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काम के वर्कलोड से जान नहीं जाती, वर्कलोड सहने की आदत होनी चाहिए

‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फिल्म का यह डायलौग तो आप ने सुना ही होगा कि ‘टैंशन लेने का नहीं, देने का’ जिस का यह संदेश है कि सिचुएशन चाहे कोई भी हो, उस से मुकाबला करते हैं, घबराते नहीं हैं. और वैसे भी, ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’. लेकिन लगता है इन संदेशों को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया. इसलिए कई बार हम अपने तनाव को इतना बढ़ा लेते हैं कि जान चली जाने तक की नौबत आ जाती है. जैसा कि पुणे के ईवाई फर्म में काम करने वालीं 26 साल की युवती एना सेबेस्टियन के साथ हुआ.

एना सेबेस्टियन सीए थी. इस युवती की मां ने कंपनी के चेयरमैन को खत लिखा और आरोप लगाया कि बेटी की जान वर्कलोड की वजह से हुई है. उन्होंने कहा कि बेटी दिनरात बिना सोए और बिना किसी छुट्टी के लगातार काम कर रही थी. एना ने 18 मार्च, 2024 को कंपनी जौइन की थी.

वहीं अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एचडीएफसी बैंक की विभूति खंड ब्रांच में एडिशनल डिप्टी वाइस प्रैसिडैंट सदफ फातिमा अपने दफ्तर में ही अचानक गिर गईं, जिस से उन की मृत्यु हो गई. बताया जा रहा है कि यह भी ज्यादा वर्कलोड की वजह से हुआ.

सीए एना और सदफ फातिमा की अचानक हुई मौत ने आज के कौर्पोरेट वर्क कल्चर पर सवाल खड़े कर दिए हैं? क्या वाकई में काम का बोझ जान ले सकता है, इस पर बहस छिड़ी हुई है.

आरोप है कि इन महिलाओं की मौत काम के दबाव में हुई है, लेकिन क्या वाकई काम के दबाव में किसी व्यक्ति की मौत हो सकती है?

वर्कप्रैशर या उस से होने वाले स्ट्रैस को हम कैसे माप सकते हैं? क्या वाकई आप को लगता है कि अगर आप कम काम करेंगे तो स्वस्थ रहेंगे? किस किताब में लिखा है कि कम काम करना अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी है?

क्या काम आप अपनी मरजी से ले रहें हैं और उस का आप को वाजिब मुआवजा मिल रहा है, क्या आप यह चाहते हैं कि पैसे तो मिलें लेकिन काम न करना पड़े?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा कि तनाव झेलने की शक्ति होनी चाहिए. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कालेज और यूनिवर्सिटी में स्ट्रैस मैनेजमैंट का विषय पढ़ाने की बात कही है. उन का मानना है कि इस से विद्यार्थियों को अंदर से मजबूत बनने में मदद मिलेगी. हालांकि, उन के इस बयान पर विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कड़ी आलोचना की है. कांग्रेस ने उन के बयान को ‘पूरी तरह से क्रूर’ बताया है.

वित्त मंत्री ने कहा कि शिक्षण संस्थानों और परिवारों को बच्चों को तनाव प्रबंधन के गुर सिखाने चाहिए. बच्चों से कहना चाहिए कि आप जो भी पढ़ाई करें, जो भी नौकरी करें, आप में उस से जुड़ा तनाव झेलने की अंदरूनी शक्ति होनी चाहिए.

नौकरी से खुश नहीं, तो नौकरी छोड़ दो

जो भी व्यक्ति जिस भी कंपनी में जौब कर रहा है वह अपनी मरजी से कर रहा है. अगर वहां काम करना अच्छा नहीं लग रहा या फिर लग रहा है कि काम का दबाव आप नहीं झेल पा रहे, तो वहां से नौकरी छोड़ना भी एक औप्शन हो सकता है. लेकिन अगर आप नौकरी नहीं छोड़ रहे और उसी एन्वायरमैंट में काम किए जा रहे हैं, तो इस में गलती कंपनी की नहीं बल्कि आप की है. फिर इस के पीछे भले ही आप की कोई मजबूरी छिपी हो. लेकिन वजह प्रोफैशनल है तो उस का निदान भी प्रोफैशनल ही है. नौकरी करना न करना आप की अपनी इच्छा पर है, कोई आप से जबरदस्ती नहीं कर रहा.

वर्कलोड सहने की आदत होनी चाहिए

आजकल घर हो या बाहर, सभी जगह वर्कलोड है. सो, उसे सहने की आदत डालें. आप के अंदर ही कमजोरी है कि आप उसे नहीं झेल पा रहे. अपने अंदर की कमजोरी को दूर करें. जल्दीजल्दी काम करने की आदत डालें. देखें कि आप कहां कम रह गए. काम से डरना कैसा. इसे दिल से खुश हो कर करेंगे, तो मजा आएगा, बोझिल नहीं लगेगा.

रील देखने और भजन करने की सीमा नहीं, तो काम के सीमा क्यों?

हमारे भजन करने की कोई सीमा नहीं है तो फिर काम करने की ही सीमा क्यों? रील देखने में हम कितना टाइम वेस्ट कर रहे हैं, उस की कोई सीमा है? आप दिन के जितने घंटे रील देखने में लगे रहते हैं उस के मुकाबले दफ्तर में जो काम किया जाता है वह कम ही है. हमारे पास भजनपूजन का टाइम ही नहीं होना चाहिए. इस से कुछ नहीं मिलता. बस, ये सब बेवकूफ बनाने के तरीके हैं. जबकि, काम करेंगे तो जिंदगी में आगे बढ़ेंगे. अभी उम्र है काम करने की तो क्यों बेकार घूमना और टाइमपास करना. यही समय है जब मेहनत कर के कुछ अचीव किया जा सकता है.

वर्कलोड को स्मार्टली हैंडल करने के तरीके सीखें

वर्कप्रैशर को मैनेज करने के लिए कार्यों को टाइम सलौट में विभाजित करने, टु-डू लिस्ट या मोबाइल ऐप जैसे टूल का इस्तेमाल करने, प्रोफैशनल काम और पर्सनल टाइम के बीच स्पष्ट सीमाएं तय करने जैसे कई उपाय बेवजह के स्ट्रैस से बचा सकते हैं.

प्रोजैक्ट्स की प्रायोरिटी सैट करें

हर औफिस में एकसाथ कई प्रोजैक्ट्स पर हमेशा ही काम चलता रहता है. ऐसे में अगर आप भी कुछ प्रोजैक्ट्स में शामिल हैं तो पहले आप उन की प्रायोरिटी को सैट करें. मसलन, अगर किसी प्रोजैक्ट को इसी सप्ताह में लौंच करना है या फिर उस की प्रेजैंटेशन क्लाइंट को दिखानी है, तो पहले उस प्रोजैक्ट पर काम करें. धीरेधीरे आप दूसरे प्रोजैक्ट्स के भी कुछ कामों को आगे बढ़ाते रहें. ऐसे में काम अधिक होने की स्थिति में भी आप को परेशानी नहीं होगी.

बौस से बात करें

अगर आप पर वर्कलोड ज्यादा है, तो अपने बौस को विनम्रता से यह बात बताएं कि आप के पास काम ज्यादा हो रहा है और आप उसे सही से हैंडल नहीं कर पा रहे. अगर किसी टीम की जरूरत है तो उन से टीम की भी मांग की जा सकती है. समस्या तभी सुलझेगी जब आप अपने बौस से उस के बारे में बात करेंगे वरना उन्हें क्या पता कि आप किस तनाव से गुजर रहे हैं.

न कहना नहीं आता, तो यह आप की कमजोरी है, सीखें

न आप तभी कह सकते हैं जब आप ने अपना काम पूरा कर लिया हो. अगर आप पहले से ही अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर चुके हैं, तो आराम से उन्हें बताएं कि अब आप बाकी का काम कल करेंगी क्योंकि अभी दिमाग काम नहीं कर रहा और इस से काम की क्वालिटी पर भी असर पड़ सकता है. अगर आप का काम अच्छा है, तो बौस भी इस बात को समझेंगे. लेकिन घर जाने के बाद बारबार औफिस की मेल चैक करने से बचें. जब घर पर हों तो पूरी तरह से रिलैक्स करें.

सेहत को नजरअंदाज न करें

महिलाओं को मल्टीटास्कर के रूप में देखा जाता है, जो घर और औफिस दोनों का काम संभालती हैं, लेकिन वे अपनी सेहत को नजरअंदाज कर देती हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि महिलाएं अपनी सेहत को प्राथमिकता दें.

प्रमोशन पाने के लिए ज्यादा काम तो नहीं कर रहे आप

अगर आप प्रमोशन पाने के लिए ज्यादा काम कर रही हैं, ताकि ज्यादा पैसे मिले और आप का घर अच्छे से चले तो इस में किसी की कोई गलती नहीं है. अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के चलते आप जरूरत से ज्यादा काम कर रही हैं, तो रुक जाएं. इस की कोई अति नहीं है.

अपनी बौडी के सिग्नल को समझने की जिम्मेदारी आप की है

काम उतना ही करें जितना आप की बौडी झेल पाए. उस से ज्यादा होने पर बौडी खुद ही सिग्नल देने लगेगी, उन सिग्नल को पहचानें. अपने परिवार से बात करें कि आप इस से ज्यादा काम नहीं कर सकतीं. जो भी अर्निंग है उसी में घर का बजट बनाएं.

क्वालिटी औफ लाइफ लेजर एक्टिविटी और रीक्रिएशनल एक्टिविटी भी करें

अब आप सोच रहे होंगे कि यह लेजर एक्टिविटी और रीक्रिएशनल एक्टिविटी क्या हैं. दरअसल, लेजर एक्टिविटी आप की उस हौबी को कहते हैं जिस को करने से आप के मन को ख़ुशी मिलती थी, जैसे कि अगर आप को डांस करने का शौक रहा है या फिर कुकिंग, सिंगिंग, गार्डनिंग, पेंटिंग का शौक है तो उसे रिस्टार्ट करें. भले ही महीने में एकदो बार करें लेकिन करें. इस से आप की लाइफ में काम के अलवा भी कुछ होगा जिस के बारे में आप सोच सकते हैं, बात कर सकते हैं.

रीक्रिएशनल एक्टिविटी भी करें जैसे कि पहले आप अपने दोस्तों के साथ मूवी जाते थे या गेमिंग लरते थे तो आप को अच्छा लगता था या फिर किसी फन पार्क आदि में जा कर अच्छा लगता था, तो अब फिर से काम के बीच से महीने में एकदो बार इन एक्टिविटीज के लिए टाइम जरूर निकालें.

डिनर के बाद या फिर मौर्निंग में वौक पर रूटीन बनाएं

अपनी डाइट पर विशेष धयान दें, काम कितना भी हो लेकिन उसे नजरअंदाज न करें क्योंकि अगर आप ऐसा करती हैं तो इस में गलती औफिस के काम की नहीं है बल्कि आप की लापरवाही होगी. आप चाहें तो काम करतेकरते भी खा सकती हैं. भूखे रहने से तो यह बेटर ही होगा.

नींद न आए तो संभल जाएं

जरूरी नहीं कि 10 बजे सोना जरूरी ही है बल्कि लेट भी हो गए तो कोई बात नहीं. लेकिन, नींद अच्छी लें. अगर आप 6- घंटे की नींद ले रही हैं तो वह काफी है. लेकिन आप का काम के बाद फों पर लंबी बातें करना, घंटों नींद के नाम पर बिस्तर पर लेटे रहने को नींद लेना नहीं कहेंगे. अगर सोने के लिए लेट गए हैं, तो मोबाइल को खुद से दूर रखें.

जो भी काम करें मन से करें

वर्कलोड से किसी की जान चली जाए, ऐसा नहीं होता है. लेकिन तनाव दूसरे कारण बन कर जान का दुश्मन जरूर बन सकता है. ज्यादा काम थकावट तो कर सकता है, लेकिन सभी की मैंटल हैल्थ खराब होने लगे, ऐसा जरूरी नहीं है. लेकिन जो लोग ज्यादा काम करते हैं और इस काम को मजबूरी समझते हैं और उन का काम में मन नहीं लगता है तो इस से मानसिक तनाव हो सकता है़. कुछ व्यक्ति जीवन की कुछ दूसरी घटनाओं की वजह से भी तनाव में रहते हैं. अगर इसी के साथ ही काम का प्रैशर बढ़े और व्यक्ति इस से भी तनाव में आता जाए तो इस से उस की मैंटल हैल्थ खराब होने लगती है.

