देश के बुजुर्गों का स्टैमिना आजकल बढ़ती उम्र के साथ महंगाई की तरह चढ़ता ही जा रहा है. हमारी कालोनी के एक सभ्य बुजुर्ग से हमारी मुलाकात हुई तो उन की बातें सुन कर हम दंग रह गए.
आजकल इन पेरैंट्स के पास एक ही काम है. गंगाधर उन पेरैंट्स की बात कर रहा है जिन के पुत्रपुत्री नौकरी के वास्ते सात समुंदर पार अमेरिका जा बैठे हैं. बेटे के साथ बहू, बेटी के साथ दामाद भी हैं. हमारी या आप की भी जितने ऐसे लोगों से फोन पर बात होती है या आमनेसामने की मुलाकात, उन में से न्यूनतम आधे थोड़ी ही देर बाद वार्त्तालाप को अमेरिका पर मोड़ लाते हैं. वे कहेंगे कि यूएसए जा रहे हैं या वहां हैं/थे या वहां से आए हैं जस्ट.
कल बाजार में परिचित शर्माजी मिल गए. अब सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. हायहैलो हुई. यहांवहां की बातें हुईं. उन्होंने मुझ से कहा कि इस समय तो स्थानीय निकाय चुनाव के कारण व्यस्त होंगे. चूंकि वे गले तक यूएसए से भरे हुए थे, इसलिए मेरे जवाब देने तक उन से रहा न गया. वे बोले, ‘‘मुझे भी औब्जर्वर का काम दे रहे थे पर मैं ने मना कर दिया क्योंकि अगले सप्ताह यूएसए जाना था.’’ मैं ने कहा, ‘‘क्यों जा रहे हैं?’’ बोले, ‘‘बस, बेटीदामाद हैं. उन के पास जा रहे हैं. यही तो एक काम हम लोगों के पास बचा है. कभी बेटीदामाद तो कभी बेटेबहू के पास.’’ परसों की बात है. भोपाल साहित्य संस्थान की आगामी काव्य गोष्ठी में एक मूर्धन्य साहित्यकार बेधड़कजी को मुझे आमंत्रित करना था. इसलिए हम ने फोन किया पर लगा नहीं. हम ने व्हाट्सऐप पर मैसेज डाला. तुरंत ही जवाब आ गया क्योंकि बहुतायत लोगों की तरह वे भी व्हाट्सऐप पर नजरें गड़ाए हुए थे. मैसेज था कि अभी बच्चे के पास यूएसए में हैं. कोई जा रहा है यूएसए. कोई पहले से गया हुआ है. कोई बस पिछले सप्ताह ही वापस लौटा है, जैसे भूत, वर्तमान व भविष्य सब अमेरिका में ही बस सुरक्षित हैं.