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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : अल्फांसो ऐंड काफिरलाइम रिसोटो

अल्फांसो ऐंड काफिरलाइम रिसोटो

सामग्री

– 120 ग्राम पके रिसोटो चावल

– 15 ग्राम औलिव औयल

– 10 ग्राम प्याज बारीक कटा

– 10 ग्राम अदरक बारीक कटी

– 5 ग्राम अजवाइन

– 10 ग्राम पार्सले कटी

– 15 ग्राम आम के टुकड़े

– 20 ग्राम मैंगो पल्प

– 15 ग्राम काफिरलाइम कटा

– 5 ग्राम कालीमिर्च

– 10 ग्राम परमेसन चीज

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री गार्निशिंग की

– 5 ग्राम फ्राइड गिलास नूडल्स

– 5 ग्राम भुनी गाजर व मैंगो स्किन

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

विधि

पैन गरम कर के औलिव औयल डाल कर प्याज, अदरक व अजवाइन डालें और अच्छी तरह चलाएं. फिर इस में मैंगों पल्प, फ्रैश पार्सले और काफिरलाइम डालें. इसी दौरान इस में पके रिसोटो चावल और बाकी सारी चीजें डाल कर अच्छी तरह से मिक्स होने तक मिलाएं. फिर इस में आम के टुकड़े डाल कर थोड़ा और पकाएं. इस के बाद इस में नमक, कालीमिर्च पाउडर व परमेसन चीज डाल कर क्रीमी लुक आने तक पकने दें. फिर आंच से उतर कर गिलास नूडल्स, गाजर, मैंगो स्किन व धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : नोंगु पाल

नोंगु पाल

सामग्री

– 500 एमएल दूध

– 8 टुकड़े नोंगु (आइस ऐप्पल)

– 5 ग्राम बादाम कटे

– 40 ग्राम चीनी

– 2 ग्राम इलायची

– थोड़ा सा केसर.

विधि

दूध को अच्छी तरह उबाल कर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रखें. फिर उस में केसर डालें. अब आइस ऐप्पल के छिलके उतार कर पकी प्यूरी तैयार करें. जब दूध ठंडा हो जाए तो इस में आइस ऐप्पल की प्यूरी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब बचे आइस ऐप्पल के टुकड़ों को खीर में डालें और फिर केसर व बादाम के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

जे डे हत्याकांड : जेल से ही करा दी हत्या

2 मई, 2018 को बुधवार था. उस दिन मुंबई के मशहूर पत्रकार ज्योतिर्मय डे (जे. डे) हत्याकांड में सजा सुनाई जानी थी. यह केस विशेष मकोका अदालत के जस्टिस समीर अदकर की अदालत में चल रहा था और इस में माफिया डौन छोटा राजन सहित 11 आरोपी थे. मामला चूंकि एक वरिष्ठ पत्रकार और माफिया डौन से जुड़ा था, इसलिए फैसला सुनने के लिए अदालत में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकीलों और सभी आरोपियों सहित उन के घर वाले भी मौजूद थे.

जब सजा के लिए बहस शुरू हुई तो सरकारी वकील प्रदीप घरात ने अपनी दलील देते हुए अदालत से कहा, ‘‘योर औनर, ज्योतिर्मय डे की हत्या आम हत्या नहीं बल्कि यह एक दुर्लभतम मामला है, क्योंकि इस में माफिया सरगना ने एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या कराई. अगर इन अपराधियों को कड़ी सजा नहीं दी गई तो पत्रकारों के लिए काम करना कठिन हो जाएगा. पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है. लोकतंत्र की सफलता के लिए निर्भीक और स्वतंत्र पत्रकारिता जरूरी है.’’

सरकारी वकील प्रदीप घरात ने आगे कहा, ‘‘ज्योतिर्मय डे की बहन लीना बीमार रहती है. न कोई उस का इलाज कराने वाला है और न देखभाल करने वाला.’’

प्रदीप घरात ने इस मामले को दुर्लभतम बताने के बाद छोटा राजन सहित सभी दोषियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग की. दूसरी ओर बचावपक्ष ने दोषियों की उम्र, कुछ के छोटेछोटे बच्चे होने और कुछ के घर वालों की बीमारी का हवाला देते हुए उन के साथ नरमी बरतने की दलील दी.

इस सुनवाई में एक खास बात यह भी थी कि दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद छोटा राजन के लिए वीडियो कौन्फ्रैंसिंग की व्यवस्था की गई थी, ताकि वह अदालत की काररवाई और बहस को देख भी सके और जवाब भी दे सके.

बता दें कि जे. डे की 11 जून, 2011 को मुंबई के पवई में उस समय गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जब वह मोटरसाइकिल से घर जा रहे थे. छोटा राजन के इशारे पर जे. डे की हत्या के लिए सतीश कालिया ने 7 लोगों का गिरोह बना कर कार और बंदूकों का इंतजाम किया था. बाद में इन लोगों ने ही जे. डे की हत्या की थी. इन सभी पर हत्या की धारा 302, आपराधिक साजिश की धारा 120बी और सबूत नष्ट करने की धारा 204 और विभिन्न धाराओं के अलावा मकोका व शस्त्र कानून के तहत केस चल रहा था.

यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि छोटा राजन को नवंबर 2015 में सीबीआई द्वारा इंडोनेशिया के बाली से भारत लाया गया था. पिछले साल ही दिल्ली की एक अदालत ने छोटा राजन को फरजी पासपोर्ट मामले में 7 साल की सजा सुनाई थी. नवंबर, 2015 से ही वह तिहाड़ जेल में बंद था.

सजा पर बहस के बाद न्यायाधीश सतीश अदकर ने जे. डे की हत्या के मामले में 9 लोगों को दोषी करार दिया, जबकि 2 आरोपियों जिग्ना वोरा और जोसेफ को संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया.

जिग्ना पर आरोप था कि उन्होंने छोटा राजन से न केवल जे. डे की शिकायत की थी, बल्कि उन की मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट और उन के घर की सूचना भी उस तक पहुंचाई थी. उन पर यह भी आरोप था कि उन्होंने छोटा राजन को जे. डे के खिलाफ भड़काया था और इसी सिलसिले में जोसेफ के मोबाइल से इंडोनेशिया में बैठे छोटा राजन से बात की.

मकोका अदालत के फैसले के बारे में जानने से पहले जे. डे की हत्या की वजह जान लें. 25 नवंबर, 2011. शनिवार का दिन था. उस समय सुबह के लगभग 4 बजे थे. महानगर मुंबई के उपनगर घाटकोपर की सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ था. इक्कादुक्का वाहन उधर से गुजरते थे तो थोड़ी देर के लिए सन्नाटा टूट जाता था.

तभी मुंबई क्राइम ब्रांच की कई गाडि़यां तेजी से आईं और एक इमारत के नीचे खड़ी हो गईं. गाडि़यों से उतर कर कुछ पुलिस वाले नीचे खड़े हो गए और कुछ उस इमारत के एक फ्लैट में चले गए.

जिस फ्लैट में पुलिस गई थी, वह मुंबई के सुप्रसिद्ध अंगरेजी दैनिक एशियन एज की ब्यूरो प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार जिग्ना वोरा का था. पुलिस अफसरों ने जिग्ना वोरा से काफी देर तक पूछताछ की.

पुलिस ने उन के घर की तलाशी भी ली. पूछताछ और तलाशी के बाद उन लोगों ने जिग्ना का लैपटौप और मोबाइल अपने कब्जे में ले कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

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इस पुलिस काररवाई में मुंबई पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर अरूप पटनायक, जौइंट पुलिस कमिश्नर (क्राइम) दिवंगत हिमांशु राय, एडीशनल सीपी देवेन भारती, एसीपी अशोक दुराफे, क्राइम ब्रांच यूनिट 5 और 6 के वरिष्ठ इंसपेक्टर अरुण चव्हाण, श्रीपद काले, रमेश महाले और उन के सहायक शामिल थे.

