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सांड़ों की दुर्दशा : गायों को बचाने वालों को सांड़ों की परवाह ही नहीं

दरअसल, मुझे इस शानदार जानवर को देख कर अफसोस होता है, जिसे सांड़ कहते हैं. मैं जब अलवर के एक बैंक मेले में थी तो देखा कि एक सांड़ बिना किसी का कोई नुकसान किए घुस आया. हर स्टाल वाले, जो सिर्फ बैंकिंग की जानकारी दे रहे थे, उसे मार कर भगाने लगे. राह चलते भी उसे मारने लगे. चौकीदार उसे अपने डंडे से हटाते रहे. वह सिर्फ अपने को बचाने की कोशिश करता रहा. हालांकि उस के साइज के हिसाब से यह कोई आसान न था. अंतत: वह मेले के मैदान से कुछ घाव लिए निकल गया.

सांड़ सब्जी मंडियों में जाते हैं ताकि फेंकी गई सब्जियां, पत्ते और फल खा सकें. पर उन्हें खाना खिलाने की जगह उन पर लाठियां चलाई जाती हैं और कई बार तेजाब तक डाल दिया जाता है. बिना तेजाब के जख्म वाले सांड़ को ढूंढ़ना ही मुश्किल है. गौरक्षक के लिए जाना जाने वाले शहर गोरखपुर की म्यूनिसिपल कमेटी उन्हें पकड़ कर बाड़ों में बंद करती है, लेकिन वहां खाने को कुछ नहीं मिलता. कुछ दिन बाद वे दम तोड़ देते हैं.

गौशाला में भी जगह नहीं

गौशालाएं सांड़ों को नहीं रखतीं. इसीलिए वे गलियों में घूमते रहते हैं और हर रोज पीटे जाते हैं. कुछ को रात को पकड़ कर बूचड़खानों के हवाले कर दिया जाता है. गायों को तो लोग खाना खिला देते हैं पर सांड़ों को खिलाने का कोई रिवाज नहीं है. वे शिव के वाहन के रूप में पूजे जाते हैं पर उन का और उपयोग नहीं है. वे गायों की तरह दूध भी नहीं देते.

अगर मादा गाय को दूध के लिए पालापोसा जाता है तो नर चौपाए को बैल के रूप में ही स्वीकार किया जाता है. जब उस के अंडकोषों को पत्थरों से बेरहमी से कुचल कर खसिया कर दिया जाए ताकि खेतों या बैलगाड़ी में इस्तेमाल करा जा सके. वह गायों को गर्भवती नहीं बना सकते. 4 साल के ऊपर के नर बछड़े कहीं देखने को नहीं मिलेंगे. जहां सांड़ों की पूजा होती है वहां भी उन्हें मारा जाता है.

गायों के गर्भाधान के लिए शुक्राणु वाला सीमन अब खास तरह के सांड़ों से जमा किया जाता है, जिन्हें बांध कर इसी काम के लिए दवाइयां दे कर तैयार करा जाता है और कृत्रिम गर्भाधान से गायों को गर्भवती बनाया जाता है. सांड़ एक आकर्षक प्राणी है पर मरजी का मालिक है. वह अब इसी गुण या अवगुण कहिए का शिकार हो रहा है और शिवभक्त भी नहीं बचा रहे हैं.

तीन तलाक : फैसले से इतर भी हैं कई फसाद

बीती 22 नवंबर को एक बार फिर जब यह चर्चा आम हुई कि सरकार तीन तलाक को ले कर या तो पुराने कानून में संशोधन करेगी या फिर सिरे से नया कानून बनाएगी तो लोगों को सहसा याद आया कि इस मसले पर कुछ दिन पहले ही तो खासा हंगामा मचा था, लेकिन फिर बात आईगई हो गई.

मगर इस बार इस खबर का कोई असर आम लोगों पर नहीं हुआ कि सरकार एक बार में तीन तलाक का रिवाज खत्म कर नए कानून में क्याक्या बदलाव करेगी और उस से मुसलिम महिलाओं को क्या हासिल होगा. यह जरूर लोगों ने सोचा कि क्या अब तलाक के लिए मुसलिम दंपतियों को भी अदालतों की खाक छानते हुए कानूनी सजा जिसे रहम कहा जा रहा है भुगतनी पड़ेगी?

कानून में दिचलस्पी रखने वालों को जरूर इस बात पर हैरत है कि अगर सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाती भी है तो उस का क्या हश्र होगा और यह विधेयक कानून में कब तक बदल पाएगा. तब तक क्या मुसलिम महिलाएं दुविधा की स्थिति में रहेंगी और पुरुष पहले की तरह तीन तलाक का चाबुक चलाते रहने को स्वतंत्र होंगे? वजह केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर का यह कहना था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया है, इसलिए नए कानून की जरूरत नहीं है.

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यह था फैसला

22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बैंच ने 5-2 के बहुमत से कहा था कि एकसाथ तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक ए विद्दत शून्य असंवैधानिक और गैरकानूनी है. बैंच में शामिल न्यायाधीशों ने सरकार को 6 महीनों में कानून बनाने का निर्देश दिया था. इस के लिए सरकार ने मंत्री स्तरीय कमेटी भी बना डाली जो तय नहीं कर पा रही है कि इस रिवाज में किस तरह के संशोधन करे या फिर नया मसौदा तैयार कराए, जिस से तीन तलाक के दाग धो कर मुसलिम महिलाओं को एक बेहतर विकल्प दिया जा सके.

जैसे ही यह कथित ऐतिहासिक फैसला आम हुआ था तो देश मानो थम सा गया. घरों में, चौराहों पर, दफ्तरों में, स्कूलकालेजों में, रेलों और बसों में हर कहीं तीन तलाक की चर्चा थी. हर कोई अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए ऐसे किसी उपयुक्त पात्र को ढूंढ़ रहा था जिसे अपनी मूल्यवान राय से अवगत करा कर अपनी बुद्धिमानी के झंडे गाड़े जा सकें.

बात थी भी कुछ ऐसी ही. आखिर सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के हक को मारती 14 सौ साल पुरानी एक कुप्रथा महज 28 मिनट के फैसले से एक झटके में जो खत्म कर दी थी. कुछ घंटों से ले कर अगले 3 दिनों तक देश का माहौल बड़ा गरम रहा. जिन्हें कोई श्रोता नहीं मिला उन्होंने अपनी बात सोशल मीडिया पर साझा की. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर तीन तलाक नाम की कुप्रथा से संबंध रखते हुए नएनए विचार प्रसारित हो रहे थे, जिन का सार सिर्फ इतना था कि औरत जीत गई, मजहब हार गया.

मजहब यानी इसलाम

चारों तरफ पसरती उत्तेजना और रोमांच देख महसूस यह हो रहा था मानो यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं, बल्कि भारतपाकिस्तान के बीच चल रहा वन डे क्रिकेट मैच था, जिस के आखिरी ओवर में आखिरी गेंद पर भारत को जीत के लिए 5 रन चाहिए थे और बैट्समैन ने छक्का मारने का करिश्मा कर दिखाया और भारत मैच जीत गया. लिहाजा खूब जश्न मना. तरहतरह के कमैंट्स और तजरबे इधर से उधर झूला झूलते रहे.

जिन्होंने बारीकी से माहौल देखा उन्होंने एक अजीब बात यह महसूस की कि वाकई मुसलमानों के  चेहरे उतरे हुए हैं. मसजिदों में नमाज पढ़ कर निकल रहे लोग चिंतन और चिंता की मुद्रा में थे और लगभग सिर झुकाए चल रहे थे. टीवी चैनलों पर शरीयत का हवाला देते हुए कट्टरपंथी मुसलमानों की दलीलें गैरमुसलमानों की सुधारवादी दहाड़ों के आगे सुनाई ही नहीं दे रही थीं.

