वैवाहिक बंधन में बंधे सीमा और राकेश के जीवन में किसी तीसरे की एंट्री ने उथलपुथल मचा दी. सीमा के चरित्र पर उंगली उठाते राकेश ने कभी खुद के चरित्र को टटोला नहीं.सीमा के मुंह से तलाक शब्द सुनते ही राकेश के शरीर में बिजली कौंध गई, पर फिर…
वैवाहिक बंधन में बंधे सीमा और राकेश के जीवन में किसी तीसरे की एंट्री ने उथलपुथल मचा दी. सीमा के चरित्र पर उंगली उठाते राकेश ने कभी खुद के चरित्र को टटोला नहीं.सीमा के मुंह से तलाक शब्द सुनते ही राकेश के शरीर में बिजली कौंध गई, पर फिर…
न्यूयौर्क ने 2024 में सब से अधिक अरबपतियों वाले शहर के रूप में बीजिंग को पीछे छोड़ दिया है. लंदन के बाद भारत का मुंबई शहर अरबपतियों की सब से अधिक संख्या वाला शहर बन गया है. बीते साल मुंबई में 26 नए अरबपति बने और मुंबई अरबपतियों के मामले में दुनिया की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आ गया. जी हां, हुरुन रिसर्च की ‘2024 ग्लोबल रिच लिस्ट’ के मुताबिक, मुंबई में 92 अरबपति रहते हैं और यह एशिया में सब से ज्यादा अरबपतियों वाला शहर बन चुका है. मुंबई ने चीन की राजधानी बीजिंग को पीछे छोड़ कर यह मुकाम हासिल किया है, जहां 91 अरबपति हैं. हालांकि, अगर चीन की बात करें, तो भारत के 271 अरबपतियों के मुकाबले चीन में कुल 814 अरबपति हैं. न्यूयौर्क में 119 और लंदन में 97 अरबपति हैं. अरबपतियों के मामले में दिल्ली ने भी अपना मान बढ़ाया है और पहली बार अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हुई है. दिल्ली का नाम भी पहली बार टौप 10 में शामिल हुआ है.
देश के अरबपतियों में सब से ऊपर रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी (115 अरब डौलर) हैं. इस के बाद नंबर आता है गौतम अडानी (86 अरब डौलर) का. इन की संपत्ति भी 34 फीसदी बढ़ गई है. देश में कुल मिला कर 94 अरबपतियों की संख्या बढ़ी है. इस तरह, कुल अरबपतियों की संख्या 271 पहुंच गई है. इन में से 26 नए अरबपतियों की संख्या सिर्फ मुंबई में ही जुड़ी है.
अरबपतियों की सूची में रोहिका साइरस मिस्त्री (साइरस मिस्त्री की पत्नी), इना अश्विन दानी (एशियन पेंट्स) जैसे नाम शामिल हैं. नए अरबपतियों में फार्मा, औटोमोबाइल, कैमिकल इंडस्ट्री जैसे सैक्टर्स के लोग ज्यादा शामिल हैं. मुंबई के सभी अरबपतियों की कुल संपत्ति 445 अरब डौलर है. यह पिछले साल की तुलना में 47 फीसदी अधिक है जबकि बीजिंग के अरबपतियों की कुल संपत्ति 265 अरब डौलर है. यह पिछले साल की तुलना में 28 फीसदी कम है. मुंबई पर एनर्जी और फार्मास्युटिकल्स जैसे सैक्टर से पैसों की बारिश हो रही है. इस में मुकेश अंबानी जैसे अरबपति खूब मुनाफ़ा बटोर रहे हैं. रियल एस्टेट के खिलाड़ी मंगल प्रभात लोढ़ा एंड फैमिली फीसदी (116 फीसदी) के लिहाज से मुंबई के सब से बड़े वैल्थगेनर थे. अगर दुनिया के अमीरों की लिस्ट की बात करें तो मुकेश अंबानी की संपत्ति में अच्छी ग्रोथ हुई है. इस का श्रेय मुख्य रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को जाता है.
इसी तरह गौतम अडानी की संपत्ति में भी उल्लेखनीय वृद्धि ने उन्हें वैश्विक स्तर पर 8 पायदान ऊपर 15वें स्थान पर पहुंचा दिया है. एचसीएल के शिव नादर और उन के परिवार की संपत्ति और वैश्विक रैंकिंग दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. वे 16 स्थान की छलांग लगाते हुए 34वें पर पहुंचने में कामयाब रहे. इस के विपरीत सीरम इंस्टिट्यूट के साइरस एस पूनावाला की कुल संपत्ति मामूली गिरावट के साथ 82 अरब डौलर पर रही. वे 9 पायदान गिर कर 55वें स्थान पर आ गए हैं. मुंबई को यह रुतबा हासिल कराने में सन फार्मास्युटिकल्स के दिलीप सांघवी (61वें स्थान) और कुमार मंगलम बिड़ला (100वें स्थान) का भी योगदान है. इन अरबपतियों की वजह से मुंबई ने आज अरबपतियों के शहर के मामले में चीन को पछाड़ा है.
कोविड महामारी के वक्त 9 करोड़ रुपयों का नुकसान उठाने वाले नोएडा बेस्ड एक ट्रेडिंग कंपनी के मालिक कहते हैं- ‘मोदी जी सिर्फ टौप के 10 उद्योगपतियों के मित्र हैं जो उन को पैसा देते हैं और दूसरी तरफ वे उन गरीबों के बारे में बात करते हैं जो उन को वोट देते हैं मगर उन को गरीबी से निकालने का उन का कोई इरादा नहीं है. वे उन को गरीब ही रखना चाहते हैं. मुफ्त राशन भी इसलिए दे रहे हैं ताकि यह वोटबैंक कहीं मर न जाए या बगावत न कर बैठे क्योंकि इन्हीं गरीबों की वजह से मोदी सत्ता में हैं.
ताज्जुब की बात है, एक ओर देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है दूसरी ओर देश में वे अस्सी करोड़ गरीब हैं जो अपने लिए दो वक्त का भोजन भी खुद नहीं जुटा पा रहे. मोदी सरकार अस्सी करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त राशन बांट कर गर्व महसूस कर रही है. उस का बढ़ चढ़कर बखान कर रही है. लेकिन यह गर्व की नहीं, शर्म की बात है कि एक तरफ देश की अस्सी करोड़ जनता भूखी और बदहाल है जबकि दूसरी ओर सारा पैसा कुछ सौ अरबपतियों की तिजोरियों में जमा हो गया है. यह शर्म की बात है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी भारत के लोगों के घरों में उन की बहूबेटियों की इज्जत ढंकने के लिए अपना शौचालय नहीं है. सरकार उन को शौचालय बना कर दे रही है और बड़े गर्व से यह बात पूरी दुनिया को बता रही है. धिक्कार है. दुनिया की क्या राय बनी होगी भारत के बारे में.
जो मुंबई आज अरबपतियों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आ पहुंचा है उसी मुंबई में धारावी भी है जो एशिया का दूसरा सब से बड़ा स्लम एरिया है. इस की आबादी लगभग एक मिलियन है. धारावी को भारत की सब से बड़ी झुग्गी और दुनिया की तीसरी सब से बड़ी झुग्गी बस्ती एरिया कहा जाता है जहां इतने गरीब परिवार भी हैं जिन को एक वक्त खाना मिल गया तो दूसरे वक्त वे खाली पेट रहने को मजबूर हैं.
आज दुनिया के हर 3 गरीब में से 1 भारत में है. पढ़नेलिखने के बाद भी यहां ज्यादातर युवाओं को एक अदद नौकरी के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. दरदर की ठोकरें खा कर भी पढ़ेलिखे ज्यादातर लोगों को नौकरी नहीं मिलती और वे छोटेमोटे कामधंधे कर के या ठेला-रेहड़ी-खोमचा लगा कर किसी तरह अपनी जिंदगी काटते हैं.
