Download App

पाकिस्तान में फिर तूल पकड़ेगा राजनीतिक हलकों में भ्रष्टाचार का मामला

कराची में सिंध हाईकोर्ट के बाहर अजीबोगरीब नजारा दिखा, जब नेशनल अकाउंटबिलिटी ब्यूरो के लोग सिंध के भूतपूर्व सूचना मंत्री शरजील मेमन की धर-पकड़ में मशक्कत करते दिखाई दिए और यह सब टीवी पर फ्लैश होता रहा. पीपीपी नेता मेमन को 11 अन्य लोगों के साथ सार्वजनिक निधियों में पांच अरब के घोटाले में गिरफ्तार किया गया है. इस हाई प्रोफाइल गिरफ्तारी ने जवाबदेही तय किए जाने के मामलों को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. माना जा रहा है कि इससे राजनीतिक हलकों में भ्रष्टाचार का मामला एक बार फिर तूल पकड़ेगा.

पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो ने इस मामले में कानून के मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया है. हालांकि ऐसे आरोपों पर सवाल करने की पूरी गुंजाइश है. सवाल उठता है कि अपनी सुविधा से मामलों की गंभीरता और उन पर कार्रवाई को अलग करके आंकना कितना उचित है? तब तो और भी नहीं, जब नेशनल काउंटबिलिटी ब्यूरो का प्रमुख आम सहमति से चुना गया हो और इस सहमति में पीपीपी भी साझीदार हो. उचित तो यही होगा कि पीपीपी इस मामले की जांच प्रक्रिया में सहयोग करे और मेमन सहित अन्य अभियुक्त खुद को अदालत में बेगुनाह साबित करें. ऐसे समय में, जब भ्रष्टाचार के मामले में देश की छवि पूरे विश्व में बहुत ज्यादा खराब हो, पाकिस्तान की प्रगति के लिए देश में जवाबदेही तय होना अब बहुत जरूरी है.

सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक भ्रष्टाचार विकास में बाधक होता है और इससे जनता का भी सिस्टम पर भरोसा टूटता है. सच तो यह है कि पारदर्शिता का दूसरा कोई विकल्प नहीं और घूसखोरी-दलाली खत्म करने का यही पहला और प्रमुख जरिया है.

दुर्भाग्य से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार विरोधी हर प्रयास का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने में होता आया है. पार्टियां इसे पालती-पोसती रही हैं. निर्वाचित लोगों को तो खुद को सार्वजनिक जांच के लिए हमेशा प्रस्तुत रखना चाहिए, खासकर जहां मामला वित्तीय अराजकता का हो. यह सही है कि जवाबदेही का मामला सिर्फ सियासी दलों तक नहीं, सेना, नौकरशाही न्यायपालिका सहित तमाम सरकारी संस्थाओं तक भी आना चाहिए.

अतिथि शिक्षकों पर एलजी और दिल्ली सरकार के बीच ठनी

अतिथि शिक्षकों के मामले पर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल अनिल बैजल में टकराव बढ़ गया है. उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के पत्र के जवाब में बैजल ने कहा कि ‘आप’ सरकार अतिथि शिक्षकों की भर्ती और उन्हें पक्का किए जाने पर सिर्फ दिखावा कर रही है. सरकार ने मामले में दो महीने से कोई सार्थक कदम नहीं उठाए हैं.

बैजल ने कहा कि दिल्ली सरकार को इस बाबत विधि विभाग से परामर्श करने की सलाह भी दी थी, लेकिन इस पर कोई पहल नहीं की गई. उप मुख्यमंत्री सिसोदिया ने अपने पत्र में बैजल से अतिथि शिक्षकों से संबंधित विधेयक को पास करने की गुहार लगाई है.

इस पर उपराज्यपाल ने कहा कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस ऑफ दि गवर्मेट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरीटरी रुल्स, 1993 के तहत विधेयक को अपेक्षित प्रतिवेदनों सहित उनके सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया गया है. इसलिए यह कहना गलत है कि विधेयक उपराज्यपाल के पास लंबित है.

‘विधेयक असंवैधानिक’

बैजल ने कहा कि विधेयक को पेश करने के फैसले पर पुनर्विचार करने के बारे में दी गई सलाह के बावजूद बिल को विधानसभा में पारित किया गया, जबकि उक्त विधेयक संवैधानिक नहीं था. उन्होंने दिल्ली सरकार को नसीहत दी कि इस समस्या का निवारण केवल कानून, नियम व प्रक्रियाओं का पालन करके ही किया जा सकता है. सार्वजनिक दिखावे से यह संभव नहीं है. उपराज्यपाल अनिल बैजल ने बताया कि मामले में 10 अगस्त, 14 सितंबर व 26 सितंबर को सरकार को सलाह भेजी गई थी. दो महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी अब तक इस पर अमल नहीं हुआ.

मुख्य सचिव ने विधेयक नहीं दिखाया : मनीष

उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उप राज्यपाल को लिखे पत्र में मांग की कि अतिथि शिक्षकों से संबंधित विधेयक को मंजूरी दी जाए, जिससे इन्हें राहत मिल सके. सिसोदिया ने लिखा है कि उक्त विधेयक मुख्य सचिव के माध्यम से उप राज्यपाल को भेजा गया है. मुख्य सचिव ने इस विधेयक को कानून व शिक्षा मंत्री की दिखाया ही नहीं. अतिथि शिक्षकों की समस्या का रास्ता निकाले बिना ही उक्त विधेयक राजनिवास भेज दिया गया. जब उन्होंने संबंधित विभाग से जानकारी मांगी तो उन्हें बताया गया कि उक्त फाइल को नहीं दिखाए जाने के आदेश जारी किए गए हैं.

‘सरकार की प्राथमिकता में शामिल है शिक्षा’

एलजी को भेजे पत्र में सिसोदिया ने लिखा है कि दिल्ली में शिक्षा सरकार की प्राथमिकता रही है. इस पर काम करते हुए शिक्षा क्षेत्र में कई सुधार किए गए हैं. एलजी को लिखे पत्र में कहा गया है कि सरकार ने बीते वर्षो में जो काम किया है, उसे बर्बाद न करें. मामले में निर्णय का असर केवल 15 हजार अतिथि शिक्षकों पर नहीं, बल्कि सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे 16 लाख बच्चों के भविष्य पर भी होगा.

‘आप’ की याचिका पर कोर्ट ने आश्चर्य जताया

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को सरकार की उस याचिका पर आश्चर्य जताया, जिसमें अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पर लगी रोक हटाने की मांग की गई थी. हाईकोर्ट ने कहा कि मामले पर तस्वीर साफ नहीं है, जो कुछ भी हो रहा है, वह अजीब है. जस्टिस एकके चावला की पीठ ने कहा कि हमें इस बात पर हैरानी है कि दिल्ली सरकार आखिर उस रास्ते पर क्यों जाना चाहती है. वह अभी भी अपने तरीके से चलना चाहते हैं, चाहे वह कानून सम्मत हो या नहीं. सरकार की याचिका में अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया और वर्ष 2010 के बाद स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों की पदोन्नति पर 27 सितंबर को लगाई गई रोक हटाने की मांग की गई है. अगली सुनवाई 9 को होगी.

कभी नहीं मिला इन बौलर्स को वो ओहदा जिसके वो हकदार थे

दुनिया में जब भी स्पिन गेंदबाजों का नाम लिया जाता है तो मुथैया मुरलीधरन, शेन वौर्न या अनिल कुंबले का जिक्र होता है. लेकिन कई ऐसे स्पिन गेंदबाज भी थे, जिनकी अंगुलियों में गेंद को टर्न कराने की गजब की क्षमता होते हुए भी वह ओहदा नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे.

आज बात करेंगे ऐसे ही खिलाड़ियों की, जिन्होंने टीम को कई बार मुश्किलों से उबारा, लेकिन क्रिकेट इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में कभी नहीं लिखा गया.

पौल स्टैंग

मौजूदा टीम से उलट साल 1990 और 2000 में जिम्बाब्वे एक मजबूत टीम मानी जाती थी. इसी टीम का अहम हिस्सा थे लेग स्पिनर पौल स्टैंग. अच्छे एक्शन वाले स्टैंग की गेंदें काफी स्विंग होती थीं, जिस वजह से उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों में विकेट झटके. लेकिन फिर भी उन्हें 119 अंतरराष्ट्रीय मैचों में खेलने का ही मौका मिला. 24 टेस्ट मैचों में उन्होंने 70 विकेट झटके. जबकि 95 वनडे मैचों में उन्होंने 96 विकेट लिए.

डैनियल विटोरी

साल 2000 के अंत में इस खिलाड़ी ने अकेले ही पूरी न्यूजीलैंड टीम का कायाकल्प बदल दिया था. यूं तो न्यूजीलैंड की पिचों को तेज कहा जाता है, लेकिन विटोरी की गेंदों ने वहां भी कहर बरपाया है. 34.36 की औसत से 113 टेस्ट मैचों में उन्होंने 362 विकेट लिए हैं. जबकि 295 वनडे मैचों में उनके नाम 305 विकेट हैं. 34 टी20 मैचों में उन्होंने 38 विकेट लिए हैं.

स्टुअर्ट मैकगिल

जब यह खिलाड़ी औस्ट्रेलियाई टीम में था तो उन वक्त शेन वौर्न का रुतबा अलग ही था. इसी वजह से उन्हें ज्यादा क्रिकेट खेलने का मौका मिला ही नहीं. कंगारू टीम के लिए कुल मिलाकर 47 अंतरराष्ट्रीय मैच (टेस्ट और वनडे) खेलने वाले मैकगिल ने 2003 में शेन वौर्न पर बैन लगने के बाद उनकी जगह को भरने की पूरी कोशिश की. 44 मैचों में उन्होंने 29.02 की औसत से 208 विकेट झटके थे.

ग्रीम स्वान

आधुनिक क्रिकेट में सबसे कमतर खिलाड़ियों में आंके जाने वाले ग्रीन स्वान ने अपने करियर के दौरान इंग्लैंड क्रिकेट टीम को बुलंदियों पर पहुंचाया. 2010 के आईसीसी टी20 क्रिकेट विश्व कप में उन्होंने कैरिबियाई पिचों में जमकर धमाल मचाया था. इस टूर्नामेंट में वह पांचवे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी थे. इसी प्रदर्शन की बदौलत इंग्लैंड ने यह टूर्नामेंट जीता था.

दीपिका के इस किरदार को फिर परदे पर उतारना चाहती हैं कृति खरबंदा

आमतौर पर बौलीवुड में एक कलाकार दूसरे कलाकार की अभिनय प्रतिभा के चलते उसका प्रशंसक बनता है.

कृति खरबंदा भी अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की बहुत बड़ी फैन हैं. मगर इसकी वजह अलग है. इतना ही नहीं कृति खरबंदा, दीपिका पादुकेाण के एक खास किरदार को परदे पर उतारना चाहती हैं.

इसकी चर्चा करते हुए कृति खरबंदा ने हमसे कहा- ‘‘यह सच है कि मैं इन दिनों दीपिका पादुकोण की प्रशंसा करती रहती हूं. इसकी वजह यह है कि उन्होंने ऐसे मुद्दे पर बात की, जिस पर लोग बात नहीं करना पसंद करते. यूं तो मैं उनकी अभिनय की प्रशंसक हूं, पर जब दीपिका पादुकोण ने आगे बढ़कर अपने डिप्रेशन की बात की और डिप्रेशन से गुजर रहे लोगों की मदद के लिए काम करना शुरू किया, तो मैं उनकी इस बात के लिए काफी प्रशंसक बन गयी, क्योंकि इस मसले पर बात करना यानी कि रस्सी पर चलने के बराबर है. पर उन्होंने इसे बहुत सकारात्मक ढंग से लिया.

यदि आप मुझसे पूछे कि मैं दीपिका पादुकोण के किस किरदार को पुनः रचना चाहूंगी, तो मेरा जवाब होगा कि उनकी निजी जिंदगी के डिप्रेशन की बात को स्वीकार करने वाले पक्ष को पुनः परदे पर अपने अभिनय से संवारना चाहूंगी. मैं तो उन किरदारों को भी निभाना चाहती हूं, जो कि दूसरों की मदद कर रहे हों, दूसरों की जिंदगी संवार रहे हों.’’

जब अमिताभ के लिए डांस करने से मना कर सेट छोड़ चले गए थे प्राण

गंभीर आवाज में ‘बरखुरदार’ कहने का वो खास अंदाज भला कौन नहीं पहचानेगा. वह अभिनेता प्राण साहब या प्राण सिकंद हैं, जो अपने बेमिसाल अभिनय से हर किरदार में प्राण डाल देते थे.

फिर चाहे वह ‘उपकार’ में अपाहिज का किरदार हो या ‘जंजीर’ में अक्खड़ पठान का. प्राण ऐसे एक्टर थे जिनका चेहरा हर किरदार को निभाते हुए यह अहसास छोड़ जाता था कि उनके बिना इस किरदार की पहचान मिथ्या है.

साल 1973 में आई डायरेक्टर प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर सुपरहिट साबित हुई थी. इस फिल्म से किसी को उम्मीद नहीं थी, लेकिन फिल्म ने रिलीज होते ही कई रिकौर्ड अपने नाम कर लिए थे. इस फिल्म में प्राण और अमिताभ की दोस्ती को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया था.

जंजीर के बाद भी अमिताभ और प्राण कई फिल्मों में एक साथ नजर आए. शराबी और अमर अकबर एंथनी जैसी फिल्मों में तो प्राण ने अमिताभ के पिता का किरदार भी निभाया था. रील लाइफ में साथ-साथ कई फिल्म करने के बाद ये दोनों रियल लाइफ में भी काफी अच्छे दोस्त बन गए थे.

लेकिन क्या आप जानते हैं जंजीर फिल्म की शूटिंग के दौरान प्राण अमिताभ बच्चन के लिए ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’ गाना को शूट नहीं करना चाहते थे. फिल्म में प्राण ने एक पठान का किरदार निभाया था. जिसे इस गाने पर डांस करना होता है. लेकिन प्राण ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थे.

प्राण नहीं चाहते थे कि वो किसी नए स्टार के लिए डांस करें. इसके साथ ही वो फिल्मों में डांस करने से अक्सर बचने की कोशिश भी किया करते थे. जब इस गाने की शूटिंग हो रही थी तो प्राण सेट छोड़कर चले गए.

जिसके बाद फिल्म के डायरेक्टर प्रकाश मेहरा उन्हें मनाकर वापस लाए थे. प्रकाश ने प्राण से कहा तुम्हारे बिना मैं ये फिल्म नहीं बना सकता. अमिताभ बिल्कुल नया है, वो अपने दम पर फिल्म नहीं चला पाएगा.

इससे पहले अमिताभ की कई फिल्में फ्लौप हो चुकी थी. यही वजह थी प्रकाश मेहरा कोई चांस नहीं लेना चाहते थे. खैर, प्राण मान गए और फिर गाने की शूटिंग को पूरा किया गया. फिल्म रिलीज होने के साथ ही हिट हो गई और दोस्ती के ऊपर फिल्माए गए इस गाने की भी खूब तारीफ हुई. इस गाने ने काफी दिनों तक लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता को बनाए रखा.

प्राण साहब का नाम लेते ही जहन में एक अजीब सी छवि आने लगती है क्योंकि प्राण साहब ने आधिकाधिक फिल्मों में निगेटिव किरदार निभाय़ा था, लेकिन असल जीवन में प्राण साहब का व्यक्तित्व बहुत ही सादगी भरा था.

प्रेम और रोमांस हैं एक ही सिक्के के दो पहलू, इसे कुछ ऐसे समझिए

रोमांस का मतलब केवल प्यारमुहब्बत और दैहिक सुख ही प्राप्त करना नहीं है, बल्कि रोमांस का अर्थ है दो युवा दिलों का एकसाथ धड़कना, एकदूसरे की भावनाओं को समझना. जिस प्रेम में निष्ठा हो उस में ही रोमांस प्राप्त होता है. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए निष्ठा व प्रेम जरूरी हैं. कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य में तभी कामयाबी पाता है जब उस के मन में कुछ कर पाने की इच्छा और लगन होती है.

रोमांस यानी अपने प्यार को दिलोजान से पाने का एहसास. कोई ऐसा साथी मिले, जो प्यारी सी मीठी बातें या फिर छेड़छाड़ करे जो तनमन में स्पंदन जगा कर रोमरोम को पुलकित कर दे यानी रोमांस एक खूबसूरत एहसास भर देता है.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत सुजाता का मानना है कि रोमांस के बिना जिंदगी अधूरी होती है. मैं नहीं जानती कि रोमांस की उत्पत्ति कब और कहां से हुई, पर मैं इतना जरूर कहूंगी कि रोमांस अपने प्यार के प्रति दीवानगी को बढ़ाता है.

आकर्षण है रोमांस

एक महिला सामाजिक संगठन से जुड़ी जया की मानें तो रोमांस ऐसा आकर्षण है जो अपने प्रिय को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो कम समय में ही अपने प्यार को सम्मोहन में जकड़ लेता है.

अकेलेपन की स्थिति में रोमांस जीवन में रंग भरने का काम करता है. एकदूसरे का सामीप्य रोमांस की संभावनाओं को और बढ़ा देता है. रोमांस के बिना लाइफ में सबकुछ अधूराअधूरा सा लगता है.

सिक्के के दो पहलू

प्रेम और रोमांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. एक निजी स्कूल संचालिका गीता का कहना है, ‘‘रोमांस के बिना प्यार संभव ही नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही व्यक्ति को प्यार की राह पर आगे बढ़ने को मजबूर करते हैं.

‘‘प्यार अगर मंजिल है तो रोमांस उस तक पहुंचने का रास्ता है. बिना रामांस के प्यार को परवान तक पहुंचा पाना मुश्किल होता है. रोमांस प्रेम में तभी बदलता है जब एकदूसरे के प्रति रोमांस के भाव उत्पन्न हों. हम यह कह सकते हैं कि रोमांस दो प्रेम पथिकों को एकदूसरे से जोड़ने का सरल व सुंदर माध्यम है.’’

उत्साह है जरूरी

रोमांस में उत्साह का होना बहुत जरूरी है. बिना उत्साह के इस का रसपान करना संभव नहीं है. उत्साह ही रोमांस को जोशीला बनाता है, तनमन की गहराइयों का एहसास कराता है. सुरेश और संगीता अपने रोमांस को ले कर काफी उत्साहित थे. इसीलिए आज वे दोनों रोमांस करने के बाद, अच्छे साथी बन कर एक सफल गृहस्थ बन जीवनयापन कर रहे हैं.

वास्तविक प्रेम

प्रेम और रोमांस में वास्तविकता होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में खुशबू है और खुशबू की तरह प्रेम को भी छिपाया नहीं जा सकता. दो युवा दिल अपने बदन की खुशबू को बखूबी पहचानते हैं, महसूस करते हैं. खुशबूरूपी वास्तविकता प्यार में ताजगी बनाए रखती है. इसलिए प्रेम में वास्तविकता संजीवनी का काम करती है. फिर कहा भी जाता है कि प्रेम में अमीरीगरीबी नहीं देखी जाती.

स्पंदन का एहसास

डा. सुरेंद्र सरदाना का कहना है, ‘‘रोमांस एक एहसास है, जिस की गहराई महसूस की जा सकती है. अपने चाहने वाले के लिए जिस प्रकार दिल की धड़कनें रुकने का नाम नहीं लेतीं, ठीक उसी प्रकार प्यार में रोमांस के बिना मजा किरकिरा हो जाता है. किसी अपने चहेते, जो दिल ही दिल आप को चाहता है, उस से मिलने की इच्छा तीव्र हो जाती है. प्रिय से निगाहें मिलने पर तनमन में स्पंदन सा महसूस होता है और तब प्यार के सागर में डुबकी लगाने को मन करता है. यही तो है रोमांस आप का. रोमांस तभी आनंदित करता है, जब उस में एकदूसरे का एहसास हो.’’

कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि प्रेम और रोमांस एक सिक्के के दो पहलू हैं. प्रेम के बिना रोमांस अधूरा है. रोमांस दो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. रोमांस का भाव स्थायी नहीं, संचारी होता है, क्योंकि यह प्रेमियों के तनमन में संचारित होता रहता है.

प्यार न हो कम

लड़कियां जब प्यार करती हैं तो अपने प्रेमी के सिवा कुछ सोचना नहीं चाहतीं, जबकि लड़के कुछ पर्सनल स्पेस चाहते हैं. सो, उन्हें स्पेस देती रहें. इस से आप में उन की दिलचस्पी बनी रहेगी और वे ज्यादा खुश रहेंगे.

हर लड़का चाहता है कि उसे वह इज्जत मिले जिस के लिए वह डिजर्व करता है. यह इज्जत तब और भी खास हो जाती है जब अपने चाहने वाले से मिले. अगर आप उसे इज्जत नहीं देंगी तो वह रिश्ते को कहीं न कहीं बोझ समझने लगेगा.

प्यार में उत्साह बनाए रखना जरूरी है. इस के लिए रोमांस के नएनए तरीके, शरारत, अदाओं को करने में कोई कसर न छोड़ें.

पने वर्तमान की तुलना कभी भी अतीत से न करें.

पार्टनर से कुछ पाने की चाहत रखने के बजाय उसे कुछ देने पर ध्यान दें, चाहे वह छोटा सा गुलाब हो.

कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता पर अपने पार्टनर को अपने लिए हमेशा परफैक्ट मानें.

पार्टनर को रोमांस के मामले में सौफ्टली हैंडल करें. रोमांस करने में उसे कुछ भय है तो प्यार, मनुहार और फोरप्ले द्वारा उसे तैयार करें. तभी आप दोनों रोमांस के पलों का आंनद उठा पाएंगे.

जब आप की रूममेट बीमार हो जाए तो आप क्या करेंगी?

यदि आप होस्टल में रह कर पढ़ रही हैं तो आप की रूममेट भी अवश्य होगी. क्योंकि आमतौर पर एक रूम में 2 स्टूडैंट्स के रहने की व्यवस्था होती है. कुछ ही दिनों में आप की रूममेट आप की दोस्त बन जाती है और आप एकदूसरे से अपनी पर्सनल बातें भी शेयर करने लगती हैं. लेकिन जब आप की रूममेट बीमार हो जाए तो आप क्या करेंगी? क्या उसे अपने हाल पर छोड़ देंगी या फिर उस की देखभाल अपनी बहन की भांति कर अपना फर्ज निभाएंगी?

रूममेट से आप का खून का रिश्ता भले ही न हो और हो सकता है कि वह आप की जाति, धर्म की भी न हो, लेकिन जब एक छत के नीचे रहना मजबूरी हो, तो दोनों को एकदूसरे को स्वीकार करते हुए अपने सुखदुख साझा करने चाहिए.

प्राय: देखा गया है कि जब आप की रूममेट बीमार होती है तो आप उस की तीमारदारी करने के बजाय कोई न कोई बहाना बना कर कन्नी काट लेती हैं, जो ठीक नहीं है, क्योंकि कभी आप की तबीयत भी बिगड़ सकती है. ऐसे में वह भी आप के साथ ऐसा व्यवहार करे तो आप को कैसा लगेगा? सच्चा मित्र वही है जो बीमारी या विपत्ति के समय काम आए. अत: सुख के ही नहीं, दुख के भी साथी बनें.

यदि आप की रूममेट बीमार है और डाक्टर ने उसे आराम करने को कहा है तो इस का मतलब यह नहीं कि आप उसे देख नाकभौं सिकोड़ने लगें या यह आशंका पाल लें कि कहीं वह बीमारी आप को तो नहीं लग जाएगी?

जो बीमारी संक्रामक नहीं है, वह भला आप को कैसे लग सकती है? यदि संक्रामक हुई भी, तो सावधानी और सतर्कता बरतते हुए उसी कमरे में रहते हुए उस की सेवा कर सकती हैं. कम से कम समय पर दवा तो दे ही सकती हैं और उस के खानेपीने का इंतजाम कर सकती हैं. यदि रूममेट की बीमारी की वजह से आप को थोड़ा अधिक काम करना भी पड़े, तो करने में कोई बुराई नहीं है.

यदि आप की रूममेट अपनी किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या का जिक्र आप से करती है तो आप होस्टल की वार्डन या अधीक्षक को इस संबंध में बताएं. वे किसी योग्य डाक्टर को बुलवाएंगे या उसे अस्पताल तक पहुंचाएंगे. इस दौरान आप रूम पार्टनर के साथ रहें तथा उस का मनोबल बनाए रखें. इस के अलावा उस के परिजनों को भी इस की सूचना दें. यदि तबीयत ज्यादा खराब हो तो परिजनों को बुलवा लेना ही ठीक रहता है. फिर वे जहां चाहें उस का इलाज कराएं.

रूममेट के बीमार होने पर कोई भी दवा अपने मन से न दें. कई बार जो दवा आप को सूट करती है वही दूसरे को ऐलर्जी या रिऐक्शन कर सकती है इसेलिए डाक्टर की सलाह ले कर ही दवा दें.

जब आप को दिख रहा है कि रूममेट बीमार है फिर भी वह अपने हिस्से का काम कर रही है, तो आप को उसे रोकना चाहिए. बिना कहे उस की सहायता करें और उस पर एहसान न जताएं. खुद पहल कर उस की जरूरतें पूछें तथा उन्हें पूरा करने की कोशिश करें.

यदि आप और आप की रूममेट एक ही क्लास में पढ़ती हैं तो आप अपने नोट्स आदि उसे दें ताकि जितने समय वह कालेज नहीं जा पाई, उस की कुछ तो भरपाई हो सके.

बीमारी की अवस्था में बजट भी गड़बड़ा जाता है. हो सकता है कि उस के पास पैसे खत्म हो गए हों, ऐसे में अपने पैसों से इलाज करा देना ही इंसानियत है.

रिश्तों की इन अजीब उलझनों का जवाब हमसे जानिए

सिचुएशन 1

आप किसी परिचित के यहां खाना खाने गए हैं लेकिन खाना या तो बेस्वाद है या फिर इतना स्पाइसी कि गले से नीचे उतारना मुश्किल है. कई बार आप जिन चीजों को हाथ तक नहीं लगाते, यदि वे आप के आगे परोस दी जाएं तो भी मुश्किल होती है, जैसे प्याज व लहसुन से बना भोजन या कद्दू, करेले जैसी सब्जियां.

ऐसे संभालें

किसी ने बड़े चाव से भोजन परोसा और आप नखरे दिखाएं कि आप को यह भोजन कतई पसंद नहीं, तो यह अशिष्टता होगी और मेजबान का अपमान भी होगा. मेजबान का दिल दुखाने के बजाय आप को कुछ बहाने बनाने होंगे, जैसे आज मेरा फास्ट है, तबीयत ठीक नहीं है इसलिए दिन में एक बार खाती हूं, पेट गड़बड़ है या अभीअभी घर से खा कर ही आए हैं. साथ ही, उन से कहें, ‘ऐसा कीजिए आप मुझे एक कप चाय पिला दीजिए.’ इस से उन का मान भी रह जाएगा और आप अरुचिकर भोजन खाने से भी बच जाएंगे.

सिचुएशन 2

आप की फ्रैंड की नईनई शादी हुई है. आप को पता चल गया है कि उस का पति अच्छा इंसान नहीं है. वह आवारा है, नशेड़ी है या फिर बदनाम इंसान है. ऊपर से सहेली पूछ रही है कि बता, मेरा पति कैसा लगा?

ऐसे संभालें

बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ना बुद्धिमानी की बात नहीं. जब शादी हो ही चुकी है तो सहेली को उस के पति के बारे में सबकुछ साफसाफ बता देना ठीक नहीं होगा. कई बार शादी के बाद इंसान बदल भी जाता है.

हो सकता है जिसे आप आवारा या बदनाम समझ रही हों, वह शादी के बाद सुधर जाए. लेकिन सहेली से आप अपने मुंह से यह सब कहेंगी, तो उस का दांपत्य जीवन शुरू से ही खटाई में पड़ जाएगा और वह अपने पति के बारे में बुरी धारणा बना लेगी या तो दुखी होगी या फिर पति के साथ दुर्व्यवहार करेगी और उसे उसी नजरिए से देखने लगेगी. इस से बात बनने के बजाय बिगड़ जाएगी. बेहतर होगा कि सहेली के पूछने पर, ‘हां, अच्छे लग रहे हैं. इन्हें भरपूर प्यार देना और सुखी जीवन जीना.’ फिर मजाकमजाक में यह भी कह दें कि शुरू से ही ध्यान रखना, इन्हें कोई बुरी आदत न लग जाए.

सिचुएशन 3

आप किसी के बारे में बुराभला कह रही हैं और पता चले कि वह तो आप के ठीक पीछे खड़ा है और सबकुछ सुन चुका है.

ऐसे संभालें

बात को छिपाने या बहाने बनाने से कोई फायदा नहीं. या तो आप को बेहद कुशल अभिनेता बनते हुए यह जताना होगा कि आप उस की उपस्थिति के बारे में जानती थीं और आप ने जानबूझ कर ऐसा सुनाने व छेड़ने के लिए कहा या फिर सीधेसीधे माफी मांग लेने में ही फायदा है. भले ही वह बुरी तरह नाराज हो जाए और उस वक्त आप को माफ न करे, लेकिन फिर भी गुस्से की आंच जरा धीमी तो पड़ ही जाती है.

सिचुएशन 4

आप की फ्रैंड अचानक आप के सामने अजीब तरह की ड्रैस पहन कर आती है और पूछती है कि कैसी लग रही हूं मैं. सच यह है कि वह बहुत बेढंगी और फनी लग रही है. न तो ड्रैस अच्छी है और न ही उस की बौडी पर पहनने लायक है.

ऐसे संभालें

फ्रैंड का मजाक उड़ाने की गलती न करें. इस से उस का मन दुखी होगा, शर्मिंदगी महसूस होगी और रिश्तों पर विपरीत असर पड़ेगा लेकिन, वह आप की फास्ट फ्रैंड है इसलिए उस से किसी गलतफहमी में रखना भी ठीक नहीं वरना दूसरे उस का मजाक बनाएंगे. उसे कुछ ऐसा कहें, ‘अरे वाह, कलर तो काफी अच्छा चूज किया, लेकिन यह स्टाइल मुझे जरा कम जंचा. आजकल ऐसी स्टाइल कम चल रही है. इस से अच्छा होता कि तुम मौजूद फैशन के मुताबिक ड्रैस खरीदतीं.

एक काम करो, इसे घर में या कौंप्लैक्स में ही पहनना. बाहर जाना हो, तो इस के बजाय अपनी अमुक ड्रैस पहनना. तेरी कदकाठी और फिगर पर वह ज्यादा मस्त लगती है. इस प्रकार आप इशारों ही इशारों में उसे ड्रैस की कमी बता देंगी.

सिचुएशन 5

पड़ोसिन का निकला हुआ पेट देख कर आप को लगा कि वह गर्भवती है और आप ने बिना आगापीछा सोचे पूछ डाला, ‘कब की डेट है?’ भौचक्की पड़ोसिन ने कहा, ‘काहे की डेट है? मैं प्रैग्नैंट थोड़ी हूं?’

ऐसे संभालें

बात को तुरंत ट्विस्ट देते हुए मजाकिया लहजे में अपनापन जताते हुए कुछ ऐसा कहें, ‘अरी बावली बहन, मैं ने तो तुझे जानबूझ कर ऐसा कहा. अपनी सेहत पर ध्यान दे. मोटा पेट हजार बीमारियों की जड़ है. सुबहशाम वाक, जौगिंग वगैरा किया कर वरना आज जो सवाल मैं ने मजाक में किया है वही सवाल लोग सचमुच तुझ से करने लगेंगे. मुझे ही देख, मैं ने खानपान कितना कंट्रोल किया, तब जा कर मोटापा काबू में आया है वरना टुनटुन हो जाती. मेरे हसबैंड तो सुबहशाम वाक पर जाते हैं और व्यायाम भी करते हैं.’

सिचुएशन 6

आप के मित्र दंपती में अनबन हो गई. अनबन भी ऐसी कि तलाक तक बात पहुंच गई. दोनों ही आप के दोस्त हैं. दोनों आप से अलगअलग मिल कर एकदूसरे की बुराई करते हैं, आप से राय मांगते हैं और दूसरे पक्ष से संबंध तोड़ने के लिए कहते हुए संबंधों की दुहाई देते हैं.

ऐसे संभालें

इस स्थिति में आप दोनों को कभी खुश नहीं रख सकते. दोनों को खुश रखने की कोशिश करेंगी तो दोनों से ही संबंधों में खटास आ जाएगी. चूंकि स्थिति काफी बिगड़ चुकी है और तलाक तक की नौबत आ गई है, इसलिए दोनों में तालमेल बैठाने या उन के संबंधों को जोड़ने की कोशिश भी बेकार साबित होगी. बेहतर यह होगा कि आप किसी एक से हमदर्दी रखें, उसे भावनात्मक या आर्थिक सहारा दें, उस का संबल बन कर एक अच्छी दोस्त साबित हों. हां, इस के लिए उसे चुनें जो दिल से आप के ज्यादा करीब हो, कम दोषी हो और जिस के साथ आप के रिश्ते ज्यादा पुराने रहे हों.

अब अपने फोन को बनाएं वौकी टौकी, करें फ्री कौलिंग

आपने कभी सोचा है की कोई ऐसा भी तरीका हो सकता है, जिससे आप बिना सिम और बिना किसी टैरिफ प्लान के फ्री कौलिंग कर सकते हैं, ऐसा दरअसल फ्री एंड्रौयड एप्स के जरिए हो सकता है. इन एप्स की मदद से यूजर दो स्मार्टफोन को वौकी-टौकी में बदल सकते हैं. लेकिन इसका इस्तेमाल सीमित तौर पर किया जा सकता है. क्योंकि ये एप्स उसी रेंज तक काम करेंगी, जितने में ब्लूटूथ की पकड़ होगी.

तो चलिये आपको बताते हैं कि आखिर कैसे करता है यह काम.

कितनी होती है ब्लूटूथ की रेंज

ब्लूटूथ की रेंज फिक्स होती है. इसका दायरा तकरीबन 100 मीटर तक होता है. इसलिए जब आप ब्लूटूथ से कौलिंग करेंगे तो दूसरे स्मार्टफोन का रेंज में होना जरुरी है. इसी के साथ ये एप्स दोनों स्मार्टफोन में होनी भी जरुरी हैं. इसके जरिए बात करने पर आपको कोई शुल्क नहीं देना पड़ेगा. जाहिर है आप दूर बैठे लोगों से तो इसके जरिए बात नहीं कर पाएंगे. लेकिन आस-पास रहने वाले अपने दोस्तों से बात करना और किसी खेल में इसका उपयोग करना जरूर मजेदार होगा. कुल मिलाकर इन एप्स से आप दो स्मार्टफोन को वौकी-टौकी में बदल पाएंगे.

क्या करना होगा

  • सबसे पहले ब्लूटूथ टौकी या ब्लूटूथ वौकी-टौकी एप को अपने फोन में डाउनलोड कर लें. इसके अलावा भी प्ले स्टोर पर आपको इस तरह की एप्स मिल जाएंगी.
  • एप को ओपन करने पर आपको वाई-फाई या सर्च करने का विकल्प दिखाई देगा.
  • इसके बाद आपको जिस दूसरे फोन पर कौल करना है, उस पर भी एप डाउनलोड कर लें.
  • दोनों स्मार्टफोन के ब्लूटूथ को औन कर, आपस में कनेक्ट कर लें.
  • अब एप में सर्च या वाई-फाई के विकल्प का इस्तेमाल करें.
  • इससे फोन में सेव ब्लूटूथ की लिस्ट ओपन हो जाएगी.
  • जिस दूसरे स्मार्टफोन पर आपने एप इनस्टौल की है, उसके ब्लूटूथ का चयन कर लें.
  • इससे दूसरे फोन पर घंटी जाने लगेगी.
  • इसमें कौल रिंग होने और कौल अटेंड होने में रंग में भी बदलाव आता है.
  • अब दो स्मार्टफोन बन गए  वौकी टौकी. इसमें यूजर की सुविधा के लिए स्पीकर और म्यूट के बटन भी उपलब्ध हैं.

जुनूनी इश्क में पागल उन दोनों ने कर दी एक मासूम की हत्या

वह गांव की सीधीसादी लड़की थी. नाम था उस का लाडो. वह आगरा के थानातहसील शमसाबाद के गांव सूरजभान के रहने वाले किसान सुरेंद्र सिंह की बेटी थी. घर वाले उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस की वजह यह थी कि 2 साल पहले उस के कदम बहक गए. उसे साथ पढ़ने वाले देवेंद्र से प्यार हो गया. वह आगरा के थाना डौकी के गांव सलेमपुर का रहने वाला था. शमसाबाद में वह किराए पर कमरा ले कर रहता था.

अचानक ही लाडो को देवेंद्र अच्छा लगने लगा था. जब उसे पता चला कि देवेंद्र ही उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि देवेंद्र भी उसे पसंद करता है तो वह बहुत खुश हुई.

एक दिन लाडो अकेली जा रही थी तो रास्ते में देवेंद्र मिल गया. वह मोटरसाइकिल से था. उस ने लाडो से मोटरसाइकिल पर बैठने को कहा तो वह बिना कुछ कहे देवेंद्र के कंधे पर हाथ रख कर उस के पीछे बैठ गई. देवेंद्र ने मोटरसाइकिल आगरा शहर की ओर मोड़ दी तो लाडो ने कहा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो?’’

‘‘यहां हम दोनों को तमाम लोग पहचानते हैं. अगर उन्होंने हमें एक साथ देख लिया तो बवाल हो सकता है. इसलिए हम आगरा चलते हैं.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं, आगरा से लौटने में देर हो गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा,’’ लाडो ने कहा, ‘‘इस के अलावा कालेज का भी नुकसान होगा.’’

‘‘हम समय से पहले वापस आ जाएंगे. रही बात कालेज की तो एक दिन नहीं जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा.’’ देवेंद्र ने समझाया.

लाडो कशमकश में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह देवेंद्र के साथ जाए या नहीं? जाने का मतलब था उस के प्यार को स्वीकार करना. वह उसे चाहती तो थी ही, आखिर उस का मन नहीं माना और वह उस के साथ आगरा चली गई.

देवेंद्र उसे सीधे ताजमहल ले गया. क्योंकि वह प्रेम करने वालों की निशानी है. लाडो ने प्रेम की उस निशानी को देख कर तय कर लिया कि वह भी देवेंद्र को मुमताज की तरह ही टूट कर प्यार करेगी और अपना यह जीवन उसी के साथ बिताएगी.

प्यार के जोश में शायद लाडो भूल गई थी कि उस के घर वाले इतने आधुनिक नहीं हैं कि उस के प्यार को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन प्यार करने वालों ने कभी इस बारे में सोचा है कि लाडो ही सोचती. उस ने ताजमहल पर ही साथ जीने और मरने की कसमें खाईं और फिर मिलने का वादा कर के घर आ गई.

इस के बाद लाडो और देवेंद्र की मुलाकातें होने लगीं. देवेंद्र की बांहों में लाडो को अजीब सा सुख मिलता था. दोनों जब भी मिलते, भविष्य के सपने बुनते. उन्हें लगता था, वे जो चाहते हैं आसानी से पूरा हो जाएगा. कोई उन के प्यार का विरोध नहीं करेगा. वे चोरीचोरी मिलते थे.

लेकिन जल्दी ही लोगों की नजर उन के प्यार को लग गई. किसी ने दोनों को एक साथ देख लिया तो यह बात सुरेंद्र सिंह को बता दी. बेटी के बारे में यह बात सुन कर वह हैरान रह गया. वह तो बेटी को पढ़ने भेजता था और बेटी वहां प्यार का पाठ पढ़ रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि लाडो ऐसा कैसे कर सकती है. वह तो भोलीभाली और मासूम है.

घर आ कर उस ने लाडो से सवाल किए तो उस ने कहा, ‘‘पापा, देवेंद्र मेरे साथ पढ़ता है, इसलिए कभीकभार उस से बातचीत कर लेती हूं. अगर आप को यह पसंद नहीं है तो मैं उस से बातचीत नहीं करूंगी.’’

सुरेंद्र सिंह ने सोचा, लोगों ने बातचीत करते देख कर गलत सोच लिया है. वह चुप रह गया. इस तरह लाडो ने अपनी मासूमियत से पिता से असलियत छिपा ली. लेकिन आगे की चिंता हो गई. इसलिए वह देवेंद्र से मिलने में काफी सतर्कता बरतने लगी.

लाडो भले ही सतर्क हो गई थी, लेकिन लोगों की नजरें उस पर पड़ ही जाती थीं. जब कई लोगों ने सुरेंद्र सिंह से उस की शिकायत की तो उस ने लाडो पर अंकुश लगाया. पत्नी से उस ने बेटी पर नजर रखने को कहा.

टोकाटाकी बढ़ी तो लाडो को समझते देर नहीं लगी कि मांबाप को उस पर शक हो गया है. वह परेशान रहने लगी. देवेंद्र मिला तो उस ने कहा, ‘‘मम्मीपापा को शक हो गया है. निश्चित है, अब वे मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर देंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी कर ले लाडो, अब तुम्हें मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ देवेंद्र ने कहा.

प्रेमी की इस बात से लाडो को पूरा विश्वास हो गया कि देवेंद्र हर तरह से उस का साथ देगा. लेकिन बेटी के बारे में लगातार मिलने वाली खबरों से चिंतित सुरेंद्र सिंह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस ने उस की पढ़ाई पूरी होने का भी इंतजार नहीं किया.

जब लाडो के प्यार की जानकारी उस के भाई सुधीर को हुई तो उस ने देवेंद्र को धमकाया कि वह उस की बहन का पीछा करना छोड़ दे, वरना वह कुछ भी कर सकता है. तब देवेंद्र ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भाई सुधीर, मैं लाडो से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी यह हिम्मत?’’ सुधीर ने कहा, ‘‘फिर कभी इस तरह की बात की तो यह कहने लायक नहीं रहोगे.’’

देवेंद्र परेशान हो उठा. लेकिन वह लाडो को छोड़ने को राजी नहीं था. इसी बीच परीक्षा की घोषणा हो गई तो दोनों पढ़ाई में व्यस्त हो गए. लेकिन इस बात को ले कर दोनों परेशान थे कि परीक्षा के बाद क्या होगा? उस के बाद वे कैसे मिलेंगे? यही सोच कर एक दिन लाडो ने कहा, ‘‘देवेंद्र, परीक्षा के बाद तो कालेज आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के बाद हम कैसे मिलेंगे?’’

‘‘प्यार करने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.’’ देवेंद्र ने कहा.

सुरेंद्र सिंह के घर से कुछ दूरी पर मनोज सिंह रहते थे. उन के 4 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी पिंकी थी, जो 8वीं में पढ़ती थी. पिंकी थी तो 12 साल की, लेकिन कदकाठी से ठीकठाक थी, इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी.

सुरेंद्र सिंह और मनोज सिंह के बीच अच्छे संबंध थे, इसलिए बड़ी होने के बावजूद लाडो की दोस्ती पिंकी से थी. लेकिन लाडो ने कभी पिंकी से अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. फिर भी पिंकी को पता था कि लाडो को अपने साथ पढ़ने वाले किसी लड़के से प्यार हो गया है.

गांव के पास ही केला देवी मंदिर पर मेला लगता था. इस बार भी 5 मार्च, 2017 को मेला लगा तो गांव के तमाम लोग मेला देखने गए. लाडो ने देवेंद्र को भी फोन कर के मेला देखने के लिए बुला लिया था. क्योंकि उस का सोचना था कि वह मेला देखने जाएगी तो मौका मिलने पर दोनों की मुलाकात हो जाएगी. प्रेमिका से मिलने के चक्कर में देवेंद्र ने हामी भर ली थी.

लाडो ने घर वालों से मेला देखने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों ने मना कर दिया. लेकिन जब उस ने कहा कि उस के साथ पिंकी भी जा रही है तो घर वालों ने उसे जाने की अनुमति दे दी. क्योंकि गांव के और लोग भी मेला देखने जा रहे थे, इसलिए किसी तरह का कोई डर नहीं था.

लाडो और पिंकी साथसाथ मेला देखने गईं. कुछ लोगों ने उन्हें मेले में देखा भी था, लेकिन वे घर लौट कर नहीं आईं. दोनों मेले से ही न जाने कहां गायब हो गईं? शाम को छेदीलाल के घर से धुआं उठते देख लोगों ने शोर मचाया. छेदीलाल उस घर में अकेला ही रहता था और वह रिश्ते में सुरेंद्र सिंह का ताऊ लगता था. आननफानन में लोग इकट्ठा हो गए.

दरवाजा खोल कर लोग अंदर पहुंचे तो आंगन में लपटें उठती दिखाई दीं. ध्यान से देखा गया तो उन लपटों के बीच एक मानव शरीर जलता दिखाई दिया. लोगों ने किसी तरह से आग बुझाई. लेकिन इस बात की सूचना पुलिस को नहीं दी गई. मरने वाला इतना जल चुका था कि उस का चेहरा आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था.

लोगों ने यही माना कि घर छेदीलाल का है, इसलिए लाश उसी की होगी. लेकिन लोगों को हैरानी तब हुई, जब किसी ने कहा कि छेदीलाल तो मेले में घूम रहा है. तभी किसी ने लाश देख कर कहा कि यह लाश तो लड़की की है. लगता है, लाडो ने आत्महत्या कर ली है. गांव वालों को उस के प्यार के बारे में पता ही था, इसलिए सभी ने मान लिया कि लाश लाडो की ही है.

लेकिन तभी इस मामले में एक नया रहस्य उजागर हुआ. मनोज सिंह ने कहा कि लाडो के साथ तो पिंकी भी मेला देखने गई थी, वह अभी तक घर नहीं आई है. कहीं यह लाश पिंकी की तो नहीं है. लेकिन गांव वालों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि पिंकी मेला देखने गई है तो थोड़ी देर में आ जाएगी. उसे कोई क्यों जलाएगा. इस बात को छोड़ो और पहले इस मामले से निपटाओ.

लोगों का कहना था कि लाडो ने आत्महत्या की है. अगर इस बात की सूचना पुलिस तक पहुंच गई तो गांव के सभी लोग मुसीबत में फंस जाएंगे, इसलिए पहले इसे ठिकाने लगाओ. मुसीबत से बचने के लिए गांव वालों की मदद से सुरेंद्र सिंह ने आननफानन में उस लाश का दाहसंस्कार कर दिया. लेकिन सवेरा होते ही गांव में इस बात को ले कर हंगामा मच गया कि पिंकी कहां गई? क्योंकि लाडो के साथ मेला देखने गई पिंकी अब तक लौट कर नहीं आई थी.

मनोज सिंह ने पिंकी को चारों ओर खोज लिया. जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वालों के कहने पर वह थाना शमसाबाद गए और थानाप्रभारी विजय सिंह को सारी बात बता कर आशंका व्यक्त की कि लाडो और उस के घर वालों ने पिंकी की हत्या कर उस की लाश जला दी है और लाडो को कहीं छिपा दिया है.

लाडो की लाश का बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया था, इसलिए जब सुरेंद्र सिंह को पता चला कि मनोज सिंह थाने गए हैं तो डर के मारे वह घर वालों के साथ घर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन पुलिस ने भी मान लिया था कि लाडो ने आत्महत्या की है, क्योंकि उस का देवेंद्र से प्रेमसंबंध था और घर वाले उस के प्रेमसंबंध का विरोध कर रहे थे. लेकिन पिंकी का न मिलना भी चिंता की बात थी. तभी अचानक थाना शमसाबाद पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि लाडो आगरा के बिजलीघर इलाके में मौजूद है. इस बात की जानकारी लाडो के घर वालों को भी हो गई थी. लेकिन बेटी के जिंदा होने की बात जान कर वे खुशी भी नहीं मना सकते थे.

आखिर वे आगरा पहुंचे और लाडो को ला कर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने लाडो से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जली हुई लाश पिंकी की थी. उसी ने उस की हत्या कर के लाश को कंबल में लपेट कर जलाने की कोशिश की थी, ताकि लोग समझें कि वह मर गई है. इस के बाद वह अपने प्रेमी के साथ कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

पिंकी के पिता मनोज की ओर से अपराध संख्या 88/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत सुरेंद्र सिंह, सुधीर सिंह और लाडो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई. पुलिस को लग रहा था कि लाडो पिंकी की हत्या अकेली नहीं कर सकती, इसलिए पुलिस ने शक के आधार पर 24 अप्रैल, 2017 को देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

देवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने लाडो के साथ मिल कर पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली कहानी कुछ इस प्रकार थी—

घर वालों की बंदिशों से परेशान लाडो और उस के प्रेमी देवेंद्र को अपने प्यार का महल ढहता नजर आ रहा था, इसलिए वे एक होने का उपाय खोजने लगे. इसी खोज में उन्होंने पिंकी की हत्या की योजना बना कर उसे लाडो की लाश के रूप में दिखा कर जलाने की योजना बना डाली. उन्होंने दिन भी तय कर लिया.

पिंकी और लाडो की उम्र में भले ही काफी अंतर था, लेकिन उन की कदकाठी एक जैसी थी. लाडो को पता था कि उस के दादा छेदीलाल मेला देखने जाएंगे, इसलिए मेला देखने के बहाने वह पिंकी को छेदीलाल के घर ले गई. कुछ ही देर में देवेंद्र भी आ गया, जिसे देख कर पिंकी हैरान रह गई. वह यह कह कर वहां से जाने लगी कि इस बात को वह सब से बता देगी.

लेकिन प्यार में अंधी लाडो ने उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने वहीं पड़ा डंडा उठाया और पिंकी के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. पिंकी जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद लाडो ने उस के गले में अपना दुपट्टा लपेटा और देवेंद्र की मदद से कस कर उसे मार डाला.

लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए लाश को छेदीलाल के घर में रखे कंबल में लपेटा और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. आग ने तेजी पकड़ी तो दोनों भाग खड़े हुए, पर योजना के अनुसार दोनों आगरा में मिल नहीं पाए. दरअसल, देवेंद्र काफी डर गया था. डर के मारे वह लाडो से मिलने नहीं आया. जबकि लाडो ने सोचा था कि वह देवेंद्र के साथ रात आगरा के किसी होटल में बिताएगी. लेकिन देवेंद्र के न आने से उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. लाडो के पास पैसे नहीं थे, इसलिए रात उस ने बिजलीघर बसस्टैंड पर बिताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि लाडो और देवेंद्र से पूछताछ में सुरेंद्र सिंह और उस के घर वाले निर्दोष पाए गए थे, इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया.

लाडो ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन भी बन गई. उस के साथ उस का प्रेमी भी फंसा. जो सोच कर उस ने पिंकी की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. क्योंकि निश्चित है उसे पिंकी की हत्या के अपराध में सजा होगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें