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समझौता : रिया ने कैसे हालात से समझौता किया

‘‘यह क्या राजीव, तुम अभी तक कंप्यूटर में ही उलझे हुए हो?’’ रिया घर में घुसते ही तीखे स्वर में बोली थी. ‘‘कंप्यूटर में उलझा नहीं हूं, काम कर रहा हूं,’’ राजीव ने उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया था. ‘‘ऐसा क्या कर रहे हो सुबह से?’’ ‘‘हर बात तुम्हें बतानी आवश्यक नहीं है और कृपया मेरे काम में विघ्न मत डालो,’’ राजीव ने झिड़क दिया तो रिया चुप न रह सकी. ‘‘बताने को है भी क्या तुम्हारे पास? दिन भर बैठ कर कंप्यूटर पर गेम खेलते रहते हो. कामधंधा तो कुछ है नहीं.

मुझे तो लगता है कि तुम काम करना ही नहीं चाहते. प्रयत्न करने पर तो टेढ़े कार्य भी बन जाते हैं पर काम ढूंढ़ने के लिए हाथपैर चलाने पड़ते हैं, लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है.’’ ‘‘तो अब तुम मुझे बताओगी कि काम ढूंढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’ ‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं होती कौन हूं तुम से कुछ कहने वाली. मैं तो केवल घर बाहर पिसने के लिए हूं. बाहर काम कर के लौटती हूं तो घर वैसे का वैसा पड़ा मिलता है.’’

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया था कि अब तुम ही तो घर की कमाऊ सदस्य हो. मुझे तो सुबह उठते ही तुम्हें साष्टांग प्रणाम करना चाहिए और हर समय तुम्हारी सेवा में तत्पर रहना चाहिए. मैं अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर भी रहा हूं कि महारानीजी को कोई कष्ट न पहुंचे. फिर भी कोई कोरकसर रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं,’’ राजीव का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुन कर छटपटा गई थी रिया.

‘‘क्यों इस प्रकार शब्दबाणों के प्रयोग से मुझे छलनी करते हो राजीव? अब तो यह तनाव मेरी सहनशक्ति को चुनौती देने लगा है,’’ रिया रो पड़ी थी. ‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि बेकार बैठे निखट्टू पति को तुम सह नहीं पा रही हो. दिन पर दिन कटखनी होती जा रही हो.’’ क्रोधित स्वर में बोल राजीव घर से बाहर निकल गया था. रिया अकेली बिसूरती रह गई थी.

मातापिता को आपस में तूतू मैंमैं करते देख दोनों बच्चे किशोर और कोयल अपनी किताबें खोल कर बैठ गए थे और कनखियों से एकदूसरे को देख कर इशारों से बात कर रहे थे. शीघ्र ही इशारों का स्थान फुसफुसाहटों ने ले लिया था. ‘‘मम्मी बहुत गंदी हैं, घर में घुसते ही पापा पर बरस पड़ीं. पापा कितना भी काम करें मम्मी उन्हें चैन से रहने ही नहीं देतीं,’’ कोयल ने अपना मत व्यक्त किया था. ‘‘मम्मी नहीं पापा ही गंदे हैं, घर में काम करने से कुछ नहीं होता.

बाहर जा कर काम करने से पैसा मिलता है और उसी से घर चलता है. मम्मी बाहर काम न करें तो हम सब भूखे मर जाएं.’’ किशोर ने प्रतिवाद किया तो कोयल उस पर झपट पड़ी थी और दोचार थप्पड़ जमा दिए थे. फिर तो ऐसा महाभारत मचा कि दोनों के रोनेबिलखने पर ही समाप्त हुआ था. कोहराम सुन कर रिया दौड़ी आई थी. वह पहले से ही भरी बैठी थी. उस ने दोनों बच्चों की धुनाई कर दी और उन का कं्रदन धीरेधीरे सिसकियों में बदल गया था.

रिया बच्चों को मारपीट कर देर तक शून्य में ताकती रही थी, जबकि चारों ओर फैला अस्तव्यस्त सा उस का घर उसे मुंह चिढ़ा रहा था. ‘मेरे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की नजर लग गई,’ उस ने सोचा और फफक उठी. कभी वह स्वयं को संसार की सब से भाग्यशाली स्त्री समझती थी. आर्थिक मंदी के कारण 6 माह पूर्व राजीव की नौकरी क्या गई घर की सुखशांति को ग्रहण ही लग गया था. वहीं से प्रारंभ हुआ था उन की मुसीबतों का सिलसिला.

80 हजार प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति के बेरोजगार हो जाने का क्या मतलब होता है. यह राजीव को कुछ ही दिनों में पता चल गया था. जो नौकरी रिया ने शौकिया प्रारंभ की थी इस आड़े वक्त में वही जीवन संबल बन गई थी. न चाहते हुए भी उसे अनेक कठोर फैसले लेने पड़े थे. उच्ववर्गीय पौश इलाके के 3 शयनकक्ष वाले फ्लैट को छोड़ कर वे साधारण सी कालोनी के दो कमरे वाले फ्लैट में चले आए थे. पहले खाना बनाने, कपड़े धोने तथा घर व फर्नीचर की सफाई, बरतन धोने वाली अलगअलग नौकरानियां थीं पर अब एक से ही काम चलाना पड़ रहा था.

नई कालोनी में 2 कारों को खड़े करने की जगह भी नहीं थी. ऊपर से पैसे की आवश्यकता थी अत: एक कार बेचनी पड़ी थी. सब से कठिन निर्णय था किशोर और कोयल को महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर साधारण स्कूल में डालने का. रियाराजीव ने बच्चों को यही समझाया था कि पढ़ाई का स्तर ठीक न होने के कारण ही उन्हें दूसरे स्कूल में डाल रहे हैं पर जब एक दिन किशोर ने कहा कि वह मातापिता की परेशानी समझता है और अच्छी तरह जानता है कि वे उसे महंगे स्कूल में नहीं पढ़ा पाएंगे तो राजीव सन्न रह गया था. रिया के मुंह से चाह कर भी कोई बोल नहीं फूटा था.

इस तरह की परिस्थिति में संघर्ष करने वाला केवल उन का ही परिवार नहीं था, राजीव के कुछ अन्य मित्र भी वैसी ही कठिनाइयों से जूझ रहे थे. वे सभी मिलतेजुलते, एकदूसरे की कठिनाइयों को कम करने का प्रयत्न करते. इस तरह हंसतेबोलते बेरोजगारी का दंश कम करने का प्रयत्न करते थे. अपनी ओर से रिया स्थिति को संभालने का जितना ही प्रयत्न करती उतनी ही निराशा के गर्त्त में गिरती जाती थी. पूरे परिवार को अजीब सी परेशानी ने घेर लिया था. बच्चे भी अब बच्चों जैसा व्यवहार कहां करते थे. पहले वाली नित नई मांगों का सिलसिला तो कब का समाप्त हो गया था.

जब से उन्हें महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर दूसरे मध्यवर्गीय स्कूल में डाला गया था, वे न मित्रों की बात करते थे और न ही स्कूल की छोटीमोटी घटनाओं का जिक्र ही करते थे. रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी. रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे. रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’

बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी. ‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी. ‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी. ‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’ ‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था. ‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था. ‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता.

हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’ ‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी. ‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था.

पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था. कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी. रात के 11 बज गए तो उस ने मोबाइल उठा कर राजीव से संपर्क करने का प्रयत्न किया था. घर से रूठ कर गए हैं तो मनाना तो पड़ेगा ही. पर नंबर मिलाते ही खाने की मेज पर रखा राजीव का फोन बजने लगा था.

‘‘तो महाशय फोन यहीं छोड़ गए हैं. इतना गैरजिम्मेदार तो राजीव कभी नहीं थे. क्या बेरोजगारी मनुष्य के व्यक्तित्व को इस तरह बदल देती है? कब तक आंखें पसारे बैठी रहे वह राजीव के लिए. कल आफिस भी जाना है.’’ इसी ऊहापोह में कब उस की आंख लग गई थी, पता ही नहीं चला था. दीवार घड़ी में 12 घंटों का स्वर सुन कर वह चौंक कर उठ बैठी थी. घबरा कर उस ने राजीव के मित्रों से संपर्क साधा था. ‘‘कौन? रमोला?’’ रिया ने राजीव के मित्र संतोष के यहां फोन किया तो फोन उस की पत्नी रमोला ने उठाया था. ‘‘हां, रिया, कहो कैसी हो?’’

‘‘सौरी, रमोला, इतनी रात गए तुम्हें तकलीफ दी पर शाम 6 बजे के गए राजीव अभी तक घर नहीं लौटे हैं. तुम्हारे यहां आए थे क्या?’’ ‘‘कैसी तकलीफ रिया, आज तो लगता है सारी रात आंखों में ही कटेगी. राजीव आए थे यहां. राजीव और संतोष ने साथ चाय पी. गपशप चल रही थी कि मनोज की पत्नी का फोन आ गया कि मनोज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. दोनों साथ ही मनोज के यहां गए हैं. पर उन्हें तुम्हें फोन तो करना चाहिए था.’’ ‘‘राजीव अपना मोबाइल घर ही भूल गए हैं. पर मनोज जैसा व्यक्ति ऐसा कदम भी उठा सकता है मैं तो सोच भी नहीं सकती थी.

हुआ क्या था?’’ ‘‘पता नहीं, संतोष का फोन आया था कि मनोज और उस की पत्नी में सब्जी लाने को ले कर तीखी झड़प हुई थी. उस के बाद वह तो पास के ही स्टोर में सब्जी लेने चली गई और मनोज ने यह कांड कर डाला,’’ रमोला ने बताया था. ‘‘हाय राम, इतनी सी बात पर जान दे दी.’’ ‘‘बात इतनी सी कहां है रिया. ये लोग तो आकाश से सीधे जमीन पर गिरे हैं. छोटी सी बात भी इन्हें तीर की तरह लगती है.’’ ‘‘पर इन्होंने एकदूसरे को सहारा देने के लिए संगठन बनाया हुआ है.’’ ‘‘कैसा संगठन और कैसा सहारा? जब अपनी ही समस्या नहीं सुलझती तो दूसरों की क्या सुलझाएंगे.’’

रमोला लगभग रो ही पड़ी थी. ‘‘संतोष भैया फिर भी तकदीर वाले हैं कि शीघ्र ही दूसरी नौकरी मिल गई.’’ रिया के शब्द रमोला को तीर की तरह चुभे थे. ‘‘तुम से क्या छिपाना रिया, संतोष के चाचाजी की फैक्टरी है. पहले से एकतिहाई वेतन पर दिनरात जुटे रहते हैं.’’ ‘‘ऐसा समय भी देखना पड़ेगा कभी सोचा न था,’’ रिया ने फोन रख दिया था.  रिया की चिंता की सीमा न थी. इतनी सी बात पर मनोज ने यह क्या कर डाला. अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. रिया पूरी रात सो नहीं सकी थी. उस के और राजीव के बीच भी तो आएदिन झगड़े होते रहते हैं.

वह तो दिन भर आफिस में रहती है और राजीव अकेला घर में. उस से आगे तो वह सोच भी नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी थी. राजीव लगभग 10 बजे घर लौटे थे. ‘‘यह क्या है? कल छह बजे घर से निकल कर अब घर लौटे हो. एक फोन तक नहीं किया,’’ रिया ने देखते ही उलाहना दिया था. ‘‘क्या फर्क पड़ता है रिया. मैं रहूं या न रहूं. तुम तो अपने पावों पर खड़ी हो.’’ ‘‘ऐसी बात मुंह से फिर कभी मत निकालना और किसी का तो पता नहीं पर मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ रिया फफक उठी थी. ‘‘यह संसार ऐसे ही चलता रहता है रिया.

देखो न, मनोज हमें छोड़ कर चला गया पर संसार अपनी ही गति से चल रहा है. न मनोज के जाने का दुख है और न ही उस के लिए किसी की आंखों में दो आंसू,’’ राजीव रो पड़ा था. पहली बार रिया ने राजीव को इस तरह बेहाल देखा था. वह बच्चों के सामने ही फूटफूट कर रो रहा था. रिया उसे अंदर लिवा ले गई थी. किशोर और कोयल आश्चर्यचकित से खड़े रह गए थे.

‘‘तुम दोनों यहीं बैठो. मैं चाय बना लाती हूं,’’ रिया हैरानपरेशान सी बच्चों को बालकनी में बिठा कर राजीव को सांत्वना देने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि राजीव की इस मनोस्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़े. ‘‘ऐसा क्या हो गया जो मनोज हद से गुजर गया. पिछले सप्ताह ही तो सपरिवार आया था हमारे यहां. इतना हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति अंदर से इतना उदास और अकेला होगा यह भला कौन सोच सकता था,’’ रिया के स्वर में भय और अविश्वास साफ झलक रहा था.

उत्तर में राजीव एक शब्द भी नहीं बोला था. उस ने रिया पर एक गहरी दृष्टि डाली थी और चाय पीने लगा था. ‘‘मनोज की पत्नी और बच्चे का क्या होगा?’’ रिया ने पुन: प्रश्न किया था. वह अब भी स्वयं को समझा नहीं पाई थी. ‘‘उस के पिता आ गए हैं वह ही दोनों को साथ ले जाएंगे. पिता का अच्छा व्यवसाय है. मेवों के थोक व्यापारी हैं. वह तो मनोज को व्यापार संभालने के लिए बुला रहे थे पर यह जिद ठाने बैठा था कि पिता के साथ व्यापार नहीं करेगा.’’ रिया की विचार शृंखला थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मनोज की पत्नी मंजुला अकसर अपनी पुरातनपंथी ससुराल का उपहास किया करती थी. पता नहीं उन लोगों के साथ कैसे रहेगी. उस के दिमाग में उथलपुथल मची थी. कहीं कुछ भी होता था तो उन के निजी जीवन से कुछ इस प्रकार जुड़ जाता था कि वह छटपटा कर रह जाती थी.

