कोलोरैक्टल कैंसर (सीआरसी) बड़ी आंत का कैंसर होता है. यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट का एक अलग हिस्सा होता है. बड़ी आंत की लगभग सभी कैंसर कोशिकाओं के छोटे गुच्छे या समूह के तौर पर बनने शुरू होते हैं, जिन्हें एडेनोमेटस पौलिप्स कहा जाता है. हालांकि, इन पौलिप्स को कैंसर में बदलने में काफी साल लग जाते हैं.
सीआरसी दुनियाभर में महिलाओं में होने वाला तीसरा और पुरुषों में चौथा सब से आम कैंसर है. हालांकि, दुनियाभर में भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर इस में अंतर देखा जाता है. आधे से अधिक सीआरसी के मामले विकसित देशों में देखे गए हैं, लेकिन स्वास्थ्य संसाधनों के अभाव की वजह से सीआरसी से होने वाली सर्वाधिक मौतें ज्यादातर अल्पविकसित देशों में होती हैं. भारत में ऐसे कैंसर के मामले समृद्ध पश्चिमी देशों की तुलना में करीब 7 से 8 गुना कम होते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारत में भी सीआरसी के मामले बढ़ रहे हैं.
लक्षण व संकेत
इस कैंसर के अभी तक कोई विशिष्ट लक्षण व संकेत नहीं मिले हैं. कुछ ऐसे लक्षण हैं जो इस बीमारी के संदेह को बढ़ाते हैं, जैसे कि मल में रक्त या आंव का आना, मलत्याग की आदतों में बदलाव (मलत्याग में कठिनाई, दस्त या कब्ज), लगातार पेट से संबंधित परेशानियां, जैसे दर्द, ऐंठन और अप्रत्याशित वजन का घटना, एनीमिया, थकान, आंत का अवरुद्ध होना, खासतौर पर वृद्धावस्था में.
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कारण
अधिकांश मामलों में यह स्पष्ट नहीं होता कि कोलोनिक कैंसर के क्या कारण हैं. क्रोलोन कैंसर वैसी स्थिति में होता है जब बड़ी आंत की लाइनिंग कोशिकाओं में आनुवंशिक ब्लूप्रिंट (डीएनए) में परिवर्तन होता है. आनुवंशिक परिवर्तन नए सिरे (अधिकांश मामलों में) से उत्पन्न हो सकते हैं. यह जन्मजात और परिवार से आनुवंशिक तौर पर भी हो सकता है. ये जन्मजात जीन म्यूटेशंस कैंसर का अपरिहार्य कारण नहीं बनते हैं लेकिन कैंसर के खतरे को काफी बढ़ा देते हैं.
जोखिम बढ़ाने वाले जन्मजात कैंसर सिंड्रोम के आम रूप हैं : एचएनपीसीसी (वंशानुगत गैर पौलीपोसिस कोलोरैक्टल कैंसर सिंड्रोम) एफएपी (फैमिलिया एडेमोनेटस पौलीपोसिस). आहार में कम फाइबर, ज्यादा रैड मीट व कैलोरी के सेवन, धूम्रपान, आरामतलब जीवनशैली और वजन का बढ़ना आमतौर पर कोलोनिक कैंसर के प्रमुख कारण होते हैं.
अन्य कारक जो कोलोनिक कैंसर की आशंका को बढ़ाते हैं, उन में 50 वर्ष से अधिक आयु, अफ्रीकी-अमेरिकन नस्ल, कोलोरैक्टल कैंसर या पौलिप्स का व्यक्तिगत इतिहास, आंत में सूजन, जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और आंत से जुड़ी बीमारियां, मधुमेह, मोटापा, कैंसर के बाद कराई गई रैडिएशन थेरैपी आदि शामिल हैं.
जांच है जरूरी
अधिकांश सीआरसी पौलिप्स के कई वर्षों में धीरेधीरे कैंसर में तबदील होने की वजह से होते हैं. ऐसे में इस कैंसर को रोकने या जल्द पता लगाने के लिए जांच करना तार्किक है. स्क्रीनिंग या जांच कार्यक्रम में आसान जांच के साथ स्वस्थ व्यक्तियों की बड़ी आबादी शामिल होती है. इस से प्रारंभिक चरण में या कैंसर के पूर्व स्तर पर बीमारी का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से रोग की मृत्युदर कम हो सकती है.
सीआरसी की जांच में व्यापक आबादी के बीच नौन इन्वैसिव स्टूल टैस्ट और इन्वैसिव कोलोनोस्कोपिक टैस्ट्स के साथ संगठित स्क्रीनिंग कार्यक्रम शामिल हैं. स्टूल टैस्ट (मल जांच) की स्क्रीनिंग में रक्त की मात्रा की जांच की जाती है. सामान्य जांच हैं-गुआयाक फीकल औकल्ट ब्लड टैस्ट (जीएफओबीटी) और फीकल इम्यूनोकैमिकल टैस्ट (एफआईटी).
वर्तमान सुझावों के आधार पर सीआरसी जांच में फीकल औकल्ट ब्लड का पता लगाने के लिए एफआईटी को पहला विकल्प बताया गया है और इस के लिए खानेपीने की पाबंदी की जरूरत नहीं होती है तथा यह ज्यादा संवेदनशील परीक्षण है. अन्य नौनइन्वैसिव तकनीक भी उपलब्ध हैं, जैसे कि फीकल डीएनए एनालिसिस. ये परीक्षण एडेनोमा और कोलोरैक्टल कैंसर कोशिकाओं में मौलीक्यूलर परिवर्तन की पहचान करते हैं. हालांकि, ज्यादा लागत होने की वजह से इन परीक्षणों का उपयोग कम किया जाता है.
फीकल परीक्षण के बाद सिगमोएडोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी जैसी इन्वैसिव जांच से पौलिप्स और कैंसर का पता लगाने के साथ ही साथ तुलनात्मक रूप से शुरुआती अवस्था में उसे हटा सकते हैं. इस के स्पष्ट प्रमाण हैं कि दीर्घावधि में फौलोअप जांच के दौरान कोलोनोस्कोपी कोलोनिक कैंसर से होने वाली मृत्युदर में कमी आई है. लेकिन इस के सुखद अनुभव नहीं होने की वजह से आम आबादी फीकल टैस्ट्स को तरजीह देती है और फीकल टैस्ट के पौजिटिव आने के बाद ही कोलोनोस्कोपी कराई जाती है.
हो सकता है नियंत्रण
कैंसर की रोकथाम का कोई निश्चित तरीका नहीं है लेकिन कुछ उपाय हैं जिन्हें अपना कर कैंसर के जोखिम को कम किया जा सकता है.
– वजन को कम रखें और खासतौर पर कमर के चारों ओर वजन बढ़ाने से बचें.
– तेज चलने और गहन व्यायाम द्वारा शारीरिक गतिविधियों को बनाए रखें.
– फलों और सब्जियों का ज्यादा मात्रा में सेवन करें, लेकिन ज्यादा कैलोरी, रैडमीट या प्रौसेस्ड मीट के सेवन से परहेज करें.
– अल्कोहल और सिगरेट का सेवन कतई न करें.
– हालांकि यह वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध नहीं है लेकिन फिर भी कैल्शियम, मैग्नीशियम व विटामिन डी निवारक हो सकते हैं.
– अध्ययनों में पाया गया है कि जो लोग एस्प्रिन और अन्य इन्फ्लेमेटरी दवाइयों, जैसे आईब्रूफेन और नैप्रोक्सिन का सेवन करते हैं, उन्हें आंत का कैंसर या पौलिप्स होने का खतरा कम रहता है.
(लेखक फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग, दिल्ली में डायरैक्टर जीआई एवं औंको सर्जन हैं.)
कैंसर एक गैरसंक्रामक रोग है जो भारतीयों को बड़े पैमाने पर अपनी गिरफ्त में ले रहा है. आंकड़े बताते हैं कि औसतन 1,300 से अधिक भारतीय प्रतिदिन इस खतरनाक बीमारी से मर जाते हैं.
एक अनुमान है कि वर्ष 2020 तक इस बीमारी के मामले 25 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगे. जितनी भी किस्म के कैंसर हैं, उन में ब्लैडर कैंसर दुनियाभर में हर साल लगभग 3,30,000 लोगों को प्रभावित करता है. यद्यपि ब्लैडर यानी मूत्राशय कैंसर के शिकार 50 प्रतिशत लोग धूम्रपान करने के कारण इस अवस्था में पहुंचते हैं, परंतु धूम्रपान न करने वालों के लिए भी जोखिम बराबर है. यह कैंसर महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है क्योंकि वे कैंसर पैदा करने वाले रसायनों के अधिक संपर्क में रहते हैं और आंतरिक रूप से भी वे अधिक संवेदनशील होते हैं.
क्या है मूत्राशय का कैंसर
मूत्राशय का कैंसर या ब्लैडर कैंसर तब होता है जब मूत्राशय में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं. कैंसर कोशिकाओं के अधिक होने पर ट्यूमर बन सकता है जो शरीर के अन्य क्षेत्रों में फैल सकता है. यह मूत्राशय की अंदरूनी परत से शुरू होता है और आखिरकार गहरी परतों पर आक्रमण कर सकता है. यह कई बार लंबे समय तक म्यूकोसा तक सीमित रह सकता है. यह कैंसर आकार में छोटा हो सकता है या नोड्यूल के रूप में दिखाई दे सकता है.
मूत्राशय कैंसर के प्रकार
मूत्राशय के कैंसर के कुछ सामान्य प्रकार अग्रलिखित हैं-
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ट्रांसीजनल सैल कार्सिनोमा : यह मूत्राशय की अंदरूनी कोशिकाओं में होता है. ये कोशिकाएं ब्लैडर भरे होने पर फैलती हैं और उस के खाली होने पर सिकुड़ती हैं. चूंकि ये कोशिकाएं मूत्रमार्ग और उस के अंदर भी फैलती हैं, इसलिए ये वहां भी ट्यूमर बना सकती हैं.
ब्लैडर का अडिनोकार्सिनोमा : सभी ब्लैडर कैंसर में इस तरह का कैंसर लगभग 1 से 2 प्रतिशत तक होता है. इस तरह के कैंसर वाले लोग लंबे समय तक सूजन व जलन से परेशान रहते हैं.
स्क्वैमस सैल कार्सिनोमा : इस तरह का ब्लैडर कैंसर भी लगभग 1 से 2 प्रतिशत ही होता है. इस प्रकार के लोग लंबे समय तक संक्रमण, सूजन, और जलन का अनुभव करते हैं.
मूत्राशय कैंसर के कुछ अन्य
दुर्लभ रूप हैं- छोटे सैल कैंसर (न्यूरोएंड्रोक्राइन कोशिकाओं में उत्पन्न), फियोक्रोमोसाइटोमा (दुर्लभ), और सारकोमा (मांसपेशियों के ऊतक में).
लक्षण और जोखिम कारक
कुछ लक्षण हैं जो थकान, वजन घटने, और हड्डियां कमजोर होने का संकेत दे सकते हैं. हालांकि, निम्न लक्षणों वाले लोग सावधान रहें और जांच करवाएं-मूत्र में रक्त आना, मूत्रत्याग के समय दर्द होना, लगातार मूत्र आना, पेट में दर्द और निचले हिस्से में दर्द होना.
पुरुषों और महिलाओं में ब्लैडर कैंसर का 50 प्रतिशत खतरा तो धूम्रपान के कारण होता है. अन्य जोखिम कारकों में कैंसर पैदा करने वाले रसायन, क्रोनिक ब्लैडर इन्फैक्शन, तरल पदार्थों का कम सेवन, उम्र, अधिक फैट वाले आहार का सेवन, मूत्राशय के कैंसर का पारिवारिक इतिहास, कुछ कीमोथेरैपी दवाओं के साथ पहले कभी उपचार या इलाज के लिए पहले कभी रेडिएशन थेरैपी प्रयोग आदि प्रमुख हैं.
ब्लैडर कैंसर के चरण
मूत्राशय कैंसर के 4 चरण होते हैं-
स्टेज 1 : इस स्तर पर कैंसर मूत्राशय की अंदरूनी परत में होता है, लेकिन मस्कुलर ब्लैडर वौल में अभी उस का आक्रमण नहीं हुआ है.
स्टेज 2 : इस स्तर पर कैंसर मूत्राशय की दीवार पर आक्रमण कर चुका होता है लेकिन अभी भी मूत्राशय तक ही सीमित है.
स्टेज 3 : कैंसर कोशिकाएं मूत्राशय की दीवार के माध्यम से आसपास के ऊतकों तक फैल गई हैं. वे पुरुषों में प्रोस्टेट और महिलाओं में गर्भाशय या योनि तक फैल सकती हैं.
स्टेज 4 : इस स्तर तक, कैंसर कोशिकाएं लिंफ नोड्स और अन्य अंगों तक फैल सकती हैं, जैसे कि फेफड़े, हड्डियों या लिवर तक.
क्या है जांच
एक बार लक्षण स्पष्ट होने के बाद, डाक्टर से परामर्श करना और उचित जांच कराना महत्त्वपूर्ण है. मूत्राशय के कैंसर का निदान विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जा सकता है.
सिस्टोस्कोपी : इस प्रक्रिया में एक बारीक ट्यूब मूत्रमार्ग के माध्यम से डाली जाती है. सिस्टोस्कोप में लैंस और फाइबर औप्टिक प्रकाश से डाक्टर मूत्रमार्ग और मूत्राशय के अंदर देख सकते हैं.
बायोप्सी : सिस्टोस्कोपी के दौरान डाक्टर परीक्षण के लिए एक सैल का नमूना (बायोप्सी) एकत्र करने के लिए मूत्राशय में एक विशेष टूल पास करते हैं. मूत्राशय के कैंसर का इलाज करने के लिए भी इस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है.
मूत्र कोशिका विज्ञान : इस प्रक्रिया में कैंसर कोशिकाओं की जांच के लिए एक माइक्रोस्कोप के नीचे मूत्र का विश्लेषण किया जाता है.
इमेजिंग टैस्ट : ये परीक्षण मूत्रमार्ग की बनावट की जांच करने में सहायता करते हैं.
उपचार और निवारण
मूत्राशय कैंसर के उपचार के विकल्प पर निर्भर करता है कि कैंसर कितना फैल चुका है और क्या व्यक्ति को किसी अन्य तरह की परेशानी भी है. कुछ उपचार विकल्प इस प्रकार हैं-
सर्जरी : इस स्थिति के लिए सब
से सामान्य सर्जरी मूत्राशय ट्यूमर का ट्रांसयूरेथ्रल रिसैक्शन है. हालांकि, यह प्रारंभिक अवस्था में ही संभव है. व्यक्ति सर्जरी के बाद उसी दिन घर वापस जा सकता है.
सिस्टेक्टोमी : इस प्रकार की सर्जरी में मूत्राशय के एक भाग या पूरे ही अंग को निकाल दिया जाता है.
इंट्रोवेसिकल थेरैपी : इसे प्रारंभिक चरण के कैंसर का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है. मूत्राशय में एक तरल दवा के इंजैक्शन के लिए एक कैथेटर का उपयोग किया जाता है.
रेडिएशन थेरैपी : कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए उच्च ऊर्जा वाले रेडिएशन का प्रयोग कर के रेडिएशन थेरैपी की जाती है.
मूत्राशय के कैंसर को रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन जोखिम कम करने के लिए कुछ कदम जरूर उठाए जा सकते हैं. इन में से कुछ इस प्रकार हैं-
धूम्रपान न करें : यह मूत्राशय के कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए सब से प्रभावी कदमों में से एक है.
कैमिकल : हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने से बचें.
पानी अधिक पिएं : खुद को हाइड्रेटेड रखने के लिए खूब पानी पीना चाहिए ताकि मूत्र में केंद्रित किसी भी जहरीले पदार्थ को कम करने में मदद मिले.
खानपान : फलों और सब्जियों का अधिक सेवन करें. इन में एंटीऔक्सिडैंट होते हैं जो कैंसर से लड़ने व जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं.
मूत्राशय के कैंसर पर शोध जारी है और इस रोग को रोकने, इस का पता लगाने, निदान करने और इस का इलाज करने के नए तरीके तलाशे जा रहे हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मूत्राशय के कैंसर या किसी भी अन्य प्रकार के कैंसर वाले लोगों के जीवन में बेहतर गुणवत्ता लाई जा सके और इस रोग से मृत्यु की संभावना को कम किया जा सके.
(लेखक क्लिनिकल एडवाइजरी बोर्ड, हैल्दी के प्रमुख हैं.)
अमेरिका की अश्वेत टीवी आइकन ओपरा विनफ्रे ने हौलीवुड के गोल्डन ग्लोब अवार्ड कार्यक्रम में अपनी 8 मिनट की स्पीच में औरतों के यौनशोषण पर खुली बात कर के ‘मी टू’ आंदोलन को एक नई दिशा दी है. कैरियर की शुरुआत में अभिनेत्रियों को ही नहीं, दूसरे बहुत से क्षेत्रों में भी स्मार्ट, सुंदर युवतियों को अपना शरीर सौंपना पड़ता है ताकि उन की राह में पुरुष रोक न लगाएं. हौलीवुड के प्रसिद्ध, अतिसफल निर्देशकनिर्माता हार्वे विंसटीन का भंडाफोड़ पिछले अक्तूबर में एक अभिनेत्री मीरा सैरविनो ने किया था और उस के बाद लगभग 80 युवतियां कह चुकी हैं ‘मी टू’ यानी मैं भी शिकार रही हूं.
गोल्डन ग्लोब अवार्ड कार्यक्रम के दौरान बहुत सारी अभिनेत्रियां, नायिकाएं व फिल्मों व टीवी से जुड़ी अन्य हस्तियों ने यौनशोषण के खिलाफ विरोध करने के लिए काली पोशाकें पहनी थीं.
सफलता के लिए आदमी को लैंगिक मर्दानगी साबित करने की आवश्यकता नहीं होती तो औरतों को क्यों करनी पड़े, यह सवाल स्वाभाविक है. मर्दों को सैकड़ों औरतों के साथ संबंध बनाने की छूट है पर घर से निकली औरत को पहले ही कदम पर यौनअर्पण के लिए मजबूर कर दिया जाता है.
बहुत से क्षेत्रों में, केवल शो बिजनैस में ही नहीं, औरतों को सफलता पाने के लिए अपने को सभी मर्दों की साझी संपत्ति घोषित करना होता है और यह साजिश है कि पत्नी कुंआरी ही हो, ताकि सफल औरतें पत्नी ही न बनें.
औरतों को उन से यौन संबंध बनाने होते हैं जिन से प्यार ही नहीं होता. नतीजा यह होता है कि इन औरतों की प्रेमग्रंथि को पहले ही मसल दिया जाता है. सैकड़ों युवतियों को कुरबानी देनी होती है. ओपरा विनफ्रे जैसा नाम थोड़ी सी महिलाओं को ही को मिलता है.
क्या गोल्डन ग्लोब अवार्ड फंक्शन में इस का खुला विरोध कुछ बदलाव लाएगा? शायद नहीं. 150-200 वर्षों की तार्किक सोच, शिक्षा, औरतों के नए अवसरों के बावजूद अभी तक समाज पुरुषसत्तात्मक ही बना हुआ है और जिस देश में धर्म जितना हावी है वहां उतना ज्यादा अत्याचार होता है. औरतें जीवनभर गाय की तरह गुलाम बनी रहती हैं, दूध देती हैं, बछड़े पैदा करती हैं और खूंटे पर बंधीबंधी मर जाती हैं.
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कौर्पोरेट गुरु डबल श्री ने फरमाया है कि हिंसक नक्सली इलाकों के सरकारी स्कूल बंद कर वहां निजी स्कूल खोले जाएं क्योंकि इन इलाकों के सरकारी स्कूलों से आतंकी पैदा होते हैं. हवाई सफर करने वाले, एयरकंडीशंड कमरे में बैठ कर दुखी जनता को जीने की राह दिखाने वाले फाइवस्टार संत ने यह कह कर गरीबों की देशभक्ति पर वार किया है. यदि उन की बात पर विश्वास किया जाए तो इन इलाकों के सरकारी स्कूल हर साल आतंकी ही उगल रहे हैं और यदि डबल श्री की राय नहीं मानी गई तो देश का आधा हिस्सा आतंकियों के हाथों में जाने वाला है.
डबल श्री का स्तर रामदेव और आसाराम जैसे बाबाओं से भी ऊंचा है. जहां रामदेव और आसाराम के भक्त कमजोर वर्ग और कमजोर दिमाग के हैं वहीं डबल श्री के भक्त मोटी जेब वाले हैं. दिमाग के बारे में कहा नहीं जा सकता क्योंकि अकसर ये आईआईटी या आईआईएमशुदा होते हैं, जिन्हें जमीन से ऊपर माना जाता है. इन की सनक को देश के शिक्षा जगत का बंटाधार करने को कमर कस कर तैयारी में लगी सरकारें इज्जत देती हैं. आखिरकार इन के अध्यात्म गुरु नेही बिचौलिया बन कर कई बार उन की नाक कटने से बचाई है.
डबल श्री का सरकारी स्कूल बंद करवाने की सनक के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि वे जताना चाहते हों कि सरकारी स्कूलों से सरकार को मिलता क्या है? उलट, अपनी जेब से मास्टरों को वेतन देना पड़ता है. उधर, निजी स्कूल कमाई का सब से फायदेमंद धंधा है. पाठ्यक्रम के बाहर ढेर सारी गैरजरूरी किताबें रखवाने और हर सप्ताह तीसरी कक्षा के बच्चों से प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार करवाने से किताब माफिया और स्टेशनरी माफिया की रोटीरोजी चल रही है. इस बहाने शिक्षाविदों और अफसरों की भी कमाई हो जाती है.
