Download App

सबक : विनीत को परेशान करने के लिए अंजली ने क्या प्लान बनाया?

किचन से आती हंसी-मजाक की आवाजों को सुन कर ड्राइंगरूम में सोफे के कुशन ठीक करती अंजलि की भौंहें तन गईं. एकबारगी मन किया कि किचन में चली जाए, पर पता था उन दोनों को तो उस के होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. रोज यही होता है. सुबह से अंजलि चाय, नाश्ता और खाने की पूरी तैयारी करती है, दालसब्जी बनाती है और जैसे ही रोटियां बनाने की बारी आती है उस की जेठानी लता चली आती है, ‘‘चलो अंजलि, तुम सुबह से काम रही हो. रोटियां मैं बना देती हूं.’’

मना करने पर भी अंजलि को जबरदस्ती बाहर भेज देती. लता की मदद करने अंजलि का पति विनीत तुरंत किचन में घुस जाता. अब अंजलि बिना काम के किचन में खड़ी हो कर क्या करे. अत: चुपचाप बाहर आ कर दूसरे काम निबटाती या फिर नहाने चली जाती और अगर किचन में खड़ी हो भी जाए तो लता और विनीत के भद्दे व अश्लील हंसीमजाक को देखसुन कर उस का सिर भन्ना जाता. उसे लता से कोफ्त होती. माना कि विनीत उस का देवर है, लेकिन अब तो अंजलि का पति है न, तो दूसरे के पति के साथ इस तरह का हंसीमजाक करना क्या किसी औरत को शोभा देता है लेकिन विनीत से जब भी बात करो इस मामले में वह उलटा अंजलि पर ही गुस्सा हो जाता कि अंजलि की सोच इतनी गंदी है. वह अपने ही पति के बारे में ऐसी गलत बातें सोचती है, शक करती है. 3 साल हो गए अंजलि और विनीत की शादी को हुए. इस 3 सालों में दसियों बार लता को ले कर उन दोनों के बीच झगड़ा हो चुका है. लेकिन हर बार नाराज हो कर उलटासीधा बोल कर विनीत अंजलि की सोच को ही बुरा और संकुचित साबित कर देता.

पास ही के शहर में रहने के कारण लता जबतब अंजलि के घर चली आती. लता का पति यानी विनीत के बड़े भाई बैंगलुरु में नौकरी करते हैं. लता अपने दोनों बेटों के साथ अपने मातापिता के घर में रहती है, इसीलिए उसे बच्चों की भी चिंता नहीं रहती. हफ्ते या 10-15 दिनों में 2-4 दिन के लिए आ ही जाती है अंजलि के घर. और ये 2-4 दिन अंजलि के लिए बहुत बुरे बीतते. लता के जाने के बाद अंजलि अपनेआप को थोड़ा संयत करती, मन को संभालती, विनीत और अपने रिश्ते को ले कर सामान्य होती तब तक लता फिर आ धमकती और अंजलि का जैसेतैसे सुचारु हुआ जीवन और मन दोबारा अस्तव्यस्त हो जाता. एक बार तो हद ही हो गई. लता नहाने गई हुई थी. अंजलि भी अपने कमरे में थी. थोड़ी देर बाद किसी काम से अंजलि कमरे से बाहर निकली, तो देखा विनीत लता के कमरे से बाहर आ रहा था.

‘‘क्या हुआ विनीत, भाभी नहा कर आ गईं क्या ’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी नहीं आईं.’’

‘‘तो तुम उन के कमरे में क्या कर रहे थे ’’ अंजलि ने सीधे विनीत के चेहरे पर नजरें गढ़ा कर पूछा.

‘‘व…वह तौलिया ले जाना भूल गई थीं. वही देने गया था,’’ विनीत ने जवाब दिया.

‘‘अगर उन्हें तौलिया चाहिए था, तो मुझे बता देते तुम क्यों देने गए ’’ अंजलि को गुस्सा आया.

 

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं  मैं उन्हें तौलिया देने गया था, उन के साथ नहा नहीं रहा था, जो तुम इतना भड़क रही हो. उफ, शक का कभी कोई इलाज नहीं होता. क्या संकुचित विचारों वाली बीवी गले पड़ी है. अपनी सोच को थोड़ा मौडर्न बनाओ, थोड़ा खुले दिमाग और विचारों वाली बनने की कोशिश करो,’’ विनीत ने कहा और फिर दूसरे कमरे में चला गया. अंजलि की आंखों में आंसू छलक आए. दूसरे दिन सुबह विनीत ने बताया कि लता भाभी वापस जा रही हैं. वह औफिस जाते हुए उन्हें बस में बैठा देगा. अंजलि ने चैन की सांस ली. 4 दिन से तो विनीत लता के चक्कर में औफिस ही नहीं गया था. लता जा रही है तो अब 10-12 दिन तो कम से कम चैन से कटेंगे. यों तो विनीत अधिकतर समय फोन पर ही लता से बातें करता रहता है, लेकिन गनीमत है लता प्रत्यक्ष रूप से तो दोनों के बीच नहीं रहती.

लता और विनीत चले गए तो अंजलि ने चैन की सांस ली. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गई. जब भी लता आती है पूरे समय अंजलि का सिर भारी रहता है. वह लाख कोशिश करती है नजरअंदाज करने की, मगर क्याक्या छोड़े वह  लता और विनीत की नजदीकियां आंखों को खटकती हैं. सोफे पर एकदूसरे से सट कर बैठना, अंजलि अगर एक सोफे पर बैठी हो और लता दूसरे पर तो विनीत अंजलि के पास न बैठ कर लता के पास बैठता है. खाना खाते समय भी लता विनीत के पास वाली कुरसी पर ही बैठती है. जब तक लता रहती है अंजलि को न अपना पति अपना लगता है न घर. लता बुरी तरह विनीत के दिल पर कब्जा कर के बैठी है. रात में भी अंजलि थक कर सो जाती पर विनीत लता के पास बैठा रहता. अपने कमरे में पता नहीं कितनी रात बीतने के बाद आता.

विनीत की इन हरकतों से अंजलि बहुत परेशान हो गई थी. फिल्म देखने जाते हैं, तो विनीत अंजलि और लता के बीच बैठता और सारे समय लता से ही बातें और फिल्म पर कमैंट करता. ऐसे में अंजलि अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती. अंजलि के दिमाग में यही सब बातें उमड़घुमड़ रही थीं कि तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी.

‘‘हैलो,’’ अंजलि ने फोन रिसीव करते हुए कहा.

‘‘हैलो भाभी नमस्ते. मैं आनंद बोल रहा हूं. क्या बात है विनीत आज औफिस नहीं आया  आज बहुत जरूरी मीटिंग थी. उस के फोन पर बैल तो जा रही है, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहा. सब ठीक तो है ’’ आनंद के स्वर में चिंता झलक रही थी. आनंद

विनीत के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

‘‘क्या विनीत औफिस में नहीं हैं ’’ अंजलि बुरी तरह चौंक कर बोली,  ‘‘लेकिन वे तो सुबह 9 बजे ही औफिस निकल गए थे.’’

‘‘नहीं भाभी विनीत आज औफिस नहीं आया है और फोन भी नहीं उठा रहा है,’’ और आनंद ने फोन काट दिया.

अंजलि को चिंता होने लगी कि आखिर विनीत कहां जा सकते हैं. दोपहर के 2 बज रहे थे. अंजलि ने भी विनीत को फोन लगाया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अंजलि परेशान हो गई कि कहीं कोई दुर्घटना तो… फिर अपनी सोच पर अंजलि खुद घबरा गई. उस ने लता को फोन लगाया तो उस ने भी फोन नहीं उठाया. लता के पिताजी के घर पर फोन किया तो पता चला लता अभी तक अपने घर नहीं पहुंची. अगर लता 11 बजे की बस से भी निकलती तो एकडेढ़ बजे तक अपने घर पहुंच जाती. अब तो ढाई बज गए हैं. अंजलि घर में अंदरबाहर होती रही. कभी विनीत का फोन मिलाती तो कभी लता का और कभी आनंद का.

जीत : रमा को लेकर गंगा क्यों चिंतित थी?

गंगा को अपने बेटे रजत और रमा के बीच प्रेम संबंध हरगिज गवारा न था. उस ने इस के लिए रमा को कुसूरवार ठहराते हुए अच्छाखासा अपमानित भी किया. लेकिन रमा ने भी प्यार में हार न मानने की कसम खा ली थी.

रमा जब गंगा के घर से निकली तो उस की आंखों से आंसू निकल रहे थे. उस ने अपनी आंखों के आंसू पोंछे और सामान्य होने की कोशिश की. घर से निकलते समय उसे गंगा की हंसी सुनाई पड़ी.

रमा घर का दरवाजा बंद कर के तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ी. दिल में भरा तूफान उस के शरीर को झकझोर रहा था. धीरेधीरे वह भी शांत हो गया. सिर्फ एक दुख अंदर रह गया था.

गंगा अभी भी हंस रही थी. आजकल की लड़कियां किस तरह की बातें करती हैं. इन पर जरा भी भरोसा नहीं किया जा सकता. कहीं वह फिर से न चक्कर चलाने लगे. इन्हें तो नागिन की तरह कुचल देना चाहिए. इसी ने तो कहा था, ‘तुम्हारा लड़का अगर तुम्हारे बस में है तो उसे संभालो. क्यों मेरे पीछे आता है.’

फिर मुझ से माफी मांगने आई थी, ‘मांजी, मुझ से भूल हो गई. उस दिन गुस्से में इस तरह की बातें मैं कह गई थी.’

रजत जरूर इस के पीछेपीछे घूमता है, तभी तो इस का दिमाग आसमान पर चढ़ गया है. मां से उस का बेटा छीनना चाहती है. अपनी जीत पर इसे घमंड है.

लेकिन रजत चाहे जैसा भी हो, है तो गंगा का ही बेटा. गंगा का आज्ञाकारी बेटा. पति की मौत के बाद गंगा ने उसे इस तरह पालापोसा था कि जो गंगा कहती, वह वही करता. गंगा पानी देती तभी वह पीता, इस तरह का था रजत. उस के लिए मांबाप, भाईबहन, अध्यापक दोस्त सबकुछ गंगा ही थी. रिश्तेदार, परिचित जो भी रजत को देखता, यही कहता कि बेटा हो तो रजत जैसा. गंगा जवानी में ही विधवा हो गईर् थी. उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था. लेकिन बेटा ऐसा लायक मिला कि देखते ही देखते सारा दुख दूर हो गया. वह अपनी मां की एक आवाज पर दौड़ा आता था.

और ऐसे लड़के के बारे में रमा ने जाने कैसे सोच लिया कि रजत उस के काबू में हो गया है, जो वह कहेगी, रजत वही करेगा. रजत उस के कहने पर अपनी मां को छोड़ कर उस के पीछे भागा चला आएगा.

समय रहते अगर गंगा चेत न गई होती तो शायद वही होता जो रमा ने सोचा था. जवानी तो दीवानी होती है. दोनों का परिचय कब और कैसे हुआ, कब एकदूसरे के दिल में समा गए. गंगा को पता ही नहीं चल पाया. लेकिन जब इस बात का पता गंगा को चला, तब तक बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. अगर समय रहते इस तरह उस ने हस्तक्षेप न किया होता तो सारी इज्जत पानी में मिल गई होती.

एक दिन अचानक गंगा ने रजत से पूछा था, ‘दीनानाथ की भांजी तुम्हारे औफिस में काम करती है?’

रजत के लिए यह सवाल चौंकाने वाला था. वह अचकचाते हुए बोला, ‘हां, मेरे यहां, मेरे नीचे ही काम करती है.’‘क्या नाम है उस का?’

‘रमा.’ ‘तुम्हारे साथ उस का कैसा संबंध है?’ ‘अच्छा ही है.’

‘मैं यह नहीं पूछ रही,’ गंगा ने रजत की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘मैं ने जो कुछ सुना है, क्या वह सच है?’

रजत कुछ नहीं बोला. मन ही मन मुसकरा कर रह गया. रजत की इस मुसकराहट से गंगा सबकुछ समझ गई थी. गंगा खीझते हुए बोली, ‘आखिर कुछ बोलते क्यों नहीं? अब मुझ से भी चालाक बनने लगे हो?’ ‘लेकिन मां.’ रजत सहम सा गया, ‘तुम समझती क्यों नहीं?’

‘क्या समझूं? तुम कुछ समझाओगे तभी तो मेरी समझ में आएगा.’‘आखिर आप इतना नाराज क्यों हो रही हैं?’

दरअसल, गंगा को भी अपनी इस नाराजगी का कारण समझ में नहीं आ रहा था. लेकिन रजत की बातें उसे अच्छी नहीं लग रही थीं. वह उसी आवाज में बोली, ‘नाराज न होऊं तो क्या तुम्हारे इस काम से खुश होऊं?’

रजत मुंह से तो कुछ नहीं बोल पाया था, पर उस का चेहरा बोल पड़ा था, ‘मान जाओ न, मां.’

‘तुम ऐसीवैसी लड़की से प्रेम करो और मैं…’‘रमा ऐसीवैसी लड़की नहीं है, मां.’ ‘हां, तुम ने तो उस के बारे में सबकुछ जान लिया है.’

‘तुम उस से मिली हो?’ ‘मिली तो नहीं, पर मैं उस के पूरे परिवार के बारे में जानती हूं.’ ‘लेकिन रमा का इस से क्या लेनादेना?’रजत के मुंह से रमा का नाम सुन कर (उस के बोलने में एक प्यार था) गंगा को और गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘मतलब क्यों नहीं? नीम के पेड़ पर नीम का ही फल लगेगा, आम का नहीं, समझे?’’

रजत थोड़ी देर चुप रहा. शायद पहली बार उस ने अपनी मां के सामने विरोध प्रकट किया था. वह बोला, ‘मैं आप की बात से सहमत नहीं हूं. मैं ने तो रमा या उस के परिवार के बारे में कोई ऐसीवैसी बात नहीं सुनी है.’

‘यानी…’ गंगा उत्तेजित हो उठी, ‘मैं जो कहती हूं वह झूठ है? मेरी बात पर तुम्हें विश्वास नहीं है?’ ‘नहीं, लेकिन जो तुम ने सुना है वह झूठ भी तो हो सकता है. आदमी को जो अच्छा लगता है, इधरउधर की बातें करते रहते हैं. तुम ने क्या सुना है, मुझे भी तो बताओ.’

‘मुझे सुबूत देना होगा?’ ‘मैं जानना चाहता हूं और उस के बारे में सहीझूठ का पता लगाना चाहता हूं.’ ‘यानी कि तुम्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है? तो जाओ…’ मुंह फेर कर वह दूर जाते हुए बोली, ‘जाओ, उस दो टके की लड़की के साथ घूमो,’ इतना कह कर गंगा सिसकने लगी.

रजत निराश हो गया था. अपनी मां के इस व्यवहार को वह समझ नहीं सका था. इस में रोने वाली कौन सी बात हो गई थी. उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘जवान लड़का किसी लड़की से प्रेम नहीं करेगा, तो…’

यह वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि गंगा तीर की तरह पलटी और बोली, ‘क्या कहा…? क्या कहा तुम ने? अच्छा, अब यह सब भी बोलने लायक हो गए हो? जाओ, करो प्रेम, शादी करो और घूमो उस के साथ. लेकिन शादी करने के बाद मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘लेकिन मां, जरा तुम सोचो तो…’‘इस में मुझे क्या सोचना है? मुझे अब करना ही क्या है?’

रजत सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा. फिर धीरे से बोला, ‘ऐसा करो न मां, तुम एक बार रमा से मिल लो. मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा.’

‘खबरदार, अगर उस का नाम तुम ने मेरे सामने लिया. मैं उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती. अब तुम उसी के पास जाओ, मेरातुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’

रजत थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा. वह निराश हो गया था. उस ने सोचा, इस का निबटारा इस वक्त नहीं हो सकता. भारी दिल से वह घर के बाहर चला गया.

रमा से मिलने से गंगा ने इनकार कर दिया था. फिर भी गंगा ने दूसरे ही दिन रमा को घर बुलाया. रमा को ऐसे समय में बुलाया जिस समय रजत घर में नहीं था.

अपनी होने वाली सास से रमा सहमतेसहमते मिलने आई. लेकिन गंगा प्यार से बातें करने के बजाय उस से कर्कश स्वर में बोली, ‘तुम औफिस में काम करने जाती हो या वहां काम करने वाले जवान लड़कों को फंसाने जाती हो?’ गंगा की इस बात से रमा को काठ मार गया.

‘सुनो, मेरे बेटे की तरफ अगर फिर से नजर उठा कर देखा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’ रमा भी संभलते हुए बोली, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मांजी.’

‘दूसरे लड़कों के साथ तुम्हें गुलछर्रे उड़ाना हो तो उड़ाओ, पर मेरे लड़के के साथ…’

‘आप अपने लड़के के बारे में कुछ जानती हैं?’‘उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन जानेगा भला? अब तुम उस के सामने नखरे मत करना.’

‘उस से भी कह दीजिएगा, मेरे सामने नहीं आएगा.’ ‘उस से तो कह दूंगी, पर तुम्हें…’

‘मुझे कहने वाली आप कौन होती हैं. अगर आप को अपना लड़का बहुत सुंदर लगता है, तो उसे ओढ़नी ओढ़ा कर घर में ही बैठा लीजिए.’

‘क्या कहा?’ ‘जो आप ने सुना,’ रमा गुस्से से कांपने लगी थी. जो शब्द उस के मुंह से निकल रहे थे उन्हें सुन कर वह खुद ही स्तब्ध रह गईर् थी. दुख भी हुआ था कि इस तरह भी बोलना उसे आता है. लेकिन शोले की तरह ये शब्द पता नहीं कहां से निकल रहे थे.

‘‘एक बार और कह रही हूं, ठीक से सुन लीजिए. आप को अपना लड़का बहुत प्यारा है तो उसे घर में रखिए. नहीं तो कोई भगा ले जाएगा.’

‘अब तुम यहां से चली जाओ, नहीं तो…’

‘आप ने बुलाया है, इसलिए आई हूं,’ रमा नफरत से बोली, ‘नहीं तो आप का मुंह देखने की मुझे क्या जरूरत थी,’ और जातेजाते मुंह घुमा कर थूक दिया था.

गंगा गुस्से से लाल हो उठी थी. थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुई तो स्तब्ध रह गई थी. अब तो रजत पैर पकड़ कर भी रोएगा तो भी वह इस लड़की के लिए नहीं मानेगी. एकदम नहीं मानेगी.

लेकिन जवानी तो दीवानी होती है. इस के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता. इतना अपमानित होने के बाद भी रमा जब रजत से मिली तो पता नहीं रजत ने क्या समझाया कि वह फिर गंगा से माफी मांगने के लिए चली आई थी.

गंगा को लगा था कि गलती तो उस की खुद की थी. जो कुछ किया, उस ने खुद किया. घर बुला कर जो नहीं कहना चाहिए था, वह भी उस ने कहा. उस की बेइज्जती की. फिर भी आ कर वह माफी मांग रही थी. थोड़ी देर के लिए तो वह नरम पड़ गई थी. रमा उसे समझा रही थी. उस के सामने शिकायत की जाए, इस तरह का कुछ भी नहीं कहा था. उस के परिवार के बारे में उस ने जो कुछ भी कहा था, वह सब झूठ था.

लेकिन थोड़ी देर के लिए नरम पड़ी गंगा एकाएक कठोर हो गईर् थी और रमा को उस ने दुत्कार कर भगा दिया था. वह बेचारी रोती हुई घर से बाहर गईर् थी और उसे सुनाने के लिए गंगा खूब जोर से हंसी थी.

मन में यह सवाल उठा था कि इस तरह वह क्या कर रही है? आखिर वह चाहती क्या है? एक बार उस के मन में यह विचार उठा कि क्या इस की शादी रजत से नहीं हो सकती. लड़की तो ठीक ही है.

लेकिन उस का मन फिर बदल गया. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. रमा रास्ते में चलते हुए सोचती जा रही थी. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे. एक बार बेइज्जती सहन कर के जिस घर से निकली थी, उस घर में दोबारा क्यों गई, अपनी और ज्यादा बेइज्जती कराने?

उसे रजत के ऊपर गुस्सा आया. खुद के ऊपर गुस्सा आया. आखिर क्यों उस ने रजत की बात मान ली. सचमुच शायद वह रजत के प्रेम में अंधी हो गई है.

गंगा के साथ पहली बार झगड़ा होने के बाद उसे रजत की याद आने लगी थी. गंगा के साथ झगड़ा करने के बजाय चुपचाप उन की बात सुन कर वापस चली आना चाहिए था. आखिर उस ने झगड़ा बढ़ाया ही क्यों था. कुछ भी हो, आखिर वह रजत की मां है. यदि उस की अपनी मां ने कुछ कड़वा बोला होता तो क्या वह उसे भी इसी तरह जवाब देती?

अपने इस व्यवहार पर उसे पछतावा हुआ था. दूसरे दिन जब रजत मिला तो उस ने माफी मांगी थी, ‘‘रमा, मेरी मां पुराने विचारों वाली है. मेरे अलावा उस का कोई नहीं है. उस ने जो कुछ कहा, उस का बुरा मत मानना. प्लीज, सब भूल जाना.’’

रमा ने नरम हो कर कहा था, ‘‘तुम अपने मन में किसी तरह का विचार मत लाना, रजत. मां का प्यार मैं समझ सकती हूं. लेकिन पता नहीं क्यों मैं गुस्से में जो कुछ नहीं कहना चाहती थी, वह भी कह गई थी. रजत, तुम मुझे माफ कर देना.’’

और फिर दोनों पहले की तरह एकदूसरे से मिलते रहे. एक दिन रजत ने रमा से कहा, ‘‘रमा, जो बात तुम ने मुझ से कही है, वही अगर मां से कह दो तो उन का दुख कम हो जाएगा और वह शादी के लिए राजी हो सकती.’’

रमा थोड़ी देर के लिए चुप हो गईर् थी. फिर बोली, ‘‘अगर मां मुझे प्रेम से बुलाएं तो मैं जाऊं. सौ बार माफी मांगूं, लेकिन इस तरह मैं क्यों जाऊं? फिर मेरी बेइज्जती कर दें तो…?’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, मेरा दिल कहता है.’’ और रजत के दिल की बात मान कर रमा फिर गंगा से मिलने गईर् थी. लेकिन गंगा ने फिर उस की बेइज्जती कर दी थी. पूरी तरह बेइज्जत हो कर वापस हुई थी वह. रजत ने उसे तो समझाया था, लेकिन अपनी मां से एक भी शब्द नहीं कह सका था. अगर कहा होता तो आज रमा की यह हालत न हुईर् होती.

उस के दिल में रजत के लिए जहां प्यार था वहां नफरत पैदा होने लगी. अच्छा हुआ कि रजत उस समय वहां नहीं था, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.

4 दिन बीत गए. लेकिन इन 4 दिनों में एकसाथ बहुतकुछ घट गया. रमा ने अपना तबादला लखनऊ करवा लिया, जहां उस का अपना घर था.

5 वर्षों पहले एमए करने के बाद उस की नौकरी इलाहाबाद में लगी थी. वह चाहती तो अपने शहर में भी रह सकती थी. लेकिन यहां इस शहर में रह कर वह नौकरी के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करना चाहती थी. इसलिए इलाहाबाद में ही अपने मामा के साथ रहने लगी थी. जब वह अपने शहर लौटी तो उस के मांबाप ने उस के चेहरे पर छाई उदासी देख कर पूछा था कि क्या बात है, तुम इतनी उदास क्यों हो? लेकिन रमा ने सिर्फ इतना कहा था, ‘वहां अच्छा नहीं लगा. अब मुझे लगने लगा है कि मेरा दाखिला आईएएस में नहीं होगा, इसलिए उदास हो कर लौट आई हूं.’ शहर छोड़ने से पहले वह शाम को औफिस के पीछे रजत से मिली थी.

रमा उदास चेहरे से चुपचाप रजत को देखती रही. रजत ऊबने सा लगा. चुप्पी उसे बहुत अखर रही थी. उस ने बहुत धीरे से, उदास स्वर में कहा था, ‘रमा, अभी थोड़े दिन और धीरज रखो.’

तब रमा हंसी थी, ‘तुम्हारी इस सीख के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’

रजत ने सिर झुकाए हुए कहा, ‘फिर क्या कहूं मैं?’

‘कुछ नहीं, जो कुछ कहना है मुझे कहना है, मुझे करना है. मैं तुम से इसलिए मिलने आई हूं कि अपने प्रेम के लिए, सुख के लिए तुम्हारी जो शर्तें हैं, वे मुझे मंजूर नहीं हैं.’

‘मेरी शर्तें? मेरी कोई शर्त नहीं है.’

‘तुम्हारी मां को मनाने की. तुम चाह कर भी यह काम नहीं कर सकते.’

रजत जमीन की ओर ही ताकता रहा.

‘और मुझे विश्वास हो गया है कि…’

रजत ने बात काटते हुए कहा, ‘यही कि मैं तुम से प्रेम नहीं करता?’

‘नहीं.’

‘तो?’

‘तुम डरपोक हो. तुम किसी से प्यार करने लायक नहीं हो.’

और आगे बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने उस ने एक झटके के साथ गरदन घुमाई और रजत को वहीं छोड़ कर चली गई. दूसरे दिन वह लखनऊ चली गई थी.

रमा के चले जाने के बाद रजत कुछ दिनों तक उदास रहा. लेकिन गंगा बहुत खुश थी. लड़का अभी जवान है,

इस की उदासी 2-4 दिनों में चली जाएगी, यह उस को विश्वास था. दिन बीतने लगे.

एक दिन सुबह पोस्टमैन ने आवाज दी और एक लिफाफा फेंक कर चला गया. रजत औफिस जाने के लिए तैयार हो चुका था. लिफाफा उस ने उठाया. ऊपर रमा की लिखावट देख कर उस का चेहरा खिल उठा.

‘‘किस की चिट्ठी है?’’ गंगा ने पूछा.

रजत ने कुछ नहीं कहा. लिफाफा खोल कर देखा, उस में सिर्फ एक फोटो था. एक दिन रमा और रजत ने साथसाथ फोटो खिंचवाई थी. वही फोटो थी. उस की कौपी रजत के पास भी थी. रमा ने वही भेजी थी. फोटो में रजत रमा को हंसते हुए देख रहा था, और उसे अपनी बांहों में भरे हुए था.

फोटो देख कर रजत का चेहरा

खिल उठा.

गंगा रजत के पास आ गई और उस के हाथ से फोटो छीन लिया. वह थोड़ी देर तक उसे देखती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘छिनाल.’’

लेकिन फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे पढ़ कर भड़क उठी. फोटो के पीछे लिखा था, ‘माताजी, मैं आप के बेटे के साथ ही शादी करूंगी.’

लिखावट पढ़ कर गंगा कांपने लगी. फोटो रजत के ऊपर फेंक दी, ‘‘देख लिया न,’’ चीखती हुई गंगा बोली, ‘‘जैसी थी, वैसी करामात कर गई? मैं तो पहले ही कह रही थी कि…’’

रजत ने चेहरा घुमा कर कहा, ‘‘इस तरह की तो नहीं थी…’’

‘‘क्या कहा?’’

लेकिन रजत ने आगे कुछ नहीं कहा और औफिस चला गया.

गंगा ने नीचे पड़े फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में नीचे डाल दिया.

वह काम में मन लगाने की कोशिश करने लगी. पर काम में उस का मन नहीं लगा और एक बार फोटो निकाल कर उस ने फिर से देखा. काफी देर तक  वह फोटो को देखती रही. फिर वापस काम में लग गई.

रात में गंगा को नींद नहीं आ रही थी. उस की आंखों के सामने वही फोटो नाचती रही. 2 दिनों बाद फिर उसी तरह का एक लिफाफा आया. इस दिन लिफाफा गंगा को ही मिला. लिफाफे में उसी तरह का फोटो और उसी तरह की बात लिखी थी, जो पहले फोटो में लिखी थी.

औफिस जाने के लिए रजत कपड़े पहन रहा था. गंगा ने फोटो उस के ऊपर फेंकी, ‘‘ले जा, अपनी फोटो.’’

पता नहीं क्यों रजत को हंसी आ गई.

इस पर गंगा को गुस्सा आ गया, लेकिन बिना कुछ बोले ही वह आंगन में चली गई.

रजत के चले जाने के बाद वह बाहर आई. फोटो देखे बिना उसे चैन नहीं आया. फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे फिर से पढ़ना चाहती थी. खीझते हुए उस ने फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में रख दिया.

अगले दिन पोस्टमैन ने फिर एक लिफाफा फेंका. गंगा उस के ऊपर नाराज हो गई, ‘‘इस के अलावा और कोई चिट्ठी नहीं आती है, क्या?’’

पोस्टमैन हंसा, ‘‘दूसरी आएगी तो दूंगा ही माताजी,’’ और हंसते हुए चला गया.

गंगा को लगा, रजत भी उस पर हंस रहा है. उस का मजाक उड़ा रहा है. लिफाफा ले कर वह रजत के पास गई और बोली. ‘‘ले, और हंस ले.’’

रजत सहम सा गया.

गंगा मारे गुस्से के कांप उठी. फिर बिना कुछ बोले चली गई.

फिर तो रोजाना ही डाक से एक लिफाफा आने का सिलसिला चल पड़ा. उस में रमा और रजत का वही फोटोग्राफ होता और वही लिखा होता. गंगा का गुस्सा अब कम होने लगा था. वह खीझती भी नहीं थी. लिफाफा आता तो पोस्टमैन के हाथ से खुद ही जा कर ले आती. लिफाफा खोलती, फोटो देखती और जो लिखा होता उसे प्यार से पढ़ती. मुसकराते हुए फोटो ले जा कर अलमारी में रख देती. अब वह दिन में कई बार फोटो देखती.

एक दिन रजत ने पोस्टमैन से कहा, ‘‘लिफाफा तुम मुझे दे दिया करो. मेरी मां को नहीं.’’

‘‘लेकिन पता तो उस पर गंगा मां का ही लिखा रहता है और चिट्ठी भी उन्हीं के नाम आती है,’’ पोस्टमैन ने कहा.

इतनी देर में गंगा आ गई. बोली, ‘‘मेरा लिफाफा मुझे ही देना. मेरी बहू का फोटो मुझे देना, किसी दूसरे को नहीं.’’

पोस्टमैन चला गया तो गंगा ने रजत की ओर रुख किया, ‘‘डरपोक कहीं का. जब तुझ में इतना दम नहीं था तो प्यार ही क्यों किया था? तुझ से बहादुर तो मेरी बहू ही है, जिस ने मुझे हरा दिया.’’

रजत मंदमंद मुसकराता हुआ घर से बाहर निकल गया.

हंगामा महज इसलिए कि बात हिंदुजा परिवार की है

आरोप तो इतने गंभीर और सनसनीखेज हैं कि पहली नजर में ही हिंदुजा परिवार बेहद क्रूर, हिंसक और शोषक नजर आता है. स्विट्जरलैंड की एक अदालत के सरकारी वकील यवेस बर्टोसा की दलीलों पर गौर करें तो हिंदुजा परिवार ने अपनी एक महिला नौकर से हफ्ते में सातों दिन काम कराया और हर दिन 18 घंटे कराया. एवज में महज 7 स्विस फ्रैंक यानी 650 रुपए प्रतिदिन दिए. और तो और, हिंदुजा परिवार ने अपने कर्मचारियों के पासपोर्ट भी जब्त कर रखे हैं. काम करने वालों को बिना इजाजत बाहर नहीं जाने दिया जाता और उन्हें पगार भी इंडियन करैंसी में दी जाती है जिसे वे स्विट्जरलैंड में खर्च नहीं कर पाते.

यवेस बर्टोसा की अक्ल और प्रैक्टिस की दाद देनी होगी जिन्होंने एक झटके में हिंदुजाओं को विलेन बना कर रख दिया. यह हालांकि एक अच्छे वकील की पहचान भी यही है कि वह अपने मुवक्किल के हक और हित में मामले को इतना बढ़ाचढ़ा कर पेश करे कि अदालत और उस में मौजूद लोगों का दिल करुणा से भर आए. फिर इन दलीलों ने तो जमींदारी और पौराणिक युग की याद दिला दी जहां नौकर नौकर नहीं, बल्कि गुलाम होता था. वह चिलचिलाती धूप में हल में बैलों के मानिंद जुता रहता था और मालिक अट्टहास लगाता उस की नंगी पीठ पर कोड़े बरसाता रहता था. उसे इतना ही खाने को दिया जाता था कि वह जिंदा रहते काम भर करता रहे और इसे ही अपनी नियति व समय मान बैठे.

लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि नौकरानी अदालत पहुंच कर इंसाफ, मुआवजा और मालिक को सजा की भी मांग कर रही है. मुआवजा भी कोई ऐसावैसा नहीं बल्कि करोड़ों में मांगा गया है- अदालती खर्च के लिए 10 मिलियन फ्रैंक यानी 9.43 करोड़ रुपए और बतौर मुआवजा 3.5 मिलियन फ्रैंक यानी लगभग 33 करोड़ रुपए. इस मांग में नौकर की दौ कौड़ी की नहीं बल्कि मालिक की खरबों की हैसियत को आधार बनाया गया है. अब यहां यह पूछने और बताने वाला कोई नहीं कि जब इतनी ही परेशानियां और दुश्वारियां थीं तो नौकरानी ने काम क्यों नहीं छोड़ दिया, जब वह अदालत तक दौड़ सकती थी तो काम मांगने कहीं और भी जा सकती थी.

यह सवाल ही न उठे, इसलिए वकील साहब पासपोर्ट को भी घसीट लाए कि वह तो मालिकों ने जब्त कर रखा था. हिंदुजा परिवार के बारे में इतना ही जान लेना काफी है कि स्विट्जरलैंड की जिनेवा झील के किनारे एक महलनुमा विला में रहने वाला भारतीय मूल का यह परिवार ब्रिटेन के रईस परिवारों में से एक है जिस की नैट वर्थ तकरीबन 20 बिलियन डौलर यानी लगभग 17 लाख करोड़ रुपए है. हिंदुजा ग्रुप एनर्जी, औटोमोबाइल, बैंकिंग, इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी और मीडिया कंपनिया संचालित करता है जिस के कर्मचारियों की तादाद कोई 2 लाख है. इस कामयाबी की नींव 1914 में मुंबई में दीपचंद हिंदुजा ने रखी थी.

इस या किसी भी कारोबारी खानदान का कामयाबी और आर्थिक साम्राज्य का इतिहास कम से कम शोषण की बुनियाद पर रखा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि शोषण से खरबों का कारोबार खड़ा नहीं किया जा सकता. वह तो उन लोगों के सहयोग से ही संभव है जिन्हें नौकर या कर्मचारी कुछ भी कह लें बात लगभग एक ही है .

हिंदुजा परिवार पर यह आरोप भी अदालत में लगा है कि वह अपने पालतू कुत्तों पर ज्यादा खर्च करता है बनिस्बत नौकरों के. और तो और, लगेहाथ मानव तस्करी के आरोप का तड़का भी यवेस बर्टोसा ने जड़ दिया है. हां, शारीरिक हिंसा यानी मारपीट का आरोप वे नहीं लगा पाए हैं क्योंकि इस के लिए चिकित्सीय साक्ष्य चाहिए रहते जो आसानी से नहीं मिलते.

अभियोजन पक्ष की इच्छा यह भी है कि मुआवजे और अदालती खर्च के अलावा आरोपियों अजय हिंदुजा और नम्रता हिंदुजा को जेल की हवा खिलाई जाए. साफ़ दिख रहा है कि होनाजाना कुछ नहीं है, अदालतें चाहे देशी हों या विदेशी, महज अभियोजन पक्ष की बिना पर न्याय नहीं करतीं. वे दोनों पक्षों की बात सुनती हैं. हिंदुजा परिवार का जवाब सुनें तो बाजी पलटी हुई लगती है जिस का सार यह है कि आजकल के नौकर आरामतलब, मालिक से जलन रखने वाले और कामचोर हो चले हैं जबकि उन से बराबरी का व्यवहार किया जाता है और सम्मान भी दिया जाता है.

हिंदुजाओं की सफाई पर गौर करें तो यह गलत है कि नौकरों से बुरा बरताव किया जाता है. अपनी नेकचलनी साबित करने के लिए उन्होंने कुछ नौकरों के बयान भी अदालत में करवाए हैं. पीड़िता को नानी और मां का दर्जा देने की बात भी उन्होंने कही. काम के घंटों और कम सैलरी को भी उन्होंने बढ़ाचढ़ा कर पेश किया हुआ बताया है. नौकरों को आवास और भोजन की सुविधा देने की बात भी उन्होंने कही है.

इस मुकदमे, जो हिंदुजा परिवार की रईसी सा सुर्ख़ियों में है, से एक बात यही साबित होती है कि नौकर-मालिक समस्या विश्वव्यापी है. नौकर को लगता है कि मालिक शोषक है और मेहनत से कम पैसे देता है. खुद आरामदेह पलंग और बिस्तर पर एसी कमरे में चैन की नींद सोता है और हमे छोटे से कमरे में पंखे के नीचे सुलाता है. उधर मालिक को लगता है कि नौकर कामचोर है, वह इतने ही पैसों में और काम भी कर सकता है जो वह जानबूझ कर नहीं करता. जितनी सहूलियतें और छूट मैं देता हूं, वे हर कोई नहीं देता बगैरहबगैरह.

लेकिन हिंदुजा परिवार ने एक अच्छी दलील यह दी है कि क्या जब नौकर बच्चों के साथ टीवी देख रहा हो तो इसे काम में गिना जाना चाहिए. जवाब साफ़ है कि नहीं. यह काम या श्रम के नहीं बल्कि फुरसत और मनोरंजन के तहत आता है. इस दलील के पीछे छिपी दलील यह है कि कोई भी लगातार 18 घंटे काम नहीं कर सकता. दूसरे, आवास और भोजन की सुविधा को वेतन में क्यों न गिना जाए, आखिर इन पर भी तो मालिक का खर्च होता है.

यह समस्या भारत में भी है जहां पार्ट और फुल टाइम दोनों तरह के नौकर काम करते हैं. इन के काम के घंटे और वेतन निर्धारण का कोई तयशुदा फार्मूला या नियम नहीं है. ये दोनों पक्षों की जरूरत पर निर्भर करता है. लेकिन विवाद आएदिन होना आम बात है ठीक वैसे ही जैसे स्विट्जरलैंड में हिंदुजा परिवार के साथ हुए.
नौकर या मालिक होना दरअसल एक मानवीय संबंध है जिस में कुछ मालिक क्रूर होते हैं तो कुछ उदार होते हैं. यही बात नौकरों पर लागू होती है, कुछ ईमानदार और वफादार होते हैं तो कुछ निकम्मे व कामचोर भी होते हैं.

यानी, यह एक मानसिकता है. कौन कैसा होगा, यह कहा नहीं जा सकता. पहले नौकर छोटी जाति वाले ही हुआ करते थे क्योंकि वे पीढ़ियों से अनपढ़ रहे थे और उन में कोई स्किल नहीं होती थी. उन की इकलौती खूबी जिस्मानी तौर पर मेहनती होना होती थी. आज भी हालात बहुत ज्यादा बदले नहीं हैं. नौकर अब भी अर्धशिक्षित है जिसे पैसे स्किल के हिसाब से मिलते हैं. घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन, कपड़े धोने वाली बाइयों को कम पैसे मिलते हैं जबकि ड्राइवर, माली, कुक वगैरह को उन से थोड़ा ज्यादा पगार मिलती है.

इतना जरूर हुआ है कि नौकर अपने अधिकारों और स्वाभिमान को ले कर जागरूक हो रहे हैं और अधिकतर मालिक भी बातबात पर उन का शोषण या क्रूरता, हिंसा नहीं करते. इस के बाद भी फसाद होते हैं जिन का कोई इलाज या हल नहीं. मालिक को चाहिए कि वह नौकरों की गैरत और सहूलियतों का यथासंभव ध्यान रखे और उन से ज्यादा से ज्यादा काम लेने की मानसिकता छोड़े. इस से यानी प्यार और पुचकार से जरूर वे उम्मीद या जरूरत के मुताबिक काम ले सकते हैं. भारत में अच्छी बात यह है कि भले ही नौकरों को बराबरी का दर्जा न दिया जाता हो लेकिन तीजत्योहारों, शादीविवाह वगैरह पर कपड़े और ईनाम आदि दिए जाते हैं.

उम्मीद मालिकों से यह भी की जाती है कि वे नौकरों को जाति या किसी दूसरी बिना पर प्रताड़ित न करें. नहीं तो इस का खमियाजा भी अकसर उन्हें ही भुगतना पड़ता है. वैसे भी, यह हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि नौकर भी आखिरकार इंसान है जिस के काम करने की और बरदाश्त करने की अपनी सीमाएं होती हैं. ये टूटेंगी तो कोई न कोई लफड़ा जरूर होगा फिर चाहे वह मालिक के अपमान की शक्ल में हो या उस के प्रति हिंसा की शक्ल में. इसलिए जब नौकर से पटरी न बैठे या वह कामचोरी या चोरी करने लगे तो उस से छुटकारा पाना ही बेहतर रास्ता होता है. ‘सरिता’ में समयसमय पर लेख प्रकाशित होते रहते हैं कि नौकरों से कैसे पेश आना चाहिए और कैसे उन से सावधान रहा जाए.