राजीव भी अपने मातापिता की इकलौती संतान है. वे लोग उसे बारबार अपने साथ रहने को बुला रहे हैं. उस के पिता बंगलौर के जानेमाने वकील हैं पर रिया का मन नहीं मानता. न जाने क्यों उसे लगता है कि वहां जाने से उस की स्वतंत्रता का हनन होगा. धीरेधीरे जीवन ढर्रे पर आने लगा था. केवल एक अंतर आ गया था. अब रिया ने पहले की तरह कटाक्ष करना छोड़ दिया था. वह अपनी ओर से भरसक प्रयास करती कि घर की शांति बनी रहे. उस दिन आफिस से लौटी तो राजीव सदा की तरह कंप्यूटर के सामने बैठा था. ‘‘रिया इधर आओ,’’ उस ने बुलाया था.

वह रिया को कुछ दिखाना चाहता था. ‘‘यह तो शुभ समाचार है. कब हुआ था यह साक्षात्कार? तुम ने तो कुछ बताया ही नहीं,’’ रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर एक जानीमानी कंपनी द्वारा राजीव का नियुक्तिपत्र देख कर प्रसन्नता से उछल पड़ी थी. ‘‘इतना खुश होने जैसा कुछ नहीं है एक तो वह आधे से भी कम वेतन देंगे, दूसरे मुझे बंगलौर जा कर रहना पड़ेगा. यहां नोएडा में उन का छोटा सा आफिस है अवश्य, पर मुझे उन के मुख्यालय में रहना पड़ेगा.’’ ‘‘यह तो और भी अच्छा है. वहां तो तुम्हारे मातापिता भी हैं. उन की तो सदा से यही इच्छा है कि हमसब साथ रहें.’’

‘‘मैं सोचता हूं कि पहले मैं जा कर नई नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं. तुम कोयल और किशोर के साथ कुछ समय तक यहीं रह सकती हो.’’ ‘‘नहीं, न मैं अकेले रह पाऊंगी न ही कोयल और किशोर. सच कहूं तो यहां दम घुटने लगा है मेरा. मेरे मामूली से वेतन में 6-7 महीने से काम चल रहा है. तुम्हें तो उस से दोगुना वेतन मिलेगा. हमसब साथ चलेंगे.’’  कोयल और किशोर सुनते ही प्रसन्नता से नाच उठे थे. उन्होंने दादादादी के घर में अपने कमरे भी चुन लिए थे.

राजीव के मातापिता तो फोन सुनते ही झूम उठे थे. ‘‘वर्षों बाद कोई शुभ समाचार सुनने को मिला है,’’ उस की मां भरे गले से बोली थीं और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी. ‘‘पर तुम्हारी स्वतंत्रता का क्या होगा?’’ फोन रखते ही राजीव ने प्रश्न किया था. ‘‘इतनी स्वार्थी भी नहीं हूं मैं कि केवल अपने ही संबंध में सोचूं. तुम ने साथ दिया तो मैं भी सब के खिले चेहरे देख कर समझौता कर लूंगी.’’ ‘‘समझौता? इतने बुरे भी नहीं है मेरे मातापिता, आधुनिक विचारों वाले पढ़ेलिखे लोग हैं और मुझ से अधिक मेरे परिवार पर जान छिड़कते हैं.’’ इतना कह कर राजीव ने ठहाका लगाया तो रिया को लगा कि इस खुशनुमा माहौल के लिए कुछ बलिदान भी करना पड़े तो वह तैयार है.

क्या लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है, क्या यह बात सच है?

सवाल

मैं 27 साल की विवाहिता हूं. मेरे 2 बेटे हैं. मुझे 2 बार अबौर्शन करवाने की भी जरूरत पड़ी है. छोटे बेटे के जन्म के बाद मैं ने ट्यूब्ल लाइगेशन करवा लिया था. पिछले दिनों मेरी कुछ सहेलियों ने बताया कि लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है. क्या यह बात सच है? क्या मुझे अब भी गर्भनिरोधक युक्ति अपनाने की जरूरत है?

जवाब

यह सच है कि हर किसी गर्भनिरोधक उपाय की तरह लाइगेशन औपरेशन भी कभीकभार फेल हो सकता है. यह परेशानी लाइगेशन औपरेशन के तुरंत बाद के दिनों से ले कर औपरेशन के कई साल बाद किसी भी समय सामने आ सकती है. इंगलैंड में हुए अध्ययनों में देखा गया है कि लाइगेशन औपरेशन करवाने वाली 2000 में से 1 स्त्री में औपरेशन के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है.

दरअसल, इस औपरेशन में स्त्री की दोनों फैलोपियन ट्यूबों पर छल्ला, क्लिप या धागे की गांठ कस दी जाती है. उस से दोनों ट्यूबों का भीतरी रास्ता बंद हो जाता है. नतीजतन ओवरी में पक कर छूटा अंडा न तो बच्चेदानी तक पहुंच पाता है और न ही समागम के समय योनि में छूटे पुरुष शुक्राणु बच्चेदानी से फैलोपियन ट्यूब तक की यात्रा पूरी कर पाते हैं. फलस्वरूप अंडे और शुक्राणु का मिलन नहीं हो पाता और स्त्री प्रैगनैंसी से बची रहती है.

पर इक्केदुक्के मामलों में फैलोपियन ट्यूबों पर डाला गया छल्ला, क्लिप या तो औपरेशन के समय ही ठीक से नहीं डल पाता या फिर समय बीतने पर अपने स्थान से फिसल जाता है जिस से फैलोपियन ट्यूबें फिर से खुल जाती हैं और प्रैगनैंसी होने की संभावना फिर से बन जाती है.

पर इस फेल्योर का रिस्क इतना कम है कि लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद कोई दूसरी गर्भनिरोधक युक्ति अपनाना तर्कसंगत नहीं लगता. आप के लिए वाजिब यही है कि आप यही मानें कि आप का लाइगेशन औपरेशन विफल नहीं होगा.

गांठें: एक बेटी ने कैसे खोली मां के दिल की गांठ

सरला ने चहकते हुए घर में प्रवेश किया. सब से पहले वह अपनी नई आई भाभी दिव्या से मिली.

‘‘हैलो भाभी, कैसी हो.’’

‘‘अच्छी हूं, दीदी,’’ एक फीकी सी मुसकान फेंक कर दिव्या ने कहा और सरला के हाथ की अटैची अपने हाथ में लेते हुए धीरे से बोली, ‘‘आप सफर में थक गई होंगी. पहले चल कर थोड़ा आराम कर लें. तब तक मैं आप के लिए चायनाश्ता ले कर आती हूं.’’

सरला को बड़ा अटपटा सा लगा. 2 ही महीने तो शादी को हुए हैं. दिव्या का चमकता चेहरा बुझ सा गया है.

सरला अपनी मां से मिली तो मां उसे गले से लिपटाते हुए बोलीं, ‘‘अरी, इतनी बड़ी अटैची लाने की क्या जरूरत थी. मैं ने तुझ से कहा था कि अब यहां साडि़यों की कोई कमी नहीं है.’’

‘‘लेकिन मां, साडि़यां तो मिल जाएंगी, ब्लाउज कहां से लाऊंगी? कहां पतलीदुबली भाभी और कहां बुलडोजर जैसी मैं,’’ सरला ने कहा.

‘‘केवल काला और सफेद ब्लाउज ले आती तो काम चल जाता.’’

‘‘अरे, ऐसे भी कहीं काम चल पाता है,’’ बाथरूम में साबुन- तौलिया रखते हुए दिव्या ने  कटाक्ष किया था.

सरला के मन में कुछ गढ़ा जरूर, लेकिन उस समय वह हंस कर टाल गई.

हाथमुंह धो कर थोड़ा आराम मिला. दिव्या ने नाश्ता लगा दिया. सरला बारबार अनुभव कर रही थी कि दिव्या जो कुछ भी कर रही है महज औपचारिकता ही है. उस में कहीं भी अपनापन नहीं है. तभी सरला को कुछ याद आया. बोली, ‘‘देखो तो भाभी, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

सरला ने एक खूबसूरत सा बैग दिव्या को थमा दिया. दिव्या ने उचटती नजर से उसे देखा और मां की ओर बढ़ा दिया.

‘‘क्यों भाभी, तुम्हें पसंद नहीं आया?’’

‘‘पसंद तो बहुत है, दीदी, पर…’’

‘‘पर क्या, भाभी? तुम्हारे लिए लाई हूं. अपने पास रखो.’’

दिव्या असमंजस की स्थिति में उसे लिए खड़ी रही. मांजी चुपचाप दोनों को देख रही थीं.

‘‘क्या बात है, मां? भाभी इतना संकोच क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरी, अब नखरे ही करती रहेगी या उठा कर रखेगी भी. पता नहीं कैसी पढ़ीलिखी है. दूसरे का मन रखना जरा भी नहीं जानती. नखरे तो हर वक्त नाक पर रखे रहते हैं,’’ मां ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘मां, भाभी से ऐसे क्यों कह रही हो? नईनई हैं, आप की आज्ञा के बिना कुछ लेते संकोच होता होगा.’’

सरला का अपनापन पा कर दिव्या के अंदर कुछ पिघलने लगा. उस की नम हो आई आंखें सरला से छिपी न रह सकीं.

सरला सभी के लिए कोई न कोई उपहार लाई थी. छोटी बहन उर्मिला के लिए सलवार सूट, उमेश के लिए नेकटाई और दिवाकर के लिए शर्ट पीस. उस ने सारे उपहार निकाल कर सामने रख दिए. सब अपनेअपने उपहार ले कर बड़े प्रसन्न थे.

‘‘भाभी, आप कश्मीर घूमने गई थीं. हमारे लिए क्या लाईं?’’ सरला ने टोका.

दिव्या एक फीकी सी मुसकान के साथ जमीन देखने लगी. भला क्या उत्तर दे? तभी दिवाकर ने कहा, ‘‘दीदी, भाभी जो उपहार लाई थीं वे तो मां के पास हैैं. अब मां ही आप को दिखाएंगी.’’

‘‘दिवाकर, तू बहुत बोलने लगा है,’’ मां ने झिड़का.

‘‘इस में डांटने की क्या बात है, मां? दिवाकर ठीक ही तो कह रहा है,’’ उमेश ने समर्थन किया.

‘‘अब तू भी बहू का पक्ष लेने लगा,’’ मां की जुबान में कड़वाहट घुल गई.

‘‘सरला, तुम्हीं बताओ कि इस में पक्ष लेने की बात कहां से आ गई. एक छोटी सी बात सीधे शब्दों में कही है. पता नहीं मां को क्या हो गया है. जब से शादी हुई है, जरा भी बोलता हूं तो कहती हैं कि मैं दिव्या का पक्ष लेता हूं.’’

स्थिति विस्फोटक हो इस से पहले ही दिव्या उठ कर अपने कमरे में चली गई. आंसू बहें इस से पहले ही उस ने आंचल से आंखें पोंछ डालीं. मन ही मन दिव्या सोचने लगी कि अभी तो गृहस्थ जीवन शुरू हुआ है. अभी से यह हाल है तो आगे क्या होगा?

जिस तरह सरला अपने भाईबहनों के लिए उपहार लाई है उसी तरह दिव्या भी सब के लिए उपहार लाई थी. अपने इकलौते भाई मनीष के लिए टीशर्र्ट और अपनी मम्मी के लिए शाल कितने मन से खरीदी थी. पापा का सिगरेट केस कितना खूबसूरत था. चलते समय पापा ने 2 हजार रुपए चुपचाप पर्स में डाल दिए थे, उन की लाड़ली घूमने जो जा रही थी. मम्मीपापा और मनीष उपहार देख कर कितने खुश होंगे, इस की कल्पना से वह बेहद खुश थी.

सरला, उर्मिला, मांजी तथा दिवाकर के लिए भी दिव्या कितने अच्छे उपहार लाई थी. उमेश ने स्वयं उस के लिए सच्चे मोतियों की माला खरीदी थी और वह कश्मीरी कुरता जिसे पहन कर उस ने फोटो खिंचवाई थी.

कश्मीर से कितने खुशखुश लौटे थे वे और एकएक सामान निकाल कर दिखा रहे थे. मांजी के लिए कश्मीरी सिल्क की साड़ी, पापाजी के लिए गरम गाउन, उर्मिला के लिए कश्मीरी कुरता, दिवाकर के लिए घड़ी और सरला के लिए गरम शाल. मांजी एकएक सामान देखती गईं और फिर सारा सामान उठा कर अलमारी में रखवा दिया. तभी मांजी  की नजर दिव्या के गले में पड़ी मोतियों की माला पर पड़ी.

उर्मिला ने कहा, ‘भाभी, क्या यह माला भी वहीं से ली थी? बड़ी प्यारी है.’

और दिव्या ने वह माला गले में से उतार कर उर्मिला को दे दी थी. उर्मिला ने पहन कर देखी. मांजी एकदम बोल उठीं, ‘तुझ पर बड़ी जम रही है. चल, उतार कर रख दे. कहीं आनेजाने में पहनना. रोज पहनने से चमक खराब हो जाएगी.’

उमेश और दिव्या हतप्रभ से रह गए. उमेश द्वारा दिव्या को दिया गया प्रथम प्रेमोपहार उर्मिला और मांजी ने इस तरह झटक लिया, इस का दुख दिव्या से अधिक उमेश को था. उमेश कुछ कहना चाहता था कि दिव्या ने आंख के इशारे से मना कर दिया.

2 दिन बाद दिव्या का इकलौता भाई मनीष उसे लेने आ पहुंचा. आते ही उस ने भी सवाल दागा, ‘दीदी, यात्रा कैसी रही? मेरे लिए क्या लाईं?’

‘अभी दिखाती हूं,’ कह कर दिव्या मांजी के पास जा कर बोली, ‘मांजी, मनीष और मम्मीपापा के लिए जो उपहार लाई थी जरा वे दे दीजिए.’

‘तुम भी कैसी बातें करती हो, बहू? क्या तुम्हारे लाए उपहार तुम्हारे मम्मीपापा स्वीकार करेंगे? उन से कहने की जरूरत क्या है. फिर कल उर्मिला का विवाह करना है. उस के लिए भी तो जरूरत पड़ेगी. घर देख कर चलना अभी से सीखो.’

सुन कर दिव्या का मन धुआंधुआं हो उठा. अब भला मनीष को वह क्या उत्तर दे. जब मन टूटता है तो बुद्धि भी साथ नहीं देती. किसी प्रकार स्वयं को संभाल कर मुसकराती हुई लौट कर वह  मनीष से बोली, ‘तुम्हारे जीजाजी आ जाएं तभी दिखाऊंगी. अलमारी की चाबी उन्हीं के साथ चली गई है.’

उस समय तो बात बन गई लेकिन उमेश के लौटने पर दिव्या ने उसे एकांत में सारी बात बता दी. मां से मिन्नत कर के किसी प्रकार उमेश केवल मनीष की टीशर्ट ही निकलवा पाया, लेकिन इस के लिए उसे क्या कुछ सुनना नहीं पड़ा.

मायके से मिले सारे उपहार मांजी ने पहले ही उठा कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. दिव्या को अब पूरा यकीन हो गया था कि वह दोबारा उन उपहारों की झलक भी नहीं देख पाएगी.

शादी के बाद दिव्या के रिश्तेदारों से जो साडि़यां मिलीं वे सब मांजी ने उठा कर रख लीं  और अब स्वयं कहीं पड़ोस में भी जातीं तो दिव्या की ही साड़ी पहन कर जातीं. उर्मिला ने अपनी पुरानी घड़ी छोड़ कर दिव्या की नई घड़ी बांधनी शुरू कर दी थी. दिव्या का मन बड़ा दुखता, लेकिन वह मौन रह जाती. कितने मन से उस ने सारा सामान खरीदा था. समझता उमेश भी था, पर मां और बहन से कैसे कुछ कह सकता था.

‘‘क्या हो रहा है, भाभी?’’ सरला की आवाज सुन दिव्या वर्तमान में लौट आई.

‘‘कुछ नहीं. आओ बैठो, दीदी.’’

‘‘भाभी, तुम्हारा कमरा तुम्हारी ही तरह उखड़ाउखड़ा लग रहा है. रौनक नहीं लगती. देखो यहां साइड लैंप रखो, इस जगह टू इन वन और यहां पर मोर वाली पेंटिंग टांगना. अच्छा बताओ, तुम्हारा सामान कहां है? कमरा मैं ठीक कर दूं. उमेश को तो कुछ होश रहता नहीं और उर्मिला को तमीज नहीं,’’ सरला ने कमरे का जायजा लेते हुए कहा.

‘‘आप ने बता दिया. मैं सब बाद में ठीक कर लूंगी, दीदी. अभी तो शाम के खाने की व्यवस्था कर लूं,’’ दिव्या ने उठते हुए कहा.

‘‘शाम का खाना हम सब बाहर खाएंगे. मैं ने मां से कह दिया है. मां अपना और बाबूजी का खाना बना लेंगी.’’

‘‘नहीं, नहीं, यह तो गलत होगा कि मांजी अपने लिए खाना बनाएंगी. मैं बना देती हूं.’’

‘‘नहीं, भाभी, कुछ भी गलत नहीं होगा. तुम नहीं जानतीं कि कितनी मुश्किल से एक दिन के लिए आई हूं, मैं तुम से बातें करना चाहती हूं. और तुम भाग जाना चाहती हो. सही बताओ, क्या बात है? मुंह क्यों उतरा रहता है? मैं जब से आई हूं कुछ गड़बड़ अनुभव कर रही हूं. उमेश भी उखड़ाउखड़ा लग रहा है. आखिर बात क्या है, समझ नहीं पा रही.’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, दीदी. आप को वहम हुआ है. सभी कुछ तो ठीक है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलो, भाभी. तुम्हारा चेहरा बहुत कुछ कह रहा है. अच्छा दिखाओ भैया ने तुम्हें कश्मीर से क्या दिलाया?’’

दिव्या एक बार फिर संकोच से गढ़ गई. सरला को क्या जवाब दे? यदि कुछ कहा तो समझेगी कि मैं उन की मां की बुराई कर रही हूं. दिव्या ने फिर एक बार झूठ बोलने की कोशिश की, ‘‘दिलाते क्या? बस घूम आए.’’

‘‘मैं नहीं मानती. ऐसा कैसे हो सकता है? अच्छा चलो, अपनी एलबम दिखाओ.’’

और दिव्या ने एलबम सरला को थमा दी. चित्र देखतेदेखते सरला एकदम चिहुंक उठी, ‘‘देखो भाभी, तुम्हारी चोरी पकड़ी गई. यही माला दिलाई थी न भैया ने?’’

अब तो दिव्या के लिए झूठ बोलना मुश्किल हो गया. उस ने धीरेधीरे मन की गांठें सरला के सामने खोल दीं. सरला गंभीरता से सब सुनती रही. फिर दिव्या की पीठ थपथपाती हुई बोली, ‘‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तुम बाहर चलने के लिए तैयार हो जाओ. उमेश भी आता ही होगा.’’

दिव्या मन ही मन डर रही थी कि हाय, क्या होगा. वह सोचने लगी कि सरला से सब कह कर उस ने ठीक किया या गलत.

बाहर वह सब के साथ गई जरूर, लेकिन उस का मन जरा भी नहीं लगा. सभी चहक रहे थे पर दिव्या सब के बीच हो कर भी अकेली बनी रही. लौटने के बाद सारी रात अजीब कशमकश में बीती. उमेश भी दिव्या को परेशान देख रहा था. बारबार पूछने पर दिव्या ने सिरदर्द का बहाना बना दिया.

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के बाद सरला ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘भैया, आज आप के दफ्तर की छुट्टी. मैटिनी शो देखने चलेंगे. उर्वशी में अच्छी फिल्म लगी है.’’

सब जल्दीजल्दी काम से निबटे. दिव्या भी पिक्चर जाने के  लिए तैयार होने लगी. तभी उर्मिला ने आ कर कहा, ‘‘भाभी, मां ने कहा है, आप यह माला पहन कर जाएंगी.’’

और माला के साथ ही उर्मिला ने घड़ी भी ड्रेसिंग टेबिल पर रख दी. दिव्या को बड़ा आश्चर्य हुआ. उमेश भी कुछ नहीं समझ पा रहा था. आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ?

सब पिक्चर देखने गए, लेकिन उर्मिला और मांजी घर पर रह गए. दिव्या और उमेश पिक्चर देख कर लौटे तो जैसे उन्हें अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. यह कमरा तो उन का अपना नहीं था. सभी कुछ एकदम बदलाबदला सा था. दिव्या ने देखा, सरला पीछे खड़ी मुसकरा रही है. दिव्या को समझते देर न लगी कि यह सारा चमत्कार सरला दीदी की वजह से हुआ है.

उमेश कुछ समझा, कुछ नहीं. शाम की ट्रेन से सरला को जाना था. सब तैयारियां हो चुकी थीं. दिव्या सरला के लिए चाय ले कर मांजी के कमरे में जा रही थी, तभी उस ने  सुना, सरला दीदी कह रही थीं, ‘‘मां, दिव्या के साथ जो सलूक तुम करोगी वही सुलूक वह तुम्हारे साथ करेगी तो तुम्हें बुरा लगेगा. वह अभी नई है. उसे अपना बनाने के लिए उस का कुछ छीनो मत, बल्कि उसे दो. और उर्मिला तू भी भाभी की कोई चीज अपनी अलमारी में नहीं रखेगी. बातबात पर ताना दे कर तुम भैया को भी खोना चाहती हो. जितनी गांठें तुम ने लगाई हैं एकएक कर खोल दो. याद रहे फिर कोई गांठ न लगे.’’

और दिव्या चाय की ट्रे हाथ में लिए दरवाजे पर खड़ी आंसू बहा रही थी.

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‘‘दीदी, आप जैसी ननद सब को मिले,’’ चाय की ट्रे मेज पर रख कर दिव्या ने सरला के पांव छूने को हाथ बढ़ाए तो सरला ने उसे गले से लगा लिया.

खुशियों के फ़ूल: किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

लेखिका-रेणु गुप्ता

“मिस्टर निनाद, आप और आपकी वाइफ कोरोना पोजिटिव आए हैं, लेकिन आपके सिम्टम्स बहुत माइल्ड हैं. इसलिए आप दोनों को अपने घर पर ही सेल्फ क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. यह रही शहर की कोरोनावायरस हैल्प लाइन का नंबर. अगर आपकी तबीयत खराब लगे तो आप इस नंबर पर फोन करिएगा.आपको हॉस्पिल ले जाने का पूरा इंतजाम हो जाएगा. अभी आपको हौस्पिटलाइजेशन की कोई जरूरत नहीं. अब आप घर जा सकते हैं. गुड लक.”

निनाद और अम्बा  डॉक्टर की बातें सुनकर सदमे  में थे.कोरोना और उनको? दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. करोना के खौफ से दोनों के चेहरों से मानो रक्त निचुड़ सा गया था.उन्हें लग रहा था, मानो उनके पांव तले जमीन न रही थी.

हॉस्पिटल से बाहर निकल कर निनाद ने अपनी पत्नी अम्बा  से कहा ,”प्लीज़ अम्बा, घर  चलो, तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं है. कोरोना का नाम सुन कर मैं हिल गया हूं. कोरोना से मौत की इतनी कहानियाँ सुन सुन कर मुझे दहशत सी हो रही है. बहुत  घबराहट हो रही है. तुम साथ होगी तो मेरी हिम्मत बनी रहेगी. प्लीज अम्बा, ना मत करना. फिर घर जाओगी तो मां को भी तुमसे बीमारी लगने का डर होगा.”

निनाद के मुंह से  प्लीज और  घर जाने की रिक्वेस्ट सुन अम्बा  बुरी तरह से चौंक गई थी. वह मन ही मन सोच रही थी, “इस बदज़ुबान और हेकड़ निनाद  को क्या हुआ? शायद तीन  महीने मुझसे अलग रहकर आटे दाल का भाव पता चल गया है इन्हें. इस बीमारी की स्थिति में किसी और परिचित या रिश्तेदार के घर जाना भी ठीक नहीं. कोई घर ऐसा नहीं जहां मैं इस मर्ज के साथ एकांत में रह सकूं. इस बीमारी में माँ के पास भी जा सकती. फिर निनाद की उसे अपने घर ले जाने की रट देख कर मन में कौतुहल जगा था, देखूं, आखिर माजरा क्या है जो ज़नाब इतनी मिन्नतें कर रहें हैं मुझे घर ले जाने के लिए. मन में दुविधा का भाव था, निनाद के घर जाये या नहीं. उससे तलाक की बात भी चल रही है. कि तभी हॉस्पिटल की ऐम्बुलेंस आगई और निनाद ने ऐम्बुलेंस का दरवाज़ा उसके लिए खोलते हुए उसे कंधों से उसकी ओर लगभग धकेलते से हुए उससे कहा, “बैठो अम्बा, क्या सोच रही हो,’’ और वह विवश ऐम्बुलेंस में बैठ गई.’’

घर पहुंचकर निनाद अम्बा  से बोला, “मैं पास  की दुकान को दूध सब्जी की होम डिलीवरी के लिए फोन करता हूं.”

“ओके.”

दुकान को फोन कर निनाद  नहा धोकर अपने बेडरूम में लेट गया और अम्बा  घर के दूसरे बेडरूम में. अम्बा  को तनिक थकान हो  आई थी और उसने आंखें बंद कर लीं. उसकी बंद पलकों में बरबस निनाद के साथ गुज़रा समय मानो सिनेमाई रील की मानिंद ठिठकते ठहरते चलने लगा  और वह बीते दिनों की भूल भुलैया में अटकती भटकती खो गई.

वह सोच रही थी, जीवन कितना अनिश्चित होता है. निनाद  से विवाह कर वह कितनी खुश थी, मानो सातवें आसमान में हो. लेकिन उसे क्या पता था, निनाद  से शादी उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.

एक सरकारी प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक अम्बा  और एक बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक निनाद  का तीन वर्षों पहले विवाह हुआ था. निनाद ने उस दिन  अपने शहर की किसी कॉन्फ्रेंस में अपूर्व  लावण्यमयी अम्बा  को बेहद आत्मविश्वास  से एक प्रेजेंटेशन  देते सुना था, और वह उसका मुरीद हो गया. शुष्क, स्वाभाव के निनाद को अम्बा  को देखकर शायद पहली बार प्यार जैसे रेशमी, मुलायम जज़्बे का एहसास हुआ था. कॉन्फ्रेंस से घर लौट कर भी अम्बा  और उसका ओजस्वी धाराप्रवाह भाषण उसके चेतना मंडल पर अनवरत छाया रहा. उसके कशिश भरे, धीर गंभीर सौंदर्य ने सीधे उसके हृदय पर दस्तक दी थी और उसने लिंकडिन पर उसका प्रोफाइल ढूंढ उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की थी. उसके माता पिता की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी थी.इसलिए उसने स्वयं  उसे फोन कर और फ़िर उससे मिलकर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था.

अम्बा  की विवाह योग्य उम्र हो आई थी. सो मित्रों परिचितों से निनाद  की नौकरी, घर परिवार और चाल चलन की तहकीकात कर उसने निनाद  से विवाह करने की हामी भर दी.

अम्बा  की मात्र मां जीवित थी. वह  बेहद गरीब परिवार से थी. पिता एक पोस्टमैन थे. उनकी मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी. तो प्रतिष्ठित पदधारी निनाद  का विवाह प्रस्ताव अम्बा  और उसकी मां को बेहद पसंद आया.शुभ मुहूर्त में दोनों का परिणय  संस्कार संपन्न हुआ .

विवाह  के उपरांत सुर्ख लाल जोड़े में सजी, पायल छनकाती अम्बा  निनाद के घर आ गई, लेकिन यह विवाह उसके जीवन में खुशियों के फूल कतई न खिला सका. निनाद एक बेहद कठोर स्वाभाव  का कलह  प्रिय इंसान था. बात-बात पर क्लेश  करना उसका मानो  जन्म सिद्ध अधिकार था. फूल सी कोमल तन्वंगी अम्बा  महीने भर में ही समझ गई  कि यह विवाह कर उसने जीवन की सबसे गुरुतर  भूल की है. दिनों दिन पति के क्लेश से उसका  खिलती कली सा मासूम मन और सौंदर्य कुम्हलाने  लगा.

निनाद  बात बात पर उसे अपने से कम हैसियत के परिवार का तायना देता.गाहे बगाहे  वह मां से मिलने जाती तो उस से लड़ता. मामूली बातों पर उससे उलझ पड़ता. बात बात पर उसे झिड़कता.

अम्बा  एक बेहद सुलझी हुई, समझदार और मैच्योर युवती  थी. वह भरसक निनाद को अपनी ओर से कोई मौका नहीं देती कि वह क्रुद्ध  हो लेकिन दुष्ट निनाद  किसी न किसी बात पर उससे रार  कर ही बैठता.

निनाद अम्बा  के विवाह को तीन  वर्ष बीत  चले.पति के खुराफ़ाती स्वभाव से त्रस्त अम्बा  कभी-कभी सोचती, पति से अलग होकर उसे इस यातना से मुक्ति मिल जाएगी.जिस दिन गले तक निनाद के दुर्व्यवहार से भर जाती, मां से अपनी व्यथा कथा साझा  करती.उससे अलग होने की मंशा जताती. लेकिन पुरातनपंथी मां हर बार उसे धीरज रखने की सलाह देकर चुप करा कर वापस अपने घर भेज देती.

एक  दिन लेकिन हद ही हो गई. उस दिन अम्बा  मां के घर से लौटी ही थी, कि रात के आठ  बजे तक टेबल पर डिनर सर्व ना होने की फ़िजूल सी बात पर निनाद उस पर गुस्से से फट पड़ा और उस दिन निनाद का बेवजह गुस्से से चीखना चिल्लाना सुन अम्बा  का धैर्य जवाब दे गया. वह उल्टे पैरों वापस मां के घर चली आई. बहुत सोच विचार कर मां के यहां एक माह  रहने के बाद उसने निनाद को फोन करके कहा “निनाद, अब मैं यहां माँ के साथ ही रहूँगी. तुम्हारे घर नहीं लौटूंगी. मुझे तुमसे तलाक चाहिए.’’

अम्बा की यह बात सुनकर निनाद अतीव क्रोध से बिफर उठा. अम्बा की तलाक की मांग उसे अपने पौरुष पर प्रहार लगी. सो गुस्से से भड़कते हुए वह चिल्लाया, “शौक से रहो माँ के साथ.मैं भी तुम्हारे बिना मरा नहीं जा रहा. जब चाहोगी तलाक मिल जाएगा.’’

मन ही मन समझता था कि वह पत्नी के साथ ज्यादती कर रहा है लेकिन अपने पुरुषोचित, अड़ियल  और अहंवादी  स्वाभाव से मजबूर था.

अम्बा तलाक की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक अच्छे वकील की तलाश में जुट गई थी. अम्बा को माँ के यहां आए तीन माह हो चले थे.तभी अम्बा को एक अच्छी महिला वकील मिल गई थी और वह उससे मिलने ही वाली थी कि तभी  उन्हीं दिनों लंदन में एक कॉन्फ्रेंस में दोनों को जाना पड़ा. कॉन्फ्रेंस अटेंड कर एक ही फ़्लाइट से वे दोनों अपने देश लौटे ही थे कि लंदन में कोरोना  के प्रकोप के चलते  अपने शहर के एयरपोर्ट पर निनाद को हल्का बुखार निकला. फिर हौस्पिटल में दोनों का कोरोना का टेस्ट हुआ और उसमें  दोनों कोरोना पॉजिटिव निकले

कि तभी निनाद की  पुकार से उसकी तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में वापस आई और दौड़ी-दौड़ी निनाद के पास गई.

निनाद आंखें बंद कर लेटा हुआ था.”अम्बा,  मेरे पास बैठो.  मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.”

” कैसा लग रहा है निनाद?”

”  बहुत कमजोरी लग रही है और घबराहट हो रही है.”

“अरे घबराने की क्या बात है?  चलो मैं तुम्हारे लिए गर्मागर्म टमेटो सूप बनाकर लाती हूं.सूप पीकर तुम बेहतर फ़ील करोगे,” यह कहकर अम्बा  रसोई में जाकर दस  मिनट में सूप बनाकर ले आई.

” अम्बा,  हम दोनों ठीक तो हो जाएंगे ना?”

” हां हां बिल्कुल ठीक हो जाएंगे. डाक्टर ने कहा था न, हम दोनों के ही सिमटम्स बहुत माइल्ड हैं. डरने की कोई बात नहीं है. तुम सोने की कोशिश करो. सो लोगे तो बेहतर फील करोगे.”

” तुम भी जा कर आराम करो. तुम्हें भी तो थकान हो रही होगी.”

” नहीं नहीं, मेरा इंफेक्शन  शायद  कुछ ज्यादा ही माइल्ड है. मुझे कुछ गड़बड़ फील नहीं हो रहा. तुम सो जाओ.”

तभी निनाद ने अपना हाथ बढ़ाकर अम्बा का हाथ थाम उसे जकड़ लिया और उसे खींच कर अपने पास बिठाते हुए उससे बेहद मीठे स्वरों में बोला, “मुझसे नाराज़ हो? मैं अपनी पिछली गलतियों को लेकर बेहद शर्मिंदा हूं. मेरे पास बैठो. तुम मुझसे दूर चली जाती हो तो मुझे लगता है, मेरी जिंदगी मुझसे दूर चली गई. वापिस आजाओ अम्बा मेरी ज़िंदगी में. तुम्हारे बिना मैं बहुत अकेला हो गया हूँ.“ यह कह कर उसने उसकी  हथेली को चूम उसके हाथों को अपनी गिरफ़्त में जकड़ लिया.”

महीनों बाद पति के स्नेहिल स्पर्श और स्वरों  से अम्बा  एक अबूझ  मृदु ऐहसास  से भर उठी लेकिन दूसरे ही क्षण वह असमंजस से भर उठी. तीन वर्षों तक उसका दुर्व्यव्हार सह कर क्या अब उसे एक बार फिर उसके करीब आना चाहिए?

पति के हाथों को जकड़े जकड़े अम्बा  सोच रही थी, “काश, तुम पहले भी ऐसे ही रहते तो जिंदगी कितनी खुशनुमा होती.”

अगली सुबह निनाद  जब उठा तो उसके सर में तेज दर्द था. अम्बा  ने निनाद के फैमिली डॉक्टर को निनाद के चेकअप के लिए बुलाया. वह आए और निनाद  की हालत देख अम्बा  से बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है. अभी भी इनके सिम्टम्स माइल्ड ही  हैं. हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत नहीं है. बस इन पर पूरे वक्त वॉच रखिए और तबीयत बिगड़े तो मुझे इन्फॉर्म करिए. आपको भी कोरोना का इंफेक्शन है. बेहतर होगा यदि आप एक नर्स रख लें.”

“नहीं-नहीं डॉक्टर, मैं बिल्कुल ठीक हूं.  ना मुझे कोई कमजोरी लग रही न ही कहीं दर्द है. आप निश्चिंत रहिए मैं इन पर पूरे वक्त वॉच रखूंगी.”

डाक्टर के जाने के बाद निनाद  ने अम्बा  से कहा, “तुम  इतना लोड लोगी तो तुम भी बीमार पड़ जाओगी. प्लीज कोई नर्स रख लो.”

“हां, इस बारे में सोचती हूं. तुम अभी सो जाओ.’’

निनाद को चादर उढ़ा वह दूसरे बेडरूम में अपने पलंग पर लेट गई. पिछले दिन से अम्बा गंभीर सोचविचार में मग्न थी. निनाद को लेकर वह कुछ फैसला नहीं कर पा रही थी. निनाद के रवैये से स्पष्ट था, वह अब समझौते के मूड में था, लेकिन क्या वह पिछले तीन वर्षों तक उसके दिये घावों को भुला कर उसकी इच्छानुसार उसके साथ एक बार फिर जिंदगी की नई शुरुआत कर पाएगी.वह घोर द्विविधा में थी. निनाद के बंधन को काट फेंके या फिर गुजरे दिनों को भुला कर एक नया आगाज़ करे? एक ओर उसका मन कहता, इंसान की फितरत कभी नहीं बदलती. उसने उसके साथ एक नई शुरुआत कर भी ली तो क्या गारंटी है कि वह उसे दोबारा तंग नहीं करेगा? तभी दूसरी ओर वह सोचती, जब निनाद ने अपनी गलती मान ली है तो एक मौका तो उसे देना ही चाहिए.अनायास उसके कानों में माँ के धीर गंभीर शब्द गूंज उठे, “रिश्तों की खूबसूरती उन्हें बनाए रखने में होती है, ना की उन्हें तोड़ने में.“

जिंदगी के इस मोड पर वह स्पष्टता से कुछ सोच नहीं पा रही थी, कि क्या करे.

बीमारी के इस दौर में निनाद एक दम बदला बदला नज़र आ रहा था. वह   बेहद डर गया था. वह एक बेहद डरपोक किस्म का, कमज़ोर दिल का इंसान था.उसे लगता वह कोरोना से मर जाएगा. ठीक नहीं होगा. वह बेहद कमज़ोरी फील कर रहा था. अम्बा  को यूं दिन रात अपनी देखभाल करते देख मन ही मन उसने न जाने कितनी बार अपने आप से दोहराया, “इस बार बस मैं ठीक हो जाऊं, अम्बा  को बिल्कुल तंग नहीं करूंगा. उसे पूरा प्यार और मान दूंगा. अब उसपर बिलकुल नहीं चिल्लाऊंगा.” अम्बा को इस तरह समर्पित भाव से अपनी सेवा करते देख वह गुजरे दिनों में उसके प्रति अपने दुर्व्यवहार को लेकर घोर  पछतावे से भर उठा. साथ ही कोरोना से मौत के खौफ ने उसे बहुत हद तक  बदल दिया था.

उस दिन रात का एक  बज रहा था. निनाद की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी.  उसके हाथ पैरों में बहुत दर्द हो रहा था. वह बार-बार दर्द से हाथ पैर पटक रहा था. अम्बा  उसके हाथ पैर दबा रही थी. अम्बा  के हाथ पैर दबाने से उसे बेहद आराम लगा था और भोर होते होते वह गहरी नींद में सो गया था. इतनी देर तक उसके हाथ पैर दबाते दबाते अम्बा  भी थकान से बेदम हो गई थी लेकिन मन में कहीं अबूझ सुकून का भाव था. वह कोरोना की वज़ह से  निनाद में आए परिवर्तन को भांप रही थी. निनाद अब  बेहद बदल गया था. उसकी आंखों में अपने लिए प्यार का समुंदर उमड़ते  देख वह मानो  भीतर तक भीग  उठती लेकिन दूसरे की क्षण पुराने दिनों की याद कर भयभीत हो उठती.

अगली सुबह अम्बा ने डाक्टर को बुलवाया. उन्होंने निनाद के लिए कुछ दवाइयाँ लिख दीं. उन दवाइयों  से निनाद  की तबीयत धीमे धीमे सुधरने लगी थी. दस  दिनों में वह बिस्तर से उठ बैठा था.

वह  दिन उन दोनों की जिंदगी का एक अहम दिन था जब दोनों अस्पताल में टेस्ट के बाद कोरोना नेगेटिव निकले थे. अभी उन्हें चौदह दिनों तक क्वारंटाइन में और रहना था. सो दोनों फिर से निनाद के घर चले गए.

घर पहुंचकर निनाद ने अम्बा से  कहा, “अम्बा,  में ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा कि तुम मेरी सारी ज़्यादतियाँ  भुलाकर मुझे मौत के मुंह से वापस खींच लाई. मैं वादा करता हूं तुमसे, अब कभी पुरानी  गलतियां  नहीं दोहराऊंगा. कभी बेबात तुम पर नहीं चिल्लाऊंगा. आई एम रीयली वेरी सॉरी. मुझे माफ कर दो.’’

“निनाद, तुम्हारे माफ़ी मांगने से क्या रो रो कर, कुढ़ते झींकते तुम्हारे साथ बिताए तीन साल अनहुए हो जाएँगे? उन तीन सालों में तुमने मुझे जो दर्द दिया, तुम्हारे सॉरी कह देने से क्या उनकी भरपाई हो जाएगी? मैं कैसे मान लूँ कि तुम अब पुरानी बातें नहीं दोहराओगे? नहीं नहीं, हम अलग अलग ही ठीक हैं. अब मुझमें तुम्हारी फ़िज़ूल की कलह को झेलने की सहनशक्ति भी नहीं बची है.मैं अकेले बहुत सुकून से हूँ.“

उसकी बातें सुन निनाद ने उससे फिर से मिन्नतें की “अम्बा, मेरा यकीन करो, तुमसे अलग रह कर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. बेवज़ह तुमसे झगड़ा करता रहा. प्लीज़ अम्बा, एक बार मुझे माफ़ करदो. वादा करता हूँ, तुम्हें कभी मुझसे शिकायत नहीं होगी. प्लीज़ अम्बा.’’

निनाद की ये बातें सुन अम्बा को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही निनाद है जो कुछ महीनों पहले तक उससे बात बात पर लड़ाई मोल लेता था. बहाने बहाने से उसे सताता था. कुछ सोच कर उसने निनाद से कहा, “इस बार तो मैं तुम्हारी बात मान  लेती हूँ, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर  अब तुमने फिर से बेबात मुझसे कभी भी कलह की, बेवज़ह मुझसे झगड़े तो मैं उसी वक़्त  तुम्हें छोड़ कर चली जाऊँगी और तुमसे तलाक लेकर रहूंगी. पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी हूं, अकेले जिंदगी काटने का दम खम  रखती हूं. इतने दिनों से अकेली बड़े चैन से रह ही रही हूँ. अब मैं तुम्हें अपनी मानसिक शांति भंग करने की इज़ाजत  हर्गिज़ हर्गिज़  नहीं दूँगी. ना ही अपनी बेइज्ज़ती करवाऊंगी. तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, इसलिए इस बार तो मैंने तुम्हें माफ़ किया लेकिन याद रखना, अगली बार तुम्हें कतई माफ़ी नहीं मिलेगी.“

“नहीं, नहीं अम्बा, भरोसा रखो, अब मैं तुम्हें शिकायत का मौका हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं दूंगा. मैं वास्तव में अपनी पुरानी ज़्यादतियों के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. अब हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे. जिंदगी की यह दूसरी पारी तुम्हारे नाम, माय लव,” यह  कहते हुए निनाद ने अम्बा  को अपने सीने से लगा लिया था .

पति की बाहों में बंधी अम्बा  को लगा, मानो पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में थी. निनाद  के साथ साझा, सुखद  भविष्य के सतरंगे  सपने उसकी आंखों में झिलमिला उठे.उसे लगा, एक अर्से बाद उसके चारों ओर खुशियों के फ़ूल गमक महक उठे थे.

नया रिश्ता : पार्वती और विशाल ने बुढ़ापे में एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी चुना

लेखक-ताराचंद मकसाने

अमित की मम्मी पार्वती ने शरमाते हुए विशाल कुमार को अंगूठी पहनाई तो अमित की पत्नी शिवानी और उन के बच्चे अनूप व अतुल ने अपनी दादी पर फूलों की बरसात करनी शुरू कर दी. बाद में विशाल कुमार ने भी पार्वती को अंगूठी पहना दी. माहौल खुशनुमा हो गया, सभी के चेहरे खिल उठे, खुशी से झूमते बच्चे तो अपने नए दादा की गोद में जा कर बैठ गए.

यह नज़ारा देख कर अमित की आंखें नम हो गईं. वह अतीत की यादों में खो गया. अमित 5 वर्षों से शहर की सब से पौश कालोनी सनराइज सोसाइटी में रह रहा था. शिवानी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण पूरी कालोनी की चहेती बनी हुई थी. कालोनी के सभी कार्यक्रमों में शिवानी की मौजूदगी अकसर अनिवार्य होती थी.

अमित के मातापिता गांव में रहते थे. अमित चाहता था कि वे दोनों उस के साथ मुंबई में रहने के लिए आ जाएं मगर उन्होंने गांव में ही रहना ज्यादा पसंद किया. वे साल में एकदो बार 15-20 दिनों के लिए जरूर अमित के पास रहने के लिए मुंबई आते थे. मगर मुंबई आने के 8-10 दिनों बाद ही गांव लौटने का राग आलापने लग जाते थे.

वक्त बीत रहा था. एक दिन रात को 2 बजे अमित का मोबाइल बजा.

‘हैलो, अमित बेटा, मैं तुम्हारे पिता का पड़ोसी रामप्रसाद बोल रहा हूं. बहुत बुरी खबर है, तुम्हारे पिता शांत हो गए है. अभी घंटेभर पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे थे, रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.’

अपने पिता की मृत्यु के बाद अमित अपनी मम्मी को अपने साथ मुंबई ले कर आ गया. बतौर अध्यापिका सेवानिवृत्त हुई पार्वती अपने पति के निधन के बाद बहुत अकेली हो गई थी. पार्वती को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था. अमित और शिवानी के नौकरी पर जाने के बाद वह अपने पोते अनूप और अतुल को पढ़ाती थी. उन के होमवर्क में मदद भी करती थी.

पार्वती को अमित के पास आए 2 साल हो गए थे. अमित के पड़ोस में विशाल कुमार रहते थे. वे विधुर थे, नेवी से 2 साल पहले ही रिटायर हो कर रहने के लिए आए थे. उन का एक ही बेटा था जो यूएस में सैटल हो गया था. एक दिन शिवानी ने पार्वती की पहचान विशाल कुमार से करवाई. दोपहर में जब बच्चे स्कूल चले जाते थे तब दोनों मिलते थे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच औपचारिक बातें होती थीं. धीरेधीरे औपचारिकता की दीवार कब ढह गई, उन्हें पता न चला. अब दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. पार्वती और विशाल कुमार का अकेलापन दूर हो गया.

एक दिन शिवानी ने अमित से कहा- ‘अमित, पिछले कुछ दिनों से मम्मी में आ रहे बदलाव को तुम ने महसूस किया क्या?’

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, उस ने विस्मय से पूछा- ‘मैं कुछ समझा नहीं, शिवानी, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे अमित, मम्मी अब पहले से ज्यादा खुश नज़र आ रही हैं, उन के रहनसहन में भी अंतर आया है. पहले मम्मी अपने पहनावे पर इतना अधिक ध्यान नहीं देती थीं, आजकल वे बहुत ही करीने से रह रही हैं. उन्होंने अपने संदूक से अच्छीअच्छी साड़ियां निकाल कर वार्डरोब में लटका दी हैं. आजकल वे शाम को नियमितरूप से घूमने के लिए जाती हैं…’

अमित ने शिवानी की बात बीच में काटते हुए पूछा- ‘शिवानी, मैं कुछ समझा नहीं, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे भई, मम्मी को एक दोस्त मिल गया है. देखते नहीं, आजकल उन का चेहरा खिला हुआ नज़र आ रहा है.’

‘व्हाट…कैसा दोस्त, कौन दोस्त, शिवानी. प्लीज पहेली मत बुझाओ, खुल कर बताओ.’

‘अरे अमित, आजकल हमारे पड़ोसी विशाल अंकल और मम्मी के बीच याराना बढ़ रहा है,’ यह कहती हुई शिवानी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है. मम्मी वैसे भी अकेली पड़ गई थीं. वे हमेशा किताबों में ही खोई रहती थीं. कोई आदमी दिनभर किताबें पढ़ कर या टीवी देख कर अपना वक्त भला कैसे गुजार सकता है. कोई तो बोलने वाला चाहिए न. चलो, अच्छा हुआ मगर यह सब कब से हो रहा है, मैं ने तो कभी महसूस नहीं किया. तुम्हारी पारखी नज़रों ने यह सब कब भांप लिया? शिवानी, यू आर ग्रेट…’ अमित ने विस्मय से कहा.

‘अरे अमित, तुम्हें अपने औफिस के काम, मीटिंग, प्रोजैक्ट्स आदि से फुरसत ही कहां है, मम्मी अकसर मुझ से तुम्हारी शिकायत भी करती हैं कि अमित को तो मुझ से बात करने का वक्त भी नहीं मिलता है,’ शिवानी ने शिकायत की तो अमित तुरंत बोला, ‘हां शिवानी, तुम सही कह रही हो, आजकल औफिस में इतना काम बढ़ गया है कि सांस लेने की फुरसत तक नहीं मिलती है. मगर मुझे यह सुन कर अच्छा लगा कि अब मम्मी बोर नहीं होंगी. साथ ही, हमें कभी बच्चों को ले कर एकदो दिन के लिए बाहर जाना पड़ा तो मम्मी घर पर अकेली भी रह सकती हैं.’ अमित ने अपने दिल की बात कह दी.

‘मगर अमित, मैं कुछ और सोच रही हूं,’ शिवानी ने धीरे से रहस्यमयी आवाज में कहा तो अमित ने विस्मयभरी आंखों से शिवानी की सूरत को घूरते हुए कहा- ‘हां, बोलो, बोलो, तुम क्या सोच रही हो?’

‘मैं सोच रही हूं कि तुम विशाल अंकल को अपना पापा बना लो,’ शिवानी ने तुरुप का पता फेंक दिया.

‘क्या…तुम्हारा दिमाग तो नहीं खिसक गया,’ अमित लगभग चिल्लाते हुए बोला.

‘अरे भई, शांत हो जाओ, पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मम्मी अकेली हैं, उन के पति नहीं हैं. और विशाल अंकल भी अकेले हैं व उन की पत्नी नहीं हैं. जवानी की बनिस्पत बुढ़ापे में जीवनसाथी की जरूरत ज्यादा होती है. मम्मी और विशाल अंकल दोनों सुलझे हुए विचारों के इंसान हैं, दोनों सीनियर सिटिजन हैं और अपनी पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त हैं.

‘विशाल अंकल का इकलौता बेटा है जो यूएस में सैटल है. विशाल अंकल के बेटे सुमित और उस की पत्नी तान्या से मेरी अकसर बातचीत भी होती रहती है. वे दोनों भी चाहते हैं कि उन के पिता यूएस में हमेशा के लिए आ जाएं मगर उन्हें तो अपने वतन से असीम प्यार है, वे किसी भी कीमत पर वहां जाने को राजी नहीं, सेना के आदमी जो ठहरे. फिर उन का तो कहना है कि वे आखरी सांस तक अपने बेटे और बहू को भारत लाने की कोशिश करते रहेंगे. मगर वे अपनी मातृभूमि मरते दम तक नहीं छोडेंगे.’ अमित बड़े ध्यान से शिवानी की बात सुन रहा था.

शिवानी ने किंचित विश्राम के बाद कहा, ‘अमित, अब मैं मुख्य विषय पर आती हूं. तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का नाम तो सुना ही होगा.’

शिवानी की बात सुन कर अमित के चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव तेजी से उभरने लगे जिन्हें शिवानी ने क्षणभर में पढ़ लिया और अमित को समझाते हुए बोली- ‘अमित, आजकल हमारे देश में विशेषकर युवाओं और बुजुर्गों के बीच एक नए रिश्ते का ट्रैंड चल रहा है जिसे ‘लिवइन रिलेशनशिप’ कहते हैं. इस में महिला और पुरूष शादी के बिना अपनी सहमति के साथ एक ही घर में पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं. आजकल शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र लोग इस तरह की रिलेशनशिप को अधिक पसंद करते है क्योंकि इस में विवाह की तरह कानूनी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है. भारतीय कानून में भी इसे स्वीकृति दी गई है.

‘शादी के टूटने के बाद आप को कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पडता है मगर इस रिश्ते में इतनी मुश्किलें नहीं आती हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला आप को सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति देता है. इस रिश्ते में सामाजिक व पारिवारिक नियम आप पर लागू नहीं होते हैं. अगर यह रिश्ता टूट भी जाता है तो आप इस में से आसानी बाहर आ सकते हैं. इस में कोई कानूनी अड़चन भी नहीं आती है. इसलिए मैं चाहती हूं कि…’ बोलती हुई शिवानी फिर रुक गई तो अमित अधीर हो गया और झल्लाते हुए बोला- ‘अरे बाबा, लगता है तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ विषय में पीएच डी कर रखी है. पते की बात तो बता नहीं रही हो, लैक्चर दिए जा रही हो.’

‘अरे यार, बता तो रही हूं, थोड़ा धीरज रखो न,’ शिवानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘ठीक है, बताओ,’ अमित ने बात न बढ़ाने की मंशा से कहा.

‘अमित, मैं चाहती हूं कि हम मम्मी और विशाल अंकल को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के लिए राजी कर लेते हैं ताकि दोनों निश्चिंत और स्वच्छंद हो कर साथसाथ घूमफिर सकें,’ शिवानी ने अपने मन की बात कह दी.

‘मगर शिवानी, क्या मम्मी इस के लिए तैयार होंगी?’ अमित ने संदेह व्यक्त किया.

‘क्यों नहीं होंगी, वैसे भी आजकल दोनों छिपछिप एकदूसरे से मिल रहे हैं, मोबाइल पर घंटों बात करते हैं. लिव इन रिलेशनशिप के लिए दोनों तैयार हो जाएंगे तो वे दुनिया से डरे बगैर खुल कर मिल सकेंगे, साथ में भी रह सकेंगे,’ शिवानी ने अमित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘इस के लिए मम्मी या विशाल अंकल से बात करने की मुझ में तो हिम्मत नहीं है बाबा,’ अमित ने हथियार डालते हुए कहा.

‘इस की चिंता तुम न करो, अमित. अपनी ही कालोनी में रहने वाली मेरी एक खास सहेली रेणू इस मामले में मेरी सहायता करेगी. वह इस प्रेमकहानी से भलीभांति वाकिफ भी है. हम दोनों मिल कर इस शुभकार्य को जल्दी ही अंजाम दे देंगे. हमें, बस, तुम्हारी सहमति का इंतजार है,’ शिवानी ने विश्वास के साथ यह कहा तो अमित की व्यग्रता कुछ कम हुई.

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘अगर मम्मी इस के लिए तैयार हो जाती हैं तो भला मुझे क्यों एतराज होगा. उन्हें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक तो है न.’

अमित की सहमति मिलते ही शिवानी और रेणु अपने मिशन को अंजाम देने में जुट गईं. शिवानी को यह विश्वास था कि पार्वती और विशाल अंकल पुराने जमाने के जरूर हैं मगर उन्हें आधुनिक विचारधारा से कोई परहेज नहीं है. दोनों बहुत ही फ्लैग्जिबल है और परिवर्तन में यकीन रखते हैं. एक संडे को शिवानी और रेणू गुलाब के फूलों के एक सुंदर गुलदस्ते के साथ विशाल अंकल के घर पहुंच गईं.

विशाल कुमार ने अपने चिरपरिचित मजाकिया स्वभाव में उन का स्वागत करते हुए कहा- ‘वाह, आज सूरज किस दिशा में उदय हुआ है, आज तो आप दोनों के चरण कमल से इस गरीब की कुटिया पवित्र हो गई है.’

शिवानी और रेणू ने औपचारिक बातें समाप्त करने के बाद मुख्य बात की ओर रुख किया. रेणू ने कहना शुरू किया-

‘अंकल, आप की और पार्वती मैडम की दोस्ती से हम ही नहीं, पूरी कालोनी वाकिफ है. इस दोस्ती ने आप दोनों का अकेलापन और एकांतवास खत्म कर दिया है. कालोनी के लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अकसर आप दोनों छिपछिप कर मिलते हैं. अंकल, हम चाहते हैं कि आप दोनों ‘औफिशियली’ एकदूसरे से एक नया रिश्ता बना लो और दोनों खुल कर दुनिया के सामने आ जाओ…’

कुछ गंभीर बने विशाल कुमार ने बीच में ही पूछा, ‘मैं समझा नहीं, रेणू. तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘अंकल, आप और पार्वती मैडम ‘लिवइन रिलेशनशिप’ बना लो, फिर आप को दुनिया का कोई डर नहीं रहेगा. आप कानूनीरूप से दोनों साथसाथ रह सकते हैं और घूमफिर सकते हैं,’ यह कहती हुई शिवानी ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के बारे में विस्तृत जानकारी विशाल अंकल दे दी.

विशाल अंकल इस के लिए तुरंत राजी होते हुए बोले-

‘यह तो बहुत अच्छी बात है. दरअसल, मेरे और पार्वती के बीच अब तो अच्छी कैमिस्ट्री बन गई है. हमारे विचारों में भी बहुत समानता है. हम जब भी मिलते हैं तो घंटों बाते करते हैं. पार्वती को हिंदी साहित्य की अकूत जानकारी है. उस ने अब तक मुझे हिंदी की कई प्रसिद्ध कहानियां सुनाई हैं.’

‘अंकल, अब पार्वती मैडम को लिवइन रिलेशनशिप के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी आप की होगी.’

‘यस, डोन्ट वरी, आई विल डू इट. मगर जैसे आप दोनों ने मुझ से बात की है, वैसे एक बार पार्वती से भी बात कर लो तो ज्यादा ठीक होगा, बाकी मैं संभाल लूंगा.’

विशाल अंकल को धन्यवाद दे कर शिवानी और रेणू खुशीखुशी वहां से विदा हुईं. अगले संडे दोनों ने पार्वती से बात की. पहले तो उन्होंने ना नू, ना नू किया, मगर शिवानी और रेणू जानती थीं कि पार्वती दिल से विशाल कुमार को चाहती हैं और वे इस रिश्ते के लिए न नहीं कहेंगी, फिर उन दोनों की बेहतर कन्विन्सिंग स्किल के सामने पार्वती की ‘ना’ कुछ ही समय के बाद ‘हां’ में बदल गई.

शिवानी ने दोनों की ‘लिव इन रिलेशनशिप’ की औपचारिक घोषणा के लिए एक दिन अपने घर  पर एक छोटी पार्टी रखी थी, जिस में अमित, शिवानी और विशाल कुमार के बहुत करीबी दोस्त ही आमंत्रित थे. विशाल और पार्वती ने एकदूसरे को अंगूठियां पहना कर इस नए रिश्ते को सहर्ष स्वीकर कर लिया.

“अरे अमित, कहां खो गए हो, अपनी मम्मी और नए पापा को केक तो खिलाओ,” शिवानी ने चिल्ला कर यह कहा तो अमित अतीत से वर्तमान में लौटा.

इस नए रिश्ते को देख अमित की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी.

लाइफ में हो गई है रोमांस की कमी, तो इन तरीकों को अपनाकर बनें रोमांटिक

नेहा ने कुहनी मार कर समर को फ्रिज से दूध निकालने को कहा तो, वह चिढ़ गया, ‘‘क्या है? नजर नहीं आता, मैं कपड़े पहन रहा हूं?’’ लेकिन नेहा ने तो ऐसा प्यारवश किया था. और बदले में उसे भी इसी तरह के स्पर्श, छेड़छाड़ की चाहत थी. मगर समर को इस तरह का स्पर्श पसंद नहीं आया. नेहा का मूड अचानक बिगड़ गया. वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आकर्षित करने के लिए कुहनी मारी थी. इस के बदले में तुम से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया चाहिए थी, पर तुम तो गुस्सा हो गए.’’ समर यह सुन कर कुछ पल सहमा खड़ा रहा, फ्रिज से दूध निकाल कर देते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें समझ नहीं सका. मैं ने तुम्हारे इमोशंस को नहीं समझा. मैं शर्मिंदा हूं. इस मामले में शायद अभी अनाड़ी हूं.’’

शब्द को कई खास नहीं थे पर दिल की गहराइयों से निकले थे. बोलते समय समर के चेहरे पर शर्मिंदगी की झलक भी थी. नेहा का गुस्सा काफूर हो गया. वह समर के पास आई और उस के कालर को छूते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरी नाराजगी को महसूस किया, इतना ही मेरे लिए काफी है. तुम ने अपनी गलती मान ली यह भी एक स्पर्श ही है. मेरे दिल को तुम्हारे शब्द सहला गए हैं… मेरे तनमन को पुलकित कर गए हैं,’’ और फिर वह उस के गले लग गई. समर के हाथ सहसा ही नेहा की पीठ पर चले गए औैर फिर नेहा की कमर को छूते हुए बोला, ‘‘कितनी पतली है तुम्हारी कमर.’’ समर का यह कहना था कि नेहा ने समर के पेट में धीरे से उंगली चुभा दी. वह मचल कर पलंग पर गिर पड़ा तो नेहा भी हंसते हुए उस के ऊपर गिर पड़ी. फिर कुछ पल तक वे यों ही हंसतेखिलखिलाते रहे.

इस तरह बढ़ेगा प्यार

ऐसे ही जीवन में रोमांस बढ़ता है. तीखीमीठी दोनों ही तरह की अनुभूतियां जीवन में रस घोलती हैं और रिलेशन को आसान एवं जीने लायक बनाती हैं. आजकल वैसे भी कई तरह के तनाव औैर जिम्मेदारियां दिमाग में चक्कर लगाती रहती हैं. पास हो कर भी पतिपत्नी हंसबोल नहीं पाते. बस दूरदूर से ही एकदूसरे को देखते रह जाते हैं. ऐसे बोर कर देने वाले पलों में साथी को छेड़ना किसी औषधि से कम मूल्यवान नहीं हो सकता. अधिकतर पतिपत्नी तनाव के पलों में चाह कर भी आपस में बोलबतिया नहीं पाते. ऐसे ही क्षणों में पहल करने की जरूरत होती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या सहलाएं. शुरू में तो वह आप को अनदेखा करेगा पर अधिक देर तक नहीं कर सकेगा, क्योंकि छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव रिस्पौंस मिलता है. आप पत्नी हैं यह सोच कर न डरें. यह सोच कर अबोलापन न पसरने दें कि न जाने पति आप की पहल को किस रूप में लेगा. इस तरह के डर के साथ जीने वालों की लाइफ में कभी रोमांस नहीं आ पाता और उम्र यों ही निकल जाती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या गले लगें अथवा कमर पर हाथ रख कर स्पर्श करें, शुरू में तो साथी आप की छेड़खानी नजरअंदाज करने लगेगा, पर अधिक देर तक वह आप की छेड़खानी को अनदेखा नहीं कर सकेगा, क्योंकि छूने या छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव संदेश मिलता है और इस संदेश के पहुंचते ही धीरेधीरे दिमाग से तनाव की काली छाया हट जाती है. आप उसे अच्छे लगने लगते हैं. वह गुड फील करने लगता है. यह फीलिंग ही रोमांस के पलों को आप के बीच विकसित करने में मदद करती है.

सुखद पहलू

नेहा ने चुपचाप खड़े समर को अचानक कुहनी मार कर फ्रिज से दूध निकालने को कहा था, उस पर वह चिढ़ गया. लेकिन नेहा डरीसहमी नहीं, बल्कि उस ने अपनी फीलिंग्स और अंदर के प्यार व इमोशंस को बताने की पूरी कोशिश की. समर का गुस्सा छूमंतर हो गया और वह शर्मिंदा भी हुआ. फिर उस ने भी नेहा के प्रति अपनी फीलिंग्स जाहिर करनी शुरू कर दीं. दोनों अगले ही पल रोमांस के रंगों में रंग गए. उन का मूड आशिकाना हो गया. एकदूसरे को अच्छे लगने लगे. यही है रोमांस और रोमांच को वैवाहिक जीवन में लाने की तकनीक, जिस का हम में से अधिकांश दंपतियों को पता ही नहीं होता. बस साथ रहते हैं. मन करता है तो बोल लेते हैं या बहस कर लेते हैं. ज्यादा ही तनाव में होते हैं, तो एकदूसरे के आगे रो लेते हैं. लेकिन यह मैरिड लाइफ का नैगेटिव पक्ष है इस से पतिपत्नी कभी रोमांटिक कपल नहीं बन सकते. उन के जीवन में जो भी घटता है, वह स्वाभाविक या नैचुरल रूप से नहीं, बल्कि जबरदस्ती, यौन संबंध हो या प्यार अथवा हंसीमजाक, जिसे इन चीजों की जरूरत होती है, वह खुद शादी के करीब आ कर कोशिश करता है. अब सब सामने वाले साथी के मूड पर निर्भर करता है. वह अपने पार्टनर की इच्छा की पूर्ति करना चाहता है या नहीं. यही मैरिड लाइफ का सुखद पहलू है, रोमांटिक पहलू है. ऐसा कब तक एक साथी दूसरे के साथ जोरजबरदस्ती करेगा? एक दिन थकहार कर कोशिश करना ही छोड़ देगा.

कैसे बनें रोमांटिक

आज की मैरिड लाइफ में जिम्मेदारियों के बोझ के कारण एकदूसरे को देख कर कोई भी प्यारअनुराग मन में पैदा नहीं हो पाता. ये सिर्फ और सिर्फ मन से ही उत्पन्न हो सकती हैं और आप दोनों में से किसी एक को ही इस के लिए आगे आना होगा. अब आगे आए कौन? इस दुविधा में ही जोड़ी रोमांस के पल हाथ से जाने देती है, मेरी राय में पत्नी से बेहतर जीवन को समझने वाला कोई हो ही नहीं सकता. एक औरत होने के नाते वह स्नेही हृदय की होती है, दिल वाली होती है. प्रेम का अर्थ वह जानती है. फिर जो प्यार को जानता है वही पुरुष को रोमांटिक बना सकता है. नेहा ने कोशिश की तो उसे बदले में रोमांस के पल मिले. आप भी इस मामले में हठी न बनें. मन में इगो न पालें कि जब पति को मेरी कोई जरूरत नहीं है, वह मुझ से बात करने को राजी नहीं है, तो मैं क्यों फालतू में उस के साथ जबरदस्ती जा कर बात करूं.

ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए. इस से दांपत्य जीवन बंजर बन जाता है. आप औरत हैं, आप में पैदाइशी प्यार, रोमांस सैक्स के भाव हैं. आप जब चाहें जैसे चाहें पति को रोमांटिक बना सकती हैं. रोमांस आप से पैदा होता है और आप के भीतर हमेशा ही होता है. जरूरत है बस उसे जीवन में लाने की. फिर देखिए, तनाव और जिम्मेदारियों पर कैसे रोमांस भारी पड़ने लगता है.

टूट रहा है रिकौर्ड : भीषण गरमी से तप रही है धरती

देशभर में गरमी अपना प्रचंड रूप दिखा रही है. दिल्ली में पारा 50 डिग्री से ऊपर चला गया है. गरमी का यह रौद्र रूप कभी राजस्थान में दिखता था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सभी राज्य तेज धूप और लू की चपेट में हैं. इस कारण अस्पतालों में डिहाइड्रेशन और चक्कर व बेहोशी के मरीज अचानक बढ़ गए हैं.

हालांकि मई के आखिरी हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक प्रचंड धूप और लू का सामना हम हर साल करते हैं. आम भाषा में इन नौ-दस दिनों की तेज गरमी को नौतपा कहा जाता है. यानी नौ दिन जिस में गरमी अपना रौद्र रूप दिखाती है. आम धारणा है कि नौतपा जितना तपाएगा, बारिश उतनी ही ज्यादा होगी. ये नौ दिन खेतीबाड़ी के लिहाज से बहुत ख़ास होते हैं. मई के तीसरे हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक करीब 15 दिन देश में भयानक हीटवेव चलती है. इसे हौट वेदर सीजन कहते हैं.

इस साल नौतपा की शुरुआत 25 मई से मानी गई है जो 2 जून तक चलेगा. इस के कारण कई जगहों पर तापमान 50 डिग्री से 55 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाएगा. सूर्य की गरमी के कारण समुद्र और नदियों का जल वाष्प बन कर उड़ता है और यही वाष्प बादल का रूप लेते हैं. मान्यता है कि अगर नौतपा पूरे समय तपेगा तो बारिश अच्छी होती है. नौतपा के आखिरी 2 दिनों के भीतर आंधी, तूफान व बारिश की संभावना बनी रहती है. तापमान बढ़ने की असली वजह यह है कि मई में हमारा देश सूरज की तरफ सीधे होता है. सूर्य ऊपर की तरफ बढ़ता है. इस से तापमान में बढ़ोतरी होती है. जिस तरह गरमी में नौतपा शब्द का इस्तेमाल होता है वैसे ही सर्दी में कश्मीर में चिल्लई कलां का इस्तेमाल किया जाता है. यानी, भयानक सर्दी के 40 दिन.

हर साल इसी गरमी के चलते स्कूलों की छुट्टियां होती हैं. देशभर के कोर्ट भी बंद हो जाते हैं. डेढ़ से दो महीने लंबी गरमी की छुट्टियों का इंतज़ार तो बच्चे खूब करते हैं. गरमी जैसेजैसे बढ़ती है, खरबूजे, तरबूज, लीची, गन्ने, बेल जैसे फलों की मिठास भी बढ़ती है. इसी समय में आम पक कर खूब मीठे और रसीले हो जाते हैं, जिन का लुत्फ़ बच्चे और बड़े खूब उठाते हैं. गरमी बढ़ती है तो मच्छरमक्खियां और उन के लार्वा ख़त्म होते हैं. खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों की तादाद कम होती है. यही नहीं, प्रचंड गरमी में टिड्डियों के अंडे नष्ट हो जाते हैं. यदि ये अंडे नष्ट न हों तो टिड्डियों की संख्या इस कदर बढ़ जाए कि खेतों की खड़ी फसल देखते ही देखते वे चट कर जाएं.

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गरमी के अनेक फायदे हैं. हां, कुछ साल पहले तक जो तापमान अधिकतम 45 डिग्री तक जाता था, उस का आंकड़ा बढ़ना चिंता का विषय है. इस की कई वजहें हैं. शहरीकरण के बढ़ने से अब कृषिभूमि और जंगल लगातार कम हो रहे हैं. पेड़ धूप को रोकते भी हैं और सोखते भी. इन के कम होते जाने से सूर्य की तेज किरणें सीधे धरती पर पड़ती हैं. इस से धरती का तापमान बढ़ता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान अधिक नहीं होता क्योंकि वहां पेड़पौधे हैं, कच्चे मकान हैं, तालाबपोखर हैं और वाहनों की संख्या कम है. मगर शहरों की सड़कें वाहनों से भरी हुई हैं. हर कार एसी है. हर बस एसी है. ये लगातार गरम हवा बाहर फेंक रहे हैं. चारों तरफ मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स हैं, पक्के मकान हैं जिन में लाखों एसी चल रहे हैं. पूरा वातावरण गरम हवा से भरा हुआ है. शहरों में अब आप को कहीं तालाब नजर नहीं आते क्योंकि तालाबों को पाट कर उन पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स खड़ी कर दी गई हैं.

बीते दिनों हिमाचल और उत्तराखंड के जंगल भीषण आग की चपेट में रहे. बहुत बड़ी संख्या में वृक्ष जल कर नष्ट हो गए. कहीं आग प्राकृतिक कारणों से लगी तो अधिकांश जगहों पर जानबूझ कर आग लगाई गई ताकि जंगल ख़त्म हो और खाली जमीनों पर खुदाई कर के धरती की संपदा पर कब्जा किया जा सके. जंगल और पहाड़ नष्ट होने से नदियां अपना रास्ता बदल रही हैं. अनेक नदियां इन वजहों से सूख चुकी हैं. जंगलों को ख़त्म करने के पीछे बड़ीबड़ी कंपनियों की साजिश में सरकार का हाथ और साथ भी शामिल है. देश के पहाड़ी क्षेत्रों में मोदी सरकार ने बड़ीबड़ी टनल बनाने और खदानें खोदने का काम चला रखा है हालांकि वे पहाड़ों के अस्तित्व के लिए ख़तरा हैं और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार भी.

मोदी सरकार ने धर्म को भी धंधा बना दिया है. इस धंधे को बढ़ाने के लिए पहाड़ों पर स्थित तमाम तीर्थस्थानों तक ज़्यादा से ज़्यादा श्रद्धालुओं को भेजने के लिए जंगल काटकाट कर खूब चौड़ीचौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं. सड़कों के किनारे होटलों की श्रृंखलाएं खड़ी हो गई हैं. पहाड़ों पर बड़ेबड़े हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन बन गए हैं. कारों और बसों की लंबी लाइनें लगी हुई हैं. अभी पिछले दिनों अमरनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 4 लाख 45 हजार 338 थी. लोग एकदूसरे पर चढ़े जा रहे थे. निकलने का कहीं रास्ता नहीं था. 17 दिनों की यात्रा में 30 श्रद्धालुओं की मौत भी हुई. यह तो सिर्फ एक तीर्थस्थल की बात है. सोचिए कि इतनी बड़ी संख्या में जब लोग अनेकानेक तीर्थस्थानों के लिए जाएंगे तो उन के लिए रहने, नित्यक्रिया करने और भोजन पकाने की व्यवस्था भी जगहजगह होगी. तो चूल्हों की गरमी, वाहनों की गरमी, एसी की गरमी, लोगों की गरमी सब मिल कर वातावरण के तापमान को बढ़ाएंगे ही.

आज देश में गरमी से निबटने के लिए उच्चवर्ग के पास अच्छे इंतजाम हैं. उन की गाड़ियां, घर, औफिस सब एयरकंडीशंड हैं. उन्हें बाहरी वातावरण की गरमी का सामना नहीं करना पड़ता है. मध्यवर्ग और निम्नमध्यवर्ग वाले भी अपने बचाव के लिए कूलर वगैरह का इंतजाम कर लेते हैं. गरमी के दोतीन महीने निम्नवर्गीय और अतिनिम्नवर्गीय लोग ही सब से ज्यादा परेशानी का सामना करते हैं जिन के घरों में मुश्किल से एकाध सीलिंग फैन या टेबल फैन होता है.

सरकार ने मेट्रो और बसों को एसी किया है, इस से काफी राहत मिल जाती है. दफ्तरों में भी एसी लगे हैं और घरों में भी कम से कम एकदो एसी तो हैं ही. लेकिन जो मजदूर हैं, दुकानों में काम करते हैं, रिक्शा-ठेला खींचते हैं, सब्जी बेचते हैं, पंचर की दुकान चलाते हैं वे ही गरमी का असली कष्ट भोगते हैं. गरमी के दिनों में अस्पतालों में दस्तउलटी, चक्करबेहोशी के जो मरीज भरे रहते हैं, वे इसी निम्नवर्ग से आते हैं. इस वर्ग की तादाद भी ज्यादा है और आने वाले वक्त में ग्लोबल वार्मिंग का सब से बड़ा शिकार यही वर्ग होगा.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु में बदलाव, तापमान में वृद्धि, कृषि पर बुरा प्रभाव, मृत्युदर में वृद्धि, प्राकृतिक आवास का नुकसान जैसे हानिकारक दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं. पेड़पौधों और जीवों की कई प्रजातियां तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण लुप्त हो चुकी हैं. इन दिनों जबकि दिल्ली का तापमान 50 डिग्री को छू रहा है, अनेक पक्षी, खासतौर से कबूतर, आसमान से मरमर कर धरती पर गिर रहे हैं. आज ग्लोबल वार्मिंग को व्यक्तियों और सरकार के संयुक्त प्रयास से ही रोका जा सकता है. वनों की कटाई पर रोक लगाने के साथ पेड़ों को अधिक से अधिक लगाए जाने की जरूरत है. एसी और औटोमोबाइल के उपयोग को सीमित करना होगा और रीसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. सरकार और उच्चवर्ग को उस अतिनिम्नवर्ग के बारे में संवेदनशील होना होगा जो उन के किए का खमियाजा भुगत रहे हैं.

मोदी का परिवार और उन के बेटों के पापकर्म

उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला खिलाड़ियों का यौनशोषण करने के आरोपों ने दुनिया के सामने भारत को शर्मसार किया है. कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहते बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप है कि उन्होंने महिला पहलवानों का यौनशोषण किया. जिन ऐथलीट्स ने यौन संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकराया उन्हें कायदों का गलत इस्तेमाल कर कई तरीके से परेशान किया. पाप का घड़ा जब भर कर फूटा तो कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए दिल्ली के जंतरमंतर पर महिला खिलाड़ियों का जबरदस्त आंदोलन चला. लेकिन बृजभूषण का दबदबा देखिए कि उस के दबाव में दिल्ली पुलिस ने दुनियाभर में भारत रोशन करने वाली महिला ऐथलीट्स को दिल्ली की सड़कों पर घसीटघसीट कर मारा.

हालांकि बाद में बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और यौनउत्पीड़न से जुड़ी धाराओं 354, 354ए, 354डी के अलावा पोक्सो कानून की धारा (10) ‘एग्रावेटेड सैक्सुअल असौल्ट’ यानी ‘गंभीर यौन हिंसा’ भी उस पर लगाई गई. मामला फिलहाल अदालत में है.

जब लोकसभा चुनाव की दुदुम्भी बजी तो बृजभूषण ने टिकट पाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया. धमकाया. शक्तिप्रदर्शन कर अपना प्रभाव दिखाया. भाजपा को भी डर था कि बृजभूषण को टिकट न दिया तो कैसरगंज सीट हाथ से निकल जाएगी. मानमनौवल हुई और महिलाओं के सशक्तीकरण का ढोल पीटने वाली मोदी सरकार कैसरगंज सीट बचाने के लालच में बृजभूषण के तलवे चाटने के लिए मजबूर नजर आई. यौनशोषण के आरोपी बृजभूषण सिंह के दबाव से भाजपा निकल नहीं पाई और कैसरगंज सीट पर भाजपा को बृजभूषण शरण सिंह को न सही उस के बेटे करण भूषण सिंह को टिकट देना पड़ा.

अन्य दलों में परिवारवाद देखने और कोसने वाली मोदी सरकार के चेहरे पर अपने परिवार के होनहार बिरवानों की करतूतों से कालिख पुत चुकी है. लोकसभा का टिकट पा कर बौराए घूम रहे बृजभूषण के बेटे करण भूषण सिंह की तेज रफ्तार गाड़ियों के काफिले ने 29 मई की सुबह एक बाइक पर सवार 2 युवाओं को बुरी तरह रौंद दिया. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. साथ ही, एक 60 वर्षीय ग्रामीण महिला पर भी गाड़ी चढ़ा दी जिसे फिलहाल गंभीर हालत में गोंडा के मैडिकल कालेज में भरती किया गया है.

करण भूषण सिंह की हवा में बातें करती गाड़ियों का काफिला करनैलगंज-हुजूरपुर मार्ग पर छतईपुरवा स्थित बैकुंठ डिग्री कालेज के सामने पहुंचा जहां काफिले की फौर्चूनर गाड़ी ने सामने से बाइक पर आ रहे 2 भाइयों निंदूरा निवासी रेहान खान (21) और शहजाद खान (20) को सीधी टक्कर में मौत की नींद सुला दिया और सड़क के किनारे जा रही छतईपुरवा निवासी सीता देवी (60) को भी टक्कर मार कर रौंद दिया. टक्कर इतनी भीषण थी कि गाड़ी के भीतर सभी एयरबैग खुल गए.

इस घटना को अंजाम देने के बाद करण भूषण के स्कोर्ट में चल रही फौर्च्यूनर गाड़ी यूपी-32 एचडब्ल्यू-1800 छोड़ कर हत्यारे भाग खड़े हुए. मौके पर गांव वालों की भीड़ जमा हो गई. आक्रोशित भीड़ ने गाड़ी फूंकने की कोशिश की मगर कटराबाजार, परसपुर, कौड़िया व करनैलगंज थाने की पुलिस फोर्स ने मोरचा संभाल लिया.

पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी, चक्काजाम और युवकों के शव को पोस्टमार्टम के लिए न ले जाने की जिद पर अड़े लोगों से पुलिस की तीखी नोकझोंक हुई. काफी जद्दोजेहद और मानमनौवल के बीच पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. करनैलगंज-हुजूरपुर मार्ग पर करीब एक घंटे तक जाम लगा रहा. एसडीएम, अपर पुलिस अधीक्षक, सीओ करनैलगंज व सीओ सिटी के सामूहिक प्रयास व मुकदमे के आश्वासन के बाद आक्रोशितों ने जाम हटाया.

बिलकुल ऐसी ही घटना को मोदी परिवार के होनहार बिरवान गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष टेनी ने भी अंजाम दिया था. लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया शहर के पास आंदोलनकारी किसानों पर आशीष ने गाड़ी चढ़ा दी थी. 4 किसानों की वहीं मौत हो गई थी और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे. आशीष और उस के लोगों ने किसानों को अपनी एसयूवी गाड़ियों से बेरहमी से रौंदा था. पीछे से इस अचानक हुए हमले से गुस्साए किसानों ने आशीष की उन 2 गाड़ियों में आग लगा दी थी जिन से किसानों को रौंदा गया था. इस घटना से गुस्साए किसानों ने काफिले में शामिल भाजपा के 3 कार्यकर्ता और एक वाहन के चालक को वहीं पीटपीट कर मार डाला. यह घटना 3 अक्टूबर, 2021 की है. टेनी के बेटे आशीष ने इस हिंसा का नेतृत्व किया था.

टेनी खीरी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थे. कुछ दिनों पहले जिले के पलिया शहर में हुए एक कार्यक्रम में किसानों ने काले झंडे दिखा कर उन से अपना विरोध प्रकट किया था जिस के बाद टेनी ने एक धमकीभरा भाषण दिया था : “सुधर जाओ नहीं तो हम सुधार देंगे, दो मिनट लगेगा, बस.”

और दो ही मिनट लगे किसानों को रौंदने में. अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष टेनी ने एक भयानक घटना को अंजाम दिया. इस में कोई दो राय नहीं कि एक सुनियोजित तरीके से उस की कारों ने उन आंदोलनकारियों को रौंद दिया जो सिर्फ काला झंडा दिखा कर शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे.

कर्नाटक की हासन से सांसद और देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना के 300 से अधिक महिलाओं के यौनशोषण करने वाले 2,000 से ज्यादा अश्लील वीडियो वायरल हो चुके हैं. कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार द्वारा इस मामले विशेष जांच के आदेश के बाद प्रज्वल रेवन्ना भारत छोड़ कर जरमनी भाग गया.

यह मामला राज्य सरकार के संज्ञान में तब आया जब राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागलक्ष्मी चौधरी ने प्रज्वल पर लगे आरोपों के संबंध में सीएम और राज्य पुलिस प्रमुख को पत्र लिखा. जिन महिलाओं का प्रज्वल रेवन्ना ने यौनशोषण किया उन में से जनता दल की 12 महिलाएं, भाजपा परिवार की 2 सदस्य, 1 जीएसटी कमिश्नर की पत्नी, 2 महिला पुलिस इंस्पैक्टर और 304 अन्य महिलाएं हैं जो ज्यादातर वोक्कालिगा समाज से आती हैं.

महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराने वाली कर्नाटक महिला डौर्जन्या विरोधी वेदिके के अनुसार, सांसद प्रज्वल रेवन्ना सहित अन्य प्रभावशाली राजनेताओं द्वारा महिलाओं का यौनशोषण करने और उन्हें यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने वाले बहुत सारे वीडियो पूरे हासन जिले में पेनड्राइव के माध्यम से प्रसारित किए गए और सोशल मीडिया पर भी डाले गए. वीडियो में प्रज्वल रेवन्ना को कई महिलाओं के साथ आपत्तिजनक मुद्रा में देखा गया.

वेदिके ने महिला आयोग से अपनी शिकायत में कहा, “इस घटना ने कई महिलाओं के जीवन को खतरे में डाल दिया है और उन की गरिमा को नुकसान पहुंचाया है.”

बता दें कि, 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में कर्नाटक की 28 में से 14 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ था जिस में हासन लोकसभा सीट भी शामिल थी. इस बार लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में भाजपा और देवगौड़ा की जनता दल सैक्युलर के बीच गठबंधन हुआ था.

राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से भाजपा इस बार 25 और जेडीएस 3 (मंड्या, कोलार और हासन) सीटों पर चुनाव लड़ रही है. एनडीए की तरफ से प्रज्वल रेवन्ना हासन लोकसभा सीट से प्रत्याशी था जो फिलहाल भागा हुआ है.

यूपी के अधिकांश ऐसे लोग हैं जिन का सिक्का हर दल में चलता रहा है. जिन्हें आगे बढ़ाने में हर पार्टी का मुखिया सहयोग करता रहा है. भले ही वो दिनरात अपनी राजनीतिक शुचिता की दुहाई क्यों न देता हो. उन्नाव रेप कांड का आरोपी कुलदीप सेंगर कांग्रेस, बसपा और होते हुए भाजपा में आया था. किसी भी पार्टी को यह कहने का हक नहीं है कि वो साफसुथरी है.

ज्यादातर बाहुबली नेताओं को उन की जाति के लोगों का समर्थन मिलता रहा है. उन की जाति उन्हें आदर्श मानती रही है. जनता में उन की पकड़ की वजह से राजनीतिक दल उन्हें अपनाते रहे हैं. पार्टियां समझती थीं कि इस से जाति विशेष का वोट मिल जाएगा. चाहे वो वीरेंद्र शाही रहे हों या ओम प्रकाश पासवान. हरिशंकर तिवारी हों या डी पी और रमाकांत यादव. बाहुबलियों को अपना हित साधने के लिए पार्टियों को अपने साथ लेने से कभी परहेज नहीं रहा. इसलिए कोई भी पार्टी दूसरी पार्टी पर आरोप लगाने से पहले अपनी तरफ भी देखे.

क्या ऐसे अदालती फैसलों से सहमत होना चाहिए

जबलपुर हाईकोर्ट का यह फैसला एक बार फिर साल 1972 की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘दुश्मन’ की याद ताजा कर गया. दुलाल गुहा निर्देशित यह फिल्म न्याय में नए प्रयोग के लिए जानी जाती है, जिस का स्वागत करने के लिए दर्शक सिनेमाघरों की तरफ टूट पड़े थे. फिल्म के हीरो राजेश खन्ना (सुरजीत) ट्रक ड्राइवर के रोल में थे जिस के हाथों रामदीन नाम के किसान की सड़क हादसे में मौत हो जाती है जो अपने घर का कर्ताधर्ता है.

ऐसे हादसे गैरइरादतन हत्या के होते हैं, इसलिए इन में सजा ज्यादा नहीं होती. जज के रोल में रहमान थे जो रामदीन के घर वालों की बदहाली, गरीबी और दुर्दशा के मद्देनजर सुरजीत को रामदीन के घरवालों के भरणपोषण की सजा सुनाते हैं कि वह मृतक के खेतों में हल जोते, फसलें उगाए और रामदीन के बीवीबच्चों की परवरिश करे. शुरुआती आनाकानी के बाद सुरजीत का मन गांव में लग जाता है और कुछ दिनों में ही उसे अपने हाथों हुए अपराध का एहसास होता है तो वह पश्चात्ताप भी करता है. फिर फिल्म फार्मूला होती जाती है. राजेश खन्ना को गांव की लड़की मुमताज से प्यार हो जाता है. विलेन वगैरह भी आ जाते हैं और आखिर में सबकुछ ठीक हो जाता है. रामदीन की विधवा मालती भी सुरजीत को माफ़ कर देती है और दर्शक नम आंखें लिए थियेटर के बाहर निकलते हैं. मालती की भूमिका में मीना कुमारी ने जबरदस्त अभिनय किया था.

तब क़ानूनी हलकों में इस फिल्म को ले कर खासी बहस और चर्चा हुई थी और कानून से जुड़े लोग व बुद्धिजीवी दोफाड़ हो गए थे कि ऐसे फैसले होने चाहिए या नहीं और अगर हो भी गए तो क्या गारंटी है कि वे भी फिल्म की तरह कारगर होंगे.

अब सालों बाद ऐसी ही बहस जबलपुर हाईकोर्ट के एक फैसले को ले कर छिड़ी हुई है. पहले इस मामूली से लगने वाले मामले को थोड़े से में समझें- बीबीए फर्स्ट ईयर का छात्र अभिषेक शर्मा भोपाल के पिपलानी इलाके में रहता है. पढ़ाई के साथसाथ वह इस उम्र में होने वाला एक और काम छेड़छाड़ का भी कर रहा था जिस का तरीका वैसा ही गलत था जैसा कि ‘दुश्मन’ फिल्म में राजेश खन्ना का नशे में धुत हो कर ट्रक चलाना था. अभिषेक एक 17 साल की लड़की, बदला नाम मान लें प्रिया है, से एकतरफा प्यार करने लगा था और रातबिरात फोन करने लगा था. वह राह चलते उसे छेड़ता था, उस का पीछा करता था, कमैंट्स करता था जिस से प्रिया बेहद तंग आ गई थी. आखिर चूंकि लड़की थी, इसलिए लड़ नहीं पाई.

उस की ख़ामोशी को अभिषेक ने मजबूरी और कमजोरी समझ लिया तो उस के हौसले और भी बुलंद होने लगे. उसे लगा और बेहद गलत लगा कि लड़कियां ऐसे भी पटती हैं, वे पहले नाजनखरे दिखाती हैं, नानुकुर करती हैं और फिर प्यार के आगे हथियार डाल बगीचे में पेड़ के इर्दगिर्द गाना गाने को तैयार हो जाती हैं. इसी जिद और जनून की गिरफ्त में आते उस ने प्रिया को इंप्रैस करने की गरज से उस के नाम का टैटू भी अपने हाथ में बनवा लिया. इस पर भी बात न बनी तो वह प्रिया को धमकियां देने लगा.
आखिकार एक दिन प्रिया के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पुलिसथाने जा कर अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने पाक्सो एक्ट के तहत अभिषेक को जेल भेज दिया. अभिषेक ने जमानत के लिए भोपाल जिला अदालत में अर्जी दाखिल की जो कि रद्द हो गई. यह 13 अप्रैल, 2024 की बात है. चार दिनों बाद ही यह मजनू हाईकोर्ट जा पहुंचा जहां उस की अर्जी पर 16 मई को सुनवाई हुई.

यह फैसला आया

अभिषेक के अधिवक्ता सौरभ भूषण श्रीवास्तव ने अदालत में दलील दी कि अभिषेक की पढ़ाई चल रही है, ऐसे में अगर उसे सख्त सजा दी गई तो उस का कैरियर बरबाद हो जाएगा. अभिषेक के पेरैंट्स ने बेटे की करतूत पर माफ़ी भी मांगी. सौरभ भूषण ने अपने मुवक्किल के अच्छे चालचलन का भी हवाला दिया.

इन दलीलों से इत्तफाक रखते और अभिषेक के भविष्य को गंभीरता से लेते जस्टिस आनंद पाठक ने लीक से हट कर फैसला सुनाया जो जल्द ही चर्चा का विषय बन गया. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि छात्र को बेहतर नागरिक बनाने, उस की उम्र और भविष्य को देखते हुए समाजसेवा का आदेश दिया गया है ताकि उसे समाज की मुख्यधारा में आने का मौका मिले. दो महीने की अस्थाई जमानत की शर्त हाईकोर्ट ने यह रखी कि उसे सप्ताह में 2 दिन शनिवार और इतवार को भोपाल के जिला अस्पताल जा कर मरीजों की सेवा करनी होगी जिस के लिए उसे कोई भुगतान नहीं किया जाएगा. इस दौरान अगर उस के आचरण में सुधार दिखता है तो जमानत नियमित कर दी जाएगी.

अदालत ने यह भी कहा कि युवक अस्पताल में मरीजों के लिए परेशानी का कारण नहीं बनेगा. अगर उस के दुर्व्यवहार या आचरण की जानकारी या शिकायत आती है तो जमानत ख़ारिज कर दी जाएगी. अपने आदेश में जस्टिस आनंद पाठक ने यह भी लिखा कि भोपाल के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारी उसे बाह्य विभाग में कार्य करने की अनुमति देंगे, इस के बाद रिपोर्ट प्रदान करेंगे.

इत्तफाक से इन्हीं दिनों पुणे में हुए हादसे की भी चर्चा लोगों में थी जिस में एक नाबालिग ने आधीरात को बाइकसवार अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा को हाई स्पीड पोर्शे कार से कुचल दिया था. आरोपी 12 बी में पास होने का जश्न मना कर घर लौट रहा था लेकिन ‘दुश्मन’ फिल्म के ड्राइवर राजेश खन्ना की तरह नशे में धुत था. लोग आरोपी के घर वालों को कोस रहे थे कि कैसे लापरवाह लोग हैं जिन्होंने नाबालिग बेटे को कार सौंप दी. चर्चाएं खत्म होतीं, इस के पहले ही यह खबर भी आ गई कि निचली अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी और मामूली शर्तें ये रखीं कि वह ऐक्सिडैंट पर 300 शब्दों में निबंध लिखे और 15 दिन ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करे. शराब की लत छुड़ाने के लिए उस की काउंसलिंग की बात भी अदालत ने कही. इस पर खूब हल्ला मचा जिस के चलते इस आरोपी के मां, बाप और दादा को भी पेश होना पड़ा.

फर्क क्या

इंसाफ के तराजू पर देखा जाए तो जबलपुर और पुणे के फैसलों में कोई खास फर्क नही है सिवा इस के कि पुणे वाले आरोपी के हाथों 2 लोगों की मौत हुई थी. कहा जा सकता है कि पुणे के मामले में भी अदालत की मंशा आरोपी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसे एक मौका देने की थी. लेकिन इस पर बवंडर मचा तो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा. रोजरोज नईनई बातें सामने आ रही हैं. यह ठीक है कि यह हादसा गंभीर था और गलती पेरैंट्स की भी थी, मुमकिन है सजा उन्हें भी भुगतनी पड़े.

अभिषेक के मामले पर सौरभ भूषण का कहना है कि ऐसे फैसलों से आरोपी को अपनी गलती का एहसास होगा और वह उसे सुधारने की कोशिश भी करेगा.
लेकिन क्या इसे प्रिया को इंसाफ मिलना कहा जा सकता है? इस का तर्कपूर्ण और ठोस जवाब किसी के पास नहीं कि उस ने 2 साल अभिषेक की ज्यादतियों और मानसिक यातना को बरदाश्त किया है. उस दौरान सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते और राह चलते वह किस दहशत में रही होगी, यह तो कोई और भुक्तभोगी लड़की ही बता सकती है. उस के कैरियर को हुए नुकसान की भरपाई कौन और कैसे करेगा. मुमकिन है अभिषेक को अपनी गलती का एहसास हो और वह सुधर भी जाए जो कि अदालत की उम्मीद और मंशा दोनों है. यह ठीक है कि कम उम्र लड़कों को सबक मिलना चाहिए वह भी बिना किसी सख्त सजा के तो यह इस मामले में देखने में आया है.

प्रिया की राय अगर अदालत इस बारे में लेती तो तसवीर कुछ और भी हो सकती थी. प्रिया जैसी पीड़िताओं को लंबे वक्त तक ऐसे लफंगो की ज्यादतियां बरदाश्त करने के बजाय तुरंत ही कानून की मदद लेनी चाहिए. अगर सहती रहेंगी तो कोई भी हादसा उन के साथ पेश आ सकता है जो अभिषेक बेखौफ हो कर उसे धमकियां देने लगा था, कल को वह साजिशन जबरदस्ती भी कर सकता था.

मेरे बड़े भाई हर वक्त मुझे डरा कर रखते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे 2 बड़े भाई हैं जो मुझ पर अकसर रोकटोक करते रहते हैं. उन दोनों के अनुसार मुझे एक सभ्य लड़की की तरह रहना चाहिए मुंह बंद कर के. बीते दिनों घर में सुबहशाम न्यूज चैनल चलते रहते थे. उन पर कभी जमाती तो कभी हिंदूमुसलिम मसला उठता तो परिवार के सभी लोग किसी गुंडे जैसी भाषा का प्रयोग करने लगते. जला दो, मार डालो जैसे शब्द कहते तो मैं खिन्न हो जाती क्योंकि किसी भी स्थिति में इंसानियत भूल जाना तो किसी मसले का हल नहीं. इस चक्कर में मेरी अपने भाइयों से भी कई बार लड़ाई हुई और मम्मीपापा से भी. अब हो यह रहा है कि वे आज तक मुझे ताने ही देते रहते हैं. मुझे लगने लगा है कि मेरी ही गलती है जो मैं ने किसी को कुछ समझाने की कोशिश की, लेकिन क्या सचमुच में मैं ही गलत हूं? अब अपने घरवालों से अपने रिश्ते को संभालूं या अपने सिद्धांतों पर चलूं?

जवाब

आप का कहना सही है कि इंसान को इंसानियत देखनी चाहिए और अपने सिद्धांतों पर भी चलना चाहिए. आप अब तक अपने परिवार को सही समझाने की कोशिश करती आई हैं तो अब पीछे हटने के बारे में मत सोचिए. यह सही है कि रिश्ते बनाए रखना जरूरी है लेकिन इस बाबत किसी के गलत तथ्यों या कहें गलत बातों का समर्थन करना तो सही नहीं है. आप अपनी बात पर अडिग रहें और साथ ही अपने पारिवारिक संबंध भी सही करने की कोशिश करें.

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