इन लोगों ने जिग्ना वोरा की गिरफ्तारी मुंबई के बहुचर्चित वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय नेपियन कुमार उर्फ जे. डे हत्याकांड के सिलसिले में की थी. जे. डे सुप्रसिद्ध अंगरेजी और गुजराती अखबार दैनिक मिड डे के ब्यूरो प्रमुख और सहायक संपादक थे.

जिग्ना वोरा की गिरफ्तारी जे. डे हत्याकांड के एक प्रमुख गवाह के बयान और 5 महीनों की जांचपड़ताल के आधार पर की गई थी. पुलिस ने जिग्ना को जे. डे की हत्या और हत्या की साजिश रचने के आरोप में भादंवि की धारा 302,120बी, 34 और मकोका के अंतर्गत गिरफ्तार किया था. जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर के क्राइम ब्रांच के हैड औफिस लाया गया. पुलिस ने उन्हें उसी दिन मकोका अदालत में पेश कर के विस्तृत पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया.

मुंबई के अंगरेजी दैनिक मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या 11 जून, 2011 को लगभग 2 बजे मुंबई के पवई इलाके में उस समय हुई थी, जब वह घाटकोपर में रह रही अपनी मां और बहन से मिल कर मोटरसाइकिल से पवई स्थित अपने फ्लैट पर लौट रहे थे. उस दिन जे. डे जब हीरानंदानी गार्डन के पास पहुंचे, तभी कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मार कर उन की हत्या कर दी थी.

जे. डे मुंबई के मशहूर पत्रकार थे. यही वजह थी कि उन की हत्या होते ही यह खबर मुंबई भर में फैल गई. सूचना मिलते ही मुंबई पुलिस, क्राइम ब्रांच के अधिकारी और उन की टीमें घटनास्थल पर पहुंच गईं. हत्या चूंकि एक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार की हुई थी, इसलिए पुलिस ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया था. जे. डे की हत्या के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक, क्राइम ब्रांच सीआईडी के जौइंट पुलिस आयुक्त हिमांशु राय, एडीशनल सीपी देवेन भारती, डसीपी विश्वास राव नागरे और एसीपी अशोक दुराफे आदि सभी वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे थे.

वहां जे. डे की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी और उस के पास ही गोलियों से छलनी उन की लाश पड़ी थी. अधिकारियों ने अपनेअपने नजरिए से घटनास्थल का निरीक्षण किया. प्राथमिक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए जे. डे की लाश अस्पताल भेज दी गई.

उन की मोटरसाइकिल को भी पुलिस ने केस प्रौपर्टी बना कर अपने कब्जे में ले लिया. इस के साथ ही थाना पवई में जे. डे की हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर इस मामले की जांच की जिम्मेदारी पुलिस और क्राइम ब्रांच सीआईडी की यूनिट नंबर 5 और 6 के सीनियर इंसपेक्टर अरुण चव्हाण और श्रीपद काले को सौंपी गई.

इंसपेक्टर अरुण चव्हाण और श्रीपद काले ने पूरी जिम्मेदारी के साथ पत्रकार जे. डे हत्याकांड की जांच शुरू कर दी. लेकिन तात्कालिक रूप से उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. उन्होंने पत्रकार जे. डे का मोबाइल फोन, लैपटौप, डायरी, कंप्यूटर की हार्डडिस्क आदि चीजें अपने कब्जे में ले कर उन का निरीक्षण किया. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला.

जे. डे को मौत के घाट उतारने वालों की गिरफ्तारी न होने से पत्रकारों में रोष था. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटिल को एक ज्ञापन सौंपा, जिस में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की गई.

इस उलझी हुई जांच के दौरान जे. डे के एक मित्र पत्रकार ने इंसपेक्टर रमेश महाले को एक ऐसी बात बताई, जिसे जानने के बाद उन्हें उम्मीद की किरणें नजर आने लगीं. उस पत्रकार ने उन्हें बताया कि जे. डे की जेब हमेशा एकएक रुपए के सिक्कों से भरी रहती थी. उस ने यह भी बताया कि जे. डे कुछ खास तरह की खबरों के लिए अपने मोबाइल की जगह पीसीओ से फोन किया करते थे.

पुलिस इंसपेक्टर रमेश महाले ने उस पत्रकार की बातों को गंभीरता से लिया. उन्होंने पत्रकार जे. डे के घाटकोपर स्थित घर से ले कर पवई तक के रास्ते में पड़ने वाले उन सभी पीसीओ बूथों के काल डिटेल्स निकलवाए, जिन रास्तों से जे. डे का आनाजाना था. इन पीसीओ के काल रिकौर्ड्स में एक नंबर बारबार आ रहा था.

उस नंबर की जांच की गई तो यह नंबर अरुण डाके का निकला जो अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा राजन के लिए काम करता था. यह नंबर 3 जून से ले कर 11 जून तक के काल रिकौर्ड्स में मिला था.

पत्रकार जे. डे की हत्या में छोटा राजन का नाम जुड़ते ही क्राइम ब्रांच ने डाके पर शिकंजा कस दिया. जल्दी ही डाके को गिरफ्तार भी कर लिया गया.

अरुण डाके से पूछताछ की गई तो जे. डे हत्याकांड का खुलासा हो गया. उस के बयान के आधार पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने छोटा राजन के खास शूटर रोहित थंगप्पन जोसेफ उर्फ सतीश कालिया सहित जे. डे हत्याकांड से जुड़े 11 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन ये वे लोग थे, जिन्होंने जे. डे की रेकी कर के उन्हें मौत के घाट उतारा था. इन लोगों की जे. डे से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी. इस का मतलब जे. डे की हत्या की साजिश रचने वाला कोई और ही था.

गिरफ्तार किए गए लोगों से यह जरूर पता चल गया था कि जे. डे की हत्या माफिया डौन छोटा राजन के इशारे पर की गई थी. लेकिन इस की वजह साफ नजर नहीं आ रही थी. यह वजह जानने के लिए पुलिस ने छोटा राजन के उन सभी गुर्गों के फोन रिकौर्ड करने शुरू किए, जो किसी न किसी रूप में छोटा राजन से जुड़े थे.

पुलिस का यह प्रयास रंग लाया. अपने सभी गुर्गों को एकएक कर गिरफ्तार होते देख अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन बौखला गया था. पुलिस द्वारा अदालत में दी गई चार्जशीट के अनुसार, उस ने जे. डे की हत्या से जुड़े अपने एक गुर्गे विनोद असरानी उर्फ विनोद चेंबूर के भाई को फोन कर के वरिष्ठ पत्रकार जिग्ना वोरा को गाली देते हुए कहा कि इस औरत के भड़काने में आ कर मैं ने अपना एक दोस्त तो खो ही दिया, साथ ही अपने लिए एक बड़ी मुसीबत भी मोल ले ली है.

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यह बात क्राइम ब्रांच ने टेप करवा ली थी. चेंबूर में ही विनोद असरानी उर्फ विनोद चेंबूर का उमा पैलेस नाम से बीयर बार था, जहां जे. डे को बुला कर उन्हें उन लोगों से मिलवाया गया था, जो उन की हत्या करने वाले थे. इन लोगों में सतीश कालिया शामिल नहीं था, क्योंकि वह जे. डे को जानता था.

पुलिस अधिकारियों ने विनोद असरानी उर्फ चेंबूर के भाई को क्राइम ब्रांच बुला कर उस का बयान लिया. चार्जशीट के अनुसार, उस के बयान के आधार पर उसे सरकारी गवाह बना लिया गया. उस के बयान से ही जिग्ना वोरा का नाम सामने आया.

जे. डे की हत्या में शामिल सभी लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर के जेल भेजा जा चुका था. अब जिग्ना वोरा की बारी थी. चार्जशीट के हिसाब से जब छानबीन शुरू हुई तो पुलिस को जिग्ना के खिलाफ सबूत मिलने शुरू हो गए. अंतत: जे. डे की हत्या के लगभग 6 महीने बाद जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर लिया गया.

क्राइम ब्रांच अधिकारियों की जांचपड़ताल और जिग्ना वोरा के पुलिस को दिए बयान के अनुसार वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या की जो कहानी पता चली वह कुछ इस तरह थी—

जिग्ना जितेंद्र वोरा खूबसूरत और महत्त्वाकांक्षी महिला थीं. उन का जन्म एक प्रतिष्ठित और संभ्रांत परिवार में हुआ था. वह पढ़ाईलिखाई और बातचीत में काफी तेजतर्रार महिला थीं. उन्होंने मुंबई के एक सुप्रसिद्ध कालेज से बड़े अच्छे नंबरों से एलएलबी और एलएलएम किया था.

विवाह के बाद वह अपने पति जितेंद्र वोरा के साथ दुबई चली गई थीं. जितेंद्र वोरा का दुबई में कारोबार था. विवाह के कुछ दिनों बाद तक तो उन दोनों का दांपत्य जीवन बड़ी हंसीखुशी से बीता, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से दोनों के बीच दरार आ गई और फिर जल्दी ही तलाक हो गया.

पति से तलाक लेने के बाद जिग्ना मुंबई आ कर रहने लगीं. अलग होने के बाद जिग्ना के सामने भविष्य का सवाल था. सोचविचार कर उन्होंने अपने भविष्य को ध्यान में रख कर अपने कैरियर के लिए पत्रकारिता को चुना.

जिग्ना वोरा ने अपना शुरुआती कैरियर उसी मिड डे अखबार से शुरू किया था, जिस में जे. डे पहले से ही काम कर रहे थे. जे. डे उस अखबार के लिए क्राइम की खबरें कवर करते थे. जिग्ना वोरा के पास चूंकि एमए, एलएलबी की डिग्री थी, इसलिए मिड डे में उन का चयन अदालत और राजनीति की खबरों की कवरेज के लिए किया गया था. लेकिन जिग्ना वोरा यह बात अच्छी तरह जानती थीं कि जो बात क्राइम बीट की कवरेज में है, वह किसी अन्य बीट में नहीं है.

यही वजह थी कि जिग्ना वोरा के मन के किसी कोने में क्राइम की खबरों को कवर करने की लालसा दबी थी. वह चाहती थीं कि उन्हें क्राइम की खबरों को कवर करने का मौका दिया जाए. लेकिन उन का नेटवर्क ऐसा नहीं था कि वह क्राइम की खबरें कवर कर सकतीं. जे. डे से मदद की उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी. क्योंकि सही मायने में पत्रकार वही होता है जो दाएं हाथ की बात बाएं हाथ को पता न चलने दे.

जिग्ना वोरा की यह इच्छा तब पूरी हुई, जब वह मिड डे छोड़ कर एशियन ऐज अखबार में गईं. एशियन ऐज के संपादक हुसैन जैदी थे, जो पहले इसी अखबार में क्राइम ब्यूरो चीफ रह चुके थे. जैदी ने जिग्ना से कहा कि वह क्राइम की खबरें कवर करें. चूंकि जिग्ना स्वयं भी यही चाहती थीं, इसलिए उन्हें आसानी से क्राइम बीट मिल गई.

जिग्ना ने जब क्राइम बीट में काम करना शुरू किया तो जल्दी ही उन की जानपहचान छोटा राजन गिरोह के करीबी माने जाने वाले फरीद तानशा, विक्की मल्होत्रा और पाल्सन जोसेफ से हो गई.

मुंबई में क्राइम की खबरें कवर करने वाले पत्रकार पुलिस के उच्चाधिकारियों और अंडरवर्ल्ड सरगनाओं के बीच अपनी जगह बना कर रखते हैं और अपने इन संबंधों पर गर्व भी महसूस करते हैं. पुलिस द्वारा अदालत को दिए गए जांच रिकौर्ड के अनुसार, ऐसी ही लालसा जिग्ना वोरा के मन में भी थी. वह किसी भी तरह अंडरवर्ल्ड सरगनाओं के बीच पहुंचना चाहती थीं.

हालांकि जिग्ना वोरा फरीद तानशा, विक्की मल्होत्रा और जोसेफ पाल्सन को पिछले लगभग 3 सालों से जानती थीं और उन से बातें करती रहती थीं. फरीद तानशा से तो जिग्ना वोरा का घर जैसा रिश्ता बन गया था. वह उस के घर आतीजाती थीं और उस की दोनों पत्नियों को भाभीजान कहा करती थीं.

छोटा राजन गिरोह के लोगों से जिग्ना के भले ही संबंध बन गए थे, लेकिन छोटा राजन से उन की कभी बात नहीं हुई थी. जिग्ना वोरा में शायद इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि छोटा राजन से बात कर सकें. दरअसल वह इस बात को अच्छी तरह जानती थीं कि माफिया डौन से बातचीत करने में कहीं कुछ गड़बड़ हो गई, तो लेने के देने पड़ जाएंगे.

अदालत में पेश रिकौर्ड के अनुसार, जिग्ना वोरा अभी छोटा राजन तक पहुंचने का रास्ता खोज ही रही थीं कि एक दिन उन्होंने टीवी पर छोटा राजन का इंटरव्यू देखा. यह इंटरव्यू एक ऐसे पत्रकार ने लिया था, जो जिग्ना से कमतर और नया था.

इस से जिग्ना को लगा कि जब एक छोटा सा पत्रकार छोटा राजन तक पहुंच सकता है तो वह क्यों नहीं. उन्होंने मन ही मन सोचा कि जिन लोगों से वह मिलती हैं, अगर उन्हीं को माध्यम बना कर छोटा राजन तक पहुंचने की कोशिश करें तो यह काम मुश्किल नहीं होगा.

यह बात दिमाग में आने के बाद जिग्ना वोरा ने अपने मन की बात फरीद तानशा से कही. लेकिन फरीद तानशा उन्हें यह कह कर टालता रहा कि किसी दिन मौका देख कर छोटा राजन से उन की बात करा देगा. इसी बीच फरीद तानशा डी कंपनी के छोटा शकील से मिल गया. इस चक्कर में भरत नेपाली गिरोह ने उस की हत्या करवा दी थी.

फलस्वरूप छोटा राजन का इंटरव्यू जिग्ना के लिए एक सपना सा बन कर रह गया. अपने इस तथाकथित सपने को पूरा करने के लिए जिग्ना ने पाल्सन जोसेफ का सहारा लिया. इस के लिए वह पाल्सन जोसेफ पर दबाव डालने लगीं. पुलिस चार्जशीट के मुताबिक, जिग्ना वोरा के ज्यादा दबाव डालने पर आखिरकार पाल्सन जोसेफ ने उन का फोन नंबर अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन को दे कर अनुरोध किया कि वह जिग्ना से बात कर ले.

पाल्सन जोसेफ के नंबर देने के कुछ दिनों बाद जिग्ना वोरा के फोन पर छोटा राजन का फोन आ गया. इस के बाद अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन और जिग्ना वोरा के बीच बातचीत का सिलसिला जुड़ गया.

अदालत में दिए गए आरोपपत्र के अनुसार, जब अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन का पहला फोन आया था तो जिग्ना वोरा काफी खुश हुई थीं. इस के बाद वह छोटा राजन को अकसर फोन करने लगी थीं. बातचीत के दौरान वह माफिया डौन से अंडरवर्ल्ड के बदलते समीकरणों के बारे में पूछती रहती थीं. इस के अलावा वह छोटा राजन या मुंबई के दूसरे डौनों से संबंधित छपने वाली खबरों की सच्चाई जानने के लिए भी राजन से संपर्क करती रहती थीं.

