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आईपीएल में दिल्ली की टीम को लगा झटका, नहीं खेलेगा यह खिलाड़ी

आईपीएल शुरु होने से चंद दिनों पहले ही दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम को तगड़ा झटका लगा है. दरअसल दक्षिण अफ्रीका के धुरंधर गेंदबाज और आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से खेलने वाले कगिसो रबाड़ा कमर में चोट के कारण अगले तीन महीनों के लिए क्रिकेट मैदान से दूर हो गए हैं. इस कारण रबाड़ा आईपीएल में भी नहीं खेल पाएंगे.

बता दें कि दिल्ली की टीम ने 4.20 करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम में कगिसो रबाड़ा को अपने साथ जोड़ा था. लेकिन अब रबाड़ा के चोटिल होने से आईपीएल में दिल्ली की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है. रबाड़ा हाल ही में खेली गई औस्ट्रेलिया दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरीज में 23 विकेट लेकर मैन औफ द सीरीज बने थे.

गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका और औस्ट्रेलिया के बीच खेली गई टेस्ट सीरीज मंगलवार को ही समाप्त हुई है. इस सीरीज के आखिरी मैच के आखिरी दिन रबाड़ा ने थकान और कमर दर्द के कारण सिर्फ 3 ओवर ही गेंदबाजी की. जब रबाड़ा से उनके बिजी शेड्यूल और आईपीएल में खेलने पर सवाल किया गया था तो रबाड़ा ने कहा था कि ईमानदारी से कहूं तो मेरे पास इसका जवाब नहीं है.

मुझे इस बारे में कुछ सोचना होगा, ताकि मैं कुछ दिन का आराम कर सकूं. रबाड़ा ने कहा था कि वह 10-15 साल और खेलना चाहते हैं और इसलिए उन्हें कुछ प्लान करना होगा. रबाड़ा ने हाल ही में घरेलू मैदान पर खेले गए सभी 10 टेस्ट मैच खेले हैं. साथ ही रबाड़ा इस दौरान 8 वनडे मैच भी खेले हैं. इसके बाद उन्हें आईपीएल खेलना था और आईपीएल के बाद दक्षिण अफ्रीका को श्रीलंका का दौरा करना था. लेकिन चोट के कारण कगिसो रबादा का श्रीलंका के खिलाफ खेलना भी संदिग्ध है.

औस्ट्रेलिया के खिलाफ जब रबाड़ा को कमर में परेशानी हुई थी, उसी वक्त अंदाजा लगाया गया था कि रबाड़ा आईपीएल से बाहर हो सकते हैं. दिल्ली की टीम को 8 अप्रैल को होने वाले अपने पहले मैच में पंजाब का सामना करना था. रबाड़ा के विकल्पों की बात करें तो वेस्टइंडीज के जेसन होल्डर, औस्ट्रेलिया के जेम्स फौकनर, रबाड़ा के हमवतन मोर्ने मोर्कल, इंग्लैंड के टाइमल मिल्स, और इंग्लैंड के डेविड विली आईपीएल में रबादा के दावेदार हो सकते हैं.

मिसिंग : नयनसुख देने वाली लोकेशन के सिवा कुछ नहीं

यदि आप फिल्म देखकर मनोरंजन पाने की बजाय विचलित यानी कि अपना मन अशांत करना चाहते हैं, तो आपको फिल्म ‘‘मिंसिंग’’ जरूर देखनी चाहिए. मनोरंजन, रहस्य व रोमांच विहीन फिल्म है ‘‘मिसिंग’’.

फिल्म ‘‘मिसिंग’’ की कहानी के केंद्र में सुशांत दुबे (मनोज बाजपेयी) और अपर्णा (तब्बू) हैं. सुशांत दुबे शादीशुदा हैं. उनका अपना चार साल का बेटा भी है. वह अपने ससुर की कंपनी में ही नौकरी करते हैं. सुशांत दुबे की पत्नी काम्या दुबे उन पर हमेशा शक करती रहती हैं. जब कंपनी के काम से सुशांत दुबे मारीशस जाने लगते हैं, तो काम्या उनके साथ चलने की जिद करती है, पर सुशांत कह देते हैं कि कंपनी के काम से जा रहे हैं, इसलिए वह उन्हे वहां समय नही दे पाएंगे.

सुशांत एक शिप से मारीशस के लिए रवाना होते हैं. शिप के अंदर उनकी मुलाकात अपर्णा  से होती है. अपर्णा बताती है कि उसका अपने पति विशाल से तलाक होने वाला है. विशाल उसे व उनकी बेटी तितली को नुकसान पहुंचना चाहते हैं, इसलिए वह अपनी तीन वर्ष की बेटी तितली के साथ मारीशस जा रही है. तितली बीमार है. सुशांत उसकी मदद करने के लिए अपर्णा को उनकी बेटी तितली के साथ अपने साथ उसी रिसोर्ट में लेकर आते हैं, जहां उनके लिए अपना कमरा बुक है. रात एक बजे रिसोर्ट पहुंचते हैं और पूरा सूट बुक कराते हैं.

सुशांत ने रिसोर्ट के रजिस्टर में श्री और श्रीमती दुबे लिखते हैं. रात में तितली अलग कमरे में सो रही होती है और सुशांत दुबे, अपर्णा के साथ रंगरलियां मनाते हैं. सुबह पता चलता है कि तितली गायब हो चुकी है. पहले सुशांत व अपर्णा पूरे रिर्सोट में ढूढ़ते हैं, फिर रिसोर्ट के कर्मचारी तितली को ढूंढ़ते हैं, पर तितली का कहीं पता नही चलता. सुशांत नही चाहता कि  पुलिस को सूचना दी जाए, क्योंकि उसे डर है कि सच उजागर होने पर उसकी पत्नी काम्या नाराज होगी. पर अपर्णा पुलिस में शिकायत दर्ज करा देती हैं.

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मारीशस पुलिस आफिसर नंदलाल बुद्धू (अन्नू कपूर) अपनी पूरी जांच टीम के साथ रिसोर्ट पहुंच जाते हैं. सुशांत व अपर्णा से सवाल जवाब होते हैं, पर पुलिस आफिसर उनके जवाब से संतुष्ट नहीं होता है. सुशांत कई तरह के झूठ पर झूठ बोलता है. अंत में सुशांत दुबे, पुलिस आफिसर को बताता है कि तितली गायब नहीं हुई है. क्योंकि उनकी तितली नामक बेटी है ही नहीं. अपर्णा तो मां ही नहीं बन सकती. पर उसे इसी बात का सदमा लगा है और वह मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार है. उसे हर दिन ढेर सारी दवाएं लेनी पड़ती हैं.

बेटी तितली को होना महज उसकी दिमागी उपज है. (फिल्म में इस दृश्य के वक्त यदि दर्शकों को फिल्म ‘बागी 2’ की याद आ जाए, तो कुछ भी गलत नहीं होगा. जिस तरह की बातें सुशांत, अपर्णा को लेकर पुलिस आफिसर से कहता है, उसी तरह की बातें फिल्म ‘बागी 2’ में शेखर अपनी पत्नी नेहा के बारे में रौनी से कहता है.) जबकि अपर्णा दावा करती है कि तितली है और बहुत बीमार है.

जब रिसोर्ट  की रिशेपसनिस्ट नैना दावा करती है कि उसने अपर्णा के हाथ में बीमार तितली को देखा था, तब सुशांत पुलिस आफिसर से सच बता देता है कि अपर्णा उसकी पत्नी नहीं है. उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. सुशांत दुबे की सलाह पर सुशांत दुबे के साथ अपर्णा भी अपना सामान लेकर रिसोर्ट से भागते हैं. रास्ते में अपर्णा, सुशांत की हत्या कर देती है. इधर एक बुजुर्ग तितली की तलाश में आते हैं, तो पता चलता है कि 34 वर्ष की अपर्णा का ही नाम तितली है. वह दिमागी रूप से बीमार है और पिछले तीन वर्ष से एक पागल खाने में उसका इलाज चल रहा था, जहां से कल रात वह भागी है.

मनोवैज्ञानिक रहस्य व रोमांच प्रधान फिल्म के रूप में प्रचारित की गयी फिल्म ‘मिसिंग’ से रोमांच का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है.

फिल्म के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि फिल्म को मारीशस के अति खूबसूरत हनीमून रिसोर्ट में फिल्माया गया है, जहां लोग हनीमून मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं. ऐसी लोकेशन पर डरावने व रहस्य रोमांच प्रधान दृश्य उभर ही नहीं सकते. इसके अलावा बेटी तितली के गुम हो जाने पर जिस तरह के भाव सुशांत यानी कि मनोज बाजपेयी और अपर्णा यानी कि तब्बू के चेहरे पर आने चाहिएं, वह भी नहीं आते. उन्हे देखकर दर्शक के मन मे उकने प्रति सहानुभूति भी नहीं पैदा होती, बल्कि वह जिस तरह से खूबसूरत लोकेशन में बेटी की तलाश के लिए घूमते नजर आते हैं, उससे तो हंसी ही आती है.

कहानी व पटकथा के स्तर पर पूरी फिल्म निराश करती है. फिल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है, वैसे वैसे इसके पात्र, परिस्थितयां व कहानी का प्लाट घटिया होता जाता है. लेखक व निर्देशक दोनों ही रूप में मुकुल अभ्यंकर विफल हुए हैं. उनमें परिपक्वता ही नहीं हैं. उन्होंने एक सशक्त कहानी का बंटाधार कर दिया. अफसोस की बात यह है कि अति खूबसूरत लोकेशन व उत्कृष्ट कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद फिल्म देखने योग्य नहीं बनी.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो मनोज बाजपेयी निराश ही करते हैं. उनका फलर्ट करने के दृश्य राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘कौन’ की याद दिलाते हैं. तब्बू के अभिनय की सराहना की जानी चाहिए. उन्होंने एक दुःखी मां के किरदार के साथ न्याय किया है, मगर परदे पर जो ऊर्जा नजर आनी चाहिए, वह उनमें भी नजर नहीं आती. इसकी वजह कमजोर पटकथा व निर्देशन हो सकता है. अन्नू कपूर भी निराश करते हैं. तितली के गुम हो जाने की तलाश में आए मौरीशस पुलिस अफसर के किरदार में अन्नू कपूर की कार्यशैली महज हंसाने के कुछ नहीं करती. वह कहीं से भी पुलिस जांच अधिकारी नहीं लगते. यह कहना ज्यादा सही होगा कि पुलिस अफसर के किरदार में अन्नू कपूर का चयन ही गलत है. र

फिल्म का संगीत भी घटिया है

दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘मिंसिंग’’ का निर्माण शबाना रजा बाजपेयी, अधिकारी ब्रदर्स, आनंद पंडित, रूपा पंडित, शीतल भाटिया व  विक्रम मल्होत्रा ने किया है. लेखक व निर्देशक मुकुल अभ्यंकर, संगीतकार एम एम करीम, कैमरामैन सुदीप चटर्जी तथा कलाकार हैं – मनोज बाजपेयी, तब्बू, अन्नू कपूर व अन्य.

ब्लैकमेल : इरफान खान का दमदार अभिनय क्या फिल्म को बचा पाएगा

पत्नी को पर पुरुष के साथ हमबिस्तर होते रंगे हाथों पकड़ने के  बाद पत्नी या उसके प्रेमी की हत्या करने की बजाय अलग तरह से बदला लेने की कहानी के साथ  ‘‘देहली बैली’’ फेम निर्देशक अभिनय देव सही न्याय नहीं कर पाए हैं.

टौयलेट पेपर सेल्समैन देव (इरफान खान) एक दिन शाम को निर्णय लेता है कि आज वह काम से जल्दी छुट्टी लेकर अपनी पत्नी रीना (कीर्ति कुल्हारी) के लिए फूलों का गुलदस्ता लेकर जाएगा. उनकी शादी को सात वर्ष पूरे हो चुके हैं. मगर देव को नहीं पता है कि उनकी पत्नी रीना का किसी रंजीत (अरूणोदय सिंह) नामक युवक से अवैध संबंध है.

जब वह अपने घर पहुंचता है, तो अपनी पत्नी रीना को पर पुरुष के संग हमबिस्तर पाता है. जब देव को अपनी पत्नी के प्रेमी रंजीत (अरूणोदय सिंह) के बारे में पता चलता है, तो वह उसे ब्लैकमेल करना शुरू करता है. पर रंजीत, देव की पत्नी को ब्लैकमेल करना शुरू करता है. उधर रंजीत की पत्नी डौली (दिव्या दत्ता) हमेशा उस पर हावी रहती है. धीरे धीरे देव के औफिस के दूसरे लोगों को देव की ब्लैकमेलिंग योजना के बारे में पता चल जाता है. उसके बाद सभी किसी न किसी मसले के लिए एक दूसरे को ब्लैकमेल करना शुरू कर देते हैं. उसके बाद सिलसिलेवार तरीके से कई घटनाएं होती हैं.

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फिल्म की पटकथा ह्यूमरस और मजेदार नहीं है. वास्तव में फिल्म शुरू होने पर जो उम्मीद जगाती है, वह बहुत जल्द खत्म हो जाती है. इसकी मूल वजह यह है कि निर्देशक व पटकथा लेखक को यही समझ में नहीं आया कि किसी अद्भुत विचार को किस तरह से दृश्यों के माध्यम से पेशकिया जाए. आगे व्याभिचार के चलते जो अपराध होते हैं, उसकी वजह से हास्य दृश्य बेमानी हो जाते हैं.

कुछ हास्य घटनाक्रम काफी अच्छे बन पड़े हैं. लेकिन इंटरवल से पहले फिल्म घिसटते घिसटते आगे बढ़ती है. इतना ही नहीं रोचकता भी कम है. इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ज्यादा ही थकाने वाली हो जाती है. ‘कोई दूध का धुला नहीं’ यानी कि हर इंसान ग्रे शेड्स लिए होता है, इस सोच के साथ हास्य के दृश्यों का संयोजन करना आसान होता है, पर यहां भी यह फिल्म विफल रहती है. कुल मिलाकर ‘ब्लैकमेल’ एक दिलचस्प फिल्म नहीं बन पाती है.

अभिनय देव का निर्देशन ठीक ठाक है. उन्होने इंसानी जीवन के डार्क पक्ष को ही उकेरने का प्रयास किया है. अपनी पहली फिल्म ‘‘देहली बेली’’के मुकाबले इस बार वह कमतर ही हैं. फिल्म की लंबाई कुछ ज्यादा हो गयी है. एडीटिंग टेबल पर इसे कसने की जरुरत थी.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो इरफान खान एक बार फिर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं. विलेन के  किरदार में अरूणोदाय सिंह हर फिल्म में कुल मिलाकर एक जैसा ही अभिनय करते हुए नजर आते हैं. कीर्ति कुल्हारी का अभिनय ठीक ठाक ही है. पर अहम सवाल है कि इरफान खान अकेले अपने बलबूते पर फिल्म को कितनी सफलता दिला पाएंगे?

फिल्म का गीत संगीत आकर्षित नहीं करता

दो घंटे 19 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘ब्लैकमेल’’ का निर्माण भूषण कुमार, किशन कुमार, अभिनय देव व अपूर्वा सेन गुप्ता ने किया है. फिल्म के निर्देशक अभिनय देव, लेखक  परवेज शेख और प्रदुम्न सिंह, पार्श्व संगीतकार मिक्की मैक्कलेरी व पार्थ पारेख, संगीतकार अमित त्रिवेदी,गुरूरंधावा व बादशाह, कैमरामैन जय ओझा तथा कलाकार हैं – इरफान खान, कीर्ति कुल्हारी, दिव्या दत्ता, अरूणोदय सिंह, ओमी वैद्य, अनुजा साठे, प्रदुम्न सिंह, गजराव राव व खास नृत्य में उर्मिला मांतोडकर.

विभा ने खुद ही चुनी कांटों भरी राह

सीतापुर और लखीमपुरी खीरी की सीमा पर बहने वाली शारदा नहर पर बने रिक्शा पुल के नीचे एक लावारिस काला बैग पड़ा था. चूंकि नहर में पानी ज्यादा नहीं था, इसलिए वह जगह सूखी थी. यह क्षेत्र सीतापुर जनपद के हरगांव थाना क्षेत्र में आता है.

14 जनवरी की सुबह 7 बजे कबीरपुर गांव के बच्चों ने वहां बैग पड़ा देखा तो उत्सुकतावश खोल कर देखा. उस के अंदर एक बच्ची की लाश थी. यह देख बच्चे घबरा गए और गांव जा कर लोगों को बताया. गांव के लोग तुरंत वहां पहुंच गए.

लाश देख कर गांव वालों के साथ पहुंचे कबीरपुर गांव के चौकीदार ने इस मामले की सूचना हरगांव थाने को दे दी. हरगांव थाने के थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय ने एक दिन  पहले ही थाने का चार्ज संभाला था. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि आते ही उन का वास्ता किसी बड़ी घटना से पड़ जाएगा. सूचना मिलते ही वह सबइंसपेक्टर राजकिशोर यादव और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर अश्विनी कुमार ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक बच्ची की उम्र करीब 10-11 साल रही होगी. उस की लाश काले बैग के अंदर एक टाट के बोरे में लिपटी हुई थी. बैग में 2 ईंटों के साथ नमक भी पड़ा हुआ था. मृतका के मुंह पर 2 इंच चौड़ा टेप चिपका था. गले पर कसे जाने के निशान मौजूद थे.

लाश का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अनुमान लगाया कि किसी चीज से बच्ची का गला घोंटने के बाद लाश को किसी वाहन से यहां ला कर डाला गया होगा. नमक इसलिए डाला गया ताकि लाश जल्दी गल जाए. जबकि ईंटें डालने का सबब यह रहा होगा कि लाश पानी की सतह पर ऊपर न आ पाए. अनुमान था कि हत्यारों ने लाश रात में फेंकी होगी. जल्दबाजी या कोहरे के कारण वे यह नहीं देख सके होंगे कि जिस जगह पर लाश फेंक रहे हैं, वहां पानी नहीं है.

इसी बीच पुलिस को रिक्शा पुल से 3 किलोमीटर दूर शारदा नहर पर बने उमरिया पुल के पास एक और बच्ची की लाश मिलने की सूचना मिली. इस पर थानाप्रभारी अश्विनी कुमार ने 2 सिपाहियों को घटनास्थल पर छोड़ा और बाकी सिपाहियों के साथ उमरिया पुल के पास पहुंच गए. वहां उन्हें टाट के एक बोरे में लिपटी हुई एक बच्ची की लाश मिली.

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मृतका की उम्र करीब 8 साल रही होगी. उस के पूरे चेहरे पर टेप लगा हुआ था और गले पर भी गहरे निशान थे. उन्होंने दोनों लाशों की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन लाशों की शिनाख्त नहीं हो सकी. इस पर पुलिस ने दोनों लाशों के फोटो करवा लिए और लाशों को सीलमुहर करवा कर पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

थाने लौट कर उन्होंने एसआई राजकिशोर यादव की लिखित तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

देर रात 3 डाक्टरों के पैनल ने दोनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि दोनों बच्चियों की हत्या प्लास्टिक की किसी पतली रस्सी या तार से गला घोंट कर की गई थी. साथ ही पहले मिली बच्ची के साथ रेप किए जाने की भी पुष्टि हुई. डाक्टरों ने विस्तृत जांच के लिए स्लाइड तैयार कर के रख ली थी.

बेटियों के साथ मां विभा भी लापता, आखिर क्या था रहस्य?

कुछ लोगों ने लाश व घटनास्थल के वीडियो बना कर वाट्सऐप पर डाल दिए थे, जिन के वायरल होते देर नहीं लगी. वीडियो देख कर सीतापुर के आलमनगर, गदियाना मोहल्ले के कुछ लोग शहर कोतवाली पहुंचे और कोतवाली का कार्यभार देख रहे एसएसआई अनिल तिवारी को बताया कि दोनों लाशें आलमनगर, गदियाना मोहल्ले में रह रही विभा पांडेय की बेटियों काव्या और कामना (परिवर्तित नाम) की हैं.

12 जनवरी की रात से विभा और उस की दोनों बेटियां घर से लापता थीं. विभा का भी पता नहीं चल रहा था. एसएसआई तिवारी ने इस संबंध में हरगांव थानाप्रभारी अश्विनी कुमार को अवगत कराया. इस के बाद इस बारे में उच्चाधिकारियों को सूचना दे दी गई.

कुछ ही देर में डौग स्क्वायड के साथ पुलिस टीम विभा के घर पहुंच गई. एसपी आनंद कुलकर्णी और एएसपी मधुबन सिंह ने वहां पहुंच कर घर का निरीक्षण किया. विभा का भाई नवीन, जोकि तरीनपुर मोहल्ले में रहता था, से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह पहले इसी मकान के दूसरे हिस्से में रहता था. लेकिन बहन विभा से विवाद होने के बाद काफी समय से वह तरीनपुर में किराए के मकान में रह रहा था.

नवीन ने यह भी बताया कि विभा का पति प्रवीन पांडेय विभा को 4 साल पहले छोड़ कर चला गया था. तब से वह एक बार भी विभा या बच्चों को देखने नहीं आया. विभा के साथ अधिकतर उस का करीबी दोस्त नवीन उर्फ विमल गुप्ता रहता था. विमल का खुद का घर आवास विकास कालोनी में है, लेकिन वह अधिकांश समय विभा के साथ ही गुजारता था. इसी मकान में विभा ब्यूटीपार्लर चलाती थी और विमल ने सीसीटीवी कैमरे लगाने की दुकान खोल रखी थी.

विमल से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 12 जनवरी की शाम को विभा उस के साथ कुछ सामान खरीदने बाजार गई थी. शाम 7 बजे तक वह उस के साथ रही. उस के बाद वह औटो से घर चली गई तो वह अपने घर लौट आया. बाद में उस ने विभा को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला.

लेकिन सवाल यह उठता था कि जब 2 दिन से मांबेटियां घर से लापता थीं तो उन के करीबियों व घर वालों ने पुलिस को इस की सूचना क्यों नहीं दी? घर वालों से भी ज्यादा विभा का करीबी विमल था. उसे विभा और बच्चियों की चिंता क्यों नहीं हुई.

उस ने विभा को तलाशने या थाने में सूचना देने की जहमत भी नहीं उठाई थी. पुलिस के शक के दायरे में आने वाला सब से पहला शख्स विमल ही था. इस के अलावा पुलिस ने विभा के कुछ और करीबियों को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया.

खुले मिजाज की विभा पति से अलग रह कर स्वतंत्र जिंदगी जीती थी

पुलिस को यह भी पता चला कि विभा खुले मिजाज की युवती थी, वह किसी से भी बात करने या मिलनेजुलने में गुरेज नहीं करती थी. उस के पास कई ऐसे लोग आते थे, जो उस की छवि को दागदार बनाते थे. लेकिन विभा को इस सब की कोई चिंता नहीं थी.

विभा के करीबियों में सलीम नाम का एक व्यक्ति भी शामिल था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. सभी से पूछताछ के बाद पुलिस ने एक बार फिर से विमल को निशाने पर लिया. इस पूछताछ के दौरान विमल कुछ ऐसा बोल गया, जिस ने उसे संदिग्ध बनाने में और इजाफा किया.

उस ने जो कहा वह विभा की हत्या से संबंधित था. इस के बाद पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने विभा की भी हत्या कर देने की बात बताई. इस तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने में उस का साथ उस के 5 दोस्तों ने दिया था. जबकि एक अन्य व्यक्ति ने लाशों को ठिकाने लगाने में मदद की थी.

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अन्य हत्याभियुक्तों में दिलीप शर्मा निवासी भवनापुर थाना कोतवाली शहर, राहुल निवासी आनंद नगर थाना कोतवाली शहर, मुकेश निवासी रमपुरा थाना कोतवाली शहर, जुबेर निवासी महमूदपुर थाना खैराबाद, पंकज निवासी गणेशपुर थाना खैराबाद शामिल थे. लाशों को ठिकाने लगाने के लिए जाइलो कार का इस्तेमाल किया गया था. उस कार का मालिक राजेश लोध निवासी ग्राम नानकारी थाना खैराबाद था.

विमल को पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. दिलीप शर्मा और जुबेर को 16 जनवरी को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद 17 जनवरी को विमल की निशानदेही पर विभा की लाश सीतापुर के थाना कोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले खुजरिया गांव के पास सरायन नदी से बरामद कर ली गई. लाश का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि उस की मौत भी गला घोंटने से हुई थी. उस के साथ रेप किए जाने की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन आशंका के चलते विस्तृत जांच हेतु स्लाइड बना कर रख ली गई थी.

18 जनवरी को पुलिस द्वारा शेष अभियुक्तों राहुल, मुकेश, पंकज और राजेश को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस की पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

खुल गया मांबेटियों की हत्या का राज

सीतापुर के थाना कोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले आलमनगर, गदियाना मोहल्ले में अशोक कुमार गोयल अपनी पत्नी अनीता, बेटे नवीन और 2 बेटियों विभा और रजनी के साथ रहते थे. अशोक प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते थे.

उन के बेटे नवीन का विवाह हो चुका था. नवीन लाइटिंग का काम करता था. विभा ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त की, उस के बाद उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा. विभा काफी खूबसूरत और खुले विचारों की युवती थी. वह किसी को भी बहुत जल्दी अपना दोस्त बना लेती थी. लेकिन उस दोस्ती को वह अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं रहती थी.

खूबसूरत युवती की दोस्ती हर कोई पाने की चाहत रखता है. विभा इसी चाहत का फायदा उठाती थी. मोहल्ले के कई लड़के उस के आगेपीछे घूमते थे. मांबाप व भाई उसे रोकतेटोकते भी थे, लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं होता था.

एक दिन वह भी आया जब मोहल्ले में रहने वाले प्रवीण पांडेय से उस की आंखें लड़ गईं. प्रवीण पेशे से ड्राइवर था. दोनों का प्यार इस तरह परवान चढ़ा कि दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. इस की भनक उन्होंने अपने घर वालों तक को नहीं लगने दी. विवाह कर के विभा प्रवीण के साथ रहने लगी.

कालांतर में विभा ने 2 बेटियों काव्या और कामना को जन्म दिया. फिलहाल काव्या 10 साल की थी और कामना 8 साल की. काव्या कक्षा 4 में और कामना कक्षा 2 में पढ़ रही थीं.

विवाह और 2 बेटियों के जन्म के बाद भी विभा के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया था. वह पहले की तरह अपने दोस्तों से मिलतीजुलती, हंसतीबोलती थी. विभा की यह हरकत प्रवीण को बहुत नागवार गुजरती थी. इसी को ले कर दोनों में लगभग हर रोज झगड़ा होता था. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ गई कि 5 साल पहले प्रवीण उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया. जाने के बाद उस ने कभी भी विभा और अपनी बेटियों का हाल जानने की कोशिश नहीं की.

पति के छोड़ देने के बाद विभा अपने मायके वाले मकान में आ कर रहने लगी. मकान के एक हिस्से में वह अपनी बेटियों के साथ रहती थी, जबकि दूसरे हिस्से में उस का भाई नवीन मातापिता के साथ रहता था.

विभा ने खोला ब्यूटीपार्लर

घर चलाने के लिए विभा ने अपने घर में ब्यूटीपार्लर खोल लिया और अपना काम करने लगी. यहीं काम करने के दौरान उस की मुलाकात विमल उर्फ नवीन गुप्ता से हुई, जो आवास विकास कालोनी में रहता था. वह सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम करता था. विमल के पिता विजय कुमार गुप्ता भारतीय खाद्य निगम में नौकरी करते थे. विमल का एक भाई था कमल, वह एफसीआई के पास चाय की कैंटीन चलाता था.

विमल से मुलाकात के बाद तो विभा की लौटरी ही लग गई. विमल उस पर खूब पैसे खर्च करने लगा. इस की वजह यह थी कि वह विभा को पहली ही नजर में दिल दे बैठा था. वह विभा की हर जरूरत का खयाल रखता था. दूसरी ओर विभा की जान अपनी बेटियों में बसती थी. वह घर से किसी काम के लिए निकलती थी तो जल्दी से जल्दी काम निपटा कर अपनी बेटियों के पास लौट आती थी.

वह कभी भी उन्हें ज्यादा देर तक अकेला नहीं छोड़ती थी. बेटियों की खुशी के लिए वह कुछ भी कर सकती थी. बेटियों की खुशी के लिए ही उस ने विमल का हाथ थामा था. विभा जानती थी कि विमल उस से क्या चाहता है. उस ने विमल की जरूरत को पूरा किया तो विमल उस की जरूरत पूरी करने लगा.

विभा इसे सिर्फ ‘गिव ऐंड टेक’ का मामला समझ कर चल रही थी लेकिन विमल कुछ और ही सोच रहा था. वह विभा और उस की दोनों बेटियों की जिम्मेदारियां इसलिए उठा रहा था ताकि विभा से शादी कर के अपना परिवार बसा सके.

विमल ने विभा से बात करने के बाद उस के मकान में ही अपनी दुकान खोल ली. दोनों ने एकदूसरे के काम में हिस्सेदारी भी कर ली. हालांकि विमल जो भी कमाता था, वह सब विभा और उस की बेटियों पर ही खर्च कर देता था.

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विभा के चाहने वालों की कमी नहीं थी. दिन भर कोई न कोई उस के घर आता रहता था. विभा भी उन से ऐसे बात करती थी कि कोई भी शरीफ इंसान उसे गलत समझ सकता था. मोहल्ले के लोग भी तरहतरह की बातें करते थे. विभा के भाई व मांबाप को यह सब बहुत बुरा लगता था.

इसी बात को ले कर विभा और उस के भाई नवीन में विवाद होता रहता था. एक दिन ऐसा भी आया, जब नवीन मांबाप के साथ घर छोड़ कर चला गया. वह तरीनपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहने लगा. उस ने फिर कभी उस मोहल्ले में झांकने तक की जहमत नहीं उठाई.

विभा से सलीम की नजदीकियां पसंद नहीं थीं विमल को 

विभा की नजदीकियां सलीम नाम के युवक से भी थी. विमल को विभा और सलीम का मिलना नागवार गुजरता था. उस ने विभा को कई बार समझाया, लेकिन वह अपनी मनमानी करती थी. अपने अलावा वह अपनी बेटियों के अलावा किसी की परवाह नहीं करती थी. उस ने अपने पति, मांबाप अथवा  भाई की नहीं सुनी तो विमल क्या चीज था. वह तो सिर्फ उस की जरूरतों को पूरा करने का एक जरिया मात्र था. सलीम की पत्नी को सलीम और विभा के संबंधों की भनक लगी तो वह भी पति को छोड़ कर चली गई.

विमल ने विभा पर पानी की तरह पैसा बहाया था. यहां तक कि उस की बड़ी बेटी काव्या के दिमागी बुखार से पीडि़त होने पर उस ने उस के इलाज पर हैसियत से ज्यादा पैसा खर्च किया था. इस के बाद भी विभा किसी और के साथ नजदीकियां बढ़ा रही थी. उस ने विभा से शादी की बात की तो उस ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विमल का माथा ठनक गया. वह अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा था. आखिर उस ने विभा को सबक सिखाने की ठान ली.

उस ने सोच लिया कि विभा उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. विभा की हरकतें उस के दिमाग में कौंधती रहती थीं. वह विभा की हत्या को कैसे अंजाम दे, यह सोच कर उस ने कई हौलीवुड फिल्में और टीवी पर क्राइम बेस्ड सीरियल देखे. उन्हीं सब के आधार पर उस ने सोचविचार कर विभा की बरबादी की पूरी योजना तैयार की. उसे इस काम के लिए दोस्तों की मदद की जरूरत थी. उन्हें इस सब के लिए कैसे राजी करना है, यह भी उस ने सोच लिया था.

उस ने अपने शहर के ही भवनापुर में रहने वाले अपने दोस्त दिलीप शर्मा से बात की. दिलीप अपने घर में ही मोबाइल शौप चलाता था. इस से पहले वह फार्मासिस्ट का काम कर चुका था. दिलीप का भी विभा के साथ पैसों के लेनदेन का कोई विवाद था. विमल के कहने पर वह उस का साथ देने को तैयार हो गया. इस के बाद विमल ने उसे पूरी योजना बता दी.

फिर उस ने अपने दूसरे दोस्तों राहुल, मुकेश, जुबेर और पंकज से अलगअलग बात कर के उन्हें भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए उस ने हर दोस्त को 10 हजार रुपए देने की बात कही थी. कुछ दोस्ती के नाते और कुछ 10 हजार रुपए के लालच में वे लोग उस का साथ देने को तैयार हो गए.

सारे दोस्तों को तैयार कर के उस ने सब के साथ बैठ कर इस योजना पर काम किया. इस बैठक में यह बात भी उठी कि विभा की हत्या के बाद उस की बेटियां उन के लिए खतरा बन सकती हैं, जबकि वे लोग कोई भी खतरा नहीं उठाना चाहते थे. इसलिए विभा के साथ उस की बेटियों की हत्या करने की बात भी तय हो गई. दिलीप ने अस्पताल के कुछ पुराने परिचितों के जरिए 2 इंच चौड़े टेप का इंतजाम कर लिया.

ऐसे दिया गया तिहरे हत्याकांड को अंजाम

12 जनवरी की शाम 7 बजे दुकान का कुछ सामान खरीदने के बहाने विमल विभा को बाइक से दिलीप की दुकान पर ले गया. वहां विमल के सभी दोस्त मौजूद थे. उन्होंने विभा को दबोच लिया और उस के मुंह को टेप से बंद कर दिया, जिस से वह चिल्ला न सके. फिर उन लोगों ने कंप्यूटर के केबल से विभा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद विमल फिर विभा के घर गया और उस की दोनों बेटियों को अपने साथ ले आया. उन दोनों को दबोच कर उन के मुंह पर भी टेप लगा दिया गया. इस के बाद विभा की तरह ही उस की बेटियों काव्या और कामना की भी कंप्यूटर केबल से गला घोंट कर हत्या कर दी गई. विमल के दोस्त मुकेश ने मासूम काव्या के शव के साथ संबंध बनाए.

