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चंदा कोचर की बढ़ी मुश्किलें, सीबीआई ने जारी किया लुक आउट नोटिस

वीडियोकौन लोन मामले में आईसीआईसीआई बैंक की एमडी व सीईओ चंदा कोचर की मुश्किलें बढ़ गई हैं. केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकौन ग्रुप के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है. लुकआउट नोटिस जारी होने के बाद अब ये तीनों देश छोड़कर विदेश नहीं जा सकेंगे. इस मामले में अभी तक सीबीआई की तरफ से लुकआउट नोटिस जारी होने की पुष्टि नहीं की गई है. वेणुगोपाल धूत के अनुसार यह गलत खबर है. धूत ने जांच के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी.

एहतियात के तौर पर जारी किया नोटिस

वीडियोकौन ग्रुप को 3250 करोड़ रुपये का लोन देने के मामले में पिछले दिनों सीबीआई ने पीई (Preliminary Enquiry) शुरू की थी. माना जा रहा है कि धोखाधड़ी के कई मामलों में विदेश भागने की बात सामने आने के चलते सीबीआई ने एहतियात के तौर पर लुकआउट नोटिस जारी किया है. इससे पहले सीबीआई ने आईसीआईसीआई बैंक की तरफ से वीडियोकौन ग्रुप को दिए गए 3,250 करोड़ रुपये के लोन के मामले में शुक्रवार को चंदा कोचर के देवर राजीव कोचर से करीब 9 घंटे तक पूछताछ की.

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राजीव कोचर से भी पूछताछ

सीबीआई अधिकारियों ने बताया कि राजीव कोचर मुंबई में सीबीआई कार्यालय में पेश हुए. उनसे वीडियोकौन को दिए गए ऋण की रिस्ट्रक्चरिंग के विभिन्न पहलुओं के बारे में पूछताछ की गई. ‘अविस्ता एडवाइजरी’ के संस्थापक राजीव कोचर से ऋण के संबंध में वीडियोकौन को दी गई मदद के बारे में जानकारी की गई. राजीव को गुरुवार पूर्वाह्न लगभग 11 बजे मुंबई हवाईअड्डे पर आव्रजन अधिकारियों ने उस समय रोक लिया था, जब वह सिंगापुर रवाना होने वाले थे.

यह है मामला

वीडियोकौन ग्रुप के मालिक वेणुगोपाल धूत पर आरोप है कि उन्होंने साल 2008 से 2011 के बीच चंदा कोचर के पति दीपक कोचर को अपनी एक कंपनी कुछ लाख रुपये में बेच दी. इसके बाद अपनी एक कंपनी से करीब 3 करोड़ रुपये का लोन दिया. बाद में 2012 में आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकौन समूह को 3,250 करोड़ रुपये का लोन दिया और 2017 में इसमें से करीब 2800 करोड़ रुपये एनपीए घोषित कर दिया.

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मिताली ने बनाया यह रिकौर्ड, 192 मैच खेलने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं

महिला टीम इंडिया की वनडे टीम की कप्तान मिताली राज ने क्रिकेट की दुनिया में एक नया इतिहास रच दिया. शुक्रवार को इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए वनडे मैच में उतरते ही मिताली राज ने एक नया रिकौर्ड अपने नाम के साथ जोड़ लिया. वह महिला क्रिकेट में पहले खिलाड़ी बन गई हैं, जिसने 192 वनडे मैच खेले हैं. विश्व क्रिकेट में इतने मैच अब तक कोई महिला नहीं खेल पाई है. 35 वर्षीय मिताली राज ने अपना पहला वनडे मैच 26 जून 1999 को खेला था.

मिताली अब तक इतने मैचों में 6295 रन बना चुकी हैं. इनमें 6 शतक और 49 अर्धशतक हैं. इसके अलावा वह 10 टेस्ट मैच और 72 टी20 मैच खेल चुकी हैं. उनसे पहले सबसे ज्यादा वनडे मैच खेलने का रिकौर्ड चारलोट एडवर्ड्स के नाम था.

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सबसे ज्यादा वनडे मैच खेलने वाली महिला खिलाड़ी

मैच       खिलाड़ी

192     मिताली राज

191     चार्लोट एडवर्ड्स

167     झूलन गोस्वामी

144     एलेक्स ब्लेकवेल

मिताली राज वनडे मैचों में लगातार 7 अर्धशतक लगाने वाली दुनिया की अकेली खिलाड़ी हैं. अब वह टी 20 में भी लगातार चार अर्धशतक लगाने वाली दुनिया की पहली बल्लेबाज बन गई हैं. टी20 में उन्होंने लगातार 62, 73, 54 और 76 रनों की पारियां खेल चुकी हैं. इसमें पिछली दो पारियों में तो वह आउट भी नहीं हुई हैं.

मिताली ने अब तक 49 अर्धशतक जमाए हैं जो कि विश्व रिकौर्ड है. बेहतरीन फौर्म में चल रही भारतीय कप्तान को अब अर्धशतकों का पचासा पूरा करने के लिये केवल एक अर्धशतक की जरूरत है. मिताली के बाद महिला क्रिकेट में सर्वाधिक अर्धशतक बनाने के मामले में इंग्लैंड के चार्लोट एडवर्ड्स (46) दूसरे स्थान पर हैं.

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धोनी और रोहित हैं आईपीएल में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले खिलाड़ी

अगर आप यह सोचते हैं कि आईपीएल में सबसे ज्यादा कमाई भारतीय कप्तान विराट कोहली ने की है तो आप गलत हैं, क्योंकि केवल महेंद्र सिंह धोनी और रोहित शर्मा दो ही ऐसे क्रिकेटर हैं जो अभी तक इस टी-20 लीग से कमाई करने के मामले में एक अरब रुपए के आंकड़े को पार कर पाए हैं. विराट को इस सीजन में बेंगलुरु ने 17 करोड़ में खरीदा है, वहीं धोनी और रोहित शर्मा को उनकी टीमों ने 15-15 करोड़ में रिटेन किया है.

चेन्नई सुपरकिंग्स के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का आईपीएल में कुल वेतन 107.84 करोड़ रुपए है और वह कमाई करने के मामले में शीर्ष पर काबिज हैं. धोनी के बाद मुंबई इंडियन्स के कप्तान रोहित शर्मा का नंबर आता है. जिन्होंने आईपीएल से अब तक 101.60 करोड़ रूपये अपनी जेब में डाले हैं. पेशेवर खिलाड़ियों के वेतन की डिजिटल गणना करने वाले ‘मनीबौल’ से यह गणना की गयी है, जिसकी रिपोर्ट इंडियास्पोर्ट.को ने जारी की है.

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यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार 2008 में आईपीएल की शुरूआत से लेकर अब तक रायल चैलेंजर्स बेंगलूर की तरफ से खेलने वाले कोहली कमाई की इस रैंकिंग में गौतम गंभीर (94.62 करोड़ रुपये) के बाद चौथे नंबर पर हैं. भारतीय कप्तान ने आईपीएल से अभी तक 92.20 करोड़ रूपये कमाये हैं. उनके बाद युवराज सिंह (83.60 करोड़ रूपये) और सुरेश रैना (77.74 करोड़ रूपये) का नंबर आता है.

आईपीएल में 11 वर्षों में खिलाड़ियों के वेतन पर फ्रेंचाइजी टीमों ने लगभग 4,284 रूपये से अधिक खर्च किये हैं. इस दौरान कुल 694 क्रिकेटरों को अनुबंधित किया गया. इनमें 426 भारतीय क्रिकेटर शामिल हैं,  जिन्होंने लगभग 23.54 अरब रूपये का अनुबंध हासिल किया है जो कि आईपीएल में खिलाड़ियों के कुल वेतन का लगभग 55 प्रतिशत है.

विदेशी खिलाड़ियों में दक्षिण अफ्रीका के एबी डिविलियर्स सर्वाधिक 69.51 करोड़ रूपये की कमाई करने वाले खिलाड़ी हैं. उनके बाद आस्ट्रेलिया के शेन वाटसन (69.13 करोड़ रूपये) का नंबर आता है. वैसे अभी तक कुल 268 विदेशी खिलाड़ी आईपीएल से जुड़े हैं और उन्हें अनुबंध के तौर पर लगभग 19.30 अरब रूपये मिले हैं. भारत के बाद आस्ट्रेलिया के क्रिकेटरों ने इस लीग से सर्वाधिक कमाई की है. उसके खिलाड़ी अब तक 6,53.8 करोड़ रूपये अपनी जेब में डाल चुके हैं.

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आईटीआर में देनी होगी अब सैलरी स्ट्रक्चर की जानकारी

इनकम टैक्स फाइल (आईटीआर फौर्म) करने का नया फौर्म आ गया है. इसमें इंडिविजुअल टैक्स पेयर्स को उनकी सैलरी स्ट्रक्चर और प्रौपर्टी से होने वाली इनकम के बारे में भी जानकारी देनी होगी. इसके अलावा छोटे बिजनेस वालों को भी अपना गुड्स एंड सर्विस टैक्स आइडेंटिफिकेशन नंबर (GSTIN) और GST के अंतर्गत ही टर्नओवर रिपोर्ट भी देनी होगी.

इसमें NRI के लिए सहूलियत दी गई हैं, वे अपने क्रेडिट और रिफंड के लिए विदेशी बैंक का अकाउंट नंबर दे सकते हैं. अभी तक केवल भारतीय बैंक का ही अकाउंट नंबर दे सकते थे. अभी NRI इनकम टैक्स रिटर्न फौर्म-1 से अपना इनकम टैक्स फाइल नहीं कर पाएंगे. अब यह फौर्म केवल भारत में रहने वालों के लिए ही होगा. अब NRI को ITR-2 फौर्म से अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना होगा.

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वित्त वर्ष 2018-19 के आईटीआर फौर्म में सैलरी पाने वालों को अपना सैलरी ब्रेकअप बताना होगा. करदाताओं को फौर्म 16 के तहत दावा किए गए भत्ते के बारे में ब्योरा देना होगा, जिन्हें छूट नहीं है, लाभों का मूल्य, वेतन के बदले में लाभ और कटौती आदि का भी ब्योरा देना होगा. आमतौर पर, ये नियोक्ता द्वारा जारी फौर्म 16 में उपलब्ध हैं लेकिन कर रिटर्न में खुलासा नहीं करना पड़ता है. टैक्स डिपार्टमेंट ने अपने एक बयान में बताया था कि एक पेज की आईटीआर या सहज फौर्म से 50 लाख रुपए तक की सैलरी इनकम और एक अपना घर वालों ने टैक्स दिया था. पिछले साल 3 करोड़ करदाताओं ने इस फौर्म को भरा था.

इसके अलावा इसमें नोटबंदी के तुरंत बाद खाते में जमा किए गए पैसे की भी जानकारी देन होगी. इसके अलावा सरकार की अनुमानित कराधान योजना के अंतर्गत भुगतान करने वाले लोगों को अपने जीएसटीआईएन और जीएसटी के तहत दर्ज टर्नओवर का विवरण देना होगा, क्योंकि सरकार इन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर आंकड़ों को जोड़कर इन संस्थाओं के बीच कर चोरी की जांच कर रही है.

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खुशखबरी: अब एयरटेल टीवी ऐप पर फ्री में देखें आईपीएल 2018 के सभी मैच

एयरटेल के ग्राहक अब एयरटेल टीवी ऐप के जरिए आईपीएल के मैच देख सकते हैं और उसका लुत्फ उठा सकते हैं. जी हां, भारती एयरटेल ने अपने यूजर्स को बड़ा तोहफा देते हुए IPL 2018 के सभी मैचों को लाइव टेलिकास्ट करने का फैसला लिया है. इसके लिए कंपनी ने क्रिकेट प्रेमियों को ध्यान में रखते हुए एयरटेल टीवी ऐप का नया वर्जन भी पेश किया है. भारती एयरटेल का कहना है कि उसके टीवी ऐप पर आईपीएल के मैचों का सीधा प्रसारण देखा जा सकता है. कंपनी यह प्रसारण हौटस्टार के जरिए करेगी.

एयरटेल के सीईओ (कंटेंट और ऐप्स) समीर बत्रा ने बताया कि ऐप में IPL 2018 को जोड़कर हम काफी खुश हैं. एयरटेल Tv app यूजर्स आईपीएल 2018 की लाइव स्ट्रीमिंग देख सकेंगे.

फ्री में देख सकेंगे IPL-11 के सभी मैच

इसके लिए उन्हें Hotstar को कोई सब्सक्रिप्शन चार्ज नहीं देना होगा. हालांकि, मैच देखने के दौरान खपत होने वाले डेटा का भुगतान करना होगा. इसके लिए एयरटेल के ग्राहकों को एयरटेल टीवी ऐप का लेटेस्ट वर्जन डाउनलोड करना होगा. एयरटेल टीवी में यूजर्स अपनी पसंदीदा टीमों का चयन कर उन्हें फौलो कर सकते हैं, जो मैच खेले जा रहे हैं उनकी खबर जान सकते हैं और आने वाले शिड्यूल की जानकारी भी ले सकते हैं. इसके अलावा यूजर्स को मैच के नोटिफिकेशन भी मिलेंगे.

