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अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी को मिली महिला अध्यक्ष

अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में इस बार स्टूडैंट यूनियन की अध्यक्ष एक लड़की नबा नसीम चुनी गई है और यही नहीं वह जिस दिन चुनी गई उस दिन मोटरबाइक चलाती यूनियन के कार्यालय पहुंची. नबा नसीम ने लड़कियों के लिए खास प्रोग्राम बनाए हैं और उन्हें पुरानी सोच से निकालने का फैसला करा है.

भारत के मुसलिमों के लिए यह अच्छा संदेश है. भारत में मुसलिम समुदाय भारतीय जनता पार्टी के भगवा गैंग का निशाना बना रहता है. कभी वे मसजिद का मामला उठाते हैं, कभी ट्रिपल तलाक का, कभी लव जिहाद का, कभी ज्यादा बच्चों का, तो कभी हिजाब का. मुसलिम समुदाय आज के युग की जरूरतों और पुरानी दकियानूसी सोच के बीच उलझा रहता है.

नबा नसीम जैसी लड़कियां मुसलिम समाज को घिसेपिटे अंदाज से जीने से निकाल सकती हैं और उसे भारत की आजादी का पूरा फायदा उठाने का मौका दे सकती हैं. मुसलिम समाज को अब लंबी दाढ़ी वाले टोपीधारी नेता नहीं चाहिए जो पुरानी सोच पर नई कौम की जरूरतों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.

भारत के मुसलमानों को हिंदू खौफ से निकालना होगा, क्योंकि यह हिंदू खौफ पैदा करने वाले मुट्ठीभर पंडेनुमा लोग हैं जो मुसलमानों को ही नहीं, पिछड़ों, अछूतों, दलितों को भी दुश्मन मानते हैं. हाल तक हिंदू नेता पिछड़ोंदलितों के घर खाना तक नहीं खाते, हां उन से काम करवाने और विरोधियों को पिटवाने की जुगत बनाते रहते थे.

नबा नसीम जैसी नेताओं को साफ करना होगा कि वे धर्म के कट्टरपन से मुसलिम लड़कियों को निकालेंगी. अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में यह आसान नहीं पर नेता तो वही है न जो आगे बढ़चढ़ कर काम करे. नबा नसीम को बुलेट की स्पीड पर लड़कियों को निकालना पड़ेगा क्योंकि उन के घरों में और माहौल में पिछले 40-50 सालों में बहुत थोड़ा सा फर्क आया है. मुसलिम नेता तो अपने लिए राजनीति करते रहे हैं और मुसलिम वोटों की खरीदफरोख्त कर पाने के लिए हर बदलाव के खिलाफ खड़े रहे हैं. आज के युवा होते मुसलमानों को नई हवा की आदत डालनी होगी और एक तरफ कट्टर हिंदू गैंगों से निबटना होगा तो साथ ही अपनी खुद की शरीअती सोच से भी आजादी पानी होगी.

भारत के मुसलिम युवाओं के पास आज बहुत मौके हैं. हिंदू जमात ने उन्हें अल्पसंख्यक बना रखा है वरना उन की इतनी गिनती है कि उन्हें किसी तरह की बैसाखी नहीं चाहिए और वे खुद की देखभाल आसानी से कर सकते हैं. नबा नसीम जैसे नेता हर यूनिवर्सिटी में पैदा होने चाहिए ताकि देश दोनों तरफ के कट्टरपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दे सके.

बिहार में शराबबंदी के बाद नीतीश कुमार की जायज मांग

भारतीय जनता पार्टी से नाता जोड़ लेने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चमचमाहट कम हो गई है क्योंकि जिसे कहते हैं उन्होंने थूक कर चाटना वह उन्होंने किया है और उस पार्टी के तलवों में जा बैठे हैं जिसे रातदिन कट्टरवादी, जातिवादी और न जाने क्याक्या कहते रहे. गद्दी पर बैठे हैं तो फिर भी वे कई बार सही बातें भी कहते हैं. उन्होंने अब मांग की है कि बिहार की शराबबंदी की तरह देशभर में शराबबंदी की जाए.

बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध भी कम हुए हैं और लोगों में बीमारी भी कम हुई है. सरकार को शराब कर से नुकसान हुआ है उस का कई गुना फायदा जनता को मिला है, खासतौर पर घरवालियों और बच्चों को.

शराब कोई खाना नहीं कि इस के बिना आदमी जी नहीं सकता पर एक बार इस की लत पड़ जाए तो वह किसी की जान भी ले सकता है कि 2 घूंट मिल जाए. शायद इसी आदत के लिए शराब जबरन पिलवाई गई थी ताकि इस पर रोकटोक लगा कर टैक्स भी वसूला जा सके और इस का लालच दे कर लोगों से ज्यादा काम करवाया जा सके. अपराध और शराब का नाता तो पुराना है. दुनियाभर की फौजों को शराब पिला कर लड़वाया गया है.

दुनियाभर के शराबखाने असल में अपराधियों के अड्डे हैं और सरकारें उन्हें पनपने देती हैं क्योंकि यहीं से अपराधियों को आसानी से पकड़ा जा सकता है. शराब के सहारे सरकारों ने अरबों रुपया हर साल लोगों की जेबों से निकलवाया है. शराब कंपनियों ने जम कर इश्तिहारों पर पैसा खर्च किया है ताकि सिनेमा, अखबारों, कहानियों में शराब का बखान करा जा सके. 1950 से 1980 तक की फिल्मों में तो खलनायक ही पीते थे पर फिर दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र आदि ने शराब को ऊंची जगह दी.

आज सरकारें भी अपनी हर पार्टी में शराब परोसती हैं कि यह तो पार्टी करने का ही मुख्य उद्देश्य है. ऐसे में शराबबंदी का नाम लेना ही बेकार है. नीतीश कुमार जो वैसे ही ढुलमुल नेता साबित हो चुके हैं अब इस बंदी की वकालत करते भी अच्छे नहीं लगते क्योंकि वे क्या सही कह रहे हैं, क्या गलत अब पता नहीं चलता. कल को उन्हें कोई शराब कंपनी 1000 करोड़ रुपए कुरसी बचाए रखने के लिए दे जाए तो शायद वे इस से मिलने वाले टैक्स की महिमा गाने लगें.

शराब को घरघर पहुंचाने का काम सरकारों ने ही किया है वरना जहरीली शराब के डर के कारण ही लोग शराब पीना बंद कर देते. यदि शराबबंदी करनी है तो शराब फैक्टरियां बंद करें. घरों के पिछवाड़े जो बनेगी वह घटिया होगी और उस को बेचने कोई नहीं जाएगा. लोग नशे में फिर भी डूबेंगे पर कम से कम सरकार के हाथ तो काले नहीं होंगे.

पेरैंटिंग के बारे में बता रही हैं फराह खान

लोग तो 1 बच्चा संभाल नहीं पाते आप 3 को कैसे संभालती हैं?

पुराने दिन याद न दिलाओ तो अच्छा ही है. मैं ने तीनों को संभालने के लिए रातें जागजाग कर बिताई हैं. जब बेटे को चुप कराती थी तो बेटी शुरू हो जाती थी. जब ये दोनों सो जाते थे तो दूसरी बेटी रोना शुरू कर देती थी.

इतनी व्यस्त रहने के बाद भी बच्चों को समय दे पाती हैं?

कोशिश करती हूं कि काम के साथसाथ उन्हें भी समय दे सकूं. जब तीनों छोटे थे तो मैं चुपचाप घर से निकल जाती थी, लेकिन अब जैसे ही मैं ड्रैसिंगटेबल के सामने खड़ी होती हूं तो तीनों एकसाथ पूछते हैं कि कहां जा रही हैं? कब आएंगी?

क्या ऐसा होता है कि एक रोता है तो उस का जुड़वां भी रोता है?

ऐसा फिल्मों में होता है. मेरे तीनों बच्चों के चेहरे और स्वभाव अलगअलग हैं. बेटा शांत स्वभाव का है तो छोटी बेटी बड़ी बातूनी है और बड़ी को सब से मतलब रहता है, वह मेरी क्लास लेती रहती है.

तीनों में छोटेबड़े का निर्धारण कैसे किया?

तीनों में 1-1 मिनट का अंतर है. जिस का जन्म सब से पहले हुआ वह बड़ा हो गया और जो सब से बाद में वह सब से छोटा. उन तीनों में भी छोटेबड़े को ले कर लड़ाई होती रहती है.

शिरीष से मिलने के बाद सब से बड़ी उपलब्धि?

शादी के पहले इतनी मोटी नहीं थी. अब ज्यादा हो गई हूं. मेरे बच्चे मेरी सब से बड़ी उपलब्धि हैं, क्योंकि ये बिना शादी के तो मिल नहीं सकते थे.

इतने सारे कामों के लिए ऐनर्जी कहां से लाती हैं?

मत पूछो. पहले तो खाने से लाती थी और अब आप लोगों के प्यार से. मैं खाने की बहुत शौकीन हूं. कुछ दिनों पहले तक तो मैं जब भी शूटिंग पर आती थी, तो मेरे साथ चलतीफिरती किचन जैसा खाने का टिफिन होता था. उस में इतना खाना होता था कि कई लोग मेरे साथ खाते थे. लेकिन आजकल मैं नौनग्लूटामेट मील ले रही हूं, क्योंकि बढ़ते वजन को रोकना जरूरी है.

बिंदास बोल

52 बसंत देख चुकी फराह खान हनी ईरानी की भतीजी और निर्देशक साजिद खान की बहन हैं. फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ से एक कोरियोग्राफर के रूप में अपना कैरियर शुरू करने वाली फराह खान अपने बिंदास अंदाज के लिए बौलीवुड में बहुत फेमस हैं.

सलामत रहे दोस्ताना हमारा

जब फराह ने फिल्म ‘मैं हूं ना’ बनाई थी तभी उन की शाहरुख के साथ दोस्ती हुई थी. इस के बाद बौलीवुड में दोनों की दोस्ती की मिसालें दी जाने लगीं. लेकिन संजय दत्त की पार्टी में शाहरुख द्वारा उन के पति शिरीष की पिटाई के बाद इस दोस्ती में दरार आ गई लेकिन अब फराह कहती हैं कि उन दोनों के बीच की गलतफहमियां दूर हो गई हैं और वे आज भी अच्छे दोस्त हैं.

न उम्र की सीमा हो

फराह और शिरीष की लव स्टोरी किसी फिल्म से कम नहीं है. फराह मुसलिम है और शिरीष हिंदू. दोनों की उम्र में भी काफी अंतर है. लेकिन प्यार उम्र और धर्म नहीं देखता. ये दोनों जब मिले थे तब इन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये कभी एकदूसरे की जिंदगी के पार्टनर बन जाएंगे. फिल्म ‘मै हूं ना’ के सैट पर दोनों को झगड़ते देख लोगों को तो यह भी विश्वास न था कि ये दोस्त भी बनेंगे. लेकिन शिरीष ने फराह को प्रपोज किया. उस समय फराह 32 साल की थीं और शिरीष 25 साल के. इस के बाद दोनों ने 2004 में शादी कर ली. 2008 में फराह को एकसाथ तीन बच्चे हुए.

कैरियर

5 बार सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी का फिल्मफेयर पुरस्कार अपने नाम कर चुकीं फराह  की निर्देशक के तौर पर पहली फिल्म ‘मैं हूं ना’  बौक्स आफिस पर सुपरहिट रही. उन की दूसरी फिल्म ‘ओम शांति ओम’ ने अपनी रिलीज के दौरान सब से ज्यादा कमाई की और फिल्म देश के साथसाथ विदेशों में भी खूब सराही गई. कुछ फ्लौप फिल्मों के बाद फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बड़ी हिट साबित हुई जोकि एक लंबी स्टारकास्ट वाली फिल्म थी और एक बार फिर फिल्म के मुख्य अभिनेता शाहरुख खान ही थे. एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवार्ड्स के लिए फराह ने कोलंबियन पौप स्टार शकीरा के गाने ‘हिप्स डोंट लाई’ के बौलीवुड वर्जन के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया. उन्होंने फिल्म ‘ब्लू’ के ‘चिगीविगी…’ गाने के लिए काइली मिनोग को भी कोरियोग्राफ किया.

इन घरेलू उपायों की मदद से डार्क सर्कल्स से छुटकारा पाएं ऐसे

आंखों के चारों ओर काले घेरे हो जाने पर आप की खूबसूरती कम होने लगती है और आप थकीथकी सी दिखने लगती हैं. भरपूर नींद न लेना, हारमोंस में बदलाव, तनाव, जंक फूड का ज्यादा सेवन आदि के कारण आंखों के चारों ओर काले घेरे होने लगते हैं.

यदि समय रहते इन्हें दूर करने का प्रयास न किया जाए तो ये परमानैंट हो जाते हैं. आइए, जानते हैं सर्कल्स की समस्या को दूर करने के कुछ उपाय:

खुद को रखें हाइड्रेटेड

शरीर से विषाक्त पदार्थों का निकलना बहुत जरूरी होता है और ऐसा तभी हो सकता है जब आप नियमित रूप से भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करेंगी. अत: रोज कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं.

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संतुलित आहार का सेवन करें

जंक फूड के सेवन से बचें. इस में कई ऐसे तत्त्व होते हैं, जिन से त्वचा में सूजन हो सकती है. इस के कारण डार्क सर्कल्स की समस्या होती है. अत: मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करें, सलाद खाएं, नीबू, कीवी जैसे खट्टे फलों का सेवन करें. इन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी होता है, जिस से डार्क सर्कल्स की समस्या दूर होती है.

पर्याप्त नींद लें

कम से कम 6-7 घंटे गहरी नींद जरूर सोएं.

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तनाव के स्तर को कम करें

आधुनिक जीवन तनाव से भरा है. व्यायाम के माध्यम से आप अपने तनाव का स्तर कम कर सकती हैं. अपनी नसों को आराम दें और ऐंडोर्फिन के प्रवाह को कम करें. ऐसा करने पर आप की त्वचा में चमक आ जाएगी और डार्क सर्कल्स दूर हो जाएंगे.

त्वचा की देखभाल करें

यदि आप डार्क सर्कल्स की समस्या को दूर करना चाहती हैं, तो अपनी त्वचा के अनुरूप ही उस का ध्यान रखें, तभी आप की त्वचा स्वस्थ और मुलायम रहेगी. आंखों का मेकअप हटाने के बाद उन की चारों तरफ बादाम के तेल या विटामिन ई युक्त क्रीम अथवा सीरम से मसाज करें. धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन क्रीम का प्रयोग जरूर कर लें.

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शराब के सेवन से बचें

धूम्रपान और शराब त्वचा के लिए नुकसानदेह है. अत: इन से परहेज करें.

हलकी क्रीम का प्रयोग करें

ऐलर्जी के कारण भी डार्क सर्कल्स की समस्या हो सकती है. अत: ऐलर्जी की जांच कराएं. ऐंटीहिस्टामाइन लें. यह डार्क सर्कल्स की समस्या दूर करने में मदद करता है. रेटिनोल क्रीम के नियमित प्रयोग से भी डार्क सर्कल्स की समस्या दूर होती है.

ठंडे टी बैग का प्रयोग करें

दूसरा आसान घरेलू उपचार है ठंडे टी बैग का प्रयोग करना. ग्रीन टी के बैग को ठंडे पानी में डुबो कर कुछ देर के लिए रैफ्रिजरेटर में रखें. फिर निकाल कर आंखों पर रखें. नियमित प्रयोग से आराम मिलेगा.

 

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ककड़ी/आलू/टमाटर का रस लगाएं

कुछ घरेलू उपचार भी इस समस्या को दूर करने में आप की मदद कर सकते हैं. खीरा, टमाटर, आलू, डार्क सर्कल्स की समस्या दूर करने में बहुत ही प्रभावी साबित हो सकते हैं, क्योंकि इन में त्वचा को चमकदार बनाने वाले तत्त्व पाए जाते हैं. इन का

1 चम्मच रस निकाल कर आंखों के चारों तरफ लगाएं.

10 मिनट लगा रहने के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. ऐसा उपचार दिन में 2 बार करें. डार्क सर्कल्स की समस्या कम हो जाएगी.

लेकिन अगर इन सब तरीकों को अपनाने के बाद भी आप को कोई फायदा नहीं हुआ है तो लेजर विधि से उपचार करा सकती हैं. इस तरीके से आंखों के डार्क सर्कल्स दूर हो जाएंगे और त्वचा में कसाव आने के साथसाथ त्वचा मुलायम भी हो जाएगी.

सैलिब्रेशन तो बनता है : जिंदगी के स्पैशल मूमैंट्स बनाइये यादगार

सुबह बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेजने के बाद घर के कामों में व्यस्त होने के बाद कब शाम हो जाती है, पता ही नहीं चलता. बस यही रह जाता है हमारा डेली रूटीन. ऐसे में हमारे स्पैशल डेज भी आ कर कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता. यह ठीक नहीं. तो नए साल में नए जोश के साथ थोड़ा समय अपने लिए भी निकालें और डेली लाइफ में कुछ छोटेबड़े सैलिब्रेशन करते रहें. आइए, जानें कैसे:

जब हो शादी की सालगिरह या जन्मदिन

शादी की सालगिरह हर कपल की लाइफ का बहुत महत्त्वपूर्ण दिन होता है. अगर आप की भी सालगिरह नजदीक है तो उसे यादगार बनाएं. उस दिन के लिए खास प्लानिंग पहले से कर लें ताकि सालगिरह को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें. जिस से आप प्यार करते हैं, जो आप का साथी है अगर इस एक दिन उस के लिए कुछ स्पैशल किया जाए तो सोचिए उसे कितनी खुशी मिलेगी और फिर उसे खुश देख कर आप को भी बहुत खुशी मिलेगी. जानिए, कुछ टिप्स:

– अगर आप की शादी की 5वीं, 10वीं, 12वीं, 14वीं या फिर 20वीं सालगिरह भी है तो फिर उसे यादगार बनाने के लिए 25वीं वर्षगांठ का ही इंतजार क्यों? उसे आज ही क्यों न यादगार बना दें. हां, इस के लिए थोड़ा पैसा जरूर खर्च होगा और अगर आप ऐसा करने में सक्षम हैं तो इस दिन को यादगार बना दें. अपने सभी सगेसंबंधियों को बुला कर पार्टी का आयोजन करें. अगर आप बाहर पार्टी नहीं करना चाहतीं तो घर पर ही मेहमानों को बुलाएं और ऐंजौय करें. यह सस्ता भी पड़ेगा. हां, इस काम की सारी जिम्मेदारी आप अकेली न उठाएं, बल्कि कुछ काम आप अपने बच्चों और परिवार के बाकी सदस्यों को भी बांट दें. यह आप का दिन है तो बाकी लोगों का भी काम करना बनता है.

– यदि अकेले सैलिब्रेशन करना चाहती हैं तो इस दिन अपनी वैडिंग नाइट का मेन्यू दोहरा सकती हैं. सारा नहीं, बल्कि उस दिन जो आप को अच्छा लगा हो वह. अगर आप चाहें तो खाना बाहर से भी और्डर कर के पति को सरप्राइज दे सकती हैं अथवा खुद ही उन के साथ मिल कर टाइम स्पैंड करते हुए डिनर तैयार करें. वैडिंग केक लाना न भूलें. डिनर से पहले केक काटते हुए अपनी सालगिरह कुछ अलग अंदाज में मनाएं.

– इस दिन आप दोनों कुछ न करें बस एकदूसरे के साथ रहें और अपनी शादी का अलबम, वीडियो देख कर पुरानी यादें ताजा करें. पूरा दिन छोटेछोटे सरप्राइज दे कर एकदूसरे को स्पैशल फील कराएं. अपनी फीलिंग्स जो बरसों से आप ने एकदूसरे को नहीं बताईं उन्हें बताएं.

– एक सरप्राइज ट्रिप प्लान करें, जिस में सिर्फ आप दोनों हों. इस के लिए अगर संभव हो तो बच्चों को 2-3 दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के घर छोड़ दें. अगर यह संभव नहीं है तो बच्चों को साथ ले जाएं लेकिन वहां एकदूसरे के लिए समय जरूर निकालें.

– लवस्टोरी थीम का फोटो शूट करें. आजकल प्रोफैशनल फोटोग्राफर हर जगह होते हैं, जो आप के इस दिन को पूरी तरह यादगार बना सकते हैं.

– एकदूसरे को उपहार भी दें, एक नहीं कई छोटेछोटे उपहार दें जो साथी को पसंद हों. यहां उपहार को कीमत से न तोल कर उस के पीछे छिपी साथी की भावनाओं को समझें.

– इसी तरह अगर साथी का बर्थडे है तो भी इस दिन को कुछ इस अंदाज में सैलिब्रेट करें कि वह उसे कभी न भूले. इस दिन वह सब करें जो साथी को पसंद है. अगर उसे अपनी फैमिली का साथ अच्छा लगता है तो बिना झिझके उस की फैमिली के साथ पार्टी प्लान करें और वह भी बिना साथी को बताए. उस के पुराने फ्रैंड्स को कौल कर के कुछ प्लान करें. कोई रोमांटिक मूवी देखें और स्पैशल कैंडल लाइट डिनर ऐंजौय करें. तोहफा भी ऐसा दें जिस की तमन्ना उसे कई बरसों से रही हो. इस तरह छोटीछोटी खुशियां ढूंढ़ कर साथी के इस खास दिन को सैलिब्रेट करें.

बच्चों की सफलता पर सैलिब्रेशन

रिजल्ट आने पर बच्चे अपनी पसंद का गिफ्ट तो ले ही लेते हैं, साथ ही अपने स्कूलकालेज के दोस्तों के साथ पार्टी भी करते हैं. लेकिन आप का क्या? हम में से कितने पेरैंट्स हैं जो बच्चों के ऐग्जाम को अपने खुद के ऐग्जाम की तरह देखते हैं और परीक्षा की तैयारी करने के लिए बच्चों के साथ पूरीपूरी रात जागते हैं. जब बच्चे अच्छे नंबरों से पास होते हैं या उन्हें अच्छी नौकरी मिलती है, तो जितनी खुशी बच्चों को होती है उस से कहीं ज्यादा पेरैंट्स को होती है. तो फिर इस मौके पर जब बच्चे पार्टी कर सकते हैं, तो आप का तो पार्टी करना बनता ही है, कुछ इस तरह:

– एक फैमिली गैटटूगैदर रखें, जिस में परिवार के सभी लोग शामिल हों. इस से पिछले कुछ दिनों की पूरी थकान उतर जाएगी और परिवार के साथ अच्छा समय बिताने को भी मिलेगा.

– अगर बच्चे को उस की सफलता के लिए कोई गिफ्ट दे रही हैं तो एक गिफ्ट अपने लिए लेने में बिलकुल कंजूसी न करें, क्योंकि यह आप का भी अचीवमैंट है.

– बच्चों के लिए काफी समय से मेहनत करतेकरते आप भी थक गई होंगी, इसलिए क्यों न अब थोड़ा समय अपने लिए निकालें. अपने घर में एक पार्टी रखें, जिस में बच्चों के दोस्तों को भी बुलाएं और अपने मिलनेजुलने वालों को भी. इसी बहाने एक अच्छी पार्टी भी हो जाएगी.

गृहिणी का आउटडोर सैलिब्रेशन

क्या आप के घर में भी आप की ननद, देवर या फिर आप के अपने बेटे या बेटी की शादी हुई है अथवा कोई भी ऐसा समारोह? फंक्शन चाहे कोई भी हो, उस की लगभग सारी जिम्मेदारी गृहिणी की हो जाती है. भले ही वह जिम्मेदारियों को बांट कर काम करे, लेकिन उसे अपनी नजर हर जगह रखनी पड़ती है. यही वजह है कि घर के किसी भी खास समारोह के बाद गृहिणी पूरी तरह थक जाती है और उसे भी रिलैक्स करने की जरूरत होती है. इस बार क्यों न आप भी रिलैक्स करने के लिए अपने फ्रैंड्स के साथ आउटडोर पार्टी करें. पेश हैं, कुछ टिप्स:

– यह मौका है गर्ल्सगैंग आउटिंग का. जी हां, पति, बच्चे सब से दूर. आखिर आप कब तक इन में उलझी रहेंगी. इसलिए अपने गैंग को तैयार कर आज शाम ही पार्टी पर निकल जाएं. अरे सोच क्या रही हैं, ऐसा कर के तो देखें, कालेज के दिन दोबारा न याद आ जाएं तो कहना.

– अगर बहुत दिन से आप का किसी हिल स्टेशन पर जाने का मन है और वह किसी न किसी वजह से टलता रहा है तो क्यों न यह प्रोग्राम फ्रैंड्स के साथ सैट कर लें.

यह न भूलें कि सब का खयाल रखने के साथसाथ खुद की खुशी के बारे में सोचना और छोटेछोटे पलों को सैलिब्रैट करना आप को आप से मिलवाता है.

प्रेम विवाह : पिछड़ों में भी जातियों का चक्कर

बीए की पढ़ाई के दौरान रेखा और राजेश में प्यार हो गया था. वे दोनों कानपुर के रहने वाले थे और वहीं साथसाथ पढ़ रहे थे. पढ़ाई के बाद रेखा स्कूल में टीचर हो गई और राजेश अपनी नौकरी के लिए कोशिश करने लगा. रेखा पिछड़ी बिरादरी में सचान जाति की थी जबकि राजेश यादव बिरादरी से था.

नौकरी के बाद रेखा के घर वाले उस की शादी के लिए रिश्ता देखने लगे. तब रेखा ने अपने घर वालों को राजेश से अपने प्रेम संबंधों के बारे में बताया. रेखा के घर वाले इस के लिए तैयार नहीं थे. रेखा ने समझाया तो उस के घर वाले राजेश से भी मिले. राजेश उन को पसंद था.

रेखा के घर वाले अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने राजेश के घर वालों से मिले तो वे लोग इस बात से खफा हो गए कि यादव लड़के की शादी सचान लड़की से कैसे हो सकती है? इस बात पर दोनों ही परिवारों में काफी बहस हुई.

रेखा सरकारी नौकरी में थी. ऐसे में राजेश के घर वालों को बाद में यह रिश्ता कबूल हो गया पर उस के रिश्तेदार इस के लिए राजी नहीं हुए.

रेखा और राजेश की शादी तो हो गई पर उस में राजेश की बिरादरी के बहुत से लोग और नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुए. शादी के बाद रेखा  ससुराल आ गई. यहां भी उस से अच्छा बरताव नहीं किया जाता था. ऐसे में वह शहर में ही किराए का घर ले कर रहने लगी.

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आज भी ससुराल की बाकी बहुओं के साथ रेखा का तालमेल अच्छा नहीं हो सका है. तीजत्योहार पर जब कभी वह ससुराल जाती भी है तो उसे भेदभाव झेलना पड़ता है.

कुर्मी और यादव पिछड़ी जातियों में सब से मजबूत और करीबी जातियां मानी जाती हैं. पिछड़ी जातियों में कई ऐसी जातियां भी हैं जो अतिपिछड़ी जातियां  हैं. वे सामाजिक और माली रूप से दलित जातियों के करीब आती हैं. इस तरह की तकरीबन 17 जातियां हैं जो बारबार सरकारी तौर पर मांग कर रही हैं कि उन को दलित माना जाए. ये जातियां वैसे तो पिछडे़ तबके में आती हैं इस के बाद भी पिछडे़ तबके की दूसरी जातियों में शादी नहीं कर पाती हैं.

सामाजिक चिंतक रामचंद्र कटियार कहते हैं, ‘‘पिछड़ी जातियों में भी अगड़ों की तरह जाति और गोत्र का फर्क माना जाता है. आमतौर पर शादियां अपनी बिरादरी में ही होती हैं. एक ही जाति की दूसरी उपजातियों तक में प्रेम विवाह करना आसान नहीं होता है.

‘‘शादीब्याह में जाति का जो चक्कर अगड़ी जातियों में है वही चक्कर पिछड़ी जातियों में भी है. जहां पर लड़की सरकारी नौकरी कर रही है वहां पर तो लड़के वाले उस को स्वीकार भी कर लेते हैं लेकिन अगर सामान्य शादी होती है तो गैरजातियों में प्रेम विवाह बहुत ही से मुश्किल होता है.’’

नहीं है आजादी

दहेज का जो चलन पहले अगड़ी जातियों में था अब वह पिछड़ी जातियों में भी बढ़ने लगा है. यहां अब दहेज का दिखावा अगड़ों से ज्यादा बढ़ता जा रहा है. दहेज के लालच में ही मनपसंद शादी की आजादी नहीं है.

लोगों को लगता है कि अगर लड़का या लड़की अपनी पसंद से शादी कर लेंगे तो दहेज नहीं मिलेगा. इस की वजह से पिछड़ी जातबिरादरी में भी प्रेम विवाह के समय जातियों की जकड़न मजबूत होती जा रही है.

विश्व शूद्र महासभा के जगदीश पटेल कहते हैं, ‘‘जाति की जो व्यवस्था अगड़ी जातियों ने बनाई, दलित और पिछडे़ उसी आधार पर चल रहे हैं. जिस तरह से अगड़ी जातियों में ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया जैसी जातियां हैं और वे अपनी जाति में भी सभी जातियों में शादियां नहीं करतीं उसी तरह से पिछड़ी जातियों में भी अपनी ही जाति में शादी करने का रिवाज है. पिछड़ी जातियों में अतिपिछड़ी जातियों के बीच शादी किसी कीमत पर नहीं होती.

‘‘अगर किसी मजबूरी में शादी हो भी जाए तो लड़की को ससुराल में तालमेल बिठाने में दिक्कत आती है. वहां उस के साथ भेदभाव होता है. दूसरी बहुओं के मुकाबले उसे कम इज्जत दी जाती है. इस की मूल वजह पढ़ाईलिखाई की कमी, सामाजिक दबाव और दहेज की बीमारी है.’’

असल में पिछड़ी जातियों में से कुछ जातियां जैसे यादव, कुर्मी खुद को राजपूत जातियां मानती हैं. वे लोग अपनेआप को अगड़ी जातियों में शुमार करते हैं. ऐसे में ये जातियां राजपूतों की ही तरह से अपनी जाति में शादी करती हैं. जाति में भी गोत्र और उपजातियों का ध्यान रखती हैं.

शादियों में इस का पूरा खयाल रखा जाता है. दूसरी जातियों में वे लोग शादी नहीं करते. अपने से ऊंची जातियों में प्रेम विवाह की इजाजत मिल भी जाए तो अपने से निचली जाति में प्रेम विवाह को कभी मंजूरी नहीं मिलती.

मिलती नहीं इज्जत

लोध बिरादरी भी पिछड़ों की एक बिरादरी है. इस को पिछड़ों में राजपूत जातियों जैसे यादव और कुर्मी से नीचे का माना जाता है. लोध बिरादरी में यादव या कुर्मी शादियां नहीं करते. किसी मजबूरी में इस तरह की शादी हो भी जाए तो उस को इज्जत नहीं मिलती है.

उत्तर प्रदेश में लोध बिरादरी तादाद में ज्यादा है. यह कुर्मी और यादव के बाद सब से मजबूत जाति मानी जाती है. लोध जाति की नेहा का प्रेम विवाह यादव जाति के रामपाल से हो गया.

आजमगढ़ के रहने वाले नेहा और रामपाल दोनों ही सरकारी नौकरी में थे. एक ही स्कूल में पढ़ाते थे. वहीं से दोनों के बीच प्रेम संबंधों की शुरुआत हुई.

शादी की बात पर दोनों घरों में एकराय नहीं थी. रामपाल के घर वाले नेहा से शादी करने को तैयार नहीं थे. इस की वजह दहेज थी. रामपाल सरकारी नौकरी में था. उस की शादी में अच्छा दहेज और कार मिलने की उम्मीद थी.

रामपाल ने घर वालों का विरोध कर के नेहा से शादी कर ली. रामपाल की शादी में मुश्किल से उस के मातापिता और भाई शामिल हुए. रामपाल की बहन और उस के दूसरे नजदीकी रिश्तेदार तक शामिल नहीं हुए.

शादी के बाद जब नेहा ससुराल गई तो उस की जेठानी और सास का बरताव बदला हुआ था. नेहा को यह देख कर बहुत पीड़ा हुई. वह बड़ी मुश्किल से ससुराल में एक हफ्ता रही. इस के बाद वह शहर चली आई. रामपाल और नेहा ने काफी कोशिश के बाद अपना तबादला शहर में करा लिया.

नेहा कहती है, ‘‘मेरी सास और जेठानी दोनों ही स्कूल में पढ़ाती हैं. वे पढ़ीलिखी और समझदार हैं. इस के बाद भी जाति को ले कर उन की सोच वही पुरानी दकियानूसी है. मेरे पति के सामने तो वे मुझ से अच्छा बरताव करती थीं पर उन के जाते ही मुझ से बात नहीं करती थीं. मुझे कभी रसोईघर में खाना नहीं बनाने दिया गया.

‘‘वे मेरी ननद को मुझ से बात नहीं करने देती थीं. मेरी सास कहती थीं कि मेरे आने से ननद की अच्छी शादी नहीं हो पाएगी. वे यह भी कहती थीं कि मैं ने उन के बेटे को फंसा कर शादी कर ली, नहीं तो उस को अच्छा दहेज मिलता.’’

काबिल लड़कों की कमी

पहले प्रेम विवाह के मामले कम होते थे. अब पिछडे़ तबकों में भी लड़कियां पढ़ने लगी हैं. ऐसे में वे लड़कों से ज्यादा काबिल साबित होती जा रही हैं. पहले लड़कियां जहां मांबाप की बात मान कर शादियां कर लेती थीं पर अब ऐसा नहीं हो रहा है. अब ये मनपसंद शादी का हक मांगने लगी हैं. कालेज से ले कर प्रतियोगी इम्तिहानों के लिए बाहर रहने के दौरान इन के गैरजातियों में प्रेम संबंध होने लगे हैं. अब ये मातापिता के तय किए जातीय रिश्ते में शादी नहीं करना चाहतीं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में पिछले कुछ सालों में टीचर बनने वालों में लड़कियों की तादाद सब से ज्यादा है.

केवल सरकारी स्कूलों में ही नहीं बल्कि प्राइवेट स्कूलों में भी टीचर के तौर पर पिछड़ी जातियों की लड़कियां सब से ज्यादा हैं. स्कूल के साथसाथ पुलिस, पीएसी और दूसरी जगहों पर पिछड़ी जातियों की लड़कियों की तादाद सब से ज्यादा है. शहरों में बड़ी तेजी से निजी सुरक्षा यानी सिक्योरिटी और मौल्स में लड़कियों, वह भी पिछड़ी जाति की लड़कियों की तादाद बढ़ी है. ब्यूटीपार्लर और नर्सिंग जैसे कोर्स कर के अपना खुद का काम  भी शुरू किया है. पढ़ीलिखी लड़कियों में दलितों के मुकाबले पिछड़ी जातियों की तादाद ज्यादा है.

नर्सिंग का कोर्स कर चुकी पारुल मौर्य बिरादरी की है. घर वालों ने उस की शादी अपनी ही बिरादरी के एक लड़के से तय कर दी. लड़के के घर वालों ने शर्त रखी कि लड़की को शादी के बाद नौकरी छोड़नी होगी.

यह बात पारुल को मंजूर नहीं थी. वह जिस लड़के से शादी करना चाहती थी, वह पिछड़ी जाति का था. ऐसे में यह रिश्ता उस के घरपरिवार को मंजूर नहीं था. ऐसे में पारुल ने शादी न करने का फैसला ले लिया.

पारुल कहती है, ‘‘पढे़लिखे लोगों में भी जाति का कट्टरपन पहले की ही तरह कायम है. इस में कोई बदलाव नहीं आ रहा है. अलगअलग उदाहरणों में अलग वजह से जो बदलाव दिखते हैं उस से पूरे समाज की सोच का पता नहीं चल सकता. समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी भी मनपसंद शादी की आजादी नहीं देता. जब पढे़लिखे समाज मेें यह बदलाव नहीं आ रहा है तो बाकी से क्या उम्मीद की जाए.’’

लड़कियों का विरोध

असल में पिछड़ी जातियों में जाति का शिकंजा सब से ज्यादा कसा हुआ है. जाति और उपजाति का भेदभाव यहां पर सब से ज्यादा है. बहुत सी जातियों में जातिगत पंचायतें हैं. कुछ समय पहले तक पिछड़ी जातियों में ऐसी मुहिम चली थी कि जाति में बराबरी आए. समाजवादी आंदोलन के तहत इस दिशा में नेताओं ने काम भी शुरू किया था.

90 के दशक में जब जाति और धर्म पर आधारित सोच बदली और वोट बैंक के लिए जातियों में खेमेबंदी शुरू हुई तो जातियों के बीच खाई और भी चौड़ी होती चली गई. धर्म आधारित राजनीति ने जाति की खेमेबंदी को बढ़ावा दिया.

असल में यहां पंडेपुजारियों का अपना फायदा भी था. वे चाहते थे कि जाति और धर्म का जो चलन ऊंची जातियों की शादीब्याह में है वह दलित और पिछड़ी जातियों में भी बना रहे. पंडेपुजारियों को यह डर था कि अगर लोग मनपसंद शादी करने लगेंगे तो इन का धर्म का धंधा चौपट हो जाएगा इसलिए ये लोग लड़कियों की बदलती सोच को दरकिनार करना चाहते हैं.

राजनीति में हर जाति का अपना नेता हो गया है. वे लोग चाहते हैं कि जातिगत खेमेबंदी चलती रहे जिन से उस को वोट मिलते रहें. वोट और धर्म का धंधा तभी तक चलेगा जब तक लोग जातिधर्म के नाम पर लड़तेझगड़ते रहेंगे. राजनीतिक दल खासकर पिछड़ी जातियों में पकड़ रखने वाले लोग जाति के खिलाफ बात करने से बचने लगे हैं. समाजवादी विचारधारा के लोग पहले जाति के खिलाफ समाज में संदेश देने का काम करते थे, पर अब वे भी इस से बचने लगे हैं.

मुश्किल है गैरधर्म में शादी करना

गैरधर्म में शादी को ले कर अगड़ी जातियों में भले ही सोच में थोड़ाबहुत बदलाव आया हो पर पिछड़ी जातियों में यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं है.

उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में ‘लव जिहाद’ का मुद्दा इसीलिए सब से अधिक कारगर हो गया क्योंकि वहां पर दलित और पिछड़ी जातियों के प्रेम संबंध गैरबिरादरी में होने लगे थे. यहां पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि एक बार किसी परिवार को अपनी जाति में शादी करने के लिए राजी करना आसान हो सकता है पर जैसे ही गैरधर्म में शादी की बात आती है तो परिवार किसी भी सूरत में राजी नहीं होता है. कई बार ऐसे प्र्रेम संबंधों को ही जबरन बलात्कार की कैटीगरी में लाया जाता है.

ज्यादातर मामलों में लड़की वाले यह साबित करते हैं कि लड़की नाबालिग है. नाबालिग लड़की को ले कर सख्त कानून होने से लड़के के परिवार वालों को तत्काल जेल जाना पड़ जाता है. उन की जमानत भी नहीं हो पाती है.

सहारनपुर की रहने वाली रेहाना के भाई ने एक पिछड़ी जाति की लड़की निशा से प्रेम किया. जब घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं हुए तो निशा और उस के पति घर से बाहर दिल्ली चले गए. इस का विरोध करते हुए पिछड़ी जातियों के लोगों ने रेहाना के घर पर हमला कर दिया. वे लोग रेहाना के साथ गलत बरताव करना चाहते थे. रेहाना बच गई, पर अब उसे गांव से बाहर रहना पड़ता है.

रेहाना बताती है कि ऐसे बहुत से मामले हैं जहां पर गैरधर्म में शादी को मंजूर नहीं किया गया. इस वजह से या तो ऐसे संबंध टूट गए या फिर अपने शहर से दूर हो कर रहने लगे. राजनीति के चक्कर ने इसे ‘लव जिहाद’ का मसला बना दिया. ऐसे में गैरधर्म के बीच शादी की दूरी घटने के बजाय और बढ़ती गई.

गड़बड़झाला : अब बिहार में हो गया शौचालय घोटाला

शौचालय बनाने के लिए मिली रकम की बंदरबांट करने के लिए हर नियमकायदे को ताक पर रख दिया गया. इस के लिए मिले चैक को बैंक ने एनजीओ के खाते में डाल दिया गया.

पीएचईडी यानी लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता विनय कुमार सिन्हा के दस्तखत से ही पैसों का ट्रांसफर एनजीओ के खाते में किया गया. इतना ही नहीं, एडवाइस के साथ लगे 10 चैक बैंक ने एनजीओ के खाते में डाल दिए जबकि सारी रकम शौचालय बनवाने वाले लाभार्थियों के बैंक खातों में जानी थी.

शौचालय की रकम को लूटने के लिए पीएचईडी पूर्वी के तब के कार्यपालक अभियंता और कैशियर ने आरटीजीएस की फाइल में चैक का भुगतान करने के लिए कुछ लाभार्थियों के नाम और उन के बैंक खातों को दिखाया. लेकिन बैंक को भेजी जाने वाली एडवाइस में एनजीओ और दूसरे आदमी का नाम डाल कर रकम का गलत तरीके से भुगतान कर दिया गया.

कैशबुक में मैसर्स सत्यम शिवम कला केंद्र को 16 मई, 2016 को 35 अलगअलग चैकों के जरीए प्रचारप्रसार के सामान के मद में 1 करोड़, 52 लाख, 92 हजार, 176 रुपए दिए गए. इस केंद्र के संचालक महेंद्र कुमार के नाम पर यह रकम पटना के बोरिंग रोड की ओरिएंटल बैंक शाखा में जमा की गई.

इस के अलावा आदि शक्ति सेवा संस्थान के संचालक उदय सिंह और सुमन सिंह के इलाहाबाद बैंक की बिहारशरीफ शाखा और मध्य बिहार ग्रामीण बैंक की कंकड़बाग शाखा में 10 करोड़, 3 लाख, 94 हजार, 442 रुपए डाले गए.

मां सर्वेश्वरी सेवा संस्थान के संचालक मनोज कुमार, प्रमिला सिंह और बौबी कुमारी के पंजाब नैशनल बैंक की बख्तियारपुर शाखा में 2 करोड़, 14 लाख, 57 हजार, 400 रुपए जमा किए गए.

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शिव सेवा संस्थान की संचालिका रीता कुमारी और पीएचईडी की डाटा औपरेटर प्रीति भारती के मध्य बिहार ग्रामीण बैंक की पटना शाखा और पंजाब नैशनल बैंक की दरभंगा शाखा औैर कारपोरेशन बैंक की मनेर शाखा में 9 लाख, 74 हजार रुपए डाले गए. ये सारे भुगतान 1 मई, 2016 से 23 जून, 2016 के बीच किए गए.

14 करोड़, 36 लाख रुपए के इस शौचालय घोटाले का मुख्य आरोपी विनय कुमार सिन्हा है. वह फिलहाल बिहार राज्य जल परिषद गंगा परियोजना अंचल 2 में अधीक्षण अभियंता के तौर पर काम कर रहा है, वहीं दूसरा आरोपी बिटेश्वर प्रसाद सिंह लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण के पटना प्रमंडल पूर्वी में कैशियर है.

घोटालेबाजों ने शौचालय बनाने की रकम को गटकने के लिए फर्जी एनजीओ बना रखे थे. उन एनजीओ के न तो औफिस हैं और न ही कहीं बोर्डबैनर लगे हुए हैं.

इस घोटाले में अब तक 14 लोगों के खिलाफ पटना के गांधी मैदान थाने में एफआईआर दर्ज की गई है.

शौचालय घोटाले में गिरफ्तार पीएचईडी के कैशियर बिटेश्वर प्रसाद सिंह को पुलिस ने तेलंगाना में दबोच कर पटना लाने के बाद जब पूछताछ की तो उस ने साफतौर पर कहा कि घोटाले का असली मास्टरमाइंड विनय कुमार सिन्हा है. विनय के दबाव में ही उस ने गलत काम किया.

उसी ने बताया कि विनय का घर राजेंद्र नगर टैलीफोन ऐक्सचेंज के पास है. वह दफ्तर से चैक ले कर घर आता था और विनय के घर पर सभी एनजीओ संचालक भी आते थे. वहीं पर चैक पर दस्तखत होने के बाद रुपयों की बंदरबांट होती थी.

विनय कुमार सिन्हा ने खुद को बचाने के लिए बिटेश्वर के सिर पर घोटाले का आरोप मढ़ दिया था और उस के खिलाफ पटना के गांधी मैदान थाने में केस दर्ज कर दिया था.

31 अक्तूबर, 2017 को दर्ज एफआईआर में विनय ने कहा है कि कैशियर बिटेश्वर प्रसाद सिंह ही घोटाले का मास्टरमाइंड है और उसी ने फर्जी दस्तखत कर शौचालय योजना के करोड़ों रुपयों की गैरकानूनी निकासी की.

एफआईआर में विनय कुमार सिन्हा ने यह भी कहा कि वह 7 जुलाई, 2015 से 1 जुलाई, 2016 तक पीएचईडी में कार्यपालक अभियंता के पद पर तैनात था. उस के बाद उस का ट्रांसफर मुजफ्फरपुर में हो गया था. उस ने मुजफ्फरपुर जाने से पहले महकमे का सारा लेखाजोखा बिटेश्वर प्रसाद सिंह को सौंप दिया था.

बिटेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन का खाता एसबीआई की मुख्य शाखा गांधी मैदान में है. पिछले साल उस बैंक के सहायक प्रबंधक शिवकुमार झा को विनय कुमार सिन्हा और उस ने मैनेज किया था. गलत तरीके से चैक पास करने के लिए शिवकुमार झा को 10 लाख रुपए दिए गए थे. फिलहाल बक्सर जिले के भारतीय स्टेट बैंक की गरहथाकलां शाखा में काम कर रहे शिवकुमार झा को 9 नवंबर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

किसी भी सरकारी योजना के लिए एक महीने में 50 लाख रुपए से ज्यादा नहीं देने का नियम है, पर विनय की दबंगई और रुपयों के लालच में बैंक अफसर ने करोड़ों रुपए के चैक जारी किए. घोटालेबाजों ने 23 दिनों में ही निकासी के 14 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. 14 करोड़ रुपए की यह रकम सीधे लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर करनी थी जिसे 4 एनजीओ और 2 निजी खातों में डाल दिया गया.

पीएचईडी की डाटा औपरेटर प्रीति भारती का मुंह बंद रखने के लिए 2 लाख, 97 हजार रुपए उस के खाते में डाले गए थे. प्रीति का खाता पंजाब नैशनल बैंक की दरभंगा शाखा में है, जिस का अकाउंट नंबर 465000017741 है.

बिटेश्वर प्रसाद सिंह ने पुलिस को बताया है कि एनजीओ के खाते में जितने भी चैक या आरटीजीएस या एनईएफटी के जरीए रकम डाली जाती थी उस में से 80 फीसदी विनय ले लेता था. एनजीओ आदि शक्ति सेवा संस्थान का संचालक विनय कुमार का परिचित है इसलिए उस के खाते में सब से ज्यादा 10 करोड़ रुपए की रकम जमा कराई गई थी.

बिटेश्वर प्रसाद सिंह ने पुलिस के सामने यह भी कबूला कि विनय को 4 करोड़ रुपए और उसे 2 करोड़़ रुपए मिले थे. उस पैसे से दोनों ने दिल्ली और रांची में फ्लैट और जमीन खरीद ली थी. विनय ने लग्जरी कार भी खरीदी थी.

शौचालय बनाने में गड़बड़ी की शिकायतें मिलने के बाद 17 जून, 2016 को शौचालय बनाने की योजना पीएचईडी से छीन कर डीआरडीए को देने का फैसला लिया गया. उस के बाद भी उस समय पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता रहे विनय कुमार ने शौचालय योजना की तमाम फाइलें और कागजात डीआरडीए को नहीं सौंपे.

इस के लिए विनय कुमार को 4 बार नोटिस भेजा गया, पर वह टालमटोल करता रहा. विनय कुमार की इस करतूत की जानकारी महकमे के बाकी अफसरों ने भी कलक्टर को देने की हिम्मत नहीं जुटाई.

बख्तियारपुर के मां सर्वेश्वरी सेवा संस्थान में एक ही परिवार के मांबेटी और बेटी का देवर 3 खास पदों पर बैठे हैं, जबकि एनजीओ के नियम के मुताबिक संस्था के अफसरों के बीच खून का रिश्ता नहीं होना चाहिए. इस संस्थान का गठन साल 2014 में हुआ था. हैरानी की बात है कि 2 साल में ही इस एनजीओ को करोड़ों रुपए के काम मिलने शुरू हो गए थे.

शौचालय योजना की रकम को गटकने के लिए घोटालेबाजों ने 3 हजार ऐसे शौचालय लाभार्थियों की लिस्ट बनाई जिन का कोई स्थायी पता ही नहीं है. यह लिस्ट 10 से 12 जून, 2016 के बीच बनाई गई. जांच दल अब बैंक खातों के आधार पर लाभार्थियों का अतापता लगाने में जुटा हुआ है.

अथमगोला में 343, बख्तियारपुर में 297, दानापुर में 202, दनियावां में 197, बिहटा में 159, बाढ़ में 109, पंडारक में 104, खुसरूपुर में 90, नौबतपुर में 54, फुलवारी में 40, पटना सदर में 38, मोकामा में 28 लाभार्थियों की लिस्ट में पते दर्ज नहीं हैं.

गौरतलब है कि निजी घरेलू शौचालय की एक यूनिट बनाने में 6 हजार, 600 रुपए की लागत आती है. इस में से 3200 रुपए केंद्र सरकार और 2500 रुपए राज्य सरकार मुहैया कराती है. शौचालय बनाने के इच्छुक लोगों को 900 रुपए अपनी जेब से लगाने पड़ते हैं. 5700 रुपए लाभार्थियों के खाते में सीधा ट्रांसफर करना होता है और इसी रकम में घोटाला किया गया.

29 अगस्त को स्वच्छ भारत अभियान की समीक्षा बैठक में कलक्टर को घोटाले की भनक लग चुकी थी. बैठक में खुलासा हुआ कि 1 मई से 23 जून, 2016 के बीच तब के कार्यपालक अभियंता और कैशियर ने तमाम नियमों को ताक पर रख कर 14 करोड़, 38 लाख रुपए की रकम का भुगतान किया है.

उस के बाद कार्यपालक अभियंता और कैशियर को तमाम बहीखाते मुहैया कराने का निर्देश दिया गया, पर वे कई दिनों तक आनाकानी करते रहे. इस के बाद भी जिला प्रशासन ने उन के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई?

गौरतलब है कि 2 अक्तूबर, 2019 तक पूरे देश को खुले में शौच से मुक्त कराने का टारगेट रखा गया है. सभी राज्यों को 31 अक्तूबर, 2018 तक शौचालय बनाने के टारगेट को पूरा करना है.

इस मामले में देश के सभी राज्यों में बिहार ही सब से फिसड्डी है. टारगेट को पाने के लिए अब 15 महीने में राज्य में एक करोड, 40 लाख शौचालय बनवाने होंगे जो दूर की कौड़ी है.

देश में शौचालय बनाने की राष्ट्रीय औसत 67 फीसदी है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 32.5 फीसदी हो कर रेंग रहा है. देश के 192 जिले खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं और उन में बिहार का एक भी जिला नहीं है.

बिहार के पीएचईडी मंत्री विनोद नारायण झा का दावा है कि शौचालय बनाना और खुले में शौच पर रोक लगाना सरकार की प्राथमिकता है और इसे हर हाल में तय समयसीमा के अंदर पूरा कर लिया जाएगा. इस के लिए खास रणनीति के तहत काम शुरू किया गया है. राज्य की एक हजार पंचायतें खुले में शौच से मुक्त हो चुकी हैं.

इस साल 4555 पंचायतों में पूरी तरह शौचालय बनाने का काम हो जाएगा. साल 2018-19 में 2529 पंचायतों और 2019-20 में 1240 पंचायतों को पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त कर दिया जाएगा.

विधवा और तलाकशुदा औरतें घर में भी महफूज नहीं

काजल की उम्र 22 साल थी. उस के माता पिता ने अपनी एकलौती बेटी की शादी एक इंजीनियर लड़के से की थी. पिता ने अपनी बेटी की शादी में तकरीबन 30 लाख रुपए खर्च किए थे. उन्होंने बेटीदामाद को जरूरत का हर सामान दिया था. लेकिन शादी का एक साल भी नहीं बीता था कि मुंबई में नौकरी कर रहे काजल के पति की मौत एक रेल हादसे में हो गई.

कुछ दिनों के बाद गांव वालों ने काजल के पिता को समझाया कि बेटी की दूसरी शादी कर दो, पर वे तैयार नहीं हुए. उन का कहना था कि हमारी जाति में दूसरी शादी नहीं होती है.

काजल के ससुर का भी यही कहना था कि अगर काजल की दूसरी शादी हो गई तो हम लोगों की जातबिरादरी में नाक कट जाएगी. मजबूर हो कर काजल ससुराल में रहने लगी.

एक दिन मौका देख कर काजल के ससुर ने उस से जिस्मानी संबंध बनाना चाहा तो उस ने काफी विरोध किया. लेकिन फिर वह मजबूर हो गई और अपने पिता समान ससुर के साथ सोने लगी.

इसी तरह से सीता की शादी एक ऐसे लड़के से हुई थी जो दिल की बीमारी से पीडि़त था. घर के दूसरे लोगों से उन्हें इस बीमारी का पता नहीं चल सका और उस की शादी हो गई. शादी के 2 साल बाद ही सीता के पति की मौत हो गई.

लोगों ने सीता की दूसरी शादी करने की सलाह दी पर उस के मातापिता तैयार नहीं हुए. वह ससुराल में ही रहने लगी.

बाद में सीता का अपने घर में गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर से इश्क हो गया. परिवार वालों को जब यह बात मालूम हुई तो कुहराम मच गया. उस ड्राइवर की काफी पिटाई की गई और उसे काम से भी हटा दिया गया.

3 साल के अंदर ही कमला के पति की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी. वह भी मजबूर हो कर ससुराल में रह रही थी जहां ससुर और देवर से उस के नाजायज संबंध हो गए.

शबाना की शादी को 10 साल बीत गए थे. उस की 3 बेटियां और 1 बेटा था. उस के पति का सूरत, गुजरात में एक औरत से नाजायज संबंध हो गया था जहां वह कपड़े की एक फैक्टरी में काम करता था. उस ने शबाना को फोन पर ही तलाक दे दिया और अपने मोबाइल फोन का सिम बदल दिया.

शबाना ने उस से बात करने और मिलने की कोशिश की, पर नाकाम रही. उस का गुजारा अपने पति द्वारा भेजे गए पैसे से ही चलता था. शबाना के बच्चे मजबूर हो कर कबाड़ बेचने का काम करने लगे, फिर भी उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि दोनों समय का चूल्हा जल सके. मजबूरी में शबाना दूसरों के घरों में  काम करने लगी. लोगों ने उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के जिस्म से खेलना शुरू कर दिया.

5 साल बाद ही पति ने रुखसाना को  तलाक दे दिया था. वह मायके में रह रही थी. उस के मायके वाले उस से ऊब गए थे. बीए तक पढ़ी लिखी रुखसाना एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी. उस की मजबूरी का फायदा उठा कर स्कूल संचालक ने उस से जिस्मानी संबंध बनाना शुरू कर दिया.

विधवा और तलाकशुदा औरतों की ऐसी तमाम कहानियां हैं जो समाज की अनदेखी के चलते जिल्लत भरी जिंदगी जी रही हैं.

मेरी शादी को 6 महीने हुए हैं और मेरा मेरी पत्नी से आएदिन झगड़ा होता रहता है. आप ही बताएं, मैं क्या तलाक ले लूं.

सवाल
मेरी शादी को अभी 6 महीने ही हुए हैं और मेरा मेरी पत्नी से आएदिन झगड़ा होता रहता है. जब भी मैं अपने फ्रैंड्स के साथ कहीं बाहर जाने का प्रोग्राम बनाता हूं, वह मुंहफुला कर बैठ जाती है. रोजरोज के क्लेश से मैं तंग आ गया हूं और अब तलाक के मूड में हूं. आप ही बताएं, क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

जवाब
शादी के जो शुरुआती महीने रोमांस के, एकदूसरे को समझने के होते हैं उन में आप दोनों के बीच झगड़ा हो रहा है, जो सही नहीं है और कलह भी उस हद तक, जिस में मामला तलाक तक पहुंच रहा है.

आप की बात से तो यह भी लग रहा है जैसे आप उस से ज्यादा अपने फ्रैंड्स के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं, तो उसे अच्छा नहीं लग रहा. जो समय वह आप के साथ बिताना चाहती है वह आप औरों को दे रहे हैं. ऐसे में अगर आप अपने रिश्ते को बचाना चाहते हैं तो उसे क्वालिटी टाइम दीजिए. और मन से तलाक की बात निकाल दें.

जीएसटी की पेचीदगियां और कमजोर होती देश की आर्थिक हालत

जीएसटी में आ रही गिरावट यह दिखा रही है कि देश की आर्थिक हालत कमजोर हो रही है. नवंबर माह में सब से कम जीएसटी प्राप्त हुआ है और अधिकतम 93,000 करोड़ से 10,000 करोड़ रुपए कम है. कहने को कहा जा रहा है यह कमी बहुत सी चीजों को 28 प्रतिशत के दायरे से 18 प्रतिशत के दायरे में लाने से हुई है पर असल में यह थमते व्यापार की निशानी है.

अब उन व्यापारियों की गिनती में भी कमी आ रही है जो रिटर्न नहीं भर रहे या देर से भर रहे हैं, अब सरकार छापामार गुरिल्लों को ऐसे व्यापारियों के पीछे लगाने की तैयारी कर रही है. जीएसटी इस के विरोधियों के मत को सही साबित करते हुए अत्याचार, वसूली और रिश्वतखोरी का अनूठा जरिया बनने वाला है, जो कैशलैस इकौनोमी के मौडल में हजारों व्यापारियों को बेकार कर देगा और लाखों लोगों को बेरोजगार कर देगा.

जीएसटी की कल्पना कुछ ऐसी ही है जैसी कि देश की सीमाएं सुरक्षित करने के लिए अखंड 7 दिन का यज्ञ करना हो. भारत में इस तरह का पाखंड खूब पनप रहा है और अब चूंकि पाखंड समर्थक ही सरकार चला रहे हैं उन्होंने जीएसटी यज्ञ से देश का आर्थिक उद्घार करने का सपना दिखाया है कि इस यज्ञ के बाद स्वयं लक्ष्मी का अवतरण हर घर में होगा. सत्य यह है कि जैसे परंपरा के अनुसार हर यज्ञ के बाद ऋषिमुनियों को राजा ढेर सारा अन्न, स्वर्ण, कपड़े, लड़कियां, नौकरियां देता था वैसे ही जीएसटी यज्ञ में अफसरों को भी दान मिलेगा.

रिटर्न देर से भरने या न भरने के कारणों को जानने और उन का निवारण करने की जगह सरकार अब व्यापारियों को नोटिस भेज रही है और फील्ड अफसरों को हर व्यापारी के पास भेज रही है. वैसे किसी भी देश की जनता किसी भी टैक्स को आसानी से और खुशीखुशी नहीं देती है. राजाओं को हमेशा फौज के बल पर टैक्स वसूलना पड़ता था, पर जीएसटी का ढांचा ही ऐसा बना है जिस में मनमानी की बेहद गुंजाइश है, पगपग पर कंप्यूटर के सामने बैठ कर एंट्रियां करना, ई वे बिल बनाना, ढेरों जानकारी देना व्यापारियों को ऐसा लगता है कि वे केवल सरकार के लिए काम कर रहे हैं ग्राहकों के लिए नहीं.

यदि जीएसटी को सहज नहीं बनाया गया तो यह उसी तरह देश की अर्थव्यवस्था का नाश कर देगा जैसा सदियों से हिंदू राजाओं के युगों में होता रहा है जब टैक्स एकत्र ही डाकू करते थे. हम धीरेधीरे उसी रास्ते की तरफ बढ़ रहे हैं. पारंपरिक हिंदू शासनपद्धति की यह पक्की निशानी है.

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