यदि आपके पास डेबिट व क्रेडिट कार्ड है और आप उसके माध्यम से ही अपने बिल आदि का भुगतान करते हैं तो यह खबर आपके लिए है. यदि आप डेबिट, क्रेडिट कार्ड से भुगतान नहीं भी करते हैं तब भी यह खबर आपके लिए फायदे वाली साबित होगी. नोटबंदी के बाद से सरकार लगातार डिजीटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में यदि आप भी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड या पेमेंट एप के जरिए बिल पेमेंट करते हैं तो आपको फायदा होने वाला है. यदि आप डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड या पेमेंट एप से भुगतान नहीं भी करते हैं तो आप इनसे पेमेंट करना शुरू कर दें.
दरअसल सरकार नई योजना के तहत डिजिटल भुगतान करने वाले ग्राहकों को वस्तु एवं सेवा कर (जीसएसटी- GST) में 2 फीसदी छूट देने की योजना बना रही है. इस प्रस्ताव पर जनवरी में होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में चर्चा हो सकती है. प्रस्ताव के मुताबिक यह छूट केवल बिजनेस टू कंज्यूमर लेनदेन पर ही प्रभावी होगी. यह छूट उन उत्पादों या सेवाओं पर प्रभावी होगी जिनके लिए जीएसटी रेट 3 प्रतिशत या फिर इससे अधिक है.
सरकार की मंशा इस तरह की छूट देकर डिजीटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देना है. दो प्रतिशत छूट में एक प्रतिशत केंद्रीय जीएसटी और एक फीसदी राज्य जीएसटी होगी. जानकारों के मुताबिक यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके बाद ग्राहक दुकानदारों से डिजिटल भुगतान के विकल्प की मांग करेंगे.
ऐसा होने से कर चोरी की संभावना कम हो जाएगी. आपको बता दें कि जीएसटी काउंसिल की 10 नवंबर को गुवाहाटी में हुई बैठक में भी यह प्रस्ताव शामिल था लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो पाई. यदि काउंसिल की तरफ से इस प्रस्ताव पर मुहर लगी तो डिजिटल पेमेंट करने वालों के लिए जीएसटी की दर 18 फीसदी से घटकर 16 फीसदी रह जाएगी. सरकार की तरफ से छूट की सीमा तय की जाएगी.
छूट की सीमा प्रति लेनदेन अधिकतम 100 रुपए तक हो सकती है. यानी आप यदि 5000 रुपए या इससे ज्यादा का भुगतान एकमुश्त करते हैं तो आपको इस पर 100 रुपए का सीधा-सीधा फायदा होगा. इस योजना में ग्राहकों के लिए दो कीमतों की पेशकश की जाएगी. इनमें से एक में नकद भुगतान के साथ खरीदारी करने पर सामान्य जीएसटी दर लगेगी और डिजिटल भुगतान पर जीएसटी में 2 प्रतिशत की छूट मिलेगी.
बृजगोपाल हरकिशन लोया मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत के प्रभारी जज थे जिनकी मौत 2014 में 30 नवंबर की रात और 1 दिसंबर की दरमियानी सुबह हुई, जब वे नागपुर गए हुए थे. उस वक्त वे सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें मुख्य आरोपी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह थे. उस वक्त मीडिया में बताया गया कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. इस मामले में नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच अपनी पड़ताल में मैंने जो कुछ पाया, वह लोया की मौत के इर्द-गिर्द की परिस्थितियों पर कुछ असहज सवाल खड़े करता है- जिनमें एक सवाल उनकी लाश से जुड़ा है जब वह उनके परिवार के सुपुर्द की गई थी.
मैंने जिन लोगों से बात की, उनमें एक लोया की बहन अनुराधा बियाणी हैं जो महाराष्ट्र के धुले में डॉक्टर हैं. बियाणी ने मेरे सामने एक बड़ा खुलासा किया. उन्होंने बताया कि लोया ने उन्हें यह जानकारी दी थी कि बंबई उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहित शाह ने अनुकूल फैसला देने के एवज में लोया को 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी. उन्होंने बताया कि अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले लोया ने उन्हें यह बात बताई थी, जब उनका परिवार गाटेगांव स्थित अपने पैतृक निवास पर दीवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुआ था. लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे का कहना था कि एक अनुकूल फैसले के बदले उन्हें पैसे और मुंबई में एक मकान की पेशकश की गई है.
बृजगोपाल हरकिशन लोया को जून 2014 में सीबीआई की विशेष अदालत में उनके पूर्ववर्ती जज जेटी उत्पट के तबादले के बाद नियुक्त किया गया था. अमित शाह ने अदालत में पेश होने से छूट मांगी थी, जिस पर उत्पट ने उन्हें फटकार लगाई थी. इसके बाद ही उनका तबादला हुआ. आउटलुक में फरवरी 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार: “इस एक साल के दौरान जब उत्पट सीबीआई की विशेष अदालत की सुनवाई देखते रहे और बाद में भी, कोर्ट रिकॉर्ड के मुताबिक अमित शाह एक बार भी अदालत नहीं पहुंचे थे. यहां तक कि बरी किए जाने के आखिरी दिन भी वे अदालत नहीं आए और शाह के वकील ने उन्हें इस मामले में रियायत दिए जाने का मौखिक प्रतिवेदन दिया, जिसका आधार यह बताया कि वे ‘मधुमेह ग्रस्त हैं और चल-फिर नहीं सकते’ या कि ‘वे दिल्ली में व्यस्त हैं.”’
आउटलुक की रिपोर्ट कहती है, “6 जून, 2014 को उत्पट ने शाह के वकील के सामने नाराजगी जाहिर कर दी. उस दिन तो उन्होंने शाह को हाजिरी से रियायत दे दी और 20 जून की अगली सुनवाई में हाजिर होने का आदेश दिया, लेकिन वे फिर नहीं आए. मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक उत्पट ने शाह के वकील से कहा, ‘आप हर बार बिना कारण बताए रियायत देने की बात कह रहे हैं.”’ रिपोर्ट कहती है कि उत्पट ने सुनवाई की अगली तारीख 26 जून मुकर्रर की लेकिन 25 जून को उनका तबादला पुणे कर दिया गया. यह सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2012 में आए उस आदेश का उल्लंघन था जिसमें कहा गया था कि सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई “एक ही जज द्वारा शुरू से अंत तक की जाए.”
लोया ने शुरू में अदालत में हाजिर न होने संबंधी शाह की दरख्वास्त पर नरमी बरती. आउटलुक लिखता है, “उत्पल के उत्तराधिकारी लोया रियायती थे, जो हर तारीख पर शाह को हाजिरी से छूट दे देते थे.” लेकिन हो सकता है कि ऊपर से दिखने वाली यह नम्रता प्रक्रिया का मामला रही हो. आउटलुक की स्टोरी कहती है, “ध्यान देने वाली बात है कि उनकी एक पिछली नोटिंग कहती है कि शाह को ‘आरोप तय होने तक’ निजी रूप से हाजिर होने से छूट दी जाती है.’ साफ है कि लोया भले उनके प्रति दयालु दिख रहे हों, लेकिन शाह को आरोपों से मुक्त करने की बात उनके दिमाग में नहीं रही होगी.” मुकदमे में शिकायतकर्ता रहे सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन के वकील मिहिर देसाई के मुताबिक लोया 10,000 पन्ने से ज्यादा लंबी पूरी चार्जशीट को देखना चाहते थे और साक्ष्यों व गवाहों की जांच को लेकर भी काफी संजीदा थे. देसाई कहते हें, “यह मुकदमा संवेदनशील और अहम था जो एक जज के बतौर श्री लोया की प्रतिष्ठा को तय करता.” देसाई ने कहा, “लेकिन दबाव तो लगातार बनाया जा रहा था.”
लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी मुंबई में उनके परिवार के साथ रहकर पढ़ाई करती थी. उसने मुझे बताया कि वे देख रही थीं कि उनके अंकल पर किस हद तक दबाव था. उन्होंने बताया, “वे जब कोर्ट से घर आते तो कहते थे, ‘बहुत टेंशन है.’ तनाव काफी था. यह मुकदमा बहुत बड़ा था. इससे कैसे निपटें. हर कोई इसमें शामिल है.” नूपुर के मुताबिक यह “राजनीतिक मूल्यों” का प्रश्न था.
देसाई ने मुझे बताया, “कोर्टरूम में हमेशा ही जबरदस्त तनाव कायम रहता था. हम लोग जब सीबीआई के पास साक्ष्य के बतौर जमा कॉल विवरण का अंग्रेजी अनुवाद मांगते थे, तब डिफेंस के वकील लगातार अमित शाह को सारे आरोपों से बरी करने का आग्रह करते रहते थे.” उन्होंने बताया कि टेप की भाषा गुजराती थी, जो न तो लोया को और न ही शिकायतर्ता को समझ में आती थी.
देसाई ने बताया कि डिफेंस के वकील लगातार अंग्रेजी में टेप मुहैया कराए जाने की मांग को दरकिनार करते रहते थे और इस बात का दबाव डालते थे कि शाह को बरी करने संबंधी याचिका पर सुनवाई हो. देसाई के मुताबिक उनके जूनियर वकील अकसर कोर्टरूम के भीतर कुछ अनजान और संदिग्ध से दिखने वाले लोगों की बात करते थे, जो धमकाने के लहजे में शिकायतकर्ता के वकील को घूरते थे और फुसफुसाते रहते थे.
देसाई याद करते हुए बताते हैं कि 31 अक्टूबर को एक सुनवाई के दौरान लोया ने पूछा कि शाह क्यों नहीं आए. उनके वकीलों ने जवाब दिया कि खुद लोया ने उन्हें आने से छूट दे रखी है. लोया की टिप्पणी थी कि शाह जब राज्य में न हों, तब यह छूट लागू होगी. उन्होंने कहा कि उस दिन शाह मुंबई में ही थे. वे महाराष्ट्र में बीजेपी की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने आए थे और अदालत से महज 1.5 किलोमीटर दूर थे. उन्होंने शाह के वकील को निर्देश दिया कि अगली बार जब वे राज्य में हों तो उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए और सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर मुकर्रर कर दी.
अनुराधा बियाणी ने मुझे बताया कि लोया ने उन्हें कहा था कि मोहित शाह- जो जून 2010 से सितंबर 2015 के बीच बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे- उन्होंने लोया को अनुकूल फैसला देने के एवज में 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी. उनके मुताबिक मोहित शाह “देर रात उन्हें फोन कर के साधारण कपड़ों में मिलने के लिए कहते और उनके ऊपर जल्द से जल्द फैसला देने का दबाव बनाते थे और यह सुनिश्चित करने को कहते कि फैसला सकारात्मक हो. मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने खुद रिश्वत देने की पेशकश की थी.”
उन्होंने बताया कि मोहित शाह ने उनके भाई से कहा था कि यदि “फैसला 30 दिसंबर से पहले आ गया, तो उस पर बिलकुल भी ध्यान नहीं जाएगा क्योंकि उसी के आसपास एक और धमकादेार स्टोरी आने वाली है जो लोगों का ध्यान इससे बांट देगी.”
लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे ने उनहें रिश्वत की पेशकश वाली बात बताई थी. हरकिशन ने कहा, ”हां, उन्हें पैसे की पेशकश की गई थी. क्या आपको मुंबई में मकान चाहिए, कितनी जमीन चाहिए, वह हमें ये सब बताता था. बकायदा एक ऑफर था.” उन्होंने बताया कि उनके बेटे ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. हरकिशन ने बताया, “उसने मुझे बताया था कि या तो मैं तबादला ले लूंगा या इस्तीफा दे दूंगा. मैं गांव जाकर खेती करूंगा.”
इस परिवार के दावों की जांच के लिए मैंने मोहित शाह और अमित शाह से संपर्क किया. इस कहानी के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया है. जब भी वे जवाब देते हैं, तब स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.
लोया की मौत के बाद एमबी गोसावी को सोहराबुद्दीन केस में जज बनाया गया. गोसावी ने 15 दिसंबर 2014 को सुनवाई शुरू की. मिहिर देसाई बताते हैं, “उन्होंने तीन दिन तक अमित शाह को बरी करने संबंधी डिफेंस के वकीलों की दलीलें सुनीं, जबकि सीबीआई की दलीलों को केवल 15 मिनट सुना गया. उन्होंने 17 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली और आदेश सुरक्षित रख लिया.”
लोया की मौत के करीब एक माह बाद 30 दिसंबर 2014 को गोसावी ने डिफेंस की इस दलील को पुष्ट किया कि सीबीआई की आरोपी को फंसाने के पीछे राजनीतिक मंशा है. इसके साथ ही उन्होंने अमित शाह को बरी कर दिया.
ठीक उसी दिन पूरे देश के टीवी परदे पर टेस्ट क्रिकेट से एमएस धोनी के संन्यास की खबर छायी हुई थी. जैसा कि बियाणी ने याद करते हुए बताया, “नीचे बस एक टिकर चल रहा था- अमित शाह निर्दोष साबित, अमित शाह निर्दोष साबित.”
लोया की मौत के करीब ढाई महीने बाद मोहित शाह शोक संतप्त परिवार के पास मिलने आए. मुझे लोया के परिवार के पास से उनके बेटे अनुज का लिखा एक पत्र मिला जो उनके मुताबिक उसने उसी दिन अपने परिवार के नाम लिखा था जिस दिन मुख्य न्यायाधीश आए थे. उस पर तारीख पड़ी है 18 फरवरी 2015 यानी लोया की मौत के 80 दिन बाद. अनुज ने लिखा था, “मुझे डर है कि ये नेता मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं और मेरे पास इनसे लड़ने की ताकत नहीं है.” उसने मोहित शाह के संदर्भ में लिखा था, “मैंने पिता की मौत की जांच के लिए उनसे एक जांच आयोग गठित करने को कहा था. मुझे डर है कि उनके खिलाफ हमें कुछ भी करने से रोकने के लिए वे हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं. हमारी जिंदगी खतरे में है.”
अनुज ने खत में दो बार लिखा था कि “अगर मुझे और मेरे परिवार को कुछ भी होता है तो उसके लिए इस साजिश में लिप्त चीफ जस्टिस मोहित शाह और अन्य लोग जिम्मेदार होंगे.”
मैं लोया के पिता से नवंबर 2016 में मिला. वे बोले, “मैं 85 का हो चुका हूं और मुझे अब मौत का डर नहीं है. मैं इंसाफ भी चाहता हूं लेकिन मुझे अपनी बच्चियों और उनके बच्चों की जान की बेहद फिक्र है.” बोलते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए. वे रह-रह कर उस पैतृक घर की दीवार पर टंगी लोया की तस्वीर की ओर देख रहे थे जिस पर अब माला थी.
आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस हमारे सबसे जरूरी डाक्यूमेंट होते हैं. अगर ये खो जाएं तो हमें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कई बार चोरी हुई हमारी आइडी का गलत इस्तेमाल हो जाता है, जिसके चलते हम कानूनी पचड़ों में भी फंस जाते हैं. अगर आपकी भी आईडी चोरी हो जाए या खो जाए तो सबसे पहले ये काम जरूर करें.
रजिस्टर कराएं एफआईआर
आईडी चोरी होने या खाने के बाद सबसे पहले एफआईआर दर्ज कराएं. आईडी चोरी होने पर आईटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया सकता है. पुलिस स्टेशन में मौजूद इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी आपकी एफआईआर दर्ज करेगा.
अगर कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने की स्थिति में नहीं है तो वह स्टेट पुलिस की वेबसाइट पर जाकर भी कंप्लेंट लिखा सकता है. वेबसाइट पर कंप्लेंट करने के बाद उसका प्रिंटआउट जरूर अपने पास रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर भविष्य में आप किसी तरह से पकड़े जाते हैं तो आपको पुलिस परेशान नहीं करेगी.
रिव्यू करें अपनी पर्सनल डिटेल्स
आईडी खोने के तुरंत बाद अपने बैंक और अन्य जगह पर भी शिकायत दर्ज कराएं और डिटेल्स को चेंज करने की कोशिश करें. इसमें आप अपना फोन नंबर और ईमेल आईडी चेंज कर सकते हैं एवं डेबिट-क्रेडिट कार्ड को ब्लौक करवा कर नया कार्ड बनवा सकते हैं.
हालांकि आधार कार्ड और पैन कार्ड की डिटेल्स को चेंज नहीं किया जा सकता है, लेकिन आप इनके लिए संबंधित अथौरिटी को भी अपनी शिकायत भेज सकते हैं.
साइबर क्राइम होती है आइडेंटिटी की चोरी
आइडेंटिटी की चोरी साइबर क्राइम के अंतर्गत आती है. यह तब होता है जब कोई और व्यक्ति आपके डाक्युमेंट्स का इस्तेमाल लोन, क्रेडिट कार्ड, बैंक अकाउंट, मोबाइल या गैस का कनेक्शन लेने के लिए करता है. इसके अलावा इन डाक्युमेंट्स का इस्तेमाल औनलाइन शौपिंग के लिए भी किया जाता है. आईटी एक्ट के सेक्शन 66सी के अंतर्गत आईडेंटिटी चोरी करने वाले व्यक्ति को 3 साल तक की सजा हो सकती है और 1 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.
मुंबई में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया (48) के परिवार को 1 दिसंबर 2014 की सुबह सूचना दी गई कि नागपुर में उनकी मौत हो गई है, जहां वे एक सहयोगी की बेटी की शादी में हिस्सा लेने गए हुए थे. लोया इस देश के सबसे अहम मुकदमों में एक 2005 के सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्याकांड की सुनवाई कर रहे थे. इस मामले में मुख्य आरोपी अमित शाह थे, जो सोहराबुद्दीन के मारे जाने के वक्त गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे और लोया की मौत के वक्त भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. मीडिया में खबर आई थी कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है.
उनकी मौत के बाद लोया के परिवार ने मीडिया से बात नहीं की थी, लेकिन नवंबर 2016 में लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी ने मुझसे संपर्क किया जब मैं पुणे गया हुआ था. उन्हें अपने अंकल की मौत की परिस्थितियों को लेकर मन में संदेह था. इसके बाद नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच मेरी उनसे कई मुलाकातें हुईं. इस दौरान मैंने उनकी मां अनुराधा बियाणी से बात की जो लोया की बहन हैं और सरकारी डॉक्टर हैं. इसके अलावा लोया की एक और बहन सरिता मांधाने व पिता हरकिशन से मेरी बात हुई. मैंने नागपुर के उन सरकारी कर्मचारियों से भी बात की जो लोया की मौत के बाद उनकी लाश से जुड़ी प्रक्रियाओं समेत पोस्टमार्टम का गवाह रहे थे.
इस आधार पर लोया की मौत से जुड़े कुछ बेहद परेशान करने वाले सवाल खड़े हुए जैसे, मौत के कथित विवरण में विसंगतियों से जुड़े सवाल, उनकी मौत के बाद अपनाई गई प्रक्रियाओं के बारे में सवाल और लाश परिवार को सौंपे जाने के वक्त उसकी हालत से जुड़े सवाल. इस परिवार ने लोया की मौत की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की मांग की थी, जो कभी नहीं हो सका.
30 नवंबर 2014 की रात 11 बजे लोया ने अपनी पत्नी शर्मिला को अपने मोबाइल से नागपुर से फोन किया. करीब 40 मिनट हुई बातचीत में वे दिन भर की अपनी व्यस्तताएं उन्हें बताते रहे. लोया अपनी एक सहकर्मी जज सपना जोशी की बेटी की शादी में हिस्सा लेने नागपुर गए थे. उन्होंने शुरुआत में नहीं जाने का आग्रह किया था, लेकिन उनके दो सहकर्मी जजों ने साथ चलने का दबाव बनाया. लोया ने पत्नी को बताया कि शादी से होकर वे आ चुके हैं और बाद में वे रिसेप्शन में गए. उन्होंने बेटे अनुज का हालचाल भी पूछा. उन्होंने पत्नी को बताया कि वे साथी जजों के संग रवि भवन में रुके हुए थे. यह नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित एक सरकारी वीआईपी गेस्टहाउस है.
लोया ने कथित रूप से यह आखिरी कॉल की थी और यही उनकी अपने परिवार के साथ हुई आखिरी कथित बातचीत भी थी. उनके परिवार को उनके निधन की खबर अगली सुबह मिली.
उनके पिता हरकिशन लोया से जब मैं पहली बार लातूर शहर के करीब स्थित उनके पैतृक गांव गाटेगांव में नवंबर 2016 में मिला, तब उन्होंने बताया था कि 1 दिसंबर 2014 को तड़के “मुंबई में उसकी पत्नी, लातूर में मेरे पास और धुले, जलगांव व औरंगाबाद में मेरी बेटियों के पास कॉल आया.” इन्हें बताया गया कि “बृज रात में गुजर गए, उनका पोस्टमार्टम हो चुका है और उनका पार्थिव शरीर लातूर जिले के गाटेगांव स्थित हमारे पैतृक निवास पर भेजा जा चुका है.” उन्होंने बताया, “मुझे लगा कि कोई भूचाल आ गया हो और मेरी जिंदगी बिखर गई.”
परिवार को बताया गया था कि लोया की मौत कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) से हुई थी. हरकिशन ने बताया, “हमें बताया गया था कि उन्हें सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उन्हें नागपुर के एक निजी अस्पताल दांडे हास्पिटल में ऑटोरिक्शा से ले जाया गया, जहां उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई.” लोया की बहन बियाणी दांडे हॉस्पिटल को “एक रहस्यमय जगह” बताती हैं और कहती हैं कि उन्हें “बाद में पता चला कि वहां ईसीजी यूनिट काम नहीं कर रही थी..” बाद में हरकिशन ने बताया, लोया को “मेडिट्रिना हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया”- शहर का एक और निजी अस्पताल- “जहां उन्हें पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया.”
अपनी मौत के वक्त लोया केवल एक ही मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे, जो सोहराबुद्दीन हत्याकांड था. उस वक्त पूरे देश की निगाह इस मुकदमे पर लगी हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आदेश दिया था कि इस मामले की सुनवाई को गुजरात से हटाकर महाराष्ट्र में ले जाया जाए. उसका कहना था कि उसे “भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए जरूरी है कि उसे राज्य से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए.” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसकी सुनवाई शुरू से लेकर अंत तक ही एक ही जज करेगा, लेकिन इस आदेश का उल्लंघन करते हुए पहले सुनवाई कर रहे जज जेटी उत्पट को 2014 के मध्य में सीबीआई की विशेष अदालत से हटा कर उनकी जगह लोया को लाया गया.
उत्पट ने 6 जून 2014 को अमित शाह को अदालत में पेश न होने को लेकर फटकार लगाई थी. अगली तारीख 20 जून को भी अमित शाह पेश नहीं हुए. उत्पट ने इसके बाद 26 जून की तारीख मुकर्रर की. सुनवाई से एक दिन पहले 25 जून को उनका तबादला हो गया. इसके बाद आए लोया ने 31 अक्टूबर 2014 को सवाल उठाया कि आखिर शाह मुंबई में होते हुए भी उस तारीख पर क्यों नहीं कोर्ट आए. उन्होंने अगली सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर तय की थी.
लोया की 1 दिसंबर को हुई मौत की खबर अगले दिन कुछ ही अखबारों में छपी और इसे मीडिया में उतनी तवज्जो नहीं मिल सकी. द इंडियन एक्सप्रेस ने “लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई” बताते हुए लिखा, “उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि लोया की मेडिकल हिस्ट्री दुरुस्त थी.” मीडिया का ध्यान कुछ वक्त के लिए 3 दिसंबर को इस ओर गया जब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद के बाहर इस मामले में जांच की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया, जहां शीत सत्र चल रहा था. अगले ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सीबीआई को एक पत्र लिखकर लोया की मौत पर आश्चर्य व्यक्त किया.
सांसदों के प्रदर्शन या रुबाबुद्दीन के खत का कोई नतीजा नहीं निकला. लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियों को लेकर कोई फॉलो-अप खबर मीडिया में नहीं चली.
लोया के परिजनों से कई बार हुई बातचीत के आधार पर मैंने इस बात को सिलसिलेवार ढंग से दर्ज किया कि सोहराबुद्दीन के केस की सुनवाई करते वक्त उन्हें किन हालात से गुज़रना पड़ा और उनकी मौत के बाद क्या हुआ. बियाणी ने मुझे अपनी डायरी की प्रति भी दी जिसमें उनके भाई की मौत से पहले और बाद के दिनों का विवरण दर्ज है. इन डायरियों में उन्होंने इस घटना के कई ऐसे आयामों को दर्ज किया है जो उन्हें परेशान करते थे. मैं लोया की पत्नी और बेटे के पास भी गया, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्हें अपनी जान का डर है.
धुले निवासी बियाणी ने मुझे बताया कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके पास एक कॉल आई. दूसरी तरफ कोई बार्डे नाम का व्यक्ति था जो खुद को जज कह रहा था. उसने उन्हें लातूर से कोई 30 किलामीटर दूर स्थित गाटेगांव निकलने को कहा, जहां लोया का पार्थिव शरीर भेजा गया था. इसी व्यक्ति ने बियाणी और परिवार के अन्य सदस्यों को सूचना दी थी कि लाश का पोस्टमार्टम हो चुका है और मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना है.
लोया के पिता आम तौर से गाटेगांव में रहते हैं लेकिन उस वक्त वे लातूर में अपनी एक बेटी के घर पर थे. उनके पास भी फोन आया था कि उनके बेटे की लाश गाटेगांव भेजी जा रही है. बियाणी ने मुझे बताया था, “ईश्वर बहेटी नाम के आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने मेरे पिता को बताया था कि वह लाश के गाटेगांव पहुंचने की व्यवस्था कर रहा है. कोई नहीं जानता कि उसे क्यों, कब और कैसे बृज लोया की मौत की खबर मिली.”
लोया की एक और बहन सरिता मांधाने औरंगाबाद में ट्यूशन सेंटर चलाती हैं और उस वक्त वे लातूर में थीं. उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास सुबह करीब 5 बजे बार्डे का फोन आया था यह बताने के लिए कि लोया नहीं रहे. उन्होंने बताया, “उसने कहा कि बृज नागपुर में गुजर गए हैं और हमें उसने नागपुर आने को कहा.” वे तुरंत लातूर के हॉस्पिटल अपने भतीजे को लेने निकल गईं जहां वह भर्ती था, लेकिन “हम जैसे ही अस्पताल से निकल रहे थे, ईश्वर बहेटी नाम का व्यक्ति वहां आ पहुंचा. मैं अब भी नहीं जानती कि उसे कैसे पता था कि हम सारदा हॉस्पिटल में थे.” मांधाने के अनुसार बहेटी ने उन्हें बताया कि वे रात से ही नागपुर के लोगों से संपर्क में हैं और इस बात पर जोर दिया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि लाश को एम्बुलेंस से गाटेगांव लाया जा रहा है.” उन्होंने कहा, “वह हमें अपने घर ले गया यह कहते हुए कि वह सब कुछ देख लेगा.” (इस कहानी के छपने के वक्त तक बहेटी को भेजे मेरे सवालों का जवाब नहीं आया था).
बियाणी के गाटेगांव पहुंचने तक रात हो चुकी थी- बाकी बहनें पहले ही पैतृक घर पहुंच चुकी थीं. बियाणी की डायरी में दर्ज है कि उनके वहां पहुंचने के बाद लाश रात 11.30 के आसपास वहां लाई गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि नागपुर से लाई गई लाश के साथ लोया का कोई भी सहकर्मी मौजूद नहीं था. केवल एम्बुलेंस का ड्राइवर था. बियाणी कहती हैं, ”यह चौंकाने वाली बात थी. जिन दो जजों ने उनसे आग्रह किया था कि वे शादी में नागपुर चलें, वे साथ नहीं थे. परिवार को मौत और पोस्टमार्टम की खबर देने वाले मिस्टर बार्डे भी साथ नहीं थे. यह सवाल मुझे परेशान करता है: आखिर इस लाश के साथ कोई क्यों नहीं था?” उनकी डायरी में लिखा है, ”वे सीबीआइ कोर्ट के जज थे. उनके पास सुरक्षाकर्मी होने चाहिए थे और कायदे से उन्हें लाया जाना चाहिए था.”
लोया की पत्नी शर्मिला और उनकी बेटी अपूर्वा व बेटा अनुज मुंबई से गाटेगांव एकाध जजों के साथ आए. उनमें से एक ”लगातार अनुज और दूसरों से कह रहा था कि किसी से कुछ नहीं बोलना है.” बियाणी ने मुझे बताया, “अनुज दुखी था और डरा हुआ भी था, लेकिन उसने अपना हौसला बनाए रखा और अपनी मां के साथ बना रहा.”
बियाणी बताती हैं कि लाश देखते ही उन्हें दाल में कुछ काला जान पड़ा. उन्होंने मुझे बताया, “शर्ट के पीछे गरदन पर खून के धब्बे थे.” उन्होंने यह भी बताया कि उनका चश्मा गले के नीचे था. मांधाने ने मुझे बताया कि लोया का चश्मा “उनकी देह के नीचे फंसा हुआ था.”
उस वक्त बियाणी की डायरी में दर्ज एक टिप्पणी कहती है, “उनके कॉलर पर खून था. उनकी बेल्ट उलटी दिशा में मोड़ी हुई थी. पैंट की क्लिप टूटी हुई थी. मेरे अंकल को भी महसूस हुआ था कि कुछ संदिग्ध है.” हरकिशन ने मुझे बताया, “उसके कपड़ों पर खून के दाग थे.” मांधाने ने बताया कि उन्होंने भी “गरदन पर खून” देखा था. उन्होंने बताया कि “उनके सिर पर चोट थी और खून था… पीछे की तरफ” और “उनकी शर्ट पर खून के धब्बे थे.” हरकिशन ने बताया, “उसकी शर्ट पर बाएं कंधे से लेकर कमर तक खून था.”
नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट हालांकि “कपड़ों की हालत- पानी से भीगा, खून से सना या क़ै अथवा फीकल मैटर से गंदा” के अंतर्गत हस्तलिखित एंट्री दर्ज करती है- “सूखा”.
बियाणी को लाश की स्थिति संदिग्ध लगी, क्योंकि एक डॉक्टर होने के नाते “मैं जानती हूं कि पीएम के दौरान खून नहीं निकलता क्योंकि हृदय और फेफड़े काम नहीं कर रहे होते हैं.” उन्होंने कहा कि दोबारा पोस्टमार्टम की मांग भी उन्होंने की थी, लेकिन वहां इकट्ठा लोया के दोस्तों और सहकर्मियों ने हमें हतोत्साहित किया, यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है.
हरकिशन बताते हैं कि परिवार तनाव में था और डरा हुआ था, लेकिन लोया की अंत्येष्टि करने का उन पर दबाव बनाया गया.
कानूनी जानकार कहते हैं कि यदि लोया की मौत संदिग्ध थी- यह तथ्य कि पोस्टमार्टम का आदेश दिया गया, खुद इसकी पुष्टि करता है- तो एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए थी और एक मेडिको-लीगल केस दायर किया जाना चाहिए था. पुणे के एक वरिष्ठ वकील असीम सरोदे कहते हैं, “कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक अपेक्षा की जाती है कि पुलिस विभाग मृतक के तमाम निजी सामान को जब्त कर के सील कर देगा, पंचनामे में उनकी सूची बनाएगा और जस का तस परिवार को सौंप देगा.” बियाणी कहती हैं कि परिवार को पंचनामे की प्रति तक नहीं दी गई.
लोया का मोबाइल फोन परिवार को लौटा दिया गया, लेकिन बियाणी कहती हैं कि बहेटी ने उसे लौटाया, पुलिस ने नहीं. वे बताती हैं, “हमें तीसरे या चौथे दिन उनका मोबाइल मिला. मैंने तुरंत उसकी मांग की थी. उसमें उनकी कॉल और बाकी चीजों का विवरण होता. हमें सब पता चल गया होता अगर वह मिल जाता. और एसएमएस भी. इस खबर के एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था, “सर, इन लोगों से बचकर रहिए.’ वह एसएमएस फोन में था. बाकी सब कुछ डिलीट कर दिया गया था.”
बियाणी के पास लोया की मौत वाली रात और अगली सुबह को लेकर तमाम सवाल हैं. उनमें एक सवाल यह था कि लोया को ऑटोरिक्शा में क्यों और कैसे अस्पताल ले जाया गया, जबकि रवि भवन से सबसे करीबी ऑटो स्टैंड दो किलोमीटर दूर है. बियाणी कहती हैं, “रवि भवन के पास कोई ऑटो स्टैंड नहीं है और लोगों को तो दिन के वक्त भी रवि भवन के पास ऑटो रिक्शा नहीं मिलता. उनके साथ के लोगों ने आधी रात में ऑटोरिक्शा का इंतजाम कैसे किया होगा?”
बाकी सवालों के जवाब भी नदारद हैं. लोया को अस्पताल ले जाते वक्त परिवार को सूचना क्यों नहीं दी गई? उनकी मौत होते ही खबर क्यों नहीं की गई? पोस्टमार्टम की मंजूरी परिवार से क्यों नहीं ली गई या फिर प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही क्यों नहीं सूचित कर दिया गया कि पोस्टमार्टम होना है? पोस्टमार्टम की सिफारिश किसने की और क्यों? आखिर लोया की मौत के बारे में ऐसा क्या संदिग्ध था कि पोस्टमार्टम का सुझाव दिया गया? दांडे अस्पताल में उन्हें कौन सी दवा दी गई? क्या उस वक्त रवि भवन में एक भी गाड़ी नहीं थी लोया को अस्पताल ले जाने के लिए, जबकि वहां नियमित रूप से मंत्री, आईएएस, आईपीएस, जज सहित तमाम वीआईपी ठहरते हें? महाराष्ट्र असेंबली का शीत सत्र नागपुर में 7 दिसंबर से शुरू होना था और सैकड़ों अधिकारी पहले से ही इसकी तैयारियों के लिए वहां जुट जाते हैं. रवि भवन में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ठहरे बाकी वीआईपी कौन थे?” वकील सरोदे कहते हैं, “ये सारे सवाल बेहद जायज़ हैं. दांडे अस्पताल में लोया को दी गई चिकित्सा की सूचना परिवार को क्यों नहीं दी गई? क्या इन सवालों के जवाब से किसी के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है?”
बियाणी कहती हैं, “ऐसे सवाल अब भी परिवार, मित्रों और परिजनों को परेशान करते हैं.”
वे कहती हैं कि उनका संदेह और पुख्ता हुआ जब लोया को नागपुर जाने के लिए आग्रह करने वाले जज परिवार से मिलने उनकी मौत के “डेढ़ महीने बाद” तक नहीं आए. इतने दिनों बाद जाकर परिवार को लोया के आखिरी क्षणों का विवरण जानने को मिल सका. बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने परिवार को बताया कि लोया को सीने में दर्द रात साढ़े बारह बजे हुआ था, फिर वे उन्हें दांडे अस्पताल एक ऑटोरिक्शा में ले गए, और वहां “वे खुद ही सीढ़ी चढ़कर ऊपर गए और उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई. उन्हें मेडिट्रिना अस्पताल ले जाया गया जहां पहुंचते ही उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.”
इसके बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं. बियाणी ने बताया, “हमने दांडे अस्पताल में दी गई चिकित्सा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वहां के डॉक्टरों और स्टाफ ने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया.”
मैंने लोया की पोस्टमॉर्टम निकलवाई जो नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में की गई थी. यह रिपोर्ट अपने आप में कई सवालों को जन्म देती है.
रिपोर्ट के हर पन्ने पर सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर, सदर थाना, नागपुर के दस्तखत हैं, साथ ही एक और व्यक्ति के दस्तखत हैं जिसने नाम के साथ लिखा है “मैयाताजा चलतभाऊ” यानी मृतक का चचेरा भाई. जाहिर है, पोस्टमार्टम के बाद इसी व्यक्ति ने लाश अपने कब्जे में ली होगी. लोया के पिता कहते हैं, ”मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नागपुर में नहीं है. किसने इस रिपोर्ट पर साइन किया, यह सवाल भी अनुत्तरित है.”
इसके अलावा, रिपोर्ट कहती है कि लाश को मेडिट्रिना अस्पताल से नागपुर मेडिकल कॉलेज सीताबर्दी पुलिस थाने के द्वारा भेजा गया और उसे लेकर थाने का पंकज नामक एक सिपाही आया था, जिसकी बैज संख्या 6238 है. रिपोर्ट के मुताबिक लाश 1 दिसंबर 2014 को दिन में 10.50 पर लाई गई, पोस्टमार्टम 10.55 पर शुरू हुआ और 11.55 पर खत्म हुआ.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस के अनुसार लोया को “1/12/14 की सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ और 6.15 बजे मौत हुई.” इसमें कहा गया है कि “पहले उन्हें दांडे अस्पताल ले जाया गया और फिर मेडिट्रिना अस्पताल लाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया.”
रिपोर्ट में मौत का वक्त सबह 6.15 बजे बेमेल जान पड़ता है क्योंकि लोया के परिजनों के मुताबिक उन्हें सुबह 5 बजे से ही फोन आने लग गए थे. मेरी जांच के दौरान नागपुर मेडिकल कॉलेज और सीताबर्दी थाने के दो सूत्रों ने बताया कि उन्हें लोया की मौत की सूचना आधी रात को ही मिल चुकी थी और उन्होंने खुद रात में लाश देखी थी. उनके मुताबिक पोस्टमार्टम आधी रात के तुरंत बाद ही कर दिया गया था. परिवार के लोगों को आए फोन के अलावा सूत्रों के दिए विवरण पोस्टमार्टम रिपोर्ट के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि लोया की मौत का समय सुबह 6.15 बजे था.
मेडिकल कॉलेज के सूत्र, जो पोस्टमार्टम जांच का गवाह है, ने मुझे यह भी बताया कि वह जानता था कि ऊपर से आदेश आया था कि “इस तरह से लाश में चीरा लगाओ कि पीएम हुआ जान पड़े और फिर उसे सिल दो.”
रिपोर्ट मौत की संभावित वजह “कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी” को बताती है. मुंबई के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्ट हसमुख रावत के मुताबिक “आम तौर से बुढ़ापे, परिवार की हिस्ट्री, धूमपान, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह आदि के कारण कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी होती है.” बियाणी कहती हैं कि उनके भाई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था. वे कहती हैं, “बृज 48 के थे. हमारे माता-पिता 85 और 80 साल के हैं और वे स्वस्थ हैं. उन्हें दिल की बीमारी की कोई शिकायत नहीं है. वे केवल चाय पीते थे, बरसों से दिन में दो घंटे टेबल टेनिस खेलते आए थे, उन्हें न मधुमेह था न रक्तचाप.”
बियाणी ने मुझे बताया कि उन्हें अपने भाई की मौत की आधिकारिक मेडिकल वजह विश्वास करने योग्य नहीं लगती. वे कहती हैं, “मैं खुद एक डॉक्टर हूं और एसिडिटी हो या खांसी, छोटी सी शिकायत के लिए भी बृज मुझसे ही सलाह लेते थे. उन्हें दिल के रोग की कोई शिकायत नहीं थी और हमारे परिवार में भी इसकी कोई हिस्ट्री नहीं है.”
गैजेट्स हमारी लाइफ को स्मार्ट बना रहे हैं. छोटे-छोटे गैजेट्स हमारी बड़ी-बड़ी मुश्किलों को चुटकियों में आसान कर रहे हैं. बात चाहे हेल्थ की हो, होम सिक्योरिटी की या फिर अपने टाइम को मैनेज करने की, ये सब काम गैजेट्स शानदार तरीके से कर रहे हैं. हम आपको कुछ ऐसे स्मार्ट गैजेट्स के बारे में बता रहे हैं, जो कि आपके ड्राइविंग एक्सपीरियंस को खास बनाने के साथ कार को देंगे स्मार्ट लुक.
स्मार्टफोन माउंट
आजकल ज्यादातर लोग अपनी कार में स्मार्टफोन माउंट का इस्तेमाल करते हैं. ड्राइव करते समय नेविगेशन का इस्तेमाल करने के लिए ये डिवाइस सबसे अच्छा है. इसके अलावा आप अपने स्मार्टफोन को भी इसमें रख सकते हैं.
कार कौफी मेकर
रोड ट्रिप को लेकर लोग अक्सर काफी रोमांचित रहते हैं. फैमिली या पुराने दोस्तों के साथ लौन्ग ड्राइव में अगर आपको गाड़ी के अंदर गरमा-गरम कौफी मिल जाए तो शायद इससे बेहतर और कुछ नहीं. हैंडप्रेसो कौफी मेकर एक ऐसा ही स्मार्ट गैजेट है, जिसकी मदद से आप सफर के दौरान कार में कौफी बनाकर पी सकते हैं. कम पावर वाला यह कौफी मेकर आसानी से आपकी कार के 12V सौकेट से अटैच होकर आपको स्ट्रौन्ग कौफी बनाने की सुविधा देता है.
जंप स्टार्ट किट
अचानक आपकी कार की बैट्री में खराबी आ जाए और कार बंद पड़ जाए तो ऐसे वक्त में जंप स्टार्ट किट की मदद से कार को स्टार्ट कर सकते हैं. जंप स्टार्ट किट दरअसल एक बैट्री की तरह होती है जिसकी मदद से झटके से गाड़ी को स्टार्ट करने में मदद मिलती है.
व्हीकल ट्रैकर
महंगा स्मार्टफोन खो जाने पर उसे ट्रेस करके ढूंढ निकालने की कुछ संभावनाएं होती हैं, लेकिन कभी आपकी कार खो या चोरी हो जाए तब क्या? ऐसे में एक स्मार्ट गैजेट ऐसा है जो आपकी मदद कर सकता है. व्हीकल ट्रैकर ऐसा ही डिवाइस है, जो कार के औन बोर्ड डायग्नोस्टिक पोर्ट में इनस्टाल किया जाता है. जिसके बाद इसे एक ऐप के जरिए औपरेट किया जाता है, जिसे यूजर अपने स्मार्टफोन में इनस्टाल कर सकता है.
GPS सिस्टम बेस्ड यह गैजेट कार की लोकेशन को ट्रेस करके उसकी सही स्थिति बताएगा. इस स्मार्ट गैजेट की मदद से कार चोरी हो जाने पर उसकी लोकेशन आसानी से पता लगाई जा सकती है.
GPS ट्रैकर
GPS ट्रैकर एक बहुत ही काम का गैजेट है जो आपके फोन से कनेक्ट होकर हमेशा लोकेशन बताता रहता है. इतना ही नहीं अगर गाड़ी चोरी भी हो जाती है तब यह कार को ट्रेस करने में काफी मदद करता है.
ब्लाइंड स्पौट अलर्ट
यह एक उपयोगी गैजेट है, कार के साइड मिरर में एक लाइट लगी होती है. जब कोई आपके ब्लाइंड स्पौज में आता है तब मिरर में लगी लाइट फ्लैश करती है पुरानी कारों में भी इस फीचर को ऐड किया जा सकता है.
इन-कार एंटरटेनमेंट सिस्टम
कम बजट वाली गाड़ियों को खरीदते समय हमें कई बार कुछ फीचर्स से समझौता करना पड़ता है, जिनकी हमें कई बार बहुत जरूरत पड़ती है. अगर आप म्यूजिक और मूवी के शौकीन हैं और अपनी कार में एंटरटेनमेंट स्क्रीन को मिस करते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप आसान तरीके से एक पोर्टेबल स्क्रीन अपनी कार में जोड़ सकते हैं. एक्सटर्नल स्क्रीन को सिर्फ 12V के पावर सौकेट की जरूरत होगी, जो कि किसी भी कार में होता है. यह एक्सटर्नल एक छोटे टैब की तरह आपकी कार में आसानी से अटैच हो सकता है. इन-कार एंटरटेनमेंट सिस्टम माइक्रो SD कार्ड और यूएसबी पोर्ट के साथ आता है. ब्लूटूथ और 3.5mm औडियो जैक जैसे फीचर्स के साथ आप लंबी ड्राइव के दौरान शानदार म्यूजिक का मज़ा ले सकते हैं.
WiFi हौटस्पौट
अगर आप टेकसेवी हैं. इंटरनेट के बगैर आपका गुजारा नहीं हो सकता है तो एक डिवाइस ऐसा है जो कि आपको कार में भी हाई-स्पीड इंटरनेट देगा. बाजार में ऐसे कई पोर्टेबल डिवाइस उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी कार में अटैच करके हौट स्पौट की तरह आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. किसी लौन्ग ड्राइव, या पिकनिक ट्रिप में जाते समय कार में लगे ये पोर्टेबल वाई-फाई डिवाइस काफी काम आ सकते हैं. एक बार में करीब 10-15 गैजेट्स इनमें आसानी से कनेक्ट किए जा सकते हैं.
तो अगली बार जब आप फैमिली या दोस्तों के साथ लौन्ग ट्रिप प्लान करें तो ये स्मार्ट गैजेट्स अपनी कार में लगाना बिल्कुल न भूलें.
कभी-कभी क्रिकेट में खिलाड़ी कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं. कुछ कामयाब भी होते हैं, तो कुछ नाकाम. लेकिन इनमें से कुछ ‘सुपर से ऊपर’ करने की कोशिश में मजाक का विषय भी बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही श्रीलंका के पूर्व टेस्ट क्रिकेटर चमारा सिल्वा के साथ हुआ.
दरअसल, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में चमारा सिल्वा घरेलू मैच के दौरान एक अजीबो-गरीब शौट खेल बैठे. जिसके बाद उनका अनोखा शौट खेलता हुआ यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी के साथ वायरल हो गया.
श्रीलंका के दो बड़े क्लबों एमएएस यूनीशेला और तीजे लंका के बीच मैच खेला जा रहा था. सिल्वा बल्लेबाजी कर रहे थे लेकिन तभी अचान से वो शौट खेलने के लिए विकेट के पीछे चले गए. बौल बल्ले तक आने से पहले ही स्टंप पर टकरा गई और वो बोल्ड हो गए.
बता दें कि पिछले साल सितंबर में घरेलू मैचों के दौरान नियमों के उल्लंघन के आरोप में चमारा सिल्वा पर दो साल के लिए बैन लगा दिया गया था. इसके बाद उन्हें बस घरेलू मैच खेलने की ही छूट दी गई थी. चमारा सिल्वा श्रीलंका के लिए 75 वनडे और 16 टी-20 मुकाबले खेल चुके हैं. उनके खाते में दो वनडे शतक भी हैं.
रानी पद्मिनी पर बननेवाली फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जहां एक ओर पद्मावती के सितारों और मेकर को कड़ी सुरक्षा दी गई है, वहीं लोगों में इसे लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है. बता दें कि 1540 में कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ लिखा, जिसमें बताया गया कि खिलजी के आक्रमण के बाद रानी पद्मिनी ने जौहर किया था, इसके अलावा 1589 में हेमरतन की गौरा बादल की चौपाई में भी पद्मावती के जौहर की कहानी बताई गई है.
वहीं जब भंसाली ने अपनी फिल्म की कहानी में पद्मावती को नाचते हुए दिखाया, तो लोगों का आक्रोश फूट पड़ा. इसके बाद तो एक के बाद एक विवाद इस घटनाक्रम में जुड़ता ही चला गया. आइये जानते हैं क्या है ये पद्मावती विवाद.
थप्पड़ से शुरू हुआ किस्सा
27 जनवरी को जयपुर के जयगढ़ किले में जब पद्मावती की शूटिंग चल रही थी, तब करणी सेना ने वहां हमला बोल दिया था, जिसके बाद धक्का-मुक्की और मारपीट शुरू हो गई थी. बात यहां तक आ पहुंची कि डायरेक्टर भंसाली को मार खानी पड़ी.
आग के हवाले किया सेट
इस मारपीट के बाद जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म की शूटिंग कोल्हापुर में शिफ्ट की, तो वहां भी उन्हें नहीं बक्शा गया और 14 मार्च की रात 40-50 लोगों की भीड़ ने पेट्रोल डालकर फिल्म का सेट जला दिया, जिसमें लाखों रुपयों का नुकसान हो गया.
स्टिंग ओपरेशन से हुआ खुलासा
26 सितंबर को एक न्यूज चैनल ने स्टिंग औपरेशन से पद्मावती को लेकर एक और खुलासा किया, इसमें श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी और मुंबई संयोजक उम्मेद सिंह को फिल्म का विरोध न करने की एवज में डेढ़ करोड़ रुपए मांगते दिखाया गया.
कई राज्यों में पहुंचा विवाद
इसके बाद पद्मावती विवाद राजस्थान में न रहकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक तक पहुंच गया. इन राज्यों में भी पद्मावती का विरोध जोरो-शोरों से होने लगा.
पद्मावती पर सियासत गर्म
इस फिल्म को लेकर सियासत इस कदर गर्म हुई कि देश के वरिष्ठ नेताओं ने इसके खिलाफ बयानबाजी कर दी. इसमें राजनाथ सिंह, उमा भारती, लालू प्रसाद यादव, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत कई नेता शामिल हुए.
राजघरानों की नाराजगी का दबाव
पद्मावती के निर्माताओं को न सिर्फ करणी की, बल्कि राजस्थान के राजघरानों की भी नाराजगी उठानी पड़ी. इन घरानों ने भंसाली से मांग की, फिल्म की रिलीज से पहले उन्हें फिल्म दिखाई जाए.
राजपूती घरानों ने किया विरोध
यह मामला इस कदर तूल पकड़ चुका है कि राजपूतों ने चितौड़गढ़ का किला बंद रखकर प्रदर्शन किया.
नाक काटने की दी गई धमकी
पद्मावती के प्रमोशन में ढिलाई न देखकर करणी सेना के महिपाल मकराना ने विवादित बयान जारी किया कि ‘राजपूत कभी महिलाओं पर हाथ नहीं उठाते, लेकिन जरूरत पड़ी तो हम दीपिका पादुकोण का वही हाल करेंगे, जो लक्ष्मण ने सूर्पणखा का किया था.’
विवादित बयानों की आई बाढ़
इसके बाद तो जैसे लोगों ने दीपिका और संजय लीला भंसाली को नुकसान पहुंचाने की कसम खा ली. संभल में प्रोटेस्टर्स ने पोस्टर लगाए, जिसमें उन्होंने संजय लीला भंसाली का सिर काटने वाले को 50 लाख इनाम की घोषणा की. वहीं पहले दीपिका की नाक काटने के लिए 5 करोड़ और बाद में उनका सिर काटने के लिए 1 करोड़ का इनाम देने की घोषणा की गई.
बढ़ाई गई पुलिस सुरक्षा
लोगों के हिंसक बर्ताव को देखते हुए महाराष्ट्र पुलिस पद्मावती के स्टार्स और भंसाली की मदद करने पहुंची और उन्हें कड़ी सुरक्षा दी गई. यहां तक कि दीपिका पादुकोण के बंगलुरु वाले मकान में, जहां उनके माता-पिता रहते हैं, वहां भी सुरक्षा तिगुनी कर दी गई.
साइन की जा रही है पिटीशन
दीपिका पादुकोण को मिलने वाली इन धमकियों के बाद बौलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री शबाना आजमी ने एक पिटीशन बनाई, जिसमें उन्होंने मोदी जी से इन सभी लोगों के खिलाफ कारवाई करने की मांग की, जो महिलाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए करोड़ों का इनाम रखने की घोषणा कर रहे हैं. ये पिटीशन साइन करने के लिए बौलीवुड की सभी अभिनेत्रियां एकजुट होकर सामने आईं हैं और अब ये पिटीशन जल्द से जल्द प्रधानमंत्री मोदी को दे दी जाएगी.
आज स्मार्टफोन हमारी जरूरत बन चुकी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि स्मार्टफोन के बिना आज एक दिन भी गुजारना मुश्किल है. लेकिन स्मार्टफोन यूजर्स को सबसे बड़ी टेंशन बैटरी खत्म होने की होती है।
अगर आप भी बार-बार अपने स्मार्टफोन की बैटरी खत्म होने से परेशान हैं तो एक बार इन ऐप्स को चेक कर लीजिए. यदि इनमें से किसी ऐप का काम नहीं हो तो उसे तुरंत हटा दीजिए. ये ऐप्स आपके फोन की बैटरी को सबसे ज्यादा बर्बाद करते हैं.
कैन्डी क्रश सागा
इस गेम ने जितना आपका समय बर्बाद किया है, उतनी ही आपके फोन की बैटरी भी बर्बाद की है. यह गेमिंग ऐप आपके मोबाइल का सबसे ज्यादा बैटरी बर्बाद करता है.
व्हाट्सऐप
क्या आपको पता है कि आपका सबसे अच्छा दोस्त आपके स्मार्टफोन की बैटरी के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक है?
फेसबुक
वैसे तो फेसबुक को आप अपने फोन से नहीं हटा सकते लेकिन इसकी जगह आप फेसबुकर लाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं. बैटरी खत्म करने में फेसबुक ऐप का भी बड़ा हाथ है.
ओएलएक्स
ओएलएक्स और क्विकर जैसे फ्री क्लासिफाइड ऐप फोन की बैटरी बहुत बर्बाद करते हैं. ये ऐप्स लगातार आपकी लोकेशन को ट्रैक करते हैं. अगर जरूरत ना हो तो ऐसे ऐप भी फोन में रखने से परहेज करें.
पेट रेस्क्यू सागा
बैटरी खपत करने के मामले में दूसरा नाम इस लोकप्रिय गेम का है. एवीजी ने इस ऐप को भी बैटरी, स्टोरेज और डेटा कन्जप्शन के हिसाब से एक खतरनाक ऐप माना है.
लुकआउट सिक्यौरिटी ऐंड ऐंटीवाइरस
आपके स्मार्टफोन को वाइरस से बचाने का दावा करने वाला यह ऐप फोन की बैटरी पर हमला करने में काफी आगे है.
राहुल गांधी कोई युवा तो नहीं रह गए हैं, पर जब राजनीति में जगह ही 65-70 साल वालों को मिले, तो राहुल को 47 की आयु में पुरानी पार्टी की बागड़ोर संभाल लेना थोड़ा सुकून देने वाला है. भाजपा व दूसरे लोग इसे विरासत की राजनीति कहते हैं. पर यह आरोप आधा ही सही है. अखिलेश यादव, उद्घव ठाकरे, विजय गोयल, स्टालिन जैसे बीसियों ऐसे युवा नेता हैं, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है, पर उन में से हरेक को अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है.
1965 में इंदिरा गांधी को लालबहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद मिल गया, पर असली शक्ति भारी संघर्ष के बाद ही मिली. सोनिया गांधी को 1998 में सीताराम केसरी से लड़ कर कांग्रेस का अध्यक्ष पद मिला. राहुल गांधी को अध्यक्ष पद न मिले और कांग्रेस किसी नेता के अभाव में छिन्नभिन्न हो जाए, इस की भरपूर कोशिश भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी को पप्पू कह कर मजाक उड़ा कर की.
राहुल गांधी ने हिचकिचाहट के बाद खुद को अध्यक्ष पद के लिए तैयार किया. गुजरात चुनावों में (परिणाम चाहे जो भी हों) उन्होंने कोई कसर न छोड़ी और बीमार होती मां सोनिया गांधी के बिना अकेले नरेंद्र मोदी के पक्के गढ़ पर हमला ही नहीं किया, उस की चूलें हिला दीं. चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सकते में डाल दिया. नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी के कारण उस जीएसटी कानून में बदलाव लाने पड़े, जिसे वे वेद वाक्य मान कर चल रहे थे. एक युवा ने पंडितों के बलदूते चल रही वृद्घों की पार्टी को हिला कर रख दिया.
राहुल गांधी की ही हिम्मत थी कि उन्होंने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव आदि से हाथ मिला कर युवाओं का एक नया गठजोड़ तैयार कर लिया है, जो धर्म की पुरानी कढ़ाई पर रीति रिवाजों के काढ़े को पकाने की लगभग सफल कोशिश कर चुके हैं और आधे से ज्यादा देश को मिला भी चुके हैं. राहुल गांधी ने एक समानांतर पार्टी ही नहीं गठजोड खड़ा कर दिया और कांग्रेस को नया लुक दे दिया.
भारत दूसरे देशों की अपेक्षा एक युवा देश है और इस का नेतृत्व उन हाथों में होना चाहिए जो नया सोचते हैं. फैसले तर्क और विमर्श पर हों, इतिहास की गर्त में जा चुके अपठनीय ग्रंथों के आधार पर नहीं. पुराने का महत्व है, उन की छाया हमारे ऊपर रहती है, पर वह हमारा अकेला मार्गदर्शक न हो. आज युग विज्ञान की नई खोजों को घर घर पहुंचाने का है, विज्ञान के सहारे सरकार को घर घर पर निगरानी करने का नहीं. राहुल गांधी ने अब तक जो कहा है उस से नहीं लगता कि वह नियंत्रण और एक तरफा कथन में विश्वास रखते हैं. अपनी मीटिंगों में खुल कर आम आदमियों से बात करते हैं, जबकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह (बाकी तो हुक्म बजाने वाले हैं) भाषण देते हैं. नरेंद्र मोदी प्रवचनकर्ताओं की तरह आस्था पर जोर देते हैं, जो मैं ने कहा वही सच है. राहुल गांधी कहते हैं कि विद्वान तो सब जगह हैं, उन की सुनने में कोई हर्ज नहीं.
विरासत के नियमों से कांग्रेस से ज्यादा तो भारतीय जनता पार्टी बंधी है. कांग्रेस पर जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुई सत्ता की कड़ी का आरोप लग सकता है, पर भारतीय जनता पार्टी तो काल्पनिक हजारों सालों से पूजे जा रहे राम, कृष्ण, विष्णु आदि की विरासत के बोझ से तली है. डायनेस्टी का हल्ला मचाने वाले डायनासोरों के समय की सोच के बोझ से दबे पड़े हैं.
चीन की स्मार्टफोन निर्माता कंपनी शाओमी ने अपने प्रोडक्ट लाइअप का विस्तार किया है. कंपनी ने भारत में अपने दो पावरबैंक्स लौन्च किए हैं. पहला 20000mAh Mi Power Bank 2i और दूसरा 10000mAh Mi Power Bank 2i है.
ये दोनों ही पावरबैंक्स नोएडा प्लांट में बनाए गए हैं. कंपनी ने दावा किया है कि ये पावरबैंक्स 9 स्तर की प्रोडक्शन टेस्टिंग और 3 स्टेज के इंस्पेक्शन से गुजरे हैं.
शाओमी पावरबैंक्स की कीमत
10000mAh Mi Power Bank 2i की कीमत 799 रुपये है. तो वहीं, 20000mAh Mi Power Bank 2i की कीमत 1,499 रुपये है. इन्हें ई-कौमर्स वेबसाइट अमेजन और फ्लिपकार्ट के अलावा कंपनी की आधिरकारिक वेबसाइट Mi.com समेत औफलाइन स्टोर्स पर उपलब्ध कराया जाएगा. इसे 23 नवंबर से औनलाइन खरीदा जा सकेगा और दिसंबर से औफलाइन स्टोर्स पर उपलब्ध कराया जाएगा.
एमआई 10000mAh एमआई पावरबैंक 2i
यह ड्यूल यूएसबी आउटपुट और टू वे क्विक चार्ज के साथ आता है. इसका मतलब इस पावरबैंक से एक समय पर दो डिवाइस को चार्ज किया जा सकता है. लुक की बात करें तो यह डिवाइस अल्ट्रा स्लिम और हल्की है. इस पावरबैंक की वास्तविक आउटपुट कैपेसिटी 6500 एमएएच है और यह 90 फीसद से ज्यादा कनवर्जन रेट उपलब्ध कराता है. यह 5V/2A, 9V/2A and 12V/1.5A चार्जिंग के साथ कंपेटिबल है जो यूजर्स को उनका लैपटौप, स्मार्टफोन और टैबलेट कनेक्ट और चार्ज करने की अनुमति देता है.
यह ड्यूल यूएसबी आउटपुट का सपोर्ट करता है. इसे स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स और लैपटौप्स को चार्ज करने के लिए बनाया गया है. अगर यूजर एक पोर्ट का इस्तेमाल कर चार्जिंग करता है तो यह पावरबैंक क्विक चार्ज 3.0 को सपोर्ट करेगा.
आपको बता दें कि इनके अलावा भी भारत में 1,000 रुपये से कम कीमत में अन्य पावरबैंक्स उपलब्ध हैं.
इंटेक्स आइटी पावर बैंक 11K 11000mAh
इसकी कीमत 799 रुपये है। इसका वजन 280 ग्राम है. इसमें 11000 एमएएच बैटरी क्षमता से लैस लिथियम-आयन बैटरी दी गई है. साथ ही माइक्रो कनेक्टर भी दिया गया है. वहीं, इसमें 5V 1A, 5V2A और 5V 2A आउटपुट दिए गए हैं.
मोटोरोला P1500 पावर पैक माईक्रो
इसकी कीमत 740 रुपये है. इसका वजन 50 ग्राम है. इसमें 1500 एमएएच बैटरी क्षमता से लैस लिथियम पौलिमर बैटरी दी गई है. साथ ही माइक्रो कनेक्टर भी दिया गया है. वहीं, इसमें बार शेपर, इनपुट 1ए, आउटपुट पावर 1ए जैसे फीचर्स दिए गए हैं.