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किस तारीख को करेंगे विराट और अनुष्का शादी, 12 या 18 दिसंबर

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की शादी की अफवाहों का बाजार इस समय गर्म है. हर दिन शादी के संबंध में नई नई अटकलें लगाई जा रही हैं. इन्हीं चर्चाओं के बीच अनुष्का शर्मा अपने परिवार के साथ इटली के लिए रवाना हो गई हैं. माना जा रहा है कि इन दोनों की शादी इटली में होगी. गुरुवार रात को मीडिया ने अनुष्का को मुंबई के छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट पर स्पौट किया. एयरपोर्ट पर अनुष्का खुद पहले निकलीं, इसके बाद उनके परिवार के लोग एयरपोर्ट से एंटर करते दिखें.

अनुष्का के परिवार को मीडिया के कैमरों ने उन्हें घेर लिया. लेकिन उन्होंने कैमरे पर कुछ भी नहीं कहा. हालांकि शादी के संबंध में अब तक कोई भी औफिशियल डेट सामने नहीं आई है. लेकिन अटकलें हैं कि ये दोनों जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. अब अटकलें तारीखों को लेकर लगाई जा रही हैं.

अभी कहा जा रहा है कि दोनों 12 तारीख को शादी करेंगे. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि ये तारीख अनुष्का के लिए लकी है. वहीं 18 तारीख का विराट के साथ खास रिश्ता है. आमिर खान के साथ एक कार्यक्रम में विराट ने खुद इस बात को स्वीकार किया था. वह 18 नंबर की जर्सी पहनते हैं और 18 तारीख को ही उनके पिता का देहांत हुआ था.

क्या है 12 और 18 का राज

12 दिसंबर को शादी का अनुमान लगाने वाले कह रहे हैं कि अनुष्का के लिए 12 दिसंबर लकी है. 9 साल पहले 12 दिसंबर को अनुष्का की पहली फिल्म रब ने बना दी जोड़ी रिलीज हुई थी. वह 12 दिसंबर को लकी मानती हैं. इसलिए हो सकता है कि उनकी शादी 12 दिसंबर को हो. वहीं 18 तारीख विराट के लिए खास है. इस नंबर से वह अपना नाता बता चुके हैं, इसलिए संभव है कि शादी 18 को हो.

अनुष्का के पड़ोसियों को मिला निमंत्रण

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अनुष्का के पड़ोसियों को शादी का निमंत्रण भी मिल गया है. अनुष्का के पिता अपने पड़ोसियों को फोन कर निमंत्रण दे रहे हैं. हालांकि इन पड़ोसियों को ये बातें अपने तक रखने के लिए भी कहा गया है.

4 जनवरी को कोर्ट मैरिज

रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों 4 जनवरी को बांद्रा फैमिली कोर्ट में रजिस्टर मैरिज करेंगे. कहा तो ये भी जा रहा है कि अनुष्का ने रजिस्ट्रेशन फौर्म ले लिया है.

अगस्त में तय हुई थी शादी

दावा किया जा रहा है कि दोनों की शादी अगस्त में श्रीलंका में तय हुई थी. उस समय अनुष्का के पारिवारिक गुरु ने विराट और अनुष्का से मुलाकात की थी. उसके बाद 12 दिसंबर का मुहूर्त निकाला गया था.

एक और खास बात जिससे कहीं ना कहीं ऐसा लगता है कि दोनो की शादी हो सकती है वो ये कि अनुष्का और विराट के परिवार के साथ साथ उनके परिवारिंक पंडित भी एयरपोर्ट पर दिखे थे और कहा तो ये तक जा रहा है कि वे सभी लोग एक साथ इटली के लिये रवाना हुए हैं.

आई मेकअप करते वक्त विंग्ड आईलाइनर लगाने का कोई आसान तरीका बताएं.

सवाल
आई मेकअप करते वक्त विंग्ड आईलाइनर लगाने का कोई आसान तरीका बताएं?

जवाब
विंग्ड आईलाइनर लगाने के लिए बेहतर होगा कि आप जैल बेस्ड लाइनर न ले कर लिक्विड लाइनर का प्रयोग करें, क्योंकि इस की फिनिशिंग ज्यादा अच्छी होती है. अपने पसंदीदा कलर को आंखों पर लगाने के बाद आप जितनी लंबी लाइन खींचना चाहती हैं, उतनी लंबी लाइन आउटर साइड यानी बाहर की तरफ और ऊपर की ओर बना लें. इस के बाद इनर कौर्नर से पतली लाइन लाते हुए सैंटर पर रुक जाएं. इस पूरी प्रक्रिया को 2 भागों में इसलिए बांटा गया है ताकि आप का हाथ शेक न हो और लाइनर परफैक्ट लग सके. इस के बाद पीछे खींची गई विंग यानी लाइन को सैंटर पर बनी लाइन से जोड़ दें और खाली स्पेस को भर दें. यह आप की आंखों की शेप को अच्छे से डिफाइन कर आप को खूबसूरत लुक देगी.

नवाजुद्दीन सिद्दिकी से आखिर क्यों दूर भाग रहे हैं लोग?

बौलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन के साथ इन दिनों जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए एक कवि की कविता की कुछ पंक्तिया याद आ रही हैं-‘‘एक फूल काफी है अर्थी सजाने को, एक भूल काफी है जिंदगी भर रूलाने को. ’’जी हां! लगभग 14 साल के संघर्ष के बाद नवाजुद्दीन का करियर तेजी से सफलता की ओर दौड़ रहा था. 2017 में उनकी एक नहीं बल्कि ‘मौम’,‘रईस’,‘जग्गा जासूस’,‘मुन्ना माइकल’ और ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ सहित पांच फिल्में प्रदर्शित हुई.

लेकिन इन फिल्मों के प्रदर्शन के बाद जब हर कोई उनके अभिनय की तारीफ कर रहा था, तभी पता नहीं किसकी सलाह पर नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी बायोग्राफी की किताब के कुछ पन्ने एक अंग्रेजी अखबार में छपवा दिए. इसके बाद नवाजुद्दीन सिद्दिकी के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि उन्हे न सिर्फ अपनी इस किताब को वापस लेने का ऐलान करना, बल्कि ट्विटर पर माफी मांगनी पड़ी.

इसके बावजूद उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं है. सूत्र दावा कर रहे हैं कि बौलीवुड का हर इंसान उनसे कन्नी काटने लगा है. उनके अपने दोस्त भी अब उनसे दूरी बनाकर चल रहे हैं. मजेदार बात यह है कि विशाल भारद्वाज पहली बार नवाजुद्दीन सिद्दिकी को एक रोमांटिक फिल्म का हिस्सा बना रहे थे, पर अब उन्होने भी अपनी फिल्म को बनाने का इरादा ही त्याग दिया है.

सूत्र तो यह भी दावा कर रहे हैं कि अब कोई भी फिल्मकार नवाजुद्दीन सिद्दिकी के साथ काम नहीं करना चाहता. हालात यह हैं कि उन्हे एक विज्ञापन फिल्म का आफर मिला था. मगर बायोग्राफी की वजह से वह विज्ञापन फिल्म भी उनसे छिन गयी. हालात यह है कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी घर पर खाली बैठे हुए हैं.

2018 में उनकी एक भी फिल्म की शूटिंग नहीं होनी है. उनकी समझ में नही आ रहा है कि क्या किया जाए. यूं तो नवाजुद्दीन सिद्दकी को अब सारी उम्मीदें अपनी नई फिल्म ‘‘मानसून शूट आउट’’ से हैं, मगर इस फिल्म के निर्माता भी अपनी फिल्म के रिलीज को लेकर असमंजस में हैं. उन्हे लग रहा है कि कहीं नवाजुद्दीन सिद्दिकी की धूमिल हुई छवि का खामियाजा उनकी फिल्म को न भुगतना पड़े?

बौलीवुड से जुड़े लोग तो अब खुलकर कहने लगे हैं कि जब करियर ने सही दिशा पकड़ी थी, उस वक्त करियर को मजबूती प्रदान करने की बजाय उन्हे अपनी बायोग्राफी को बाजार में लाने की जल्दी क्यों आन पड़ी थी? यानी कि एक गलती जिसकी सजा?

गूगल मैप दिखाएगा टू व्हीलर्स को सबसे तेज रूट, आया ये नया फीचर

गूगल मैप ने नई दिल्ली में टू-व्हीलर मोड की शुरुआत की हैं. अभी तक भारत में गूगल मैप से ट्रैफिक का स्टेटस देखने के लिए वो कार में कितना समय लगेगा इसी की जानकारी देता था.

लेकिन अब गूगल मैप ऐप में बाइकर्स भी अपने लिए बेस्ट रूट का चुनाव कर सकते हैं. गूगल ने ऐप में अब नेविगेशन रूट और बेहतर वौयस असिस्टेंट फीचर जोड़ा है.

गूगल मैप्स में आया ट्रेवल मोड

गूगल के नेक्स्ट बिलियन यूजर्स टीम के वाइस प्रेसिडेंट सेनगुप्ता के अनुसार- गूगल मैप अपनी ऐप में नया ट्रेवल मोड लेकर आया है. अब तक इसके अंतर्गत ड्राइव, ट्रैन, बस और पैदल के विकल्प थे. इसमें अब भारत का पहला फीचर टू-व्हीलर मोड जोड़ दिया गया है. भारत विश्व का सबसे बड़ा टू-व्हीलर बाजार है. यहां लाखों की संख्या में लोग मोटरसाइकिल और स्कूटर चलाते हैं. नेविगेशन को लेकर टू-व्हीलर चालकों की जरुरत भी अलग होती है.

क्या है इस फीचर में खास

  • मैप में टू-व्हीलर मोड चालकों को वो रास्ता दिखाएगा जहां कार और ट्रक नहीं जा सकते. साथ ही टू-व्हीलर चालकों के लिए खास ट्रैफिक और गंतव्य पर पहुंचने का समय भी बताएगा.
  • काफी भारतीय नेविगेशन के लिए लोकल लैंडमार्क पर निर्भर होते हैं. ऐप का टू-व्हीलर मोड रूट में आने वाले बड़े लैंडमार्क के बारे में भी जानकारी देगा.
  • आने वाले कुछ महीनों में टू-व्हीलर मोड को अन्य राष्ट्रों के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा.

इससे पहले गूगल ने फाइल्स गो ऐप लौंच की थी जो यूजर्स के लिये काफी मददगार साबित हो सकती है. इस ऐप के जरिए यूजर्स अपने डाटा को स्टोर और वायरलेस फाइल ट्रांसफर कर पाएंगे. इसे किसी भी थर्ड पार्टी वेबसाइट जैसे APK Mirror के जरिए डाउनलोड किया जा सकता है.

फाइल्स गो ऐप के फीचर्स

उपरोक्त दो टैब्स के अलावा इसमें फाइल ट्रांसफर फीचर दिया गया है. यह फाइल्स को वायरलेस तरीके से सेंड और रीसीव करने में मदद करता है. इसके लिए फोन के ब्लूटूथ की मदद ली जाती है. इसके लिए एक्टिव डाटा कनेक्शन की जरुरत नहीं है. Superbeam और Pushbullet जैसी फाइल शेयरिंग ऐप्स की ही तरह इसमें भी यूजर्स बड़ी फाइल्स को तेजी से सेंड और रीसीव कर सकते हैं.

अयोध्या में दीवाली के बाद मथुरा में होली खेलेगी योगी सरकार

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अयोध्या और नैमिशारण्य के बाद मथुरा में होली खेलने का प्लान तैयार किया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीवाली के अवसर पर भव्य दीवाली पूजन का आयोजन किया था. अपने धार्मिक एजेंडे के तहत अयोध्या के बाद सीतापुर जिले के नैमिशारण्य जाकर मुख्यमंत्री योगी ने दो दिन का कार्यक्रम भनैमिषेय शंखनाद्य कार्यक्रम का समापन किया.

सरकार ने नैमिशारण्य के परिक्रमा स्थल का विकास करने के लिये 100 करोड़ का बजट भी पास कर दिया. योगी ने कहा कि अयोध्या में सरयू आरती की तरह की नैमिशारण्य में भी गोमती आरती शुरू हो. सरकार इसमें हर संभव मदद करेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों का प्रदूषण रोकने के लिये भीतर से इनके प्रति श्रद्वा का भाव आना चाहिये. नदियां न बचेंगी तो न हम बचेंगे और न हमारी संस्कृति. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिना भेदभाव के सभी तीर्थस्थलों का विकास हमारा लक्ष्य है.

सवाल उठता है कि जिस देश में गंगा को सबसे पवित्र नदी का दर्जा हासिल हो वह नदी इतना प्रदूर्षित क्यों है? कई शहरों में गंगा आरती होती है. हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी इनमें सबसे प्रमुख हैं. इसके बाद भी गंगा इन शहरों में ही सबसे अधिक प्रदूषित है. राजधानी लखनऊ में गोमती नदी की आरती होती है. आरती जहां होती है, उससे कुछ ही दूरी पर गोमती नदी की गंदगी को देखा जा सकता है.

नदियों की आरती के जरिये कैसे नदियां प्रदूषण मुक्त हो सकेंगी, यह समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश की सरकार केवल धर्म के एजेंडे पर काम कर रही है. मंदिर, नदियां और धार्मिक त्योहार के बहाने सरकार किसी न किसी तरह से चर्चा में रहना चाहती है. दीवाली और कांवड यात्रा के बाद अब योगी सरकार धूमधाम से होली मनाने जा रही है.

मथुरा से सरकार के जुड़ने की दो खास वजहे हैं. सबसे पहली वजह अयोध्या और वाराणसी की ही तरह से मथुरा में मंदिर मस्जिद का विवाद है. यहां होली मनाकर सरकार जनमानस को यह संकेत देना चाहती है कि वह मथुरा को भी अपने एजेंडे में रखे हुये है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन जिन शहरों में होता है उनमें मथुरा प्रमुख है. होली एक ऐसा त्योहार है जिससे जनमानस जुड़ा है. इससे सरकार को लोगों को खुद से जोड़ना सरल हो जायेगा.

अयोध्या में दीवाली मनाने और राम की भव्य मूर्ति लगवाने के एलान के बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कृष्ण की मूर्ति लगवाने की बात कही थी. योगी सरकार धर्म को लेकर किसी और पार्टी के हाथ में कोई मुद्दा नहीं देना चाहती. गुजरात चुनावों में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी मंदिर गये तो उनको नकली हिन्दू साबित किया जाने लगा. समाजवादी पार्टी कृष्ण को लेकर कोई कदम उठाये उससे पहले भाजपा इस पर अपना हक साबित कर देना चाहती है.

उत्तर प्रदेश में सरकार जिस तरह से धर्मिक प्रपंच का सहारा ले रही है, उससे बुनियादी मुद्दे पूरी तरह से हाशिये पर हैं. अयोध्या में दीपावली पूजन, चित्रकूट में मंदाकिनी नदी की आरती, आगरा में ताज महल का विवाद, कांवर यात्रा पर फूल वर्षा, धार्मिक शहरों को प्रमुख पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्रचार करना और मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को गंगा जल से पवित्र कराना कुछ ऐसे प्रपंच हैं जिनका प्रचार ज्यादा हो रहा है. सरकार इन मुद्दों पर भी केवल बातें ही कर रही है. वहां विकास की कोई योजना को लेकर मूलभूत काम नहीं कर रही.

किसी भी शहर में सड़क, बिजली, पानी का इंतजाम करना ही वहां का विकास करना नहीं होता है. लोगों को रोजगार मिले, बेरोजगारी कम हो, लोग काम धंधे में लगें, इससे ही समाज में अमनचैन आता है. सड़कें कितनी ही अच्छी बन जाये, अगर रोजगार नहीं होगा तो लोग अपराध करेंगे. अयोध्या का सच दीवाली के दिन नहीं दिखा. आयोजन की भव्य चकाचौंध में वह सच कहीं खो गया था.

भाजपा संस्थापक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंतोदय की परिकल्पना में भी समाज का वही अंतिम आदमी था. वह उसको ही खुशहाल बनाने का काम कर रहे थे. आजादी के बाद से हर सरकार हर बात में गरीबों के उद्वार की ही बात करती है. 70 साल के बाद भी भारत का गरीब दीयों से तेल एकत्र करता दिखता है. गरीब इस लिये गरीब हैं क्योंकि उसके पास काम नहीं है. देश में भीख मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हर जगह ऐसे लोग रोटी के एक एक टुकड़े के लिये संघर्ष करते देखे जा सकते हैं.

अगर धार्मिक प्रपंच को छोड़ कर सरकारों ने बुनियादी सुविधाओं ओर रोजगार की दिशा में काम किया होता तो गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती नहीं. सरकारी नीतियों से गरीबी रेखा के ऊपर और नीचे के लोग ही नहीं मध्यमवर्गीय परिवार भी गरीबी रेखा के करीब पहुंच गये हैं. बच्चे पढ़ रहे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सरकारें दिखाने के लिये उनको ट्रेनिंग देने का काम करती है. इससे कितने युवाओं को रोजगार मिला यह देखने वाली बात है?

कौशल विकास को लेकर पूरे देश में बड़े जोरशोर से काम हो रहा है. कौशल विकास प्रशिक्षण पाये लोगों में से कितनों को रोजगार से जोड़ा जा सका इसका सच सामने रखना चाहिये. सरकारी आंकड़े पूरा सच नहीं दिखाते. ऐसे में सरकार को सामाजिक आंकड़ों को भी देखना चाहिये.

जिस अयोध्या के विकास के लिये पूरी सरकार एकजुट है, कम से कम वहां तो रामराज कायम दिखना चाहिये. राम को आदर्श मानने वाले नेता क्या कभी रात में अपनी पहचान बदल कर अयोध्या की गलियो का सच देखने गये है? मंत्री के लिये अफसर रेड कारपेट बिछा कर सबकुछ ठीक होने का दावा हमेशा करते हैं. नेता की जिम्मेदारी होती है कि रेड कारपेट को हटा कर नीचे छिपे सच को देखे.

संविधान ने इसी लिये उसे पढ़े लिखे अफसर से ऊपर का दर्जा दिया है. कागज में धर्म की नगरी को पर्यटन का दर्जा देने से वहां का भला नहीं होने वाली. अखिलेश सरकार के समय भी नैमिष और मिश्रिख को पर्यटन का दर्जा दिया गया था. सडके बनी, बसे चलीं, विज्ञापन छपे, इसके बाद भी यहां के हालात नहीं बदले. आज भी यहां के लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है.

कांवर यात्रा के दौरान सरकार की तमाम सुविधाओं के बाद भी कांवर यात्रा करने वाले रास्ते भर परेशान और लोगों से मदद मांगते दिखे. सरकार ने कांवर मार्ग पर पुष्प वर्षा का वादा किया पर यह पुष्प कावंर यात्रा करने वालों के सफर को सुखद नहीं बना पाये. अगर पुष्प वर्षा से कांवर यात्रियों को सुविधा मिल जाती तो वह मदद क्यों मांगते दिखते?

धर्म के नाम पर जनता को बहुत समय तक मुद्दों से दूर नहीं रखा जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि बेरोजगारों के लिये काम के अवसर बढ़ाये जाये. जब तक लोगों के लिये रोजगार नहीं होगा, भुखमरी बनी रहेगी. न मजदूर खुश होगा न किसान. वह ऐसे ही दीयों के बचे तेल से अपने घर की सब्जी बनाने के इंतजाम करता रहेगा. सरकार कितने भी किसानों के लोग माफ कर दे, कुछ ही दिनों में फिर से वहीं हालात बन जायेंगे.

धार्मिक प्रपंच में जुटे लोग इस तथ्य को समझ लें कि इसी देश में कहा गया है कि ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ इसका अर्थ है कि अगर कोई भूखा है तो वह किसी भी तरह से धार्मिक प्रवचन न कर सकता है और न सुन सकता है. जिसे समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दीप जला कर अयोध्या में खुशियों की दीवाली मना रहे थे, भूखे पेट रहने वालों की नजर उन दीयों पर रही होंगी, वह सोच रहे होंगे कि दीयें कितनी जल्दी बुझ जायें जिससे दीयों का तेल बचा रह सके. उनकी असल खुशी दीयों के जलने से नहीं दियों के बुझने से थी. उनकी भूख जलने वाले दीयों से नहीं बुझे दीयों से बुझी जिनसे उनको सब्जी बनाने के लिये तेल मिल सका. अयोध्या की ऐसी दीवाली के सच को समझ कर समाज के अंतिम आदमी की खुशहाली से समाज में बदलाव होगा. भूखे पेट तो धर्म की चर्चा भी नहीं होती.

सर्दियों में सौफ्ट स्पौटलेस स्किन पाना है बड़ी चुनौती

तेलुगू भाषा की रोमांटिक फिल्म ‘देवदासु’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज को हिंदी फिल्मों में ब्रेक फिल्म ‘बर्फी’ से मिला, लेकिन फिल्म ‘रुस्तम’ भी उसकी सबसे सफल फिल्म रही. मुंबई की इलियाना को हमेशा से फिल्मों में अभिनय करने की इच्छा थी, लेकिन उसे सबसे पहले दक्षिण की फिल्मों और कई विज्ञापनों में काम करने का अवसर मिला. विज्ञापन में काम करने से पहले इलियाना प्रोडक्ट की गुणवत्ता को हमेशा परखती हैं. उनका कहना है कि जब तक मैं किसी भी उत्पाद को एंडोर्स करने से पहले खुद प्रयोग न कर लूं, उसके बारे में दावा नहीं कर सकती, क्योंकि लोगों का मुझ पर भरोसा है और इसे मैं तोड़ नहीं सकती.

त्वचा का रखती है खास ध्यान

इलियाना की फ्लालेस स्किन और ग्लोइंग कौम्प्लैक्शन ही उसकी खूबसूरती का राज है. गर्मी के मौसम में आउटडोर शूटिंग पर जाने से पहले इलियाना पौंड्स व्हाइट ब्यूटी का इस्तेमाल करती हैं. उसका कहना है कि इस क्रीम की मैट फिनिश वाली खूबी के कारण इस को लगाने पर त्वचा चिपचिपी नहीं होती, साथ ही त्वचा ग्लोइंग और स्पौट-लेस लगती है.

लेकिन पहले इलियाना के पास सर्दियों में स्पौट-लेस व सौफ्ट स्किन पाने के लिए ऐसा कोई उत्पाद नहीं था जो त्वचा की नमी व ग्लो भी बनाए रखे. मगर अब पौंड्स व्हाइट ब्यूटी के नए विंटर ऐंटी-स्पौट मौइश्चराइजर के साथ सर्दियों में भी स्पौटलेस निखार बरकरार रखने का विकल्प इलियाना को मिल गया है.

नए पौंड्स व्हाइट ब्यूटी विंटर ऐंटी स्पौट मौइश्चराइजर में विटामिन बी3, कोल्ड क्रीम के पोषण व नमी देने वाले तत्वों के साथसाथ सनप्रोटैक्शन के लिए एसपीएफ15 भी है. विटामिन बी3 पिगमेंटेशन को कमकर मेलानिन ट्रांसफर को ब्लौक करता है ताकि डार्क स्पौट घट सके. कोल्ड क्रीम के पोषण व नमी देने वाले इंग्रीडिएंट्स ग्लिसरीन त्वचा की प्राकृतिक सुंदरता बरकरार रखते हैं. एसपीएफ15 के साथ सनस्क्रीन का समावेश त्वचा को यूवी किरणों के प्रभाव से सुरक्षा देता है.

नए पौंड्स व्हाइट ब्यूटी विंटर ऐंटी स्पौट मौइश्चराइजर की खूबियां इस प्रकार हैं:

यह त्वचा में 24 घंटे नमी को बरकरार रखता है.

4 हफ्तों में स्किन टोन को हल्का करता है.

त्वचा के डार्क स्पौट्स 4 हफ्तों में हल्के पड़ने लगते हैं.

त्वचा की कोमलता और ग्लो को बढ़ाकर उसे सेहतमंद बनाता है.

एसपीएफ15 के साथ यह यूवीए और यूवीबी किरणों के प्रभाव से त्वचा को सुरक्षित रखता है.

मनचाहा पहनने पर अाखिर धर्म की पुलिसिंग क्यों

फैशन हर महिला को आकर्षित करता है. पर कितनी ही ऐसी महिलाएं हैं, जो किसी न किसी कारणवश अपना मनपसंद परिधान नहीं पहन पाती हैं. कारण चाहे सामाजिक हो या निजी, अपना मनपसंद पहनने की आजादी हर किसी को नहीं मिलती. अधिकतर महिलाएं अपनी पसंद के परिधान नहीं खरीद पाती हैं. उन्हें मन मसोस कर ऐसे कपड़े खरीदने पड़ते हैं, जिन्हें उन के आसपास का माहौल पहनने की अनुमति देता है.

नैतिक पुलिसिंग

हमारे समाज में घरपरिवार, रिश्तेदारों या पड़ोसियों तक ही बात सीमित नहीं है. नैतिक पुलिसिंग के और भी कई माध्यम हैं जैसे धर्म के रक्षक, विश्वविद्यालय, सड़क पर चलते अनजान लोग, नेतागण, पुलिस आदि. आम जिंदगी में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जहां मनचाहा पहनने पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते हैं.

द्य इस वर्ष मई के महीने में पुणे से खबर आई कि 5 पुरुषों ने एक महिला को कार से घसीट कर बाहर निकाला और फिर उस की पिटाई की. कारण-उस ने छोटे कपड़े पहने थे.

– जून 2014 में गोवा के लोक निर्माण विभाग मंत्री सुधिन धवलीकर का बयान आया कि नाइट क्लबों में युवतियों द्वारा पहने गए छोटे कपड़े गोवानी संस्कृति के लिए खतरा हैं. ऐसा नहीं होने देना चाहिए, इस पर रोक लगानी चाहिए.

– इसी वर्ष 25 अप्रैल के दिन बैंगलुरु में जब ऐश्वर्या सुब्रमनियन ने अपने दफ्तर जाने के लिए औटोरिकशा रोका तब उस के चालक श्रीकांत ने कहा कि मेरी बात का बुरा मत मानना पर जो कपड़े आप ने पहने हैं वे अनुचित हैं.

ऐश्वर्या ने उस समय अपने घुटनों तक की सफेद साधारण पोशाक पहनी थी. औटो चालक की बात सुन कर ऐश्वर्या हत्प्रभ रह गई. उस ने पलट कर कहा कि वह अपने काम से काम रखे.

इस पर श्रीकांत बोला कि हमारे समाज में औरतों को सलीकेदार कपड़े पहनने चाहिए न कि ऐसे बदनदिखाऊ कपड़े. इसी बीच आसपास के और पुरुष भी इकट्ठे हो गए और श्रीकांत का साथ देने लगे. इस घटना से ऐश्वर्या इतनी विचलित हो गईर् कि लगभग रोने लगी. बाद में उस ने इस बात को फेसबुक पर शेयर किया.

– अप्रैल में ही बैंगलुरु के एक प्राध्यापक ने अपनी कक्षा में एक लड़की को छोटे कपड़े पहनने पर डांटा. इस के विरोध में अगले दिन पूरी कक्षा ने शौर्ट्स पहने.

आथिरा वासुदेवन छात्रा का मत है कि एक कालेज प्राध्यापक से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती है. मगर अकसर लोग औरतों को सभ्य कपड़े पहनने की सलाह देते रहते हैं.

– देश की राजधानी में दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कालेज के नए प्रोस्पैक्ट्स में शामिल नियम के अनुसार, होस्टल में लड़कियों के लिए ड्रैसकोड के अंतर्गत नियम बताए गए, जिन का लड़कियों द्वारा कड़ा विरोध किया गया.

– राष्ट्रीय टैक्सटाइल विश्वविद्यालय में भी एक नोटिस जारी किया गया कि लड़कियों के लिए जींस, टाइट्स, आधी बाजू या स्लीवलैस कपड़े पहनना वर्जित है.

25 वर्षीय फरहत मिर्जा, जोकि काउंसिल फौर द ऐडवांसमैंट औफ मुसलिम प्रोफैशनल्स, मौंट्रियल की वाइस प्रैसीडैंट हैं, हिजाब पहनती हैं. उन के विचार से हिजाब पहनने में केवल एक बुराई है कि उसे पहनना कई बार औरतों की मजबूरी होता है, इच्छा नहीं और किसी को मजबूर करना गलत है. वे मानती हैं कि पोशाकें हर किसी के लिए भिन्न अनुभव रखती हैं. परिधान को अवसर के अनुसार पहनना चाहिए ताकि मर्यादा भी बनी रहे और स्वतंत्रता भी. वैसे वे हिजाब धार्मिक कट्टरता के कारण पहनती हैं पर अपना तर्क ऊपर रखने के लिए स्वतंत्रता की आड़ लेती हैं. यह उसी तरह की स्वतंत्रता है जैसी कोई दलित कहे कि उस पर होने वाले अत्याचार सही हैं, क्योंकि उस ने पिछले जन्म में पाप किए थे. यह हिजाब पहनना और उसे स्वतंत्रता का नाम देना धार्मिक ब्रेनवाशिंग का एक नमूना भर है.

ससुराल गेंदा फूल

एक नारी के जीवन में सब से बड़ा बदलाव विवाहोपरांत आता है. दिनचर्या के साथ उस का फैशन भी बदल जाता है. यदि सासूमां अपने समय में गाउन पहनती थीं, तो बहू गाउन पहन सकती है. यदि सासूमां अपनी जवानी में बिना बाजू के ब्लाउज पहनती थीं, तो बहू को स्लीवलैस पहनने की इजाजत है अर्थात बहू का फैशन इस पर निर्भर करता है कि ससुराल उसे कितनी आजादी देता है.

‘द मदर इन ला’ पुस्तक की लेखिका वीणा वेणुगोपाल अपनी पुस्तक में लिखती हैं कि अकसर लड़कियां अपनी सास का दिल जीतने के लिए सलवारकमीज पहनती हैं, चूडि़यां पहनती हैं और वैसा ही बरताव करने लगती हैं जैसा सास को पसंद आएगा. यही पहला गलत कदम होता है.

सास की पसंद उन के जमाने के अनुसार थी और आप की पसंद आज के अनुसार है. अपना निजी स्टाइल दर्शाने में सकुचाएं नहीं. आजकल अधिकतर ससुरालपक्ष नए जमाने के परिधानों के प्रति संवेदनशील हैं. भारीभरकम साडि़यां या अनारकली सूट आप कितने दिन पहन पाएंगी? आप की ससुराल वालों को पता होना चाहिए कि आप की पसंद क्या है, इसलिए झूठमूठ का नाटक न करें. हां, चाहें तो अपने आधुनिक परिधान के साथ भारतीय संस्कृति के गहने पहन लें जैसे कंगन, झुमके, पायल आदि.

आत्मविश्वास बढ़ाएं

अपनी पसंद का फैशन न कर पाने का एक और मुख्य कारण है आत्मविश्वास की कमी. मन तो करता है पर हिम्मत नहीं होती. ‘लोग क्या कहेंगे’ यह डर मनमस्तिष्क पर छाने लगता है. विश्वास मानिए, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना. आप चाहे जो भी पहनें, समाज की टिप्पणी से बच पाना मुश्किल है. आप सब को खुश नहीं कर सकतीं. कोई न कोई आप के परिधान की बुराई करेगा ही. फिर चाहे आप ने छोटी स्कर्ट पहनी हो या फिर घूंघट कर रखा हो. जब ऐसा होना ही है, तो क्यों न अपनी पसंद का परिधान पहन कर कम से कम स्वयं को खुश किया जाए?

फिगर की चिंता छोड़ दें

हमारे समाज में फैशन करने के लिए एक निर्धारित फिगर का होना अति आवश्यक माना जाता है. यदि आप मोटी या बेडौल हैं, तो आप के जींस पहनने पर तीखी आलोचना होनी स्वाभाविक है. तो क्या बेडौल महिलाओं को अपना मनचाहा फैशन करने का हक नहीं है? बिलकुल है, क्योंकि सब से जरूरी है आप की अपनी खुशी. यदि आप अपने परिधान दूसरों के अनुसार चुनेंगी, यही सोचती रहेंगी कि आप का बौयफ्रैंड क्या कहता है, आप के पति क्या सोचते हैं, तो आप स्वयं की छवि से दुखी व परेशान ही रहेंगी, अपनी छवि के बारे में आप की सोच दूसरों के विचारों की मुहताज नहीं होनी चाहिए. अपने बारे में सकारात्मक विचार रखिए. स्वयं को खूबसूरत महसूस करिए और देखिए कि आप कितनी सैक्सी नजर आती हैं.

मुंबई की गुंजन शर्मा का वजन उन के मनचाहे परिधान पहनने में बाधा नहीं बन पाता है. वह कहती है, ‘‘आजकल प्लस साइज के परिधान आसानी से मिलते हैं. हर तरह का फैशन कर के मैं खुद को किसी अभिनेत्री से कम आकर्षक नहीं पाती हूं. फेसबुक पर मेरी हर पिक पर अनगिनत लाइक इस बात का प्रमाण हैं.’’

इट्स वन लाइफ

यह सिर्फ एक कहावत नहीं है. वाकई हमें जीने के लिए एक ही जिंदगी मिलती है. कल किस ने देखा? कहीं ऐसा न हो कि आज को दुनिया की चिंता में निकाल कर कल हम इस विचार पर पछताएं कि हम ने तो अपनी जिंदगी में अपनी पसंद के कपड़े भी नहीं पहने.

दिल्ली पब्लिक स्कूल की अध्यापिका सूरी कहती हैं, ‘‘मैं बुढ़ापे में यह नहीं सोचना चाहती कि मैं ने तो फलां परिधान नहीं पहना, मैं ने तो सारी उम्र केवल गिनेचुने फैशन में ही बिता दी. अपने मनपसंद परिधान पहनने से मुझे जो खुशी मिलेगी, मैं उसे खोना नहीं चाहती हूं.’’

त्योहारों पर करें नए प्रयोग

त्योहारों के मौकों पर स्वयं को चले आ रहे फैशन से बाधित न करें. यदि आप को परंपरागत फैशन रास नहीं आता तो आप फ्यूजन आजमा सकती हैं. मसलन, लहंगे पर परंपरागत डिजाइन के बजाय फूलों के प्रिंट अथवा जाली का काम. ब्लाउज का गला हौल्टरनैक रख सकती हैं या बैकलैस. इस से पूरा लुक बदल जाता है. इस के बिलकुल विपरीत ब्लाउज की जगह पूरी बाजू की जैकेट भी लहंगे का लुक बदल देगी.

यदि साड़ी या लहंगाचोली पसंद नहीं तो उस की जगह कामदार स्कर्ट और टौप भी पहना जा सकता है या फिर प्लाजो के साथ कुरता या टौप, साथ में त्योहार का माहौल बनाने हेतु गलेकान व हाथों में गहने. आजकल का नवीनतम ट्रैड है धोतीसलवार के साथ छोटा सा टौप.

फैशन हर किसी के लिए अलग माने रखता है. इस बात का अच्छा उदाहरण हैं फिलाडेल्फिया में रहने वाली प्रिया और फरजाना. जब प्रिया वहां साड़ी पहनती है तो अनचाहे आकर्षण का केंद्र बनना उसे रास नहीं आता. जबकि फरजाना को सलवारकमीज पश्चिमी पोशाकों से भी अधिक आधुनिक लगते हैं. एक ओर जहां प्रिया को सब से अलग दिखना पसंद नहीं, वहीं दूसरी ओर फरजाना को भीड़ में चमकने से कोई परहेज नहीं है. उलटे उसे यह एक प्लस पौइंट लगता है.

मनचाहे परिधान पहनने की आजादी सब को नहीं मिल पाती है. यदि आप के पास है, तो पूरा लुत्फ उठाएं और यदि नहीं है, तो प्रयास कर लीजिए. इस से पहले कि देर हो जाए, अपने मन की सुनिए और मनचाहा पहनिए.

किसी को, चाहे धर्म हो या पति अथवा सहयोगी, पुलिसिंग करने का अधिकार नहीं रखता. आप मनचाहा पहन कर फूहड़ लगती हैं या स्मार्ट यह आप का हक है.

रेप जीवन का अंत नहीं इसलिए हौसले के साथ आगे बढ़ें

यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे रेप कहते हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में हमारे देश में रेप के 34,651 मामले दर्ज किए गए, जिन में 33,098 मामलों में इस घृणित अपराध को अंजाम देने वाले पीडि़ता के परिचित थे.

आज फोन, इंटरनैट, फैशनेबल ड्रैस, खानपान, आधुनिक सुखसुविधाएं, विलासिता के साधन अपनी जेब के अनुसार सब के घरों में हैं. मगर इन सब के बावजूद विचारों में हम वहीं के वहीं हैं. किसी लड़की को सड़क पर देखते ही फिल्मी स्टाइल में उस पर फबतियां कसते, अवसर मिलते ही रेप करते. फिर विचार के नाम पर पीडि़ता को ही अपराधिनी मान लेते. यहां तक कि मातापिता और परिवार के अन्य लोग भी पीडि़ता को ही दोषी मानते हैं.

आज महिलाएं घरबाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. अपनी बदनामी के डर से रेप पीडि़ता आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाती है.

हां, अब शिक्षा के कारण महिलाओं की सोच में परिवर्तन जरूर आ रहा है. अब लड़कियां अपनी आजादी को ऐंजौय कर रही हैं. अपनी इच्छानुसार ऐक्सपोज कर के स्वतंत्रता से जी रही हैं.

आज लड़कों के साथ बातचीत और दोस्ती सामान्य बात है. पर अब लड़कियां अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी रखती हैं. ब्लैक पैपर स्प्रे आदि रखना आम हो चुका है. अब लड़कियां मानसिक रूप से शक्तिशाली भी बन चुकी हैं. कोई उन पर हाथ डालने से पहले 10 बार सोचेगा. वे अब लड़कों की नजरों को पहचानती हैं.

आज के मातापिता भी जागरूक हैं. वे बचपन से ही बेटी को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे आदि की शिक्षा दिलाते हैं.

अब लड़कियों की सोच में भी परिवर्तन आया है. यदि किसी के साथ ऐसी दुर्घटना घट भी जाती है, तो उस का जीवन वहीं समाप्त नहीं हो जाता है वरन वह जीवन में आगे बढ़ती है.

हमारी न्यायपालिका ने भी लड़कियों की हिम्मत बढ़ाई है. तभी तो केपीएस गिल, आसाराम, गायत्री प्रजापति, रामरहीम, जिन्होंने बड़ेबड़े साम्राज्य खड़े कर लिए थे को मासूम लड़कियों की शिकायत ने जेल के अंदर पहुंचा दिया.

आज मीडिया भी बहुत प्रभावशाली है. किसी भी दुर्घटना के लिए हैल्पलाइन है, सामाजिक संस्थाएं आदि हैं, जिन की सहायता से आप त्वरित सहायता भी प्राप्त कर सकती हैं और अपनी समस्या भी सुलझा सकती हैं?

हौसले के साथ आगे बढ़ें

हमारी देह एक घर है. ड्राइंगरूम में कोई बच्चा या अन्य कोई गंदगी कर दे तो क्या वह शौचालय बन जाता है? उसी तरह किसी के शरीर के साथ दूसरे ने गलत काम किया है, तो वह गलत काम इसलिए कर पाया, क्योंकि लड़की शारीरिक रूप से उस की अपेक्षा कमजोर थी. उस ने तो कोई अपराध या गलत काम नहीं किया, इसलिए वह जैसी पहले थी वैसी ही आज भी है. इसी सोच के साथ उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना है. यदि कोई शारीरिक चोट है, तो उस का इलाज कर के नए हौसले के साथ जीवन जिए. रेप जीवन का अंत नहीं है वरन एक दुर्घटना है जिसे भूल कर जीवन में आगे बढ़ना है.

बचपन से ही लड़कियां लड़कों के साथ खेलती हैं, पढ़ती हैं, रहती हैं, इसलिए यदि कभी किसी लड़की के साथ रेप जैसी दुर्घटना घट भी जाती है तो सर्वप्रथम उस पर दोषारोपण न करें. उस स्थिति में उस लड़की, बेटी, बहन, पत्नी की मित्र बनने की आवश्यकता है. उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाने की जरूरत है ताकि वह अपने सामान्य जीवन में लौट सके. बेटी के साथ हुए अन्याय से आप स्वयं भी न घबराएं वरन यथासंभव उस स्थिति में जो भी उचित हो वह करें.

सैक्स शिक्षा कितनी जरूरी

आज अधिकतर मातापिता कामकाजी होते हैं. संयुक्त परिवारों का चलन समाप्त होता जा रहा है. छोटेछोटे बच्चे घरों में अकेले मेड के साथ रहते हैं. बच्चा छोटी उम्र में ही कभीकभी बुरी आदतें सीख जाता है. जब तक मांबाप को इस बारे में पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

आज लड़कियों से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है. हर क्षण उस की प्रतियोगिता अपने पुरुष साथी के साथ रहती है. स्त्री को आगे बढ़ता देख पुरुष के अहम को चोट लगती है. कई बार इस कारण भी महिला रेप की शिकार बन जाती है.

सामान्य रूप से हमारे देश में सैक्स शब्द सुनते ही लोग बगलें झांकने लगते हैं. वे कहते हैं कि सैक्स तो प्राकृतिक क्रिया है, उस की शिक्षा की भला क्या आवश्यकता है. यह तो जानवर भी अपनेआप सीख जाते हैं. परंतु ऐसा नहीं है. सैक्स शिक्षा के द्वारा लड़कियां अच्छी तरह से उस के दुष्परिणाम को समझ सकती हैं.

कुछ वर्षों पहले तक सैक्स का निश्चित परिणाम प्रैगनैंसी होता था. इसी वजह से पहले लड़की के चरित्र की पवित्रता का मानदंड सैक्स को माना जाता था. अब लड़कियों के पक्ष में एक बात अच्छी यह हो गई है कि अब वे प्रैगनैंसी को ले कर अधिक चिंतित नजर नहीं आतीं, क्योंकि गर्भनिरोध और गर्भपात के साधन आसानी से उपलब्ध हैं. अब वे अपनी सुरक्षा के उपाय के साथ मस्ती करती देखी जाती हैं. बशर्ते वे स्वयं को ब्लैकमेल किए जाने से बचा कर रखें.

बदलनी होगी सोच

आज भी कई बार बदले की भावना से लड़की से रेप किया जाता है, परंतु हमारा समाज सब कुछ जानते हुए भी उस स्थिति में लड़की को ही दोषी मान कर उसे ही बदनाम करता है. जबकि रेप करने वाला अपना बदला ले कर खुश होता है. यहां पर भी मां को समझदारी से काम लेने की आवश्यकता है कि वह बेटी का साथ दे. उस के साथ खड़ी हो कर उसे बदनामी से बचाने का प्रयास करे और अपराधी को दंड दिलाने की दिशा में होशियारी से प्रयास करे.

रेप के दौरान हुई शारीरिक क्षति या चोट को आवश्यक इलाज से ठीक करने के उपरांत ‘जिंदगी अभी बाकी है तेरी’ कह कर उसे फिर से उठ खड़ी होने के लिए प्रेरित करें.

आज मांबाप और बेटियों की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है. सब को मजबूत बनने की आवश्यकता है. किसी भी दुर्घटना से जीवन का अंत नहीं होता वरन जीवन में आगे बढ़ना ही समझदारी है.

आज हम सब को समाज की उस सोच को बदलने की आवश्यकता है, जो ऐसी घटना के कारण पीडि़ता को आत्महत्या के लिए मजबूर करती है. इसी सोच के कारण एक के बाद एक रेप की घटनाएं घटती हैं.

आज हर मां का कर्तव्य है कि वह अपनी बेटी को समझाए कि रेपिस्ट पुरुष हर जगह पाया जाता है. वह किसी भी रिश्ते के रूप में हो सकता है. अजनबी, गुंडेबदमाश तो बाद में हैं सब से पहले अपनों से ही सावधान रहने की आवश्यकता है. रिश्ते की चादर ओढ़े सभी पुरुषों से सावधान और सतर्क रहने की जरूरत है और हमेशा रहेगी.

सावधानी भी जरूरी

हमारा समाज रेप को दुनिया का सब से भीषण अपराध के रूप में सामने लाता है. पीडि़ता के आसपास ऐसा माहौल बनाता है कि पीडि़ता वर्षों तक उस अनहोनी घटना को भूलने में सफल नहीं हो पाती है. उसे अपमानजनक हादसे की दुखद यादों के साथ जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है, जो अपराधी की कानूनी सजा से कहीं ज्यादा कड़ी और तकलीफदेह होती है.

आज बदलते दौर में मांबेटी के बीच का रिश्ता मित्रवत होना आवश्यक है, क्योंकि यदि इन दोनों के बीच डर की दीवार है, तो यकीनन बेटी सजा के डर से मां से छोटी से छोटी घटना या बात भी छिपाएगी, जो भविष्य में एक बड़ा अपराध बन सकता है. इसलिए यदि मां को ऐसा लगता है कि बेटी किसी के साथ अंतरंग रिश्ते में है, तो घबराने के बजाय उसे अच्छेबुरे परिणाम के प्रति सचेत करें.

आज बेटी को छुईमुई बना कर दुनिया से अलग कर के नहीं रखा जा सकता, बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि वह अपनी लक्ष्मणरेखा को पहचाने. वह अपने भलेबुरे के प्रति जागरूक रहे.

लड़ने का साहस

कोई भी मां यह नहीं चाहती कि वह बेटी को शादी से पहले सैक्स की छूट दे. मगर महानगरों में जहां ऐक्सपोजर अधिक है बहुत सारे परिवारों में इस तरह का प्रतिबंध नहीं है. उन लड़कियों के साथ आप की बेटी कहां जा रही है, क्या कर रही है, इस पर नजर रखें.

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बेटा हो या बेटी बचपन से ही उस के क्रियाकलापों पर पूरा ध्यान दें. बच्चा कभी गुमसुम है, उदास है या परेशान दिख रहा है, तो अवश्य वह किसी परेशानी में है. ऐसे में आप का कर्तव्य है कि उस के मन को टटोलें. वह अवश्य अपनी कुंठा या मन की गांठ आप के सामने खोलने को मजबूर हो जाएगा.

बेटे को खास बनाने के स्थान पर बेटी की तरह ही अनुशासन में रहना सिखाने की आवश्यकता है, क्योंकि आप का सिखाया हुआ अनुशासन उसे भविष्य का आर्दश नागरिक बनाएगा.

आवश्यकता इस बात की है कि आश्वस्तता भरा माहौल बनाने की पहल की जाए ताकि भविष्य में कभी भी यदि रेपिस्ट से सामना हो तो उस से लड़ने और जीतने का साहस हो.

हमारे समक्ष ज्वलंत उदाहरण रामरहीम का है, जिस में 2 मासूम लड़कियों ने अपने साहस के बलबूते इतने शक्तिशाली नौटंकीबाज बाबा को जेल की सलाखों के अंदर पहुंचा दिया.

हठजोड़ी के नाम पर ठगी और सामने आते ठगी के नए नए पैंतरे

सिंधिया गर्ल्स स्कूल ग्वालियर के पास घने जंगल में बना हुआ है. मैं वहां 2 साल पढ़ी थी. ये ही वे साल थे जब मुझे कम नंबर मिले थे. उन दिनों मुझे जंगल में एक छोटा सा मंदिर मिला था और किसी ने बताया कि स्कूल का होमवर्क करने की जगह अगर मैं वहां 101 बार पूजा करूंगी तो मैं हमेशा क्लास में प्रथम आऊंगी.

फिर क्या था, मैं ने हमेशा की तरह 2 घंटे पढ़ाई करने की जगह 2 घंटे पूजा करनी शुरू कर दी. नतीजा था कि सामान्य तौर पर मिलने वाले 80% अंकों की जगह मुझे मिले सिर्फ 50% और पेरैंट्स से अपनी बेवकूफी के लिए खूब डांट पड़ी.

ठगी के नए पैंतरे

हर दिन पीपल्स फौर ऐनिमल्स के लिए काम करते हुए मुझे मानव स्वभाव की बेवकूफियों, कू्ररताओं और खपतीपन के उदाहरणों

के रहस्य खुले मिलते हैं. हमारे साथ काम कर रही एक लड़की एक दिन जानकारी लाई कि एक दुर्लभ पौधे की जाति जिसे हठजोड़ी के नाम से जाना जाता है को मध्य प्रदेश के जंगलों से ला कर तांत्रिक पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए फ्लिपकार्ट व ओएलएक्स पर बेचा जा रहा है.

फ्लिपकार्ट को जब यह बताया गया तो उन्होंने अफसोस जताते हुए इसे वापस ले लिया पर दूसरी वैबसाइटों जैसे तंत्रवेदा, स्पीकिंग ट्री, ऐस्ट्रोविधि, काम्यसिंदूर वैबसाइटें लगातार नए बेवकूफ मुरगे फांसने के लिए इसे बेच रही हैं. वे हठजोड़ी का फोटो डालती हैं और इस की चमत्कारिक शक्तियों का बखान करते हुए एक मोबाइल नंबर कर संपर्क करने को कहती हैं. धार्मिक काम करने वाली इन साइटों को अपने अनैतिक व अवैध काम का एहसास होता है, इसलिए पता देने का सवाल ही नहीं होता. वे यह भी कहना नहीं भूलतीं कि वे इसे बेच नहीं रहीं, वे तो 40 देशों में मानव सेवा कर रही हैं.

क्या है हठजोड़ी

हठजोड़ी वास्तव में पौधा है ही नहीं. कोई  भी साइट इस के वनस्पतिक नाम को नहीं बता सकती और न ही यह बता सकती है कि कौन से जंगल के कौन से आदिवासी इसे उगाते हैं. कुछ इसे फूल बताती हैं, कुछ कहती हैं कि जड़ें हैं ये. कुछ कहती हैं कि ये कुछ विशेष पेड़ पर आने वाले छोटे पौधे हैं. एक साइट कहती है कि यह भर्नानिया अनुआ है, जिस के परपल फूल के बीज आम की शक्ल के होते हैं, जिन में छोटे हुक लगे होते हैं, जिस से यह आसपास गुजरने वाले जानवरों के पैरों के जरीए नई जगह पर पहुंच जाते हैं और फिर वहां फूलने लगते हैं.

बंगाली में इन्हें बाघचकी कहते हैं और अंगरेजी में डैविल्स कला. हिंदी में उलट कांटा कहा जाता है. एक साइट इसे नेपाली पौधा  बताती है, तो एक मैक्सिको का.

हठजोड़ी असल में एक हड्डी है. यह असल में विलुप्त होती मौनीटर छिपकली के लिंग का हिस्सा है. यह छिपकली की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है और संरक्षित प्राणियों में आती है. हर साइट जो इसे बेच रही है यह जानती है. इसीलिए इस के बारे में चमत्कारों की झूठी बातें करने के बखान के बाद अंत में लिखती हैं कि यह बिकाऊ है ही नहीं.

इस सूखे लिंग के 2 हाथ से निकले होते हैं, जो आपस में लिपटे होते हैं. इसीलिए इसे हठजोड़ी कहते हैं. इस लिंग से क्या होने का दावा करा जाता है? अगर इस लिंग का थोड़ा सा टुकड़ा रोज खाएंगे या इसे तिजोरी में रख देंगे तो आप दुश्मनों पर विजय पा लेंगे, अदालतों में मामले जीत जाएंगे, अमीर बन जाएंगे, भूतों से छुटकारा मिलेगा, बाधाओं को पार करेंगे, वशीकरण की शक्ति पा लेंगे, जिंदगी सुखद व सुरक्षित होगी.

सावधानी के तौर पर ये साइटें यह कहना नहीं भूलती हैं कि ये उपलब्धियां तब होंगी जब आप तांत्रिक अनुष्ठान भी कराएंगे और उन पर खुल कर खर्च करेंगे. पुजारी साइट ही बताएगी. पुजारी और सामान भी लाने को कहेगा पर यदि अनुष्ठान में चूक हो गई तो वांछित फल नहीं मिलेगा.

जितनी साइट्स उतनी बातें कुछ साइटें कहती हैं कि इसे तेल में भिगो कर लाल कपड़े में लपेट कर सिंदूर लगा कर रखना होता है. कुछ कहती हैं कि इलायची या तुलसी के पत्तों में लपेट कर चांदी के बक्से में रखना होता है. कुछ खा जाने का निर्देश देती हैं ताकि आप और खरीदने के लिए उन के पास जाएं.

कुछ कहती हैं कि आप कमरे में बैठें, हाथ में पकड़ें और मंत्र पढ़ते रहें. और तब तक पढ़ते रहें जब तक कुछ मिल न जाए. मुझे समझ नहीं आता कि ऐसा करने से कुछ कैसे मिलेगा? हां, पागलखाने जरूर पहुंच सकते हैं. इसे गंगाजल से धो कर पूजा कर, सेफ या पर्स में रखना होगा. सेफ या पर्स ही तो असल पूजा है न.

कुछ कहती हैं कि 40-41 दिन तक हनुमान की मूर्ति के पास रखें और रोज चंदन, चावल, फूल चढ़ाएं. कुछ कहती हैं कि कपूर, लौंग, चावल और चांदी के सिक्कों के साथ रखें. कुछ पर कहा गया है कि इसे दीवाली के समय खरीदें ताकि जूए में इस्तेमाल करा जा सके. अब यह सोचने की बात है कि छिपकली के लिंग की कीमत कितने रुपए कार्ड टेबल पर होगी?

मौनीटर लिजार्ड की 4 प्रजातियां देश में पाई जाती हैं और इन में कुछ सौ बची हैं और संरक्षित प्रजातियों में आती हैं. मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान व कर्नाटक में ये मिल जाती हैं और आदिवासी इन्हें पकड़ कर इन का लिंग काट कर बेचते हैं. वाइल्डलाइफ ऐक्ट 1972 के अंतर्गत इन का या इन के अंगों का व्यापार अपराध है पर कुछ ही पकड़ में आ पाते हैं. अब तक 210 हठजोडि़यां पकड़ में आई हैं. अगर आप को इन हठजोडि़यों का विज्ञापन कहीं दिखे तो मुझे अवश्य बताएं.

ऊंचाहार में हादसे के असली जिम्मेदार आखिर कौन हैं

उत्तर प्रदेश के सरकारी पौवर प्लांट, जो रायबरेली में ऊंचाहार में है, में बौयलर फटने से हुई दुर्घटना में कम से कम 40 लोग मारे गए हैं. उस बौयलर के पास तब 300 लोग काम कर रहे थे, जब वह दबाव बढ़ जाने की वजह से फट गया था. नैशनल थर्मल पौवर कारपोरेशन के इस 500 मैगावाट के प्लांट में जब यह दुर्घटना हुई, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ धर्मकर्म के काम में लगे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटनों में.

यह तो अजूबा ही है कि जब भगवान के दूत खुद मुख्यमंत्री हों तो उन की नाक के नीचे उसी तरह बौयलर फटा जैसे राम के राज में ब्राह्मण का पुत्र मरा और दोष शंबूक के वेद पठन को दिया गया. शायद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी किसी ऐसे ही बहाने को खोज रहे थे पर उन्हें मिला नहीं या उन की हिम्मत नहीं हुई. हां, वे उन दिनों अपने गुरगों को ताजमहल के विवाद को भड़काने का संदेश देते रहे.

हमारे देश में इस तरह की दुर्घटनाओं में जब मजदूर, गरीब, किसान, शूद्र, दलित मरते हैं, तो कोई चिंता नहीं की जाती. यदि यह कांड उपहार सिनेमा, दिल्ली या इमामी अस्पताल, कोलकाता की तरह होता, तो हफ्तों तक हल्ला मचता रहता और अफसर या मालिक जेलों में होते. अब चूंकि मजदूर मरे हैं और उन में भी ज्यादातर ठेके पर काम करने वाले, तो किसी की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. बस, कुछ जांच कमेटियां बिठा दी गई हैं.

गरीब की जान हमारे देश में सस्ती इसलिए है कि गरीब खुद ही उस की कीमत नहीं आंकते. ज्यादातर गरीब खुद ही बेवकूफी में ऐसे काम करते हैं जिन से बीमारी या मौत आती है. सड़क के किनारे बैठने, धुएं में हाथ तापने से ले कर टूटेफूटे औजारों से काम करना, जहरीली चीजें खुली रखना, खोदे गए गड्ढों को न भरना, चोट लगे तो देखना नहीं वगैरह इस में शामिल हैं. जहरीली शराब, भरभर कर अफीम व तंबाकू खाना, बीड़ीसिगरेट पीना और पी कर बेबात झगड़े करना गरीबों को मानो सिखाया जाता है.

ऊंचाहार में मरे गरीबों की चिंता किसी ने नहीं की है, क्योंकि उन के घरों में मरे हुए को जल्दी ही भुला दिया जाता है. पैसा अगर मिल गया तो ठीक, वरना मरने को भाग में लिखा सोच कर बीवीबच्चे जल्दी ही संतोष कर लेते हैं कि ऐसा तो होना ही था. सरकारी अफसरों को इस बात का पूरा एहसास रहता है. गरीब को कफन में नया कपड़ा मिल जाता है, यही बहुत बड़ी बात होती है, वरना पंडों की तरह वे भी गरीब के कफन से भी पैसा वसूलने में माहिर रहते हैं.

ऊंचाहार में बौयलर फटने के बाद 5-7 अफसरों और मंत्रियों को कुछ दिन तो जेल में रखना चाहिए था. यदि उपहार सिनेमा और इमामी अस्पताल के मालिक मौतों के जिम्मेदार हैं, तो बिजली मंत्री और मुख्यमंत्री क्यों नहीं?

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