सुनने लायक सुनाई दे रहा था तो बस इतना कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं लेकिन तीन तलाक के जिस तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज ठहराया है वह दरअसल में शरीयत के मुताबिक है ही नहीं. फिर आवाजें आईं जिन में प्रमुख शब्द थे इद्दत, खुला, हवाला, वक्फा और भी न जाने क्याक्या. इस ऐतिहासिक फैसले पर मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं ने खुशी जताई. सब से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देने वालों में 2 नाम उल्लेखनीय थे और वे थे भाजपा सांसद व अभिनेता परेश रावल और अभिनेता अनुपम खेर. तीसरा उल्लेखनीय नाम पाकिस्तानी मूल की नायिका सलमा आगा का था, जिन्होंने करीब 35 साल पहले बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘निकाह’ में मुख्य भूमिका निभाई थी. यह नीलोफर नाम की एक ऐसी युवती की कहानी थी जिसे पहला शौहर तलाक दे देता है तो वह कालेज के जमाने के एक दोस्त से दूसरी शादी कर लेती है. लेकिन एक गलतफहमी के चलते दूसरा शौहर भी तलाक देने पर उतारू हो जाता है. इस पर नीलोफर तीन तलाक को ले कर अंदर तक तीखे और कुरेदते सवाल करती है. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं को विस्तार दिया है.

इधर 23 अगस्त, 2017 के अखबार भी उन नायिकाओं की चर्चा से भरे पड़े थे, जिन्होेंने तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ मुकदमे दायर कर रखे थे. इन में भी सुपरस्टार थी शायरा बानो नाम की महिला, जिस ने फैसले के बाद प्रतिक्रिया दी थी कि मुसलिम महिलाओं में तो शादी के बाद से ही तलाक का डर बैठ जाता है. अब वे खौफ के साए में जीने के बजाय आजाद हो कर जिएंगी.

गुलामी से बदतर यह आजादी

शायरा का उत्साह स्वाभाविक बात है पर वह जिस आजादी का हवाला दे रही है वह दरअसल में एक ऐसी गुलामी है, जिस में फंस कर औरत छटपटाती ही रहती है.

कल्पना करें कि ‘निकाह’ की नीलोफर हिंदू होती तो क्या होता. होता यह कि वह घुटती रहती और पति की ज्यादतियां बरदाश्त करती रहती और जब बरदाश्त की हदें जवाब दे जातीं तो क्रूरता और तलाक का मुकदमा ठोंकने अदालत चली जाती.

फिर होता यह कि उसे सालोंसाल यह साबित करने में लग जाते कि पति वाकई क्रूर है. वह अपने व्यवसाय में व्यस्त है, इसलिए पत्नी को वक्त नहीं दे पाता, जिस से झल्लाई पत्नी एक दिन उसे सैक्स के अपने अधिकार से वंचित कर देती है तो वह और झल्ला उठता है. इस के बाद क्लाइमैक्स में पति महसूस करता है कि पत्नी ने मेहमानों के सामने उस के खानदान की नाक कटवा दी है. तब वह तलाक तलाक तलाक कह कर उसे जिंदगी और घर दोनों से निकाल देता है.

तीन तलाक नाम की कुप्रथा के बंद होने के बाद नीलोफर की स्थिति क्या होती? वह होस्टल में ही रहती और पराए मर्दों की बुरी नजरों को झेलती अपनी दास्तां डायरी में लिखती रह जाती.

भोपाल के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर तिवारी (बदला नाम) आमतौर पर इंश्योरैंस और क्लेम संबंधी मुकदमे लेते हैं. उन की साली सारिका (बदला नाम) की शादी 2002 में केंद्र सरकार के एक कर्मचारी से हुई थी. दोनों परिवारों की समाज में अपनी प्रतिष्ठा थी. लिहाजा सभी को उम्मीद थी कि दोनों की पटरी अच्छी बैठेगी.

जैसाकि आमतौर पर होता है शादी के बाद डेढ़दो साल तो ठीक गुजरे पर उस के बाद दोनों में खटपट होने लगी. सारिका ने महसूस किया कि पति देवेंद्र (बदला नाम) अपनी मां और बहनों पर ज्यादा ध्यान देता है और उन्हीं के कहने में है. इस पर उस ने धीरेधीरे अपना एतराज दर्ज कराना शुरू किया जो 1 साल बाद ही रोजरोज की कलह में तबदील हो गया.

सारिका चाहती थी कि देवेंद्र जैसे ही शाम को दफ्तर से घर आए तो पहले बैडरूम में आ कर उस के पास बैठे, जबकि अपनी आदत के मुताबिक देवेंद्र दफ्तर से आ कर पहले ड्राइंगरूम में आ कर मां के पास बैठ कर बतियाता था. इस दौरान कालेज में पढ़ रही दोनों बहनें भी उन के पास आ बैठती थीं.

एकाध साल तो सारिका भी सब के साथ ड्राइंगरूम में बैठी पर उस के बाद उस ने अपना डेरा बैडरूम में जमा लिया. शुरूशुरू में देवेंद्र ने उस के इस बदलते व्यवहार के बारे में पूछा तो वह बहाने बना कर बात को टाल गई, लेकिन फिर जवाब देने लगी कि तुम्हें क्या, तुम तो जा कर बैठो अपनी बहनों और मां के पास. बीवी तो नौकरानी होती है, उस की कीमत क्या.

कुछ दिन ऐसे ही कट गए. लेकिन सारिका की जिद और अहं ने देवेंद्र का जीना दुश्वार कर दिया. अब दोनों तरफ से तरहतरह के आरोप लगने लगे. फिर एक दिन बगैर किसी को बताए सारिका अपने मायके चली गई. उस के इस अप्रत्याशित कदम से हकबकाए देवेंद्र को जब उस के ससुर ने बताया कि सारिका उन के यहां है तो उसे बेफिक्री भी हुई और सारिका की इस बेजा हरकत पर गुस्सा भी आया. अत: उस ने तय कर लिया कि अब वह अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेगा.

अब दोनों में बोलचाल भी बंद हो गई. सारिका के पिता ने दुनिया देखी थी. दुखी बेटी की तकलीफ सुन वे सारा माजरा भांप गए. उन्होंने बेटी को समझाया भी कि जराजरा सी बातों पर ससुराल छोड़ना बुद्धिमानी की बात नहीं. कुछ दिनों में ही सारिका के कसबल ढीले पड़ने लगे. अब वह चाहती थी कि देवेंद्र उसे लेने मायके आए. इधर खुद को बेइज्जत महसूस कर रहे देवेंद्र ने ससुर से साफसाफ कह दिया कि उस का घर है जब चाहे आए, अपनी मरजी से गई है, इसलिए वह लेने नहीं आएगा.

सारिका के घर वाले भी उसे समझासमझा कर हार गए. सारिका ने उन से स्पष्ट कह दिया, ‘‘अगर मैं आप लोगों को भार लगने लगी हूं तो किसी वूमंस होस्टल में रहने चली जाती हूं. पेट भरने के लिए किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर देती हूं.’’

बात कैसे भी नहीं बन रही थी. तय हुआ कि जब दोनों साथ नहीं रह सकते या रहने को तैयार नहीं, तो तलाक के अलावा कोई विकल्प नहीं. इस बाबत पहले महज धौंस देने की गरज से देवेंद्र को कानूनी नोटिस भेजा गया, तो उस का पारा 7वें आसमान पर जा पहुंचा और उस ने कानूनी भाषा में ही वकील के जरीए जवाब दिया.

अब सुलह की रहीसही गुंजाइश भी खत्म हो गई थी. सारिका जब वापस नहीं आई तो देवेंद्र ने भी तलाक का मुकदमा ठोंक दिया. शुरू में तो सारिका तलाक के नाम से डरी, लेकिन इस से ज्यादा वह कुछ और नहीं सोच सकी कि देवेंद्र अगर उसे चाहता होता तो मुकदमा दायर न करता. जरूर मां और बहनों के बहकावे में आ कर उस ने यह किया है.

अब अदालत में मुकदमा चल रहा है  आरोपप्रत्यारोप लग रहे हैं. बात रिश्तेदारी में आम हो गई है और समाज के लोग तलाक के एक और मुकदमे का लुत्फ उठा रहे हैं.

सारिका घरगृहस्थी के बंधन से आजाद है. ऐसी आजादी की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, जिस में आएदिन दिखावे की हमदर्दी और पीठ पीछे ताने और हजार तरह की बातें हैं. घर वाले भी पहले सा खयाल नहीं रखते. उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली है. किसी भी तरह वह अदालत में यह साबित करना चाहती है कि दांपत्य की इस टूटन और मुकदमे की वजह वह नहीं, बल्कि देवेंद्र की बहनें और मां हैं. हरिशंकर तिवारी को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें क्या नहीं.

‘निकाह’ फिल्म की नीलोफर और सारिका की हालत में कोई खास फर्क नहीं है. बस उस की वजह अलग है. एक परित्यक्ता या तलाक का मुकदमा लड़ रही महिला की जिंदगी कितनी नीरस, उबाऊ और यंत्रणादायक होती है इस का अंदाजा सारिका को देख कर लगाया जा सकता है. देवेंद्र जैसा कोई भी पुरुष उस वक्त तक दूसरी शादी नहीं कर सकता जब तक उस का पहली पत्नी से तलाक न हो जाए.

कैसे बैठेगी पटरी

फैसला तीन तलाक के रिवाज पर आया है, जिस में महिलाओं की स्थिति का कहीं जिक्र नहीं है, न ही इस बात का उल्लेख है कि जब कोई पतिपत्नी वजहें कुछ भी हों साथ नहीं रह सकते तो कोई कानून क्या कर लेगा.

तलाक के लाखों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं. इन में हिंदू महिलाओं के ज्यादा हैं, मुसलमान महिलाओं के कम. वजह अब तक तीन तलाक की प्रथा थी, जिस के खत्म होने से फर्क इतना आने की संभावना है कि वे अपना पक्ष अदालत में रख सकेंगी, लेकिन शौहर को वापस पा सकेंगी इस सवाल का जवाब सारिका जैसी औरतें दें तो वह न में ही होगा.

बात हिंदू या मुसलिम की नहीं, बल्कि औरत की की जाए तो समझ आता है कि समस्या तलाक का तरीका कम पतिपत्नी में पटरी न बैठना औरतों की बदहाली की वजह ज्यादा है. तलाक एक झटके में हो या उस का मुकदमा सालोंसाल चले वे किसी भी कीमत पर पति को हासिल नहीं कर सकतीं.

पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक दबावों के चलते कितने दंपती नर्क की सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं, इस का ठीकठीक आंकड़ा शायद ही कोई दे पाए. लेकिन इस के उदाहरण हर कहीं आसानी से मिल जाते हैं यानी विवाद, अलगाव और तलाक सामान्य बात है, जिस का संबंध पतिपत्नी में किसी वजह से आपसी समझ और तालमेल न होना है तो तीन तलाक के रिवाज के बंद होने पर बातों के बताशे फोड़ना एक धार्मिक जिद भर नजर आती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुसलमान गुस्से में हैं.

भोपाल में 10 सितंबर, 2016 को आल इंडिया मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड की मीटिंग में धर्म और समाज के ठेकेदारों ने दोहराया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इज्जत करते हैं पर अपने मजहब और शरीयत में किसी तरह का दखल बरदाश्त नहीं करेंगे. यह बात कतई हैरानी की नहीं थी कि उन्होंने यह बात महिला प्रतिनिधियों के मुंह से भी कहलवा ली.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया था कि वह 6 महीनों में मुसलिम तलाक पर कानून बनाए और वह ऐसा नहीं करती है या नहीं कर पाती है तो उस का हालिया फैसला ही कानून माना जाएगा. इस निर्देश के मद्देनजर सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश कर सकती है पर इस में बात सिर्फ मुसलिम महिलाओं की होगी, हिंदू महिलाओं की दुर्दशा पर भी सरकार संवैधानिक स्तर पर ध्यान दे तो वास्तव में वाहवाही और आभार उसे तीन तलाक पर पहल करने से भी ज्यादा मिलेगा.

देश के बुद्धिजीवी वर्ग और आकाओं ने इस फैसले को समान नागरिक संहिता की दिशा में बढ़ता सार्थक कदम बताया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलिम बहनों को बधाई दे डाली. परेश रावल और अनुपम खेर जैसे हिंदूवादी अभिनेताओं की कथित खुशी यह है कि मुसलिम महिलाओं को तीन तालक से छुटकारा मिल गया. जबकि हकीकत क्या है यह हर कोई समझ रहा है. इन्हें और इन जैसे लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि तलाक की त्रासदी भुगतते पतिपत्नियों को इस से क्या हासिल होगा. तलाक तो तलाक है, फिर चाहे वह फटाफट वाला हो यह लंबा खिंचने वाला. दोनों ही स्थितियों में पतिपत्नी कुछ नहीं कर पाते. उन्हें किसी भी कीमत या शर्त पर एकदूसरे से छुटकारा चाहिए होता है.

बात तब बिगड़ती है जब कोई एक पक्ष तलाक न देने की जिद पर अड़ जाता है. अब अगर मुसलिम महिलाओं को अदालत जाने का हक मिला तो वे भी सारिका की तरह पेशी दर पेशी अपनी एडि़यां अदालत की देहरी पर रगड़ेंगी, लेकिन तलाक इतना आसान काम नहीं जितना वे समझ रही होंगी.

इन की अनदेखी क्यों

तीन तलाक पर सुप्रीम कोेर्ट का फैसला आने के बाद भी इस के मामले आने जारी रहे तो एक बार फिर केंद्र सरकार की तरफ से 1 दिसंबर को ये संकेत दिए गए कि महज एक बार में बोल कर तीन तलाक देने वाले शौहर को तीन साल की सजा हो सकती है और तीन तलाक अपराध की श्रेणी में माना जाएगा, जिस में पति को जमानत भी नहीं मिलेगी.

यकीनन मुसलिम महिलाओं के हक में यह भी सार्थक पहल है कि वे कानून बनने तक तलाक की प्रक्रिया के दौरान गुजाराभत्ता भी मांग सकती हैं और चाहे तो नाबालिग बच्चों की सरपरस्ती भी हासिल कर सकती हैं.

अदालत, सरकार और मंत्री स्तरीय कमेटी के लिए यह एक अच्छा मौका है कि वे हिंदू महिलाओं की परेशानियों के बारे में भी विचार करें खासतौर से उन पहलुओं पर जो असंवैधानिक हैं और रिवाज या प्रथा हैं, जिन के चलते हिंदू महिलाओं को मुसलिम महिलाओं से कम दुश्वारियों का सामना नहीं करना पड़ता.

जन्मकुंडली मिलान कर शादी करना और न मिलने पर प्रस्ताव का खारिज होना कोई संवैधानिक बात नहीं है. इसी तरह संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है कि मांगलिक लड़की को मंगल की दशा के चलते रिजैक्ट कर दिया जाए. ये रिवाज सदियों से चले आ रहे हैं, जो सीधेसीधे धार्मिक दोष के दायरे में आते हैं.

जिस तरह सरकार मुसलिम महिलाओं के हक में संविधान का हवाला बारबार दे रही है उस के दायरे में तो दहेज भी आता है. दहेज कानूनन अपराध होने के बाद भी खुलेआम चलन में है और हर साल लाखों महिलाएं इस की बलि चढ़ जाती हैं. उन की क्या गलती है? अब यह नए सिरे से अदालत और सरकार के लिए तय करना जरूरी हो चला है, जिस से हिंदू महिलाओं को भी राहत मिले. रिवाज तो व्रत और उपवास का भी महिलाओं के भले का नहीं. एक हिंदू महिला पति, पुत्र और ससुराल के भले और सलामती के लिए पचासों तरह के व्रत रखती है.

सरकारें हिंदू पर्वों के आयोजनों पर पानी की तरह पैसा बहाती हैं. यह बात भी संविधान में कहीं नहीं लिखी कि वे जनता के पैसे का मनमाना दुरुपयोग धार्मिक कृत्यों व आयोजनों में करें. फिर इस पर चुप्पी और खामोशी क्यों?

मंत्री स्तरीय कमेटी को धार्मिक पूर्वाग्रह छोड़ते इन विसंगतियों और खामियों को भी नए कानून में शामिल करना चाहिए ताकि जिस से न केवल हिंदू महिलाएं, बल्कि आम लोगों को भी राहत मिले जो तमाम धार्मिक ढोंगों, पाखंडों को रिवाज मानते हुए कुछ बोल नहीं पाते. अदालत इन पर भी खुद संज्ञान ले कर सरकार को निर्देशित कर सकती है. अगर वह ऐसा करेगी तो कुछ कट्टरवादियों को छोड़ कर आम लोग उस की पहल का स्वागत ही करेंगे जैसा तीन तलाक के मामले में मुसलिम समुदाय ने किया.

वापस ‘निकाह’ फिल्म की तरफ चलें तो नायिका की दूसरी शादी इसलिए जल्दी हो गई थी कि वह एक तलाकशुदा स्त्री थी. कोई कानूनी अड़चन उस में नहीं थी. अगर मुकदमा चल रहा होता तो वह इतनी आसानी से दूसरी शादी नहीं कर पाती. यहां मकसद तीन तलाक की हिमायत करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि सालोंसाल चलते तलाक के मुकदमों से दोनों पक्षकारों को कितना और कैसाकैसा नुकसान होता है. कोई भी कानून सुधार के लिए बने स्वागत योग्य है पर कानन जिंदगी से खिलवाड़ न कर पाए इस का खयाल रखा जाना भी जरूरी है और तलाक के मामलों में ऐसा तभी होता है जब किसी एक पक्ष को कानून से खिलवाड़ करने की सहूलत मिल जाती है.

ऐसे ढेरों समाचार मिल जाएंगे जिन में विवाहितों के प्रति दूसरे पक्ष ने हिंसक अपराध किया, जिस की वजह काननी पेंच है, जो तलाक की मियाद की गारंटी नहीं लेता. न्याय के लिए बने कानून की चौखट पर लोग महज इसलिए नहीं जाते कि वहां तो अंधेर से भी ज्यादा देर है. ऐसे कानून पर भी पुनर्विचार होना जरूरी है.

तीन तलाक के मसले पर अदालत ने खुद संज्ञान लिया था. उस में किसी शायरा या शाहबानो ने एतराज दर्ज नहीं कराया था. अदालत को चाहिए कि वह इस बात पर भी संज्ञान ले कि देर से मिला न्याय अन्याय नहीं तो क्या है. पतिपत्नी कानूनी देरी के डर के चलते घुट कर जीते हों तो यह भी कानूनी खामी नहीं तो क्या है?

फैसले पर जश्न मना रहे लोगों को भी इस खामी पर पहल करनी चाहिए कि कई देवेंद्र और सारिका तलाक के मुकदमे के लंबे खिंचने के कारण दूसरी शादी कर चैन की जिंदगी जीने की बात सोच ही नहीं पा रहे. उन्हें खुश रहने का मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए?

कैसे हो तलाक

जब तक विवाह व्यवस्था है तब तक तलाक भी होते रहेंगे, इसलिए बेहिचक कहा जा सकता है कि अप्रिय स्थितियों में तलाक कोई हिचक या शर्म की बात नहीं. शर्म की बात है तलाक की प्रक्रिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे मंशा विलाशक महिलाओं के भले की है पर उस से भला होगा ऐसा लगता नहीं.

फसाद और परेशानियों की एक जड़ खुद कानून भी है. तलाक के मुकदमे सालोंसाल क्यों चलते हैं, इस संवेदनशील सवाल का जवाब देने की जिम्मेदारी भी कानूनविदों को लेने की हिम्मत दिखानी चाहिए. क्यों एक महिला और पुरुष शादी करने की सजा और मानसिक यंत्रणा सालोंसाल भुगतते हैं? क्यों अपनी जिंदगी के सुनहरे दिन गंवाने को मजबूर होते हैं? इस बात पर न जाने कब कोई अदालत विचार करेगी.

जाहिर है, अब एक ऐसे कानून या व्यवस्था की जरूरत कहीं ज्यादा है, जिस में तलाक जल्दी और वक्त पर हो. इस दौर के ढेरों नवदंपतियों की तो हालत यह है कि शादी की पहली वर्षगांठ भी वे मना नहीं पाते और मुंह उठाए कोर्ट पहुंच जाते हैं. उन्हें समझाने के नाम पर साथ रहने को क्यों मजबूर किया जाता है? इस से उन के बीच का बैर और बढ़ता है और वे जल्दी तलाक चाहने के लिए एकदूसरे पर मनगढ़ंत आरोप लगाने लगते हैं और फिर उन्हें सच साबित करने पर उतारू हो आते हैं.

बेशक तलाक एक झटके में और एकतरफा नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह 2 जिंदगियों का सवाल होता है, लेकिन तलाक की मियाद ज्यादा लंबी भी इस लिहाज से नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह 2 जिंदगियों का सवाल होता है.

बेहतर होगा कि सुधार, अच्छे पारिवारिक और सामाजिक माहौल के लिए तलाक के मुकदमों के फैसले की अधिकतम समय सीमा हालात कुछ भी हों 2 साल रखी जाए. इस में मुवक्किलों को नादान समझते या समझौते की उम्मीद में उन का वक्त जाया न किया जाए. कानून और अदालतों को यह गारंटी लेनी और देनी होगी कि तलाक का कोई भी मुकदमा

2 साल से ज्यादा नहीं चलेगा और अगर चलता है तो मुकदमे के तीसरे साल के पहले दिन से ही विवाह विच्छेद हो गया माना जाएगा.

इस व्यवस्था में किसी का कोई नुकसान नहीं है. अगर पतिपत्नी को वाकई कोई गलतफहमी है या सुलह की गुंजाइश दिखती है तो यह मियाद काफी है. पति या पत्नी में से कोई भी एक पक्ष महज दूसरे को सबक सिखाने या नीचा दिखाने के लिए तलाक के मुकदमे को लंबा खींचे यह सहूलत उन से छीनी जानी चाहिए. तभी लोग सुकून से रह पाएंगे, क्योंकि अगर तलाक के बाद भी वे साथ रहना चाहें तो बगैर किसी हलाला जैसे रिवाज के रह सकते हैं. कोई उन्हें रोक नहीं सकता. ठीक उसी तरह जैसे विवाद, मतभेद या कलह होने पर उन्हें कोई साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकता.

धर्मों की मनमानी के खिलाफ एकजुट हों औरतें

हजारों वर्षों से सभी धर्मों के पूंजीवादी ठेकेदारों ने जिस तरह अपने स्वार्थ और अहंसिद्धि के लिए औरतों को धर्मपालन के नाम पर मानसिक रूप से जड़ बनाया है, उन्हें अपराधभावना में डुबो कर उन का मनोबल तोड़ा है, वह आज 21वीं सदी में भी साफ दिखता है. सिर्फ दिखता ही नहीं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी लड़कियां धर्म के वशीभूत हो खुद स्टौकहोम सिंड्रोम से ग्रस्त हो चुकी हैं.

40 साल पहले स्टौकहोम में बैंक डकैती करने वालों ने कुछ लोगों का अपहरण कर लिया था. इन पर अत्याचार भी किए. बाद में ये अपहृत लोग जीने की मजबूरी में इन डकैतों को ही बचाने में लगे थे. इन्होंने हर उस मदद करने वाले का विरोध किया जो इन डकैतों को सजा दिलाने का प्रयास करता. बस इसी कुंद पड़ी डरी हुई मानसिकता को साइकोलौजी के जानकार स्टौकहोम सिंड्रोम कहते हैं और आज धर्म की गुलामी करतीं वे सारी आरतें इसी सिंड्रोम की शिकार हैं. वे उसी धर्म और उस की मनमानी का सहारा ढूंढ़ती हैं, जो वास्तव में उन के सम्मानपूर्ण न्यायोचित वजूद के खिलाफ है.

समझें धर्म की असलियत

धर्म जो धारण करे, पालन करे, कर्तव्य को प्रेरित करे वह धर्म व्यक्तिगत उत्थान के लिए अपने आचरण को विवेक की कसौटी पर कसने को कहता है, मगर इस धर्म का कहीं कोई नामोनिशान न आज है न कभी था.

धर्म जीवन का भय दिखा कर जीवन को लूटता है, प्रियजन के विनाश का भय दिखा कर प्रियजन का ही सर्वनाश करता है, धनसंपत्ति के लुट जाने का भय दिखा कर गरीब से गरीब तक का धन लूट लेने में संकोच नहीं करता और यह सारा खेल खेलते हैं धर्म के पृष्ठपोषक, पूंजीवादी, भोगी, हठी, धर्म के बड़ेबड़े दुकानदार, ठेकेदार-पोप, मौलवी, पंडे, भिक्षु.

औरत सर्वाधिक निशाने पर

औरत के जन्म के बाद से ही उसे धर्म के नाम पर बहलाना और भड़काना दोनों शुरू हो जाता है. उस के पैरों में पायलें भी पहनाई जाती हैं, तो वे बेडि़यां ही बनती हैं. उस के माथे पर सिंदूर भी लगाया जाता है तो वह जिंदगी भर की गुलामी ही बन जाता है.

पगपग पर औरत को मनाही, रोज कुछ न कुछ बाधाओं और बंधनों में उस का गुजारा, हजार तरह के व्रतउपवास सब तो जैसे उस की ही जिम्मेदारी हैं वरना नरक का डर. हां, बहलाने के लिए साजशृंगार का झुनझुना अवश्य पकड़ाया जाता है उसे.

बेचारी औरतें सजनेसंवरने की खुशी में मानसिक, शारीरिक गुलामी की बात भूल झुनझुने को ही असली खुशी मान बैठती हैं.

धर्म ने क्या दिया औरतों को

बचपन की दहलीज लांघते ही धर्म के बड़ेबड़े राक्षस मनलुभावन छद्मवेश में उस के सामने आते हैं. उस का कुंडली मिलान करना है, क्योंकि वह विवाह के लायक हो गई है या फिर शादी के लिए उसे सैकड़ों इसलामी धार्मिक कानूनों से गुजरना है, क्योंकि वह औरत है और औरत अपने पुरुष आकाओं की गुलामी के लिए पैदा हुई है.

कुंडली मिलान और औरत

हिंदू धर्मशास्त्र में ज्योतिष विद्या का बड़ा चलन है. यह आसमान के ग्रहनक्षत्र का विचार कर मनुष्य पर उस के प्रभाव तथा तदनुरूप निराकरण की व्यवस्था का दावा करता है. बात पहले तो यह दीगर है कि लाखोंकरोड़ों मील दूर ग्रहों का प्रभाव यदि मनुष्य पर पड़ता है भी तो उस प्रभाव को बदलने की ताकत एक इंसान के रूप में ज्योतिषी में कितनी है? क्या वह इतना ताकतवर है कि उस के झांसे में आ कर हजारोंलाखों रुपए खर्च कर दिए जाएं कि उस ने कहा है कि सब ठीक कर देगा.

ज्योतिष यह बात तो मानता ही है कि व्यक्ति को उस के कर्मों का फल प्राप्त होता है, तो उस फल को एक ज्योतिषी ने अपने उपायों से कमज्यादा करने की ताकत कैसे पाई? बिना ईश्वर को माने ज्योतिष नहीं होता, तो क्या ज्योतिषी ईश्वर से भी ज्यादा ताकतवर है? फिर वह तो ईश्वर से बड़ा शक्तिमान साबित हो जाता है, जो मनुष्य जीवन की सारी गतियों और काल के गर्भ में समाए सारे संकेतों को नकार और सुधार सकता है?

ऐसे किसी शास्त्र पर भरोसा करने के बाद जिन्हें सब से ज्यादा इस चक्की में पिसना होता है वे हैं औरतें.

कैसी कैसी यातनाएं

कुंडली मिलान के नाम पर अकसर औरतें बलिकाठ में फंसाई जाती हैं. अब उन समस्याओं को दूर करने के लिए तरहतरह के खर्चीले उपायों के साथ उन पर जुल्म भी ढाए जाते हैं. परिवार उन्हें उन की कमियां बता कर ताने मारता है और वे भी इन्हें सच मान कर तरहतरह के व्रतउपवास द्वारा खुद को तकलीफ में डालती हैं. वे जिंदगी की उड़ान को बाधित कर काल्पनिक कथनों के पीछे अपनी ऊर्जा और उन्नति नष्ट करती रहती हैं.

दरअसल, ये सारी मान्यताएं और थोपी गई बाध्यताएं औरत की चरम गुलामी की प्रतीक हैं. दुख की बात है कि वे खुद ही आंखों पर पट्टी बांधे इन का पालन करती हैं और नई पीढि़यों पर भी इन्हें थोपती जाती हैं.

होने वाले पति के घर में ऐन शादी के मौके पर किसी की मृत्यु हो गई तो कन्या का दोष, अपशकुनी. घर में कोई लंबी बीमारी से पीडि़त है, तो घर की कन्या का दोष. परिवार में आर्थिक नुकसान हो गया तो कन्या में ऐब. मनमुताबिक वर नहीं मिल रहा है तो कन्या में ग्रहदोष. पति की आर्थिक या शारीरिक परेशानी है तो पत्नी में खोट. ससुराल वालों की तकलीफ का कारण बहू की कुंडली में दोष.

अब इन के लिए सारे उपचार जो पंडितजी बताएंगे कौन झेलेगा? बहन, पत्नी, बहू, कन्या यानी औरत.

धर्म कोई भी हो औरत की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं है. इसलामी कानून के मुताबिक शादी को 2 व्यक्तियों औरतमर्द के मेलमिलाप और प्रेम का बंधन कहा गया है और न निभे तो आपसी विचारों से दोनों के अलग होने की बात भी स्वीकारी गई है. लेकिन हर घर में धर्म की ही आड़ में औरतों की दयनीय दशा सामने आ रही है. धर्म का भय दिखा कर मुसलिम औरतों को उन के साथ हो रहे अन्याय को इसलाम के प्रति कुरबान होना बताया जाता है. बौद्घिक चेतना के अभाव में औरतें अपने आकाओं द्वारा उन के प्रति किए गए अत्याचारों को धार्मिक बंधन के नाम पर स्वीकारती हैं.

आडंबरों के प्रचार में टीवी की भूमिका

पैसों की बाढ़ में टीवी चैनल वालों का विवेक बह जाता है. आज जो आशाराम जेल में है, उस के लच्छेदार भाषणों का प्रसारण इसी टीवी पर होता था. करोड़ों में बिक जाते हैं दृश्य माध्यमों के नीतिशास्त्र. इन के अंधप्रचार ने सब से ज्यादा नुकसान किया है घर में टीवी के सामने बैठी प्रवचन और अनर्गल सुनती औरतों का.

बाबाओं की भक्ति में अंधी हो चुकी औरतों का हुजूम दुनिया भर की अतार्किक, अबौद्घिक बातों पर सिर हिलाता और जयकारे लगाता रहता है. जबकि ज्ञान उन्हीं से लेना चाहिए जो सही माने में स्वयं अपने जीवन में उसे उतार चुके हों.

देश के विकास में भागीदारी औरत और मर्द दोनों के ही मानसिक, बौद्घिक उत्थान से संभव है. इस के लिए धर्म की अंधी गली से निकल देश भर की सभी औरतों को ज्ञान और विवेक की छत्रछाया में अन्याय के खिलाफ एक ही प्रकार के दर्द को साझा करते हुए एकजुट होना होगा. यही वह रास्ता है, जो औरत की वास्तविक आजादी को मंजिल तक ले जाएगा.

मैं सर्दी के इस मौसम में मेकअप के टिप्स जानना चाहती हूं, जिन से चेहरा भी खूबसूरत दिखे और स्किन भी ड्राई न हो.

सवाल
अब सर्द हवाओं का असर दिखने लग गया है. ऐसे में मैं इस मौसम में मेकअप के टिप्स जानना चाहती हूं, जिन से चेहरा भी खूबसूरत दिखे और स्किन भी ड्राई न हो?

जवाब
अपनी स्किन को सर्द हवाओं से प्रोटैक्ट करने के लिए और फाउंडेशन के तौर पर टिंटेड मौइश्चराइजर लगाएं. इस से स्किन सौफ्ट हो जाएगी और त्वचा ग्लोइंग नजर आएगी. इस के अलावा चीक्स पर क्रीमी ब्लश का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से फेस का मौइश्चर बरकरार रहेगा. आंखों पर मेकअप शुरू करने से पहले क्रीमी लुक के लिए आईप्राइमर जरूर लगाएं. उस के बाद अपनी मरजी के मुताबिक आई मेकअप करें. लिप्स को हाइड्रेट करना इस मौसम में जरूरी है, इसलिए उन पर पहले अच्छी क्वालिटी का लिपबाम लगाएं, इस के बाद किसी अच्छी क्वालिटी की विटामिन ई युक्त क्रीमी लिपस्टिक लगाएं.

मेरे पति रोज सहवास करते हैं, माहवारी के दिनों में भी. मना करने पर लड़ते हैं. कहीं मेरे पति सैक्स ऐडिक्ट तो नहीं हैं.

सवाल
मैं 24 वर्षीय विवाहिता हूं. पति रोज सहवास करते हैं यहां तक कि माहवारी के दिनों में भी. मना करने पर लड़तेझगड़ते हैं, यों हमारे बीच कभी कोई विवाद नहीं होता. विवाह को 4 वर्ष हो चुके हैं. आज भी वे मुझ से बेहद प्यार करते हैं. मेरी हर छोटीबड़ी इच्छा का ध्यान रखते हैं. बस सैक्स को ले कर ही उन की अति समझ नहीं. मेरी सहेलियों के पति महीने में 2-4 बार या ज्यादा से ज्यादा 8-10 बार सहवास करते हैं. मैं जानना चाहती हूं कि कहीं मेरे पति सैक्स ऐडिक्ट तो नहीं हैं?

जवाब
यौनेच्छा व्यक्ति विशेष की इच्छा और क्षमता पर निर्भर करती है. इस के लिए दूसरों से तुलना करना खासकर इतनी निजी बात को सहेलियों से करना बचकानी हरकत है. आप के पति पूरी तरह से सामान्य हैं. इसलिए किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न पालें. आप अभी जवान हैं. सैक्स के प्रति रुचि होना स्वाभाविक है. इसलिए पति को भरपूर सहयोग दे कर खुद भी आनंद उठाएं. यह न भूलें कि सैक्स सुखी दांपत्य की धुरी है.

वाईफाई राउटर खरीदने से पहले रखें इन बातों का खास ख्याल

आज के समय में इंटरनेट हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. आज हम और हमारा पूरा परिवार इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में तेज स्पीड और ज्यादा डेटा के साथ सस्ते में इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए वाईफाई राउटर एक बेहतर विकल्प है. अगर आप भी वाईफाई राउटर खरीदने का सोच रहे हैं तो उससे जुड़ी कुछ खास बातों को जान लेना आवश्यक है.

कुछ लोग वाईफाई के धीमे नेटवर्क से समझौता कर सकते हैं पर ज्यादातर लोग बेहतर की उम्मीद करते हैं. वे अपनी सुविधा के अनुसार कई सिस्टमों पर इंटरनेट इस्तेमाल करना चाहते हैं, साथ में इंटरनेट स्पीड भी तेज हो और घर के हर कमरे में नेटवर्क मिले, ऐसे में राउटर से जुड़ी इन बातों को जानना बेहद ही जरूरी है.

इंटरनेट के साथ भी और उसके बिना भी

वाईफाई राउटर को मुख्यत: इंटरनेट कनेक्शन शेयर करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है, लेकिन यह इसकी एक मात्र खासियत नहीं है. अगर आपके पास एक्टिव इंटरनेट कनेक्शन नहीं है तो भी आप अपने स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स, टीवी और कंम्प्यूटर को इसके जरिए कनेक्ट कर सकते हैं.

वैसे तो बाजार में कई किस्म के और अलग-अलग फीचर्स वाले राउटर उपलब्ध हैं, लेकिन इसे खरीदने से पहले इन बातों का रखें ध्यान.

ज्यादातर यूजर्स को राउटर की जरूरत कई डिवाइसेज पर इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए होती है. आपका इंटरनेट कनेक्शन या तो केबल वाला होगा या फिर ADSL. केबल कनेक्शन होने की स्थिति में आपको अपने इंटरनेट प्रोवाइडर से पूछ लेना चाहिए कि आपका कनेक्शन कैसा है. सामान्य तौर पर आपको एक राउटर के अलावा किसी और डिवाइस की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, अगर आपके पास DSL कनेक्शन है और BSNL, MTNL और एयरटेल जैसी कपंनी सर्विस प्रोवाइडर हैं तो आपको राउटर के साथ ADSL मॉडेम की भी जरूरत पड़ेगी. ऐसी परिस्थिति में बिल्ट इन ADSL मौडेम वाला राउटर खरीदना ज्यादा बेहतर होगा.

राउटर का वाई-फाई स्टेंडर्ड

सबसे पहले आपको यह देखना होगा कि राउटर किस वाई-फाई स्टेंडर्ड को सपोर्ट करता है. पुराने मौडल पर 802.11 ‘b’ or ‘g’ का सपोर्ट मिलता है जबकि नए राउटर्स ‘n’ को भी सपोर्ट करते हैं. 802.11n स्टेंडर्ड पर आप 600Mbps (mega bits per second) के स्पीड से डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं, हालांकि कुछ 802.11n राउटर्स की टौप स्पीड 300Mbps होती है.

802.11ac लेटेस्ट स्टेंडर्ड है. इस पर आपको 1.3Gbps का ट्रांसफर स्पीड मिलती है. वैसे अभी बेहद ही कम मोबाइल फोन और लैपटौप 802.11ac को सपोर्ट करते हैं. इसके अलावा यह टेक्नोलौजी 802.11n की तुलना में काफी महंगी है. फिलहाल आप ‘n’ स्टेंडर्ड वाले राउटर पर भरोसा जता सकते हैं. भारत के इंटरनेट कनेक्शन के लिए यह काफी तेज है और साथ में सभी डिवाइस पर इसका सपोर्ट मिलता है.

राउटर की वायरलेस फ्रिक्वेंसी

राउटर की फ्रिक्वेंसी से यह निर्धारित होता है कि आपका नेटवर्क कितना पावरफुल है. राउटर के दो मुख्य स्टेंडर्ड हैं 2.4GHz और 5GHz. दोनों के बीच मुख्य अंतर रुकावट और रेंज का है. 2.5 GHz स्टेंडर्ड राउटर की तुलना में 5GHz स्टेंडर्ड राउटर में नेटवर्क बेहतर मिलता है. अगर नेटवर्क इंटरफेरेंस मुख्य मुद्दा नहीं है तो आप 2.5GHz वाला राउटर ही खरीदें.

राउटर की स्पीड

किसी भी राउटर की स्पीड उस माडल में इस्तेमाल किए गए हार्डवेयर पर भी निर्भर करती है. वैसे हर डिवाइस में स्पीड का जिक्र “High Speed Upto” सेक्शन में किया रहता है. जो राउटर स्लो होंगे उनकी कीमत भी कम होगी. अगर जरूरत सिर्फ इंटरनेट से जुड़ने की है तो आप सस्ता राउटर खरीदें. अगर लेपटौप पर हाई डेफिनेशन वीडियो देखने या उसे अपने स्मार्ट टीवी पर स्ट्रीम करने का शौक है तो आपका 300 Mbps राउटर से काम चल जाएगा.

राउटर के एंटीना का रेंज

किसी वाईफाई राउटर का रेंज जानने का कोई सीधा तरीका नहीं है क्योंकि यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है. हालांकि, राउटर के पीछे उसके एंटीने के dBi रेटिंग्स का जिक्र रहता है. अमेरिका के एक नेटवर्क कंसल्टेंट प्रणव राजपारा का कहना है कि किसी छोटे से मिडिल साइज अपार्टमेंट के लिए 2-4dBi रेंज वाला राउटर पर्याप्त है. हालांकि आपके घर में फ्रीज, माइक्रोवेव ओवन जैसे इलेक्ट्रौनिक डिवाइस हैं और तो आपको ऊंची रेंज वाला राउटर लेना होगा.

वैसे Netgear, Asus, D-Link और Cisco Linksys पर ही भरोसा दिखाएं. और इसकी वजह सिर्फ एक है कि कल को जब आप किसी कारण से समस्या में फंस जाते हैं तो इन कंपनियों की डिवाइस के बारे में इंटरनेट पर बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध हैं. वैसे राउटर वही लें जो आपकी जरूरतों और जेब के लिए फिट बैठे.

‘धड़क’ के बाद इस एक्टर के साथ नजर आएंगी जाह्नवी कपूर

श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर ने अभी अपने फिल्मी करियर की शुरुआत ही की है, लेकिन उन्हें लगातार बड़ी फिल्मों के औफर मिल रहे हैं. खबर है कि जाह्नवी ‘धड़क’ के बाद रणवीर सिंह की फिल्म ‘सिंबा’ में नजर आ सकती हैं. ‘सिंबा’ साउथ की फिल्म टेंपर का रीमेक है. फिल्म में एनटी रामा राव जूनियर और काजल अग्रवाल ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फिल्म में रणवीर सिंह काम कर रहे हैं. फिल्म का पोस्टर भी कुछ दिन पहले रिलीज किया गया था. अब खबर है कि फिल्म में रणवीर के अपोजिट जाह्नवी अभिनय करेंगी.

दिलचस्प बात यह है कि जाह्नवी कपूर के पिता बोनी कपूर ने सिंबा के ओरिजिनल साउथ इंडियन फिल्म देखी है और उन्हें लगता है कि उस लिहाज से भी इस फिल्म में जाह्नवी बिल्कुल फिट बैठेंगी. हालांकि खबर है कि श्रीदेवी इस बात को लेकर काफी गंभीरता से योजना बना रही हैं कि जाह्नवी शुरुआती दौर में जिन फिल्मों में भी काम करें, उनमें उनके किरदार को भी उतनी ही स्पेस मिले, जितना हीरो को मिल रहा हो और वह इस बात की पूरी सहमति के साथ ही जाह्नवी से जुड़े किसी भी प्रोजेक्ट को हां कहेंगी.

हालांकि इस फिल्म में जाह्नवी होंगी या नहीं अभी इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. मगर खबरों की माने तो उनका नाम तय है. फिल्म में जाह्नवी को लेने का फैसला फिल्म के सह-निर्माता करण जौहर ने लिया है. रोहित शेट्टी की चाहत है कि वह फिल्म में किसी नए चेहरे को लांच करें. करण जौहर, जो कि रणवीर की इस फिल्म के निर्माता हैं तो उन्होंने श्रीदेवी को सलाह दी है कि रणवीर सिंह चूंकि वर्तमान में युवा सुपरस्टार में से एक हैं, तो जाहनवी के शुरुआती करियर में रणवीर के साथ काम करना एक अच्छा निर्णय होगा.

खैर देखते हैं कि आखिरी फैसला क्या होता है. वैसे आपको बता दें कि जाह्नवी करण जौहर की ही फिल्म धड़क से वो बौलीवुड में दस्तक दे रही हैं. फिल्म में उनके साथ शाहिद कपूर के भाई ईशान खट्टर भी हैं. यह फिल्म मराठी फिल्म ‘सैराट’ की रिमेक है. फिल्म धड़क जुलाई में रिलीज होने वाली थी. अब यह फिल्म जून में आएगी. वहीं रणवीर वाली फिल्म सिंबा दिसम्बर में रिलीज होगी. एक दिलचस्प बात यह भी है कि अगर वाकई जाह्नवी इस फिल्म की हीरोइन बनती हैं तो उनका डेब्यू भी सारा अली की फिल्म केदारनाथ के साथ ही होगा.

हेलमेट से टकराई जसप्रीत बुमराह की गेंद तो दर्द से कराह उठे डीन एल्गर

जोहान्‍सबर्ग में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेला जा रहा तीसरा टेस्‍ट विवादों में घिर गया है. वांडरर्स की पिच को कई विशेषज्ञों ने ‘खतरनाक’ करार दिया है. पिच पर गड्ढे हैं और वहां गेंद टप्‍पा खाने के बाद तेजी से उछल रही है. पिच पर असमतल उछाल भी देखने को मिला है. तीसरे टेस्‍ट मैच के तीसरे दिन अंतिम सत्र में जसप्रीत बुमराह की एक शौर्ट पिच गेंद दक्षिण अफ्रीका के सलामी बल्‍लेबाज डीन एल्‍गर के हेलमेट से टकरा गई.

दक्षिण अफ्रीका ने तब तक जीत के लिये 241 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए खेल रोके जाने तक 8.3 ओवर में एक विकेट गंवाकर 17 रन बना लिये थे. इसके बाद अंपायरों ने खेल रोक दिया. फिजियो पिच पर पहुंचे और एल्गर अपने सिर पर आइस-पैक लगाते दिखे. अंपायर इयान गोल्ड और अलीम डार चर्चा कर रहे थे, तभी मैच रैफरी एंडी पाक्रोफ्ट भी उनके पास पहुंच गये.

खिलाड़ियों को मैदान से बुला लिया गया और दोनों टीमों के कप्तानों और कोचों को चर्चा के लिये बुलाया गया. बल्लेबाजी के लिये मुश्किल हालात में जब भारतीय टीम बल्लेबाजी कर रही थी, तब भी कई बल्लेबाजों के शरीर पर गेंद लगी लेकिन खेल को रोका नहीं गया था. शुक्रवार सुबह वांडरर्स की पिच पर काफी असमान उछाल था और गुड लेंथ पर कुछ दरारें दिखने लगी थीं. असमान उछाल के कारण तीन भारतीय बल्लेबाज और एक दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज गुड लेंथ से असमान उछाल के कारण चोटिल हुए. इससे बल्लेबाजों के लिये खेलना मुश्किल हो रहा था.

कमेंट्री टीम के सदस्‍य व भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने कमेंट्री के दौरान पिच की आलोचना तो की लेकिन खेल रद्द करने की मांग नहीं की. उन्होने कहा, ”लगभग 240 रन बनाने के लिए भारतीय बल्लेबाजों की तारीफ की जानी चाहिए. असामान्य उछाल के कारण कोई भी बल्लेबाज अपने विकेट को लेकर सहज नहीं हो सकता है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैच रद्द किया जाना चाहिए.”

वेस्टइंडीज के दिग्गज तेज गेंदबाज माइकल होल्डिंग ने पिच को ‘खतरनाक’ बताया. उन्‍होंने एक बातचीत में कहा, ”मुझे लगता है यह पिच खतरनाक है. मैच के तीसरे दिन की स्थिति देखकर मैं इस पिच पर बल्लेबाजी करना पसंद नहीं करूंगा.” होल्डिंग ने कहा, ”देखिए, मैं ‘लेटरल मूवमेंट’ से खुश हूं, यह वैसा ही है जैसा हमने केपटाउन में हुए पहले टेस्ट मैच में देखा था, लेकिन जब लेंथ गेंद जरूरत से ज्यादा उछाल लेती है और बल्लेबाज को इससे चोट लगती है तो मुझे नहीं लगता कि यह अच्छी पिच है.” होल्डिंग ने कमेंट्री के दौरान इस पिच को ”100 में से दो अंक” दिये और आईसीसी प्रतिबंध की बात कही.

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान केपलर वेसेल्स ने भी इसकी आलोचना करते हुये कहा, ”असमान्य उछाल समस्या है, ना कि ‘लेटरल मूवमेंट’. बल्लेबाजी की दृष्टि से यह काफी खतरनाक है, वह भी तब जब लंबे कद के गेंदबाज लगभग 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहे है.”

3 दिन बाद लौन्च होगी हीरो की यह बाइक, जानें फीचर्स

दुनिया की सबसे बड़ी दुपहिया वाहन निर्माता कंपनी हीरो मोटोकौर्प लिमिटेड (HMCL) इंडियन मार्केट में अपनी नई बाइक की धमाकेदार लौन्चिंग करने वाली है. नई बाइक हीरो की प्रीमियम बाइक होगी. लौन्चिंग के बारे में हीरो की तरफ से कन्फरमेशन देते हुए बताया गया कि नई बाइक Xtreme 200S को 30 जनवरी को लौन्च किया जाएगा.

कंपनी ने एक टीजर वीडियो के माध्यम से यह जानकारी ग्राहकों से शेयर की. हीरो की इस बाइक को पहली बार औटो एक्सपो 2016 में प्रदर्शित किया गया था, तब से ही बाइक लवर्स को इस बाइक का इंतजार था.

इस बारे में कंपनी के चीफ टेक्नोलौजी औफिसर मार्कुस ब्रुनसर्जर ने पहले ही कहा था कि कंपनी Xtreme 200S को औटो एक्सपो 2018 से पहले लौन्च करेगी. आपको बता दें कि औटो एक्सपो 7 फरवरी से शुरू हो रहा है. आम लोगों के लिए इसे 9 फरवरी से शुरू कर दिया जाएगा. माना जा रहा है कि इस बाइक का सीधा मुकाबला बजाज की सबसे लोकप्रिय बाइक पल्सर 200NS और टीवीएस अपाचे आरटीआर 200वी से होगा.

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स्पोर्टी लुक वाली Xtreme 200S को दो कलर एक्सट्रीम ब्लैक और रेड में लौन्च करने की तैयारी में है. रिपोर्ट्स के मुताबिक हीरो एक्सट्रीम 200S में 200cc सिंगल सिलेंडर एयर-कूल्ड इंजन दिया जाएगा. यह इंजन 18.34 bhp की पावर और 17.2Nm का टार्क जनरेट करेगा. बाइक के फ्रंट में टेलेस्कौपिक फौर्क्स और रियर में मोनोशौक का इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं रियर और फ्रंट दोनो तरफ डिस्क ब्रेक और इसके अलावा ABS औप्शन भी दिया जा सकता है.

कंपनी ने अपनी इस प्रीमियम बाइक की कीमत के बारे अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं दी लेकिन उम्मीद की जा रही है कि इसकी कीमत 90 हजार रुपए के आसपास रहेगी. भारतीय बाजार में इसका नाम क्या होगा, इस बारे में भी अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. माना जा रहा है कि कंपनी इसे Hero Xtreme 200 NXT या Xtreme NXT के नाम से ला सकती है.

IPL-11 नीलामी : इन खिलाड़ियों की खुली किस्मत, क्रिस गेल हुए बोल्ड

इंडियन प्रीमियर लीग -11 (आईपीएल) के लिए दूसरे दौर में खिलाड़ियों की नीलामी शुरू हो चुकी है. कभी अपनी बल्लेबाजी से गेंदबाजों के दिलों की धड़कन बढ़ा देने वाले कैरेबियन बल्लेबाज क्रिस गेल का बल्ला काफी समय से शांत है. इसका खामियाजा उन्हें आईपीएल 2018 की नीलामी में भुगतना पड़ा. कभी आईपीएल के सबसे फेवरेट और महंगे खिलाड़ियों में शामिल रहे और सिक्सर किंग कहे जाने वाले क्रिस गेल को आईपीएल 2018 की नीलामी के पहले दिन कोई खरीददार नहीं मिला और वो अनसोल्ड रहे.

क्रिस गेल इस बार नीलामी में मार्की प्लेयर्स​ लिस्ट में शामिल थे और उनका बेस प्राइस 2 करोड़ रुपए था. तो वहीं इंग्लैंड के बेन स्टोक्स ने 12.30 करोड़ रुपये झटक कर सभी को हैरान कर दिया है. इनके अलावा विदेशी खिलाड़ियों में केरोन पोलार्ड को राइट टू मैच के जरिए मुंबई ने 5 करोड़ 40 लाख में खरीदा. मिशेल स्टार्क को केकेआर ने 9 करोड़ चालीस लाख रुपये में खरीदा. फैफ डु प्लेसिस को चेन्नई सुपर किंग्स 1 करोड़ 60 लाख में बिके. बांग्लादेशी औलराउंडर अल हसन को हैदराबाद ने 2 करोड़ में खरीदा.

भारतीय खिलाड़ियों की बात करें, तो किंग्स इलेवन पंजाब ने शिखर धवन को पांच करोड़ बीस लाख रुपये में खरीदा था, लेकिन सनराइजर्स हैदराबाद ने राइट टू मैच कार्ड अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शिखर को फिर से अपने पाले में ले लिया, तो वहीं रविचंद्रन अश्विन को पंजाब ने सात करोड़ साठ लाख रुपये में खरीदा है. अजिंक्य रहाणे को किंग्स इलेवन पंजाब ने 4 करोड़ रुपये में खरीदा था, जिसे बाद में राजस्थान रौयल्स ने राइट टू मैच कार्ड के जरिए फिर से अपनी टीम में ले लिया. दूसरे राउंड में हरभजन सिंह को चेन्नई सुपर किंग्स ने दो करोड़ रुपये में खरीदा.

बता दें कि आज और कल रविवार को यह नीलामी दो दिन चलेगी. हिंदुस्तानी ही नहीं बल्कि दुनिया भर के तमाम क्रिकेटप्रेमियों की नजरें खिलाड़ियों की बोली पर टिकी होंगी. युवराज सिंह, गौतम गंभीर, क्रिस गेल और बेन स्टोक्स सहित दुनिया भर के 578 खिलाड़ियों पर बोली लगाई जाएगी. साल 2008 में टूर्नामेंट की शुरुआत के बाद से यह होने वाली सबसे बड़ी नीलामी है.

क्रिकेटप्रेमियों की नजरें इस बात पर लगी हैं कि इस नीलामी में सबसे ज्यादा कमाने वाला खिलाड़ी कौन साबित होता है. हालांकि विराट कोहली पहले से ही 17 करोड़ रुपये हासिल कर चुके हैं. लेकिन अब यह देखने की बात होगी कि विराट के बाद युवराज, गौतम गंभीर, क्रिस गेल बेन स्टोक्स में कौन बाजी मारता है, तो पृथ्वी शो और क्रुणाल पंड्या जैसे खिलाड़ियों को कितनी रकम मिलती है.

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