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भारत में होने वाले चुनाव सुरक्षित, अब कहीं नहीं होगी गड़बड़ी : जुकरबर्ग

फेसबुक डाटा लीक मामले में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिकी सीनेट के सामने माफी मांगी. उन्होंने कहा जो कुछ भी हुआ उसके लिए सिर्फ वो ही जिम्मेदार हैं. मार्क जुकरबर्ग ने सीनेट को यह भी भरोसा दिलाया कि वह और उनकी टीम इस पर काम कर रहे हैं कि भारत और दूसरे देशों में होने वाले चुनाव बिल्कुल निष्पक्ष हों.

जुकरबर्ग के मुताबिक, उनकी कंपनी हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि जो गलती हुई वो दोबारा न दोहराई जाए. कैपिटल हिल में सीनेट के सामने मार्क जुकरबर्ग ने कहा 2018 एक बेहद अहम साल है. भारत और पाकिस्तान जैसे कई देशों में चुनाव होने हैं. ”हम हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं चुनाव पूरी तरह सुरक्षित रहें, इस पर काम चल रहा है.”

फेसबुक नहीं निभा पाया जिम्मेदारी

दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के सीईओ और फाउंडर ने कहा फेसबुक अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा पाया. उन्होंने माफी मांगते हुए यह माना कि उनके प्लटेफौर्म का इस्तेमाल झूठी खबरों और चुनाव को बिगाड़ने के लिए किया गया.

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जुकरबर्ग ने जताया अफसोस

33 वर्षिय अरबपति जुकरबर्ग ने कहा उन्हें अफसोस है कि उनकी कंपनी ने 2016 में हुए अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने वाली रूस की गड़बड़ी को देर से पकड़ा. जिसका फायदा डोनाल्ड ट्रंप को मिला. आज वह अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति हैं.

मजबूत कर रहे हैं सिक्योरिटी फीचर्स

मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि भारत में आगामी चुनावों को देखते हुए वह इसके सिक्योरिटी फीचर्स को और मजबूत कर रहा है. जुकरबर्ग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल का हवाला देते हुए कहा कि इसे फेसबुक पर लाया गया है ताकि चुनावों को प्रभावित करने और न्यूज को मैनुपुलेट करने वाले फेक अकाउंट्स की पहचान हो सके. ऐसा टूल पहली बार फ्रांस के चुनाव में साल 2017 में लाया गया था.

फर्जी अकाउंट की पहचान के लिए एआई टूल

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मार्क जुकरबर्ग ने कहा ‘नए AI टूल को हमने 2016 के चुनाव के बाद बनाया था. मैं ऐसा मानता हूं कि करीब 30 हजार से ज्यादा फेक अकाउंट्स जो रूस से जुड़े थे वो ठीक अमेरिका में 2016 में हुए चुनाव की तरह ही रणनीति अख्तियार करना चाहते थे. लेकिन, हमने उन सभी को डिसएबल कर फ्रांस में बड़े पैमाने पर होनेवाली इस तरह की चीजों से बचा लिया.’ जुकरबर्ग ने कहा ‘पिछले साल 2017 में अलबामा में विशेष चुनाव के दौरान हमने कुछ नए एआई टूल्स फर्जी एकाउंट्स और फेक न्यूज की पहचान के लिए लेकर आए. जिसके बाद हमने ये पाया कि बड़ी तादाद में मोसीडोनियन एकाउंट्स बने थे जो गलत न्यूज फैला रहे थे. जिसे हमने सोशल प्लेटफौर्म से हटा दिया.’

रूस ने लगाई सेंध

जुकरबर्ग ने रूस पर आरोप लगाते हुए कहा, “रूस में लोग हैं जिनका काम हमारे सिस्टम, दूसरे इंटरनेट सिस्टम और अन्य सिस्टम में सेंध लगाकर फायदा उठाना है. ऐसे में यह हथियारों की दौड़ है. जिसे बेहतर बनाए रखने और इसे बेहतर करने के लिए इसमें निवेश करने की जरूरत है.” जुकरबर्ग ने माना कहा, “मैंने फेसबुक के 8.70 करोड़ यूजर्स के निजी डेटा का दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए, जबकि यह मेरी जिम्मेदारी थी.”

वीडियो : एविल आई नेल आर्ट

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नीतीश राणा को बैट गिफ्ट कर कोहली ने जीता दिल

भारतीय क्रिकेट टीम और आरसीबी के कप्तान विराट कोहली ने युवा बल्लेबाज नीतीश राणा को अपना बैट गिफ्ट किया है. आईपीएल के इस सीजन खेले गए तीसरे मुकाबले में राणा ने कोहली को अपनी गेंद पर बोल्ड किया था. राणा के प्रदर्शन के खुश होकर मैच के बाद विराट कोहली ने उन्हें अपना बैट दिया. विराट कोहली को आउट करने के बाद राणा ने कुछ अपशब्द भी कहे थे, लेकिन विराट ने उस बात को नजरअंदाज करते हुए राणा को प्रोत्साहित करने का काम किया है.

दरअसल, तीसरे मैच के दौरान केकेआर के कप्तान दिनेश कार्तिक ने टौस जीतकर आरसीबी को पहले बल्लेबाजी करने के लिए आमंत्रित किया. आरसीबी की टीम विराट कोहली और एबी डी विलियर्स की मदद से एक बड़े स्कोर की ओर बढ़ रही थी.

इसी बीच कार्तिक ने एक हैरान करने वाला फैसला लिया और गेंद पार्ट टाइमर नीतीश राणा के हाथों में सौंप दी. राणा ने एक ही ओवर में पहले डी विलियर्स और फिर कोहली को आउट कर केकेआर को मैच में वापस ला दिया. कोहली के विकेट लेने के बाद उत्साहित राणा ने उन्हें देखते हुए कुछ अभद्र टिप्पणी की. राणा के इस व्यवहार की सोशल मीडिया पर काफी आलोचना भी की गई.

वहीं मैच के बाद विराट कोहली राणा के पास गए और उन्हें बैट गिफ्ट कर भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं. नीतीश राणा ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर बैट के साथ एक तस्वीर शेयर कर इस बात की जानकारी दी. राणा ने तस्वीर के साथ लिखा, ”क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी से जब तारीफ मिलती है तो और बेहतर करने का जोश अंदर आ जाता है. इस बैट के लिए धन्यावाद विराट भैया”.

नीतीश राणा एक विस्फोटक बल्लेबाज हैं, पिछले सीजन मुंबई इंडियंस की तरफ से खेलते हुए उन्होंने कई दमदार पारी खेली थी. इस सीजन की शुरुआत भी उनके लिए अच्छा रहा है. वह कोलकाता की टीम के अहम खिलाड़ी हैं और वह इस सीजन बल्ले से ज्यादा से ज्यादा रन बनाना चाहेंगे.

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ट्रैफिक जाम का अब बस यही है समाधान

रात के लगभग 12 बजे थे. उनींदी सी नीरा की बगल में लेटते हुए पति अजीत बोले, ‘‘मुझे सुबह जल्दी उठा देना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कल बौस के साथ मीटिंग है. घर से 9 बजे निकलता हूं तो ट्रैफिक में फंस जाने के कारण देर हो जाती है.’’

‘‘तुम्हारी भी क्या जिंदगी है? सुबह जल्दी जाओ और रात में देर से आओ.’’

‘‘क्या करूं? शाम को तो मैं जानबूझ कर देर से निकलता हूं. कम से कम ट्रैफिक से तो बच जाऊं.’’

‘‘ट्रैफिक में ही जिंदगी बीत जाएगी, ऐसा लगता है.’’

शिशिर ट्रैफिक में फंसा झल्ला रहा था. आज उस की बेटी अवनी का बर्थडे जो था. तभी फोन की घंटी बज उठी, ‘‘शिशिर, कहां हो? अवनी की फ्रैंड्स केक काटने के लिए शोर मचा रही हैं. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘अवनी को फोन दो. सौरी, बेटा मैं ट्रैफिक में फंसा हूं. तुम केक  काट लो. वीडियो बना लेना. मैं आ कर देखूंगा. शिशिर भुनभुना कर बोला, ‘‘यह ट्रैफिक जाम तो जान का दुश्मन बन गया है.’’

नेहा गूगल मैप पर रोड ट्रैफिक देख कर घर से निकली थी, लेकिन स्कूल के पास वाले ट्रैफिक सिगनल के कारण पहुंचने में देर हो गई और आज भी उस की बायोमीट्रिक प्रेजैंट में देर हो चुकी थी. प्रिंसिपल साहब की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा वह अलग. यह ट्रैफिक जाम तो जीवन की मुसीबत बन चुका है. सुरेशजी को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टर ने हौस्पिटल ले जाने को कहा. ऐंबुलैंस आने में ही 1 घंटा लग गया.

शशांक ने अपनी पत्नी के औफिस के पास फ्लैट इसलिए लिया था ताकि वह, पत्नी श्वेता और बेटा सुयश दोनों आसानी से अपने स्कूल पहुंच सकें. परंतु उस की कीमत शशांक को चुकानी पड़ रही है. अब उस का औफिस 35 किलोमीटर दूर है. रास्ते में मिलने वाला ट्रैफिक उसे सुबह से ही थका और परेशान कर देता है. कभीकभी तो उसे 2 घंटे लग जाते हैं.

आज महानगर हो या छोटे शहर, हर जगह ट्रैफिक जाम में ही बीतती है जिंदगी. दरअसल, इस के पीछे शहरों की बढ़ती आबादी, एकल परिवारों का चलन और बिना किसी योजना के शहरों का विस्तारीकरण है. आज गाड़ी संपन्नता की निशानी नहीं वरन जरूरत बन चुकी है. हमारे शहरों में बढ़ती भीड़, सड़कों के दोनों ओर दुकानदारों का बढ़ता अतिक्रमण, बिना किसी हिचक के यहांवहां गाड़ी रोक कर शौपिंग करना, ये सब ट्रैफिक जाम के मुख्य कारण हैं.