बातचीत के दौरान जिग्ना वोरा अंगरेजी न जानने वाले छोटा राजन से जब तब छपी जे. डे की खबरों का न केवल जिक्र करती थीं, बल्कि उन खबरों का उसे विस्तार से अर्थ भी समझाया करती थीं.

पुलिस की चार्जशीट के अनुसार जिग्ना वोरा और जे. डे की रंजिश घटना के 2 साल पहले तब शुरू हुई थी, जब जिग्ना ने एक दिन जे. डे को अपने खास खबरी फरीद तानशा के साथ देख लिया था. इस से जिग्ना वोरा को यह वहम हो गया था कि जे. डे उन के संपर्कों को अपना बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि हकीकत यह थी कि फरीद तानशा जे. डे का पुराना खबरी था.

अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन के गिरोह में जे. डे की गहरी पैठ थी. जे. डे ने उस की कई खबरें छापी थीं. यहां तक कि छोटा राजन ने खुद ही जे. डे को अपने गिरोह के कई सदस्यों से मिलवाया भी था. कह सकते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब छोटा राजन और जे. डे के रिश्ते काफी मधुर हुआ करते थे.

लेकिन जिग्ना वोरा ने छोटा राजन के गिरोह के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए जे. डे और छोटा राजन के मधुर संबंधों को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई.

अदालत में पेश दस्तावेजों के अनुसार, वैसे तो जिग्ना वोरा काफी समय से छोटा राजन को जे. डे के खिलाफ भड़का रही थीं, लेकिन उन दोनों का मधुर रिश्ता तब और बिगड़ गया, जब जे. डे ने 28 अप्रैल से 5 मई, 2011 के बीच यूरोप और कई देशों में घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. जे. डे ने तय किया था कि अपने इस प्रोग्राम के दौरान वह छोटा राजन से मिलेंगे.

इस बीच बातचीत के बाद दोनों का लंदन में मिलना भी तय हो गया था. वजह यह थी कि जे. डे छोटा राजन पर एक किताब लिखना चाहते थे. लेकिन सब कुछ पहले से तय होने के बाद भी छोटा राजन जे. डे से मिलने लंदन नहीं गया. दरअसल जिग्ना वोरा ने छोटा राजन से बात कर के उस के मन में यह भय बैठा दिया था कि अगर वह लंदन गया तो उस की हत्या हो जाएगी. जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी.

जिग्ना को जे. डे के इस टुअर की जानकारी थी. बातचीत के दौरान छोटा राजन ने जब जिग्ना से जे. डे के लंदन और कई देशों के टुअर का जिक्र किया तो उन्होंने ऐसा जाहिर किया जैसे उन्हें जे. डे के इस टुअर के बारे में बहुत पहले से जानकारी है.

बातोंबातों में उन्होंने छोटा राजन को बताया कि जे. डे ड्रग माफिया इकबाल मिर्ची से मिला हुआ है और इकबाल मिर्ची उस की हत्या करना चाहता है. जिग्ना ने छोटा राजन को यह भी बताया कि यह जे. डे और इकबाल मिर्ची की मिलीभगत है.

जिग्ना की बातों से छोटा राजन के मन में डर बैठ गया और वह जे. डे से मिलने लंदन नहीं गया. जे. डे चूंकि छोटा राजन के विश्वास पात्र थे. इसलिए यह बात जान कर राजन को बहुत दुख हुआ. वह जे. डे से नाराज हो गया. बस यहीं से राजन और जे. डे के बीच दरार आ गई. यह दरार तब और गहरी हो गई जब जे. डे ने लंदन से लौट कर अपने अखबार में यह खबर छापी कि दाऊद पाकिस्तान छोड़ कर दुबई भाग गया है. इस के बाद जिग्ना वोरा ने लादेन की मौत के बाद राजन से दाऊद की लोकेशन का इंटरव्यू झटक लिया था.

बस यहीं से राजन को ले कर जे. डे और जिग्ना वोरा की कलम की लड़ाई शुरू हो गई. अपने विदेश के टुअर से लौटने के बाद तो जे. डे ने जैसे राजन पर हमला ही बोल दिया था. 30 मई, 2011 को जे. डे ने अपने लेख में लिखा कि डौन छोटा राजन को अब तीर्थयात्रा पर चले जाना चाहिए. दूसरा लेख जे. डे ने 2 जून, 2011 को लिखा कि राजन अब बूढ़ा हो गया है. जिग्ना वोरा ने इन दोनों लेखों की कटिंग छोटा राजन को भेज दीं. इस से राजन बौखला गया. उसे सब से अधिक गुस्सा 2 जून को छपी खबर ‘राजन बूढ़ा हो गया’ पर आया था. अदालत में पेश आरोपपत्र के अनुसार, उस ने जे. डे को सबक सिखाने के लिए जिग्ना वोरा से उन के घर और औफिस का पता मांगा.

जिग्ना वोरा घाटकोपर में जहां रहती थीं, वहां से जे. डे का घर दूर नहीं था. इसलिए उन्होंने जे. डे के घर और उन की मोटरसाइकिल का नंबर छोटा राजन को दे दिया. जे. डे का पताठिकाना पाने के बाद छोटा राजन ने अपने आदमियों को उन की रेकी कर के उन का गेम करने का आदेश दे दिया.

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इसी बीच जिग्ना वोरा अपने औफिस से 10 दिन की छुट्टी ले कर बाहर चली गईं. जे डे की हत्या की खबर उन्हें तब मिली जब वह कोलकाता में थीं. लेकिन जिग्ना वोरा ने इस खबर को कोई महत्त्व नहीं दिया और वह वहां से सिक्किम चली गईं.

जे. डे की हत्या को ले कर मुंबई के सभी पत्रकारों ने अपनेअपने अखबारों में खबरें लिखीं, साथ ही खूब शोरशराबा भी किया. लेकिन एक बड़े अखबार की संवाददाता होते हुए भी जिग्ना ने जे. डे की हत्या से संबंधित न तो कोई खबर लिखी और न किसी पुलिस अधिकारी से संपर्क किया.

10 दिन बाद टुअर से लौट कर वह अपने औफिस गईं और उन्होंने क्राइम ब्रांच की जांच को गुमराह करने के लिए ड्रग माफिया इकबाल मिर्ची पर संदेह जाहिर करते हुए जे. डे की हत्या की खबर छापी. लेकिन यह खबर उन के लिए उलटी पड़ी. इस से जांच अधिकारियों का ध्यान उन पर जम गया. लेकिन इसी बीच जे. डे के हत्यारों की गिरफ्तारी शुरू हो चुकी थी, जिस की वजह से पुलिस का ध्यान जिग्ना वोरा की तरफ से हट गया था.

जिग्ना वोरा यह जान चुकी थीं कि उन की गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है. इसलिए वह अपने खिलाफ सभी सबूतों को मिटाने में जुट गईं.

लेकिन फिर भी जांच अधिकारियों ने कुछ सबूत जुटा कर जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर लिया. विस्तृत पूछताछ के बाद जिग्ना वोरा को जे. डे हत्याकांड का प्रमुख आरोपी बनाया और अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. जिग्ना पर पुलिस ने मकोका भी लगाया.

मुंबई क्राइम ब्रांच ने 7 जुलाई, 2011 को इस केस के आरोपियों पर महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) लगाया. लंबी जांच के बाद क्राइम ब्रांच ने राजेंद्र सदाशिव निखलजे उर्फ छोटा राजन और नारायण सिंह बिष्ट, जो कि फरार था, के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की. इस के बाद क्राइम ब्रांच ने 3 दिसंबर, 2011 को अदालत को जिग्ना वोरा के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट सौंपी. जुलाई, 2012 में जिग्ना वोरा को जमानत मिल गई.