हालांकि एयरटेल ऐप का इस्तेमाल सिर्फ एयरटेल के यूजर्स ही कर सकेंगे. गौरतलब है कि एयरटेल टीवी ऐप पर सभी कन्टेंट जून 2018 तक एयरटेल के पोस्टपेड और प्रीपेड ग्राहकों के लिए मुफ्त में उपलब्ध हैं. वहीं जियो की तरह एयरटेल ने भी अपने ऐप में इंटरेक्टिव गेम्स और कन्टेस्ट कराएगा जिसमें भाग लेकर पुरस्कार जीते जा सकते हैं.

पांच से सात गुना बढ़ेगी स्पीड

दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी भारती एयरटेल ने IPL मैचों के गंतव्यों पर प्री- 5G प्रौद्योगिकी लगाने की घोषणा की. कंपनी ने कहा कि इससे उसके नेटवर्क की क्षमता पांच से सात गुना तक बढ़ जाएगी और उसके ग्राहकों को उच्च गति का इंटरनेट उपलब्ध होगा.

इन शहरों में शुरू करेगी प्री- 5G सेवा

एयरटेल यह प्रौद्योगिकी आईपीएल मैचों के गंतव्यों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, मोहाली, इंदौर, जयपुर, बेंगलुरु और चेन्नई में लगाएगी.

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मेकअप के ये आसान टिप्स अपना कर आप बन जाएंगी ब्यूटी क्वीन

मेकअप से अपने चेहरे को निखारना और अपनी खूबसूरती की तारीफ बटोरना भला कौन महिला नहीं चाहती. चाहे कामकाजी महिला हों या गृहिणी, कम समय में न सिर्फ बेहतर मेकअप करना चाहती हैं, बल्कि वे चाहती हैं कि मेकअप नैचुरल भी दिखें.

यहां पेश हैं, झटपट मेकअप के आसान टिप्स:

फाउंडेशन: अपनी त्वचा से मैच करता फाउंडेशन का यूज करें. अगर आप के मेकअप का बेस ठीक रहेगा तो मेकअप नैचुरल दिखाई देगा. केक लिक्विड और पाउडर फाउंडेशन मार्केट में उपलब्ध हैं. अगर आप धूप में ज्यादा रहती हैं, तो एसपीएफ युक्त फाउंडेशन का यूज करें. धूप से स्किन प्रभावित नहीं होगी.

पाउडर फाउंडेशन का यूज करें. इस में हाइड्रेटिंग या स्टेन फिनिश लिक्विड फाउंडेशन आजमा कर देखें.

पाउडर टच: पाउडर की तुलना में क्रीम आईशैडो और क्रीम ब्लश औन से आंखों व गालों की स्किन ज्यादा ड्राई दिखाई देती है. कुछ वक्त के बाद आंखों की स्किन पर ड्राई पैच दिखाई देता है और गालों पर झुर्रियां ज्यादा साफ दिखाई देती हैं. ऐसे में लाइट पाउडर आईशैडो और पाउडर ब्लश औन यूज करें.

आई पैसिंल: कम उम्र की युवितयां अगर आईलाइनर नहीं लगाना चाहती हैं, तो कलरफुल पैंसिल लगा सकती हैं. आजकल 2 कलर की आईपैंसिल लगाने का भी चलन है.

स्पैशल लिप कलर: फेस पर तुरंत ताजगी लाने के लिए अपनी लिपस्टिक का रंग बदलें. अगर नैचुरल कलर की लिपस्टिक लगा रही हैं, तो लिपकलर रूल भूल कर रैड शेड्स आजमाएं. आसानी से बनाए जाने वाला कुछ नया हेयरस्टाइल आजमाने और रैड लिपस्टिक लगाने पर हौट लुक आएगा.

प्योर ब्राउन शेड्स: अगर आप अपनी आंखों पर ब्राउन आईशैडो ही लगाना पसंद करती हैं, तो अपने दिल को मनाएं और यह शेड न लगाएं. इस शेड में पीले या लाल रंग के कुछ अंश होते हैं. इस से आंखें थकी हुई दिखाई देती हैं. कत्थई रंग का प्योर ब्राउन शेड लगाएं. इस से नैचुरल लुक आएगा.

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रोडसाइड टैटूइंग के साइडइ फैक्ट्स जानती हैं आप

इंडियन एसोसिएशन औफ लिवर द्वारा किए गए शोध के मुताबिक देश में हैपेटाइटिस का औसत प्रसार 4.7 प्रतिशत है. दुनियाभर में हैपेटाइटिस से 40 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं जो एचआईवी रोगियों के मुकाबले दसगुना अधिक हैं.

आज के युवा हैल्थ से ज्यादा स्टाइल को तवज्जुह देते हैं. कभी अपनी प्रेमिका के नाम को तो कभी अपने फेवरेट कैरेक्टर को अपनी बौडी पर टैटू के जरिए दर्ज करने के चक्कर में वे इस के साइडइफैक्ट्स तक भूल जाते हैं. एक हद तक ऐक्सपरिमैंट करने या नई चीजों को तलाशने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन टैटू एक ऐसी जोखिमभरी प्रक्रिया है जो आप के स्वास्थ्य को सीधे खतरे में डालती है. आजकल हर मौल, शौपिंग कौंप्लैक्स या स्ट्रीट मार्केट में टैटू पार्लर्स खुल गए हैं जो आप की पसंद का टैटू बनाने के लिए अच्छीखासी फीस तो लेते हैं, लेकिन युवाओं को यह कोई नहीं बताता कि इन पार्लर्स में कितने लोग सुरक्षित तरीके से इंकिंग करते हैं. कई बार इन की लापरवाही किसी की जान भी ले सकती है.

हैपेटाइटिस का खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना सावधानी के टैटू बनवाने से हैपेटाइटिस हो सकता है. हैपेटाइटिस लिवर की सूजन यानी इनफ्लेमेशन है. यह विभिन्न किस्मों में होती है. हैपेटाइटिस बी और सी दुनियाभर में बढ़ते संक्रमण और मौत के प्रमुख कारण हैं. अनस्टाइल सुइयों या फिर एक ही सुई के इस्तेमाल से यह वायरस, आप के भीतर प्रवेश कर सकता है. हैपेटाइटिस बी बहुत शक्तिशाली है और एचआईवी की तुलना में 0.3 एमएल रक्त की जरूरत के मुकाबले 0.03 मिलीलिटर रक्त ही वायरस फैलाने के लिए पर्याप्त है.

इसी तरह रोडसाइड खुले सैलून में भी लापरवाही बरती जाती है जो स्वास्थ्य पर भारी पड़ती है. एक ही शेविंग ब्लेड के इस्तेमाल से वायरस संचरण यानी ट्रांसमिशन हो सकता है. खास कर जब संक्रमित व्यक्ति को कोई कट लग जाए और घाव खुला हो. इस्तेमाल किए गए ब्लेड से संक्रमित रक्त का संपर्क होता है जिस से यह किसी दूसरे में फैल सकता है. हैपेटाइटिस बी और सी स्थायी लिवर क्षति के कारण घातक हैं क्योंकि यह लिवर कैंसर की बढ़ती आशंका का कारण होता है. यह न सिर्फ आप को बल्कि आप की संतान को खतरे में डालता है. यह रोग वंशानुगत भी होता है. लोगों को ब्रिमिंग लक्षणों के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए, क्योंकि हैपेटाइटिस बी और सी का पता लगाना मुश्किल होता है. उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है या जब तक आप अस्पताल में ग्लूकोज चढ़वाने नहीं जाते तब तक इस के बारे में पता नहीं लग पाता है.

ब्यूटी सैलून और टैटूइंग दे सकते हैं हैपेटाइटिस

हैपेटाइटिस बी और सी वायरस के कारण होते हैं. इन से हैपेटाइटिस, सिरोसिस और लिवर कैंसर भी हो सकता है. हैपेटाइटिस बी और सी में संक्रमण, दूषित खून से फैलता है. आमतौर पर सैक्सुअल इंटरकोर्स, ड्रग्स की लत वाले किसी व्यक्ति में इस्तेमाल की गई सूई से और उच्च वायरल से पीडि़त मांओं से उन के नवजात बच्चे में यह संक्रमण फैल सकता है. लंबे समय से नाई की दुकानों को भारत में संक्रमण का स्रोत माना जाता है, जहां कई ग्राहकों के लिए एक ही रेजर ब्लेड का इस्तेमाल करना आम बात है. यदि उस दूषित रेजर से किसी को एक छोटी सी खरोंच भी लग जाए तो वायरस फैल सकता है.

हाल के वर्षों में हेयर और ब्यूटी सैलून कुकुरमुत्तों की तरह फैले हैं, ये भी हैपेटाइटिस बी या सी फैलाते हैं. चूंकि हैपेटाइटिस बी वायरस हैपेटाइटिस सी वायरस या एचआईवी से अधिक संक्रामक है, इसलिए हैपेटाइटिस बी के संचरण की अधिक आशंका रहती है.

क्या कहते हैं मैडिकल जर्नल

आजकल युवाओं में मैनीक्योर, पेडीक्योर और हेयरकट्स के अलावा कईर् तरह के ब्यूटी ट्रीटमैंट लेने का चलन है. इस के लिए वे कहीं भी, किसी भी पार्लर में जाने से परहेज नहीं करते. नतीजतन, उन के साथ कई तरह की लापरवाही बरती जाती है. यह हाल न सिर्फ भारत का बल्कि पूरी दुनिया का है. वाशिंगटन में अमेरिकन कालेज औफ गैस्ट्रोऐंट्रोलौजी के जर्नल के मुताबिक, मैनीक्योर, पेडीक्योर और हेयरकट्स के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ सामान्य उपकरणों के माध्यम से हैपेटाइटिस फैलने का एक संभावित जोखिम होता है. नेल फाइल्स, नेल ब्रश, फिंगर बाउल्स, फुट बेसिन, रेजर, क्लिपर्स और कैंची इन सब के बीच महत्त्वपूर्ण है. यदि इन्हें ठीक से साफ या औटोक्लेव्ड नहीं किया जाता है तो हैपेटाइटिस बी और सी के संचरण होने का संभावित खतरा रहता है. इस तरह के ट्रांसमिशन के सटीक जोखिम के बारे में अभी तक बेहतर तरीके से स्टडी नहीं हुई है विशेष रूप से भारत में जहां ऐसे सैलून के लिए नियम पश्चिमी दुनिया के मुकाबले बहुत कम हैं.

टैटू बनवाने से पहले

हैपेटाइटिस बी और सी दोनों को टैटू द्वारा प्रेषित किया जा सकता है. यदि किसी को हैपेटाइटिस बी के खिलाफ टीका लगाया जाता है तो संक्रमण होने का जोखिम काफी कम हो जाता है. हैपेटाइटिस सी के लिए कोई टीका नहीं है लेकिन दोनों को काफी हद तक रोका जा सकता है. टैटू की प्रक्रिया स्याही की छोटी बूंदों के इंजैक्शन के दोहराइए जाने से होती है. इस में सूई को कईर् बार चुभोया जाता है. यदि आप कोई पार्लर चुनते हैं जो उचित संक्रमण नियंत्रण प्रक्रियाओं का पालन नहीं करता है तो यह इस तरह के संक्रमण होने की आशंका को बढ़ाएगा. ऐसे टैटू पार्लर का उपयोग करें जिन के पास उचित परमिट हैं और निवारण जहां सभी संक्रमण का पालन किया जाता है. ऐसे पार्लर का उपयोग करें जो सूइयों, स्याही कप का सही तरीके से इस्तेमाल करता हो. सुनिश्चित करें कि टैटू बनाने वाले व्यक्ति ने अच्छी क्वालिटी के दस्ताने पहने हों. यदि वहां स्वच्छता नहीं है तो टैटू पार्लर को तुरंत छोड़ दें.

क्या कहते हैं टैटू आर्टिस्ट

सीनियर टैटू आर्टिस्ट चार्ली भी इस बात को मानते हैं कि देश में करीब 50 प्रतिशत टैटू पार्लर्स असुरक्षित तरीके से टैटू बनाने का काम कर रहे हैं. उन के मुताबिक, अगर आप टैटू आर्टिस्ट हैं तो आप को युवाओं की स्किन और हैल्थ से समझौता नहीं करना चाहिए. जिस जगह पर भी टैटू पार्लर हैं, वह जगह अच्छे तरीके से साफ होनी ही चाहिए लेकिन शरीर के जिस हिस्से में टैटू बनाना है उसे साफ रखना सब से जरूरी काम है.

युवा जब भी टैटू पार्लर जाएं तो आंख बंद कर टैटू आर्टिस्ट की बातों में आने के बजाय खुद देखें कि वहां टैटू बनाने में इस्तेमाल होने वाली स्पैशल नीडल का प्रयोग हो और मशीन भी स्तरीय हो. नीडल की सील खुली न हो और उसे रखने की जगह भी प्रौपरली सैनिटाइज हो वरना कईर् जगहों पर खास कर मेलों और स्ट्रीट मार्केट में जुगाड़ मशीनों का इस्तेमाल कर युवाओं की स्किन से खिलवाड़ किया जाता है. हैंडग्लव्स भी यूज ऐंड थ्रो यानी लोकल क्वालिटी के बजाय अच्छी वाले हों, इस का भी ध्यान रखें.

चार्ली बताते हैं कि टैटू में इस्तेमाल होने वाली इंक भी प्रौपर वेजीटेबल पिगमैंट वाली हो, न कि लोकल फैब्रिक या कैमल इंक वरना स्किन एलर्जी और इन्फैक्शन होने का खतरा रहता है. जिस तरह हम डाक्टर के पास जाने से पहले उस की डिगरी और काबिलीयत के बारे में जान व समझ लेते हैं.

वैसे टैटू पार्लर और आर्टिस्ट का रजिस्ट्रेशन, सर्टिफिकेट और उस का पिछला रिकौर्ड आदि देख कर ही जाएं. डाक्टर को 100-200 रुपए देते समय हम इतनी सावधानी दिखाते हैं तो फिर टैटू में तो हजारों खर्च होते हैं. आखिर में चार्ली कहते हैं कि टैटू, पियर्सिंग

एक कला है और इस से समझौता नहीं होना चाहिए.

मुख्य स्रोत और उन की रोकथाम

शराब के ज्यादा सेवन से अल्कोहौलिक हैपेटाइटिस हो सकता है. कुछ दवाएं भी हैपेटाइटिस का कारण बन सकती हैं. इन में सब से आम आंट ट्यूबरकुलर दवाओं का उपयोग है. पूरक और वैकल्पिक दवाइयां (सीएएम) हमारे देश में हैपेटाइटिस का एक अन्य कारण है. वायरस के कारण हैपेटाइटिस ई शामिल हैं. हैपेटाइटिस ए और ई के वायरस दूषित पानी में पैदा होते हैं.

हैपेटाइटिस ए और ई के विपरीत, हैपेटाइटिस बी, सी और डी को फैलाने वाला वायरस दूषित रक्त द्वारा संक्रमित होता है. इसलिए किसी व्यक्ति को असुरक्षित संभोग से और इंजैक्शन में इस्तेमाल असुरक्षित सूइयों से संक्रमण हो सकता है.

गर्भवती मां से नवजात शिशु को भी यह संक्रमण हो सकता है. इस में सी के मुकाबले हैपेटाइटिस बी होने की अधिक आशंका रहती है.

इस से पहले ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण भी हैपेटाइटिस बी और सी के वायरस फैलते थे, लेकिन अब ब्लडबैंक हैपेटाइटिस बी और सी के लिए रक्तदाता की जांच करते हैं, ऐसे ट्रांसमिशन असामान्य हैं. ट्रांसमिशन के अन्य तरीकों में ब्यूटी सैलून, नाई की दुकान, टैटूइंग, हैमोडायलिसिस आदि शामिल हैं.

कुल मिला कर स्टाइल और टशन अपनी जगह है, टैटू बनवाना है तो जल्दबाजी न दिखाएं. उपरोक्त सावधानियों और निर्देशों का पालन जरूर करें वरना आप की एक छोटी सी लापरवाही जिंदगी भर का रोग दे सकती है.

(यह लेख डा. वी के मिश्रा, गैस्ट्रोएंट्रोलौजिस्ट, द गैस्ट्रोलिवर अस्पताल, कानपुर, टैटू आर्टिस्ट चार्ली और ब्यूटी ऐक्सपर्ट्स से बातचीत पर आधारित है.)

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मोदी के गले में कसता जा रहा है बेरोजगारी का फंदा

बेरोजगारी का फंदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में कसता जा रहा है. इसलिए अब अच्छे दिनों, 15 लाख रुपए हर खाते में, पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काट कर लाने जैसे झूठे वादों की तरह रेलवे में 90 हजार नौकरियों का विज्ञापन छपवाया गया है. यही नहीं, विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में भारतीयों को नौकरी देने के समाचार भी छपवाए जा रहे हैं. ये सब बातें लोकलुभावन हैं क्योंकि असली नौकरियों का अभी अकाल ही है.

वैसे जो अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है, जैसा वित्तमंत्री अरुण जेटली देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सोतेजागते कहते रहते हैं, वहां नौकरियों की कमी नहीं होती. नौकरियों की कमी वहीं होती है जहां अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही हो और व्यापार व उत्पादन कम हो रहा हो. सरकार घटते व्यापार व उत्पादन की वजह से ज्यादा टैक्स जमा कर के निठल्लों को नौकरियां नहीं दे पा रही. निजी सैक्टर पर कानूनों, नोटबंदी, जीएसटी और ऊपर से कंप्यूटरी युग थोपने की वजह से नौकरियां और भी कम हो रही हैं.

पहले के समय में अखबार नए उद्योगों, नई कंपनियों, नए उत्पादनों की खबरों से भरे रहते थे. लेकिन आजकल भगोड़ी कंपनियां ही सुर्खियों में हैं. हर रोज पता चलता है कि किसी गुमनाम सी कंपनी ने 250 से 3,000 करोड़ रुपए तक कर्ज लिया और उस के प्रमोटर्स भाग गए. ऐसी कंपनियों के चलते रोजगार कम होंगे, बढ़ेंगे नहीं.

कुछ सैक्टरों को छोड़ दें तो हर क्षेत्र में सन्नाटा सा है. कृषि मंडियों से ले कर आईटी कंपनियों तक एक तलवार लटकी है कि कल न जाने क्या होगा. सरकारी वादे असल में पंडों जैसे वादे साबित हो रहे हैं कि यजमान, बस, तुम दानपुण्य करते रहो, भगवान झोली भरेंगे. बेरोजगारों से कहा जा रहा है कि तुम एप्लीकेशनें और उन की फीस भरते रहो और ऊपर से नौकरियों के टपकने का इंतजार करते रहो.

सरकारी क्षेत्र में लगीबंधी, ऊपरी कमाई वाली नई नौकरियां बहुत कम होती जा रही हैं. सरकार के पास न पैसा है और न ही ऐसे क्षेत्र बचे हैं जिन में वह बेरोजगारों को नौकरी दे कर खपा सके. लाखों नौकरियां तो सरकार ने खुद कौंटै्रक्टरों को दे दी हैं जो युवाओं को रखते हैं, उन से काम लेते हैं पर उन्हें सरकारी नौकरी सा मजा नहीं देते. मेहनत से काम करने की आदत होती तो नौकरियों का अकाल ही क्यों होता?

कठिनाई यह है कि अब शिक्षा महंगी हो गई. पहले सस्ती सरकारी शिक्षा के बाद कम वेतन वाली नौकरी करने में दिक्कत नहीं होती थी. अब लगता है कि यदि लाखों रुपए खर्च कर ऊंची पढ़ाई करने के बाद भी कुछ विशेष नहीं मिला तो क्या लाभ? विदेशों में तो कुछ अवसर हैं पर वहां भारतीयों की महंगी शिक्षा भी काम नहीं आती. वे उस न्यूनतम ज्ञान से भी अनभिज्ञ होते हैं जिस को विदेशी सामान्य मानते हैं.

नौकरियों के अवसर देना किसी भी देश की सरकार के लिए टेढ़ी खीर होता है. भारत सरकार के लिए तो यह और ही कठिन है. हां, अगर पूजापाठ की नौकरियां चाहिए तो शायद बहुत अवसर हैं क्योंकि देश में कारखाने बने नहीं, मंदिर जरूर बनतेबढ़ते जा रहे हैं.

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एसयूवी गाड़ियां : बग्घियों सी शाही सवारी

अंगरेजों की हुकूमत के दौरान भारत में बग्घियों का चलन शान समझा जाता था. बग्घियों को घोड़े खींचते थे और इन बग्घियों की सजावट पर काफी ध्यान दिया जाता था. इन के कलपुर्जों को तैयार करने के लिए लोहे व तांबे का प्रयोग किया जाता था. उन के बाकी इंटीरियर व सजावट में लकड़ी, पीतल के साथ सोने और चांदी तक का प्रयोग किया जाता था. बग्घियों की सजावट में जिन कपड़ों का प्रयोग होता था वे बेहद खास होते थे. उन पर महीन कसीदाकारी भी होती थी. बग्घियों को शाही सवारी का दरजा हासिल था. ज्यादातर अंगरेज अफसर, राजारजवाड़े और नवाब इन का प्रयोग करते थे. मोटरकार जब चलन में आ गई थी, उस के बाद भी शान दिखाने के लिए बग्घियों की सवारी की जाती थी. बग्घियों और सामान्य कार में अंतर यह होता है कि बग्घी कार से ऊंची होती है. बैठने वाले को अपने ऊंचे होने का एहसास होता रहता है.

देश के कार बाजार में लंबे समय तक एंबैसेडर कार का जलवा था. सालोंसाल तक एंबैसेडर कार चली. पुरानी कार की भी रीसेल वैल्यू होती थी. 1980 के बाद देश के कार बाजार में मारुति कार और जिप्सी जीप का दबदबा बढ़ने लगा. मारुति कार की खासीयत तेज रफ्तार और ईंधन की कम खपत थी. मारुति की छोटी सी कार ने देश के लोगों का दिल जीत लिया. मारुति की तरह दूसरी कार कंपनियों ने भी छोटी कार के बाजार को बढ़ा दिया. मारुति की छोटी कार ने एंबैसेडर को हाशिए पर ढकेल दिया. मारुति कार का यह दौर एक दशक तक बाजार पर छाया रहा.

मारुति को टक्कर देने के लिए भारतीय कार कंपनी टाटा ने लखटकिया कार नैनो को बाजार में उतारा. यह देश में एक कुतूहल का विषय था. बाजार में नैनो अपना खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई. इस का प्रमुख कारण यह था कि भारतीय मानस बड़ी कारों को तलाश रहा था जो बग्घियों की तरह शान की सवारी का प्रतीक बन सकें. छोटी कार का सिमटता बाजार

भारत में मारुति 800 कार लाने वाली कंपनी को अब एसयूवी कार ले कर आना पड़ा. मारुति ने अगले एक साल में जिन 6 नई कारों के मौडल्स को बाजार में लाने की योजना बनाई है उन में 4 कारें एसयूवी होंगी. इस का कारण यह है कि साल 2017 में मारुति की छोटी कारों की बिक्री में 4 फीसदी की कमी आई है, जबकि उस की एसयूवी गाडि़यों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. भारतीय बाजार का यह हाल तब था जब यहां का बाजार नोटबंदी व जीएसटी की चुनौतियों से जूझ रहा था. कार बाजार को देखें तो एसयूवी में 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. मजेदार बात यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों में एसयूवी गाडि़यों की डिमांड ज्यादा है. इस का कारण एसयूवी गाडि़यों को शान की सवारी माना जाना है. इस से दबंगई भी झलकती है. देश के कार बाजार की सभी कंपनियां अब बाजार में सब से ज्यादा एसयूवी गाडि़यां उतारने की तैयारी में हैं. मारुति, हुंडई, फोर्ड, रेनो, टोयटा जैसी कंपनियां अपनी 6 एसयूवी गाडि़यां जल्दी ही लौंच करने की तैयारी में हैं. इस का कारण यह माना जा रहा है कि नई कार खरीदने वाले ज्यादातर युवा हैं और एसयूवी उन की पहली पसंद बनती जा रही है.

रेनो भारतीय कार बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए एसयूवी बाजार पर ही ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहती है. कंपनी ने बाजार में अपनी बढ़त बनाने के लिए कैप्चर को लौंच किया जो विदेश में एसयूवी ब्रैंड में काफी मशहूर है. 10 से 14 लाख रुपए की कीमत वाली कैप्चर की प्रतिस्पर्धा हुंडई की क्रेटा व महिंद्रा की स्कौर्पियो से होगी. दबंगईपसंद लोगों की पहचान बन रही एसयूवी

हुंडई और टोयटा भी नए मौडल के साथ बाजार में हैं. हुंडई भी एसयूवी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही है. टोयटा एसयूवी के बाजार में नएनए प्रयोग कर रही है. ये दोनों कंपनियां देश के मध्य वर्ग को एसयूवी से जोड़ने की योजना के साथ आ रही हैं. टोयटा की रश सस्ती एसयूवी होगी. हुंडई की क्रेटा भारतीय बाजार में बड़े वर्ग के लोगों द्वारा पसंद की जा रही है. एसयूवी टैक्नोलौजी में आगे होने के बाद भी डस्टर के मुकाबले इंटीरियर पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही जिस से वह खरीदारों को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पा रही है.

कार कंपनियां अब यह मान कर चल रही हैं कि भारत के कार बाजार में थ्री बौक्स कार सेडान का वापस आना मुश्किल है. ऐसे में एसयूवी गाडि़यां ही सब से अधिक बिकेंगी. भारतीय बाजार में प्रमुख कार कंपनी टाटा मोटर्स ने एक साल में 2 एसयूवी हैक्सा और नैक्सन पेश कर ग्राहकों को लुभाया है. टाटा जल्द ही इसी वर्ग की 2 नई गाडि़यां लाने की तैयारी में है. भारतीय कार के खरीदारों में 2 तरह के लोग हैं. एक वर्ग एसयूवी गाडि़यों की आड़ में अपनी दबंगई, स्पीड और शान को दिखाना चाहता है. ऐसे लोग ज्यादातर काले रंग की गाडि़यां पसंद करते हैं. एक समय में काला रंग माफियाओं को पसंद आने लगा था. उत्तर प्रदेश और बिहार के तमाम बाहुबली इस का प्रयोग करते थे. ऐसे में समाज के दूसरे वर्ग ने काले रंग की कारों से परहेज करना शुरू कर दिया. सेडान महंगी होने के बाद भी कम पसंद की जा रही है. इस की एक प्रमुख वजह सड़क की कंडीशन भी होने लगी है. जिन प्रदेशों की सड़कें सही नहीं हैं वहां के लोग एसयूवी को प्रमुखता दे रहे हैं. पहाड़ी प्रदेशों में रहने वालों को भी बड़े टायर और बड़ी ताकत वाली एसयूवी कारें ज्यादा पसंद हैं. सरकारी खरीद में अब एंबैसेडर की खरीद बंद हो गई है. वहां एसयूवी की जगह लग्जरी गाडि़यां पसंद की जा रही हैं.

पहले जहां कार खुद ही शान की सवारी होती थी, अब उस में भी अलगअलग वर्ग हो गए हैं. एसयूवी में 2 तरह के मौडल हैं. कम कीमत वाली क्रौसओवर एसयूवी कार कहलाती है. इस की कीमत 8 लाख से 14 लाख रुपए तक होती है. 12 से 20 लाख रुपए वाली प्रीमियम एसयूवी कार कहलाती है. सब से महंगी प्रीमियम एसयूवी 22 लाख रुपए से शुरू होती है. ऐसे में केवल एसयूवी के आरंभिक मौडल की कार खरीद कर उसे शान की सवारी कहना मुश्किल होगा. उस में भी अलगअलग वर्ग हैं. कुल मिला कर कार बाजार में एसयूवी कारों की धूम है. छोटी कार का बाजार अब सिमटता जा रहा है.

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सवा अरब की आबादी वाला देश नोबेल की दौड़ में पीछे क्यों

राइनर वाइस, बैरी बैरिश और किप थोर्ने को इस साल का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है. गुरुत्त्वीय तरंगों की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को इस साल भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला है. वैज्ञानिक अमेरिका के हैं. इस बार भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 3 लोगों को संयुक्त रूप से दिया गया है. पुरस्कार की आधी रकम जरमनी में पैदा हुए वाइस को मिलेगी जबकि आधी रकम थोर्ने और बैरिश में बांटी जाएगी. राइनर वाइस मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी से जुड़े हैं जबकि बैरी बैरिश और किप थोर्ने कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी से जुड़े हैं. सितंबर में गुरुत्वीय तरंगों की खोज में इन तीनों वैज्ञानिकों की अहम भूमिका थी. कई महीनों बाद जब इस खोज का ऐलान किया गया था तब न सिर्फ भौतिक विज्ञानियों में बल्कि आम लोगों में भी सनसनी फैल गई थी. इन तीनों अमेरिकी वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का पता लगाया और अल्बर्ट आइंस्टाइन के सदियों पुराने सिद्धांत को सच साबित किया.

गुरुत्वीय तरंगों की जिस खोज के लिए 3 अमेरिकी वैज्ञानिकों को फिजिक्स के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है, उस खोज में भारतीय वैज्ञानिकों का भी बड़ा हाथ है. कुल 37 भारतीय वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों की खोज का पेपर तैयार करने में अपना योगदान दिया है. हम आज भी नोबेल पुरस्कार पाने में बहुत पीछे हैं, चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो या साहित्य का. लगभग सवा अरब आबादी और करीब 800 भाषाओं वाले देश के खाते में अब तक साहित्य का सिर्फ एक ही नोबेल पुरस्कार मिला है, सौ साल से भी ज्यादा समय बीत गया जब भारत को साहित्य का पहला और इकलौता नोबेल पुरस्कार मिला था. तब से रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य के क्षेत्र में भारत के अकेले नोबेल विजेता हैं.

साहित्य के क्षेत्र में भारत में नोबेल पुरस्कार के सूखे की क्या वजह है. क्या भारत में ऐसा कुछ नहीं लिखा जा रहा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींच पाए या फिर भारत में जो लिखा जा रहा है वह दुनिया तक नहीं पहुंच रहा है? क्या कारण है कि भारत में इतने साहित्य लिखे जाने के बावजूद किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिल पाता.

कुछ रोचक तथ्य

नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष 1901 में शुरू किया गया यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है. इस पुरस्कार के रूप में प्रशस्तिपत्र के साथ 14 लाख डौलर की राशि प्रदान की जाती है. अल्फ्रेड नोबेल ने कुल 355 आविष्कार किए जिन में 1867 में किया गया डायनामाइट का आविष्कार भी था. नोबेल को डायनामाइट तथा इस तरह के विज्ञान के अनेक आविष्कारों की विध्वंसक शक्ति की बखूबी समझ थी. साथ ही, विकास के लिए निरंतर नए अनुसंधान की जरूरत का भी उन्हें भरपूर एहसास था.

दिसंबर 1896 में मृत्यु से पहले8 अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया. उन की इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिन का काम मानव जाति के लिए सब से कल्याणकारी पाया जाए. स्वीडिश बैंक में जमा इसी राशि के ब्याज से नोबेल फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है. नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 29 जून, 1900 को हुई तथा 1901 से नोबेल पुस्कार दिया जाने लगा. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1968 से की गई. पहला नोबेल शांति पुरस्कार 1901 में रेड क्रौस के संस्थापक ज्यां हैरी दुनांत और फ्रैंच पीस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष फ्रेडरिक पैसी को संयुक्तरूप से दिया गया.

अल्फ्रेड नोबेल की मौत के बाद जब उन का वसीयतनामा खोला गया तो उन के परिवार वाले दंग रह गए. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि नोबेल अपनी सारी संपत्ति इन पुरस्कारों के नाम कर जाएंगे. 5 वर्षों तक उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. लेकिन 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत की गई. पिछले 112 सालों में नोबेल पुरस्कारों की दुनिया में बहुत कुछ हो गया है. यह पुरस्कार केवल जीवित लोगों को ही दिया जा सकता है.

मरणोपरांत पुरस्कार

3 व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया. सब से पहले 1931 में एरिक एक्सल कार्लफेल्ट को साहित्य के लिए और फिर 30 वर्षों बाद 1961 में डाग हामरशोल्ड को शांति पुरस्कार दिया गया. इन दोनों की ही मौत नामांकन और पुरस्कार दिए जाने के बीच हुई. मगर 1974 से नियम बदल कर ऐसा होने की संभावना भी मिटा दी गई. 2011 में कनाडा के राल्फ स्टाइनमन को चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लेकिन जब उन का नाम चुना गया उस वक्त नोबेल कमेटी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि स्टाइनमन की 3 दिन पहले ही मौत हो चुकी है. इस मामले को नोबेल कमेटी ने अपवाद करार दिया.

1948 में महात्मा गांधी का नाम भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना जाना था, लेकिन नामांकन से 2 दिन पहले ही उन की हत्या कर दी गई. उस समय भी कमेटी ने मरणोपरांत पर चर्चा तो की, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं. कमेटी ने कई बार इस पर खेद भी जताया. महात्मा गांधी को आज तक नोबेल पुरस्कार नहीं मिला. उन्हें यह पुरस्कार न दिया जाना नोबेल पुरस्कारों के इतिहास की सब से बड़ी भूल है. हालांकि महात्मा गांधी 5 बार इस पुरस्कार के लिए नामित किए जा चुके हैं.

17 वर्ष की उम्र में नोबेल

2014 में नोबेल पाने वाली मलाला यूसुफजई इस पुरस्कार की अब तक की सब से युवा विजेता हैं. नोबेल पुरस्कार विजेताओं को चुनने वाली कमेटी इस बात का विशेष ध्यान रखती है कि नोबेल पुरस्कार योग्य काम करने वाले व्यक्ति की उम्र जितनी कम हो उतना अधिक अच्छा होता है. साल 2014 में पाकिस्तान की मलाल यूसुफजई को जब नोबेल पुरस्कार मिला तब उन की उम्र महज 17 साल थी. कैमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की औसत उम्र 58 साल है. जहां अर्थशास्त्र और साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की उम्र क्रमश: 67 और 65 साल है वहीं भौतिकी और शांति में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की औसत उम्र 56 साल और 61 साल की है. गौरतलब है कि सिर्फ शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वालों की औसत उम्र में गिरावट के अलावा बाकी सभी पुरस्कार वालों की औसत उम्र में वृद्धि देखने को मिली है.

2 बार नोबेल पाने वाले इसी तरह 4 ऐसे लोग भी हैं जिन्हें 2 बार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. अमेरिका के जौन बारडेन को 2 बार भौतिकी के लिए पुरस्कार मिला. पहली बार 1956 में ट्रांजिस्टर के आविष्कार के लिए और दूसरी बार 1972 में सुपरकंडक्टिविटी थ्योरी के लिए. कैमिस्ट्री में 2 बार पुरस्कार मिला ब्रिटेन के फ्रेडेरिक सैंगर को. पहली बार 1958 में इंसुलिन की संरचना को समझने के लिए और दूसरी बार 1980 में.

एक शख्स ऐसे भी हैं जिन्हें 2 अलगअलग क्षेत्रों में पुरस्कार दिया गया है. अमेरिका के लाइनस पौलिंग को 1954 में कैमिस्ट्री के लिए और फिर 1962 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने परमाणु बम के परीक्षण के खिलाफ आवाज उठाई थी.

दौड़ में महिलाएं पीछे

नोबेल पुरस्कार के क्षेत्र में महिलाएं अभी भी बहुत पीछे हैं. मैरी क्यूरी एकमात्र महिला हैं जिन्हें 2 बार नोबेल पुरस्कार मिला, 1903 में रेडियोऐक्टिविटी समझने के लिए फिजिक्स में और 1911 में पोलोनियम और रेडियम की खोज करने के लिए कैमिस्ट्री में. 2012 तक कुल 44 महिलाओं को ही नोबेल पुरस्कार दिया गया है. इन में से 16 विज्ञान के क्षेत्र में हैं, भौतिकी में 2, रसायन शास्त्र में 4 और चिकित्सा में 10. साल 1901 में शुरू हुए नोबेल पुरस्कारों में अभी तक सिर्फ 48 महिलाओं को ही नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार

कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था. 1964 में फ्रांस की ज्यां पौल सार्त्र ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था. उन का कहना था, ‘‘एक लेखक को खुद को संस्थान नहीं बनने देना चाहिए.’’ इस के बाद 1973 में विएतनाम के ले डुक थो ने देश के राजनीतिक हालात के चलते पुरस्कार लेने से मना कर दिया था. इस के अलावा हिटलर के शासन के दौरान वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार स्वीकारने की अनुमति नहीं थी. 1038 में रिचर्ड कून, 1939 में अडोल्फ बूटेनांट और गेरहार्ड डोमाक को नामांकित किया गया था. दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद ही उन्हें पुरस्कार दिया जा सका, हालांकि पुरस्कार की राशि उन्हें नहीं दी गई.

ज्यादा पुरस्कार किसे

सब से अधिक नोबेल पुरस्कार अमेरिकी लोगों को मिले हैं. भौतिकी में अमेरिका के कुल 222 लोगों को नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं जोकि 47 प्रतिशत के आसपास है. मैडिसिन में कुल 219 अमेरिकी लोगों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं जो कुल 51 प्रतिशत है. कैमिस्ट्री में 194 अमेरिकी लोगों को नोबेल मिल चुके हैं जो कुल 41 प्रतिशत के आसपास है. साहित्य में अब तक कुल 111 अमेरिकी लोगों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं जो 6 प्रतिशत के आसपास है. इसी तरह शांति और अर्थशास्त्र में क्रमश: 102 और 83 अमेरिकी हस्तियों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं.

अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर जरमनी है. इस के बाद ब्रिटेन और फ्रांस का नंबर आता है. इसे संयोग ही कहेंगे कि पुरस्कार लेने वाले अधिकतर लोगों का जन्मदिन 21 मई और 28 फरवरी को होता है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस दिन विद्वान जन्म लेते हैं. नोबेल पुरस्कारों का चयन करने वाली स्वीडिश कमेटी के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार किसी भी स्थिति में 3 से अधिक लोगों को नहीं दिया जा सकता.

साहित्य की खुशबू

भारत में साहित्यिक भाषा बोलने वालों की तादाद 55 करोड़ से ज्यादा है. 10 सब से ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उडि़या 10वें नंबर पर आती है जिसे 3 करोड़ से ज्यादा लोग बोलते हैं. यह भाषायी विविधता सांस्कृतिक विविधता की कोख से जन्मी है. इस लिहाज से देखें तो साहित्य सृजन के लिए भारत में बहुत अच्छा माहौल है. लेकिन नए साहित्य की खुशबू दुनिया तक नहीं पहुंच रही है. दुनिया का सवाल तो बाद में आता है, पहले यह सोचने की जरूरत है कि भारत के एक कोने में रहने वाले लोग दूसरे कोने में रचे जा रहे साहित्य को कितना जानते हैं या उस में कितनी दिलचस्पी लेते हैं? एक भाषा के लोगों तक दूसरी भाषा के साहित्य को पहुंचाने के लिए अनुवाद ही अकेली कड़ी है. इसी के सहारे दुनिया तक भी पहुंच सकते हैं. फिलहाल भारत में यह कड़ी उतनी मजबूत नहीं दिखती, जितनी होनी चाहिए. रवींद्रनाथ टैगोर की जिस कृति ‘गीतांजलि’ ने उन्हें नोबेल दिलाया, वह भी दुनिया तक अनुवाद के जरिए ही पहुंची थी.

भारत में न कहानियों की कमी है और न ही कहने वालों की. सवाल यह है कि भारत के लोग खुद अपने साहित्य और उसे दुनिया तक पहुंचाने को ले कर कितना गंभीर हैं. यहां जरूरत भारत के साहित्य को इस तरह पेश करने की है कि भाषा और संस्कृति के बंधनों से परे दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला शख्स उन्हें महसूस कर सके. अगर साहित्य समाज का आईना है तो भारत में बहुतकुछ ऐसा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींचने की ताकत रखता है. लेकिन खींचने वाली इस डोर को और मजबूत करना होगा.

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