लगातार बढ़ती कीमतों के कारण बुनियादी जरूरत की चीजें भी गरीबों के हाथ से निकली जा रही हैं. गरीबीरेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना एक चुनौती बन गया है. आय के संसाधनों का असमान वितरण गरीबी में वृद्धि का मुख्य कारण है. पूरे दिन मेहनत करने वाले मजदूर की आय 200 रुपए से ज़्यादा नहीं है. उन्हें रोज काम भी नहीं मिलता है. मालिकों को मजदूरों की कम आय और खराब जीवनशैली की कोई परवा नहीं है. उन की चिंता सिर्फ लागत में कटौती और अधिक से अधिक लाभ कमाना है. अकुशल कारीगरों के पास कम पैसों में काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
हाल ही में देश के सब से बड़े अरबपति मुकेश अंबानी के बेटे की शादी की बड़ी चर्चा रही. मुकेश और नीता अंबानी ने अपने छोटे बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की प्रीवैडिंग सेरेमनी में 1,260 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. शादी अभी बाकी है जो जुलाई में होगी. अनंत अंबानी की प्रीवैडिंग में कई नैशनल और इंटरनैशनल सेलिब्रिटीज को बुलाया गया. इस सेरेमनी में हौलीवुड सिंगर रिहाना ने परफौर्म करने के लिए 74 करोड़ रुपए चार्ज किए. इस मौके पर मुकेश अंबानी ने अनंत और राधिका को 4.5 करोड़ रुपए की कार गिफ्ट की. इस प्रीवैडिंग में जिस खाने के मैन्यू की खूब चर्चा हुई उस पर भी 210 करोड़ रुपए खर्च किए गए. मजे की बात यह है कि इतना खर्च करने के बाद भी मुकेश अंबानी ने अपनी कुल संपत्ति का मात्र 0.1 फीसदी ही खर्च किया. लेकिन यह बात शायद आम लोगों तक नहीं पहुंची. उन्हें, बस, शानोशौकत दिखी जहां मार्क जुकरबर्ग से ले कर बौलीवुड के तीनों खानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
अंबानी फैमिली ने इस से पहले अपने बड़े बेटा-बेटी की शादी में भी इसी तरह खूब पैसा लुटाया था. मुकेश अंबानी की इकलौती बेटी ईशा अंबानी की शादी अरबपति उद्योगपति अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल से हुई थी. ईशा अंबानी के कपड़ों से ले कर कार्ड तक पर अंबानी फैमिली ने जम कर खर्च किया था. फाइनैंशियल एक्सप्रैस के मुताबिक, ईशा की शादी भारत की सब से महंगी शादी मानी जाती है. उन की शादी में कुल 700 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. ईशा अंबानी की शादी का लहंगा ही 90 करोड़ रुपए का था.
इंटरनैशनल बिजनैस टाइम्स के अनुसार, मुकेश अंबानी ने अपने बड़े बेटे आकाश अंबानी की शादी के लिए स्विट्जरलैंड में एक हफ्ते के लिए आलीशान होटल बुक किया था, जिस के एक दिन का चार्ज 1 लाख रुपए था. यह होटल का सब से सस्ता रूम था, जो 500 मेहमानों के लिए बुक किया गया. शादी के एक कार्ड पर 1.5 लाख रुपए खर्च किए गए थे. नीता अंबानी ने अपनी बहू श्लोका अंबानी को शादी के तोहफे के तौर पर 451 करोड़ रुपए का मौवाड एल इंकम्पेरेबल हार दिया था. उस में 91 डायमंड जड़े हैं.
इस तरह की अमीर शादियों का प्रसारण तमाम टीवी चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर होता है जो मध्यवर्ग को भी दिखावे और खर्चे के लिए प्रेरित करता है. मध्यवर्ग की शादियां निम्नवर्ग के सामने गलत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. यही वजह है कि रूढ़िवादी परंपराओं को निभाना, धर्म और दिखावे के कारण गरीब और मध्यवर्ग वाले कर्ज में डूबे रहते हैं. वे अमीरों की देखादेखी तड़कभड़क वाली शादी करते हैं. कर्ज ले कर बेवजह का खर्च करते हैं. शादी में दिए जाने वाला दहेज हो, मृत्युभोज हो या फिर आएदिन आने वाले तीजत्योहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर वे भी अनापशनाप खर्च करते हैं. गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चों के कारण बना रहता है.
मध्य आयवर्ग में तो आजकल अपनी हैसियत से ज्यादा दिखावा करने और अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करने का ट्रैंड बन गया है. इस में बच्चों को महंगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेशयात्रा, दानदहेज़ देना, धर्म के नाम पर मंदिरों में बड़ेबड़े चढ़ावे चढ़ाना, भंडारे करना, तीजत्योहारों में हैसियत से ज़्यादा खर्चा करना इत्यादि शामिल हैं. उधार चुकातेचुकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों में लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं.
गरीब तबके में जनसंख्या भी बेहिसाब बढ़ रही है. स्लम एरिया, गांवदेहातों और झुग्गियों में रहने वाले लोग बेहिसाब बच्चे पैदा कर रहे हैं. उन के पास खाने को नहीं है, बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं है फिर भी एकएक परिवार में चारचार छहछह बच्चे पैदा हो रहे हैं. सरकार का कोई जनजागरूकता अभियान इन के कानों तक नहीं पहुंचता. सरकार सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण और गरीबी उन्मूलन का राग ही अलापती है, करती कुछ नहीं है.
मोदी सरकार में नोटबंदी पहला ऐसा कदम था जिस की वजह से अमीरों की अमीरी बढ़ी और गरीब और अधिक गरीब हो गए. छोटे धंधे करने वालों की कमर टूट गई. दूसरा कदम जीएसटी को लागू करना था. असंगठित क्षेत्र के सारे व्यापारधंधे ठप हो कर रह गए. तीसरा कारण जब देशभर में कोरोना के 500 मामले हर रोज़ आ रहे थे तो संपूर्ण लौकडाउन लागू करना था. इस के कारण संगठित क्षेत्र से बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी हुई, जो नौकरी में रह गए उन कर्मचारियों की तनख्वाह कम की गई और वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की गई. सरकार के इन 3 कदमों ने अमीरों के और अमीर होने और गरीबों के और गरीब होने की गति कई गुणा बढ़ा दी. और अब सरकार का गरीबी उन्मूलन का कोई इरादा नहीं है. मुफ्त राशन बांट कर गरीबों को मुफ्तखोर और निठल्ला बनाने की योजना पर काम चल रहा है. गरीब को गुलाम बनाने और किसान को मजदूर बनाने के अभियान पर तेजी से काम हो रहा है.
प्रधानमंत्री भले ही शहजादा शब्द का प्रयोग मजाक या तंज में कर रहे हों लेकिन पौराणिक ग्रंथों में तमाम शहजादे ऐसे हैं जिन के पिताओं को दक्षिणापंथी सम्मान करते हैं. रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों में तमाम ऐेसे किरदार हैं जिन के शहजादों की आज भी पूजा होती है. ऐेसे में शहजादा शब्द का प्रयोग मजाक उड़ाने में कैसे किया जा सकता है.
दशरथ के शहजादे के नाम पर मंदिर की पूरी राजनीति टिकी है. देवकी और वासुदेव के शहजादे के विचारों को हमेशा आगे रखा जाता है. गीता का सारा ज्ञान वहीं से आता है. कंस जैसी दुरात्माओं के अंत के लिए इन की मदद लेनी पड़ी थी. शंकर के शहजादे की पूजा से ही दूसरी पूजा की शुरुआत होती है. ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिन के शहजादों के बिना हमारा काम पूरा नहीं होता है. ऐसे में शहजादा शब्द मजाक का पर्याय कैसे हो सकता है? क्या भाषा बदल जाने से शब्द का अर्थ बदल जाता है.
अगर शहजादा मजाक का पर्याय है तो इन के पिताओं का भी मजाक उड़ रहा होगा. क्या यह पौराणिक कथाओं के मजाक उडाने वाला काम नहीं है. इस से हम उन का ही अपमान कर रहे हैं जिन के पदचिन्हों पर चलने की बात करते हैं. कुछ वोट के लिए हम अपने ही पूज्यों का अपमान नहीं कर रहे हैं? जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को शहजादा कह कर मजाक उड़ाते हैं उस का प्रभाव दूर तक पड़ रहा है. ऐसे में सवाल केवल शहजादा का ही नहीं, प्रिंस और राजकुमार का भी है. ये शब्द भी मजाक का पर्याय हो गए हैं. किसी को प्रिंस और राजकुमार कहा जाएगा तो उसे भी मजाक जैसा ही लगेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावीप्रचार में ‘शहजादा’ का प्रयोग कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए करते हैं. जब उन के साथ उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव को जोड़ना होता है तब ‘शहजादे‘ शब्द का प्रयोग करते हैं. राहुल और अखिलेश यादव को पहले 2 लड़कों की जोड़ी के नाम से संबोधित करते थे, अब उन को ‘2 शहजादे’ कहते हैं. पाकिस्तानी नेता फवाद चौधरी की सोशल मीडिया पोस्ट को ले कर पीएम मोदी ने गुजरात में चुनावी रैली में राहुल गांधी को निशाने पर लेते कहा, ‘संयोग देखिए, आज भारत में कांग्रेस कमजोर हो रही है. आप को पता चला होगा कि अब कांग्रेस के लिए पाकिस्तानी नेता दुआ कर रहे हैं. शहजादे को भारत का प्रधानमंत्री बनाने के लिए पाकिस्तान उतावला है.’
पीटीआई प्रमुख इमरान खान के करीबी और पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फवाद चौधरी ने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स हैंडल पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का समर्थन करते हुए एक वीडियो शेयर किया था, जिस में राहुल गांधी अयोध्या में हुए रामलला की प्राणप्रतिष्ठा समारोह का जिक्र कर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर निशाना साध रहे हैं. फवाद चौधरी ने इस वीडियो को एक्स हैंडल पर रिपोस्ट करते हुए लिखा था- ‘राहुल औन फायर’.
बिहार में चुनावी प्रचार में पीएम मोदी ने लालू यादव पर गोधरा कांड के दोषियों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि जैसे एक शहजादा दिल्ली में है, वैसे ही एक शहजादा पटना में भी है. एक शहजादे ने बचपन से पूरे देश को और दूसरे शहजादे ने पूरे बिहार को अपनी जागीर समझा है. इन दोनों शहजादों के रिपोर्ट कार्ड एकजैसे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद पर यूपीए शासनकाल के दौरान गोधरा कांड के जिम्मेदार लोगों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. दरभंगा संसदीय क्षेत्र में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने गोधरा कांड का जिक्र किया और आरोप लगाया कि विपक्षी दल हमेशा तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं.
नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘जब गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जलाया गया था तब देश के रेल मंत्री, राजद के शाहजादे के पिता थे जो चारा घोटाला मामले में सजा काट कर जमानत पर घूम रहे हैं.’ मोदी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘आप को पता होगा यह दिल्ली वाले शहजादे एक नई बात ले कर आए हैं. कांग्रेस ऐसा कानून बनना चाहती है कि जिस से आप के मांबाप ने जो कमाया है, वह आप को नहीं मिलेगा.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को शहजादा कहा है, जिस पर बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पलटवार किया है. तेजस्वी यादव ने कहा कि अगर हम शहजादे हैं तो पीएम मोदी पीरजादे हैं. वे बड़े हैं, बुजुर्ग हैं, उन्हें कुछ भी कहने का अधिकार है. जैसा वे कहेंगे वैसा ही जवाब मिलेगा. उन को शब्दों का चुनाव सोचसमझ कर करना चाहिए. वे झूठ अधिक बोलते हैं. काम की बात होनी चाहिए. मिथिला के लोग बहुत प्रबुद्ध हैं. वे काम की बात सुनना चाहते हैं. बिहार में भाजपा की हालत बहुत खराब है. लोग झूठे वादों से ऊब चुके हैं.
तेजस्वी यादव की बहन मीसा भारती ने कहा कि प्रधानमंत्री जिस के लिए शहजादा का प्रयोग कर रहे हैं उस ने बिहार में उपमुख्यमंत्री के रूप में 5 लाख युवाओं को नौकरी देने का काम किया है. इस तरह से ‘शहजादे विवाद’ में दोनों तरफ से नेता अपने बयानों से वार-पलटवार कर रहे हैं. कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘शहजादा’ तंज पर पलटवार करते हुए नरेंद्र मोदी को ‘शहंशाह’ बताया, जो महल में रहते हैं और जनता से कटे हुए हैं.
प्रियंका गांधी ने कहा, ‘वे मेरे भाई को शहजादा कहते हैं. मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि यह शहजादे आम लोगों की समस्याएं सुनने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक 4,000 किलोमीटर तक चले, किसानों और मजदूरों से मिले तथा उन से पूछा कि वे उन की समस्याओं का कैसे समाधान कर सकते हैं. दूसरी ओर आप के ‘शहंशाह’ नरेंद्र मोदी हैं. वे महलों में रहते हैं. क्या आप ने कभी टीवी पर उन का चेहरा देखा है? एकदम साफसुथरा सफेद कुरता, धूल का एक दाग नहीं है. एक बाल इधर से उधर नहीं हो रहा है. वे आप की मेहनत, आप की खेती को कैसे समझेंगे? वे आप की समस्याओं को कैसे समझेंगे, आप महंगाई के बोझ से दबे हुए हैं.’
राजस्थान के पाली शहर में शिवरात्रि के मौके पर उमड़ी भीड़ का फायदा उठा कर जेबकतरों ने कितनों की ही जेबें काट डालीं. उधर सोमनाथ मंदिर में 2 युवकों ने तो हल्ला मचाया और पुलिस पहुंची भी लेकिन कुछ पता न चला. इस छोटे से शहर में शोभायात्रा, कलश यात्राओं और दर्शन के लिए उमड़ी औरतों के सोने के गहनों की उठाईगीरी में लगी औरतें भक्त बन कर घुसतीं और फिर महंगी गाडि़यों में उड़नछू हो जातीं. पकड़े गए एक गैंग ने 12 चोरियों में तो अपना हाथ होना मान लिया.
उज्जैन में महाकाल मंदिर में भी कम से कम 16 लोगों ने मोबाइल व पर्स चोरी होने की शिकायतें कीं. औरतें गहने पहन कर ही दर्शनों के लिए जाती हैं शायद इसलिए कि उन्हें आशा होती है कुछ ज्यादा ही मंदिर की कृपा से मिलेगा पर जो उन के पास होता है वह भी हाथ से निकल जाता है. पुलिस इक्केदुक्के को पकड़ तो लेती है पर किसी से भी कुछ बरामद नहीं होता क्योंकि जेबकतरे, चोर, छीनने वाले तुरंत चुराया सामान दूसरों को दे देते हैं.
उदयपुर के चित्तौड़ग़ढ़ इलाके में सांवलिया सेठ मंदिर के बैंक खाते से पैसे निकालने की साजिश का पता चला. मंदिर को हर महीने 6 से 8 करोड़ रुपयों का चढ़ावा मिलता है. अयोध्या के राम मंदिर के नाम पर लूटने के कई धंधे चल रहे हैं. राम मंदिर दर्शन टिकट, राम मंदिर फ्री प्रसाद, राम मंदिर रेलयात्रा टिकट, राम मंदिर बसयात्रा टिकट, राम मंदिर अयोध्या रुकने की जगह के इंतजाम के लिए बाकायदा क्यूआर कोड बना कर ऐसी वैबसाइटें मौजूद हैं जो बिलकुल आधिकारिक लगती हैं पर होती फेक हैं. इन में पैसा डालने के बाद एकदम चुप्पी छा जाती है और अंधभक्त, जो वैसे ही ठगे जाने के लिए तैयार होता है, मंदिर द्वारा नहीं, मंदिर के नाम पर बैठे लुटेरों के हाथों ठगा जाता है.
मध्य प्रदेश के सागर कैंट थाना में पंचशील पंप के पास जैन मंदिर से पूजा कर के लौट रही एक भक्त से 2 ठगों ने पहले पानी पिलाने को कहा, फिर ?ांसा दे कर गहने उतरवा लिए. ठगों की करतूतें आजकल ही नहीं, हमेशा से मंदिरों के अंधभक्तों पर हावी रही हैं. यह कमाल है अंधभक्ति और अंधविश्वास के प्रचार का जिस में मंत्री, संतरी और मीडिया सब लगे रहते हैं. लोगों को बारबार विश्वास दिलाया जाता है कि मंदिरों की शरण में जाओ, सब दर्ददुख दूर हो जाएंगे. बदले में अमुक पार्टी को वोट दो और मंदिरों को चंदा दो. इस का फायदा जो चुनाव जीतते हैं वे उठाते हैं, जो मंदिर चलाते हैं वे उठाते हैं और जो ठगी करते हैं वे भी बहते चरणामृत को पी कर अमर हो रहे हैं.
यह इस अंधविश्वास के प्रचार का कमाल है जो चुनावी मंचों से हो रहा है कि लोग अपने घरों को तोड़ कर नींवों से सोना निकालने के चक्कर में भी आ जाते हैं, वास्तु के नाम पर घरों का खाका बदलने के लिए लाखों रुपए खर्च कर देते हैं. बेचारे बुजुर्ग अपने अंधविश्वास के कारण युवाओं को मंदिरों में ले जाने की जिद करते हैं और फिर वहां से चोट खा कर लौटते हैं. लगभग एक माह में हुई इन घटनाओं से अंधभक्त कोई सबक लेंगे, इस का भरोसा नहीं क्योंकि उन से तो बारबार यह कहा जा रहा है कि मंदिर ही देश का उत्थान करेगा, सो, वे भला क्यों तर्क वाली सच बात सुनने लगे.
इजराइल की हठधर्मी अब सीमाएं पार कर रही है. लगता है इस ने पूरे विश्व को डांवांडोल करने की ठान ली है. दशकों से फिलिस्तीनियों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ हमास द्वारा 7 अक्तूबर, 2023 को किए गए मिसाइल व जमीनी अटैक, जिस में काफी इजराइली अगवा कर लिए गए थे, का बदला लेने के लिए बजाय हमास को खत्म करने के इजराइल ने आसान तरीका अपनाया और फिलिस्तीनियों की गाजा पट्टी में बसी बस्तियों पर भारी बमबारी शुरू कर दी जिस में लड़ाकुओं के नहीं, आमजनों के घर तोड़े व उन में रहने वाले मारे जाने लगे.
जो काम हिटलर ने 1940 और 1945 में जरमनी, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी में यहूदियों के साथ किया, उसी बर्बरता के साथ बेंजामिन नेतन्याहू की इजराइली सेनाओं ने किया. गाजा पट्टी को होलोकास्ट के बदनाम गैसचैंबरों में तबदील कर दिया गया. जो यूरोप और अमेरिका यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के दौरान यूक्रेन की सहायता के लिए दौड़े वे इस हमले पर चुप रहे क्योंकि फिलिस्तीनियों ने पिछले 4-5 दशकों में आतंकवादी घटनाओं में साथ दिया था. मानवीय मूल्यों को भुला कर राजनीतिक मकसद के लिए हथियार उठाना सब को भारी पड़ रहा है और अब इस संघर्ष में ईरान के कूद जाने से यह संकट और ज्यादा गंभीर हो गया है.
