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कामवाली बाइयों के नखरे और आपकी बढ़ती चिंता

हमारे देश के महानगर हों या नगर, अधिकांश स्त्री को घर में काम करने वाली बाइयों से वास्ता पड़ता ही है. ज्यादातर स्त्रियां औफिस, बिजनैस, किसी कला या फिर पारिवारिक व्यस्तताओं में इतनी डूबी होती हैं कि उन के पास रोजमर्रा की घरेलू साफसफाई करने के लिए न तो ऊर्जा बचती है, न ही समय. ऐसे में घर के कामों में मदद के लिए कामवाली बाइयां उपयुक्त हैं. मगर ये बाइयां अपनी मालकिनों को परेशान करने की कला में भी कम निपुण नहीं होतीं.

यहां हम कामवालियों के नएपुराने फरमानों और उन के नखरों से उत्पन्न होने वाली दैनिक जीवन की परेशानियों की बात कर रहे हैं, जिन्हें झेलने के लिए घर की महिलाएं ही रह जाती हैं. यों कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कामवाली औरतों को संभालना आज एक कठिन मोरचे पर खुद के आत्मसमर्पण करने जैसा है.

नमिता सुबह 5 बजे उठती है. दोनों बच्चों को स्कूल भेजना, पति का औफिस और फिर खुद जौब के लिए निकलना. सुबह 9 बजे तक अफरातफरी के बीच सिंक में रात के बरतनों का ढेर, सफाई के बाट जोहते बासी कपड़े, झाड़ूपोंछा को तरसते फर्श, और तो और, इन सब के बीच एकएक बरतन धो कर नाश्ते के इंतजाम में लगी नमिता को परेशान करती घड़ी की बेरहम रफ्तार और घरवालों की एकएक काम के लिए नमिता के नाम की चीखपुकार. तब भी नमिता को अपना आपा सही रखना है क्योंकि घर में सासससुर हैं जो नमिता के बाहर जाने के बाद बहू द्वारा पकाए गए खाने पर निर्भर रहेंगे.

इस बीच, बाई का आना और उस के कामों की मीनमेख निकालती सास की बाई से खिटपिट हो जाना, बाई का नमिता को काम छोड़ने की धमकी देना आदि नमिता की जिंदगी के रोजमर्रे का कैलेंडर है. कई बार दैनिक जीवन की उलझनों में बाई द्वारा पैदा की गई असुविधाएं इतनी बढ़ जाती हैं कि औरों की तरह नमिता भी अपनी क्षमता से बाहर जा कर भी घरेलू काम स्वयं ही कर लेना पसंद करती है. रोजरोज बाई से किसी न किसी मुद्दे पर बहस कौन करे?

सच, अगर बाइयों की दी हुई उलझनें कम हो जाएं तो एक महिला की जिंदगी से घर की आधी उलझनें यों ही दूर हो जाएं. क्या ऐसा संभव है? बिलकुल.

यहां कुछ मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर गौर करते हुए कामवाली को संभालने के ऐसे तरीके बताए जा रहे हैं जिन से इस व्यावसायिक रिश्ते में आत्मीयता की खुशबू छिड़क कर काफी हद तक उलझनों से मुक्ति पाई जा सकेगी.

पहले खुद को समझ लें :  स्त्रियों के लिए रिश्तों को संभालना बड़ी बात नहीं. शादी के बाद अनुभवहीन अवस्था में जब वह ससुराल आती है तब तो उसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण और गहरे रिश्तों को पूरी ईमानदारी से निभाना होता है जो कई मानों में जटिल और लेनदेन पर आधारित होते हैं.

अपनी कामवाली के साथ भी एक रिश्ता समय के साथ गढ़ा ही जाता है चाहे उसे क्यों न व्यावसायिक रिश्ते का ही नाम दें. अगर थोड़ी समझदारी दिखा लें तो कामवाली बाई को भी सटीक सांचे में आसानी से बिठा सकते हैं, इतनी कूवत तो आप में है ही.

दिल को बोलने दें :  कोई भी रिश्ता चाहे वह जानवर के साथ ही क्यों न हो, जरा सी मानवीयता दिखाना दोनों को करीब ला देता है. घर में काम करने आई दीदी चाहे अनपढ़, गरीब, नासमझ ही हो, पर दुख में सहानुभूति, विपत्ति में साथ पाने की इच्छा हमआप की तरह ही उस के दिल में भी होती है. आप की ओर से उस के प्रति पहल ऐसी हो कि उसे सहज ही विश्वास रहे कि जरूरत के वक्त आप उस के दुखदर्द को समझेंगी.

समझा दें कि समझ रही हैं :  जब शादी के बाद नई बहू घर में आती है तो जिस घर में वहां के बड़े आगे बढ़ कर बहू को अपनाते हैं, उसे सहारा देते हैं, उस घर में नई बहू अपनेआप ही ससुराल वालों का खयाल रखने लगती है. यही बात आप की नई आगंतुक कामवाली के साथ भी लागू होती है. यह सामान्य मानवीय मनोविज्ञान है.

बाई के काम पर लगते ही बात कुछ यों न करें, ‘‘हमारे घर में ऐसे ही काम करना पड़ेगा, हमें यही समय जमता है, हमें ये पसंद नहीं और बातबात पर पैसे और छुट्टी नहीं मांगना आदि. ऐसे फरमानों से स्वाभाविक है कि उस के मन में आप के घर में काम करने को ले कर असुरक्षा की भावना पैदा होगी. बहुत जरूरत हो तो भले ही वह काम पर लग जाए लेकिन आप के प्रति उस का नजरिया नकारात्मक ही रहेगा. आप पहले उस के मन की बात जान लें, फिर यों कहें- हमें यह समय सही रहता है. इस वक्त आओगी तो तुम्हें यह सुविधा होगी और मुझे यह. तब तक आप उस की सुविधाअसुविधा पहले जान चुकी होंगी तो आप को बीच का रास्ता निकालने में आसानी होगी.

रूखे अंदाज को मोड़ लें नरमी में:  बाइयों की गोष्ठी में अकसर यह तय रहता है कि वे काम करने जाएं तो व्यावसायिकता से पेश आएं और मालकिनों को ज्यादा छूट न दें. इस से दूसरी बाइयों को परेशानी हो सकती है. अगर इन्हें अपने सांचे में ढालना है तो हमें इन से नरमी से पेश आना होगा. मान लें, आप की नई बाई काम शुरू करने से पहले आप से इस तरह की बातों से शुरुआत करती है-मैं फलांफलां काम नहीं करती, मुझे येये सुविधाएं चाहिए, फलाना मिसेज के यहां येये सुविधाएं दी जाती हैं, बोलने की जरूरत नहीं पड़ती. आप को उस की इन बातों से चिढ़ होनी लाजिमी है. मगर आप चिढ़ें न, समझ लें यह उस के साथ आप का व्यावसायिक रिश्ता है. वह काम तो करना चाहती है लेकिन अपने अधिकारों को ले कर सतर्क है. आप का सामान्य सा नरम आश्वासन उसे सुरक्षित भावना से भर देगा और वह निश्ंिचत हो कर आप के घर में काम करेगी. उस से इन शब्दों में कहें कि तुम्हें खुद ही समझ आ जाएगा कि मेरे पास काम करने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी.

बाई का बारबार पैसे मांगना :  आप ने काम से पहले रकम और लेनदेन की बात तय कर ली. मगर कई ऐसी भी बाइयां होती हैं जो आप की उदारता व कोमलता के फायदे उठाने की कोशिश में रहती हैं. उन से निबटना उलझनभरा काम है. बातबात पर बाई को काम से निकालना उचित नहीं, क्योंकि हर बाई में कोई न कोई ऐब आप को मिल ही जाएगा. तो क्यों न हम खुद ही सुधरें, मसलन उस के अनचाहे पैसे मांगते वक्त आप उसे कोई और्डर मत सुनाइए. उस की मानसिकता को सहते हुए और अपने अनुशासन को उसे हजम कराते हुए आगे बढि़ए. उसे इस तरह मना न करें-तुम्हें तो बस बहाने चाहिए पैसे मांगने के. एक तो नागा, ऊपर से आएदिन पैसे मांगना. निसंदेह जानिए आप के ये बोल उस के अहं को ललकार देंगे और बदले में आप को हो सकता है उस से काम छोड़ने की धमकी ही मिले. उसे यों समझाएं कि बात उसे चुभे बिना ही वह आप की बातों से सहमत हो जाए. यह ऐसे संभव है, कहें-पैसों की जरूरत तो हमेशा ही रहती है, लेकिन बारबार मांगने से हमारा भी बजट गड़बड़ हो जाता है. हम तुम्हें न दे पाएं तो हमें भी बुरा लगता है. जब बहुत दिक्कतहो, तभी बताना.

ऐसी बातों से उस की आप के साथ समझ विकसित होगी, और वह भी आप की असुविधाओं को स्वीकार करना सीखेगी. हां, ध्यान रखें आप की खुशी और त्योहार में उसे अवश्य ही खास गिफ्ट दें, पैसे दें, उस के या उस के घरवालों की बीमारी के इलाज में जितना संभव हो, मदद की भावना रखें, इस तरह उस का पैसे मांगना खुदबखुद ही कम हो जाएगा.

घर में जब कोई सामान न मिले:  अकसर ऐसा होता है कि घर में सामानों को रख हम भूल जाते हैं, या उन्हें हम कहीं छोड़ आते हैं और हमें याद नहीं रहता. सामान ढूंढ़ने के क्रम में हमारा सौ प्रतिशत शक, बल्कि पूरा यकीन ही बाई के सामान पर हाथ साफ करने को ले कर होता है. महिलाएं घुमाफिरा कर बाई से इस चोरी के बारे में पूछती हैं. वे अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों को सामान के गुम हो जाने की बात को सुना कर अनजाने व्यक्ति को कोसती रहती हैं, जैसे जिस ने लिया होगा उसे कभी चैन नहीं पड़ेगा, मुझे सब पता है कौन ले सकता है.

एक तो बिना किसी के दोषी साबित हुए उस के सम्मान के साथ खिलवाड़ अनैतिक भी है और कानूनीतौर पर जुर्माने के काबिल भी. दूसरे, बाई को इतना भी मूर्ख न समझें कि आप के कहे का मतलब वह नहीं समझ रही होगी. ऐसे में अगर वह आप को बिना बताए काम छोड़ दे तो आप का शक यकीन में बदल जाना सही नहीं है कि हो न हो, सामान उसी ने चुराए होंगे. आत्मसम्मान बोध गरीबी में नष्ट नहीं होता और समृद्धि में नहीं पनपता. यह तो जन्मजात है.

फिर भी कहीं ऐसा हुआ हो कि सामान या पैसे उसी ने लिए हों तो भी अपनी सभ्यता न छोड़ें. एक सभ्य इंसान ही दूसरे असभ्य को सभ्य बना सकता है. आप को कौशलपूर्ण बातचीत अपनानी होगी. उसे संबोधित कर यों कहें-तुम ने मेरा यह सामान देखा है? यह पिता या पति या बेटी (किसी का भी नाम ले कर कहें) का दिया तोहफा था. याद जुड़ी है, देखा होगा तो दे देना या ढूंढ़ देना. पैसे का शक हो तो कहें-कहीं पैसे जमा करवाने थे, बहुत दिक्कत आ जाएगी, पैसे जरा ढूंढ़ देना. इस तरह उस में कुछ अच्छी बातें जगा कर आप सामान पा सकती हैं. हां, अगर आप को ऐसी बाई से छुटकारा चाहिए तो कुछ बहाने बना कर उसे काम से हटा दीजिए. उस पर चोरी का इलजाम लगा कर मत निकालिए. इस से बाहर जा कर बदले की भावना से वह आप को बदनाम कर सकती है और आप को दूसरी बाई ढूंढ़ने में मुश्किलें हो सकती हैं.

सर्वोपरि है आप का नजरिया, आप अपनी कीमती चीजों से लगाव जरूर रखिए मगर दांत से दबा कर नहीं. इंसानियत को ज्यादा महत्त्व दें, आप की सोहबत का असर आप की बाई पर भी होगा, निसंदेह.

महत्त्वपूर्ण यह भी है कि घर में काम करने वाली बाई जरूरतों के महासागर में जीती हैं. उन के सामने सामानों और पैसों की नुमाइश से बचें. जितना हो सके, उसे सामान कपड़े, खानेपीने की अच्छी चीजें देती रहें. इस से उस में कृतज्ञता बनी रहेगी.

जल्दीबाजी में काम निबटाने वाली:  कुछ बाइयों को साफसफाई में आलस रहता है और किसी तरह काम निबटा कर निकल जाने की जल्दी रहती है. इन के कामों की शिकायतें आप को कोई फल नहीं देगा. उलटे, बाई आप पर खीझ जरूर जाएगी. तो क्या करें?

एक आसान उपाय यह हो सकता है कि उस के साथ काम में आप भी कभीकभी हाथ बंटाएं और अपनी मनचाही जगहों की सफाई करवा लीजिए. अगर आप उस के काम के वक्त फ्री नहीं हैं तो आप छुट्टी के दिन बाई के साथ मिल कर साफसफाई कर लें.

और हां, आलसी बाई को पहले दिन से काम के बारे में बता कर न रखें, वह निश्चित गायब रहेगी. जिस दिन आप अपनी बाई से अतिरिक्त काम करवाने वाली हैं उस दिन रोज के काम थोड़े कम रखिए और यथासंभव दैनिक काम पहले से इस तरह समेट लीजिए कि आप के घर का अतिरिक्त काम भी उस का अतिरिक्त समय खपाए बिना ही हो जाए. साथ ही, ईनाम के तौर पर उस दिन छोटामोटा ही सही, कुछ न कुछ तोहफे में उसे जरूर दें. प्रोत्साहन से अगली बार आप को सुविधा होगी.

अधिक छुट्टी करने वाली:  यह आम परेशानी, खास बन जाती है, इसलिए काम पर रखने से पहले छुट्टी की बात अवश्य कर लें. महीने में अधिकतम छुट्टी की सीमा तय करने के बाद बिन बताए उस के छुट्टी पर पैसे काटने का जिक्र जरूर करें. हां, उस के और उस के घर वालों की बीमारी व जरूरतों को आप को समझना भी होगा, तभी आप के साथ वह भी ईमानदार रह पाएगी.

इधर उधर की बातें करने वाली:  एक सभ्य स्त्री होने के नाते आप को बाई की इधरउधर बातें फैलाने की आदत निश्चित ही बुरी लगेगी. आप चिढ़ कर उसे धमकाती हैं, वह आप की बातें नमकमिर्च लगा कर बाहर कहती है. आखिकार, आप उसे काम से निकाल देती हैं. यह एक भंवर जैसा हो जाता है आप के लिए.

आप यह करें- उस से उम्मीद न करें कि उसे सभ्य नागरिक होने के तरीके पता होंगे. इतनी समझ की आशा उचित नहीं. और जब आप किसी से उम्मीद ही नहीं करतीं तो गुस्सा भी कम आता है. अब आप जब स्वयं उस की समझ की सीमा को स्वीकार कर चुकीं तो उसे इस तरह समझा सकती हैं-हमारी एक पहचान की बाई थी. उस की बुरी आदत थी. एक घर की बात दूसरे घर में कहने की. बाद में जब दोनों घर वालों में लड़ाई हो गई तो बेकार में वह बाई भी घसीटी गई और आखिर दोनों घरों से वह काम से हाथ धो बैठी. बदनामी हुई, सो अलग. क्या जरूरत है इस तरह की बातें फैलाने की- है कि नहीं? हमारे घर की बात कोई बाहर करे तो हम तो नहीं सहेंगे. इतना काफी होगा उस के समझने के लिए कि आप उसे ऐसा न करने की चेतावनी दे रही हैं.

साथ ही, आप भी उस के सामने फोन आदि पर किसी की शिकायतों का पिटारा खोल कर न बैठें. आप का अनुशासित रहना, उस का आप के सामने या आप के बारे में फूहड़ बनने से रोकेगा.

तो, व्यावहारिक रिश्ते में भर लें यों आत्मीयता की गरमाहट और बाइयों के नखरे को संभालने में आप हो जाएं पारंगत.

कामवाली के साथ रिश्ता : अजीब लग सकता है पर यह आप के रोजमर्रा के सुकूनभरे कामों के लिए जरूरी है कि आप खुद के साथ अपनी बाई की उम्र के हिसाब से अपना एक रिश्ता जोड़ लें. घर के बच्चों को भी इन्हें किसी संबोधन के लिए अवश्य प्रेरित करें. इस से बच्चे तो मानवीय व्यवहार सीखेंगे ही, आप की बाई भी आप के घर में सम्मानित और अपनापन महसूस करेगी. निसंदेह इस वजह से वह आसानी से आप की बातों को महत्त्व देगी और उन के अनुसार चलेगी भी.

चुनावी भंवर : धर्म की चाशनी पर हावी विकास की कुनैन

हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभाओं के चुनाव भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा सरीखे हैं. अपने विकास के दावों पर उसे खरा उतरना है. वह बचाव की मुद्रा में है.  कांग्रेस के पास खोने को अधिक नहीं है. हिमाचल प्रदेश में तो दोनों पार्टियां 5-5 साल बारीबारी से लूटपाट करती रही हैं. गुजरात में 22 वर्षों से सत्तारूढ़ भाजपा को पराजय की आशंका सता रही है. इन चुनावों में अगर भाजपा हारती है तो यह उस के लिए बड़ा झटका होगा.

देश की भाजपा सरकार देशविदेश में अपनी कथित उपलब्धियों का ढोल पीटती रही है और विकास करने के बड़ेबड़े दावे करती नहीं अघाती. गुजरात को वह मौडल स्टेट के तौर पर प्रचारित करती आई है. पर, कुछ महीनों से गुजरात से निकलते गुस्से को देख कर वह सहमी हुई है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अक्तूबर में जब दौरे शुरू किए और उन की सभाओं में अप्रत्याशित भीड़ दिखने लगी तो गुजरात को अपनी जागीर समझ रही भाजपा भयभीत दिखाई देने लगी.

सहमी भाजपा

गुजरात में 22 वर्षों से एकछत्र राज करने वाली भाजपा को इस चुनाव में पसीने छूट रहे हैं. मोदी और भाजपा का करिश्मा फीका नजर आ रहा है. मोदी और भाजपा द्वारा गुजरात को विकास का पर्याय बताया गया पर राज्य में इस तथाकथित विकास को ले कर आम जनता आक्रोशित दिखाई दे रही है. और गुजरातवासियों के इस आक्रोश को भुनाने का कांग्रेस कोई मौका नहीं गंवाना चाहती.

भाजपा द्वारा दावा किया जाता रहा है कि प्रदेश में खूब विकास हुआ है जबकि राज्य के हालात ठीक नहीं हैं. पिछले 2 वर्षों से यहां 3 बड़े जातीय आंदोलन चल रहे हैं-पाटीदार आरक्षण आंदोलन, ओबीसी आंदोलन और दलित आंदोलन. इन के अलावा किसान, आदिवासी, विमुक्त जातियां भी सरकार से नाखुश हैं. समयसमय पर ये वर्र्ग भी रैलियों, सभाओं के जरिए अपना आक्रोश व्यक्त कर चुके हैं पर सरकार ने इन लोगों की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया और इन वर्गों की आवाज तथाकथित विकास के नगाड़ों के शोर में दब कर रह गई.

गुजरात इस बार जातीय समीकरणों की रस्साकशी में उत्तर प्रदेश, बिहार सा बन गया है. सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस दोनों पाटीदारों, पिछड़ों और दलितों को अपनेअपने पाले में करने में जुटी हैं. कांग्रेस ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहले ही गुजरात में इंचार्ज बना कर भेज दिया था. गहलोत पिछड़े वर्ग से आते हैं और पिछड़े बहुल गुजरात को लुभाने के लिए कांग्रेस ने ऐसे ही और जातीय लुभाऊ नेताओं की फौज भेज दी है. दलितों और मुसलमानों के एकसाथ आने से भाजपा की चिंता बढ़ गई है.

जातियों का खेल

गुजरात में 40 प्रतिशत ओबीसी, 11 प्रतिशत क्षत्रिय, 7 प्रतिशत दलित, 14.75 प्रतिशत आदिवासी, 12 प्रतिशत पटेल, 9 प्रतिशत मुसलमान हैं. ओबीसी में 22 प्रतिशत कोली, 20 प्रतिशत ठाकोर और 58 प्रतिशत अन्य जातियां हैं. इन में मुसलमानों को छोड़ कर दोनों दल इन जातियों को लुभाने में जुटे हैं.

जातियों का खेल पहली बार 1985 में कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी ने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलिमों (खाम) को साध कर खेला था और 149 सीटें जीती थीं.

उधर, भाजपा ने भी देशभर से अपने दलित, पिछड़े, आदिवासी मंत्रियों, सांसदों व अन्य नेताओं की खेप गुजरात में पसार दी है. समूचा गुजरात इस बार जातीय रणक्षेत्र में तबदील होता दिखाई दे रहा है. करीब 32 वर्षों बाद प्रदेश एक बार फिर जातीय दलदल के भंवर में फंसा है.

पिछले 2 वर्षों में प्रदेश में हुए 3 बड़े जातीय आंदोलनों ने प्रदेश सरकार की जड़ें हिला दीं. इन आंदोलनों से हुए नुकसान को कम करने के लिए केंद्र और गुजरात सरकारों ने हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तारीख घोषित किए जाने के बाद से गुजरात में घोषणाओं की झड़ी लगा दी. इस में पाटीदार आंदोलनकारियों के 400 से अधिक मुकदमे वापस लेने का फैसला, सफाईकर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति, एसटी कर्मचारियों के लंबित एचआरए भुगतान के फैसले सहित करीब 35 घोषणाएं शामिल हैं.

एक बड़ी घोषणा, किसानों को 3 लाख रुपए तक का ब्याजमुक्त ऋण देने की है. ज्यादातर किसान पाटीदार, पिछड़े और आदिवासी हैं.

इधर, कांग्रेस जातिगत आंदोलनों को पीछे से समर्थन दे कर इन का साथ जुटाने के प्रयास में है. ओबीसी आंदोलन के बड़े नेता अल्पेश ठाकोर तो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल भले ही अभी कांग्रेस के साथ नहीं हैं पर वे अपने भाषणों में भाजपा को हराने की अपील कर रहे हैं. अहमदाबाद में राहुल गांधी के साथ मुलाकात के उन के सीसीटीवी फुटेज भी चर्चा में रहे हैं.

उधर, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी भी राहुल गांधी से मिले थे. मेवाणी कहते हैं कि वे न तो कांग्रेस में शामिल होंगे, न अन्य किसी पार्टी में और न ही किसी पार्टी के लिए वोट मांगेंगे. हां, वे अपने समुदाय के लोगों से भाजपा को हराने की अपील जरूर करेंगे. हम ने कांग्रेस के सामने 17 मांगें रखी हैं. इन में से 90 प्रतिशत मांगों पर कांग्रेस सहमत हो गई है.

मेवाणी के इस कथन से साफ है कि वे और दलित समुदाय भाजपा को वोट नहीं देंगे, यानी दलित सीधेसीधे कांग्रेस के पक्ष में रहेंगे.

गुजरात में 182 विधानसभा सीटों के लिए 2 चरणों-9 और 14 दिसंबर को हो रहे चुनाव में प्रदेश के करीब 4.33 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे.

जातीय आंदोलनों ने यहां का सामाजिक और राजनीतिक माहौल बदला है. सरकार के खिलाफ दलित, पिछड़े, पाटीदार और मुसलमान तो हैं ही, नोटबंदी और जीएसटी के बाद व्यापारी वर्ग भी सरकार से नाराज है और वह सड़कों पर आंदोलन के लिए उतर चुका है. मोदी और अमित शाह इन तमाम वर्गों का गुस्सा भांप चुके हैं और डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं. पर इन सभी वर्गों के तेवरों से लगता है कि वे 22 वर्षों से राज करती आ रही भाजपा को गहरा सबक सिखाने की ठान चुके हैं.

भाजपा ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रखने के लिए गुजरात में 150 सीटों का मिशन रखा है हालांकि मैदान में आधे से ज्यादा नए चेहरे उतारे जा रहे हैं क्योंकि मौजूदा विधायकों में से 50 के हार जाने के अंदेशे से उन के टिकट काटे जाने की बातें की जा रही हैं.

राहुल के दौरे

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी लगातार गुजरात दौरे कर रहे हैं और वे जनता को भाजपा के खिलाफ हवा दे रहे हैं. उन्होंने पिछले कुछ दिनों से अपनी छवि को काफी बेहतर कर लिया है. उन्होंने नया कुछ नहीं किया है, केवल जनता की दुखती रग पर हाथ धरा है. वे इस में कामयाब होते भी दिख रहे हैं. राहुल गांधी नोटबंदी, जीएसटी को ले कर मोदी और अरुण जेटली को तो निशाने पर ले ही रहे हैं, गुजरात के विकास पर भी तीखे सवाल खड़े कर रहे हैं.

राहुल गांधी बारबार, ‘विकास लापता है, विकास पागल हो गया है,’ जैसे जुमले उठा कर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर हमलावर हो रहे हैं. राहुल गांधी के सवालों पर भाजपा नेता बौखलाते दिख रहे हैं. राहुल की सभाओं, रैलियों में भीड़ जुट रही है जबकि अमित शाह और दूसरे भाजपा नेताओं की रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए स्थानीय भाजपा नेताओं को पसीने बहाने पड़ रहे हैं.

इस बार कांग्रेस की भाजपा को छकाने की रणनीति से केंद्र और प्रदेश सरकारें बचाव की मुद्रा में दिखाई दे रही हैं. राहुल गांधी के बारबार दौरों से भाजपा की पेशानी पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं. राहुल गांधी यहां मंदिरों में गए तो तुरतफुरत मोदी के दौरे हुए और उन्होंने भी मंदिरों की परिक्रमा की. सोमनाथ, अक्षरधाम मंदिर गए और स्वामीनारायण संप्रदाय प्रमुख का जम कर स्तुतिगान किया. पिछड़े समुदाय को खुश करने के लिए वे उन जगहों पर जा रहे हैं जहां यह वर्ग बड़ी तादाद में संत, साधुओं का अनुयायी है. स्वामीनारायण संप्रदाय से प्रदेश का ज्यादातर पिछड़ा समुदाय जुड़ा हुआ है. बड़ी संख्या में पटेल, पाटीदार भी ऐसे आश्रमों के अनुयायी हैं.

भाजपा की रैलियों में भीड़ नहीं है. खाली कुरसियां देख कर बड़े नेता सभाओं में मंचों पर जा नहीं रहे हैं. पार्टी ने हिंदुत्व के फायरब्रैंड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को भी गुजरात भेजा और रैली कराई गई पर यह रैली भी फ्लौप सिद्ध हुई. रैली में जनता नहीं जुटी. यही हाल हिमाचल प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं की रैलियों व सभाओं का रहा. वहां भी राजनाथ सिंह की सभा में कुरसियां खाली रहने की वजह से उन्हें वहां जाने से रोक दिया गया और स्थानीय नेताओं को अपने भाषणों से ही जनता को बहलाना पड़ा.

हिमाचल की उदासीनता

68 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कुल 349 उम्मीदवार मैदान में थे.  दोनों पार्टियों के कई नेता भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे हैं. सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह तो जमानत पर हैं. उन के परिवार के सदस्य भी आरोपी हैं. 3 बार केंद्रीय मंत्री और 7वीं बार मुख्यमंत्री बनने का दावा करने वाले प्रदेश के इस मुखिया पर आय से अधिक संपत्ति के कई मामले दर्ज हैं. उन के पुत्र और शिमला ग्रामीण विधानसभा सीट से उम्मीदवार विक्रमादित्य सिंह पर अचानक 1 करोड़ से सीधे 84 करोड़ की संपत्ति बना लेने का आरोप है.

सत्तासीन कांग्रेस के 10 मंत्री और 8 कैबिनेट सचिव भी दोबारा मैदान में हैं. कुल 338 प्रत्याशियों में से केवल 19 महिलाओं को ही टिकट दिया गया है.

उधर, 2 बार मुख्यमंत्री रहे प्रेमकुमार धूमल पर भी घोटालों का कलंक है. फिर भी भाजपा ने उन पर दांव लगाया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और भ्रष्ट शिरोमणि कांग्रेसी नेता पंडित सुखराम अपने पुत्र अनिल शर्मा समेत भाजपा में शामिल हो कर पुत्र को पार्टी का टिकट दिलाने में बाजी मार गए.

हिमाचल में इस बार चुनावों को ले कर मतदाताओं में कोई उत्साह नहीं रहा. राजनीतिक दलों में भी पहले जैसी गहमागहमी और भागमभाग नहीं दिखाई दी. प्रदेश की जनता दोनों प्रमुख दलों के प्रति खामोश व उदासीन नजर आई.

बागी उम्मीदवारों की समस्या से कांग्रेस व भाजपा दोनों को ही समानरूप से दोचार होना पड़ा है. भाजपा के 9 तो कांग्रेस के 11 बागी नेताओं ने मैदान में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ खम ठोका.

भाजपा को हिमाचल में मोदी लहर और एंटी इंकंबैंसी का फायदा मिलने की उम्मीद है तो कांग्रेस को केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों और फैसलों के चलते जनता की नाराजगी का लाभ मिलने की आस है. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि नोटबंदी, जीएसटी और बुलेट ट्रेन चलाने जैसे फैसलों से लोगों में नाराजगी है. दावा है कि भाजपा और उस के सहयोगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा हिंदुत्व एजेंडे को ले कर समाज में नफरत फैलाने के प्रयासों के कारण कांग्रेस फिर से सत्ता में आ जाएगी.

यहां भी भाजपा को नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर बचाव का सामना करना पड़ा. केंद्र की सत्ता की ताकत को अगर देखा जाए तो भाजपा में मौजूदा समय में कोई भी ऐसा नेता नहीं है जिस का प्रदेश के सभी 68 निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव हो. पार्टी मोदी के नाम के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है.

2012 में हुए विधानसभा चुनावों में मात्र 5 प्रतिशत मतों के अंतर ने ही भाजपा को मिशन रिपीट के लक्ष्य को पराजय में बदल दिया था. उस चुनाव में कांग्रेस ने जहां 42.81 प्रतिशत मत के साथ 36 विधायकों को ले कर सरकार बनाने में सफलता पाई थी, वहीं तब की सत्तारूढ़ भाजपा को 38.47 प्रतिशत मतों के साथ 26 विधायकों को ले कर विपक्ष में  बैठना पड़ा था.

अगर 2014 के लोकसभा चुनाव को देखें तो वह चुनाव एकतरफा दिखाईर् दिया. भाजपा को उस चुनाव में प्रदेश की सभी चारों संसदीय सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

2012 के चुनावों में तब की भाजपा सरकार के विरुद्ध कोई खास मुद्दा नहीं था, उसी तरह इस बार कांग्रेस सरकार के पिछले 5 सालों के कार्यकाल से भी जनता की कोई खास नाराजगी नहीं दिखी. पिछली भाजपा सरकार अपनी आंतरिक कलह और भितरघात के कारण पिछड़ गई थी उसी तरह के हालात अब कांग्रेस के भी हैं. फिर भी भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों में सीधी टक्कर होने से इतना तो स्पष्ट है कि प्राप्त होने वाले मतों के प्रतिशत में चाहे बहुत अंतर न हो, पर सीटों पर जीत के मामले में नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं.

गुजरात का गुस्सा

राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों के लिए 9 और 14 दिसंबर को 2 चरणों में होने वाले चुनावों की सरगरमी तेज है. गुजरात का भाजपाई गढ़ हिलता दिख रहा है. राज्य के 3 जातीय आंदोलन पार्टी को भारी पड़ रहे हैं. हालांकि ये तीनों आंदोलन परस्पर एकदूसरे के खिलाफ दिखाई देते हैं. ओबीसी के नेता अल्पेश ठाकोर ने पाटीदारों को ओबीसी में शामिल किए जाने की मुहिम के खिलाफ आंदोलन शुरू किया क्योंकि ओबीसी जातियां नहीं चाहतीं कि पाटीदारों को आरक्षण दे कर उन का हिस्सा बांट दिया जाए.

उधर, ऊना घटना के आरोपी ओबीसी समुदाय के होने की वजह से दलित आंदोलन ओबीसी के विरोध में हुआ. दलितों का उत्पीड़न अधिकतर पिछड़े समुदाय द्वारा किया जा रहा है. इन दोनों समुदायों में परस्पर आगे बढ़ने की होड़ दिखाई देती है. दोनों ही वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण मिला हुआ है.

पाटीदार आंदोलन

2015 में आरक्षण की मांग को ले कर पाटीदारों ने आंदोलन शुरू किया था. इस आंदोलन में हार्दिक पटेल नेता के तौर पर उभर कर सामने आए. हार्दिक पटेल सहित आंदोलन के युवा नेताओं का पाटीदार समाज के युवाओं पर खासा असर है. यह वर्ग प्रदेश की समृद्धि और भाजपा का समर्थक माना जाता रहा है पर अब यह वर्ग खिलाफ खड़ा है और भाजपा को चुनौती दे रहा है.

हार्दिक पटेल पर मुकदमा कायम कर गुजरात से दरबदर के आदेश दिए गए और पड़ोसी राज्य राजस्थान में 6 महीने के लिए नजरबंद कर रखा गया. इस आंदोलन से निबटने में नाकाम रहने पर आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से रुखसत होना पड़ा था.

पिछड़ा वर्ग आंदोलन

पाटीदार आंदोलन के विरोध में ओबीसी आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन में नेतृत्व के रूप में अल्पेश ठाकोर का चेहरा सामने आया. ओबीसी नेताओं ने सरकार से कहा कि पाटीदारों को ओबीसी में  शामिल न किया जाए. यह वर्ग इस दौरान गरीबों, मजदूरों, किसानों के मुद्दों पर भी सरकार को घेरता रहा है. अल्पेश ठाकोर अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

दलित आंदोलन

ऊना कांड जुलाई 2016 में हुआ था. कथित गौरक्षकों ने मृत पशुओं की चमड़ी उतार रहे दलित युवकों को बेरहमी से पीटा था. मामला सामने आने पर देशभर के दलित समुदाय समेत दूसरे लोगों में भी आक्रोश दिखाईर् दिया. दलित संस्थाएं आगे आईं और मिल कर भाजपा के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. आंदोलन के अगुआ के रूप में 35 वर्षीय युवा एडवोकेट जिग्नेश मेवाणी सामने आए.

आंदोलन में प्रदेशभर के लाखों दलित जुटे. करीब 20 हजार दलितों को मैला न उठाने, मृत पशुओं को न उठाने की शपथ दिलाई गई.

अब भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को अपनेअपने पाले में करने में जुटी दिख रही हैं. भाजपा  पाटीदार आंदोलन के नेताओं को तोड़ने के हथकंडे भी आजमा रही है. कुछ नेताओं को मोटा पैसा देने का लालच देने की खबरें आ रही हैं. पटेल आंदोलन के एक नेता नरेंद्र पटेल को पार्टी में लेने के लिए एक करोड़ रुपए की घूस देने का मामला सामने आया. भाजपा हार्दिक पटेल और राहुल गांधी की होटल में मुलाकात की खुफियागीरी करवा चुकी है.

केंद्र सरकार की नीतियों और फैसलों का राज्यों पर बुरा असर पड़ रहा है. वह चाहे नोटबंदी का फैसला हो या जीएसटी लागू करने का. इन फैसलों से आम जनता पर ही नहीं, छोटेबड़े दुकानदारों पर भी बुरा असर पड़ा. सरकार के इन फैसलों से लाखों कारोबारी बरबाद हो गए.

गुजरात में युवाओं के लिए नौकरी का मुद्दा भी अहम है. यहां भाजपा की घबराहट का आलम यह है कि जिस दिन चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश में चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, उस के बाद से ही यहां ताड़बतोड़़ घोषणाएं, शिलान्यास और उद्घाटन किए गए. केंद्र सरकार ने 11 हजार करोड़ रुपए के प्रोजैक्ट की घोषणा कर डाली. केंद्र सरकार जीएसटी में यू टर्न लेती दिखी. करीब 100 वस्तुओं में जीएसटी में छूट देने की बात कही गई. प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में 650 करोड़ रुपए की रोरो फेरी सेवा का उद्घाटन किया. 78 करोड़ रुपए किसानों को देने की घोषणा की गई. फ्लाईओवर, वाटर ट्रीटमैंट प्लांट, कूड़ा प्रोसैसिंग की करोड़ों रुपए की योजनाओं का ऐलान किया गया.

कहां है विकास?

भाजपा के हिंदुत्व की चाशनी विकास की कुनैन पर हावी दिखाईर् दे रही है. जनता पूछ रही है, कहां है विकास? दलित, पिछड़े, किसान, आदिवासी, व्यापारी वर्ग समेत विपक्षी पार्टियां विकास पर प्रश्न खड़े कर रही हैं. ‘विकास’ को ढूंढ़ा जा रहा है.

पार्टी के हिंदुत्व मुद्दे ने देशभर में नफरत, हिंसा का माहौल पैदा किया. गौरक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों को मारा गया. राममंदिर मुद्दा लोगों को फुजूल का लगा क्योंकि भाजपा पिछले करीब 30 सालों से इस मुद्दे को भुनाती आ रही है.

भाजपा किस तरह के विकास की बात कर रही है? विकास का पैमाना क्या है? गुजरात में लोग रोजगार के लिए अब कम जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार के लोगों का पलायन रोजगार देने वाले राज्यों और शहरों की तरफ देखा गया है पर गुजरात में बिहार के लोग अधिक नहीं हैं. उलटे, महाराष्ट्र की ओर अधिक जा रहे हैं, जो मनसे जैसे दलों की आंख की किरकिरी बने दिखते हैं.

किसी राज्य के विकास का मतलब है उस राज्य की ओर दूसरे पिछड़े राज्यों के लोगों का रुझान, पर गुजरात में ऐसा नहीं दिखता. अब तो खुद गुजरात के छोटेमोटे व्यापारी दूसरे राज्यों में अपना व्यापार तलाश रहे हैं. विकास के नाम पर उजाड़ दिए गए लाखों लोगों को रोजीरोटी मुहैया न करा पाना विकास के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है. झुग्गीझोंपड़ी वालों को दूसरी जगह बसा तो दिया गया पर यह नहीं देखा गया कि उन परिवारों को रोजगार मिला कि नहीं, उन के बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं उपलब्ध हो पा रही हैं या नहीं.

किसी भी पार्टी या सरकार के लिए 22 वर्षों का समय कम नहीं होता. इस अवधि में पूरी एक पीढ़ी जवान हो जाती है. प्रदेश में झुग्गी और कच्ची बस्तियों में रहने वालों की तादाद लाखों में हैं. इन में अधिकतर निचली जातियां और मुसलमान हैं. 22 वर्षों में जवान हो चुके, झुग्गी, कच्ची बस्ती में पलेबढे़ बच्चे, आज भी उन्हीं हालात में देखे जा सकते हैं.

साबरमती के ऊपर से गुजरने वाले नेहरू ब्रिज नाका के सामने चांद सईद की दरगाह है. इस के आसपास करीब 150 कच्चे मकानों में रहने वाले लोगों के हालात आज भी बदतर हैं. इस बस्ती के निवासी नईम मुहम्मद कहते हैं, ‘‘यहां पहले करीब 7 हजार झुग्गियां होती थीं. कुछ झुग्गियां अभी भी ऊंची इमारतों के नीचे रह गई हैं. बाकी झुग्गियों को हटा कर लोगों को बटवा रेलवे क्रौसिंग के पास 4-मंजिले भवन में फ्लैट दे दिए गए, पर अभी तक सभी लोगों को नहीं मिले हैं. जो लोग हटा दिए गए उन के रोजगार पर भी असर पड़ा. सरकार ने इन लोगों की रोजीरोटी का खयाल नहीं रखा. बस, साबरमती को चमकाने के लिए यहां रिवरफ्रंट बना दिया गया. इस तरह विकास के नाम पर लोगों को उजाड़ा गया है. इस तरह के कामों से किस का विकास हुआ है?’’

नईम कहते हैं, ‘‘इस तरह की झुग्गियां खानपुर इलाके में भी हैं. शहर के वडाज इलाके में सब से बड़ी झुग्गी बस्ती के बाशिंदों को मल्टीलैवल फ्लैट बना कर देने का काम चल रहा है.’’

यहां के आश्रम रोड से रिलीफ रोड जाने के लिए नेहरू ब्रिज चौराहे के एक कोने पर बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है. इस पर लिखा है, ‘हूं छू विकास, हूं छू गुजरात’. बोर्ड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की फोटो लगी हुई हैं पर इसी बोर्ड के नीचे चौराहे से लगभग 100 मीटर के फासले पर 5-7 साल की एक अधनंगी बच्ची फुटपाथ पर बैठी कटोरे में कुछ खा रही थी. पास में चूल्हा और पानी के 2 बरतन रखे हुए थे. चूल्हे के पास ही टूटी हुई चारपाई पर एक आदमी सो रहा था. यह कैसा विकास है?

विकास के बोर्ड को को मुंह चिढ़ाता फुटपाथ पर बैठा यह एक परिवार ही नहीं, इसी पुल से नीचे उतरते ही 5-7 ऐसे और भी परिवार फुटपाथ पर जिंदगी बसर करते देखे गए. पूछने पर बताया गया कि ये परिवार यहां कई सालों से रह रहे हैं.

अस्तव्यस्त गुजरात

रतन पोल, मानेक चौक, गांधी रोड पर अस्तव्यस्त यातायात देखा जा सकता है. सड़कों, गलियों में आड़ेतिरछे वाहन खड़े हैं जो आनेजाने वालों के लिए बाधाएं खड़ी करते हैं. इस इलाके की सड़कें टूटी हुई हैं. रतन पोल के बाजार से हो कर गांधी मार्ग को जोड़ने वाली सड़क का बुरा हाल है. आधाआधा फुट के गड्ढे हैं. दुकानों के आगे कूड़ेकचरे के ढेर लगे हैं. यह अहमदाबाद का सब से व्यस्ततम मार्केट माना जाता है. नवाब सुलतान अहमद शाह के बनाए गए 3 दरवाजे के आसपास फुटपाथ पर छोटीछोटी दुकानों का जमावड़ा बिखरा हुआ है. किसी तरह का नियोजित विकास दिखाई नहीं देता.

यह हाल सिर्फ अहमदाबाद का नहीं, गुजरात में राजस्थान की ओर से प्रवेश करते ही पालनपुर, ऊंझा और मेहसाणा जैसे बड़े शहर आते हैं. इन शहरों में भी घुसते ही विकास की पोल खुलनी शुरू हो जाती है. ऊंचेऊंचे फ्लैटों की बगल की झुग्गियां और कच्चे मकान गुजरात की गरीबी का खुलेआम प्रदर्शन करते हुए विकास के दावों की धज्जियां उड़ाते प्रतीत होते हैं.

गुजरात में जो लोग विकास पर सवाल उठा रहे हैं उन पर राष्ट्रद्रोह के मामले थोपे जा रहे हैं. वे चाहे विस्थापितों के पुनर्वास को ले कर आंदोलन करने वाली मेधा पाटेकर हों, गुजरात दंगा पीडि़तों के लिए लड़ने वाली तीस्ता शीतलवाड़ हों, पूर्व ब्यूरोक्रैट हर्ष मंदर हों, पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल हों या ऊना के दलितों पर हुए अमानुष व्यवहार के खिलाफ आंदोलन कर दलितों को एकजुट कर आवाज उठाने वाले दलित नेता जिग्नेश मेवाणी हों. सरकार ने ऐसे लोगों का दमन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

29 अक्तूबर को जब यह प्रतिनिधि अहमदाबाद में था, यहां के सिविल अस्पताल में 3 दिनों में 24 बच्चों की मौत हो गई. लिहाजा, विकास का ढिंढोरा पीट रहे गुजरात के सत्तारूढ़ नेताओं को नहीं लगता कि यह राज्य भी चिकित्सा सेवाओं की बदहाली के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश, झारखंड की श्रेणी में खड़ा है. लोग बताते हैं कि अब भी सरकारी दफ्तरों में घूसखोरी चल रही है, बिना लिएदिए कोई काम नहीं होता.

अहमदाबाद शहर में प्रवेश करते ही बहुमंजिले फ्लैटों के नीचे झुग्गी, कच्ची बस्तियां नजर आती हैं. रिलीफ रोड, गांधी रोड, रतन पोल, तीन दरवाजा एरिया दिल्ली के सब से भीड़भाड़ वाले चांदनी चौक, खारी बावली, नई सड़क, जामा मसजिद जैसे हैं. इन क्षेत्रों में कपड़ा, ड्राईफू्रट्स, नई व पुरानी किताबों व अन्य सामानों का सब से बड़ा मार्केट है पर यहां सड़कें टूटीफूटी हैं, दुकानों के आगे कूड़े के ढेर लगे हैं, बेतरतीब वाहन आजा रहे हैं.

शाम के समय बाजार में भीड़ काफी है पर दुकानदारों का कहना है कि खरीदार कम हैं. नोटबंदी और जीएसटी का बुरा असर पड़ा है. रेडिमेड कपड़ों के व्यापारी रईस अहमद कहते हैं कि बाजार में कुछ लोग घूमने आते हैं, कुछ तफरीह के लिए, कुछ खानेपीने के लिए पर खरीदारी के लिए कम ही ग्राहक हैं. पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी ने दुकानदारों की कमर तोड़ दी है.

साबरमती के किनारे बनाया गया रिवरफ्रंट दिखने में अच्छा है पर शाम के वक्त भी यहां बहती नदी का नजारा देखने वाले दिखाई नहीं देते. इस नदी के किनारे पहले 7-8 हजार झुग्गियां थीं पर अब वे यहां से हटा दी गईं. अब यहां पुराने शहर और नए शहर को जोड़ने वाले नेहरू ब्रिज, गांधी ब्रिज, एलिस ब्रिज के पास रिवरफ्रंट बना दिखाई देता है.

प्रदेश में 1967 में पहली विधानसभा से ले कर 1977 तक कांग्रेस का एकछत्र राज रहा. 1980 में जनता पार्टी के टूटने के बाद भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. 1985 के बाद से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा को सत्ता मिलती रही. 1990 में जनता दल के साथ गठबंधन में 58 सीटें जीत कर पहली बार राज्य में भाजपा सरकार बनी थी. तब से वह हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाती आ रही है. इस दौरान बाबरी विध्वंस से ले कर गोधरा कांड और गुजरात दंगों का दंश लोगों को झेलना पड़ा. प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बना रहा.

2002 में नरेंद्र मोदी भारी बहुमत के साथ जीत कर आए थे. उसी साल फरवरी में गोधरा कांड हुआ था और इस मुद्दे पर हिंदुओं का ध्रुवीकरण करने में वे कामयाब रहे. बाद में 2007 और 2012 के चुनाव मोदी की अगुआई में लड़े गए. 2012 का चुनाव विकास और सौफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर लड़ा गया. कांग्रेस यहां बुरी तरह से परास्त हुई थी. उस चुनाव के बाद मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन गए थे.

दरअसल, भाजपा के हिंदुत्व के ध्वजवाहक गुजरात में ही नहीं, समूचे देश में पिछड़े वर्ग के  लोग हैं जो अतीत में शूद्र होने के कारण पूजापाठ से वंचित रहते आए थे. अब पिछले 60-70 सालों से यह वर्ग ब्राह्मण बनने की होड़ में जुटा हुआ है. देशभर में बड़ी संख्या में इस वर्ग ने अपने मंदिर, आश्रम बना लिए. अपने पंडेपुरोहित, अपने गुरु, साधु, संत और अपने देवीदेवता गढ़ लिए. इन 6-7 दशकों में इस वर्ग के पास खूब पैसा आया, यह राजनीति में बढ़चढ़ कर उतरा और सत्ता की मलाई में हिस्सा पाने लगा.

लेकिन जो वास्तविक राज है वह अभी भी ब्राह्मणों के हाथों में ही है. नीतियां वही लोग बनाते हैं. इन्हें तो बस थोड़ा सा टुकड़ा फेंक दिया जाता है. इन्हें हिंदुत्व के लठैत के रूप में आगे रखा गया. अब इस वर्ग को लग रहा है कि जिन लोगों को इन्होंने सत्ता में बिठाया, वे उन के लिए कुछ नहीं कर रहे. उन की शिक्षा, नौकरी, व्यापार में तरक्की के बजाय उलटे रोड़े अटकाए जा रहे हैं. इसलिए अब इन वर्गां का गुस्सा बाहर निकलने लगा है.

जो नीतियां बनाई जा रही हैं वे भेदभाव वाली और केवल कुछ लोगों को आगे बढ़ाने वाली हैं. पाटीदारों को लगा कि उन के पास खेती, जमीन तो है पर सरकारी दफ्तरों में उन की संख्या नहीं है. गुजरात में आज भी दलित सामाजिक बहिष्कार के हालात का सामना कर रहे हैं.

इस का असर निश्चिततौर पर 2019 के आम चुनावों पर पड़ेगा. धर्म की कट्टरता और विकास दोनों साथसाथ नहीं चल सकते. जहां धर्म होगा वहां विकास की कल्पना करना बेकार है. हिंदुत्व की लैबोरेटरी से नफरत, भेदभाव, सामाजिक विभाजन, अशांति ही पैदा हो सकती है.

भाजपा को सबक सिखाएंगे : हार्दिक पटेल

पिछले 2 वर्षों से पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के बैनर तले पाटीदार समुदाय को आरक्षण दिलाने की मांग को ले कर आंदोलन चला रहे हार्दिक पटेल भाजपा सरकार से बहुत नाराज हैं. वे कहते हैं, ‘‘वे 1985 में आरक्षण का विरोध कर रहे थे पर अब आरक्षण मांग रहे हैं क्योंकि हाल की परिस्थितियां बदल गई हैं. एक समय उन्होंने इन लोगों को सत्ता में बैठाया था और आज ये लोग धमकी व दादागीरी पर उतर आए हैं. कांग्रेस के साथ हमारी बातचीत हुई है. वह कई मांगें मानने को तैयार है.’’

हार्दिक पटेल किसी भी दल को समर्थन या वोट नहीं देने की बात कहते हैं. वे बताते हैं कि उन्हें भाजपा को हराना है. विकास  के सवाल पर हार्दिक का कहना है, ‘‘प्रदेश में 50 लाख युवा बेरोजगार हैं. हर वर्ग का युवा गुस्से में हैं. किसान, आदिवासी परेशान हैं. 80 लाख किसानों पर कर्जा है. खेती के लिए जरूरी डीएपी खाद का भाव पूरे देश की तुलना में गुजरात में 90 रुपए महंगा है.’’

दलितों की हर कदम पर उपेक्षा हुई : जिग्नेश मेवाणी

दलितों की आवाज बन कर उभरे गुजरात के युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी देशभर में इस समुदाय पर हो रहे हमलों के लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कहते हैं, ‘‘भाजपा का एजेंडा हिंदुत्व है और इस सरकार के रहते दलितों का भला नहीं हो सकता. गुजरात सरकार ने कुछ वर्षों पहले लैंड सीलिंग एक्ट के तहत ली गई जमीन को भूमिहीन दलितों को देने की योजना बनाई थी. अहमदाबाद के धंधुका तहसील में 1984 में 21 सौ एकड़ जमीन का कागजों में आवंटन कर दिया गया पर हकीकत में यह जमीन दलितों को दी ही नहीं गई. इस साल हम ने इस जमीन के आवंटन के लिए मुख्यमंत्री को घेरा, कलैक्टर को प्रार्थनापत्र दिया पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.’’ गुजरात हाईकोर्ट में पेशे से वकील जिग्नेश कहते हैं कि उन्होंने भूमिहीन दलितों को जमीन देने के लिए कई याचिकाएं दायर की हैं.

मेवाणी उस समय राष्ट्रीय फलक पर आए जब ऊना में कथित गौरक्षकों ने दलित युवकों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया था. इस मामले को ले कर आंदोलन खड़ा करने वाले 35 वर्षीय जिग्नेश की दलितों के हक की आवाज देशभर में पहुंची. राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के बैनर तले चल रहे इस आंदोलन में गुजरात समेत दूसरे राज्यों के दलित भी आ जुटे. उन्होंने इस हिंसा के विरुद्ध रैली निकाली और 20 हजार दलितों को एकसाथ मरे हुए जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई. मेवाणी ने कहा था कि दलित अब सरकार से अपने लिए दूसरे काम की बात करेंगे.

जिग्नेश मेवाणी वाईब्रैंट गुजरात का विरोध भी कर चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘सरकार वाईब्रैंट गुजरात के नाम पर औद्योगिक घरानों के साथ हुए करार में उन्हें धड़ाधड़ जमीनें दे रही है पर दलितों को, कानून होने के बावजूद, जमीन का हक नहीं दिया जा रहा है.’’ अब उन्होंने दलितों की उपेक्षा, भेदभाव, अत्याचार को ले कर भाजपा को सबक सिखाने की ठान ली है.

गुजरात की जनता का रुख बदल रहा है: हर्षिल नायक, प्रवक्ता, आम आदमी पार्टी

गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी कहां है?

हम 2 वर्षों से मेहनत कर रहे हैं. प्रदेश की जनता के हक में 100 से ज्यादा मुद्दों को ले कर धरनेप्रदर्शन किए हैं. रणनीति के तौर पर हम चाहते हैं कि भाजपा हारे. इस के चलते यहां की जनता का रुझान हमारे प्रति है. दिल्ली मौडल लोगों के सामने है, इसलिए हम भाजपा को सीधी टक्कर दे सकते हैं.

क्या भाजपा के प्रति लोगों का गुस्सा है?

 पिछले 22 वर्षों में लोगों ने देखा कि वे जहां थे, अब भी वहीं के वहीं हैं. प्रदेश का पाटीदार व पटेल समुदाय, दलित, पिछड़ा, आदिवासी, किसान, व्यापारी और युवा वर्ग खुद को ठगा हुआ समझ रहा है. युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा. सभी वर्ग परेशान हैं. भाजपा का गुजरात विकास का दावा केवल धोखा है.

जनता के गुस्से को आप की पार्टी कैसे भुनाएगी?

लोगों के सामने दिल्ली सरकार का मौडल है. वहां महल्ला कमेटी समस्याओं के समाधान की अपनी व्यवस्था है. भ्रष्टाचारमुक्त शासन पार्टी का शुरू से ही लक्ष्य रहा है. लोग अब यहां भी बदलाव चाहते हैं और यह निश्चित है.

प्रदेश में नोटबंदी, जीएसटी को ले कर जनता का क्या रुख है?

 इन फैसलों ने अर्थतंत्र की कमर तोड़ दी है. गुजरात व्यापार का हब माना जाता है. फार्मा इंडस्ट्री, कपड़ा जैसे सारे उद्योग ठप हो गए. इन उद्योगों को राहत दिलाने की जरूरत थी. लोग बहुत परेशान हैं. सरकार के ये फैसले भाजपा को ले डूबेंगे.

आप कितने लोगों को टिकट दे रहे हैं?

 अभी कई सीटों पर मूल्यांकन चल रहा है. देखा जा रहा है कि हम कितनी सीटें जीत सकते हैं. करीब 50-60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे.

सरकार की हां में हां मिलाता चुनाव आयोग

गुजरात विधानसभा के चुनाव 9 व 14 दिसंबर को कराने की घोषणा कर के चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त अचल कुमार ज्योति ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन से पहले के चुनाव आयोग को वापस ला दिया है. चुनाव आयोग गुजरात के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने से पहले एकदम स्वतंत्र रहा था और उस की छवि ऐसी ही थी.

हिमाचल विधानसभा के चुनाव की घोषणा चुनाव आयुक्त ने गुजरात के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने से 13 दिनों पहले 12 अक्तूबर को कर दी थी और वहां चुनाव 9 नवंबर को होंगे पर 1 महीना 9 दिनों बाद परिणाम घोषित होंगे. क्या छोटे से राज्य हिमाचल में विधानसभा चुनाव को कराने में चुनाव आयोग इतना थक जाएगा कि उसे पूरे 30 दिनों का समय चाहिए होगा कि वह लावलश्कर ले कर गुजरात पहुंच सके?

ये वही चुनाव आयुक्त हैं जिन्होंने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा व विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने के विचार पर कहा था कि चुनाव आयोग दोनों चुनाव पूरे देश में एकसाथ कराने में सक्षम है.

साफ है कि चुनाव आयोग अब स्वतंत्र महसूस नहीं कर रहा. उसे लगता है कि अन्य संस्थाओं, जैसे रिजर्व बैंक औफ इंडिया, कौंप्ट्रोलर औफ अकाउंटैंट जनरल यानी सीएजी आदि की तरह सरकारी सुविधाएं चाहिए तो सरकार की हां में हां मिलाते रहो.

अब यह गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के दौरान पता चलेगा कि  यह आशंका सही है या नहीं कि चुनाव आयोग उतना स्वतंत्र रहा है या नहीं, जितना पहले था. मनमोहन सिंह सरकार के दौरान, उन को ढुलमुल कहिए, उदार कहिए या परंपराओं को निभाने वाला कहिए, देश की स्वतंत्र संस्थाओं को स्वतंत्रता से काम करने की आदत हो गई थी. लेकिन आज चाहे उपरोक्त संस्थाएं हों या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अथवा भारतीय प्रैस परिषद, अल्पसंख्यक आयोग हों, सभी सरकारी हां में हां मिलाना अनिवार्य मान रही हैं.

इस का दुष्प्र्रभाव, वैसे, खास नहीं होता क्योंकि किसी भी देश में जब सरकार कुछ करने को उतारू हो जाए तो चाहे जो कर लो, वह कर ही लेती है. यह तो जनता पर निर्भर करता है कि वह अपनी आवाज कितनी बुलंद कर लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा करती है.

गूगल क्रोम को टक्कर देने के लिए मोजिला ने लौन्च किया नया ब्राउजर

गूगल क्रोम को कड़ी टक्कर देने के लिए मोजिला फायरफाक्स ने नेक्स्ट जनरेशन का नया ब्राउजर फायरफाक्स क्वान्टम (Firefox Quantum) लौन्च किया है. कंपनी के मुताबिक, 2004 में फायरफाक्स 1.0 लौन्च किया गया था और इसके बाद से यह पिछले 13 वर्षों में दिया जाने वाला सबसे बड़ा अपडेट है. इसे विंडोज, मैक, एंड्रॉयड और आईओएस पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

मोजिला ने कहा कि नए वर्जन के ब्राउजर का कोर इंजन पूरी तरह से नई टेक्नोलौजी पर बदला गया है. डिजाइन भी नया है और यह पहले से काफी तेज काम करता है. ज्यादा स्पीड के साथ इस नए ब्राउजर में कई तरह के टूल्स पहले से ही दे दिए गए हैं. उदाहरण के तौर पर रीड इट लैटर सर्विस और पॉकेट जैसे टूल्स हैं जो काफी काम के होते हैं. इसके साथ ही प्राइवेट ब्राउजिंग का भी लेआउट बदला गया है.

एक अन्य बदलाव के तहत इसका यूजर इंटरफेस भी बदला गया है जिसका नाम कंपनी ने फोटोन रखा है. मोजिला क्वांट अपने प्रतिद्वंदी ब्राउजर के मुकाबले 30 फीसद कम मेमोरी का इस्तेमाल करता है. फायरफाक्स क्वान्टम (Firefox Quantum) में टैब प्राथमिता के आधार पर आर्गानाइज किये गये हैं ताकि आप इसमें अनेकों टैब खोल सकें. कंपनी के मुताबिक यह ब्राउजर बिना हैंग और क्रैश हुए दूसरे ब्राउजर्स के मुकाबले 30 फीसद ज्यादा टैब्स ओपन करने में सक्षम है.

दो महीने तक कंपनी फायरफाक्स 57 (Firefox 57) वर्जन जिसे क्वान्टम (Quantum) कहा जा रहा है इसकी बीटा टेस्टिंग करने के बाद कंपनी ने इसे सभी यूजर्स के लिए जारी कर दिया है.

गूगल क्रोम के मुकाबले Quantum ज्यादा लोकप्रिय वेबसाइट्स को एक साथ लोड कर सकता है जिसमें विकिपीडिया, बिंग, टम्बलर और शटरस्टाक शामिल हैं.

मोजिला ने अपने आधिकारिक ब्लौग में कहा है कि अमेरिका और कनाडा में अब फायरफाक्स ब्राउजर में गूगल डिफाल्ट सर्च इंजन होगा. हालांकि भारत में अभी भी फायरफाक्स का डिफाल्ट सर्च इंजन Yahoo है.

अगर आप भी फायरफाक्स ब्राउजर का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आप वेबसाइट से इसे डाउनलोड कर सकते हैं या चाहें तो अपडेट भी कर सकते हैं.

सचिन के फैन्स के लिये आज का दिन है बेहद खास

‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन तेंदुलकर और दुनियाभर के क्रिकेट फैन्स के लिए 16 नवंबर 2013 की तारीख बेहद खास है. यह एक ऐसी तारीख है, जिसे कोई भी भारतीय अपने जेहन से नहीं निकाल पाएगा. यही वह दिन है, जिस दिन सचिन ने कहा था- ’22 यार्ड के बीच की मेरी 24 वर्ष की जिंदगी का अंत आ चुका है’.

उनके इस वाक्य के बाद हर भारतवासी की आंखों में बस आंसू थे. क्रिकेट फैन्स की आंखें नम थीं, क्योंकि अब वह ‘क्रिकेट के भगवान’ को बल्ला थामे अब क्रिकेट के मैदान पर नहीं देख पाएंगे. सचिन ने 16 नवंबर 2013 के दिन ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था.

अब स्टेडियम में बैठे उनके फैन्स सचिन, सचिन, नहीं कह पाएंगे, क्योंकि उनका सचिन मैदान पर अब नहीं आएगा. 24 वर्षों तक चले अपने क्रिकेट करियर को जब सचिन रमेश तेंदुलकर ने अलविदा कहा तो वानखेड़े स्‍टेडियम में मौजूद हर शख्‍स की आंखें नम थीं.

सचिन तेंदुलकर ने वेस्टइंडीज के खिलाफ खेले गए दूसरे और अंतिम टेस्ट मैच में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था. इस मैच को भारत ने तीसरे दिन एक पारी और 126 रन से जीत लिया था. साथ ही भारत ने इस सीरीज को 2-0 से अपने नाम किया था. सचिन के लिए यह एक यादगार विदाई थी, क्योंकि उन्होंने अपने करियर तो जीत के साथ अलविदा कहा था.

मैच के आखिरी दिन सचिन के अपनी स्पीच से पूरी दुनिया को इमोशनल कर दिया. सचिन ने काफी लंबी स्पीच दी थी, जिसे कहते हुए वह खुद तो भावुक थे ही साथ ही इस स्पीच को सुनने वाले हर शख्स की आंखों में आंसू भरे हुए थे.

सचिन ने कुछ ऐसे की अपनी स्पीच की शुरुआत- ”पिछले 24 साल से मेरी जिंदगी 22 यार्ड के बीच गुजरी है. यह यकीन करना मुश्‍किल है कि उस शानदार सफर का आखिरी पड़ाव आ गया है. मैं सभी लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्‍होंने मेरी जिंदगी में कोई न कोई भूमिका अदा की है. पहली बार मेरे हाथों में लिस्‍ट है. बात करना मुश्‍किल हो रहा है लेकिन मैं कोशिश करूंगा.”

सचिन ने इस मौके पर अपने परिवार, दोस्तों और साथी खिलाड़ियों के साथ हर उस शख्स का शुक्रिया अदा किया, जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण रहा है. सचिन ने इस मौके पर अपनी पत्नी अंजलि का भी शुक्रिया अदा किया. सचिन ने कहा, ”1990 में मेरी जिंदगी में सबसे खूबसूरत लम्‍हा आया जब मेरी अपनी पत्‍नी अंजलि से मुलाकात हुई.

जब हमने घर बसाने का फैसला किया, तो उसने कहा वह उसका ख्‍याल रखेगी. तुम क्रिकेट खेलो मेरा साथ निभाने और मेरी बकवास सुनने के लिए शुक्रिया. तुम मेरी जिंदगी की सबसे बढ़िया पार्टनरशिप हो जो भी मैंने कभी की है.”

सचिन की यह बातें सुनकर मैदान पर खड़ी उनकी पत्नी भी रोने लगी थीं. आखिर में सचिन ने कहा, ”मैं आप सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. आपका सपोर्ट मेरे दिल के करीब और मेरे लिए बेशकीमती है. मैं इतने सारे लोगों से मिला हूं, जिन्‍होंने मेरे लिए उपवास रखा, मेरे लिए प्रार्थना की. इस सबके बिना मेरी जिंदगी आज वह नहीं होती जो है. वक्‍त पंख लगाकर उड़ जाता है, लेकिन आप लोगों ने मेरे लिए जो यादें छोड़ी हैं वह हमेशा मेरे साथ रहेंगी. विशेषकर सचिन, सचिन, की वह आवाज जो आखिरी सांस तक मेरे कानों में गूंजती रहेगी.

”शुक्रिया. अगर मुझसे कुछ छूट गया है तो मेरा मानना है कि आप समझ सकेंगे.”

सचिन के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर का यह आखिरी दिन बना और पूरी टीम ने उन्हें पवेलियन तक ‘गार्ड औफ हौनर’ दिया. सचिन भी नम आंखें लिए स्टंप उठाकर दर्शकों का अभिवादन करते हुए पवेलियन गए. सचिन, सचिन, के नारों के बीच तेंदुलकर वानखेड़े स्टेडियम की पिच को नमन करने गए.

गौरतलब है कि सचिन तेंदुलकर को ‘क्रिकेट का भगवान’ कहा जाता है. इस बात का प्रमाण उनका करियर है. महान बल्लेबाज ने 200 टेस्ट खेले हैं, जिसमें 53.78 की औसत से 15,921 रन बनाए हैं. इस दौरान उन्होंने 51 शतक और 68 अर्धशतक जमाए हैं.

टेस्ट में उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 248* रहा. वन-डे में सचिन ने 463 मैच खेले और 49 शतक व 96 अर्धशतक की मदद से 18,426 रन बनाए. वन-डे में सचिन का सर्वश्रेष्ठ स्कोर नाबाद 200 रन रहा.

बैंकों से जुड़कर अब आप भी कर सकते हैं मोटी कमाई

बैंक जल्द ही आपको उनके साथ मिलकर काम करने का सुनहरा अवसर देने वाले हैं. यह मौका आपके पास सरकारी बैंक परिसर में खुलने वाले आधार सेंटर के कारण आया है. बता दें कि सरकार ने पब्लिक सेक्टर बैंकों के परिसर में आधार इनरौलमेंट फैसिलिटी शुरू करने का आदेश दिया है. इसके लिए उन्‍हें UIDAI से मंजूरी भी मिल गई है. इसी के चलते आधार सेंटर स्‍थापित करने के लिए बैंक आउटसोर्सिंग का सहारा ले रहे हैं. बैंक अब अपने परिसर में आधार सेंटर खोलकर थर्ड पार्टी से इसका काम कराने पर विचार कर रही है.

आपको बता दें कि इस स्कीम के तहत आप भी बैंकों के साथ जुड़कर उनके परिसरों में आधार सेंटर खोलकर हर महीने मोटी कमाई कर सकते हैं. पहले सरकार ने बैंकों को ही आधार सेंटर चलाने की जिम्‍मेदारी दी थी. लेकिन बैंकों ने सरकार से कहा कि अन्य काम के साथ आधार एनरौलमेंट और अपडेशन की जिम्‍मेदारी से बैंकों की सर्विस में रुकावट आ सकती है. यह कहकर बैंकों ने इस सर्विस को थर्ड पार्टी को देने का प्रस्ताव दिया है.

इस स्कीम के तहत आपको ग्राहकों का आधार एनरौल करने के लिए जगह बैंक की तरफ से ही मुहैया कराई जाएगी. बस आपको वहां आने वाले ग्राहकों का आधार एनरौल करना होगा. आधार सेंटर खोलने वाली एजेंसी या शख्स को बैंक की तरफ से तय राशि दी जाएगी. लेकिन इसके लिए आपके पास शुरुआती इनवेस्टमेंट के तौर पर 2 लाख रुपए होने चाहिए, हालांकि इस बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है.

प्रदूषण के खिलाफ मैच जीतना है तो मिलकर खेलना होगा : विराट कोहली

दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में स्मोग के चलते लोगों का बुरा हाल है. इस बुरे हाल पर हर कोई हताश है और सरकार भी जनता को किसी भी तरह से राहत देने में नाकामयाब नजर आ रही है.

ऐसे में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने एक वीडियो मैसेज के जरिए दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए देशवासियों से अपील की है कि वह खुद इस प्रदूषण पर रोकथाम करने की दिशा में आगे बढ़ें.

विराट कोहली ने इंस्टाग्राम पर हैशटैग ‘मुझे फर्क पड़ता है’ के साथ एक वीडियो शेयर किया है.

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कोहली ने इस वीडियो में कहा है कि आप सभी जानते हैं कि दिल्‍ली में प्रदूषण का क्‍या हाल है. मैं आप सब से बस यही कहना चाहता हूं कि आज सब लोग दिल्‍ली के प्रदूषण पर बात कर रहे हैं और उसपर लगातार बहस कर रहे हैं, लेकिन क्या किसी ने इससे निपटने के बारे में सोचा है, किसी ने सोचा है कि इससे बचने के लिए क्‍या उपाय करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि अगर हमें प्रदूषण के खिलाफ मैच जीतना है तो सबको साथ मिलकर खेलना होगा, क्‍योंकि प्रदूषण को कम करना हम सब की जिम्‍मेदारी है.

इस वीडियो उन्होंने दिल्‍लीवालों से अपील की है कि वे आने जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्‍तेमाल करें ताकि प्रदूषण पर रोकथाम की जा सके. कोहली ने कहा, मैं आप सभी लोगों से आग्रह करता हूं कि जितना हो सके बस, मेट्रो और कैब का इस्‍तेमाल करें और कार शेयरिंग करें. अगर आप हफ्ते में एक दिन भी ऐसा करते हैं तो इससे काफी फर्क पड़ेगा, क्‍योंकि हर छोटे एक्‍शन से भी फर्क पड़ता है.

शौकिंग! इस हफ्ते बिग बौस के घर से बेघर होंगी हिना खान

टीवी के सबसे चर्चित रिएलिटी शो बिग बौस में रोज नया ड्रामा, लड़ाई, प्यार मोहब्बत, ट्विस्ट देखने को मिलता है. इन सब ड्रामे के बीच हर हफ्ते घर से एक सदस्य बेघर होता है. इस हफ्ते घर से बाहर जाने के लिए बेनाफशा, सपना चौधरी और हिना खान नौमिनेशन लिस्ट में हैं, जिनमें से बेनाफशा का बाहर जाना तय माना जा रहा था लेकिन बिग बौस के घर में सब कुछ इतनी आसानी से कहां होता है.

रिपोर्ट्स की मानें तो इस हफ्ते बेनाफशा नहीं हिना घर से बाहर जा रही हैं. जी हां, आपने ठीक पढ़ा, इस हफ्ते बिग बौस के घर से निकलने वाली सदस्य हिना खान होंगी लेकिन वह इस शो से बाहर नहीं होंगी.

हिना को घर से निकालकर कुछ दिनों के लिए सीक्रेट रूम में रखा जाएगा, जहां से वह पूरे घर का हाल देख पाएंगी. हिना घर से निकलकर यह देख पाएंगी कि उनके जाने के बाद घर में क्या बदलाव आता है. उनके पीछे घर पर लोग उनके बारे में क्या बात करेंगे. इसके बाद जब हिना घर में वापस आएंगी तो गजब का हंगामा शुरू होगा, यह तो तय है.

आपको बताते चलें कि हिना ने हाल ही में खुद के बारे में एक बड़ा खुलासा किया है. घर के अंदर विकास गुप्ता से बातचीत करते हुए हिना ने बताया कि घर से बाहर निकलते ही वो एक फिल्म और एक वेब सीरीज में काम करने वाली हैं.

हिना ने विकास को बताया कि वह फिल्म के डायरेक्टर का नाम नहीं ले सकतीं. लेकिन घर से बाहर होते ही वह उस पर काम शुरू करेंगी.

हिना ने विकास को बताया कि बिग बौस की वजह से उनके कई प्रोजेक्ट्स अटके हुए हैं. एक तरफ जहां हिना अपनी बातें कर रही थीं तो विकास ने भी एक बात शेयर की. विकास ने बताया कि वह बिग बौस के बाद प्रियांक के साथ 20 दिनों का एक प्रोजेक्ट प्लान कर रहे हैं.

जियो उपभोक्ताओं के लिये खुशखबरी, अब शौपिंग भी कराएगा जियो

रिलायंस जियो ने टेलीकौम इंडस्ट्री में कदम रखते ही जो धमाल मचाया, उससे दूसरी टेलीकौम कंपनियां सकते में आ गईं. आज जियो नेटवर्क टेलिकौम का एक बड़ा खिलाड़ी बन चुका है. अब जियो ने अगली योजना भी शुरू कर दी है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जियो अपने उपभोक्ताओं को फ्री शौपिंग कराने की तैयारी कर रहा है.

देश में बढ़ते डिजिटल पेमेंट को देखते हुए जियो अब ई-कौमर्स मार्केट में उतरने की तैयारी में है. विशाल नेटवर्क और लाखों कस्टमर्स के दम पर जियो अमेजौन, फ्लिपकार्ट जैसे बड़े प्लेयर्स से टक्कर लेगा. जिस तरह टेलीकौम सेक्टर में 6 महीने के भीतर जियो ने 10 मिलियन कस्टमर्स जोड़े हैं उसी तरह ई-कौमर्स में भी धमाल मचाने की तैयारी है.

जियो मनी से सुविधा देने की तैयारी

कंपनी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, जियो कौर्नर स्टोर, किराना दुकानें और कंज्यूमर ब्रैंड्स के साथ संपर्क में है. दरअसल जियो कंपनी के कस्टमर्स को जियो मनी प्लेटफौर्म से इस सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं. डिजिटल कूपन के जरिए पड़ोस की दुकानों से खरीदारी की जा रही है. फिलहाल जियो मुंबई, चेन्नई और अहमदाबाद जैसे शहरों में कई बड़े स्टोर्स और ब्रैंड्स में ई-बिजनेस कर रहे हैं, संभव है यह योजना अगले साल अन्य शहरों में तक भी पहुंच जाएगी.

ई-कौमर्स कंपनियों पर नजर

पिछले एक साल में जियो से 13.2 करोड़ कंज्यूमर्स जुड़े हैं. इसमें उनका प्लेटफौर्म अजियो (Ajio) भी शामिल है. कंपनी अब औनलाइन-टू-औफलाइन ई-कौमर्स में प्रवेश कर चुकी पेटीएम और फोनपे जैसी कंपनियों पर ध्यान दे रही है. पेटीएम जैसी कंपनियां कौर्न स्टोर तथा अन्य ब्रैंडस से जुड़कर बिजनेस कर रही हैं.

इन कंपनियों के पास अपने नेटवर्क का आक्रामक रूप से बढ़ाने के लिए निवेशकों से मदद मिलती है. वहीं, ई-कौमर्स दिग्गज अमेजौन और फ्लिपकार्ट भी अपने किराना सामान की डिलीवरी बिजनेस में और निवेश बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं.

ई-कौमर्स सेक्टर का विस्तार

हांलाकि, ई-कौमर्स में उतरने की खबर को लेकर रिलायंस जियो ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया है. सूत्रों की मानें तो कंपनी फिलहाल औनलाइन-टू-औफलाइन बिजनेस मौडल पर काम कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 650 अरब डौलर का रिटेल कारोबार होता है, वहीं ई-कौमर्स सेक्टर में ये आंकड़ा केवल 3-4% है. इसके अलावा 8% संगठित खुदरा विक्रेता हैं, जो शौपर्स स्टौप और बिग बाजार जैसे स्टोर्स से चलते हैं. बाकी 88% से 89% बाजार में उपलब्ध छोटी दुकानें या नुक्कड़ स्टोर्स हैं.

अंतिम रूप देना बाकी

सूत्रों के मुताबिक, अभी तक जियो ने ई-कौमर्स बिजनेस मौडल को अंतिम रूप नहीं दिया है. दूसरे शहरों में रिसर्च के बाद ही इसमें बदलाव किए जाएंगे. जियो ने पायलट प्रोजेक्ट के लिए आईटीसी, विप्रो, डाबर, टाटा बेवरेजेज, गोदरेज कंज्यूमर और अमुल जैसे ब्रांड्स को शामिल किया है.

क्या मिलेगी सुविधा

मौजूद स्थिति में जियो अपने मोबाइल यजूर्स को विशेष ब्रैंड के प्रोडक्ट्स के लिए डिजिटल कूपन देगा. यूजर्स इस डिजिटल कूपन के जरिए इन ब्रैंड्स पर शौपिंग कर सकेंगे. पड़ोस के किसी भी स्टोर पर ये कूपन काम करेंगे.

हालांकि, डिजिटल कूपन उन्हीं स्टोर्स पर चलेंगे होगा जिनके साथ पार्टनरशिप होगी. ब्रैंड पार्टनर्स अपने प्रोडक्टस के प्रमोशल औफर्स जियो कस्टमर्स को भेज सकेंगे. इससे मेकर्स और बेचने वालों के बीच भी तालमेल मजबूत होगी और औफर के जरिए बिक्री भी ​बढ़ेगी.

एक बार फिर परिवारवाद का शिकार हुए करण जौहर

बौलीवुड में अक्सर ही ‘नेपोटिज्‍म’ यानि परिवारवाद को लेकर सवाल उठते रहते हैं. ज्यादातर मामले में इस बात को लेकर करण जौहर पर निशाना साधा जाता है. अब ऐसा लगता है कि वाकई बौलीवुड में स्‍टार्स को लौन्‍च करने का जिम्मा करण जौहर ने ले रखा है. तभी तो आलिया भट्ट और वरुण धवन को बौलीवुड में जबरदस्त एंट्री दिलाने के बाद अब वह श्रीदेवी और बौनी कपूर की बेटी जाह्नवी कपूर को अपनी नई फिल्‍म में लौन्‍च कर रहे हैं. इतना ही नहीं इसी फिल्‍म से शाहिद कपूर के सौतेले भाई ईशान खट्टर भी अपने फिल्‍मी सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं.

इसका खुलासा करण जौहर ने बुधवार शाम को इन दोनों की आने वाली फिल्‍म ‘धड़क’ का पहला लुक रिलीज कर किया है. इस पहले झलक में जाह्नवी और ईशान का पूरा लुक सामने लाया गया है. उनकी इस फिल्म का पहला पोस्टर सामने आते ही वह सोशल मीडिया पर छा गए.

लेकिन जहां इस पहले झलक को तारीफें मिलनी चाहिए थी, वहीं ट्विटर पर कई लोगों ने फिल्‍मी परिवार के बच्‍चों को लौन्‍च करने के लिए करण को खरी-खरी सुनाई है. एक यूजर ने कमेंट किया, ‘ उम्‍मीद है कि यह लोग सही से एक्टिंग करेंगे, ताकि ‘परिवारवाद’ से जुड़े तुम्‍हारे इस बेइन्तिहा प्‍यार को सही ठहराया जा सके..’. वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, ”करोड़ों की जनसंख्‍या वाले देश में इस शख्‍स को सिर्फ फिल्‍मी परिवारों के बच्‍चों में ही हुनर दिखाई पड़ता है. करण जौहर ने फिल्‍मों को पारिवारिक बिजनेस बना लिया है.’ एक और यूजर ने लिखा, ‘तुम कब तक इन स्‍टार किड्स’ को प्रमोट करते रहोगे..?’

गौरतलब है कि करण जौहर और कंगना रनोट के बीच ‘परिवारवाद’ को लेकर काफी लंबी बहस चल चुकी है, जिसकी शुरुआत करण जौहर के शो काफी विद करण’ पर ही हुई थी. कंगना ने करण के सवाल पर उन्‍हें फिल्‍मों में ‘नेपोटिज्‍म’ का सबसे बड़ा प्रणेता कहा था. हालांकि बाद में एक इन्टरव्यू के दौरान करण ने अपनी सफाई में कहा, ‘ मैं ऐसा बिलकुल नहीं मानता कि परिवारवाद अच्‍छा है. मैं पूरी तरह मानता हूं कि सिर्फ हुनर ही सबसे जरूरी है.’

आपको बता दे कि ‘धड़क’  मराठी ब्‍लाकबस्‍टर फिल्‍म ‘सैराट’ की हिंदी रीमेक है. ‘सैराट’ में भी दो नए कलाकारों को सामने लाया गया था और इस फिल्‍म को सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश में तारीफें मिली थीं.

‘धड़क’ शशांक खेतान डायरेक्ट करेंगे. फिल्म को धर्मा प्रोडक्शंस और जी स्टूडियोज मिलकर प्रोड्यूस कर रहे हैं. यह फिल्म 6 जुलाई, 2018 को रिलीज होगी.

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