Download App

सैक्स महंगा है

सोशल बैवसाइट सर्वे करने वाली एक आईटी कंपनी की हालिया रिपोर्ट चौंकाती है, जिस में पोर्न बेस्ड सर्वे के आधार पर ये आंकड़े दिए गए हैं कि देश में 22 से 34 आयुवर्ग के युवा पोर्नोग्राफी, पेड सैक्स, बैव सैक्स चैट के जरिए अपनी पौकेट ढीली कर रहे हैं. उन की कमाई का लगभग 20 से 30त्न हिस्सा पेड सैक्स के लिए जा रहा है. माध्यम चाहे जो भी हो, सैक्स के लिए मोटी रकम अदा करनी पड़ रही है यानी सैक्स अब सस्ता व सुलभ नहीं, बल्कि महंगा और अनअफोर्डेबल है. पेड सैक्स की बढ़ती लोकप्रियता व चलन ने सैक्स को आम लोगों की पहुंच से दूर कर दिया है. अब यह पैसे वालों का शौक बन गया है. सैक्स की बढ़ती मांग और आपूर्र्ति के बीच गड़बड़ाए तालमेल ने सैक्स बाज़ार के रेट आसमान पर पहुंचा दिए हैं. इस का दूसरा बड़ा कारण है मोटी जेब वालों की सैक्स तक आसान पहुंच. जहां जैसी जरूरत हो, मोटी रकम दे कर सैक्स बाज़ार से सैक्स खरीद लिया, नो बारगेनिंग, नो पचड़ा. इस का नतीजा हाई रेट्स पेड सैक्स के रूप में सामने आया. सैक्स वर्कर्स ने भी मांग के आधार पर अपनी दरें ऊंची कर लीं.

क्या है पेड सैक्स

सैक्स के लिए जो रकम अदा की जाती है उसे पेड सैक्स कहा जाता है. इस के कई रूप हो सकते हैं. वर्चुअल सैक्स से ले कर लाइव फिजिकल सैक्स तक. औनलाइन सैक्स मसलन, पोर्न वीडियो, पोर्नोग्राफी, औनलाइन पेड फ्रैंडशिप, वीडियो सैक्स, वैब औरिएंटेड सैक्स. औफलाइन सैक्स मसलन, ब्रोथल पिकअप सैक्स, कौलगर्ल औन डिमांड आदि. सैक्स के इन तमाम माध्यमों में कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पैसे इनवैस्ट किए जाते हैं. सैक्स के तमाम माध्यमों में सीधे इनवैस्टमैंट को पेड सैक्स कहते हैं.

सैक्स की राह नहीं आसान

कुछ दशक पहले तक सैक्स तक आम लोगों की आसान पहुंच थी. छोटीमोटी रकम अदा कर के यौनसुख का आनंद उठाया जा सकता था, पर सैक्स के विभिन्न मौडल सामने आने के बाद उस की दरों में कई गुणा वृद्धि हुई है.

क्या है इन की कैटेगरी व प्रचलित दरें

–       औनलाइन पेड सैक्स : प्रति मिनट डेटा चार्जेज.

–      फोन फ्रैंडशिप : 2 से 3 हजार रुपए प्रतिमाह सदस्यता.

–       कौलगर्ल औन डिमांड : 2 से 10 हजार रुपए प्रति घंटा.

–       स्कौर्ट सर्विस (श्रेणी एबीसी ) शुरुआती दर.

–       ब्रोथल सैक्स : 500 से 1,500 रुपए तक नाइट/आवर.

–       हाउस सर्विस : पर शौट (हाउसवाइफ, कालेज/वर्किंग वूमन)  3 से 5 हजार रुपए पर शौट.

मार्केट में चल रही इन दरों को देख कर आसानी से यह कहा जा सकता है कि ऐक्स्ट्रा मैरिटल सैक्स की चाह रखने वालों को अब मनी कैपेबिलिटी भी ऊंची रखनी होगी. यौनतृप्ति की राह आसान नहीं है. सैक्स के बाजार ने एक बड़ा रूप ले लिया है, जहां जिस की जितनी हैसियत है उस हिसाब से यौन संतुष्टि पा सकता है. आम व सामान्य लोगों के लिए यौनलिप्सा के दरवाजे लगभग बंद होते प्रतीत हो रहे हैं. कौलगर्ल रिचा चंद्रा बताती हैं, ‘‘वर्षों से (लगभग 11 साल पहले) जब वे इस पेशे में आई थीं, तब उन के पास ठीक से खाने व ब्रोथल की मैडम को रैंट चुकाने तक के पैसे नहीं थे, क्योंकि तब ग्राहकों की पेइंग कैपेसिटी बहुत कम थी और मार्केट में सप्लाई ज्यादा. इसलिए औनेपौने रेट पर भी वे ग्राहक पटा लेती थीं, तब न तो इतने बड़े और ग्लैमरस तरीके से उन्हें प्रोजैक्ट किया जाता था और न ही इंटरनैट के जरिए विज्ञापन व प्रचारप्रसार था.

‘‘अब स्थिति बिलकुल उलट है. ऐडवर्ल्ड व सोशल मीडिया की आसान पहुंच ने सबकुछ बदल दिया है. अब वे विज्ञापन के जरिए अपना बेस प्राइस भी तय कर सकती हैं और अपनी सर्विस के लिए बारगेनिंग भी. साथ ही ग्लैमरस प्रोजैक्शन ने मार्केट में उन की प्राइस वैल्यू औैर बढ़ा दी है. ‘‘इस तरह जहां वे पहले वननाइट सर्विस के लिए 200 से 500 रुपए तक ही कमा पाती थीं आज वह बढ़ कर 2 से 5 हजार रुपए तक हो गया है. रिचा आगे बताती हैं कि विवाह से इतर सैक्स की चाह ने भी बाज़ार में क्लाइंट की संख्या में खासा इजाफा किया है. इंटरनैट पर बढ़ते सैक्स के प्रोजैक्शन ने युवाओं में लाइव सैक्स की चाह को बढ़ाया है.’’ चाहे जो हो, सैक्स का बाज़ार महंगाई के प्रभाव से अछूता है. जब तक लोगों की जेबें गरम रहेंगी, बिस्तर भी गरम होता रहेगा. हैसियत और ओहदे के हिसाब से बेहतर सेवाएं भी मिलती रहेंगी. पैसे वालों के लिए अल्ट्रामौडर्न स्कौर्ट्स सर्विस तो आम लोगों के लिए साधारण ब्रोथल सर्विस.

मांग है तो आपूर्त्ति भी लगातार बनी रहेगी, तो पैसा फेंकिए और तमाशा देखिए. इस में हर्ज ही क्या है?

