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औनलाइन बिकने वाले सामानों पर होगी पूरी जानकारी

औनलाइन खरीद नई बाजार व्यवस्था है और इस में कारोबार करने वाली स्नैपडील, अमेजौन इंडिया, फ्लिपकार्ट, बिगबास्केट, ग्रोफर्स जैसी कई बड़ी कंपनियां करोड़ों का कारोबार कर रही हैं. औनलाइन खरीदारी बड़े शहरों में धूम मचा रही है और मौल आदि के कारोबार को उस ने खासा प्रभावित किया है. यह प्रचलन अब छोटे शहरों और कसबों तक बढ़ गया है. वहां भी खरीदार स्थानीय कारोबारियों की जगह औनलाइन खरीद को प्राथमिकता देने लगे हैं.

इस की बड़ी वजह यह है कि लोगों को घर बैठे ब्रैंडेड और अच्छा सामान मिल रहा है. कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा जबरदस्त है, इसलिए कीमत भी कम देनी पड़ रही है.

करोड़ों का कारोबार कर रही इन कंपनियों के लिए अब तक कोई नियम नहीं था, इसलिए ग्राहक लुटते भी रहे हैं. लेकिन, अब सरकार ने इन कंपनियों के लिए नियम लागू कर दिए हैं. इन कंपनियों से खरीदे जाने वाले सामान पर अब एमआरपी, सामान बनाने की तारीख, एक्सपायरी डेट, सामान की मात्रा, मेड इन, कस्टमर केयर नंबर आदि सबकुछ पढ़े जाने वाले अक्षरों में लिखा होगा.

कस्टमर केयर का नंबर होना ग्राहकों के लिए सब से बड़ा फायदा साबित होगा. अभी तक ग्राहक को सामान मिल जाता था लेकिन उस में की गई गड़बड़ी की शिकायत के लिए उसे दरदर भटकना पड़ता था. इन नियमों से उम्मीद की जा सकती है कि औनलाइन कंपनियों की मनमानी पर लगाम कसेगी.

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नववर्ष पर नई ऊंचाई पर पहुंचा सूचकांक

नए साल का स्वागत बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक ने झूमते हुए किया है. नववर्ष की शुरुआत में बाजार में हालांकि एकाध कारोबारी दिन कुछ सुस्ती नजर आई लेकिन उस के बाद उस में ऐसी तेजी आ गई कि सूचकांक एक के बाद एक  नए रिकौर्ड स्थापित करने लगा.

साल की शुरुआत हालांकि कमजोर रही लेकिन नए साल के पहले सप्ताह के आखिरी सत्र में बाजार ने 97.21 अंक की बढ़त के साथ 34,153 अंक का नया कीर्तिमान छू लिया. नैशनल स्टौक एक्सचेंज का निफ्टी भी 10,558 अंक के नए रिकौर्ड पर पहुंच गया.

बजट में अच्छे संकेत मिलने और आर्थिक स्थिति के मजबूती की तरफ बढ़ने के आकलन के साथ 2018 के दूसरे सप्ताह के पहले दिन ही बाजार ने जोरदार छलांग लगाई और सूचकांक 34,353 अंक के नए शीर्ष पर पहुंच गया.  निफ्टी भी 10,631 अंक के स्तर तक पहुंचा. सप्ताह के दूसरे दिन बाजार फिर नई ऊंचाई पर पहुंच गया.

बाजार के जानकारों का कहना है कि बजट में कारोबार के अनुकूल घोषणाएं होने तथा कौर्पाेरेट को मदद कर नए ढंग से काम करने जैसे कदम उठाए जाने की उम्मीदों के कारण बाजार में उत्साह रहा. छोटे और लघु उद्योगों के प्रति सरकार के सकारात्मक रुख के कारण इस में जो तेजी आ रही है उस का भी बाजार पर अच्छा असर माना जा रहा है.

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मैंने प्रेमविवाह किया है. अब मेरे पति अन्य लड़कियों के साथ घूमते हैं. मैं पैसे की मुहताज हो गई हूं. आप ही रास्ता सुझाएं.

सवाल
2 साल पहले मैं ने घरवालों की मरजी के खिलाफ अपने सहकर्मी से प्रेमविवाह किया था. एक साल तक तो सब सही चलता रहा लेकिन धीरेधीरे चीजें बिगड़ती चली गईं, जैसे उस का देररात शराब पी कर घर आना, ऐयाशी करना, जुआ खेलना, लड़कियों के साथ घूमनाफिरना आदि. जब मैं इन सब के लिए रोकती हूं तो वह मेरे साथ गालीगलौज व हाथापाई करता है. कई बार तो घर से निकाल भी चुका है. अब तो मैं एकएक पैसे की मुहताज हो गई हूं. आप ही रास्ता सुझाएं.

जवाब
एक तरफ पति द्वारा प्रताड़ित करना और दूसरी तरफ घर वालों का सपोर्ट नहीं है तो काफी कठिन स्थिति है. लेकिन फिर भी आप डरे नहीं, बल्कि डट कर मुकाबला करें.

अब जब भी आप का पति आप पर हाथ उठाए तो उसे चेतावनी दें कि अगली बार ऐसा करने की हिम्मत जुटाई तो पुलिस के हत्थे चढ़वा दूंगी, साथ ही, समय रहते खुद की हरकतें सुधारने को भी कहें. जब वह आप के ऐसे तेवर देखेगा तो खुद में सुधार जरूर लाएगा. साथ ही, आप अपने पेरैंट्स से माफी मांगें ताकि आप को उन का सपोर्ट मिल सके. आप अकेली यह लड़ाई न लड़ें, साथ ही नौकरी भी ढूंढ़ें.

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विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसों के बाद

विवाह को ले कर युवाओं की धारणा अब बदल रही है. पहले जहां सैक्स संबंध कायम होने के बाद शादी करने की मांग जोर पकड़ लेती थी वहीं अब सैक्स के बाद भी ऐसी मांग नहीं उठती. कई बार तो लिव इन रिलेशनशिप लंबी चलती रहती है. फिल्मों में ही नहीं सामान्यतौर पर भी कई दोस्त आपस में एकसाथ रहते हैं. अब सैक्स कोई मुद्दा नहीं रह गया है. जब कभी शादी की बात चलती है तो युवकयुवती दोनों की एक ही सोच होती है कि पहले आत्मनिर्भर हो जाएं व अच्छा कमाने लगें, जिस से जिंदगी अच्छी कटे, फिर शादी की सोचें.

केवल युवा ही नहीं, उन के पेरैंट्स भी शादी की जल्दी नहीं करते. वे भी सोचते हैं कि पहले बच्चे कुछ कमाने लगें उस के बाद ही विवाह की सोचें. जो बच्चे कमाने लगते हैं वे बाकी फैसलों की तरह शादी के फैसले भी खुद लेने लगे हैं.

सैक्स अब पहले की तरह समाज में टैबू नहीं रह गया है. युवा इस को ले कर सजग और जागरूक हो गए हैं, उन्हें घरपरिवार से दूर अकेले रहने के अवसर ज्यादा मिलने लगे हैं. जहां वे अपनी सैक्स जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. सैक्स को ले कर वे इतने सजग हो गए हैं कि अब उन को अनचाहे गर्भ या गर्भपात जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता. आज उन्हें गर्भ से बचने के उपाय पता हैं. पहले सैक्स एक ऐसा विषय था जिस पर लोग चर्चा करने से बचते थे. युवा जब इस विषय पर चर्चा करनी शुरू करते थे तब परिवार के लोग उन की शादी के बारे में सोचना शुरू कर देते थे. अब केवल युवक ही नहीं युवतियां तक अपने घर से दूर पढ़ाई, कंपीटिशन और जौब को ले कर शहरों में होस्टल या पीजी में अकेली रहने लगी हैं. ऐसे में सैक्स उन के लिए कोई मुद्दा नहीं रह गया है. अब युवाओं की प्राथमिकता है कि शादी की बात तब सोचो जब पैसे कमाने लगो.