बिना मेहनत के किसी को कामयाबी नहीं मिलती

बिना मेहनत के किसी को कुछ नहीं मिलता, इसलिए मेहनत से न घबराएं. अपने लाइफस्टाइल को सही रखें और दिल से काम करें. इस से सब अच्छा ही लगेगा. अगर मन या तन में कुछ गलत लग रहा है तो डाक्टर के पास जाने में न हिचकिचाएं. पहले आप की सेहत है, यह सही है, तभी आप काम कर पाएंगे.

कमला बनाम डोनाल्ड

अमेरिकी चुनावों में पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाल वैसा ही हो रहा है जैसा नरेंद्र मोदी का हो रहा है. जैसे 4 जून, 2024 तक नरेंद्र मोदी भारत में अकेले मनमरजी करने वाले प्रधानमंत्री बने हुए थे वैसे ही जब तक अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए कैंडिडेट बने हुए थे, रिपब्लिकन पार्टी के नौमिनी डोनाल्ड ट्रंप की जीत पक्की मानी जा रही थी और पश्चिमी देशों की राजधानियां आने वाले 4 वर्षों तक ट्रंप के पागलपन को झेलने की तैयारियां कर रही थीं.

जैसे 4 जून, 2024 को भारत में पासा पलटा वैसा ही अमेरिका में वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के जो बाइडन की जगह चुनाव लड़ाने का डैमोक्रेटिक पार्टी के फैसले से पलट गया. अब डोनाल्ड ट्रंप उत्साही और व्हाइट हाउस के इकलौते वारिस नजर नहीं आ रहे. वोटर और इलैक्टोरल कालेज सिस्टम अब कुछ और फैसला कर सकते हैं. कमला हैरिस के राष्ट्रपति चुने जाने के आसार ज्यादा दिख रहे हैं.

चुनावी प्रचार में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी चर्च पर काफी जोर दे रहे हैं. चर्च का समर्थन आज भी गोरों को ही नहीं, उन लैटिनों और कालों को भी बहका सकता है जिन के खिलाफ ट्रंप खुल्लमखुल्ला बोलते हैं. विशुद्ध गोरों की पार्टी रिपब्लिकन पार्टी पर डोनाल्ड ट्रंप ने कट्टरवाद को थोप दिया है. अमेरिका को तथाकथित ग्रेट बनाने के चक्कर में उन्होंने उस की राजनीति को गटर में डाल दिया है.

डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध वर्करों को अमेरिका के लिए चुनावों का मुद्दा बना डाला, वे वर्कर जो घुसपैठिए हैं पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं. लाखों घरों में हैल्प के तौर पर यही अवैध लैटिनों और फिलिपीनों हैं. इन के बिना लाखों एकड़ जमीन बिना जुते रह जाएगी. वर्षों से अमेरिका में रह रहे लगभग 1 करोड़ 20 लाख अनडौक्यूमैंटेड, बिना सही कागज वाले, लोगों पर डोनाल्ड ट्रंप की तलवार लटक रही है लेकिन फिर भी चर्च का प्रभाव ऐसा है कि इन के भाईबंद डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं.

कमला हैरिस हिंदू मां और ईसाई पिता की संतान हैं जो ईसाई धर्म को अपना धर्म मानती हैं हालांकि वे धर्म में बहुत ज्यादा विश्वास नहीं रखतीं. वे कैलिफोर्निया से सीनेटर भी रही है और वहां प्रौसिक्यूटर रह कर उन्होंने बहुत से गुनाहगारों को जेल भिजवाया है.

डोनाल्ड ट्रंप का गुनाहों से बहुत वास्ता रहा है और एक मामले में तो उन्हें सजा भी हो चुकी है. पर जैसे हमारे यहां शुद्ध पूजापाठी हो कर आप जनता के प्रति अपने पापों को पुण्य में बदल सकते हो, कुछ वैसे ही अमेरिका में चर्च की बदौलत ऐसा कर सकते हो.

चर्च को डोनाल्ड ट्रंप पसंद हैं क्योंकि वे कट्टरवादी हैं, बेरहम हैं, घुसपैठियों के परिवारों को अलग कर उन को सताने में उन्हें हिचक नहीं होती. चर्च, मंदिर, मसजिद को ऐसा ही नेता चाहिए होता है जो हरेक को भयभीत रखे ताकि लोग पूजापाठ करने और दान करने के लिए धर्म की दुकान में जाते रहें.

अमेरिका सक्षम है. नंबर वन उस की अर्थव्यवस्था है. ओलिंपिक में भी मिलिट्री में भी, साइंस में भी, शिक्षा में भी वह पहलादूसरा स्थान पाता है. यह उस की विविधता का कमाल है. वहां भेड़चाल नहीं चलती, जिस का मलाल वहां के चर्च को सदियों से है.

कमला हैरिस बनाम डोनाल्ड ट्रंप चुनाव लोकतांत्रिक और कट्टरवाद के बीच का चुनाव है. जो बाइडन बूढ़े हो चुके थे, इसलिए जब तक वे मैदान में थे, ट्रंप की जीत पक्की थी. अब यह मामला राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी जैसा है.

जहर और कहर

टैक्नोलौजी के सहारे सोशल मीडिया पूरी दुनिया में कोविड की तरह फैला हुआ है. जहां टैक्नोलौजी की पिछली उपलब्धियों, जैसे बिजली, कार, एरोप्लेन, लिफ्ट, ऊंचे भवन, एक्ट, सैटेलाइट, बीमारियों के इलाज, रोबोट्स आदि सैकड़ों चीजों ने जीवन को सुखी बनाया वहीं इंटरनैट की संपर्क की सुविधा में सोशल मीडिया की जबरन घुसपैठ ने पूरी दुनिया के जीवन में जहर घोल दिया है.

आज दुनिया का कोई हिस्सा नहीं है जो सोशल मीडिया के दुरुपयोग से बचा हो. सोशल मीडिया पर मौजूद प्लेटफौर्म आज विज्ञान का उपयोग एटम बमों के विस्फोट का सा कर रहे हैं और हर मोबाइल एक छोटा सा एटम बम सा है जो कुछ वैसा ही नुकसान पहुंचा रहा है जैसा हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए एटम बमों ने पहुंचाया था.

सोशल मीडिया दूसरे मीडिया को कुतरकुतर कर न केवल खा गया है बल्कि यह सभी, खासतौर पर छोटों व युवाओं, को इस तरह का नशेड़ी बना रहा है जैसा ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18वीं-19वीं सदी में चीन में चीनियों को अफीम खिला कर बनाया था.

अफीम और एटम बमों की तरह आज सोशल मीडिया ने दुनियाभर के नागरिक समाज में जहर घोल दिया है. अब सरकारें इस पर शिकंजा कसने की तैयारी में लगी हैं, जो बहुत जरूरी भी है. ब्राजील में एक्स, जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

फ्रांस ने टैलीग्राम के मालिक पावेल डुरोव को गिरफ्तार कर लिया कि उस का प्लेटफौर्म चाइल्ड पौर्नोग्राफी को प्रोत्साहन दे रहा है. आस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीस ने अनाउंस किया है कि सोशल मीडिया बच्चों के हाथों में न पहुंचे, इस पर पूरे आस्ट्रेलिया में प्रतिबंध लगाया जाएगा.

कुछ सालों से सोशल मीडिया प्लेटफौर्म विज्ञापनदाताओं के बल पर हर किसी को मुफ्त जगह दे रहे थे और ज्यादा से ज्यादा यूजर्स पाने की होड़ में लोग नंगाई और बेहूदगी को बुरी तरह सोशल मीडिया पर उड़ेल रहे हैं. इन प्लेटफौर्म पर गंदे कैक्टस इस बुरी तरह उगा दिए गए हैं कि उन्होंने खुशबूदार फूलों की पूरी पौध को जला डाला है.

विचारों की आजादी के नाम पर बकवास फैलाने की आजादी वैसी ही है जैसी हमारे यहां धर्म की आजादी के नाम पर कांवड़ वाले रास्तेभर कहर मचाते चलते हैं. टैक्नोलौजी को सुख के लिए नहीं, कुछ क्षणों के आनंद के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है. ये क्षण एकदो मिनट नहीं, घंटों में बदल चुके हैं.

बच्चे, किशोर बजाय स्कूली ज्ञान के तोड़फोड़, सैक्स, झाठ का ज्ञान पा रहे हैं. विज्ञापनदाताओं के साथ देशों के डिक्टेटर और धर्म के दुकानदार भी इस में कूद गए हैं और इसे पैसा दे रहे हैं क्योंकि काफी विज्ञापन झाठे होते हैं. डिक्टेटर झाठ पर आधारित सोच के चलते राज कर सकते हैं और धर्मों का आधार तो है ही कपोलकल्पित कहानियों का.

ब्राजील, फ्रांस, यूरोप के अन्य देश, आस्ट्रेलिया अगर इस जहर की वैक्सीन वाले कानून बना रहे हैं, तो यह जरूरी है. सोशल मीडिया को विचारों की आजादी के नाम पर बिना निमंत्रण, बिना किसी फेस, बिना किसी पते के चलने का हक देना खतरनाक है.

बिना जिम्मेदारी लिए ऐसी सड़कें बना देने का हक, जो चलने वालों को गहरे काले पानी में धकेल दें, किसी को नहीं दिया जा सकता. समाज को बचाने व उसे सुखी बनाने के लिए टैक्नोलौजी का इस्तेमाल करना जरूरी है. एटम बम आतंकवादियों के हाथों में न पड़ें, यह देखना जरूरी है. आम पैसेंजर हवाईजहाजों को मिसाइलों की तरह उपयोग किया जा सकता है, यह ओसामा बिन लादेन न्यूयौर्क के ट्विन टावर्स को 11 सितंबर, 2001 के दिन तोड़ कर साबित कर चुका है.

सुप्रीम कोर्ट एवं निचली अदालतें

लगभग नीति परिवर्तन के मूड में सुप्रीम कोर्ट ने अब पिछले कुछ महीनों से जमानत के लिए आने वाले मामलों में जेल नहीं बेल, कैद नहीं जमानत का राग अलापना शुरू किया है. जो भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचता है कि जमानत दी जाए, वह पहले महीनों नहीं सालों तक निचली अदालतों, जिन में हाईकोर्ट भी शामिल हैं, में लटका रहता है, जो जमानत देने से इनकार कर चुकी होती हैं.

दिल्ली के आम आदमी पार्टी के तथाकथित शराब घोटाले में भारतीय राष्ट्रीय समिति पार्टी की के कविता को जमानत देते हुए एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे मनमाने ढंग से किसी को भी बिना सही व पक्के सुबूत के महीनों जेल में नहीं रख सकते. यह जमानत उस ने तब के कविता को दी जब सत्येंद्र जैन को अभी भी इसी घोटाले में कैद कर रखा हुआ है.

एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट ने जुलाई 2022 में दिल्ली मुख्य सचिव की शिकायत पर उपराज्यपाल के आदेश पर एकएक कर के कई लोगों को 580 करोड़ के राजस्व की जांच के नाम पर गिरफ्तार किया था पर अभी तक किसी के खिलाफ कोई गवाही शुरू नहीं हुई और ईडी अभी तक जांच ही कर रही है, तथ्य ढूंढ़े जा रहे है. ईडी के पास कोई कागजी सुबूत या बैंक अकाउंट का खुलासा नहीं हुआ है.

आम आदमी पार्टी को कौर्नर करने में तो ये गिरफ्तारियां बड़े काम की रही हैं पर गुनाहगारों को भारत में जेलों में सजा देने के काम में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी हैं. अभी तक यह अपराध का नहीं, राजनीति का मामला है. भारतीय जनता पार्टी को यह बिलकुल गवारा नहीं कि उस दिल्ली से जहां से वह 3 बार से लोकसभा की सभी सातों सीटें जीत रही है, अरविंद केजरीवाल विधानसभा में इतने बहुमत से जीत रहे हैं कि लेदे कर दलबदल करवाना भी संभव नहीं हो पाता. वह ईडी के जरिए पूंछ पकड़ कर सूई की नोंक से हाथी को निकालने के चक्कर में है.

जहां तक सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जेल नहीं बेल अपराध कानूनों की नीति होना चाहिए, यह कहीं भी माना जा रहा हो, ऐसा नहीं लगता. हर पुलिस अफसर और हर पहला मजिस्ट्रेट इस सिद्धांत को मानता है कि जेल हां हां, बेल न न. छोटेछोटे मामलों में भी और ऐसे मामलों तक में जहां आरोपी का अपराध से सीधा संबंध न हो, किसी पर भी आरोप लगा कर जेल में ठूंस देने को वे कानून मानते हैं.

दिसंबर 2022 के आंकड़ों के अनुसार, 6 लाख के करीब जेलों में बंद कैदियों में साढ़े 4 लाख कैदी अभी तक सजा नहीं पाए हैं और कुछ तो 8-10 सालों से बंद हैं, बिना अपराध साबित हुए. केवल वे ही जमानत पा पाते हैं जिन के पास वकीलों पर खर्च करने का बड़ा पैसा होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में जेल नहीं बेल कहा है पर न तो पुलिस अफसर और न ही मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट इस को तवज्जुह दे रहे हैं. केवल उन्हें जमानत मिल रही है जहां पुलिस की मामलों में रुचि न हो रही हो क्योंकि हर आरोपी से कुछ न कुछ मिल ही जाता है.

सुप्रीम कोर्ट को अपनी बात मनवानी है तो उसे हर जिले में एक मौनिटरिंग कमेटी बनानी चाहिए जो हर जमानत इनकार किए मामले की तुरंत जांच करे ताकि मजिस्ट्रेट व सरकारी वकील और पुलिस को कठघरे में खड़ा किया जा सके. असल में हमारे यहां न्याय पौराणिक अन्याय की सोच पर निर्भर है जिस में सजा को पापों का अनिवार्य फल माना जाता है जब तक कि दानदक्षिणा दे कर या ईश्वर या देवता के पैर छू कर वरदान न मिल जाए. जो गिरफ्तार होता है वह कितना ‘दान’ देता है, क्या बताना पड़ेगा?

Youth Lifestyle : यूथ में बढ़ता डिप्रैशन

नकुल सामान्य परिवार का युवक था. उस के मातापिता ने बड़ी मेहनत और आर्थिक तंगी में उसे अच्छे कालेज में पढ़ाया था. पैसों के इंतजाम में उस के परिवार के ऊपर कर्ज भी हो गया था. नकुल के मातापिता सोचते थे कि बेटे की जौब लग जाएगी. उस की अच्छी सैलरी होगी तो एकदो साल में सब ठीक हो जाएगा. नकुल मातापिता की जरूरतों को सम?ाता था. उस के मन में था कि जो सैलरी मिलेगी उस से मातापिता की मदद करेगा, उन को खुश रखेगा. अच्छी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उसे एक कंपनी में नौकरी मिल गई. सैलरी जैसी सोची थी वैसी तो नहीं थी पर सामान्य से बेहतर थी.

जैसी कंपनी थी वैसा ही रहनसहन वहां रखना था. कार, अच्छा फ्लैट, मोबाइल, कपड़े, परफ्यूम आदि वहां की जरूरत के मुताबिक करना था. महंगा शहर था. ऐसे में उस की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा इसी में खर्च हो रहा था. उस के पास बचत नहीं हो पाती थी. दूसरी तरफ, उस के मातापिता सोचते थे कि अब नकुल घर पैसे भेजे. वे कहने में संकोच करते थे. नकुल बीचबीच में थोड़ेबहुत पैसे भेज भी देता था पर उस से कुछ होता नहीं था.

नकुल के साथ काम करने वाले अमीर घरों के थे. वे पूरी सैलरी खर्च कर देते थे. उन को घर भेजना नहीं था. ऐसे में समान वेतन पाने के बाद भी नकुल गरीब सा लगता था. दूसरे अमीर से दिखते थे. जिस माह नकुल घर पैसे भेज देता उस पूरे माह कोई फुजूलखर्ची नहीं करता था. अपने साथियों को खर्च करते देख कर वह डिप्रैशन का शिकार होता था. धीरेधीरे वह अपने दोस्तों से दूर रहने लगा. उस पर अकेलापन हावी होने लगा. अच्छा वेतन पाने के बाद भी वह दूसरों की अमीरी देख कर परेशान था.

सोशल मीडिया का प्रभाव

आज के दौर में सोशल मीडिया का प्रयोग हर कोई कर रहा है. नकुल भी देखता था कि उस के दोस्त अपने मातापिता को कितना खुश रखते थे. उन को उपहार दिलाते थे, उन की पोस्ट सोशल मीडिया पर डालते थे. नकुल ऐसा कुछ नहीं कर पा रहा था. उस के मातापिता गांव के थे. उन का रहनसहन अलग था. सोशल मीडिया की तरह से हाईफाई नहीं थे. वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह छुट्टी ले कर गांव गया तो उस ने पिता से ये बातें कहीं.

वे बोले, ‘बेटा, हमें कुछ नहीं चाहिए. तुम्हारे साथी अमीर हैं, संपन्न घरों के हैं. ऐसे में उन से तुलना न करो. हमेशा अपने से नीचे वाले को देखो, उस के संघर्ष को देखोगे तो तुम खुश रहोगे. जितना अमीर लोगों को देख कर उन से मुकाबला करोगे, दुखी और परेशान रहोगे. संपन्नता से ही खुशी नहीं मिलती. खुशी आपसी प्यार, सहयोग और एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होने से मिलती है.’

जल्द अमीर होने की चाहत

इंटरनैशनल इमेज कल्संटैंट की प्रमुख निधि शर्मा कहती हैं, ‘‘जल्द से जल्द सबकुछ पा लेने की चाहत डिप्रैशन में डाल देती है, खासकर, जब हम अपनी तुलना अमीर या सफल आदमी से करने लगते हैं. सफल आदमी के जीवन और संघर्ष को देखें तो पता चलेगा कि उस ने भी बहुत स्ट्रगल किया है. अब स्कूल के दिनों से ही बच्चों के सोचने का तरीका बदल गया है. क्लास में पढ़ने वाले हर बच्चे के नंबर एकजैसे नहीं होते. किसी के कम, किसी के ज्यादा होते हैं. एकदूसरे से तुलना यहीं से होने लगती है, जो बाद में अमीरी तक पहुंच जाती है. अमीरी को सफलता से जोड़ दिया जाता है.’’

भारत तेजी से उन देशों में शामिल हो रहा है जहां युवाओं में डिप्रैशन की बीमारी बढ़ती जा रही है. इस की बहुत सी वजहें हैं. इन में प्रमुख वजह खुद को दूसरों के मुकाबले कमतर समझना है. कभी मातापिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने से कुछ लोग डिप्रैशन में चले जाते हैं तो कभी पढ़ाई और नौकरी के बढ़ते दबाव से. अस्पतालों और मनोविज्ञानियों से बात करने पर पता चला कि हर 4 में से 1 किशोर डिप्रैशन का शिकार हो रहा है. पहले जहां 25 से 30 साल के बीच डिप्रैशन आता था वहां अब 16-17 साल की उम्र से ही शुरू हो जा रहा है.

कभी पढ़ाई और नौकरी के बढ़ते दबाव से डिप्रैशन हो रहा है तो कुछ लोगों का परिवार तो कुछ के टूटे रिश्ते इस की वजह बनते हैं. वहीं कुछ युवाओं के लिए उन का लुक या अकेलापन डिप्रैशन का कारण बन जाता है. आंकड़ों के अनुसार 13 से 15 साल के बीच का हर 4 में से 1 किशोर डिप्रैशन का शिकार होता है. डिप्रैशन के शिकार किशोर खुद को हमेशा अकेला पाते हैं. उन्हें लगता है जैसे पूरी भीड़ उन्हें ही देख रही है और उन पर हंस रही है.

खुद की कीमत को पहचानें

भारत में ऐसे आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं. जैसेजैसे लोग इस बीमारी की चपेट में आने लगते हैं उन में जीने की इच्छा खत्म होने लगती है. दिमाग पर बढ़ते दबाव से पूरे समय शरीर बेचैन रहता है. कम उम्र में ही इन किशोरों में जिंदगी खत्म करने जैसी फीलिंग आने लगती है.

डिप्रैशन में हमेशा नकरात्मक विचार ही आते हैं और धीरेधीरे ये भयानक रूप ले लेते हैं. डिप्रैशन में किसी भी एक चीज पर ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है और हमेशा थकान सी रहती है. जहां कुछ टीनएज इस बीमारी से पूरी तरह टूट जाते हैं वहीं कुछ पूरी हिम्मत के साथ इस का मुकाबला करते हैं, सफल होते हैं.

निधि शर्मा कहती हैं, ‘‘युवा लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर के अपनी मैंटल हैल्थ को सुधार सकते हैं. गैजेट्स और सोशल मीडिया से दूरी बनाएं. सोशल मीडिया का लंबे समय तक इस्तेमाल आप में उदासी, अकेलापन, ईष्या, चिंता और असंतोष जैसी भावनाएं पैदा कर सकता है.

इस से बचने के लिए आप ‘सोशल मीडिया डिटौक्स’ कर सकते हैं. हमें परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते वक्त भी अपने फोन से दूरी रखनी चाहिए, जैसा कि आप किसी कौर्पोरेट मीटिंग के समय करते हैं. रात में सोते समय फोन से दूरी आप की नींद की क्वालिटी को बढ़ाती है और सुबह फ्रैश उठते भी हैं.’’

आप को ऐसा लग सकता है कि औफिस और घर में होने वाला स्ट्रैस आप के कंट्रोल में नहीं है, लेकिन अपने स्ट्रैस को कम करने के लिए आप कभी भी स्थिति को अपने हाथ में ले सकते हैं. इफैक्टिव स्ट्रैस मैनेजमैंट आप को जीवन में तनाव कम करने में मदद करता है.

अगर आप जान जाएं कि जिंदगी का हर दिन एक गिफ्ट है तो आप अपनी जिंदगी को गंभीरता से जिएंगे. हम कभीकभी यह भूल जाते हैं कि जीवन कितना क्षणभंगुर है और हम कितने कीमती हैं. केवल आप को पता है कि आप ने कितनी कठिनाइयों का सामना किया है. आप का दिल जानता है कि आप ने कितनी बहादुरी दिखाई है. चिंता और अवसाद को रोकने के लिए आप को यह भी जानना चाहिए कि आप कितने अनमोल हैं.

हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में राजधानी एक्सप्रैस की स्पीड से भाग रहे हैं और हर किसी पर किसी न किसी से आगे निकलने का बहुत दबाव है. प्रतिस्पर्धा अच्छी है, लेकिन कभीकभी खुद को धीमा करने से खुद का मैंटल हैल्थ ठीक होता है तो आराम कर लें. इस से मैंटल हैल्थ ठीक होगी, डिप्रैशन दूर हो सकेगा.

सैक्स के दौरान आप को अपना पार्टनर न लगे सैटिस्फाइड तो अपनाएं ये गजब के 5 टिप्स

हर कोई यह चाहता है कि वह अपने पार्टनर को सैक्स में इस कदर सैटिस्फाई कर सके कि उस के पार्टनर को कभी उस से कोई शिकायत न हो और उसे कभी किसी और दवा आदि खाने की जरूरत न पड़े. खासतौर पर यह बात पुरुष के मन में होती है कि क्या वह अपने पार्टनर को ठीक से सैटिस्फाई कर रहा है या नहीं या फिर उस के दिमाग में यह सवाल जरूर होता है कि वह अपने पार्टनर को किस तरह से सैटिस्फाई करे कि पार्टनर उस का दीवाना बन जाए?

अकसर हम ने सुना है कि लड़कियां जब अपने पार्टनर से सैटिस्फाई नहीं हो पाती हैं, तो वे किसी और की तरफ एट्रैक्ट होने लगती हैं और वे किसी और से वह सुख चाहने लगती हैं जो उन्हें उन के पार्टनर से नहीं मिल रहा है, तो ऐसे में पुरुषों का परेशान होना स्वाभाविक है.

आज हम आप को बताएंगे कुछ ऐसे टिप्स जिन्हें पढ़ कर आप अपने पार्टनर को अच्छे से सैटिस्फाई कर पाओगे और आप का पार्टनर आप को छोड़ कर किसी और के पास जाने की सोचेगा भी नहीं.

सैक्स से पहले करें फोरप्ले (Foreplay)

अकसर हमने देखा है कि पुरुषों को सैक्स करने की जल्दी रहती है, जिस कारण वे क्लाइमैक्स तक जल्दी पहुंच जाते हैं और उन का पार्टनर सैटिस्फाई नहीं हो पाता. महिलाएं चाहती हैं कि उन का पार्टनर सैक्स से पहले उन्हें इस तरह प्यार करे कि उन्हें बिना सैक्स करे ही आनंद प्राप्त हो सके, तो ऐसे में पुरुषों को सैक्स करने से पहले ज्यादा से ज्यादा फोरप्ले करना चाहिए, जैसे कि अपने पार्टनर को जम कर किस करें, उन की पूरी बौडी पर अपना हाथ फेरें और उन के नाजुक अंगों को अपने हाथ से सहलाएं. आप को अपने पार्टनर की गर्दन (Neck) पर किस कर उन्हें सड्यूस (Seduce) करना चाहिए और उस के बाद अपनी जीभ और अपने होंठों से अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर किस करना चाहिए. ऐसा करने से आप का पार्टनर सैक्स करने से खुद को रोक नहीं पाएगा.

अपने डांतों का भी करें इस्तेमाल

कपल्स को एकदूसरे को छेड़ना काफी अच्छा लगता है और जब यह छेड़छाड़ बैड पर होने लगे, तो क्या ही बात है. आप को अपने पार्टनर की बौडी पर किसिंग के साथसाथ बाइटिंग भी करनी चाहिए. अपने दांतों का इस्तेमाल कर उन की गरदन और पूरी बौडी पर बाइटिंग करनी चाहिए जिस से कि आप का पार्टनर आप के बालों को अच्छे से पकड़ ले और ऐसा महसूस करे कि वह सातवें आसमान पर पहुंच गया है.

सैक्स टौयज (Sex Toys) का करें इस्तेमाल

आजकल हर किसी की अपनी सैक्स फैंटेसीज होती हैं और ऐसा नहीं है कि हम सैक्स टौयज अपना अकेलापन दूर करने के लिए ही इस्तेमाल करते हैं, बल्कि अगर हम सैक्स टौयज का इस्तेमाल अपने पार्टनर के साथ बैड पर करें तो इस से सैक्स का मजा दोगुना हो सकता है. आप अपने पार्टनर की बौडी पर वाइब्रेटर का इस्तेमाल कर उसे ऐसा सुख दे सकते हैं जिसे वह कभी भूल नहीं पाएगा और साथ ही अगर आप हैंडकफ्स के इस्तेमाल से अपने पार्टनर के हाथ बांध दें और फिर उस के नाजुक अंगों के साथ छेड़छाड़ करें तो आप का पार्टनर आप का दीवाना बन जाएगा.

अपने पार्टनर के साथ रहें जैंटल

आप को अपने पार्टनर की बौडी पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डालना है. आप को बहुत ही जैंटल तरीके से आपने पार्टनर को सैटिस्फाई करना है, क्योंकि अकसर देखा गया है कि पौर्न वीडियोज देख कर कई पुरुष अपने पार्टनर के साथ ऐसा कुछ करने लग जाते हैं जिस से कि आनंद से ज्यादा तकलीफ मिलने लगती है और उन के प्राइवेट पार्टस को भी नुकसान पहुंच सकता है, तो आप को ऐसा बिलकुल नहीं करना है और जैसा आप के पार्टनर का अच्छा लगे, वैसा ही करना है.

बैड के बाहर भी करें अपने पार्टनर को प्यार

ऐसा देखा गया है कि पुरुष अपना ज्यादा इंट्रस्ट सिर्फ सैक्स के दौरान ही दिखाते हैं जो बिलकुल गलत बात है. महिलाएं चाहती हैं कि उन का पार्टनर उन के साथ हर समय अच्छा हो और उन की केयर और उन से प्यार करे. हमें अपने पार्टनर को ऐसा शो बिलकुल नहीं करना चाहिए जैसे हमें उन की जरूरत सिर्फ सैक्स के दौरान ही है, बल्कि आप को अपने पार्टनर को ऐसा एहसास दिलाना चाहिए कि आप को उन से बहुत प्यार है और बैड के अलावा भी आप बीचबीच में उन्हें किस कर सकते हैं और उन्हें अपनी बांहों में भर कर अपनेपन का अहसास दिला सकते हैं.

मेरी टीनएजर बहन का रोमांस उस के ट्यूशन टीचर से चल रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल-

मेरी बहन अपनी टीनएज में है और वह पढ़ाई में काफी अच्छी है. उस के लिए हम ने होम ट्यूशन भी लगवाई है, ताकी वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर सके और उस का फालतू की चीजों में ध्यान न जाए. हाल ही में मेरे घरवाले 2 दिन के लिए आउट औफ स्टेशन गए हुए थे, तो घर में सिर्फ मैं और मेरी बहन ही थे. मैं किसी काम से कुछ देर के लिए घर से बाहर गया था और इसी बीच उसे पढ़ाने उस के टीचर हमारे घर आए. थोड़ी देर के बाद जैसे ही मैं घर पहुंचा, तो देखा कि उस टीचर से मेरी बहन का हाथ पकड़ा हुआ है और वे दोनों पढ़ाई छोड़ कर बातें करने मे लगे हुए हैं. मैं ने उस समय किसी से कोई बात नहीं की, पर मुझे काफी बुरा लगा और उस के टीचर पर काफी गुस्सा भी आया. बाद में मैं ने मौका देख कर अपनी बहन से बात की, लेकिन उस का कहना है कि उसे अपना टीचर काफी अच्छा लगता है. मैं ने उसे बहुत समझाया कि न तो वह हमारे समाज का है और कोई काम भी नहीं करता है, तो ऐसे में उस का उस से नजदीकियां बढ़ाना बेहद गलत है, पर उस ने मेरी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब –

अकसर टीनएज में लोगों के सिर पर प्यार का ऐसा भूत सवार होता है कि वे अपना सहीगलत नहीं समझ पाते हैं. मुझे यह जान कर काफी अच्छा लगा कि आप अपनी बहन के बेहतर भविष्य के लिए इतना सोच रहे हैं और उस का पढ़ाई में मन लगे, इसलिए आप ने उस की होम ट्यूशन भी लगवाई है. ऐसे में गलती आप की बहन की नहीं, बल्कि उस टीचर की है जो आप की बहन को पढ़ाने के बहाने उस का ध्यान इन सब चीजों में लगा रहा है.

बेहतर यही होगा कि आप उस टीचर से अपनी बहन को न पढ़वाएं और कोई दूसरा काबिल टीचर अपनी बहन के लिए तलाशें, जो सिर्फ पढ़ाई करवाने के लिए ही आप के घर आए.

ऐसे में आप को अपनी बहन की फीलिंग्स का भी ध्यान रखना होगा कि उस के मन में आप के लिए कुछ गलत संदेश न जाए, तो सब से पहले आप अपनी बहन को समझाएं कि उस की उम्र अभी सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने की है न कि यह सब करने की. अपनी बहन के इस बात का एहसास कराएं कि आप उस का भला ही सोच रहे हैं और जब यह बात आप के मांबाप को पता चलेगी, तो उन्हें बहुत ज्यादा बुरा लगेगा.

जैसा कि आप ने बताया कि आप की बहन अभी अपने टीनएज में है, तो ऐसे मे आप अपनी बहन से पूछें कि उसे घर पर पढ़ना सही लगता है या किसी कोचिंग में सब के साथ, क्योंकि कई बार जब हम किसी भी इनसान पर ज्यादा बंदिशें लगा देते हैं, तब वह बहुत जल्द ही गलत कदम उठा सकता है. आप अपनी बहन पर पूरा विश्वास रखिए और अगर उसे कोचिंग में सब के साथ पढ़ना अच्छा लगता है तो वहां पढ़ने भेज दीजिए, क्योंकि कोचिंग में बहुत सारे बच्चे होते हैं, तो ऐसे में उसे सही और गलत की पहचान भी होने लगेगी और कोई अकेले में आप की बहन का फायदा भी नहीं उठा पाएगा.

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पहले इंटरनैट से सीखा हत्या करने का तरीका, फिर 9 साल की मासूम की कर दी हत्या

इंटरनैट की दुनिया जितनी फायदेमंद है उस से कई ज्यादा नुकसानदायक भी है. आजकल छोटे बच्चों से ले कर हर उम्र के लोगों के हाथों में स्मार्टफोन है जिस में वे जो मन में आए देख सकते हैं भले ही उन्हें देखनी चाहिए या नहीं.

ऐसे में अगर बच्चे कुछ ऐसा देखने लग जाएं जिस से कि वे किसी घटना को अंजाम तक दे सकते हैं तो फिर रूह तक कांप उठे.

सनसनीखेज मामला

ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला गुरुग्राम के सैक्टर 107 की हाउसिंग सोसाइटी में हुआ है जिसे जान आप के होश भी फाख्ता हो जाएंगे.

एक 16 साल के बच्चे ने 9 साल की मासूम लड़की का कत्ल कर दिया. इतना ही नहीं बल्कि कत्ल करने के बाद उस मासूम लड़की के शरीर को बुरी तरह आग लगा दी. यह घटना 1 जुलाई, 2024 की है जब किशोर नाम का एक 16 साल का लड़का अपनी ही पड़ोस की बिल्डिंग में चोरी के इरादे से गया और जब उसे चोरी करता देख एक मासूम सी दिखने वाली 9 साल की बच्ची ने देखा तो किशोर ने बिना कुछ सोचेसमझे उस मासूम का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

मोबाइल फोन से सीखा हत्या के तरीके

किशोर कुछ दिनों से अपने फोन से सारी जानकारी हासिल कर रहा था, जिस से कि उसे हत्या करने में कोई परेशानी का समना न करना पड़े. उस ने अपने फोन में हत्या कैसे करें, हत्या के बाद शव को कैसे ठिकाने लगाएं जैसी जानकारी सर्च की थी, जिस से साफ पता चलता है कि किशोर अपनी चोरी के बीच किसी को नहीं आने देना चाहता था और जहां वह चोरी करने गया वहां की भी उसे सारी जानकारी थी कि गहनें कहां रखे होते हैं और अल्मारी की चाबियां कहां होती है.

पुलिस ने किशोर को सीसीटीवी कैमरे की मदद से पकड़ लिया.

जुए में हारा तो बन गया चोर

पुलिस को दिए बयान के आधार पर किशोर ने बताया कि वह जुए में ₹20 हजार हार गया था और उसे जल्द से जल्द अपने किसी दोस्त को पैसे वापस लौटाने थे जिस की वजह से किशोर गहने चोरी करने के इरादे से पड़ोस की बिल्डिंग मे दाखिल हुआ.

सोसाइटी वालों का कहना है कि किशोर का पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगता था और वह 2 बार कक्षा मे फेल भी हो चुका था. इतना ही नहीं बल्कि वह 3 साल पहले अपने घर से भी भाग गया था.

बदल रहा बारबार बयान

पुलिस ने बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और इस बात की भी जानकारी लेने की कोशिश की कहीं बच्ची के साथ हत्या से पहले या हत्या के बाद यौन उत्पीड़न तो नहीं हुआ.

पुलिस का कहना है कि किशोर अपने बयान बारबार बदल रहा है। ऐसे में पुलिस उस से सख्त पूछताछ कर रही है और उसे पुलिस कस्टडी में ही रखा हुआ है.

दूर की सोच : पंड़ित जी आखिर क्या सोच रहे थे

जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं. कसबे में एक हलचल सी मची हुई थी. लोग समूह बना कर आपस में बातें कर रहे थे. एक आदमी ने कहा, ‘‘भैया, धरमकरम तो अब रह नहीं गया है. क्या छूत, क्या अछूत, सभी एकसमान हो गए हैं.’’ ‘‘तुम ठीक कहते हो. कलियुग आ गया है भाई, कलियुग. जब धरम के जानकार ऐसा कदम उठाएंगे, तो हम नासमझ कहां जाएंगे?’’ दूसरे आदमी ने कहा. ‘‘मुझे तो लगता है कि पंडितजी सठिया गए हैं. लोग कहते हैं कि बुढ़ापे में आदमी की अक्ल मारी जाती है, तभी वह ऊलजलूल हरकतें करने लगता है. अब पंडितजी भांग के नशे में डगमगाते हुए जा पहुंचे दलित बस्ती में…’’ तीसरे आदमी ने कहा. दरअसल, एक दिन पंडित द्वारका प्रसाद घर से मुफ्त में भांग पीने निकले थे. पूजापाठ की तरह यह भी उन का रोज का काम था.

छत्री चौक पर भांग की दुकान का मालिक राधेश्याम जब तक पंडितजी को मुफ्त में 2 गिलास भांग नहीं पिलाता था, तब तक वह किसी दूसरे ग्राहक को भांग नहीं बेचता था. उस का भी यह रोज का नियम था और एक विश्वास था कि जिस दिन पंडितजी उस की भांग का भोग लगा लेते हैं, उस दिन उस की अच्छीखासी कमाई हो जाती है. कभी पंडितजी दूसरे गांव चले जाते या बीमार पड़ जाते, तो राधेश्याम पंडितजी के नाम की भांग दुकान के सामने मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों में बांट देता था. कसबे में पंडितजी की इज्जत थी. उन का अच्छाखासा नाम था.

लोग जन्म से ले कर मृत्यु तक के सभी पूजापाठ उन से ही कराना पसंद करते थे. वे जब भी किसी काम से घर से निकलते, तो राह में आतेजाते सब लोग उन्हें प्रणाम करते थे. वे अपनी बढ़ी हुई तोंद पर एक हाथ फेरते हुए दूसरे हाथ को आशीर्वाद की मुद्रा में ला कर मंदमंद मुसकराते आगे बढ़ जाते थे. आज पंडितजी को घर से निकलने में देर हो गई थी, इसलिए उन्हें बड़ी जोर से भांग की तलब सता रही थी. वे बड़ी तेजी से छत्री चौक की ओर बढ़े चले जा रहे थे. रास्ते में उन्हें कौन प्रणाम कर रहा था या नहीं, इस का उन्हें जरा भी एहसास नहीं था. उन्हें तो मुफ्त के 2 गिलास भांग नजर आ रही थी. देर होने के चलते उन्हें यह भी डर सता रहा था कि कहीं राधेश्याम उन के हिस्से की भांग भिखारियों में न बांट दे.

पंडितजी तेजी से चलते हुए अचानक एक आदमी से टकरा गए और गिरतेगिरते बचे. वे जैसेतैसे अपने भारीभरकम शरीर का बैलैंस बना कर खड़े हुए, तो देखा कि सामने दोनों हाथ जोड़े कसबे का दलित भीखू खड़ा थरथर कांप रहा था. पंडितजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. वे गुस्से में आगबबूला हो कर चीखते हुए बोले, ‘‘अधर्मी, तू ने मुझे छू कर अपवित्र कर दिया.’’ भीखू कांपते हुए गिड़गिड़ा रहा था, ‘‘ब्राह्मण देवता माफ करें. मैं आप से नहीं, बल्कि आप मुझ से टकराए हैं.’’ ‘‘चुप रह… एक तो चोरी, ऊपर से तेरी सीनाजोरी…’’ पंडितजी को चिल्लाता देख कर वहां भीड़ जमा हो गई. तभी भीड़ का फायदा उठा कर भीखू वहां से चुपचाप निकल गया. पंडितजी का गुस्सा जैसेतैसे शांत हुआ, तो अपने साथ लाए लोटे में से पानी हथेली पर निकाल कर उसे अपने शरीर पर छिड़क कर उन्होंने पवित्र होने का ढोंग किया…

फिर चल पड़े भांग की दुकान की ओर. राधेश्याम उन के हिस्से की भांग भिखारियों को देने जा ही रहा था कि पंडितजी पहुंच गए. पंडितजी का मन भीखू से टकराने से पूरी तरह दुखी हो गया था. इधर, भांग की तलब में वे एकसाथ दोनों गिलास भांग गटागट पी गए. कुछ देर शांत बैठने के बाद पंडितजी को महसूस हुआ कि भांग की तलब पूरी तरह मिटी नहीं है, तो उन्होंने राधेश्याम से एक गिलास और भांग की मांग की. राधेश्याम को मसखरी सूझी, ‘‘क्या बात है पंडितजी, कल नहीं आओगे क्या?’’ ‘‘नहीं भाई, आज मन अशांत है…

कमबख्त भीखू मुझ से टकरा गया था.’’ राधेश्याम ने एक और गिलास भांग दी, जिसे पी कर लंबी डकार ले पंडितजी घर की ओर चल दिए, पर पूरे रास्ते भांग का नशा और भीखू उन के दिलोदिमाग से उतर नहीं रहा था, इसलिए वे दलित बस्ती में जा पहुंचे. पंडितजी को दलित बस्ती में आया देख दलितों में हलचल मच गई. भीखू और उस का परिवार हाथ जोड़े बारबार गिड़गिड़ाने लगा. ‘‘ब्राह्मण देवता, माफ करें. अनजाने में हम से भूल हो गई. आप जो सजा देंगे, वह हमें मंजूर है,’’ भीखू ने कहा. पंडितजी ने भीखू और उस के परिवार से कहा, ‘‘घबराओ मत और डरो भी मत. मैं तुम्हें कोई सजा देने नहीं आया हूं. ‘‘दरअसल, गलती मेरी ही थी. मैं ही तेजी में था, इसलिए तुम से टकरा गया. खैर, उस बात को खत्म करो और मेरी आगे की बात…’’ फिर उन्होंने भीखू के पास खड़े बस्ती के दूसरे लोगों से भी कहा, ‘‘तुम लोग भी ध्यान से मेरी बात सुनो. आज से 10 दिन बाद पूर्णिमा है.

मैं तुम्हारी बस्ती में आऊंगा और पूजापाठ के साथ तुम्हारे कल्याण के लिए भागवत भी पढ़ूंगा. ‘‘तुम सभी लोग नहाधो कर तैयार रहना. रही पूजापाठ की सामग्री की बात, तो वह मैं ले आऊंगा. बाद में तुम लोग कीमत चुका देना.’’ पंडितजी दलित बस्ती में पूजापाठ की क्या कह कर गए, पूरे कसबे में चर्चा हो गई. पंडितजी को चुनाव लड़ना है, तभी वे बराबरी की बातें कर रहे हैं. ब्राह्मणों का एक तबका पंडितजी के खिलाफ खुल कर खड़ा हो गया. दशहरा मैदान में एक सभा का आयोजन कर के उन का समाज से हुक्कापानी बंद करने का फैसला रख दिया गया.

तय किए गए दिन को कसबे के सभी ब्राह्मण दशहरा मैदान में पहुंच गए. सभा शुरू होने से पहले एक आदमी ने सलाह दी, ‘‘पंडितजी का हुक्कापानी बंद करने से पहले उन के विचार जान लें, तो अच्छा होगा.’’ लोगों ने उस की सलाह मान ली. थोड़ी देर बाद पंडितजी मंच पर आए, तो लोगों ने नाराजगी की झड़ी लगा दी. पंडितजी शांत मन से सब की बातें सुन कर बोले, ‘‘भाइयो, आप का आरोप सही नहीं है, पर जरा सोचो… हमारा समाज सदियों से मेहनतमजदूरी से दूर रहा है. हमारे पुरखों ने भी कभी मेहनतमजदूरी नहीं की और न हम ही कर रहे हैं. ‘‘हमारे पुरखों ने धार्मिक ग्रंथ लिखे. उन धार्मिक ग्रंथों में हम ने अपनी बिरादरी को मेहनतमजदूरी से दूर रखते हुए खुद को सब से बेहतर बताया और लोगों को धर्म के नाम पर, भगवान के नाम पर, स्वर्गनरक के नाम पर डरायाधमकाया, दानपुण्य के लिए उकसाया. ‘‘हमारे पुरखों की सोच की वजह से हम आज भी समाज में इज्जत पा रहे हैं. पेड़ वे लगा गए, फल हम और हमारी पीढि़यां बरसों से खा रही हैं. ‘‘पर आज समय बदल रहा है. हमारा धंधा मंदा होता जा रहा है.

उस की वजह यह है कि आज देश में कई प्रवचन बाबा पैदा हो गए हैं, जो गांवशहरों, कसबों में प्रवचन देते रहते हैं. ‘‘वे लोगों के दिलों में ही नहीं, बल्कि घरों में टैलीविजन के जरीए घुसपैठ कर चुके हैं. लोग भारी तादाद में उन की ओर खिंचे चले जा रहे हैं. ‘‘ऐसे में हमारे यजमानों की तादाद दिनोंदिन घटती जा रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो एक दिन ऐसा आएगा कि हमें मेहनतमजदूरी करनी पड़ेगी और हमारे बच्चों को भयंकर गरीबी में जीना पड़ेगा. ‘‘ऐसे हालात में हमें दलितों को भी गले लगाना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी ऐशोआराम के साथ मौजमजे से अपनी गुजरबसर कर सके.’’ लोगों ने जोश में आ कर तालियां बजाते हुए पंडितजी का समर्थन किया और बोले, ‘पंडितजी, आप तो धन्य हैं. आप की सोच बहुत अच्छी है.’’ कुछ लोग नारे लगाने लगे, ‘जब तक सूरजचांद रहेगा, पंडितजी का नाम रहेगा…’

नपुंसक : नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

रंजीत को जिस तरह साजिश रच कर ठगा गया था, उस से वह हैरान तो थे ही उन्हें गुस्सा भी बहुत आया था. उस गुस्से में उन का शरीर कांपने लगा था. कंपकंपी को छिपाने के लिए उन्होंने दोनों हाथों की मुट्ठियां कस लीं, लेकिन बढ़ी हुई धड़कनों पर वह काबू नहीं कर पा रहे थे.

उन्हें डर था कि अगर रसोई में काम कर रही ममता आ गई तो उन की हालत देख कर पूछ सकती है कि क्या हुआ जो आप इतने परेशान हैं. एक बार तो उन के मन में आया कि सारी बात पुलिस को बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दें लेकिन तुरंत ही उन की समझ में आ गया कि गलती उन की भी थी. सच्चाई खुल गई तो वह भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर पड़ी अपनी मैडिकल रिपोर्ट अखबारों के नीचे छिपा दी थी. मोबाइल उठा कर उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को प्लौट का सौदा रद्द करने के लिए कह दिया. उस की कोई भी बात सुने बगैर रंजीत ने फोन काट दिया था. हमेशा शांत रहने वाले रंजीत मल्होत्रा जितना परेशान और बेचैन थे, इतना परेशान या बेचैन वह तब भी नहीं हुए थे, जब उन्हें साजिश का शिकार बनाया गया था. फिर भी वह यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि वह जरा भी परेशान या विचलित नहीं हैं.

रंजीत मल्होत्रा एक इज्जतदार आदमी थे. शहर के मुख्य बाजार में उन का ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम तो था ही, वह साडि़यों के थोक विक्रेता भी थे. कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष होने के नाते व्यापारियों में उन की प्रतिष्ठा थी. उन के मन में कोई गलत काम करने का विचार तक नहीं आया था. उन के पास पैसा और शोहरत दोनों थे. इस के बावजूद उन में जरा भी घमंड नहीं था. वह अकेले थे, लेकिन हर तरह से सफल थे.

उन की तरक्की से कई लोग ईर्ष्या करते थे. इतना सब कुछ होते हुए भी उन्हें हमेशा इस बात का दुख सालता था कि शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन सके थे. उन की पत्नी ममता की गोद अभी तक सूनी थी.

रंजीत और ममता की शादी के बाद की जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी. हंसीखुशी से दिन कट रहे थे. जब उन की शादी हुई थी तो ममता की खूबसूरती को देख कर उन के दोस्त जलभुन उठे थे. उन्होंने कहा था, ‘‘भई आप तो बड़े भाग्यशाली हो, हीरोइन जैसी भाभी मिली है.’’

ममता थी ही ऐसी. शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी उन की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी. शरीर अभी भी वैसा ही गठा हुआ था. पिछले 10 सालों से रंजीत के यहां देवी नाम की लड़की काम कर रही थी. जब वह 10-11 साल की थी, तभी से उन के यहां काम कर रही थी. देवी हंसमुख और चंचल तो थी ही, काम भी जल्दी और साफसुथरा करती थी. इसलिए पतिपत्नी उस से खुश रहते थे. अपने काम और बातव्यवहार से वह दोनों की लाडली बनी हुई थी.

घर में कोई बालबच्चा था नहीं, इसलिए पतिपत्नी उसे बच्चे की तरह प्यार करते थे. जहां तक हो सकता था, देवी भी ममता को कोई काम नहीं करने देती थी. हालांकि वह इस घर की सदस्य नहीं थी, फिर भी अपने बातव्यवहार और काम की वजह से घर के सदस्य जैसी हो गई थी. पतिपत्नी उसे मानते भी उसी तरह थे. जब उस की शादी हुई तो ममता पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रंजीत पूरी तरह बदल गए थे.

देवी की शादी रंजीत के लिए किसी कड़वे घूंट से कम नहीं थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. इन 2 सालों में रंजीत के जीवन में कितना कुछ बदल गया था, जिंदगी में कितने ही व्यवधान आए थे. शादी के 10 साल बीत जाने पर गोद सूनी होने की वजह से ममता काफी हताश और निराश रहने लगी थी.

वह हर वक्त खुद को कोसती रहती थी. ईश्वर में जरा भी विश्वास न करने वाली ममता पूरी तरह आस्तिक हो गई थी. किसी तरह उस की गोद भर जाए, इस के लिए उस ने तमाम प्रयास किए थे. इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला तो ममता शांत हो कर बैठ गई.

शादी के 4 सालों बाद दोनों को लगा कि अब उन्हें बच्चे के लिए प्रयास करना चाहिए. इस के बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के उपाय बंद कर दिए. बच्चे के लिए उन्हें जो करना चाहिए था, किया. दोनों को पूरा विश्वास था कि उन का प्रयास सफल होगा. उन्हें अपने बारे में जरा भी शंका नहीं थी, क्योंकि दोनों ही नौरमल और स्वस्थ थे.

इस तरह उम्मीदों में समय बीतने लगा. आशा और निराशा के बीच कोशिश चलती रही. रंजीत ममता को भरोसा देते कि जो होना होगा, वही होगा. उन्होंने डाक्टरों से भी सलाह ली और तमाम अन्य उपाय भी किए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. पति समझाता कि चिंता मत करो. हम दोनों आराम से रहेंगे लेकिन पति के जाते ही अकेली ममता हताश और निराश हो जाती. रंजीत का पूरा दिन तो कारोबार में बीत जाता था, लेकिन वह अपना दिन कैसे बिताती.

सारे प्रयासों को असफल होते देख डाक्टर ने रंजीत से अपनी जांच कराने को कहा. अभी तक रंजीत ने अपनी जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं की थी. वह दवाएं भी कम ही खाते थे. रंजीत ऊपर से भले ही निश्चिंत लगते थे, लेकिन संतान के लिए वह भी परेशान थे. चिंता की वजह से रंजीत का किसी काम में मन भी नहीं लगता था. चिंता में वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे थे.

काम करते हुए उन्हें थकान होने लगी थी. खुद पर से विश्वास भी उठ सा गया था. शांत और धीरगंभीर रहने वाले रंजीत अब चिड़चिड़े हो गए थे. बातबात पर उन्हें गुस्सा आने लगा था. घर में तो वह किसी तरह खुद पर काबू रखते थे, पर शोरूम पर वह कर्मचारियों से ही नहीं, ग्राहकों से भी उलझ जाते थे.

घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते थे, पर जरा सी भी गलती पर नौकरानी देवी पर खीझ उठते थे. देवी भी अब जवान हो चुकी थी, इसलिए उन के खीझने पर ममता उन्हें समझाती, ‘‘पराई लड़की है. अब जवान भी हो गई है, उस पर इस तरह गुस्सा करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसीलिए इस के जो मन में आता है, वह करती है.’’ रंजीत कह देते. बात आईगई हो जाती. जबकि देवी पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था. वह उन के यहां इस तरह रहती और मस्ती से काम करती थी, जैसे उसी का घर है. ममता भले ही देवी का पक्ष लेती थी, लेकिन वह भी महसूस कर रही थी कि अब वह काफी बदल गई है.

कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी कितनी ही बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी. उसे पैसे निकालते देख लेने पर भी रंजीत और ममता अनजान बने रहते थे. वे सोचते थे कि कोई जरूरत रही होगी. देवी चोरी भी होशियारी से करती थी. वह पूरे पैसे कभी नहीं निकालती थी.

इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर था, अकसर रंजीत की कोठी के बाहर खड़ा दिखाई देने लगा था. ममता ने जब उसे देवी को इशारा करते देखा तो देवी को तो टोका ही, उसे भी खूब डांटाफटकारा. इस से उस का उधर आनाजाना कम तो हो गया था, लेकिन बंद नहीं हुआ था. एक रात रंजीत वाशरूम जाने के लिए उठे तो उन्हें बाहर बरामदे से खुसरफुसर की कुछ आवाज आती सुनाई दी.

खुसरफुसर करने वाले कौन हैं, जानने के लिए वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन के बाहर आते ही कोई अंधेरे का लाभ उठा कर दीवार कूद कर भाग गया. उन्होंने लाइट जलाई तो देवी को कपड़े ठीक करते हुए पीछे की ओर जाते देखा.

यह सब देख कर रंजीत को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने सारी बात ममता को बताई तो उन्होंने देवी को खूब डांटा, साथ ही हिदायत भी दी कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के बाद देवी का व्यवहार एकदम से बदल गया. वह रंजीत और ममता से कटीकटी तो रहने ही लगी, दोनों की उपेक्षा भी करने लगी.

देवी के इस व्यवहार से रंजीत और ममता को उस की चिंता होने लगी थी. शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के मातापिता से उस की शादी कर देने को कह दिया था.

अचानक देवी का व्यवहार फिर बदल गया. ममता के साथ तो वह पहले जैसा ही व्यवहार करती रही, पर रंजीत से वह हंसहंस कर इस तरह बातें करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. रंजीत ने गौर किया, वह जब भी अकेली होती, उदास रहती. कभीकभी वह फोन करते हुए रो देती. उस से वजह पूछी जाती तो कोई बहाना बना कर टाल देती.

एक दिन तो उस ने हद कर दी. रोज की तरह उस दिन भी ममता मंदिर गई थी. रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. एकदम से देवी रंजीत के पास आई और उन के गाल को चुटकी में भर कर बोली, ‘‘आप कितने स्मार्ट हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.’’

पहले तो रंजीत की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. जब समझ में आया तो हैरान रह गए. वह कुछ कहे बगैर नहाने चले गए. आज पहली बार उन्हें लगा था कि देवी अब बच्ची नहीं रही, जवान हो गई है.

अगले दिन जैसे ही ममता मंदिर के लिए निकली, देवी दरवाजा बंद कर के सोफे पर बैठे रंजीत के बगल में आ कर बैठ गई. उस ने अपना हाथ रंजीत की जांघ पर रखा तो उन का तनमन झनझना उठा. उन्होंने तुरंत मन को काबू में किया और उठ कर अपने कमरे में चले गए. वह दिन कुछ अलग तरह से बीता.

पूरे दिन देवी ही उन के खयालों में घूमती रही. आखिर वह चाहती क्या है. एक विचार आता कि यह ठीक नहीं. देवी तो नादान है जबकि वह समझदार हैं. कोई ऊंचनीच हो गई तो लोग उन्हीं पर थूकेंगे. जबकि दूसरा विचार आता कि जो हो रहा है, होने दो. वह तो अपनी तरफ से कुछ कर नहीं रहे हैं, जो कर रही है वही कर रही है.

अगले दिन सवेरा होते ही रंजीत के दिल का एक हिस्सा ममता के मंदिर जाने का इंतजार कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सचेत कर रहा था कि वह जो करने की सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है. ममता के मंदिर जाने पर देवी दरवाजा बंद कर रही थी, तभी वह नहाने के बहाने बाथरूम में घुस गए. दिल उन्हें बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था. रोकने वाली आवाज काफी कमजोर थी. शायद इसीलिए वह नहाधो कर जल्दी से बाहर आ गए.

देवी रसोई में काम कर रही थी. उस के चेहरे से ही लग रहा था कि वह नाराज है. रंजीत सोफे पर बैठ कर उस का इंतजार करने लगे. लेकिन वह नहीं आई. पानी देने के बहाने उन्होंने बुलाया. पानी का गिलास मेज पर रख कर जाते हुए उस ने धीरे से कहा, ‘‘नपुंसक.’’

रंजीत अवाक रह गए. देवी के इस एक शब्द ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. डाक्टर के कहने पर उन के मन में अपने लिए जो संदेह था, देवी के कहने पर उसे बल मिला. उन का चेहरा उतर गया. उसी समय ममता मंदिर से वापस आ गईं. पति का चेहरा उतरा देख कर उस से पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

रंजीत क्या जवाब देते. अगले दिन उन्होंने नहाने जाने में जल्दी नहीं की. दरवाजा बंद कर के देवी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जैसे ही रंजीत ने उस की ओर देखा, उस ने झट से कहा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत सुंदर.’’ रंजीत ने कहा. लेकिन यह बात उन के दिल से नहीं, गले से निकली थी. देवी रंजीत की गोद में बैठ गई. वह कुछ कहते, उस के पहले ही उन का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘मैं आप को अच्छी नहीं लगती क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है.’’ रंजीत ने कहा.

इस के आगे क्या कहें, यह उन की समझ में नहीं आया तो ममता के आने की बात कह कर उसे उठाया और जल्दी से बाथरूम में घुस गए. इसी तरह 2-3 दिन चलता रहा. रंजीत अब पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे. अब देवी की हरकतें उन्हें अच्छी लगने लगी थीं. क्योंकि 40 के करीब पहुंच रहे रंजीत पर एक 18 साल की लड़की मर रही थी.

यही अनुभूति रंजीत को पतन की राह की ओर उतरने के लिए उकसा रही थी. उन का पुरुष होने का अहं बढ़ता जा रहा था. खुद पर विश्वास बढ़ने लगा था. इस के बावजूद वह खुद को आगे बढ़ने से रोके हुए थे. पर एक सुबह वह दिल के आगे हार गए. जैसे ही देवी आ कर बगल में बैठी, वह होश खो बैठे.

नहाने गए तो उन के ऊपर जो आनंद छाया था, वह अपराधबोध से घिरा था. पूरे दिन वह सहीगलत की गंगा में डूबतेउतराते रहे. अगले दिन वह ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए. ममता हैरान थी, जबकि देवी उन्हें अजीब निगाहों से ताक रही थी. रंजीत उस की ओर आकर्षित हो रहे थे.

लेकिन आज दिमाग उन पर हावी था. दिमाग कह रहा था, ‘लड़की तो नासमझ है, उस की भी बुद्धि घास चरने चली गई है, जो अच्छाबुरा नहीं सोच पा रहा है. उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं है.’ अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था.

यह पछतावा तब ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ा, जब ममता के मंदिर जाने पर देवी ने रंजीत को बताया कि इस महीने उसे महीना नहीं हुआ. अब वह क्या करे? यह सुन कर रंजीत पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. धरती भी नहीं फटने वाली थी कि वह उस में समा जाते. उन्हें खुद से घृणा हो गई.

उन्होंने एक लड़की की जिंदगी बरबाद की थी. इस अपराधबोध से उन का रोमरोम सुलग रहा था. लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था. अब तो समाधान ढूंढना था. उन्होंने देवी से कहा, ‘‘तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो, उस के पहले ही कुछ करना होगा. मैं दवा की व्यवस्था करता हूं. तुम दवा खा लो, सब ठीक हो जाएगा.’’

लेकिन देवी ने कोई भी दवा खाने से साफ मना कर दिया. रंजीत उसे मनाते रहे, पर वह जिद पर अड़ी थी. रंजीत की अंतरात्मा कचोट रही थी कि उन्होंने कितना घोर पाप किया है. आज तक उन्होंने जो भी भलाई के काम किए थे, इस एक काम ने सारे कामों पर पानी फेर दिया था.

वह पापी हैं. चिंता और अपराधबोध से ग्रस्त रंजीत को देवी ने दूसरा झटका यह कह कर दिया कि उस के पापा उन से मिलना चाहते हैं. जो न सुनना चाहिए, वह सुनने की तैयारी के साथ रंजीत देवी के घर पहुंचे. उस दिन ड्राइवर की नौकरी करने वाले देवी के बाप रामप्रसाद का अलग ही रूप था.

हमेशा रंजीत के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए खड़े रहने वाले रामप्रसाद ने उन पर हाथ भले ही नहीं उठाया, पर लानतमलामत खूब की. रंजीत सिर झुकाए अपनी गलती स्वीकार करते रहे और रामप्रसाद से कोई रास्ता निकालने की विनती करते रहे. अंत में रामप्रसाद ने रास्ता निकाला कि वह देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए पैसा दे दें.

‘‘हां…हां, जितने पैसे की जरूरत पड़ेगी, मैं दे दूंगा.’’ राहत महसूस करते हुए रंजीत ने कहा, ‘‘कब करनी है शादी?’’

‘‘अगले सप्ताह. बलबीर का कहना है, ऐसे में देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘बलबीर? वही जो आवारा लड़कों की तरह घूमता रहता है. तुम्हें वही नालायक मिला है ब्याह के लिए?’’

‘‘वह नालायक…आप से तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’

बलबीर का नाम सुन कर रंजीत हैरान थे, लेकिन वह कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्च के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इस के अलावा उपहार के रूप में कुछ गहने भी.

शादी के बाद रहने की बात आई तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खोल दिया. ऐसा उन्होंने खुशीखुशी नहीं किया था बल्कि यह काम दबाव डाल कर करवाया गया था. इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों का खिलौना बने हुए थे.

फ्लैट के लिए ममता ने ऐतराज किया तो उन्होंने उसे यह कह कर चुप करा दिया कि देवी अपने ही घर पलीबढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसलिए हमें इतना तो करना ही चाहिए.

देवी की शादी के 7 महीने ही बीते थे कि ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन गिनती करते रहे, पर वह हिसाब नहीं लगा सके. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’

ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. वह पत्नी के साथ देवी के यहां पहुंचे तो बलबीर बच्चा उन की गोद में डालते हुए बोला, ‘‘एकदम बाप पर गया है.’’

रंजीत कांप उठे. ममता ने कहा, ‘‘देखो न, बच्चे के नाकनक्श बलबीर जैसे ही हैं.’’

अगले दिन बलबीर ने शोरूम पर जा कर रंजीत से कहा, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’

‘‘इस में कोई बुराई तो नहीं है, पर ममता से पूछना पड़ेगा.’’

रंजीत को बलबीर का प्रस्ताव उचित ही लगा था. लेकिन बलबीर ने शर्त रखी थी कि जिस फ्लैट में वह रहता है, वह फ्लैट उस के नाम कराने के अलावा कामधंधा शुरू करने के लिए कम से कम 25 लाख रुपए देने होंगे.

सब कुछ रंजीत की समझ में आ गया था. उन्होंने पैसा कम करने को कहा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. कारोबारी रंजीत समझ गए कि अब खींचने से कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की. थोड़ा समझाने बुझाने पर वह देवी का बच्चा गोद लेने को राजी हो गई.

बच्चे को गोद लेने के साथसाथ अपने वकील को उन्होंने फ्लैट देवी के नाम कराने के कागज तैयार करने के लिए कह दिया. 25 लाख देने के लिए रंजीत को प्लौट का सौदा करना था. इस के लिए उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को सहेज दिया था. इतना सब होने के बावजूद ममता का मन अभी पराया बच्चा गोद लेने का नहीं हो रहा था. इसलिए उस ने रंजीत से कहा, ‘‘बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए.’’

रंजीत ने सोचा, उन का टैस्ट तो हो चुका है. उन्हीं के पुरुषत्व का नतीजा है देवी का बच्चा. फिर भी पत्नी का मन रखने के लिए उन्होंने अपनी जांच करा ली. इस जांच की जो रिपोर्ट आई, उसे देख कर रंजीत के होश उड़ गए. वह खड़े नहीं रह सके तो सोफे पर बैठ गए. तभी उन्हें एक दिन देवी की फोन पर हो रही बात समझ में आ गई, जिसे वह उन पर डोरे डालते समय किसी से कर रही थी.

देवी ने जब पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तब उन्होंने उसे कोई भाव नहीं दिया था. इस के बाद उस ने फोन पर किसी से कहा था, ‘‘तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश तो कर रही हूं. प्लीज थोड़ा समय दो. तब तक वह वीडियो…’’

तभी रंजीत वहां आ गए. उन्हें देख कर देवी सन्न रह गई थी. उसे परेशान देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

देवी ने बहाना बनाया कि वह किसी सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी. अब रंजीत की समझ में आया कि उस समय देवी की बलबीर से बात हो रही थी. देवी का कोई वीडियो उस के पास था, जिस की बदौलत वह देवी से उसे फंसाने के लिए दबाव डाल रहा था.

रिपोर्ट देख कर साफ हो गया था कि देवी का बच्चा बलबीर का था. उन्हें अपनी मूर्खता पर शरम आई. लेकिन उन्होंने जो गलती की थी, उस की सजा तो उन्हें भोगनी ही थी.

रंजीत ने वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन कर के प्लौट का सौदा और फ्लैट के पेपर बनाने से रोक दिया. अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था. अब उन्हें प्लौट भी नहीं बेचना था. वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन करने के बाद उन्होंने ममता को बुला कर कहा, ‘‘ममता मैडिकल रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट के अनुसार मेरे अंदर बाप बनने की क्षमता नहीं है. मैं संतान पैदा करने में सक्षम नहीं हूं.’’

ममता की समझ में नहीं आया कि उस का पति अपने नपुंसक होने की बात इतना खुश हो कर क्यों बता रहा है.

गड़ा धन : राजू को क्या मिल गया था गड़ा हुआ धन

‘‘चल बे उठ… बहुत सो लिया… सिर पर सूरज चढ़ आया, पर तेरी नींद है कि पूरी होने का नाम ही नहीं लेती,’’ राजू का बाप रमेश को झकझोरते हुए बोला.

‘‘अरे, अभी सोने दो. बेचारा कितना थकाहारा आता है. खड़ेखड़े पैर दुखने लगते हैं… और करता भी किस के लिए है… घर के लिए ही न… कुछ देर और सो लेने दो…’’ राजू की मां लक्ष्मी ने कहा.

‘‘अरे, करता है तो कौन सा एहसान करता है. खुद भी तो रोटी तोड़ता है चार टाइम,’’ कह कर बाप रमेश फिर से राजू को लतियाता है, ‘‘उठ बे… देर हो जाएगी, तो सेठ अलग से मारेगा…’’

लात लगने और चिल्लाने की आवाज से राजू की नींद तो खुल ही गई थी. आंखें मलता, दारूबाज बाप को घूरता हुआ वह गुसलखाने की ओर जाने लगा.

‘‘देखो तो कैसे आंखें निकाल रहा है, जैसे काट कर खा जाएगा मुझे.’’

‘‘अरे, क्यों सुबहसुबह जलीकटी बक रहे हो,’’ राजू की मां बोली.

‘‘अच्छा, मैं बक रहा हूं और जो तेरा लाड़ला घूर रहा है मुझे…’’ और एक लात राजू की मां को भी मिल गई.

राजू जल्दीजल्दी इस नरक से निकल जाने की फिराक में है और बाप रमेश सब को काम पर लगा कर बोतल में मुंह धोने की फिराक में. छोटी गलती पर सेठ की गालियां और कभीकभार मार भी पड़ती थी बेचारे 12 साल के राजू को.

यहां राजू की मां लक्ष्मी घर का सारा काम निबटा कर काम पर चली गई. वह भी घर का खर्च चलाने के लिए दूसरों के घरों में झाड़ूबरतन करती थी.

‘‘लक्ष्मी, तू उस बाबा के मजार पर गई थी क्या धागा बांधने?’’ मालकिन के घर कपड़े धोने आई एक और काम वाली माला पूछने लगी.

माला अधेड़ उम्र की थी और लक्ष्मी की परेशानियों को जानती भी थी, इसलिए वह कुछ न कुछ उस की मदद करने को तैयार रहती.

‘‘हां गई थी उसे ले कर… नशे में धुत्त रहता है दिनरात… बड़ी मुकिश्ल से साथ चलने को राजी हुआ…’’ लक्ष्मी ने जवाब दिया, ‘‘पर होगा क्या इस सब से… इतने साल तो हो गए… इस बाबा की दरगाह… उस बाबा का मजार… ये मंदिर… उस बाबा के दर्शन… ये पूजा… चढ़ावा… सब तो कर के देख लिया, पर न ही कोख फलती है और न ही घर पनपता है. बस, आस के सहारे दिन कट रहे हैं,’’ कहतेकहते लक्ष्मी की आंखों से आंसू आ गए.

माला उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली, ‘‘सब कर्मों के फल हैं री… और जो भोगना लिखा है, वह तो भोगना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां…’’ बोलते हुए लक्ष्मी अपने सूखे आंसुओं को पीने की कोशिश करने लगी.

‘‘सुन, एक बाबा और है. उस को देवता आते हैं. वह सब बताता है और उसी के अुनसार पूजा करने से बिगड़े काम बन जाते हैं,’’ माला ने बताया.

‘‘अच्छा, तुझे कैसे पता?’’ लक्ष्मी ने आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘कल ही मेरी रिश्ते की मौसी बता रही थी कि किस तरह उस की लड़की की ननद की गोद हरी हो गई और बच्चे के आने से घर में खुशहाली भी छा गई. मुझे तभी तेरा खयाल आया और उस बाबा का पताठिकाना पूछ कर ले आई. अब तू बोल कि कब चलना है?’’

‘‘उस से पूछ कर बताऊंगी… पता नहीं किस दिन होश में रहेगा.’’

‘‘हां, ठीक है. वह बाबा सिर्फ इतवार और बुधवार को ही बताता है. और कल बुधवार है, अगर तैयार हो जाए, तो सीधे मेरे घर आ जाना सुबह ही, फिर हम साथ चलेंगे… मुझे भी अपनी लड़की की शादी के बारे में पूछना है,’’ माला बोली.

लक्ष्मी ने हां भरी और दोनों काम निबटा कर अपनेअपने रास्ते हो लीं. लक्ष्मी माला की बात सुन कर खुश थी कि अगर सबकुछ सही रहा, तो जल्दी ही उस के घर की भी मनहूसियत दूर हो जाएगी. पर कहीं राजू का बाप न सुधरा तो… आने वाली औलाद के साथ भी उस ने यही किया तो… जैसे सवालों ने उस की खुशी को ग्रहण लगाने की कोशिश की, पर उस ने खुद को संभाल लिया.

सामने आम का ठेला देख कर लक्ष्मी को राजू की याद आ गई.

‘राजू के बाप को भी तो आम का रस बहुत पसंद है. सुबहसुबह बेचारा राजू उदास हो कर घर से निकला था, आम के रस से रोटी खाएगा, तो खुश हो जाएगा और राजू के बाप को भी बाबा के पास जाने को मना लूंगी,’ मन में ही सारे तानेबाने बुन कर लक्ष्मी रुकी और एक आम ले कर जल्दीजल्दी घर की ओर चल दी.

घर पहुंच कर दोनों को खाना खिला कर सारे कामों से फारिग हो लक्ष्मी राजू के बाप से बात करने लगी. शराब का नशा कम था शायद या आम के रस का नशा हो आया था, वह अगले ही दिन जाने को मान गया.

अगले दिन राजू, उस का बाप और लक्ष्मी सुबह ही माला के घर पहुंच गए और वहां से माला को साथ ले कर बाबा के ठिकाने पर चल दिए.

बाबा के दरवाजे पर 8-10 लोग पहले से ही अपनीअपनी परेशानी को दूर कर सुखों में बदलवाने के लिए बाहर ही बैठे थे. एकएक कर के सब को अंदर बुलाया जाता. वे लोग भी जा कर बाबा के घर के बाहर वाले कमरे में उन लोगों के साथ बैठ गए.

सभी लोग अपनीअपनी परेशानी में खोए थे. यहां माला लक्ष्मी को बीचबीच में बताती जाती कि बाबा से कैसा बरताव करना है और इतनी जोर से समझाती कि नशेड़ी रमेश के कानों में भी आवाज पहुंच जाती. एकदो बार तो रमेश को गुस्सा आया, पर लक्ष्मी ने उसे हाथ पकड़ कर बैठाए रखा.

तकरीबन 2 घंटे के इंतजार के बाद उन की बारी आई, तब तक 5-6 परेशान लोग और आ चुके थे. खैर, अपनी बारी आने की खुशी लक्ष्मी के चेहरे पर साफ झलक रही थी. यों लग रहा था, मानो यहां से वह बच्चा ले कर और घर की गरीबी यहीं छोड़ कर जाएगी. चारों अंदर गए. बाबा ने उन की समस्या सुनी. फिर थोड़ी देर ध्यान लगा कर बैठ गया.

कुछ देर बाद बाबा ने जब आंखें खोलीं, तो आंखें आकार में पहले से काफी बड़ी थीं. अब लक्ष्मी को भरोसा हो गया था कि उस की समस्या का खात्मा हो ही जाएगा.

बाबा ने कहा, ‘‘कोई है, जिस की काली छाया तुम लोगों के घर पर पड़ रही है. वही तुम्हारे बच्चा न होने की वजह है और जहां तुम रहते हो, वहां गड़ा धन भी है, चाहो तो उसे निकलवा कर रातोंरात सेठ बन सकते हो…’’

रमेश और लक्ष्मी की आंखें चमक उठीं. उन दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर रमेश बाबा से बोला, ‘‘हम लोग खुद ही खुदाई कर के धन निकाल लेंगे और आप को चढ़ावा भी चढ़ा देंगे. आप तो जगह बता दो बस…’’

बाबा ने जोर का ठहाका लगाया और बोले, ‘‘यह सब इतना आसान नहीं…’’

‘‘तो फिर… क्या करना होगा,’’ रमेश उतावला हो उठा.

‘‘कर सकोगे?’’

‘‘आप बोलिए तो… इतने दुख सहे हैं, अब तो थोड़े से सुख के बदले भी कुछ भी कर जाऊंगा.’’

‘‘बलि लगेगी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. मैं बकरे का इंतजाम कर लूंगा.’’

‘‘बकरे की नहीं.’’

‘‘तो फिर…’’

‘‘नरबलि.’’

रमेश को काटो तो खून नहीं. लक्ष्मी और राजू भी सहम गए.

‘‘मतलब किसी इनसान की हत्या?’’ रमेश बोला.

‘‘तो क्या गड़ा धन और औलाद पाना मजाक लग रहा था तुम लोगों को. जाओ, तुम लोगों से नहीं हो पाएगा,’’ बाबा तकरीबन चिल्ला उठा.

माला बीच में ही बोल उठी, ‘‘नहीं बाबा, नाराज मत हो. मैं समझाती हूं दोनों को,’’ और लक्ष्मी को अलग ले जा कर माला बोलने लगी, ‘‘एक जान की ही तो बात है. सोच, उस के बाद घर में खुशियां ही खुशियां होंगी. बच्चापैसा सब… देदे बलि.’’

लक्ष्मी तो जैसे होश ही खो बैठी थी. तब तक रमेश भी उन दोनों के पास आ गया और माला की बात बीच में ही काटते हुए बोला, ‘‘किस की बलि दे दें?’’

‘‘जिस का कोई नहीं उसी की. अपना खून अपना ही होता है. पराए और अपने में फर्क जानो,’’ माला बोली.

यह बात सुन कर रमेश का जमा हुआ खून अचानक खौल उठा और माला पर तकरीबन झपटते हुए बोला, ‘‘किस की बात कर रही है बुढि़या… जबान संभाल… वह मेरा बेटा है. 2 साल का था, जब वह मुझे बिलखते हुए रेलवे स्टेशन पर मिला था. कलेजे का टुकड़ा है वह मेरा,’’ राजू कोने में खड़ा सब सुनता रहा और आंखें फाड़फाड़ कर देखता रहा.

बाबा सब तमाशा देखसमझ चुका था कि ये लोग जाल में नहीं फंसेंगे और न ही कोई मोटी दक्षिणा का इंतजाम होगा, इसलिए शिष्य से कह कर उन चारों को वहां से बाहर निकलवा दिया.

राजू हैरान था. बाहर निकल कर राजू के मुंह से बस यही शब्द निकले, ‘‘बाबा, मैं तेरा गड़ा धन बनूंगा.’’

यह सुन कर रमेश ने राजू को अपने सीने से लगा लिया. उस ने राजू से माफी मांगी और कसम खाई कि आज के बाद वह कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा.

महाभोज : तिवारी जी ने भोजन कराने की कौन सी नई युक्ति निकाली

सुबह उठते ही गरमागरम चाय का अभी पहला घूंट ही गटका था कि अंदर का फरमान कानों के रास्ते अंदर उतर गया, ‘‘आज नाश्ता तभी बनेगा जब बाजार से सब्जी आ जाएगी.’’

हुआ यह था कि पिछले एक सप्ताह से दफ्तर के कामों में इतना उलझा रहा कि लौटते समय बाजार बंद हो जाता था और सब्जी का थैला बैग में पड़ा रह जाता. इन दिनों में पत्नी ने छोले व राजमा के साथ बेसन का कई तरह से इस्तेमाल कर एक तो अपनी पाक कला ज्ञान का भरपूर परिचय कराया, दूसरे, सब्जी की कमी को पूरा कर हमारी इज्जत ढकी थी.

पत्नी के आदेश को सिरमाथे मान कर मैं शार्टकट के रास्ते तेज कदमों से सब्जी बाजार की ओर जा रहा था. अभी थोड़ी दूर ही पहुंचा था कि नाक में तेज बदबू ने प्रवेश किया. मैं ने अपनी उल्लू जैसी आंखों को मटका कर चारों ओर देखा पर कुछ दिखलाई नहीं दिया. अभी वहां से कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि फिर जोरदार बदबू का झोंका आया. अब की बार मैं ने कुत्ते जैसी नाक से मजबूरी में बदबू को सूंघा और उस जगह पर नजर डाली जहां से वातावरण प्रदूषित हो रहा था. देखा, एक मरा हुआ ढोर नगरनिगम के कचरे के डब्बे में पड़ा था और कौए उस को नोंचनोंच कर खा रहे थे.

नाक पर रूमाल रखा और स्कूली दिनों को याद कर 100 मीटर की फर्राटा दौड़ लगा दी. सामने से तिवारीजी आते दिखाई दिए और मुझे इस तरह इतना फर्राटे से भागते देखा तो रोक कर पूछने लगे, ‘‘क्यों भाई, सब ठीकठाक तो है?’’

मैं ने अपनी सांसों को नियंत्रित किया और तिवारीजी के चेहरे को देखा तो वह किसी हौरर फिल्म के डे्रकुला जैसे लग रहे थे. बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे हुए बाल, नंगे पांव, गंदे से कपड़े. ‘‘बात क्या है, तिवारीजी, आप ठीकठाक तो हैं न?’’

‘‘क्यों, मुझे क्या हुआ?’’

‘‘अरे भाई, ये बढ़ी हुई दाढ़ी, नंगे पांव, बिखरे हुए बेतरतीब केश, और ये बढ़े हुए नाखून…आखिर माजरा क्या है?’’

तिवारीजी ने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा और बोले, ‘‘तुम्हें नहीं मालूम?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम.’’

‘‘यार, तुम कैसे हिंदू हो?’’

‘‘क्या मतलब? आप की दाढ़ीनाखून बढ़ने से मेरे हिंदू होने का क्या संबंध है?’’ मैं ने प्रश्न किया.

‘‘यार, हिंदू होने के नाते तुम्हें इतना तो पता होना ही चाहिए कि इन दिनों पितृपक्ष (श्राद्ध) के दिन चल रहे हैं और इन दिनों में न तो कोई शुभ काम किया जाता है और न ही दाढ़ीनाखून कटवाते हैं.’’

‘‘लेकिन तिवारीजी, हिंदू धर्म में इस तरह का कोई नियम है, ऐसा कुछ मैं ने आज तक किसी भी हिंदू धार्मिक पुस्तक में नहीं पढ़ा.’’

‘‘यार, वेदपुराणों में लिखा है, ऐसा हमें हमारे बापदादा ने बताया था.’’

‘‘आप ने पढ़ा है?’’ मैं ने नास्तिकों की तरह पूछा.

‘‘इस में पढ़ना क्या है? बुजुर्गों ने कहा है सो है, यही तो हमारी हिंदू संस्कृति, धर्म और सभ्यता है.’’

‘‘जहां पर प्रश्न करने की, शक करने की कोई गुंजाइश नहीं होती,’’ मैं ने कहा.

‘‘चुप रहो यार, ऐसा कर के पुरखों की आत्मा को शांति मिलती है.’’

‘‘क्या तुम्हारे पूर्वज तुम्हें ऐसा गंदा देख कर खुश हो रहे होंगे,’’ मैं ने उन का मजाक बनाते हुए कहा, ‘‘अजीब तुम्हारे पुरखे हैं.’’

‘‘लगता है, तुम पर किसी अधर्मी की छाया पड़ गई है.’’

‘‘बिलकुल नहीं मित्र, जो धर्म में है ही नहीं उसे प्रचारित करने वालों के खिलाफ मैं बोल रहा हूं. इसी कारण आज हिंदू धर्म मजाक बन गया है,’’ मैं ने एक संक्षिप्त सा भाषण ही दे डाला.

‘‘देखो यार, तुम्हारे भाषण देने से मुझ पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि मैं भगवाधारी कट्टर पार्टी से हूं और पार्टी का आदेश सिरमाथे पर,’’ तिवारीजी बोले, ‘‘पुरखे ऐसा करने से खुश होते हैं तो मैं ने ऐसा कर दिया. मैं तो वही करूंगा जो पार्टी के लोग चाहते हैं. फिर मुझे अपनी जाति से बाहर तो कोई नहीं करेगा,’’ ऐसा कह कर तिवारीजी हीही कर के हंस पड़े.

मैं ने तिवारीजी से कहा, ‘‘गजब का स्टेमना है आप का.’’

प्रशंसा सुन कर वह खुश हो गए और कहने लगे, ‘‘क्या बताएं यार, अकेले मैं ने नहीं मेरे पूरे परिवार ने आज अभी तक भोजन ग्रहण नहीं किया है.’’

‘‘क्यों? क्या मिला नहीं?’’

‘‘कैसी बातें करते हो तुम, सातों पकवान बना कर रख छोड़े हैं लेकिन खा नहीं सकते.’’

‘‘क्यों, क्या बात हो गई?’’

‘‘यार, सुबह से हम पूर्वजों को यानी कि कौओं को खाने का निमंत्रण दे रहे हैं लेकिन अभी तक वह नहीं पहुंचे. लगता है यह प्रजाति भी लुप्त हो रही है,’’ कह कर उन्होंने अपनी काली गरदन के पास उंगली रगड़ कर मैल की गोली बनाई और क्रिकेटर की तरह निशाना साध कर फेंक दी और उदास हो गए.

उन की उदासी मुझ से देखी नहीं गई. पूरे परिवार को भूख से परेशान होने की बात सुन कर मेरा मन द्रवित हो उठा. मैं ने कहा, ‘‘यार, तिवारीजी, मैं कुछ कहूं?’’

मरी हुई आवाज उन के मुंह से निकली, ‘‘बोलो.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि कौए तुम्हारे यहां लंच लेने आएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ हैरत से मेरी ओर देखते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘यार, जिन्हें तुम न्योता दे रहे हो वे सब तो महाभोज करने में लगे हैं.’’

‘‘कौए, महाभोज, क्या मतलब?’’ तिवारीजी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यार, अभी जिस रास्ते से मैं भागता हुआ  आ रहा था उस पर एक मरे हुए जानवर को कौए खा रहे थे, तुम ही कहो, आज के दिन इतनी अच्छी नानवेज डिश छोड़ कर वह घासफूस खाने तुम्हारे घर की छत पर क्यों आएंगे?’’

‘‘इस का अर्थ तो यह हुआ कि आज मेरा पूरा परिवार भूखा ही रहेगा.’’

‘‘शायद,’’ मैं ने भी गंभीरता से कहा.

‘‘फिर क्या उपाय हो सकता है?’’ तिवारीजी ने किसी क्लाइंट की तरह मुझ से सलाह मांगी.

‘‘एक उपाय है.’’

‘‘कहो दोस्त, जल्दी कहो, पूरे परिवार को जोरों से भूख लगी है.’’

मैं ने पहले तो अपने दाएंबाएं देखा ताकि मौका मिले तो भाग सकूं. फिर कहा, ‘‘यार, एक भोजन की थाली परोस कर उस मरे हुए जानवर के पास रख आओ. हो सकता है टेस्ट चेंज करने के लिए कौए कुछ खा लें.’’

‘‘आइडिया तो बहुत बढि़या है,’’ कह कर तिवारीजी ने मुझे अपने गले से चिपटा लिया और अपने घर की ओर तेज कदमों से चल दिए ताकि जल्दी से थाली परोस कर मरे ढोर के पास रख सकें, जहां उन के पुरखे उसे ग्रहण कर सकें.

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