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

प्रेग्नेंसी है कैजुअलिटी, इश्यू नहीं

हमारा समाज भी बड़ा अजीब है न? उसे अपने से ज्यादा दूसरों के मामले में तांकने झांकने में ज्यादा इंटरेस्ट होता है. एक  सामान्य सा उदाहरण ही लीजिये, जैसे ही किसी लड़की की विवाह की उम्र होने लगती है, वह  उससे यह पूछ पूछ कर उसका दिमाग ख़राब कर देता है कि शादी कब कर रही हो? सेटल कब हो रही हो? किसी तरह इन के सवालों से पीछा छुड़ाने के लिए शादी कर लो, तो नया राग अलापना शुरू कर देते हैं, खुशखबरी कब सुना रही हो? अरे भाई थोड़ा तो सांस लेने दीजिये, हमें अपनी ज़िन्दगी अपने तरह से जीने का कोई तो मौका दीजिये. आपकी अपनी जिंदगी में अपने लिए सोचने लायक क्या कुछ भी नहीं है, जो हमारे फटे में अपनी टांग घुसाते रहते है और चलो अगर हमने उनके कहे अनुसार सो कॉल्ड सेटल होने का डिसीजन ले भी लिया और उनकी भेदती आँखों और जासूसी निगाहों ने भांप लिया कि विवाह के बाद हम दो से तीन होने वाले हैं तो सच मानिए वे अपनी नसीहतों का पुलिंदा दे देकर आपको पूरी तरह पका देंगे और अच्छे भले इंसान को बीमार बना देंगे. हम बात कर रहे हैं गर्भावस्था के दौरान मिलने वाली एक्सपर्ट एडवाईजेज की.

अरे भई, गर्भावस्था कोई बीमारी  थोड़े न  है जो  आप लोग बिना मांगे अपनी एक्सपर्ट हिदायतें देकर अच्छी भली महिला को जिसके लिए मातृत्व एक सुखद अनुभव होना चाहिए, आप उसे बीमार बना देते हैं. आम लोगों के साथ तो ऐसा होता ही रहता है लेकिन जब ऐसा ही कुछ फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर के साथ हुआ और बार बार अपनी प्रेग्नेंसी पर मीडिया के अटेंशन के कारण जब उनके बर्दाश्त की सीमा खत्म हो गयी तो  उन्होंने जमकर अपनी  भड़ास निकाली  और गुजारिश  की कि मीडिया उनकी प्रेग्नेंसी को नेशनल कैजुअलिटी इश्यू न बनाए.

दरअसल, करीना इन दिनों  प्रेग्नेंसी के बावजूद रिया कपूर की फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की शूटिंग कर रही हैं. इस बात पर जब उनसे पूछा गया था कि वे मेटरनिटी लीव क्यों नहीं ले रहीं? तो सवाल सुनते ही करीना को गुस्सा आ गया  जो वाजिब भी था और  वे भड़क उठीं. और बोलीं, “मैं प्रेग्नेंट हुई हूं, मरी नहीं हूं. और किस बात की मेटरनिटी लीव? बच्चा पैदा करना धरती पर नॉर्मल सी बात है. और हां, मुझे उससे अलग दिखाना बंद करें, जैसी मैं पहले थी. जिसे परेशानी है, वह मेरे साथ काम न करे. लेकिन मेरा काम हमेशा की तरह चलता रहेगा. हम 2016 में जी रहे हैं, 1800 में नहीं. करीना ने यह भी कहा कि मैं लोगों से तंग आ चुकी हूं, जो प्रेग्नेंसी को किसी तरह की डेथ बना रहे हैं. इन फैक्ट, लोगों के लिए मेरा मैसेज है कि शादी करना या फैमिली बनाना, मेरे करियर के आड़े नहीं आ सकता.” वाह करीना जी आखिर आपने एक आम महिला की समस्या को समझा और उसका मुंहतोड़ जवाब भी दिया जिसके लिए समाज उसे बार बार परेशान करता रहता है.

आपको बता दें जिस तरह करीना कपूर ने अपनी अपकमिंग फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की शूटिंग को जारी रखने का फैसला किया है, उसी तरह फिल्म इंडस्ट्री में अनेक एक्ट्रेसेस हैं जिन्होंने अपनी प्रेगनेंसी के दौरान  बेबी बंप के साथ  अपना काम जारी रखा था. जैसे काजोल ने ‘वी आर फैमिली’ की शूटिंग प्रेग्नेंसी के दौरान की थी. जूही चावला  फिल्म ‘झंकार’ की शूटिंग के दौरान 7 महीने की गर्भवती थीं. नंदिता दास जिस समय निर्माता ओनीर की फिल्म ‘आई एम’ की शूटिंग आकर रहीं थी, वे पांच महीने की गर्भवती थीं. अभिनेत्री जया बच्चन फिल्म ‘शोले’ की शूटिंग दौरान तीन महीने की गर्भवती थीं.

साथ ही उन लोगों की जानकारी के लिए भी बता दें जो गर्भावस्था को  कैजुअलिटी इश्यू बना देते हैं कि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है यह एक सुखद एहसास है और इस अवधि में एक महिला को खुश और फिट रहना चाहिए न कि खुद को बीमार मानकर सारे कामकाज छोड़कर बैठ जाना चाहिए और बेवजह की शंकाओं से खुद को डिप्रेस करना चाहिए क्योंकि आने वाले बच्चे का स्वास्थ्य व भावनात्मक स्थिति गर्भवती महिला के स्वास्थ्य व मूड पर निर्भर करता है.

गर्भावस्था किसी भी महिला के शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह के  परिवर्तनों कारण बनता है, और कोई भी महिला (किसी भी स्थिति में) इन बदलावों के लिए अच्छी तरह से तैयार होती है. अपने बच्चे के बारे में एक मां से बेहतर ओर कोई नहीं सोच नहीं सकता लेकिन जैसे ही कोई महिला गर्भवती होती है, लोग सलाह या नसीहतें देना शुरू कर देते हैं. ऐसे नहीं बैठो ,ये खाओ, ये नहीं नहीं खाओ, ज्यादा काम नहीं करो ,आराम करो आदि आदि…ऐसे में गर्भवती महिला को भी समझ नहीं आता कि वह इन बातों को माने या नहीं, क्योंकि कई बार ये सलाह अटपटी या उलझन पैदा करने वाली भी होती हैं.

गर्भवती महिला को इन दिनों में तनाव से दूर रहना चाहिए लेकिन बार-बार की रोक-टोक उसे चिंता में डाल देती है.. सच्चाई तो ये है कि इन सलाह और नसीहतों में से ज्यादातर सुनी-सुनाई बातों पर या अंधविश्वासों पर आधारित होती हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.कुछ लोग तो महिला की चालढाल और उसके खाने पीने की आदतों को देखकर यह भी अनुमान लगाना शुरू कर देते हैं  कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की? जहाँ तक गर्भावस्था में अधिक से अधिक आराम करना चाहिए वाली जो सोच है यह बिलकुल गलत है .अमेरिका में हुई एक स्टडी के अनुसार गर्भावस्था के दौरान सक्रिय रहने वाली महिलाओं में बैचेनी की शिकायत कम होती है और उन्हें प्रसव के दौरान भी कम परेशानी का सामना करना पड़ता है .

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

रियालिटी शो स्क्रिप्टेड नहीं होते : पलक मुछाल

इन दिनों टीवी इंडस्ट्री में इस बात की काफी चर्चा होने लगी है कि सेटेलाइट चैनलों पर प्रसारित होने वाले हर रियालिटी शो में जज के साथ प्रतियोगियों को भी पहले से लिखी गई यानी कि स्क्रिप्टेड संवाद ही बोलने होते हैं. इस मुद्दे पर लोग खुलकर बात नहीं करते. मगर ‘एंड टीवी’ पर प्रसारित संगीत रियालिटी शो ‘‘द वौयस इंडिया किड्स’’ में हिमेश रेशमिया, पपौन और शान के साथ जज व मेंटोर रह चुकीं गायिका पलक मुछाल की राय में सब कुछ गलत प्रचारित किया जाता है.

