कल शाम थकाहारा, रिश्वत का मारा सहीसलामत घर लौटने की खुशी में मैं इतरा ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं परेशान हो कर कुछ सोचने लगा. दिमाग पर दबाव डाला, तो काफी राहत मिली कि जिसजिस ने कुछ दिया था, उन सब का काम तो कर ही आया हूं. अब कौन हो सकता है? शायद कोई घर आ कर सेवा करना चाहता हो? तो आ जाओ भैया.

हम सरकारी मुलाजिम तो नौकरी में आते ही हैं चौबीसों घंटे रिश्वत लेने के लिए, वरना मुफ्त में क्या पागल कुत्ते ने काट रखा है, जो फाइलों में उलझेउलझे सिर गंजा करा लें.

मैं ने थकने के बाद भी हिम्मत न हारी. दरवाजा खोला, तो पड़ोसन का बेटा सामने नजर आया. सोचा था कि थोड़ा और माल बना लूंगा, लेकिन उसे देखते ही सारा का सारा जोश धरा रह गया.

‘‘कहो बेटे, क्या बात है?’’ मैं ने बेमन से पूछा.

‘‘अंकल, आप के पास टाइम है क्या?’’

कोई बड़ा आदमी होता, तो साफ कह देता कि हम सरकारी लोगों के पास टाइम के सिवा सबकुछ होता है, पर बच्चा था इसलिए कहा, ‘‘हांहां. बेटे कहो, क्या करना है?’’

‘‘मम्मी ने मुझे आप के पास निबंध लिखवाने के लिए भेजा?है,’’ बच्चे की कमर से निकर बारबार यों छूट रही थी, जैसे पाकिस्तान के हाथ से कश्मीर छूट रहा है.

‘‘मुझ से…’’ मैं ने ताज्जुब से कहा.

नकल मार कर तो मैं ने 10वीं पास की थी और पापा के दोस्त की पैरवी से यहां लग गया था, वरना कोई होटल पर बरतन मांजने को भी न रखता… अब यह निबंध, वह तो चाहे अंगरेजी का होता या हिंदी का, उसे क्या पढ़ना और क्या याद करना.

5-7 निबंध फाड़ कर परीक्षा भवन में ले जाते थे और जो आ गया, चिपका दिया. पर शायद समय आने पर आदमी बुद्धिमान भी हो जाता है और पड़ोसी उसे पहचान भी लेते हैं. जैसे आज मेरी पहचान हुई थी. मैं ने अपनी बुद्धिमानी को शाबाशी दी और पड़ोसन के बेटे से कहा, ‘‘आओ बेटे, अंदर आओ. मैं तुम्हें निबंध जरूर लिखवाऊंगा. पर निबंध लिखने की कौन सी जरूरत आ पड़ी, अभी तो परीक्षा भी नजदीक नहीं है?’’

‘‘स्कूल में निबंध प्रतियोगिता है न,’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तो किसी अच्छी सी गाइड में से लिख लेते.’’

‘‘मौलिक चाहिए था अंकल. अगर आप लिखवा देंगे, तो मैं पहला इनाम जीत जाऊंगा.’’

‘‘सच,’’ मुझे लगा कि बच्चा मुझे पहचानने में गलती कर रहा है. पर बच्चे मन के सच्चे होते हैं, इसलिए यह गलती नहीं हो सकती थी. मैं खुशी के मारे फूलने लगा, तो मुझे ब्रह्मांड भी फूलने के लिए कम लगा.

पता नहीं क्यों मैं आज तक अपनेआप को ‘अंडरऐस्टीमेट’ करता रहा. मैं ने बच्चे को कुरसी पर बिठाया, ‘‘अच्छा बेटे, तो तुम्हें कौन से विषय पर निबंध लिखना है?’’

‘‘रिश्वत पर,’’ बच्चे ने कहा, तो अब पैंट सरकने की बारी मेरी थी.

बच्चे को मेरी पैंट सरकने का पता न चले, इसलिए मैं ने बैठते हुए कहा, ‘‘बेटे, पड़ोस वाले पटवारी अंकल के पास जा कर लिख लेते, तो बहुत अच्छा रहता.’’

‘‘अंकल, वे हरिद्वार गए हैं.’’

‘‘तो सामने वाले ऐक्साइज अंकल के पास लिख लेते?’’

‘‘अंकल, उन की बेटी की शादी है. वे ओवर टाइम कर रहे हैं और कई दिनों से घर नहीं आ रहे हैं.’’

‘‘तो बगल वाले पुलिस अंकल भी तो हैं?’’

‘‘अंकल, उन की ड्यूटी चैक पोस्ट पर है. वे रात को भी घर नहीं आते.’’

‘‘कोई बात नहीं, बेटे. तुम्हें मैं ही निबंध लिखवाऊंगा. ऐसा निबंध कि

तुम अव्वल आओगे. पर… तुम्हारे पापा तो गुरुजी हैं न… उन्होंने… चलो… उन्हें ट्यूशन से फुरसत नहीं होगी…’’

‘‘समय तो है, पर वे भी किताबी निबंध ही लिखवा सकते हैं, व्यावहारिक नहीं. मौलिक तो आप ही लिखवासकते हैं.’’

‘पता नहीं, वे लोग बच्चे पैदा क्यों करते हैं, जिन के पास अपने बच्चों को निबंध लिखवाने के लिए व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता? बेकार में मास्टर बने फिरते हैं. जब निबंध लिखवाने की बारी आती है, तो बोलती बंद हो जाती है,’ मैं ने सोचा, फिर उस से कहा, ‘‘तो बेटे, तैयार हो जाओ.’’

‘‘मैं तैयार हूं अंकल,’’ बच्चे ने खुश हो कर कहा.

बच्चे के हां कहने पर स्कूल के दिनों का नालायक एकाएक जानकार हो गया. मैं उसे लिखाने लगा, ‘‘हमारा देश पहले कृषि प्रधान देश था, अब रिश्वत प्रधान देश है. रिश्वत की खेती में हमारा देश दुनियाभर में आगे है. यहां दफ्तर के गेट से ले कर चिमनी तक में रिश्वत ली जाती है. इस देश में पैदा होने से ले कर मरने तक में रिश्वत ली जाती है.

‘‘रिश्वत हमारी संस्कृति की सौगात है. रिश्वत के बिना हमारा जीवन भी अधूरा है और संस्कृति भी.

‘‘रिश्वत हमारी पहचान है. रिश्वत हमारा राष्ट्रीय धर्म है. हम देश के लिए नहीं, रिश्वत के लिए मरते हैं. धन्य हैं

वे रिश्वतखोर, जिन्होंने डट कर रिश्वत ली, मगर कभी पकड़े नहीं गए. ऐसे रिश्वतखोर ही दुनिया में हमारे देश का नाम रोशन करते हैं.

‘‘रिश्वत देना और लेना भी एक कला है. जो इस कला में माहिर होते हैं, वे आराम से जिंदगी बिताते हैं. रिश्वत देने और लेने के तमाम तरीके हैं.

‘‘इस दुनिया में हर चीज के फायदे और नुकसान दोनों हैं. मगर रिश्वत देने और लेने के फायदे ही फायदे हैं. रिश्वत लेने वाले के लिए भी मुनाफे का सौदा है और देने वाले के लिए भी.

‘‘रिश्वत ले कर फाइलों में पंख लग जाते हैं और रिश्वत दे कर समय की बहुत बचत होती है. मैं तो कहता हूं कि 5-7 सौ रुपए कीमती समय से ज्यादा कीमती तो नहीं हैं.

‘‘रिश्वत लेना और देना एक नेक काम है. रिश्वत ही पूजा है. रिश्वत हमें नियमकानूनों से नजात दिलाती है. आज जो यह नेक काम नहीं करता, वह निकम्मा है. वह अमीर होने के बाद भी दीनहीन है.

‘‘यह सरकारी कामों में तेजी के लिए एक आजमाया टौनिक है. रिश्वत पाने के बाद सरकारी मुलाजिमों की सुस्ती कोसों दूर भाग जाती है.

‘‘रिश्वत न होती, तो गैरकानूनी काम न होते. रिश्वत न होती, तो चपरासियों के महलमकान न होते. रिश्वत न होती, तो बिकने वाले इनसान न होते.

‘‘रिश्वत पर जितना लिखा जाए, कम है. रिश्वत हमारा तन, मन और धन है. हमारे सारे काम रिश्वत पर ही टिके हैं.

‘‘इस देश में मूल्यों, आदर्शों, नैतिकताओं ने तमाम हमले किए, मगर वे अपना एकछत्र राज्य स्थापित नकर सके. अगर इस देश में किसी का एकछत्र राज्य स्थापित हुआ है, तो वह है रिश्वत का.

‘‘रिश्वत बड़ेबड़ों को उसूलों से गिरा देती है. रिश्वत न्याय को नचा देती है. रिश्वत घरबार बनवा देती है.

‘‘अगर हम देश की चहुंमुखी तरक्की चाहते हैं, तो बस एक ही रास्ता है कि रिश्वत का लेनदेन आसान बनाया जाए…’’

‘‘अंकल, मुझे नींद आ रही है,’’ बच्चे ने बोर होते हुए टोका.

‘‘अच्छा तो आखिर में लिखो… मैं यही प्रार्थना करता हूं कि रिश्वत देने वाले भी सलामत रहें और लेने वाले भी. जय देश, जय रिश्वत.’’

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