अपने देश में शहरों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है, परंतु उस अनुपात में शहरों की आधारभूत संरचना का विकास नहीं हो रहा है. यही कारण है कि शहरों में ट्रैफिक एक बड़ी समस्या बन रही है.

सार्वजनिक परिवहन की कमी और खराब ट्रैफिक व्यवस्था के कारण आज ट्रैफिक जाम ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है.

दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में मैट्रो ट्रेन के जरीए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, परंतु अन्य शहरों की बात करें तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति अच्छी नहीं है.

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मध्यवर्ग की आमदनी बढ़ने के कारण महानगरों में कारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जिस के कारण पतली गलियों तक में जाम लगा रहता है. छोटे शहरों के लोगों ने बताया कि जाम के कारण रोज 1 घंटा तो निश्चित रूप से बरबाद होता ही है.

आज पूरे विश्व में यह समस्या महामारी की तरह फैल चुकी है. बारबार ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर इस का बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

द न्यूजीलैंड हेराल्ड रिपोर्ट का कहना है कि दिल के दौरे का खतरा अचानक बढ़ने का सब से बड़ा कारण है गाड़ी से निकलने वाला धुआं, शोरशराबा और होने वाला मानसिक तनाव.

हवा में जहर: ज्यादातर गाडि़यों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन औक्साइड और कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं. कई गाडि़यां विशेषरूप से जो डीजल से चलती हैं धुएं के साथ बड़ी तादाद में छोटेछोटे कण छोड़ती हैं. ये लोगों की सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए हैं. जिन इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या अधिक है, वहां फेफड़ों में संक्रमण का प्रतिशत और भी ज्यादा है.

अम्ल वर्षा का कारण: गाडि़यों से निकलने वाले नाइट्रोजन औक्साइड और सल्फर औक्साइड अम्ल वर्षा का एक कारण हैं. अम्ल वर्षा के कारण झीलों और नदियों का पानी दूषित हो जाता है. वह पानी जीवजंतु, पेड़पौधे सभी के लिए हानिकारक है. इस से निकली गैस पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार है.

ड्राइवरों में बढ़ता तनाव और क्रोध: जैसेजैसे गाडि़यों की आवाजाही बढ़ती जा रही है, ट्रैफिक जाम के कारण ड्राइविंग करने वालों का क्रोध बढ़ता जा रहा है. ड्राइवर पलभर में आगबबूला हो कर अपना आपा खो बैठते हैं. गालीगलौज, लड़ाई और मारपीट की नौबत आ जाती है, जिस का परिणाम हर सूरत में नुकसानदेह होता है.

आर्थिक नुकसान: ट्रैफिक जाम से पैसे बदबाद होते हैं. अकेले कैलिफोर्निया के लास एंजिल्स में 4 अरब लिटर ईंधर बरबाद हो जाता है. ट्रैफिक जाम के कारण ईंधन के बरबाद होने वाले नुकसान से देश का आर्थिक ढांचा कमजोर हो जाता है.

आज पूरा विश्व ट्रैफिक जाम की समस्या से पीडि़त है. यूरोपियन कमीशन का सर्वे कहता है कि अगर हम अपने यातायात के तरीकों में भारी बदलाव नहीं करेंगे तो आने वाले वर्षों में पूरे के पूरे शहर सड़क पर खड़ेखड़े बेकार में इंतजार करते नजर आएंगे.

एशियाई देशों का भी यही हाल है. काम पर जाने और घर लौटने के समय के दौरान सड़कों पर ट्रैफिक की जैसे बाढ़ सी आ जाती है.

आज स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. जापानी कंपनी एनईसी के सहयोग से 60 शहरों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 2015 में 12 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए. इस के मुकाबले आतंकी घटनाओं में जान गंवाने या घायल होने वालों की तादाद लगभग 30 हजार है.

अपने देश में ट्रैफिक जाम के कारण हर साल अरबों रुपयों का घाटा होता है और यह घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है.

जनता की भी जिम्मेदारी: कई लोगों की आदत होती है कि वे सो कर देर से उठते हैं और फिर भागदौड़ कर तैयार होते हैं. अब चूंकि पहले ही देर हो चुकी होती है, इसलिए ट्रैफिक जाम उन के तनाव को और बढ़ा देता है. यदि इस तनाव से बचना है तो अगले दिन की शुरुआत की तैयारी पहले दिन से ही करनी होगी. बच्चों के कपड़े, अपना ब्रीफकेस, लंच सब कुछ तैयार कर लीजिए. जाहिर सी बात है, सुबह के काम का तनाव नहीं होगा, तो नींद भी अच्छी आएगी.

सुबह जल्दी उठने के कई और भी फायदे हैं जैसे ट्रैफिक में बहुत देर फंसे रहने से मांसपेशियों में तनाव आ जाता है. सुबह की हुई थोड़ीबहुत कसरत आप को चुस्तदुरुस्त बना सकती है. नाश्ता अच्छी तरह करने से तन और मन दोनों प्रसन्न रहेंगे.

गाड़ी को सही हाल में रखें: गाड़ी को सही हालत में रखें. ऐसा न हो कि ट्रैफिक जाम के समय गाड़ी में कोई समस्या उत्पन्न हो जाए. उस के ब्रेक, टायर, एसी वगैरह सही हालत में हों. सब से आवश्यक है कि आप की गाड़ी में पैट्रोल, डीजल भरपूर मात्रा में हो.

जानकारी रखें: सफर शुरू करने से पहले मौसम, सड़क बंद होने के बारे में टीवी, अखबारों से जानकारी ले कर निकलें. जिस रास्ते पर जाना है, उस का मैप अवश्य साथ रखें.

आराम से बैठें: गाड़ी की खिड़की खोल कर अपनी सीट पर आराम से बैठें. गाड़ी में रेडियो, सीडी प्लेयर से मनपसंद संगीत सुनने से दिल को सुकून और राहत मिलती है.

वक्त का लाभ उठाएं: मन ही मन ट्रैफिक जाम पर कुढ़ने के बजाय अपने जरूरी कामों के विषय में सोचविचार कर के निर्णय ले सकते हैं. गाडि़यों की लंबी कतारें देखने से तनाव बढ़ता है. आप अपने साथ मनपसंद किताब, अखबार रख कर पढ़ सकते हैं. अपने लैपटौप पर मेल चैक कर के उन का उत्तर दे सकते हैं.

सही नजरिया रखें: अगर आप के लिए ट्रैफिक जाम रोज की समस्या है तो निश्चित है कि आज भी आप ट्रैफिक जाम में फंसेंगे. इसलिए मानसिक रूप से तैयार रहें और उस समय के सदुपयोग के विषय पर योजना बना कर ही घर से निकलें.

रोड सैफ्टी का ध्यान रखें: अगर आप खुद गाड़ी चला रहे हैं तो ड्राइव करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें. लेन में चलें व बारबार हौर्न न बजाएं. गाड़ी तेज रफ्तार में न चलाएं. कभी भी नशे की हालत में ड्राइविंग सीट पर न बैठें.

ट्रैफिक जाम की समस्या से निबटने के लिए शहरों का नवीनीकरण बेहद आवश्यक है. लोगों का विचार है कि आधुनिक ट्रैफिक सिस्टम, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार, बसों के लिए अलग कौरिडोर और मैट्रो सेवा इस के बेहतर समाधान हो सकते हैं.

आशा है निकट भविष्य में ट्रैफिक जाम से जनता को राहत देने के लिए सरकार भी ओवरब्रिज आदि बना कर सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करेगी. साथ ही हम लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि हम सार्वजनिक बस, मैट्रो या लोकल आदि का उपयोग कर के सड़कों पर ट्रैफिक कम करने की कोशिश करें.

हम आपस में बात कर के गाड़ी पूल कर के कई लोग एकसाथ औफिस, स्कूल जा कर ट्रैफिक में कमी ला सकते हैं. अपनी आदतों में बदलाव लाने का प्रयास करें. छोटीछोटी दूरी के लिए साइकिल जैसी सवारी को उपयोग में लाएं. थोड़ाबहुत पैदल भी चलें.

अंधाधुंध बढ़ती गाडि़यों की संख्या के कारण ट्रैफिक जाम से परेशान हो कर यह कहने से कि ‘ट्रैफिक जाम में ही बीत जाएगी जिंदगी’ उस के समाधान का प्रयास करें.

मोबाइल ऐप

मुंबई में ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान हो कर बृजराज और रवि ने एक मोबाइल ऐप बनाया है, जो ट्रैफिक की ताजा जानकारी लोगों के पास उन के फोन द्वारा पहुंचाता है. किसी भी मार्ग दुर्घटना की सूचना 1 मिनट के अंदर उन के ऐप के द्वारा लोगों तक पहुंच जाती है.

इस ऐप का नाम ‘ट्रैफ लाइन’ है. मैट्रिक्स पार्टनर इंडिया का ध्यान भी इस ऐप की उपयोगिता पर गया है. कंपनी ने ट्रैफ लाइन ऐप पर निवेश कर के इसे पूरे देश में ले जाने का इरादा जताया है.

VIDEO : एविल आई नेल आर्ट

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रहस्यों में उलझी पुलिस अधिकारी की मर्डर मिस्ट्री

आखिर महाराष्ट्र हाईकोर्ट और मीडिया के सक्रिय होते ही 18 महीने बाद महाराष्ट्र के नवी मुंबई, कलंबोली पुलिस थाने के अफसरों ने 7 दिसंबर, 2017 की शाम को करीब 8 बजे अपने विभाग के शातिर और ऊंची पहुंच वाले अफसर अभय कुरुंदकर को उस के मीरा रोड स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.