वह कहती हैं – ‘‘मैं उस शो की बात करती हूं, जहां मैंने जज किया. वहां ऐसा कुछ नही था. मैं निजी स्तर पर अपने दिल की सुनकर कमेंट करती रही. हमारे शो में ऐसा कुछ नही था. यहां तक कि कुमार सानू जी थे, सब लोग अपने अपने खुद के कमेंन्ट्स देना पसंद करते थे.’’

bollywood

वह आगे कहती हैं – ‘‘जज के रूप में मेरा अनुभव बहुत उत्साहजनक रहा. मैं जिस शो में जज थी, उसके बच्चे बहुत प्रतिभाशाली थे. जिन दिग्गजों के साथ मैं जज कर रही थी, वह भी बहुत बड़ा प्लेटफार्म था. देखिए, बच्चों को तो आप जज नहीं कर सकते. मेरी कोशिश होती है कि मैंने अपने गुरूओं से जो कुछ सीखा है, वह बच्चों को दे सकूं.’’

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

मिसाल हैं ये शादियां

विवाह शब्द का अर्थ है जिम्मेदारी उठाना, लेकिन लोग इसे समझने के बजाय विवाह की परंपरा को निभाने और जरूरत से ज्यादा खर्च कर वाहवाही बटोरने में जुटे रहते हैं. ऐसा नहीं है कि मंगलसूत्र बांधने पर ही स्त्रीपुरुष के बीच पतिपत्नी का रिश्ता बनता है. यह भी नहीं कि वरवधू का संबंध लाखों खर्च करने पर ही गहरा होता है. लेकिन आज विवाह में पानी की तरह पैसा बहाना और परंपराओं को एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना फैशन जैसा हो गया है.

आइए, आप को कुछ ऐसे कपल्स के बारे में बताते हैं, जिन्होंने हिंदू रीतिरिवाज को नकार कर विवाह का दूसरा विकल्प अपनाया है और कम से कम खर्च कर सामाजिक उपदेश दिया है:

किसानों और विद्यार्थियों की जिंदगी संवारी

अभय देवरे और प्रीति कुंभारे: अभय देवरे और प्रीति कुंभारे इन दिनों मीडिया में छाए वे नाम हैं जिन की शादी में सगेसंबंधी और सहकर्मी नहीं, बल्कि गरीब किसान और पढ़ाई से वंचित मासूम बच्चे शामिल हुए. ज्यादातर लोग धूमधाम से शादी करना चाहते हैं, पर पैसों की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते. लेकिन अमरावती (महाराष्ट्र) के सहायक आयकर आयुक्त अभय देवरे और आईडीबीआई बैंक में सहायक प्रबंधक प्रीति कुंभारे ने पैसा होते हुए भी सामान्य तरीके से शादी की. ये दोनों शादी की ठाटबाट से अपना मानसम्मान नहीं बढ़ाना चाहते थे, बल्कि इन की इच्छा उन्हीं पैसों से दूसरों का जीवन संवारने की थी. इसलिए इस जोड़े ने अपने विवाह में होने वाला संभावित खर्च (करीब क्व3 लाख) गरीब किसानों और विद्यार्थियों के नाम कर दिया. दोनों ने महाराष्ट्र के यवतमाल और अमरावती जिलों में आत्महत्या करने वाले 10 किसानों को 20-20 हजार और जरूरतमंद विद्यार्थियों को 20 हजार का सहयोग और ग्राम पुस्तकालयों को 52 हजार दिए ताकि वे विद्यार्थियों के लिए किताबें आदि खरीद सकें.

असमानता का विरोध किया

कुंदा प्रमिला नीलकंठ और अनिल सावंत: आज भले कई महिलाएं फैशन के नाम पर मंगलसूत्र और सिंदूर नहीं लगाती हैं, लेकिन 59 वर्षीय डा. कुंदा प्रमिला एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने 34 साल पहले गुलामी का प्रतीक कह कर इस का त्याग कर दिया था, जिस से उन के अपनों ने उन का जम कर विरोध किया. 1987 में अनिल सावंत से कोर्ट मैरिज करने वाली कुंदा कहती हैं, ‘‘शुरू से सोशल मूवमैंट से जुड़ी थी. मेरे अनुसार सुहागन के सोलहशृंगार जैसे मंगलसूत्र, सिंदूर, बिछिया आदि असमानता का प्रतीक रहे हैं. अगर स्त्रीपुरुष दोनों समान हैं तो शादी होने के बाद ये प्रतीक सिर्फमहिलाओं के हिस्से ही क्यों आते हैं, पुरुष इन्हें क्यों नहीं मानते? इसी तरह हिंदू परंपरा के अनुसार शादी के दिन लाल जोड़ा और पीले (सोने) रंग का गहना पहनना जरूरी है, लेकिन मैं ने इस का पालन न करते हुए शादी के दिन सफेद रंग की साधारण सी कौटन की साड़ी पहनी थी. आज हमारी शादी को कई साल हो गए हैं. हम दोनों अपने वैवाहिक जीवन से काफी खुश हैं. अगर वाकई में शादी की परंपराओं को निभाना जरूरी होता है तो आज हम एकदूसरे के साथ न होते.’’

सत्यशोधक पद्धति से शादी की

डा. भारत पाटणकर और गेल आमवडट: 1976 में विदेशी महिला गेल आमवडट के साथ सत्यशोधक पद्धति से विवाह करने वाले डा. भारत पाटणकर कहते हैं, ‘‘मेरे अनुसार हिंदू विवाह पद्धति कई असमानताओं और आर्थिक शोषण पर आधरित है, इसलिए मैं ने अपनी शादी महात्मा जोतिबा फुले द्वारा बताई गई सत्यशोधक पद्धति से की, जिस में बहुत ही सरल तरीके, कम खर्च और बिना किसी बिचौलिए (पंडित, पुरोहित, मौलवी) के शादी हो जाती है. शादी के दौरान स्त्रीपुरुष असमानता को दूर करने के लिए वरवधू के पक्ष से समानता का गीत गाया जाता है. जैसे- स्त्री गाते हुए कहती है कि हमारे समाज में स्त्रियों को कोई हक नहीं दिया जाता, अगर तुम मुझे अपनी पत्नी बनाना चाहते हो, तो कहो कि तुम मुझे मेरा हक दोगे. फिर पुरुष गीत के माध्यम से कहता है कि मैं विश्वास दिलाता हूं कि ऐसा ही होगा. इस तरह बिना किसी खर्च और रस्मों के सिर्फ एकदूसरे के वादे के आधार पर शादी संपन्न हो जाती है.’’

शादी में सही जगह खर्च

तुषार नरेश शिंदे और नंदना: अंधश्रद्वा निर्मूलन समिति से जुड़े 29 वर्षीय तुषार नरेश शिंदे कहते हैं, ‘‘मुझे लगता है कि हिंदू परंपरा की विवाह पद्धति महिलाओं के साथ अन्याय करती है. इस पद्धति में मंगलसूत्र, सिंदूर जैसे वैवाहिक चिन्ह स्त्रियों के लिए बंधन हैं, जबकि पुरुष इन से मुक्त रहते हैं. इस के साथ ही विवाह में रिश्तेदारों को भेंटस्वरूप सामान देने का रिवाज भी है, जो मेरे अनुसार फुजूलखर्ची है. इसलिए मैं ने अपनी शादी सत्यशोधक पद्धति से की और भेंटस्वरूप खर्च होने वाले क्व50 हजार 2 संस्थाओं में दान दे दिए, जो अनाथ और मंदबुद्धि महिलाओं के लिए काम करती हैं.’’

अपनी पत्नी नंदना के बारे में तुषार कहते हैं, ‘‘मैं जब उस से मिला था, तब मुझे उस की जातिधर्म आदि की जानकारी नहीं थी, लेकिन मेरे लिए यह बात माने नहीं रखती थी, क्योंकि मैं जाति,धर्म, वर्ण को शादी का आधार नहीं मानता था. मैं ऐसे इनसान को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता था, जिसे मेरी जरूरत हो.’’

विधवाएं रहीं विवाह की विशेष मेहमान

रवि और मोनाली: कोई भी किसी शुभ मौके पर विधवा महिलाओं को अपने आसपास नहीं फटकने देता, लेकिन गुजरात के जीतूभाई पटेल के बेटे रवि की शादी में विधवा महिलाएं विशेष मेहमान रहीं. जीतूभाई की माने तो उन की यह दिली ख्वाहिश थी कि उन के बेटे की शादी में विधवाएं आएं और उन्हें आशीर्वाद दें. इसलिए उन्होंने 18 हजार से भी अधिक विधवा महिलाओं को आमंत्रित किया, जो गुजरात के 5 अलगअलग जिलों से विवाहस्थल पर उपस्थित हुईं. शादी में आई इन सारी विधवाओं को भेंटस्वरूप कंबल दिए गए. इन में से 500 विधवाओं को गाएं भी दी गईं ताकि दूध बेच कर वे अपना जीवनयापन कर सकें. जीतूभाई ऐसा कर लोगों तक यह संदेश पहुंचाना चाहते थे कि विधवा महिलाएं अशुभ नहीं होतीं, यह केवल लोगों का भ्रम है.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

बिल्डर्स भी तो सरकारी परिपाटी पर चल रहे हैं

सरकार की आदत है कि अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ना. बिल्डर्स को कोसना आजकल एक आम बात है और हाउसिंग व अर्बन अफेयर्स मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में उन्हें लताड़ा कि रियल एस्टेट रैग्युलेशन अथौरिटी (रेरा) को नाहक बदनाम कर रहे हैं. मंत्री का कहना था कि बिल्डर्स ही दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने जनता का अरबों रुपया मार रखा है.

इस में शक नहीं है कि देश भर में लाखों मकान के चहेतों के अरबों रुपए बिल्डर्स के पास फंसे हैं. मकान, प्लौट, फ्लैट की बिक्री के लिए लुभावने विज्ञापन दे कर अग्रिम वसूल लेना और फिर महीनों नहीं 10-10 साल तक मकान न देना बिल्डर्स का रवैया बन गया है.

बिल्डर्स एकतरफा अनुबंध कर लेते हैं और ग्राहकों का पैसा एक बार फंस जाने के बाद उन की पूरी तरह सुनना ही बंद कर देते हैं.

पर दोषी तो असल में सरकार है. सरकार ने ही पहल कर के आदत डाली है कि पहले आम उपयोग की चीजों की कमी पैदा करो. फिर सस्ते में बेचने का लालच दो और उस के बाद आधा या पूरा पैसा ले कर बैठ जाओ.

सरकार बड़े जोरशोर से कभी मकान निर्माण में कूदी थी पर देश भर में फैली सरकारनिर्मित कालोनियां गवाह हैं कि हर मकानमालिक मुसीबत का मारा है.

जहां सरकारी प्लौट, फ्लैट, मकान मिले, वे वर्षों बाद मिले. सड़कें बनी नहीं. सीवर कच्चे थे. आसपास झोंपड़पट्टियां उग आईं, जिन्हें हटाया नहीं गया. स्कूल बने नहीं. दुकानों का जंजाल बना डाला. बिजली कम मिली या ऐसे तारों से मिली जो रोज जल जाएं. ऊपर से हर कोई सरकारी पैसे ले कर भी गुल्ल. यह पाठ सरकार ने जम कर प्राइवेट बिल्डर्स को पढ़ाया.

अब जब दस्तूर ही ऐसा बन गया हो तो क्या करें. रोजरोज एक जुल्म को सहते देख कर लगने लगा कि मकान पाने के लिए पैसे देने वालों को यह कष्ट तो वैसे ही भोगना होगा जैसा लक्ष्मी पाने की चाहत में आग के आगे बैठे

जजमान पंडों के बहकावे में घंटों बैठ कर भोगते हैं. यह तो अग्नि परीक्षा है मकान पाने की. हरदीप पुरी की सरकार ग्राहकों को पापी माने तो ठीक पर बिल्डर्स नकल करें तो गुंडेमवाली!

यह दोगलापन ही जड़ है. बिल्डर्स 4 पैसे कमाने आते हैं. उन के हित में है कि मकान बनाएं, दें और आगे बढ़ें, नया बनाएं. पुराने बन रहे मकानों की लागत निरर्थक बढ़ती है. वे देर करते हैं तो इसलिए कि सैकड़ों अनुमतियों की जरूरत होती है, जिस पर हरदीप सिंह पुरी चुप हैं. शायद उन के उस हिस्से पर दिमागी लकवा मार गया है. सरकार में जो भी होता है वह इस बीमारी से ग्रस्त हो जाता है.

बिल्डर्स को हर कोने पर प्रतिस्पर्धा को सहना पड़ता है. उस की समस्याओं को न समझ उसे गालियां देना आसान है, इसलिए उन्हें दोषी ठहराया जाता है. शिक्षक पैसा ले कर पढ़ाते नहीं तो कोई कुछ नहीं कहता, क्योंकि वे गुरु हैं, वंदनीय हैं, मातापिता हैं, ईश्वर हैं. बिल्डर्स माफिया हैं, उन्हें भला कैसे माफ करें?

VIDEO : प्री वेडिंग फोटोशूट मेकअप

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

सैक्स रिलेशनशिप : मजा कम, मुसीबतें ज्यादा

अमेरिकी यूनिवर्सिटी के एक शोध से पता चला है कि कम उम्र में सैक्स संबंध बनाने वाली युवतियां, युवकों के मुकाबले ज्यादा परेशान होती हैं जबकि बड़ी उम्र की युवतियां सैक्स में ऐक्टिव होती हैं, पर उन के साथ धोखे की आशंका कम होती है. फिल्म ‘दृश्यम’ में युवक द्वारा युवती को ब्लैकमेल करने का सीन फिल्म का केंद्रबिंदु है, जिस पर पूरी फिल्म की कहानी बुनी हुई है. फिल्म में भले ही युवकयुवती एकदूसरे से प्यार नहीं करते पर सहपाठी व हमउम्र जरूर है. यहां बात युवक और युवती के रिलेशनशिप को ले कर हो रही है कि कैसे एक युवक युवती की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है. एमएमएस या अश्लील  वीडियो नैट पर डालने वाली बातें ज्यादातर युवकों का हथियार बन चुकी हैं. युवती को न केवल ब्लैकमेलिंग का डर सताता रहता है बल्कि एक बार संबंध बन जाने पर अनेक मुसीबतों से खुद ही निबटना पड़ता है.