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सरकारी स्कूलों के अध्यापक महज मास्टर होते हैं, गुरु नहीं. सालभर वे या तो जानवर गिनते हैं या फिर गटरें और शौचालय. 10 साल में एक बार वे इंसान भी गिन लेते हैं. मतदाता सूची बनाने के काम में भी ये ही जोत दिए जाते हैं. बारबार होने वाले चुनावों में वे ड्यूटी भी दे आते हैं. बचाखुचा समय शिक्षा में जरा भी दिलचस्पी न लेने वालों को पढ़ाने में लगाते हैं. और पढ़ाना भी ऐसा कि सभी ढक्कन छात्रोंछात्राओं का उत्तीर्ण होना जरूरी है वरना इंक्रीमैंट को लाल झंडी.
अब तो अंगरेज आकाओं की देखादेखी सरकारें भी अध्यापकों को ठेके पर रखने लगी हैं. यानी, सूखा वेतन. भविष्य निधि या ग्रैच्युटी भूल जाओ. पक्की नौकरी की कोई गारंटी नहीं. बेइज्जती न हो, इसलिए इन्हें संविदा शिक्षक कहा जाता है. यानी, सम्मानित हम्माल. ऐसे में बेचारे मास्टर से ही देश का भविष्य संवारने की उम्मीद की जाती है, जो सरासर अनुचित है.
सरकारी स्कूलों के भवनों की हालत तो ऐसी है कि पुरातत्त्व विभाग वाले इन्हें आसानी से धरोहर की श्रेणी में रख लें. पुताई की बात तो जाने ही दीजिए, कई स्कूलों में दरवाजेखिड़कियां तक नहीं हैं. रात को शराबखोरी होती है. नशीली दवाओं और शरीर का व्यापार होता है. फर्श उखड़ा होता है. लड़कियों के लिए पेशाबघर नहीं होते. नेताओं के जन्मदिन और विवाह की पार्टियां होती हैं. बरातें ठहराई जाती हैं.
ऐसा नहीं कि हमारे शिक्षा शिकारी इस सब से अनजान हैं. अखबारों के पृष्ठ कई बार रंगे जा चुके हैं. लेकिन अध्यापकों को गधाहम्माली में जोते रखने वाले ये फाइवस्टार विद्वान इसे कोई मुद्दा नहीं मानते. डबल श्री ने शिक्षा के अधिकार को शायद शिक्षा की दुक?ान का अधिकार समझ लिया हो. उन जैसे लोगों को स्कूलों में पढ़ाने के लिए अच्छा वेतन मिलता है. क्यों न मिले? फीस जो जबरदस्त होती है.
घोषणा करते समय अध्यात्म गुरु भूल गए कि आतंकी इलाकों के मातापिता के पास क्या इतनी फीस देने की हैसियत है? क्या प्राणायाम से उन की गरीबी दूर हो जाएगी? क्या सुदर्शन क्रिया उन्हें अच्छा जीवन देगी? क्या ओउम उच्चारने से उन की सेहत ठीक हो जाएगी? डबल श्री का कहना है कि सदैव मुसकराते रहना चाहिए. फिर ये गिनती कर बताते हैं कि बचपन में हम इतनी बार मुसकराते हैं, जवानी में उस से कम और बुढ़ापे में उस से भी कम. लगता है उन्होंने मुसकराहट गिनने में पीएचडी की है.
यदि कोई इन का कहना मान कर किसी की मैयत में मुसकराता रहे तो उस के साथ क्या होगा, यह डबल श्री के अलावा सभी को मालूम है. अध्यात्म की दुकानें लगाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि ये फाइवस्टार स्कूल खोलने के अलावा कितना सामाजिक काम करते हैं. उस में भी बच्चे भिश्तियों की तरह पीने का पानी अपने घर से ले जाते हैं. सिर्फ गरमी के दिनों में रेलवेस्टेशनों पर प्याऊ चालू कर देने से ही समाजसेवा नहीं होती. भजन में तालियां पीटने से किसी की हालत नहीं सुधरती. उस के लिए कर्म करना होता है. जो भारत में भाग्य के सामने ओछा माना जाता है.
देश को पुराने काल में बांधे रखने वालों को देख कर ही स्टीव जौब घबरा कर स्वदेश चला गया था. उस ने सूचना क्षेत्र में जो क्रांति की, क्या वह धार्मिक कर्मकांड के कीचड़ में रह कर हो पाती? उस का भाग जाना दुनिया के लिए फायदेमंद रहा. यहां रहता तो वह क्या कर पाता, सिवा भभूत रमा कर, बाबा बन कर उपदेश पिलाने के.
आज महंगी शिक्षा ही बेहतर शिक्षा का पैमाना मानी जाती है. यदि ऐसा है तो इन फाइवस्टार स्कूलों में पढ़ने वाले अब तक तो भारत की तसवीर बदल चुके होते. इन का हर विद्यार्थी आईटी के ख्वाब देखता है. हर साल कितने ही आईआईटियंस निकलते रहते हैं. डिगरी मिली नहीं, कि वीजा के लिए भटकते रहते हैं. पासपोर्ट पर ठप्पा लगवाने के लिए बेताब हो उठते हैं. इस से तो सरकारी स्कूलों से निकले विद्यार्थी ही अच्छे जो देश के लिए कुछ करने को तैयार रहते हैं. फौज में देखिए, पुलिस में देखिए, ज्यादातर जवान सरकारी स्कूल वाले ही मिलेंगे.
फाइवस्टार स्कूलों के विद्यार्थियों को देश से कोई मतलब नहीं होता. वास्तविकता का सामना करने की उन में हिम्मत नहीं होती. देश में शिक्षा के अड्डे दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं और सरकारी स्कूल बंद होते जा रहे हैं. सरकार भी तो यही चाहती है कि गरीबों के बच्चे पढ़ें नहीं. यदि वे पढ़लिख कर आगे आ गए तो उन के कभी पूरे न किए जाने वाले वादों का क्या होगा?
निजी स्कूलों में विशेष अतिथि बन कर भाषण पिलाने वाले हमारे नेतामंत्री कभी सरकारी स्कूलों के बारे में चिंता नहीं करते. हां, मास्टरजी का स्थानांतर करवाने या रुकवाने में जरूर दिलचस्पी लेते हैं. छोटे शहरों में दो सौ से भी ज्यादा बड़ी निजी शिक्षण संस्थाएं… माफ कीजिए इंस्टिट्यूट हैं. उन्हें सस्ती जमीन मिल जाती है. नैपोलियन के शब्दकोष में असंभव शब्द नहीं है तो इन के पाठ्यक्रम में अनुत्तीर्ण शब्द नहीं है. सब के सब पास होते हैं. क्यों न हों जब लक्ष्मी ने सरस्वती को खरीद लिया है तो फिर किस में हिम्मत है कि रोक ले?
अब राष्ट्रीय संत की बात करें. वैसे तो हर तिलकधारी खुद को राष्ट्रीय संत कहलवाने की इच्छा रखता है. ये लोग अमीरों को बताते हैं कि जिंदगी कैसे जिएं. ज्ञान देने की बाकायदा तगड़ी फीस लेते हैं, देने वाले की जेब जो भरी हुई है. हमारे यहां विद्यादान को महादान कहा जाता है. लेकिन अब यह महाव्यापार बन गया है. बाप की अथाह कमाई वाले अमीरजादों के पास फुरसत ही फुरसत है.
मनोरंजन और जनसंपर्क बढ़ाने के लिए सत्संग से बढ़ कर और क्या विकल्प हो सकता है. सभी संत कहे जाने वाले महाव्यापारी हैं.
इन का सारा कामकाज इंग्लिश में चलता है. यानी, देश से वे वैसे ही कटे हुए हैं. वे कभी गंदी बस्तियों में नहीं जाते. न ही उन के शिष्य जाते हैं. ध्यान का कैंप लगाते हैं लेकिन मलिन बस्तियों में सफाई कैंप नहीं लगाते. जगहजगह शिक्षा के अड्डे तो खोलते हैं लेकिन गरीब बच्चों की फीस का इंतजाम नहीं करते. जो कभी पैदल नहीं चलते, हमेशा एसी गाडि़यों या हवाई जहाज में उड़ते फिरते हैं, उन्हें जमीनी हकीकत कैसे मालूम हो सकती है?
जहां भी जाना हो तो दस दिन पहले ही शहर की दीवारें इन के शुभागमन के पोस्टरों से रंग दी जाती हैं. फिर ये महाराजा की तरह अपने लावलशकर के साथ पधारते हैं. हवाई अड्डे पर इन का शानदार स्वागत होता है. इन के प्रवचनों से फायदा होता किस को है?
शिक्षा के नएनए अड्डे खोलने के लिए ये शहर से दूर सस्ते में जमीन लेते हैं. कुछ साल चलाया, फिर ऊंचे दाम पर बेच देते हैं. झाडि़यां और पेड़ शिक्षा के नाम पर बलिदान कर दिए जाते हैं. गांवों में शौचालय नहीं हैं. पहले बेचारी महिलाएं झाडि़यों की आड़ में निबट लेती थीं लेकिन शिक्षा माफिया उन का लाज का यह परदा भी छीन लेते हैं.
कितने संतों ने अपने अड्डे बनाने की जगह महिला शौचालय बनाने की समझ दिखाई है? इन्हें जगहजगह आश्रम बनाने की क्या जरूरत है. यह साफ जाहिर है कि ये सस्ते में जमीन खरीदना चाहते हैं ताकि वे अपना धंधा आगे बढ़ा सकें. ये धर्म के व्यापारी अपनी पत्रिका भी निकालते हैं और विज्ञापन बटोरते हैं. पत्रिका की सामग्री एकदूसरे से ली हुई होती है. नया लाएंगे कहां से? लगे हाथों दवाएं भी बनाने लगते हैं. आयुर्वेद और हर्बल के नाम पर पता नहीं क्याक्या बनातेबेचते हैं.
ये अध्यात्म गुरु अपनी मार्केटिंग के लिए महंगी मार्केटिंग एजेंसी हायर करते हैं. जिस शिविर में इन के त्याग, ईमानदारी, अपरिग्रह के डोज दिए जाते हैं, वहां इन के चित्र, प्रवचनों की सीडी, मालाएं, अंगूठियां, झोले, बटुए, किताबें, दवाएं वगैरा भी बेची जाती हैं. इन पर न तो बिक्रीकर लगाया जाता है और न ही सेवाकर. कमाई का तो हिसाब ही नहीं. निर्मल बाबा ने तो अपने बटुए का नाम तक बरकत का बटुआ रख दिया था. बटुआ खरीदने वाले की बरकत हो या न हो, पर बाबा की जेब जरूर भर जाती है.