फैशन और जरूरतें बनीं वजह

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ इस बदलती सोच के पीछे सब से बड़ी वजह आज के समय में बढ़ती महंगाई है. पहले विवाह के बाद जहां 20 से 40 हजार में हनीमून ट्रिप पूरा हो जाता था वहीं अब यह खर्च बढ़ कर 90 हजार से 1 लाख रुपए के ऊपर पहुंच गया है. शादी के बाद पतिपत्नी के बीच इतना सामंजस्य नहीं होता कि बिना कहे वे इस आर्थिक परेशानी को समझ सकें. एक नए शादीशुदा जोड़े की हनीमून कल्पना पूरी तरह से फिल्मी होती है. जहां पत्नी किसी राजकुमारी सा अनुभव करना चाहती है. अब इस अनुभव और फीलिंग्स के लिए पैसों की जरूरत होती है. ज्यादातर युवा प्राइवेट जौब में होते हैं, जहां पैसा भले होता है पर समय नहीं होता. ऐसे में युवाओं को ऐसी नौकरी की प्रतीक्षा रहती है जिस में पैसा हो, जिस के सहारे वे शादी के बाद सभी सुखों का आनंद ले सकें.

शादी के समय ही नहीं उस के बाद भी अब नई स्टाइलिश ड्रैस रेंज बाजार में आने लगी हैं. अब तो शौपिंग के लिए बाजार जाने की जरूरत भी नहीं होती. औनलाइन शौपिंग का दौर है, जहां आप को बिना बाजार गए ही सबकुछ मिल सकता है. जरूरत होती है पैसों की. इसलिए अब युवा शादी तब करना चाहते हैं जब शादी के मजे लेने के लिए उन के पास पैसे हों. फेसबुक, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के इस दौर में जीवन के किसी पल को दोस्तों व नातेरिश्तेदारों से छिपाया नहीं जा सकता. ऐसे में अपनी खुशियों को पूरा करने के लिए पैसों की अहमियत अब सभी को समझ आने लगी है.

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ यह सोच अब दिनोदिन और मजबूत होती जा रही है. पहले की तरह यह नहीं होता कि शादी हुई उस के बाद सबकुछ घरपरिवार की जिम्मेदारी पर होता था. अब अपना बोझ खुद उठाना पड़ता है. ऐसे में ‘पहले कमाई फिर शादी’ की सोच बढ़ रही है.

बच्चों की प्लानिंग

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ की धारणा में कई बार आलोचक कहते हैं कि जब शादी से पहले ही सैक्स हो गया तो शादी के बाद क्या बचता है? इस सवाल के जवाब में युवा कहते हैं कि शादी के पहले वाले और शादी के बाद वाले सैक्स में फर्क होता है. शादी के बाद हमारी प्राथमिकता परिवार की होती है. हम अपने हिसाब से बच्चे का जन्म प्लान करते हैं. आज के समय में बच्चे के जन्म से ले कर स्कूल जाने तक बहुत सारे खर्चे होने लगे हैं. इन को सही तरह से संभालने के लिए अच्छे बजट की जरूरत होती है. एक बच्चे की प्राइवेट अस्पताल में डिलीवरी का खर्च ही लाख से ऊपर पहुंच जाता है. उस के बाद तमाम तरह के खर्च और फिर बच्चे के प्ले स्कूल जाने का खर्च महंगा पड़ने लगा है. अस्पताल हो या प्ले स्कूल उस में किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

3 साल की उम्र में ही बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो जाता है. इस में अच्छे स्कूल में प्रवेश से ले कर पढ़ाई के खर्च तक बड़े बजट की जरूरत होती है, जो यह सिखाता है कि शादी के लिए सैक्स की नहीं पैसे की ज्यादा जरूरत है. बच्चा जैसेजैसे एक के बाद एक क्लास आगे बढ़ता है उस का खर्च भी बढ़ता है, जिसे वहन करना सरल नहीं होता. कई बार युवा ऐसे लोगों को देखते हैं जो इस तरह के हालात से गुजर रहे होते हैं. ऐसे में वे अपना हौसला नहीं बना पाते.

शादी के लिए पहले मातापिता व घरपरिवार का हस्तक्षेप ज्यादा होता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब ज्यादातर फैसले या तो युवा खुद लेते हैं या फिर फैसला लेते समय उस की सहमति ली जाती है. शादी की उम्र बढ़ गई है, जिस में सैक्स से ज्यादा पैसे का फैसला प्रमुख हो गया है.

सैक्स का सरल होना

सैक्स अब ऐंजौयमैंट का साधन बन गया है. युवकयुवतियां भी खुद को अलगअलग तरह की सैक्स क्रियाओं के साथ जोड़ना चाहते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की फैंटेसीज अब चुपचाप बैडरूम तक पहुंच गई हैं, जहां केवल युवकयुवतियां आपस में तमाम तरह की सैक्स फैंटेसीज करने का प्रयास करते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की हसरतें चुपचाप पूरी होती रहती हैं. सोशल मीडिया ग्रुप फेसबुक और व्हाट्सऐप इस में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फेसबुक पर युवकयुवतियां दोनों ही अपने निकनेम से फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और मनचाही चैटिंग करते हैं. इस में कई बार युवतियां अपना नाम युवकों की तरह रखती हैं, जिस से उन की पहचान न हो सके. चैटिंग करते समय वे इस बात का खास खयाल रखती हैं कि उन की सचाई किसी को पता न चले. यह बातचीत चैटिंग तक ही सीमित रहती है. बोर होने पर फ्रैंड को अनफ्रैंड कर नए फ्रैंड को जोड़ने का विकल्प हमेशा खुला रहता है.

इस तरह की सैक्स चैटिंग बिना किसी दबाव के होती है. ऐसी ही एक सैक्स चैटिंग से जुड़ी महिला ने बातचीत में बताया कि वह दिन में खाली रहती है. पहले बोर होती रहती थी, जब से फेसबुक के जरिए सैक्स की बातचीत शुरू की तब से वह बहुत अच्छा महसूस करने लगी है. कई बार वह इस बातचीत के बाद खुद को सैक्स के लिए बहुत सहज पाती है. पत्रिकाओं में आने वाली सैक्स समस्याओं में इस तरह के बहुत सारे सवाल आते हैं, जिन को देख कर लगता है कि सैक्स की फैंटेसी अब फैंटेसी नहीं रह गई है. इस को लोग अब अपने जीवन का अंग बनाने लगे हैं.

शादी के पहले सैक्स का अनुभव जहां पहले बहुत कम लोगों को होता था, अब यह अनुपात बढ़ गया है. अब ऐसे कम ही लोग होंगे, जिन को सैक्स का अनुभव शादी के बाद होता है. ऐसे में सैक्स के लिए शादी की जरूरत खत्म हो गई है. शादी के बाद जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए पैसों की जरूरत बढ़ गई है. यही वजह है कि शादी सैक्स के बाद नहीं शादी पैसों के बाद का चलन बढ़ गया है.

आज इन विषयों को ले कर कई पुस्तकें, सिनेमा और टीवी सीरियल्स भी बनने लगे हैं, जो इस बात का समर्थन करने लगे हैं कि शादी से पहले सैक्स की नहीं पैसों की जरूरत होती है.

पैडमैन : सैनेटरी नैपकीन पैड पर सोचने को मजबूर करती है फिल्म

औरतों की माहवारी/मासिक धर्म को लेकर चली आ रही भारतीय संस्कृति व सामाजिक परंपरा  पर चोट करने के साथ ही मासिक धर्म के दौरान औरतों की स्वच्छता और उनके अच्छे स्वास्थ्य की चिंता करने वाली फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी यूं तो पैडमैन कहे जाने वाले तमिलनाडु निवासी अरूणाचलम मुरूगनाथन की कहानी है. पर इसमें काल्पनिक कहानी व काल्पनिक पात्रों को ज्यादा तरजीह देकर इंटरवल से पहले इसे कुछ ज्यादा ही मेलोड्रामैटिक बना दिया गया है.

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माहवारी के पांच दिन औरतों द्वारा गंदा कपड़ा, राख, पत्ता आदि का उपयोग करने की बजाय सैनेटरी नैपकीन पैड के उपयोग की वकालत करने वाली फिल्म ‘पैडमैन’ में दावा किया गया है कि सिर्फ 12 प्रतिशत भारतीय महिलांए ही सैनेटरी नैपकीन पैड का उपयोग करती हैं. यदि यह आंकड़ा सही है, तो चिंता का विषय है.

फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी महेश्वर, मध्यप्रदेश में रह रहे वेल्डिंग का काम करने वाले युवक लक्ष्मी कांत चौहान (अक्षय कुमार) की गायत्री (राधिका आप्टे) संग शादी से होती है. शादी के बाद अपनी पत्नी से प्यार करने वाला लक्ष्मी काफी खुश है. लेकिन उसे यह पसंद नहीं कि माहवारी के पांच दिन उसकी पत्नी घर से बाहर बैठे और गंदे कपड़े का उपयोग करे. वह दवा की दुकान पर जाकर अपनी पत्नी गायत्री के लिए 55 रूपए में सैनेटरी नैपकीन पैड खरीदकर लाता है.

उसे पैड मांगने में कोई शर्म नहीं महसूस होती. पर गायत्री इतना महंगा पैड उपयोग नहीं करना चाहती. उसका मानना है कि इससे घर में दूध नहीं आ पाएगा. गायत्री अपने पति लक्ष्मी को समझाती है कि वह औरतों के मसले पर अपना दिमाग न खपाए. पर पत्नी की तकलीफ लक्ष्मी को बर्दाश्त नहीं. ऊपर से डौक्टर उसे बताता है कि जो औरतें माहवारी के पांच दिनों में पत्ता, गंदा कपड़ा या राख का उपयोग करती हैं, वह बीमारी को दावत देती हैं. तब लक्ष्मी प्रसाद एक पैड को खोलकर देखता है, तो उसे पता चलता है कि मलमल के कपड़े के अंदर कुछ रूई/कापुस/कपास लपेटा गया है.

तो वह कहता है कि चवन्नी की रूई के लिए 55 रूपए मांगे जा रहे हैं. अब वह दुकान से कपड़ा व रूई खरीदकर अपनी पत्नी को पैड बनाकर देता है. गायत्री अगली माहवारी की रात उस पैड का उपयोग करती है, पर कोई फायदा नहीं होता और वह पुनः वही गंदा कपड़ा उपयोग करने लगती है. तब लक्ष्मी दुबारा प्रयास कर पैड बनाता है और इस बार वह पड़ोस की लड़की को पहली बार माहवारी होने पर वह पैड देता है. इससे हंगामा मच जाता है. लक्ष्मी की मां लक्ष्मी की दो छोटी बहनों को बड़ी बहन की ससुराल में रहने भेज देती हैं. लोग उसे पागल कहने लगते हैं.

गांव के लेाग लक्ष्मीकांत के इस काम को गंदा बताते हैं. बच्चे औरतों की माहवारी को क्रिकेट मैच की संज्ञा देते हैं. एक दिन फैक्टरी में फैक्टरी का एक मालिक कहता है कि कोई भी चीज ग्राहक को देने से पहले खुद उसका उपयोग करके उसके सही होने का आकलन कर लेना चाहिए. अब लक्ष्मी नए सिरे से पैड बनाता है. और खुद उस पैड को पहनकर सायकल चलाता है, साथ में खून पैड में जाता रहे, ऐसी थैली लगा रखी है. जब उसकी पैंट लाल रंग से भीग जाती है, तो वह महेश्वर की नर्मदा नदी में कूद जाता है. इस पर गांव की पंचायत बैठती है. बीच पंचायत में गायत्री का भाई आकर उसे अपने साथ ले जाते हैं. अंततः पंचायत के निर्णय से पहले ही लक्ष्मी ऐलान कर देता है कि वह गांव छोड़कर जा रहा है.

लक्ष्मी शहर पहुंचकर एक प्रोफेसर के घर पर नौकरी करने लगता है. जहां प्रोफेसर के बेटे की सलाह पर कम्पयूटर पर गूगल की मदद से अमेरिका व मलेशिया से पैड बनाने में उपयोग होने वाला पदार्थ तथा करोड़ों की मशीन की कार्यशैली देखकर एक सूदखोर से कर्ज लेकर नब्बे हजार में नई मशीन का ईजाद करता है. इस मशीन की मदद से जो सैनेटरी नैपकीन पैड बनता है, उसकी कीमत सिर्फ दो रूपए होती है. नाटकीय तरीके से इस पैड का पहला उपयोग परी (सोनम कपूर) करती है. परी तबला वादक होने के साथ साथ एमबीए की विद्यार्थी है.

परी के पिता आईआईटी में है. परी के कहने पर उसके पिता दिल्ली में आयोजित समाज उपयोगी नई खोज प्रतियोगिता में लक्ष्मी को उसकी मशीन के साथ बुलवाते है. जहां उसे दो लाख रूपए का पुरस्कार मिलता है. उसके बाद परी के साथ मिलकर लक्ष्मी इस पैड को गांव की औरतों तक पहुंचाने, जरुरतमंद औरतों को बैंक से कर्ज दिलवाकर उन्हे मशीन बेचते हैं, जिससे वह महिलाएं अपने गांव में पैड बनाकर औरतों को दो रूपए में बेचे.

उधर गायत्री के भाई चाहते हैं कि गायत्री, लक्ष्मी प्रसाद को तलाक देकर नई जिंदगी शुरू करे, इधर लक्ष्मी प्रसाद अमेरिका में युनाइटेड नेशन में पुरस्कार हासिल करता है. वापस भारत लौटते हुए उसे खबर मिलती है कि भारत सरकार उसे पद्मश्री देने जा रही है. यह खबर अखबारों में छपती हैं. गायत्री के  भाईयों को अपराध बोध होता है. लक्ष्मी के गांव के लोग उसे सम्मान देने लगते हैं. फिल्म के अंत में लक्ष्मी प्रसाद रक्षा बंधन पर अपनी बहनों को उपहार में सैनेटरी नैपकीन पैड देते नजर आते हैं.

नारी उत्थान ही नहीं बल्कि नारी के स्वास्थ्य के संदर्भ में एक अति उपयुक्त व जरुरी विषय पर बनी यह सामाजिक फिल्म कई जगह सरकारी जुमलों के अलावा अति मेलोड्रामैटिक फिल्म बनकर रह जाती है. लेखक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह फिल्म काफी बेहतर बन सकती थी. फिल्म बेवजह लंबी बनायी गयी है. इंटरवल से पहले यह फिल्म निराश करती है. फिल्मकार ने एक तरफ कम्प्यूटर, गूगल सर्च व मोबाइल युग की बात की है तो दूसरी तरफ ऐसे अंधविश्वास फैलाने वाले सीन रखे हैं, जिन पर कोई भी आम इंसान यकीन नहीं करता.

मसलन-हनुमान जी को एक नारियल पकड़ाएं, कुछ देर बाद टुकड़े के रूप में प्रसाद का मिलना या भगवान कृष्ण के हाथों लड्डू के प्रसाद का मिलना आदि बेवकूफी भरे सीन किस सोच के साथ रखे गए हैं, यह तो अक्षय कुमार व आर बालकी ही बेहतर जाने. फिल्म 2018 में बनी है, जब भारत के गांव गांव में मोबाइल फोन व इंटरनेट हावी है. पर इस तरह के दृश्यों को दिखाकर फिल्मकार क्या साबित करना चाहते हैं, यह तो वही जानें.

इंटरवल से पहले फिल्म की पटकथा में कसाव की जरुरत थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया. इंटरवल के बाद सोनम कपूर के किरदार के साथ ही फिल्म में रोचकता बढ़ती है और अंततः फिल्म दर्शकों के बीच अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रहती है. फिल्म के संवाद प्रभावित नहीं करते हैं. फिर भी फिल्म के निर्देशक आर बालकी मासिक धर्म की स्वच्छता के आस पास के सामाजिक प्रचलन और मासिक धर्म व सेनेटरी नैपकीन पैड को टैबू बनाए जाने पर गहरी चोट करने में सफल रहे हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो फिल्म में अक्षय कुमार, राधिका आप्टे और सोनम कपूर तीनों ने ही अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है. औरतों से जुड़े अति संजीदा मुद्दे पर आधारित इस फिल्म में अति संजीदा किरदार निभाना अक्षय कुमार के लिए रस्सी पर चलना जैसा कठिन  रहा, पर वह लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहते हैं. राधिका आप्टे  ने साबित कर दिखाया कि वह हर तरह के बाखूबी किरदार निभा सकती हैं. सोनम कपूर के अभिनय में काफी सहजता रही.

फिल्म के संगीतकार अमित त्रिवेदी ने विषय के अनुरूप संगीत पिरोया है. फिल्म के कैमरामैन पी सी श्रीराम ने महेश्वर की खूबसूरती को बहुत बेहतरीन तरीके से कैमरे में कैद किया है. कुछ कमियों के बावजूद ‘‘पैडमैन’’ ऐसी फिल्म है, जो अंततः दर्शकों के मन में बेहतर कल की उम्मीद जगाती है. नारी के मासिक धर्म व सैनेटरी नैपकीन की उपयोगिता पर यह फिल्म जिस तरह से बात करती है, उसके लिए इसे देखा जाना चाहिए.

दो घंटे 19 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘पैडमैन’’ का निर्माण ट्विंकल खन्ना, क्रियाज इंटरटेनमेंट, एसपीई फिल्मस इंडिया, केप आफ गुड फिल्मस और होप प्रोडक्शन ने मिलकर किया है. फिल्म की कहानी ट्विंकल खन्ना की किताब ‘‘द लीजेंड आफ लक्ष्मीप्रसाद’’ पर आधारित और तमिलनाड़ु के असली पैडमैन कहे जाने वाले अरूणाचलम मुरूगनाथन के जीवन की कहानी से प्रेरित है. फिल्म के लेखक व निर्देशक आर बालकी, कैमरामैन पी सी श्रीराम, संगीतकार अमित त्रिवेदी, सूत्रधार अमिताभ बच्चन तथा फिल्म के कलकार हैं-अक्षय कुमार, राधिका आप्टे, सोनम कपूर, सुधीर पांडे, माया अलघ, अमिताभ बच्चन व अन्य.

स्वीकृति : भाग 2

कमरा ठीक कर, किताबों और फाइलों के ढेर में से उस ने कुछ फाइलें निकालीं और उन में डूब गई. कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ, जैसे कमरे में कोई आया है. बिना पीछे मुड़े ही वह बोल पड़ी, ‘‘हां, क्या बात है?’’

परंतु कोई उत्तर न पा, पीछे देखा कि प्रार्थना और प्रांजल खड़े हैं.

प्रांजल धीरे से बोला, ‘‘प्रार्थना को गाना सुनना है.’’

डिंपल ने एक ठंडी सांस भर कमरे के कोने में रखे स्टीरियो को देखा, फिर अपनी फाइलों को. उसे एक हफ्ते बाद ही नए प्रोजैक्ट की फाइलें तैयार कर के देनी थीं. सोचतेसोचते उस के मुंह से शब्द फिसला, ‘‘नहीं,’’ फिर स्वयं को संभाल उन्हें समझाते हुए बोली, ‘‘अभी मुझे बहुत काम है, कुछ देर बाद सुन लेना.’’

दोनों बच्चे एकदूसरे का मुंह देखने लगे. वे सोचने लगे कि मां तो कभी मना नहीं करती थीं. किंतु यह बात वे कह न पाए और चुपचाप अपने कमरे में चले गए.

डिंपल फिर फाइल में डूब गई. बारबार पढ़ने पर भी जैसे मस्तिष्क में कुछ घुस ही न रहा था. पैन पटक कर डिंपल खड़ी हो गई. बच्चों के कमरे में झांका, वहां एकदम शांति थी. प्रार्थना तकिया गोद में लिए, मुंह में अंगूठा दबाए बैठी थी. प्रांजल अपने सूटकेस में खिलौने जमाने में व्यस्त था.

‘‘यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अब हम यहां नहीं रहेंगे,’’ प्रांजल ने फैसला सुना दिया.

उस रात डिंपल दुखी स्वर में पति से बोली, ‘‘मैं और क्या कर सकती हूं, आशीष? ये मुझे गहरी आंखों से टुकुरटुकुर देखा करते हैं. मुझ से वह दृष्टि सहन नहीं होती. मैं उन्हें प्रसन्न देखना चाहती हूं, उन्हें समझाया कि अब यही उन का घर है, पर वे नहीं मानते,’’ डिंपल का सारा गुबार आंखों से फूट कर बह गया.

प्रांजल और प्रार्थना के मौन ने उसे हिला दिया था, जिसे वह स्वयं की अस्वीकृति समझ रही थी. उस ने उन्हें अपनाना तो चाहा लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया.

‘‘मैं जानता हूं, यह कठिन कार्य है, पर असंभव तो नहीं. मांजी ने भी उन्हें समझाया था कि उन की मां बहुत दूर चली गई है, अब वापस नहीं आएगी और पिता भी बहुत बीमार हैं. पर उन का नन्हा मस्तिष्क यह बात स्वीकार नहीं पाता. लेकिन धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘शायद उन्हें यहां नहीं लाना चाहिए था. कहीं अच्छाई के बदले कुछ बुरा न हो जाए.’’

‘‘नहीं, डिंपी, हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए. इस समय उन्हें भरपूर लाड़प्यार और ध्यान की आवश्यकता है. हम जितना स्नेह उन्हें देंगे, वे उतने ही समीप आएंगे. वे प्यार दें या न दें, हमें उन्हें प्यार देते रहना होगा.’’

‘‘मेरे लिए शायद ऐसा कर पाना कठिन होगा. मैं उन्हें अपनाना चाहती हूं, पर फिर भी अजीब सा एहसास, अजीब सी दूरी महसूस करती हूं. इन बच्चों के कारण मैं अपना औफिस का कार्य भी नहीं कर पाती जब वे पास होते हैं तब भी और जब दूर होते हैं तब भी. मेरा मन बड़ी दुविधा में फंसा है.’’

‘‘मैं ने तो इतना सोचा ही नहीं. अगर तुम को इतनी परेशानी है तो कहीं होस्टल की सोचूंगा. बच्चे अभी तुम से घुलेमिले भी नहीं हैं,’’ आशीष ने डिंपल को आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, मैं उन्हें वापस नहीं भेजना चाहती, स्वीकारना चाहती हूं, सच. मेरी इच्छा है कि वे हमारे बन जाएं, हमें उन्हें जीतना होगा, आशू, मैं फिर प्रयत्न करूंगी.’’

अगले दिन सुबह से ही डिंपल ने गाने लगा दिए थे. रसोई में काम करते हुए बच्चों को भी आवाज दी, ‘‘मेरी थोड़ी मदद करोगे, बच्चो?’’

प्रांजल उत्साह से भर मामी को सामान उठाउठा कर देने लगा, किंतु प्रार्थना, बस, जमीन पर बैठी चम्मच मारती रही. उस के भोले और उदास चेहरे पर कोई परिवर्तन नहीं था आंखों के नीचे कालापन छाया था जैसे रातभर सोई न हो. पर डिंपल ने जब भी उन के कमरे में झांका था, वे सोऐ ही नजर आए थे.

‘‘अच्छा, तो प्रार्थना, तुम यह अंडा फेंटो, तब तक प्रांजल ब्रैड के कोने काटेगा और फिर हम बनाएंगे फ्रैंच टोस्ट,’’ डिंपल ने कनखियों से उसे देखा. पहली बार प्रार्थना के चेहरे पर बिजली सी चमकी थी. दोनों तत्परता से अपनेअपने काम में लग गए थे.

उस रात जब डिंपल उन्हें कमरे में देखने गई तो भाईबहन शांत चेहरे लिए एकदूसरे से लिपटे सो रहे थे. एक मिनट चुपचाप उन्हें निहार, वह दबेपांव अपने कमरे में लौट आई थी.

अगला दिन वाकई बहुत अच्छा बीता. दोनों बच्चों को डिंपल ने एकसाथ नहलाया. बाथटब में वे पानी से खूब खेले. फिर सब ने साथ ही नाश्ता किया. खरीदारी के लिए वह उन्हें बाजार साथ ले गई और फिर उन की पसंद से नूडल्स का पैकेट ले कर आई. हालांकि डिंपल को नूडल्स कतई पसंद न थे लेकिन उस दोपहर उस ने नूडल्स ही बनाए.

आशीष टूर पर गया हुआ था. बच्चों को बिस्तर पर सुलाने से पूर्व वह उन्हें गले लगा, प्यार करना चाहती थी, पर सोचने लगी, ‘मैं ऐसा क्यों नहीं कर पाती? कौन है जो मुझे पीछे धकेलता है? मैं उन्हें प्यार करूंगी, जरूर करूंगी,’ और जल्दी से एक झटके में दोनों के गालों पर प्यार कर बिस्तर पर लिटा आई.

अपने कमरे में आ कर बिस्तर देख डिंपल का मन किया कि अब चुपचाप सो जाए, पर अभी तो फाइल पूरी करनी थी. मुश्किल से खड़ी हो, पैरों को घसीटती हुई, मेज तक पहुंच वह फाइल के पन्नों में उलझ गई.

बाहर वातावरण एकदम शांत था, सिर्फ चौकीदार की सीटी और उस के डंडे की ठकठक गूंज रही थी. डिंपल ने सोचा, कौफी पी जाए. लेकिन जैसे ही मुड़ी तो देखा कि दरवाजे पर एक छोटी सी काया खड़ी है.

‘‘अरे, प्रार्थना तुम? क्या बात है बेटे, सोई नहीं?’’ डिंपल ने पैन मेज पर रखते हुए पूछा.

पर प्रार्थना मौन उसे देखती रही. उस की आंखों में कुछ ऐसा था कि डिंपल स्वयं को रोक न सकी और घुटनों के बल जमीन पर बैठ प्रार्थना को गले से लिपटा लिया. बच्ची ने भी स्वयं को उस की गोद में गिरा दिया और फूटफूट कर रोने लगी. डिंपल वहीं बैठ गई और प्रार्थना को सीने से लगा, प्यार करने लगी.

काफी देर तक डिंपल प्रार्थना को यों ही सीने से लगाए बैठी रही और उस के बालों में हाथ फेरती रही. प्रार्थना ने उस के कंधे से सिर लगा दिया, ‘‘क्या सचमुच मां अब नहीं आएंगी?’’

अब डिंपल की बारी थी. अत्यंत कठिनाई से अपने आंसू रोक भारी आवाज में बोली, ‘‘नहीं, बेटा, अब वे कभी नहीं आएंगी. तभी तो हम लोगों को तुम दोनों की देखभाल करने के लिए कहा गया है.

‘‘चलो, अब ऐसा करते हैं कि कुछ खाते हैं. मुझे तो भई भूख लग आई है और तुम्हें भी लग रही होगी. चलो, नूडल्स बना लें. हां, एक बात और, यह मजेदार बात हम किसी को बताएंगे नहीं, मामा को भी नहीं,’’ प्रार्थना के सिर पर हाथ फेरते हुए डिंपल बोली.

‘‘मामी, प्रांजल को भी नहीं बताना,’’ प्रार्थना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ठीक है, प्रांजल को भी नहीं. तुम और हम जाग रहे हैं, तो हम ही खाएंगे मजेदार नूडल्स,’’ डिंपल के उत्तर ने प्रार्थना को संतुष्ट कर दिया.

डिंपल नूडल्स खाती प्रार्थना के चेहरे को निहारे जा रही थी. अब उसे स्वीकृति मिल गई थी. उस ने इन नन्हे दिलों पर विजय पा ली थी. इतने दिनों उपरांत प्रार्थना ने उस का प्यार स्वीकार कर उस के नारीत्व को शांति दे दी थी. अब न डिंपल को थकान महसूस हो रही थी और न नींद ही आ रही थी.

अचानक उस का ध्यान अपनी फाइलों की ओर गया कि अगर ये अधूरी रहीं तो उस के स्वप्न भी…परंतु डिंपल ने एक ही झटके से इस विचार को अपने दिमाग से बाहर निकाल फेंका. उसे बच्ची का लिपटना, रोना तथा प्यारभरा स्पर्श याद हो आया. वह सोचने लगी, ‘हर वस्तु का अपना स्थान होता है, अपनी आवश्यकता होती है. इस समय फाइलें इतनी आवश्यक नहीं हैं, वे अपनी बारी की प्रतीक्षा कर सकती हैं, पर बच्चे…’

डिंपल ने प्रार्थना को प्यारभरी दृष्टि से निहारते देखा तो वह पूछ बैठी, ‘‘अच्छा, यह बताओ, अब कल की रात क्या करेंगे?’’

‘‘मामी, फिर नूडल्स खाएंगे,’’ प्रार्थना ने नींद से बोझिल आंखें झपकाते हुए कहा.

‘‘मामी नहीं बेटे, मां कहो, मां,’’ कहते हुए डिंपल ने उसे गोद में उठा लिया.

विराट ने इस पाकिस्तानी अंपायर को भेजा खास संदेश, वीडियो वायरल

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने पाकिस्तानी अंपायर अलीम डार के लिए एक वीडियो मेसेज भेजा है. उनका यह संदेश सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. दरअसल, विराट कोहली ने यह बधाई संदेश अलीम डार के रेस्टोरेंट खुलने पर भेजा है.

इस वीडियो में देखा जा सकता है कि विराट ने जिम में पसीना बहाते हुए अलीम डार को नया रेस्टोरेंट खोलने पर बधाई दे रहे हैं.

इस वीडियो में विराट कह रहे हैं, ‘हैलो अलीम भाई, मैंने सुना है कि आपने नया रेस्टोरेंट खोला है जिसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत मुबारकबाद देना चाहता हूं. मैं दुआ करता हूं कि जैसे आपने अंपायरिंग की फील्‍ड में इतना नाम कमाया है, वैसे ही आपका रेस्त्रां भी आगे बढ़े और उतना ही नाम कमाए.’

इस वीडियो में कोहली ने कहा, “मैंने यह भी सुना है कि आप इस रेस्टोरेंट के द्वारा बधिर बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहते हैं. इस स्कूल की सारी फंडिंग इस रेस्टोरेंट के द्वारा होगी. मैं आपको बहुत-बहुत मुबारकबाद देना चाहता हूं दोबारा. आशा करता हूं कि आप जो भी अचीव करना चाहते हैं वो जरूर हो. मैं सभी लोगों से बोलूंगा कि एक बार जरूर आपके रोस्टोरेंट जाएं और वहां मौजूद स्वादिष्ट खाने का मजा लें. मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.”

पाकिस्तानी अंपायर अलीम डार सबसे सम्मानित अंपायरों में से एक हैं. बता दें कि अलीम डार ने हाल ही में इच्छा जताई थी कि वो अपने पांचवे वर्ल्ड कप में भी अंपायरिंग करना चाहते हैं.

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अप्रैल 2016 से पहले होम लोन लेने वालों को मिलेगा ये फायदा

अप्रैल 2016 से पहले होम लोन ले चुके लोगों की शिकायत रही है कि ब्याज दरें घटने का फायदा उन्हें नहीं मिल रहा, क्योंकि यह सुविधा नए लोन पर ही लागू होती है. अगर आपकी भी कुछ इसी तरह की शिकायत है तो अब आपको जल्द ही राहत मिलने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि रिजर्व बैंक औफ इंडिया (RBI) ने इसका फैसला कर दिया है. आरबीआई ने बैंकों को लिखा है कि ब्याज दरें कम होने का फायदा पुराने होम लोन ग्राहकों को भी दिया जाए.

रिजर्व बैंक ने बेस रेट को हालिया मार्जिनल कौस्ट औफ लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) से जोड़ने के लिए कहा है, जिससे ग्राहकों को ब्याज दर पर बैंकों की मनमानी से मुक्ति मिल जाएगी. 1 अप्रैल से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक कर दिया जाएगा और दोनों में एक साथ बदलाव होंगे.

क्या है इसका मतलब?

इसका मतलब यह है कि जब बैंक एमसीएलआर में बदलाव करेगा तो उसे कुछ हद तक बेस रेट में भी बदलाव करना होगा. एक साल पहले जनवरी में अधिकतर बैंकों ने एमसीएलआर में 0.80-0.90 पर्सेंट की बड़ी कटौती की थी क्योंकि नोटबंदी के बाद उनके पास कैश काफी बढ़ गया था. हालांकि, उन्होंने तब बेस रेट में कोई बदलाव नहीं किया था.

पहले क्या था सिस्टम?

2010 के बाद से बैंक बेस रेट के आधार पर कर्ज दे रहे थे. यह ब्याज दर के लिए फ्लोर रेट था. लेकिन एमसीएलआर सिस्टम लागू होने के बाद बैंकों को लोन की मियाद के हिसाब से अलग-अलग ब्याज दर पर कर्ज देने का विकल्प दिया गया. एमसीएलआर रेट में तय समय के अंदर बदलाव नहीं होता है. आरबीआई ने एमसीएलआर सिस्टम इसलिए लागू किया था क्योंकि उसके मुताबिक बैंक पौलिसी रेट में बदलाव का पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं दे रहे थे.

शिकायतें मिलीं तो RBI ने दिया निर्देश

अप्रैल 2016 से पहले होम लोन्स बेस रेट आधारित रहे थे जिसका एकतरफा निर्धारण बैंक किया करते हैं. जब शिकायतें आने लगीं कि बेस रेट में ब्याज दरें घटने का फायदा नहीं दिखता तो आरबीआई ने फौर्मुले पर आधारित मार्जिनल कौस्ट औफ लेंडिंग रेट (MCLR) लागू किया जो फंड्स की लागत से जुड़ा है. अप्रैल 2016 के बाद से लोन लेनेवालों को एमसीएलआर का फायदा मिल रहा है, लेकिन इसके पहले लोन लेनेवाले बेस रेट के आधार पर ही पेमेंट कर रहे हैं.

MCLR का यह फायदा

बेस रेट खत्म करने के बाद 21 महीनों में वेटेड ऐवरेज लेंडिंग रेट 11.23% से घटकर दिसंबर 2017 में महज 10.26% रह गया. इसका फायदा जिन्हें मिल रहा है, उनमें ज्यादातर वे लोग हैं जिनके लोन पर लागू ब्याज की दर एमसीएलआर से जुड़ी हुई है. ज्यादातर बैंकों ने कौस्ट औफ फंड्स (लोन देने की कुल लागत) के मुताबिक ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है, लेकिन एसबीआई ने पिछले महीने होम लोन पर ब्याज दर 30 बेसिस पौइंट्स घटाकर 8.65% प्रतिशत कर दिया.

कैसे तर्कसंगत हो पाएंगे रेट्स?

बैंक औफ अमेरिका के भारत में कंट्री हेड नाकु नखाटे ने कहा, ‘एमसीएलआर का बेस रेट से समायोजन का सुझाव लोन बंटवारे में सुधार लाने और लेंडिंग रेट्स कम करने में बहुत मददगार साबित होगा.’ इस कदम की घोषणा करते हुए आरबीआई के डेप्युटी गर्वनर विश्वनाथन ने कहा, ‘हम बेस रेट की गणना को एमसीएलआर से जोड़ रहे हैं.’ हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि आरबीआई बेस रेट को एमसीएलआर के अनुरूप तर्कसंगत कैसे बनाएगा. हालांकि, इतना स्पष्ट है कि बेस रेट से जुड़े लोन भविष्य में एमसीएलआर से जुड़ जाएंगे.

NBFCs भी RBI के लोकपाल के दायरे में

अपने पौलिसी स्टेटमेंट में रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे 1 अप्रैल 2018 से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक करें. कर्ज लेनेवालों के लिए एक और फायदे की बात यह है कि अब नौन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों को भी आरबीआई के लोकपाल के अंदर ला दिया गया है. इससे लोन लेनेवालों की शिकायतों का निपटारा बिना किसी खर्च के हो सकेगा. गौरतलब है कि रिजर्व बैंक होम लोन देनेवाली कंपियों को नौन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनीज (NBFCs) के रूप में रजिस्टर करता है.

अब अपने ताजा आदेश में आरबीआई ने सभी बैंकों से कहा है कि पुराने होमलोन के बेस रेट की गणना भी एमसीएलआर से करें. यह काम 1 अप्रैल 2018 से होगा.

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व्हाट्सऐप लाया ग्रुप वीडियो कौलिंग फीचर, ऐसे करें डाउनलोड

वैसे तो व्हाट्सऐप को दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मैसेजिंग ऐप कहा जाता है. लेकिन अब लगातार जिस तरह से इसमें नए नए फीचर जोड़े जा रहे हैं उसे देखते हुए इसे इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप कहना गलत होगा, क्योंकि इसमें जोड़े जाने वाले नए फीचर्स इसे इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप की छवि से अलग कर रहे हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक व्हाट्सऐप में एक बार फिर से एक नया फीचर जुड़ने वाला है जिसका इस्तेमाल ग्रुप वीडियो कौलिंग के लिए किया जा सकता है. मतलब कि इस नये फीचर के द्वारा एक साथ कई लोगों के साथ कौलिंग की जा सकती है, ठीक वैसे ही जैसे की कौन्फ्रेंसिंग करते हैं. अभी इस फीचर की व्हाट्सऐप के बीटा वर्जन में टेस्टिंग चल रही है. इसे अभी कंपनी ने सभी के लिए उपलब्ध नहीं कराया है. अभी व्हाट्सऐप पर एक बार में एक ही व्यक्ति से बात की जा सकती है. WA बीटा इंफो ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि फिलहाल यह फीचर केवल एंड्रौयड के लिए दिया जाएगा.

इसके अलावा यह भी बताया गया है कि एक बार में तीन लोगों को कौलिंग में जोड़ा जा सकता है यानी एक साथ चार यूजर्स वीडियो कौलिंग कर सकते हैं. फिलहाल व्हाट्सएप की तरफ से ये नहीं बताया गया है की ग्रुप वीडियो कौलिंग का फीचर कब आएगा. लेकिन अगर आपल इसे अभी ही प्रयोग करना चाहते हैं तो एपीके मिरर वेबसाइट से इसका लेटेस्ट बीटा वर्जन डाउनलोड कर सकते हैं. आपको बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में व्हाट्सऐप के बीटा वर्जन 2.17.70 में वौयस कौल के फीचर को देखा गया था.

मालूम हो कि व्हाट्सऐप ने हाल ही में भारत में अपने व्हाट्सऐप बिजनेस (Whatsapp Business app) को लौन्च किया है. ऐप को सबसे पहले इंडोनेशिया, इटली, मैक्सिको, ब्रिटेन और अमेरिका में लौन्च किया गया था. खास बात है कि ऐप को पब्लिक रिलीज से पहले, शुरुआत में भारत और ब्राजील में टेस्ट किया गया था.

व्हाट्सऐप बिजनेस ऐप को गूगल प्ले स्टोर से फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है. यह ऐप 4.0.3 और इससे ऊपर के सभी एंड्रौयड वर्जन में काम करेगा. इसके लिए कंपनी ने BookMyShow, Netflix और MakeMyTrip के साथ साझेदारी में शुरुआत की है. व्हाट्सऐप का यह नया ऐप बिजनेस के लिए एक सिंपल टूल के साथ आता है, इससे यूजर अपने क्लाइंट और कस्टमर्स के साथ आसान तरीके से बात कर सकते हैं.

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केवल भारत में बिकने के लिये बनी है ये कार, जानें फीचर

कार बनाने वाली साउथ कोरियन कंपनी KIA मोटर्स ने अपनी कौन्सेप्ट SUV (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल) SP कौन्सेप्ट को भारत में Auto Expo 2018 में पेश कर दिया है.

इस एसयूवी को भारत के लिए ही बनाया गया है. इसे भारतीय मार्केट को देखते हुए ही डेवलप और डिजाइन किया गया है. यह कीया मोटर्स की पहली गाड़ी होगी जिसे जून 2019 के बाद भारत में सेल किया जाएगा.

कंपनी के सीईओ का कहना है कि यह कंपनी की पहली कार होगी जो भारत में सेल की जाएगी. इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस कार को कंपनी के भारत के ही प्लांट में बनाया जाएगा.

कंपनी ने करीब 64 अरब रुपए इनवेस्ट करके आंध्र प्रदेश में अपना प्लांट लगाया है. इस प्लांट की क्षमता 3 लाख यूनिट सालाना की है.

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साथ ही कहा कि 2019 से लेकर 2021 तक कंपनी भारत के लिए कई और नई कारें भारत में लौन्च करने की प्लानिंग कर रही है. इसमें हैचबैक से लेकर SUV तक सब होंगी. इसके अलावा कंपनी केवल भारत के लिए ही कौम्पेक्ट इलेक्ट्रिक व्हीकल भी पेश करेगी. हालांकि इसके बारे में उन्होंने कोई ज्यादा जानकारी नहीं दी. Kia मोटर्स भारत में Auto Expo 2018 में पूरी दुनिया में बिकने वाली अपनी 16 कारों को लेकर आई है. कीया SP कौनसेप्ट इंडियन हेरिटेज से प्रेरित है और इसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.

KIA SP कौन्सेप्ट SUV में 1.5 लीटर का डीजल इंजन मिलेगा. इसके अलावा इसमें 1.6 लीटर के पेट्रोल इंजन का भी औप्शन मिलेगा. वहीं गियर बौक्स की बात करें तो इसके मैनुअल और औटोमैटिक में 6 स्पीड वाला गियर बौक्स दिया गया है. इसके अलावा हुंडई i10 जैसी KIA पिसेन्टो को भी पेश किया जाएगा. यह शहर के लिए एक पावरफुल कार होगी.

आपको बता दें कि ग्रेटर नोएडा के एक्सपो मार्ट में Auto Expo 2018 चल रहा है. औटो में दुनिया भर से कार बनाने वाली कंपनियां आई हुई हैं. यह औटो एक्सपो का 14 वां शो है. यह आम पब्लिक के लिए 9 फरवरी से शुरू हो जाएगा. ऐसा पहली बार हो रहा है जब औटो एक्सपो में 50 से ज्यादा इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पेश किए जाएंगे. इस बार औटो एक्सपो में देसी कंपनी टाटा ने भी अपनी 3 इलेक्ट्रिक कारें पेश की हैं. इसके अलावा महिंद्रा ने भी अपनी एक एसयूवी और एक कन्वर्टेबल SUV पेश कर दी है. इसके अलावा 2 इलेक्ट्रिक व्हीकल भी पेश किए हैं.

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ओवेरियन कैंसर, बनें जागरुक और रहें सावधान

भारत में हर वर्ष करीब 1,60,00 महिलाओं में स्त्री रोग संबंधी कैंसर का पता चलता है. सब से व्यापक सर्वाइकल कैंसर है लेकिन इस के अन्य प्रकार भी हैं-अंडाशय, गर्भाशय, योनी या जननांग संबंधी. कैंसर की वजह से ज्यादातर मौतें गैरजरूरी रूप से लक्षणों व जांच की जरूरत के बारे में जागरूकता की कमी के चलते होती हैं. ऐसे में इन कैंसरों के बारे में अपनी समझ को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है.

क्या है कैंसर

कैंसर एक भयावह शब्द है लेकिन इसे अच्छी तरह समझा नहीं जाता है. कैंसर शब्द का प्रयोग बीमारियों के एक संग्रह को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जिस में एक अनोखी बात होती है-कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि जिस में शरीर के अन्य हिस्से तक फैलने की क्षमता होती है. प्रसूति संबंधी कैंसर महिलाओं के जननांगों से फैलता है. जब कैंसर की शुरुआत अंडाशय से होती है तो इसे अंडाशय के कैंसर के तौर पर जाना जाता है.

अंडाशय का कैंसर

दुनियाभर में महिलाओं को होने वाले कैंसर में 7वां सब से सामान्य प्रकार का कैंसर अंडाशय का कैंसर है. पिछले 2 दशकों के दौरान अंडाशय के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और भारतीय महिलाओं को होने वाला यह तीसरा सब से सामान्य प्रकार का कैंसर बन गया है.

अंडाशय का कैंसर मुख्यरूप से 2 प्रकार का होता है. एपिथेलियल अंडाशय कैंसर अंडाशय की सतह से पैदा होता है और जर्म सैल ट्यूमर अंडाशय के जर्म सैल से निकलते हैं. 85-90 फीसदी कैंसर एपिथेलियल अंडाशय कैंसर होता है और आमतौर पर 50 वर्ष व उस से अधिक उम्र की महिलाओं में पाया जाता है. जबकि जर्म सैल ट्यूमर युवतियों और युवा महिलाओं में पाया जाता है.

अंडाशय के कैंसर के फैलने का एक विशेष तरीका होता है जहां कैंसर कोशिकाएं खुद को उदर गुहा के माध्यम से स्थापित करती हैं और फेफड़े व लिवर जैसे दूर के अंगों तक फैल जाती हैं. अंडाशय निकालने के बावजूद अंडाशय का कैंसर होना संभव है, जिसे प्राइमरी पेरिटोनियल कैंसर कहते हैं.

क्या आप को पता है

–       प्रसूति रोगों से संबंधित कैंसर में अंडाशय का कैंसर मृत्यु का सब से अहम कारक है और महिलाओं में कैंसर की वजह से होने वाली मौतों का 5वां सब से प्रमुख कारण है.

–       अंडाशय कैंसर के सिर्फ 15 फीसदी मामलों का पता शुरुआती दौर में, उपचारयोग्य स्तर पर चलता है जबकि करीब 85 फीसदी महिलाओं को बीमारी का पता अंतिम चरण में चलता है.

–       पीएपी परीक्षण में सिर्फ सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है और इस में अंडाशय का कैंसर शामिल नहीं है.

–       यह पुष्ट हो चुका है कि इन मरीजों को बचाव का अधिकतम लाभ तब मिल सकता है जब उन की देखभाल एक विशेषज्ञ स्त्री प्रसूति रोग विशेषज्ञ द्वारा की जा रही हो.

जोखिम के कारण

–       उम्र के साथ अंडाशय के कैंसर

का जोखिम बढ़ता जाता है और रजोनिवृत्ति के समय विशेषरूप से बढ़ जाता है.

–       अंडाशय कैंसर, कोलोन कैंसर, पेट के कैंसर, यूटरिन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, प्रीमेनोपोजल ब्रैस्ट कैंसर का पारिवारिक इतिहास या प्रीमेनोपोजल ब्रैस्ट कैंसर का व्यक्तिगत इतिहास महिलाओं में अंडाशय के कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है.

–       खुद में या परिवार के किसी सदस्य में बीआरसीए जीन म्युटेशन होना.

–       प्रजनन क्षमता में कमी और बच्चे न पैदा करना जोखिम के कारण हैं.

जोखिम कम करने वाले कारक

–       गर्भधारण करना.

–       ओरल कौंट्रासैप्टिव पिल्स 5 साल तक लेने से जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है.

–       स्तनपान.

–       फैलोपियन ट्यूब को हटाना या बांध देना यानी महिला नसबंदी.

कैसे पता चलेगा

दरअसल, कैंसर के शुरुआती चरण में अंडाशय के हिस्से के सर्जिकल एक्सिजन के बाद हिस्टोपैथोलौजी से अंडाशय के कैंसर की पुष्टि होती है. आगे के चरणों में उपचार से पहले अंडाशय कैंसर कोशिकाओं या रोगग्रस्त पेरिटोनियल/ओमैंटल बायोप्सी के लिए पेट में फ्लूइड एससाइटिक फ्लूइड का साइटोलौजिकल परीक्षण कर किया जाता है.

शुरुआती दौर में पता लगाना और अधिकतम सर्जिकल उपचार चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अधिकतर महिलाओं में शुरुआती स्तर में लक्षणों का पता नहीं चल पाता है. आमतौर पर शुरुआती स्तर पर बीमारी का पता किसी अन्य कारणवश किए गए रेडियोलौजिकल जांच या क्लिनिकल परीक्षण या नियमित गाइनोलौजिकल हैल्थ चैकअप के कारण पता चलता है.

क्लिनिकल परीक्षण, पेट का अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन व एमआरआई बीमारी के फैलने का पता लगाने व उपचार की प्रक्रिया को परिभाषित करने में मदद करता है. रक्त में ट्यूमर मार्कर-सीए125 भी जानकारी बढ़ाता है.

कैसे होता है उपचार

सर्वश्रेष्ठ परिणामों के लिए अंडाशय कैंसर का उपचार मौजूदा मानक दिशानिर्देशों के आधार पर तय किया जाता है. आमतौर पर सर्जरी में विशेषीकृत सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल होती हैं.

इन लक्षणों के बारे में सलाह लें

–       सूजन.

–       श्रोणि या पेटदर्द.

–       पेट का फैलना.

–       खाने में परेशानी महसूस करना.

–       पेशाब संबंधी लक्षण- तात्कालिकता या बारबार महसूस होना.

जिन महिलाओं को रोज या एक सप्ताह से अधिक ऐसे लक्षण महसूस हों उन्हें अंडाशय में समस्या होने के संभावित कारण मानते हुए अपने डाक्टर से संपर्क करना चाहिए.

शुरुआती स्तर का अंडाशय कैंसर

शुरुआती स्तर की बीमारी के उपचार का मुख्य आधार सर्जरी है. सर्जरी का मुख्य उद्देश्य ट्यूमर को निकालना और बीमारी के स्तर को बढ़ने से रोकना है. इस से कीमोथेरैपी करने या न करने के बारे में फैसला करने में मदद मिलती है. चुनिंदा मामलों में फर्टिलिटी स्पेरिंग सर्जरी भी की जा सकती है. इमेजिंग में परिभाषित किए जाने के आधार पर संदेहास्पद अंडाशय ट्यूमर या अंडाशय के जटिल हिस्सों के इंटराऔपरेटिव परीक्षण के लिए फ्रोजेन सैक्शन मूल्यांकन की जरूरत होती है. इस सुविधा की अनुपलब्धता में इन हिस्सों की जांच हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट के आधार पर की जाती है. इस के बाद ऐसे मरीजों को सर्वश्रेष्ठ परिणामों के लिए उपचार पूरा करने के लिहाज से दूसरी सर्जरी की जरूरत होती है.

अंतिम समय में अंडाशय का कैंसर

अंतिम चरण में पहुंच चुके अंडाशय कैंसर की रोकथाम में सर्जरी और कीमोथेरैपी सब से महत्त्वपूर्ण तत्व हैं. मरीजों को सर्जरी के पहले और बाद में कीमोथेरैपी दी जाती है.

दुनियाभर में इस बात की सलाह दी जाती है कि बचाव और जीवन की गुणवत्ता के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ परिणाम हासिल करने के लिए संदेहास्पद और वास्तविक मामलों में सर्जरी एक अनुभवी स्त्री प्रसूति रोग विशेषज्ञ द्वारा एक विशेषीकृत केंद्र पर ही करानी चाहिए.

अंडाशय कैंसर के पूर्वानुमान क्या हैं : पूर्वानुमान कैंसर के प्रकार और रोग का पता चलने का समय बीमारी के स्तर पर निर्भर है. शुरुआती स्तर के कैंसर के लिए 5 वर्ष तक बचना उत्साहवर्धक है, करीब 90 फीसदी. अंतिम चरणों में बचने की दर काफी कम 17-39 फीसदी के बीच है.

(लेखिका फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुड़गांव में डायरैक्टर व गाइनीऔंकोलौजी हैं.)

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