दुनिया में जब भी स्पिन गेंदबाजों का नाम लिया जाता है तो मुथैया मुरलीधरन, शेन वौर्न या अनिल कुंबले का जिक्र होता है. लेकिन कई ऐसे स्पिन गेंदबाज भी थे, जिनकी अंगुलियों में गेंद को टर्न कराने की गजब की क्षमता होते हुए भी वह ओहदा नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे.

आज बात करेंगे ऐसे ही खिलाड़ियों की, जिन्होंने टीम को कई बार मुश्किलों से उबारा, लेकिन क्रिकेट इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में कभी नहीं लिखा गया.

पौल स्टैंग

मौजूदा टीम से उलट साल 1990 और 2000 में जिम्बाब्वे एक मजबूत टीम मानी जाती थी. इसी टीम का अहम हिस्सा थे लेग स्पिनर पौल स्टैंग. अच्छे एक्शन वाले स्टैंग की गेंदें काफी स्विंग होती थीं, जिस वजह से उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों में विकेट झटके. लेकिन फिर भी उन्हें 119 अंतरराष्ट्रीय मैचों में खेलने का ही मौका मिला. 24 टेस्ट मैचों में उन्होंने 70 विकेट झटके. जबकि 95 वनडे मैचों में उन्होंने 96 विकेट लिए.

डैनियल विटोरी

साल 2000 के अंत में इस खिलाड़ी ने अकेले ही पूरी न्यूजीलैंड टीम का कायाकल्प बदल दिया था. यूं तो न्यूजीलैंड की पिचों को तेज कहा जाता है, लेकिन विटोरी की गेंदों ने वहां भी कहर बरपाया है. 34.36 की औसत से 113 टेस्ट मैचों में उन्होंने 362 विकेट लिए हैं. जबकि 295 वनडे मैचों में उनके नाम 305 विकेट हैं. 34 टी20 मैचों में उन्होंने 38 विकेट लिए हैं.

स्टुअर्ट मैकगिल

जब यह खिलाड़ी औस्ट्रेलियाई टीम में था तो उन वक्त शेन वौर्न का रुतबा अलग ही था. इसी वजह से उन्हें ज्यादा क्रिकेट खेलने का मौका मिला ही नहीं. कंगारू टीम के लिए कुल मिलाकर 47 अंतरराष्ट्रीय मैच (टेस्ट और वनडे) खेलने वाले मैकगिल ने 2003 में शेन वौर्न पर बैन लगने के बाद उनकी जगह को भरने की पूरी कोशिश की. 44 मैचों में उन्होंने 29.02 की औसत से 208 विकेट झटके थे.

ग्रीम स्वान

आधुनिक क्रिकेट में सबसे कमतर खिलाड़ियों में आंके जाने वाले ग्रीन स्वान ने अपने करियर के दौरान इंग्लैंड क्रिकेट टीम को बुलंदियों पर पहुंचाया. 2010 के आईसीसी टी20 क्रिकेट विश्व कप में उन्होंने कैरिबियाई पिचों में जमकर धमाल मचाया था. इस टूर्नामेंट में वह पांचवे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी थे. इसी प्रदर्शन की बदौलत इंग्लैंड ने यह टूर्नामेंट जीता था.

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