टीवी चैनलों पर खरीदे हुए भक्त प्रायोजित सवाल पूछते हैं और बाबा उन के जवाब देते हैं. सालभर में ऐसे कई हंगामे होते हैं और जनता अपनी गाढ़ी कमाई इन ठगों के हवाले कर देती है. झबरैले साईं बाबा की पोल उस की मौत के बाद खुल गई कि उसे तरहतरह के विदेशी परफ्यूम लगाने का शौक था, वह सोने के पलंग पर सोता था, उस के शयनकक्ष से करोड़ों का बेहिसाब धन मिला.
नित्यानंद के पुरुषनापुरुष होने के किस्से कई दिनों तक जबान पर चढ़े रहे. कई संत शराबकबाब और शबाब के आशिक हैं. धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक धाक जमाने के लिए संत बनने से अच्छा और सस्ता कोई दूसरा रास्ता नहीं है. सही है, जब तक मूर्ख हैं तब तक धूर्त हैं.
उत्तराखंड के जिला उत्तरकाशी के तहत आने वाले गांव खट्टूखाल में रहने वाले सुमेर सिंह की शादी बरसों पहले छवि से हुई थी. घर के सारे लोग खेतीबाड़ी और पशुपालन से जुड़े थे. छवि भी ससुराल आने के बाद छवि भी घरगृहस्थी के कामों के अलावा खेतीबाड़ी के भी काम करने लगी थी. जंगली जानवरों से खेतों की रखवाली के लिए अगर उसे खेतों पर भी रुकना पड़ जाता तो वह मचान पर रातरात भर जागते हुए पहरा देने से पीछे नहीं हटती थी.
रात के वक्त अगर कोई जंगली जानवर खेतों की तरफ आ जाता तो वह ऊंची आवाज में हांक लगा कर उसे भगा देती थी. खेतों की रखवाली करते वक्त वह अपने साथ एक मजबूत डंडा रखती थी. घर पर भी वह हमेशा चौकस रहती थी. पहले जंगली जानवर आ कर गांव के अन्य घरों की तरह उस के घर भी नुकसान कर जाते थे. लेकिन जब से छवि ब्याह कर आई थी, उस ने अपने घर का कभी नुकसान नहीं होने दिया था.
इन्हीं खूबियों की वजह से छवि का अपनी ससुराल में खूब आदरसम्मान था. सभी उसे पसंद करते थे. देखतेदेखते छवि एक बेटी और 2 बेटों की मां बन गई. 3 बच्चे होने के बाद भी वह न जिस्मानी रूप से कमजोर हुई थी, न ही उस के आत्मबल में जरा भी कमी आई थी. वक्त के साथ बच्चे बड़े होने लगे तो वह भी बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगी.
गांव खट्टूखाल की भौगोलिक स्थिति कुछ इस तरह से थी कि यह गांव चारों तरफ से घने जंगलों से घिर हुआ है. इस गांव से जो सब से करीबी गांव है, वह 6 किलोमीटर की दूरी पर है. रास्ता भी जंगल से ही हो कर जाता है. मुख्य सड़क पर जाने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है. यह सफर ज्यादातर दिन में ही तय किया जाता है. क्योंकि रात में जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है.
मुख्य सड़क पर पहुंच कर नजदीकी कस्बा है देवीधर, जो वहां से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर है. कुछ दिनों पहले की बात है. रविवार का दिन था. बच्चे घर पर ही थे. छवि खेतों पर जाने लगी तो उस की बेटी अंजलि भी उस के साथ चल दी. अब तक वह 17 साल की हो चुकी थी. मांबेटी घर से निकली ही थीं कि गांव की एक लड़की ललिता भी उन के साथ हो ली. वह भी अंजलि की हमउम्र थी.
इन के खेत घर से 4 किलोमीटर की दूरी पर थे. सुमेर सिंह के हिस्से में खेतों की 16 सीढि़यां थीं, इन्हीं में से एक जगह उस ने छानी बना रखी थी. छानी एक झोपड़ी की तरह होती है, जिस में मुख्यत: पशु बांधे जाते हैं. लेकिन बरसात के दिनों में अगर खेतों में रुकना पड़ जाए तो छानी रुकने के भी काम आती है.
सुमेर ने अपनी छानी में 5 भैंसें पाल रखी थीं. जिन की देखभाल के लिए एक कारिंदा रहता था. छवि अकसर अपने खेतों पर जाया करती थी. कभीकभार रात होने पर वह छानी में ही रुक जाती थी. चूंकि सावन का सोमवार आने वाला था. उस दिन गांव की कई महिलाओं को व्रत के लिए छाछ की जरूरत पड़ती थी. इस के लिए छवि छानी पर ही छाछ तैयार किया करती थी. वहां से गांव लौट कर वह महिलाओं को मुफ्त में छाछ बांट देती थी.
उस दिन भी वह इसी मकसद से अपनी बेटी अंजलि को ले कर छानी पर जा रही थी कि गांव की लड़की ललिता भी उन के साथ हो ली थी. छानी पर पहुंच कर तीनों ने भैसों के दूध से जमाए दही की छाछ बनानी शुरू कर दी. रात में कारिंदे को छुट्टी दे कर छवि बेटी अंजलि और ललिता के साथ छानी में ही सो गई.
दिन भर मेहनत की थी, इसलिए थकेहारे होने के कारण लेटते ही सब को नींद आ गई. भैंसें छानी से बाहर बंधी थीं. अंजलि और ललिता को छानी के भीतर सुला कर छवि भी भैसों से कुछ दूरी पर चारपाई बिछा कर लेट गई. छवि के पास घड़ी तो थी नहीं, जो वह टाइम देख पाती, फिर भी उस का अनुमान है कि उस वक्त आधी रात का एक बज रहा होगा, जब अचानक उस की आंख खुल गई.
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छवि को लगा कि कोई उसे सिर के बालों से पकड़ कर तेजी से घसीटते हुए ले जा रहा है. छवि की समझ में नहीं आया कि आखिर वह कौन है, जो इस तरह तेजी से उसे घसीटते हुए ले जा रहा है. वह करीब 50 मीटर तक घिसटती चली गई. कुछ ही देर में हरेभरे खेतों से घिसटती हुई वह कंटीली झाडि़यों पर आई तो उस का जिस्म बुरी तरह छिल गया.
झाडि़यों के पास ही बरसाती नाला था, जिस के पास मुलायम दूब वाली जगह थी. छवि अपने पशुओं को चराने के लिए अकसर वहां लाया करती थी. बालों से खींच कर वहां तक लाने वाले ने उसे उस दूब पर पटक दिया.
अब तक उस के हवास दुरुस्त हो चुके थे. उस ने देखा, उसे यहां तक घसीट कर लाने वाला एक खूंखार बाघ था. उस की लंबाई 7-8 फुट से कम नहीं थी. वह खूंखार बाघ छवि के सिर के बाल अपने मुंह में दबाए उसे घसीटता हुआ वहां तक लाया था. यह जानकारी होते ही छवि की घिग्गी बंध गई.
बाघ के रूप में छवि को अपनी मौत साफसाफ दिखाई दे रही थी. उस ने सुन रखा था कि बाघ पकड़ में आए शिकार को कभी नहीं छोड़ता. पहले वह उसे शिथिल करता है, फिर उस की श्वांस नली पर हमला कर के नली को पंक्चर कर देता है, जिस से धीरेधीरे उस के शिकार की मौत हो जाती है. बाद में वह अपने शिकार को सुरक्षित जगह पर ले जा कर आराम से खाता है.
जो भी था, छवि को अपने बचाव का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. फिर भी वह हिम्मत कर के उठी और वहां से भागने लगी. बाघ ने लपक कर उस की गर्दन अपने जबड़ों में दबोच ली. छवि की गर्दन पर उस के दांत गड़ गए.
दर्द से छवि की चीख निकल गई. एक पल के लिए उस ने सोचा कि अब वह नहीं बच पाएगी. उस की मौत निश्चित है. लेकिन उस के सोचने की शक्ति अभी खत्म नहीं हुई थी. उस ने मन ही मन अपना आत्मबल बटोर कर सोचा कि बाघ का निवाला तो बनना ही है. जब मौत तय है तो क्यों न मरने से पहले एक बार मौत का मुकाबला कर लिया जाए. छवि ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और एक हैरान करने वाला फैसला ले लिया.
छवि ने चीखते हुए अपने दोनों हाथ बाघ के मुंह में डाले और पूरी ताकत से उस के दोनों जबड़ों को फैलाना शुरू किया, ताकि उस के दांत उस की गर्दन पर ज्यादा गहराई तक न गड़ सकें. इस के साथ ही उस ने अपनी लात से बाघ के पेट पर 2-3 भरपूर वार किए.
उस के ऐसा करने से चमत्कार सा हुआ. जो बात सोची भी नहीं जा सकती थी, आर्श्चजनक रूप से वह हो गई. छवि की जबरदस्त हिम्मत और ताकत के सामने बाघ के जबड़े की पकड़ ढीली पड़ गई, जिस से छवि की गर्दन भी उस की पकड़ से मुक्त हो गई.
बाघ को कमजोर पड़ते देख छवि ने पूरी ताकत से उस के पेट पर लात मारी, साथ ही उस के जबड़े चीरने का प्रयास करने लगी. उस ने पूरी ताकत लगा कर बाघ को एक जोर का धक्का दिया तो बाघ पीछे जा गिरा. छवि उस के चंगुल से मुक्त हुई तो उस की हिम्मत चौगुनी हो गई. उस ने पास ही पड़ा बड़ा सा पत्थर उठा कर उस पर दे मारा.
पत्थर बाघ के सिर पर लगा. अपनी प्रवृति के अनुसार, हिंसक जानवर चोट खाने के बाद ज्यादा उग्र और आक्रामक हो उठते हैं. लेकिन यहां उलटा हुआ. एक अबला नारी की गर्जना और हिम्मत से बाघ का हौसला पस्त हो गया. घबरा कर वह तेजी से पलटा और जंगल की ओर भाग निकला.
छवि बुरी तरह जख्मी थी. गर्दन से खून बह रहा था. लेकिन उस ने हौसला नहीं खोया. शायद इसी के चलते वह पूरी ताकत से चीखी. उस के गले से निकली आवाज रात की निस्तब्धता को चीर गई. वह पूरा जोर लगा कर अंजलि और ललिता को पुकारने लगी.
कुछ ही देर में हड़बड़ाई हुईं दोनों लड़कियां वहां पहुंच गईं. छवि की हालत देख कर दोनों रोती हुईं ‘बचाओ बचाओ’ की गुहार लगाने लगीं. उसी बीच छवि ने पहनी हुई धोती का टुकड़ा फाड़ कर अपनी गर्दन में बांध लिया था. इस का फायदा यह हुआ कि काफी हद तक घाव से खून बहना रुक गया.
लड़कियों से चीड़ के पेड़ के छिलके मंगवा कर छवि ने आग जलाई. उल्लेखनीय है कि जंगली जानवर आग के नजदीक नहीं आते. उन्हें भरोसा था कि आग देख कर बाघ उन के पास नहीं आएगा, वरना वह फिर से हमला कर सकता था, बल्कि अब तो छवि के साथसाथ उस की बेटी अंजलि व उस की सहेली ललिता भी खतरे के दायरे में आ गई थीं.
खैर, इस के बाद छवि के कहने पर लीसे वाले छिलके को एक डंडे पर बांधा गया. उसे मशाल की तरह जला कर तीनों रात के अंधेरे में जंगली रास्ते से 4 किलोमीटर पैदल चल कर अपने गांव आ गईं. घर के बरामदे में पहुंच कर छवि निढाल सी हो कर पोल के सहारे बैठ गई. दोनों लड़कियों ने पहले की तरह रोते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया.
शोर सुन कर सब से पहले सुमेर सिंह अपने कमरे से निकला. फिर घर के अन्य लोगों के अलावा पासपड़ोस के तमाम लोग जमा हो गए. हर शख्स यह सुन कर हैरान था कि छवि ने खुद को एक बाघ के चंगुल से बचा लिया था. लोग छवि को तुरंत अस्पताल ले जाने पर विचार करने लगे. किसी ने कहा कि चारपाई पर डाल कर ले जाते हैं तो किसी ने सलाह दी कि कंधे पर उठा कर ले जाया जाए.
लेकिन छवि ने कहा कि वह सड़क तक पैदल चली जाएगी, वहां से गाड़ी का इंतजाम कर लो. ऐसा ही किया गया. सुमेर ने अपने एक परिचित यजविंदर सिंह परमार को अपनी गाड़ी ले कर सड़क पर पहुंचने को कहा. देवीधार में यजविंदर की कंस्ट्रक्शन कंपनी है. वह अपनी गाड़ी ले कर बताई गई जगह पर पहुंच गया.
घायल अवस्था में ही छवि अपने पति और अन्य लोगों के साथ डेढ़ किलोमीटर पैदल चल कर सड़क पर पहुंची. वहां से उसे देवीधार ले जाया गया. उस वक्त रात के 3 बजे से ज्यादा का समय हो गया था. इतनी रात को कोई डाक्टर न मिलने पर बोलेरो का रुख डुंडा की ओर कर दिया गया.
छवि को ले कर जब वे लोग सरकारी प्राथमिक चिकित्सालय पहुंचे तो ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर ने मामला देखते ही घायल को किसी बड़े अस्पताल ले जाने को कहा. तब ये लोग वहां से 17 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी के जिला अस्पताल पहुंचे, जहां इमरजेंसी में छवि का चैकअप करते ही डाक्टरों ने कहा कि इस की जान बचाना चाहते हैं तो तुरंत देहरादून के दून अस्पताल जाओ.
वहां से चलते वक्त साथ आए लोगों ने डाक्टरों की बातें सुन ली थीं. वे हैरान हो कर कह रहे थे कि यह औरत यहां तक पहुंच गई है तो यह इस के आत्मबल और साहस का ही कमाल है, वरना जख्म जितना गहरा है, वह भी बाघ के दांतों का, इसे तो रास्ते में ही दम तोड़ देना चाहिए था.
खैर, छवि को ले कर वे सब उत्तरकाशी से 220 किलोमीटर दूर देहरादून पहुंचे. वहां अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने छवि का तुरंत इलाज शुरू कर दिया, पर घाव की स्थिति देख कर उन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए. एक सीनियर डाक्टर ने कहा, ‘‘केस इतना सीरियस है कि हम इस की जान बचाने के लिए अभी कुछ नहीं कर पाएंगे. यहां के हरिद्वार रोड पर बहुत बड़ा हौस्पीटल है सीएमआई. आप लोग इन की जान बचाना चाहते हैं तो इन्हें वहां ले जाएं.’’
कंबाइंड मैडिकल इंस्टीट्यूट (सीएमआई) देहरादून का काफी अच्छा निजी चिकित्सा संस्थान है. छवि को तत्काल वहां पहुंचाया गया. वहां के डाक्टरों ने छवि का उपचार तो शुरू कर दिया, साथ ही उस के पति सुमेर सिंह से कहा, ‘‘यहां का इलाज बहुत महंगा है. हमें नहीं लगता कि यहां का खर्चा आप लोग उठा सकोगे.’’
‘‘डाक्टर साहब, मैं अपने खेत और घर वगैरह सब बेच दूंगा, बस आप मेरी पत्नी को बचा लें. मेरी और मेरे बच्चों की जिंदगी इसी के साथ है.’’ सुमेर सिंह ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.
इस पर छवि का औपरेशन करने के लिए बाहर से एक स्पैशलिस्ट को फोन किया गया. 10 मिनट में ही स्पैशलिस्ट डाक्टर आ पहुंचे. पर जैसे ही उन्होंने गर्दन का घाव चक किया, उन्होंने भी अपने हाथ खड़े कर दिए. कहा, ‘‘इस का इलाज कर पाना मेरे लिए संभव नहीं है, आप इन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई ले जाएं. वहां शायद इन की जान बच जाए.’’
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज (पीजीआई) चंडीगढ़ का विश्वविख्यात मैडिकल संस्थान है. 250 किलोमीटर का सफर तय कर के छवि के घर वाले पीजीआई आ पहुंचे. इमरजेंसी में उस वक्त डा. ऋषि मणि श्रीवास्तव ड्यूटी पर थे. उन्होंने तुरंत छवि का चैकअप किया.
छवि की गर्दन पर बाघ के दांतों का 10×6 सेंटीमीटर का ऐसा घाव था, जिस ने भीतर का सिस्टम पूरी तरह सें तहसनहस कर दिया था. उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. वह बोल भी नहीं पा रही थी. घाव चूंकि बाघ का था, इसलिए यह केस और भी खतरनाक और गंभीर था.
डा. ऋषि का संबंध डिपार्टमेंट औफ ओटोलारिनजोलौजी एंड हैड नेक सर्जरी से था. उन्होंने तुरंत इस इमरजेंसी केस के बारे में अपने एचओडी प्रोफेसर ए.के. गुप्ता से संपर्क किया. प्रो. गुप्ता ने भी तत्काल इमरजेंसी वार्ड में पहुंच कर छवि की हालत का मुआयना किया. तय हुआ कि डाक्टरों की टीम को तुरंत औपरेशन करना होगा.
प्रो. गुप्ता की अगुवाई में बनी इस टीम में डा. ऋषि मणि श्रीवास्तव के अलावा 2 अन्य सर्जनों डा. श्रुति व डा. निशिकांत को शामिल किया गया. डा. श्रीवास्तव के बताए अनुसार, यह एक नितांत मुश्किल एवं उलझा हुआ औपरेशन था, जो निरंतर 7 घंटों तक चला. मगर डाक्टरों को खुशी थी कि उन के प्रयास हर तरह से सफल रहे.
औपरेशन पूरी तरह कामयाब रहा. छवि की कट चुकी नसों को सफलतापूर्वक जोड़ दिया गया. उस के छोटेबड़े हर घाव को ठीक करने का प्रयास किया गया. उस की वोकल कौर्डस को काफी नुकसान पहुंचा था. सांस की नली में छेद हो गया था. लेकिन डाक्टर संतुष्ट थे कि उस की हर परेशानी पकड़ में आ गई थी. इन परेशानियों का इलाज भी सही रूप से होने लगा था.
औपरेशन के बाद 22 दिनों तक छवि को गहन औब्जर्वेशन में रखा गया. इस के बाद उसे तब डिस्जार्च किया गया, जब वह खाने और चलनेबोलने के काबिल हो गई. छवि जब स्वस्थ हो कर गांव लौटी तो सब ने इसे चमत्कार माना. पहले छवि की हिम्मत ने एक चमत्कार किया था कि बाघ के मुंह से वह अपनी गर्दन छुड़ा लाई थी. आगे मैडिकल साइंस ने चमत्कार किया कि पीजीआई के डाक्टरों ने उसे बचा लिया.
पहली अगस्त, 2017 को भीलवाड़ा के एडीशनल एसपी गोपालस्वरूप मेवाड़ा अपने औफिस में बैठे थानाप्रभारी से किसी आपराधिक मामले पर चर्चा कर रहे थे, तभी अंजान नंबर से उन के मोबाइल पर फोन आया. उस समय वह गंभीर मसले पर विचार कर रहे थे, इसके बावजूद उन्होंने फोन रिसीव कर के जैसे ही मोबाइल कान से लगाया, दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा, ‘‘सर, आजकल आप शहर में रोजाना कोई न कोई बड़ा धमाका कर रहे हैं, इसलिए अपराधियों में दहशत छाई हुई है.’’
‘‘भई वह तो ठीक है, यह मेरी ड्यूटी भी है,’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने जवाब में कहा, ‘‘पर यह बताइए कि आप ने फोन क्यों किया है, आप कौन बोल रहे हैं?’’
‘‘सर, आप यही समझ लीजिए कि हम आप के शुभचिंतक हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.
‘‘चलो, यह भी ठीक है, पर मैं यह जानना चाहता हूं कि आप ने फोन क्यों किया है? आप को कोई शिकायत हो तो बताइए, अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूं.’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले की चिकनीचुपड़ी बातें सुन कर पीछा छुड़ाने के लिए कहा.
‘‘सर, मेरी कोई शिकायत नहीं है. मैंने तो आप को यह बताने के लिए फोन किया था कि शहर में आजकल तितलियों की बहार आई हुई है.’’ फोन करने वाले ने कहा.
तितलियों की बात सुन कर एसपी साहब ने कहा, ‘‘तितलियों की बहार का क्या मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो? जो भी कहना है, साफसाफ कहो.’’
‘‘सर, शहर में देशी ही नहीं, विदेशी तितलियां भी आने लगी हैं. ये तितलियां मसाज पार्लरों में आ रही हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.
‘‘क्या मसाज पार्लरों में गलत काम भी हो रहे हैं?’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले से पूछा.
‘‘सर, यह पता करना पुलिस का काम है. इस बारे में आप पता करवा लीजिए.’’ उस आदमी ने इतना कह कर फोन काट दिया.
फोन कटने के बाद गोपालस्वरूप मेवाड़ा उस आदमी की बातों पर विचार करने लगे. उन्हें मामला गंभीर लगा तो थानाप्रभारी से उस फाइल पर बाद में चर्चा करने की बात कह कर उसे भेज दिया. इस के बाद अपने खास मुखबिरों को फोन कर के यह पता लगवाया कि शहर में कहांकहां मसाज पार्लर और स्पा सैंटर चल रहे हैं, साथ ही यह भी पता करवाया कि इन मसाज पार्लरों में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं?
2-3 घंटे में ही उन्हें मुखबिरों से जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. उन्होंने तुरंत अपने सूचना तंत्र से उन जानकारियों की पुष्टि करवाई. वे जानकारियां सही निकलीं तो गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने पुलिस अधिकारियों की एक टीम बनाई. टीम में शामिल प्रशिक्षु डीएसपी दिनेश परिहार को कुछ बातें समझा कर प्राइवेट कार से सामान्य कपड़ों में शहर के महावीर पार्क के पास स्थित स्पा पैलेस भेज दिया.
कोतवाली से करीब 3 सौ मीटर दूर स्थित इस स्पा पैलेस पर दिनेश परिहार एक पढ़ेलिखे व्यापारी की तरह कार से उतरे. उन्होंने एक नजर स्पा पैलेस की बिल्डिंग पर डाली. बाहर से वह किसी मध्यम शहर के मसाज पार्लर जैसा नजर आ रहा था. लेकिन वह स्पा पैलेस का शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए तो वहां की चमकदमक देख कर दंग रह गए. अंदर दाखिल होते ही रिसैप्शन पर चुस्त पोशाक पहने बैठी युवती ने मुसकरा कर उन का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘वेलकम सर, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं?’’
‘‘यार, मैं तो यहां घूमने आया था. आप के स्पा का नाम सुना तो आप से मिलने चला आया,’’ दिनेश परिहार ने एक शौकीनमिजाज नौजवान की तरह अपनी पैंट की जेब से महंगी सिगरेट का पैकेट निकालते हुए कहा, ‘‘क्या मैं यहां सिगरेट पी सकता हूं?’’
‘‘सौरी सर, यहां स्मोकिंग अलाऊ नहीं है. इसकी वजह यह है कि हमारे यहां विदेशी लड़कियां भी काम करती हैं. उन्हें स्मोकिंग से एलर्जी है. इस के अलावा हमारे कस्टमर भी ऐतराज करते हैं.’’ रिसैप्शनिस्ट ने मोहक मुसकान बिखेरते हुए कहा.
‘‘ओके, आप कह रही हैं तो हम सिगरेट नहीं पीते हैं.’’ दिनेश ने रिसैप्शन के पास दीवारों पर लगी मसाज के अलगअलग तरीकों वाली तसवीरों पर नजर डालते हुए कहा.
‘‘सर, पहले आप हमारे स्पा पर कभी नहीं आए?’’ रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.
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‘‘यू आर राइट, मैं जयपुर का रहने वाला बिजनैसमैन हूं. आप के स्पा पैलेस का नाम सुना तो मसाज कराने का मूड बन गया और आप के यहां चला आया.’’ दिनेश ने रिसैप्शनिस्ट के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा.
‘‘यस सर, योर मोस्ट वेलकम.’’ युवती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, हमारे यहां 900 रुपए एंट्री फीस लगती है. पहले आप उसे जमा करा दीजिए, उस के बाद जैसा और जिस लड़की से मसाज करवाना चाहेंगे, आप को उस का अलग से पैसा देना होगा.’’
‘‘डोंट वरी,’’ दिनेश ने पैंट की जेब से नोटों से भरा पर्स निकाल कर उस में से 5-5 सौ रुपए के 2 नोट रिसैप्शनिस्ट को देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए, एंट्री फीस.’’
युवती ने एक हजार रुपए कैश काउंटर में रख कर सौ रुपए का नोट लौटाते हुए कहा, ‘‘सर, योर गुडनेम प्लीज.’’
‘‘व्हाय…’’ दिनेश ने सौ रुपए का नोट युवती को देते हुए कहा, ‘‘ये आप के लिए टिप है.’’
‘‘थैंक्स सर,’’ युवती ने कहा, ‘‘हम रजिस्टर मेंटेन करते हैं, इसलिए आप का नाम जानना चाहती हूं.’’
‘‘ठीक है, आप को फार्मैलिटी करनी है तो लिख लीजिए दिनेश फ्राम जयपुर.’’ दिनेश ने जानबूझ कर सरनेम छिपाते हुए कहा.
‘‘सर, आप मोबाइल नंबर भी बता दीजिए तो हम आप को भविष्य में हमारी नई सेवाओं की समयसमय पर जानकारी देते रहेंगे.’’ युवती ने कहा.
‘‘ओह नो, आप अभी मोबाइल नंबर छोडि़ए,’’ दिनेश ने कहा, ‘‘मुझे आप की सर्विसेज पसंद आईं तो मैं खुद ही मौका मिलने पर यहां हाजिर हो जाऊंगा.’’
‘‘ओके सर, प्लीज सिट औन सोफा,’’ युवती ने कहा, ‘‘हमारी मसाज गर्ल आप को ब्रोशर दिखाएगी. आप उन में से पसंद कर लीजिए कि कौन सी मसाज कराएंगे.’’
दिनेश सामने रखे सोफे पर बैठ गए. रिसैप्शनिस्ट ने इंटरकौम से एक युवती को बुला कर कहा, ‘‘यह सर मसाज कराना चाहते हैं, इन से बात कर लीजिए.’’
चुस्त कपड़े पहने वह युवती ब्रोशर ले कर दिनेश के बगल में बैठ गई और अपने उभारों को दिखाते हुए बोली, ‘‘सर, आप कैसी गर्ल्स से मसाज कराना चाहेंगे, इंडियन बेबी से या फौरनर बेबी से?’’
‘‘वाव, आप के यहां फौरनर गर्ल्स भी हैं?’’ दिनेश ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तब तो आज मजा आ जाएगा. लेकिन पहले आप उस ब्यूटी के दीदार तो कराइए.’’
‘‘सर, आप मेरे साथ आइए.’’ युवती ने उठते हुए कहा.
वह युवती दिनेश को पहली मंजिल पर ले गई, जहां गलियारे के दोनों तरफ 8-10 कमरे बने हुए थे. पांच सितारा होटलों की तरह सजे गलियारे और उन कमरों में तमाम सुविधाएं थीं. कमरों में मद्धिम रोशनी के बीच एसी के अलावा बैड, मसाज टेबल और शौवर आदि लगे हुए थे.
दिनेश ने उस युवती के साथ चलते हुए एकदो कमरों में झांक कर देखा तो वहां की भव्यता देख कर दंग रह गए. युवती उन्हें एक कमरे में ले गई, जहां बैठी एक लड़की मोबाइल पर गेम खेल रही थी. लड़की की ओर इशारा कर के युवती ने कहा, ‘‘यह बेबी मिजोरम की है.’’
दिनेश की ओर दिलकश अदा से देखते हुए मिजोरम वाली लड़की ने कहा, ‘‘हाय हैंडसम.’’
दिनेश ने उस लड़की की ओर उपेक्षा से देखते हुए साथ आई युवती से कहा, ‘‘आप तो फौरनर ब्यूटी की बात कह रही थीं?’’
युवती ने अर्थपूर्ण मुसकराहट के साथ पूछा, ‘‘यह आइटम आप को पसंद नहीं आया?’’
दिनेश ने कुछ नहीं कहा तो युवती उन्हें दूसरे कमरे में ले गई, जहां 3 लड़कियां बैठी आपस में बातें कर रही थीं. युवती ने उन की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘जनाब, ये थाइलैंड की गर्ल्स हैं. आप इन में से पसंद कर लीजिए. आप कौन सी बेबी से मसाज कराना चाहेंगे? यह भी बता दीजिए कि आप फुल बौडी मसाज कराएंगे या केवल सिर की और कितनी देर की?’’
दिनेश ने उन में से एक लड़की को पसंद कर के अपने पास बुलाया. थाईलैंड की उस लड़की ने इशारों में सैक्स करने की बात कही तो नीचे से आई लड़की ने सैक्स के लिए 10 हजार रुपए मांगे. दिनेश ने रकम ज्यादा बताई तो सौदा 5 हजार रुपए में तय हो गया.
सौदा तय होने के बाद साथ आई युवती ने दिनेश से थाइलैंड की लड़की को एक कमरे में ले जाने को कहा. दिनेश चलने को हुए तभी जैसे उन्हें कुछ याद आया हो. उन्होंने कहा, ‘‘ओह सौरी, मैं नीचे सोफे पर अपना मोबाइल भूल आया हूं. पहले उसे ले आता हूं.’’
वह युवती कुछ कहती, उस के पहले ही दिनेश तेजी से सीढि़यां उतर कर ग्राउंड फ्लोर पर आ गए. सिगरेट पीने के बहाने वह बाहर आए और गोपालस्वरूप मेवाड़ा को मोबाइल फोन से अलर्ट कर दिया. एडीशनल एसपी साहब को उन्हीं के फोन का इंतजार था.
उन्होंने पहले से गठित टीम में शामिल सीओ सिटी राजेंद्र त्यागी, कोतवाली प्रभारी बिरदीचंद गुर्जर, थाना सदर के थानाप्रभारी यशदीप भल्ला, थाना सुभाषनगर के थानाप्रभारी प्रमोद शर्मा, थाना हमीरगढ़ के थानाप्रभारी गजराज चौधरी और एसआई पुष्पा कासोटिया आदि को स्पा पैलेस पर छापा मारने के लिए भेज दिया.
कुछ ही देर में पुलिस की कई गाडि़यों से आए पुलिस वालों ने स्पा पैलेस को घेर लिया. मसाज पार्लर की तलाशी में थाइलैंड की 3 और मिजोरम की एक लड़की को गिरफ्तार कर लिया गया. इन के साथ स्पा पैलेस के मैनेजर नवीन शर्मा और उस की एक सहयोगी महिला को भी गिरफ्तार किया गया.
मैनेजर नवीन शर्मा मूलत: उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का रहने वाला था. वह भीलवाड़ा में शास्त्रीनगर में रहता था. पुलिस सभी को थाने ले आई. पुलिस को हैरानी हो रही थी कि 10 दिन पहले ही कोटा में थाइलैंड की लड़कियां मसाज पार्लर की आड़ में अनैतिक कार्य करते हुए पकड़ी गई थीं, इस के बावजूद भीलवाड़ा में मसाज पार्लर चलाने वाले थाइलैंड की लड़कियों से अनैतिक धंधा करा रहे थे.
जांच में पता चला कि स्पा पैलेस नाम से मसाज का लाइसैंस मध्य प्रदेश के रतलाम शहर के रहने वाले व्यवसाई सुनील गोवानी के नाम था. सुनील के मध्य प्रदेश के शहर रतलाम, उज्जैन, इंदौर, नागदा, नीमच सहित राजस्थान के कई शहरों में मसाज पार्लर चल रहे थे. उसी ने थाइलैंड की इन लड़कियों को भीलवाड़ा पहुंचाया था. उस ने मिजोरम की लड़की के माध्यम से थाइलैंड की लड़कियों से संपर्क किया था. उस के बाद उन का वीजा तैयार करवाया था.
थाइलैंड से 2 लड़कियां इसी 8 जून को मुंबई उतरी थीं, जबकि एक लड़की 23 जून को हैदराबाद उतरी थी. इन सब को मुंबई और हैदराबाद से भीलवाड़ा लाया गया था. थाइलैंड की ये लड़कियां 3 महीने के टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं. पुलिस को इन के पासपोर्ट मिले हैं. थाइलैंड की लड़कियों से पूछताछ में पुलिस को भाषा की परेशानी आई, क्योंकि ये हिंदी नहीं समझती थीं, लेकिन अंगरेजी फर्राटे से बोल रही थीं.
पूछताछ में पता चला कि थाइलैंड की ये तीनों लड़कियां पहली बार भारत आई थीं. वे मोटी कमाई के लालच में देहव्यापार में धकेल दी गई थीं. जबकि वहीं मिजोरम वाली लड़की इस के पहले इंदौर स्थित सुनील के स्पा में काम कर चुकी थी. भीलवाड़ा के इस पार्लर पर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से भी लड़कियां आ चुकी हैं.
सुनील गोवानी के इस काम में भीलवाड़ा के शास्त्रीनगर का रहने वाला मनोज लालवानी भी जुड़ा था. उस की शास्त्रीनगर में इलैक्ट्रिक के सामानों की दुकान है. वह रोजाना शाम को स्पा पैलेस आ कर मैनेजर नवीन शर्मा से उस दिन की कमाई ले जाता था, जिसे वह और गोवानी आपस में बांट लेते थे.
स्पा पैलेस पर काम करने वाली लड़कियां भीलवाड़ा के शास्त्रीनगर में किराए के मकान में रहती थीं. मकान का किराया ही नहीं, उन के खानेपीने के खर्च के साथ स्पा पैलेस तक आनेजाने के लिए जो वैन लगी थी, उस का खर्चा मनोज ही देता था.
इस स्पा पैलेस का उद्घाटन करीब सवा साल पहले फिल्म अभिनेत्री मोनिका बेदी ने किया था. पार्लर में औनलाइन बुकिंग भी होती थी. इस के लिए वेबसाइट भी बनी थी. पार्लर में थाइलैंड एवं मिजोरम से बुलाई गई लड़कियों को 25-25 हजार रुपए वेतन के साथ इंसेंटिव भी दिया जाता था.
पार्लर में रोजाना 10 से 30 ग्राहक आते थे. पार्लर में मसाज का जो ब्रोशर ग्राहक को दिखाया जाता था, उस में 30 मिनट, 60 मिनट, 90 मिनट एवं 120 मिनट के मसाज के अलगअलग रेट निर्धारित थे.
पार्लर में काम करने वाली लड़कियों को सवा से डेढ़ महीने में बदल दिया जाता था. उन के स्थान पर दूसरे पार्लर से लड़कियां बुला ली जाती थीं, ताकि ग्राहकों को नईनई लड़कियां मिलती रहें, जिस से पार्लर से ग्राहक जुड़े रहें. स्पा पैलेस में सदस्य बना कर भी ग्राहकों को जोड़ा जाता था.
इस के लिए 11 हजार रुपए सदस्यता ली जाती थी. ये सदस्यता 3 महीने के लिए होती थी. इस अवधि में मसाज की संख्या तय कर दी जाती थी. इस बीच उस से कोई पैसा नहीं लिया जाता था. पुलिस को पार्लर की तलाशी में एक फाइल मिली है, जिस में सदस्यों के फोटो के साथ पूरा ब्यौरा दिया था.
स्पा पैलेस जिस बिल्डिंग में चल रहा था, उसे 80 हजार रुपए महीने किराए पर लिया गया था. पार्लर के रिसैप्शन से ले कर गैलरी और फर्स्ट फ्लोर के कमरों के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने इन कैमरों की हार्डडिस्क जब्त कर ली है. पुलिस उस की जांच कर रही है कि वहां कौनकौन लोग आते थे.
पुलिस ने रिसैप्शन से ग्राहकों का नाम एवं मोबाइल नंबर लिखा रजिस्टर भी जब्त कर लिया है. विदेशी युवतियों की तलाशी में पुलिस को करीब एक लाख रुपए नकद मिले हैं. इस के अलावा मसाज पार्लर से तमाम आपत्तिजनक चीजें जब्त की गई हैं. भीलवाड़ा पुलिस ने थाइलैंड की युवतियों के बारे में दिल्ली स्थित थाइलैंड दूतावास को सूचना दे दी थी.
कथा लिखे जाने तक पार्लर चलाने वाला सुनील गोवानी और उस का साथी मनोज लालवानी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था. इस से पहले 21 जुलाई को कोटा शहर में स्पा सैंटर में चल रहे सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया गया था. पुलिस ने कोटा के गुमानपुरा में सैंटर स्क्वायर मौल में चौथी मंजिल पर चल रहे सौंदर्यम फैमिली स्पा एवं जवाहरनगर में डिस्ट्रिक्ट सैंटर में संचालित स्पा सैंटर पर छापा मार कर थाइलैंड की 8 एवं नगालैंड की एक लड़की सहित कुल 17 लोगों को गिरफ्तार किया था.
गुमानपुरा स्थित सौंदर्यम फैमिली स्पा को बूंदी का रहने वाला राजेश माधवानी चला रहा था, जबकि उस की पत्नी संजना माधवानी जवाहरनगर वाला स्पा चला रही थी. दोनों जगहों पर स्पा की आड़ में सैक्स रैकेट चल रहा था. पुलिस ने स्पा चलाने वाले राजेश माधवानी और उस की पत्नी संजना को गिरफ्तार कर लिया था.
इन में गुमानपुरा का सौंदर्यम फैमिली स्पा काफी समय से चल रहा था, जबकि जवाहरनगर वाला स्पा कुछ महीने पहले ही फ्रैंचाइजी के रूप में खोला गया था. सौंदर्यम फैमिली स्पा में 4 छोटेछोटे केबिन बने हुए थे, जिन में पलंग, गद्दे और स्पा की सामग्री के अलावा तमाम आपत्तिजनक चीजें रखी थीं.
इस स्पा सैंटर में 2 हजार रुपए सामान्य चार्ज लिया जाता था, जबकि सैक्स के लिए कोई कीमत तय नहीं थी. लड़कियां पहले स्पा करती थीं, उसी के साथ वे ग्राहक को ‘यू वांट…यू वांट…’ कह कर उकसाती थीं. इस के बाद स्पा संचालक के माध्यम से घंटे के हिसाब से सौदा तय होता था. पैसों का बंटवारा लड़की और स्पा संचालक के बीच आधाआधा होता था.
पूछताछ में राजेश माधवानी ने बताया था कि उस के संबंध मुंबई, दिल्ली और कोलकाता के कुछ लोगों से थे. उन्हीं के माध्यम से वह थाइलैंड से लड़कियां मंगाता था. वह भी महीने, डेढ़ महीने में स्पा की लड़कियों को बदल देता था. उस ने सौंदर्यम के नाम से बाकायदा वेबसाइट बनवा रखी थी, जिस में स्पा सैंटर के कमरों की लाइव तसवीरें देखी जा सकती थीं. रेट लिस्ट सहित कई अन्य जानकारियां वेबसाइट पर दी गई थीं.
ये सोशल मीडिया के जरिए ग्राहकों को विदेशी युवतियों की फोटो भेज कर बुकिंग करते थे. संजना ने पकड़े जाने से 3-4 दिन पहले ही थाइलैंड की लड़कियां दिल्ली और पुणे से बुलाई थीं. इन लड़कियों को वह 20 हजार रुपए महीने वेतन तथा सैक्स के नाम पर मिलने वाली रकम का आधा हिस्सा देती थी. ग्राहक की इच्छा पर लड़कियों को स्पा से बाहर भी भेजा जाता था.
दोनों स्पा सैंटरों से पुलिस को करीब 2 सौ लोगों की ऐसी सूची मिली है, जो वहां नियमित आते थे. थाइलैंट की लड़कियों ने पुलिस को बताया था कि उन के देश में इस तरह सैक्स अपराध नहीं है, इसलिए वे भारत आई थीं. कोटा में पकड़ी गई थाइलैंड की लड़कियां न हिंदी जानती थीं और न ही अंगरेजी. पुलिस ने नगालैंड की लड़की के माध्यम से उन लड़कियों से पूछताछ की, क्योंकि वह थाई भाषा जानती थी. राजेश और संजना जानबूझ कर थाइलैंड की इन लड़कियों को लाए थे, जिस से वे किसी अन्य दलाल के पास न जा सकें.
राजेश माधवानी पहले ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करता था. उस में घाटा होने के बाद वह पत्नी के साथ कोटा में स्पा सैंटर चलाने लगा. उस का स्पा सैंटर अच्छा चल रहा था. पर मोटी कमाई के लालच में स्पा की आड़ में वह भारतीय और विदेशी लड़कियों से देहव्यापार कराने लगा. इसी साल मार्च में उस ने पहली बार थाइलैंड की लड़कियों को कोटा बुलाया था.
पहली बार विदेशी लड़कियों के आने से राजेश माधवानी की पौ बारह हो गई थी. उस के ग्राहकों की तादाद तेजी से बढ़ गई. थाई मसाज की आड़ में उस ने थाइलैंड की लड़कियों को देहव्यापार में उतार दिया. पकडे़ जाने तक वह 25 से ज्यादा थाई लड़कियों को कोटा बुला चुका था.
राजेश की पत्नी संजना कोटा से पहले जयपुर में ब्यूटीपार्लर चलाती थी. उसे इस का पूरा अनुभव था, इसलिए राजेश ने पत्नी को साथ रखा और पहले स्पा के नाम पर साख बनाई. वह स्पा के लिए सदस्य भी बनाता था. विदेशी लड़कियों को बिना सूचना दिए रखने और ठहराने के मामले में इंटेलीजेंस ब्यूरो ने राजेश माधवानी को नोटिस दिया है. किसी भी विदेशी नागरिक को अपने यहां नौकरी देने या ठहराने पर आईबी को सूचना देनी जरूरी होती है.
अदालत की ओर से न्यायिक हिरासत में जेल भेजे जाने पर कोटा जेल प्रशासन ने थाइलैंड और नगालैंड की लड़कियों का जेके लोन अस्पताल में मैडिकल कराया था. मैडिकल में थाइलैंड की 20 साल की एक लड़की गर्भवती पाई गई थी. अभी वह अविवाहित है. सोनोग्राफी जांच में उस के पेट में 10 सप्ताह का गर्भ होने का पता चला है.
इस के अलावा थाइलैंड की एक लड़की के एचआईवी पौजिटिव होने की पुष्टि हुई है. इस से जेल और पुलिस प्रशासन की परेशानियां बढ़ गई हैं. इस के अलावा उन लोगों की भी चिंता बढ़ गई है, जो इन लड़कियों के संपर्क में आए थे. महानगरों की तरह राजस्थान के छोटे शहरों में भी मसाज पार्लर और स्पा सैंटरों की आड़ में विदेशी लड़कियों को देह व्यापार में धकेलने के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं.
जयपुर में नवंबर, 2015 में बनीपार्क इलाके में बने एक मौल में स्पा सैंटर के नाम पर जिस्मफरोशी का रैकेट पकड़ा गया था. मौल की पहली मंजिल पर चल रहे 2 स्पा सैंटरों पर की गई कारवाई में थाइलैंड की 10 लड़कियों के अलावा 8 लड़कों को पकड़ा गया था. ये स्पा द थाई हारमोनी एवं क्रिस्टल स्पा सैंटर के नाम से करीब एक साल से चल रहे थे.
बहरहाल, इंसान की आदिकाल से चली आ रही सैक्स की भूख ने अब वैश्विक बाजार खड़ा कर दिया है. भारत के महानगरों में फैले इस बाजार में कई सालों से विदेशी लड़कियां लोगों के आकर्षण का केंद्र रही हैं. अब छोटे शहर भी इस की चपेट में आते जा रहे हैं.
हरियाणा से निकला नारा ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ भले ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा हो, लेकिन कुछ सिरफिरे इस नारे के मूलतत्त्व की ऐसी धज्जियां उड़ा रहे हैं कि इंसानियत ही नहीं हैवानियत भी शर्म से सिर झुका ले. बेटी के लिए सब कुछ करने वाले मांबाप तक नहीं समझ पाते कि उन्होंने बेटी को बचा कर,उसे पढ़ा कर गुनाह किया या बेटी होना ही उस का गुनाह था. बेटी के मांबाप को जिंदगी भर दर्द और गुस्से का घूंट पीने को मजबूर करने वाले ऐसे दरिंदों को जितनी सजा दी जाए, कम है.
यौवन सब को आता है, लड़कों को भी लड़कियों को भी. यौवन आता है तो निखार भी आता है और सुंदरता भी बढ़ती है. लड़कों को तो इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन कई बार लड़कियों के लिए यह सब बहुत भारी पड़ता है. उन्हें इस सब की ऐसी कीमत चुकानी पड़ती है, जिस के बारे में स्वयं लड़की ने तो क्या, किसी ने भी सोचा तक नहीं होता. बांसवाड़ा, राजस्थान की 18 वर्षीया वैशाली के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. न तो वैशाली को खुद पता था और न उस के मातापिता को कि उस की खूबसूरती पर एक रक्तपिपासु की नजर जमी है.
बांसवाड़ा की अगरपुरा कालोनी में रहने वाली वैशाली फर्स्ट ईयर की छात्रा थी और अपने परिवार के साथ रहती थी. उस के पिता पिंकेश शर्मा विकलांग हैं. वैशाली के घर के सामने ही जगदीश बंजारा का घर था. कुछ समय तक जगदीश वैशाली का सहपाठी भी रहा था. जब से वैशाली यौवन द्वार पर आ कर खड़ी हुई थी, तभी से जगदीश की नजरें उस पर जम गई थीं. जगदीश और उस का भाई रमेश उसे आतेजाते छेड़ते थे. वैशाली ने इस बात की शिकायत अपने मातापिता से भी की थी. इतना ही नहीं, कालोनी वालों ने भी जगदीश की आए दिन उधमबाजी करने की पुलिस से शिकायत की थी.
जगदीश संभवत: किसी गलतफहमी का शिकार था, यही वजह थी कि वह वैशाली से एकतरफा प्यार करने लगा था. जबकि वैशाली उस से बात तक करने को तैयार नहीं थी.
बुधवार 2 अगस्त, 2017 की दोपहर 12 बजे वैशाली फर्स्ट फ्लोर की बालकनी में बाई के साथ कपड़े सुखा रही थी. उस के पिता पिंकेश शर्मा ऊपर की मंजिल पर थे. तभी सामने के घर में रहने वाला जगदीश दीवार फांद कर आया और उस ने अनायास वैशाली को दबोच लिया. उस ने साथ लाए चाकू से वैशाली की गर्दन पर इतने वार किए कि वह लहूलुहान हो कर गिर पड़ी. जगदीश जैसे आया था, वैसे ही भाग गया. बाई ने शोर मचाया तो पासपड़ोस के लोग भी आ गए और वैशाली के परिवार वाले भी. वैशाली को आननफानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक वह दम तोड़ चुकी थी.
इस बीच किसी ने फोन कर के इस मामले की सूचना थाना कोतवाली को दे दी थी. कोतवाली पुलिस भी मौकाएवारदात पर पहुंच गई और महिला थाने की पुलिस भी. पूरी जानकारी ले कर पुलिस ने वैशाली के पिता पिंकेश शर्मा की तहरीर पर जगदीश बंजारा के खिलाफ भादंवि की धारा 450 (हथियार ले कर जबरन घर में घुसने), 376, 511 (बलात्कार की कोशिश), हत्या के लिए 302 और 34 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस ने जगदीश बंजारा की खोज शुरू कर दी, लेकिन तब तक पूरा बंजारा परिवार फरार हो चुका था.
वैशाली की हत्या को ले कर पूरी अगरपुरा कालोनी में रोष था. इतना रोष कि लोग बंजारा परिवार के घर को आग लगा देना चाहते थे. गंभीर स्थिति को देखसमझ कर एसपी के आदेश पर बंजारा परिवार के घर पर 7 सशस्त्र सिपाहियों का पहरा बैठा दिया गया था. इस के बावजूद कुछ युवक उस घर को क्षति पहुंचाने के लिए आए तो पुलिस ने उन्हें समझा कर वापस लौटा दिया.
काफी भागदौड़ के बाद सिपाही इंद्रजीत सिंह और लोकेंद्र सिंह ने जैसेतैसे 3 अगस्त को जगदीश बंजारा को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से काफी पूछताछ की गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला. आखिर इतना बड़ा अपराध कर के वह कब तक चुप रह सकता था. 4 अगस्त को उसे मुंह खोलना ही पड़ा. पुलिस से उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘मैं वैशाली से प्यार करता था. वह मेरी बनने को तैयार नहीं थी, फिर मैं उसे किसी और की कैसे होने दे सकता था? इसलिए मैं ने उसे मार डाला.’’
मृतका वैशाली के पिता पिंकेश शर्मा चाहते थे कि इस ममले की जांच महिला थाने के सीआई देवीलाल करें. इस के लिए वह एसपी से मिले.
एसपी ने केस की जांच सीआई देवीलाल को सौंप दी. पुलिस जगदीश बंजारा को जेल भेज चुकी है. केस की जांच सीआई देवीलाल कर रहे हैं, जगदीश बंजारा को पकड़ने वाले सिपाही इंद्रजीत सिंह और लोकेंद्र सिंह को पुलिस विभाग ने सम्मानित किया है.
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सरकार की हर गांव और घर तक बैंक की पहुंच बनाने की योजना इसी साल आकार लेनी शुरू कर देगी. सरकार ने संसद में बताया है कि इंडियन पोस्ट पेमैंट बैंक यानी आईपीपीबी की करीब साढ़े 6 सौ शाखाएं अप्रैल से काम करना शुरू कर देंगी.
पिछले वर्ष अक्तूबर से आईपीपीबी की कुछ ऐसी ही योजनाएं चल रही थीं और उन की सफलता को देखते हुए आगामी अप्रैल से इन बैंकों की 650 शाखाएं काम करनी शुरू कर देंगी. भारतीय रिजर्व बैंक इन बैंकों को काम करने के लिए लाइसैंस जारी कर चुका है.
सरकार का दावा है कि इस साल के अंत तक बड़ी संख्या में इन बैंकों की शाखाएं खोल दी जाएंगी. इस के लिए भरती प्रक्रिया भी चल रही है. आईपीपीबी के माध्यम से सरकार की योजना छोटी बचत योजनाओं को क्रियान्वित करने की रही है. हर गांव में बैंक की पहुंच हो, लोगों को बचत योजनाओं का लाभ मिले, इस के लिए देश के 90 प्रतिशत गांवों में फैले पोस्टऔफिसों के विशाल नैटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए कंपनी कानून 2013 में संशोधन किया गया है.
पोस्टऔफिस में मिलने वाले सेविंग्स सर्टिफिकेट्स जैसी योजनाओं को बेचने का अधिकार अब निजी क्षेत्र के कुछ बड़े बैंकों को भी दिया गया है. छोटी बचत की इन योजनाओं को पहले की तरह लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार ने अपने पोस्टऔफिस के विस्तृत नैटवर्क का इस्तेमाल करने की योजना बनाई और उस की शुरुआत अप्रैल से की जा रही है. यह योजना नए कलेवर में उपभोक्ताओं को कितना पसंद आती है, यह तो समय बताएगा, लेकिन इस से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का पोस्टऔफिस का रुख उस में फिर लौट सकता है, पोस्टऔफिसों की वीरानी फिर भीड़भाड़ में बदल सकती है.
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स्मार्टफोन आज हर हाथ की शान बन गया है. बस, रेल, मैट्रो या अन्य किसी भी सार्वजनिक वाहन से सफर करते समय लोग अपने स्मार्टफोन में व्यस्त नजर आते हैं. यह प्रचलन महानगरों में लगातार बढ़ रहा है. लोकल ट्रेन या सार्वजानिक वाहनों में सफर करते हुए समसामयिक मुद्दों पर की जाने वाली बहसें अब लगभग खत्म हो गई हैं. लोग खुद के मोबाइल में इस तरह चिपके रहते हैं कि अगलबगल में क्या चल रहा है, उस की उन्हें रास्ता चलते खबर नहीं रहती.
जियो मोबाइल के डाटा निशुल्क देने की पिछले डेढ़ वर्ष पहले की गई घोषणा के बाद यह स्थिति ज्यादा बनी है. रिलायंस के जियो के बाद एअरटेल, वोडाफोन, बीएसएनएल, आइडिया जैसी सेवाप्रदाता कंपनियां प्रतिस्पर्धा में आईं और उन्होंने भी अपने ग्राहकों को संभालने के लिए कम कीमत पर डाटा उपलब्ध कराना शुरू कर दिया. लोगों को कम दाम पर डाटा मिल रहा है लेकिन कंपनियों का नैटवर्क वाईफाई महज नाममात्र का होता है.
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई ने इस स्थिति पर नियंत्रण करने और उपभोक्ताओं को पूरा लाभ देने के लिए नई नियमावली पर काम शुरू कर दिया है. इस के तहत उपभोक्ता को हर हाल में वाईफाई पर 20 एमबीपीएस और ब्रौडबैंड पर न्यूनतम स्पीड 2 एमबीपीएस देनी होगी. यह स्थिति हर समय बरकरार रहेगी. इस के लिए अगले 5 वर्षों में दूरसंचार क्षेत्र में 6.40 लाख करोड़ रुपए का निवेश होना है और संचार व्यवस्था के स्तर पर भारत को 50 शीर्ष देशों में शामिल कराना है.
वाईफाई के एक करोड़ हौटस्पौट तैयार किए जाने हैं और उपभोक्ताओं की हर दिक्कत का समाधान सुनिश्चित कराया जाएगा. यह व्यवस्था सरकार द्वारा तैयार की जा रही राष्ट्रीय संचार नीति में की जा रही है. ट्राई का कहना है कि इस संबंध में लोग अपनी दिक्कतें उसे भेजें ताकि जिस समस्या का नीति में समाधान नहीं आया है, उसे भी प्रस्ताव में शामिल किया जा सके.
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