सरकार की आदत है कि अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ना. बिल्डर्स को कोसना आजकल एक आम बात है और हाउसिंग व अर्बन अफेयर्स मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में उन्हें लताड़ा कि रियल एस्टेट रैग्युलेशन अथौरिटी (रेरा) को नाहक बदनाम कर रहे हैं. मंत्री का कहना था कि बिल्डर्स ही दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने जनता का अरबों रुपया मार रखा है.

इस में शक नहीं है कि देश भर में लाखों मकान के चहेतों के अरबों रुपए बिल्डर्स के पास फंसे हैं. मकान, प्लौट, फ्लैट की बिक्री के लिए लुभावने विज्ञापन दे कर अग्रिम वसूल लेना और फिर महीनों नहीं 10-10 साल तक मकान न देना बिल्डर्स का रवैया बन गया है.

बिल्डर्स एकतरफा अनुबंध कर लेते हैं और ग्राहकों का पैसा एक बार फंस जाने के बाद उन की पूरी तरह सुनना ही बंद कर देते हैं.

पर दोषी तो असल में सरकार है. सरकार ने ही पहल कर के आदत डाली है कि पहले आम उपयोग की चीजों की कमी पैदा करो. फिर सस्ते में बेचने का लालच दो और उस के बाद आधा या पूरा पैसा ले कर बैठ जाओ.

सरकार बड़े जोरशोर से कभी मकान निर्माण में कूदी थी पर देश भर में फैली सरकारनिर्मित कालोनियां गवाह हैं कि हर मकानमालिक मुसीबत का मारा है.

जहां सरकारी प्लौट, फ्लैट, मकान मिले, वे वर्षों बाद मिले. सड़कें बनी नहीं. सीवर कच्चे थे. आसपास झोंपड़पट्टियां उग आईं, जिन्हें हटाया नहीं गया. स्कूल बने नहीं. दुकानों का जंजाल बना डाला. बिजली कम मिली या ऐसे तारों से मिली जो रोज जल जाएं. ऊपर से हर कोई सरकारी पैसे ले कर भी गुल्ल. यह पाठ सरकार ने जम कर प्राइवेट बिल्डर्स को पढ़ाया.

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