांधी और सोनिया गांधी की लव स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. विदेश में सोनिया और राजीव की मुलाकात हुई, दोनों में प्यार हुआ और थोड़े उतार-चढ़ाव के बाद इनकी शादी भी हुई. जब राजीव गांधी की शादी सोनिया से हुई तो उनकी मां इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. यह शादी भी महज प्रेम के लिए ही किया गया, सत्ता से इसका कोई लेनादेना नहीं था.

अखिलेश यादव (सपा, यूपी)

अखिलेश यादव और डिंपल की लव स्टोरी बेहद दिलचस्प है. पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई, फिर प्यार और साल 1999 में इन दोनों ने सात जन्मों के लिए एकदूसरे का हाथ थाम लिया. डिंपल राजपूत परिवार से हैं. अखिलेश पिछड़ी जाति के हैं, जबकि डिंपल सवर्ण हैं. कहा जाता है कि अखिलेश के पिता और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और डिंपल के पिता कर्नल आर.एस. रावत इस शादी के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन खबरों के अनुसार उस समय के प्रभावशाली नेताओं ने मुलायम सिंह को समझाया, तो बाद में वो इस शादी के लिए मान गए.

हालांकि मुलायम सिंह यादव को इस बात का डर था कि यादव समाज पर इस शादी के बाद वोट बैंक का असर पड़ सकता है. इसिलिए अखिलेश और डिंपल की शादी के लिए तैयार नहीं थे तो दूसरी तरफ बेटे अखिलेश को यह अंदेशा था कि डिंपल से शादी करने के बाद समाज में उनकी राजनीतिक छवि पर असर पड़ सकता है, लेकिन
इन बातों को दरकिनार कर जिंदगीभर डिंपल का हाथ थामने के लिए तैयार थे. ये शादी भी सिर्फ प्रेम के लिए की गई.

तेजस्वी यादव (राजद पार्टी, बिहार)

बिहार-यूपी की राजनीति जाति की राजनीति होती है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव अक्सर अपने बयान को लेकर सुर्खियों में छाए रहते हैं. दिसंबर 2021 में तेजस्वी यादव ने रेचल गोडिन्हो से शादी की थी. ये लंबे समय से तेजस्वी की दोस्त रही हैं. जब तेजस्वी की शादी हुई थी तो वो बिहार के सक्रिय राजनीति में शामिल नहीं थे. रेचल जो अब राजश्री के नाम से जानी जाती है, ये ईसाई परिवार से हैं, इसके बावजूद भी तेजस्वी और इनकी शादी हुई. यह तो तय था कि इस शादी से यादव समाज में असंतोष फैलेगा जो लालू का बहुत बड़ा वोट बैंक था. यहां तक कि इस शादी के कारण तेजस्वी के मामा साधु यादव भी नाराज थे. उन्होंने लालू के परिवार पर तीखी टिप्पणी भी की थी. ये विवाद इतना बढ़ गया था कि तेजस्वी के छोटे भाई तेजप्रताप ने तो साधु यादव को कंस मामा भी कह दिया था.

हालांकि बीजेपी के एक नेता ने तेजस्वी पर तीखा प्रहार भी किया और कहा कि तेजस्वी के दिमाग में बचपन से ही जातिवाद का जहर घोला गया है. उन्होंने राजश्री के नाम पर भी सवाल उठाया,  कहा  खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले तेजस्वी ने अपनी पत्नी का नाम बदला कि उनकी सोच ही जातिवादी है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें