कराची में सिंध हाईकोर्ट के बाहर अजीबोगरीब नजारा दिखा, जब नेशनल अकाउंटबिलिटी ब्यूरो के लोग सिंध के भूतपूर्व सूचना मंत्री शरजील मेमन की धर-पकड़ में मशक्कत करते दिखाई दिए और यह सब टीवी पर फ्लैश होता रहा. पीपीपी नेता मेमन को 11 अन्य लोगों के साथ सार्वजनिक निधियों में पांच अरब के घोटाले में गिरफ्तार किया गया है. इस हाई प्रोफाइल गिरफ्तारी ने जवाबदेही तय किए जाने के मामलों को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. माना जा रहा है कि इससे राजनीतिक हलकों में भ्रष्टाचार का मामला एक बार फिर तूल पकड़ेगा.

पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो ने इस मामले में कानून के मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया है. हालांकि ऐसे आरोपों पर सवाल करने की पूरी गुंजाइश है. सवाल उठता है कि अपनी सुविधा से मामलों की गंभीरता और उन पर कार्रवाई को अलग करके आंकना कितना उचित है? तब तो और भी नहीं, जब नेशनल काउंटबिलिटी ब्यूरो का प्रमुख आम सहमति से चुना गया हो और इस सहमति में पीपीपी भी साझीदार हो. उचित तो यही होगा कि पीपीपी इस मामले की जांच प्रक्रिया में सहयोग करे और मेमन सहित अन्य अभियुक्त खुद को अदालत में बेगुनाह साबित करें. ऐसे समय में, जब भ्रष्टाचार के मामले में देश की छवि पूरे विश्व में बहुत ज्यादा खराब हो, पाकिस्तान की प्रगति के लिए देश में जवाबदेही तय होना अब बहुत जरूरी है.

सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक भ्रष्टाचार विकास में बाधक होता है और इससे जनता का भी सिस्टम पर भरोसा टूटता है. सच तो यह है कि पारदर्शिता का दूसरा कोई विकल्प नहीं और घूसखोरी-दलाली खत्म करने का यही पहला और प्रमुख जरिया है.

दुर्भाग्य से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार विरोधी हर प्रयास का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने में होता आया है. पार्टियां इसे पालती-पोसती रही हैं. निर्वाचित लोगों को तो खुद को सार्वजनिक जांच के लिए हमेशा प्रस्तुत रखना चाहिए, खासकर जहां मामला वित्तीय अराजकता का हो. यह सही है कि जवाबदेही का मामला सिर्फ सियासी दलों तक नहीं, सेना, नौकरशाही न्यायपालिका सहित तमाम सरकारी संस्थाओं तक भी आना चाहिए.

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