भारतीय जनता पार्टी से नाता जोड़ लेने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चमचमाहट कम हो गई है क्योंकि जिसे कहते हैं उन्होंने थूक कर चाटना वह उन्होंने किया है और उस पार्टी के तलवों में जा बैठे हैं जिसे रातदिन कट्टरवादी, जातिवादी और न जाने क्याक्या कहते रहे. गद्दी पर बैठे हैं तो फिर भी वे कई बार सही बातें भी कहते हैं. उन्होंने अब मांग की है कि बिहार की शराबबंदी की तरह देशभर में शराबबंदी की जाए.

बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध भी कम हुए हैं और लोगों में बीमारी भी कम हुई है. सरकार को शराब कर से नुकसान हुआ है उस का कई गुना फायदा जनता को मिला है, खासतौर पर घरवालियों और बच्चों को.

शराब कोई खाना नहीं कि इस के बिना आदमी जी नहीं सकता पर एक बार इस की लत पड़ जाए तो वह किसी की जान भी ले सकता है कि 2 घूंट मिल जाए. शायद इसी आदत के लिए शराब जबरन पिलवाई गई थी ताकि इस पर रोकटोक लगा कर टैक्स भी वसूला जा सके और इस का लालच दे कर लोगों से ज्यादा काम करवाया जा सके. अपराध और शराब का नाता तो पुराना है. दुनियाभर की फौजों को शराब पिला कर लड़वाया गया है.

दुनियाभर के शराबखाने असल में अपराधियों के अड्डे हैं और सरकारें उन्हें पनपने देती हैं क्योंकि यहीं से अपराधियों को आसानी से पकड़ा जा सकता है. शराब के सहारे सरकारों ने अरबों रुपया हर साल लोगों की जेबों से निकलवाया है. शराब कंपनियों ने जम कर इश्तिहारों पर पैसा खर्च किया है ताकि सिनेमा, अखबारों, कहानियों में शराब का बखान करा जा सके. 1950 से 1980 तक की फिल्मों में तो खलनायक ही पीते थे पर फिर दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र आदि ने शराब को ऊंची जगह दी.

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