नीट नहीं रहा नीट: आया ऊंट पहाड़ के नीचे, सरकार ने मानी खामी

नीट परीक्षा में धांधली मुद्दा देशव्यापी आंदोलन बन चुका है. केंद्र सरकार आरोपों को नकारती रही है लेकिन अब शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि दोषी बचने नहीं पाएंगे. इस का अर्थ यह है कि सरकार ने मान लिया है कि परीक्षा में गड़बड़ी हुई है.

विपक्षी दलों ने इस को मुद्दा बना लिया है जबकि सरकार के सहयोगी दल चुप्पी साधे हैं. नीट परीक्षा में गड़बड़ी का सब से अधिक प्रभाव बिहार पर पडा है. बिहार में केंद्र सरकार के सहयोगी दल चुप हैं, जो सत्ता के लिए असहज करने वाली हालत है.

नीट यूजी परीक्षा को ले कर चल रहे विवाद के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पहली बार यह स्वीकार किया है कि परीक्षा परिणाम में कुछ गड़बड़ियां हुई हैं. जो भी बड़े अधिकारी इस में शामिल हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा, उन्हें दंडित किया जाएगा. कई लोग परीक्षा प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं.
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “मैं अभ्यर्थियों और उन के अभिभावकों से कहना चाहता हूं कि घबराने की जरूरत नहीं है. एक भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं होगा. सक्षम अधिकारी जांच कर रहे हैं. हम सभी को जांच पूरी होने का इंतजार करना चाहिए. सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए 8 जुलाई तक इंतजार करना चाहिए.”

धर्मेंद्र प्रधान ने आगे कहा, “सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है. फिलहाल 2 तरह की अव्यवस्थाएंसामने आई हैं. शुरुआती जानकारी थी कि कुछ अभ्यर्थियों को कम समय मिलने के कारण ग्रेस अंक दिए गए. इस के अलावा 2 जगह कुछ गड़बड़ियां सामने आई हैं. इसे सरकार ने गंभीरता से लिया है. हम सारे मामले को निर्णायक स्थिति तक ले जाएंगे. एनटीए में सुधार की जरूरत है. जो छात्र मिलना चाहते थे, मैं ने उन्हें बुलाया. मैं ने उन का पक्ष सुना. सभी छात्रों को आश्वासन है कि मामले में पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा.”

शुरुआत में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एनटीए का पक्ष लेते हुए पेपर लीक की बात को नकार दिया था. उन्होंने कहा था, “पेपर लीक के आरोपों को साबित करने के ठोस सबूत नहीं हैं. परीक्षा 4,500 से ज्यादा केंद्रों पर आयोजित की गई. उन में से सिर्फ 6 परीक्षा केंद्रों पर गलत प्रश्नपत्र बंटने की सूचना मिली थी. ऐसे में सिर्फ 6 केंद्रों के कारण हम पूरी परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठा सकते.”

बिहार में सब से अधिक बवाल:

बिहार में नीट में धांधली के कई प्रमाण मिले हैं. 30 लाख में नीट का पेपर बिक रहा था. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने 13 लोगों को गिरफ्तार कर उन के पास से 6 पीडीसी (पोस्ट-डेटेड चेक) बरामद किए हैं. जिन के बारे में संदेह है कि ये माफिया के पक्ष में जारी किए गए थे. पिछले महीने आयोजित नीट परीक्षा से पहले कथित लीक प्रश्नपत्र की मांग करने वाले प्रत्येक अभ्यर्थी से 30 लाख रुपए से अधिक की मांग की गई थी.

ईओयू के उप महानिरीक्षक (डीआईजी) मानवजीत सिंह ढिल्लो ने कहा, ‘जांच के दौरान ईओयू के अधिकारियों ने 6 पोस्ट-डेटेड चेक बरामद किए, जो उन अपराधियों के पक्ष में जारी किए गए थे, जिन्होंने कथित तौर पर परीक्षा से पहले उम्मीदवारों को प्रश्नपत्र उपलब्ध कराए थे. जांचकर्ता संबंधित बैंकों से खाताधारकों के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं. ईओयू ने कथित नीट-यूजी 2024 पेपर लीक मामले में अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया है. उन में 4 परीक्षार्थी और उन के परिवार के सदस्य शामिल हैं. उन्होंने बताया कि सभी आरोपी बिहार के हैं. ईओयू ने 9 अभ्यर्थियों (बिहार से 7, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से एक-एक) को भी जांच में शामिल होने के लिए नोटिस जारी किया है.
बिहार से केंद्र सरकार के सहयोगी जदयू नेता नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान इस मसले पर चुप हैं. उन की परेशानी यह है कि अगर वे नीट की आलोचना करते हैं तो एनडीए की गठबंधन सरकार पर प्रभाव पडता है. अगर कुछ नहीं बोलते तो अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है. ऐसे में युवाओं की नाराजगी झेलनी पड़ेगी.

दूसरी तरफ इंडिया ब्लौक के नेता लगातार बोल रहे हैं. राहुल गांधी सब से आगे आरोप लगा रहे हैं. वे छात्रों को यकीन दिला रहे है कि वे उन के साथ हैं. उन का ही असर है कि अब एनडीए सरकार की नींद टूटी है. शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यूटर्न लिया और छात्रों से वे मिलने भी लगे हैं. जिस तरह से बिहार के आम लोग इस परीक्षा से प्रभावित दिख रहे हैं, उन की नाराजगी झेलना आसन नहीं है. आम परिवारों के मन में यह धारणा बन गई है कि उस का बच्चा भी डाक्टर बन सकता है. ऐसे हसीन सपने नीट की धांधली से टूट रहे है.

परिवारों के टूटते हसीन सपने:

पैसे वाले लोग अपने बच्चों को विदेश में डाक्टरी पढ़ने को भेज दे रहे हैं या भारत के ही प्राइवेट कालेजों में पैसे खर्च कर के एडमिशन करवा लेते हैं. गरीब परिवार सरकारी कालेज के नाम पर नीट की परीक्षा देते हैं. परीक्षा में की जाती धांधली ऐसे पैरैंट्स के सपने तोड़ रही है. अपने बच्चों को डाक्टर बनाने के लिए कोचिंग और परीक्षा में लाखों रुपया पेरैंट कर्ज ले कर लगा देते हैं. वे परेशान हैं और सडकों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं.

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा के रहने वाले हैं. इस वजह से उन की अपनी छवि भी प्रभावित हो रही है. ओडिशा और बिहार के अलावा गुजरात से भी धांधली के तार जुड रहे हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है. प्रमुख प्रदेशों के जुडने से सरकार की किरकिरी होने लगती है. अब लोगों ने सरेआम यह कहना शुरू कर दिया है कि एनडीए की यह सरकार ‘अंधेर नगरी चैपट राजा’ वाली है. गड़बड़ी अलगअलग स्तरों पर है.

केवल नीट परीक्षा में धांधली ही मुद्दा नहीं है. इस को आयोजित करने वाली संस्था एनटीए का काम भी पारदर्शी नहीं है. इन की वैबसाइट देखने पर ही गड़बड़ी दिखती है. एनटीए द्वारा ओएमआर शीट स्कैनर की खरीदारी की गई. इस के मौडल और उन की कीमत में लंबा अंतर दिखता है. ओएमआर शीट स्कैनिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले मल्टीपल शीट फेड स्कैनर के सब से सस्ते मौडल की कीमत लगभग 10 हजार रुपए है. यह मल्टी फीड पेपर स्कैन करता है. इस की गति प्रति मिनट 5 से 10 पेज होती है. यह मशीन एक समय में लगभग 1,000 शीटों के लिए सही होती है.

प्रोफैशनल रेंज में ओएमआर शीट स्कैनिंग के लिए हाई स्पीड एडीएफ इमेज स्कैनर या डौक्यूमैंट स्कैनर की कीमत सीमा 20 हजार से 1 लाख 50 हजार रुपए है. यह हाईस्कैनर लगभग 80 से 120 पेज प्रति मिनट की गति से स्कैन करता है. एचपी, कैनन, सैमसंग, एप्सों, फुजित्सु, एविजन, क्योसेरा और प्लस्टेक जैसे तमाम ब्रैंड्स के मौडल उपलब्ध हैं. हाईस्पीड प्रोफैशनल स्कैनर जो 20 से 150 पेज प्रति मिनट स्कैन करता है, की कीमत सीमा 20 हजार से 2 लाख रुपए तक होती है.

एनटीए ने बड़ी संख्या में ऐसे स्कैनर लिए होंगे. इस की पारदर्शी जानकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इस की खरीदारी में भी गड़बड़ी संभव है. ऐसे में जरूरी है कि नीट परीक्षा के साथ ही एनटीए की भी गहन जांच हो, तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा.

लोकसभा अध्यक्ष पर फंसा पैच, मौजूदा समय में यह पद ब्रह्मास्त्र भी भस्मासुर भी

एक बार फिर नरेंद्र मोदी लोकसभा अध्यक्ष पद पर भारतीय जनता पार्टी का चेहरा स्थापित करना चाहते हैं. सारा देश जानता है कि 17वीं लोकसभा के दरमियान नरेंद्र मोदी के आशीर्वाद से ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष बने मगर उन्होंने स्पीकर पद की गरिमा को जिस तरह गिराया, रसातल में पहुंचाया वह लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय के रूप में स्मरण किया जाएगा.

ओम बिरला ने स्वाधीन स्पीकर के रूप में कभी काम ही नहीं किया ऐसा प्रतीत होता था मानो वे भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर काम कर रहे हैं और एक कठपुतली हैं. उन के हावभाव कार्य व्यवहार से देश का लोकतंत्र कमजोर होता चला गया. वे जिस तरह भाजपा के इशारे पर काम कर रहे थे जैसे मानो वह लोकसभा के अध्यक्ष नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी और भाजपा के पैरोकार बन कर रह गए.

अपने तीसरे टर्म में नरेंद्र मोदी एक कमजोर प्रधानमंत्री बन कर सामने आए हैं, आगे चुनौती है लोकसभा अध्यक्ष की. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा का स्पीकर एक ऐसा पद है जो नरेंद्र मोदी के लिए ब्रह्मास्त्र भी बन सकता है और भस्मासुर भी.

एक तरफ विपक्ष की निगाह है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद उस के हथेली पर हो तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी समीकरण बैठाने में लग गए हैं कि लोकसभा अध्यक्ष तो भाजपा का ही होना चाहिए.

अब नई सरकार के 26 जून से शुरू होने वाले संसद सत्र को ले कर भारतीय जनता पार्टी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस में लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और नए सांसदों का शपथ ग्रहण होगा. सत्र की तैयारियों को ले कर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर राजग की एक बैठक हुई. बैठक में लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव को ले कर शतरंज की गोटियां बैठाई गईं.

कुल मिला कर लोकसभा अध्यक्ष का पद बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा के पास बहुमत नहीं है और जैसे की नरेंद्र मोदी और अमित शाह की फितरत है “ए” को “बी” बना सकते हैं और “बी” को “जेड”. ऐसे में विपक्षी दल फूंक कर हर कदम रखना चाहते हैं. वहीं सब से बड़ी बात यह है कि माना जा रहा है अगर नरेंद्र मोदी की पसंद का लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है तो फिर आगे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के लिए भी खतरे की घंटी है.

विपक्ष की रणनीति

लोकसभा अध्यक्ष को ले कर के विपक्ष रणनीति बना रहा है. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने कहा, “अगर सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल तेलुगु देशम पार्टी लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार खड़ा करती है तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सभी सहयोगी उस के लिए समर्थन सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे.”
उधर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का नाम भी आगे आ रहा है उन्होंने भाजपा का पक्ष रखते हुए कहा, “लोकसभा का नया अध्यक्ष कौन होगा, इस का निर्णय राजनीतिक दल मिल कर करेंगे. दरअसल, लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए जद (एकी) द्वारा दावेदारी ठोंकने का दावा किया जा रहा था. लेकिन बैठक शुरू होने से पहले ही जद (एकी) के नेताओं ने इस संभावनाओं को खारिज कर दिया. बैठक से पहले जद (एकी) के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, “स्पीकर का पद सदन का सब से मर्यादित पद होता है. इस पर पहला अधिकार सत्ताधारी दल का होता है.”

इस तरह सभी जानते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष का पद भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. सट्टा का ऊंट किस तरफ बैठेगा इस का बहुत कुछ निर्णय लोकसभा अध्यक्ष के इशारे होता है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व या रणनीति बनाने में लगा हुआ है. उसे बहुमत नहीं है मगर यह पद उसे चाहिए. वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इस संदर्भ में लगातार प्रयास कर रहा है कि कम से कम स्पीकर पद उस के हाथों में आ जाए ताकि भविष्य में विपक्ष सुरक्षित रह सके. जहां तक बात विगत समय में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला के कार्यकाल की है तो सच यह है कि उन्होंने विपक्ष को हमेशा दबाने का काम किया.

ऐसा प्रतीत होता था मानो सत्ता पक्ष अपने बहुमत के बल पर विपक्ष का मजाक उड़ा रहा है और उस के अधिकारों का हनन कर रहा है. यही कारण है कि लोकसभा के अंतिम कार्य दिवसों में महुआ मोइत्रा सहित अनेक सांसदों को लगातार लोकसभा से सदस्यता निरस्त करते हुए निकाला दिया गया. ऐसे में अब विपक्ष इंडिया और एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों को सोचविचार कर एक ऐसे शख्स को स्पीकर पद पर निर्वाचित करना चाहिए जो लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष दोनों को साथ ले कर चलने की समझ रखता हो.

आधी तस्वीर: क्या मनशा भैया को माफ कर पाई?

वह दरवाजे के पास आ कर रुक गई थी. एक क्षण उन बंद दरवाजों को देखा. महसूस किया कि हृदय की धड़कन कुछ तेज हो गई है. चेहरे पर शायद कोई भाव हलकी छाया ले कर आया. एक विषाद की रेखा खिंची और आंखें कुछ नम हो गईं. साड़ी का पल्लू संभालते हुए हाथ घंटी के बटन पर गया तो उस में थोड़ा कंपन स्पष्ट झलक रहा था. जब तक रीता ने आ कर द्वार खोला, उसे कुछ क्षण मिल गए अपने को संभालने के लिए, ‘‘अरे, मनशा दीदी आप?’’ आश्चर्य से रीता की आंखें खुली रह गईं.

‘‘हां, मैं ही हूं. क्यों यकीन नहीं हो रहा?’’

‘‘यह बात नहीं, पर आप के इधर आने की आशा नहीं थी.’’

‘‘आशा…’’ मनशा आगे नहीं बोली. लगा जैसे शब्द अटक गए हैं.

दोनों चल कर ड्राइंगरूम में आ गईं. कालीन में उस का पांव उलझा, तो रीता ने उसे सहारा दे दिया. उस से लगे झटके से स्मृति की एक खिड़की सहसा खुल गई. उस दिन भी इसी तरह सूने घर में घंटी पर रवि ने दरवाजा खोला था और अपनी बांहों का सहारा दे कर वह जब उसे ड्राइंगरूम में लाया था तो मनशा का पांव कालीन में उलझ गया था. वह गिरने ही वाली थी कि रवि ने उसे संभाल लिया था. ‘बस, इसी तरह संभाले रहना,’ उस के यही शब्द थे जिस पर रवि ने गरदन हिलाहिला कर स्वीकृति दी थी और उसे आश्वस्त किया था. उसे सोफे पर बैठा कर रवि ने अपलक निशब्द उसे कितनी देर तक निहार कर कहा था, ‘तुम्हें चुपचाप देखने की इच्छा कई बार हुई है. इस में एक विचित्र से आनंद का अनुभव होता है, सच.’

मनशा को लगा 20-22 वर्ष बाद रीता उसी घटना को दोहरा रही है और वह उस की चुप्पी और सूनी खाली नजरों को सहन नहीं कर पा रही है. ‘‘क्या बात है, रीता? इतनी अजनबी तो मत बनो कि मुझे डर लगे.’’

‘‘नहीं दीदी, यह बात नहीं. बहुत दिनों से आप को देखा नहीं न, वही कसर पूरी कर रही थी.’’ फिर थोड़ा हंस कर बोली, ‘‘वैसे 20-22 वर्ष अजनबी बनने के लिए काफी होते हैं. लोग सबकुछ भूल जाते हैं और दुनिया भी बदल जाती है.’’

‘‘नहीं, रीता, कोई कुछ नहीं भूलता. सिर्फ याद का एहसास नहीं करा पाता और इस विवशता में सब जीते हैं. उस से कुछ लाभ नहीं मिलता सिवा मानसिक अशांति के,’’ मनशा बोली.

‘‘अच्छा, दीदी, घर पर सब कैसे हैं?’’

‘‘पहले चाय या कौफी तो पिलाओ, बातें फिर कर लेंगे,’’ वह हंसी.

‘‘ओह सौरी, यह तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा,’’ और रीता हंसती हुई उठ कर चली गई.

मनशा थोड़ी राहत महसूस करने लगी. जाने क्यों वातावरण में उसे एक बोझिलपन महसूस होने लगा था. वह उठ कर सामने के कमरे की ओर बढ़ने लगी. विचारों की कडि़यां जुड़ती चली गईं. 20 वर्षों बाद वह इस घर में आई है. जीवन का सारा काम ही तब से जाने कैसा हो गया था. ऐसा लगता कि मन की भीतरी तहों में दबी सारी कोमल भावनाएं समाप्त सी हो गई हैं. वर्तमान की चढ़ती परत अतीत को धीरेधीरे दबा गई थी. रवि संसार से उठ गया था और भैया भी. केवल उन से छुई स्मृतियां ही शेष रह गई थीं.

रवि के साथ जीवन को जोड़ने का सपना सहसा टूट गया था. घटनाएं रहस्य के आवरण में धुंधलाती गई थीं. प्रभात के साथ जीवन चलने लगा-इच्छाअनिच्छा से अभी भी चल ही रहा है. उन एकदो वर्षों में जो जीवन उसे जीना था उस की मीठी महक को संजो कर रखने की कामना के बावजूद उस ने उसे भूलना चाहा था. वह अपनेआप से लड़ती भी रही कि बीते हुए उन क्षणों से अपना नाता तोड़ ले और नए तानेबाने में अपने को खपा कर सबकुछ भुला दे, पर वह ऊपरी तौर पर ही अपने को समर्थ बना सकी थी, भीतर की आग बुझी नहीं. 20 वर्षों के अंतराल के बाद भी नहीं.

आज ज्वालामुखी की तरह धधक उठने के एहसास से ही वह आश्चर्यचकित हो सिहर उठी थी. क्या 20 वर्षों बाद भी ऐसा लग सकता है कि घटनाएं अभीअभी बीती हैं, जैसे वह इस कमरे में कलपरसों ही आ कर गई है, जैसे अभी रवि कमरे का दरवाजा खोल कर प्रकट हो जाएगा. उस की आंखें भर आईं. वह भारी कदमों से कमरे की ओर बढ़ गई.

कोई खास परिवर्तन नहीं था. सामने छोटी मेज पर वह तसवीर उसी फ्रेम में वैसी ही थी. कागज पुराना हो गया था पर रवि का चेहरा उतनी ही ताजगी से पूर्ण था. जनता पार्क के फौआरे के सामने उस ने रवि के साथ यह फोटो खिंचवाई थी. रवि की बांह उस की बांह से आगे आ गई थी और मनशा की साड़ी का आंचल उस की पैंट पर गया था. ठीक बीच से जब रवि ने तसवीर को काटा था तो एक में उस की बांह का भाग रह गया और इस में उस की साड़ी का आंचल रह गया.

2-3 वाक्य कमरे में फिर प्रतिध्वनित हुए, ‘मैं ने तुम्हारा आंचल थामा है मनशा और तुम्हें बांहों का सहारा दिया है. अपनी शादी के दिन इसे फिर जोड़ कर एक कर देंगे.’ वह कितनी देर तक रवि के कंधे पर सिर टिका सपनों की दुनिया में खोई रही थी उस दिन.

उन्होंने एमए में साथसाथ प्रवेश किया था. भाषा विज्ञान के पीरियड में प्रोफैसर के कमरे में अकसर रवि और मनशा साथ बैठते. कभी उन की आपस में कुहनी छू जाती तो कभी बांह. सिहरन की प्रतिक्रिया दोनों ओर होती और फिर धीरेधीरे यह अच्छा लगने लगा. तभी रवि मनशा के बड़े भैया से मिला और फिर तो उस का मनशा के घर में बराबर आनाजाना होने लगा. तुषार से घनिष्ठता बढ़ने के साथसाथ मनशा से भी अलग से संबंध विकसित होते चले गए. वह पहले से अधिक भावुक और गंभीर रहने लगी, अधिक एकांतप्रिय और खोईखोई सी दिखाई देने लगी.

अपने में आए इस परिवर्तन से मनशा खुद भी असुविधा महसूस करने लगी क्योंकि उस का संपर्क का दायरा सिमट कर उस पर और रवि पर केंद्रित हो गया था. कानों में रवि के वाक्य ही प्रतिध्वनित होते रहते थे, जिन्होंने सपनों की एक दुनिया बसा दी थी. ‘वे कौन से संस्कार होते हैं जो दो प्राणियों को इस तरह जोड़ देते हैं कि दूसरे के बिना जीवन निरर्थक लगने लगता है. ‘तुम्हें मेरे साथ देख कर नियति की नीयत न खराब हो जाए. सच, इसीलिए मैं ने उस चित्र के 2 भाग कर दिए.’ रवि के कंधे पर सिर रखे वह घंटों उस के हृदय की धड़कन को महसूस करती रही. उस की धड़कन से सिर्फ एक ही आवाज निकलती रही, मनशा…मनशा…मनशा.

वे क्षण उसे आज भी याद हैं जैसे बीते थे. सामने बालसमंद झील का नीला जल बूढ़ी पहाडि़यों की युवा चट्टानों से अठखेलियां कर रहा था. रहरह कर मछलियां छपाक से छलांग लगातीं और पेट की रोशनी में चमक कर विलीन हो जातीं. झील की सारी सतह पर चलने वाला यह दृश्य किसी नववधू की चुनरी में चमकने वाले सितारों की झिलमिल सा लग रहा था. बांध पर बने महल के सामने बड़े प्लेटफौर्म पर बैंचें लगी हुई थीं. मनशा का हाथ रवि के हाथ में था. उसे सहलातेसहलाते ही उस ने कहा था, ‘मनशा, समय ठहर क्यों नहीं जाता है?’

मनशा ने एक बहुत ही मधुर दृष्टि से उसे देख कर दूसरे हाथ की उंगली उस के होंठों पर रख दी थी, ‘नहीं, रवि, समय के ठहरने की कामना मत करो. ठहराव में जीवन नहीं होता, शून्य होता है और शून्य-नहीं, वहां कुछ नहीं होता.’

रवि हंस पड़ा था, ‘साहित्य का अध्ययन करतेकरते तुम दार्शनिक भी हो गई हो.’

न जाने ऐसे कितने दृश्यखंड समय की भित्ती पर बनते गए और अपनी स्मृतियां मानसपटल पर छोड़ते गए. बीते हुए एकएक क्षण की स्मृति में जीने में इतना ही समय फिर बीत जाएगा और जब इन क्षणों का अंत आएगा तब? क्या फिर से उस अंत को झेला जा सकता है? क्या कभी कोई ऐसी सामर्थ्य जुटा पाएगा, जीवन के कटु और यथार्थ सत्य को फिर से जी सकने की, उस का सामना करने की? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इसीलिए जीवन की नियति ऐसी नहीं हुई. चलतेचलते ही जीवन की दिशा और धारा मुड़ जाती हैं या अवरुद्ध हो जाती हैं. हम कल्पना भी नहीं कर पाते कि सत्य घटित होने लगता है.

मनशा के जीवन के सामने कब प्रश्नचिह्न लग गया, उसे इस का भान भी नहीं हुआ. घर के वातावरण में एक सरसराहट होने लगी. कुछ सामान्य से हट कर हो रहा था जो मनशा की जानकारी से दूर था. मां, बाबूजी और भैया की मंत्रणाएं होने लगीं. तब आशय उस की समझ में आ गया. मां ने उस की जिज्ञासा अधिक नहीं रखी. उदयपुर का एक इंजीनियर लड़का उस के लिए देखा जा रहा था. उस ने मां से रोषभरे आश्चर्य से कहा, ‘मेरी शादी, और मुझ से कुछ कहा तक नहीं.’

‘कुछ निश्चित होता तभी तो कहती.’

‘तो निश्चित होने के बाद कहा जा रहा है. पर मां, सिर्फ कहना ही तो काफी नहीं, पूछना भी तो होता है.’

‘मनशा, इस घर की यह परंपरा नहीं रही है.’

‘जानती हूं, परंपरा तो नई अब बनेगी. मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’

‘मनशा.’

‘हां, मां, मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’

जब उस ने दोहराया तो मां का गुस्सा भड़क उठा, ‘फिर किस से करेगी? मैं भी तो सुनूं.’

‘शायद घर में सब को इस का अंदाजा हो गया होगा.’

‘मनशा,’ मां ने उस का हाथ कस कर पक लिया, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. जातपांत, समाज का कोई खयाल ही नहीं है?’

मनशा हाथ छुड़ा कर कमरे में चली गई. घर में सहसा ही तनाव व्याप्त हो गया. शाम को तुषार के सामने रोरो कर मां ने अपने मन की व्यथा कह सुनाई. बाबूजी को सबकुछ नहीं बताया गया. तुषार इस समस्या को हल करने की चेष्टा करने लगा. उसे विश्वास था वह मनशा को समझा देगा, और नहीं मानेगी तो थोड़ी डांटफटकार भी कर लेगा. मन से वह भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि मनशा पराई जाति के लड़के रवि से ब्याह करे. वह जानता था, कालेज के जीवन में प्रेमप्यार के प्रसंग बन ही जाते हैं पर…

‘भैया, क्या तुम भी मेरी स्थिति को नहीं समझ सकते? मां और बाबूजी तो पुराने संस्कारों से बंधे हैं लेकिन अब तो सारा जमाना नईर् हवा में नई परंपराएं स्थापित करता जा रहा है. हम पढ़लिख कर भी क्या नए विचार नहीं अपनाएंगे?’

‘मनशा,’ तुषार ने समझाना चाहा, ‘मैं बिना तुम्हारे कहे सब जानता हूं. यह भी मानता हूं कि रवि के सिवा तुम्हारी कोई पसंद नहीं हो सकती. पर यह कैसे संभव है? वह हमारी जाति का कहां है?’

‘क्या उस के दूसरी जाति के होने जैसी छोटी सी बात ही अड़चन है.’

‘तुम इसे छोटी बात मानती हो?’

‘भैया, इस बाधा का जमाना अब नहीं रहा. उस में कोई कमी नहीं है.’

‘मनशा…’ तुषार ने फिर प्रयास किया, ‘‘आज समाज में इस घर की जो प्रतिष्ठा है वह इस रिश्ते के होते ही कितनी रह जाएगी, यह तुम ने सोचा है? यह ब्याह होगा भी तो प्रेमविवाह अधिक होगा अंतर्जातीय कम. मैं सच कहता हूं कि बाद में तालेमल बैठाना तुम्हारे लिए बहुत कठिन होगा. तुम एकसाथ दोनों समाजों से कट जाओगी. मां और बाबूजी बाद में तुम्हें कितना स्नेह दे सकेंगे? और उस घर में तुम कितना प्यार पा सकोगी? इस की कल्पना कर के देखो तो सही.’

मनशा ने सिर्फ भैया को देखा, बोली कुछ नहीं. तुषार ही आगे बोलता रहा, ‘व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जीवन के सारे पहलुओं पर जरा ठंडे दिल से सोचने की जरूरत है, मनशा. जल्दी में कुछ भी निर्णय ठीक से नहीं लिया जा सकता. फिर सभी महापुरुषों ने यही कहा है कि प्रेम अमर होता है, किसी ने ब्याह अमर होने की बात नहीं कही, क्योंकि उस का महत्त्व नहीं है.’ अपने अंतिम शब्दों पर जोर दे कर वह कमरे से बाहर चला गया.

मनशा सबकुछ सोच कर भी भैया की बात नहीं मान सकती थी. किसी और से ब्याह करने की कल्पना तक उस के मस्तिष्क में नहीं आ पाती थी. घर के वातावरण में उसे एक अजीब सा खिंचाव और उपेक्षा का भाव महसूस होता जा रहा था जो यह एहसास करा रहा था मानो उस ने घर की इच्छा के विरुद्ध बहुत बड़ा अपराध कर डाला हो. भैया से अगली बहस में उस ने जीवन का अंत करना अधिक उपयुक्त मान लिया था. उसे इस सीमा तक हठी देख तुषार को बहुत क्रोध आया था, पर उस ने हंस कर इतना ही कहा, ‘नहीं, मनशा, तुम्हें जान देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’

घर के तनाव में थोड़ी ढील महसूस होने लगी, जैसे प्रसंग टल गया हो. तुषार भी पहले की अपेक्षा कम खिंचा हुआ सा रहने लगा. पर न अब रवि आता और न मनशा ही बाहर जाती थी. मनशा कोई जिद कर के तनाव बढ़ाना नहीं चाहती थी.

तभी सहसा एक दिन शाम को समाचार मिला कि रवि सख्त बीमार है और उसे अस्पताल में भरती किया गया है. मांबाप के मना करने पर भी मनशा सीधे अस्पताल पहुंच गई. देखा इमरजैंसी वार्ड में रवि को औक्सीजन और ग्लूकोज दिया जा रहा है. उस का सारा चेहरा स्याह हो रहा था. चारों ओर भीड़ में विचित्र सी चर्चा थी. मामला जहर का माना जा रहा था. रवि किसी डिनर पार्टी में गया था.

नाखूनों का रंग बदल गया था. डाक्टरों ने पुलिस को इत्तला करनी चाही पर तुषार ने समय पर पहुंच कर अपने मित्र विक्टर की सहायता से केस बनाने का मामला रुकवा दिया. यह पता नहीं चल पा रहा था कि जहर उसे किसी दूसरे ने दिया या उस ने स्वयं लिया था. रवि बेहोश था और उस की हालत नाजुक थी.

मनशा के पांव तले से धरती खिसकती जा रही थी. एकएक क्षण काटे नहीं कट रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो गया. फिर सहसा बिजली की तरह मस्तिष्क में विचार कौंधा. कल शाम को भैया भी तो उस पार्टी में गए थे. फिर तबीयत इन्हीं की क्यों खराब हुई? बहुत रात गए वह लौट आई.

डाक्टर पूरी रात रवि को बचाने का प्रयत्न करते रहे पर सुबह होतेहोते वे हार गए. दाहसंस्कार बिना किसी विलंब के तुरंत कर दिया गया. मनशा गुमसुम सी कमरे में बैठी रही. न बोल सकी और न रो सकी. रहरह कर कुछ बातें मस्तिष्क की सूनी दीवारों से टकरा जातीं और उन के केंद्र में तुषार भैया आ जाते.

‘तुम्हें जान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’ कोई महीनेभर पहले उन्होंने कहा था, फिर पार्टी में तुषार के साथ रवि का होना उस की उलझन बढ़ा रहा था. वहां क्या हुआ? क्या भैया से कोई बहस हुई? क्या भैया ने उसे मेरा खयाल छोड़ने की धमकी दी? क्या इसीलिए उस ने आत्महत्या कर ली कि मुझे नहीं पा सकता था? एक बार उस ने कहा भी था, ‘तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, मनशा.’ क्या यह स्थिति उस ने मान ली थी कि बिना उस से पूछे? या…उसे… नहीं…नहीं…कौन कर सकता है यह काम…क्या भैया… ‘नहीं…नहीं…’ वह जोर से चीखी. मां हड़बड़ा कर कमरे में आईं. देखा वह बेहोश हो गई है. थोड़ीथोड़ी देर में होश आता तो वह कुछ बड़बड़ाने लगती.

धीरेधीरे वह सामान्य होने लगी. उस ने महसूस किया, भैया उस से कतरा रहे हैं और इसी आधार पर उन के प्रति संदेह का जो सांप कुंडली मार कर उस के मन में बैठा वह भैया के जीवनपर्यंत वैसा ही रहा. उन की मृत्यु के बाद भी मन की अदालत में वह उन्हें निर्दोष घोषित नहीं कर सकी.

दुनिया और जीवन का चक्र जैसा चलना था चला. प्रभात से ही उस का ब्याह हुआ. बच्चे हुए और अब उन का भी ब्याह होने जा रहा था.

न जाने आंखों से कितने आंसू बह गए. रीता दरवाजे पर ही खड़ी रही. मनशा ने ही मुड़ कर देखा तो उस के गले लग कर फिर रो पड़ी. रवि की मृत्यु के बाद वह आज पहली बार रोई है. रीता कुछ समझ नहीं पा रही थी. हम सचमुच जीवन में कितना कुछ बोझ लिए जीते हैं और उसे लिए ही मर भी जाते हैं. यह रहस्य कोई कभी नहीं जान पाता है, केवल उस की झलक मात्र ही कोई घटना कभी दे जाती है.

वे दोनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गईं. मनशा ने स्थिर हो कौफी पी और अपने बेटे की शादी का कार्ड रीता की ओर बढ़ा दिया. वह बेहद प्रसन्न हुई यह देख कर कि लड़की दूसरी जाति की है. रीता की जिज्ञासा फूट पड़ी, ‘दीदी, जो आप जीवन में नहीं कर सकीं उसे बेटे के जीवन में करते समय कोईर् दिक्कत तो नहीं हो रही है?’

‘हुई थी…भैया ने जैसे सामाजिक स्तर की बातचीत की थी वैसा तो आज भी पूरी तरह नहीं, फिर भी हम इतना आगे तो बढ़े ही हैं कि इतना कर सकें…प्रभात नहीं चाहते थे. बड़ेबुजुर्ग भी नाराज हैं, पर मैं ने मनीष और दीपा के संबंध में संतोषजनक ढंग से सब जाना तो फिर अड़ गई. मैं बेटा नहीं खोना चाहती थी. किसी तरह का खतरा नहीं उठाने की ठान ली. सोच लिया अपनी जान दे दूंगी पर इस को बचा लूंगी, मन का बोझ इस से हलका हो जाएगा.’ उस के चेहरे पर हंसी की रेखा उभर कर विलीन हो गई.

घरपरिवार की कितनी ही बातें कर मनशा चलने को उद्यत हुई तो बैग से एक कागज का पैकेट सा रीता के हाथ में थमा कर कहा, ‘इसे भी रख लो.’

‘यह क्या है दीदी?’

‘आधी तसवीर, जिसे तुम्हारे रवि भैया जोड़ना चाहते थे. जब कभी तुम सुनो कि मनशा दीदी नहीं रहीं तो उस तसवीर से इसे जोड़ देना ताकि वह पूरी हो जाए. यह जिम्मेदारी तुम्हें ही सौंप सकती हूं, रीता.’ वह डबडबाती आंखों के साथ दरवाजे से बाहर निकल गई. अतीत को मुड़ कर दोबारा देखने की हिम्मत उस में नहीं बची थी.

आफत: क्या वंदना अपना हक ले पाई?

Writer- सिद्धार्थ जायसवार

वंदना महतो को अचानक रविवार की सुबह अपने घर आया देख मानसी मन ही मन चौंक पड़ी. ‘‘मेरी एक सहेली का घर पास में है. उस के बीमार बेटे का हालचाल पूछने आई थी तो सोचा आप से भी मिलती चलूं,’’ वंदना सकुचाई सी नजर आ रही थी.

‘‘ये आप ने अच्छा किया,’’ मानसी ने अपने मन में बेचैनी को अपनी आवाज में झलकने नहीं दिया.

‘‘तुम्हारे राजीव सर को तो पता ही नहीं है कि मैं यहां आई हूं,’’ वंदना के होंठों पर छोटी सी मुसकान उभरी.

‘‘तो अब फोन कर के बता दीजिए.’’

‘‘नहीं, अगर संभव हो तो मैं चाहूंगी कि तुम भी हमारी इस मुलाकात की चर्चा उन से ना करो.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों चाहती है?’’ मानसी उस के चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.

‘‘असल में मैं आज तुम्हारे साथ अपने पति के बारे में ही बाते करने आई हूं, मानसी. हम जो चर्चा करेंगे, वो उन के कानों तक ना पहुंचे तो अच्छा है,’’ वंदना कुछ शर्मिंदा सी दिखने लगी.

‘‘मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि राजीव सर के बारे में आप ऐसी कौन सी गोपनीय बात की चर्चा मुझ से करना चाहती हैं?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब मैं कुछ देर के बाद देती हूं, मानसी. फिलहाल तो मैं राजीव में आ रहे कुछ बदलावों को ले कर बहुत चिंतित हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम.’’

‘‘वो बहुत चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं, मानसी. खासकर मेरे ऊपर तो बिना बात के चिल्लाते हैं. अपने दोनों बेटो के साथ पहले की तरह ना खेलते हैं, ना हंसतेबोलते हैं. उन के बदले स्वभाव के कारण घर में बहुत टैंशन रहने लगती है,’’ वंदना का अपना दुखदर्द बयान करते हुए गला भर आया.

‘‘लेकिन, हम लोगों ने औफिस में तो ऐसा कोई बदलाव सर के अंदर नहीं देखा है.’’

‘‘मुझे पता था कि तुम्हारा ऐसी ही जवाब होगा, लेकिन मैं सच बोल रही हूं,’’ वंदना कुछ और ज्यादा उदास नजर आने लगी,

‘‘देखो, मैं ना औफिस जाती हूं और ना किट्टी पार्टियों में मुझे अपनी घरगृहस्थी को ढंग से चलाने में सारी खुशियां, सारा सुख मिल जाता है. हम लोग साधारण घरों से आते हैं, जहां औरतों को बुरी तरह दबा कर रखा जाता रहा है. मेरे पति जैसे पढ़ने में तेज लोग कम ही होते हैं और उन्होंने मुझे इसीलिए चुना था कि मैं भी कुछ पढ़ चुकी हूं. मैं ने पूरे तनमन से उन की सेवा की. अब राजीव खुश नहीं रहते हैं तो मेरा मन बहुत दुखता है.’’

‘‘आप ने सर से इस बारे में बात की है?’’

‘‘नहीं, पर मुझे मालूम है कि वो क्यों इतने परेशान रहने लगे हैं.’’

‘‘अगर आप को उन की परेशानी का कारण समझ आ गया है तो उस कारण को ठीक कर लीजिए.’’

‘‘मैं इसीलिए तो तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम,’’ मानसी तनावग्रस्त नजर आने लगी.

‘‘मैं अपने दिल पर लगे जख्मों को दिखाऊंगी तो सब समझ जाओगी,’’ वंदना की आवाज में पीड़ा के भाव उभरे, ‘‘मैं मोटी हो गई हूं… मुझे ढंग से सजनेसंवरने का तरीका नहीं आता. अब हमारी जाति में वे सुविधाएं नहीं हैं कि हम हर समय अच्छी लगें. मेरी मां ने लकड़ी के चूल्हे में और धूप में अपनी स्किन जलाई है और उस का गुस्सा मुझ पर है.

’’मैं कहीं ले जाने लायक नहीं रही हूं. मैं उन के सामने पड़ी नहीं और उन्होंने मेरे अंदर ऐसे दोष निकालने शुरू किए नहीं. मेरे लिए तो वो सबकुछ हैं. बहुत दुखता है मेरा दिल, जब वो ऐसी चुभती बातें मुंह से निकालते हैं.’’

‘‘तब आप अपनेआप को इतना बदल लीजिए कि वो ऐसी बात सुनानी बंद कर दें,’’ मानसी ने कुछ रूखे से अंदाज में उसे सलाह दी.

‘‘इस दिशा में मैं ने कुछ शुरुआत तो कर दी है, मानसी. रोज सुबहशाम घूमने जाती हूं. उन के औफिस से घर आने से पहले ढंग से तैयार हो जाती हूं, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, मैडम?’’

‘‘लेकिन, मुझे नहीं लगता कि इतना कुछ करने से मेरी समस्या का अंत हो जाएगा,’’ वंदना मायूस हो उठी, ‘‘उन्हें परेशान देख कर मैं खून के आंसू बहाती हूं. अगर मैं उन्हें सारी खुशियां और सुख नहीं दे पाई तो लानत है मुझ पर.’’

‘‘मैडम, आप प्लीज आंसू मत बहाइए.’’

‘‘मेरे आंसुओं को बहने से तुम रुकवा सकती हो, मानसी.’’

‘‘मैं… वो कैसे?’’ मानसी तनाव से भर उठी.

‘‘अब अभिनय मत करो, प्लीज,’’ वंदना ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं ने जरा सी छानबीन की, तो औफिस के कई लोगों ने मुझे बताया कि मेरे पति और तुम एकदूसरे के बहुत करीब आए हुए हो. उन के अंदर आए इस बदलाव की असली वजह तुम हो.”

‘‘ये गलत आरोप है, मैडम. आप को लोगों ने गलत जानकारी दी है.’’

‘‘मुखे मूर्ख मत समझो, मानसी और झूठ बोलने के बजाय मेरे दिल के दुखदर्द को समझने की कोशिश करो,’’ वंदना ने झटके से खड़े हो कर आवेश भरी ऊंची आवाज में उसे टोका, ‘‘वो चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं और मैं उन की आंखों में चुभने लगी हूं तो इस का कारण तुम हो. वो मन ही मन तुम से मेरी तुलना करते हैं. अब तुम ही बताओ कि 2 बच्चों की मां का एक कुंआरी लड़की के साथ क्या मुकाबला हो सकता है?’’

‘‘तुम ने उन की जिंदगी में प्रवेश कर के हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को नष्ट कर दिया है. तुम्हारी आकर्षक फिगर और सुंदर रंगरूप. तुम्हारा आत्मविश्वास से भरा सलीकेदार व्यवहार. तुम्हारे व्यक्तित्व का हर पहलू तो मुझ से बेहतर है. सीधी सी बात है कि जब तुम दूसरी औरत बन कर उन के करीब आ गई तो मैं उन की आंखों में चुभने लगी.’’

‘‘देखो, मैं अपने पति की खुशी की खातिर तुम दोनों के अवैध रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार हूं, पर यह बात मेरे दिल को बहुत दुखाती है कि वो ऐसा कर के भी खुश नहीं हैं. मैं उन के मन की अशांति के लिए सीधेसीधे तुम्हें जिम्मेवार मान रही हूं, मानसी. तुम मेरे पति के साथ जुड़ी रहना चाहती हो तो खुशी से जुड़ी रहो, लेकिन साथ ही साथ ये भी सुनिश्चित करो कि वो घर में पहले की तरह खुश दिखें. हम सब से खूब हंसेंबोलें. पहले की तरह एक अच्छ पिता और पति बने रहें.

‘‘अगर तुम उन्हें मेरी तरह अपनी जान से ज्यादा चाहती हो तो उन्हें खुश और सुखी रखने में मेरा हाथ बांटो, मानसी. मेरे घर की सुखशांति व खुशियों को अब तुम्हें ही लौटाना होगा. तुम ऐसा नहीं कर सकती हो, या नहीं करना चाहती हो, तो तुम उन की सच्ची शुभचिंतक नहीं हो. तब या तो तुम्हें उन की जिंदगी से निकलना होगा, या फिर मैं तुम्हे अपना दुश्मन समझने लगूंगी. फिर मुझे इस की बिलकुल चिंता नहीं होगी कि मेरे हाथों तुम्हारा कितना बड़ा नुकसान हो रहा है. तब मैं ये नहीं देखूंगी कि तुम्हारा अहित कर के मुझे जेल हो रही है या फांसी लग जाएगी.’’

‘‘आप प्लीज यहां से चली जाओ. आप जबरदस्त गलतफहमी की शिकार हो और इस मामले में मैं आप की कोई सहायता नहीं कर सकती हूं,’’ वंदना का रौद्र रूप देख मानसी की आंखों से डर और चिंता के भाव झांक रहे थे.

‘‘ऐसा मत कहो, मानसी. तुम मेरे पति से प्रेम करती हो तो इस मसस्या को सुलझाने में मेरी सहायता भी करो.’’

‘‘आप चली जाओ मेरे घर से,’’ इस बार मानसी ने गुस्से से चिल्ला कर वंदना को दबानाडराना चाहा था.

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से पल्ला झाड़ कर अलग नहीं होने दूंगी. इस मामले में अपनी जिम्मेदारी को समझो,’’ वंदना उस से ज्यादा जोर से चिल्लाई थी.

‘‘मुझे इस मामले में आप से अब कोई बात नहीं करनी है.’’

‘‘शटअप,’’ वंदना उस के सामने तन कर खड़ी हो गई और गुस्से से कांपती आवाज में बोली, ‘‘तुम मेरे पति के साथ प्यार करने का खेल समझ सकती हो, पर मेरे लिए उन की खुशियां, उन का सुख अपनी जान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण व कीमती है. अरे, लानत है ऐसी पत्नी पर, जो अपने घर में पति को हर तरह से खुश ना रख सके.’’

‘‘आप मुझ से क्या चाहती हो?’’ वंदना की आंखों से झांक रहे अजीब से पागलपन के भाव ने मानसी को बहुत बुरी तरह से डरा दिया था.

‘‘ये मुझ से मत पूछो,’’ वो पागल की तरह से चिल्लाई, ‘‘मुझ से पूछ कर… मुझ से सलाह कर के तुम ने क्या इन के साथ इश्क करना शुरू किया था? मुझे हर हाल में इन की हंसीखुशी वापस चाहिए, बस. प्लीज, मेरी हैल्प करो,’’ वंदना ने उस के पास पहुंच कर हाथ जोड़ दिए, पर उसे अपने इतने पास देख कर मानसी और ज्यादा डर गई थी.

‘‘त… आप बैठ कर बात करो, प्लीज. आप को गलतफहमी…’’

‘‘बस, अब चुप हो जाओ,’’ वंदना ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बोलने से रोक दिया और कठोर लहजे में बोली, ‘‘मैं अपने बारे में तुम्हें सिर्फ दो बातें बताना चाहूंगी. पहली बात तो यह है कि मुझे झूठे और धोखेबाज लोग बिलकुल अच्छे नहीं लगते हैं और दूसरी बात यह कि मैं गुस्सा कम करती हूं, पर जब कभी मुझे गुस्सा आता है तो मैं उसे संभाल नहीं पाती और पागल सी हो जाती हूं. इसलिए मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी दे रही हूं कि अब झूठ का सहारा ले कर इस मामले में अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश मत करो, नहीं तो पछताओगी.’’

‘‘आप मेरी कोई बात सुन तो रही नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हें जान से मार दूंगी,’’ गुस्से से कांप रही वंदना ने मेज पर रखा भारी फूलदान हाथ में उठा लिया तो मानसी को लगा कि वो डर के मारे बेहोश ही हो जाएगी.

उस के बिलकुल पास आ कर वंदना ने भावावेश से कांपते स्वर में कहा, ‘‘मानसी, ये सब मेरे लिए खेल नहीं है, क्योंकि मेरे विवाहित जीवन की खुशियां, मेरे बच्चों का भविष्य और मेरे पति के मन की सुखशांति दांव पर लगी हुई है. तुम ने मेरे पति को अपने प्रेमजाल में फंसा कर मेरे घर में अशांति भरी है और अब तुम ही समस्या को सुलझाओ. अगर मैं ने राजीव के अंदर तुरंत ही बदलाव आता नहीं देखा तो मैं फिर लौटूंगी और तब मेरा निशाना चूकेगा नहीं.’’

वंदना ने वो शीशे का फूलदान मानसी के पैरों के पास फेंक कर मारा तो वो तेज आवाज के साथ टूट कर बिखर गया. उस के टूटने की आवाज में मानसी के चीखने की आवाज दब कर रह गई थी.

‘‘मुझ पर तरस खाना, मानसी… मैं तुम्हारी जितनी खूबसूरत और आकर्षक तो नहीं, पर मैं भी खुशी से जीना चाहती हूं,’’ वंदना की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे और वो अपना पर्स उठा कर बाहर के दरवाजे की तरफ चल पड़ी थी.

उस के चले जाने के बाद भी मानसी बहुत देर तक अपनी जगह गुमसुम सी बैठी रही थी. बहुत धीरेधीरे उस के दिमाग का सुन्नपना कम हुआ और हाथपैरों में जान वापस लौटी थी.

कई बार उस ने मेज पर रखा अपना मोबाइल उठाया और वापस रखा. वो वंदना की शिकायत अपने प्रेमी राजीव से करना चाहती थी, पर ऐसा करने से उसे बहुत डर भी लग रहा था. बारबार उस के जेहन में वंदना की आंखों से झांक रहा पागलपन उभर आता और वो राजीव का नंबर मिलाने की हिम्मत खो बैठती. वह समझ गई कि वंदना मुश्किल से मिले सुखों को ऐसे ही हाथ से निकलने नहीं देगी और किसी भी हद तक जा सकती है.

‘‘मैं राजीव से वंदना की शिकायत करूंगी तो वो उसे यकीनन डांटेंगे. इस कारण वो पागल फिर मुझ से मिलने जरूर लौटेगी. फिर उस आफत से मैं कैसे निबटूंगी? मुझे नहीं करनी है शिकायत अब. मन में ऐसी हलचल के चलते मानसी ने फोन कर के वंदना की शिकायत उस के पति से नहीं की थी.

उस के मन में राजीव से अपना प्रेम संबंध तोड़ लेने का बीज बोने में वंदना पूरी तरह से सफल रही थी.

वंदना दबेकुचले परिवारों से चाहे आई हो, पर अब अपना हक पाने को पूरी कोशिश करेगी, यह बात साफ थी.

मेरे पति दूसरों के सामने मेरी बेइज्जती करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मैं 38 वर्षीया हूं, शादी हुए 8 वर्ष हो गए हैं. शुरुआत में तो पति मेरी बहुत केयर करते थे लेकिन अब वे मुझे बातबात पर डांटा करते हैं, आनेजाने वालों के सामने मेरी बेइज्जती करते हैं. इस से मेरा मन बहुत दुखी होता है. आप बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

शादी के बाद के जीवन की शुरुआत में हम किसी के स्वभाव से उस के व्यक्तित्व को नहीं जान पाते, धीरेधीरे जब हम उस की आदतों से वाकिफ होते हैं तब उस के व्यक्तित्व की असली पहचान हो पाती है. आप के पति में शायद ईगो बहुत है और वे समझते हैं कि वे ही सबकुछ हैं. इसलिए वे आप को सब के सामने अपमानित करते हैं. उन्हें लगता है कि इस से दूसरों पर यह प्रभाव पड़ेगा कि उन की घर में कितनी चलती है.

ऐसे में आप उन्हें समझाएं कि उन का ऐसा रवैया आप को बिलकुल अच्छा नहीं लगता और अगर वे फिर भी न सुधरें तो आप सख्ती अपनाएं, न कि घुटघुट कर जिएं. अगर आप खुद को अबला दिखाएंगी तो हर कोई आप पर हावी होगा ही, इसलिए हिम्मत से इस परिस्थिति का मुकाबला कर पति को ट्रैक पर ले आइए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

मेहंदी लगी मेरे हाथ: क्या दीपा ने की अविनाश से शादी

शादी के बहुत दिनों बाद मैं पीहर आई थी. पटना के एक पुराने महल्ले में ही मेरा पीहर था और आज भी है. यहां 6-7 फुट की गलियों में मकान एकदूसरे से सटे हैं. छतों के बीच भी 3-4 फुट की दूरी थी. मेरे पति संकल्प मुझे छोड़ कर विदेश दौरे पर चले गए थे. साल में 2-3 टूअर तो इन के हो ही जाते थे.

मैं मम्मी के साथ छत पर बैठी थी. शाम का वक्त था. हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत थी. उस घर में एक लड़का अविनाश रहता था. मुझ से 4-5 साल बड़ा होगा. मेरे ही स्कूल में पढ़ता था. मुझे अचानक उस की याद आ गई. मैं मम्मी से पूछ बैठी, ‘‘अविनाश आजकल कहां है?’’

‘‘मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती हूं. तुम्हारी शादी से कुछ दिन पहले वह यह घर छोड़ कर चला गया था. वैसे भी वह तो किराएदार था. पटना पढ़ने के लिए आया था.’’

मैं किचन में चाय बनाने चली गई पर मुझे अपने बीते दिन अनायास याद आने लगे थे. मन विचलित हो रहा था. किसी काम में मन नहीं लग रहा था. कप में चाय छान रही थी तो आधी कप में और आधी बाहर गिर रही थी. मन रहरह कर अतीत के गलियारों में भटकने लगा था. खैर, मैं चाय बना कर छत पर आ गई. ऊपर मम्मी पड़ोस वाली छत पर खड़ी आंटी से बातें कर रही थीं. दोनों के बीच बस 3 फुट की दूरी थी. मैं ने अपनी चाय आंटी को देते हुए कहा, ‘‘आप दोनों पी लें. मैं अपने लिए फिर बना लूंगी.’’

मैं उन दोनों से अलग छत के दूसरे कोने पर जा खड़ी हुई. अंधेरा घिरने लगा था. बिजली चली गई, तो बच्चे शोर मचाते बाहर निकल आए. कुछ अपनीअपनी छत पर आ गए. ऐसे ही अवसर पर मैं जब छत पर होती थी, अविनाश मुझे देख कर मुसकराता था, तो कभी हवा में हाथ उठाता था. मैं उस वक्त 8वीं कक्षा में थी. मैं अकसर कपड़े सुखाने छत पर आती थी. अविनाश भी उस समय छत पर ही होता था खासकर छुट्टी के दिन.

एक दिन जब मैं छत पर खड़ी थी तो बिजली चली गई. कुछ अंधेरा था. अविनाश ने पास आ कर एक परची मुझे पकड़ा दी और फिर जल्द ही वहां से मुसकराता हुआ भाग खड़ा हुआ. मैं बहुत डर गई थी. परची को कुरते के अंदर छिपा लिया. बचपन और जवानी के बीच के कुछ वर्ष लड़कियों के लिए बड़े कशमकश भरे होते हैं. कभी मन उछलनेकूदने को करता है तो कभी बाली उम्र से डर लगता है. कभी किसी को बांहों में लेने को जी चाहता है तो कभी खुद किसी की बांहों में कैद होने को जी करता है.

मैं ने बाद में उस परची को पढ़ा. लिखा था, ‘‘दीपा, तुम मुसकराती हो तो बहुत सुंदर लगती हो और मुझे यह देख कर खुशी होती है.’’

ऐसे ही समय बीत रहा था. मेरी दीदी की शादी थी. मेहंदी की रस्म थी. मैं ने भी

दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई और शाम को छत पर आ गई. अविनाश भी अपनी छत पर था. उस ने मुसकरा कर हाथ लहराया. न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं ने भी अपने मेहंदी लगे हाथ उठा दिए. उस ने इशारों से रेलिंग के पास बुलाया तो मैं किसी आकर्षणवश खिंची चली गई. उस ने तुरंत मेरे हाथों को चूम लिया. मैं छिटक कर अलग हो गई.

अविनाश को जब भी मौका मिलता मुझे चुपके से परची थमा जाता था. यों ही मुसकराती रहो, परची में अकसर लिखा होता. मुझे अच्छा तो लगता था, पर मैं ने न कभी जवाब दिया और न ही कोई इजहार किया.

मैं ने प्लस टू के बाद कालेज जौइन किया था. एक दिन अचानक दीदी ने अपनी ससुराल से कोई अच्छा रिश्ता मेरे लिए मम्मीपापा को सुझाया. मैं पढ़ना चाहती थी पर सब ने एक सुर में कहा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता चल कर अपने दरवाजे पर आया है. इस मौके को नहीं गंवाना है. तुम बाकी पढ़ाई ससुराल में कर लेना.’’

मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. अविनाश ने एक परची मुझे किसी छोटे बच्चे के हाथ भिजवाई. लिखा था कि शादी मुबारक हो. ससुराल में भी मुसकराती रहना. शायद तुम्हारी शादी की मेहंदी लगे हाथ देखने का मौका न मिले, इस का अफसोस रहेगा.

मैं शादी के बाद ससुराल इंदौर आ गई. पति संकल्प अच्छे नेक इंसान हैं, पर अपने काम में काफी व्यस्त रहते थे. काम से फुरसत मिलती तो क्रिकेट के शौकीन होने के चलते टीवी पर मैच देखते रहेंगे या फिर खुद बल्ला उठा कर अपने क्रिकेट क्लब चले जाएंगे. वैसे इस के लिए मैं ने उन से कोई गिलाशिकवा नहीं किया था.

मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘दीपा, कल पड़ोसी प्रदीप अंकल की बेटी मोहिनी की मेहंदी की रस्म है और लेडीज संगीत भी है. तुम तो उसे जानती हो. तुम्हारे स्कूल में ही थी. तुम से 2 क्लास पीछे. तुम्हें खासकर बुलाया है. मोहिनी ने भी कहा था दीपा दी को जरूर साथ लाना. तुम्हें चलना होगा.’’

अगले दिन शाम को मैं मोहिनी के यहां गई. दोनों हाथों में कुहनियों तक मेहंदी लगवाई. कुछ देर तक लेडीज संगीत में भाग लिया, फिर बिजली चली गई तो मैं अपने घर लौट आई. हालांकि वहां जनरेटर चल रहा था. म्यूजिक सिस्टम काफी जोर से बज रहा था. मैं यह शोरगुल ज्यादा नहीं झेल पाई, इसलिए चली आई.

मैं अपनी छत पर गई. मुझे अविनाश की याद आ गई. मैं ने अचानक मेहंदी वाले दोनों हाथों को हवा में लहरा दिया. पड़ोस वाली आंटी ने अपनी छत से मुझे देखा. वे समझीं कि मैं ने उन्हें हाथ दिखाए हैं. रेलिंग के पास आ कर मुझे पास बुलाया और फिर मेरे हाथ देख कर बोलीं, ‘‘काफी अच्छे लग रहे हैं मेहंदी वाले हाथ. रंग भी पूरा चढ़ा है. दूल्हा जरूर बहुत प्यार करता होगा.’’

मैं ने शरमा कर अपने हाथ हटा लिए. रात में मैं लैपटौप पर औनलाइन थी. मैं ने अप्रत्याशित अविनाश की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी और तत्काल ऐक्सैप्ट भी कर लिया. थोड़ी ही देर में उस का मैसेज आया कि कैसी हो दीपा और तुम्हारी मुसकराहट बरकरार है न? संकल्प को भी तुम्हारी मुसकान अच्छी लगती होगी.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गई. इसे संकल्प के बारे में कैसे पता है. अत: मैं ने पूछा, ‘‘तुम उन्हें कैसे जानते हो?’’

‘‘मैं दुबई के सैंट्रल स्कूल में टीचर हूं. संकल्प यहां हमारे स्कूल में कंप्यूटर और वाईफाई सिस्टम लगाने आया था. बातोंबातों में पता चला कि वह तुम्हारा पति है. उस ने ही तुम्हारा व्हाट्सऐप नंबर दिया है.’’

‘‘खैर, तुम बताओ, कैसे हो? बीवीबच्चे कैसे हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पहले बीवी तो आए, फिर बच्चे भी आ जाएंगे.’’

‘‘तो अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, अब कर लूंगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हर क्यों का जवाब हो, जरूरी नहीं है. वैसे एक बार तुम्हारी मुसकराहट देखने की इच्छा थी. खैर, छोड़ो और क्या हाल है?’’

‘‘पड़ोस में मोहिनी की मेहंदी की रस्म में गई थी.’’

‘‘तब तो तुम ने भी अपने हाथों में मेहंदी जरूर लगवाई होगी.’’

‘‘हां.’’

‘‘जरा वीडियो औन करो, मुझे भी दिखाओ. तुम्हारी शादी की मेहंदी नहीं देख सका था.’’

‘‘लो देखो,’’ कह कर मैं ने वीडियो औन कर अपने हाथ उसे दिखाए.

‘‘ब्यूटीफुल, अब एक बार वही पुरानी मुसकान भी दिखा दो.’’

‘‘यह तुम्हारे रिकौर्ड की सूई बारबार मुसकराहट पर क्यों अटक जाती है.’’

‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, एक भाषा ऐसी है जो सारी दुनिया जानती है.’’

‘‘कौन सी भाषा?’’

‘‘मुसकराहट. मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया मुसकराती रहे और बेशक दीपा भी.’’ मैं हंस पड़ी.

वह बोला, ‘‘बस यह अरमान भी पूरा हो गया.’’

मुझे लगा मेरी भी सुसुप्त अभिलाषा पूरी हुई. अविनाश के बारे में जानना चाह रही थी. अत: बोली, ‘‘अपनी शादी में बुलाना नहीं भूलना.’’

‘‘अब पता मिल गया तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता. इसी बहाने एक बार फिर तुम्हारे मेहंदी वाले हाथ और वही मुसकराता चेहरा भी देख लूंगा.’’

‘‘अब ज्यादा मसका न लगाओ. जल्दी से शादी का कार्ड भेजो.’’

‘‘खुशी हुई शादी के बाद तुम्हें बोलना तो आ गया. आज से पहले तो कभी बात भी नहीं की थी.’’

‘‘हां, इस का अफसोस मुझे भी है.’’

एक बार फिर बिजली चली गई. इंटरनैट बंद हो गया. अविनाश कितना चाहता था मुझे शायद मैं नहीं जान पाती अगर उस से आज बात नहीं हुई होती.

बहके माता पिता, बच्चों का टूटता विश्वास

एक प्रतिष्ठित अंगरेजी पाक्षिक पत्रिका के ‘पाठकों की समस्या’  स्तंभ में एक गंभीर समस्या पढ़ने को मिली. कालेज के एक छात्र ने लिखा था, ‘मैं अपने मातापिता का बहुत सम्मान करता हूं. उन्हें अपना आदर्श मान कर उन्हीं की तरह बनना चाहता हूं. लेकिन पिछले दिनों मैं यह देख कर हैरान रह गया कि मेरी मां पड़ोस के एक व्यक्ति से प्यार की पींगें बढ़ा रही हैं. मैं ने अपनी आंखों से उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देखा है. बस, तब से ही इच्छा होती है कि उस पड़ोसी की हत्या कर डालूं.’

मन की गुत्थियों को व्यक्त करते हुए छात्र का कहना था कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस रहस्य को मैं किस तरह जाहिर करूं. यदि पिता को बताता हूं तो परिवार के बरबाद होने का खतरा नजर आता है और मां को कहता हूं तो डर लगता है कि शर्म से वे आत्महत्या न कर लें.

ऐसी मनोदशा में कुछ दुर्घटना होने की संभावना है. मातापिता के दुराचरण को बच्चे जानने लगे, इस से अधिक त्रासद स्थिति और कुछ नहीं हो सकती. इस तरह की घटनाओं पर बड़े तो अपनेअपने तरीकों से प्रतिक्रियाएं जाहिर कर मन की भड़ास निकाल लेते हैं, किंतु बच्चे न विरोध के स्वर में बोल पाते हैं और न ही मातापिता का पक्ष ले सकते हैं.

पारंपरिक भारतीय परिवार में इस तरह का आचरण और भी असहनीय है. कई बार मन की बात कहने का उन का तरीका उपरोक्त छात्र की तरह होता है, बहुत बार उन्हें मानसिक आघात सहना पड़ता है. इस के अलावा बच्चों का मातापिता के प्रति विश्वास टूट जाता है. इस विश्वास के टूटने से बच्चे अकेले पड़ जाते हैं तथा इस पीड़ा को वे किसी दूसरे के साथ बांट भी नहीं सकते.

जानलेवा नतीजे

अकसर बच्चे मातापिता को दुनिया का सब से आदर्श चरित्र मानते हैं. व्यवहार में उन्हीं का अनुसरण करते हैं. मगर जब एक दिन अचानक ही उन्हें पता चलता है कि जिन को वे अपना आदर्श मानते हैं वे खुद गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो बच्चे के मन को गहरा आघात लगता है.

इस चोट से बच्चा इतना विचलित होता है कि यदि उस का वश चले तो वह मातापिता से रिश्ता ही तोड़ ले. लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सकता. बच्चे को उन का नाम जीवन भर ढोना पड़ता है. इस के साथ ही उसे ढोनी होती हैं वे बातें जो मातापिता के गलत आचरण को ले कर समाज में जाहिर हो चुकी होती हैं.

कई बार ऐसी मजबूरी हिंसा का रूप ले लेती है. एक बार, एक बेटे ने पिता की हत्या कर दी और हथियार सहित थाने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पूछताछ से पता चला कि युवक की मां का बचपन में ही देहांत हो गया था. पिता ने बेटे की वजह से दूसरा विवाह नहीं किया. बेटे की निगाह में पिता का दर्जा सर्वोपरि था.

बेटे के बड़े होने पर एक विधवा मां की सुयोग्य बेटी के साथ बेटे का रिश्ता तय कर दिया. चूंकि उन के परिवार अधूरे थे, इसीलिए विवाह के पहले ही दोनों परिवारों के बीच आनाजाना शुरू हो गया. एक दिन लड़के को पता चला कि उस के पिता के दिल के तार मंगेतर की मां के साथ जुड़ गए थे. पहले तो उस ने इसे अपने मन का भ्रम समझा, लेकिन जब एक दिन लड़के ने पिता को अंतरंग क्षणों में अपनी आंखों से देख लिया तो वह सन्न रह गया. उसे लगा कि अब तो मंगेतर के साथ उस के संबंध भाईबहन जैसे बन कर रह गए हैं, वह उत्तेजित हो उठा. इसी उत्तेजना में उस ने पिता की अलमारी में से रिवौल्वर निकाली और उन की हत्या कर दी.

बच्चे चरित्र के मामले में दूसरों की कमजोरियों को तो नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन अपने मातापिता में चरित्रहीनता का एहसास उन्हें विचलित कर देता है. बच्चों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन के मातापिता भी अन्य लोगों की तरह सामान्य व्यक्ति हैं. इसलिए बच्चों को चाहिए कि वे मातापिता को परिस्थितियों के अनुसार देखें और समझें.

इस का मतलब यह भी नहीं है कि मातापिता की कमजोरियों को नजरअंदाज कर उन्हें स्वीकार कर लिया जाए, पर यह जरूरी है कि जरूरत से अधिक संवेदनशील होने से बच्चों को बचना चाहिए. अधिकतर बच्चे इस चिंता से पीडि़त रहते हैं कि मातापिता की चरित्रहीनता से उठे प्रश्नों का वे क्या जवाब देंगे. उन की दूसरी परेशानी यह होती है कि मातापिता के बहक जाने से घर बरबाद हो जाएगा और वे कहां जाएंगे. इसीलिए उन का गुस्सा होना स्वाभाविक है. मगर बच्चों को यह नहीं भूलना चाहिए कि मातापिता की भी परिवार के प्रति जिम्मेदारी है, परिवार की चिंता उन्हें भी है. बदनामी को ले कर उठने वाले सवालों का जवाब पहले तो उन्हें ही देना है.

खुद को रखें संयत

बच्चों को चाहिए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाने पर खुद को संयत रखें. मातापिता में से वे जिस के भी आचरण से दुखी हैं उन्हें अपनी बात दृढ़ता से पर विनम्र शब्दों में कहें. यदि बच्चे आमनेसामने अपनी बात कहने में असमर्थ हैं तो वही बात किसी कागज पर लिख कर कही जा सकती है.

प्रारंभ में बात कहना, बिना मतलब का बतंगड़ हो सकती है, क्योंकि यह भी संभव है कि जो देखा, समझा या सुना गया है वह शुरुआत हो, लेकिन इस से कम से कम स्थिति तो स्पष्ट हो जाएगी और यदि ऐसा है तो इस के बाद मातापिता के आचरण में सुधार अवश्य आएगा. यह कभी नहीं भूलें कि जिस तरह बच्चे, मातापिता को आदर्श मानते हैं वैसे ही मातापिता भी नहीं चाहते कि वे बच्चे की निगाहों से गिर जाएं.

इस के बावजूद मातापिता के चरित्रहीन होने की स्थिति आ जाए तो उस से घबराना नहीं चाहिए. परिस्थितियों का डट कर मुकाबला करना चाहिए. सच है कि दुराचरण का मार्ग अंतत: पारिवारिक बरबादी तक जाता है, पर इस के लिए घर छोड़ना, पढ़ाई छोड़ना या आत्महत्या करने जैसे कार्य उचित नहीं हैं. यदि बच्चे चाहें तो मातापिता के दुराचरण व पारिवारिक बरबादी के खिलाफ, कानून का सहारा ले सकते हैं. बच्चे के भरणपोषण के लिए मातापिता उत्तरदायी हैं. बस, जरूरत इस बात की है कि दोषी मातापिता की औलाद सही कदम उठाए. बिना सोचेसमझे विरोध का बिगुल बजा देना भी ठीक नहीं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें