गुजरात विधानसभा के चुनाव 9 व 14 दिसंबर को कराने की घोषणा कर के चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त अचल कुमार ज्योति ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन से पहले के चुनाव आयोग को वापस ला दिया है. चुनाव आयोग गुजरात के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने से पहले एकदम स्वतंत्र रहा था और उस की छवि ऐसी ही थी.

हिमाचल विधानसभा के चुनाव की घोषणा चुनाव आयुक्त ने गुजरात के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने से 13 दिनों पहले 12 अक्तूबर को कर दी थी और वहां चुनाव 9 नवंबर को होंगे पर 1 महीना 9 दिनों बाद परिणाम घोषित होंगे. क्या छोटे से राज्य हिमाचल में विधानसभा चुनाव को कराने में चुनाव आयोग इतना थक जाएगा कि उसे पूरे 30 दिनों का समय चाहिए होगा कि वह लावलश्कर ले कर गुजरात पहुंच सके?

ये वही चुनाव आयुक्त हैं जिन्होंने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा व विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने के विचार पर कहा था कि चुनाव आयोग दोनों चुनाव पूरे देश में एकसाथ कराने में सक्षम है.

साफ है कि चुनाव आयोग अब स्वतंत्र महसूस नहीं कर रहा. उसे लगता है कि अन्य संस्थाओं, जैसे रिजर्व बैंक औफ इंडिया, कौंप्ट्रोलर औफ अकाउंटैंट जनरल यानी सीएजी आदि की तरह सरकारी सुविधाएं चाहिए तो सरकार की हां में हां मिलाते रहो.

अब यह गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के दौरान पता चलेगा कि  यह आशंका सही है या नहीं कि चुनाव आयोग उतना स्वतंत्र रहा है या नहीं, जितना पहले था. मनमोहन सिंह सरकार के दौरान, उन को ढुलमुल कहिए, उदार कहिए या परंपराओं को निभाने वाला कहिए, देश की स्वतंत्र संस्थाओं को स्वतंत्रता से काम करने की आदत हो गई थी. लेकिन आज चाहे उपरोक्त संस्थाएं हों या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अथवा भारतीय प्रैस परिषद, अल्पसंख्यक आयोग हों, सभी सरकारी हां में हां मिलाना अनिवार्य मान रही हैं.

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