अभय कुरुंदकर जिला ठाणे, पालघर के नवघर पुलिस थाने में बतौर इंचार्ज तैनात था. उस पर अपने ही विभाग की एक महिला अधिकारी अश्विनी बेंद्रे के अपहरण और हत्या जैसे गंभीर आरोप थे. अश्विनी बेंद्रे नवी मुंबई कोमोठे स्थित ह्यूमन राइट्स कमीशन औफिस में असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर के रूप में तैनात थी.

25 वर्षीय अश्विनी राजू बेंद्रे मूलरूप से कोल्हापुर, तालुका आंधले, गांव हातकणगे की रहने वाली थी. वह 2007 के बैच की पुलिस अधिकारी थी. उस के पिता 1988 में आर्मी से रिटायर होने के बाद काश्तकारी में व्यस्त हो गए थे. परिवार में उन की पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. शिक्षा के साथ अश्विनी बेंद्रे हर काम में अपने छोटे भाई आनंद बेंद्रे और छोटी बहन से होशियार थी. चूंकि पिता आर्मी से थे, इसलिए वह बेटी की रुचि को देखते हुए उसे आर्मी या पुलिस सेवा में भेजना चाहते थे.

10वीं तक की शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी करने के बाद अश्विनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने मामा के घर कोल्हापुर आ गई थी. उस के मामा कोल्हापुर में पुलिस अधिकारी थे. बीकौम करने के बाद वह एमपीएससी की तैयारी में जुट गई थी, लेकिन परीक्षा में शामिल होने से पहले ही उस के मातापिता ने राजकुमार उर्फ राजू गोरे से उस की शादी तय कर दी. 2005 में अश्विनी बेंद्रे विदा हो कर अपनी ससुराल चली गई.

सीधे और सरल स्वभाव का राजू गोरे अश्विनी बेंद्रे जैसी सुंदर पत्नी को पा कर बहुत खुश था. उसे जब यह मालूम हुआ कि अश्विनी बेंद्रे के मातापिता की इच्छा और अश्विनी की इच्छा पुलिस सेवा जाने की थी तो राजू गोरे ने पत्नी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए हरसंभव सहयोग करने को कहा. पति के सहयोग से अश्विनी बेंद्रे ने एमपीएससी की परीक्षा में भाग लिया. यह परीक्षा उस ने अच्छे अंकों से पास की. इसी दौरान वह एक बेटी की मां भी बन गई.

नासिक में 6 माह की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अश्विनी बेंद्रे की पहली नियुक्ति पुणे में सबइंसपेक्टर के पद पर हुई थी. उस के बाद उसे सांगली के पुलिस मुख्यालय में तैनात कर दिया गया था. सांगली मुख्यालय में अश्विनी बेंद्रे को अभी कुछ महीने ही हुए थे कि उस का ट्रांसफर सांगली की लोकल क्राइम ब्रांच में कर दिया गया, जहां उस की मुलाकात पीआई अभय कुरुंदकर से हुई. अभय कुरुंदकर एक शातिरदिमाग अफसर था.

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भले ही अफसर हो, अकेली औरत कई बार शातिर लोगों के जाल में फंस जाती है

अश्विनी बेंद्रे उस वक्त अपनी भावनाओं को दबाए पति से दूर अकेले ही जिंदगी का सफर तय कर रही थी. वैसे तो अश्विनी बेंद्रे एक सशक्त महिला थी. लेकिन पीआई अभय कुरुंदकर के फेंके गए जाल में वह बड़ी आसानी से फंस गई.

पीआई अभय कुरुंदकर मूलरूप से कोल्हापुर जिले के कराड़ गांव का रहने वाला था. उस का बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता था. उस के बचपन में ही पिता का निधन हो गया था. परिवार में मां के अलावा 2 भाई और एक बहन थी. पिता के निधन के बाद जब परिवार वालों ने गांव से निकाल दिया तो मां अपने तीनों बच्चों को ले कर आजरा गांव में अपनी बहन के यहां रहने लगी थी. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने अपने तीनों बच्चों की परवरिश की.

दोनों भाई पढ़ाईलिखाई में जितने होशियार थे, उतने ही मेहनती भी थे. वे पूरा मन लगा कर पढ़ाई करते थे और बाकी समय में मां का हाथ बंटाते थे. उन के गांव के सारे दोस्त शराब, जुआ और राहजनी जैसे अपराधों में लिप्त रहते थे लेकिन ये दोनों भाई इन चीजों से दूर रहते थे. आखिरकार दोनों की मेहनत और पढ़ाई रंग लाई और दोनों भाइयों को पुलिस विभाग में नौकरी मिल गई.

पुलिस में नौकरी लग जाने के बाद अभय कुरुंदकर जब अपने पुश्तैनी घर और गांव गया तो पता चला कि उस के चचेरे भाइयों ने उस की पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इतना ही नहीं, उन्होंने उस के पिता की सारी संपत्ति भी अपने नाम करवा ली थी.

यह जान कर अभय कुरुंदकर काफी आहत हुआ, लेकिन उस ने अपने मन ही मन तय कर लिया था कि खूब पैसा कमा कर वह अपना घर अपने पुश्तैनी गांव में ही बनवाएगा. और उस ने ऐसा ही किया भी. उस ने पुलिस विभाग में अपना कद बढ़ाना शुरू किया. इस काम में उसे कामयाबी भी मिली. शीघ्र ही उस की पैठ कुछ बड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों तक हो गई थी

तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से के भांजे ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल से अभय कुरुंदकर की गहरी दोस्ती हो गई थी. कानून और राजनीति के बीच दोस्ती होने के कारण अभय कुरुंदकर ने गैरकानूनी काम करने शुरू कर दिए. वह दोनों हाथों से पैसे कमाने लगा. वह अपनी पहुंच का फायदा उठा कर अपना ट्रांसफर उन थानों में कराता रहा, जहां अच्छी कमाई होती थी.

अभय कुरुंदकर ने थोड़े ही दिनों में इतना पैसा कमा लिया कि उस ने अपने गांव में 6 बिस्वा जमीन खरीद कर एक आलीशान घर बनवाया. उस मकान में उस का परिवार रहने लगा. इस के अलावा उस ने आजरा के आंबोली गांव में 7 एकड़ जमीन ले कर अपना फार्महाउस बनवाया. इस बीच उस का प्रमोशन और ट्रांसफर होते रहे.

29 मई, 2006 को उस का प्रमोशन कर के उसे कुछ दिनों के लिए कमिश्नर औफिस के नियंत्रण कक्ष भेज दिया गया. लेकिन अपनी पहुंच के कारण उस ने एक महीने के अंदर ही अपना ट्रांसफर कुपवाड़ा में करवा लिया. यहां पर वह लगभग ढाई साल रहा. यहीं से प्रमोशन पा कर वह मिर्ज के ट्रैफिक विभाग में चला गया.

2 जून, 2010 में अभय कुरुंदकर की बदली स्थानीय आर्थिक अपराध शाखा में पीआई के पद पर कर दी गई. यहीं पर अभय कुरुंदकर की मुलाकात एपीआई अश्विनी बेंद्रे से हुई और वह उस का पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. कुछ ही दिनों में उसे अश्विनी बेंद्रे की कमजोरी पता लग गई.

वह उन दिनों जिस वियोग की ज्वाला में जल रही थी, उस पर अभय कुरुंदकर ने धीरेधीरे मरहम लगाना शुरू किया. उस का मरहम काम कर गया. दोनों को जब मालूम हुआ कि वह एक ही जिले के रहने वाले हैं तो नजदीकियां और बढ़ गईं. धीरेधीरे उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

भ्रष्ट अफसर की सोच हमेशा गलत ही चलती है

उन दिनों अश्विनी बेंद्रे सांगली से रोजाना अपनी ड्यूटी के लिए अपडाउन किया करती थी, जिस के कारण उन्हें काफी परेशानी होती थी. अभय कुरुंदकर ने सहानुभूति दिखाते हुए क्राइम ब्रांच औफिस के करीब ही यशवंतनगर में अपनी पहचान के एक राजनैतिक कार्यकर्ता की मदद से अश्विनी बेंद्रे को एक मकान किराए पर दिलवा दिया और खुद भी पास के विश्राम बाग में रहने लगा. कुरुंदकर को सरकारी गाड़ी मिली हुई थी, लेकिन वह सरकारी गाड़ी का उपयोग न कर के अपनी खुद की कार से औफिस आताजाता था. वह अश्विनी को भी अपने साथ कार में बिठा कर औफिस ले आता था.

अपने से 14 साल छोटी अश्विनी बेंद्रे को 55 वर्षीय पीआई अभय कुरुंदकर ने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रेमजाल में उलझा लिया था. शादी का वादा कर वह उस की भावनाओं से खेलने लगा. जबकि वह स्वयं एक शादीशुदा और 2 बेटोंबेटियों का पिता था. उधर अश्विनी बेंद्रे एक बच्ची की मां होते हुए भी परकटे परिंदे की तरह पीआई अभय कुरुंदकर की बांहों में गिर गई.

धीरेधीरे वह अपने पति राजू गोरे से विमुख होने लगी. कह सकते हैं कि वह अभय कुरुंदकर के साथ जिंदगी के नए ख्वाब देखने लगी थी. इस बात की जानकारी जब राजू गोरे को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पहले तो राजू गोरे को इस बात का यकीन ही नहीं हुआ, क्योंकि वह अपनी पत्नी को काफी समझदार और सुलझी हुई मानता था, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो राजू गोरे और परिवार वालों के होश उड़ गए थे.

पहले तो राजू गोरे और अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों ने अश्विनी को काफी समझाया, लेकिन वह पीआई अभय कुरुंदकर  के प्यार में डूबी हुई थी. इसलिए उस पर ससुराल वालों की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह अभय कुरुंदकर से लवमैरिज करने के लिए तैयार थीं. बेटी पर मां के भटकने का कोई प्रभाव न पड़े, इसलिए राजू गोरे उस के पास से अपनी बेटी को ले गया. बेटी के जाने के बाद अश्विनी पूरी तरह आजाद हो गई.

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वह अपने प्रेमी अभय कुरुंदकर के साथ ही रहने लगी. उस के साथ वह खुश थी लेकिन उस की यह खुशी अधिक दिनों तक कायम नहीं रही. उसे शीघ्र ही इस बात का पता चल गया कि वह चालाक और मक्कार किस्म का व्यक्ति है. उस का प्यार और शादी का वादा केवल एक छलावा था. शादी के नाम से वह चिढ़ जाता था. कभीकभी तो वह अश्विनी बेंद्रे से मारपीट तक कर बैठता था. अश्विनी के विरोध करने पर वह उसे और उस के पति को गायब करवा देने की धमकियां देता था.

अभय कुरुंदकर टौर्चर करता था अश्विनी बेंद्रे को

सन 2013 में अश्विनी बेंद्रे को अभय कुरुंदकर के टौर्चर से थोड़ी राहत तब मिली, जब अश्विनी का ट्रांसफर रत्नागिरि हो गया. अभय कुरुंदकर भी ठाणे जिले के पालघर स्थित नवघर पुलिस थाने में चला गया. इस के बावजूद अभय कुरुंदकर ने अश्विनी का पीछा नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उस के पास पहुंच जाता था और उसे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था.

अपने रसूख के दम पर वह अश्विनी और उस के परिवार के साथ कुछ भी कर सकता था. उस के डर से अश्विनी ने उस के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे करने शुरू कर दिए. अपने घर सीसीटीवी कैमरा भी लगवा लिया, जिस का सारा रिकौर्ड वह अपने लैपटाप में रखने लगी थी.

पालघर के नवधर पुलिस थाने में डेढ़ साल तक रहने के बाद अभय कुरुंदकर ने अपनी बदली क्राइम ब्रांच में करा ली थी. अब वह फिर से अश्विनी बेंद्रे के करीब आ गया था. अश्विनी उस के व्यवहार से तंग थी. वह उस से दूर रहने की कोशिश करने लगी. प्रमोशन होने के बाद वह भी एपीआई बन चुकी थी.

सन 2016 में अश्विनी बेंद्रे ने अपना ट्रांसफर ठाणे के नवी मुंबई कलंबोली स्थित कामोठे के ह्यूमन राइट्स कमीशन में करा लिया था. वह अपने परिवार वालों के बीच लौट आई थी. यह बात पीआई अभय कुरुंदकर को हजम नहीं हुई. वह अश्विनी से चिढ़ गया. इस का नतीजा यह हुआ कि एक दिन अचानक अश्विनी गायब हो गई.

18 अप्रैल, 2016 को अश्विनी बेंद्रे ने अपने परिवार वालों के साथ बाहर खाना खाने का प्रोग्राम बनाया. परिवार वाले उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं आई. इस बीच उस का फोन भी बंद हो गया. लेकिन परिवार वालों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उन का मानना था कि वह किसी इमरजेंसी काम में फंस गई होगी. लेकिन 15 दिनों के बाद घर वालों के पास ह्यूमन राइट्स कमीशन के औफिस से फोन आया. उन्होंने बताया कि अश्विनी बेंद्रे अपनी ड्यूटी पर नहीं आ रही है.

औफिस से अश्विनी के गायब होने की जानकारी मिलते ही पूरे परिवार में हड़कंप मच गया. अश्विनी बेंद्रे के पिता ने तुरंत नवी मुंबई कलंबोली पुलिस थाने में फोन कर के अश्विनी बेंद्रे की गुमशुदगी की सूचना दे दी.

उन्होंने कहा कि उन की पत्नी अस्पताल में भरती है और वह खुद थाने आने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उन की बेटी की गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई की जाए. यह जानकारी उन्होंने अपने बेटे आनंद बेंद्रे को भी दे दी. आनंद तुरंत अपनी गुमशुदा बहन की तलाश में जुट गया.

आनंद को उस की बहन अभय कुरुंदकर की ज्यादती के बारे में बताती रहती थी, इसलिए उस ने सीधेसीधे पीआई अभय कुरुंदकर पर बहन का अपहरण कर के उस की हत्या करने की आशंका जाहिर की. वह उस के खिलाफ सबूत भी इकट्ठा करने लगा. उस ने लैपटाप में रिकौर्डिंग और अन्य सबूत पुलिस को मुहैया करा दिए. चूंकि अभय कुरुंदकर पीआई था, इसलिए उस ने अपने प्रभाव से डेढ़ साल तक मामले को लटकवाए रखा.

ऊंची राजनीतिक पहुंच की वजह से अभय कुरुंदकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को भी नहीं मानता था. वह अपने मन की करता था. 2010 से 2013 के बीच पीआई अभय कुरुंदकर आर्थिक अपराध शाखा में रहा था, तब उस ने कई मामलों की गोपनीय जानकारी लीक कर दी थी. इस बात की जानकारी जब तत्कालीन डीसीपी दिलीप सावंत को हुई तो उन्होंने 9 मई, 2013 को अभय के खिलाफ कोल्हापुर के स्पैशल डीजीपी और डीजीपी को जांच के लिए एक रिपोर्ट भेजी. लेकिन उस का कोई असर नहीं हुआ था.

पीआई अभय कुरुंदकर की जांच होने के बजाय उस का ट्रांसफर सांगली के तांसगांव थाने में कर दिया गया. लेकिन वह वहां नहीं गया बल्कि तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटील से मिल कर अपना ट्रांसफर रद्द करवा लिया. डीसीपी दिलीप सावंत के बारबार यह रिपोर्ट देने के बावजूद पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा विभाग की महत्त्वपूर्ण जानकारी बाहर जाती रही. उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं हुई.

मामला एक सीनियर पुलिस अफसर का था, अत: कलंबोली के थानाप्रभारी पोकरे ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने उस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने काफी हद तक इस मामले को हल भी कर लिया था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के सहयोग के बिना मामला आगे नहीं बढ़ सका. 3 महीने का समय निकल जाने के बाद जब केस की जांच आगे नहीं बढ़ी तो अश्विनी बेंद्रे के घर वाले परेशान हो गए.

16 सितंबर, 2016 को आनंद बेंद्रे ने बहनोई राजू गोरे के साथ नवी मुंबई के कमिश्नर हेमंत नगराले से मुलाकात की. जरूरी काररवाई करने का आश्वासन देने के बजाय कमिश्नर हेमंत नगराले ने उन्हें यह कह कर डराया कि उन की जान को खतरा है, वे संभल कर रहें.

पुलिस कमिश्नर से उन्हें इस तरह की उम्मीद नहीं थी. उन की बातों से साफ जाहिर हो रहा था कि इस मामले को ले कर पुलिस गंभीर नहीं है. उन के इस रवैए से निराश हो कर अश्विनी बेंद्रे के घर वालों ने 8 अक्तूबर, 2016 को अदालत का दरवाजा खटखटाया.

अदालत का आदेश भी नहीं माना पुलिस ने

28 अक्तूबर, 2016 को अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि मामला काफी संगीन है, इस की जांच डीसीपी रैंक के अधिकारी से करवाई जाए. अदालत की पहल पर मामला डीसीपी पोखरे को सौंप दिया गया. डीसीपी पोखरे ने एसीपी राजकुमार चाफेकर के साथ मामले की जांच तो की, लेकिन उस पर कोई काररवाई नहीं हुई और देखतेदेखते 2 महीने गुजर गए. मामला ज्यों का त्यों रहा.

पहली जनवरी, 2017 को अदालत ने पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए मामले की जांच के लिए एसीपी प्रकाश निलेवाड़ की देखरेख में एक स्पैशल टीम गठित करने को कहा और पूछा कि मामले से संबंधित औडियो वीडियो का रिकौर्ड होने के बाद भी काररवाई क्यों नहीं की गई.

अदालत के आदेश पर एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच की जिम्मेदारी पीआई संगीता अलफांसो को सौंप दी. पीआई संगीता अलफांसो ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. उन्होंने एक महीने की जांच के बाद 31 जनवरी, 2017 को अश्विनी बेंद्रे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

इस के पहले कि पीआई संगीता अलफांसो अश्विनी बेंद्रे के अपहर्त्ताओं पर कोई काररवाई करतीं, पीआई अभय कुरुंदकर को अपनी गिरफ्तारी का अहसास हो गया और फरवरी, 2017 में वह अदालत चला गया, जिस की वजह से मामले में रुकावट आ गई. जब तक अदालत का कोई आदेश आता, तब तक पीआई संगीता अलफांसो का ट्रांसफर हो गया. उन के जाने के बाद इस मामले की जांच 9 महीने के लिए फिर अटक गई. अभय कुरुंदकर ने अदालत में यह अरजी लगाई कि उस के ऊपर लगाए गए सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.

पीआई संगीता अलफांसो के ट्रांसफर के बाद एक बार फिर अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों का धैर्य टूट गया. 9 महीने के इंतजार के बाद इस बार उन्होंने मीडिया से संपर्क किया. पहले तो 15 दिनों तक मीडिया में कोई हलचल नहीं हुई.

मीडिया ने बदला केस का रुख

16 जनवरी, 2017 को इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने अश्विनी बेंद्रे के साथ पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा मारपीट का एक वीडियो वायरल कर पूरे देश में सनसनी फैला दी. दूसरे दिन प्रिंट मीडिया ने भी इसे सुर्खियों में छापा. इस के बाद तो यह मामला हाईप्रोफाइल हो गया और प्रशासन में हड़कंप मच गया.

सवालों के जवाबों में नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को झूठ बोलना पड़ा. उन्होंने एक प्रैस नोट जारी कर मामले को झूठा और बेबुनियाद बता दिया. पुलिस कमिश्नर के इस बयान पर अदालत नाराज हो गई, जिस के चलते एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने पीआई संगीता अलफांसो द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर पीआई अभय कुरुंदकर को औन ड्यूटी और उस के साथ ज्ञानेश्वर पाटिल को 8 दिसंबर, 2017 को हिरासत में ले लिया.

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पीआई संगीता अलफांसो ने अपनी रिपोर्ट में ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल उर्फ राजू पाटिल को पीआई अभय कुरुंदकर का सहयोगी बताया था. राजू पाटिल अभय कुरुंदकर  के हर अच्छेबुरे काम में उस के साथ रहता था. ज्ञानेश्वर पाटिल तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से का भांजा था. वह जिला जलगांव, तालुका भुसावल के गांव तलवेल का रहने वाला था. एक बिजनैसमैन के अलावा वह वहां के भाजपा युवामोर्चा का नेता था.

हकीकत आ ही गई सामने

जिस दिन अश्विनी बेंद्रे गायब हुई थी, उस दिन अश्विनी और राजू पाटिल के मोबाइल फोन की लोकेशन साथसाथ मीरा रोड की थी. अभय कुरुंदकर का मकान भी मीरा रोड पर ही था. इस से मामला स्पष्ट था कि घटना मीरा रोड पर अभय के मकान में घटी थी और सबूत भायंदर खाड़ी में ले जा कर नष्ट किया गया था.

पीआई संगीता अलफांसो ने जब थाने में उस से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह तो स्वीकार नहीं किया, लेकिन उस का बयान भी विश्वसनीय नहीं था. उस ने बताया कि जिस दिन अश्विनी गायब हुई थी, उस दिन वह मुंबई के अंधेरी स्थित एक होटल में अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पी रहा था.

इस के बाद वह खाना खाने के लिए बाहर निकला था. लेकिन कोई अच्छा होटल न मिलने के कारण वह अपने दोस्त पीआई अभय कुरुंदकर के घर चला गया था. अभय कुरुंदकर के विषय में पीआई संगीता अलफांसो को जो बात मालूम पड़ी थी, वह सीधे पीआई के खिलाफ जा कर अश्विनी बेंद्रे की हत्या की तरफ इशारा कर रही थी.

भायंदर खाड़ी के मछलीमारों ने पीआई संगीता अलफांसो को बताया था कि पीआई अभय कुरुंदकर लगभग एकडेढ़ साल पहले अकसर सुबहसुबह इधर आते थे. उन से वह किसी महिला के शव के बारे में पूछताछ किया करते थे. उन का कहना था कि वह एक महिला की गुमशुदगी की जांच कर रहे हैं. यदि उस महिला की उन्हें डेडबौडी मिले तो पहले उन से संपर्क करें.

एक बात और यह पता चली कि अश्विनी बेंद्रे के गायब होने के दूसरे दिन ही अभय कुरुंदकर ने अपने मकान की पुताई करवाई थी. अपनी फोक्सवैगन कार को भी उन्होंने अपने मकान से हटवा दिया था. अदालत के आदेश पर जब पीआई संगीता अलफांसो ने अभय कुरुंदकर के मकान की जांच की तो उन्हें दीवारों पर काले रंग के कुछ धब्बे नजर आए, जो पुताई के बाद भी पूरी तरह से दबे नहीं थे. उन्हें खुरचवा कर डीएनए टेस्ट के लिए सांताकु्रज की लैब में भेज दिया गया. उस की रिपोर्ट आने के बाद ही पता लगेगा कि वे खून के छींटे किस के हैं.

पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी ने अश्विनी बेंद्रे के मामले से जुड़ी संदिग्ध लाल रंग की फोक्सवैगन कार नंबर एमएच10ए एन5500 भी खोज निकाली. यह कार सांगली घामड़ी रोड के जिम्नेश्वर कालोनी में रहने वाले रमेश चारुदत्त जोशी के नाम रजिस्टर थी. पुलिस टीम को अश्विनी बेंद्रे द्वारा लिखा गया एक नोट भी मिला, जिस में लिखा था, ‘मेरे हाथपैर तोड़ने और मुझे मार कर तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी.’

ऐसे कई सबूत थे, जो अभय कुरुंदकर को अश्विनी बेंद्रे के मामले में दोषी ठहरा रहे थे. लेकिन इस के बाद भी अभय कुरुंदकर अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा था. उस का कहना था कि वह इस मामले में निर्दोष है. जांच टीम ने परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर उस के और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल के खिलाफ भादंवि की धारा 323, 364, 497, 506(2), 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. धारा 302 डीएनए रिपोर्ट आने के बाद जोड़ दी जाएगी.

लेकिन इस के पहले पीआई अभय कुरुंदकर और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल का इकबालिया बयान जरूरी है. इस के लिए पुलिस टीम ने अदालत से उन के नारको टेस्ट की इजाजत मांगी है, जिस पर उन के वकीलों ने ऐतराज किया है. बहरहाल, मामला अदालत में विचाराधीन है. दोनों आरोपी कथा लिखने तक सलाखों के पीछे थे.

पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी से एपीआई अश्विनी बेंद्रे के घर वालों को इंसाफ की आशा जागी है लेकिन मामला इतना लंबा खिंचा, इस बात का जिम्मेदार उन्होंने नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को ठहराया है. उन्होंने प्रैस वार्ता कर के उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें भी सहअभियुक्त बनाने की मांग की है.

उन का कहना है कि पीआई अभय कुरुंदकर ने अपने पद का दुरुपयोग किया और तफ्तीश में सहयोग नहीं किया. इतना ही नहीं, उन्होंने जांच अधिकारी का ट्रांसफर कर अभियुक्त को बचाने की कोशिश की. यह एक ऐसा प्रश्न है जिस का जवाब उन्हें आने वाले समय में देना पड़ सकता है.

– कथा जनचर्चा और समाचार पर आधारित है

कभी निस्संतान थे, अब हैं 51 बच्चों के माता पिता

शामली के कुदाना गांव की मीना राणा की शादी 1981 में हुई थी. शादी के 10 साल बाद भी दोनों मातापिता नहीं बन सके. डाक्टरों को दिखाने पर पता चला कि मीना कभी मां नहीं बन सकती. निराश हो कर पतिपत्नी ने 1990 में एक दिव्यांग बच्चे को गोद लिया. उस का नाम रखा मांगेराम. लेकिन यहां भी उन के हाथ निराशा ही लगी, 5 साल बाद मांगेराम चल बसा.

आखिर दुखी हो कर वीरेंद्र राणा और मीना शामली छोड़ कर शुक्रताल आ कर रहने लगे और अनाथ बच्चों को गोद ले कर पालने पढ़ाने लगे. जल्द ही लोगों का ध्यान उन की ओर गया, जिस की वजह से उन्हें डोनेशन में 8 बीघा जमीन मिल गई.

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इस जमीन पर उन्होंने अनाथाश्रम चलाना शुरू किया, जिस में स्कूल भी स्थापित किया गया. इस वक्त इस दंपति के 46 बच्चे हैं. कई बच्चे ऐसे रहे जो बड़े हो कर नौकरी करने बाहर चले गए. कइयों की शादी हो गई. यह सब संभव हुआ डोनेशन की मदद से.

मीना कहती हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे हिंदू हैं या मुसलमान. मुझे सिर्फ इतना पता है कि ये सब मेरे बच्चे हैं. इस वक्त इस आश्रम में जो बच्चे रह रहे हैं, उन में 19 लड़कियां हैं और 27 लड़के. इन में से कई दिव्यांग हैं. अनाथाश्रम में एक अच्छी रसोई है, बड़े कमरे और एक बड़ा सा खेल का मैदान है.

वीरेंद्र राणा के अनुसार शुक्रताल ग्राम पंचायत ने उन्हें एक बड़ा प्लौट दिया है. गांव के लोग उन्हें गेहूं वगैरह देते हैं. बाकी जरूरतों के लिए डोनेशन पर निर्भर रहना पड़ता है. इस अनाथाश्रम में पलीबढ़ी ममता ने मुजफ्फरनगर के कालेज से पोस्ट ग्रैजुएशन किया है. वह कहती है, ‘अगर मीनाजी और वीरेंद्रजी का ध्यान उन पर न गया होता तो न जाने उस का क्या भविष्य होता.’

ममता अब अनाथाश्रम का ही काम संभालती हैं और बच्चों को पढ़ाती भी हैं. शुक्रताल के प्रधान सुशील शर्मा का कहना है कि मीना और वीरेंद्र जो कर रहे हैं, वह हर किसी के वश की बात नहीं है.

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हैप्पी मैरिड लाइफ के ये 5 टिप्स बड़े काम के हैं

अरेंज्ड या लव, शादी कैसे भी हो, ससुराल में आपसी अनबन, विचारों में मतभेद जैसी शिकायतें घरघर की कहानी है, क्योंकि हमारे समाज में शादी केवल 2 व्यक्तियों की नहीं, बल्कि 2 परिवारों की होती है, जहां लोग एकदूसरे के विचारों और स्वभाव से अनजान होते हैं. आजकल लड़कालड़की शादी से पहले मिल कर एकदूसरे को समझ लेते हैं, लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों को समझने का मौका शादी के बाद ही मिलता है. जिस तरह से बहू असमंजस में रहती है कि ससुराल के लोग कैसे होंगे, उसी तरह ससुराल वाले भी बहू के व्यवहार से अनजान रहते हैं. ससुराल में पति के अलावा सासससुर, ननद, देवर, जेठजेठानी सहित कई महत्त्वपूर्ण रिश्ते होते हैं.

एक छत के नीचे 4 लोग रहेंगे तो विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है.

आपसी मनमुटाव की वजहें

जैनरेशन गैप, विचारों को थोपना, अधिकार जमाने की मानसिकता, बढ़ती उम्मीदें, पूर्वाग्रह, फाइनैंशियल इशू, बहकावे में आना, प्यार में बंटवारे का डर इत्यादि रिश्तों में मनमुटाव की वजहें होती हैं. कभीकभी तो स्वयं पति भी सासबहू में मनमुटाव का कारण बन जाता है. इन सब के अलावा आजकल सासबहू के रिश्तों पर आधारित टीवी सीरियल भी आग में घी का काम कर रहे हैं.

शादीशुदा अंजलि बताती है, ‘‘घर में पति और 2 बच्चों के अलावा सास, ननद, देवर, जेठजेठानी एवं उन के बच्चे हैं. घर में अकसर एकदूसरे के बीच झगड़े व मनमुटाव का माहौल बना रहता है, क्योंकि सासननद को लगता है कि हम बहुएं केवल काम करने की मशीनें हैं. हमारा हंसनाबोलना उन को कांटे की तरह चुभता है. स्थिति ऐसी है कि परिवार के सदस्य आपस में बात तक नहीं करते हैं.’’

मुंबई की सोनम कहती हैं, ‘‘मेरी शादी को 1 साल हो गया है. मैं ने देखा है कि मेरे पति या तो अपनी मां की बात सुनते हैं या फिर पूरी तरह से हमारे बीच के मतभेद को नजरअंदाज करते हैं, जोकि मुझे सही नहीं लगता. पति पत्नी और घर के अन्य सदस्यों के बीच एक कड़ी होता है, जो दोनों पक्षों को जोड़ती है. वह भले किसी एक पक्ष का साथ न दे, परंतु सहीगलत के बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए.’’

इसी तरह 50 वर्षीय निर्मला बताती हैं, ‘‘घर में बहू तो है लेकिन वह सिर्फ मेरे बेटे की पत्नी है. उसे अपने पति और बच्चों के अलावा घर में कोई और दिखाई ही नहीं देता है. उन लोगों में इतनी बिजी रहती है कि एकाध घंटा भी हमारे पास आ कर बैठती तक नहीं है, न ही हालचाल पूछती है. उस के व्यवहार या रहनसहन से कभी भी हम खुश नहीं होते, जिस का उस पर कोई असर नहीं होता. बेटियों का हवाला दे कर अकसर उलटा जवाब देती है. ऐसे में उस के होने न होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

नवी मुंबई की आशा कहती हैं, ‘‘मेरे पति हर साल करवाचौथ पर अपनी मां के लिए साड़ी लाते थे. इस साल किसी वजह से नहीं ला पाए तो ‘मैं ने उन्हें अपने वश में कर लिया है,’ कहते हुए सास ने पूरे घर में हंगामा मचा दिया. ससुराल वालों को लगता है कि मैं पैसे कमा कर मायके में देती हूं. शादी के बाद उन का बेटा कम पैसा देता है तो उस के लिए भी मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है.’’

शादी के बाद रिश्तों में आई कुछ ऐसी ही कड़वाहट को कैसे दूर करें कि विवाह बाद भी सदैव खुशहाल रहें, पेश हैं कुछ सुझाव:

कैसे मिटाएं दूरियां: मनोचिकित्सक डा. वृषाली तारे बताती हैं कि संयुक्त परिवार में आपस में मधुरता होनी बहुत जरूरी है. रिश्तों में मिठास बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्यों की होती है. इसलिए परिवार के हर सदस्य को एक समान प्रयास करना चाहिए.

विचारों में पारदर्शिता लाएं: डा. वृषाली के अनुसार, परिवार में एकदूसरे के बीच ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिकेशन होना चाहिए, जो डिजिटल न हो कर आमनेसामने हो. दूसरी बात एकदूसरे के विचारों में पारदर्शिता हो, जो किसी भी मजबूत रिश्ते की बुनियाद होती है. उदाहरण के लिए, यदि आप शादी के बाद भी नौकरी करती हैं या कहीं बाहर जाती हैं, तो घर पहुंच कर जल्दी या देर से आने का कारण, औफिस में दिन कैसा रहा जैसी छोटीछोटी बातें घर वालों से शेयर करें. इस से घर का माहौल हलका होने के साथसाथ एकदूसरे पर विश्वास बढ़ेगा. जितना ज्यादा आप इन्फौर्म करेंगी, उतना ही ज्यादा खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाएंगी. इस के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल साधनों का कम से कम इस्तेमाल करें ताकि रिश्तों में गलतफहमी न आए. ऐसा बहू को ही नहीं, बल्कि घर के बाकी सदस्यों को भी करना चाहिए.

मैंटल प्रोटैस्ट से बचें: आजकल सब से बड़ी समस्या यह है कि हम पहले से ही अपने दिमाग में एक धारणा बना चुके होते हैं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, सास कभी मां नहीं बन सकतीं. ऐसी नकारात्मक सोच को मैंटल प्रोटैस्ट कहते हैं. अकसर देखा जाता है कि बहुओं की मानसिकता ऐसी होती है कि घर पर उस के हिस्से का काम पड़ा होगा. सास, ननद जरूर कुछ बोलेंगी. ऐसी सोच रिश्तों पर बुरा असर डालती है और इसी सोच के साथ लोग रिश्तों में सुधार की कोशिश भी नहीं करते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस तरह की नकारात्मक सोच के घेरे से बाहर निकलें और एकदूसरे के बीच बढ़ती दूरियों को कम करें.

काउंसलर की मदद लें: डा. वृषाली तारे कहती हैं कि संयुक्त परिवार में छोटीमोटी नोकझोंक, विचारों में मतभेद आम बात है, जिसे बातचीत, प्यार और धैर्य से सुलझाया जा सकता है और यह तभी संभव है जब आप का शरीर और मन स्वस्थ हो. लेकिन मामला गंभीर है तो घर के सभी लोगों को बिना संकोच काउंसलर की मदद लेनी चाहिए. ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट का कारण मानसिक अस्वस्थता होती है, जिसे लोग नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में जिस तरह से कोई बीमारी होने पर हम डाक्टर की मदद लेते हैं, उसी तरह रिश्तों में आई कड़वाहट और उलझनों को सुलझाने के लिए किसी ऐक्सपर्ट की सलाह लेने में शर्म या संकोच न करें, क्योंकि रिश्तों में स्थिरता और मधुरता लाने की जिम्मेदारी किसी एक सदस्य की नहीं होती है, बल्कि इस के लिए संयुक्त प्रयास होना चाहिए.

रूढि़वादी मानसिकता से बाहर निकलें: विज्ञान और आधुनिकता के समय में रूढि़वादी रीतिरिवाजों से बाहर निकलने की कोशिश करें. घर के सदस्यों के रहनसहन और जीवनशैली में हुए बदलाव को स्वीकार करें, क्योंकि एकदूसरे पर विचारों को थोपने से रिश्तों में कभी मिठास नहीं आ सकती है. सहनशीलता और मानसम्मान देना केवल कम उम्र के लोगों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि बड़े लोगों में भी यह भावना होनी चाहिए. अधिकार जमाने या विचार थोपने से हट कर रिश्तों से ज्यादा व्यक्ति को महत्त्व देंगे तो संबंध अपनेआप खूबसूरत बन जाएंगे.

जाहिर सी बात है कि रिश्तों में खुलापन और अपनापन आने में वक्त लगता है, परंतु रिश्ते यों ही नहीं बनते हैं. इस के लिए संस्कार और परवरिश तो माने रखते ही है, कभीकभी सही वक्त पर सही सोच भी बहुत जरूरी होती है.

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ये हैं वो 7 उपाय, जो गरमियों में आपकी त्वचा दमकाएं

अपनी त्वचा को दें गरमियों में अतिरिक्त सुरक्षा, कुछ इस तरह. इस सीजन में ऐक्सफोलिएशन अनिवार्य है, क्योंकि दिन भर में चेहरे पर जो अशुद्धता जम जाती है उसे निकालना जरूरी है. इसलिए हफ्ते में कम से कम 2 बार त्वचा को ऐक्सफोलिएट जरूर करें.

अपनी त्वचा को नुकसान से बचाने और तरोताजा रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए. इस के अलावा नारियल पानी भी लें. यह त्वचा की चमक बनाए रखने में सहायक है.

त्वचा के अनुरूप सनस्क्रीन ढूंढ़ पाना भले ही मुश्किल काम है, लेकिन इस के फायदे हैं. भारतीय त्वचा के लिए 30 से 50 एसपीएफ का सनस्क्रीन उपयुक्त रहता है. तैलीय त्वचा वालों के लिए जैलयुक्त सनस्क्रीन भी उपलब्ध है. धूप में निकलने से कम से कम 20 मिनट पहले त्वचा पर सनस्क्रीन लोशन या जैल जरूर लगाएं.

ऐक्सरसाइज करने से शरीर में रक्तसंचार ठीक बना रहता है और शरीर को पर्याप्त औक्सीजन मिलता है, जिस से त्वचा भी स्वस्थ रहती है.

धूप में आंखों को सुरक्षित रखने के लिए सनग्लास पहनें.

गुलाबजल, बेसन और दही जैसी प्राकृतिक चीजों की मदद से त्वचा साफ करें. इस के बाद त्वचा को टोन जरूर करें. इस से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा को ठंडक पहुंचती है. यदि मौश्चराइजर लगाने से आप की त्वचा तैलीय हो जाती है, तो गरमियों में आप नमीयुक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

त्वचा से टैन को हटाने के लिए आप चेहरे पर दही लगा सकती हैं. इस में शहद, ओटमील, ककड़ी, खीरा या नीबू भी मिला सकती हैं.

इस सीजन में ऐक्सफोलिएशन अनिवार्य है, क्योंकि दिन भर में चेहरे पर जो अशुद्धता जम जाती है उसे निकालना जरूरी है. इसलिए हफ्ते में कम से कम 2 बार त्वचा को ऐक्सफोलिएट जरूर करें.

– डा. करुणा मलहोत्रा, कौस्मैटिक स्किन ऐंड होम्योक्लिनिक

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केंद्रीय मंत्री डा. हर्षवर्धन के बेसिरपैर के बोल

धर्म की खातिर किस तरह झूठ बोला जा सकता है इस का एक चौंकाने वाला उदाहरण पेश किया विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री डा. हर्षवर्धन ने. ये जनाब महान वैज्ञानिक व भौतिकी विद्वान स्टीफन हाकिंग को श्रद्धांजलि देते समय कहने लगे कि इन वैज्ञानिक ने भी माना था कि वेदों का ज्ञान उन के और अल्बर्ट आइंस्टीइन के ज्ञान से कहीं अधिक है.

जब मंत्री से पूछा गया कि इस का संदर्भ क्या है तो उन्होंने बड़ी ही ढिठाई से उत्तर दिया कि ढूंढ़ लो खुद. ऐसा ही हमारे पंडेपुजारी रोज करते हैं. अब औरतों के टीका लगाने को ही ले लीजिए. यह धार्मिक रिवाज बेसिरपैर का है पर इस की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए कह डाला गया है कि जहां यह टीका लगता है वहां नसों का केंद्र है. इस से ऊर्जा नष्ट नहीं होती है. उस से खून का दौरा मुंह की पेशियों तक चालू रहता है. यह किस तरह के शोध से पता चला, यह बताने की जरूरत तो है ही नहीं.

नदियों के ऊपर से गुजरते हुए सैकड़ों लोग बसों, गाडि़यों और खिड़कियां खुली हों तो ट्रेनों से पानी में पैसे फेंकते हैं. वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए मनगढं़त कह दिया गया है कि  इस से कौपर को पानी में डाला जाता है ताकि पानी के विभिन्न गुणों का संतुलन बना रहे.

मंदिर जाने के लिए भी वैज्ञानिकता की खोज कर ली गई, जो शायद नासा के वैज्ञानिकों को भी शर्मसार कर दे. कह डाला गया है कि जहां मंदिर में मूर्ति स्थापित होती है, वहां गोपुरम होता है जो पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति को एकत्रित कर लेता है और मूर्ति के माध्यम से मंदिर में जाने वालों को ऊर्जा देता है.

इस प्रकार के बहुत से झूठ रोज गढ़े जाते हैं ताकि इस वैज्ञानिक युग में भी धार्मिक पागलपन को बनाए रखा जा सके. ये मंत्री ही ऐसे नहीं हैं, जो इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें कहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री

नरेंद्र मोदी तक कह चुके हैं कि गणेश तो प्लास्टिक व ट्रांसप्लांट सर्जरी का कमाल है, जो हमारे पुराणों में पहले से ही मौजूद है.

यह जानने के लिए कोई तैयार नहीं कि इस सब ज्ञानविज्ञान को हम पहले से ही जानते हैं तो आज दुनिया के सब से पीछे वाले देशों में क्यों हैं? हमारी अर्थव्यवस्था बड़ी है पर अपनी अधिक भूमि और अधिक जनसंख्या के कारण वरना करोड़ों लोग यहां आज भी जानवरों की तरह रहने को मजबूर हैं.

असल में इस प्रकार का धार्मिक दुष्प्रचार औरतों पर भारी पड़ता है, जो इन अंधविश्वासों को मान कर शारीरिक, मानसिक गुलामी झेलने को मजबूर कर दी जाती हैं. कभी उन्हें भूखा रहना पड़ता है, कभी नंगे पांव चलना पड़ता है, कभी रात भर गला फाड़ कर चिल्लाना पड़ता है, तो कभी घंटों बैठ कर ध्यान लगाने या प्रवचन सुनने के नाम पर समय बरबाद करना पड़ता है. उन्हें डा. हर्षवर्धन जैसे लोगों के बेसिरपैर के बोल सुनने पड़ते हैं.

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भोजपुरी फिल्में किसी से कम नहीं : पवन सिंह

भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार पवन सिंह की फिल्में उत्तर प्रदेश, बिहार के अलावा देश के तमाम हिस्सों के साथसाथ विदेशों में भी पसंद की जाती हैं.

इस साल पवन सिंह डायैक्टर सुजीत कुमार सिंह की फिल्म ‘वांटेड’ में नजर आएंगे. यह भोजपुरी की सब से बड़े बजट वाली फिल्म होगी. इस फिल्म के ज्यादातर हिस्सों की शूटिंग पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुई है.

फिल्म ‘वांटेड’ की शूटिंग के सैट पर पवन सिंह से लंबी बातचीत की गई. पेश हैं, उस के खास अंश:

यह माना जाता है कि भोजपुरी फिल्मों के हिट होने के पीछे कहानी के अलावा गानों का भी अहम रोल होता है. आप ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर भोजपुरी गायक की थी. इस बारे में आप क्या कहेंगे?

भोजपुरी ही नहीं बल्कि दूसरी किसी भारतीय भाषा में बनने वाली फिल्मों के हिट होने में गानों का अहम रोल होता है. अगर फिल्म की कहानी में थोड़ीबहुत कमी भी हो तो अच्छे गाने और म्यूजिक वाली फिल्में हिट साबित होती हैं. अगर भोजपुरी फिल्मों के गानों के बारे में कहें तो ये इन की जान होते हैं.

भोजपुरी फिल्मों पर साफसुथरी, पारिवारिक न होने के आरोप लगते रहे हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?

ऐसा बिलकुल नहीं है. भोजपुरी में एक कहावत है नामी बनिया, बदनामी चोर यानी भोजपुरी को जानबूझ कर बदनाम किया जा रहा है. सच तो यह है कि भारत में बन रही दूसरी भाषाओं की फिल्मों से भोजपुरी फिल्में ज्यादा साफसुथरी बन रही हैं. यही वजह है कि दूसरी भाषाओं की तरह भोजपुरी में बनने वाली फिल्मों को आज तक ‘ए सर्टिफिकेट’ नहीं मिला है. बात अगर भोजपुरी फिल्मों के दो मतलब वाले डायलौग की है तो इन में भोजपुरी की मिठास छिपी हुई है. हां, कुछ कमियां हैं, जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत है.

भोजपुरी फिल्मों में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं?

अब भोजपुरी फिल्मों के फाइट सीन ऐक्सपर्ट फाइट मास्टर के डायरैक्शन में फिल्माए जा रहे हैं. इन में हाई टैक्नोलौजी, लाइटिंग, कैमरा, ग्राफिक वगैरह का इस्तेमाल होने लगा है.

आजकल ज्यादातर हिंदी फिल्में मुंबई की फिल्म सिटी के महंगे सैटों के साथसाथ विदेशों तक में फिल्माई जा रही हैं जबकि भोजपुरी की फिल्में गांवों, कसबों और छोटे शहरों में फिल्माए जाने की ओर रुख कर रही हैं. ऐसा क्यों?

भोजपुरी फिल्मों की आत्मा गांवों में बसती है, जिसे मुंबई की महंगी फिल्म सिटी और विदेशों में फिल्माना मुमकिन नहीं है. भोजपुरी इंडस्ट्री अपनी संस्कृति और सभ्यता को ध्यान में रख कर ही फिल्में बना रही है.

मैं यहां एक बात और कहना चाहूंगा कि इस से फिल्मों के बनाने के ऊपर आने वाले फालतू खर्चों में कमी आती है. बचे पैसों से फिल्मों की तकनीक बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.

सुना है कि फिल्म ‘वांटेड’ में आप के साथ 2-2 हीरोइनें काम कर रही हैं?

जी हां. मेरे साथ पश्चिम बंगाल की मणि भट्टाचार्य और मध्य प्रदेश राज्य की अमृता आचार्य ने काम किया है. ये दोनों ही पहले भी भोजपुरी फिल्में कर चुकी हैं.

क्या वजह है कि भोजपुरी फिल्में 100 करोड़ के क्लब में शामिल रहने में नाकाम रही हैं?

भोजपुरी कलाकारों का टकराव खत्म हो जाए और लोग आपस में दिल से मिल कर काम करना शुरू कर दें तो वह दिन दूर नहीं जब भोजपुरी फिल्में भी 100 करोड़ के क्लब में शामिल होने लगेंगी.

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मैं एक लड़की से पिछले 2 साल से प्यार करता हूं. वह लड़की मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाना चाहती है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 21 साल का लड़का हूं और एक 18 साल की लड़की से पिछले 2 साल से प्यार करता हूं. वह लड़की मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाना चाहती है. पर चूंकि हम दोनों की जातियां अलग हैं, इसलिए हमारी शादी नहीं हो सकती. ऐसे में मैं क्या करूं?

जवाब
जाति के अलग होने से जिस्मानी ताल्लुक का कोई लेनादेना नहीं है और न ही शादी होने या न होने से है. 2 बालिग अपनी मरजी से संबंध बना सकते हैं. पर यह ध्यान रखें कि बाद के पचड़े लड़की को ही भुगतने पड़ते हैं इसलिए जिस्मानी ताल्लुक बनाने से पहले खूब सोचसमझ लें और उसी लड़की से शादी करने की कोशिश करें. जातपांत की कोई खास अहमियत अब नहीं रही, कुछ अड़चनें आएंगी, उन से लड़ें.

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विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसों के बाद

विवाह को ले कर युवाओं की धारणा अब बदल रही है. पहले जहां सैक्स संबंध कायम होने के बाद शादी करने की मांग जोर पकड़ लेती थी वहीं अब सैक्स के बाद भी ऐसी मांग नहीं उठती. कई बार तो लिव इन रिलेशनशिप लंबी चलती रहती है. फिल्मों में ही नहीं सामान्यतौर पर भी कई दोस्त आपस में एकसाथ रहते हैं. अब सैक्स कोई मुद्दा नहीं रह गया है. जब कभी शादी की बात चलती है तो युवकयुवती दोनों की एक ही सोच होती है कि पहले आत्मनिर्भर हो जाएं व अच्छा कमाने लगें, जिस से जिंदगी अच्छी कटे, फिर शादी की सोचें.

केवल युवा ही नहीं, उन के पेरैंट्स भी शादी की जल्दी नहीं करते. वे भी सोचते हैं कि पहले बच्चे कुछ कमाने लगें उस के बाद ही विवाह की सोचें. जो बच्चे कमाने लगते हैं वे बाकी फैसलों की तरह शादी के फैसले भी खुद लेने लगे हैं.

सैक्स अब पहले की तरह समाज में टैबू नहीं रह गया है. युवा इस को ले कर सजग और जागरूक हो गए हैं, उन्हें घरपरिवार से दूर अकेले रहने के अवसर ज्यादा मिलने लगे हैं. जहां वे अपनी सैक्स जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. सैक्स को ले कर वे इतने सजग हो गए हैं कि अब उन को अनचाहे गर्भ या गर्भपात जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता. आज उन्हें गर्भ से बचने के उपाय पता हैं. पहले सैक्स एक ऐसा विषय था जिस पर लोग चर्चा करने से बचते थे. युवा जब इस विषय पर चर्चा करनी शुरू करते थे तब परिवार के लोग उन की शादी के बारे में सोचना शुरू कर देते थे. अब केवल युवक ही नहीं युवतियां तक अपने घर से दूर पढ़ाई, कंपीटिशन और जौब को ले कर शहरों में होस्टल या पीजी में अकेली रहने लगी हैं. ऐसे में सैक्स उन के लिए कोई मुद्दा नहीं रह गया है. अब युवाओं की प्राथमिकता है कि शादी की बात तब सोचो जब पैसे कमाने लगो.

फैशन और जरूरतें बनीं वजह

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ इस बदलती सोच के पीछे सब से बड़ी वजह आज के समय में बढ़ती महंगाई है. पहले विवाह के बाद जहां 20 से 40 हजार में हनीमून ट्रिप पूरा हो जाता था वहीं अब यह खर्च बढ़ कर 90 हजार से 1 लाख रुपए के ऊपर पहुंच गया है. शादी के बाद पतिपत्नी के बीच इतना सामंजस्य नहीं होता कि बिना कहे वे इस आर्थिक परेशानी को समझ सकें. एक नए शादीशुदा जोड़े की हनीमून कल्पना पूरी तरह से फिल्मी होती है. जहां पत्नी किसी राजकुमारी सा अनुभव करना चाहती है. अब इस अनुभव और फीलिंग्स के लिए पैसों की जरूरत होती है. ज्यादातर युवा प्राइवेट जौब में होते हैं, जहां पैसा भले होता है पर समय नहीं होता. ऐसे में युवाओं को ऐसी नौकरी की प्रतीक्षा रहती है जिस में पैसा हो, जिस के सहारे वे शादी के बाद सभी सुखों का आनंद ले सकें.

शादी के समय ही नहीं उस के बाद भी अब नई स्टाइलिश ड्रैस रेंज बाजार में आने लगी हैं. अब तो शौपिंग के लिए बाजार जाने की जरूरत भी नहीं होती. औनलाइन शौपिंग का दौर है, जहां आप को बिना बाजार गए ही सबकुछ मिल सकता है. जरूरत होती है पैसों की. इसलिए अब युवा शादी तब करना चाहते हैं जब शादी के मजे लेने के लिए उन के पास पैसे हों. फेसबुक, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के इस दौर में जीवन के किसी पल को दोस्तों व नातेरिश्तेदारों से छिपाया नहीं जा सकता. ऐसे में अपनी खुशियों को पूरा करने के लिए पैसों की अहमियत अब सभी को समझ आने लगी है.

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ यह सोच अब दिनोदिन और मजबूत होती जा रही है. पहले की तरह यह नहीं होता कि शादी हुई उस के बाद सबकुछ घरपरिवार की जिम्मेदारी पर होता था. अब अपना बोझ खुद उठाना पड़ता है. ऐसे में ‘पहले कमाई फिर शादी’ की सोच बढ़ रही है.

बच्चों की प्लानिंग

‘विवाह सैक्स के बाद नहीं पैसे के बाद’ की धारणा में कई बार आलोचक कहते हैं कि जब शादी से पहले ही सैक्स हो गया तो शादी के बाद क्या बचता है? इस सवाल के जवाब में युवा कहते हैं कि शादी के पहले वाले और शादी के बाद वाले सैक्स में फर्क होता है. शादी के बाद हमारी प्राथमिकता परिवार की होती है. हम अपने हिसाब से बच्चे का जन्म प्लान करते हैं. आज के समय में बच्चे के जन्म से ले कर स्कूल जाने तक बहुत सारे खर्चे होने लगे हैं. इन को सही तरह से संभालने के लिए अच्छे बजट की जरूरत होती है. एक बच्चे की प्राइवेट अस्पताल में डिलीवरी का खर्च ही लाख से ऊपर पहुंच जाता है. उस के बाद तमाम तरह के खर्च और फिर बच्चे के प्ले स्कूल जाने का खर्च महंगा पड़ने लगा है. अस्पताल हो या प्ले स्कूल उस में किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

3 साल की उम्र में ही बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो जाता है. इस में अच्छे स्कूल में प्रवेश से ले कर पढ़ाई के खर्च तक बड़े बजट की जरूरत होती है, जो यह सिखाता है कि शादी के लिए सैक्स की नहीं पैसे की ज्यादा जरूरत है. बच्चा जैसेजैसे एक के बाद एक क्लास आगे बढ़ता है उस का खर्च भी बढ़ता है, जिसे वहन करना सरल नहीं होता. कई बार युवा ऐसे लोगों को देखते हैं जो इस तरह के हालात से गुजर रहे होते हैं. ऐसे में वे अपना हौसला नहीं बना पाते.

शादी के लिए पहले मातापिता व घरपरिवार का हस्तक्षेप ज्यादा होता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब ज्यादातर फैसले या तो युवा खुद लेते हैं या फिर फैसला लेते समय उस की सहमति ली जाती है. शादी की उम्र बढ़ गई है, जिस में सैक्स से ज्यादा पैसे का फैसला प्रमुख हो गया है.

सैक्स का सरल होना

सैक्स अब ऐंजौयमैंट का साधन बन गया है. युवकयुवतियां भी खुद को अलगअलग तरह की सैक्स क्रियाओं के साथ जोड़ना चाहते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की फैंटेसीज अब चुपचाप बैडरूम तक पहुंच गई हैं, जहां केवल युवकयुवतियां आपस में तमाम तरह की सैक्स फैंटेसीज करने का प्रयास करते हैं. इंटरनैट के जरिए सैक्स की हसरतें चुपचाप पूरी होती रहती हैं. सोशल मीडिया ग्रुप फेसबुक और व्हाट्सऐप इस में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फेसबुक पर युवकयुवतियां दोनों ही अपने निकनेम से फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और मनचाही चैटिंग करते हैं. इस में कई बार युवतियां अपना नाम युवकों की तरह रखती हैं, जिस से उन की पहचान न हो सके. चैटिंग करते समय वे इस बात का खास खयाल रखती हैं कि उन की सचाई किसी को पता न चले. यह बातचीत चैटिंग तक ही सीमित रहती है. बोर होने पर फ्रैंड को अनफ्रैंड कर नए फ्रैंड को जोड़ने का विकल्प हमेशा खुला रहता है.

इस तरह की सैक्स चैटिंग बिना किसी दबाव के होती है. ऐसी ही एक सैक्स चैटिंग से जुड़ी महिला ने बातचीत में बताया कि वह दिन में खाली रहती है. पहले बोर होती रहती थी, जब से फेसबुक के जरिए सैक्स की बातचीत शुरू की तब से वह बहुत अच्छा महसूस करने लगी है. कई बार वह इस बातचीत के बाद खुद को सैक्स के लिए बहुत सहज पाती है. पत्रिकाओं में आने वाली सैक्स समस्याओं में इस तरह के बहुत सारे सवाल आते हैं, जिन को देख कर लगता है कि सैक्स की फैंटेसी अब फैंटेसी नहीं रह गई है. इस को लोग अब अपने जीवन का अंग बनाने लगे हैं.

शादी के पहले सैक्स का अनुभव जहां पहले बहुत कम लोगों को होता था, अब यह अनुपात बढ़ गया है. अब ऐसे कम ही लोग होंगे, जिन को सैक्स का अनुभव शादी के बाद होता है. ऐसे में सैक्स के लिए शादी की जरूरत खत्म हो गई है. शादी के बाद जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए पैसों की जरूरत बढ़ गई है. यही वजह है कि शादी सैक्स के बाद नहीं शादी पैसों के बाद का चलन बढ़ गया है.

आज इन विषयों को ले कर कई पुस्तकें, सिनेमा और टीवी सीरियल्स भी बनने लगे हैं, जो इस बात का समर्थन करने लगे हैं कि शादी से पहले सैक्स की नहीं पैसों की जरूरत होती है.

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