ईरान के पास न्यूक्लियर बम भी हैं और मरने को तैयार कट्टर इसलामी लड़ाके भी. न इजराइल, न ईरान, न फिलिस्तीनी अब दुनिया के किसी देश की सुनते हैं, न बेगुनाहों की मौतों की चिंता करते हैं. पाकिस्तान से ले कर इजराइल तक के मुसलिम और यहूदी देश आज बेहद असुरक्षित हैं, कहीं भी, किसी भी कोने से यहां हमले हो सकते हैं और सरकारें एकदूसरे के खिलाफ मौत की साजिशें करती रहती हैं.
जिस तकनीक व साइंस का इस्तेमाल मानव को सुखी दिन देने के लिए किया जा रहा था उसे यहां मारने के लिए किया जा रहा है. ड्रोन, कंप्यूटर, इंटरनैट, सैटेलाइट टैक्नोलौजी आदि सब का विकास वैज्ञानिकों ने मानवहितों के लिए किया था. आज शासक सत्ता पाने या बनाए रखने के लिए इन का भरपूर दुरुपयोग कर रहे हैं.
इजराइल ने इतिहास का नाम ले कर सदियों पहले छोड़ी जमीन पर फिर से पश्चिमी देशों की सहायता से कब्जा कर लिया पर अपने पड़ोसियों को दोस्त बनाने की जगह दुश्मन बना डाला. धर्म ने पहले सदियों तक यहूदियों को ईसाइयों के भगवान जीसस क्राइस्ट की हत्या के लिए दोषी मान कर उन से पीढ़ीदरपीढ़ी बदला लिया और अब यहूदी अरबों को अपने पूर्वजों को इजराइल की जमीन से सैकड़ों साल पहले भगाने के जुर्म की सजा दे रहे हैं.
इतिहास का नाम ले कर दुनिया के कितने ही देशों में शासक अपनी सत्ता बनाए रखते हैं. भारत भी इस में से एक है. अयोध्या का मंदिर इसी की निशानी है कि धर्म के नाम पर पुरानी बातों की कहानियों को खोल कर कैसे आज सत्ता पाई जा सकती है और लोगों को मरनेमारने के लिए तैयार किया जा सकता है.
इजराइल पश्चिम एशिया में जो कर रहा है वह एक बहुत गलत उदाहरण है. 75 सालों में वह उस जमीन पर पहले बसे लोगों से सम?ाता नहीं कर पाया, यह उस की नीतिगत गलती है, भूल है और इजराइल ने जो अद्भुत उन्नति इन सालों में की है वह उसे राख में मिला सकती है.
ईरानी शासकों का दखल दुनिया को बहुत महंगा पड़ेगा क्योंकि ईरान बेलगाम देश है जो धर्म के नाम पर हर अति को सामान्य सम?ाता है. 14 अप्रैल को ईरान के सैकड़ों ड्रोनों का इजराइल पर हमले का तेहरान व दूसरे देशों में खुल कर जश्न मनाया गया जबकि यह मालूम है कि इस का मतलब है इजराइल का पटलवार जिस में ईरान में जानें तो जाएंगी ही, जो कुछ पिछले सालों में बना है वह नष्ट भी हो जाएगा.
समीर टैक्सी से उतर कर तेज कदमों से इंदिरा गांधी हवाईअड्डे की ओर बढ़ा, क्योंकि रास्ते में काफी देर हो चुकी थी.
काउंटर पर बैठी युवती ने उस से टिकट ले कर कहा, ‘‘आप की सीट है 12वी, आपातकालीन द्वार के पास.’’
बोर्डिंग कार्ड ले कर वह सुरक्षा कक्ष में चला गया. फ्लाइट जाने वाली थी, इसलिए
वह तुरंत विमान तक ले जाने वाली बस में बैठ गया.
‘‘नमस्ते,’’ विमान परिचारिका ने उस का हाथ जोड़ कर स्वागत किया.
समीर उसे देखता रह गया.
‘‘सर, आप का बोर्डिंग कार्ड?’’ परिचारिका मुसकरा कर बोली.
समीर ने उसे अपना बोर्डिंग कार्ड पकड़ा दिया.
वह उसे उस की सीट 12बी पर ले गई. समीर ने अपने बैग से काले रंग की डायरी निकाली और बैग ऊपर रख कर सीट पर बैठ गया.
उस की बगल वाली सीट, जो बीच के रास्ते के पास थी, खाली थी. समीर अपनी डायरी देखने लगा. पहले ही पन्ने पर विधि की तसवीर चिपकी थी. उस के जेहन में विधि का स्वर गूंज गया…
‘समीर मैं तुम से प्यार नहीं करती. यदि तुम ने कभी सोचा तो यह सिर्फ तुम्हारी गलती है. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती…’
‘‘नमस्कार,’’ आवाज सुन समीर ने चौंक कर आंखें खोलीं. विमान परिचारिका उद्घोषणा कर रही थी, ‘‘आप का विमान संख्या आईसी 167 में, जो मुंबई होता हुआ त्रिवेंद्रम जा रहा है, स्वागत है. आप सभी अपनीअपनी कुरसी की पेटी बांध लीजिए…’’
समीर ने एक गहरी सांस ली. अपनी कुरसी की पेटी बांधी और आंखें मूंद लीं. आंखों के सामने विधि का मुसकराता हुआ चेहरा घूमने लगा…
‘‘माफ कीजिए…’’
समीर ने चौंक कर आंखें खोलीं. सामने वही परिचारिका खड़ी थी.
‘‘आप मेरी सीट बैल्ट के ऊपर बैठे हैं.’’
समीर थोड़ा झेंप गया. उस ने चुपचाप अपने नीचे से सीट बैल्ट निकाल कर उसे पकड़ा दी. वह मुसकरा कर बैठ गई. उस के हाथ में भी समीर की डायरी के समान एक काले रंग की डायरी थी. वह अपनी डायरी पढ़ने लगी.
समीर ने फिर आंखें मूंद लीं और सोचने लगा, ‘विधि, क्या यह सब झूठ था? हमारा रोज मिलना, तुम्हारा पत्र लिखना क्या यह सब एक खेल था? क्या तुम्हें कभी मेरी याद नहीं आएगी?’
उसी समय सीट बैल्ट खोलने की उद्घोषणा हुई तो परिचारिका खड़ी हुई.
‘‘सुनिए,’’ वह समीर को देख कर धीरे से बोली.
समीर ने उस की ओर देखा.
‘‘आप की आंखों में आंसू हैं. इन्हें पोंछ लीजिए,’’ उस के स्वर में गंभीरता थी.
आंसुओं की धार ने उस के दोनों गालों पर रास्ते के निशान बना दिए थे. उस ने झट
से रूमाल से अपनी आंखों और चेहरे को पोंछ लिया.
‘‘सुबह नाश्ते में मिर्च ज्यादा थी.’’
वह बिना कुछ बोले चली गई.
थोड़ी देर बाद वह नाश्ते की ट्राली घसीटते हुए लाई और यात्रियों को नाश्ता देने लगी.
‘‘सर, आप क्या लेंगे, वैज या नौनवैज?’’ उस ने समीर से पूछा.
‘‘कुछ नहीं.’’
‘‘चाय या कौफी?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं.’’
वह बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई. उस के भावों से लगा कि उसे थोड़ी सी खीज हुई है.
थोड़ी देर बाद वह फिर आई और बिना कुछ बोले एक प्लेट में चाय और कुछ बिस्कुट रख कर चली गई.
समीर को उस का आग्रह भरा मौन आदेश लगा, क्योंकि इस में अपनत्व था. उस ने चुपचाप चाय पी और बिस्कुट खा लिए. कुछ देर बाद वह दोबारा आई और प्लेट ले कर जाने लगी. प्लेट लेते समय दोनों की नजरें मिलीं.
समीर ने देखा कि उस की साड़ी पर राधिका नाम का टैग लगा था. वह थोड़ा मुसकरा दी. समीर को एक क्षण के लिए लगा कि उस की मुसकराहट में उदासी की छाया है.
उसे फिर विधि की याद सताने लगी. उस ने डायरी खोल ली और लिखने लगा, ‘क्या लड़की का प्यार सिर्फ शादी के बाद दौलत और सुविधाओं के लिए होता है? विधि मुझे छोड़ कर अरुण से शादी इसलिए कर रही है, क्योंकि उस के पास बंगला और कार है, जबकि मैं अभी किराए के मकान में हूं. आज ही उस की शादी है. अच्छा है कि मैं दिल्ली में नहीं रहूंगा. उसे अपने सामने विदा होते देखता तो न जाने क्या कर बैठता.’
समीर की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए. उस ने आंसू पोंछ लिए, डायरी बंद
कर के बगल वाली सीट पर रख दी और आंखें बंद कर लीं.
‘‘कृपया ध्यान दीजिए. अब हमारा विमान मुंबई के छत्रपति शिवाजी हवाईअड्डे पर उतरेगा. आप अपनीअपनी कुरसी की पेटी बांध लें. त्रिवेंद्रम जाने वाले यात्रियों से निवेदन है कि वे विमान में ही रहें,’’ उद्घोषणा हो रही थी.
राधिका उस की बगल में आ कर बैठ गई. समीर की डायरी उस ने सामने सीट की जेब में रख दी. समीर ने आंखें खोल कर राधिका को देखा, तो वह मुसकरा कर धीरे से बोली, ‘‘जिंदगी के सारे गमों को पी कर मुसकराना होता है.’’
समीर की इच्छा हुई कि बोले उपदेश देना सरल है, लेकिन जब खुद पर गुजरती है तब सारे उपदेश धरे रह जाते हैं, मगर वह चुप रहा.
‘‘मैं ने शायद कुछ गलत कह दिया. आई एम सौरी, सर,’’ वह थोड़ी देर बाद फिर बोली.
‘‘ऐसी बात नहीं है. आप ने बोला तो सही है. मुझे इस का बिलकुल बुरा नहीं लगा,’’ समीर के मुंह से निकला, ‘‘आप त्रिवेंद्रम तक मेरे साथ चलेंगी न?’’ समीर ने पूछा और फिर सकुचा गया.
‘‘आप खाना खाएंगे, तब जरूर चलूंगी,’’ वह मुसकरा कर बोली.
उसी समय विमान मुंबई उतर गया. राधिका अपनी डायरी ले कर चली गई.
समीर ने अपनी डायरी बैग में रख दी और औफिस की फाइल निकाल कर मीटिंग की तैयारी करने लगा.
बीच में उसे पानी की जरूरत महसूस हुई. वह पीछे की ओर गया परंतु राधिका की जगह कोई और परिचारिका थी. वह बिना पानी मांगे ही अपनी सीट पर आ गया.
थोड़ी देर बाद राधिका उस की बगल से गुजरी, तो वह बोला, ‘‘राधिका, एक गिलास पानी चाहिए.’’
‘‘जरूर,’’ राधिका ने मुसकरा कर कहा. लगता था कि उसे अपने नाम के संबोधन से आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी.
पीछे से खिलखिलाने की आवाज आई. शायद दूसरी परिचारिका ने भांप लिया था कि समीर ने पानी के लिए राधिका का इंतजार किया. वह राधिका को छेड़ रही थी.
राधिका ने उसे पानी की बोतल दे दी. बोतल लेते समय दोनों के हाथ स्पर्श हुए तो दोनों के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने राधिका को देखा. वह कुछ उदास हो गई थी.
उसी समय मुंबई में यात्री चढ़ने लगे. विमान जब मुंबई से चला तो राधिका उस की बगल वाली सीट पर ही थी, पर न जाने किन खयालों में खोई थी.
‘‘यह बहुत थकाने वाली फ्लाइट है,’’ समीर ने बात शुरू करने के इरादे से कहा.
‘‘हां,’’ कह कर वह फिर अपने खयालों में खो गई.
समीर ने अपनी आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप वैज लेंगे या नौनवैज?’’
समीर चौंक कर उठा. राधिका उस के कंधे को हलके से थपथपा कर पूछ रही
थी. वह बीच में कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला.
‘‘वैज,’’ समीर के मुंह से निकला.
राधिका ने चुपचाप उसे वैज खाने की ट्रे दे दी. उस समय दोनों की नजरें टकराईं. नजरों में ही बातें हो गईं कि समीर उस के कहने पर ही खाना खा रहा है.
‘बनावटी मुसकानों और खोखले वाक्यों के पीछे विमान परिचारिकाओं के पास दिल भी होता है, जो दूसरों का दर्द महसूस कर सकता है,’ समीर ने सोचा.
‘इसे कम से कम मेरा कहना याद तो है. भूखा रहने से कोई दुख कम नहीं होता, इतना तो इसे पता होना चाहिए,’ राधिका सोच रही थी.
खाना खाने के बाद समीर की आंख फिर लग गई.
‘‘अब हम त्रिवेंद्रम हवाईअड्डे पर आ पहुंचे हैं. आशा है कि आप की यात्रा सुखद रही. आप हमारे साथ फिर यात्रा करें तो हमें खुशी होगी,’’ उद्घोषणा हो रही थी.
विमान से उतरते समय समीर की नजरें राधिका से मिलीं तो वह मुसकरा दी. ऐसा लगा कि शायद कुछ कहना चाहती है.
पूरा दिन समीर मीटिंग में व्यस्त रहा. शाम को समय काटने के लिए वह कोवलम बीच चला गया और वहां समुद्र के किनारे टहलने लगा. बरबस ही उसे विधि की याद आने लगी. उस ने और विधि ने शादी के बाद ऐसी ही किसी जगह जाने का प्रोग्राम बनाया था, वह सोचने लगा.
उसे लगा कि कोई पहचाना हुआ चेहरा उस के सामने से गुजरा. अरे यह तो वही है, सुबह वाली विमान परिचारिका. क्या नाम था इस का? हां, राधिका, उसे याद आया.
राधिका आगे जा कर रेत पर बैठ गई. समुद्र की लहरें उस के पैरों को छू रही थीं. जब भी वह त्रिवेंद्रम आती थी, कोवलम बीच जरूर आती थी. समुद्र में सूर्य का विलीन होते देखना उसे बहुत अच्छा लगता था.
राधिका को यह दृश्य आदित्य से बिछड़ने के बाद अपनी जिंदगी के बहुत करीब लगता था. वह सोचने लगी, ‘कब उस ने आदित्य को आखिरी बार देखा था? शायद
2 साल से ज्यादा हो गए. वह अपनी नईनवेली दुलहन के साथ गोवा घूमने जा रहा था.
विमान में उसे देख कर व्यंग्यपूर्वक मुसकरा दिया था.’ ‘‘आप के सुंदर चेहरे पर आंसू शोभा नहीं देते,’’ सुन कर राधिका चौंक पड़ी. सामने एक पहचाना सा चेहरा था. यह तो सुबह की फ्लाइट में था. आंसुओं की धार उस के चेहरे को भिगो रही थी. उस ने आंसू पोंछ लिए.
‘‘लगता है, आंख में रेत का कण चला गया था,’’ वह बोली.
‘‘आप क्या पहली बार त्रिवेंद्रम आए हैं?’’ राधिका ने बात बदलने के लिहाज से पूछा.
‘‘राधिका, मेरा नाम समीर है. मैं साल में 2-3 बार यहां आता हूं.’’
उसी समय पास से मूंगफली वाला गुजरा. समीर ने एक पैकेट मूंगफली खरीद कर राधिका को आधी मूंगफली दीं. राधिका ने बताया कि इतनी लंबी फ्लाइट के बाद उसे एक दिन का विश्राम मिलता है. कल फिर वह उसी फ्लाइट से दिल्ली जाएगी.
मूंगफली खातेखाते वे इधरउधर की बातें करते रहे. अंधेरा होने पर दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली. राधिका को यह बहुत अच्छा लगा कि समीर ने उस के आंसुओं का कारण जानने की कोशिश नहीं की.
समीर ने अपने गैस्टहाउस में लौट कर हमेशा की तरह अपनी डायरी निकाली. उस ने सोचा कि वह आज राधिका से मुलाकात का पूरा विवरण लिखेगा. डायरी खोलते ही उस के अंदर से फोटो गिर पड़ा. फोटो में राधिका किसी लड़के के साथ थी.
‘तो मेरी डायरी राधिका की डायरी से बदल गई है,’ उस ने सोचा. पहले तो उसे
लगा कि उसे डायरी नहीं पढ़नी चाहिए, परंतु उस के मन में राधिका की उदासी का राज जानने की इच्छा थी, इसलिए उस ने पढ़ना शुरू किया.
दिनांक ………..मैं आज बहुत खुश हूं. मुझे इंडियन एअरलाइंस में विमान परिचारिका के लिए चुन लिया गया है. मम्मीपापा ने कहा कि उन्हें मुझ पर गर्व है.
दिनांक ………..
आज मुझे आदित्य ने लोदी गार्डन में मिलने के लिए बुलाया. मेरा हाथ पकड़ कर बोला कि वह मुझ से प्यार करता है और शादी करना चाहता है. पता नहीं कितने वर्षों से मैं आदित्य के मुंह से यह वाक्य सुनने का इंतजार कर रही थी. लगता है कि आज रात नींद नहीं आएगी.
दिनांक ………..
मेरी जिंदगी बंध गई है आदित्य और इंडियन एयरलाइंस के बीच में, परंतु मन हमेशा आदित्य में ही लगा रहता है.
दिनांक ………..
आज मैं ने अपनी सहेली शीला को आदित्य से अपने प्यार और शादी के बारे में बताया तो वह चुप रही. लगता है कि उसे मुझ से जलन हुई है.
दिनांक ………..
कई दिनों से आदित्य के स्वभाव में परिवर्तन देख रही हूं. कई बार मिलने का वादा कर के भी वह नहीं आता. लेकिन वादा तोड़ने का उसे कोई पछतावा नहीं होता. लगता है कि उसे कोई परेशानी है, जिसे मैं समझ नहीं पा रही.
दिनांक ………..
शीला ने मुझे कल शाम 6.00 बजे नेहरू पार्क में मिलने के लिए बुलाया है. मैं ने मना करने की कोशिश की, परंतु उस ने दोस्ती का वास्ता दिया है.
दिनांक ………..
आज मेरे सारे सपने चकनाचूर हो गए. शीला मुझे नेहरू पार्क में एक कोने में ले गई और मुझे मेरे प्यार की असलियत बता दी. आदित्य किसी युवती को अपने आलिंगन में ले कर प्यार भरी बातें कर रहा था. हमें देख कर बेशर्मों की तरह मुसकरा दिया.
शीला ने बाद में बताया कि आदित्य ने शीला के साथ भी खेल खेला था. मैं शीला की एहसानमंद हूं कि उस ने मुझे बरबाद होने से बचा लिया.
दिनांक ………..
जिंदगी में एक सूनापन सा भर गया है. दिन तो किसी तरह कट जाता है, लेकिन रात नहीं कटती. लगता है कि नींद आंखों से रूठ चुकी है.
दिनांक ………..
आज मेरी दिल्लीगोवा फ्लाइट पर ड्यूटी थी. अचानक देखा कि आदित्य अपनी नईनवेली दुलहन के साथ बैठा है. मुझे देख कर व्यंग्य से मुसकरा दिया. मन में तो तूफान उठ रहे थे परंतु मैं ने अपने चेहरे पर भाव नहीं आने दिए.
समीर ने पाया कि वह राधिका के दर्द को महसूस कर सकता है, क्योंकि वह भी इसी तरह के दर्द से गुजर रहा है.
राधिका ने अपने होटल में समीर की डायरी बंद कर दी और बालकनी में आ कर बैठ गई. वह सोचने लगी, ‘अब तक मैं पुरुषों को ही बेवफा और धोखेबाज समझती थी. क्या विधि के लिए सुखसुविधाओं की कीमत समीर के सच्चे प्यार से ज्यादा थी?’
दूसरे दिन सुबह समीर औफिस पहुंचा तो उस के निदेशक ने कहा कि उस के साथ
2 और साथी त्रिवेंद्रम से दिल्ली जाएंगे. उसे उन्हीं लोगों के साथ बैठना पड़ा. राधिका से नजरें चार हुईं तो दोनों समझ गए कि वे एकदूसरे की डायरी पढ़ चुके हैं.
वह 1-2 बार बाथरूम के बहाने पीछे गया परंतु राधिका के साथ दूसरी परिचारिकाएं थीं, इसलिए कुछ नहीं कह पाया.
मुंबई में हवाईजहाज रुका तब उस ने राधिका की डायरी निकाली और पीछे की ओर गया. राधिका ने उसे देख लिया. चुपचाप उन्होंने एकदूसरे की डायरी वापस कर दी.
राधिका ने अपनी डायरी खोली. उसमें समीर का संदेश था, ‘मैं आप का दर्द अनुभव कर सकता हूं. मुझे विश्वास है कि आप को जिंदगी में सच्चा प्यार अवश्य मिलेगा. यदि मैं आप के लिए कुछ कर सका तो मुझे खुशी होगी.’
– समीर
समीर अपनी सीट पर आ गया और डायरी पलटने लगा. अंदर राधिका ने लिखा था, ‘जिंदगी में सुख एवं दुख दोनों होते हैं. आशा करती हूं कि आप जिंदगी भर विधि का रोना नहीं रोएंगे.’
– राधिका
जब समीर दिल्ली आने पर विमान से उतरने लगा तो राधिका जैसे दरवाजे पर उस का इंतजार कर रही थी. दोनों की आंखों में चमक थी. इस बात को 2 साल गुजर गए. राधिका और समीर पहले अच्छे दोस्त और फिर पतिपत्नी बन गए. उन के स्मृतिपटल पर दिल्ली त्रिवेंद्रम दिल्ली फ्लाइट हमेशा रहेगी, क्योंकि यहीं से उन्हें अपनी जिंदगी की दिशा मिली.
शोकाकुल मीना, आंसुओं में डूबी, सिर घुटनों में लगाए बैठी थी. उस के आसपास रिश्तेदारों व पड़ोसियों की भीड़ थी. पर मीना की ओर किसी का ध्यान नहीं था. सब पंडितजी की कथा में मग्न थे. पंडितजी पूरे उत्साह से अपनी वाणी प्रसारित कर रहे थे- ‘‘आजकल इतनी महंगाई बढ़ गई है कि लोगों ने दानपुण्य करना बहुत ही कम कर दिया है. बिना दान के भला इंसान की मुक्ति कैसे होगी, यह सोचने की बात है. शास्त्रोंपुराणों में वर्णित है कि स्वयं खाओ न खाओ पर दान में कंजूसी कभी न करो. कलियुग की यही तो महिमा है कि केवल दानदक्षिणा द्वारा मुक्ति का मार्ग खुद ही खुल जाता है. 4 दिनों का जीवन है, सब यहीं रह जाता है तो…’’ पंडितजी का प्रवचन जारी था.
गैस्ट हाउस के दूसरे कक्ष में भोज का प्रबंध किया गया था. लड्डू, कचौड़ी, पूड़ी, सब्जी, रायता आदि से भरे डोंगे टेबल पर रखे थे. कथा चलतेचलते दोपहर को 3 बज रहे थे. अब लोगों की अकुलाहट स्पष्ट देखी जा सकती थी. वे बारबार अपनी घड़ी देखते तो कभी उचक कर भोज वाले कक्ष की ओर दृष्टि उठाते.
पंडितजी तो अपनी पेटपूजा, घर के हवन के समाप्त होते ही वहीं कर आए थे. मनोहर की आत्मा की शांति के लिए सुबह घर में हवन और 13 पंडितों का भोजन हो चुका था. लोगों यानी रिश्तेदारों आदि ने चाय व प्रसाद का सेवन कर लिया था पर मीना के हलक के नीचे तो चाय का घूंट भी नहीं उतरा था. माना कि दुख संताप से लिपटी मीना सुन्न सी हो रही थी पर उस के चेहरे पर थकान, व्याकुलता पसरी हुई थी. ऐसे में कोई तो उसे चाय पीने को बाध्य कर सकता था, उसे सांत्वना दे कर उस की पीड़ा को कुछ कम कर सकता था. पर, ये रीतिपरंपराएं सोच व विवेक को छूमंतर कर देती हैं, शायद.
इधर, पंडितजी ने मृतक की तसवीर पर, श्रद्धांजलिस्वरूप पुष्प अर्पित करने के लिए उपस्थित लोगों को इशारा किया. पुष्पांजलि के बाद लोग जल्दीजल्दी भोजकक्ष की ओर बढ़ चले थे. देखते ही देखते हलचल, शोर, हंसी आदि का शोर बढ़ता गया. लग रहा था कि कोई उत्सव मनाया जा रहा है. ‘‘अरे भई, लड्डू तो लाना, यह कद्दू की सब्जी तो कमाल की बनी है. तुम भी खा कर देखो,’’ एक पति अपनी पत्नी से कह रहा था, ‘‘कचौड़ी तो एकदम मथुरा शहर में मिलने वाली कचौडि़यों जैसी बनी है वरना यहां ऐसा स्वाद कहां मिलता है.’’
ये सब रिश्तेदार और परिचितजन थे जो कुछ ही समयपूर्व मृतक की पत्नी से अपनी संवेदना प्रकट कर, अपना कर्तव्य पूरा कर चुके थे.
मैं विचारों के भंवर में फंसी, उस रविवार को याद करने लगी जब मीना अपने पति मनोहर व बच्चों के साथ मौल में शौपिंग करती मिली थी. हर समय चहकती मीना का चेहरा मुसकान से भरा रहता. एक हंसताखेलता परिवार जिस में पतिपत्नी के प्रेमविश्वास की छाया में बच्चों की जिंदगी पल्लवित हो रही थी. अचानक वह घातक सुबह आई जो दफ्तर जाते मनोहर को ऐक्सिडैंट का जामा पहना कर इस परिवार से बहुत दूर हमेशा के लिए ले गई.
मीना अपने घर पति व बच्चों की सुखी व्यवस्था तक ही सीमित थी. कहीं भी जाना होता, पति के साथ ही जाती. बाहरी दुनिया से उसे कुछ लेनादेना नहीं था. पर अब बैंक आदि का कार्य…और भी बहुतकुछ…
मेरी विचारशृंखला टूटी और वर्तमान पर आ गई. अब कैसे, क्या करेगी मीना? खैर, यह तो उसे करना ही होगा. सब सीखेगी धीरेधीरे. समय की धारा सब सिखा देगी.
तभी दाहिनी ओर से शब्द आए, ‘‘यह प्रबंध अच्छा किया है. किस ने किया है?’’
‘‘यह सब मीना के भाई ने किया है. उस की आर्थिक स्थिति सामान्य सी है. पर देखो, उस ने पूरी परंपरा निभाई है. यही तो है भाई का कर्तव्य,’’ प्रत्युत्तर था.
3 दिनों पूर्व की बातें मुझे फिर याद हो आई थीं. भोजन प्रबंध का जिम्मा मैं ने व मेरे पति ने लेना चाहा था. तब घर के बड़ों ने टेढ़ी दृष्टि डालते हुए एक प्रश्न उछाला था, ‘तुम क्या लगती हो मीना की? 2 वर्षों पुरानी पहचान वाली ही न. यह रीतिपरंपरा का मामला है, कोई मजाक नहीं. क्या हम नहीं कर सकते भोज का प्रबंध? पर यह कार्य मीना के मायके वाले ही करेंगे. अभी तो शय्यादान, तेरहवीं का भोज, पंडितों को दानदक्षिणा, पगड़ी रस्म आदि कार्य होंगे. कृपया आप इन सब में अपनी सलाह दे कर टांग न अड़ाएं.’
