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मैं 23 साल की कामकाजी महिला हूं. मुझे पसीना बहुत आता है. इस की वजह से मेरे शरीर से बदबू आती है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 23 साल की कामकाजी महिला हूं. मुझे पसीना बहुत आता है. इस की वजह से मेरे शरीर से बदबू आती है. मुझे लोगों के बीच रह कर काम करने में बहुत परेशानी होने लगी है. मेरा आत्मविश्वास भी कम हो गया है.

जवाब
पसीना ज्यादा या कम आना तापमान व शारीरिक प्रक्रिया पर निर्भर करता है. इस का संभवतया कोई समाधान नहीं है, पर पसीने की दुर्गंध से बचने के लिए शरीर की सही ढंग से सफाई जरूरी है. आप सूती कपड़ों का प्रयोग करें, जिस से समयसमय पर पसीना आसानी से सूख जाए और दुर्गंध आने की संभावना भी कम रहे.

इस के अलावा संतरे के छिलकों को रात को पानी में डाल दें और सुबह उस पानी से नहाएं. नहाने के पानी में पसंदीदा अरोमा औयल की कुछ बूंदें डाल कर नहाना भी अच्छा रहता है. अपने पर्स में एक छोटा डियो स्प्रे अवश्य रखें, इस का दिन में 3-4 बार इस्तेमाल करें. इस से आप ताजगी महसूस करेंगी और आत्मविश्वास भी बना रहेगा.

मैं 21 साल की हूं. एक लड़के से शारीरिक संबंध रहे हैं. क्या सुहागरात पर पति जान जाएंगे कि मेरा कौमार्य भंग हो चुका है.

सवाल
मैं 21 साल की युवती हूं. घर में मेरी शादी की बात चल रही है. इस से मैं चिंतित हो गई हूं. 3-4 वर्षों तक मैं एक लड़के से प्यार करती थी. उस के साथ 3 वर्षों तक शारीरिक संबंध भी रहे थे.

शादी के नाम पर मुझे इसीलिए घबराहट हो रही है, क्योंकि सुहागरात को ही पति जान जाएंगे कि मेरा पहले ही कौमार्य भंग हो चुका है. यह सचाई जान कर हो सकता हो कि वे मुझे घर से निकाल दें. उस स्थिति में मैं क्या करूंगी? घर वालों को सचाई बता नहीं सकती. कृपया बताएं मैं क्या करूं.

जवाब
विवाहपूर्व के संबंध भविष्य के लिए चिंता का सबब बनते हैं इसीलिए इस से यथासंभव बचने की हिदायत दी जाती हैं. पर आप ऐसी भूल कर चुकी हैं जिसे सुधारा तो नहीं जा सकता. अलबत्ता उसे भुलाना कठिन नहीं है.

बेहतर होगा कि सब कुछ भुला कर विवाह की तैयारी में लग जाएं. पति से अपने किसी प्रेमसंबंध या अनैतिक संबंधों की बाबत कुछ न कहें. जब तक आप स्वयं अपने मुंह से नहीं स्वीकारेंगी, आप के पति कुछ नहीं जान पाएंगे.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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मोबाइल इंटरनेट स्पीड में पाक, नेपाल से भी पीछे है भारत

देश में 4G इंटरनेट को बढ़ावा देने के बाद भी भारत मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में दुनिया के टौप 100 देशों में अपनी जगह नहीं बना पाया है. ऊकला द्वारा जारी किए गए नवम्बर स्पीडटेस्ट ग्लोबल इंडेक्स के अनुसार मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में भारत की रैंकिंग 109वें स्थान पर है. इस श्रेणी में नार्वे टौप पोजीशन पर है. इसी क्षेत्र में ब्रौडबैंड स्पीड की बात की जाए तो इस मामले में भारत की ग्लोबल रैंकिंग 76वीं है.

एक बयान में कहा गया, ‘2017 की शुरुआत में, भारत में औसत मोबाइल डाउनलोड स्पीड 7.65 एमबीपीएस थी, लेकिन साल के अंत तक यह बढ़कर 8.80 फीसदी हो गई, जोकि 15 फीसदी की बढ़ोतरी है.’

बयान में कहा गया, ‘हालांकि मोबाइल की स्पीड में मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन फिक्स्ड ब्रौडबैंड की स्पीड में प्रभावशाली तरीके से वृद्धि हुई है. जनवरी में फिक्स्ड ब्रौडबैंड की औसत स्पीड 12.12 एमबीपीएस थी, जबकि नवंबर में बढ़कर यह 18.82 एमबीपीएस हो गई, जो कि करीब 50 फीसदी की छलांग है.’

नवंबर में दुनिया में सबसे ज्यादा मोबाइल स्पीड नार्वे में दर्ज की गई, जो 62.66 एमबीपीएस रही. फिक्स्ड ब्रौडबैंड में सिंगापुर सबसे आगे रहा, जहां 153.85 एमबीपीएस की औसत डाउनलोड स्पीड दर्ज की गई.

ऊकला के सह-संस्थापक और महाप्रबंधक डोग सटेल्स ने कहा, ‘भारत में मोबाइल और फिक्स्ड ब्रौडबैंड दोनों की स्पीड में तेजी से सुधार हो रहा है. यह सभी भारतीय ग्राहकों के लिए अच्छी खबर है, चाहे वे किसी भी औपरेटर का कोई भी प्लान क्यों न लें. हालांकि भारत को स्पीड के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों तक पहुंचने में काफी समय लगेगा.’

कैसे तय की जाती है डाउनलोड परफार्मेंस

ऊकला हर देश में इंटरनेट परफार्मेंस की जांच करता है. यह जांच कंज्यूमर के स्पीड टेस्ट के आधार पर होती है. यानी, स्पीड पूरी तरह कंज्यू मर के अनुभव के आधार पर तय होती है. स्पीड टेस्ट के लिए अभी तक 17 अरब से ज्यारदा टेस्ट किए जा चुके हैं.

मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में यह है टौप 10 की लिस्ट

  1. नार्वे (62.66Mbps)
  2. नीदरलैंड (53.01Mbps)
  3. आइसलैंड (52.78Mbps)
  4. सिंगापुर (51.50Mbps)
  5. माल्टा (50.46Mbps)
  6. आस्ट्रेलिया (49.43Mbps)
  7. हंगरी (49.02Mbps)
  8. साउथ कोरिया (47.64Mbps)
  9. यूनाइटेड अरब अमीरात (46.83Mbps)
  10. डेनमार्क (43.31Mbps)

इंटरनेट स्पीड के मामले में ये भी रहे भारत से आगे

31वें स्थान पर चीन (31.22Mbps)

44वें पर अमेरिका (26.32Mbps)

89वें स्थान पर पाकिस्तान (13.08Mbps)

99वें स्थान पर नेपाल (10.97Mbps)

107वें स्थान पर श्रीलंका (9.32Mbps)

नये साल पर गोएयर दे रहा महज 1,218 रूपये में यात्रा करने का मौका

ग्राहकों को लुभाने के लिए अक्सर ही कंपनियां तरह-तरह के औफर देती रहती हैं. इसी तर्ज पर अब देश को सस्ते हवाई सफर की सौगात देने जा रही है गो एयर एयरवेज. अगर आप हवाई सफर पर जाने का सोच रहे हैं तो ये खास खबर आपके लिए ही है, क्योंकि देश में सस्ता हवाई सफर कराने वाली कंपनी गोएयर एक और बड़ा औफर लेकर आई है. कम्पनी ने सोमवार को इस बात की घोषणा की है कि कई रूट्स पर कम्पनी महज 1,218 रूपये से टिकट शुरू करेगी.

सिर्फ इतना ही नहीं अगर कोई ग्राहक गोएयर ऐप का इस्तेमाल करके टिकट बुक करता है तो उसे इस बुकिंग पर 10 प्रतिशत का एडिशनल डिस्काउंट भी दिया जायेगा. लेकिन ध्यान रखें कि जब आप इस ऐप के जरिये टिकट बुक करें तो प्रोमोकोड GOAPP10 डालना न भूलें, क्योंकि इस प्रोमोकोड के जरिये ही आपको 10% अतिरिक्त छूट मिल सकेगी.

कम्पनी ने जानकारी देते हुए कहा कि इस तरह की विशेष रियायत अगले साल यानी कि 2018 में 10 जनवरी से लेकर 31 मार्च के बीच दी जाएगी. इन टिकट्स की बिक्री 12 दिसंबर से 15 दिसंबर तक की जाएगी, और इनमे टैक्स भी जोड़ा जाएगा.

जैसा कि आपको पहले ही बता दिया गया है कि गो एयर ने कुछ चुनिंदा रूट्स पर ही इस फेस्टिव औफर की पेशकश की है और टिकटों की शुरुआती कीमत 1218 रुपए हैं. इस औफर के तहत अगर आप अहमदाबाद से मुंबई के बीच सफर करते हैं तो इसके लिए आपको मात्र 1,218 रुपए ही खर्च करने होंगे. वहीं अगर आप दिल्ली से पटना का सफर करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको महज 2,238 रूपये खर्च करने होंगे.

गौरतलब है कि भारत के घरेलू हवाई यात्रियों ने फेस्टिवल सीजन में नया रिकार्ड बना दिया है. डीजीसीए के मुताबिक, अक्टूबर में 1.04 करोड़ लोगों ने देश में कहीं भी आने-जाने के लिए विमानों का उपयोग किया.

डोका ला विवाद : भारत को लड़नी होगी लंबी कूटनीतिक लड़ाई

डोका ला विवाद एक बार फिर गरम हो रहा है. डोका ला मूल रूप से भूटान का हिस्सा है, इसी के साथ यह हिमालय पर्वत का वह इलाका है, जहां भारत, चीन और भूटान की सीमाएं मिलती हैं. सामरिक भाषा में ऐसी जगहों को ‘ट्राई जंक्शन’ कहा जाता है. अब खबर आई है कि चीन की लाल सेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने वहां स्थाई रूप से डेरा डाल दिया है.

वैसे पहले भी चीन की गश्ती टुकड़ियां इस इलाके में आती-जाती रही हैं. इस तरह की गश्त पर न भारत ने और न ही भूटान ने कभी आपत्ति की है. लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि चीनी सेना ने वहां पूरी सर्दियां बिताने के लिए डेरा डाल दिया है. वहां डेरा डालने वाली टुकड़ी में 1,800 सैनिक हैं. उनके लिए सड़क बनाई गई है, दो हैलीपैड बनाए गए हैं, सैनिकों के रहने के ठिकाने भी बनाए गए हैं और भंडार भी, ताकि लंबे बर्फीले मौसम में उनके लिए किसी जरूरी सामान की कमी न पड़े.

