Download App

‘पद्मावती’ विवाद : राजपूती शान के नाम पर हल्ला मचाना निरर्थक

‘पद्मावती’ को लेकर खड़ा किया विवाद अब थम जाएगा, क्योंकि एक तो ‘पद्मावती’ को रिलीज करने की तारीख बदल दी गई है और दूसरे भारतीय जनता पार्टी गुजरात चुनावों में व्यस्त हो गई है. ‘पद्मावती’ को भाजपाई भगवाई कट्टरों ने गुजरात में कट्टरपंथियों को एक करने के लिए उकसाया था, जैसे 1991 में राममंदिर के नाम पर देश भर को उकसाया गया था. पहले जहां मुसलमान निशाने पर होते थे, इस बार भंसाली, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह निशाने पर हैं.

राजपूती शान का नाम ले कर जो हल्ला मचाया गया वह निरर्थक व निरुद्देश्य था. फिल्म, चाहे कोई भी, कैसा भी विषय हो, इस पर विवाद खड़ा करना निरर्थक ही होता है. फिल्म बनाने पर कोई आपत्ति खड़ी करने का हक किसी को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि बनने के बाद अगर फिल्म से सहमत न हों तो उसे न देखने का हक हर किसी के पास है. फिल्मों के निर्माण पर इतना पैसा और इतनी मेहनत लगती है कि उस के न चलने का जोखिम हर कोई नहीं लेना चाहेगा.

फिल्मों को निशाना बनाना असल में नई सोच वालों को अंकुश में रखना होता है. सरकार और धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते कि फिल्मों या किताबों के जरिए कोई सच सामने आए या किसी सच की पोल खोली जाए. वे उसे देखने का हक ही छीनने की कोशिश करते हैं. फिल्म केवल निर्माता निर्देशक का अपनी बात कहने का जरिया होती है. इस पर अंकुश लगाना वैसा ही है जैसा किसी हिंदू युवा का किसी मुसलिम युवती से विवाह करने की पेशकश करना.

नए पन से घबराने की कोशिश हर पुरानी सोच वाला करता है क्योंकि इसी में उस की शक्ति होती है. प्रौढ़ और वृद्घ कुछ भी कहीं भी नया नहीं चाहते क्योंकि उन्हें लगता है इस से उन का एकछत्र राज हिल न जाए. राजपूती गौरव की हांकने वालों को यह लग रहा था कि ‘पद्मावती’ में कुछ ऐसे राज न खुल जाएं जो राजपूती शौर्य और वीरता की पोल खोलते हैं. इतिहास को खंगाले तो यह बात साफ हो जाती है कि राजपूती आनबान शान के कसीदे फालतू में गाए गए हैं वरना वे आम लोगों की तरह, आम भारतीयों की तरह के लोग ही हैं जिन के समाज, रीति-रिवाजों, सोच, साहित्य, परंपराओं में गलत ज्यादा है, सही कम पर उन्होंने हल्ला कुछ ज्यादा मचा रखा है.

राजपूत राजसी इज्जत पाने के लिए अपने बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहते और किसी भी आवाज को, चाहे वह उन का समर्थन क्यों न करती हो, से घबराते हैं.  ‘पद्मावती’ की कहानी में कितना ही हल्ला मचा हो, यह तो स्पष्ट ही है कि राजपूत आक्रमणकारी मुसलिम राजा से हारे थे. यह बात परदे पर आएगी, ज्यादा लोग जानेंगे तो इस समय जब हर जाति अपने अहंकार को श्रेष्ठता की चाशनी में डुबा रही है पर कुछ असलियत दिख ही जाएगी.

राजपूती युवाओं को इस फिल्म का स्वागत करना चाहिए था और यदि यह वास्तव में राजपूती शान का व्यर्थ का बखान करती है तो आलोचना भी करनी चाहिए. उन्हें अपना भविष्य बनाना है, भूत को छाती से चिपका कर अपनी श्रेष्ठता दिखाने से कुछ न मिलेगा. आज का युग आगे चलने का है जब देश, धर्म, जाति, रंग, लिंग के भेद समाप्त होने चाहिए. ऐसे समय करणी सेना के नाम पर उत्पात मचाने वाले पूरे राजपूतों को कौर्नर में सिमट जाने को मजबूर कर रहे हैं.

अभी नहीं तो कभी नहीं : जब बौलीवुड अदाकाराओं ने दिखाया अपना सामर्थ्य

पद्मावती विवाद दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. करणी सेना के महिपाल मकराना के बयान के बाद इस विवाद ने और तूल पकड़ ली है. इस बयान में मकराना ने कहा था कि ‘राजपूत कभी महिलाओं पर हाथ नहीं उठाते, लेकिन जरूरत पड़ी तो हम दीपिका पादुकोण का वही हाल करेंगे, जो लक्ष्मण ने सूर्पणखा का किया था.’ जिसके बाद लोगों ने पहले दीपिका की नाक काटने के लिए 5 करोड़ और बाद में उनका सिर काटने के लिए 1 करोड़ का इनाम देने की घोषणा कर दी.

अदाकाराओं को नागवार गुजरी ये बात

लेकिन ये बात फ़िल्मी जगत की अदाकाराओं को नागवार गुजरी है. आखिरकार उनके सब्र का बांध टूट ही गया और उन्होंने अपने सामर्थ्य का परिचय दे दिया है. हाल ही में खबर मिली है कि  फिल्म जगत की सभी अदाकाराएं एक पिटीशन साइन कर रही हैं, जो वे जल्द से जल्द भारत के प्रधानमंत्री को भिजवाना चाहती हैं.

ये लिखा है पिटीशन में

ये पिटीशन शबाना आज़मी ने बनाया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘फिल्म इंडस्ट्री के कलाकार इंसान ही हैं, न कि कोई पपेट, जिन्हे अपने पौलिटिकल फायदे के अनुसार कुछ भी बोल दिया जाए. अब राजनेता अपने फायदे के अनुसार दीपिका की नाक और उनका सिर काटने की खुलेआम धमकियां दे रहे हैं. इसलिए सजा की हकदार सिर्फ करणी सेना ही नहीं, ये राजनेता भी हैं. राज्य सरकार इस तरह के लोगों को गिरफ्तार करना तो दूर, बल्कि इन्हे संभाल नहीं पा रही है. ऐसे में बौलीवुड की अदाकाराओं की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कौन लेगा.’

पिटीशन साइन करने एकजुट हुईं अदाकाराएं

उन्होंने ये भी कहा कि दीपिका को हानि पहुंचाने के लिए 3 और 5 करोड़ देनेवाले ये लोग किसी मुजरिम से कम नहीं हैं. खबर मिली है कि ये पिटीशन साइन करने के लिए बौलीवुड की सभी अभिनेत्रियां एकजुट होकर सामने आईं हैं और अब ये पिटीशन जल्द से जल्द प्रधानमंत्री मोदी को दे दी जाएगी.

क्या आपने देखा ये आईफोन, 26 लाख है इसकी कीमत

आईफोन X की बिक्री 3 नवंबर से शुरू हुई है. भारी भरकम कीमत के बावजूद लोगों के बीच इस आईफोन की भारी डिमांड है. इस बीच मार्केट में कैवियर नाम की कंपनी ने आईफोन X का एक स्पेशल एडिशन लौन्च किया है. इसका नाम आईफोन X इंपीरियल क्राउन रखा है. इसकी लागत करीब 26,28,400 रुपये है.

आईफोन X इंपीरियल क्राउन के रियर पैनल में 300 से ज्यादा कीमती पत्थरों के साथ गोल्डन कोट दिया गया है. इसमें अलग-अलग साइज के 344 से ज्यादा हीरे जड़े गए हैं. इसके अलावा इसमें 14 बड़े रूबी और एक सोने का दो सिर वाला बाज़ लगाया है. इन खूबियों के इतर बाकी पूरे फोन के फीचर्स बेस मौडल की तरह ही रहेंगे.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कैवियर स्मार्टफोन कस्टमाइज़ कर बेचने वाली कंपनी है. आईफोन X के अलावा कंपनी ने आईफोन 8 और आईफोन 8 Plus को भी कस्टमाइज़ किया है. याद हो कि नोकिया 3310 का पुतिन-ट्रंप समिट एडिशन भी कंपनी के द्वारा साल की शुरुआत में लौन्च किया गया था.

आईफोन X की खासियतों की बात करें तो इसमें एज टू एज डिस्प्ले दी गई है यानी काफी कम बेजल दिए गए हैं. इसके अलावा इसमें होम बटन नहीं दिया गया है. ऐपल ने इसमें फेशियल रिकौग्निशन के लिए फेस आईडी दिया है. यानी आपको पहचान कर यह अनलौक होगा. डिजाइन की बात करें तो आईफोन X के फ्रंट और बैक में ग्लास डिजाइन दिया गया है. इसके साथ ही इसके किनारे सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील के बने हैं.

आईफोन X वौटर रेजिस्टेंट है और यह दो कलर वैरिएंट स्पेस ग्रे और सिल्वर में उपलब्ध होगा. इसमे पिक्सल डेंसिटी पिछले किसी भी आईफोन से ज्यादा है. कंपनी ने पहली बार इसमें ओलेड डिस्प्ले लगाया है जैसी उम्मीद भी की जा रही थी. इसकी स्क्रीन 5.8 इंच की है और इसका रिजोलुशन 2436X1125 है.

होम बटन का खात्मा हो चुका है. अब इस फोन को ऊपर की तरफ स्वाइप करके होम बटन के तौर पर यूज कर सकते हैं . पहले होम बटन पर टच आईडी दी जाती थी, लेकिन अब ना होम बटन है और न ही टच आईडी है. बल्कि टच आईडी को फेस आईडी से रिप्लेस कर दिया गया है. चेहरा देखकर यह अनलौक हो जाएगा.

कैमरे में खास तरीके का IR सिस्टम दिया गया है जो चेहरे पर एक बीम के जरिए अंधेरे में भी आपको पहचान कर अनलौक हो जाता है. कंपनी ने इसके लिए डुअल कोर कस्टम चिपसेट लगाया है जो चेहरे को पहचानने का काम करता है. इस स्मार्टफोन को बेहतर रिव्यू मिल रहे हैं और लोगों यह पौपुलर भी हो रहा है.

शास्त्री और कोहली की इशारे में बातचीत का बीसीसीआई ने मांगा जवाब

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने ट्विटर पर भारतीय कप्तान विराट और कोच रवि शास्त्री का एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में विराट और कोच रवि शास्त्री के बीच इशारों-इशारों में पारी डिक्लेयर करने को लेकर बात हो रही है. अब बीसीसीआई ने लोगों से विराट और शास्त्री के बीच होने वाली इन इशारों का मतलब पूछा है.

बता दें कि भारत-श्रीलंका के बीच पहला टेस्ट मैच ड्रौ रहा. भारत इस मुकाबले में जीत से सिर्फ 3 ही विकेट दूर था. हालांकि दिन के काफी ओवर शेष बचे थे मगर समय निकलने और खराब रोशन के कारण मैच को समाप्त घोषित कर दिया.

चौथी पारी के दौरान श्रीलंकाई बल्लेबाजों ने भी वक्त खराब करने की पूरी कोशिश की. इसके चलते अंपायर्स ने उन्हें चेताया भी मगर अंगुली बाद में भारतीय कप्तान विराट कोहली पर भी उठी. क्रिकेट पंडितों ने दलील दी कि अगर विराट कोहली अपने शतक का लोभ ना करते हुए पारी जल्द घोषित कर देते तो भारतीय टीम मैच जीत सकती थी.

इस वीडियो के साथ बीसीआईआई ने एक कैप्शन भी लिखा है जिसमें उन्होंने खेल प्रेमियों से दोनों के बीच ‘साइन इन लैंग्वेज’ में होने वाली चर्चा को लेकर सवाल किया है. दरअसल, ड्रिंक्स ब्रेक के दौरान जब विराट कोहली बल्लेबाजी कर रहे थे तो कोहली ने रवि शास्त्री से इशारों में कुछ कहा. इस पर अभी तक क्रिकेट पंडितों ने तरह-तरह के दलीलें दीं हैं. कुछ का कहना है कि कोच रवि शास्त्री ड्रेसिंग रूम से विराट कोहली को जल्द पारी घोषित करने की सलाह दे रहे थे? तो वहीं कुछ ने माना कि वो कोहली को शतक पूरा कर पारी घोषित करने के लिए कह रहे थे.

बता दें कि उस समय कोहली 86 रन पर बल्लेबाजी कर रहे थे और अपने अर्धशतक से केवल 14 रन दूर थे. क्रिकेट पंडितों की माने तो अगर कोहली अपने शतक के बारे में नहीं सोचते और टीम को जल्द ही घोषित कर देते तो शायद भारत ये मैच आसानी से जीत सकता था. क्योंकि चौथी पारी में श्रीलंका के बल्लेबाजों के लिए 200 रन बनाना आसान नहीं था. खैर कोहली और रवि शास्त्री के बीच हुए इशारेबाजी को लेकर फैंस अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं जाहिर की है.

क्रेडिट और डेबिट कार्ड धारकों के लिये खुशखबरी, अब मिलेगी जीएसटी में छूट

यदि आपके पास डेबिट व क्रेडिट कार्ड है और आप उसके माध्यम से ही अपने बिल आदि का भुगतान करते हैं तो यह खबर आपके लिए है. यदि आप डेबिट, क्रेडिट कार्ड से भुगतान नहीं भी करते हैं तब भी यह खबर आपके लिए फायदे वाली साबित होगी. नोटबंदी के बाद से सरकार लगातार डिजीटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में यदि आप भी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड या पेमेंट एप के जरिए बिल पेमेंट करते हैं तो आपको फायदा होने वाला है. यदि आप डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड या पेमेंट एप से भुगतान नहीं भी करते हैं तो आप इनसे पेमेंट करना शुरू कर दें.

दरअसल सरकार नई योजना के तहत डिजिटल भुगतान करने वाले ग्राहकों को वस्‍तु एवं सेवा कर (जीसएसटी- GST) में 2 फीसदी छूट देने की योजना बना रही है. इस प्रस्ताव पर जनवरी में होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में चर्चा हो सकती है. प्रस्ताव के मुताबिक यह छूट केवल बिजनेस टू कंज्यूमर लेनदेन पर ही प्रभावी होगी. यह छूट उन उत्पादों या सेवाओं पर प्रभावी होगी जिनके लिए जीएसटी रेट 3 प्रतिशत या फिर इससे अधिक है.

सरकार की मंशा इस तरह की छूट देकर डिजीटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देना है. दो प्रतिशत छूट में एक प्रतिशत केंद्रीय जीएसटी और एक फीसदी राज्य जीएसटी होगी. जानकारों के मुताबिक यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके बाद ग्राहक दुकानदारों से डिजिटल भुगतान के विकल्प की मांग करेंगे.

ऐसा होने से कर चोरी की संभावना कम हो जाएगी. आपको बता दें कि जीएसटी काउंसिल की 10 नवंबर को गुवाहाटी में हुई बैठक में भी यह प्रस्ताव शामिल था लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो पाई. यदि काउंसिल की तरफ से इस प्रस्ताव पर मुहर लगी तो डिजिटल पेमेंट करने वालों के लिए जीएसटी की दर 18 फीसदी से घटकर 16 फीसदी रह जाएगी. सरकार की तरफ से छूट की सीमा तय की जाएगी.

छूट की सीमा प्रति लेनदेन अधिकतम 100 रुपए तक हो सकती है. यानी आप यदि 5000 रुपए या इससे ज्यादा का भुगतान एकमुश्त करते हैं तो आपको इस पर 100 रुपए का सीधा-सीधा फायदा होगा. इस योजना में ग्राहकों के लिए दो कीमतों की पेशकश की जाएगी. इनमें से एक में नकद भुगतान के साथ खरीदारी करने पर सामान्य जीएसटी दर लगेगी और डिजिटल भुगतान पर जीएसटी में 2 प्रतिशत की छूट मिलेगी.

सोहराबुद्दीन केस : चीफ जस्टिस मोहित शाह ने की थी 100 करोड़ की पेशकश

बृजगोपाल हरकिशन लोया मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत के प्रभारी जज थे जिनकी मौत 2014 में 30 नवंबर की रात और 1 दिसंबर की दरमियानी सुबह हुई, जब वे नागपुर गए हुए थे. उस वक्‍त वे सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें मुख्‍य आरोपी भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष अमित शाह थे. उस वक्‍त मीडिया में बताया गया कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. इस मामले में नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच अपनी पड़ताल में मैंने जो कुछ पाया, वह लोया की मौत के इर्द-गिर्द की परिस्थितियों पर कुछ असहज सवाल खड़े करता है- जिनमें एक सवाल उनकी लाश से जुड़ा है जब वह उनके परिवार के सुपुर्द की गई थी.

मैंने जिन लोगों से बात की, उनमें एक लोया की बहन अनुराधा बियाणी हैं जो महाराष्‍ट्र के धुले में डॉक्‍टर हैं. बियाणी ने मेरे सामने एक बड़ा खुलासा किया. उन्‍होंने बताया कि लोया ने उन्‍हें यह जानकारी दी थी कि बंबई उच्‍च न्‍यायालय के तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति मोहित शाह ने अनुकूल फैसला देने के एवज में लोया को 100 करोड़ रुपये की रिश्‍वत की पेशकश की थी. उन्‍होंने बताया कि अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले लोया ने उन्‍हें यह बात बताई थी, जब उनका परिवार गाटेगांव स्थित अपने पैतृक निवास पर दीवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुआ था. लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे का कहना था कि एक अनुकूल फैसले के बदले उन्‍हें पैसे और मुंबई में एक मकान की पेशकश की गई है.

बृजगोपाल हरकिशन लोया को जून 2014 में सीबीआई की विशेष अदालत में उनके पूर्ववर्ती जज जेटी उत्‍पट के तबादले के बाद नियुक्‍त किया गया था. अमित शाह ने अदालत में पेश होने से छूट मांगी थी, जिस पर उत्‍पट ने उन्‍हें फटकार लगाई थी. इसके बाद ही उनका तबादला हुआ. आउटलुक में फरवरी 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार: “इस एक साल के दौरान जब‍ उत्‍पट सीबीआई की विशेष अदालत की सुनवाई देखते रहे और बाद में भी, कोर्ट रिकॉर्ड के मुताबिक अमित शाह एक बार भी अदालत नहीं पहुंचे थे. यहां तक कि बरी किए जाने के आखिरी दिन भी वे अदालत नहीं आए और शाह के वकील ने उन्‍हें इस मामले में रियायत दिए जाने का मौखिक प्रतिवेदन दिया, जिसका आधार यह बताया कि वे ‘मधुमेह ग्रस्‍त हैं और चल-फिर नहीं सकते’ या कि ‘वे दिल्‍ली में व्‍यस्‍त हैं.”’

आउटलुक की रिपोर्ट कहती है, “6 जून, 2014 को उत्‍पट ने शाह के वकील के सामने नाराजगी जाहिर कर दी. उस दिन तो उन्‍होंने शाह को हाजिरी से रियायत दे दी और 20 जून की अगली सुनवाई में हाजिर होने का आदेश दिया, लेकिन वे फिर नहीं आए. मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक उत्‍पट ने शाह के वकील से कहा, ‘आप हर बार बिना कारण बताए रियायत देने की बात कह रहे हैं.”’ रिपोर्ट कहती है कि उत्‍पट ने सुनवाई की अगली तारीख 26 जून मुकर्रर की लेकिन 25 जून को उनका तबादला पुणे कर दिया गया. यह सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2012 में आए उस आदेश का उल्‍लंघन था जिसमें कहा गया था कि सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई “एक ही जज द्वारा शुरू से अंत तक की जाए.”

लोया ने शुरू में अदालत में हाजिर न होने संबंधी शाह की दरख्‍वास्‍त पर नरमी बरती. आउटलुक लिखता है, “उत्‍पल के उत्‍तराधिकारी लोया रियायती थे, जो हर तारीख पर शाह को हाजिरी से छूट दे देते थे.” लेकिन हो सकता है कि ऊपर से दिखने वाली यह नम्रता प्रक्रिया का मामला रही हो. आउटलुक की स्‍टोरी कहती है, “ध्‍यान देने वाली बात है कि उनकी एक पिछली नोटिंग कहती है कि शाह को ‘आरोप तय होने तक’ निजी रूप से हाजिर होने से छूट दी जाती है.’ साफ है कि लोया भले उनके प्रति दयालु दिख रहे हों, लेकिन शाह को आरोपों से मुक्‍त करने की बात उनके दिमाग में नहीं रही होगी.” मुकदमे में शिकायतकर्ता रहे सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन के वकील मिहिर देसाई के मुताबिक लोया 10,000 पन्‍ने से ज्‍यादा लंबी पूरी चार्जशीट को देखना चाहते थे और साक्ष्‍यों व गवाहों की जांच को लेकर भी काफी संजीदा थे. देसाई कहते हें, “यह मुकदमा संवेदनशील और अहम था जो एक जज के बतौर श्री लोया की प्रतिष्‍ठा को तय करता.” देसाई ने कहा, “लेकिन दबाव तो लगातार बनाया जा रहा था.”

लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी मुंबई में उनके परिवार के साथ रहकर पढ़ाई करती थी. उसने मुझे बताया कि वे देख रही थीं कि उनके अंकल पर किस हद तक दबाव था. उन्‍होंने बताया, “वे जब कोर्ट से घर आते तो कहते थे, ‘बहुत टेंशन है.’ तनाव काफी था. यह मुकदमा बहुत बड़ा था. इससे कैसे निपटें. हर कोई इसमें शामिल है.” नूपुर के मुताबिक यह “राजनीतिक मूल्‍यों” का प्रश्‍न था.

देसाई ने मुझे बताया, “कोर्टरूम में हमेशा ही जबरदस्‍त तनाव कायम रहता था. हम लोग जब सीबीआई के पास साक्ष्‍य के बतौर जमा कॉल विवरण का अंग्रेजी अनुवाद मांगते थे, तब डिफेंस के वकील लगातार अमित शाह को सारे आरोपों से बरी करने का आग्रह करते रहते थे.” उन्होंने बताया कि टेप की भाषा गुजराती थी, जो न तो लोया को और न ही शिकायतर्ता को समझ में आती थी.

देसाई ने बताया कि डिफेंस के वकील लगातार अंग्रेजी में टेप मुहैया कराए जाने की मांग को दरकिनार करते रहते थे और इस बात का दबाव डालते थे कि शाह को बरी करने संबंधी याचिका पर सुनवाई हो. देसाई के मुताबिक उनके जूनियर वकील अकसर कोर्टरूम के भीतर कुछ अनजान और संदिग्‍ध से दिखने वाले लोगों की बात करते थे, जो धमकाने के लहजे में शिकायतकर्ता के वकील को घूरते थे और फुसफुसाते रहते थे.

देसाई याद करते हुए बताते हैं कि 31 अक्‍टूबर को एक सुनवाई के दौरान लोया ने पूछा कि शाह क्‍यों नहीं आए. उनके वकीलों ने जवाब दिया कि खुद लोया ने उन्‍हें आने से छूट दे रखी है. लोया की टिप्‍पणी थी कि शाह जब राज्‍य में न हों, तब यह छूट लागू होगी. उन्‍होंने कहा कि उस दिन शाह मुंबई में ही थे. वे महाराष्‍ट्र में बीजेपी की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्‍सा लेने आए थे और अदालत से महज 1.5 किलोमीटर दूर थे. उन्‍होंने शाह के वकील को निर्देश दिया कि अगली बार जब वे राज्‍य में हों तो उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए और सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर मुकर्रर कर दी.

अनुराधा बियाणी ने मुझे बताया कि लोया ने उन्‍हें कहा था कि मोहित शाह- जो जून 2010 से सितंबर 2015 के बीच बंबई उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश थे- उन्‍होंने लोया को अनुकूल फैसला देने के एवज में 100 करोड़ रुपये की रिश्‍वत की पेशकश की थी. उनके मुताबिक मोहित शाह “देर रात उन्‍हें फोन कर के साधारण कपड़ों में मिलने के लिए कहते और उनके ऊपर जल्‍द से जल्‍द फैसला देने का दबाव बनाते थे और यह सुनिश्चित करने को कहते कि फैसला सकारात्‍मक हो. मुख्‍य न्‍यायाधीश मोहित शाह ने खुद रिश्‍वत देने की पेशकश की थी.”

उन्होंने बताया कि मोहित शाह ने उनके भाई से कहा था कि यदि “फैसला 30 दिसंबर से पहले आ गया, तो उस पर बिलकुल भी ध्‍यान नहीं जाएगा क्‍योंकि उसी के आसपास एक और धमकादेार स्‍टोरी आने वाली है जो लोगों का ध्‍यान इससे बांट देगी.”

लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे ने उनहें रिश्‍वत की पेशकश वाली बात बताई थी. हरकिशन ने कहा, ”हां, उन्‍हें पैसे की पेशकश की गई थी. क्‍या आपको मुंबई में मकान चाहिए, कितनी जमीन चाहिए, वह हमें ये सब बताता था. बकायदा एक ऑफर था.” उन्‍होंने बताया कि उनके बेटे ने इसे स्‍वीकार करने से इनकार कर दिया. हरकिशन ने बताया, “उसने मुझे बताया था कि या तो मैं तबादला ले लूंगा या इस्‍तीफा दे दूंगा. मैं गांव जाकर खेती करूंगा.”

इस परिवार के दावों की जांच के लिए मैंने मोहित शाह और अमित शाह से संपर्क किया. इस कहानी के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया है. जब भी वे जवाब देते हैं, तब स्‍टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.

लोया की मौत के बाद एमबी गोसावी को सोहराबुद्दीन केस में जज बनाया गया. गोसावी ने 15 दिसंबर 2014 को सुनवाई शुरू की. मिहिर देसाई बताते हैं, “उन्‍होंने तीन दिन तक अमित शाह को बरी करने संबंधी डिफेंस के वकीलों की दलीलें सुनीं, जबकि सीबीआई की दलीलों को केवल 15 मिनट सुना गया. उन्‍होंने 17 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली और आदेश सुरक्षित रख लिया.”

लोया की मौत के करीब एक माह बाद 30 दिसंबर 2014 को गोसावी ने डिफेंस की इस दलील को पुष्‍ट किया कि सीबीआई की आरोपी को फंसाने के पीछे राजनीतिक मंशा है. इसके साथ ही उन्‍होंने अमित शाह को बरी कर दिया.

ठीक उसी दिन पूरे देश के टीवी परदे पर टेस्‍ट क्रिकेट से एमएस धोनी के संन्‍यास की खबर छायी हुई थी. जैसा कि बियाणी ने याद करते हुए बताया, “नीचे बस एक टिकर चल रहा था- अमित शाह निर्दोष साबित, अमित शाह निर्दोष साबित.”

लोया की मौत के करीब ढाई महीने बाद मोहित शाह शोक संतप्‍त परिवार के पास मिलने आए. मुझे लोया के परिवार के पास से उनके बेटे अनुज का लिखा एक पत्र मिला जो उनके मुताबिक उसने उसी दिन अपने परिवार के नाम लिखा था जिस दिन मुख्‍य न्‍यायाधीश आए थे. उस पर तारीख पड़ी है 18 फरवरी 2015 यानी लोया की मौत के 80 दिन बाद. अनुज ने लिखा था, “मुझे डर है कि ये नेता मेरे परिवार के किसी भी सदस्‍य को कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं और मेरे पास इनसे लड़ने की ताकत नहीं है.” उसने मोहित शाह के संदर्भ में लिखा था, “मैंने पिता की मौत की जांच के लिए उनसे एक जांच आयोग गठित करने को कहा था. मुझे डर है कि उनके खिलाफ हमें कुछ भी करने से रोकने के लिए वे हमारे परिवार के किसी भी सदस्‍य को नुकसान पहुंचा सकते हैं. हमारी जिंदगी खतरे में है.”

अनुज ने खत में दो बार लिखा था कि “अगर मुझे और मेरे परिवार को कुछ भी होता है तो उसके लिए इस साजिश में लिप्‍त चीफ जस्टिस मोहित शाह और अन्‍य लोग जिम्‍मेदार होंगे.”

मैं लोया के पिता से नवंबर 2016 में मिला. वे बोले, “मैं 85 का हो चुका हूं और मुझे अब मौत का डर नहीं है. मैं इंसाफ भी चाहता हूं लेकिन मुझे अपनी बच्चियों और उनके बच्‍चों की जान की बेहद फिक्र है.” बोलते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए. वे रह-रह कर उस पैतृ‍क घर की दीवार पर टंगी लोया की तस्‍वीर की ओर देख रहे थे जिस पर अब माला थी.

आईडी चोरी हो जाए तो सबसे पहले करें ये काम

आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस हमारे सबसे जरूरी डाक्‍यूमेंट होते हैं. अगर ये खो जाएं तो हमें कई तरह की दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है. कई बार चोरी हुई हमारी आइडी का गलत इस्‍तेमाल हो जाता है, जिसके चलते हम कानूनी पचड़ों में भी फंस जाते हैं. अगर आपकी भी आईडी चोरी हो जाए या खो जाए तो सबसे पहले ये काम जरूर करें.

रजिस्टर कराएं एफआईआर

आईडी चोरी होने या खाने के बाद सबसे पहले एफआईआर दर्ज कराएं. आईडी चोरी होने पर आईटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया सकता है. पुलिस स्टेशन में मौजूद इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी आपकी एफआईआर दर्ज करेगा.

अगर कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने की स्थिति में नहीं है तो वह स्टेट पुलिस की वेबसाइट पर जाकर भी कंप्लेंट लिखा सकता है. वेबसाइट पर कंप्लेंट करने के बाद उसका प्रिंटआउट जरूर अपने पास रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर भविष्य में आप किसी तरह से पकड़े जाते हैं तो आपको पुलिस परेशान नहीं करेगी.

रिव्यू करें अपनी पर्सनल डिटेल्स

आईडी खोने के तुरंत बाद अपने बैंक और अन्य जगह पर भी शिकायत दर्ज कराएं और डिटेल्स को चेंज करने की कोशिश करें. इसमें आप अपना फोन नंबर और ईमेल आईडी चेंज कर सकते हैं एवं डेबिट-क्रेडिट कार्ड को ब्लौक करवा कर नया कार्ड बनवा सकते हैं.

हालांकि आधार कार्ड और पैन कार्ड की डिटेल्स को चेंज नहीं किया जा सकता है, लेकिन आप इनके लिए संबंधित अथौरिटी को भी अपनी शिकायत भेज सकते हैं.

साइबर क्राइम होती है आइडेंटिटी की चोरी

आइडेंटिटी की चोरी साइबर क्राइम के अंतर्गत आती है. यह तब होता है जब कोई और व्यक्ति आपके डाक्युमेंट्स का इस्तेमाल लोन, क्रेडिट कार्ड, बैंक अकाउंट, मोबाइल या गैस का कनेक्शन लेने के लिए करता है. इसके अलावा इन डाक्युमेंट्स का इस्तेमाल औनलाइन शौपिंग के लिए भी किया जाता है. आईटी एक्ट के सेक्शन 66सी के अंतर्गत आईडेंटिटी चोरी करने वाले व्यक्ति को 3 साल तक की सजा हो सकती है और 1 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.

सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे जज की मौत में चौंकाने वाला खुलासा

मुंबई में केंद्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया (48) के परिवार को 1 दिसंबर 2014 की सुबह सूचना दी गई कि नागपुर में उनकी मौत हो गई है, जहां वे एक सहयोगी की बेटी की शादी में हिस्‍सा लेने गए हुए थे. लोया इस देश के सबसे अहम मुकदमों में एक 2005 के सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्‍याकांड की सुनवाई कर रहे थे. इस मामले में मुख्‍य आरोपी अमित शाह थे, जो सोहराबुद्दीन के मारे जाने के वक्‍त गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे और लोया की मौत के वक्‍त भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष थे. मीडिया में खबर आई थी कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है.

उनकी मौत के बाद लोया के परिवार ने मीडिया से बात नहीं की थी, लेकिन नवंबर 2016 में लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी ने मुझसे संपर्क किया जब मैं पुणे गया हुआ था. उन्हें अपने अंकल की मौत की परिस्थितियों को लेकर मन में संदेह था. इसके बाद नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच मेरी उनसे कई मुलाकातें हुईं. इस दौरान मैंने उनकी मां अनुराधा बियाणी से बात की जो लोया की बहन हैं और सरकारी डॉक्‍टर हैं. इसके अलावा लोया की एक और बहन सरिता मांधाने व पिता हरकिशन से मेरी बात हुई. मैंने नागपुर के उन सरकारी कर्मचारियों से भी बात की जो लोया की मौत के बाद उनकी लाश से जुड़ी प्रक्रियाओं समेत पोस्टमार्टम का गवाह रहे थे.

इस आधार पर लोया की मौत से जुड़े कुछ बेहद परेशान करने वाले सवाल खड़े हुए जैसे, मौत के कथित विवरण में विसंगतियों से जुड़े सवाल, उनकी मौत के बाद अपनाई गई प्रक्रियाओं के बारे में सवाल और लाश परिवार को सौंपे जाने के वक्‍त उसकी हालत से जुड़े सवाल. इस परिवार ने लोया की मौत की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की मांग की थी, जो कभी नहीं हो सका.

30 नवंबर 2014 की रात 11 बजे लोया ने अपनी पत्‍नी शर्मिला को अपने मोबाइल से नागपुर से फोन किया. करीब 40 मिनट हुई बातचीत में वे दिन भर की अपनी व्‍यस्‍तताएं उन्हें बताते रहे. लोया अपनी एक सहकर्मी जज सपना जोशी की बेटी की शादी में हिस्‍सा लेने नागपुर गए थे. उन्‍होंने शुरुआत में नहीं जाने का आग्रह किया था, लेकिन उनके दो सहकर्मी जजों ने साथ चलने का दबाव बनाया. लोया ने पत्‍नी को बताया कि शादी से होकर वे आ चुके हैं और बाद में वे रिसेप्‍शन में गए. उन्‍होंने बेटे अनुज का हालचाल भी पूछा. उन्‍होंने पत्‍नी को बताया कि वे साथी जजों के संग रवि भवन में रुके हुए थे. यह नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित एक सरकारी वीआईपी गेस्‍टहाउस है.

लोया ने कथित रूप से यह आखिरी कॉल की थी और यही उनकी अपने परिवार के साथ हुई आखिरी कथित बातचीत भी थी. उनके परिवार को उनके निधन की खबर अगली सुबह मिली.

उनके पिता हरकिशन लोया से जब मैं पहली बार लातूर शहर के करीब स्थित उनके पैतृक गांव गाटेगांव में नवंबर 2016 में मिला, तब उन्‍होंने बताया था कि 1 दिसंबर 2014 को तड़के “मुंबई में उसकी पत्‍नी, लातूर में मेरे पास और धुले, जलगांव व औरंगाबाद में मेरी बेटियों के पास कॉल आया.” इन्‍हें बताया गया कि “बृज रात में गुजर गए, उनका पोस्टमार्टम हो चुका है और उनका पार्थिव शरीर लातूर जिले के गाटेगांव स्थित हमारे पैतृक निवास पर भेजा जा चुका है.” उन्होंने बताया, “मुझे लगा कि कोई भूचाल आ गया हो और मेरी जिंदगी बिखर गई.”

परिवार को बताया गया था कि लोया की मौत कार्डियक अरेस्‍ट (दिल का दौरा) से हुई थी. हरकिशन ने बताया, “हमें बताया गया था कि उन्‍हें सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उन्हें नागपुर के एक निजी अस्‍पताल दांडे हास्पिटल में ऑटोरिक्‍शा से ले जाया गया, जहां उन्‍हें कुछ चिकित्‍सा दी गई.” लोया की बहन बियाणी दांडे हॉस्पिटल को “एक रहस्‍यमय जगह” बताती हैं और कहती हैं कि उन्‍हें “बाद में पता चला कि वहां ईसीजी यूनिट काम नहीं कर रही थी..” बाद में हरकिशन ने बताया, लोया को “मेडिट्रिना हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया”- शहर का एक और निजी अस्‍पताल- “जहां उन्‍हें पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया.”

अपनी मौत के वक्‍त लोया केवल एक ही मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे, जो सोहराबुद्दीन हत्‍याकांड था. उस वक्‍त पूरे देश की निगाह इस मुकदमे पर लगी हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आदेश दिया था कि इस मामले की सुनवाई को गुजरात से हटाकर महाराष्ट्र में ले जाया जाए. उसका कहना था कि उसे “भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए जरूरी है कि उसे राज्‍य से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए.” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसकी सुनवाई शुरू से लेकर अंत तक ही एक ही जज करेगा, लेकिन इस आदेश का उल्‍लंघन करते हुए पहले सुनवाई कर रहे जज जेटी उत्‍पट को 2014 के मध्‍य में सीबीआई की विशेष अदालत से हटा कर उनकी जगह लोया को लाया गया.

उत्‍पट ने 6 जून 2014 को अमित शाह को अदालत में पेश न होने को लेकर फटकार लगाई थी. अगली तारीख 20 जून को भी अमित शाह पेश नहीं हुए. उत्‍पट ने इसके बाद 26 जून की तारीख मुकर्रर की. सुनवाई से एक दिन पहले 25 जून को उनका तबादला हो गया. इसके बाद आए लोया ने 31 अक्‍टूबर 2014 को सवाल उठाया कि आखिर शाह मुंबई में होते हुए भी उस तारीख पर क्‍यों नहीं कोर्ट आए. उन्‍होंने अगली सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर तय की थी.

लोया की 1 दिसंबर को हुई मौत की खबर अगले दिन कुछ ही अखबारों में छपी और इसे मीडिया में उतनी तवज्‍जो नहीं मिल सकी. द इंडियन एक्‍सप्रेस ने “लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई” बताते हुए लिखा, “उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि लोया की मेडिकल हिस्‍ट्री दुरुस्‍त थी.” मीडिया का ध्‍यान कुछ वक्‍त के लिए 3 दिसंबर को इस ओर गया जब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद के बाहर इस मामले में जांच की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया, जहां शीत सत्र चल रहा था. अगले ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सीबीआई को एक पत्र लिखकर लोया की मौत पर आश्‍चर्य व्‍यक्‍त किया.

सांसदों के प्रदर्शन या रुबाबुद्दीन के खत का कोई नतीजा नहीं निकला. लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियों को लेकर कोई फॉलो-अप खबर मीडिया में नहीं चली.

लोया के परिजनों से कई बार हुई बातचीत के आधार पर मैंने इस बात को सिलसिलेवार ढंग से दर्ज किया कि सोहराबुद्दीन के केस की सुनवाई करते वक्‍त उन्‍हें किन हालात से गुज़रना पड़ा और उनकी मौत के बाद क्‍या हुआ. बियाणी ने मुझे अपनी डायरी की प्रति भी दी जिसमें उनके भाई की मौत से पहले और बाद के दिनों का विवरण दर्ज है. इन डायरियों में उन्‍होंने इस घटना के कई ऐसे आयामों को दर्ज किया है जो उन्‍हें परेशान करते थे. मैं लोया की पत्‍नी और बेटे के पास भी गया, लेकिन उन्‍होंने कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्‍हें अपनी जान का डर है.

धुले निवासी बियाणी ने मुझे बताया कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके पास एक कॉल आई. दूसरी तरफ कोई बार्डे नाम का व्‍यक्ति था जो खुद को जज कह रहा था. उसने उन्‍हें लातूर से कोई 30 किलामीटर दूर स्थित गाटेगांव निकलने को कहा, जहां लोया का पार्थिव शरीर भेजा गया था. इसी व्‍यक्ति ने बियाणी और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को सूचना दी थी कि लाश का पोस्टमार्टम हो चुका है और मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना है.

लोया के पिता आम तौर से गाटेगांव में रहते हैं लेकिन उस वक्‍त वे लातूर में अपनी एक बेटी के घर पर थे. उनके पास भी फोन आया था कि उनके बेटे की लाश गाटेगांव भेजी जा रही है. बियाणी ने मुझे बताया था, “ईश्‍वर बहेटी नाम के आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने मेरे पिता को बताया था कि वह लाश के गाटेगांव पहुंचने की व्‍यवस्‍था कर रहा है. कोई नहीं जानता कि उसे क्‍यों, कब और कैसे बृज लोया की मौत की खबर मिली.”

लोया की एक और बहन सरिता मांधाने औरंगाबाद में ट्यूशन सेंटर चलाती हैं और उस वक्‍त वे लातूर में थीं. उन्‍होंने मुझे बताया कि उनके पास सुबह करीब 5 बजे बार्डे का फोन आया था यह बताने के लिए कि लोया नहीं रहे. उन्‍होंने बताया, “उसने कहा कि बृज नागपुर में गुजर गए हैं और हमें उसने नागपुर आने को कहा.” वे तुरंत लातूर के हॉस्पिटल अपने भतीजे को लेने निकल गईं जहां वह भर्ती था, लेकिन “हम जैसे ही अस्‍पताल से निकल रहे थे, ईश्‍वर बहेटी नाम का व्‍यक्ति वहां आ पहुंचा. मैं अब भी नहीं जानती कि उसे कैसे पता था कि हम सारदा हॉस्पिटल में थे.” मांधाने के अनुसार बहेटी ने उन्‍हें बताया कि वे रात से ही नागपुर के लोगों से संपर्क में हैं और इस बात पर जोर दिया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं है, क्‍योंकि लाश को एम्‍बुलेंस से गाटेगांव लाया जा रहा है.” उन्‍होंने कहा, “वह हमें अपने घर ले गया यह कहते हुए कि वह सब कुछ देख लेगा.” (इस कहानी के छपने के वक्‍त तक बहेटी को भेजे मेरे सवालों का जवाब नहीं आया था).

बियाणी के गाटेगांव पहुंचने तक रात हो चुकी थी- बाकी बहनें पहले ही पैतृक घर पहुंच चुकी थीं. बियाणी की डायरी में दर्ज है कि उनके वहां पहुंचने के बाद लाश रात 11.30 के आसपास वहां लाई गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि नागपुर से लाई गई लाश के साथ लोया का कोई भी सहकर्मी मौजूद नहीं था. केवल एम्‍बुलेंस का ड्राइवर था. बियाणी कहती हैं, ”यह चौंकाने वाली बात थी. जिन दो जजों ने उनसे आग्रह किया था कि वे शादी में नागपुर चलें, वे साथ नहीं थे. परिवार को मौत और पोस्टमार्टम की खबर देने वाले मिस्‍टर बार्डे भी साथ नहीं थे. यह सवाल मुझे परेशान करता है: आखिर इस लाश के साथ कोई क्‍यों नहीं था?” उनकी डायरी में लिखा है, ”वे सीबीआइ कोर्ट के जज थे. उनके पास सुरक्षाकर्मी होने चाहिए थे और कायदे से उन्‍हें लाया जाना चाहिए था.”

लोया की पत्‍नी शर्मिला और उनकी बेटी अपूर्वा व बेटा अनुज मुंबई से गाटेगांव एकाध जजों के साथ आए. उनमें से एक ”लगातार अनुज और दूसरों से कह रहा था कि किसी से कुछ नहीं बोलना है.” बियाणी ने मुझे बताया, “अनुज दुखी था और डरा हुआ भी था, लेकिन उसने अपना हौसला बनाए रखा और अपनी मां के साथ बना रहा.”

बियाणी बताती हैं कि लाश देखते ही उन्‍हें  दाल में कुछ काला जान पड़ा. उन्‍होंने मुझे बताया, “शर्ट के पीछे गरदन पर खून के धब्‍बे थे.” उन्‍होंने यह भी बताया कि उनका चश्‍मा गले के नीचे था. मांधाने ने मुझे बताया कि लोया का चश्‍मा “उनकी देह के नीचे फंसा हुआ था.”

उस वक्‍त बियाणी की डायरी में दर्ज एक टिप्‍पणी कहती है, “उनके कॉलर पर खून था. उनकी बेल्‍ट उलटी दिशा में मोड़ी हुई थी. पैंट की क्लिप टूटी हुई थी. मेरे अंकल को भी महसूस हुआ था कि कुछ संदिग्‍ध है.” हरकिशन ने मुझे बताया, “उसके कपड़ों पर खून के दाग थे.” मांधाने ने बताया कि उन्‍होंने भी “गरदन पर खून” देखा था. उन्‍होंने बताया कि “उनके सिर पर चोट थी और खून था… पीछे की तरफ” और “उनकी शर्ट पर खून के धब्‍बे थे.” हरकिशन ने बताया, “उसकी शर्ट पर बाएं कंधे से लेकर कमर तक खून था.”

नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट हालांकि “कपड़ों की हालत- पानी से भीगा, खून से सना या क़ै अथवा फीकल मैटर से गंदा” के अंतर्गत हस्‍तलिखित एंट्री दर्ज करती है- “सूखा”.

बियाणी को लाश की स्थिति संदिग्‍ध लगी, क्‍योंकि एक डॉक्‍टर होने के नाते “मैं जानती हूं कि पीएम के दौरान खून नहीं निकलता क्‍योंकि हृदय और फेफड़े काम नहीं कर रहे होते हैं.” उन्‍होंने कहा कि दोबारा पोस्टमार्टम की मांग भी उन्‍होंने की थी, लेकिन वहां इकट्ठा लोया के दोस्‍तों और सहकर्मियों ने हमें हतोत्‍साहित किया, यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है.

हरकिशन बताते हैं कि परिवार तनाव में था और डरा हुआ था, लेकिन लोया की अंत्‍येष्टि करने का उन पर दबाव बनाया गया.

कानूनी जानकार कहते हैं कि यदि लोया की मौत संदिग्‍ध थी- यह तथ्‍य कि पोस्टमार्टम का आदेश दिया गया, खुद इसकी पुष्टि करता है- तो एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए थी और एक मेडिको-लीगल केस दायर किया जाना चाहिए था. पुणे के एक वरिष्‍ठ वकील असीम सरोदे कहते हैं, “कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक अपेक्षा की जाती है कि पुलिस विभाग मृतक के तमाम निजी सामान को जब्‍त कर के सील कर देगा, पंचनामे में उनकी सूची बनाएगा और जस का तस परिवार को सौंप देगा.” बियाणी कहती हैं कि परिवार को पंचनामे की प्रति तक नहीं दी गई.

लोया का मोबाइल फोन परिवार को लौटा दिया गया, लेकिन बियाणी कहती हैं कि बहेटी ने उसे लौटाया, पुलिस ने नहीं. वे बताती हैं, “हमें तीसरे या चौथे दिन उनका मोबाइल मिला. मैंने तुरंत उसकी मांग की थी. उसमें उनकी कॉल और बाकी चीजों का विवरण होता. हमें सब पता चल गया होता अगर वह मिल जाता. और एसएमएस भी. इस खबर के एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था, “सर, इन लोगों से बचकर रहिए.’ वह एसएमएस फोन में था. बाकी सब कुछ डिलीट कर दिया गया था.”

बियाणी के पास लोया की मौत वाली रात और अगली सुबह को लेकर तमाम सवाल हैं. उनमें एक सवाल यह था कि लोया को ऑटोरिक्‍शा में क्‍यों और कैसे अस्‍पताल ले जाया गया, जबकि रवि भवन से सबसे करीबी ऑटो स्‍टैंड दो किलोमीटर दूर है. बियाणी कहती हैं, “रवि भवन के पास कोई ऑटो स्‍टैंड नहीं है और लोगों को तो दिन के वक्‍त भी रवि भवन के पास ऑटो रिक्‍शा नहीं मिलता. उनके साथ के लोगों ने आधी रात में ऑटोरिक्‍शा का इंतजाम कैसे किया होगा?”

बाकी सवालों के जवाब भी नदारद हैं. लोया को अस्‍पताल ले जाते वक्‍त परिवार को सूचना क्‍यों नहीं दी गई? उनकी मौत होते ही खबर क्‍यों नहीं की गई? पोस्टमार्टम की मंजूरी परिवार से क्‍यों नहीं ली गई या फिर प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही क्‍यों नहीं सूचित कर दिया गया कि पोस्टमार्टम होना है? पोस्‍टमार्टम की सिफारिश किसने की और क्‍यों? आखिर लोया की मौत के बारे में ऐसा क्‍या संदिग्‍ध था कि पोस्टमार्टम का सुझाव दिया गया? दांडे अस्‍पताल में उन्‍हें कौन सी दवा दी गई? क्‍या उस वक्‍त रवि भवन में एक भी गाड़ी नहीं थी लोया को अस्‍पताल ले जाने के लिए, जबकि वहां नियमित रूप से मंत्री, आईएएस, आईपीएस, जज सहित तमाम वीआईपी ठहरते हें? महाराष्‍ट्र असेंबली का शीत सत्र नागपुर में 7 दिसंबर से शुरू होना था और सैकड़ों अधिकारी पहले से ही इसकी तैयारियों के लिए वहां जुट जाते हैं. रवि भवन में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ठहरे बाकी वीआईपी कौन थे?” वकील सरोदे कहते हैं, “ये सारे सवाल बेहद जायज़ हैं. दांडे अस्‍पताल में लोया को दी गई चिकित्‍सा की सूचना परिवार को क्‍यों नहीं दी गई? क्‍या इन सवालों के जवाब से किसी के लिए दिक्‍कत पैदा हो सकती है?”

बियाणी कहती हैं, “ऐसे सवाल अब भी परिवार, मित्रों और परिजनों को परेशान करते हैं.”

वे कहती हैं कि उनका संदेह और पुख्‍ता हुआ जब लोया को नागपुर जाने के लिए आग्रह करने वाले जज परिवार से मिलने उनकी मौत के “डेढ़ महीने बाद” तक नहीं आए. इतने दिनों बाद जाकर परिवार को लोया के आखिरी क्षणों का विवरण जानने को मिल सका. बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने परिवार को बताया कि लोया को सीने में दर्द रात साढ़े बारह बजे हुआ था, फिर वे उन्हें दांडे अस्‍पताल एक ऑटोरिक्‍शा में ले गए, और वहां “वे खुद ही सीढ़ी चढ़कर ऊपर गए और उन्‍हें कुछ चिकित्‍सा दी गई. उन्‍हें मेडिट्रिना अस्‍पताल ले जाया गया जहां पहुंचते ही उन्‍हें मृत घोषित कर दिया गया.”

इसके बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं. बियाणी ने बताया, “हमने दांडे अस्‍पताल में दी गई चिकित्‍सा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वहां के डॉक्‍टरों और स्‍टाफ ने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया.”

मैंने लोया की पोस्‍टमॉर्टम निकलवाई जो नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में की गई थी. यह रिपोर्ट अपने आप में कई सवालों को जन्‍म देती है.

रिपोर्ट के हर पन्‍ने पर सीनियर पुलिस इंस्‍पेक्‍टर, सदर थाना, नागपुर के दस्‍तखत हैं, साथ ही  एक और व्‍यक्ति के दस्‍तखत हैं जिसने नाम के साथ लिखा है “मैयाताजा चलतभाऊ” यानी मृतक का चचेरा भाई. जाहिर है, पोस्टमार्टम के बाद इसी व्‍यक्ति ने लाश अपने कब्जे में ली होगी. लोया के पिता कहते हैं, ”मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नागपुर में नहीं है. किसने इस रिपोर्ट पर साइन किया, यह सवाल भी अनुत्‍तरित है.”

इसके अलावा, रिपोर्ट कहती है कि लाश को मेडिट्रिना अस्‍पताल से नागपुर मेडिकल कॉलेज सीताबर्दी पुलिस थाने के द्वारा भेजा गया और उसे लेकर थाने का पंकज नामक एक सिपाही आया था, जिसकी बैज संख्‍या 6238 है. रिपोर्ट के मुताबिक लाश 1 दिसंबर 2014 को दिन में 10.50 पर लाई गई, पोस्‍टमार्टम 10.55 पर शुरू हुआ और 11.55 पर खत्‍म हुआ.

रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस के अनुसार लोया को “1/12/14 की सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ और 6.15 बजे मौत हुई.” इसमें कहा गया है कि “पहले उन्‍हें दांडे अस्‍पताल ले जाया गया और फिर मेडिट्रिना अस्‍पताल लाया गया जहां उन्‍हें मृत घोषित किया गया.”

रिपोर्ट में मौत का वक्‍त सबह 6.15 बजे बेमेल जान पड़ता है क्‍योंकि लोया के परिजनों के मुताबिक उन्‍हें सुबह 5 बजे से ही फोन आने लग गए थे. मेरी जांच के दौरान नागपुर मेडिकल कॉलेज और सीताबर्दी थाने के दो सूत्रों ने बताया कि उन्‍हें लोया की मौत की सूचना आधी रात को ही मिल चुकी थी और उन्‍होंने खुद रात में लाश देखी थी. उनके मुताबिक पोस्‍टमार्टम आधी रात के तुरंत बाद ही कर दिया गया था. परिवार के लोगों को आए फोन के अलावा सूत्रों के दिए विवरण पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि लोया की मौत का समय सुबह 6.15 बजे था.

मेडिकल कॉलेज के सूत्र, जो पोस्‍टमार्टम जांच का गवाह है, ने मुझे यह भी बताया कि वह जानता था कि ऊपर से आदेश आया था कि “इस तरह से लाश में चीरा लगाओ कि पीएम हुआ जान पड़े और फिर उसे सिल दो.”

रिपोर्ट मौत की संभावित वजह “कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी” को बताती है. मुंबई के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्‍ट हसमुख रावत के मुताबिक “आम तौर से बुढ़ापे, परिवार की हिस्‍ट्री, धूमपान, उच्‍च कोलेस्‍ट्रॉल, उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा, मधुमेह आदि के कारण कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी होती है.” बियाणी कहती हैं कि उनके भाई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था. वे कहती हैं, “बृज 48 के थे. हमारे माता-पिता 85 और 80 साल के हैं और वे स्‍वस्‍थ हैं. उन्‍हें दिल की बीमारी की कोई शिकायत नहीं है. वे केवल चाय पीते थे, बरसों से दिन में दो घंटे टेबल टेनिस खेलते आए थे, उन्‍हें न मधुमेह था न रक्‍तचाप.”

बियाणी ने मुझे बताया कि उन्‍हें अपने भाई की मौत की आधिकारिक मेडिकल वजह विश्‍वास करने योग्‍य नहीं लगती. वे कहती हैं, “मैं खुद एक डॉक्‍टर हूं और एसिडिटी हो या खांसी, छोटी सी शिकायत के लिए भी बृज मुझसे ही सलाह लेते थे. उन्‍हें दिल के रोग की कोई शिकायत नहीं थी और हमारे परिवार में भी इसकी कोई हिस्‍ट्री नहीं है.”

आपकी कार को और भी स्मार्ट बना देंगे ये गैजेट्स

गैजेट्स हमारी लाइफ को स्मार्ट बना रहे हैं. छोटे-छोटे गैजेट्स हमारी बड़ी-बड़ी मुश्किलों को चुटकियों में आसान कर रहे हैं. बात चाहे हेल्थ की हो, होम सिक्योरिटी की या फिर अपने टाइम को मैनेज करने की, ये सब काम गैजेट्स शानदार तरीके से कर रहे हैं. हम आपको कुछ ऐसे स्मार्ट गैजेट्स के बारे में बता रहे हैं, जो कि आपके ड्राइविंग एक्सपीरियंस को खास बनाने के साथ कार को देंगे स्मार्ट लुक.

स्मार्टफोन माउंट

आजकल ज्यादातर लोग अपनी कार में स्मार्टफोन माउंट का इस्तेमाल करते हैं. ड्राइव करते समय नेविगेशन का इस्तेमाल करने के लिए ये डिवाइस सबसे अच्छा है. इसके अलावा आप अपने स्मार्टफोन को भी इसमें रख सकते हैं.

कार कौफी मेकर

रोड ट्रिप को लेकर लोग अक्सर काफी रोमांचित रहते हैं. फैमिली या पुराने दोस्तों के साथ लौन्ग ड्राइव में अगर आपको गाड़ी के अंदर गरमा-गरम कौफी मिल जाए तो शायद इससे बेहतर और कुछ नहीं. हैंडप्रेसो कौफी मेकर एक ऐसा ही स्मार्ट गैजेट है, जिसकी मदद से आप सफर के दौरान कार में कौफी बनाकर पी सकते हैं. कम पावर वाला यह कौफी मेकर आसानी से आपकी कार के 12V सौकेट से अटैच होकर आपको स्ट्रौन्ग कौफी बनाने की सुविधा देता है.

जंप स्टार्ट कि‍ट

अचानक आपकी कार की बैट्री में खराबी आ जाए और कार बंद पड़ जाए तो ऐसे वक्त में जंप स्टार्ट कि‍ट की मदद से कार को स्टार्ट कर सकते हैं. जंप स्टार्ट कि‍ट दरअसल एक बैट्री की तरह होती है जिसकी मदद से झटके से गाड़ी को स्टार्ट करने में मदद मिलती है.

व्हीकल ट्रैकर

महंगा स्मार्टफोन खो जाने पर उसे ट्रेस करके ढूंढ निकालने की कुछ संभावनाएं होती हैं, लेकिन कभी आपकी कार खो या चोरी हो जाए तब क्या? ऐसे में एक स्मार्ट गैजेट ऐसा है जो आपकी मदद कर सकता है. व्हीकल ट्रैकर ऐसा ही डिवाइस है, जो कार के औन बोर्ड डायग्नोस्टिक पोर्ट में इनस्टाल किया जाता है. जिसके बाद इसे एक ऐप के जरिए औपरेट किया जाता है, जिसे यूजर अपने स्मार्टफोन में इनस्टाल कर सकता है.

GPS सिस्टम बेस्ड यह गैजेट कार की लोकेशन को ट्रेस करके उसकी सही स्थिति बताएगा. इस स्मार्ट गैजेट की मदद से कार चोरी हो जाने पर उसकी लोकेशन आसानी से पता लगाई जा सकती है.

GPS ट्रैकर

GPS ट्रैकर एक बहुत ही काम का गैजेट है जो आपके फोन से कनेक्ट होकर हमेशा लोकेशन बताता रहता है. इतना ही नहीं अगर गाड़ी चोरी भी हो जाती है तब यह कार को ट्रेस करने में काफी मदद करता है.

ब्लाइंड स्पौट अलर्ट

यह एक उपयोगी गैजेट है, कार के साइड मिरर में एक लाइट लगी होती है. जब कोई आपके ब्लाइंड स्पौज में आता है तब मिरर में लगी लाइट फ्लैश करती है पुरानी कारों में भी इस फीचर को ऐड किया जा सकता है.

इन-कार एंटरटेनमेंट सिस्टम

कम बजट वाली गाड़ियों को खरीदते समय हमें कई बार कुछ फीचर्स से समझौता करना पड़ता है, जिनकी हमें कई बार बहुत जरूरत पड़ती है. अगर आप म्यूजिक और मूवी के शौकीन हैं और अपनी कार में एंटरटेनमेंट स्क्रीन को मिस करते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप आसान तरीके से एक पोर्टेबल स्क्रीन अपनी कार में जोड़ सकते हैं. एक्सटर्नल स्क्रीन को सिर्फ 12V के पावर सौकेट की जरूरत होगी, जो कि किसी भी कार में होता है. यह एक्सटर्नल एक छोटे टैब की तरह आपकी कार में आसानी से अटैच हो सकता है. इन-कार एंटरटेनमेंट सिस्टम माइक्रो SD कार्ड और यूएसबी पोर्ट के साथ आता है. ब्लूटूथ और 3.5mm औडियो जैक जैसे फीचर्स के साथ आप लंबी ड्राइव के दौरान शानदार म्यूजिक का मज़ा ले सकते हैं.

WiFi हौटस्पौट

अगर आप टेकसेवी हैं. इंटरनेट के बगैर आपका गुजारा नहीं हो सकता है तो एक डिवाइस ऐसा है जो कि आपको कार में भी हाई-स्पीड इंटरनेट देगा. बाजार में ऐसे कई पोर्टेबल डिवाइस उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी कार में अटैच करके हौट स्पौट की तरह आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. किसी लौन्ग ड्राइव, या पिकनिक ट्रिप में जाते समय कार में लगे ये पोर्टेबल वाई-फाई डिवाइस काफी काम आ सकते हैं. एक बार में करीब 10-15 गैजेट्स इनमें आसानी से कनेक्ट किए जा सकते हैं.

तो अगली बार जब आप फैमिली या दोस्तों के साथ लौन्ग ट्रिप प्लान करें तो ये स्मार्ट गैजेट्स अपनी कार में लगाना बिल्कुल न भूलें.

आपने आज तक नहीं देखा होगा ऐसा अजीबोगरीब शौट

कभी-कभी क्रिकेट में खिलाड़ी कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं. कुछ कामयाब भी होते हैं, तो कुछ नाकाम. लेकिन इनमें से कुछ ‘सुपर से ऊपर’ करने की कोशिश में मजाक का विषय भी बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही श्रीलंका के पूर्व टेस्ट क्रिकेटर चमारा सिल्वा के साथ हुआ.

दरअसल, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में चमारा सिल्वा घरेलू मैच के दौरान एक अजीबो-गरीब शौट खेल बैठे. जिसके बाद उनका अनोखा शौट खेलता हुआ यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी के साथ वायरल हो गया.

श्रीलंका के दो बड़े क्लबों एमएएस यूनीशेला और तीजे लंका के बीच मैच खेला जा रहा था. सिल्वा बल्लेबाजी कर रहे थे लेकिन तभी अचान से वो शौट खेलने के लिए विकेट के पीछे चले गए. बौल बल्ले तक आने से पहले ही स्टंप पर टकरा गई और वो बोल्ड हो गए.

बता दें कि पिछले साल सितंबर में घरेलू मैचों के दौरान नियमों के उल्लंघन के आरोप में चमारा सिल्वा पर दो साल के लिए बैन लगा दिया गया था. इसके बाद उन्हें बस घरेलू मैच खेलने की ही छूट दी गई थी. चमारा सिल्वा श्रीलंका के लिए 75 वनडे और 16 टी-20 मुकाबले खेल चुके हैं. उनके खाते में दो वनडे शतक भी हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें