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इस ट्रिक के जरिये पढ़ें डिलीट किए गए व्हाट्सएप मैसेज

प्रमुख सोशल मैसेजिंग एप व्हाट्सएप ने हाल ही में मैसेज रिकौल या ‘डिलीट फौर एव्रीवन’ नाम से नया फीचर जारी किया है. इस फीचर की मदद से यूजर्स गलती से भेजे गए मैसेज को रिकौल कर सकते हैं.

अगर आपकी ओर से भेजा गया मैसेज रिसीवर पढ़ भी लेता है तो भी इस फीचर की मदद से उसे डिलीट किया जा सकता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप व्हाट्सएप से डिलीट किए गए मैसेज को भी पढ़ सकते हैं.  हम अपनी इस खबर में आपको डिलीट किए जा चुके मैसेज को पढ़ने का तरीका बताने जा रहे हैं.

डिलीट मैसेज को कैसे पढ़े

आपको बता दें कि डिलीट किए हुए मैसेज एंड्रौयड सिस्टम के नोटिफिकेशन रजिस्टर में स्टोर रहते हैं. जिसे पढ़ने के लिए आपको बस रिकौर्ड देखने की जरुरत है.

इसके लिए आपको गूगल प्ले स्टोर से ‘नोटिफिकेशन हिस्ट्री’ नाम की एप अपने स्मार्टफोन में इंस्टौल करनी होगी. अब आपको इस एप में व्हाट्सएप में आए मैसेज को पढ़ने की अनुमति देनी होगी. इसके बाद नोटिफिकेशन हिस्ट्री सेटिंग्स से व्हाट्सएप नोटिफिकेशन रिकवर करके आप मैसेज को पढ़ सकते हैं.

एप को इंस्टौल करने बाद आपको मोबाइल पर आए नोटिफिकेशन के साथ एक एडवांस औप्शन मिलेगा, जिसे टैप कर आप नोटिफिकेशन को पढ़ सकते हैं. अगर सेंडर ने मैसेज डिलीट कर दिया है तो भी रिसीवर इसमें मैसेज को पढ़ सकता है. हालांकि, इसमें कुछ शर्तें भी शामिल हैं. जैसे कि फोन को रिस्टार्ट कर देने पर यूजर व्हाट्सएप के डिलीट मैसेज को नहीं पढ़ सकेंगे. इसके अलावा इसमें 100 कैरेक्टर के बाद के मैसेज को आप रिकवर नहीं कर सकते.

आपको बता दें कि यह ट्रिक सिर्फ एंड्रौयड डिवाइस के लिए ही है.

इसके अलावा कुछ ऐसी एप्स भी मौजूद हैं जो आपके बेहद काम आ सकती हैं. हम आपको Primo एप के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके जरिए अगर आप चाहें तो अपना असली नंबर बताए बिना किसी से भी चैट कर सकते हैं. चैट करते समय सामने वाले को आपका नंबर तो दिखाई देगा लेकिन वो नंबर आपका नहीं होगा.

जानिए स्टेप बाइ स्टेप तरीका

सबसे पहले गूगल प्ले स्टोर में जाएं और Primo एप को सर्च करें. अब इसे अपने स्मार्टफोन में इंस्टौल करें और साइन बटन पर क्लिक कर अपना अकाउंट बनाएं.

  • इस प्रक्रिया के बाद, आपको अपना मोबाइल नंबर एंटर करना होगा. इसके बाद आपको 6 अंकों का एक वेरिफिकेशन कोड आएगा और एप आपका मोबाइल नंबर वेरिफाई करेगा.
  • अब आपको अपना नाम, यूजर नेम और पासवर्ड डालना होगा और कुछ अन्य जानकारियां भी देनी होंगी.
  • साइन इन करने के बाद, आपको आपके ईमेल आईडी को वेरिफाई करने के लिए मेल आएगा।.मेल आईडी वेरिफिकेशन पूरी होने के बाद आप एप पर रिडायरेक्ट हो पाएंगे.
  • एप में साइन इन होने के बाद, अपने प्रोफाइल में जाएं और Primo US Phone Number औप्शन पर टैप करें.
  • पूरी प्रक्रिया होने के बाद आपसे पैकेज को खरीदने को कहा जाएगा. उसमें से फ्री टायल को चुनें.
  • इसके बाद आपको एक US Number दिया जाएगा जिसका इस्तेमाल आप अपने व्हाट्सएप पर कर सकते हैं.
  • अब इस नए नंबर से व्हाट्सएप पर एक नया अकाउंट बनाएं और अकाउंट वेरिफिकेशन के लिए ‘Call Me’ औप्शन पर क्लिक करें. आपको कौल के जरिए एक नया कोड दिया जाएगा. कोड को एंटर कर अपना अकाउंट वेरिफाई करें.
  • अब आप किसी भी नए नाम और प्रोफाइल पिक्चर से नया अकाउंट बना सकते हैं.
  • इस पूरी प्रक्रिया के होने के बाद, आप जिसे चाहें मैसेज कर सकते हैं और आपका नंबर उसे नहीं दिखाई देगा.

धोनी ने खोला राज, क्यों बनाया गया था उन्हें भारतीय टीम का कप्तान

महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट के सफलतम कप्तानों में से एक हैं. दबाब में या हारे हुए मैचों को कैसे जीता जाए और संकटमोचन बनकर कप्तानी की भूमिका कैसे निभाई जाए, यह तो धोनी से ही सीखा जा सकता है. उन्होंने अपनी कप्तानी में ऐसे कारनामे किए हैं, जोकि अब तक कोई भी भारतीय कप्तान नहीं कर सका है.

धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने न सिर्फ वनडे और टी-20 वर्ल्ड कप जीता बल्कि चैंपियंस ट्राफी भी अपने नाम किया. इतना ही नहीं, धोनी टीम इंडिया को टेस्ट में नंबर वन भी बना चुके हैं.

इस साल की शुरुआत में धोनी ने जब वनडे और टी-20 की कप्तानी छोड़ी तो हर कोई हैरान था. इतने साल कप्तानी करने बाद अब धोनी ने अपना एक अहम राज खोला है कि आखिर 2007 में कैसे उन्हें कप्तान बनाया गया.

2007 में जब वह 26 साल के थे तब उन्हें नए फार्मेट टी-20 का कप्तान कैसे चुना गया, इसका खुलासा धोनी ने एक वेब पोर्टल को दिए इंटरव्यू में किया. इंटरव्यू में धोनी ने बताया, “मैं उस वार्तालाप या बैठक में नहीं था जब मुझे भारतीय टीम के कप्तान के रूप में चुना गया था. यह सबकुछ मेरे योग्यता और गेम को परखने की निर्भरता पर मिली.”

उन्होंने आगे बताया कि अपने खेल को पढ़ना एक महत्वपूर्ण बात है. उस वक्त मैं सबसे युवा खिलाड़ियों में से एक था. जब भी सीनियर खिलाड़ियों द्वारा मेरा दृष्टिकोण जानने की कोशिश की जाती थी तो मैं कभी भी अपनी बात रखने में हिचक नहीं करता था.

उन्होंने आगे बताया कि उस वक्त की टीम सदस्यों के साथ मेरा व्यवहार सभी खिलाड़ियों के प्रति बेहद अच्छा रहा, शायद इन्हीं वजहों से मुझे नए फार्मेट का कप्तान बनाया.

धोनी ने कुल 199 वनडे मैचों कप्तानी की, जिसमें टीम इंडिया ने 110 मैच जीते. धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने घरेलू वनडे मैचों में कुल 73 में से 43 मैचों जीत हासिल की. वनडे में बैटिंग स्ट्राइक रेट व औसत की बात की जाए तो एबी डिविलियर्स के बाद धोनी दुनिया के दूसरे सफलतम कप्तान हैं. 199 मैचों की कप्तानी करते हुए धोनी ने कुल 6633 रन, जबकि डिविलियर्स ने 87 मैचों की कप्तानी में 4217 रन बनाए.

मराठी फिल्म रिव्यू : दशक्रिया

पूजा अर्चना, कर्मकांड आदि प्रथायें आम आदमी के जीवन से इस तरह से जुड़ी हैं कि मरने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ती हैं. हिन्दू धर्म में मनुष्य के मरने के बाद तीसरे, दसवें, बारहवें, तेरहवें दिन पर ब्राह्मणों के हाथ से पिंडदान करने और उन्हें दान धर्म करने की प्रथा है. लेकिन आजकल ये प्रथाएं कमाई का धंधा बन चुकी हैं. इसी धंधे पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ‘दशक्रिया’ फिल्म के जरिये टिप्पणी की गई है. यह फिल्म उपन्यासकार बाबा भांड द्वारा लिखित ‘दशक्रिया’ नामक उपन्यास पर आधारित है.

गोदावरी नदी के तट पर बसे पैठण शहर के नाथ घाट पर दशक्रिया विधि करने के लिए महाराष्ट्र के विविध भागों से लोग आते हैं. इस शहर में रहने वाले ज्यादातर ब्राह्मणों का रोजगार दशक्रिया विधि कराना है. केशव भट्ट (मनोज जोशी) ऐसा ही एक ब्राह्मण है. वह वहां आने वाले सभी ग्राहकों को बड़े चतुराई से अपनी ओर कर लेता है और मनमानी ढंग से दक्षिणा मांगता है. नारायण (मिलिंद फाटक) एक गरीब ब्राह्मण है. शिक्षक की नौकरी छूटने के बाद वो भी दशक्रिया कराने की शुरुआत करता है. लेकिन केशव उसे एक भी ग्राहक मिलने नहीं देता है. इस वजह से केशव और नारायण के बीच विवाद शुरू हो जाता है.

इस विवाद को सुलझाने के लिए पत्रे सावकार (दिलीप प्रभावलकर) पंचायत बुलाते हैं, लेकिन पंचायत में मारामारी के अलावा कुछ नहीं होता है. सावकार केशव को मनमानी ढंग से पैसा कमाने का यह धंधा बंद करने के लिए समझाते है, जिसके वजह से केशव उससे नफरत करने लगता है.

केशव एक किरवंत ब्राह्मण है जो मृत्यु के बाद की जाने वाली सभी विधि पूरी करता है और ग्राहकों को धर्म के नाम पर लूटता है. इसलिए गुढीपाडवा के दिन सावकार केशव को पूजा नहीं करने देते है. इससे अपमानित होकर केशव सावकार को सबक सिखाने की ठान लेता है. एक किरवंत ब्राह्मण होने के नाते नारायण भी खुद को अपमानित समझता है और केशव का साथ देता है.

सावकार देव दर्शन के लिए दूसरे गांव जाते हैं, जहां केशव उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट करा देता है जिसमें उनकी मृत्यु हो जाती है. सावकार की पत्नी दशक्रिया विधि के लिए केशव के पास जाती है लेकिन वो अपमान का बदला लेने की बात पर अड़ा रहता है और विधि करने से इनकार कर देता है. साथ ही गांव के सभी किरवंत ब्राह्मणों को भी यह विधि नहीं करने की चेतावनी देता है.

दूसरी ओर, छोटी जाति का 7-8 साल का भान्या (आर्या आढाव) हर रोज स्कूल जाने के बजाय नाथघाट पर घूमता रहता है. अपने बाल मन में उठ रहे सवालों को बेझिझक पूछता है. पानी में किये गये अस्थि विसर्जन को चालनी लगाकर उसमें से छुट्टे पैसे इकठ्ठा करना उसको अच्छा लगता है. यहां से इकठ्ठा किये गए पैसे से वह अपनी मां की आर्थिक मदद करता है. दशक्रिया का विवाद और बाल्यावस्था में भान्या का जीवन फिल्म में दोनों समानांतर आगे बढ़ते हैं. लेकिन एक समय पर ये दोनों एक दूसरे से इस तरह टकराते हैं कि धर्म और जाति के नाम पर छल करने वाले समाज के ठेकेदारों को अपनी लाज बचाकर भागना पड़ता है.

जात-पांत के आधार पर आपस में भेद पैदा करके स्वयं को ज्ञानी और दूसरों को अज्ञानी साबित करने वालों के लिए यह एक तमाचा है. कर्मकांड के संस्कार में पली बढ़ी भावी पीढ़ी फिर से यही धंधा नए सिरे से ना शुरू कर दे, यह चिंता फिल्म के अंत में सताती है.

केशव की भूमिका में मनोज जोशी और भान्या की भूमिका में आर्या आढाव दोनों ने ही फिल्म में बहुत असरदार और कुशल अभिनय किया है. अन्य कलाकारों ने भी बहुत अच्छा काम किया है. संजय पाटिल का उत्कृष्ट पटकथा लेखन और संदीप पाटिल का निर्देशन कहानी के मूल भाव को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करता है. उपन्यास के अनुसार फिल्म का समय काल १९९४ का दिखाया गया है, परन्तु ये परिस्थिति आज भी जस की तस है.

यह फिल्म किसी भी धार्मिक प्रथा पर रोक लगाने की मांग नहीं करती है, लेकिन इसमें सच्चाई को प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया है. इससे क्या सीख लेनी चाहिए, यह दर्शकों को अलग से समझाने की जरूरत नहीं है.

निर्माता – कल्पना कोठारी

निर्देशक – संदीप पाटिल

पटकथा – संजय पाटिल

कलाकार – दिलीप प्रभावलकर, मनोज जोशी, मिलिंद फाटक, आर्या आढाव और आशा शेलार

स्टार- 3 & 1/2

अमिताभ बच्चन हुए हादसे का शिकार, चलती गाड़ी का पहिया हुआ अलग

अमिताभ बच्चन के साथ हाल ही में एक हादसा ऐसा हुआ, जिसमें वे बाल-बाल बच गए. अमिताभ पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल सरकार के बुलावे पर 23वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के उद्घाटन के लिये कोलकाता पहुंचे थे, जहां उनके साथ ये हादसा हुआ. इस हादसे में कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी, लेकिन इस हादसे में महानायक बाल-बाल बच गए.

यह थी दुर्घटना की वजह

असल में जिस जिस मर्सडीज कार में वे जा रहे थे, उसका पिछला पहिया अचानक अलग हो गया और इस वजस से कार दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बची. कहा जा रहा है कि पहिया अलग होने के बाद कार का बैलेंस बिगड़ गया था और कार बड़े हादसे का शिकार हो सकती थी. राज्य सरकार ने उस ट्रैवेल एजेंसी को, जिसने ये कार महानायक के लिए मुहैया करवाई थी, उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

वरिष्ठ अधिकारी ने दी जानकारी

इस बात की जानकारी देते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि शनिवार की सुबह बिग बी मुम्बई जाने के लिए हवाई अड्डे जा रहे थे, तब डुफ्फेरिन रोड पर कार का‌ पिछला पहिया अलग हो गया और कार ने अपना नियंत्रण खो दिया. उन्होंने जानकारी दी कि ट्रैवेल एजेंसी के मालिक को कारण बताओ नोटिस देकर इस मामले में सफाई देने की मांग की है.

तुम्हारी सुलु : विद्या बालन का दमदार अभिनय

फिल्म की पटकथा चाहे जितनी कमजोर हो, मगर कलाकार अपने अभिनय के दम पर उस फिल्म को काफी हद तक रोचक बना सकता है. इसका ताजातरीन उदाहरण है फिल्म ‘तुम्हारी सुलु’, जो महज विद्या बालन के दमदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है.

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता विद्या बालन ने उपनगरीय मध्यमवर्गीय परिवार की गृहिणी के साथ साथ रेडियो पर फोन करने वालों से सेक्सी बातें करने वाली आर जे तक के किरदार को जिस तरह से निभाया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है.

फिल्म ‘‘तुम्हारी सलु’’ की कहानी मुंबई महानगर से सटे विरार इलाके में रहने वाली सुलोचना उर्फ सुलु (विद्या बालन) के इर्द गिर्द घूमती है. सुलोचना (विद्या बालन) एक मध्यम वर्गीय गृहिणी है, जो कि अपने प्यारे पति अशोक दुबे (मानव कौल) और अपने बेटे प्रणव दुबे के साथ रहती है. उसके पास लक्जरी सुविधाओं से युक्त तीन बेडरूम का फ्लैट भले नहीं है, पर वह खुश रहती है. वह घर के आस पास कई तरह की प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनती रहती हैं. उसे ‘निंबू चमचा दौड़’ में पुरस्कार भी मिलता है.

सुलोचना के अंदर आत्म विश्वास है कि मैं कुछ भी कर सकती हूं. एक दिन सुलोचना के मन में रेडियो जाकी बनने का ख्याल आता है और वह स्थानीय रेडियो स्टेशन पर आडीशन देने जाती है. रेडियो स्टेशन की मालकिन मारिया (नेहा धूपिया) को सुलोचना के अंदर एक जोश नजर आता है. वह उन्हे देर रात प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को करने के लिए रख लेती है. इस कार्यक्रम को नाम दिया जाता है-‘तुम्हारी सुलु’.

इस कार्यक्रम में सुलोचना को श्रोताओं के फोन करने पर उनसे बात करनी होती है, जो कि फ्लर्ट करने वाली बातें करना व सुनना चाहते हैं. पति की तरफ से पूरा सहयोग मिलते हुए भी सुलोचना खुद को एक मोड़ पर फंसी हुई पाती हैं. वास्तव में एक दिन उन्हे पता चलता है कि उनके  बेटे की कुछ गलत हरकतों की वजह से उसे स्कूल से निकाल दिया गया है. अब वह अपने सपने को पूरा करने और एक सही मां बनने के बीच खुद को फंसी हुई पाती है. अब सुलोचना को लगता है कि ‘मैं कर सकती हूं’ का उनका मंत्र महज एक भ्रम ही था. वह रेडियो की आरजे वाली नौकरी छोड़ देती हैं. पर हिम्मत नहीं हारती. बेटे की पढ़ाई का ख्याल रखते हुए टिफिन सेवा से लेकर कुछ दूसरे काम करती है और फिर एक दिन पुनः ‘आरजे’ बन जाती है.

विज्ञापन फिल्में बनाते आ रहे सुरेष त्रिवेणी की बतौर लेखक व निर्देशक यह पहली फिल्म है, जिसमें वह सफल नहीं हैं. फिल्म की कथा कथन शैली काफी सहज और वास्तविक है. पर पटकथा काफी कमजोर है. कहानी के नाम पर फिल्म में टीवी सीरियल की ही तरह कुछ घटनाक्रम हैं. फिल्म की शुरुआत धीमी गति से होती हैं, पर फिर विद्या बालन अपने अभिनय के दम पर फिल्म को संभाल लेती हैं. मगर इंटरवल के बाद फिल्म लेखक व निर्देशक के हाथ से निकलती हुई नजर आती है.

सुरेष त्रिवेणी ने पति पत्नी के बीच प्यार व झगड़े के दृश्यों व अन्य पलों को फिल्म में बड़ी खूबसूरती से पिरोया है. इंटरवल के बाद फिल्म में नाटकीयता होने के बावजूद रोचकता नहीं रह जाती है. फिल्म का क्लायमेक्स गड़बड़ है. सुलोचना के बेटे प्रणव के स्कूल से जुड़े मुद्दों को और बेहतर तरीके से पेश किया जाना चाहिए था. फिल्म देखते समय दर्शक के दिमाग में ‘‘भाबी जी घर पर हैं’’ या ‘‘रजनी’’ जैसे कई टीवी सीरियल घूमने लगते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन ने एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि वह किसी भी किरदार को अपने बलबूते पर यादगार बना सकती हैं. वह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर बड़ी सहजता से आगे लेकर चलती हैं. उपनगर में रहने वाली, बारवहीं फेल महिला जो कि इस बात में यकीन करती है कि ‘मैं कर सकती हूं’ कई तरह की प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज करते कराते अचानक देर रात रेडियो पर सेक्सी कार्यक्रम में श्रोताओं से बात करने वाली आर जे बनने तक हर रूप में वह बहुत सहज लगती हैं. लोगों के दिलों से इस कदर जुड़ती हैं कि कमजोर कहानी व पटकथा के बावजूद दर्शक फिल्म से जुड़ा रहता है.

विद्या बालन ने कामेडी के साथ साथ हंसी, पति से अनबन, बेबसी आदि सभी भावों को जबरदस्त व अति सहज रूप में अपने अभिनय से पेश किया है. अशोक के किरदार में मानव कौल ने भी काफी बेहतरीन काम किया है. उनके फ्रस्टेशन के सीन कुछ ज्यादा ही अच्छे बन पड़े हैं. स्टूडियो मालकिन मारिया के किरदार में नेहा धूपिया ने लंबे समय बाद काफी अच्छी परफॅार्मेंस दी है.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘तुम्हारी’’ सुल्लू का निर्माण ‘टी सीरीज’ के साथ मिलकर अतुल कस्बेकर और शांति शिवराम मैनी ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक सुरेश त्रिवेणी, संगीतकार गुरू रंधावा, रजत नागपाल, तनिष्क बागची, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कैमरामैन सौरभ गोस्वामी तथा कलाकार हैं-विद्या बालन, मानव कौल, नेहा धूपिया, विजय मौर्य, मलिष्का, अभिषेक शर्मा, सीमा तनेजा, शांतनु घटक व अन्य.

क्या एक दिसंबर को “पद्मावती” सिनेमाघरों में होगी रिलीज

अब बौलीवुड और बौलीवुड के बाहर हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है कि क्या एक दिसंबर को संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘पद्मावती’’ सिनेमाघरों में पहुंच पाएगी?

एक तरफ इस फिल्म को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, तो दूसरी तरफ संजय लीला भंसाली की पूरी टीम ने इस फिल्म को एक दिसंबर को सिनेमाघरों में पहुंचाने के लिए कमर कस ली है.

फिल्म के प्रमोशनल इंटरव्यू भी शुरू हो गए हैं. 15 नवंबर, बुधवार के दिन दीपिका पादुकोण ने कुछ पत्रकारों से अलग अलग बात की. इस फिल्म,फिल्म के अपने किरदार व फिल्म के विरोध को लेकर दीपिका पादुकोण ने हमसे ‘एक्सक्लूसिव’ बातचीत करते हुए कहा कि लोग फिल्म देखें, फिर अपनी प्रतिक्रिया दें. यदि उन्हे कुछ गलत लगेगा तो वह अपनी गलती मान लेंगी.’’

मगर फिल्म‘‘पद्मावती’’का विरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. फिल्म के प्रमोशन के मद्देनजर दीपिका पादुकोण के पत्रकारों से बातचीत करने की खबर फैलते ही ‘‘राजपूत करणी सेना’’के अध्यक्ष लोकेंद्रनाथ ने सुपर्णखा की तरह दीपिका पादुकोण की नाक काटने की धमकी दे डाली.

मजेदार बात यह है कि लोकेंद्र नाथ ने लखनऊ में प्रेस कौन्फ्रेंस की. उन्होंने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान में बैठे डौन दाउद इब्राहिम ने दुबई के जरिए इस फिल्म के निर्माण के लिए पैसा दिया है.

इसी के साथ अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी सुर बदल गए हैं. उन्होने केंद्र को पत्र लिखकर मदद मांगी है. वह कहते हैं-‘‘यदि कोई फिल्म इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर समाज में जहर घोलने का काम करे, तो यह सही नही है. किसी को भी व्यावसायिक हितों के लिए समाज मे अव्यवस्था फैलाने का हक नही है. मैं फिल्म पर रोक नही लगा सकता. मगर कानून व्यवस्था के मसले को देखना मेरा काम है.’’

उधर दो दिन पहले सिनेमा से जुड़े ‘फिल्म स्टूडियो सेटिंग और संबंद्ध मजदूर यूनियन’ के मंत्री श्रीवास्तव ‘पद्मावती ’के साथ खड़े होने की पुरजोर वकालत करते हुए मीडिया के सामने आए थे. मगर दो दिन बाद ही उसी मजदूर संगठन के अध्यक्ष और भाजपा विधायक राम कदम ने तो संजय लीला भंसाली को धमकी दे डाली कि यदि वह नहीं मानेंगे, तो उनका संगठन उन्हे कोई भी फिल्म बनाने नहीं देगा.

15 नवंबर ,बुधवार को राम कदम ने बाकायदा मुंबई में प्रेस कौन्फ्रेंस बुलाकर कहा- ‘‘हमारा संगठन ऐसे लोगों का समर्थन नहीं करेगा, जो अपनी फिल्म के प्रचार के लिए इतिहास के संग छेड़छाड़ करते हैं. हम बैन की मांग करते हैं. यदि संजय लीला भंसाली नहीं मानेंगे, तो हमारी यूनियन उन्हे किसी भी फिल्म की शूटिंग नहीं करने देगा.’’

इसी प्रेस काफ्रेंस में राम कदम ने दीपिका पादुकोण को नसीहत देते हुए कहा-‘‘वह अच्छी अभिनेत्री हैं, मगर इतिहासकार न बने. उन्हे संजय लीला भंसाली को समझाना चाहिए. हमारी एसोसिएशन जल्द ही उन्हे दिखा देगी कि हम क्या कर सकते हैं.’’

राजस्थान ही नहीं दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, हरियाणा व महाराष्ट्र में भी जमकर विरोध हो रहा है.

इस विरोध में भाजपा के कई विधायक, सांसद, मंत्री व कुछ शाही परिवार भी जुड़ गए हैं. जबकि शिवसेना, कौग्रेस, वामपंथी दलो ने इस पर चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि भारतीय विद्दार्थी परिषद भी विरोध पर उतर आया है. राजपूत करणी सेना की तरफ से फिल्म के प्रदर्शन की तारीख एक दिसंबर को ‘‘भारत बंद’’का भी आव्हान किया गया है.

छत्तीसगढ़ के शाही परिवार के सदस्य दिलीप सिंह की बहू हीना सिंह ने फिल्म के घूमर नृत्य पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा है-‘‘इतिहास साक्षी है कि किसी भी राजपूत घराने की महारानी ने किसी के सामने कभी नृत्य नहीं किया. वे लोग इस तरह इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते.

‘‘पद्मावती’’ को ही लेकर ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ के नवनिुयक्त चेयरमैन प्रसून जोशी भी विवादों से घिर गए हैं. एक अंग्रेजी वेबसाइट का दावा है कि ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ के चेयरमैन प्रसून जोशी ने गुप्त रूप से सोमवार, तेरह नवंबर को ही फिल्म ‘पद्मावती’ देख ली और उन्होने इस फिल्म को बिना किसी कांट छांट के ‘यू’ प्रमाणपत्र देने का आश्वासन दे दिया है.

मगर दो दिन बाद प्रसून जोशी ने इसका खंडन करते हुए कहा है कि उन्होंने इस फिल्म को नहीं देखा है. ज्ञातव्य है कि किसी भी फिल्म को प्रमाणपत्र देने की ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ में एक प्रक्रिया है, जिसके तहत चेयरमैन नहीं बल्कि बोर्ड की सलाहकार समिति के चार सदस्य बैठकर फिल्म देखते हैं.

पर प्रसून जोशी द्वारा फिल्म देखने की बात सामने आने के बाद एक तरफ प्रसून जोशी का सफाईनामा आया, तो दूसरी तरफ केंद्रीय पेय जल मंत्री उमा भारती ने ट्वीट कर ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ को नसीहत भी दी है. उमा भारती ने ट्वीट कर लिखा है-‘‘फिल्म सेंसर बोर्ड एक स्वतंत्र संस्था है. वह सभी की भावनाओं का ध्यान रखकर ही फिल्म को पारित करे. ऐसी हम सब की आपेक्षा है.’’

इतना ही नहीं केंद्रीय पेय जल मंत्री उमा भारती ने ट्वीटर का सहारा लेकर दीपिका पादुकोण का बचाव करते हुए सारी गलती संजय लीला भंसाली की बताते हुए उन्हे कड़ी चेतावनी दी है. उमा भारती ने लिखा है-‘‘पद्मावती फिल्म के निर्देशक और उनके सहयोगी पटकथा लेखक ही कथानक के लिए जिम्मेदार हैं. उन्हे लोगों की भावनाओं और ऐतिहासिक तथ्यों का घ्यान रखना था.

बड़ा सवाल : हर्ज क्या अगर टीचर्स साफ करें टौयलेट?

छोटा सा लेकिन दिलचस्प और एक सबक सिखाता वाकेआ मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ग्यारसपुर ब्लौक के गांव पिपरिया जागीर का है. 20 अगस्त को एक व्हाट्सऐप ग्रुप पर शिक्षक गेंदा सिंह मालवे की कुछ तसवीरें वायरल हुईं जिन में वे टौयलेट की साफसफाई करते नजर आ रहे थे.

विवाद साफसफाई और उस की अहमियत को ले कर नहीं, बल्कि इस बात पर हुआ कि ये तसवीरें जानबूझ कर वायरल की गई थीं. गेंदा सिंह मालवे का आरोप था कि उन पर हैदरगढ़ की क्लस्टर प्रभारी राधा यादव ने अपने दौरे के दौरान टौयलेट साफ करने का दबाव बनाया और फिर टौयलेट साफ करते उन की तसवीरें जानबूझ कर व्हाट्सऐप ग्रुप पर डालीं जिस से वे बेइज्जत महसूस कर रहे हैं. इस बात की शिकायत उन्होंने कलैक्टर, विदिशा और अजाक थाने में की.

इस आरोप के जवाब में राधा यादव ने कहा कि जब वे दौरे पर गईं थीं तो स्कूलटीचर टौयलेट साफ कर रहे थे. उन्होंने उन के फोटो खींचे ताकि अन्य लोगों को संदेश दिया जाए कि शिक्षक भी साफसफाई करते हैं. स्वच्छता अभियान का संदेश देने के लिए उन्होंने फोटो जन शिक्षा केंद्र के व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा किए थे. उन का इरादा किसी को बेइज्जत करने का नहीं था और जातिगत तौर पर अपमान के आरोप झूठे हैं.

स्कूलों में आएदिन ऐसे विवाद आम हैं पर इस झगड़े से एक सार यह निकल कर आया कि अगर टीचर्स टौयलेट्स की साफसफाई खुद करते एक मिसाल पेश करें तो हर्ज की क्या बात. उलटे, इस बात का तो स्वागत किया जाना चाहिए और उस में जातपांत की बात तो होनी ही नहीं चाहिए. विदिशा के विवाद में किस की मंशा क्या थी, इस बात की कोई अहमियत नहीं. अहमियत इस बात की है कि स्कूलों को साफ रखा जाना बेहद जरूरी है.

साफसफाई सिखाएं

साफसफाई की अहमियत कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही लेकिन इस में एक बड़ी दिक्कत यह है कि यह मान लिया गया है कि टौयलेट आदि की सफाई का काम छोटी कही जाने वाली खास जाति के लोग ही करें तो बेहतर है, क्योंकि पीढि़यों से उन का पेशा यही है.

धर्म से आई यह बात स्कूली किताबों में नहीं, बल्कि घरों में ही पढ़ाई जाती है, जिसे बच्चे पूरी जिंदगी ढोते रहते हैं. सरकारी स्कूलों में जातपांत इतना आम है कि सवर्ण बच्चे मध्याह्न भोजन भी छोटी जाति के शिक्षकों से लेना अपनी तौहीन समझते हैं. ऐसे में कोई शिक्षक खुद को जातिगत रूप से बेइज्जत महसूस करे तो इस में उस की क्या गलती.

पढ़ाई से इतर भी स्कूलों में बच्चे काफीकुछ सीखते हैं. अब किसी भी तबके के मातापिता के पास इतना वक्त नहीं है कि वे अपने बच्चों को साफसफाई के बारे में एक हद से ज्यादा बता या सिखा पाएं. ऐसे में यह जिम्मेदारी शिक्षकों को दी जाए तो बात बन सकती है.

इस में शक नहीं कि देशभर के सरकारी स्कूल बेतहाशा गंदगी के शिकार हैं. वजह, इस काम की जिम्मेदारी सफाई कमियों पर डाल रखी गई है, जो न आएं या काम से जी चुराएं तो बच्चों को भारी गंदगी के बीच रहना व पढ़ना पड़ता है.  शिक्षक की तरह साफसफाई में उन की भी कोई दिलचस्पी या रोल नहीं रहता.

जब शिक्षकों को साफसफाई करने में तौहीन लगती हो तो उन को रोल मौडल मानने वाले बच्चों से क्या खा कर उम्मीद रखी जाए कि वे साफसफाई करने को छोटा और शर्म वाला काम नहीं समझेंगे. राजनति से हट कर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान एक अच्छी शुरुआत है. यहां यह बात गौरतलब है कि यह अच्छी मुहिम अनजाने में जातिवाद की शिकार हो चली है.

विदिशा के एक मामूली स्कूली विवाद का इस बात से गहरा नाता है कि साफसफाई के लिए हम तक छोटी जाति वालों के मुहताज हैं. शौक या प्रचार के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाना एक अलग बात है पर संजीदगी से स्वच्छता के प्रति जागरूक होना या करना एक अलग मुद्दा है जिस में सरकार नाकाम साबित हो रही है.

किसी व्हाट्सऐप ग्रुप  पर टीचर्स द्वारा टौयलेट साफ करने की तसवीरें वायरल हों, यह कतई शर्म या बेइज्जती की बात नहीं. एतराज की बात यह है कि यह टीचर छोटी जाति का ही क्यों है, सवर्ण क्यों नहीं. यानी सभी जातियों और वर्ग के शिक्षक अगर अपने स्कूलों के टौयलेट की सफाई की जिम्मेदारी लें तो बच्चों में साफसफाई का जज्बा आते देर नहीं लगेगी.

हिचकिचाहट क्यों

देशभर के सरकारी स्कूलों के शिक्षक आएदिन इस बात पर धरनेप्रदर्शन और हड़तालें कर हल्ला मचाते रहते हैं कि उन से पढ़ाई के अलावा कोई काम न लिया जाए. इस से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है और वे पढ़ाने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते हैं.

बात एक हद तक सही है लेकिन यह स्कूल की साफसफाई पर लागू नहीं होती और न ही होनी चाहिए. स्कूलों की साफसफाई की जिम्मेदारी शिक्षक अगर लें तो सरकारी स्कूल भी प्राइवेट स्कूलों की तरह चमचमाते नजर आएंगे.

जाहिर है इस के लिए यह हिचक, झिझक, शर्म या पूर्वाग्रह उन्हें छोड़ना पड़ेगा कि हम क्या कोई भंगी हैं, मेहतर हैं जो साफसफाई करें, हमारा काम तो पढ़ाना है.

जबकि शिक्षकों का काम महज पढ़ाना ही नहीं, बल्कि बच्चों में अच्छी आदतें डालना भी होता है. साफसफाई इन में अहम है. अगर टीचर तय कर लें कि टौयलेट की सफाई के साथसाथ स्कूलों में झाड़ूबुहारी का काम भी वे करेंगे तो कोई वजह नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान परवान न चढ़े. इस काम में छात्रों को भी, समूह बना कर, वे शामिल करें तो बात सोने पे सुहागा वाली होगी.

साफसफाई में ज्यादा वक्त नहीं लगता है. अगर एक पीरियड अलग से इस के लिए रखा जाए तो बच्चे और शिक्षक दोनों गंदगी से नजात पा सकते हैं और वे सफाई के बाबत किसी के मुहताज भी नहीं रहेंगे. इस के लिए इकलौती जरूरत दृढ़ इच्छाशक्ति और शर्म छोड़ने की है.

जब टीचर्स झाड़ू लगाएंगे या टौयलेट साफ करते नजर आएंगे, तो छात्र खुदबखुद उन का साथ देंगे. पर इस के लिए पहल तो टीचर्स को ही करनी पड़ेगी. बच्चों से पहले उन्हें खुद को समझना होगा कि स्कूल हम सब का है और यह शिक्षा का घर है. उस की साफसफाई हम खुद करें तो छोटे नहीं हो जाएंगे. उलटे, हम में गैरत और स्वावलंबन की भावना आएगी.

जब स्कूलों से बच्चे साफसफाई का सबक खुद यह काम कर के सीखेंगे तो तय है कि आगे चल कर उन्हें इस की अहमियत समझ आएगी और वे भी इस में हिचकेंगे नहीं. साफसफाई का काम एकदूसरे पर थोपने की बीमारी की वजह से ही पूरा देश गंदा और बदबूदार हो गया है. हर स्कूल में राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी की तसवीर टंगी रहती है पर यह कोई याद नहीं रखता कि वे साफसफाई करने में हिचकते नहीं थे और एक वक्त तो वे अपना मैला भी खुद साफ करने लगे थे.

उस दिन किसी स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत नहीं रह जाएगी जिस दिन स्कूलों के टीचर टौयलेट साफ करते अपने फोटो खुद सोशल मीडिया पर फख्र से शेयर करेंगे. यह बिलाशक बड़े पैमाने पर प्रेरणा देने वाला काम होगा और इस के लिए किसी सरकारी हुक्म या हिदायत की नहीं, बल्कि खुद को एक प्रतिज्ञा करने की जरूरत है कि मेरा स्कूल, मैं साफ रखूंगा और जरूरत पड़ी तो टौयलेट भी साफ करूंगा.

सरकार को चाहिए कि वह ऐसी पहल करने वाले शिक्षकों को पुरस्कार व विशेष वेतनवृद्धि दे कर उन्हें प्रोत्साहित व सम्मानित करे. अगर हम अपने घर की तरह ही देश के हर कोने, गली, नाली की साफसफाई के लिए दूसरों पर निर्भर होने के बजाय स्वयं करना शुरू कर देंगे तो यह भावी पीढ़ी को भी प्रेरणा देगा और गंदगी से फैलने वाली बीमारियों से नजात मिलेगी.

आधार कार्ड : अधिकारों पर चोट और जनता की परेशानी

वैसे तो आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला एक पहचानपत्र है पर सरकार ने जिस तरह से आधार कार्ड का प्रयोग हर जगह करना शुरू किया है उस से यह आम नागरिकों के अधिकारों का हनन करता नजर आ रहा है. आधार को ले कर सरकार की यह जबरदस्ती है कि वह बैंक खाते से ले कर राशनकार्ड तक आधार को जोड़ रही है.

सरकार का काम जनता को सहूलियतें देना है. आधार कार्ड के जरिए सरकार जनता के सामने तमाम तरह की मुश्किलें खड़ी करती जा रही है. जनता को यह बताया जा रहा है कि इस से भ्रष्टाचार रुकेगा, जिस से महंगाई कम होगी. आधार कार्ड का सब से अधिक प्रयोग रसोईगैस में किया गया. रसोईगैस के आधार कार्ड से लिंक होने का जनता को क्या लाभ मिला? आधार कार्ड से रसोईगैस के लिंक होने की योजना के बाद अगर रसोईगैस की कालाबाजारी रुक गई होती तो रसोईगैस के दाम कम होने चाहिए थे. रसोईगैस के दामों में किसी भी तरह की कमी नहीं आई है. आज भी गैस सिलैंडर ब्लैक में मिल रहे हैं.

आधार कार्ड पर 12 नंबर की संख्या छपी होती है. जिसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण जारी करता है. यह संख्या भारत में कहीं भी व्यक्ति की पहचान और पते का प्रमाण होती है. भारत का रहने वाला हर नागरिक इस कार्ड को बनवा सकता है. इस में हर व्यक्ति केवल एक बार ही अपना नामांकन करा सकता है. यह कार्ड सरकार द्वारा बिना पैसे लिए बनाया जाता है.

कानूनीरूप से आधार कार्ड एक पहचान मात्र है. यह भारत की नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है. इस के बाद भी जिस तरह से आधार कार्ड को ले कर सरकार जनता पर दबाव बना रही है वह उस की मनमरजी थोपने जैसा है. यह नागरिक अधिकारों के हनन जैसा है.

आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं माना जा रहा है. देश में पहचानपत्र के नाम पर मतदाता पहचानपत्र ही मान्य है. मतदाता पहचानपत्र की जगह पर आधार कार्ड को मान्यता देने का काम खतरनाक है. जनता के पास कई तरह के पहचानपत्र हैं. इन में राशनकार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस, केंद्र सरकार के कर्मचारी का परिचयपत्र प्रमुख हैं. सरकार आधार कार्ड को पहचानपत्र के ऊपर रख रही है. आधार कार्ड को खास बनाने के लिए सरकार ने उस को रसोईगैस, पैन नंबर, मोबाइल नंबर और बैंक खाता नंबर से जोड़ने का काम किया है. बिना आधार कार्ड के आयकर रिटर्न भी दाखिल नहीं हो रहा है. इस के साथ ही, जमीनजायदाद की खरीदफरोख्त में रजिस्ट्री के समय भी आधार कार्ड जरूरी किया जा रहा है.

जायदाद और बैंक से आधार के जुड़ने से जनता की डोर सरकार के हाथों में चली जा रही है. इस से एक जंजीर सी बन रही है. यह जंजीर जनता के लिए ऐसी हथकड़ी बनती जा रही जिसे वह खुद अपने गले में डालने को मजबूर होती जा रही है. आधार को हर तरह से फूलप्रूफ व्यवस्था बताने वाली सरकार मतदाता पहचानपत्र को मजबूत बनाने का काम नहीं कर रही है. असल में वोट देने के सिस्टम में सरकार कोई सुधार नहीं करना चाहती है. सरकार को पता है कि वोटकार्ड में सुधार से फर्जी वोटिंग रुक सकती है, जो नेताओं के हित में नहीं है. सरकार खुद को जवाबदेही से मुक्त रखना चाहती है. आरटीआई से ले कर राजनीतिक दलों को चंदा देने तक को वह जवाबदेही के दायरे में नहीं लाना चाहती है. जनता से हर पारदर्शिता की बात करने वाले नेता खुद पारदर्शी व्यवस्था पर यकीन नहीं करते.

अपराधियों के घेरे में आधार

यह सच है कि आज के समय में आधार कार्ड आसानी से बिना पैसा खर्च किए बन जाता है. हालत यह है कि अब धोखाधड़ी कर के भी आधार कार्ड बनाए जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश की स्पैशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ ने कानपुर में ऐसे गिरोह को पकड़ा जो आधार कार्ड बनाने वाली संस्था यूआईडीएआई के सर्वर में सेंधमारी कर के आधार कार्ड बनाता था. गिरोह के लोगों ने ऐसा सौफ्टवेयर बना लिया था जो इस काम में मदद करता था. इस की मदद से फर्जी आधार कार्ड धड़ल्ले से बन रहे थे.

यूआईडीएआई के डिप्टी डायरैक्टर ने इस बात की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी. पुलिस को जांच में पता चला कि यह काम कानपुर की विश्व बैंक कालोनी में रहने वाले सौरभ सिंह और उस के साथियों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है.

विश्व बैंक कालोनी कानपुर शहर के बर्रा थाना क्षेत्र में आती है. पुलिस ने 9 सितंबर को सौरभ को पकड़ा तो उस ने अपने पूरे गिरोह का खुलासा किया. जिस के आधार पर पुलिस ने 10 और लोगों को पकड़ा. इन में शुभम सिंह, सत्येंद्र, तुलसीराम, कुलदीप, चमन गुप्ता और गुड्डू गोंड शामिल थे. ये लोग कानपुर, फतेहपुर, मैनपुरी, प्रतापगढ़, हरदोई और आजमगढ़ के रहने वाले थे. ये लोग यूआईडीएआई के बायोमैट्रिक मानकों को बाइपास कर के फर्जी आधार कार्ड बनाने का काम करते थे.

एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश ने बताया कि आधार बनाने वाले गिरोह के सदस्य बायोमैट्रिक डिवाइस से अधिकृत औपरेटर से फिंगर प्रिंट ले लेते थे. उस के बाद बटरपेपर पर लेजर से प्रिंटआउट निकालते थे और कृत्रिम फिंगर प्रिंट निकालते थे.

इस कृत्रिम प्रिंट का उपयोग कर के आधार कार्ड की वैबसाइट पर लौगइन कर के इनरोलमैंट की प्रक्रिया की जाती थी. जब हैकर्स द्वारा क्लोन फिंगर प्रिंट बनाए जाने लगे तो यूआईडीएआई ने फिंगर प्रिंट के साथ ही साथ आईआरआईएस यानी रेटिना स्कैनर को भी प्रोसैस का हिस्सा बना दिया. तब गिरोह ने इस का भी क्लाइंट एप्लीकेशन बना लिया. जिस से वे फिंगर प्रिंट और आईआरआईएस दोनों को बाईपास कर ने में सफल हो गए. यह सौफ्टवेयर 5-5 हजार रुपए में बेचा जाने लगा. इस तरह एक औपरेटर की आईडी पर कई मशीनें काम करने लगीं. इस गिरोह के पास पुलिस को 11 लैपटौप, 12 मोबाइल, 18 फर्जी आधार कार्ड, 46 फर्जी फिंगर प्रिंट, 2 फिंगर प्रिंट स्कैनर, 2 रेटिना स्कैनर और साथ में आधार कार्ड बनाने वाले दूसरे सामान भी मिले.

पुलिस को अभी तक यह पता नहीं है कि इस गिरोह ने कितने फर्जी आधार कार्ड बनाए होंगे. आधार कार्ड बनाने वाले फर्जी औपरेटर का पता लगा कर पुलिस ने यूआईडीएआई को जानकारी दे दी है. यूआईडीएआई से मिली जानकारी के अनुसार, पूरे देश में करीब 81 लाख आधार कार्ड निष्क्रिय किए गए हैं.

सरकार जिस आधार कार्ड पर भरोसा कर के देश की हर बीमारी का हल आधार कार्ड में तलाश कर रही है वही आधार कार्ड इतनी बड़ी संख्या में फर्जी निकल रहे हैं. जिस तरह से सरकार ने हर काम में आधार को जोड़ने का काम शुरू किया, उस से बड़ी संख्या में आधार कार्ड का फर्जीवाड़ा होने लगा है. इस की तमाम तरह की खबरें पूरे देश से आ रही हैं. केवल आधार को एकमात्र हल मान कर हर जगह आधार की जरूरत बताई जा रही है, जबकि इस से जनता की गोपनीयता को खतरा पैदा हो रहा है.

गोपनीयता को खतरा

पहले बैंक खाता, पैन कार्ड को आधार से लिंक करने के  बाद अब मोबाइल नंबर को आधार नंबर से लिंक किया जाएगा. सरकार ने फरवरी 2018 तक इस काम को पूरा करने का लक्ष्य रखा है. असल में सरकार जनता को यह बता रही है कि मोबाइल फोन के आधार से लिंक होने से फर्जी मोबाइल नंबर बंद हो जाएंगे, जिस से तमाम तरह के अपराध खत्म हो जाएंगे. आधार कार्ड बैंक खातों और पैन नंबर से लिंक्ड है. साथ में खाताधारकों की व्यक्तिगत जानकारी उस में है. ऐसे में अपराधियों के लिए बैंक के खाते से पैसा निकालने के लिए मोबाइल पर ओटीपी कोड हासिल करना सरल हो जाएगा. जिस से बैंक से पैसा बहुत आराम से निकल जाएगा और खाताधारक को पता ही नहीं चलेगा. यही नहीं, किसी साइबर अपराधी को किसी व्यक्ति का केवल आधार नंबर मिल जाए तो वह उस की पूरी गोपनीय जानकारी हासिल कर सकता है.

जनता को आधार कार्ड के लाभ बताने के लिए सरकार कहती है कि आधार कार्ड जीवनभर की पहचान है, आधार कार्ड को हर सब्सिडी के लिए जरूरी बना दिया गया है. यही नहीं, सरकार द्वारा तमाम तरह के कंपीटिशन के लिए फौर्म भरने से ले कर मार्कशीट तक में इस को जोड़ा जा रहा है. ट्रेन में टिकट में छूट पाने के लिए आधार कार्ड एक सहारा है. अब यह जन्म प्रमाणपत्र से ले कर मृत्यु प्रमाणपत्र तक में जरूरी हो गया है. रिटायर होने वाले कर्मचारियों के लिए पीएफ लेने में यह जरूरी हो गया है.

सरकार ने जिस तरह से आधार कार्ड का महिमामंडन किया है उस से यह उपयोगी कम, सिरदर्द अधिक बन गया है. चूंकि आधार कार्ड भी फर्जी तरह से बनने लगे हैं, इसलिए यह साफ है कि आधार भी उतना सुरक्षित नहीं है जितना सरकार दावा कर रही है. ऐसे में सारी जानकारी एक ही जगह देनी परेशानी का सबब बन सकता है.

कार्तिक व्रत का अंधविश्वास समाज को कहां लेकर जाएगा

वैसे तो हिंदुओं के बहुत से देवता हैं पर इन में ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रमुख हैं. इन्हीं के नाम से धर्म के धंधेबाज अपनी दुकानदारी चलाते हैं. ब्रह्मा की स्थिति घर के उस दाऊ जैसी है जिस के पैर तो सब पड़ते हैं पर महत्त्व कोई नहीं देता है. इस के पुत्रों की लिस्ट बहुत लंबी है. विष्णु प्रमुख देव है. इसी को भगवान, ईश्वर, परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्मा आदि नामों से पुकारा जाता है. इसी ने भारत में राम, कृष्ण व अन्य अवतार ले कर अनेक लीलाएं की हैं.

कार्तिक माह में इसी की पूजा की जाती है. कार्तिक व्रत स्त्रीपुरुष दोनों कर सकते हैं. पर व्यवहार में हम केवल हिंदू नारियों को ही कार्तिक स्नान व व्रत करते देखते हैं. कार्तिक माह का व्रत करने वालों को धन, संपत्ति, सौभाग्य, संतान सुख के साथ अंत में सब पापों से मुक्त हो कर बैकुंठ में राज करने की गारंटी दी गई है.

कार्तिक माह की कथा बहुत लंबी है. इस में कई अध्याय हैं. प्रत्येक अध्याय में काल्पनिक कथाएं जोड़ कर व्रत का महत्त्व अंधविश्वासियों के दिमाग में ठूंसठूंस कर भरा गया है. अंधविश्वास को पुष्ट करने के लिए शाप और वरदान का सहारा लिया गया है. पापपुण्य को ले कर पुनर्जन्म के काल्पनिक किस्से गढ़े गए हैं ताकि पंडेपुजारियों को मुफ्त का माल और चढ़ावा मिलता रहे. चढ़ावे से ही तो पिछले जन्मों के पाप धुलेंगे और अगला जन्म खुशहाल होगा.

कार्तिक व्रत की महिमा ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को सुनाई है. नारद ने सूतजी को और सूतजी से अन्य ऋषिमुनियों ने सुनी है. बाद में इस कथा को धर्म के धंधेबाज पंडेपुजारियों ने लिखी है. जिस में गपें और बेसिरपैर के किस्से भरे हुए हैं. यहां कथा का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत है.

कथा के अनुसार, एक दिन सत्यभाभा  ने कृष्ण (विष्णु) से पूछा, ‘‘हे प्रभु, मैं ने पिछले जन्म में कौन से पुण्य कार्य किए हैं जिन से मैं आप की अर्द्धांगिनी बनी.’’ इस पर कृष्ण ने कहा, ‘‘पूर्व जन्म में तुम देवशर्मा नामक ब्राह्मण की पुत्री और चंद्र शर्मा की पत्नी थीं. तुम्हारा नाम गुणवती था. पिता और पति की अकाल मृत्यु होने से तुम अनाथ हो गईं. विधवा होने पर घर की समस्त संपत्ति ब्राह्मणों को दान दे कर तुम एकादशी और कार्तिक का व्रत करने लगीं. कार्तिक व्रत मुझे बहुत प्रिय है. यही कारण है कि इस जन्म में तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनी हो.’’

दान का महिमामंडन

पुनर्जन्म को ले कर पंडितजी का दिमाग कमाल का है. कृष्ण स्वयं विष्णु (भगवान) के अवतार हैं. जब भगवान कहेगा तो मानना ही पड़ेगा. इसीलिए कुंआरी कन्याएं इस जन्म में और विवाहिताएं अगले जन्म में कृष्ण जैसा वर पाने की लालसा से कार्तिक व्रत का टोटका करती हैं. पर यह टोटका तब सफल होता है जब गुणवती की तरह पंडेपुजारियों को दान दिया जावे.

कार्तिक व्रत अश्विनी माह की पूर्णिमा से शुरू किया जाता है. प्रात:काल स्नान कर व्रत रखने का संकल्प किया जाता है. कथा के अनुसार, संध्या के समय ब्रह्मा की सोने/चांदी अथवा मिट्टी की मूर्ति बना कर उस का पूजन किया जाए. पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाए तथा आभूषण, अन्न, वस्त्र, गाय आदि दानदक्षिणा दे कर उन को ससम्मान विदा किया जाए. चूंकि ब्राह्मण के दाहिने पैर में सब तीर्थ, मुंह में वेद व अंगों में देवताओं का निवास होता है इसलिए व्रती पूरे कार्तिक माह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और बाद में स्वयं करें.

यह है कथा का केंद्रीय भाव. कार्तिक व्रत के बहाने एक माह तक ब्राह्मणों को भोजन और दानदक्षिणा मिलने का इंतजाम हो गया. लेकिन जब ब्राह्मणों के अंगों में ही सब तीर्थ व देवता निवास करते हैं तो वे लोग मूर्ख हैं जो देवताओं की पूजा करते हैं. उन्हें तो केवल ब्राह्मणों की ही पूजा करते रहना चाहिए.

जब किसी गप को बारबार और विविध प्रकार से कहा जाए तो अंधविश्वासी उसे सही मान लेते हैं. कार्तिक व्रत करने से अगले जन्म में बैकुंठ प्राप्ति के लिए कथा में कई बेसिरपैर के किस्से गढ़े गए हैं. यहां कुछ किस्सों का संक्षेप में उल्लेख करना ही संभव है.

कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में करतीपुर नामक नगरी में धर्मदत्त नामक ब्राह्मण रहता था. वह विष्णु की भक्ति के साथ कार्तिक व्रत करता था. एक बार उसे कलहा नामक एक कुरूप राक्षसी मिली. धर्मदत्त को उस पर दया आ गई. इसलिए उस ने कलहा पर तुलसीदल का पानी छिड़क दिया और अपना आधा पुण्य उसे दे दिया. तुलसीदल के छींटे और आधा पुण्य देने से वह सुंदर स्त्री बन गई और उसे पूर्व जन्मों की याद आ गई. पूर्वजन्म में उस ने बहुत पाप किए थे, इसलिए वह सूअरी, बिल्ली, प्रेतनी बनने के बाद राक्षसी बनी. तब उस ने (सुंदर स्त्री ने) पूर्वजन्मों के पाप नष्ट होने की विधि धर्मदत्त से पूछी. धर्मदत्त ने उस से एकादशी और कार्तिक व्रत करने को कहा. उस ने वैसा ही किया. अगले जन्म में धर्मदत्त राजा दशरथ बने और कलहा उन की पत्नी बनी. भक्ति के वशीभूत विष्णु ने राम के रूप में दशरथ के घर में जन्म लिया.

पंडितों का गोरखधंधा तो भगवान भी नहीं समझ सकता है. कहीं वृंदा के शाप से विष्णु ने रामावतार लिया और कहीं नारद के शाप से. यहां कार्तिक व्रत के कारण धर्मदत्त अगले जन्म में दशरथ बनते हैं और विष्णु राम के रूप में उन के पुत्र. सही क्या है, इसे पंडित और व्रती जानें. तुलसीदल छिड़कने और आधा पुण्य देने से सुंदर स्त्री बनना कोरा चमत्कार है. अगर पंडित पुण्य ट्रांसफर होने की विधि भी लिख देते तो आज के भक्तों को अवश्य लाभ होता. आजकल के शंकराचार्य, महंत, कथावाचक व पंडेपुजारी भी ‘पुण्यात्मा’ माने जाते हैं. परंतु किसी ने भी अपने पुण्य का अंश किसी पापी को ट्रांसफर नहीं किया. अगर कर दे, तो कथा की असलियत का पता चल जाए.

एक कथा कहती है कि पुराने समय में उज्जैन में चमड़े का व्यापार करने वाला धनेश्वर नामक एक व्यभिचारी ब्राह्मण रहता था. वह चोर, शराबी व वेश्यागामी था. उस ने कभी भी शुभकर्म नहीं किए. वह पापकर्म करता हुआ सदैव इधरउधर आवारा घूमता रहता था. घूमतेघूमते एक दिन वह कार्तिक माह में नर्मदा नदी के तट पर बसी महिष्मती नगरी में पहुंचा. वहां कार्तिक व्रत करने वाले यात्री भी ठहरे हुए थे. वे स्नान करने के बाद नित्य विष्णु भगवान की कथाएं कहते व कीर्तन करते थे. धनेश्वर भी कुछ दिनों के लिए वहीं ठहर गया और उन के बीच में रह कर उस ने भी कीर्तन व कथाएं सुनीं.

जब वह  मरा तो यम के दूत उसे पाश में जकड़ कर यमपुर ले गए. चूंकि उस ने जीवनभर पाप कमाया था, इसलिए यमपुर के मुख्य न्यायाधीश चित्रगुप्त उसे घोर नरक में डालने का आदेश देते हैं. इतने में वहां नारद आ जाते हैं. वे चित्रगुप्त से कहते हैं कि यह नरक में डालने योग्य नहीं है क्योंकि इस ने कुछ दिन कार्तिकव्रतियों की संगत की है तथा विष्णु भगवान की कथा सुनी है. फिर क्या था, यमराज ने उसे यक्षलोक का राजा बना दिया जो बाद में यक्षपति कहलाया.

पापमुक्ति का नुसखा

 क्या जोरदार कथा है? कुछ दिन कार्तिकव्रतियों की संगत करने और विष्णु भगवान का कीर्तन सुनने से जब जीवनभर के पाप हवा हो जाते हैं तब बुरे कर्मों से क्या डर? पापों को नष्ट करने का इस से सस्ता नुसखा क्या हो सकता है.

तभी तो हिंदू कुकर्म करने से संकोच नहीं करते हैं. यहां कई प्रश्न भी उठते हैं. क्या यमदूतों को पता नहीं था कि धनेश्वर ने विष्णु भगवान का कीर्तन सुना है और कार्तिकव्रतियों की संगत की है? यदि था, तो वे उसे यमपुर क्यों ले गए? क्या यमपुर के न्यायाधीश चित्रगुप्त आंख मूंद कर न्याय करते हैं? यदि नहीं, तो उन्होंने नारद के कहने से अपना पूर्व का फैसला क्यों बदला?

कार्तिक व्रत में तुलसी (पौधा विशेष) और शालिगराम की भी पूजा कीजाती है. इन दोनों का संबंध जलंधर नामक दैत्य से है. कथा के अनुसार, इन तीनों (तुलसी, शालिगराम व जलंधर) की उत्पत्ति अविश्वसनीय, अवैज्ञानिक व अप्राकृतिक है.

कथा कहती है कि एक बार इंद्र और देवताओं के गुरु बृहस्पति कैलास पर्वत पर भगवान शंकर से मिलने जाते हैं. भगवान शंकर इन दोनों भक्तों की परीक्षा लेने के लिए जटाधारी दिगंबर का रूप धारण कर एक स्थान पर बैठ जाते हैं. इंद्र और बृहस्पति की दिगंबर से भेंट होती है. इंद्र ने दिगंबर का नाम व परिचय जानना चाहा और पूछा कि शंकर भगवान कहां हैं. दिगंबर ने कुछ जवाब नहीं दिया. इंद्र ने उस से बारबार यह प्रश्न किया पर दिगंबर चुपचाप बैठा रहा.

इस पर क्रोधित हो कर इंद्र उस पर वज्र का प्रहार करने के लिए तत्पर हो जाते हैं. इंद्र ने ज्यों ही वज्र  मारने के लिए अपना हाथ उठाया त्यों ही दिगंबर ने उस का हाथ पकड़ लिया और नेत्रों में से ज्वाला (तेज) निकलने लगी. देवगुरु बृहस्पति ने शंकर भगवान को पहचान लिया और इंद्र को क्षमा कर देने की प्रार्थना की. इस पर शंकर भगवान ने कहा कि मैं अपने तेज का क्या करूं? बृहस्पति के कहने पर शंकरजी अपना तेज क्षीर सागर में डाल देते हैं.

अविश्वासी कथाएं

यहां प्रश्न उठते हैं कि भगवान शंकर तो अंतर्यामी हैं. क्या उन्हें पता नहीं था कि इंद्र और बृहस्पति उन के भक्त हैं? इंद्र देवताओं के राजा हैं. देवता भी अंतर्यामी और करामाती होते हैं. फिर वे यह क्यों नहीं जान सके कि दिगंबर के रूप में शंकर भगवान ही हैं? आंखों से निकला तेज (ज्वाला) कोई वस्तु तो नहीं होती जिस को पकड़ कर कहीं भी डाला जा सकता है? उस तेज का क्या करना है, यह शंकर भगवान क्यों नहीं जान सके. कुल मिला कर कथा कोरी गप है. समझ में नहीं आता कि इन ऊलजलूल गपों पर लोग वर्षों से कैसे विश्वास करते आ रहे हैं?

शंकर भगवान ने जैसे ही अपना तेज क्षीर सागर में डाला, वैसे ही सागर में से निकल कर एक बालक भयंकर आवाज में रुदन करने लगता है. कथा के अनुसार, उस के रुदन से पृथ्वी कांप उठी और समस्त देवता भयभीत हो गए. डर के कारण सब देवता ब्रह्मा के पास जा कर उन से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं. ब्रह्मा सागर तट पर प्रकट हो कर सागर से पूछते हैं कि यह बालक कौन है. उत्तर में सागर उस बालक को ब्रह्माजी को सौंपते हुए कहता है कि मैं कुछ नहीं जानता हूं. आप ही इस का संस्कार कीजिए.

सागर का इतना कहना था कि बालक ने ब्रह्माजी का गला इतनी जोर से दबाया कि उन की आंखों में से जल निकलने लगा. इस पर ब्रह्मा ने सागर से कहा कि मेरे नेत्रों से जल निकलने के कारण इस का नाम जलंधर होगा. यह विष्णु भगवान को जीतने वाला दैत्यों का प्रतापी राजा बनेगा. इस की पत्नी बड़ी पतिव्रता होगी, जिस के बल से, शंकर को छोड़ कर, इसे कोई नहीं मार सकता है. समय बीतने पर जलंधर की शादी कालनेमी दैत्य की पुत्री वृंदा से हो जाती है.

हमारे वैज्ञानिक ने चांद पर पहुंच कर पानी की खोज तो कर ली, परंतु क्षीर सागर की खोज अभी तक नहीं कर सके. अगर कर लें तो बच्चों को दूध का डब्बाबंद पाउडर विदेशों से नहीं मंगाना पड़ेगा. क्षीर सागर में शिवजी का तेज डालना, उस में से बालक निकलना, उस के रुदन से पृथ्वी का कांपना कोरे चमत्कार हैं. हमारे देवता भी कितने पिलपिले हैं जो बालक के रुदन से ही भयभीत हो जाते हैं.

कथा आगे कहती है कि एक बार समुद्र मंथन के अमृत को ले कर जलंधर के नेतृत्व में दैत्यों और देवों में युद्घ होता है, जो देवासुर संग्राम के नाम से प्रसिद्घ है. युद्घ में देवता हार जाते हैं. वे अपनी रक्षा के लिए विष्णु भगवान से गुहार करते हैं. देवताओं की गुहार पर विष्णु जब जलंधर से लड़ने जाते हैं तब लक्ष्मी कहती है कि मैं और जलंधर समुद्र से पैदा हुए हैं, इसलिए हम दोनों भाईबहन हैं. आप जलंधर को मारेंगे तो मैं सदैव दुखी रहूंगी. विष्णु जानते थे कि ब्रह्मा के वरदान से मैं जलंधर को नहीं मार सकता हूं, इसलिए वे लक्ष्मी से कहते हैं कि मैं लड़ने तो जा रहा हूं पर उसे मारूंगा नहीं.

गरुड़ पर सवार हो कर विष्णु भगवान दैत्यराज जलंधर से लड़ने पहुंचते हैं. कई दिनों तक भयंकर युद्घ होता है. युद्घ में दोनों ने नाना प्रकार के दांवपेंच खेले. पर अंत में जलंधर से विष्णु हार जाते हैं. शर्त के अनुसार, विष्णु परिवार सहित जलंधर की नगरी में ही उस के मेहमान बन कर रहते हैं.

विष्णु को हरा कर जलंधर निर्भय हो कर राज्य करने लगा. उस के वैभव को देख कर देवताओं को जलन हुई. देवताओं में देव ऋषि नारद सब से चालाक है. उस का काम केवल लड़ाना है. वह देवताओं का पक्षपाती और दैत्यों का शत्रु है. एक बार वह घूमताघूमता जलंधर के पास जाता है और उस से कहता है कि आप के पास सब वैभव हैं परंतु पार्वती जैसा स्त्रीरत्न नहीं है. अगर पार्वती जैसा रत्न मिल जाए तो आप के वैभव में चारचांद लग जाएं.

अतार्किक प्रसंग

नारद का यह कथन सुन कर जलंधर कैलास पर्वत पर पार्वती को लेने पहुंच जाता है. वहां उस का शंकर के गणों से युद्घ होता है. शंकर के गण हार जाते हैं. फिर शंकर स्वयं उस से युद्घ करते हैं. पर जलंधर अपनी माया से अप्सराओं को पैदा कर देता है. अप्सराओं को देख कर शिवजी उन पर मोहित हो जाते हैं और कुछ समय के लिए युद्घ बंद कर देते हैं. इस बीच, शिव का रूप धारण कर जलंधर पार्वती के पास पहुंच कर बलात्कार करने का प्रयास करता है. पार्वती उस का कपट पहचान कर अंतर्ध्यान हो जाती है. तब जलंधर निराश हो कर वापस लौट आता है.

इधर, शिवजी फिर जलंधर से युद्घ करने जाते हैं. दोनों ओर से भयानक युद्घ होता है. परंतु जलंधर नहीं मारा जाता है. पार्वती जानती थी कि जब तक जलंधर की पत्नी वृंदा का सतीत्व नष्ट नहीं होता तब तक शिवजी उसे नहीं मार सकते. इसलिए, वह विष्णु से वृंदा का सतीत्व भंग करने को कहती है. विष्णु भगवान जलंधर का रूप धारण कर उस का सतीत्व नष्ट कर देते हैं. वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही शिवजी सुदर्शन से जलंधर के सिर को धड़ से अलग कर देते हैं.

वृंदा को जब ज्ञात होता है कि विष्णु के कपट से उस का पतिव्रतधर्म नष्ट किया है तब वह धिक्कारते हुए विष्णु को पत्थर होने का शाप दे कर स्वयं अग्नि में प्रवेश कर जाती है. कथा के अनुसार, वृंदा के शाप के वशीभूत हो कर विष्णु शालिगराम (पत्थर) बन जाते हैं और वृंदा की चिता की भस्म तुलसी (पौधा विशेष) बन जाती है. पंडेपुजारी अपने भगवान (विष्णु) को बलात्कारी होने के कलंक से बचाने के लिए ही शालिगराम और तुलसी के विवाह का ढोंग प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी को रचते हैं.

कथा के अनुसार, क्या हम देवताओं का आचरण नैतिक व अनुकरणीय कह सकते हैं? चूंकि जलंधर शिवजी के तेज से पैदा हुआ है, इसलिए दोनों का संबंध पितापुत्र का हुआ. इस दृष्टि से शिवजी ने अपने पुत्र की ही हत्या की है. जलंधर की पत्नी वृंदा भी रिश्ते में पार्वती की पुत्रवधू हुई. फिर पुत्रवधू के साथ बलात्कार करना कौन सी नैतिकता हुई? पार्वती और जलंधर का रिश्ता भी मांबेटे का हुआ. नारद, जो स्वयं देवता कहलाता है, मां को ही पत्नी बनाने के लिए पुत्र को उकसाता है. अगर वह पार्वती जैसा ‘रत्न’ लाने को जलंधर से न कहता तो वह पार्वती के पास क्यों जाता? फिर पितापुत्र का युद्घ क्यों होता और क्यों जलंधर मारा जाता? सब से अधिक तरस तो विष्णु पर आता है. वह हिंदुओं का ईश्वर है. क्या वह जलंधर की पत्नी का सतीत्व नष्ट करे बिना उसे नहीं मार सकता था? जलंधर दुष्ट था, तो ब्रह्मा ने उसे वरदान क्यों दिया? हिंदुओं के साधुसंत व मठाधीश बलात्कार करते सुने जाते हैं. ऐसे में अन्य लोग यदि बलात्कार करें तो उन्हें अपराधी कहना कहां तक उचित है? वे तो अपने भगवान का ही अनुकरण कर रहे हैं.

कथा में नदियों और वृक्षों की उत्पत्ति पढ़ कर हंसी आती है. प्राचीनकाल में एक समय ब्रह्माजी सह्य पर्वत पर यज्ञ कर रहे थे. उस में सब देवगण उपस्थित हुए. स्वयं विष्णु भगवान और शिवजी ने यज्ञ की समस्त सामग्री एकत्रित की. महर्षि भृगु व अन्य ऋषि यज्ञ संपन्न कराने आए. यज्ञ की तैयारी होने के बाद देवों ने ब्रह्मा की पत्नी स्वरा को बुलावा भेजा. स्वरा देर तक नहीं आई. तब देवताओं ने ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री को ही उन के दायीं ओर बैठा दिया. इतने में स्वरा भी वहां आ जाती है.

गायत्री को ब्रह्मा के पास बैठी देख कर ईर्ष्या से स्वरा जल उठी. वह गायत्री को अदृश्य बहने वाली नदी और सभी देवताओं को अन्य नदियां होने का शाप दे देती है. इस पर गायत्री स्वरा से कहती है कि ब्रह्मा, जैसे तुम्हारे पति हैं वैसे ही मेरे भी पति हैं, इसलिए तुम भी नदी होगी.

कथा कहती है कि स्वरा और गायत्री दोनों सरस्वती नदी के नाम से बहने लगीं. स्वरा के शाप से विष्णु के अंश से कृष्णा नदी, शिव के अंश से वेणी व ब्रह्मा के अंश से काकू नदी उत्पन्न हो गईं. फिर अन्य देवताओं के अंश अलगअलग नदियों के रूप में बहने लगे.

आम अंधविश्वासी यदि शांति, कल्याण या वर्षा के लिए यज्ञ करे तो बात समझ में आती है. ब्रह्मा तो देवताओं की कैबिनेट में प्रथम स्थान रखते हैं. वही इस विश्व के स्वामिता और भाग्यविधाता हैं. फिर वे यज्ञ किसलिए कर रहे थे? विष्णु और शिव क्रमश: इस जगत के पालक और रक्षक हैं. वे भी यज्ञ के लिए बेगार क्यों कर रहे थे? ऐसा कौन सा कार्य है जिसे ये तीनों देवता नहीं कर सकते हैं?

कथा के अनुसार, स्वरा के शाप ने तो भूगोल ही बदल डाला. भूगोल कहता है कि पहाड़ों या झरनों से नदियां निकली हैं और जिन्हें लोगों ने प्रत्यक्ष देखा भी है. देवता तो अमर हैं. यदि देवताओं के अंशों से नदियां निकली हैं तो वे गरमी में सूख क्यों जाती हैं? क्या गरमी में देवताओं का अस्तित्व समाप्त हो जाता है?

कथा के अनुसार, वृक्षों की उत्पत्ति भी हास्यास्पद और ऊलजलूल है. कथा कहती है कि एक समय भगवान शंकर और पार्वती एकांत में रतिक्रीड़ा में मग्न थे. उसी समय ब्राह्मण का रूप धारण कर वहां अग्नि देव आ जाते हैं, जिस से रतिक्रीड़ा का मजा किरकिरा हो जाता है. इस पर नाराज हो कर पार्वती शाप देते हुए कहती है, ‘‘हे देवताओ, विषय सुख को तो कीटपतंगे भी जानते हैं. आप लोगों ने देवता हो कर उस में विघ्न डाला है. इसलिए आप सब देवता वृक्ष हो जाओ.’’

पार्वती के शाप से शंकर वट वृक्ष, विष्णु भगवान पीपल वृक्ष बन गए व अन्य देवों से विभिन्न वृक्षों की उत्पत्ति हुई.

मूर्खता की हद

यहां शाप ने बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया. रतिक्रीड़ा में विघ्न तो केवल अग्निदेव ने डाला था, फिर अन्य देवताओं को शाप क्यों दिया? भगवान शंकर तो पार्वती के साथ ही रतिक्रीड़ा में मग्न थे. वे वट वृक्ष क्यों बने.

इस के पूर्व ब्रह्मा की पत्नी स्वरा सब देवताओं को नदी होने का शाप दे चुकी है. सही क्या है, यह कथा लेखक और कथावाचक पंडेपुजारी या व्रती जानें. इतना अवश्य है कि कथा सुनने वाली व्रती स्त्रियां अवश्य बेवकूफ बन रही हैं.

व्रत का पुण्य तभी मिलेगा जब उस का विधिविधान से उद्यापन किया जाए. उद्यापन के लिए व्रती कार्तिक पूर्णमा को अर्द्घरात्रि के पश्चात स्नान कर किसी जलाशय में 11, 21 या इस से अधिक दीपदान करे. फिर सोने का शालिगराम और चांदी की तुलसी बनवा कर दोनों का विवाह किसी पंडित से संपन्न कराए. तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार होने के बाद 31 ब्राह्मणों को सपत्नीक भोजन कराया जाए. भोजन कराने के बाद पंडित को गो, शय्या, आभूषण, वस्त्र, अन्न दान के साथ दक्षिणा दे कर विदा किया जाए. तत्पश्चात, प्रसाद वितरण के बाद स्वयं भोजन करे.

यह है विधिविधान और व्रत का रहस्य. कार्तिक व्रतियों को स्वर्ग मिले या न मिले, पर पंडितों का भला अवश्य हो गया. यहां यह कथन कितना सटीक बैठता है कि जब तक मूर्ख हैं तब तक चतुर लोगों की नित्य दीवाली है.

सौभाग्य, संतान, धन व स्वर्ग के झूठे झांसे में आ कर शिक्षित औरतें तक लुट रही हैं. अगर ये कथाएं सही होतीं तो हिंदुओं में एक भी गरीब और संतानहीन होता. स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए ही अधिक व्रत करती हैं, परंतु आप को समाज में विधुर कम और विधवाएं अधिक मिलेंगी. स्त्रियां सोचें कि क्या इन व्रतों का यही पुण्य लाभ है?

इस तरह के लोगों के लिए जरूरी है जैसे को तैसा

मीता आज बेहद परेशान थी. इस की वजह थी उस की ननद. मीता की ननद जबतब घर आ जाती, तरहतरह की फरमाइशें करती, कभी कपड़े उठा ले जाती. मीता के अपने भी बच्चे हैं. वह कब तक सब की फरमाइशें पूरी करती रहती. एक दिन मीता ने यह बात अपनी मां को बताई.

मां ने मीता से कहा कि तू आज और अभी से अपनी ननद को इग्नोर करना शुरू कर दे. मीता ने यही किया. इस का असर यह हुआ कि कुछ दिनों बाद ही उस की ननद ने आनाजाना कम कर दिया. साथ ही, मीता के कपड़ों में हाथ मारना भी बंद कर दिया. बात छोटी सी है लेकिन बड़े काम की है. अकसर हम कई लोगों से परेशान होते हैं. इस की असल वजह हम ही होते हैं. अगर हम इग्नोर करना शुरू कर दें तो काफी समस्याओं का हल निकल आएगा.

एक कहावत है कि जो आप के साथ जैसा करे आप उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. कई बार यह जरूरी भी हो जाता है. सामने वाला जिस तरह का व्यवहार करे, यह भी जरूरी नहीं कि आप उस की तरह  ही नीचे गिर जाएं. कई बार हमें न चाहते हुए भी कुछ लोगों को इग्नोर करना पड़ता है. इन में से कुछ रिश्ते अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे. कुछ खट्टे होते हैं तो कुछ मीठे.

जरूरी है नजरअंदाज करना

कुछ लोग बिना बात के ही सिर पर बैठ जाते हैं. बातबात पर या तो रोकटोक करेंगे या कुछ न कुछ ऐसा करेंगे जिस से हमें कोफ्त होती है. अगर आप की जिंदगी में भी ऐसा कोई है जिस से आप बेहद परेशान हैं तो उसे आज से ही इग्नोर करना शुरू कर दें. अगर आप नजरअंदाज कर देंगे तो सामने वाला भी धीरेधीरे समझ जाएगा. नतीजा यह होगा कि वह आप से कन्नी काटना शुरू कर देगा जिस से आप को नजात मिल जाएगी.

जिंदगी में हम रोज कई लोगों से मिलते हैं. कुछ लोग हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं तो कुछ नहीं बन पाते. लेकिन कई बार हिस्सा बन चुके ये लोग ही हमारी जिंदगी को नासूर बना देते हैं. अगर आप ऐसी ही किसी परेशानी से दोचार हो रहे हैं तो आप यह काम कर सकते हैं. अगर आप को बारबार फोन कर के सामने वाला परेशान कर रहा है तो आप फोन न उठाएं. लेकिन बात हद से ज्यादा हो जाए तो आप पुलिस का सहारा भी ले सकते हैं.

अगर बात इग्नोर करने से बन जाती है तो इस से अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती. अगर आप सामने वाले को फोन या फिर किसी तरह का कोई जवाब नहीं देंगे तो वह जल्दी ही समझ जाएगा और अगर वह शर्मदार हुआ तो आप से खुदबखुद किनारा कर लेगा.

आप को लग रहा है कि सामने वाला हद से ज्यादा नीचे गिर रहा है. बातबात पर आप को नीचा दिखा रहा है. बेमतलब आप को खरीखोटी सुना रहा है. तो, आप उस की तरह व्यवहार बिलकुल न करें. जरूरी नहीं है कि जैसा वह करे वैसा ही आप भी करें. आप में और उस में कुछ न कुछ फर्क तो रहना ही चाहिए. सामने वाला आप से गलत शब्दों में बात कर रहा है तो आप कतई वैसा न करें. उस को इग्नोर करना ही बेहतर होगा. कहते हैं फालतू की बातों और फालतू के लोगों पर ध्यान न देना  खुद के लिए अच्छा होता है.

इग्नोर करने से बात नहीं बन रही है तो आप सामने वाले को सख्ती से समझा दें. आप को कोई बात चुभ गई है या कोई हरकत पसंद नहीं है तो आप सख्ती से भी बता सकती हैं. आप के सख्ती दिखाने की देर है, वह शख्स अगली बार से आप के सामने फटकेगा ही नहीं.

यह सख्ती सिर्फ किसी शख्स पर ही लागू नहीं होती. कई बार हमारे आसपास के रिश्ते भी हमें परेशान कर देते हैं. कई बार घर के ही किसी व्यक्ति से हम परेशान हो जाते हैं. औफिस में साथ में काम करने वाले लोग कई बार हमारी परेशानी को बढ़ा देते हैं. रिश्तेदार बिना मतलब खून पीना शुरू कर देते हैं. समाज में असमाजिक तत्त्व जान लेने को उतारू रहते हैं. ऐसे में व्यवहार में इग्नोर करने की प्रवृत्ति के साथसाथ सख्ती जरूरी हो जाती है.

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