वह सीमावर्ती इलाका है और अभी यह स्पष्ट नहीं है कि घुसपैठ किस हद तक और कितने अंदर तक हुई है? खबरों में इतना ही बताया गया है कि चीन की सेना उस छंबी घाटी तक पहुंच गई है, जो भूटान को सिक्किम से जोड़ती है. इससे भारतीय थल सेना प्रमुख की इस आशंका को बल मिलता है कि चीन धीरे-धीरे इस इलाके के सामरिक संतुलन में बदलाव लाना चाहता है.

कुछ भी हो, सीमा पर इस तरह का सैनिक जमाव आपत्तिजनक तो है ही, साथ ही चीन के इरादों पर संदेह भी पैदा करता है. डोका ला का मुद्दा कुछ महीने पहले उस समय गरमाया था, जब चीनी सेना ने वहां पर सड़क बनानी शुरू कर दी थी, जिसे मूल रूप से भूटान का क्षेत्र माना जाता है. चीन के इस दुस्साहस ने सभी को हैरत में डाल दिया था, क्योंकि उससे पहले तक यह ऐसी सरहद मानी जाती थी, जिसे लेकर कोई आपसी तनाव नहीं था. इस अचानक कार्रवाई से यह समझना भी मुश्किल था कि चीन उस इलाके पर कब्जा जमाना चाहता है या वह भड़काने के लिए यह कार्रवाई कर रहा है?

तनाव उस समय काफी भड़क गया था, जब भारतीय सैनिकों ने आगे बढ़कर सड़क बनाने वाले कर्मचारियों का रास्ता रोक दिया था. यह तनाव कुछ समय तक काफी गरम रहा और उसके बाद चीनी सेना पीछे हट गई. माना जाता है कि चीन की सेना के तब पीछे हटने का कारण था वहां हो रहा ब्रिक्स सम्मेलन. उस सम्मेलन में चीन ऐसे संकेत नहीं देना चाहता था कि वह सीमा पर तनाव पैदा कर रहा है. दूसरे, यह आशंका भी दिख रही थी कि अगर तनाव बना रहता है, तो भारत सम्मेलन का बहिष्कार भी कर सकता है. उस समय इसे भारत की कूटनीतिक विजय भी माना गया था. लेकिन अब लगता है कि वह वक्त जरूरत के हिसाब से इस विवाद को चीन द्वारा दिया गया अल्प विराम भर था.

जब यह विवाद चल रहा था, तो कुछ विशेषज्ञों ने कहा था कि यह सब कुछ महीने की ही बात है और जब सर्दियों में इस इलाके में बर्फ गिरनी शुरू होगी, तो सेनाओं को पीछे हटना ही होगा. लेकिन लगता है कि डोका ला में इसका ठीक उल्टा हो रहा है. भारतीय फौज भले ही पीछे हट गई हो, लेकिन चीन की सेना ने भीषण सदिर्यो में वहां टिके रहने के हिसाब से डेरे डाल दिए हैं. शायद वह ठंडे मौसम में भी इस तनाव को गरमाए रखना चाहता है.

यह विवाद उस समय गरमा रहा है, जब नई दिल्ली में भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों की बैठक चल रही है. जाहिर है, यह विवाद इस वार्ता के नतीजों पर भी भारी पड़ सकता है. हालांकि विदेश मंत्रियों का सम्मेलन और डोका ला विवाद दो अलग-अलग चीजें हैं. पर यह तय है कि भारत को अभी इस पर लंबी कूटनीतिक लड़ाई लड़नी होगी.

भारत में भारत के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेलेगा ये देश

बीसीसीआई ने घोषणा की है कि भारत वर्ष 2019-20 में अफगानिस्तान के साथ पहला टेस्ट मैच खेलेगा. भारतीय टीम पहली बार अपनी धरती पर अफगानिस्तान के साथ टेस्ट मैच खेलेगी. बीसीसीआई ने अपनी स्पेशल जनरल मीटिंग में इसकी घोषणा की.

बीसीसीआई के कार्यकारी सेक्रेटरी अमिताभ चौधरी ने कहा कि अफगानिस्तान को वर्ष 2019 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेलना था लेकिन दोनों देशों के बीच के संबंध को देखते हुए हमने ये तय किया कि हम अफगानिस्तान के साथ पहला टेस्ट मैच खेलेंगे.

अफगानिस्तान और आयरलैंड को टेस्ट मैच खेलने की मान्यता आईसीसी ने इस वर्ष जून में दी थी. ये दोनों देश टेस्ट मैच खेलने वाले 11वें और 12वें देश बन गए. अफगानिस्तान के लिए पांच दिनों का क्रिकेट मैच की मेजबानी करने से पहले बीसीसीआई ने हमेशा ही इस देश की क्रिकेट को आगे बढ़ाने में सहयोग किया है. युद्ध से प्रभावित इस देश के लिए भारत ने क्रिकेट की मेजबानी की है. हाल ही में आयरलैंड के खिलाफ अफगानिस्तान ने ग्रेटर नोएडा में सीरीज खेली थी. यानी भारत अफगानिस्तान के लिए दूसरे घर की तरह है.

अफगानिस्तान के दो खिलाड़ी मोहम्मद नबी और राशिद खान को इस वर्ष आईपीएल में भी खेलने का मौका मिला. ये दोनों खिलाड़ी आईपीएल में खेलने वाले अफगानिस्तान के पहले खिलाड़ी बने थे. अफगानिस्तान के साथ टेस्ट मैचों की सीरीज का आयोजन करने का फैसला बीसीसीआई की एसजीएम में किया गया.

अखिला से हादिया : अंगारों से शोलों तक

अखिला से हादिया बनी केरल की लड़की कुएं से निकल कर खाई में जा रही है. अदालत में अपनी आजादी की बात करने वाली हादिया धर्म की जकड़न में खुद ही फंसती नजर आ रही है. 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को आगे की पढ़ाई करने की अनुमति देने का फैसला सुना कर एक तरह से उसे उस के मातापिता की कैद से आजादी दिला दी और शायद अगली सुनवाई तक अदालत उसे अपने मुसलिम पति के साथ रहने की आजादी भी दे दे पर जिस तरह की मजहबी मानसिकता और वेशभूषा में वह कोर्ट में दिखाई दे रही है, वह आजादी का नहीं, गुलामी का रास्ता है, रोशनी का नहीं, अंधेरे कैदखाने का रास्ता है. हैरत यह है कि वह इस के लिए उतावली है. एक धर्म बदल कर दूसरे धर्म में जाना और स्वतंत्रता की मांग करना हैरानी की बात है क्योंकि धर्म तो औरत का गुलाम बनाए रखते हैं.

अखिला नाम बदल कर हादिया बनी यह युवती हिंदू धर्म का पाखंडी दलदल छोड़ कर मुसलिम मुल्लेमौलवियों के रहमोकरम व फतवों की गुलामी की बेडि़यां धारण कर रही है. बुर्के में कैद हो कर आजादी मांग रही है, वाह हादिया!

कोट्टायम जिले के वैकुम में थिरुमनी वेंकितापुरम गांव के एक हिंदू परिवार में जन्मी 24 वर्षीय अखिला अपने मातापिता की इकलौती बेटी है. हादिया ने 12वीं तक पढ़ाई अपने घर पर रह कर की थी. बाद में उस ने तमिलनाडु के सलेम में शिवराज होम्योपैथी मैडिकल कालेज में दाखिला लिया.

सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ से रिटायर्ड के एम अशोकन ने जनवरी 2016 को बेटी अखिला के लापता होने का मामला दर्ज कराया था. अखिला अपनी 2 सहेलियां फसीना और जसीना के साथ रह रही थी. लापता होने के कुछ दिनों बाद अखिला अपने कालेज में हिजाब पहने नजर आई. उस के हिंदू दोस्तों ने उस के पिता अशोकन को सूचना दी. अशोकन उस के निवास पर पहुंचे तो वह गायब हो चुकी थी.

पिता अशोकन ने फसीना और जसीना के पिता अबूबकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया कि उन्होंने बेटी को गायब करा दिया है. पुलिस ने अबूबकर को गिरफ्तार भी किया पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सका और अखिला का पता नहीं लगाया जा सका.

बाद में अखिला के एक इसलामिक चैरिटेबल ट्रस्ट सत्य सरणी में रहने का पता चला. इस पर अशोकन ने केरल उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की. अशोकन ने आरोप लगाया कि उन की बेटी को धर्म परिवर्तन करा कर विदेश भेजने का षडयंत्र किया गया है और शादी के नाम पर उसे आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में धकेला जा रहा है.

अखिला सत्य सरणी संस्था के राष्ट्रीय महिला मोरचा की अध्यक्ष ए एस जैनबा के पास रह रही थी. इस अवधि में उस ने अपना नाम हादिया कर लिया. केरल उच्च न्यायालय में पेश होने के दौरान हादिया के साथ जैनबा जाती थी. हादिया ने अदालत से कहा कि वह अपनी इच्छा से जैनबा के साथ रह रही है.

अगस्त 2016 में हाईकोर्ट में अशोकन ने दूसरी याचिका दायर की जिस में कहा कि उन की बेटी को भारत से बाहर ले जाया जा रहा है. हालांकि, हादिया ने इस से इनकार कर दिया था. उस ने कहा कि उस के पास पासपोर्ट ही नहीं है.

अगली सुनवाई पर वह अपने पति शफीन जहां के साथ अदालत में नजर आई. 9 दिसंबर, 2016 को अखिला ने शफीन जहां से मुसलिम धर्म के अनुसार शादी कर ली. शफीन जहां ने कहा कि पिछले अगस्त माह में एक मुसलिम विवाह वैबसाइट के जरिए हादिया से मुलाकात हुई थी. उस समय वह खाड़ी में काम करता था. नवंबर में जब वह छुट्टी पर घर आया तो अपने दोस्त के घर पर हादिया से मिला. वह उस की पृष्ठभूमि से परिचित था और मालूम था कि अदालत में उस को ले कर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला चल रहा है.

अखिला ने बाद में केरल हाईकोर्ट में कहा था कि उस का पढ़ाई के समय अपनी मुसलिम दोस्तों फसीना औैर जसीना के साथ रहते हुए उस का इसलाम धर्म की ओर झुकाव हो गया. दोनों मित्रों द्वारा समय से नमाज पढ़ने और उन के अच्छे चरित्र से वह प्रभावित थी. उस ने अदालत से यह भी कहा था कि इसलामिक पुस्तकें पढ़ने और वीडियो देखने के बाद उस ने इसलाम धर्म अपनाया. वह 3 वर्षों से इसलाम का अनुसरण कर रही थी पर उस के पिता अशोकन इसलामी तरीके से प्रार्थना करने पर उसे चेतावनी देते थे.

दोस्तों के साथ रहने के दौरान फसीना के पिता अबूबकर उसे मल्लापुरम जिले के पेसिंथलाण्णा में किम नामक धार्मिक संस्था में ले कर गए पर उसे वहां प्रवेश दिए जाने से इनकार कर दिया गया. बाद में अखिला कोझिकोड में एक इसलामिक सैंटर में गई. वहां उस से एक हलफनामा लिखवाने के बाद बाहरी उम्मीदवार के तौर पर भरती कर लिया गया. हलफनामे में लिखवाया गया कि वह अपनी मरजी से इसलाम धर्म स्वीकार कर रही है.

हादिया घर छोड़ने और इसलाम अपनाने के बाद जैनबा के साथ रहने लगी. जैनबा पीएफआई की राष्ट्रीय महिला विंग की अध्यक्ष थी. एनआईए का दावा है कि पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया यानी पीएफआई एक इसलामिक संगठन है. पीएफआई और उस के साथी भारत में आतंकवादी वारदात करने की योजना बना रहे हैं.

शादी पर विवाद

हादिया के पति शफीन जहां पर आरोप था कि वह सोशल डैमोके्रटिक पार्टी औफ इंडिया यानी एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य है. यह संगठन पीएफआई से संबद्ध बताया जाता है. एसडीपीआई पीएफआई का राजनीतिक मोरचा है और कहा जाता है कि वह हिंदू लड़कियों को फंसा पर आतंकवादी संगठन में भरती कराता है.

केरल हाईकोर्ट में हादिया ने यह भी कहा था कि उस ने एक मुसलिम विवाह वैबसाइट पर अपना विवाह प्रस्ताव डाला था. उसी के माध्यम से शफीन जहां का प्रस्ताव आया था. शफीन कोल्लम का रहने वाला ग्रेजुएट युवा है.

शादी से नाराज अखिला के पिता अशोकन ने इसे लव जिहाद बताया था. आतंकवाद के मामलों में जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की मई 2017 में केरल उच्च न्यायालय में दी गई रिपोर्ट के आधार पर हादिया की शादी को रद्द कर दिया गया था. एनआईए द्वारा अदालत से कहा गया कि हादिया की शादी एक वैवाहिक वैबसाइट के जरिए तय की गई, वह गलत थी. असली मकसद शादी के नाम पर आतंकवादी संगठन के लिए सक्रिय सदस्यों की तलाश करना था और वह उस में फंस गई.

कोर्ट की टिप्पणी का विरोध

25 मई को केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निकाह को शून्य करार देते हुए हादिया को उस के हिंदू अभिभावकों की अभिरक्षा में देने का आदेश दिया था. जस्टिस सुरेंद्र मोहन और जस्टिस अब्राहम मैथ्यू ने टिप्पणी करते हुए आदेश दिया था कि 24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उस का कई तरीके से शोषण किया जा सकता है. शादी उस के जीवन का सब से अहम फैसला होता है, इसलिए वह सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्तता से ही लिया जा सकता है.

बाद में केरल हाईकोर्ट की इस विवादित टिप्पणी का विरोध हुआ और फैसला आने के बाद मुसलिम कट्टरपंथी संगठनों ने केरल हाईकोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था.

इस फैसले पर हादिया ने कहा था कि वह 24 वर्षीया भारतीय है. पिछले कई महीनों से वह घर में गिरफ्तार है. अदालत ने उस की आस्था और पसंद के अनुसार जीने के अधिकार को क्यों अस्वीकार कर दिया? हादिया ने अदालत से यह भी कहा था कि शिव शक्ति योग केंद्र के कार्यकर्ताओं ने उसे प्रताडि़त किया और वे उस का वापस हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना चाहते थे. उस के पिता अशोकन ने उन लोगों से ऐसा करने का अनुरोध किया था.

शिव शक्ति योग केंद्र हिंदू लड़कियों द्वारा मुसलिम युवकों से शादी कर लेने के बाद उन्हें वापस हिंदू धर्र्म में लाने के लिए केरल में बदनाम है. इस संगठन ने केरल में ऐसे कई मामलों को अपने हाथ में लिया है.

बाद में हादिया के पति शफीन ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कानूनी अधिकार के निकाह को शून्य करार दिया है. याचिका में कहा गया था कि यह फैसला आजाद देश की महिलाओं का असम्मान करता है क्योंकि इस ने महिलाओं के बारे में सोचविचार करने के अधिकार को छीन लिया है और यह उन्हें कमजोर करने व उन के खुद के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए.

हादिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसे आजादी चाहिए. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पिता से उसे कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने बताया था कि वह हादिया की मानसिक स्थिति के बारे में जानना चाहता है.

उधर, उस के पिता अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में आरोप लगाया कि हादिया का कथित पति शफीन कट्टर दिमाग का है और उस के आतंकवादी संगठन से रिश्ते हैं. अशोकन ने आरोप लगाया कि शफीन जहां मानसी बुराक का दोस्त है जिस के खिलाफ आतंकवादियों से संबंध होने के मामले में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है. बहुत सारे फेसबुक पोस्ट इस के सुबूत हैं कि मानसी बुराक की कट्टर सोच पर याचिकाकर्ता ने खुशी जताई थी. इस के अलावा वह लगातार फेसबुक पर बुराक से बातचीत करता था.

सुप्रीम कोर्ट और हादिया

27 नवंबर को सुप्रीम कोर्र्ट ने हादिया से बातचीत शुरू की. सवाल किया कि आप ने किस स्कूल से पढ़ाई की? आप ने डाक्टरी पेशे को कैसे चुना? क्या आप दूसरों को दवा भी देती हैं? आप की भविष्य की क्या योजना है?

हादिया ने कहा कि उसे 11 महीनों से मातापिता की गैरकानूनी हिरासत में रखा गया है. उस ने बीएचएमएस किया है पर वह इंटर्नशिप नहीं कर पाई. वह इसे पूरा करना चाहती है. कोर्ट ने पूछा कि अगर सरकार खर्चा दे तो क्या वह पढ़ाई जारी रखना चाहती है? इस पर हादिया ने कहा, ‘‘मेरे पति मेरा खर्च उठा सकते हैं. सरकारी पैसे की जरूरत नहीं है.’’

इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को मातापिता की हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कालेज में स्थानीय अभिभावक के बारे में हादिया से पूछा तो उस ने अपने पति का नाम लिया पर जज ने कहा, ‘‘पति होस्टल में नहीं रह सकता. कोई पति अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हो सकता. मैं भी अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हूं.’’

तमिलनाडु स्थित शिवराज होम्योपैथी कालेज के डीन को अभिभावक नियुक्त करते हुए अदालती पीठ ने डीन को हादिया की किसी भी समस्या को सुलझाने की छूट दी है. हादिया अपनी पढ़ाई करने के लिए उक्त कालेज चली गई है और उसे होस्टल मुहैया करा दिया गया है. वहां वह 11 महीने की इंटर्नशिप पूरा करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में भी हादिया के पिता अशोकन ने विदेश में बसे मानसी बुराक के बारे में कहा कि वह आईएसआईएस का सदस्य है और हादिया के पति शफीन के बीच उस की बातचीत का लिखित रूप कोर्ट में पेश किया. अशोक ने अदालत से कहा कि शफीन के संबंध पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया नाम के संगठन से हैं जो जमीनी स्तर पर सिखापढ़ा कर किशोरों को कट्टर बनाने की बड़ी साजिश कर रहा है.

उधर, एनआईए इसे लव जिहाद बताने पर अड़ा रहा. उस ने दलील दी कि ऐसे 10 और मामलों की जांचें की जा रही हैं. उस के पास ठोस सुबूत हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले एनआईए की जांच में कुछ जानकारियां मिलें तो फिर आगे की सुनवाई करेंगे.

सवाल यह नहीं है कि एक युवती किसी अपराधी से प्रेम या विवाह कर सकती है या नहीं? तिहाड़ जेल में बंद कुख्यात चार्ल्स शोभराज से मिलने उस की नेपाली प्रेमिका जाया करती थी और वह उस से शादी करना चाहती थी. अबू सलेम के अपराधी होते हुए भी मोनिका बेदी के साथ प्रेम संबंध बना रहा. एक बालिग युवती को अपने बारे में फैसले करने का कानूनन हक है, फिर भी अंधी आस्था में डूबी दिख रही हादिया का जीवन धर्म बदल कर शादी के बाद सुखी रह पाएगा, यह सवाल है.

एक धर्म का लबादा त्याग कर दूसरे का धारण कर पति के साथ रहने को हादिया स्वतंत्रता मान रही है. हादिया किस आजादी की बात कर रही है? वह स्त्री को शिकंजे में रखने वाले एक दकियानूसी धर्म को छोड़ कर दूसरे कट्टर मजहब की ओर जा रही है जहां चारों ओर रोशनी नहीं, अंधेरे का साम्राज्य है. एक ऐसा मजहब जहां औरत की आजादी दिवास्वप्न है.

हादिया जिस पोशाक में अदालतों में जा रही है वह पोशाक भारत की नहीं, घोर मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा थोपी गई पैर के अंगूठे से ले कर सिर की चोटी न दिखाई देने वाली पोशाक है जो शायद उस ने खुद अपनी स्वतंत्रता से नहीं, किसी मुल्लामौलवी के हुक्म से पहनी है. यह पोशाक दकियानूसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों में पहनी जाती है पर वहां भी अब ऐसी पोशाक औरतें त्याग रही हैं.

सवाल केवल औरत की लिबर्टी का नहीं है. वह इस तथाकथित आजादी के बाद भी क्या स्वतंत्र है?

अदालतों के सभी फैसले जरूरी नहीं कि सही हों. सुप्रीम कोर्ट तक ने अपने कुछ निर्णय कुछ सालों बाद बदले हैं. हम अदालतों को सांप्रदायिक नहीं कह रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि अदालतों के फैसलों से क्या औैरत को वास्तविक आजादी, राहत मिलती है?

कानून कोई गारंटी नहीं

संविधान पीठ ने इसी साल 22 अगस्त को तीन तलाक को अवैध करार देते हुए सरकार से कानून बनाने को कहा था. इस पर केंद्र ने एक बार में तीन तलाक को खत्म करने के लिए नए कानून का मसौदा तैयार किया है. ‘द मुसलिम वूमेन प्रोटैक्शन औफ राइट्स औन मैरिज बिल’ नाम से जाना जाने वाला यह कानून क्या मुसलिम औरत के परिवार के लिए उस की जिंदगी को खुशहाल बना पाने की गारंटी हो सकता है?

तीन तलाक और हादिया मामला एकजैसा ही है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमानुषिक बता कर असंवैधानिक करार तो दे दिया पर क्या औरत को तलाक नाम के खौफ से मुक्ति मिल जाएगी? सुप्रीम कोर्ट के आदेश से औरत के जीवन से तलाक यानी अलगाव यानी परिवार का टूट जाना, बिखर जाने का सिलसिला खत्म हो जाएगा?

तीन तलाक के मामले को ही लें. क्या तीन तलाक मामले में औरत की समस्या हल हो गई? 3 तलाक पर कानून बनने से क्या तलाक होने बंद हो जाएंगे? क्या फर्क पड़ता है कोई तीन बार तलाक बोले या एक बार?

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर कहा था कि यह औरत की स्वतंत्रता का हनन है. उसे न्याय के लिए अपील करने के अधिकारों पर अंकुश है.

सवाल यह है कि क्या हादिया को वास्तविक लिबर्टी मिल पाएगी? एक अंधरे से निकल कर दूसरी अंधेरी गुफा में चले जाना क्या स्त्री की वास्तविक तरक्की है? स्त्री को रोशनी की राह कौन दिखाएगा? हादिया एक धर्म की अंधी गुफा से निकल कर दूसरे धर्म की कालकोठरी की ओर जा रही है जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है. एक स्त्री की जिंदगी के लिए जिस वास्तविक रोशनी की जरूरत है वह वहां नहीं है. वह रोशनी क्या अदालत दिखा पाएगी?

धर्म के दुकानदारों के स्वार्थ

ऐसे मामलों में औरतें धर्म व सांप्रदायिकता का महज हथियार बनी दिखाई देती हैं. और वह हथियार केवल धर्म के दुकानदारों के लिए फायदेमंद साबित होता है. धर्म की खाने वाले यही तो चाहते हैं. उन्हें स्त्री की आजादी से कोई मतलब नहीं है. उस की तरक्की से कोई वास्ता नहीं है. बस, उन के धर्म का परचम लहराता दिखाईर् देना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उन की दुकानों पर आएं. इस पूरे मामले में हलाल सिर्फ हादिया हुई है.

आजादी कहां है? उसे अपना नाम अखिला से बदल कर हादिया करना पड़ा. इस में उस की अपनी मरजी कहां है? यह तो धर्म की मरजी है.

हादिया, असली आजादी क्या है? औरत को गुलाम बना कर रखने वाला मजहब चाहे कोई भी हो, वहां आजादी महज खामखयाली है. हादिया स्वयं मानसिक गुलामी की जकड़न में बुरी तरह फंसी दिखती है. उस की असली आजादी बुर्का उतार फेंकने में है. धर्म की संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलने में असली आजादी है. न जाने कितनी हादियाएं अब तक इस बात को समझ ही नहीं पाई हैं. इसीलिए, वे गुलाम हैं. असली आजादी धर्म से बाहर निकलने से ही हासिल हो सकती है.

संवेदनहीन और स्वार्थी होती संतानें : सिंघानिया का अर्श से फर्श तक का सफर

रेमंड शूटिंग्स के विज्ञापनों की एक खास बात जो हर किसी के जेहन में जानेअनजाने में दर्ज हो जाती है वह है रिश्तों के तानेबाने को भुनाना. रेमंड के विज्ञापनों में अपने उत्पाद की सीधी तारीफ नहीं होती, बल्कि दिखाया यह जाता है कि एक कामयाब पूर्ण पुरुष कैसा होता है. सफलता के पीछे नातेरिश्तों और उन की भावुकता के साथसाथ परिधान का संबंध एक मिनट से भी कम वक्त में दिखा कर बाजार में छा जाने और बाजार लूट ले जाने वाले रेमंड के पूर्व चेयरमैन और संस्थापक विजयपत सिंघानिया इस साल प्रमुख सुर्खियों में रहे.

वे सुर्खियों में इसलिए नहीं रहे कि उन्होंने कोई नया ब्रैंड लौंच किया था या फिर हवा में उड़ते वर्ल्ड रिकौर्ड बनाते  कोई नया कारनामा दिखाया था, बल्कि इसलिए कि जिन रिश्तेनातों की भावुकता को वे अपने विज्ञापनों में परोसा करते थे वह एक क्रूरता की शक्ल में हकीकत बन उन के सामने आ खड़ी हुई थी. इस क्रूरता को जब वे अकेले बरदाश्त नहीं कर पाए तो मीडिया के जरिए अपनी व्यथा साझा करते दिखे. 79 वर्षों की अपनी जिंदगी में वे पहली दफा इतने सार्वजनिक हुए कि रेमंड का इश्तहार और उस की ब्रैंडिंग बगैर किसी खर्च के हो गई. लेकिन जिस तरीके से हुई उस ने उद्योग जगत और समाज को हिला कर रख दिया. जिस ने भी देखासुना उस ने विजयपत सिंघानिया से हमदर्दी जताई. वे हमदर्दी के हकदार थे भी.

गुलाबी रंगत के रोबदार चेहरे पर हलकी सफेद दाढ़ी रखने वाले विजयपत की गिनती माह अगस्त तक वाकई कंपलीट मैन्स में शुमार होती थी. ऐसी उम्मीद किसी को न थी कि कल तक अरबोंखरबों की जायदाद के मालिक विजयपत सिंघानिया, जिन्हें कारोबारी दुनिया में विजयपत बाबू के नाम से ज्यादा जाना जाता है, पाईपाई की मुहताजी का अपना दुखड़ा मीडिया के जरिए रो कर हमदर्दी व इंसाफ मांगने को मजबूर होंगे.

विजयपत सिंघानिया कामयाबी का दूसरा नाम है, यह कहना अतिशयोक्ति की बात इसलिए भी नहीं होगी कि उन्होंने अपने पूर्वजों के कारोबार को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन में समझ थी और जोखिम उठाने का माद्दा भी. लिहाजा, एक वक्त में टाटा और बिड़ला के बाद सिंघानिया का नाम तीसरे नंबर के उद्योगपतियों व रईसों में शुमार किया जाने लगा था.

80 के दशक के भारतीय पुरुष को अपने ड्रैसिंग सैंस के प्रति अगर किसी ने सजग किया था तो इस का श्रेय रेमंड को ही जाता है जिस के कंपलीट मैन के माने थे एक ऐसा भावुक पुरुष जो अपने परिवार का पूरा ध्यान रखता है, वह पत्नी और बच्चों सहित मातापिता को भी चाहता व उन का खयाल रखता है. तब हर किसी की ख्वाहिश ऐसा ही कंपलीट मैन बन जाने की हो चली थी तो बात कतई हैरत की नहीं थी. विजयपत सिंघानिया की कारोबारी समझ की इसे खूबी कहा जाएगा कि वे परिधान के जरिए भारतीय घरों में झांके और इस तरह छा गए कि एक समय ऐसा रहा कि भारतीय दूल्हों के पास कुछ और हो न हो पर उन के शरीर पर रेमंड का सूट होना एक अनिवार्यता सी हो गई थी.

व्यथा एक पिता की

विजयपत सिंघानिया की जिंदगी अब किसी हिंदी पारिवारिक फिल्म सरीखी हो गई है जिस में पिता ने बेशुमार दौलत और नाम दोनों कमाए पर जब अशक्त हो गया और मोह के चलते सबकुछ बेटे को दे दिया तो कथित कलियुगी बेटे ने उसे पाईपाई का मुहताज बनाते घर से बेघर कर डाला.

अगस्त के दूसरे हफ्ते में देशभर में उस वक्त सनाका खिंच गया जब विजयपत सिंघानिया ने मीडिया के जरिए अपने बेटे गौतम हरि सिंघानिया, जो अब रेमंड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरैक्टर हैं, पर यह आरोप लगाया कि साल 2015 में उन्होंने रेमंड के अपने हिस्से के 1 हजार करोड़ रुपए मूल्य के शेयर उसे दे दिए थे लेकिन गौतम ने बेटे का फर्ज नहीं निभाया.

अपने वकील दिनयार मदान के जरिए विजयपत ने यह रोना भी रोया कि गौतम ने उन से कार और ड्राइवर भी छीन लिए हैं. सो, वे अब सड़क पर पैदल चल रहे हैं.

एक लंबेचौड़े लेकिन पेचीदे पारिवारिक व कारोबारी विवाद को संक्षेप में समेटते विजयपत ने अभिभावकों से एक आग्रह यह कर डाला कि अपने जीतेजी बेटे को सबकुछ मत दीजिए. जरूरी नहीं कि बेटा आप का खयाल रखे. बकौल विजयपत, लोग परिवार से प्यार करते हैं लेकिन बच्चों के प्रति एक कमजोरी पैदा कर लेते हैं और इसी कमजोरी के किसी क्षण में उन्होंने एक हजार करोड़ रुपए के शेयर बेटे के नाम कर दिए थे.

गौरतलब है कि वे इन दिनों दक्षिण मुंबई की एक सोसायटी ग्रांड पराडी के फ्लैट में किराए पर रह रहे हैं. जिस का किराया 7 लाख रुपए महीना रेमंड कंपनी दे रही थी. साल 2007 तक सिंघानिया  परिवार जेके हाउस में रहा करता था. रेमंड कंपनी ने इसे रिनोवेट कराने के नाम पर सभी से खाली कराया और लिखित अनुबंध किया कि इस में रह रहे सभी वारिसों को एकएक ड्यूप्लैक्स मकान

9 हजार रुपए प्रति वर्गफुट की दर पर दिया जाएगा. लेकिन साल 2015 आतेआते गौतम की नीयत बदल गई और वे मकान देने के अपने वादे से मुकर गए. इस की एक वजह जमीनों की कीमतों में हजार गुना तक की बढ़ोतरी हो जाना थी. यानी, रेमंड कंपनी अनुबंध की गई दरों पर ड्यूप्लैक्स देती तो उसे करोड़ों रुपयों का नुकसान होता.

इतना ही नहीं, बेटे ने उस फ्लैट का किराया तक देना बंद कर दिया जिस में रेमंड से हुए एक करार के मुताबिक वे रह रहे थे. जब पैसों की तंगी होने लगी तो लाचार और बेबस हो चले इस पिता ने मुंबई हाईकोर्ट में बेटे पर मुकदमा दायर कर दिया. इस में उन्होंने बेटे से जेके हाउस में अपना ड्यूप्लैक्स मकान भी मांगा, जिस के बाबत साल 2007 में सिंघानिया परिवार के सदस्यों के बीच एक अनुबंध हुआ था.

विजयपत सिंघानिया को मजाक में खानदानी मुकदमेबाज भी कहा जाता है तो इस की अपनी अलग वजहें और उदाहरण हैं जिन से समझ आता है कि सिंघानिया खानदान ने केवल कारोबार में ही रिकौर्ड तरक्की नहीं की, बल्कि जायदाद को ले कर मुकदमेबाजी में भी वे अव्वल हैं.

ये सब बातें अब उघड़ कर सामने आ रही हैं तो इस की एक बड़ी वजह गौतम सिंघानिया हैं जिन के बारे में विजयपत ने यह भी कहा कि जो मांबाप जीतेजी जायदाद बच्चों को देते हैं उन की हालत लगभग भिखारियों सरीखी हो जाती है. झल्लाए विजयपत ने बेटे गौतम को बदतमीज बताया तो सहज यह भी समझ आया कि लड़ाई व्यावसायिक ज्यादा है. बकौल विजयपत, बेटे को प्यार करिए, मगर आंख बंद कर के नहीं. वरना आप पाईपाई के लिए मुहताज हो सकते हैं.

उन्हीं दिनों विजयपत का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिस में वे बेहद दुबलेपतले, कमजोर और थकेहारे नजर आ रहे थे. आमतौर पर जींस पर हाफ शर्ट या टीशर्ट पहनने वाले इस भूतपूर्व खरबपति की दयनीय हालत देख उन पर हर किसी को दया आई थी. पर जब कुछ और बातें उजागर हुईं तो अक्तूबर आतेआते उन के बारे में लोगों की राय बदलने लगी. कहा यह जाने लगा कि विजयपत सिंघानिया अपनी करनी की सजा भुगत रहे हैं.

अक्तूबर में ही उन का अपनी पत्नी आशा देवी सहित एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिस में पतिपत्नी दोनों एक गाना गा रहे हैं- ‘जाने वे कैसे लोग थे जिन के प्यार से प्यार मिला, हम ने तो बस कलियां मांगीं, काटों का ताज मिला….’ लेकिन पहले के फोटो और इस वीडियो के विजयपत में काफी फर्क था. वीडियो में उन के चेहरे की रंगत पहले जैसी दिखाई दे रही थी और उन का ड्राइंगरूम भी भव्य दिख रहा था. मुमकिन है कि यह किसी फाइवस्टार होटल का कमरा रहा हो. पर, संपन्नता विजयपत और आशा दोनों के चेहरों से टपकी रही थी.

बेटे को कोसकोस कर विजयपत मीडिया और आम जनमानस की दिलचस्पी व सुर्खी बन गए. कभी प्रचार जिस शख्स का मुहताज होता था वही अगर प्रचार का मुहताज हो चला था तो जाहिर है बात बापबेटे की जायदाद की लड़ाई भर नहीं है. सिंघानिया परिवार के गौरवशाली इतिहास की झलक के साथसाथ यह भी दिख रहा है कि पारिवारिक कलह झुग्गीझोंपडि़यों से ले कर आलीशान महलों तक में है और हिंसा व क्रूरता की हद तक है. इस

की एक झलक दिखलाते किसी खास मंशा से विजयपत ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि एक बार गौतम ने उन के भाई (बड़े भाई मधुपति सिंघानिया) की हत्या कर देने की बात तक कही थी.

पीढ़ी दर पीढ़ी तरक्की

सिंघानिया परिवार एकाएक ही इतना रईस नहीं हुआ कि मुंबई के वीआईपी इलाके मालाबार हिल्स में जेके हाउस बना डाला जो आज भी देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर ‘एंटीलिया’ से कहीं ऊंचा है. जेके हाउस 1960 में बना था तब यह 14-मंजिला था लेकिन बाद में इसे और ऊंचा कर के 37 मंजिला कर दिया गया.

सिंघानिया घराने के संस्थापक यानी विजयपत के दादा लाला जुग्गीलाल राजस्थान के शेखावटी इलाके के गांव सिंघाना से आ कर कानपुर में बस गए थे. तब वे कपास की गांठों का कारोबार करते थे. अपने बेटे कमलापत के साथ उन्होंने इस कारोबार को और बढ़ाया और खुद के और बेटे के नाम के पहले अक्षरों को ले कर जेके समूह की स्थापना की.

कमलापत के 3 बेटे पदमपत, कैलाशपत और रमेशपत हुए. ये तीनों भी पिता और दादा की तरह मेहनती व व्यावसायिक बुद्धि के धनी थे. 40 के दशक में इस परिवार ने व्यवसाय बढ़ाए और देखते ही देखते उन की गिनती न केवल कानपुर, बल्कि देश के शीर्ष औद्योगिक घरानों में होने लगी. जेके समूह अब टायर से ले कर टैलीविजन व कागज से ले कर सीमेंट तक बनाने लगा. पर इस की शुरुआत एक कपास मिल और बर्फ की फैक्टरी से हुई थी.

तीसरी पीढ़ी में शांतिपूर्वक यानी बगैर किसी बड़े विवाद के बंटवारे हो गए थे. कैलाशपत के 2 बेटे अजय और विजयपत हुए. बंटवारे के बाद और आजादी के 3 वर्षों पहले  कैलाशपत ने मुंबई आ कर तब के मशहूर उद्योगपति वाडिया से रेमंड कंपनी खरीदी थी. रेमंड का नाम पहले ईडी ऐंड कंपनी था जिस के 2 डायरैक्टर्स अलबर्ट और अब्राहम रेमंड के नाम पर उस का यह नाम रखा गया था. कानुपर में पैदा हुए और पलेबढ़े विजयपत बाद में मुंबई आ कर बस गए और फैब्रिक कारोबार में रम गए.

भारत में क्यों व्यावसायिक घराने इतने कम वक्त में उम्मीद से ज्यादा तरक्की कर लेते हैं, इस बात पर विदेशी अर्थशास्त्री भी हैरान होते रहते हैं और काफी शोध के बाद उन्हें जवाब यही मिलता है कि दरअसल, पीढ़ीदरपीढ़ी व्यवसाय बढ़ता है और पूरी प्रतिबद्धता से हर पीढ़ी इसे करती है.

पदमपत और रमेशपत के बेटों ने बंटवारे के बाद दिल्ली और कानुपर में अपनेअपने कारोबार संभाले और उन का नाम भी उद्योग जगत में इज्जत से लिया जाता है. यह कम हैरत की बात नहीं है कि पदमपत सिंघानिया महज 30 साल की उम्र में फिक्की जैसे प्रमुख व्यावसायिक संगठन के अध्यक्ष बन गए थे.

जेके समूह से अलग हो कर विजयपत ने अपने भागीदार, सगेभाई अजयपत के साथ रेमंड को चमकाया और साल 1980 में रेमंड की विधिवत कमान संभाली. लेकिन इसी दौरान अजयपत की मृत्यु हो गई तो उन के परिवार की देखभाल का कथित जिम्मा भी विजयपत पर आ गया.

विजयपत ने अपनी यह जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई होती तो तय है अजयपत की पत्नी बीना देवी और भतीजों अनंत व अक्षयपत को जायदाद को ले कर उन पर मुकदमा दायर न करना पड़ता. तब विजयपत पर भाभी और भतीजों की अनदेखी व उन का वाजिब हिस्सा न देने के आरोप लगे थे. ये मुकदमे अभी भी चल रहे हैं,

जिन में जेके हाउस के 2-मंजिला मकान का विवाद भी शामिल है. इस बाबत रेमंड का करार विजयपत और अजयपत के उत्तराधिकारियों से यह हुआ था कि कंपनी उन्हें एकएक 2-मंजिला मकान देगी.

इन सब फसादों के बाद भी विजयपत हवा में उड़ते रेमंड को भी शीर्ष पर ला पाने में कामयाब हो पाए तो इस की वजह उन की तीक्ष्ण व्यावसायिक बुद्धि और धुआंधार भावनात्मक प्रचार शैली थी. साथ ही, रेमंड की गुणवत्ता भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी.

विजयपत ने कपड़ों को नई पहचान देते गरम सूट बनाने के लिए आस्ट्रेलियाई भेड़ों का ऊन लाना शुरू किया था. लेकिन यह काम खर्चीला था और इस में वक्त भी ज्यादा लगता था, इसलिए उन्होंने खास किस्म की आस्ट्रेलियाई भेड़ों को भारत में ही पालना शुरू कर दिया था जिन के ऊन से बने कपड़े वाकई नरम और गरम होते थे.

साल 1986 में विजयपत ने अपना प्रीमियम ब्रैंड पार्क ऐवन्यू लौंच किया तो उस दौर के युवाओं ने इसे हाथोंहाथ लिया और विजयपत अपने चचेरे भाइयों से ज्यादा चर्चित हो उठे. एक वक्त में रेमंड का कारोबार 12 हजार करोड़ रुपए तक जा पहुंचा था जिसे गौतम ने गिरने नहीं दिया. अपनी शैली में व्यवसाय करते गौतम ने विदेशों तक में कारोबार फैलाया जबकि विजयपत सिर्फ मांग पर और शौकिया तौर पर निर्यात करते थे. जैसा कि आमतौर पर होता है, इन बापबेटों के बीच भी व्यवसाय की शैली और तौरतरीकों को ले कर विवाद होने लगे. लेकिन विजपयत ने कभी गौतम को नए प्रयोग करने से बहुत ज्यादा रोका नहीं.

गौतम से उन का लगाव इस हद तक था कि उस के लिए उन्होंने अपने बड़े बेटे मधुपति को एक तरह से घर से निकाल दिया था. मधुपति साल 1999 में पिता के कारोबार और जायदाद से अपना हिस्सा ले कर सिंगापुर चले गए और अपने पूर्वजों की तरह व्यवसाय में वहां खुद को स्थापित कर लिया था. सिंगापुर जातेजाते मधुपति ने पिता पर पक्षपात का आरोप लगाते कहा था कि वे बड़े के बजाय छोटे बेटे को रेमंड का मुखिया बनाना चाहते हैं और भेदभाव करते हैं.

तब एक सधे बिजनैसमैन की तरह विजयपत ने मधुपति से लिखवा लिया था कि जो उस ने ले लिया, उस के अलावा वह उन की जायदाद से कुछ और नहीं मांगेगा. मधुपति ने कभी ऐसा किया भी नहीं. लेकिन उन की चारों संतानों ने दादा पर मुकदमा ठोंकते हिंदू उत्तराधिकार अधिनयम के उस प्रचलित कानून का सहारा लिया जिस के तहत मातापिता को भी यह अधिकार नहीं कि वे दादापरदादा की जायदाद छोड़ दें या फिर हिस्सा न मांगें. चूंकि ये चारों 1996 के अनुबंध के वक्त नाबालिग थे, इसलिए मधुपति का किया समझौता या करार गलत साबित करते उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया.

औद्योगिक घरानों में जायदाद के झगड़ों के ऐसे मुकदमे आम होते हैं और सालोंसाल चलते रहते हैं पर जब गौतम और विजयपत का विवाद सामने आया तो पता चला कि विजयपत अपनी पत्नी को छोड़ कर परिवार के हर सदस्य से मुकदमा लड़ रहे हैं.

उसी वक्त में यह सवाल भी तेजी से उठा कि जब विजयपत सिंघानिया खुद को पाईपाई का मुहताज बता रहे हैं तो उन के पास इतनी महंगी अदालती लड़ाइयां लड़ने के लिए पैसा कहां से बरस रहा है. इस पर विजयपत खामोश हैं. हालांकि वे गौतम से सुलह के लिए इस मामूली शर्त पर तैयार हैं कि वह अगर तिरुपति बालाजी के मंदिर में चल कर खुद के बेईमान न होने की कसम खा ले, तो वे अपना मुकदमा वापस ले लेंगे

गौरतलब है कि न केवल विजयपत और गौतम, बल्कि पूरा सिंघानिया परिवार तिरुपति बालाजी का अंधभक्त है. ये लोग सालभर में जितना टैक्स सरकार को देते होंगे, शायद उस से कहीं ज्यादा चढ़ावा इस मंदिर में चढ़ाते हैं.

बहरहाल, गौतम ने कसम वाली पेशकश पर ध्यान न देते पिता की ही भाषाशैली में जवाब दिए तो समझ आया कि कहीं न कहीं विजयपत सिंघानिया भी गलत हैं.

गौतम सिंघानिया-शौक बड़ी चीज है

सिंघानिया परिवार में शौक बड़ी चीज मानी जाती है. जहां विजयपत सिंघानिया को हवा में वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने का शौक था वहीं उन के बेटे गौतम सिंघानिया, जिन्होंने कथित तौर पर अपने पिता को रोड पर छोड़ दिया है, कम शौकीन नहीं हैं. आजकल लोग भले ही गौतम सिंघानिया को अपने पिता के साथ ज्यादती करने वाले इंसान बतौर देखते हों लेकिन उन की जिंदगी के कुछ रोचक और अनछुए पहलू भी हैं. गौतम सिंघानिया का पूरा नाम गौतम हरि सिंघानिया है और उन का जन्म 9 सितंबर, 1965 में हुआ था. उन्होंने पारसी समुदाय की महिला नवाज मोदी से विवाह किया है जिन से उन की एक बेटी निहारिका है. गौतम रेमंड गु्रप के चेयरमैन और सीईओ तो हैं ही, साथ में कामसूत्र कंडोम भी रेमंड का ही प्रोडक्ट है, जिसे एक अन्य फर्म के साथ जौइंट वैंचर में रेमंड्स ही उत्पादित करता है.

स्वभाव से शौकीन गौतम ने मुंबई के बांद्रा में एक पौपुलर क्लब भी खोला है. पोइजन नाम के इस क्लब में डीजे अकील के साथ गौतम की पार्टनरशिप है. गौतम को महंगी और सुपरफास्ट कारों का भी तगड़ा शौक है, शायद इसलिए उन के कार्स कलैक्शन में दुनिया की सब से महंगी गाडि़यों का अंबार लगा है.

बहरहाल, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते गौतम के शौक उतने ही नवाबी हैं जितने उन के पिता के रहे हैं. यह अलग बात है कि अब उन के पिता को शौक पूरे करने के लिए गौतम के आगे हाथ फैलाने पड़ रहे हैं.

विजय माल्या की जगह गौतम सिंघानिया

जब तक विजय माल्या बैंकों का मोटा पैसा मार कर देश से भागे नहीं थे तब तक मोटर स्पोर्ट्स की दुनिया में उन का ही सिक्का चलता था. लेकिन अब वह जगह गौतम सिंघानिया लेंगे. गौरतलब है कि एफएमएससीआई भारत में मोटर स्पोर्ट्स की प्रशासक बौडी है और इसे भारत सरकार की मान्यता प्राप्त है. भारत सरकार से मान्यता पाने वाली यह देश की एकमात्र मोटर स्पोर्ट्स संस्था है. फैडरेशन औफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब औफ इंडिया यानी एफएमएससीआई ने उद्योगपति और मोटर स्पोर्ट्स के शौकीन गौतम सिंघानिया को फैडरेशन इंटरनैशनल डि औटोमोबाइल यानी एफआईए की वर्ल्ड मोटर्स स्पोर्ट्स काउंसिल यानी डब्ल्यूएमएससीआई में भारत का प्रतिनिधि चुना है. खेल मंत्रालय के एतराज के बाद एफएमएससीआई ने विजय माल्या से पद छोड़ने को कहा था. उस के बाद जुलाई से यह पद खाली था. इस के चुनाव में उन के पक्ष में 7, जबकि विरोध में 1 वोट पड़ा. गौतम सिंघानिया एफएमएससीआई द्वारा डब्ल्यूएमएससीआई के लिए चुने जाने पर बेहद खुश हैं और भारतीय मोटर स्पोर्ट्स के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के तमाम दावे करते हैं. हालांकि, यूरोप में फेरारी चैलेंज में भाग ले चुके गौतम सिंघानिया अपनी घरेलू रेस में ट्रैक से भटकते लग रहे हैं.

विजयपत के रिकौर्ड

  • खेलों का सर्वोच्च पुरस्कार फैडरेशन एयरोनौटिक इंटरनैशनल गोल्ड मैडल, 1994 में.
  • भारतीय वायुसेना की एयर कमोडोर की मानद उपाधि तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन द्वारा दी गई.
  • भारतीय वायुसेना के वेटल एक्सेज के स्क्वाड्रन नंबर-7 के इकलौते असैनिक सदस्य.
  • दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों की यात्रा खुद जहाज उड़ा कर करने वाले एकमात्र भारतीय.
  • हवाई खेलों के लिए साल 2008 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित.
  • उन्होंने 1994 में 24 दिनों में अपने विमान से 34 हजार किलोमीटर का चक्कर लगाया था.
  • 2005 में सिंघानिया गुब्बारे में बैठ कर 70 हजार फुट या 21,336 मीटर की ऊंचाई तक जाने का नया रिकौर्ड बनाना चाहते थे. इस से पहले यह रिकौर्ड स्वीडन के पेर लिंडस्ट्रांड के नाम था जिन्होंने 19 हजार 811 मीटर की उड़ान भरने का रिकौर्ड 1988 में बनाया था. विजयपत सिंघानिया का गुब्बारा उस रिकौर्ड को तोड़ते हुए 2 घंटे में ही 21 हजार मीटर यानी 21 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंच गया.

जवाब बेटे का

विवाद जब आम हुआ तो गौतम चुप रहे. लेकिन पिता के बयानों का असर जब कंपनी और कारोबार पर पड़ने लगा तो उन्हें जवाब देना जरूरी हो गया. पहले बयान में उन्होंने पिता पर ताना कसते कहा कि जो लोग झुकते नहीं है वे टूट जाते हैं और अलगथलग पड़ जाते हैं.

यह जवाब मुकम्मल नहीं था और न ही पिता के आरोपों का खंडन था, बल्कि एक तरह से उन की पुष्टि करता हुआ था, जिस में यह साफ दिख रहा था कि मांबाप दोनों आलीशान ही सही, पर किराए के मकान में रहते बुढ़ापा तनहाई में काट रहे हैं, किसी भी मांबाप के लिए बेहद मानसिक और भावनात्मक यंत्रणा देने जैसी बात है. इस से यह धारणा खंडित हुई कि केवल निम्न और मध्यवर्गीय ही मांबाप को बुढ़ापे में इस तरह अकेला छोड़ देते हैं.

साल 2015 से विजयपत और गौतम में बातचीत बंद थी. इधर जब हमालवर और आक्रामक होते पिता आरोपों के मामले में व्यक्तिगत स्तर पर आ गए तो गौतम का तिलमिलाना स्वभाविक था. यहां तक बात के कोई माने नहीं थे कि विजयपत यह कहें कि गौतम रेमंड को अपनी जागीर समझते चला रहे हैं. पर जब विजयपत ने गौतम की बदमिजाजियों और भाई की हत्या कर देने जैसी बातें बतानी शुरू कीं तो गौतम को शायद समझ आया कि एक पिता जो उंगली पकड़ कर चलना सिखाता है, वह धक्का देने का भी माद्दा रखता है तो वे थोड़ा झुके.

सुलह का इशारा करते हुए गौतम ने कहा कि वे अपने पिता से बात करने को तैयार हैं. इस पर विजयपत का अहं फिर जाग उठा और उन्होंने कथित तौर पर बात करने आए बेटे से मिलना भी मुनासिब न समझा. इस पर गौतम ने कहा कि उन के पिता को निहित स्वार्थों के लिए बहकाया जा रहा है. उन की इस हालत पर उन्हें दुख है.

बचाव की मुद्रा में आते गौतम ने रेमंड के हितों का हवाला देते कहा कि जेके हाउस में ड्यूप्लैक्स मकान वे इसलिए नहीं दे पा रहे क्योंकि ऐसा कंपनी के शेयर होल्डर्स नहीं चाहते और उन के लिए कंपनी और शेयर होल्डर्स के हित सर्वोपरि हैं.

इस के पहले अदालत इन्हें मिलबैठ कर अपना विवाद सुलझाने की सलाह दे चुकी थी. लेकिन पितापुत्र के बीच मध्यस्थता कराने के लिए कोई आगे नहीं आया. गौतम की मुश्किलें उस वक्त और बढ़ गईं जब अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में उन के चचेरे भाईबहनों ने जेके हाउस में अपनी दावेदारी को ले कर एक और याचिका दायर कर दी. इन लोगों का आरोप यह है कि गौतम अपने करार और वादे से मुकरते हुए बेवजह जेके हाउस को आलीशान बनाने में कंपनी का पैसा जाया कर रहे हैं, यानी एक तरह से मामला टरकाते जा रहे हैं.

पेचीदे हिंदू उत्तराधिकार कानून के लिहाज से भी सिंघानिया परिवार के मुकदमे काफी दिलचस्प मोड़ पर हैं. वहीं विजयपत सिंघानिया की यह उजागर ख्वाहिश भी शायद ही कभी पूरी हो कि वे चाहते हैं कि एक बार फिर उन का परिवार एकसाथ रहे.

जिंदगीभर कारोबार में व्यस्त रहे और हवा में उड़ने का शौक पूरा करते बुढ़ापे की फुरसत की जलालत काट रहे विजयपत सिंघानिया को अब समझ आ रहा है कि इन्कंपलीट फेमिली की त्रासदी की मार बूढ़ों पर ज्यादा पड़ती है और गौतम को पूरी कंपनी सौंप देना उन की भारी भूल थी.

अब अंत जो भी हो लेकिन एक बात इस विवाद से आईने की तरह साफ हुई कि वाकई पैसों और जायदाद के मामलों में बेटों पर आंख बंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए. यह बेटों के प्रति ज्यादती नहीं, बल्कि समझदारी वाली बात होगी कि पैसा अपने पास ही रखा जाए वरना विजयपत सिंघानिया जैसे खरबपति की हालत जब भिखारियों सरीखी हो सकती है तो आम आदमी की बिसात क्या और हैसियत क्या.

बापबेटे और संपत्ति का जानलेवा खेल

पुरानी कहावत है कि झगड़े की 3 प्रमुख वजहें होती हैं. जर, जोरू और जमीन. फिलहाल आज के दौर के ज्यादातर झगड़ों, हत्या और विवादों के पीछे जमीन यानी संपत्ति ही प्रमुख वजह रही है. फिर चाहे वह अमीरों, कौर्पोरेट घरानों का विवाद हो या मध्यम या निचले वर्ग का. संपत्ति विवाद के चलते ही अंबानी बंधुओं का अलगाव हुआ. सिंघानिया परिवार विवाद भी इसी कारण से हो रहा है. नवंबर 2012 में ही विवादास्पद शराब कारोबारी पौंटी चड्ढा और उन के भाई दक्षिण दिल्ली स्थित एक फार्महाउस में उस समय मारे गए जब संपत्ति विवाद को सुलझाने के लिए बुलाई गई बैठक में दोनों पक्षों ने एकदूसरे पर गोलीबारी की. संपत्ति को ले कर पौंटी और उन के भाई हरदीप के रिश्ते तल्ख थे. पौंटी और हरदीप के बीच संपत्ति को ले कर तकरार चली और फिर गोलियां. आज भी ऐसी घटनाएं देखनेसुनने को मिल जाती हैं जहां संपत्ति के लालच में अपने ही अपनों का या तो गला काट रहे हैं या फिर उन्हें रास्ते पर दरदर की ठोकर खाने पर मजबूर कर रहे हैं.

17 अक्तूबर, 2017 : लोग खुशियों और रोशनी के पर्व दीवाली की तैयारियों में जुटे थे. लेकिन एक दंपती के जीवन में उस के बेटों ने ही अंधेरा भर दिया. राजस्थान के अनूपगढ़ तहसील के सुंदर देवी और मनीराम को उन के बेटों व पोते ने धोखे से उन की जमीन अपने नाम करवा ली, घर पर कब्जा कर लिया व मारपीट कर घर से निकाल दिया.

27 जुलाई, 2017 :  होशियारपुर में रोबिन कुमार अपनी पत्नी व अपने पिता विजय कुमार के साथ एक ही घर में रहते थे. विजय कुमार अपनी पुरानी प्रौपर्टी को बेचना चाहता था. इसी को ले कर पितापुत्र के बीच अकसर तकरार हुआ करती थी. तकरार इस कद्र बढ़ गई कि पिता विजय कुमार ने अपनी लाइसैंसी डबल बैरल गन से अपने ही पुत्र रोबिन को गोली मार दी.

22 मई, 2017  :  देश की राजधानी दिल्ली में एक बेटे ने प्रौपर्टी के लिए अपने ही पिता और सौतेली मां को गोली मार दी. मामला आउटर दिल्ली के बाबा हरिदास नगर थाना इलाके का है.

26 सिंतबर, 2017  :  संपत्ति के विवाद में बेटे की हत्या करने के आरोप में कोर्ट ने पिता सहित 4 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. दरअसल, 28 नवंबर, 2010 को घर के लोग विवाद को सुलझाने के लिए बैठे थे. बेटे सुंदर ने उन की बात को मानने से इनकार कर दिया था. इस के बाद पिता गैंदा ने अपने दूसरे बेटे शिव कुमार और परिवार के अन्य लोगों की मदद से सुंदर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए उस के शव को जला दिया था.

27 सितंबर, 2017 :  उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के थाना क्षेत्र नीमगांव के गांव पिपरी कलां के छन्नू का जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए उस का अपने पिता से विवाद हो गया. विवाद कुछ इस कदर बढ़ गया कि छन्नू ने आव देखा न ताव, घर में रखी लोहे की एक रौड से अपने पिता पर वार कर दिया. इस से ओम प्रकाश की मौके पर ही मौत हो गई.

संपत्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

एक तरफ सिंघानिया परिवार में पितापुत्र के बीच संपत्ति को ले कर उठे विवाद के पेंच उलझते जा रहे हैं वहीं इसी परिवार की एक और कड़ी संयुक्त परिवार में अपनी संपत्ति का दावा करती हुई मुकदमा ठोक चुकी है. ऐसे में सितंबर माह में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला गौरतलब है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार का कोई सदस्य अगर परिवार से अलग होना चाहता है और वह संपत्ति पर दावा करना चाहता है तो उसे यह साबित करना होगा कि उस ने संपत्ति को खुद से अर्जित किया है या फिर वह संपत्ति पैतृक संपत्ति है.

धर्मस्थलों से आवाज : ध्वनि प्रदूषण का खतरा

इलाहाबाद की लखनऊ बैंच में एक याचिकाकर्ता ने पीआईएल दाखिल की. जिस में हवाला दिया गया लाउडस्पीकर को ले कर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का जो साल 2000 में जारी किया गया था. साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए आदेश जारी किया था कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर का सार्वजनिक प्रयोग नहीं किया जाएगा. तब से ले कर अब तक करीब 17 साल हो चुके हैं लेकिन सरकार लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए सख्त फैसला नहीं ले पाई है. अब इस याचिका ने एक बार फिर इस बहस को हवा दे दी है कि सरकार धार्मिक आयोजनों के दौरान नवरात्रों व जगरातों, कीर्तन में ध्वनि प्रदूषण करते लाउडस्पीकरों पर अंकुश कब लगाएगी.

धार्मिक आोजनों में लाउडस्पीकर के बढ़ते प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण का खतरा बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि बिना किसी भेदभाव के धर्मस्थलों से बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण के खतरे को रोका जाए. यह बहाना अब बंद होना चाहिए कि एक धर्म के धर्मस्थल में लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है तो दूसरे धर्म में यह क्यों बंद किया जाए. प्लास्टिक से ले कर दूसरे तमाम तरह के प्रदूषणों को ले कर आवाज बुलंद करने वाली संस्थाओं को ध्वनि प्रदूषण पर भी बोलना चाहिए और धर्मस्थलों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोकने की मांग करनी चाहिए.

‘कानून सब के लिए बराबर होता है. अगर धर्मस्थलों से आवाज गूंजने पर रोक की बात है तो किसी भी धर्मस्थल से आवाज नहीं आनी चाहिए,’ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के कन्वैंशन सैंटर में लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में यह कहा. मुख्यमंत्री का मकसद यह था कि किसी भी धर्मस्थल से आवाज नहीं आनी चाहिए. ऐसे में उन्हें बिना किसी भेदभाव के हर धार्मिक स्थल से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए.

यह सच है कि धर्मस्थल, किसी भी धर्म के हों, से लाउडस्पीकर की तेज आवाज आती है. वैज्ञानिक तथ्य है कि ध्वनि प्रदूषण भी सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है. यही वजह है कि यातायात के नियमों में है कि स्कूल और अस्पतालों के पास तेज ध्वनि वाले हौर्न का प्रयोग न किया जाए. इस से बच्चों और बीमार लोगों पर प्रभाव पड़ता है. इसलिए दूसरे तमाम प्रदूषणों की ही तरह ध्वनि प्रदूषण को ले कर भी नियम सख्त होने चाहिए और धार्मिक स्थलों में होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाई जानी चाहिए.

आज के दौर में धार्मिकस्थलों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. मंदिर, मसजिद और गुरुद्वारे हर जगह होने वाले कार्यक्रमों में तेज ध्वनि फैलाने वाले लाउडस्पीकरों का प्रयोग होता है. इस के साथ ही, सड़क और घरों में भी लाउडस्पीकर लगा कर आयोजन होने लगे हैं. मसला धर्म से जुड़ा होता है तो कोई विरोध नहीं करता. बौलीवुड गायक सोनू निगम ने जब मसजिद से आने वाली आवाज की आलोचना की तो उस पर एक बहस शुरू हुई पर कुछ ही दिनों में बंद हो गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस से पहले यह कह चुके हैं कि पहले की सरकार पुलिस थानों में कृष्ण जन्माष्टमी के आयोजन पर रोक लगा चुकी है. योगी ने कहा था कि अगर हम सड़क पर पढ़ी जाने वाली नमाज को नहीं रोक सकते तो थानों में होने वाले कृष्ण जन्माष्टमी त्योहार को कैसे रोक सकते हैं? बचाव के लिए इस तरह के बयान सरकार को नहीं देने चाहिए. योगी आदित्यनाथ की यह बात पूरी तरह से सही है कि कानून सब के लिए एकसमान है.

इस का मतलब यह नहीं कि धर्म के नाम पर कुछ भी करने की आजादी दी जाए. ध्वनि प्रदूषण धर्मस्थल से आने वाली आवाज से भी होता है. यह धर्म के आधार पर कम या ज्यादा नहीं होता, यह धर्मस्थल से आने वाली आवाज की तेजी से तय होता है कि आवाज कितनी ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने वाली है. जिस धर्मस्थल से निकलने वाली आवाज जितनी तेज होगी उस का कुप्रभाव उतना अधिक होगा.

ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश जरूरी

ध्वनि प्रदूषण का मतलब अनावश्यक, अनुपयोगी, असुविधाजनक, कर्कश ध्वनि होती है. यह 2 तरह की होती है. प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण में बादलों का गरजना, तूफान, भूकंप, नदियों और झरनों का शोर आता है. प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण से अधिक खतरनाक मानवकृत ध्वनि प्रदूषण होता जा रहा है. इस को कृत्रिम ध्वनि प्रदूषण के नाम से जाना जाता है. इस में वाहनों से होने वाली आवाज, कारखाने, धार्मिक आयोजन, राजनीतिक कार्यक्रम, विवाह समारोह जैसे वे कार्यक्रम आते हैं जिन में लाउडस्पीकर के जरिए आवाज को तेज किया जाता है. वाहनों में प्रैशरहौर्न का प्रयोग किया जाता है.

ध्वनि प्रदूषण को उस की मात्रा, सघनता, उच्चता अथवा तारत्व से मापा जाता है. ध्वनि प्रदूषण मापने की इकाई को डैसीबल या डीबी कहते हैं. इस का सब से अधिक प्रभाव कानों पर पड़ता है. इस से हमारे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है. इस के अलावा ध्वनि प्रदूषण से दूसरी तरह के रोग भी हो सकते हैं. इन में चिड़चिड़ापन, बहरापन, चमड़ी पर सरसराहट, उलटी, जी मचलाना, चक्कर आना और स्पर्श अनुभव की कमी का होना शामिल हैं. शोर का स्तर 190 डैसीबल अधिक होने पर व्यक्ति की मौत तक हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलगअलग स्तर के ध्वनि प्रदूषणों को सुरक्षित माना है. औद्योगिक क्षेत्र में 75 डैसीबल, व्यापारिक क्षेत्र में 65 डैसीबल, आवासीय क्षेत्र में 55 डैसीबल और शांत क्षेत्र में 50 डैसीबल से अधिक शोर नहीं होना चाहिए. शांत क्षेत्र में वे जगहें शामिल हैं जिन में अस्पताल, पुस्तकालय और स्कूल आते हैं.

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी है कि निजी वाहनों की जगह पर सार्वजनिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए. टीवी, डीजे, रेडियो, म्यूजिक प्लेयर धीमी आवाज में बजाए जाएं. वाहनों में हौर्न का प्रयोग न किया जाए. बहुत जरूरी होने पर ही हौर्न का प्रयोग करें. प्रैशरहौर्न का प्रयोग कभी भी न करें. आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती है, ऐसे में इस का प्रयोग न करें.

आस्था का बहाना

ध्वनि प्रदूषण का सब से बड़ा खतरा लाउडस्पीकरों से होने लगा है. धार्मिक आडंबरों में लाउडस्पीकरों का प्रयोग बढ़ने लगा है. मसजिद में अजान देने के लिए लाउडस्पीकरों का प्रयोग हो रहा है. कई तरह के धार्मिक प्रवचनों में लाउडस्पीकरों का प्रयोग होने लगा है. मूर्तियों के विसर्जन के लिए निकलने वाली यात्रा में भी लाउडस्पीकरों का प्रयोग होने लगा है. इन के चलते ध्वनि प्रदूषण के खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट तक ने अलगअलग तरह के फैसलों में इस की रोकथाम का आदेश दिया हुआ है. रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का प्रयोग वर्जित है.

धार्मिकस्थलों से होने वाले प्रदूषण को छोड़ दें, तो बाकी ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के उपाय किए जा रहे हैं. धार्मिकस्थलों से होने वाली तेज आवाज को रोकने के लिए जब बात होती है तो कट्टरपंथी लोग धर्म की आस्था का सवाल खड़ा करने लगते हैं.

मसजिद में अजान को देखें तो यह चलन उस समय का है जब लोगों के पास घडि़यां और अलार्म नहीं होते थे. इसी वजह से नमाज पढ़ने वाला व्यक्ति सुबह दूसरे व्यक्ति को जगाने के लिए उस के घर पर आवाज देता था. जिस समय धर्म के नियम बने थे उस समय लाउडस्पीकर का जन्म नहीं हुआ था. ऐसे में लाउडस्पीकर का प्रयोग धर्म का मुद्दा नहीं है. लाउडस्पीकर का प्रयोग बाद में शुरू हुआ. इस की वजह धर्म का प्रचार नहीं, बल्कि धार्मिक दिखावे के कारण यह आगे बढ़ा. कीर्तन, भजन, कथा और अखंडपाठ में लाउडस्पीकर का प्रयोग किसी धर्मग्रंथ में नहीं लिखा है. धार्मिक यात्राओं के दौरान सड़क पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने का प्रयोग होता है. कानून और प्रशासन चुप्पी साधे रहते हैं. जो पुलिस किसी पार्टी में तेज ध्वनि से बजने वाले लाउडस्पीकर को बंद कराने पहुंच जाती है, वह धार्मिक आयोजन के समय मूकदर्शक बनी रहती है.

समझें खतरे को

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के तमाम कानून बने हैं. कोर्ट का आदेश है. इस के बाद भी कानून लागू करने वाले लोग इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं. ये लोग अपने दायित्व को नहीं समझ रहे.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे हर धार्मिकस्थल पर लगने वाले लाउडस्पीकर को बंद कराएं. यह कहने से काम नहीं चलेगा कि एक धर्म इस का प्रयोग करता है तो दूसरे धर्म के लिए यह जायज है.

आज इस बात की जरूरत है कि सभी लोग ध्वनि प्रदूषण के खतरे को समझें और उस से निबटने के लिए अपने उत्तरदायित्व को निभाएं. बिना किसी भेदभाव के जब यह काम होगा तो ही इस समस्या का समाधान निकल सकेगा. ध्वनि प्रदूषण दूसरे प्रदूषणों की तरह ही खतरनाक है. इस की रोकथाम के लिए एकदूसरे पर आरोप लगाना बंद होना चाहिए. बिना भेदभाव के धार्मिकस्थलों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोका जाना जरूरी है.

आंकड़े और हकीकत : भारत में बिजनैस करना न तो अब आसान है, न पहले था

दिल्ली और मुंबई में किए गए सर्वे के आधार पर तैयार की जाने वाली वर्ल्ड बैंक के एक ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बिजनैस करने में आसानी में काफी सुधार हुए हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे अभूतपूर्व रिकौर्ड बता कर गुजरात के चुनावों में हल्ला किया कि देश में खुशहाली फैल गई है.

यह रिपोर्ट कुछ ज्यादा न देखी जाए, तो ही अच्छा है. जिन 20 देशों को भारत ने पीछे छोड़ कर ऊंची जगह पाई है उन में से 17 की प्रतिव्यक्ति आय भारत की प्रतिव्यक्ति आय से ज्यादा है और कइयों में तो कई गुना ज्यादा है. यह बिजनैस करने में सुधार रिपोर्ट कुछ मामलों को ही लेती है और आम भारतीय को रिपोर्ट से कुछ लेनादेना नहीं है. मुख्यतया यह रिपोर्ट विदेशी निवेशकों के लिए तैयार की जाती है ताकि वे फैसला कर सकें कि भारत में व्यापार करना चाहिए या नहीं.

भारत में बिजनैस करना न तो अब आसान है, न पहले था. जब से औनलाइन सुविधाएं मिल रही हैं, कुछ मामलों में सरलता हो रही है पर अनुमतियां तो आज भी नियमों के मकड़जाल से गुजरने के बाद ही मिलती हैं. सरकारी तंत्र ने कंप्यूटरों का फायदा केवल अपने रिकौर्ड को अपडेट करने में उठाया है और जनता को अपने बारे में सारी जानकारी देने को मजबूर किया है. यह बिजनैस करने में सुगमता नहीं है, अपने हाथ कटवाने में सुगमता जैसा जरूर है.

जहां भी सरकारी तंत्र को लगता है कि जनता का गला पकड़ कर कुछ वसूला जा सकता है वहां बिजनैस करना मोदी राज में उतना ही कठिन है जितना कांग्रेसी राज में था. उलटे, जीएसटी और नोटबंदी के चलते यह और कठिन हो गया है. अब हर समय व्यापारियों को चिंता सताए रहती है कि किस बात की रिटर्न, किस समय और कौन भरेगा. आधे मामलों में व्यापारी अपने चार्टर्ड अकाउंटैंटों के मुहताज हो गए हैं और वे उन के आका बन बैठे हैं.

औनलाइन फाइलिंग को सुगमता कहना कुछ के लिए अच्छा है पर आम जनता के लिए यह किसी आफत से कम नहीं, क्योंकि इस में जो अड़चनें आती हैं, उन्हें भुक्तभोगी ही जानता है. पहले सरकारी खातों में जानकारी चढ़वाने के लिए पैसा मेज के ऊपर से देना होता था, अब कंप्यूटर पर बैठे अपने ही जने को देना होता है. घर बैठे काम हो जाए लेकिन दोगुनाचौगुना महंगा हो, तो इसे सुगमता नहीं कह सकते.

सुगमता के अलावा जो बड़ी चीज है वह है दूसरे देशों के मुकाबले भारत की स्थिति. भारत ने कहने को 30 स्टैप्स की छलांग लगाई है लेकिन भारत के बाद आने वाले 30 देशों की प्रतिव्यक्ति आय, अमेरिकी डौलरों में, भारत के मुकाबले क्या है, यह भी इस रिपोर्ट में है.

100वें स्थान पर भारत की प्रतिव्यक्ति आय 1,680 डौलर है जबकि भारत के बाद के स्थान पर आने वाले देशों की प्रतिव्यक्ति आय अमेरिकी डौलरों में निम्न है :

101वां फिजी 4,840; 102वां त्रिनिदाद 15,680; 103वां जौर्डन 3,920; 104वां लेसोथो 1,210; 105वां नेपाल 730; 106वां नामीबिया 4,620; 107वां एंटीगुआ 13,400; 108वां पराग्वे 4,070; 109वां पापुआ 2,580; 110वां मलावी 320; 111वां श्रीलंका 3,780; 112वां स्वाजीलैंड 2,830; 113वां फिलीपींस 3,500; 114वां फिलिस्तीन 1,351; 115वां हौंडुरस 2,150; 116वां सोलोमन आईलैंड 1,880; 117वां अर्जेंटिना 11,560; 118वां इक्वाडोर 5,820; 119वां बहामास 21,000; 120वां घाना 1,380; 121वां बेलीज 4,410; 122वां उगांडा 660; 123वां तजाकिस्तान 1,110; 124वां ईरान 4,683; 125वां ब्राजील 4,683; 126वां गुएना 3,790; 127वां केप वर्दे 2,970; 128वां मिस्र 3,460; 129वां सेंट विंसेंट 11,900 और 130वां पलाउ 12,450 डौलर.

इन आकंड़ों के आधार पर किस तरह से पीठ थपथपाई जा सकती है, भारत की इस हालत के लिए नरेंद्र मोदी से ज्यादा कांग्रेस जिम्मेदार है. भारतीय जनता पार्टी भी दोषों से मुक्त नहीं जिस ने 1947 के बाद से ही देश में धार्मिक विवादों और धार्मिक धंधेबाजी दोनों को भरपूर खादपानी दिया.

देश की बदहाली की जिम्मेदार वह संकीर्ण सोच है जिस के चलते देश सदियों से गुलाम रहा है और आज भी विश्व बैंक के गोरों की रिपोर्टों पर फूला नहीं समा रहा, क्योंकि हम में न आत्मसामर्थ्य है न आत्मविश्वास, हमें तो ऊपर वाला सदा चाहिए चाहे वह रामसीता वाला राम हो या जेल में बंद रामरहीम जैसा या फिर वर्ल्डबैंक वाला.

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