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सुबह होने पर विमल और दिलीप ने आधेआधे पैसे मिलाए और बाजार जा कर एक बैग, 3 टाट के बोरे, रस्सी और नमक खरीद कर ले आए. आगे की योजना यह थी कि तीनों लाशों को जमीन में दफना दिया जाए. इस के लिए पंकज के खैराबाद थाना क्षेत्र के गांव गणेशपुर स्थित खेत को चुना गया. आननफानन में गड्ढा खोदने के लिए जेसीबी भी तय कर ली गई. इस के बाद खेत में खुदाई का काम चालू कर दिया गया. यह देख कर पंकज के घर वालों और गांव वालों ने पूछताछ की तो पंकज ने बताया कि खाद बनाने के लिए गड्ढा खुदवा रहा है.

लोगों द्वारा की गई इस पूछताछ के बाद पंकज की हिम्मत जवाब दे गई. उस ने अपने खेत में लाशों को दफनाने से साफ इनकार कर दिया. घटना का पहला दिन इसी सब में गुजर गया. तीनों लाशें दिलीप की दुकान में पड़ी रहीं. पंकज के विरोध के बाद विमल और उस के अन्य दोस्तों को अपना प्लान बदलने को मजबूर होना पड़ा.

इसी बीच विमल को याद आया कि उस के साथी राहुल की रिश्तेदारी में जाइलो कार है, जिस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जाइलो कार सीतापुर के खैराबाद थाना क्षेत्र के नानकारी गांव निवासी राजेश की थी. चूंकि वह राहुल का रिश्तेदार था, इसलिए वह इस काम के लिए तैयार हो गया. उस ने 10 हजार रुपए के एवज में यह काम अपने हाथ में ले लिया.

कार में डाल कर तीनों लाशें लगाईं ठिकाने

योजना बदलने के बाद विभा और कामना की लाश को टाट के बोरे में लपेटा गया. साथ ही काव्या की लाश को बोरे में लपेट कर बैग में रखा गया. तीनों लाशों के साथ नमक और 2-2 ईंटें भी रख दी गईं. इस तैयारी के बाद तीनों लाशों को कार में लाद दिया गया. रात में कोहरा अधिक था, जिस की वजह से उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई.

सभी कार में बैठ कर थाना कोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले खजुरिया गांव के पास सरायन नदी पर पहुंचे. विभा की लाश नदी में डाल दी गई. इस के बाद ये लोग बारीबारी से शारदा नहर के रिक्शा पुल और उमरिया पुल पर पहुंचे और काव्या और कामना की लाश को नहर में डाल दिया.

लेकिन यहां कोहरा उन के लिए विलेन बन गया. कोहरे के कारण ये लोग ठीक से नहीं देख सके. नहर में ज्यादा पानी नहीं था, वह सूखी थी. नहर में पानी होता तो लाश पानी में डूब जातीं, लेकिन सूखी होने के कारण ऐसा न हो सका. अपने काम को अंजाम देने के बाद सब दोस्त अपनेअपने घर लौट आए.

लेकिन अगले दिन 14 जनवरी की सुबह काव्या व विभा की लाशें मिलते ही उन की उल्टी गिनती शुरू हो गई. आखिर जल्द ही वे सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

राजेश की जाइलो कार यूपी53ए एल2905 भी उस के घर के बाहर से बरामद हो गई. हत्या में इस्तेमाल कंप्यूटर केबल भी पुलिस ने बरामद कर लिया. थानाप्रभारी अश्विनी कुमार ने मुकदमे में भादंवि की धाराएं 147, 376 व 34 और बढ़ा दीं.

सातों अभियुक्तों का मैडिकल कराने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से सब को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठगी का मकड़जाल : पिनकौन ग्रुप की 796 करोड़ की ठगी

पिछले साल सितंबर महीने की बात है. एक शख्स राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी के थाने में पहुंचा. आंखों पर चश्मा लगाए अच्छी कदकाठी के उस व्यक्ति ने बताया कि उस का नाम संदीप घोष है और वह अजमेर का रहने वाला है. वह पश्चिम बंगाल की पिनकौन स्पिरिट समूह की कंपनी में काम करता है. पिनकौन समूह की कंपनियां विभिन्न योजनाओं में लोगों से निवेश कराती हैं.

संदीप घोष ने बताया कि अब यह कंपनी लोगों से ली गई रकम वापस नहीं लौटा रही है. इस संबंध में उस ने कई बार कंपनी के टौप मैनेजमेंट और चेयरमैन तक बात पहुंचाने की कोशिश की लेकिन उसे हर जगह से नेगेटिव रिस्पौंस मिला.

संदीप घोष ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि पिनकौन कंपनी की विभिन्न योजनाओं में हजारों गरीबों ने अपनी खूनपसीने की कमाई निवेश की है. तमाम लोगों ने उस के भरोसे पर कंपनी में पैसा लगाया है. अब वे पैसा मांग रहे हैं तो कंपनी उन निवेशकों का पैसा नहीं लौटा रही है. आशंका है कि इस कंपनी ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की है.

एसओजी के अधिकारियों ने संदीप से पूछा कि धोखाधड़ी कैसे की गई तो उस ने बताया कि कंपनी ने लोगों को 4 साल में रकम दोगुनी करने और 14 फीसदी तक ब्याज देने का वादा किया था. पिनकौन ग्रुप की कंपनियां राजस्थान में करीब 7 साल से चल रही हैं. अच्छे मुनाफे के लालच में पूरे राजस्थान के हजारों लोगों ने हमारी कंपनियों में पैसा निवेश किया है. यह रकम सैकड़ों करोड़ रुपए बनती है.

संदीप घोष ने बताया कि वह भी 14 फीसदी ब्याज के लालच में आ गया और उस ने अपने खुद के और अपनी जानपहचान वालों के 76 लाख रुपए पिनकौन ग्रुप की कंपनियों में निवेश करवा दिए. पहले तो कुछ लोगों को पैसा वापस मिल गया था, कुछ निवेशकों को ब्याज की राशि भी मिली थी, लेकिन अब कई महीनों से ब्याज तो दूर लोगों को अपनी मूल रकम भी नहीं मिल रही है. निवेशक कंपनी के औफिसों के चक्कर लगा रहे हैं.

संदीप से आवश्यक पूछताछ के बाद एसओजी ने पिनकौन स्पिरिट कंपनी समूह के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. एसओजी के एडीशनल डीजीपी उमेश मिश्रा ने आईजी दिनेश एम.एन. को इस मामले की जांच के लिए टीम गठित करने के निर्देश दिए. आईजी दिनेश एम.एन. ने संजय श्रोत्रिय के नेतृत्व में विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया.

संजय श्रोत्रिय के नेतृत्व में एसओजी की टीम ने जांच शुरू की. एसओजी के अधिकारियों ने सब से पहले पिनकौन ग्रुप की सभी कंपनियों की जानकारी जुटाई. इस के बाद इन कंपनियों के काम करने के तरीकों का पता लगाया, तब जा कर पुलिस अफसरों को फरजीवाड़े का यह मामला समझ में आया.

हालांकि इस तरह के वित्तीय फरजीवाड़े के मामलों की जांच आमतौर पर सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी या रिजर्व बैंक आदि करती है, लेकिन यह मामला सीधे निवेशकों से ठगी का था, इसलिए एसओजी ने गहराई से मामले की जांच की.

रोजाना 3 करोड़ रुपए का टैक्स दे रही थी कंपनी

जांचपड़ताल में सामने आया कि पिनकौन स्पिरिट लिमिटेड कंपनी देश की नामी कंपनी है. पश्चिम बंगाल की इस कंपनी को पीएसएल के नाम से भी जाना जाता है. यह कंपनी बौंबे स्टौक एक्सचेंज, नैशनल स्टौक एक्सचेंज व सेबी में सूचीबद्ध है. सन 1978 में इस कंपनी की स्थापना कोलकाता में हुई थी.

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पिनकौन समूह की कई अन्य कंपनियां भी हैं. इन कंपनियों में एलआरएन फाइनैंस लिमिटेड, एएसके फाइनैंशियल सर्विसेज, यूनिवर्सल मल्टीस्टेट क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसायटी, ग्रिनेज फूड प्रोडक्ट लिमिटेड, बंगाल पिनकौन हाउसिंग इंफ्रा लिमिटेड और एलआरएन यूनिवर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड शामिल हैं.

जांच में पता चला कि पिनकौन ग्रुप के चेयरमैन और मैनेजिंग डाइरेक्टर मनोरंजन राय हैं. पिनकौन स्पिरिट लिमिटेड कंपनी शराब का उत्पादन करने वाली प्रमुख कंपनी है. इस कंपनी की शराब पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, झारखंड और ओडिशा सहित कई राज्यों में सप्लाई की जाती है.

यह बात भी सामने आई कि पिनकौन कंपनी सरकार को रोजाना करीब करीब 3 करोड़ रुपए का टैक्स दे रही थी. मार्च 2016 में पिनकौन ग्रुप ने अपने उत्पाद को बढ़ाने के लिए सिंगापुर की और्बिटोल सोल्यूशन कंपनी का अधिग्रहण किया था. मई, 2017 में पिनकौन कंपनी ने लंदन स्टौक एक्सचेंज में 30 मिलियन डौलर कैपेक्स के  फौरन करेंसी कनवर्टबल बौंड्स जारी किए थे.

एसओजी के अधिकारियों को जब पिनकौन ग्रुप की सभी कंपनियों की जानकारी मिल गई तो यह पता लगाया गया कि राजस्थान और देश में किसकिस राज्य में पिनकौन ने अपनी कंपनी की शाखाएं खोल रखी हैं. इस में पता चला कि राजस्थान में कंपनी की 11 शाखाएं हैं.

इन में से अजमेर, जयपुर, कोटा, निवाई व चौमूं शाखाएं अजमेर रीजनल औफिस के तहत आती थीं और अलवर, भरतपुर, कामां, धौलपुर, बांदीकुई व हिंडौन की शाखाएं आगरा रीजनल औफिस के तहत. अजमेर के रीजनल औफिस में एक ही कमरे में पिनकौन ग्रुप की 6 कंपनियां चलती थीं.

इस औफिस में सभी 6 कंपनियों का लेखाजोखा भी एक ही रजिस्टर में रखा जाता था. इस के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के प्रमुख शहरों में भी पिनकौन ग्रुप ने अपनी कंपनी की 105 शाखाएं खोल रखी थीं.

पिनकौन ग्रुप की कंपनियों की राजस्थान की सभी 11 शाखाओं को सीज कर एसओजी के अधिकारियों ने वहां से कंपनी के दस्तावेज जब्त किए. इन दस्तावेजों की जांचपड़ताल के साथसाथ कंपनी की शाखाओं में काम करने वाले कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई. पता चला कंपनी ने एकमुश्त पैसा जमा कराने पर 4 साल में रकम दोगुनी करने का वादा किया था.

इस के अलावा अन्य जमा राशियों पर 14 फीसदी तक ब्याज देने की बात थी. लोगों से निवेश के नाम पर प्रतिमाह या 4 साल के लिए एकमुश्त रकम ली जाती थी. निवेश 500 रुपए से शुरू किया जा सकता था. मोटे मुनाफे के इसी लालच में लोगों ने पिनकौन ग्रुप की कंपनियों में रकम जमा कराई थी.

3 लाख लोगों से की ठगी

एसओजी की जांच में पता चला कि लोगों में भरोसा जमाने के लिए शुरू में अजमेर स्थित एक्सिस बैंक में एक खाता खोला गया था. निवेशकों का पैसा इसी बैंक में जमा करवाया जाता था. बाद में उस रकम को पिनकौन ग्रुप के अधिकारी दूसरे खातों में स्थानांतरित करवा कर रकम निकलवा लेते थे. अजमेर के एक्सिस बैंक का खाता सन 2014 में बंद करा दिया गया था.

जांच में पता चला कि जब निवेशकों की रकम की अवधि पूरी हो जाती थी और वे अपना पैसा वापस मांगते थे तो कंपनी के कर्मचारी उन्हें निश्चित ब्याज के अलावा 2 फीसदी अतिरिक्त ब्याज देने का लालच दे कर उस राशि को पिनकौन समूह की ही दूसरी कंपनी में निवेश करवा लेते थे.

दस्तावेजों का गहन अध्ययन करने पर सामने आया कि पिनकौन ग्रुप की एलआरएन कंपनी ने निवेशकों से 31 करोड़ रुपए जमा करने के बाद केवल 7 करोड़ रुपए ही लौटाए थे. बाकी राशि ग्रुप की दूसरी कंपनियों में निवेश कर दी गई थी. इसी तरह ग्रुप की अन्य कंपनियों के नाम पर निवेशकों से लिया गया पैसा वापस नहीं लौटाया गया था.

एसओजी की जांचपड़ताल में यह स्पष्ट हो गया कि पिनकौन ग्रुप ने मोटे मुनाफे का लालच दे कर राजस्थान में करीब 25 हजार लोगों से लगभग 56 करोड़ रुपए की ठगी की थी. अनुमान लगाया गया कि पिनकौन ग्रुप की कंपनियों ने देश भर के करीब 3 लाख लोगों से ठगी की थी.

इस के बाद एसओजी के अधिकारियों ने 3 नवंबर, 2017 को पिनकौन ग्रुप के चेयरमैन मनोरंजन राय और उस के साथी निदेशक बिनय सिंह को बेंगलुरु से गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों कोलकाता के रहने वाले थे. दोनों से पूछताछ के बाद कंपनी के अधिकारी बेंगलुरु निवासी एकाउंट्स हैड रघु शेट्टी और आगरा के रहने वाले निदेशक हरि सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

चारों आरोपियों को एसओजी ट्रांजिट रिमांड पर जयपुर ले आई. उन्हें जयपुर न्यायालय में पेश कर के रिमांड पर लिया गया. इन लोगों से पूछताछ में पता चला कि ये लोग निवेशकों से पिनकौन गु्रप की 6 फरजी कंपनियों में प्राइवेट प्लेसमेंट के तहत डिबेंचर इश्यू कर के निवेश करवाते थे. निवेशकों के डिबेंचर्स का भुगतान कभी नहीं किया गया था. एक कंपनी के डिबेंचर परिपक्व होने पर उस में वर्चुअल रोकड़ भुगतान दिखा दिया जाता था और दूसरी कंपनी में वर्चुअल रोकड़ प्राप्ति दिखा कर नए डिबेंचर का निर्गमन दिखा कर पुन: निवेश करा दिया जाता था.

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पिनकौन ग्रुप की कंपनी एलआरएन फाइनैंस लिमिटेड, एएसके फाइनैंशियल सर्विसेज, ग्रिनेज फूड प्रोडक्ट लिमिटेड, बंगाल पिनकौन हाउसिंग इंफ्रा लिमिटेड द्वारा अपने परिपक्व दावों के करीब 39 करोड़ रुपए को अवैध तरीके से वर्चुअल भुगतान दिखा कर एलआरएन यूनिवर्स प्रोड्यूसर कंपनी में वर्चुअल आधार पर प्राप्ति दिखा कर पुन: निवेश किया गया.

पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि पिनकौन ग्रुप ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के बाद भी अपनी कंपनियों के जरिए पुरानी करेंसी का लेनदेन किया. इस के लिए कोलकाता में बाकायदा मीटिंग कर के नोटबंदी की अवधि में विशेष योजना बना कर सभी शाखाओं को भेजी गई थी.

नोटबंदी के दौरान करीब 45 करोड़ रुपए की पुरानी करेंसी ली गई. इस करेंसी को ग्रुप के चेयरमैन मनोरंजन राय ने अपनी कंपनियों के कर्मचारियों के माध्यम से बैंक से बदलवा लिया. राजस्थान के अकेले अजमेर में 8 नवंबर से 26 नवंबर, 2016 तक करीब 22 करोड़ रुपए की पुरानी करेंसी लोगों से ली गई.

105 शाखाओं में बना रखे थे एडवाइजर

यह भी पता चला कि पिनकौन ग्रुप की ये 6 कंपनियां फरजी थीं. आरोपियों ने ये कंपनियां कागजों में बना रखी थीं. इन फरजी कंपनियों में ये लोग पहले डाइरेक्टर बन जाते थे और लोगों से निवेश कराने के बाद डाइरेक्टर पद से हट जाते थे. इस के बाद इन कंपनियों के डमी संचालक और एडवाइजर बना दिए जाते थे.

पिनकौन ग्रुप के प्रबंधन ने देश भर की सभी 105 शाखाओं में एडवाइजर बना रखे थे. इन एडवाइजरों के माध्यम से ही लोगों से पैसा निवेश कराया जाता था. निवेशकों को ठगी का अहसास न हो, इस के लिए चेयरमैन मनोरंजन राय अपने संचालकों के साथ मिल कर मोटी रकम के निवेशकों को कोलकाता घुमाता था. ऐसे निवेशकों को पिनकौन ग्रुप की शराब फैक्ट्री, गोदाम, औफिस व अन्य कारखानों का भ्रमण कराया जाता था. इन निवेशकों को 5 सितारा होटलों में पार्टी दी जाती थी.

कंपनी प्रबंधन ने लोगों से ठगी गई रकम पश्चिम बंगाल में शराब बनाने वाली कंपनी में लगाई. शराब कंपनी के उत्पादों में लगातार विस्तार होता रहा. इस के अलावा अन्य व्यापार बढ़ाया गया. चेयरमैन ने राजस्थान में भी शराब कंपनी खोलने का मन बना कर इस के लिए जमीन तलाशनी शुरू कर दी थी. इस के अलावा आरोपियों ने ठगी की रकम से उत्तर प्रदेश के आगरा, गोरखपुर और अन्य शहरों में करीब 50 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी खरीदी थीं.

पिनकौन ग्रुप के चेयरमैन सहित अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद कंपनी की ठगी के शिकार अनेक लोग जयपुर में एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. के पास पहुंचे. इन पीडि़तों ने आईजी को अपनी व्यथा सुनाई. पीडि़तों ने बताया कि ठगी का अहसास होने पर वे कोलकाता स्थित पिनकौन ग्रुप के मुख्यालय भी गए थे. लेकिन कंपनी के चेयरमैन ने फिर से ज्यादा मुनाफा देने का झांसा दे कर उन्हें लौटा दिया था.

कंपनी के एजेंट भी मिले एसओजी से

कंपनी के एजेंट भी पीडि़तों के साथ एसओजी से मिले. एजेंटों ने बताया कि निवेशक उन से पैसा वापस दिलाने का तगादा कर रहे हैं. पीडि़तों का एसओजी मुख्यालय जा कर अपनी ब्यथा बताने का सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा.

दूसरी ओर पिनकौन कंपनी के प्रमोटर्स पर पुलिस की काररवाई के बाद शेयर बाजार में सूचीबद्ध पिनकौन स्पिरिट लिमिटेड कंपनी का शेयर गिर गया.

कंपनी के दस्तावेजों की जांच के लिए जयपुर से एसओजी की टीम कोलकाता गई. एसओजी की एक टीम उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में कंपनी की प्रौपर्टी का पता लगाने के लिए भेजी गई. इस टीम ने कंपनी के आगरा व वाराणसी औफिस से निवेशकों का रिकौर्ड व प्रौपर्टी के कागजात जब्त किए. वहीं जयपुर में कंपनी की राजस्थान की ब्रांचों के मैनेजरों को एसओजी कार्यालय बुला कर पूछताछ की गई.

एसओजी ने रिमांड अवधि पूरी होने पर 9 नवंबर, 2017 को चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर के फिर से 7 दिन का रिमांड मांगा. इस पर पिनकौन के चेयरमैन मनोरंजन राय के अधिवक्ता राजेश महर्षि ने तर्क दिया कि यह मामला आपराधिक नहीं है. संबंधित कंपनी रजिस्ट्रार औफ कंपनीज में पंजीकृत है. शेयर बाजार में लिस्टेड होने के कारण सेबी इस की नियामक संस्था है. ऐसे में आरोपों की जांच होनी भी है तो कंपनी अधिनियम के तहत होगी.

आरोपी बिनय सिंह के अधिवक्ता दीपक चौहान ने फिर से रिमांड मांगने का विरोध किया. उन्होंने दलील दी कि कंपनी के दस्तावेज पब्लिक डोमेन में हैं. अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चारों आरोपियों की रिमांड अवधि 7 दिन के लिए बढ़ा दी. बाद में 16 नवंबर, 2017 को अदालत के आदेश पर न्यायिक अभिरक्षा में सभी को जेल भेज दिया गया.

ठगी के जाल का पता लगाने के लिए एसओजी की एक टीम इसी साल जनवरी के पहले हफ्ते कोटा पहुंची. कोटा में एक ही दिन में एसओजी अधिकारियों के समक्ष डेढ़ सौ से ज्यादा पीडि़तों ने अपनी शिकायतें दर्ज कराईं. एसओजी की जांच में पता चला कि कोटा में करीब डेढ़ हजार और राजस्थान के हाड़ौती इलाके में करीब 4 हजार लोगों से ठगी की गई थी.

कंपनी का निदेशक भी हुआ गिरफ्तार

पिनकौन ग्रुप की एलआरएन यूनिवर्स प्रोड्यूसर कंपनी के निदेशक दीपक पुंडीर को एसओजी ने 11 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया. पुंडीर ने रिमांड के दौरान पूछताछ में बताया कि आगरा की पीएनबी शाखा में खाता खोला गया था. उस खाते को दीपक ही औपरेट करता था. इस बैंक खाते में राजस्थान के लोगों से एकत्र राशि जमा की जाती थी. दीपक ने बताया कि बाद में कंपनी के चेयरमैन मनोरंजन राय से लेनदेन को ले कर उस का झगड़ा हो गया था. इस के बाद वह पिनकौन कंपनी से अलग हो गया था.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 29 जनवरी, 2018 को पिनकौन घोटाले के 4 आरोपियों चेयरमैन मनोरंजन राय, निदेशक बिनय सिंह, हरि सिंह और एकाउंट्स हैड रघु शेट्टी के खिलाफ जयपुर की अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. चारों आरोपियों के खिलाफ भादंसं की धारा 420, 406, 409, 466, 468, 471, 477ए व 201 और आईटी एक्ट की धारा 54 के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया.

एसओजी अधिकारियों ने अदालत को बताया कि आरोपियों ने कंपनी कानून का उल्लंघन कर के लोगों से निवेश के नाम पर रकम ली. बाद में इस रकम को कागजी कंपनियों के खातों में डाल कर हड़प लिया. कंपनी ने डिबेंचर के नाम पर लोगों से 796 करोड़ रुपए जुटाए थे. आरोपियों ने मोटे तौर पर 500 करोड़ रुपए की देनदारी स्वीकार भी की है.

मामले के खुलासे के बाद कंपनी के सौफ्टवेयर से निवेशकों का डाटा डिलीट किया गया, जिसे संबंधित सौफ्टवेयर कंपनी के जरिए रिकवर करने का प्रयास किया जा रहा है. डाटा मिलने की स्थिति में यह आंकड़ा बढ़ सकता है. एसओजी को पिनकौन ग्रुप की 40 कंपनियां होने का पता चला. इन में से 22 कंपनियों की जानकारी ही मिल सकी.

6 हजार से ज्यादा पेज की बनी चार्जशीट

खास बात यह रही कि 796 करोड़ रुपए की ठगी की जो चार्जशीट अदालत में पेश की गई थी, वह 6249 पेज की थी. इस में सहायक दस्तावेजों के साथ कुल 37 हजार पेज लगाए गए. इतनी भारीभरकम चार्जशीट के लिए एसओजी ने विशेष अनुमति ले कर 2 लाख रुपए केवल फोटोकौपी, बाइंडिंग व फाइल संबंधी काम पर खर्च किए.

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कथा लिखे जाने तक इस मामले में एसओजी राजकुमार राय, दीपांकर बासु, सिद्धार्थ राय, राणा सरकार, अरुण ठाकुर, राजीव पाल आदि आरोपियों को तलाश रही थी, जबकि न्यायिक अभिरक्षा में चल रहे दीपक पुंडीर के खिलाफ जांच अभी लंबित रखी गई थी.

शिकायत दर्ज कराने वाले कंपनी के पूर्व रीजनल सेल्स मैनेजर संदीप घोष का कहना है कि वह मार्च 2012 में ग्रुप से जुड़ा था. कंपनी के चेयरमैन मनोरंजन राय और टौप मैनेजमेंट में शामिल हरि सिंह ने आगरा में उस की जौइनिंग रीजनल सेल्स मैनेजर के रूप में करवाई थी.

कोटा में इस से पहले ही कंपनी की ब्रांच खुल चुकी थी. संदीप को बाद में अजमेर की जिम्मेदारी सौंप दी गई. संदीप के अधीन अजमेर, जयपुर, कोटा, निवाई व चौमूं ब्रांच थीं.

2017 में जब संदीप को कंपनी के फ्रौड का पता चला तो उस ने चेयरमैन और टौप मैनेजमेंट से बात करने का प्रयास किया लेकिन उसे रेस्पौंस नहीं मिला. जुलाई, 2017 तक सब खुल कर बोलने लगे कि कुछ नहीं हो सकता. इस के बाद उस ने खुद आगे आ कर कंपनी के खेल का भंडाफोड़ करने की ठानी.

संदीप ने एसओजी में शिकायत की. एसओजी ने मामला दर्ज कर जांचपड़ताल के बाद कंपनी के चेयरमैन सहित 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया. एसओजी ने अपनी जांच में पिनकौन ग्रुप द्वारा 796 करोड़ रुपए की ठगी करने की बात आरोपपत्र में कही है. यह अलग बात है कि इस सब के बाद भी पीडि़तों को उन की खूनपसीने की कमाई का पैसा शायद ही वापस मिल पाएगा.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कैसे लुटा 27 किलो सोना, जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी

21 जुलाई, 2017 की बात है. जयपुर पुलिस उस दिन कुछ ज्यादा ही चाकचौबंद थी. उस दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 3 दिन के दौरे पर जयपुर आ रहे थे. इसी के मद्देनजर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल उस दिन जल्दी उठ गए थे. उन्होंने अपने मातहत वरिष्ठ अधिकारियों को वायरलैस और फोन पर आवश्यक निर्देश दिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे. सीआईडी, इंटेलीजेंस और पुलिस की विशेष शाखा के जवान अपनेअपने मोर्चे पर नजरें जमाए हुए थे. शहर के प्रमुख मार्गों पर पुलिस ने नाकेबंदी कर रखी थी ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग बाहर से शहर में आ न सकें.

दोपहर करीब पौने 2 बजे के आसपास पुलिस कमिश्नर अग्रवाल जब अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें जयपुर शहर में एक बड़ी वारदात की सूचना मिली. मातहत अधिकारियों ने बताया कि मानसरोवर में मुथूट फाइनैंस की शाखा में दिनदहाड़े डकैती हुई है. 4 बदमाश करोड़ों रुपए का सोना और लाखों रुपए नकद लूट ले गए हैं.

वारदात की सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नर खीझ उठे. शहर में सभी प्रमुख जगहों पर पुलिस तैनात होने के बावजूद बदमाश करोड़ों रुपए का सोना लूट ले गए थे. खास बात यह थी कि जयपुर में दिनदहाड़े बैंक लूट के 28 घंटे बाद ही गोल्ड लूट की बड़ी वारदात हो गई थी. पुलिस कमिश्नर ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए अधिकारियों को तुरंत मौके पर भेजा. साथ ही शहर के सभी मार्गों पर कड़ी नाकेबंदी कराने के भी निर्देश दिए.

मुथूट फाइनैंस की शाखा जयपुर के मानसरोवर इलाके में रजतपथ चौराहे पर पहली मंजिल पर है. उस दिन दोपहर करीब एक बजे की बात है. उस समय लंच शुरू होने वाला था. मुथूट के कार्यालय में मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल अपने केबिन में बैठे थे. बंदूकधारी गार्ड दीपक सिंह गेट पर खड़ा था. कर्मचारी टीना शर्मा एवं मीनाक्षी अपने काउंटरों पर बैठी थीं. 2 ग्राहक नंदलाल गुर्जर और घनश्याम खत्री भी मुथूट के औफिस में मौजूद थे. मुथूट के उस औफिस में कुल 5 कर्मचारी थे. उस दिन एक कर्मचारी फिरोज छुट्टी पर था.

इसी दौरान एक युवक मुथूट के कार्यालय में आया. युवक ने सिर पर औरेंज कलर की कैप लगा रखी थी. उस ने अपने गले में पहनी एक चेन महिला कर्मचारी मीनाक्षी को दिखाई और कहा कि सोने की इस चेन के बदले मुझे लोन चाहिए, कितना लोन मिल सकता है?

मीनाक्षी उस युवक को दस्तावेज लाने की बात कह रही थी, तभी हेलमेट पहने 2 युवक अंदर आए. इन के तुरंत बाद चेहरे पर रूमाल बांधे तीसरा युवक अंदर गेट के पास आ कर खड़ा हो गया. उन तीनों युवकों के आने पर चेन दिखा रहा वह युवक भी उन के साथ हो गया.

उन में से हेलमेटधारी बदमाशों ने पिस्तौल निकाल ली और वहां मौजूद कर्मचारियों और ग्राहकों को धमका कर चुपचाप एक कोने में बैठने को कहा. इतनी देर में गेट के पास चेहरे पर रूमाल बांधे खड़े बदमाश ने गार्ड दीपक सिंह से उस की बंदूक छीन ली और उसे जमीन पर बैठने को कहा. बदमाशों के डर से गार्ड चुपचाप नीचे बैठ गया.

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कर्मचारियों व ग्राहकों को धमकाने के बाद पिस्तौल लिए एक बदमाश मैनेजर तोषनीवाल के पास पहुंचा. बदमाश ने उन की कनपटी पर पिस्तौल तानते हुए स्ट्रांगरूम की चाबी मांगी. मैनेजर ने चिल्लाते हुए अपने केबिन से निकल कर भागने की कोशिश की, लेकिन गेट पर खड़े बदमाश ने उन से मारपीट की और बंदूक दिखा कर अंदर धकेल दिया. साथ ही गोली मारने की धमकी भी दी.

खुद को चारों तरफ से घिरा देख कर भी मैनेजर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने बदमाशों को गुमराह करने के लिए कहा, ‘‘मेरे पास एक ही चाबी है. स्ट्रांगरूम 2 चाबियों से खुलता है. दूसरी चाबी कैशियर के पास है, वह बैंक गया हुआ है.’’

बदमाशों ने मैनेजर से एक ही चाबी ले कर स्ट्रांगरूम खोलने की कोशिश की. मामूली कोशिश के बाद स्ट्रांगरूम खुल गया तो 2 बदमाशों ने स्ट्रांगरूम का सोना और नकदी निकाल कर अपने साथ लाए एक बैग में भर ली. 2 बदमाश जब स्ट्रांगरूम से बैग में सोना भर रहे थे तो मैनेजर ने बदमाशों से खुद को बीमार बताते हुए बाथरूम जाने देने की याचना की. इस पर बदमाशों ने मैनेजर को बाथरूम जाने दिया. मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल ने बाथरूम में घुसते ही अंदर से गेट बंद कर लिया.

कंपनी के बाथरूम में इमरजेंसी अलार्म लगा हुआ था, मैनेजर ने वह अलार्म बजा दिया. साथ ही उन्होंने बाथरूम से ही मुथूट फाइनैंस कंपनी के जयपुर के ही एमआई रोड स्थित कार्यालय और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन भी कर दिया. अलार्म बजने पर दोपहर करीब 1.22 बजे चारों बदमाश सोना व नकदी ले कर तेजी से सीढि़यों से नीचे उतर कर चले गए. बाद में पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे और मोटरसाइकिलों पर ही चले गए थे.

सूचना मिलने पर डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, एसीपी देशराज यादव के अलावा मानसरोवर थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल की. कर्मचारियों व वारदात के दौरान मौजूद रहे ग्राहकों से पूछताछ की.

पुलिस ने मौके पर एक काउंटर से दस्ताने बरामद किए. ये दस्ताने एक बदमाश छोड़ गया था. मैनेजर ने स्ट्रांगरूम और अन्य नकदी का हिसाबकिताब लगाने के बाद प्रारंभिक तौर पर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बदमाश 31 किलोग्राम सोना और 3 लाख 85 हजार रुपए नकद लूट ले गए थे.

मैनेजर ने पुलिस को बताया कि अलार्म बज जाने से लुटेरे करीब 10 करोड़ रुपए कीमत का 35 किलो सोना नहीं ले जा सके थे. वारदात के समय स्ट्रांगरूम में 65 किलो से ज्यादा सोना रखा था. लुटेरे अपने साथ 2-3 बैग लाए थे, लेकिन वे एक बैग में ही सोना भर पाए थे, तभी अलार्म बज गया और जल्दी से भागने के चक्कर में वे बाकी सोना छोड़ गए.

मुथूट कंपनी की इस शाखा से करीब ढाई हजार ग्राहक जुडे़ हुए थे. लुटेरे इन में से करीब एक हजार ग्राहकों का सोना ले गए थे. हालांकि बाद में कंपनी के अधिकारियों ने सारा रिकौर्ड देखने के बाद बताया कि लूटे गए सोने का वजन करीब 27 किलो था.

वारदात के बाद मुथूट की महिला कर्मचारी टीना शर्मा बहुत डरी हुई थी. गर्भवती टीना शर्मा वारदात के बारे में पुलिस को बताते हुए रोने लगी. कर्मचारियों में से मीनाक्षी ने बताया कि बदमाश बोलचाल से उत्तर प्रदेश या हरियाणा के लग रहे थे. उन में एक की उम्र करीब 35 साल थी, जबकि बाकी लुटेरे 25 से 30 साल के थे.

मानसरोवर के भीड़भाड़ वाले इलाके में दिनदहाड़े इतनी बड़ी लूट हो गई, लेकिन किसी को इस का पता तक नहीं चला. इस का कारण यह था कि मुथूट फाइनैंस के पहली मंजिल स्थित औफिस में पहुंचने के लिए सीढि़यां दुकानों के पीछे से हैं. मानसरोवर में रजतपथ चौराहे के कौर्नर पर 2 मंजिला इमारत में ग्राउंड फ्लोर पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखा और कपड़ों के शोरूम हैं. पहली मंजिल पर मणप्पुरम गोल्ड लोन कंपनी और एक तरफ मुथूट फाइनैंस के औफिस हैं. यह पूरा इलाका भीड़भाड़ वाला है.

पुलिस ने मुथूट फाइनैंस कार्यालय में तथा आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले. इन फुटेज में सब से पहले अंदर आए औरेंज टोपी वाले बदमाश का चेहरा साफ नजर आ रहा था. बाकी तीनों बदमाशों की कदकाठी और हावभाव ही नजर आए थे. आसपास की फुटेज से पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों से आए थे. उन की मोटरसाइकिलों पर नंबर नहीं थे. इन्हीं मोटरसाइकिलों से वे सोना और नकदी ले कर भाग गए थे.

मुथूट के औफिस से लूटपाट के बाद सीढि़यों से उतरते हुए बदमाशों ने स्ट्रांगरूम की चाबी फेंकी थी. चाबी को सूंघ कर पुलिस के डौग ने बदमाशों का उन की गंध के आधार पर पीछा किया. डौग स्क्वायड रजतपथ चौराहे से मध्यम मार्ग से हो कर स्वर्णपथ चौराहे पर पहुंचा. वहां से वह न्यू सांगानेर रोड की तरफ गया, लेकिन कुछ देर पहले तेज बारिश होने से वहां पानी भर गया था. इस से डौग स्क्वायड को बदमाशों की आगे की गंध नहीं मिल सकी. बदमाशों की तलाश में पुलिस ने शहर में चारों तरफ कड़ी नाकेबंदी कराई, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग नहीं मिला. कंपनी के गार्ड को थाने ले जा कर पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन उस से भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली. अंतत: पुलिस ने उसे छोड़ दिया. पुलिस ने कंपनी के अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांचपड़ताल की.

दूसरी ओर, लूट की वारदात होने के बाद मुथूट फाइनैंस में सोने के जेवर रख कर लोन लेने वाले ग्राहकों का तांता लग गया. ये ग्राहक अपने सोने के जेवर लूटे जाने की बात से चिंतित थे. इस पर कंपनी के अधिकारियों ने ग्राहकों को बताया कि लूटे गए सोने का बीमा करवाया हुआ है. किसी भी ग्राहक का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

मुथूट फाइनैंस से करीब 8 करोड़ का सोना और इस से एक दिन पहले आदर्श नगर के राजापार्क में धु्रव मार्ग स्थित यूको बैंक की तिलक नगर शाखा में हुई 15 लाख रुपए की लूट ने जयपुर पुलिस की नींद उड़ा दी थी.

पुलिस ने बदमाशों की तलाश में जयपुर शहर सहित आसपास के जिलों में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का पता नहीं चला. पुलिस ने अनुमान लगाया कि लुटेरे जयपुर-आगरा हाईवे या जयपुर-दिल्ली हाईवे पर हो कर निकल भागे थे.

इन दोनों हाईवे की दूरी बैंक से दो-ढाई किलोमीटर है. जिस तरीके से वारदात हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाशों ने कई दिन रैकी होगी. यह भी अनुमान लगाया गया कि बदमाशों के कुछ अन्य सहयोगी भी थे, जो बाहर खडे़ रह कर नजर रखे हुए थे.

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पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मातहत अधिकारियों की बैठक कर वारदात का पता लगाने के लिए विशेष टीम का गठन किया. मुथूट फाइनैंस में हुई 8 करोड़ के सोने की लूट का राज फाश करने की जिम्मेदारी डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, डीसीपी साउथ योगेश दाधीच और एसओजी के एएसपी करण शर्मा के नेतृत्व वाली टीम को सौंपी गई. पुलिस ने पूरे राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व हरियाणा पुलिस से लूट और डकैती की वारदातों और उन्हें अंजाम देने वाले गिरोहों की जानकारी मांगी.

पुलिस को शक था कि वारदात करने वाले बदमाश लूटे गए सोने को कहीं किसी कंपनी में गिरवी न रख दें. पुलिस राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में संचालित ऐसी कंपनियों से संपर्क बनाए हुए थे. जयपुर में कुछ साल पहले गोल्ड लोन फर्म में हुई डकैती के लूटे गए सोने को बदमाशों ने दूसरी गोल्ड लोन कंपनी में गिरवी रख कर रकम ले ली थी.

दिलचस्प बात यह है कि देश का करीब 47 प्रतिशत सोना केरल की 3 कंपनियों मुथूट फाइनैंस, मणप्पुरम फाइनैंस व मुथूट फिनकौर्प के पास है. सितंबर 2016 तक इन कंपनियों के पास 263 टन सोना था. सोने की कीमत 7 खरब 36 अरब 40 करोड़ रुपए आंकी गई थी. इन में मुथूट फाइनैंस की गोल्ड होल्डिंग करीब 150 टन है. यह सोना कई अमीर देशों के स्वर्ण भंडार से भी ज्यादा है. मणप्पुरम फाइनैंस के पास 65.9 टन एवं मुथूट फिनकौर्प के पास 46.88 टन सोना होने का अनुमान है. जबकि भारत की कुल गोल्ड होल्डिंग 558 टन है.

देश की सब से बड़ी गोल्ड फाइनैंसिंग कंपनी के रूप में पहचान रखने वाली मुथूट फाइनैंस कंपनी की विभिन्न शाखाओं में 4 साल के दौरान लूट व डकैती की 7 वारदातें हुई हैं. इन में करीब डेढ़ क्विंटल सोना लूटा गया है. सन 2013 में 21 फरवरी को लखनऊ में इस कंपनी की शाखा से 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का करीब 20 किलो सोना लूटा गया था. सन 2015 में 22 फरवरी को ढाई करोड़ रुपए से अधिक के करीब 10 किलो सोने की डकैती हुई. वर्ष 2016 में 30 जनवरी को पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में 9 करोड़ रुपए मूल्य का 30 किलो सोना लूटा गया.

पिछले साल ही 16 मई, 2016 को पंजाब के पटियाला में करीब 3 करोड़ रुपए के 11 किलो सोने की लूट हुई. 28 दिसंबर, 2016 को हैदराबाद में 12 करोड़ रुपए का करीब 40 किलो सोना लूटा गया. 23 फरवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता स्थित बेनियापुकुर में 5 करोड़ से ज्यादा के करीब 20 किलो सोने की डकैती हुई.

जयपुर पुलिस ने 21 जुलाई, 2017 को मुथूट फाइनैंस की शाखा से करीब 27 किलो सोना लूटने के मामले में 21 अगस्त, 2017 को बिहार की राजधानी पटना से 3 आरोपियों शुभम उर्फ सेतू उर्फ शिब्बू भूमिहार, पंकज उर्फ बुल्ला यादव और विशाल कुमार उर्फ विक्की उर्फ रहमान यादव को गिरफ्तार किया. ये तीनों आरोपी बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर के रहने वाले थे. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने यह वारदात गिरोह के सरगना सुबोध उर्फ राजीव और अन्नू उर्फ राहुल के साथ मिल कर की थी. लूट का सोना सुबोध के पास था.

योजना के अनुसार, इन लोगों ने 3 जुलाई को जयपुर आ कर मुथूट की शाखाओं की रैकी की. इस में मानसरोवर की शाखा को वारदात के लिए चुना गया. इस के बाद वारदात के लिए उन्होंने आगरा से एक नई और एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी. इस के बाद वारदात से 5 दिन पहले राजस्थान के टोंक जिले के कस्बा निवाई पहुंच कर शुभम, पंकज व विशाल ने खुद को नेशनल हाईवे बनाने वाली कंपनी का अधिकारी बता कर निवाई में साढ़े 4 हजार रुपए महीना किराए पर मकान लिया था.

निवाई में उन्होंने दिल्ली से एक कार मंगवाई. यह पुरानी कार 40 हजार रुपए में खरीदी गई थी. 21 जुलाई को कार व चालक को निवाई में छोड़ कर वहां से 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर विशाल, सुबोध, अन्नू व शुभम जयपुर में मानसरोवर स्थित मुथूट फाइनैंस की शाखा पर पहुंचे.

सब से पहले विशाल अंदर घुसा. फिर सुबोध, अन्नू व शुभम अंदर गए. सुबोध व अन्नू ने बैग में सोना भरा. वारदात के बाद भागने के लिए इन्होंने पहले ही गूगल मैप देख कर रूट तय कर लिया था. वारदात के बाद विशाल व सुबोध एक मोटरसाइकिल से निवाई पहुंचे और कार में सोना रख कर पटना चले गए.

अन्नू व शुभम दूसरी मोटरसाइकिल से जयपुर से अजमेर पहुंचे और हाईवे पर बाइक छोड़ कर बस से आगरा गए. आगरा से ये लोग पटना चले गए. रैकी करने जयपुर आने और वारदात के बाद पटना में व्यवस्था संभालने में पंकज जुटा हुआ था. इस वारदात के लिए सुबोध ने अन्नू को 8 लाख रुपए, विशाल को 5 लाख और शुभम को एक लाख रुपए दिए थे.

3 आरोपियों की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद पुलिस ने चौथे आरोपी अन्नू को यूपी की एसटीएफ की मदद से झारखंड के धनबाद से पकड़ लिया. बाद में 20 जनवरी, 2018 को जयपुर पुलिस ने पटना एसटीएफ की मदद से मुथूट फाइनैंस से सोना लूट के मास्टरमाइंड सुबोध सिंह उर्फ राजीव को पकड़ लिया. उस की निशानदेही पर 15 किलो सोना बरामद किया गया. सुबोध ने नागपुर व कोलकाता में भी डकैती की वारदातें करना कबूल किया.

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पुलिस का मानना है कि वह करीब 15 साल से इस तरह की वारदातें कर रहा है. उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही थी. इस से पहले वह छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा चुका था. 10-12 साल पहले सुबोध ने चेन्नै में बैंक लूटा था, तब वहां की पुलिस ने मुठभेड़ में उस के 3-4 साथी मार दिए थे, लेकिन सुबोध बच गया था.

सुबोध की निशानदेही पर पुलिस ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस में सोना रख कर वह निवाई से पटना गया था. सुबोध के भाई रणजीत सिंह पर बिहार में हजारों लोगों से ठगी करने का आरोप है.

सुबोध पटना जिले का टौपर स्टूडेंट था. 10वीं में उस के 94 प्रतिशत अंक आए थे, लेकिन उसे नेपाल में कैसीनो जाने का शौक लग गया, जिस में वह लाखों रुपए हार गया था. इस के बाद उस ने लूट की वारदातें शुरू कीं. फिर गिरोह बना कर बैंक व गोल्ड लोन कंपनियों में डकैती डालने लगा. अब उस की महत्त्वाकांक्षा बिहार में चुनाव लड़ने की थी.

2 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में पटना के रहने वाले छठे आरोपी राजसागर को गिरफ्तार कर लिया. वह लग्जरी कारों से अपने साथियों को घटनास्थल पर छोड़ने व वारदात के बाद वापस ले जाने का काम करता था. उस के खिलाफ लूट व डकैती के कई मामले दर्ज हैं. राजसागर ही सुबोध को कार से निवाई से पटना ले गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों व विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित

जब इस मैच में एक बौल में बनाए गए 286 रन

आज क्रिकेट बहुत बड़ा गेम बन चुका है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला जाता है. क्रिकेट खिलाड़ी करोड़ों में बिकते हैं, क्रिकेट पर अरबों रुपए का सट्टा लगाया जाता है. अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए तरहतरह के नियम बन गए हैं, जिन के उल्लंघन पर जुर्माना लगाया जाता है. हकीकत यह है कि क्रिकेट की लोकप्रियता के चलते क्रिकेटरों की हैसियत फिल्म स्टारों जैसी बन गई है, जिन्हें करीब से देखने के लिए कुछ लोग तरसते हैं तो कुछ महंगे टिकट ले कर देशविदेश के स्टेडियमों तक जाते हैं.

क्रिकेट को अनिश्चितताओं का गेम कहा जाता है. यह बात है भी सही, कब किस टीम की बाजी पलट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. टीमें हारतेहारते जीत जाती हैं और जीततेजीतते हार जाती हैं. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, जैसा आज है. इस खेल में कई ऐसे कारनामे हो चुके हैं, जिस की वजह से इसे अनिश्चितताओं के गेम का नाम मिला. कुछ कारनामे तो ऐसे हुए, जिन पर विश्वास करना मुश्किल है.

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ऐसा ही एक विचित्र कारनामा सदियों पहले हुआ था, जो अपने आप में एक रिकौर्ड बन गया. अगर क्रिकेट देखने वाले किसी व्यक्ति से पूछा जाए कि एक बौल में कितने रन बन सकते हैं तो ज्यादातर लोगों का जवाब होगा 7 रन. लेकिन क्रिकेट हिस्ट्री में एक बौल पर 286 रन भी बन चुके हैं.

जनवरी, 1894 में लंदन से छपने वाले अखबार ‘पाल माल गजट’ में एक रिपोर्ट छपी थी, जिस में आस्ट्रेलिया में घटी इस घटना को रिकौर्ड बताया था. रिपोर्ट के मुताबिक, 1865 में आस्ट्रेलिया में डोमेस्टिक मैच के दौरान विक्टोरिया और स्क्रैच-11 टीम के बीच क्रिकेट मैच खेला गया था, जिस में एक बौल पर 286 रन बने थे.

मैच के दौरान विक्टोरिया के बैट्समैन ने एक जोरदार शौट लगाया और बौल पेड़ पर जा कर अटक गई. इस के बाद बैट्समैन का रनों के लिए दौड़ने का सिलसिला शुरू हुआ. जब तक पेड़ से बौल उतारी गई, तब तक बैट्समैन बराबर दौड़ते रहे और 286 रन बना लिए.

इस घटना के बाद नियमों में थोड़ा बदलाव किया गया. बाद में समयसमय पर नियमों में बदलाव होते रहे.

ये 7 बेहतरीन उपाय, किचन को स्मार्ट बनाएं

किसी भी घर का रसोईघर अतिथियों का स्वागत करने और परिवार के लोगों की सेहत का खयाल रखने में अहम भूमिका निभाता है. पेश हैं, रसोई को सुविधाजनक बनाने के सुझाव:

– घर के अन्य कोनों की साफसफाई के साथसाथ रसोईघर की सफाई भी बहुत जरूरी है. रसोईघर में इस्तेमाल होने वाली सभी वस्तुएं भी बाहर और भीतर से अच्छी तरह साफ होनी चाहिए. सभी उपकरण, शैल्फ की दराजें, बरतन रखने के होल्डर आदि को अच्छी तरह झाड़ापोंछा जाना चाहिए. खासकर दराजों और कैबिनेट में रखी वस्तुओं को समयसमय पर बाहर निकाल कर साफ करना तो बहुत ही जरूरी है.

– रसोईघर की खानेपीने से ले कर दूसरे कामों में इस्तेमाल आने वाली वस्तुओं को उपयोगिता की क्रमबद्धता के अनुसार कैबिनेट या उन के लिए बनाई गई उपयुक्त जगहों पर रखा जाना चाहिए. यह ध्यान रखना चाहिए कि कौनकौन सी वस्तुएं बारबार इस्तेमाल में आती हैं और कौन सी कभीकभार. इस आधार पर उन्हें अपने ध्यान में रखते हुए स्टोर में रखा जाना चाहिए. जैसे हमेशा इस्तेमाल वाली चीजों को अपनी पहुंच में ज्यादा मात्रा में तथा कभीकभी काम आने वाली वस्तुओं को थोड़ा दूर रखा जाना चाहिए. सभी को एकसाथ रख कर एकदूसरे का बाधक नहीं बनने दिया जाना चाहिए.

– प्रत्येक वस्तु को आसानी से पहुंच के दायरे में रखना चाहिए और उसे अच्छी तरह साफ होना चाहिए. लेकिन उन्हें पास में रखने से पहले यह तय किया जाना चाहिए कि उन की उपयोगिता कितनी हो सकती है. उदाहरण के तौर पर यदि नाश्ते में आप टोस्टब्रैड का इस्तेमाल करते हैं, तो टोस्टर को रसोईघर के काउंटर के ठीक नीचे रखना चाहिए ताकि उसे आसानी से तुरंत बाहर निकाला जा सके. अन्यथा इस उपकरण को अलग सुरक्षित स्थान पर रख देना चाहिए.

– पसंदीदा और हमेशा काम में आने वाली खाना पकाने की चीजों में विशेषकर खा-पदार्थों को एकसाथ रखना चाहिए ताकि उन के इस्तेमाल के समय आसानी से चुना जा सके. हालांकि उन्हें अलग बरतनों में रखना चाहिए ताकि प्रयोग के समय काम में बाधा नहीं आए और जीरा और आजवाइन जैसी चीजों को आसानी से पाया जा सके.

– शैल्फ में वस्तुओं को करीने से रखना चाहिए. आवश्यकतानुसार और एकजैसी वस्तुओं के हिसाब से व्यवस्थित करना चाहिए. बड़ी और लंबी वस्तुएं पीछे की ओर तथा आकार एवं साइज में छोटी वस्तुओं को आगे की ओर रखा जाना चाहिए. ट्रे वाले रैक, बरतन रखने के विभिन्न खानों वाले होल्डर और खूंटियों वाले शैल्फ बरतनों को रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने चाहिए. इन में हर प्रकार के बरतनों को व्यवस्थित ढंग से रखने की जगह बनी होती है. इन्हें रसोईघर की दीवार के सहारे लगाया जा सकता है.

– यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि रसोईघर में काम करने के दौरान नजर के सामने क्याक्या रखा जाना है. जिन वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं किया जाना है उन्हें हटा देना चाहिए. यदि कोई वस्तु टूटी हुई है, तो उस की तत्काल मरम्मत करवा ली जानी चाहिए और बेकार हो जाने की स्थिति में फेंक कर नई ले आनी चाहिए. सब्जी वगैरह काटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चाकू की धार तेज होनी चाहिए.

– यदि रसोई में जरूरत से ज्यादा रद्दी पेपर या फिर बेकार सामान इकट्ठा हो जाए तो उसे स्टोर में रख देना चाहिए.

– मनीषा कौशिक

पढ़ाई के साथ साथ ऐसे सिखाएं बच्चों को तहजीब

चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.

रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.

उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’

‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.

‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की.

बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.

‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’

‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’

अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं-’’

‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.

‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.

‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’

अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.

दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.

आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.

इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.

क्या करें

– बच्चों के सामने आपस में संवाद करते वक्त बेहद सावधानी बरतें. आप का लहजा, शब्द बच्चे सभी कुछ आसानी से कौपी कर लेते हैं.

– बच्चों को किसी न किसी क्रिएटिव कार्य में उलझाए रखें. ताकि वे बोर भी न हों और उन में सीखने की जिज्ञासा भी बनी रहे.

– अपने बीच की बहस या झगड़े को उन के सामने टाल दें. बच्चों के सामने किसी भी बहस से बचें.

– बच्चों को खूब प्यार दें. मगर साथ ही जीवन के मूल्यों से भी उन का परिचय कराते चलें. खेलखेल में उन्हें अच्छी बातें छोटीछोटी कहानियों के माध्यम से सिखाई जा सकती हैं. इस काम में बच्चों के लिए कहानियां प्रकाशित होने वाली पत्रिका चंपक उन के लिए बेहद मनोरंजक व ज्ञानवर्धक साबित हो सकती है.

– रिश्तों के माने और महत्त्व जानना बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उतना ही जरूरी है, जितना एक स्वस्थ पेड़ के लिए सही खादपानी का होना.

– समयसमय पर अपने बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिताएं. इस से आप को उन के मन में क्या चल रहा है, यह पता चल सकेगा और समय पर उन की गलतियों को भी सुधारा जा सकेगा.

– बच्चों के हिंसक होने पर उन्हें मारनेपीटने के बजाय उन्हें उन की मनपसंद ऐक्टिविटी से दूर कर दें. जैसे आप उन्हें रोज की कहानियां सुनाना बंद कर सकते हैं. उन से उन का मनपसंद खिलौना ले कर कह सकते हैं कि अगर उन्होंने जिद की या गलत काम किए तो उन्हें खिलौना नहीं मिलेगा.

क्या न करें

– बच्चों को बच्चा समझने की भूल हरगिज न करें. माना कि आप की बातचीत के समय वे अपने खेल या पढ़ाई में व्यस्त हैं. पर इस दौरान भी वे आप की बातों पर गौर कर सकते हैं. समझने की जरूरत है कि बच्चों को दिमाग हम से अधिक शक्तिशाली व तेज होता है.

– बच्चों पर अपनी बात कभी न थोपें, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अच्छी बातें भी बोझ लगती हैं, लिहाजा बच्चे निराश हो सकते हैं. सकारात्मक पहल कर उन्हें किसी भी काम के फायदे व नुकसान से बड़े प्यार से अवगत कराएं.

– बच्चों की कही किसी भी बात को वक्त निकाल कर ध्यान से सुनें. उसे इग्नोर न करें.

– बच्चों की तुलना घर या बाहर के किसी दूसरे बच्चे से हरगिज न करें. ऐसा कर आप उन के मन में दूसरे के प्रति नफरत बो रहे हैं. याद रहे कि हर बच्चा अपनेआप में यूनीक और खास होता है.

– आज के अत्याधुनिक युग में हर मांबाप अपने बच्चों को स्मार्ट और इंटैलिजैंट देखना चाहते हैं. अत: बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें स्मार्ट अवश्य बनाएं. पर समय से पूर्व मैच्योर न होने दें.

– बच्चों को अपने सपने पूरा करने का जरीया न समझें, बल्कि उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दें. मसलन, जिंदगी में आप क्या करना चाहते थे, क्या नहीं कर पाए. उस पर अपनी हसरतें न लादें, बल्कि उन्हें अपने सपने पूरा करने का अवसर व हौसला दें ताकि बिना किसी पूर्वाग्रह के वे अपनी पसंद चुनें और सफल हों.

– विशेषज्ञों की राय अनुसार बच्चों से बाबा, भूतप्रेत आदि का डर दिखा कर कोई काम करवाना बिलकुल सही नहीं है. ऐसा करने से बच्चे काल्पनिक परिस्थितियों से डरने लगते हैं. इस से उन का मानसिक विकास अवरुद्ध होता है और वे न चाहते हुए भी गलतियां करने लगते हैं.

उगते सूर्य पर भी जनता लगा चुकी है ग्रहण

पूर्वोत्तर राज्यों खासतौर से त्रिपुरा में भाजपा की अप्रत्याशित जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछकुछ ऋषिमुनियों के अंदाज में कहा था कि डूबते सूरज का रंग लाल और उगते का भगवा होता है. प्रतीकात्मक रूप में कसे गए इस ताने पर कम्युनिस्टों के पास खामोश रहने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था. यह उगता सूर्य धूप दे पाता, इस के पहले ही उत्तर प्रदेश और बिहार में उस पर ग्रहण लग गया.

राजनीति में हारजीत यों आम बात है. अच्छा यह है कि नरेंद्र मोदी को 2014 और 2018 में फर्क समझ आने लगा है और खुद मोदीमोदी चिल्लाने वाली जनता उन्हें हार की आदत डाल रही है. इस के बाद भी दिलचस्प बात यह है कि गोरखपुर और फूलपुर के नतीजों पर किसी ने मोदी को सारा दोष नहीं दिया.

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