दिल्ली और मुंबई में किए गए सर्वे के आधार पर तैयार की जाने वाली वर्ल्ड बैंक के एक ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बिजनैस करने में आसानी में काफी सुधार हुए हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे अभूतपूर्व रिकौर्ड बता कर गुजरात के चुनावों में हल्ला किया कि देश में खुशहाली फैल गई है.

यह रिपोर्ट कुछ ज्यादा न देखी जाए, तो ही अच्छा है. जिन 20 देशों को भारत ने पीछे छोड़ कर ऊंची जगह पाई है उन में से 17 की प्रतिव्यक्ति आय भारत की प्रतिव्यक्ति आय से ज्यादा है और कइयों में तो कई गुना ज्यादा है. यह बिजनैस करने में सुधार रिपोर्ट कुछ मामलों को ही लेती है और आम भारतीय को रिपोर्ट से कुछ लेनादेना नहीं है. मुख्यतया यह रिपोर्ट विदेशी निवेशकों के लिए तैयार की जाती है ताकि वे फैसला कर सकें कि भारत में व्यापार करना चाहिए या नहीं.

भारत में बिजनैस करना न तो अब आसान है, न पहले था. जब से औनलाइन सुविधाएं मिल रही हैं, कुछ मामलों में सरलता हो रही है पर अनुमतियां तो आज भी नियमों के मकड़जाल से गुजरने के बाद ही मिलती हैं. सरकारी तंत्र ने कंप्यूटरों का फायदा केवल अपने रिकौर्ड को अपडेट करने में उठाया है और जनता को अपने बारे में सारी जानकारी देने को मजबूर किया है. यह बिजनैस करने में सुगमता नहीं है, अपने हाथ कटवाने में सुगमता जैसा जरूर है.

जहां भी सरकारी तंत्र को लगता है कि जनता का गला पकड़ कर कुछ वसूला जा सकता है वहां बिजनैस करना मोदी राज में उतना ही कठिन है जितना कांग्रेसी राज में था. उलटे, जीएसटी और नोटबंदी के चलते यह और कठिन हो गया है. अब हर समय व्यापारियों को चिंता सताए रहती है कि किस बात की रिटर्न, किस समय और कौन भरेगा. आधे मामलों में व्यापारी अपने चार्टर्ड अकाउंटैंटों के मुहताज हो गए हैं और वे उन के आका बन बैठे हैं.

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