ऐंजल भी बनी शिकार

कुछ दिन पहले ही ऐंजल का ब्रेकअप हुआ था और तकलीफ के उन दिनों में उस के एक अन्य सहयोगी ने उस का काफी ध्यान रखा था, जिस के कारण वह उसे अपना समझने लगी थी. एक बार जब वे कालेज ट्रिप से बाहर गए तब दोनों न सिर्फ साथ घूमेफिरे बल्कि ट्रिप की आखिरी रात दोनों ने साथसाथ गुजारी. वह रात ऐंजल के लिए काफी सुखद थी लेकिन जब ऐंजल ने कालेज में उस से बात करने की कोशिश की तो वह उस से कटने लगा. ऐंजल को यह जान कर बहुत निराशा हुई, क्योंकि उस के सहपाठी का आकर्षण केवल शारीरिक था. आजकल एक रात बिताने वाले कपल्स के रिश्ते बीती रात के साथ ही खत्म हो जाते हैं. पर क्या किसी ने सोचा है कि युवती पर इन बातों का कितना असर पड़ता है.

डेट पर जाना पड़ता है भारी

गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड का डेट पर जाना कोई नई बात नहीं, लेकिन उस दौरान पार्टनर के साथ सावधानी बरतने की जरूरत है. डेटिंग के दौरान वे एकदूसरे के बेहद नजदीक आ जाते हैं. केवल मौजमस्ती के लिए बनाया गया संबंध आगे चल कर युवतियों के लिए मुसीबतों का सबब बन जाता है. यदि बिना सावधानी बरते सैक्स करते हैं तो बाद में युवतियों को ही कई तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि युवकों को तो सिर्फ ऐंजौयमैंट से मतलब होता है और वे बाद में इस से युवतियों के समक्ष आने वाली परेशानियों से पल्ला झाड़ लेते हैं. इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है.

आइए, जानें क्या हैं वे मुसीबतें

अनचाहे गर्भ का डर

सैक्स के दौरान गर्भनिरोधी उपाय अपनाएं, अन्यथा आप को यह डर जीने नहीं देगा कि कहीं डेट न मिस हो जाए, इस बार गर्भ न ठहरे, अगली बार मैं अवश्य इस दौरान सावधानी बरतूंगी. इस के अलावा आईपिल का प्रैशर डालेंगी. अगर बौयफ्रैंड ने ला कर नहीं दी तो आप तो फंस गई समझो. खुद खरीदने जाएंगी नहीं. डेट मिस होने पर आप ऐबौर्शन किट का प्रयोग करेंगी पर उस को खरीदने में भी आप को कई तरह का गणित लगाना पड़ेगा.

संक्रमण का खतरा

असुरक्षित सैक्स से संक्रमण का खतरा बना रहता है. जल्दबाजी के चक्कर में तमाम युवा असुरक्षित सैक्स करने के आदी हो जाते हैं. उन का बजट इतना नहीं होता कि वे अच्छे होटल में जाएं. सस्ते होटल में जाने से वहां का गंदा टौयलेट, गंदा बिस्तर और तमाम तरह की अन्य चीजों से आप को इन्फैक्शन का खतरा हमेशा बना रहता है. अगर बौयफ्रैंड के घर जा रही हैं और वह अकेला रहता है तो भी आप को गंदगी का सामना करना पड़ेगा और आप चाह कर भी इस गंदगी से अपनेआप को बचा नहीं पाएंगी. असुरक्षित सैक्स से आप को एसटीडी (सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) होने का खतरा भी रहता है.

डिप्रैशन का शिकार

असुरक्षित सैक्स के साथ छिप कर बौयफ्रैंड के साथ कहीं जाने का प्लान हो या फिर परिचितों के मिलने से भेद खुलने का डर, इन सभी बातों से आप का मन कभी शांत नहीं रह पाएगा. इस के साथ ही आप को बारबार लगेगा कि कहीं आप प्रैगनैंट तो नहीं. यह खयाल आप को डिप्रैशन का शिकार भी बना सकता है.

असुरक्षा का डर सताता है

बौयफ्रैंड के साथ रिलेशनशिप जरूरी नहीं कि अच्छी ही हो, हो सकता है वह आप को किसी और के लिए चीट या झूठ बोल रहा हो. यह डर आप के मन में चौबीसों घंटे कौंधता होगा, इसलिए जल्द से जल्द ऐसी रिलेशनशिप से बाहर निकलें या फिर अपने मन का वहम खत्म करें.

कंगाल न हो जाएं आप

यह जरूरी नहीं कि बौयफ्रैंड को ही खर्च करना पड़ता है. समयसमय पर गर्लफ्रैंड बौयफ्रैंड की जेबें भी भरती है. अगर युवती कामकाजी है और युवक बेरोजगार तो वहां भी गर्लफ्रैंड को कई बार अपने बौयफ्रैंड को पैसे देने पड़ेंगे. कुछ बौयफ्रैंड अकसर पौकेटमनी खत्म होने का बहाना बना कर, उधारी की जिंदगी काटना चाहते हैं. ऐसे में तब गर्लफ्रैंड को अपनी पौकेट खाली करनी पड़ जाती है. अगर आप ने गलती से अपने बौयफ्रैंड को हजारों रुपए उधार दिए हैं तो समझो बे्रकअप के बाद वह भी नहीं मिलेंगे. इसलिए सोचसमझ कर ही कदम उठाएं.

पेरैंट्स से झूठ छिपाना पड़ता है भारी

एक झूठ छिपाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं. पहले तो बौयफ्रैंड के साथ रात बिताने के लिए आप अपने पेरैंट्स से झूठ बोलती हैं कि आज आप और आप की सहेली रात भर पढ़ेंगे इसलिए आप उस के घर जा रही हैं. मान लीजिए, वहां पहुंच कर कुछ अनहोनी हो जाए तो पेरैंट्स से उस बात को छिपाने का फैसला भारी लगने लगता है. साथ ही पेरैंट्स से तमाम तरह के झूठ बोल कर आप हमेशा शर्मिंदगी भी महसूस करेंगी इसलिए अच्छा है कि सच को छिपाएं नहीं.

पलपल होती ब्लैकमेलिंग का शिकार

आप का एमएमएस बन जाने पर आप को पलपल ब्लैकमेलिंग का शिकार होना पड़ सकता है. हो सकता है कि आप का बौयफ्रैंड ऐसा न करे, पर होटल में लगे छिपे कैमरे या कुछ अराजक तत्त्व मिल कर आप को ब्लैकमेल कर पैसा और आप की आबरू दोनों को अपना हथियार बना सकते हैं. इस मुसीबत का सामना करने वाली कुछ युवतियां सुसाइड तक कर लेती हैं या कुछ अपने हक के लिए ताउम्र अपनी लाइफ कानूनी पचड़ों में पड़ कर खराब कर देती हैं. इस से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है.

सिंगल रहने के फायदे

–       पहरेदारी से आप को छुटकारा मिलेगा. कोई रोकेगाटोकेगा नहीं. आप अपनी लाइफ खुल कर जी सकेंगी.

–       बौयफ्रैंड से देर रात तक चैट या बात करने से छुटकारा मिलता है. आप जब चाहें जागें और जब चाहे सोएं.

–       अपनेआप को जानने का मौका मिलेगा. आप के पास इतना समय होगा कि आप अपने लक्ष्य, अपनी पर्सनैलिटी, कमजोरी व स्टै्रंथ को पहचान पाएंगी. इस से आप को एक नई राह मिलेगी.

–       सिंगल रहने पर आप को कोई झूठ या बहाना नहीं मारना पड़ेगा. इस से आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. हिम्मत आएगी और आप का फोकस सिर्फ आप के कैरियर और परिवार पर ही रहेगा.

–       आप हमेशा बिजी नहीं रहेंगे. इस से आप ज्यादा से ज्यादा बाहर जा कर अपने दोस्तों व परिचितों से मिल पाएंगे और सोशल बनेंगे.

सिंगल रहने के वैज्ञानिक तर्क

हैल्दी हार्ट

जनरल औफ मैरिज ऐंड फैमिली 2006 में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, ‘‘9 हजार मध्यम आयुवर्ग के वयस्कों पर एक रिसर्च की गई जिस में पाया गया कि कुंआरे लोगों को सब से कम दिल की बीमारियां होती हैं.’’

बौडी फिट तो आप हिट

अमेरिकी जनरल औफ प्रिवैनटेटिव मैडिसन में हुए शोध के मुताबिक 13 हजार पुरुषों और महिलाओं पर जिन की उम्र 18 से 64 वर्ष के बीच है, एक सर्वे हुआ. सर्वे के नतीजों से पता चला कि जिन की शादी नहीं हुई वे अपने काम में फिट रहते हैं और उन की बौडी भी आकर्षक दिखती है.

समझौता नहीं करना पड़ेगा

मनोवैज्ञानिक और ऐजिंग की प्रकाशित 1,649 लोगों पर हुई स्टडी के अनुसार, ‘सिंगल लोगों को कम समझौते करने पड़ते हैं, जिन की वैवाहिक जिंदगी अच्छी नहीं चलती, उन्हें तमाम समझौते करने पड़ते हैं व तनाव से गुजरना पड़ता है और उन की उम्र भी अधिक लगने लगती है.’

बौलीवुड सैलिब्रिटीज की बात

हम अकसर फिल्में देख कर ऐक्टर व ऐक्ट्रैस के स्टाइल को कौपी करते हैं, लेकिन उन की लाइफ को नजरअंदाज कर देते हैं. आइए, जानें वह सिंगल रह कर अपनी लाइफ किस तरह ऐंजौय कर रहे हैं : बौलीवुड स्टार सलमान खान का कहना है, ‘‘मैं सिंगल ही ठीक हूं. डबल रह कर मुझे मुसीबत नहीं लेनी.’’ यह सिंगल रहने वाली बात सलमान खान ने ‘प्रेम रतन धन पायो’ फिल्म के प्रमोशन के दौरान एक इंटरव्यू में कही थी. ऐक्ट्रैस अदिति राव हैदरी ने भी एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि मुझे सिंगल रह कर अपनी लाइफ को ऐंजौय करना ज्यादा पसंद है इसलिए फिलहाल मेरा शादी का कोई प्लान नहीं है. ऐक्ट्रैस बिपाशा बसु का ही उदाहरण लें. अपने सीरियस रिलेशनशिप से बे्रकअप के बाद फिल्मों में जल्द मूवऔन करने की उन की कोशिश भी काबिलेतारीफ है. वे अब अपनी लाइफ को अधिक ऐंजौय कर पा रही हैं. हालांकि अब उन्होंने शादी कर ली है.

अभिनेता रितिक रोशन पत्नी सुजैन से तलाक के बाद सिंगल हैं. वैसे रितिक और सुजैन अब अपनी लाइफ को ज्यादा खुल कर ऐंजौय कर रहे हैं. शायद सिंगल रहने वाली बात दोनों को देर से समझ आई. घुटघुट कर जीने से बेहतर है कि अकेले रहें और अपनी लाइफ को अपने अनुसार चलाएं.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

सामाजिक आजादी बिना अधूरी है आजादी

आजाद भारत केवल वह सपना नहीं था, जिस में देश को अंगरेजों की गुलामी से आजाद कराने का रास्ता तय करना था, बल्कि यह सपना उस आजादी का भी था, जिस में देश के हर नागरिक को इज्जत से जीने का हक हासिल हो सके. आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी इस बात को आज कोई भी दावे से नहीं कह सकता है कि देश के हर नागरिक को इज्जत की जिंदगी जीने का हक हासिल है. इस देश में आज भी गरीब आदिवासी और पिछड़ेदलित अपनी इज्जत की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. आदिवासियों को आज भी यह भरोसा नहीं है कि उन के जल, जंगल और जमीन में वे रह सकेंगे. जिस तरह आजादी के बाद की सरकारों ने तरक्की के नाम पर खेती की जमीनों के कब्जे को बढ़ावा दिया है और आदिवासियों को उन की जगह से जबरन हटाया है, उस से उन कीदहशत सामने आई है. यह कैसा आजाद देश है, जहां की दोतिहाई से ज्यादा आबादी एक दिन में 50 रुपए भी नहीं कमा पाती है? आजादी के इतने साल बाद भी गरीबी, बेरोजगारी, पढ़ाईलिखाई, इंसाफ देश के सामने बड़े सवाल बन कर खड़े हैं. जिन क्षेत्रों में तरक्की हुई दिखाई पड़ती है, वहां पर भी भ्रष्टाचार और भाईभतीजावाद ने आम लोगों की राह रोक रखी है.

आखिर इस देश में एक रिकशे वाले, एक मजदूर, एक गरीब या खेती करने वाले के बच्चों को भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुना जाना या खेल में इंटरनैशनल लैवल पर मैडल लाना महिमामंडन वाली खबरें क्यों हैं? वजह, हम ने देश में उस ढांचे का विकास ही नहीं किया है, जिस में देश के अमीर और गरीब दोनों के बच्चों के लिए बराबरी के मौके और सुविधाएं मुहैया हों.

देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का बचपन ही भेदभाव से रूबरू करा देता है. एक तरफ सारी सुविधाओं से लैस अंगरेजी भाषा वाला बचपन होता है, जिस की पढ़ाईलिखाई सत्ता की भाषा में होती है. वहीं दूसरी तरफ नंगे पैर वाला टाटपट्टी पर इलाकाई भाषा में पढ़ने वाला बचपन, जो प्रतियोगी माहौल में पहुंचने पर पाता है कि उस ने जिस भाषा में लिखापढ़ा है, वह भाषा न तो बड़ीबड़ी कंपनियों में चलती है और न ही सार्वजनिक उपक्रमों में.

यहां तक कि उस भाषा में बड़ी अदालतों में भी न तो याचिका दाखिल की जा सकती है और न ही बहस की जा सकती है. इस का मतलब तो यही है कि इंसाफ पाने के अधिकार से ले कर आजीविका तक के अधिकार से देश की एक बड़ी आबादी दूर है. एक गरीब के लिए इंसाफ की पहली लड़ाई न्यायपालिका के रूढि़वादी कानूनी तरीकों और जजों से निबटने से ही शुरू हो जाती है. जनता और न्यायपालिका के बीच बहुत दूरी है. इस देश में अभी भी उन्हीं कानूनों से जनता को हांका जा रहा है, जिसे अंगरेजों ने 19वीं सदी में बनाया और लागू किया था. हमारे देश की पुलिस और न्यायपालिका कानून व्यवस्था की अंगरेजी प्रणाली और सोच से आज भी नहीं उबर सकी हैं. गुनाह और सजा से रिश्ता सिर्फ ऐसे लोगों का है, जिन के पास पैसा नहीं है, जिन का कोई रसूख नहीं है और जो काफी मेहनत कर के भी जिंदगीभर गरीबी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

सवाल उठता है कि अगर महज 8 से 10 साल के भीतर गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइटें देश की हर भाषा में बात करने की भाषाई क्रांति ला सकती हैं, तो आधुनिकतम संसाधनों, तकनीकों और सुविधाओं से लैस हमारी संसद क्यों नहीं?

सोशल साइटों की भाषाई क्रांति ने साबित कर दिया है कि भाषा के मामले में हम ने अंगरेजी के दबदबे को कायम रखने के लिए देश की जनता के साथ तकरीबन 70 साल से धोखा किया है. आज आम परिवार के बच्चों का राजनीति में आना मुश्किल हो गया है. परिवारवाद की राजनीति का कोढ़ देश की हर पार्टी में फैल चुका है और आलम यह?है कि देश की जनता को आज गुमराह किया जा रहा है कि देश में युवा नेतृत्व आ रहा है. किसे नहीं पता कि यह युवा नेतृत्व नहीं, बल्कि परिवार नेतृत्व है. देश की सारी समस्याएं और मुद्दे छोड़ कर राजनीतिक दल धर्म और क्षेत्र की राजनीति करने में लगे हैं. आज किसी क्षेत्र के प्रतिनिधि, सांसद या विधायक की अपनी आवाज का कोई वजूद नहीं है. अगर पार्टी नहीं चाहती?है, तो वह सदन में किसी विधेयक पर अपनी निजी राय भी नहीं रख सकता है.

वैसे, इस की शुरुआत तो टिकट के बंटवारे के साथ ही हो जाती?है. इस से बड़ी खतरनाक बात क्या होगी कि जो लोग जनता की नुमाइंदगी नहीं हासिल कर पाते हैं, उन्हें भी सरकार में शामिल कर लिया जाता है.

देश आजाद हो गया है, लेकिन उस के साथ आजाद हुए केवल अमीर और रईस लोग. किस सरकार में दम है कि इन के हितों के खिलाफ जा कर भूमि सुधार लागू कर सके? नक्सलवाद के खिलाफ गोली उगलने वाली सरकार बता सकती है कि क्यों उस के अपने ही देश के नागरिक देश के भीतर अपनी अलग व्यवस्था बना कर रखे हुए हैं?

आखिर अमीरों के पैर दबादबा कर गरीबों के इस जख्म को नासूर किस ने बनने दिया? जो सरकार हकों का बंटवारा करने के नाम पर गरीबों का हक छीन कर अमीरों में बांटती हो, उस की खिलाफत किस बिना पर गलत कही जा सकती है?

आज भी जिस तरह से दलितों पर जोरजुल्म की खबरें देखनेसुनने को मिल रही हैं, उसे राजनीतिक मुद्दा कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है.

ऊंचेतबके का एक बड़ा हिस्सा दलितों और आदिवासियों को आजादी के इतने साल बाद भी हिकारत की नजर से देखता है, उस के मुख्यधारा में आने की कोशिशों को नाकाम करने में लगा हुआ है. ऐसा समाज चाहता है कि दलित और आदिवासी समझे जाने वाले लोग ही काम करते रहें और उन का पहले की तरह शोषण किया जाता रहे.

शायद लोग भूल चुके हैं कि देर से ही सही, पर वाकई संचार क्रांति

ने सामाजिक उथलपुथल की एक नई संस्कृति लिखी है, जिस को सैंसर करना अब किसी भी सरकार के बस के बाहर की बात है.

यह सोशल मीडिया का दबाव ही है कि देश के प्रधानमंत्री को दलित उत्पीड़न मामलों पर सामने आ कर सरकार का पक्ष रखने को मजबूर होना पड़ा है, इसलिए जनता के नुमाइंदों को समझना पड़ेगा कि देश की आजादी का रास्ता गरीब दलित और आदिवासी लोगों की माली व सामाजिक आजादी से हो कर जाता है. उन की आजादी के बिना इस आजादी का उत्सव अधूरा है.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

औफिस के कंप्यूटर पर करते हैं ये काम तो हो जाएं सावधान

अगर आप कहीं नौकरी कर रहे हैं और यदि आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं जो औफिस में कंप्यूटर या लैपटौप पर काम करते हैं. तो यह खबर आपके लिए ही है. इसपर एक बार जरूर अपनी नजर डाल लें. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि Babies On The Brain के सीईओ Jena Booher (M.S. MHC; ACC) ने औफिस के कंप्यूटर पर इन 6 कामों को करने से मना किया है.

कंप्यूटर में पर्सनल फाइल सेव ना करें

औफिस के लैपटौप में किसी भी प्रकार के अपने डाक्यूमेंट या पर्सनल फाइल को सेव ना ही करें तो बेहतर होगा. क्योंकि ऐसा करने से यह संभव है कि आपने भविष्य के लिए कोई शानदार प्रोजेक्ट तैयार किया हो और वह औफिस में लीक हो जाए. तो इस तरह कि चीजो से बतने के लिए आपको थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है.

औनलाइन सर्चिंग और औनलाइन शौपिंग

जितना हो सकें औनलाइन सर्चिंग औनलाइन सर्चिंग से बचें, बेवजह की चीजे सर्च ना करें. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बड़ी कंपनियों में कुछ लोगों को सिर्फ कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए रखा जाता है. ऐसे में आप क्या सर्च कर रहे हैं, कौन-सी वेबसाइट पर विजिट कर रहे हैं इसके बारे में आपकी कंपनी को पता चल जाता है. इसलिए कपनी में सिर्फ काम करें बेवजह के सर्च और औनलाइन शौपिंग करने से बचें, क्योंकि ऐसा करना आपकी नौकरी के लिए ठीक नहीं है.

औफिस के चैट पर निजी बातें ना करें

आजकल प्रत्येक कंपनी में गूगल हैंडआउट और व्हाट्सऐप जैसे ऐप पर कर्मचारियों के बीच चैटिंग हो रही है. ऐसे में आपको सावधान रहने की जरूरत है, नहीं तो कई बार पर्सनल मैसेज भी औफिस के चैट ग्रुप में जा सकते है. साथ ही ग्रुप में सिर्फ काम की बातें ही करें.

जौब के लिए सर्च ना करें

औफिस के कंप्यूटर पर भूलकर भी दूसरी नौकरी के लिए सर्च ना करें. क्योंकि अगर किन्हीं कारणों से इसके बारे में एचआर या मैनेजमेंट को पता चल जाता है तो आपको आगे दिक्कत हो सकती है. साथ ही इससे आपकी इमेज भी खराब हो सकती है.

VIDEO : प्री वेडिंग फोटोशूट मेकअप

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

ऐसा बल्लेबाज जिसने एक या दो नहीं बल्कि तीन दोहरे शतक लगाए

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने जब वनडे क्रिकेट में पहला दोहरा शतक लगाया, तो कहा गया कि भविष्य में इस रिकौर्ड को तोड़ पाना बड़ा मुश्किल होगा. लेकिन इस शतक के दस साल के भीतर ही वनडे क्रिकेट में एक दो नहीं बल्कि कई दोहरे शतक लगा दिए गए. इसमें से एक बल्लेबाज ने तो वनडे क्रिकेट में अकेले ही 3 दोहरे शतक जड़ दिए. हम बात कर रहे हैं हिटमैन रोहित शर्मा की.

आज भारतीय टीम के ‘हिटमैन’ रोहित शर्मा का जन्मदिन है. रोहित आज यानि 30 अप्रैल को 31 साल के हो गये हैं. रोहित शर्मा लिमिटेड ओवर्स के बेहतरीन बल्लेबाज माने जाते हैं. वनडे इंटरनेशनल में रोहित के नाम एक या दो नहीं, बल्कि तीन दोहरे शतक लगाने का दिलचस्प रिकौर्ड है ये ऐसा रिकौर्ड है जिसे तोड़ पाना किसी भी बल्लेबाज के लिए आसान काम नहीं होगा. इसके अलावा एकदिवसीय मैचों में सबसे लंबी पारी खेलने का रिकौर्ड भी रोहित के नाम दर्ज है. बता दें कि रोहित ने 13 नवंबर साल 2014 को श्रीलंका के खिलाफ खेलते हुए यह रिकौर्ड बनाया था.

गौरतलब है कि रोहित ने अब तक 180 वनडे मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 3 दोहरा शतक, 17 शतक और 34 अर्धशतक लगाए हैं. इस दौरान रोहित ने कुल 6594 रन बनाए हैं. इन मैचो में रोहित का औसत 44.55 रहा है और स्ट्राइक रेट 86.96 का रहा है. वहीं टी20 मुकाबलों की बात करें तो यहां भी रोहित ने अपने बल्ले से कई यादगार पारियां खेली हैं 79 इंटरनेशनल टी20 मैचों में रोहित ने 1852 रन बनाए हैं. जिसमें उनका स्ट्राइक रेट 135.7 का रहा है रोहित ने इस दौरान 2 शतक और 14 अर्धशतक लगाए हैं.

VIDEO : प्री वेडिंग फोटोशूट मेकअप

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

कहीं आपको भी तो नहीं यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान से जुड़ी ये गलतफहमियां

हाल के दिनों में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) के प्रति लोगों का आकर्षण काफी बढ़ा है. इससे पहले यूलिप को उच्च लागत और कम रिटर्न वाला निवेश विकल्प माना जाता था और इसमें पैसा लगाने को लेकर ग्राहकों की सोच अलग-अलग थी. लेकिन वास्तव में यूनिट लिंक्‍ड इंश्‍योरेंस प्‍लांस (यूलिप) की मौजूदा समझ कुछ और नहीं बल्कि इससे जुड़ी विभिन्‍न गलत धारणाओं का मिलाजुला रूप है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसे लेकर उत्पाद के उद्देश्य, कीमतें, फायदे, आसान लिक्विडिटी और काम करने के तरीके के बारे में लोगों के मन में लंबे समय से कई सारी गलतफहमी बनी हुई है. जिन्‍हें खत्‍म करना जरूरी है.

यूलिप में अब कोई बात छिपी नहीं है. यूलिप के विभिन्‍न फीचर्स बीमा कंपनियों की आधिकारिक वेबसाइट और इंश्‍योरेंस एग्रीगेटर्स की वेबसाइट पर उपलब्‍ध हैं. पिछले कुछ वर्षों में लगातार हुए सुधारों ने यूलिप को एक सर्वोत्तम निवेश विकल्‍प बना दिया है, क्‍योंकि इसमें पूंजी निर्माण और इंश्‍योरेंस कवर के दोहरे फायदे शामिल हैं. यहां यूलिप से जुड़े कुछ आम गलतफहमियों की चर्चा की जा रही है.

गलतफहमी 1: यूलिप महंगे और अविश्वसनीय होते हैं

जब यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान पहली बार बाजार में आए थे, तब इन्‍हें इस प्रकार से पेश किया गया था कि ये ग्राहक से ज्‍यादा डिस्ट्रिब्‍यूटर्स को फायदा पहुंचाएंगे. 2010 में इंश्‍योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथौरिटी आफ इंडिया (आईआरडीएआई) के हस्‍तक्षेप से पहले, ग्राहक द्वारा चुकाए जाने वाले प्रीमियम का एक बड़ा हिस्‍सा पौलिसी एडमिनिस्‍ट्रेशन, प्रीमियम एलोकेशन और फंड मैनेजमेंट के पास चला जाता था.

लेकिन अब बीमा कंपनियों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्‍न शुल्कों को सीमित कर दिया गया है. पहले जहां इसमें 6-10 फीसदी चार्ज लगते थे, वहीं अब इंश्‍योरेंस कंपनियां 1.5 से 2 फीसदी चार्ज वसूले जाते हैं. इसके अतिरिक्‍त, डिजिटाइजेशन के विस्‍तार के चलते पालिसी ए‍डमिनिस्‍ट्रेशन और प्रीमियम एलोकेशन जैसे मध्‍यस्‍थ शुल्क अब पूरी तरह खत्‍म हो चुके हैं. इस प्रकार यूलिप एक ऐसा बेहतरीन प्रोडक्‍ट बन गया है जिस पर ग्राहक अपने पैसे को लेकर विश्‍वास कर सकते हैं.

गलतफहमी 2: यूलिप का रिटर्न बहुत कम है

ज्‍यादातर लोग कम रिटर्न के डर से वे यूलिप में पैसा लगाने से बचते हैं. यहां यह समझना बेहद जरूरी है कि आज यूलिप में प्रीमियम का केवल एक छोटा सा हिस्‍सा इंश्‍योरेंस कवर के लिए प्रयोग किया जाता है, वहीं एक बड़ा हिस्‍सा रिटर्न प्राप्‍त करने के लिए निवेश किया जाता है. रिटर्न की मात्रा, हालांकि निवेश की जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है.

गलतफहमी 3: यूलिप में जोखिम अधिक होता है

बहुत से लोगों को मानना है कि यूलिप में जोखिम अधिक होता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. ऐसा वे ये नहीं जानते कि यूलिप में निवेश किया गया पैसा ग्राहक की जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर विभिन्‍न फंड में बांटा जाता है. यहां निवेशकों से पूछा जाता है कि वे कितना जोखिम ले सकते हैं. इसके साथ ही उन्‍हें फंड बदलने के विकल्पों के बारे में भी जानकारी दी जाती है, जिसकी मदद से बाजार की अस्थिरता के बीच सही फैसला लिया जा सकता है. कम जोखिम लेने वाले ग्राहक डेट इंवेस्‍टमेंट, सरकारी सिक्‍योरिटीज और कौरपोरेट डेट विकल्‍पों में से अपने लिए बेहतर विकल्‍प चुन सकते हैं, जिसमें जोखिम कम है और ये सामान्‍य रिटर्न देते हैं.

गलतफहमी 4: बाजार के उतार-चढ़ाव से इंश्‍योरेंस कवर प्रभावित होता है

चूंकि प्रीमियम का एक हिस्‍सा मुद्रा बाजार में निवेश किया जाता है, ऐसे में कुछ ग्राहकों को इस बात डर रहता है कि कहीं बाजार के उतार चढ़ाव के चलते उनसे बीमा कवर की राशि का जो वादा किया गया था वह कम न हो जाए. वास्‍तविकता यह है कि बाजार के उतार चढ़ाव के बावजूद लाइफ कवर की राशि पूरी पौलिसी अवधि के दौरान एक समान रहती है. आईआरडीएआई द्वारा 2010 में निर्धारित नियमों के अनुसार, यूलिप में न्‍यूनतम लाइफ कवर या सम एश्‍योर्ड की राशि पॉलिसी धारक द्वारा अदा किए गए वार्षिक प्रीमियम का 10 गुना होता है. बीमित व्‍यक्ति की मृ‍त्‍यु की दशा में, बीमा कंपनी वादा की गई लाइफ कवर की राशि या फंड वैल्‍यू, जो भी ज्‍यादा हो उसे अदा करने के लिए बाध्‍य होगी.

VIDEO : प्री वेडिंग फोटोशूट मेकअप

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें