जीएसटी में आ रही गिरावट यह दिखा रही है कि देश की आर्थिक हालत कमजोर हो रही है. नवंबर माह में सब से कम जीएसटी प्राप्त हुआ है और अधिकतम 93,000 करोड़ से 10,000 करोड़ रुपए कम है. कहने को कहा जा रहा है यह कमी बहुत सी चीजों को 28 प्रतिशत के दायरे से 18 प्रतिशत के दायरे में लाने से हुई है पर असल में यह थमते व्यापार की निशानी है.

अब उन व्यापारियों की गिनती में भी कमी आ रही है जो रिटर्न नहीं भर रहे या देर से भर रहे हैं, अब सरकार छापामार गुरिल्लों को ऐसे व्यापारियों के पीछे लगाने की तैयारी कर रही है. जीएसटी इस के विरोधियों के मत को सही साबित करते हुए अत्याचार, वसूली और रिश्वतखोरी का अनूठा जरिया बनने वाला है, जो कैशलैस इकौनोमी के मौडल में हजारों व्यापारियों को बेकार कर देगा और लाखों लोगों को बेरोजगार कर देगा.

जीएसटी की कल्पना कुछ ऐसी ही है जैसी कि देश की सीमाएं सुरक्षित करने के लिए अखंड 7 दिन का यज्ञ करना हो. भारत में इस तरह का पाखंड खूब पनप रहा है और अब चूंकि पाखंड समर्थक ही सरकार चला रहे हैं उन्होंने जीएसटी यज्ञ से देश का आर्थिक उद्घार करने का सपना दिखाया है कि इस यज्ञ के बाद स्वयं लक्ष्मी का अवतरण हर घर में होगा. सत्य यह है कि जैसे परंपरा के अनुसार हर यज्ञ के बाद ऋषिमुनियों को राजा ढेर सारा अन्न, स्वर्ण, कपड़े, लड़कियां, नौकरियां देता था वैसे ही जीएसटी यज्ञ में अफसरों को भी दान मिलेगा.

रिटर्न देर से भरने या न भरने के कारणों को जानने और उन का निवारण करने की जगह सरकार अब व्यापारियों को नोटिस भेज रही है और फील्ड अफसरों को हर व्यापारी के पास भेज रही है. वैसे किसी भी देश की जनता किसी भी टैक्स को आसानी से और खुशीखुशी नहीं देती है. राजाओं को हमेशा फौज के बल पर टैक्स वसूलना पड़ता था, पर जीएसटी का ढांचा ही ऐसा बना है जिस में मनमानी की बेहद गुंजाइश है, पगपग पर कंप्यूटर के सामने बैठ कर एंट्रियां करना, ई वे बिल बनाना, ढेरों जानकारी देना व्यापारियों को ऐसा लगता है कि वे केवल सरकार के लिए काम कर रहे हैं ग्राहकों के लिए नहीं.

यदि जीएसटी को सहज नहीं बनाया गया तो यह उसी तरह देश की अर्थव्यवस्था का नाश कर देगा जैसा सदियों से हिंदू राजाओं के युगों में होता रहा है जब टैक्स एकत्र ही डाकू करते थे. हम धीरेधीरे उसी रास्ते की तरफ बढ़ रहे हैं. पारंपरिक हिंदू शासनपद्धति की यह पक्की निशानी है.

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