‘और क्या, ये आजकल की पढ़ीलिखी महिलाओं की सोच है जो पुराणों की मान्यताओं पर भी उंगली उठाती हैं,’ उपस्थित एक बुजुर्ग महिला का तीखा स्वर उभरा. इस स्वर के साथ और कई स्वर सम्मिलित हो गए थे.
मेरे कारण मीना को कोई मानसिक क्लेश न पहुंचे, इसीलिए मैं निशब्द हो, चुप्पी साध गई थी. पर आज एक ही शब्द मेरे मन में गूंज रहा था, यहां इस तरह गम नहीं, गमोत्सव मनाया जा रहा है. मीना व उस के बच्चों के लिए किस के मन में दर्द है, कौन सोच रहा है उस के लिए? चारों तरफ की बातें, हंसीभरे वाक्य- एक उत्सव ही तो लग रहे थे.
लेकिन वह उस समय हैरानपरेशान हो गया, जब तनु से पूछ कर उस ने घर में एक पार्टी रखी, जिस में उस की महिला मित्र भी शामिल हुई थीं. तनु ने उन सब की अच्छे से आवभगत की. राजेश ने , जो वह सोचने पर विवश हो गया? क्या वाकई तनु बदल गई थी…?
राजेश प्रत्यक्षत: तो लैपटौप या ईमेल पर पढ़ रहा था, लेकिन उस के कान अपनी पत्नी तन्वी और बच्चों स्नेहा और यश की बातों की तरफ लगे थे, बातों के साथ तन्वी सब के टिफिन पैक करती जा रही थी. स्नेहा ने कहा, ‘‘मां, आज औफिस से आने में देर हो सकती है.’’
‘‘ओह, फिर? क्यों?’’
‘‘आज बहुत काम है. 8 बजे भी निकली, तो ठाणे पहुंचतेपहुंचते 11 तो बज ही जाएंगे, मेरा डिनर मत बनाना. औफिस की कैंटीन से ही कुछ खा कर निकलूंगी.’’
‘‘क्या मुसीबत है, औफिस आनाजाना कितना मुश्किल होता जा रहा फिर मुंबई में.
“इस से पहले तो वर्क फ्रौम होम था तो कम से कम आसपास तो रहती थी.
स्नेहा, कोई कुलीग नहीं है जिस के साथ तुम आजा पाओ.”
‘‘नहीं मां, मैं ही यहां सब से दूर रहती हूं ठाणे में.’’
‘‘कितना अच्छा होता तुम्हें कोई कंपनी मिल जाती तो…’’
‘‘कल तो मैं ने नरीमन पाइंट पहुंच कर श्रेयस को फोन किया कि मेरा बैग लैपटौप और बाकी सामान से भरा हुआ है और मेरे पैर में भी दर्द है. प्लीज, मुझे लेने आ जाओ, तो बेचारा अपनी गाड़ी ले कर औफिस से मुझे स्टेशन लेने आया, नहीं तो टैक्सी स्टैंड तक जातेजाते मेरे कंधे का बुरा हाल हो जाता.’’‘‘यह तो अच्छा हुआ, तुम्हें कुछ आराम हो गया होगा.’’
यश ने स्नेहा को छेड़ने की कोशिश की, ‘‘ओहो दीदी, तो श्रेयस लेने आया?’’ तन्वी ने डपटा, ‘‘चुप रहो, बकवास मत करो, लेने आ गया तो क्या हुआ, दोस्त है उस का.’’
राजेश को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, सोचने लगा, आजकल तनु को क्या हो गया है, वह बदल रही है. इतने में तन्वी ने तीन टिफिन टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अपनेअपने बैग में रख लो.’’
सब तैयार थे, तीनों ने मास्क निकाल कर पहने और निकल गए. राजेश और स्नेहा अपनेअपने औफिस के लिए, यश 12वीं में है, वह स्कूल के लिए. अब कई महीनों बाद फिर फिजिकल क्लास शुरू हो गई थी. घर से निकल कर राजेश अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ बढ़ गया, स्नेहा स्टेशन जाने के लिए आटो और राहुल अपनी स्कूटी पर निकल गया.
राजेश का औफिस बस दस मिनट की दूरी पर है, वह रास्तेभर यही योचता रहा कि कहां तो तन्वी हमेशा किसी भी लड़कीलड़के को साथ देख कर बिदक जाती थी और अब स्नेहा सीए कर रही है, वह आर्टिकलशिप के लिए नरीमन पाइंट अपने औफिस जाती है, अब तनु कितने आराम से पूछती रहती है कि स्नेहा को आनेजाने का कोई साथ मिला या नहीं. यही नहीं, स्नेहा अपने औफिस और कालेज के दोस्तों के बारे में बताती है तो तनु कितने उत्साह से सुनती है उस की बातें और अब तो यश जब अपनी किसी क्लासमेट से फोन पर लंबी बातें करते हैं तब भी तनु कुछ नहीं कहती.
गाड़ी चलाते हुए राजेश को कितनी ही बातें याद आ रही थीं, लौकडाउन से पहले एक बार राजेश को औफिस के किसी काम से बांद्रा जाना था, राजेश ने तन्वी को बताया था, ‘‘तनु, आज बांद्रा जाना है, एक मीटिंग है, अपनी गाड़ी नहीं ले जा रहा हूं, औफिस से सिम्मी को भी जाना है, वही अपनी गाड़ी निकाल रही है, उसी के साथ चला जाता हूं.’’
राजेश को आज भी तन्वी की वो जलती निगाहें याद हैं, तन्वी ने कहा था,
‘‘क्या जरूरत है, आप अपनी कार से ही जाइए, मुझे कभी पसंद नहीं आएगा आप का किसी के साथ जाना.’’
राजेश झुंझला गया था, ‘‘यह क्या बचपना है तनु, यह मुंबई है, कुलीग्स का साथ आनाजाना आम बात है और अब तो तय हो चुका है कि कार वो ले जा रही है, अब मैं यह कैसे कहूं कि मैं अपनी कार से जाऊंगा, तुम अपनी कार से जाओ, कारण क्या बताऊंगा कि मेरी पत्नी को यह पसंद नहीं है.’’
तन्वी ने उस समय और कुछ नहीं कहा था, बस आंखें भर आई थीं उस की और वह सिम्मी यादव के साथ चला तो गया था, लेकिन पूरा दिन उस का काम में दिल नहीं लगा था, जानता था कि आज तनु पूरा दिन उदास रहेगी. तनु को उस का किसी महिला सहकर्मी के साथ आनाजाना पसंद नहीं है, खासतौर पर सिम्मी के साथ जिस को वह जाति की निगाहों से भी देखती है. वह भी ऐसी स्थिति से बचने की कोशिश करता है, लेकिन क्या करे, औफिस में लड़कियां, महिलाएं भरी हुई हैं, कामकाजी महिलाओं के लिए तन्वी के दिल में कुछ खास अच्छी इमेज नहीं थी, लेकिन अब जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, तनु बदल रही है. तन्वी के बारे में ही सोचतेसोचते राजेश औफिस पहुंच गया. दिनभर काम के दौरान भी उसे तन्वी का कई बार खयाल आया. लंचटाइम में उस ने हमेशा की तरह तन्वी को फोन कर उस का हालचाल पूछा, वह जानता है, सरलहृदया तन्वी इतने में ही खुश हो जाती है, दिनभर सब की सुविधाओं का खयाल रखती तनु उस के प्यार के एकएक बोल पर निहाल होती रहती है.
रात को राजेश, तन्वी और राहुल ने डिनर साथ किया, स्नेहा को देर होने ही वाली थी. डिनर के दौरान राजेश ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘तनु, इस संडे को कोई खास काम तो नहीं है?’’
‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही सोच रहा था, सब प्रमोशन की पार्टी मांग रहे हैं, उन्हें लंच पर बुला लूं?
“सब लोग अब कोविड की बोरियत को दूर करने के बहाने ढूंढ़ रहे हैं.”
‘‘हां, तो बुला लीजिए, कौनकौन है?’’
‘‘संजय, अमित तो मैरिड हैं, वे सपरिवार आएंगे,’’ फिर थोड़ा मन ही मन सकुचाते हुए कहा, ‘‘सिम्मी यादव और अंजलि अनमैरिड है, वे तो अकेली ही आएंगी, हम सब की टीम एकसाथ काम करती है, एक अच्छा ग्रुप बन गया है, इन दोनों को नहीं बुलाऊंगा तो अच्छा नहीं लगेगा, बातोंबातों में पता तो चल ही जाएगा.’’
‘‘हां.. तो ठीक है न, जिस को बुलाना हो बुला लो, कुलीग्स ही तो हैं, इस में कौन सी बड़ी बात है,’’ कह कर तन्वी आराम से खाना खाने लगी. राजेश तो हैरान हो गया. बोला, ‘‘सच…?’’
‘‘अरे, इस में हैरान होने वाली क्या बात है?’’
तीनों आराम से बातें करते हुए डिनर करते रहे. अभी स्नेहा ने शेयर उबर ली थी, क्योंकि वह ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहती थी. मुंबई में ट्रैफिक फिर पहले की तरह होने लगा था. उसे आने में देर थी. राजेश तो आजकल तन्वी के स्वभाव में आया बड़ा परिवर्तन महसूस कर रहा है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि तनु इतने आराम से सिम्मी और अंजलि को लंच पर इन्वाइट करने के लिए कहेगी, पहले कभी किसी पार्टी में तनु का इन लोगों से आमनासामना हुआ है तो तनु अपने में ही सिमटी रही थी, बात हायहैलो तक ही सीमित रही थी. थोड़ी देर बाद स्नेहा का फोन आया. फोन तन्वी के मोबाइल पर ही था. स्नेहा कह रही थी,
‘‘मां, रास्ते पर प्रतीक का फोन आ गया. वह मुझे रास्ते में मिलेगा. वह अपनी बाइक से घर छोड़ देगा.’’
तन्वी ने पूछा, ‘‘कौन प्रतीक?’’
‘‘मेरे साथ कोचिंग में था. अचानक आज उस का फोन आ गया. अब मैं उस के साथ एक कौफी पी कर आऊंगी.’’
“हां, यह अच्छा हुआ. रात भी बहुत हो गई है. साढ़े 10 बज रहे हैं. ठीक है, आ जाओ. कोई जानपहचान का हो तो डर नहीं लगता.”
राजेश ने पूछा, तो तन्वी ने उसे पूरी बात बताई. राजेश ने कहा, ‘‘इतनी रात को…? कौन है प्रतीक?’’
‘‘उस ने बताया तो, कोचिंग में उस के साथ था. अच्छा है न, कोई पुराना जानपहचान का मिल गया.’’
राजेश तन्वी का मुंह देखता रह गया. यह मेरी ही तनु है न. यह वही तनु है न, जो किसी भी लड़केलड़की की दोस्ती को अफेयर ही समझती थी, जो कहती थी कुछ नहीं होती दोस्ती, सब अफेयर होते हैं. तनु की सोच का रुख देख कर उस ने किसी भी महिला सहकर्मी को कभी अपने घर नहीं बुलाया था. वह नहीं चाहता था, तनु को जरा सा भी मानसिक कष्ट पहुंचे. जानता था, मुंह से कुछ नहीं भी कहेगी, लेकिन मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोच कर घुटती रहेगी. वह तनु को बहुत प्यार करता था. उसे हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता था. आजकल तनु के इस बदलाव पर उस का रातदिन ध्यान जा रहा था.
तनु के दिमाग में कसबाई सोच भरी थी. वह बातबात में ब्राह्मïण होने का गर्व करती थी. औरतें आजाद नहीं रहें, यह भी उन की सोच थी. पापा, प्रतीक घर तक ही छोड़ गया है.’’
तन्वी ने कहा, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा किया उस ने.’’
संडे को राजेश के सब सहकर्मी लंच पर आए. तन्वी ने दिल से सब की आवभगत की. सिम्मी और अंजलि के साथ तो वह इतनी सहृदयता से मिली कि लग रहा था पुरानी सहेलियां हैं.
सुबह से किचन में मेहनत कर रही तन्वी का हाथ बंटाने के लिए दोनों किचन में पहुंच गईं. संजय और अमित अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आए थे, उन से तो तन्वी की पहले से दोस्ती थी, लेकिन तन्वी को सिम्मी और अंजलि के साथ खिलखिलाते देख राजेश मन ही मन हैरान था, बारबार सोचता यह मेरी तनु ही है, मेरी अविवाहित सहकर्मी और खासतौर पर सिम्मी के साथ, जिस की जाति को ले कर वह चूंचूं करती रहती थी के साथ ऐसा अपनापन. आजतक तो तनु ने हर महिला सहकर्मी के साथ इतनी दूरी बना कर रखी थी कि राजेश ने तो उन्हें घर बुलाना ही छोड़ दिया था.
सब ने लंच बहुत हंसीमजाक करते हुए किया. तन्वी के बनाए खाने की सब ने खूब तारीफ की. सिम्मी तो कई बार कई चीजें तन्वी से सीखने के लिए कहती रही. राजेश का मुंह खुला रह गया, जब तन्वी ने नरमी से कहा, ‘‘अरे, यह सब बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. जब खाने का मन हो आ जाना. इस बहाने मिलना भी हो जाएगा.’’
अंजलि ने कहा, ‘‘सच… आज घर का खाना खा कर मम्मी के हाथ के खाने की याद आ गई. हम लोग तो मेड का बनाया खा कर बोर हो गए हैं,’’ अंजलि और सिम्मी दो और लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहती थीं.
लंच कर के सब तन्वी को बारबार थैंक्स बोलते हुए चले गए. तन्वी किचन समेटने लगी. स्नेहा भी हाथ बंटाने लगी. राजेश ने कहा, ‘‘तनु, अब आराम कर लो. थक गई होगी, सुबह से किचन में लगी हो.’’
तनु ‘हां, अभी करती हूं,’ कह कर फ्री हो कर बेडरूम में आराम करने आ गई. राजेश भी कुछ सोचता हुआ लेटा था. तन्वी ने उसे प्यार से देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, क्या सोच रहे हो?’’
“नहीं, कुछ नहीं.”
“आप को क्या लगता है, मैं अंदाजा नहीं लगा पाऊंगी, आप क्या सोच रहे हैं?”
राजेश कुछ बोला नहीं, बस उसे देखता रहा.
“यही सोच रहे हैं न आप कि मैं कुछ बदल गई हूं?”
राजेश चौंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने सही अंदाजा लगाया है तनु.’’
“आप ठीक सोच रहे हैं, दुनिया में होती निरंतर प्रगति और बदलते परिवेश से बेखबर मैं अपनी बचपन से मिली जाति और धर्म की संकीर्ण विचारधारा में ही व्यस्त थी. जब से राहुल और स्नेहा बड़े हुए हैं, मैं ने उन की आधुनिक सोच को रातदिन परखा है, किसी लड़केलड़की के संबंध को मैं सिर्फ प्रेम संबंध ही समझती थी, उन में अच्छी दोस्ती भी हो सकती है, यह मैं ने इन बच्चों से ही सीखा है. जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, मैं ने देखा है, ट्रेन में धक्के खाने से अच्छा है पैट्रोल शेयर कर सब बच्चे आराम से एकदूसरे के साथ चले जाते हैं. धीरेधीरे मुझे भी कामकाजी लड़कियों के विचारों का खुलापन भाने लगा है. बंधनों से दूर खुली हवा में सांस लेता जीवन काफी सरस और सरल लगता है.
“लौकडाउन में जिस तरह अलग धर्मों और जातियों के पड़ोसियों ने एकदूसरे की सहायता की, उस ने मुझे दादादादी की सोच से निकाल दिया. ये लड़कियां आत्मविश्वास से भरी खुश नजर आती हैं. स्नेहा और राहुल के साथ पढ़ने वाले लडक़ेलड़कियों की दोस्ती देखीसमझी है मैं ने, इतने लड़के स्नेहा के दोस्त हैं, जानती हूं मैं अच्छी तरह, उन में से किसी का भी स्नेहा से अफेयर नहीं है, फिर यह साफ, सरल दोस्ती ही तो है, आप जब पिछले महीने टूर पर थे, स्नेहा और मैं कुछ शौपिंग करने गए थे, हमारी कार बंद हो गई, क्योंकि उस की लौकडाउन में सर्विस नहीं हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आया क्या करें, स्नेहा ने तुरंत अपने एक दोस्त अनिल पंवार जो वहीं रहता है को फोन किया. वह अपनी कार ले आया. हम उसी की कार से गए, गैरेज वाले को फोन किया. वह मैकेनिक लाया कार ले कर वापस आए, अनिल को ही पता था कहां जाना है, क्या करना है, स्नेहा और मुझे तो बिलकुल आइडिया नहीं था, ऐसे कितने ही मौकों पर मैं ने बच्चों से ही बहुतकुछ सीखासमझा है. पहले मैं मराठी लोगों से भी दूरी बनाए रखती थी. सच है, अपनी पहले की सोच से बाहर आ कर मेरा मन भी काफी हलका हो गया है. अब मैं थोड़ा आराम कर लूं?’’ कह कर तन्वी मुसकराते हुए आंखें बंद कर लेट गई.
राजेश उसे प्यार से निहारते हुए सोच रहा था, तनु तो सचमुच बदल गई है और यह बदलाव बहुत अच्छा था.
सवाल
मैं 21 साल का हूं. पड़ोस वाली भाभी 32 साल की हैं और उन के 3 बच्चे भी हैं. एक बार उन के पति गांव गए थे, तो मेरे और उन के बीच जिस्मानी संबंध बन गए, जो लगातार चल रहे हैं. एक दिन उन के पति ने हम दोनों को रंगेहाथ पकड़ भी लिया. इस के बावजूद वे अपनी बीवी को साथ ले जाने को तैयार हैं, पर वह मुझे छोड़ना नहीं चाहती. क्या करूं?
जवाब
3 बच्चों की मां को तलाक दिला कर उस से शादी करना आसान काम नहीं है. लिहाजा, आप उसे सम झा कर पति के साथ जाने को कहें. उस का पति बेहद भला है, वरना कोई भी ऐसी हरकत बरदाश्त नहीं कर सकता. आप ने मुफ्त की मलाई खूब चाट ली, अब उस से किनारा करने में ही भलाई है.
अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem