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तो विराट कोहली नहीं तोड़ पाएं धोनी का ये रिकार्ड

एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेला गया चौथा वनडे मैच औस्ट्रेलिया ने 21 रनों जीतकर भारत के विजयरथ को रोक दिया. इस जीत के साथ औस्ट्रेलिया ने पांच वनडे मैचों की सीरीज में अपना खाता खोला. हालांकि हार के बाद भी मेजबान भारत 3-1 की अजेय बढ़त लिए हुए है. भारतीय कप्तान विराट कोहली के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि वह पूर्व कप्तान एम एस धोनी का रिकौर्ड नहीं तोड़ पाए. अगर भारतीय टीम यह मैच जीत जाती तो कोहली वनडे मैचों में लगातार जीत के महेंद्र सिंह धोनी के रिकार्ड को तोड़ देते. धोनी के नाम वनडे में लगातार नौ जीत का रिकौर्ड है. कोहली ने इंदौर में खेले गए इस सीरीज के तीसरे मैच में जीत हासिल करते हुए धोनी के रिकार्ड की बराबरी तो कर ली थी, लेकिन वह इस रिकौर्ड को तोड़ नहीं सके.

गौरतलब है कि चौथे वनडे में मिली शिकस्त के बाद टीम इंडिया का न सिर्फ 5-0 से जीतने का सपना टूट गया, बल्कि आईसीसी वनडे रैंकिंग में उसे नंबर 1 का ताज भी गंवाना पड़ा. टीम इंडिया को 21 रनों से मिली हार के बाद एक बार फिर द.अफ्रीका 5957 पौइंट्स के साथ पहले नंबर पर पहुंच गया है. जबकि टीम इंडिया के 5828 पौइंट्स हैं. 5879 पौइंट्स के साथ औस्ट्रेलिया तीसरे नंबर पर काबिज है.

बेंगलुरु के एम.चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले गए चौथए वनडे में औस्ट्रेलियाई टीम ने अपना खाता खोला. पहले बल्लेबाजी करते हुए डेविड वौर्नर (124) और एरौन फिंच (94) के बीच पहले विकेट के लिए हुई 231 रनों की साझेदारी के दम पर भारत के सामने 335 रनों का विशाल लक्ष्य रखा. मेजबान टीम केदार जाधव (67), रोहित शर्मा (65) और अजिंक्य रहाणे (53) की अर्धशतकीय पारियों के बावजूद भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी और पूरे 50 ओवर खेलने के बाद आठ विकेट के नुकसान पर 313 रन बना सकी.

विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम को रोहित और रहाणे ने मनमाफिक शुरुआत दी और पहले विकेट के लिए 18.2 ओवरों में 106 रनों की साझेदारी की. लेकिन इसके बाद अजिंक्य रहाणे आउट हो गए. कुछ देर बाद रोहित और कप्तान विराट कोहली (21) के बीच रन लेने में गलतफहमी हुई और रोहित पवेलियन लौट गए. कप्तान कोहली भी 21 रन बनाकर चलते बने.

यहां से बेहतरीन फॉर्म में चल रहे हार्दिक पांड्या (41) और जाधव ने टीम को संभाला और चौथे विकेट के लिए 78 रन जोड़े. पांड्या ने एक बार फिर लेग स्पिनर एडम जाम्पा को अपना निशाना बनाया, लेकिन जाम्पा ने ही 38वें ओवर में उन्हें वार्नर के हाथों कैच कराया. जाधव ने इसके बाद मनीष पांडे (33) के साथ टीम की जीत दिलाने के लिए संघर्ष किया, लेकिन यह दोनों खिलाड़ी असफल रहे. 69 गेंदों का सामना करते हुए सात चौके और एक छक्का मारने वाले जाधव 46वें ओवर में पवेलियन लौट लिए. 47वें ओवर की पहली गेंद पर पांडे आउट हुए. महेंद्र सिंह धौनी ने 10 गेंदों में एक चौका और एक छक्का मार टीम को जीत दिलाने की कोशिश की लेकिन रिचर्डसन ने 48वें ओवर में उनकी पारी का अंत किया.

तो रणवीर सिंह ने नहीं दी अपने ड्रायवर को दो महीने से सैलरी

संसार का नियम है कि हर बड़ा इंसान, छोटे इंसान को न सिर्फ परेशान करता है, बल्कि उसे दबाकर रखना चाहता है. इससे बौलीवुड भी अछूता नही है. एक वेब पोर्ट की के अनुसार बौलीवुड में अपने आपको स्टार कलाकार मानने वाले अभिनेता रणवीर सिंह ने अपने ड्रायवर सूरज पाल की बकाया सैलरी के 85000 हजार नहीं दिए. जब ड्रायवर ने अपनी सैलरी मांगी, तो उसे नौकरी से निकाल दिया.

फिल्म ‘‘पद्मावती’’से जुड़े सूत्रों के अनुसार मुंबई के फिल्मसिटी स्टूडियो में फिल्म ‘‘पद्मावती’’की शूटिंग चल रही थी, वहीं पर सेट के बाहर रणवीर  सिंह के ड्रायवर सूरज पाल ने रणवीर सिंह के मैनेजर से अपनी सैलरी के बकाया 85000 की मांग की. इस पर रणवीर सिंह के मैनेजर ने सूरज पाल को झिड़क दिया.

इतना ही नहीं मैनेजर के कहने पर रणवीर सिंह के बौडीगार्ड ने सूरज पाल की पिटाई शुरू कर दी. सेट के बाहर हंगामा होने पर संजय लीला भंसाली और रणवीर सिंह बाहर आए. सूरज पाल की बात सुनने की बजाय रणवीर सिंह ने तुरंत सूरज पाल को नौकरी से निकालने का ऐलान कर दिया. पर उसकी सैलरी अब तक नहीं दी.

सूत्रों की माने तो सूरज पाल ने इस संबंध में रणवीर सिंह की बहन से भी बात की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. अब सूरज पाल अपने पैसे को पाने के लिए वह एशोसिएशन में शिकायत दर्ज कराने वाले हैं.

इस प्रकरण पर बौलीवुड में कई तरह की बातें की जा रही है. कुछ लोग सवाल कर रहें हैं कि क्या रणवीर सिंह इतने कंगाल हो गए हैं कि वह अपने ड्रायवर का मेहनताना नहीं दे पा रहे हैं? अथवा वह जानबूझकर उसे परेशान कर रहे हैं?

इन गलतियों से हो सकता है आपके फेसबुक का डाटा हैक

फेसबुक दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट है जिसे करोड़ो लोग अपने प्रयोग में लाते हैं. फेसबुक अपने यूजर्स की प्राइवेसी को गंभीरता से लेते हुए हर रोज नए प्राइवेसी टूल्स उपलब्ध करा रहा है. पर इन सबके बावजूद हैकर्स बड़ी आसानी से यूजर्स के फेसबुक अकाउंट को हैक कर लेते हैं और इसकी जानकारी यूजर्स को नहीं होती है.

ऐसे में हम इस खबर में हैकर्स द्वारा अकाउंट हैक करने करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों के बारे में बता रहे हैं. इन बातों को जानकर आप अपने अकाउंट को ज्यादा सिक्योर रख सकते हैं.

फेसबुक फीशिंग अटैक

किसी फेसबुक अकाउंट को हैक करने के लिए फिशिंग अटैक एक आसान तरीका है. इसके लिए हैकर्स एक फेक लौगिन पेज बनाता है जो कि बिल्कुल रियल फेसबुक पेज की तरह ही दिखता है. इसके बाद, हैकर्स दूसरे यूजर को इसे लौग इन करने के लिए कहता है. यूजर द्वारा एक बार फेक पेज को लौगइन करने के बाद उसके ईमेल एड्रेस और पासवर्ड को टेक्स्ट फाइल में स्टोर कर लिया जाता है. अब हैकर टेक्स्ट फाइल को डाउनलोड करने करने के बाद यूजर के फेसबुक पेज को हैक कर लेता है.

इससे कैसे बचें

  • किसी दूसरे डिवाइस से फेसबुक अकाउंट को लौगइन न करें.
  • हमेशा क्रोम बाउजर का इस्तेमाल करें.
  • ऐसे ईमेल्स को नजरअदांज करें जो आपको फेसबुक अकाउंट को लौगइन करने को कहे.

की लौगइन के जरिए

की लौगिंग एक फेसबुक पासवर्ड हैक करने का सबसे आसान तरीका है. की लौगर मूल रूप से एक छोटा सा प्रोग्राम है, जिसे यूजर के कंप्यूटर पर इंस्टौल कर देने के बाद यह आपकी सारी डिटेल्स को रिकौर्ड करता है. इसके बाद, यूजर्स की डिटेल्स हैकर्स को FTP के जरिए या फिर सीधे हैकर्स के ईमेल एड्रेस में भेजी जाती है.

इससे कैसे बचें

  • हमेशा विश्वसनीय वेबसाइट से ही सौफ्टवेयर को डाउनलोड करें
  • अपने USB ड्राइव को हमेशा स्कैन करें.
  • अपने सिस्टम में एक अच्छे एंटीवायरस को डाउनलोड करें.

ब्राउजर में सेव रखें पासवर्ड वरना हैक हो सकता है

हम सभी अपनी सुविधा के लिए कंप्यूटर के ब्राउजर में अकाउंट के पासवर्ड को सेव रखते हैं. ऐसे में यह हमारे लिए खतरा हो सकता है. इससे हैकर्स बड़ी आसानी से अपने पासवर्ड को आपके कंप्यूटर से निकाल कर आपके अकाउंट को हैक कर सकता है.

इससे कैसे बचें

  • कभी भी अपने ब्राउजर पर लौगिन क्रेडेंशियल्स को सेव न करें.
  • हमेशा अपने कंप्यूटर पर स्ट्रौन्ग पासवर्ड का उपयोग करें.

सेशन हाइजैकिंग

यदि आप फेसबुक का इस्तेमाल करने के लिए HTTP (नौन सिक्योर) कनेक्शन का प्रयोग करते हैं तो यह आपके लिए खतरनाक हो सकता है. सेशन हाइजैकिंग के जरिए हैकर यूजर के ब्राउजर कुकी को चुराता है जिसका इस्तेमाल वेबसाइट पर यूजर को प्रमाणित करने के लिए किया जाता है. साथ ही, यूजर के खाते तक पहुंचने के लिए इसका इस्तेमाल करता है.

मोबाइल फोन हैकिंग के जरिए

अधिकांश लोग अपने मोबाइल फोन के माध्यम से फेसबुक का उपयोग करते हैं. अगर हैकर यूजर के मोबाइल फोन को हैक कर लें तो उसे फेसबुक समेत दूसरे अकाउंट की जानकारी भी मिल जाएगी. मसलन, हैकर आसानी से यूजर के फेसबुक अकाउंट का एक्सेस प्राप्त कर सकता है. औनलाइन ऐसे कई सौफ्टवेयर या एप्स है जो आपके स्मार्टफोन पर नजर रखते हैं. सबसे लोकप्रिय मोबाइल फोन स्पाइंग सौफ्टवेयर Mobile Spy और Spy Phone Gold हैं.

लेजर तकनीक से कौस्मैटिक उपचार क्या है फायदेमंद, आप भी जानिए

लेजर्स ऐसी मैडिकल डिवाइस होती हैं जो अत्यधिक ऊर्जा, प्रकाश और गरमी पैदा करती हैं. इन्हें गहन शोध और व्यापक क्लिनिकल अनुभव के बाद हासिल किया गया है. इन का प्रयोग त्वचा व शरीर के विभिन्न प्रकार के ऊतकों पर कारगर तरीके से किया जाता है. लेजर लाइट में ऊर्जा की मात्रा और वितरण को बहुत ही बारीकी से पहुंचाया जाता है. इसलिए कई सौंदर्य संबंधी व चिकित्सकीय परिस्थितियों के सफल उपचार के लिए उपकरणों या रसायनों के प्रयोग के मुकाबले इस से ज्यादा लाभ हो सकता है.

लेजर्स त्वचा, बालों को कम करने, त्वचा के कायाकल्प और त्वचा पर होने वाले घावों के उपचार के लिए 3 चीजें करती हैं :

अनचाहे बालों को खत्म करना

कौस्मैटिक प्रक्रिया में अनचाहे बालों को हटाने के लिए डायोड जैसे एक शक्तिशाली लेजर का इस्तेमाल किया जाता है.

यह प्रकाशस्रोत त्वचा में बालों के छिद्रों को गरम करता है और उन्हें नष्ट कर देता है. इस से बालों की वृद्घि थम जाती है. यह उपचार शरीर में मुख्यरूप से चेहरे, टांगों, बांहों, अंडरआर्म और बिकिनी लाइन जैसी जगहों पर किया जाता है.

यह अत्यधिक बालों की परेशानी से पीडि़त महिलाओं के लिए लाभदायक हो सकता है. आमतौर पर यह पीली त्वचा और काले बालों वाली महिलाओं के लिए कारगर है.

उपचार के लिए 4 से 6 सप्ताह के दौरान 6 सैशन लेने की सलाह दी जा सकती है. संभव है कि लेजर हेयर रिमूवल के बाद भी बाल हमेशा के लिए खत्म न हों. उन्हें पूरी तरह खत्म होने में कुछ सप्ताह से ले कर कुछ महीनों तक का वक्त लग सकता है. उचित परिणाम हासिल करने और उन्हें बनाए रखने के लिए नियमित सत्रों की आवश्यकता हो सकती है. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस से सभी बाल खत्म हो ही जाएंगे. इसलिए प्रशिक्षित डाक्टर को तलाशने के लिए समय निकालें जिस के पास उपयुक्त योग्यता हो और जो स्वच्छ, सुरक्षित व उचित माहौल में काम करता हो.

डाक्टर से समय लेने से एक दिन पहले उपचार के हिस्से से बाल हटाने होते हैं. उपचार के दिन उस दौरान आंखों को सुरक्षित रखने के लिए विशेषरूप से डिजाइन किया गया चश्मा भी पहनना होता है.

उपचार करने में लोकल एनेस्थिसिया जरूरी नहीं है. उपचार करने वाला व्यक्ति आमतौर पर त्वचा के उस हिस्से में एक कूल जेल या कूलिंग एयर स्प्रे का इस्तेमाल करता है. इस के बाद वह हाथ से इस्तेमाल की जाने वाली एक डिवाइस को त्वचा के पास दबाता है और लेजर को भी दबाता है. प्रत्येक सैशन में 15 मिनट से ले कर 1 घंटे से अधिक समय भी लग सकता है. व्यक्ति को कितने सैशन की जरूरत है, यह लेजर का इस्तेमाल किए जाने वाले हिस्से और इस्तेमाल की गई प्रणाली पर निर्भर करता है.

उपचार के 24 घंटे तक उस जगह पर चकत्तों के साथ लाल निशान देखने को मिल सकते हैं. त्वचा को एक आइस पैक से ढकने से मदद मिल सकती है. लेजर हेयर रिमूवल के बाद त्वचा धूप में अत्यधिक संवदेनशील हो जाती है. ऐसे में उपचार के करीब एक सप्ताह तक धूप और टैनिंग बेड्स से बचाव व सनस्क्रीन का प्रयोग जरूरी है.

त्वचा को नया रूप देना

लेजर रिसरफेसिंग में कार्बन डाईऔक्साइड जैसी विशेष रूप से तैयार की गई थर्मल एनर्जी की बीम का इस्तेमाल किया जाता है. यह त्वचा  सतहों के भीतर काफी गहराई तक जा कर काम करती है.

त्वचा की सतह उतरने या छूटने के उलट हीट की ये लेजर बीम मुख्यरूप से खराब हो चुकी त्वचा को लक्ष्य बनाती है और उन्हें ठीक करती है. पुरानी त्वचा में घाव करने से रिसरफेसिंग से बाहरी त्वचा को हटाया जाता है और यह त्वचा की भीतरी सतह तक पहुंचती है जो नई कोलाजेन पैदा करती है. इस से त्वचा की स्थिति में सुधार होता है और नई त्वचा उभर कर सामने आती है.

आमतौर पर इस उपचार का प्रयोग झुर्रियों या मुहांसों के धब्बों को कम करने या त्वचा की अन्य खामियों को सुधारने के लिए किया जाता है. उपचार में लगने वाला समय उपचार की जगह और आकार पर निर्भर करता है. होंठ के ऊपरी हिस्से और ठुड्डी जैसी छोटी जगहों में 20-30 मिनट लगते हैं.

बर्थ मार्क, टैटू और त्वचा के घावों को हटाना

शरीर के निशानों को खत्म करने के मामले में लेजर उपचार काफी कारगर साबित हुआ है. लेजर द्वारा इन निशानों का कारण रही असामान्य रक्तनसों का आकार कम कर दिया जाता है. परिणामस्वरूप, उपचार किए हिस्से का रंग दब जाता है. त्वचा की वृद्घि, चेहरे पर उभरी नसें, मस्सों और कुछ टैटू को लेजर सर्जरी से ठीक किया जा सकता है.

ज्यादातर मौकों पर एक से अधिक बार लेजर उपचार की जरूरत होती है लेकिन कुछ चीजें एक ही बार में ठीक हो जाती हैं. टैटूज को एक विशेष प्रकार के लेजर द्वारा हटाया जा सकता है.

नई प्रौद्योगिकी के साथ इस्तेमाल करने के लिहाज से लेजर सुरक्षित हो गए हैं. लेकिन एक प्रशिक्षित कौस्मैटिक सर्जन के पास जाना आवश्यक है, जिस के पास इस प्रकिया के दौरान लेजर के प्रयोग की जानकारी हो.

उचित ढंग से प्रयोग न किए जाने पर लेजर्स नुकसानदायक हो सकती हैं. प्लास्टिक सर्जन आमतौर पर न्यूनतम लेजर तीव्रता का प्रयोग करते हैं. न्यूनतम तीव्रता की वजह से उपचार के लिए कई बार जाना पड़ता है. हालांकि न्यूनतम तीव्रता जहां तक संभव है ऊतकों को सेहतमंद बनाए रखती है. इस के प्रयोग से सौंदर्य के लिहाज से उपयुक्त परिणाम देखने को मिलते हैं. इन में से कई लेजर सर्जरी अस्पतालों में बाह्यरोगी उपचारों के तौर पर की जाती हैं.

सर्जन द्वारा सर्जरी में लेजर के उपयोगी होने के संकेत देने के बाद वह लेजर की उपयोगिता व उस के परिणामों के बारे में बताता है. प्रत्येक प्रकार की सर्जरी की ही तरह लेजर की अपनी सीमाएं हैं. आमतौर पर परिणाम बहुत ही अच्छे रहे हैं. सर्जन विशेष प्रकार की प्रक्रिया के लिए आप को सर्वश्रेष्ठ जानकारी देगा.

कुछ सर्जन सर्जरी से पहले उपचार के हिस्से को सुन्न करने के लिए लोकल एनेस्थिसिया का प्रयोग कर सकते हैं. कई बार सर्जरी सर्जन के औफिस में की जा सकती है, कई बार यह सर्जरी एक क्लिनिक या अस्पताल में बाह्यरोगी विभाग में की जा सकती है. सर्जन सर्जरी की प्रकृति के मुताबिक उचित तरीका तय करेगा. चूंकि सुरक्षा लेजर के प्रयोग का एक अहम तत्त्व है, इसलिए सर्जन सर्जरी से पहले सुरक्षा संबंधी सावधानियों के बारे में बताता है.

सर्जरी के बाद संभवतया कई दिनों तक कुछ हद तक सूजन और त्वचा में लालपन महसूस होता है. घाव भरने की प्रक्रिया के दौरान एंटीबायोटिक औइंटमैंट का प्रयोग किया जा सकता है. मरीज के लिए सर्जन द्वारा औपरेशन के बाद के लिए बताए गए दिशानिर्देशों का पालन करना महत्त्वपूर्ण है, खासतौर पर सन ब्लौक क्रीम का प्रयोग करने और धूप से बचने को ले कर दिए गए निर्देशों का पालन करना.

(लेखक दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टैंट हैं.)

अपनों से बनाएं मजबूत भावनात्मक तालमेल

कल मैं अपने औफिस की रिटायर्ड सहकर्मी अनामिका के घर गई तो बड़ी व्यस्त और कहीं जाने की तैयारी में दिखीं. ड्राइंगरूम में रखे लगेज को देख कर मैं ने पूछा,  ‘‘बड़ी व्यस्त दिख रही हैं, कहीं जाने की तैयारी है, दीदी?’’

‘‘हां, कल हम दोनों बड़े बेटे बब्बू के पास जा रहे हैं. परसों उस का जन्मदिन है न,’’ वे खुशी से बोलीं.

‘‘क्या सब के जन्मदिन पर जाते हैं आप दोनों, रांची से पुणे की दूरी तो बहुत है?’’

‘‘हां, कोशिश तो यही रहती है कि जीवन के प्रत्येक खास दिन पर हमसब साथ हों. आनेजाने से हमारा शरीर तो ऐक्टिव रहता ही है, बच्चों और पोतेपोती का हम से जुड़ाव व लगाव बना रहता है. वे अपने दादादादी को पहचानते हैं और उन की चिंता करते हैं. बच्चों को तो इतनी छुट्टियां नहीं मिल पातीं और हम फ्री हैं, तो हम ही चले जाते हैं. मिलना चाहिए सब को, फिर चाहे कोई भी आए या जाए वे या हम लोग. दूरी का क्या है, बच्चे पहले ही फ्लाइट से रिजर्वेशन करवा देते हैं. कोई परेशानी नहीं होती,’’ अनामिका मुसकराती हुई बोलीं.

भावनात्मक लगाव की कमी

बच्चों के पास उन का जाने का उत्साह देखते ही बन रहा था. जीवन एक सतत प्रक्रिया है जिस में विवाह, बच्चे, उन का बड़ा होना और फिर उन का एक स्वतंत्र व पृथक व्यक्तित्व और अस्तित्व का होना एक प्राकृतिक जीवनचक्र है. जो आज हमारे बच्चे कर रहे हैं वही कल हम ने भी तो किया था. हम सब के जीवन में यह दौर आता ही है जब बच्चे अपना एक अलग नीड़ बना लेते हैं और मातापिता अकेले हो जाते हैं. आज ग्लोबलाइजेशन और मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी लगने के कारण मातापिता से दूर जाना उन की विवशता भी है और आवश्यकता भी.

जो लोग इस नैसर्गिक परिवर्तन को जीवन की सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया मान कर बच्चों के साथ खुद को ऐडजस्ट कर के चलते हैं उन के लिए कहीं कोई समस्या नहीं होती. परंतु जो लोग अपने अहंकार और कठोर स्वभाव के कारण स्वयं को परिवर्तित ही नहीं करना चाहते उन के लिए यह दौर अनेक समस्याओं का जनक बन जाता है. वे बच्चों से उतनी अच्छी बौंडिंग ही नहीं कर पाते कि वे बच्चों के साथ और बच्चे उन के साथ सहजता से एकसाथ रह सकें. परिणामस्वरूप, वे सदैव हैरानपरेशान से अपने बच्चों और नई पीढ़ी को दोष देते ही नजर आते हैं.

ओमप्रकाश की 5 संतानें हैं. 4 बेटियां और एक बेटा होने के बावजूद 8 वर्ष पूर्व बेटे की शादी होने के बाद से वे दोनों अकेले ही रहना पसंद करते हैं. बच्चों के यहां गए उन्हें सालों हो जाते हैं. बच्चों के पास जा कर उन्हें वह आजादी नहीं मिलती जो उन्हें अकेले रहने में मिलती है. यदि यदाकदा जाते भी हैं तो उन का वहां मन ही नहीं लगता क्योंकि प्रथम तो पारस्परिक मेलमिलाप के अभाव में अपनत्व ही जन्म नहीं ले पाता. दूसरे, वहां वे स्वयं को बंधनयुक्त महसूस करते हैं. जैसेतैसे 4-6 दिन काट कर वापस आ जाते हैं.

वहीं दूसरी ओर, कांता और रमाकांत हैं जिन के दोनों बेटेबहू सर्विस में हैं. मुंबई और इंदौर में उन्हें कोई फर्क ही महसूस नहीं होता. जब भी वे इंदौर स्थित अपने निवास पर आते हैं, 8-10 दिनों में ही बेटेबहू उन्हें अपने पास बुलाने के लिए फोन करने लगते हैं. साल में कम से कम एक बार वे सब एकसाथ किसी पर्यटन स्थल पर घूमने जाते हैं. वे अपने साथसाथ बहू के मातापिता को भी ले जाते हैं जिस से बहू भी अपने मातापिता की ओर से आश्वस्त रहती है.

वास्तव में देखा जाए तो बच्चों की खुशी ही मातापिता की खुशी होती है. बच्चों और आप की सोच में फर्क होना तो स्वाभाविक है परंतु बच्चों से कुछ पूछना, उन्हें तरजीह देना, उन के अनुसार थोड़ा सा ढल जाना, या उन की पसंद के अनुसार काम करने में क्या बुराई है? रमा कभी सलवारसूट नहीं पहनती थी पर जब मुंबई में उस की बहू ने सूट ला कर दिया तो उस ने बड़ी खुशी से सूट पहनना शुरू कर दिया. साथ ही, बर्गर, पिज्जा, चायनीज, कौंटीनैंटल जैसे आधुनिक भोजन खाना भी सीख लिया जिन के उस ने कभी नाम तक नहीं सुने थे. यह सब इसलिए ताकि बच्चों को उस के कारण किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और बाहर जा कर भी वे कंफर्टेबल महसूस करें.

परस्पर समझ की बात

श्रीमती घुले और उन के पति साल के 8 महीने अपने बेटों के पास रहते हैं. उन के बच्चे उन्हें आने ही नहीं देते. वे कहती हैं कि आज की पीढ़ी हम से अधिक जागरूक और बुद्घिमान है. तो उन के अनुसार थोड़ा सा ढलने में क्या परेशानी है. श्रीमती घुले बताती हैं कि जब पोता हुआ तो उन्होंने बहू के अनुसार ही उस की देखभाल की क्योंकि हमारे जमाने की अपेक्षा अब बहुत आधुनिक हो गया है और उसे मेरी अपेक्षा बहू अधिक अच्छी तरह समझती है.

सर्विस और विवाह हो जाने के बाद बच्चों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है और वे इसे अपने तरीके से जीना चाहते हैं. कई बार बच्चे वही कार्य कर रहे होते हैं जो आप को लेशमात्र भी पसंद नहीं. ऐसे में आप को सोचना होगा कि वे अब बच्चे नहीं रहे जो हर बात आप से पूछ कर करेंगे. वे आप को आज भी उतना ही पूछें और आप के अनुसार आज भी चलें, इस के लिए आप को स्वयं समझदारी से कोशिशें करनी होंगी.

रीमा की मां ने जब उसे 5 साडि़यां दिलाई तो उस ने दुकानदार से अपनी सास को दिखा कर फाइनल करने की बात कही. जब उस की सास ने साडि़यां देखीं तो बोलीं, ‘‘मुझे क्या दिखाना, तेरी पसंद ही मेरी पसंद है.’’

वे कहती हैं, ‘‘मेरी बहू ने इतने मन से खरीदी हैं, मैं क्यों उस के मन को मारूं. उस की पसंद ही मेरी पसंद है.’’

सास की जरा सी समझदारी से बहू भी खुश और सास का मान भी रह गया.

आप बच्चों का सहारा बनें, न कि मुसीबत. आप का व्यवहार बच्चों के प्रति ऐसा हो कि वे सदैव आप को अपने पास बुलाने के लिए लालायित रहें, न कि आप के आने की बात सुन कर अपना सिर पकड़ कर बैठ जाएं. आप की और उन की भावनात्मक बौंडिंग इतनी मजबूत हो कि आप के बिना वे स्वयं को अपूर्ण अनुभव करें. इस के लिए आप को कोई बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना है, उन पर विश्वास रखना है और उन्हें जताना है कि आप के लिए वे कितना महत्त्व रखते हैं. यह भी कि पहले की ही भांति आज भी आप की दुनिया उन के आसपास की घूमती है.

बच्चों को अपना बनाएं

बच्चों के दुख, तकलीफ और विवशताओं को समझें. उन के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ आदि पर उन के पास जाएं. इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें उपहार दें. गरिमा की सास को जैसे ही पता चला कि उन की बहू गर्भवती है, वे तुरंत बहू के पास आ गई. उस का ध्यान रखने के साथसाथ उस का मनपसंद, स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन खिलातीं. गरिमा कहती है, ‘‘इतना ध्यान तो मेरी मां ने कभी नहीं रखा जितना कि मेरी सास रखती हैं.’’ आप के द्वारा की गई छोटीछोटी बातें बच्चों को खुश कर देती हैं.

ईगो को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं

हम आज तक किसी के सामने नहीं झुके तो अब इस उम्र में क्यों झुकें? हमें किसी की भी जरूरत नहीं है. हम अपने को नहीं बदल सकते. उन्हें जो करना हो, सो करें. ऐसी बातें कह कर बच्चों का दिल न दुखाएं. उन के सामने अपने ईगो को न रखें और न ही किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएं.

न दें छोटी छोटी बातों को तूल

बहू आप की पसंद की हो या बेटे की, अब वह आप के परिवार की एक सम्मानित सदस्य है. इसलिए कभी भी छोटीछोटी बातों को तूल न दें. आज की लड़कियां जींस, टौप, शौर्ट्स, स्कर्ट जैसे आधुनिक वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. आप का दायित्व है कि अपनी बहू के पहनावे पर कोई प्रतिबंध न लगाएं. वह जो पहनना चाहती है, पहनने दें. ताकि आप के रहने से वह किसी भी प्रकार का बंधन महसूस न करे. किसी भी मनचाही बात के न होने पर तुरंत सब के सामने प्रतिक्रिया देने के स्थान पर अकेले में बड़े ही प्यार और अपनेपन से समझाएं ताकि आप जो कहना चाह रही हैं, बहू उसे उसी रूप में समझ सके. बहू को इतना प्यार और अपनत्व दें कि वह खुद को कभी पराया न समझे और उसे मायके की अपेक्षा ससुराल में रहना अधिक भाए. बहू को बेटी समझें ही नहीं, उसे बेटी बना कर रखें.

न करें अनावश्यक टोकाटाकी

बच्चों के पास जा कर अनावश्यक टोकाटाकी न करें. उन के लिए नित नई समस्याएं खड़ी करने के स्थान पर उन का सहारा बनें. उन्हें इतना प्यार और अपनापन दें कि वे स्वयं आप के पास खिंचे चले आएं. उन्हें यह विश्वास हो कि कुछ भी और कैसी भी परिस्थिति हो, आप का संबल उन्हें अकेला नहीं होने देगा. आप ध्यान रखें, बच्चों की भी अपनी जिंदगी हैं और उन्हें इसी जिंदगी में जीना है.

न करें भेदभाव

कई मातापिता बच्चों में ही भेद करना प्रारंभ कर देते हैं. 2 बच्चों में से एक के पास अधिक रहेंगे, दूसरे के पास कम. इस से बच्चों में आपस में ही प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है. आप अपने सब बच्चों के पास जाएं और सब को भरपूर प्यार व अपनत्व दें, ताकि किसी को शिकायत का मौका न मिले. हां, किसी बच्चे को आप के सहारे की आवश्यकता है तो अवश्य उस के काम आएं. इस से बच्चों में भी परस्पर जुड़ाव होता है.

बच्चों को परस्पर जोड़ें

बच्चों का विवाह करने के साथ ही मातापिता का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं हो जाता. अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो जाने के बाद सभी बच्चे अपने परिवार के साथ अलगअलग रहने लगते हैं. अब उन्हें आपस में जोड़ने और परस्पर भरपूर प्यार बनाए रखने के लिए आप को मजबूत कड़ी की तरह कार्य करना होगा. नवीन साहब के 3 बेटों में से 2 विदेश में और एक दिल्ली में रहते हैं. जब भी उन के बेटे विदेश से आते हैं तो वे सब एक ही स्थान पर एकत्र हो जाते हैं. यही नहीं, सभी आपस में बात कर के एक ही समय पर आना सुनिश्चित भी करते हैं. वर्ष में कम से कम एक बार वे सब परिवार सहित एकसाथ होते ही हैं. इस से सभी में परस्पर प्यार और सौहार्द्र की भावना बनी रहती है. वरना, कुछ परिवारों में तो भाइयों के बच्चे एकदूसरे को पहचानते तक नहीं.

जब मैच के बीच में ही अंपायर ने काट दिए गावस्कर के बाल

क्रिकेट की दुनिया में कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जो लंबे समय तक याद रखी जाती हैं और यादगार बन जाती है. ऐसी ही एक घटना भारत-इंग्लैंड के मैच के वक्त देखने को मिली. इस मैच में अंपायर ने सुनील गावस्कर के बालों पर कैंची चला दी थी.

दरअसल यह बात 1974 की है. टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ ओल्ड ट्रैफर्ड में मैच खेल रही थी. सुनील गावस्कर भी इस मैच में खेल रहे थे. उन दिनों खिलाड़ी बल्लेबाजी करते क्त हेलमेट नहीं लगाते थे. सुनील पिच पर जमे थे और रन बरसा रहे थे.

मैदान में हल्की-हल्की हवा चल रही थी जिसके कारण बार बार उनके बाल उड़ रहे थे. वह बार-बार उनके माथे और आंखों पर आ रहे थे. चेहरे पर बाल आने से वह गेंद पर फोकस नहीं कर पा रहे थे. सुनील ने पहले तो कुछ गेंदें खेलीं. लेकिन जब ज्यादा दिक्कत होने लगी, तो उन्होंने यह बात अंपायर डिकी बर्ड को बताई.

फिर खुद ही उनसे अपने बाल काटने के लिए कहा. तब अंपायर डिकी बर्ड ने मैच के बीच में ही गावस्कर के बालों पर कैंची चलाई थी. तब जाकर उन्हें बल्लेबाजी करने में थोड़ी आसानी हुई थी. तो इस तरह से मैदान पर एक अंपायर ने टीम इंडिया के खिलाड़ी की मैदान पर ही हेयरकटिंग कर दी थी.

जुड़वा 2 : वरुण धवन के लिए देखी जा सकती है ये फिल्म

कई फिल्मकार व कलाकार सिक्वअल और रीमेक फिल्मों के खिलाफ हैं. फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ के बाद अब एक बार फिर यह बहस जोर पकड़ सकती है कि किसी भी सफल फिल्म का रीमेक नहीं बनना चाहिए. डेविड धवन 1997 की सफल फिल्म ‘जुड़वा’ का रीमेक ‘जुड़वा 2’ लेकर आए हैं. शायद फिल्म के निर्देशक डेविड धवन दर्शकों को बिना दिमाग वाला मानते हैं अथवा वह दर्शकों को संदेश देना चाहते हैं कि वह हास्य फिल्म देखने के लिए अपना दिमाग घर पर रखकर आएं. फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ को लोग महज वरुण धवन की वजह से ही देखना चाहेंगे. कम से कम ‘आंखें’’ या ‘राजा बाबू’ जैसी फिल्मों के फिल्मकार डेविड धवन से इस तरह की फिल्म की उम्मीद तो नहीं की जा सकती.

विदेश से मुंबई आ रहे तस्कर चार्ल्स (जाकिर) हवाई जहाज में बैठे बैठे मुंबई के व्यवसायी मल्होत्रा (सचिन खेड़ेकर) के साथ दोस्ती कर लेता है और अपने पास छिपाए हुए हीरे बड़ी चालाकी से मल्होत्रा की बैग में डाल देता है. एअरपोर्ट पर बाहर निकलते समय कस्टम आफिसर चार्ल्स को पूछताछ के लिए रोकते हैं, जबकि मल्होत्रा आराम से बाहर आ जाते हैं. मल्होत्रा सीधे अस्पताल पहुंचते है, जहां उनकी पत्नी अंकिता ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया है. डाक्टर बताता है कि एक कमजोर तो दूसरा ताकतवर है. जब यह दोनों नजदीक होंगे, तो दोनों एक ही तरह से प्रतिक्रिया देंगे. तभी अपना तस्करी का सामान लेने के लिए चार्ल्स अस्पताल पहुंचता है, पर तब तक मल्होत्रा ने कस्टम आफिसर और पुलिस को बुला रखा था.

खुद को बचाने के लिए चार्ल्स, मल्होत्रा के एक नवजात बच्चे को लेकर भागता है. उससे वह बच्चा रेलवे ट्रैक पर गिर जाता है. इस बच्चे को काशीबाई नामक महिला पाती है और वही उसे राजा (वरुण धवन) नाम देकर पालती है. इधर चार्ल्स को 22 साल की जेल हो जाती है. चार्ल्स की धमकी के चलते मल्होत्रा पूरे परिवार के साथ लंदन चले जाते हैं और अपने बचे हुए बेटे को प्रेम (वरुण धवन) नाम देते हैं.

यानी कि मुंबई में पल रहे राजा और लंदन में पल रहे प्रेम जुड़वा भाई हैं. कुछ समय बाद चार्ल्स के बेटे एलक्स से झगड़ा होने पर राजा भी अपने दोस्त नंदू (राजपाल यादव) के साथ जाली पासपोर्ट की मदद से लंदन पहुंच जाता है, जहां पुलिस अफसर संधू (पवन मल्होत्रा) उसकी खोज में है. यहां पर राजा को पिज्जा डिलीवरी करने का काम मिल जाता है. लंदन में राजा की जिंदगी में अलिस्का शेख (जैकलीन फर्नांडिस) आ जाती है. जबकि अलिस्का के पिता (अनुपम खेर) अपनी बेटी की शादी विक्रम मल्होत्रा के बेटे प्रेम से करना चाहते हैं.

उधर प्रेम को अपने साथ कालेज में पढ़ने वाली लड़की समारा (तापसी पन्नू) से प्यार हो गया है. पर अलिस्का से कभी प्रेम तो कभी राजा और समारा से कभी राजा और प्रेम मिलते हैं. परिणामतः गलतफहमी पैदा होती रहती है. इधर राजा जब किसी को पीटता है, तो डरपोक प्रेम भी किसी को पीट देता है. कई तरह की गलत फहमियों के बीच एक दिन राजा और प्रेम आमने सामने आ जाते हैं. फिर दोनों मिलकर अलिस्का और समारा की गलतफहमी को दूर करते हैं. चार्ल्स जेल से छूटकर लंदन पहुंचता है और विक्रम मल्होत्रा को धमकी देता है.

एक दिन चार्ल्स, विक्रम मल्होत्रा को मारने का प्रयास करता है, पर मल्होत्रा को बचाकर राजा अस्पताल पहुंचा देता है. वहीं पता चलता है कि एलेक्स भी उसी अस्पताल में है. कुछ दिन में एलेक्स को होश आता है. एलेक्स, राजा को पीटते हुए अपने पिता चार्ल्स के पास लेकर पहुंचता है. जहां चार्ल्स उससे कहता है कि वह मल्होत्रा को लेकर आए और अपने दोस्त नंदू को ले जाए. राजा, मल्होत्रा के घर पहुंचता है, जहां प्रेम मिलता है. फिर यह राज खुलता है कि राजा और प्रेम जुड़वा हैं. उसके बाद मारधाड़ होती है. चार्ल्स व एलेक्स मारे जाते हैं. राजा और प्रेम को उनकी प्रेमिकाएं मिल जाती हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो वरुण धवन एक बार फिर खुद को बेहतरीन अभिनेता साबित करने में सफल हुए हैं. वरुण धवन के प्रशंसक निराश नहीं होंगे. वरुण ने 1997 की फिल्म ‘जुड़वा’ में सलमान खान के अभिनय के साथ कदम ताल मिलाकर उन्हे ट्रिब्यूट देने का सफल प्रयास किया है. फिल्म पूरी तरह से वरुण धवन की फिल्म है. जैकलीन फर्नांडिस ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर इस फिल्म में तापसी पन्नू निराश करती हैं. उन्हे हास्य भूमिकाओं में खुद को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

फिल्म की शुरुआत ठीक ठाक है. लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म बिखर जाती हैं. फिल्म में विलेन का होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता. हास्य के नाम पर फूहड़ता परोसी गयी है. घटिया व घिसे पिटे जोक्स का सहारा लेकर लोगों को हंसाने का असफल प्रयास है. फिल्म में इमोशन का घोर अभाव है. महज हास्य पैदा करने के लिए अफ्रीकन के कुछ सीन भी रखे गए हैं, जो कि पैबंद लगाते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया है. फिल्म के अंत में जुड़वा सलमान खान के आने से फिल्म के स्तर में बढ़ोतरी होने की बजाय पतन ही होता है. इसके लिए लेखक व निर्देशक पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.

फिल्म का गीत संगीत साधारण है. ‘ऊंची है बिल्डिंग’ और ‘तन तना तन’ गाने जरुर आकर्षित करते हैं. दो घंटे 40 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ का निर्माण नाड़ियादवाला ग्रैंड संस इंटरटनमेंट के बैनर तले साजिद नाड़ियादवाला ने किया है. फिल्म के निर्देशक डेविड धवन, पटकथा लेखक युनुस सजावल, संवाद लेखक साजिद फरहाद, कैमरामैन अयंका बोस, संगीतकार अनू मलिक तथा कलाकार हैं-वरुण धवन, जैकलीन फर्नाडिस, तापसी पन्नू, सचिन खेड़ेकर, पवन मल्होत्रा, अनुपम खेर, उपासना सिंह, अली असगर, विवान भटेना, विकास वर्मा व अन्य.

इस फोन और ऐप का करेंगे इस्तेमाल तो आसपास नहीं भटकेंगे मच्छर

अगर आपको मच्छर अगरबत्ती के धुएं से एलर्जी है या लिक्विड की गंध से दिक्क्त है तो मच्छरों को भगाने का जिम्मा अपने स्मार्टफोन पर छोड़ दें. आज की दुनिया में तकनीक इतना तरक्की कर चुका है कि महज एक स्मार्टफोन या ऐप से आप मच्छर को भगा सकते हैं. आपको केवल एक स्मार्टफोन खरीदना होगा या फिर अपने गूगल प्ले स्टोर पर जाकर अपनी पसंद का एक एंटी मौस्किटो रीपलेंट एप डाउन लोड कर सोते समय इसे औन करना होगा.

एंड्रायड फोन के लिए ऐसे कई ऐप्स उपलब्ध हैं जो मच्छरों को पास भटकने नहीं देते. बहुत कम स्पेस घेरने वाले ये ऐप्लीकेशन औफलाइन काम करते हैं. एक बार औन करने पर इनसे निकलने वालीं ध्वनि तरंगें मच्छरों और मक्खियों को भागने पर मजबूर कर देती हैं. सबसे खास बात ये है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और न ही कोई खर्चा.

सिर्फ ऐप ही नहीं LG ने एक नया स्मार्टफोन K7i पेश कर दिया है जो मच्छरों को आपके आसपास फटकने नहीं देता. एलजी इलेक्ट्रोनिक्स इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि इस फोन में मच्छर भगाने वाली टेक्नोलाजी है जो कि हमारे कुछ टीवी और एसी में पहले से ही आ रही है. कंपनी इस फोन के प्रति ग्राहकों के रुख के मुताबिक अपने बाकी स्मार्टफोन्स में इसे शामिल करने के बारे में फैसला करेगी.

उन्होंने कहा कि इस टेक्नोलाजी में अल्ट्रासोनिक फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल होता है जो कि इंसानो के लिए सुरक्षित है लेकिन मच्छरों को दूर भगाती है. उन्होंने दावा किया कि इसका दायरा लगभग एक मीटर का है और इसमें कोई हानिकारक एमीशन नहीं होता.

कंपनी के इस k7i स्मार्टफोन की कीमत 7,990 रुपये है. इसमें 2GB रैम, 16GB इंटरनल स्टोरेज दिया गया है. इसमें 8 मेगापिक्सल रियर कैमरा और 5 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा मौजूद है. साथ ही पावर के लिए इसमें 2500mAh की बैटरी दी गई है.

यह फोन क्वाड कोर प्रोसेसर पर काम करता है.  इससे पहले LG ने स्मार्टफोन LG V30 लान्च किया है. इसे बर्लिन में चल रहे IFA 2017 इवेंट में लान्च किया गया है. LG V30 में 6 इंच की डिस्प्ले दी गई है. इसके अलावा इस स्मार्टफोन में कंपनी ने Bang & Olufsen  आडियो फीचर दिया है.

अब इस भारतीय क्रिकेटर के नाम पर अमेरिका में खोला गया स्टेडियम

क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट बल्लेबाजों में शुमार किए जाने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान और सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर की उपलब्धियों में एक और अध्याय जुड़ गया है. अमेरिका के केंटकी में बन एक क्रिकेट स्टेडियम का नाम इस महान भारतीय बल्लेबाज के नाम पर “सुनील गावस्कर फील्ड” रखा गया है.

लुईसविले में स्थित इस स्टेडियम से पहले मुंबई के  वानखड़े स्टेडियम में “लिटिल मास्टर” के नाम से मशहूर गावस्कर के नाम पर दर्श दीर्घा का नाम रखा गया था. एक रिपोर्ट के अनुसार गावस्कर ऐसे तीसरे क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिसके नाम पर पूरे स्टेडियम का नाम रखा गया है. रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले एंटीगुआ में सर विवियन रिचर्ड्स के नाम पर और सेंट लूसिया में डैरेन सैमी के नाम पर नेशन क्रिकेटर स्टेडियम का नाम रखा गया था. हालांकि रिचर्ड्स और सैमी के नाम पर उनके अपने देश में स्टेडियम बने जबकि गावस्कर के नाम पर विदेश में.

गावस्कर ने इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए रिपोर्ट में कहा, “ये बहुत ही सम्मान की बात है और खासकर ऐसे देश में जहां क्रिकेट प्रमुख खेल नहीं.” भारत में क्रिकेट स्टेडियम के नाम नेताओं के नाम पर रखने के सवाल पर गावस्कर ने कहा कि खिलाड़ियों के अलावा भी खेलों के विकास और बेहतरी के लिए बहुत से लोग काम करते हैं और उनके नाम पर स्टेडियम के नाम रखे जा सकते हैं. हालांकि गावस्कर ने ये भी कहा कि आदर्श तौर पर खेल के मैदानों के नाम उन्हीं लोगों के नाम पर रखे जाने चाहिए जिन्होंने उसमें योगदान दिया है.

गावस्कर ने अपने क्रिकेट करियर में 125 टेस्ट मैचों की 214 पारियों में 34 शतक और 45 अर्ध-शतकों की मदद से कुल 10122 रन बनाए. उनका औसत 51.12 रहा. उनका अधिकतम स्कोर नाबाद 236 रन रहा. गावस्कर ने टेस्ट की तुलना में वनडे मैच कम खेले. उन्होंने कुल 108 वनडे मैच खेले जिनकी 102 पारियों में 3092 रन बनाए. वनडे में उनका बल्लेबाजी औसत 35.12 रहा. वनडे में उनका अधिकतम स्कोर नाबाद 103 रहा. वनडे मैचों में गावस्कर ने एक शतक और 27 अर्ध-शतक बनाए.

अंधश्रद्धा की ओर तेजी से दौड़ रहा देश, ये है धर्म के पाखंडियों का नया शगूफा

रात को सोती महिलाओं की चोटियां किसी परलौकिकता के कारण काट लेने पर कुछ लिखना व कहना बेकार है. 21वीं सदी में भी यह देश उलटा जा रहा है और तर्क, वैज्ञानिकता, स्वाभाविकता, संभव के सत्य को गहरे गड्ढे में फेंक कर छद्म इतिहास, चमत्कारों, अंधविश्वासों, पूजापाठों, हवनों, दानपुण्य में भारी विश्वास कर रहा है.

आदिम युग में भी आदमी तर्क और उपलब्ध जानकारी के अनुसार जीवित रहा है और उसी आधार पर उस ने अपने खाने का जुगाड़ किया, जानवरों से सुरक्षा की और प्रकृति का मुकाबला किया. आज समझदारी को छोड़ कर पूरा देश, राष्ट्रपति से ले कर अनपढ़, दलित तक एक लहर में डूब रहा है जिस में विज्ञान और तर्क की गुंजाइश ही नहीं.

चोटी काटने का मामला गणेश को दूध पिलाने की तरह है, जिस के पागलपन में हजारोंलाखों लोगों को बहकाया जा सकता है. खिलंदरी को दुष्ट आत्मा का नाम दे कर धर्म के दुकानदारों ने हवन, पूजापाठ, मंत्रजंतर का उपाय बताया और अपना उल्लू सीधा कर लिया. हैरानी की बात तो यह है कि देश की उच्चशिक्षित जनता भी इस का शिकार है.

जहां चंद्रयान भेजने वाला इसरो का मुख्य अधिकारी तिरुपति का आशीर्वाद मांगने जाए, जहां गणेश के सिर की तुलना आधुनिक सर्जरी कला से की जाए, जहां लंबे पुलों का निर्माण वास्तु के आधार पर और

2 करोड़ रुपए की गाड़ी की सुरक्षा के लिए लालकाले कपड़े टंगे हों, वहां चोटी काटने की घटनाओं पर क्या आश्चर्य किया जा सकता है.

यह देश अंधश्रद्धा की ओर तेजी से दौड़ रहा है. इस बार कांवडि़यों को आदेश दिया गया कि वे भगवे तिकोने झंडे न फहराएं, तिरंगा राष्ट्रीयध्वज फहराएं यानी यह घोषित कर दिया गया है कि भारत इसलामिक स्टेट के काले झंडे वाला नहीं, तिरंगे झंडे वाला भगवा देश है. इस देश में कोई भी अगर भगवा से भिन्न विचार रखता है, तो वह देशद्रोही है.

ऐसे वातावरण में चोटी काटने पर उन्माद फैलाने का काम बहुत कारगर होता है. इस के नाम पर हवनकर्ताओं की बन आती है और इस में मंदिरों के दुकानदार ही सब से आगे होते हैं. ये पाखंड और अंधविश्वास ही राजनीति को आज विटामिन दे रहे हैं. गौरक्षा का एक रूप ही चोटी काटना है, जिस के चलते किसी निरीह महिला के नाम पर गलीगली, गांवगांव में आतंक का वातावरण फैलाया जा रहा है. यह जनता के प्रति द्रोेह है जबकि इसे राष्ट्रभक्ति, देशभक्ति, धर्मभक्ति के सुनहरे वरकों में लपेट कर प्रस्तुत किया जा रहा है. नतीजा अंधविश्वास और पक्की सरकार दोनों हैं.

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