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हवस की अंधी दास्तान : प्रेमी ही था मां बेटी का हत्यारा

इसी साल 15 मार्च को रोजाना की तरह कुछ चरवाहे जब अपने पशुओं के साथ गोमती नदी के राजघाट से सटे देवगांव के जंगल में पहुंचे तो एक चरवाहे कि नजर जंगली झाडि़यों के बीच लहूलुहान पड़ी एक महिला और एक बच्ची पर चली गई. देखने से ही लग रहा था कि वे मर चुकी हैं. लाश देखते ही चरवाहा चीख पड़ा. उस ने आवाज दे कर अपने साथियों को बुलाया और उन्हें भी लाशें दिखाईं. लाशें देख कर सभी चरवाहे जंगल से बाहर आ गए और यह बात अन्य लोगों को बताई. उन्हीं में से किसी ने थाना कुमारगंज पुलिस को फोन कर के जंगल में लाशें पड़ी होने की सूचना दे दी.

उधर झाडि़यों में 2 लाशें पड़ी होने की खबर पा कर गांव के भी तमाम लोग पहुंच गए. जंगल में 2 लाशें पड़ी होने की सूचना मिलते ही थाना कुमारगंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाशों के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि महिला और बच्ची को चाकुओं से बुरी तरह गोद कर मारा गया था. जिस की वजह से दोनों लाशें बुरी तरह से लहूलुहान थीं. लाशों के आसपास भी काफी खून फैला था. महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी, जबकि बच्ची करीब 5 साल की थी.

मौके के निरीक्षण में सुनील कुमार सिंह के हाथ ऐसा कुछ लहीं लगा, जिस से यह पता चलता कि मृतका और बच्ची कौन थीं, उन की हत्या किस ने और क्यों की?

उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी, साथ ही दोनों लाशों के फोटोग्राफ कराने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी शुरू कर दी. अब तक मौके पर एसएसपी अनंतदेव सहित अन्य पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. उन्होंने मौके का निरीक्षण कर के इस मामले का जल्दी खुलासा करने का निर्देश दिया.

उच्चाधिकारियों के जाने के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर सुनील कुमार सिंह भी थाने लौट आए. उन के लिए सब से बड़ी चुनौती थी दोनों लाशों की पहचान कराना. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिरों को मदद ली, साथ ही खुद भी अपने स्तर से जानकारी जुटाने लगे. उन का ध्यान बारबार बच्ची पर जा रहा था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस मासूम से हत्यारे की क्या दुश्मनी थी, जिस ने उसे भी नहीं छोड़ा.

सुनील कुमार सिंह दोनों लाशों की शिनाख्त को ले कर उलझे थे कि तभी एक बुजुर्ग थाने आया. उस ने अपना नाम मूसा खां बताते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं ही वह अभागा हूं, जिस की बेटी इशरत जहां की लाश देवगांव के जंगल में पड़ी मिली थी.’’

इतना कह कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे ढांढस बंधाया तो उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरी बेटी इशरत और उस की मासूम बच्ची को मुन्ना ने मारा है, उस ने उस की जिंदगी खराब कर दी थी. अल्लाह उसे कभी माफ नहीं करेगा…’’

सुनील कुमार सिंह ने उसे ढांढस बंधाते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. इस के बाद पानी मंगा कर पिलाया. फिर उस की पूरी बात सुनने के बाद साफ हो गया कि देवगांव के जंगल में महिला और बच्ची की जो लाशें मिली थीं, वे मूसा खां की बेटी और नातिन की थीं, साथ यह भी कि उन्हें मारने वाला इशरत जहां का प्रेमी मुन्ना था.

दोनों लाशों की शिनाख्त हो जाने के बाद सुनील कुमार सिंह ने मूसा खां से विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद मूसा खां से तहरीर ले कर मुन्ना के खिलाफ मांबेटी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की जिम्मेदारी खुद संभाल ली.

सुनील कुमार सिंह ने इस मामले की जांच शुरू की तो पता चला कि इशरत की हत्या प्रेमसंबंधों के चलते हुई थी. जिस मुन्ना से वह प्रेम करती थी, वह उसी के पड़ोस में रहता था. लेकिन घटना के बाद से वह नजर नहीं आ रहा था. सुनील कुमार सिंह का सारा ध्यान मुन्ना पर था, क्योंकि उसी के पकड़े जाने पर इस अपराध से परदा उठ सकता था.

16 अप्रैल, 2017 को मुन्ना पुलिस के हाथ लग गया. मुखबिर ने थानाप्रभारी को सूचना दी थी कि इशरत और उस की बेटी का हत्यारा मुन्ना भेलसर में मौजूद है. यह जानकारी मिलते ही सुनील कुमार सिंह बिना देर किए अपनी टीम के साथ भेलसर पहुंच गए और मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया.

भेलसर इलाका फैजाबाद जिले के रुदौली कोतवाली के अंतर्गत आता था. पुलिस टीम मुन्ना को गिरफ्तार कर थाना कुमारगंज ले आई. पूछताछ में पहले तो मुन्ना खुद को पाकसाफ बताता रहा. उस ने इशरत की हत्या पर दुखी होने का नाटक भी किया. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का यह नाटक ज्यादा देर तक नहीं चल सका.

कुछ ही देर में सवालोंजवाबों में वह इस कदर उलझ गया कि उस के पास इशरत की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा. अपना अपराध स्वीकार कर के उस ने इशरत जहां और उस की मासूम बेटी की हत्या की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी का कलेजा दहल उठा.

उत्तर प्रदेश के जनपद अमेठी के थाना शुक्ला बाजार का एक गांव है किशनी. सभी जातियों की मिश्रित आबादी वाले इस गांव में मुसलिमों की आबादी कुछ ज्यादा है. इसी गांव के रहने वाले मूसा खां के परिवार में पत्नी सहित 5 लोग थे. जैसेतैसे उन्होंने सभी बच्चों का घर बसा दिया था. केवल इशरत जहां ही बची थी, जिस के लिए वह रिश्ता ढूंढ रहा था.

मूसा खां के पड़ोस में ही मुन्ना का घर था. पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना था. मुन्ना दरी बुनाई का काम करता था. इशरत भी दरी बुनाई करने जाती थी. इसी के चलते दोनों के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ.

पहले दोनों एकदूसरे को देख कर केवल हंस कर रह जाया करते थे. लेकिन धीरेधीरे यही हंसी प्यार में बदलने लगी. संयोग से एक दिन मुन्ना काम से घर लौट रहा था तो पीछेपीछे इशरत भी आ रही थी.

सुनसान जगह देख कर मुन्ना ने अपने कदमों की रफ्तार कम कर दी. फिर जैसे ही इशरत उस के करीब आई, उस ने इधरउधर देख कर इशरत का हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘इशरत, मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं अपनी जान दे दूंगा. बोलो, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

मुन्ना के मुंह से ये बातें सुन कर इशरत कुछ कहने के बजाय अपना हाथ छुड़ा कर ‘हां’ में सिर हिला कर तेजी से अपने घर की ओर चली गई. मुन्ना इतने से ही उस के मन की बात समझ गया. वह समझ गया कि इशरत भी उसे चाहती है. लेकिन जुबान नहीं खोलना चाह रही.

उस दिन शाम ढले मुन्ना किसी बहाने से इशरत के घर पहुंच गया और मौका देख कर उस ने इशरत को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. मुन्ना के अचानक इस व्यवहार से इशरत सहमी तो जरूर, मगर हिली नहीं. वह बस इतना ही बोली, ‘‘धत, कोई देख लेगा तो कयामत आ जाएगी.’’

यह सुन कर मुन्ना ने इशरत को बांहों से आजाद कर दिया और अपने घर चला गया. उस दिन दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी. किसी तरह रात कटी और सुबह हुई तो मुन्ना उस दिन काम पर रोज से पहले ही पहुंच गया. उस की नजरें इशरत को ही ढूंढ रही थीं. इशरत आई तो वह खुशी से झूम उठा. उस दिन दोनों का ही मन काम में नहीं लग रहा था.

जल्दीजल्दी काम निपटा कर जब इशरत घर जाने को तैयार हुई तो मुन्ना भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा. कुछ दूर जाने के बाद एकांत मिलने पर मुन्ना ने इशरत का हाथ पकड़ कर बैठा लिया. वहां बैठ कर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. मुन्ना बारबार अपने प्रेम की दुहाई देते हुए एक साथ जीनेमरने की कसमें खाता रहा.

मुन्ना की बातें सुन कर इशरत खुद को रोक नहीं पाई. उस ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. अब तुम्हारे बगैर एक भी पल काटना मुश्किल होने लगा है. तुम जल्दी से अपने घर वालों से बात कर के उन्हें मेरे अब्बू के पास मेरा हाथ मांगने के लिए भेजो, ताकि जल्दी से हमारा निकाह हो सके.’’

उस दिन के बाद दोनों का मिलनाजुलना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. शादी की बात आने पर मुन्ना आजकल कह कर टाल जाता. इशरत मुन्ना के फरेब को भांप नहीं पा रही थी और अपने भावी खुशनुमा जीवन के तानाबाना बुनने में लगी थी. दोनों में प्रेम बढ़ा तो शारीरिक संबंध भी बन गए.

यह इस घटना से 6-7 साल पहले की बात है. पहले तो प्यार समझ कर इशरत मुन्ना को अपना तन समर्पित करती रही. लेकिन धीरेधीरे उसे लगने लगा कि मुन्ना उस से नहीं, बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है, वह उस से निकाह नहीं करना चाहता. वह मुन्ना पर निकाह के लिए जोर देने लगी.

लेकिन मुन्ना का तो इशरत से मन भर चुका था. उस ने चुपके से संजीदा खातून से निकाह कर लिया और रुदौली में जा कर रहने लगा. संयोग से सन 2012 में इशरत गर्भवती हो गई. उस के घर वालों को इस बात का पता चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

बहरहाल, कोई चारा न देख इशरत के घर वालों ने मुन्ना पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन वह अपने और इशरत के संबंधों से साफ मुकर गया. ऐसे में कोई चारा न देख इशरत के अब्बा मूसा खां ने मुन्ना के खिलाफ 3 सितंबर, 2012 को भादंवि की धारा 376, 504, 506 के तहत थाना शुक्ला बाजार में मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में मुन्ना को जेल हो गई.

इधर मुन्ना जेल गया, उधर इशरत जहां ने एक बच्ची को जन्म दिया. मुन्ना जमानत पर जेल से बाहर आ गया. उस का मुकदमा चल रहा था. उस की अगली तारीख 23 मार्च, 2017 को थी. फिर से जेल जाने के डर से पहले तो मुन्ना ने इशरत के अब्बा के सामने पैसा ले कर सुलह कर लेने का प्रस्ताव रखा. लेकिन मूसा खां ने उस के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा, ‘‘तुम इशरत और अपने बीच के संबंधों को स्वीकार करते हुए बच्ची महलका को अपनी औलाद के रूप में स्वीकार करो, तभी हम मुकदमे में सुलह करने पर विचार कर सकते हैं.’’

लेकिन मुन्ना संजीदा खातून से शादी कर चुका था, इसलिए उस ने मूसा की शर्त को स्वीकार तो नहीं किया, विचार करने की बात कह कर टाल गया और इशरत को झांसे में ले कर उस से पुन: संबंध बना लिए. इशरत मुन्ना के इस फरेब को समझ नहीं पाई और उसे विश्वास था कि मुन्ना उसे अपना लेगा.

इधर मुकदमे की तारीख करीब आती जा रही थी. उसी दिन फैसला होना था. ऐसे में एक सोचीसमझी साजिश के तहत 15 मार्च को मुन्ना इशरत को यह कह कर अपने साथ ले गया कि चलो हम सुलह कर लेते हैं और दिल्ली चल कर निकाह कर वहीं कमरा ले कर रहते हैं. मुन्ना के मुंह से सुलह की बात सुन कर इशरत खुशी से झूम उठी और तपाक से बोली, ‘‘चलो, कहां चलें?’’

इशरत की हां से खुश हो कर मुन्ना बोला, ‘‘पहले हम दोनों किसी सुनसान स्थान पर चल कर बैठ कर बातें करेंगे, उस के बाद आगे की सोचेेंगे.’’

मुन्ना इशरत को साथ ले कर गोमती नदी के राजघाट होते हुए देवगांव की ओर चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद उस ने इशरत से कहा, ‘‘इशरत, तुम इस जंगल के रास्ते चलो, मैं गाड़ी ले कर रोड के रास्ते से आ रहा हूं.’’

इशरत अपनी 5 साल की बेटी महलका को साथ ले कर पूरी तरह से बेपरवाह हो कर जंगल के रास्ते से चल पड़ी. वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए चली जा रही थी कि तभी कुछ दूरी पर मुन्ना बाइक खड़ी कर के हाथ में चाकू लिए इशरत जहां के करीब आया और पीछे से उस की गर्दन पर धड़ाधड़ वार करने शुरू कर दिए.

चाकू के वार से इशरत निढाल हो कर गिर पड़ी. अचानक हुए हमले से उसे कुछ सोचनेसमझने का समय तक नहीं मिल पाया. उस की मासूम बेटी महलका ने मां को जमीन पर गिरते देखा तो मुन्ना के पैर पकड़ कर रोने लगी.

इंसान से हैवान बन चुके मुन्ना को उस मासूम पर भी रहम नहीं आया. उस ने सोचा कि इसे ले कर कहां जाऊंगा. उस ने उस मासूम का भी गला काट कर उसे मौत की नींद सुला दिया. फिर दोनों लाशों को वहीं झाडि़यों में छिपा कर खून से सनी अपनी शर्ट और चाकू को भी वहीं छिपा दिया.

इस के बाद अपनी मोटरसाइकिल यूपी 44 एस 9123 से वहां से भाग निकला. यह तो संयोग था कि घटना के कुछ ही देर बाद चरवाहों की नजर मांबेटी की लाशों पर पड़ गई और उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी अन्यथा वे दोनों जंगली जानवरों का निवाला बन जातीं तो शायद यह राज ही दफन हो कर रह जाता.

पुलिस के अनुसार, घटना के एक दिन पहले ही मुन्ना की बीवी संजीदा खातून ने एक बच्ची को जन्म दिया था. इधर इस मामले में जब उस का नाम प्रकाश में आया तो पुलिस उस के पीछे पड़ गई. यह देख कर वह अपने घर से फरार हो गया. पुलिस ने उस के घर सहित अन्य संभावित स्थानों पर कई बार दबिश दी, लेकिन वह पुलिस को चमका देता रहा.

16 अप्रैल को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे रुदौली कोतवाली के भेलसर स्थित एक प्राइवेट नर्सिंगहोम के पास की एक चाय की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था, जहां उस की बीवी संजीदा खातून भरती थी. पुलिस को देख कर मुन्ना भागने लगा था, लेकिन पुलिस टीम ने उसे घेराबंदी कर के पकड़ लिया था.

उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से आधार कार्ड और 250 रुपए नकद मिले थे. बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर घटनास्थल के पास से खून से सनी उस की शर्ट और चाकू बरामद कर लिया था. उसे मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां उस ने मांबेटी की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुनाई थी. इस के बाद उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया गया,जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दौलत ही सब कुछ नहीं होती : हैरान कर देगी आपको ये कहानी

दर्शन सिंह पंजाब के जिला कपूरथला के गांव अकबरपुर स्थित अपनी आलीशान कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्वराज कौर के अलावा 2 बेटे कमलजीत सिंह और संदीप सिंह थे. संपन्न परिवार वाले दर्शन सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दोनों बेटों की शादी कर दी थी. बड़े बेटे कमलजीत सिंह की शादी उन्होंने अपने एक दोस्त की बेटी राजेंद्र कौर से और छोटे संदीप सिंह की राजदीप कौर के साथ की थी. दर्शन सिंह एक रसूखदार व्यक्ति थे, इसलिए उन का पूरे गांव में दबदबा था. पर कुछ साल पहले एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद उन की पत्नी स्वराज कौर अपने परिवार पर पति जैसा दबदबा कायम नहीं रख पाईं, खासकर दोनों बहुओं पर.

समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा. कमलजीत और संदीप सिंह 3 बच्चों के पिता बन गए. इस बीच कमलजीत सिंह अपने किसी रिश्तेदार की मदद से इंग्लैंड जा कर नौकरी करने लगा. कुछ समय बाद संदीप सिंह भी फ्रांस जा कर नौकरी पर लग गया.

बेटों के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर ने खेती की जमीन ठेके पर दे दी थी. दोनों बेटे विदेश से हर महीने मोटी रकम घर भेज रहे थे. स्वराज कौर को बस एक चिंता थी कि उस के पोतापोती पढ़लिख कर काबिल बन जाएं.

विदेश में रह कर दोनों भाई पैसे कमाने में लगे थे तो इधर गांव में उन की पत्नियों के रंगढंग बदलने लगे थे. एक साल बाद जब छुट्टी ले कर दोनों भाई गांव लौटे तो अपनेअपने पति द्वारा लाए हुए महंगे व अत्याधुनिक उपहार देख कर राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की आंखें चुंधियां गईं.

पति के मुंह से विदेशियों का रहनसहन, खानपान और वहां के लोगों की सभ्यता आदि के बारे में सुन कर देवरानीजेठानी का मन करता कि काश वे भी अपने पतियों के साथ विदेश में रहतीं. अपने मन की बात उन्होंने अपनेअपने पतियों से कह दी. लिहाजा दोनों भाइयों ने पत्नी और बच्चों को साथ ले जाने की व्यवस्था करनी शुरू कर दी.

उन्होंने उन के पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस सब में समय तो लगता ही है. बहरहाल, यह सब ऐसा ही चलता रहा. साल, दो साल में कोई न कोई भाई छुट्टी ले कर गांव आता और अपनी मां, पत्नी और बच्चों से मिल कर लौट जाता.

स्वराज कौर बड़ी खुशी और शांति से परिवार की बागडोर संभालने में लगी रहती थीं. वह एक साधारण और धार्मिक विचारों वाली महिला थीं. जबकि उन की दोनों बहुएं बनठन कर रहती थीं. उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से आधुनिकता के रंग में रंग लिया था. स्वराज कौर समयसमय पर उन्हें टोकते हुए सिख मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया करती थीं. पर बहुओं ने उन की बात अनसुनी करनी शुरू कर दी तो स्वराज कौर ने भी उन की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया.

पंजाब विधानसभा चुनाव 4 फरवरी, 2017 को होने थे, इसलिए पुलिसप्रशासन बड़ी मुस्तैदी से क्षेत्र में अमनशांति बनाए रखने में जुटा था. दिनांक 3/4 फरवरी की रात को स्वराज कौर की छोटी बहू राजदीप कौर ने उन्हें रात का खाना दिया. बड़ी बहू राजेंद्र कौर रसोई का काम निपटा कर बच्चों को सुलाने की तैयारी कर रही थी. उसी रात लगभग एक बजे किसी ने राजदीप कौर के कमरे का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर राजेंद्र कौर की भी आंखें खुल गईं. दोनों ने अपनेअपने कमरे से बाहर आ कर देखा तो मारे डर के उन की चीख निकल गई. उन के कमरों के बाहर बरामदे में 12-13 लोग खड़े थे. सभी के मुंह पर कपड़ा बंधा था और उन के हाथों में चाकू, तलवार आदि हथियार थे. इस के पहले कि वे दोनों कुछ समझ पातीं, उन लोगों ने आगे बढ़ कर दोनों को दबोच लिया और धकेलते हुए उन्हें स्वराज कौर के कमरे में ले गए.

इस बीच 2 लोग मेनगेट के पास खड़े हो कर रखवाली करने लगे. 2-3 लोगों ने सोते हुए बच्चों को अपने कब्जे में कर लिया. स्वराज कौर के कमरे में पहुंचते ही उन बदमाशों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को मारनापीटना शुरू कर दिया. वे उन से अलमारी की चाबी मांग रहे थे. 2 लोगों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की पहनी हुई ज्वैलरी उतारनी शुरू कर दी.

शोरशराबा और मारपीट की आवाज सुन कर स्वराज कौर जाग गई थी. खुद को और अपनी दोनों बहुओं को हथियारबंद बदमाशों से घिरे हुए देख कर उन के होश उड़ गए. परिवार को संकट में देख वह दहाड़ते हुए अपने बैड से उठीं पर तब तक एक हमलावर ने लोहे की रौड उन के सिर पर दे मारी. स्वराज कौर के मुंह से आवाज तक न निकल पाई. वह बैड पर ही चारों खाने चित्त गिर पड़ीं.

तब डर की वजह से राजेंद्र कौर ने अलमारियों की चाबी का गुच्छा बदमाशों के हवाले कर दिया. बदमाश घर में लूटखसोट कर धमकाते हुए चले गए.

आधी रात के बाद हुई इस वारदात से राजेंद्र और राजदीप कौर बुरी तरह डर गईं. काफी देर तक दोनों दहशत में बुत बनी अपनी जगह खड़ी रहीं. जब होश आया तो राजदीप कौर ने बैड पर पड़ी सास स्वराज कौर की सुध ली और राजेंद्र कौर ने आंगन में खड़े हो कर सहायता के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.

शोर सुन कर वहां पड़ोसी जमा हो गए. लूट की बात सुन कर सभी हैरान थे. स्वराज कौर की नब्ज टटोलने पर पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. चोटों के घाव उन के शरीर पर भी थे, पर वे इतने गंभीर न थे. तब तक गांव का सरपंच भी वहां आ गया था. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना देने से पहले मृतका के भाई प्रीतपाल सिंह को सूचित कर दिया जाए.

प्रीतपाल सिंह जिला होशियारपुर के गांव मंसूरपुर में रहते थे. रात को 2 बजे फोन द्वारा जब उन्हें खबर दी गई तो वह अपनी पत्नी कुलदीप कौर को साथ ले कर उसी समय घर से निकले और सुबह तक बहन के गांव अकबरपुर पहुंच गए. उस से पहले सरपंच ने पुलिस को भी फोन कर दिया था.

हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू टीम के साथ मौके पर आ गए. पुलिस ने जब स्वराज कौर की लाश का मुआयना किया तो उन के सिर पर बाईं ओर गहरा घाव था. उस में से खून निकलने के बाद सूख चुका था.

थानाप्रभारी ने दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर से घटना के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने रोते हुए रात का पूरा वाकया बता दिया. पुलिस को उन की बात पर शक तो हुआ, पर उस समय गम का माहौल था, इसलिए उन से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर के बयान दर्ज किए तो दोनों के बयानों में कई पेंच दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बताया कि लुटेरे घर से लगभग 7 तोले सोने के आभूषण और कुछ हजार रुपए की नकदी लूट ले गए हैं.

2 बातें थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू की समझ में नहीं आ रही थीं. एक तो मामूली लूट के लिए 12 लुटेरों का आना, दूसरे 12 लोग जब कहीं लूटमार करेंगे तो वहां अच्छाखासा हंगामा खड़ा हो जाना स्वाभाविक है, जबकि यहां किसी पड़ोसी को भी वारदात की भनक नहीं लगी थी. लुटेरों ने स्वराज कौर को तो जान से मार दिया था, जबकि उन की दोनों बहुओं को मामूली सी खरोंचें ही लगी थीं. थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या और लूट की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने जांच टीम में एएसआई परमिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरनाम सिंह, नौनिहाल सिंह, रविंदर सिंह व लेडी हैडकांस्टेबल सुरजीत कौर को शामिल किया था.

प्रीतपाल सिंह ने भी पुलिस से शक जताया कि उन की बहन की हत्या लूट की वजह से नहीं, बल्कि किसी साजिश के तहत की गई है.

थानाप्रभारी ने अब तक की काररवाई के बारे में एसएसपी अलका मीणा और डीएसपी डा. नवनीत सिंह माहल को अवगत करा दिया था. इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी को जो सूचना दी, उस के आधार पर मृतका की दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को हिरासत में ले लिया गया और उन की निशानदेही पर गांव अकबरपुर के ही अंचल कुमार उर्फ लवली को भी हिरासत में ले लिया गया.

इन तीनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वराज कौर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में स्वराज कौर की हत्या और इस फरजी लूटपाट की जो कहानी सामने आई, वह परपुरुष की बाहों में सुख तलाशने वाली औरतों के अविवेक का नतीजा थी—

कमलजीत सिंह और संदीप सिंह के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर के घर में नोटों की बारिश जरूर होने लगी थी, पर अपनेअपने पति से दूर होने पर दोनों बहुओं की हरीभरी जिंदगी में सूखा पड़ गया था. यानी उन्हें पैसा तो भरपूर मिल रहा था पर पति के प्यार को तरस रही थीं.

कमलजीत और संदीप दोनों ही बड़े मिलनसार थे. अपने और आसपास के गांवों में उन का अच्छा उठनाबैठना था. इस कारण उन के कई यारदोस्त थे, जो उन की गैरमौजूदगी में घर का हालचाल जानने आ जाते थे. दिखावे के लिए तो वे सब स्वराज कौर की खैरखबर जानने के लिए आते थे, पर हकीकत यह थी कि उन की नजरें राजदीप और राजेंद्र कौर पर थीं.

अकबरपुर का अंचल कुमार उर्फ लवली बड़ी बहू राजेंद्र कौर को चाहने लगा तो वहीं राजदीप की आंखें गांव जलालपुर, होशियारपुर के गुरदीप सिंह से लड़ गईं. कुछ ही दिनों में उन के बीच अवैध संबंध बन गए.

राजेंद्र कौर अपने प्रेमी अंचल कुमार को रोज रात के समय अपनी कोठी पर बुला लेती थी. गुरदीप का गांव जलालपुर दूर था, इसलिए वह रोज न आ कर सप्ताह में 2-3 बार राजदीप कौर के पास आता था.

चूंकि राजेंद्र कौर और अंचल कुमार का मिलनेमिलाने का सिलसिला चल रहा था, इसलिए राजेंद्र कौर अपनी सास स्वराज कौर के रात के खाने में नींद की गोलियां मिला देती थी, ताकि सास को कुछ पता न चले.

लाख सावधानियों के बाद भी स्वराज कौर को अपनी बहुओं के बदले व्यवहार पर संदेह होने लगा. वह बारबार उन से गैरपुरुषों से बातचीत करने से मना करती थीं. पर वे सास की बात पर ध्यान नहीं देतीं. करीब 4 सालों तक उन के संबंध जारी रहे. इस बीच राजदीप कौर का प्रेमी गुरदीप नौकरी के लिए विदेश चला गया.

स्वराज कौर को गांव के लोगों से बहुओं की बदचलनी की बातें पता चलीं तो उन्होंने दोनों बहुओं को बहुत डांटा. तब दोनों बहुओं ने सास से लड़ाई भी की. स्वराज कौर ने झगड़े की बात अपने भाई प्रीतपाल को भी बता दी थी, साथ ही उस ने बहुओं को धमकी दी कि बेटों के सामने वह उन का भांडा फोड़ देंगी.

सास की इस धमकी से राजेंद्र कौर डर गई. उस ने अंचल के साथ मिल कर सास की हत्या की ऐसी योजना बनाई, जो हत्या न लग कर कोई दुर्घटना लगे. इस काम के लिए अंचल ने अपने एक दोस्त गुरमीत को भी योजना में शामिल कर लिया. 3-4 फरवरी, 2017 की रात राजेंद्र कौर ने स्वराज के खाने में नींद की गोलियां कुछ ज्यादा मात्रा में मिला दीं.

रात करीब 12 बजे राजेंद्र कौर ने अंचल को फोन कर दिया तो वह अपने दोस्त के साथ सीधा राजेंद्र कौर के कमरे पर पहुंचा. उस समय राजदीप कौर भी वहीं थी. चारों स्वराज के कमरे में पहुंचे. राजदीप कौर ने सोती हुई सास की टांगें कस कर पकड़ लीं और राजेंद्र कौर ने दोनों बाजू काबू कर लिए.

तभी अंचल ने तकिया स्वराज के मुंह पर रख कर दबाया. फिर उन के गले में चुन्नी का फंदा डाल कर दोस्त के साथ उस फंदे को कस दिया. कुछ ही पलों में स्वराज की मौत हो गई. इस के बाद अंचल ने अपने साथ लाई हुई लोहे की रौड से स्वराज के सिर पर वार कर घायल कर दिया.

स्वराज की हत्या के बाद उन्होंने घर की अलमारियों से सामान निकाल कर कमरे में फैला दिया, ताकि देखने में मामला लूटपाट का लगे. राजेंद्र कौर और राजदीप ने घर में रखे करीब 7 तोले के आभूषण और कुछ हजार रुपए निकाल कर अंचल को दे दिए. इस के बाद अंचल ने दिखावे के लिए दोनों के शरीर पर कुछ खरोंचे मार दीं, जिस से किसी को शक न हो.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने लोहे की रौड, ज्वैलरी व रुपए भी बरामद कर लिए. पुलिस ने चौथे आरोपी संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ कर उन्हें 7 फरवरी, 2017 को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी मां की हत्या की खबर सुन कर कमलजीत सिंह और संदीप सिंह जब अपने गांव आए तो मां की मौत का उन्हें बड़ा दुख हुआ.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ऐसे लगाएं पता, किस ऐप से सबसे ज्यादा खर्च हो रही है मोबाइल की बैटरी

रोजमर्रा की जिंदगी में स्मार्टफोन का इस्तेमाल लगातार बढ़ता ही जा रहा है. लेकिन स्मार्टफोन के इस दौर में उसका बैटरी बैकअप कम होना एक बड़ी समस्या है. जिसपर मोबाइल बनाने वाली कंपनियां लगातार काम कर रही हैं. अक्सर लोगों की यह समस्या होती है कि ज्यादा प्रयोग न करने के बाद भी उनके स्मार्टफोन की बैटरी चली जाती है. अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रही है, तो आप पता लगा सकते हैं कि आपके फोन में ऐसा कौन सा ऐप है जो सबसे ज्यादा बैटरी खर्च कर रहा है. आइये जानते हैं कि कैसे आप इसका पता लगा सकते हैं.

आप अपने फोन की सेटिंग्स पर जाएं. जहां नीचे बैटरी का आप्शन दिखाई देगा, उसपर क्लिक कर दें. जिसके बाद आपके फोन की स्क्रीन पर बैटरी का पूरा ब्योरा आपके सामने आ जाएगा. कौन सा ऐप कितनी बैटरी खर्च कर रहा है, इतना ही नहीं आपके फोन की डिस्प्ले कितनी बैटरी खर्च कर रही है, फोन पर बात करने पर कितनी बैटरी खर्च हुई है, फोन का सिस्टम कितनी बैटरी ले रहा है, यह सब आपको पता चल जाएगा.

फोन में कौन सा ऐप ज्यादा बैटरी खर्च कर रहा है इसका पता चलने के बाद आप यह पता लगाने की कोशिश करें कि यह क्यों ज्यादा बैटरी खर्च कर रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह आपके फोन के बैकग्राउंड में चल रहा है. अगर ऐसा है तो प्ले स्टोर में जाकर यह देख लें कि ऐप में अपडेट्स तो नहीं आ गए. अगर अपडेट्स हैं तो उसे अपडेट कर लें. अगर ऐप आपके काम का नहीं है तो कोई दूसरा विकल्प भी इस्तेमाल करके देख सकते हैं. ऐसा आप अपने फोन में मौजूद सभी ऐप्स के साथ कर सकते हैं. गूगल प्ले स्टोर में जाकर सभी ऐप्स को अपडेट रखें साथ ही फोन में चलने वाले बैकग्राउंड ऐप्स को भी मेन्युअली बंद करते रहें.

फोन में ऐसे ऐप्स को डाउनलोड करने से बचें जो स्क्रीन पर बार-बार ऐड दिखाते हों. थर्ड पार्टी ऐप्स को भी डाउनलोड न करें. इन कुछ छोटे छोटे उपायों से आपके फोन का बैटरी बैकअप बढ़ सकता है.

गूगल आपको दे रहा 65 हजार रुपये कमाने का सुनहरा मौका

गूगल आपको घर पर बैठकर 65 हजार रुपए कमाने का एक शानदार मौका दे रहा है. इसके लिए आपको बस एंड्रायड ऐप की सुरक्षा में खामी को खोज कर गूगल को बताना होगा, जिसके लिए आपको गूगल 65 हजार रुपए की धनराशि इनाम को तौर पर देगी. दरअसल, गूगल ने एंड्रायड ऐप की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए बग बाउंटी प्रोग्राम को नए स्तर पर लान्च किया है. जिसके जरिए अब गूगल प्ले स्टोर की सुरक्षा में खामी खोज कर गूगल को बताने का मौका दिया जा रहा है.

गूगल ने अपनी वेबसाइट में कहा कि गूगल प्ले स्टोर में मौजूदा ऐप्स को और अधिक बेहतर व सुरक्षित बनाने के लिए गूगल प्ले सिक्योरिटी रिवार्ड प्रोग्राम बनाया गया है. जिससे कि डेवलपर्स, एंड्रायड यूजर्स और पूरे गूगल प्ले इकोसिस्टम को फायदा होगा. इस प्रोग्राम को बनाने में कई सिक्योरिटी रिसर्चर्स ने अपना अहम समय दिया है

बता दें कि गूगल ने इस बग बाउंटी प्रोग्राम के लिए साइबर सिक्योरिटी के सबसे बड़े प्लेटफार्म हैकेरान के साथ पार्टनरशिप की है. हैकरान साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर्स और बिजनेस के बीच की एक कड़ी है. बग बाउंटी के तहत रिसर्चर को प्ले स्टोर के ऐप्स में खामियों का पता लगाना होगा. खामियां मिल जाने पर उसको सीधा ऐप डेवलपर से संपर्क करना होगा. जिसके बाद ऐप डेवलपर रिसर्चर के साथ मिलकर खामियों को दूर करने का काम करेगा. खामियां दूर होने जाने के बाद रिसर्चर को बोनस बाउंटी के लिए गूगल प्ले सिक्योरिटी से अपील करना होगा.

किसी भी खतरे से बचने के लिए गूगल के अलावा फेसबुक जैसी बड़ी कंपनिया और दुनिया की अन्य बड़ी टेक कंपनियां भी बग बाउंटी प्रोग्राम चला रही हैं. जिसके तहत साफ्टवेयर में खामियों का पता लगाने वाले समूह या व्यक्ति को इनाम दिया जाता है.

टिकट बुकिंग एप की तैयारी में भारतीय रेलवे, लोगों को होगी आसानी

भारतीय रेलवे आम नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए आए दिन कोई ना कोई नई घोषणा कर रहा है. हम जब कभी ट्रेन का टिकट लेने जाते थे तो टाइम आउट और ना जाने कितनी समस्याओं से हमें जूझना पड़ता था. इसे ही ध्यान में रखते हुए रेलवे एक नई योजना पर काम कर रहा है.

रेलवे जल्द ही एक नई वेबसाइट और ऐंड्रौयड आधारित IRCTC मोबाइल ऐप लौन्च करने की तैयारी में है. इससे तेज और आसानी से टिकट बुकिंग हो सकेगी. नई वेबसाइट में आसान लौग-इन और नैविगेशन सुविधा होगी. टिकट बुकिंग के समय ‘टाइम आउट’ होने जैसी समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ेगा. नई वेबसाइट और ऐप के जरिए रेलवे का ज्यादा से ज्यादा बिजनेस आकर्षित करने का प्लान है.

देरी होने पर आएगा अलर्ट

रियल टाइम बेसिस पर यात्रियों को ट्रेन के पहुंचने और छूटने के समय का अलर्ट भेजा जाएगा. जिससे यात्री समय से स्टेशन पहुंच सके.

नए फीचर्स के तहत पैसेंजर्स को कनफर्म टिकट उपलब्ध होने की तारीख बताई जाएगी ताकि वे आसानी से अपनी यात्रा प्लान कर सकें.

इसके अलावा तत्काल जैसी सेवाओं के गलत इस्तेमाल को भी कम करने की कोशिश की जाएगी.

यात्रा के दौरान किसी भी तरह की देरी होने पर भी पैसेंजर्स को मोबाइल फोन पर टेक्स्ट अलर्ट भेजा जाएगा. उन्हें देरी की वजह, ट्रेन के अगले स्टेशन और अपने गंतव्य तक पहुंचने का समय भी बताया जाएगा.

इंडियन स्पेस रिसर्च और्गनाइजेशन (ISRO) की मदद से शामिल किया जाएगा ताकि यात्रियों को सैटलाइट के इस्तेमाल से ट्रेन की वास्तविक लोकेशन बताई जा सके.

क्या कहता है रेलवे

रेलवे अधिकारी के मुताबिक, ‘इसकी मदद से रियल टाइम पर किसी भी ट्रेन का लोकेशन ट्रैक किया जा सकेगा.’ मौजूदा समय में लोकल स्टेशन अधिकारी ही ट्रेन के आने-जाने का समय बताते हैं. अधिकारी ने ये भी माना कि IRCTC के अलावा दूसरी ट्रैवल वेबसाइट्स काफी आसान और तेज हैं.

बचपन के दोस्त एक बार फिर आ गए हैं साथ साथ

भारतीय क्रिकेट टीम के दो पूर्व खिलाड़ी मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने आखिरकार सालों पुरानी कड़वाहट भूलकर फिर से दोस्ती कर ली है. बचपन से दोस्त रहे दोनों क्रिकेटर्स के बीच कुछ समय पहले गलतफहमियां पैदा हो गई थीं. जिसकी वजह से दोनों के बीच दूरियां आ गई थीं, लेकिन अब दोनों के बीच सब ठीक है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक अब दोनों क्रिकेटर्स फिर से अच्छे दोस्त बन गए हैं. कांबली का कहना है कि अब दोनों के बीच सब कुछ ठीक है और वे इस बात से काफी खुश हैं. उन्होंने कहा, ‘हम दोनों ने एक दूसरे को गले लगाकर सारी कड़वाहट खत्म कर ली है और अब लोगों को बताना चाहते हैं कि हम वापस आ चुके हैं.

 

हालांकि कांबली ने ये साफ नहीं किया है कि दोस्ती को फिर से पहले जैसा बनाने के लिए पहला कदम किसने उठाया लेकिन 45 वर्षीय कांबली का कहना है कि दोनों ने सहमति से सब गलतफहमियां ठीक की हैं और इन सबके लिए वे काफी खुश भी हैं.

एक बुक लौन्चिंग के कार्यक्रम में सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली दोनों ही पहुंचे थे. कार्यक्रम के दौरान की फोटोग्राफर और प्रोड्यूसर अतुल कस्बेकर ने ट्विटर पर एक फोटो पोस्ट की, जिसमें तेंदुलकर और कांबली को देखकर साफ पता चल रहा था कि दोनों महान क्रिकेटर्स एक बार फिर बेस्ट फ्रेंड्स बन गए हैं.

 

अतुल की फोटो पर कांबली ने ट्वीट कर सचिन तेंदुलकर के लिए बेहद ही प्यारा संदेश दिया. उन्होंने लिखा, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, आई लव यू. इससे पहले भी तेंदुलकर की बायोपिक ‘सचिन: ए बिलियन ड्रीम्स’ के रिलीज के वक्त भी कांबली ने हिंट दिया था कि उनकी और सचिन के बीच अब सब नौर्मल हो रहा है. उन्होंने अपनी और सचिन की एक फोटो ट्वीट कर कहा था, ‘डियर मास्टर ब्लास्टर, आई लव यू.’

बता दें कि बचपन के दोस्त रहे कांबली और सचिन के बीच गलतफहमियां पैदा होने से दूरियां आ गई थीं. एक समय में कांबली को ये लगने लगा था कि सचिन तेंदुलकर उनका डूबता क्रिकेट करियर बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया था.

जुलाई 2009 में अपनी और सचिन की दोस्ती पर बात करते हुए कांबली ने कहा था, ‘हम बहुत अच्छे दोस्त थे. वह थोड़ी कोशिश कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया.’ कांबली की टिप्पणी से आहत तेंदुलकर ने 2013 में अपने फेयरवेल के दौरान भी कांबली को इनवाइट नहीं किया था, यहां तक कि उन्होंने अपनी फेयरवेल स्पीच में भी कांबली का नाम नहीं लिया था.

ट्विंकल खन्ना को किताबों पर बैठना पड़ा महंगा, लोगों ने सुनाई खरी-खोटी

एक्‍टिंग से राइटिंग की ओर बढ़ीं ट्विंकल खन्ना को अक्‍सर उनकी किताबों के लिए तारीफें मिलती रही हैं. हर बार की तरह इस बार भी उनकी किताबों को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है, पर इस बार मामला कुछ और है.

दरअसल, इस बार ‘मिस फनी बोन्‍स’ किताब के कंटेंट के लिए नहीं, बल्कि किताबों पर बैठने के लिए ट्रोल हुई हैं. जी हां, मंगलवार को अक्षय कुमार की पत्‍नी ट्विंकल ने अपना एक फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया है. इस फोटो में  वह किताबों के ढेर पर पजामा पहन कर बैठी नजर आ रही हैं.

उनका यह फोटो, फैशन मैगजीन के लिए कराए गए एक फोटोशूट का हिस्सा है. जिसमें ट्विंकल खन्ना किताबों पर तो बैठी हैं पर उनका पैर एक स्‍टूल पर रखा हुआ है, जिसे लोगों ने किताबों का ही ढेर समझ लिया है. ऐसे में लोगों ने किताबों पर पैर रखे जाने के लिए उन्‍हें जमकर ट्रोल किया और कई लोगों ने अपना गुस्‍सा जाहिर करते हुए उन्हें काफी खरी खोटी भी सुनाईं.

कुछ लोगों ने इस फोटो पर अपना गुस्‍सा जताते हुए कमेंट किया कि,  ‘किताबों पर जूतों के साथ बैठने के लिए आपको शर्म आनी चाहिए.’

ट्रोल होने के बाद ट्विंकल ने लोगों के सामने अपनी बात रखते हुए ट्रोलर्स से कहा कि उनका पैर किताब पर नहीं बल्कि एक स्‍टूल पर रखा हुआ है.

ट्विंकल ने इसपर अपनी सफाई देते हुए लिखा, ‘आसानी से क्रोधित हो जाने वाले लोगों के लिए- मेरा पैर किताबों पर नहीं बल्कि एक स्‍टूल पर रखा है, क्‍योंकि मैं नहीं चाहती कि धूल किताब के कवर पर लगे. इसके अलावा मुझे किताबों पर बैठने, उनके पास सोने और यहां तक की बाथरूम में पढ़ने के लिए उनका ढेर लगाने से भी कोई समस्‍या नहीं है. बुद्धि के देवता आपके पास तब आएंगे जब आप उन्‍हें पढ़ेंगे, न कि उनकी पूजा करेंगे. इस किताबी कीड़े की तरफ से आपको खूब सारी खुशियां और प्‍यार.’

बता दें कि ‘जब प्‍यार किसी से होता है’, ‘बादशाह’ और ‘मेला’ जैसी फिल्‍मों में नजर आने वाली ट्विंकल खन्ना ‘मिसेस फनी बोन्‍स’ और ‘द लिजेंड आफ लक्ष्‍मी प्रसाद’ नाम की किताबें लिख चुकी हैं. वह जल्‍द ही अपनी पहली प्रोड्यूज फिल्‍म ‘पेडमैन’ लेकर आ रही हैं. इस फिल्‍म में उनके पति अक्षय कुमार, सोनम कपूर और राधिका आप्‍टे नजर आएंगी. जिसका निर्देशन आर बाल्‍की कर रहे हैं.

मायावती आखिर किसको दे रही हैं ‘बौद्ध धर्म’ की धमकी

अगर भाजपा नही सुधरी तो मायावती बौद्ध धर्म अपना लेंगी. खुद मायावती ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक सभा में यह बात कही. मायावती का कहना है कि भाजपा ने दलितों, अति पिछडों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के प्रति अपनी सोच नहीं बदली तो वह हिन्दू धर्म छोडकर बौद्ध धर्म अपना लेंगी. मायावती ने यह बात बसपा के एक कार्यकर्ता सम्मेलन में कही.

पूर्वांचल के आजमगढ़ में आयोजित इस सम्मेलन में आजमगढ़, वाराणसी और गोरखपुर के कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे थे. मायावती की इस धमकी को फूलपुर लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. मायावती की रणनीति यह है कि किसी भी तरह से वह चुनावी लड़ाई में सबसे प्रबल दावेदार बनी रहे. मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की धमकी देकर नये सवालों को जन्म दे दिया है. लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि डाक्टर भीमराव अम्बेडकर की नीतियों पर चलने के बाद अब तक मायावती ने बौद्ध धर्म स्वीकार क्यों नहीं किया? क्या अब तक दलितों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा था?

हिन्दू धर्म में बढ़े भेदभाव, धार्मिक कर्मकांड और ऐसी ही तमाम कुरीतियों का विरोध करते हुये डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को छोड कर बौद्ध धर्म अपना लिया. इसका प्रभाव भी पडा. कम से कम दलित बिरादरी में नई सोच का जनम हुआ था. दलित वर्ग के लोग खुद तो जागरुक हो ही रहे थे, अपने साथियों को भी जागरुक कर रहे थे.

जब दलित आन्दोलन को लेकर कांशीराम आगे बढ़े, तो वह भी बौद्ध धर्म अपना नहीं पाये थे. हालांकि कांशीराम बौद्ध धर्म अपनाना चाहते थे. मायावती ने दलित आन्दोलन से एकजुट बिरादरी का लाभ लेकर उत्तर प्रदेश में अपनी एक ताकत बनाई. 4 बार वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. वह दलित चेतना की बात को भूल गई. राजनीतिक ताकत के लिये दलित ब्राहमण गठजोड़ कर लिया. ऐसे में कभी भी यह नहीं लगा कि सामाजिक रूप से कहीं दलित और ब्राहमण एक साथ खड़े हों.

दलित के साथ तब भी समाज में वहीं भेदभाव था जो आज है. मायावती को दलित बिरादरी के लिये सामाजिक रूप से जो करना था वह नहीं कर पाई. जिससे दलित को लगा कि क्यों न वह धर्म की शरण में जाकर ही अपना उद्वार कर ले. भाजपा ने इस बात का लाभ उठाया. दलितों में कुछ वर्गों को भाजपा ने अपने साथ मिला लिया. अब यह लोग अगडों की तरह पूजा करते हैं. यह लोग मंदिरों में जाकर पूजा पाठ करना चाहते हैं. इनको लगता है कि अगड़ी जातियों की बराबरी के लिये जरूरी है कि वह भी उस तरह का ही काम करे. यह वर्ग इसी सोच में फंस मायावती से दूर हट गया. भाजपा ने इस वर्ग को नव हिन्दुत्व का पाठ पढ़ा दिया.

मायावती की असल परेशानी यह है कि दलित नव हिन्दुत्व की विचारधारा में शामिल होकर भाजपा से क्यो जुड़ रहे हैं? अगर यह बात मायावती ने कुछ समय पहले स्वीकार की होती और इसमें सुधार किया होता, तो बसपा इतना पीछे नहीं जाती. अब मायावती के बौद्ध धर्म अपनाने से भाजपा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला. दलित समाज भी इसको लेकर बहुत गंभीर नहीं है. मायावती को अगर दलितों कों अपने से जोड़ना है तो उनको यह समझाना शुरू करें कि क्या उनके लिये अच्छा है और क्या बुरा?

दलित अब पहले की तरह मायावती की बातों को आंख मूंद कर भरोसा करने को तैयार नहीं है. मायावती की दलितों के बीच जो छवि 2007 में थी अब वह नहीं रह गई है. मायावती को अगर अपनी खोई जमीन हासिल करनी है तो खोई छवि भी वापस लानी होगी. तभी बसपा का भला होगा. बौद्ध धर्म के शिगूफे से कुछ हासिल नहीं होगा. दलितों की बड़ी बिरादारी बौद्ध धर्म और उसकी खूबियों से अब परिचित भी नहीं रह गई है. भाजपा की सेहत पर इस बात से क्या फर्क पड़ने वाला है कि मायावती हिन्दू धर्म अपनाये चाहे बौद्ध. कानूनी तौर पर बौद्ध धर्म अपनाने की प्रक्रिया जटिल है. इसकी अनुमति उसी तरह नहीं मिलती जिस तरह से पिछड़ों को दलित वर्ग का दर्जा नहीं दिया जा रहा है.

शिंजो आबे की दोबारा जीत का मतलब जनता का समर्थन नहीं

शिंजो आबे की दोबारा जीत का मतलब यह कदापि नहीं कि जनता ने उनके प्रशासन व प्रदर्शन के प्रति पूरा समर्थन व्यक्त किया है, उसने इस बार उम्मीद जरूर रखी है कि उनके प्रधानमंत्री ऐसी स्थिर नीतियों पर आगे बढ़ेंगे, जो जापान को आर्थिक पुनरुद्धार और सुरक्षा की ओर ले जाएंगी. इस बार की जीत के यही असल मायने हैं, जिसे जापानी जनता की व्यापक आकांक्षाओं के रूप में लेने की जरूरत है.

आबे की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को जबर्दस्त बहुमत मिला है. यह 2012 के बाद आबे की लगातार विजय का भी रिकॉर्ड है. नतीजे आने के बाद आबे ने अपने शासन का निश्चय दोहराते हुए साफ किया कि ‘स्थिर राजनीति के तहत एक-एक कर नतीजे हासिल करना उनका मकसद रहेगा.’ सच यह है कि इस तीसरी विजय के साथ ही आबे की चुनौती बढ़ गई है और घरेलू व विदेशी नीतियों के संदर्भ में उन्हें स्थायित्व और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करके न सिर्फ देश को कुछ नया देने का संकल्प लेना होगा, बल्कि इस पर आगे बढ़ते हुए दिखना होगा.

जापान इस वक्त मुद्रास्फीति, राजकोषीय पुनर्निर्माण और उत्तर कोरिया के परमाणु व मिसाइल विकास कार्यक्रम जैसी मुश्किल चुनौतियां झेल रहा है. ऐसे में, जरूरी था कि देश का नेतृत्व ऐसे हाथ में रहता, जिसका सब कुछ समझा-बूझा हो. जापान का नेतृत्व ऐसे विपक्षी दलों को नहीं सौंपा जा सकता था, जिस तरह के विपक्षी दल आज हमारे यहां हैं. आबे प्रशासन के पास प्रशासनिक निरंतरता और नीतियों को लागू करने की व्यापक क्षमता है. ऐसे हालात में देश के हित में यही बेहतर विकल्प था और जनादेश को इसी रूप में देखने की जरूरत है.

चुनाव प्रचार के बीच के सर्वेक्षर्णो के निष्कर्षो के संदर्भ में भी आबे को यह नहीं मान लेना चाहिए कि उनकी नीतियों और उनके राजनीतिक तेवर पर जनता ने बिना शर्त मुहर लगा दी है.

सच यही है कि मतदाता ने सत्ताधारी गठबंधन की प्रशासनिक क्षमता को महत्व दिया, पर जीत का बड़ा सेहरा विपक्ष की नाकामियों और गलतियों को दिया जाना चाहिए. लेकिन आबे प्रशासन का अहंकारी रुख आगे भी जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब मतदाता अपना निर्णय बदलने को मजबूर होगा.

अब इस आसान तरीके से करें पीडीएफ फाइल को टेक्सट में कनवर्ट

कंप्यूटर में एडोब रीडर का इस्तेमाल लगभग हर कोई करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एडोब की पीडीएफ फाइल को टेक्सट में कैसे कनवर्ट किया जाता है. इसके लिए औनलाइन कई तरीकें और सौफ्टवेयर मौजूद हैं. कई सौफ्टवेयर्स में एड भी होते हैं जो यूजर्स को अलग अलग औफर्स देकर उनकी निजी जानकारी चुराने की कोशिश करते हैं. वहीं, ये सौफ्टवेयर फाइल को कनवर्ट करने के लिए पैसे भी मांगते हैं.

इस खबर में हम आपको एक सुरक्षित सौफ्टवेयर के बारे में बताने जा रहे हैं जो आसानी फ्री में फाइल कनवर्ट कर सकता है. इस सौफ्टवेयर का नाम Tabula है. यह एक फ्री सौफ्टवेयर है. इसे आसानी से डाउनलोड और इंस्टौल भी किया जा सकता है. इसे विंडोज और मैक पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

कैसे काम करता है Tabula

इसे डाउनलोड करने के लिए इसकी वेबसाइट पर जाएं. अब विंडोज या मैक जो वर्जन भी डाउनलोड करना है उसपर क्लिक करें. अब इसे सेव करने का विकल्प आएगा. यहां से इसे सेव करें.

अब जहां इसे सेव किया है वहां जाकर फाइल पर राइट क्लिक करें. इसके बाद Extract पर टैप करें. इससे आपकी फाइल सेव हो जाएगी.

इसके बाद फोल्डर को खोलें और यहां जो एप दी गई होगी उसे पीसी में इंस्टौल करें. यह सौफ्टवेयर आपके ब्राउजर के नए टैब में ओपन हो जाएगा.

यहां आप एक से ज्यादा पीडीएफ फाइल को अपलोड कर सकते हैं. यहां आपको browse का विकल्प दिया गया होगा. इस पर टैप करें.

अब जो भी फाइल आपको कनवर्ट करनी है उसे सेलेक्ट करें. इसके बाद Import पर टैप कर दें. यहां आपको waiting for the process का विकल्प मिलेगा.

प्रोसेस पूरा होने के बाद आपके सामने एक नई विंडो खुल जाएगी. यहां आपकी पीडीएफ फाइल दी गई होगी. यहां से आपको जो भी डाटा टेक्सट में कनवर्ट में करना है उसे सेलेक्ट करें और ऊपर दिए गए Preview and export extracted data पर क्लिक कर दें.

अब एक और विंडो ओपन होगी जहां आपको टेक्सट दिया गया होगा. इसे आप कहीं भी सेव कर सकते हैं.

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