केस के चलते 10 अप्रैल, 2012 को लंबी बीमारी के बाद जेल में ही एक आरोपी असरानी की मौत हो गई. करीब 5 साल बाद 8 जून, 2015 को अदालत ने 22 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 302, 120बी, 34, आर्म्स एक्ट और मकोका के अंतर्गत चार्ज फ्रेम किया.

25 अक्तूबर, 2015 को इस केस के मुख्य अभियुक्त छोटा राजन को सीबीआई ने इंडोनेशिया के बाली से अरेस्ट किया और भारत ले आई, लेकिन उसे अन्य केसों की वजह से लाया गया था. हालांकि बाद में 5 जनवरी, 2016 को जे. डे मर्डर केस भी सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था. 31 अगस्त, 2017 को विशेष मकोका अदालत ने छोटा राजन के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया.

 

लंबी चली सुनवाई और बहस के बाद 22 फरवरी, 2018 को अभियोजन पक्ष ने इस केस में अपनी बहस पूरी की. बाद में 2 अप्रैल, 2018 को मकोका कोर्ट ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए सीआरपीसी की धारा 313 के अंतर्गत तिहाड़ जेल में बंद छोटा राजन का फाइनल स्टेटमेंट दर्ज किया. 3 अप्रैल, 2018 को बचावपक्ष ने अपनी अंतिम बहस पूरी की. उसी दिन जस्टिस समीर अदकर ने 2 मई, 2018 को इस केस का फैसला सुनाने की घोषणा की.

2 मई, 2018 को जस्टिस समीर अदकर ने खचाखच भरी अदालत में अपना फैसला सुनाया. उन्होंने इस केस में दोषी ठहराए गए छोटा राजन, सतीश कालिया, अनिल बाघमोड, अभिजीत शिंदे, निलेश शिंदे, अरुण डाके, मंगेश अगवाने, सचिन गायकवाड़ और दीपक सिसौदिया को आजन्म कारावास की सजा सुनाई. साथ ही सभी पर 26-26 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया.

जस्टिस समीर अदकर ने सबूतों के अभाव में जिग्ना वेरा और जोसेफ पाल्सन को संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया. साथ ही अदालत ने जे. डे की बहन लीना को 5 लाख रुपए देने का भी आदेश दिया ताकि वह अपना इलाज करा सकें. सजा सुनाते समय न्यायाधीश ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए जब छोटा राजन से पूछा कि कुछ कहना चाहते हो तो उस ने बस इतना ही कहा, ‘ठीक है.’?

जब प्यार हुआ हाईजैक : एकतरफा प्यार की कहानी

20 जनवरी, 2018 की बात है. मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के थाना आष्टा के थानाप्रभारी बी.डी. वीरा थाने में बैठे पुराने मामलों की फाइल देख रहे थे, तभी उन्हें इलाके के समरदा गांव के पास मिट्टी की खदान में किसी युवक की लाश पड़ी होने की खबर मिली.

मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने उसी समय घटना की जानकारी अपने एसडीओपी और एसपी को दे दी और खुद अपनी टीम के साथ मौके लिए रवाना हो गए. समरदा गांव के पास स्थित मिट्टी की वह खदान कुछ दिनों से बंद पड़ी थी.

थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो वहां एक युवक की लाश मिली. उस युवक की उम्र यही कोई 20 साल थी. उस का सिर कुचला हुआ था. वहीं पर खून लगा पत्थर पड़ा था. लग रहा था कि शायद उसी पत्थर से उस की हत्या की गई थी. वहीं पर बीयर की खाली बोतलें भी पड़ी थीं.

मौके के हालात देख कर थानाप्रभारी यह भी समझ गए कि उस की हत्या किसी दोस्त ने ही की होगी. बहरहाल, पहली जरूरत लाश की पहचान की थी. पुलिस ने थोड़ा प्रयास किया तो लाश की पहचान भी हो गई. पता चला कि मृतक का नाम रितिक मेहता था और वह आष्टा में राठौर मंदिर के पास रहता था.

खबर मिलने पर रितिक के घर वाले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने बताया कि रितिक 19 जनवरी की सुबह लगभग 10 बजे अपने दोस्त क्लिंटन उर्फ लखन मालवीय के साथ कालेज जाने को बोल कर निकला था, जिस के बाद वह घर वापस नहीं आया.

संदेह के दायरे में आया लखन

थानाप्रभारी को पहले ही मामले में यारीदोस्ती के बीच हुई हत्या का शक था. घर वालों से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. साथ ही थाने में हत्या का केस भी दर्ज करवा दिया गया.

चूंकि रितिक लखन के साथ गया था, इसलिए थानाप्रभारी ने तत्काल एकटीम लखन के घर बरखेड़ा गांव भेज दी. लेकिन लखन घर पर नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई जानकारी मिली. इस से पुलिस का शक लखन पर और भी गहरा गया. लिहाजा पुलिस टीम संभावित जगहों पर लखन को तलाशने लगी.

थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के निर्देश पर पुलिस की दूसरी टीम आष्टा से समरदा खदान के बीच रास्ते में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज जमा करने, लखन और मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स तथा उन की लोकेशन निकालने के काम में जुट गई.

इस छानबीन में पुलिस ने पाया कि लखन 19 जनवरी को रितिक को उस के घर के बाहर से अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर शराब की दुकान पर गया था. शराब की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे में लखन बीयर खरीदते दिख गया. उस के मोबाइल की लोकेशन भी समरदा में उसी समय पर पाई गई, जिस समय रितिक का मोबाइल स्विच्ड औफ हुआ था.

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अब आष्टा थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के सामने आरोपी की तसवीर साफ हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने टीम के साथ अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया. इस का नतीजा यह निकला कि 2 दिन बाद ही लखन मालवीय पुलिस के हाथ लग गया.

पकडे़ जाने पर पहले तो वह अपने आप को बेकसूर बताता रहा, लेकिन जब थानाप्रभारी ने उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की तो वह अपने ही बयानों में उलझने लगा. जिस के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही रितिक की हत्या की थी. उस ने मृतक का मोबाइल फोन और पर्स भी बरामद करा दिया.

अपने भाई की जिस मोटरसाइकिल पर वह रितिक को बैठा कर ले गया था, वह भी पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद लखन ने अपने दोस्त की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह प्यार को हाईजैक करने वाली कहानी थी—

साल भर पहले रितिक मेहता  और लखन मालवीय स्थानीय मौडल स्कूल में एक साथ पढ़ते थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. दोनों ही एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. जब वे 10वीं कक्षा में थे, उस समय लखन का दिल साथ में पढ़ने वाली एक खूबसूरत लड़की बीना पर आ गया था. लखन ने यह बात अपने दोस्त रितिक को बताई. रितिक ने दोनों की प्रेमकहानी को आगे बढ़वाने में काफी मदद की.

लखन और बीना की प्रेम कहानी शुरू हो गई, जिस में रितिक उन दोनों की पूरी मदद करता था, इसलिए बीना की रितिक से भी अच्छी बनती थी. रितिक दोनों के एकांत में मिलने की व्यवस्था के साथसाथ उस दौरान उन की चौकीदारी भी करता था.

बताया जाता है कि कई बार तो स्कूल में खाली पड़े क्लासरूम में लखन और उस की प्रेमिका के मिलन कार्यक्रम के दौरान रितिक क्लास के बाहर खड़े हो कर पहरेदारी करता था. इसी बीच रितिक भी बीना को एकतरफा चाहने लगा था. पर उस ने अपनी चाहत कभी जाहिर नहीं होने दी. रितिक ने अपने जन्मदिन पर दोस्त लखन और उस की प्रेमिका बीना को भी बुलाया था. तब बीना ने रितिक से कहा, ‘‘रितिक, तुम हमारे लिए कितना करते हो, क्या स्कूल में कोई लड़की तुम्हारी दोस्त नहीं है?’’

‘‘नहीं, मैं ने किसी लड़की को अभी तक दोस्त नहीं बनाया.’’ रितिक बोला.

‘‘रितिक, इस स्कूल में जो भी लड़की तुम्हें पसंद हो, तुम मुझे बता दो. उस से मैं तुम्हारी दोस्ती करा दूंगी.’’ बीना ने विश्वास दिलाते हुए कहा.

एक लड़की 2 दीवाने

एकतरफा ही सही, रितिक को बीना पसंद थी. भला यह बात वह उसे कैसे बता सकता था. अगर वह अपने मन की बात उसे बता देता तो उस के दोस्त लखन का दिल टूट जाता. लिहाजा उस ने अपने दिल की बात उसे नहीं बताई.

बहरहाल, लखन और बीना की प्रेम कहानी और रितिक की उन से दोस्ती लगातार चलती रही. लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि प्रेम कहानी वाली दोस्ती एक दिन 3 में से एक दोस्त की हत्या का कारण बनेगी. कहानी में मोड़ उस समय आया, जब 12वीं की परीक्षा में बीना और रितिक तो पास हो गए, लेकिन लखन फेल हो गया.

इस से त्रिकोण का एक कोण पीछे रह गया जबकि रितिक और बीना ने एक स्थानीय कालेज में एडमिशन ले लिया. अब रितिक और बीना की मुलाकातें कालेज में ही होने लगीं. जबकि लखन का रितिक से तो बराबर मिलनाजुलना बना रहा, पर बीना से वह नहीं मिल पाता था.

प्यार भले ही एकतरफा हो, उस की तड़प दीदार के लिए बेचैन करती है. यही लखन के साथ हुआ. वह बीना से मिलने के लिए उस के कालेज के चक्कर लगाने लगा. लेकिन यह रोजरोज संभव नहीं था. इधर लखन की गैरमौजूदगी में बीना और रितिक की दोस्ती कुछ ज्यादा ही गहराने लगी.

बीना के प्रति उस के दिल में जो प्यार दबा हुआ था, वह अंगड़ाइयां लेने लगा. पर बीना तो अब भी लखन को चाहती थी और उस के बारे में अकसर रितिक से बातें भी करती रहती थी.

जबकि रितिक चाहता था कि किसी तरह बीना के दिल में लखन के प्रति नफरत पैदा हो जाए. जब वह उस से बात करनी बंद कर देगी तो वह बीना पर अपना प्रभाव जमाना शुरू कर देगा. इस के लिए रितिक ने योजनाबद्ध तरीके से बीना से लखन की बुराइयां करनी शुरू कर दीं. वह कहता कि लखन शराब पीता है, दूसरी लड़कियों पर भी नजर रखता है.

ये सब बातें सुन कर बीना को लखन से नफरत हो गई. उस के दिमाग में लखन की जो छवि बनी हुई थी, वह बदल गई. वह सोचने लगी कि लखन भी आम लड़कों की तरह ही है. उस ने लखन से मिलना तो दूर, फोन पर बात करनी भी बंद कर दी. रितिक इस से बहुत खुश हुआ. उस ने इस नाराजगी का फायदा उठाते हुए बीना से नजदीकियां बढ़ा लीं. धीरेधीरे वह रितिक को इतना चाहने लगी कि उस ने लखन से एक तरह से किनारा कर लिया.

नफरत के बीजों की फसल

लखन हमेशा की तरह रितिक से मिलने के बहाने कालेज आ कर बीना से मिलने की कोशिश करता तो रितिक भी कोई न कोई बहाना बना देता. यानी रितिक ने लखन से भी मिलना बंद कर दिया. रितिक से नजदीकी बन जाने के बाद बीना ने उस से फोन पर भी बात करनी बंद कर दी थी.

लखन कोई दूध पीता बच्चा तो था नहीं, सो धीरेधीरे उस की समझ में आने लगा कि बीना और रितिक दोनों बदल गए हैं. इस से उसे शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं, उस की गैरमौजूदगी में दोनों के अवैध संबंध बन गए हों. कालेज में कई ऐसे लड़के पढ़ते थे, जो 12वीं कक्षा में लखन के साथ पढ़े थे. इसलिए लखन ने कुछ लड़कों से मिल कर सच्चाई का पता लगाया तो उसे जल्द ही यह बात पता चल गई कि रितिक ने उस के प्यार को हाईजैक कर लिया है.

लखन को इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि बीना के साथसाथ रितिक भी उस के साथ इतना बड़ा धोखा करेगा. इस के लिए वह रितिक को ही कसूरवार मानने लगा. उस ने सोचा कि रितिक ने ही उस की प्रेमिका को बरगलाया होगा. इसलिए उस ने रितिक से ऐसा बदला लेने की सोची, जिस की रितिक और बीना ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

बन गई हत्या की योजना

आष्टा थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के अनुसार, लखन गुस्से में था. उस ने रितिक की हत्या कर के उसे हमेशा के लिए अपने और बीना के बीच से हटाने की योजना बना ली. इस योजना के तहत 19 जनवरी, 2018 को रितिक को बीयर पिलाने का लालच दे कर वह उसे अपने साथ समरदा खदान पर ले गया. समरदा में लखन की बहन की शादी हुई थी, इसलिए वह उधर के सुनसान इलाकों के बारे में जानता था.

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लखन की चाल को रितिक समझ नहीं सका था, इसलिए वह उस के साथ आसानी से समरदा खदान की तरफ चला गया. खदान में बैठ कर दोनों ने बीयर पी, जिस के बाद नशा हो जाने पर लखन ने रितिक के साथ अपनी प्रेमिका बीना को ले कर विवाद करना शुरू कर दिया.

चूंकि रितिक को बीयर का नशा चढ़ गया था, इसलिए वह वहीं खदान में लेट गया. मौका देख कर लखन ने पास पड़े भारी पत्थर से कई वार कर के उस का सिर कुचल कर हत्या कर दी. इस के बाद वह उस का पर्स और मोबाइल ले कर वहां से भाग गया. बाद में उस ने सिमकार्ड तोड़ने के बाद रितिक का मोबाइल फोन पौलीथिन में रख कर अपने खेत में गाड़ दिया, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया.

लखन मालवीय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

बीवी या बौस : लव मैरिज करने का कुछ ऐसा रहा परिणाम

मैंने अपनी जिद पर लव मैरिज की थी, इसीलिए विदाई के वक्त ससुरजी ने कहा था, ‘‘जमाई बाबू, अभी तो मैं अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन आप के प्यार के आगे मुझे झुकना पड़ा. खैर, बेटी को मैं ने अच्छे संस्कार दिए हैं, इसलिए आप की जिंदगी की बगिया हमेशा गुलजार रहेगी.’’

मैं ने ससुरजी के चरण छू कर कहा था, ‘‘जब तक मेरी इन बाजुओं में दम है, आप की बेटी राज करेगी.’’

और इस तरह बिना एक फूटी कौड़ी दिए ससुर साहब ने अपनी सुपुत्री मुझे सौंप दी और मैं अपनी बीवी को ले कर दिल्ली की एक बस्ती में आ गया.

जब मेरी मासूम सी बीवी ने मेरे घर में पहला कदम रखा था, तो मैं बहुत खुश हुआ था. सोचा था कि अब मुझे कष्ट नहीं होगा. समय पर नाश्ताखाना मिलेगा. जब दफ्तर से लौट कर आऊंगा तो बीवी मुझे प्यार करेगी. लेकिन मेरे सपने धरे के धरे रह गए.

एक दिन मैं ने दफ्तर से लौटते समय अपनी बीवी को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘कुछ नहीं, लेकिन आप कब आ रहे हैं?’ उधर से आवाज आई.

मुझे बहुत भूख लगी थी. मैं ने सोचा कि वह खाना बना कर रखेगी, इसीलिए मेरे आने के बारे में पूछ रही है. मैं ने कहा, ‘‘प्रिये, कुछ लजीज खाना बनाओ. मैं दफ्तर से निकल रहा हूं. एक घंटे में पहुंच जाऊंगा.’’

‘ठीक है,’ वह बोली.

मैं रास्तेभर गाना गुनगुनाते हुए घर पहुंचा. मैं खुश था कि घर पहुंचते ही गरमागरम लजीज खाना मिलेगा. मैं ने घंटी बजा दी लेकिन दरवाजा नहीं खुला. फिर 1-2 बार बजा कर इंतजार किया. फिर भी दरवाजा नहीं खुला तो कई बार घंटी बजाई. तब जा कर दरवाजा खुला.

‘‘क्यों, क्या हो गया? देर क्यों हुई दरवाजा खोलने में,’’ मैं ने पूछा.

वह अपने चेहरे पर लटक रहे बालों को समटते हुए बोली, ‘‘कुछ नहीं, जरा आंख लग गई थी.’’

घर का सामान सुबह जिस हालत में था वैसे ही अभी भी पड़ा था. सुबह जिस प्लेट में मैं ने नाश्ता किया था वह वैसे ही जूठी डाइनिंग टेबल पर पड़ी थी. धोने के लिए गंदे कपड़ों का ढेर एक कोने में मुंह चिढ़ा रहा था. फर्श पर धूल की परत थी. रसोईघर में जूठे बरतनों का ढेर लगा था.

लजीज खाना खाने का मेरा सपना चकनाचूर हो गया था. वह मासूमियत से हुस्न के हथियार के साथ अनमने ढंग से मुझे देख रही थी. मैं खून का घूंट पी कर रह गया.

कुछ दिनों के बाद एक सुबह मैं दफ्तर के लिए निकल रहा था, तो वह बोली, ‘‘सुनिएजी, मेरे मोबाइल फोन में बैलेंस खत्म हो गया है. बैलेंस डलवा दीजिएगा.’’

मैं ने चौंक कर कहा, ‘‘बैलेंस कैसे खत्म हो गया… कल ही तो 2 सौ रुपए का रीचार्ज कराया था?’’

‘‘कल मैं ने मम्मीपापा से बात की थी और बूआ से भी बात की थी…

2-3 सहेलियों से भी बात की थी…’’ वह थोड़ा अटकते हुए बोली.

‘‘तो इतनी ज्यादा बात करने की क्या जरूरत थी? सिर्फ हालचाल पूछ लेती और बात खत्म कर देती,’’ मैं ने कहा.

‘‘हालचाल ही तो पूछा था,’’ वह बोली.

मुझे दफ्तर के लिए देर हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है, बैलेंस डलवा दूंगा,’’ कह कर मैं घर से निकल गया. मेरे सपनों का महल टूटता जा रहा था.

इसी बीच उसे एक नया शौक सूझा. अब वह टैलीविजन का रिमोट हाथ में लिए सीरियल देखती रहती थी. कुछ कहता तो भी सीरियल में ही खोई रहती. जोर से बोलने पर वह मेरी तरफ देख कर पूछती, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘दफ्तर से थकाहारा आया हूं. पानी और नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती और कहती हो कि क्या हुआ…’’

‘‘अच्छा, अभी 5 मिनट में लाती हूं. सीरियल अब खत्म होने ही वाला है,’’ टैलीविजन पर से आंखें हटाए बिना वह जवाब देती.

उस के वे 5 मिनट कभी खत्म नहीं होते. मजबूरन मैं खुद ही रसोईघर में जा कर कुछ खाने को ले आता. खुद भी खाता और अपनी बीवी को भी खिलाता.

महीनों सीरियल प्रेम दिखाने के बाद मेरी बीवी का पासपड़ोस की औरतों के घरों में आनेजाने और गपबाजी का दौर शुरू हुआ.

मैं दफ्तर से आ कर दरवाजे की घंटी बजाता रहता लेकिन दरवाजा नहीं खुलता. जब फोन करता तो पता चलता कि वह किसी पड़ोसन के घर बैठी है.

जल्द ही मेरी बीवी का पड़ोसन के घरों में जाने का साइड इफैक्ट भी शुरू हो गया. दूसरों के घरों में कुछ नई और अच्छी चीजें देख कर आती और मुझे भी वे चीजें लाने को कहती. कुछ तो अपनी जरूरत और पैसे की सीमा को देखते हुए मैं ले भी आया लेकिन अकसर ऐसी डिमांड होने लगी.

कुछ मेरी चादर से बाहर होता तो मैं मना कर देता. वह मुंह फुला कर बैठ जाती. खाना जैसेतैसे बना कर लाती, जो खाया न जाता.

एक दिन मैं ने उसे समझाया, ‘‘प्रिये, सब की जरूरत और औकात अलग होती है और उसी के मुताबिक सब काम करते हैं. दूसरों को देख कर हमें परेशान नहीं होना चाहिए.’’

‘‘हां, मेरी किस्मत ही खराब है, तभी तो सारी अच्छी चीजें दूसरों के घर देखती हूं. अपने घर में नसीब कहां?’’ वह बुझी आवाज में बोली.

‘‘निराश क्यों होती हो? समय आने पर हमारे यहां भी सबकुछ हो जाएगा. सब एक दिन में तो अमीर नहीं हो जाते. इस में समय लगता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं बोझ हो गई थी, इसीलिए मेरे मम्मीपापा ने जल्दी मेरी शादी करा दी,’’ यह कहते ही उस की आंखों से आंसू टपकने लगे.

‘‘लेकिन यह शादी तो हम दोनों के बीच प्यार होने के चलते हुई थी.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं नादान थी, लेकिन मेरे मम्मीपापा को तो अक्ल थी. मुझे बोझ समझ कर उन्होंने मेरा निबटारा कर दिया.’’

‘‘खैर, देर से शादी होती तो क्या कोई टाटा, बिरला या मुकेश अंबानी का बेटा आ जाता रिश्ता ले कर?’’ गुस्से में मेरे मुंह से निकला.

‘‘कोई भी आता लेकिन आप से अच्छा आता,’’ उस ने जवाब दिया.

मैं ने चुप रह जाना ही ठीक समझा.

रविवार का दिन था. मैं ने सोचा कि आज आराम करूंगा. रोज अपने दफ्तर में बौस की और्डरबाजी से परेशान रहता हूं. कम से कम आज तो आराम कर लूं.

मैं ने बीवी से कहा, ‘‘जानेमन, आज कुछ अच्छा खाना बनाओ ताकि खा कर मजा आ जाए. मैं आज टैलीविजन पर फिल्म देखूंगा और आराम करूंगा.’’

लेकिन मेरी बीवी का खयाल कुछ और ही था. वह बोली, ‘‘चलिए न आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं और होटल में खाना खाते हैं.’’

मैं ने घबरा कर कहा, ‘‘कहां घूमने चलेंगे? कोई अच्छी जगह नहीं है. भीड़भाड़ और गाडि़यों के जाम में ही फंसे रहे जाते हैं और होटल का खाना तो ऐसा होता है कि खाने के बाद पछतावा होने लगता है कि क्यों खाया.

‘‘खाने का कोई स्वाद नहीं होता. सिर्फ ज्यादा पैसे और टिप दो. शाम को हैरानपरेशान हो कर घर लौटो.’’

‘‘आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हैं. शादी के बाद हनीमून पर भी बाहर नहीं ले गए,’’ वह बिस्तर पर लेट कर आंसू बहाने लगी.

छुट्टी का मजा खराब हो चुका था. मैं खुद रसोईघर में जा कर कुछ स्वादिष्ठ खाना बनाने की कोशिश करने लगा.

एक बार पड़ोस में शादी थी. मुझे भी सपरिवार न्योता मिला था. दफ्तर से आ कर मैं ने अपनी बीवी से कहा, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ. सब इंतजार कर रहे होंगे.’’

लेकिन बहुत देर बाद भी वह अपने कमरे से बाहर न निकली. मैं कमरे में गया तो देखा कि वह तकिए में मुंह छिपा कर रो रही थी.

‘‘अरे, क्या बात हो गई… रो क्यों रही हो?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

वह कुछ न बोली. मैं ने जबरदस्ती उसे खींच कर बैठाया और फिर वजह पूछी.

‘‘न्योते में जाने लायक मेरे पास कपड़े नहीं हैं. मैं क्या पहन कर जाऊंगी?’’ वह सुबकते हुए बोली.

मैं हैरान रह गया. मैं रोज दफ्तर आताजाता हूं. लेकिन मेरे पास सिर्फ 2 जोड़ी ढंग के कपड़े थे, जबकि मेरी बीवी के पास कई जोड़ी कपड़े थे. 2 महीने पहले भी उस ने एक सूट खरीदा था, फिर भी वह रो रही थी.

मैं ने अलमारी में से उस के कई कपड़े निकाले और उस के आगे फैलाते हुए कहा, ‘‘ये सारे तो नए सूट हैं, फिर क्यों रो रही हो?’’

‘‘ये सब तो मैं पहले पहन चुकी हूं,’’ वह मुंह फेर कर बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? जो कपड़ा एक बार पहन लिया, वह पुराना हो गया क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘ये कपड़े पहने हुए मुझे सब औरतें देख चुकी हैं.’’

‘‘मतलब, हर मौके लिए तुम्हें नए कपड़े चाहिए?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘कोई कपड़े से बड़ा या छोटा नहीं होता. देखो तो, यह सूट कितना अच्छा है. तुम पहन कर तो देखो. जो इस सूट में तुम्हें देखेगा, तारीफ करेगा,’’ मैं ने पुचकारते हुए कहा.

उस दिन मैं बड़ी मुश्किल से अपनी बीवी को मना पाया था. लेकिन अब मेरी सीधीशांत दिखने वाली बीवी बातबात पर गुस्सा करने लगी थी. सीरियल देखने से मना

करता तो रिमोट पटक देती. पासपड़ोस में ज्यादा जाने से मना करता तो गुस्से में अपने को कमरे बंद कर लेती.

फोन पर ज्यादा बात करने से मना करता तो कई दिन तक मोबाइल फोन नहीं छूती. इतना ही नहीं, अगर मैं उस के बने खाने की शिकायत करता तो मुझे पर ही चीखने लगती और खाना बनाना छोड़ देती.

मैं तंग आ गया था. सोचता कि शादी से पहले कितनी सीधी और प्यारी थी मेरी बीवी, पर अब तो ज्वालामुखी बन गई है और गुस्सा तो जैसे इस की नाक पर बैठा रहता है.

दफ्तर में मेरा बौस काम में कमी निकाल कर मुझ पर बातबात पर गुस्सा करता था. लेकिन नौकरी तो करनी ही थी, उसी से घर का गुजारा चलता था, इसीलिए बौस का गुस्सा सहना पड़ता था.

घर आता तो बीवी भी मुझ पर ही बातबात पर गुस्सा करती. समझ में नहीं आता कि वह मेरी बीवी है या बौस.

मेरी बीवी और मेरे बौस ने मेरी जिंदगी दूभर कर दी थी. पता नहीं, इन दोनों के चक्रव्यूह से मैं कभी निकल पाऊंगा भी या नहीं.

पुरातनपंथी सोच को मूक समर्थन

अगर गाय आप का खेत चरने लगे तो खेत को नष्ट करोगे या गाय को मार भगाओगे? बलात्कार के मामले में धर्मप्रचारकों का कहना है कि बलात्कारी तो गायों की तरह पूजनीय हैं, जिन्हें न पकड़ा जा सकता है और न ही मारा. उन्होंने चर लिया तो गलती किसान की है कि उस ने खेत बोया या बिना पहरेदारी के छोड़ दिया. बलात्कारियों को सब से बड़ा बल धर्म के उन पैरोकारों से मिलता है, जो समयसमय पर कहते रहते हैं कि बलात्कारों के लिए औरतें जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे भड़काऊ पोशाकें पहनती हैं.

आजकल बलात्कार होते हुए बहुत से भारतीय वीडियो सोशल मीडिया में घूम रहे हैं और उन में आमतौर पर जबरन जोरआजमाइश उन लड़कियों से होती दिखती है, जो गांवों की हैं, खेतों में से गुजर रही हैं और बदन पर पूरे कपड़े पहने हुए हैं. इसी तरह भगवा दुपट्टा पहने उन लड़कों के भी वीडियो सोशल मीडिया में खूब चल रहे हैं, जो नैतिकता थोपने के बहाने जोड़ों पर हमला कर रहे हैं. इन में भी लड़कियों की पोशाकें भड़काऊ नहीं हैं. दोनों तरह के वीडियोज में एक समानता यह है कि कानून हाथ में लेने वाले एक तरह का सा व्यवहार कर रहे हैं. 2-4 लड़के मिल कर प्रेम करते जोड़े की कभी ऐंटीवैलेंटाइन डे के नाम पर तो कभी लव जिहाद के नाम पर पिटाई कर रहे हैं. ये वही हैं जो बलात्कार जैसे कांड करते हैं.

धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर एक अघोषित सेना खड़ी कर ली गई है, जो कहीं भी किसी को भी शिकार बना लेती है. वे सदियों से पेशेवर डकैती करतेकरते सैनिक बने लड़ाकों की तरह हैं. पहले के राजा डकैतों को अपनी सेना में शामिल कर उन्हें लूट और दुश्मन की औरतों को भोगने की इजाजत देते थे. अब अघोषित सेना तैयार हो रही है जो गौरक्षा, संस्कृति रक्षा व धर्म रक्षा के नाम पर उत्पात मचाती है और गुंडे तत्त्व इसी में शामिल हैं. इन्हें बोनस में मारपीट का हक मिलता है और बलात्कार करें तो पुलिस मामला दर्ज नहीं करती. बलात्कार औरतों की प्रगति को रोकने का सब से बड़ा हथियार बना हुआ है. उन्हें घरों में बंद करना है, तो उन में बलात्कार का हौआ बैठा दो. उन्हें बता दो कि बलात्कार के दौरान शारीरिक कष्ट तो होगा ही, बाद में समाज दोषी भी उन्हें ही मानता रहेगा.

संस्कृति, धर्म, रीतिरिवाजों का रातदिन गुणगान करने वाले धर्म के रक्षक, जिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं सब से ज्यादा मुखर हैं, क्यों नहीं बलात्कार की पीडि़ता को वह सामाजिक स्तर दिलाने को बोलते, जो पत्थर की मूर्तियों और सिर्फ भैंसों की तरह दूध देने वाली गायों को दिलाने के लिए रातदिन बोलते नहीं थकते? वे भी उसी पुरातनपंथी सोच को मूक समर्थन दे रहे हैं कि बलात्कार की दोषी तो लड़कियां ही हैं.

शेयरों के जरिए दान लेने का नया तरीका

दान देने की हमारी परंपरा अति प्राचीन है. महादानियों से इतिहास भरा है. वहीं दान का स्वार्थवश दुरुपयोग किया जाना समयसमय पर उजागर होता रहा है. पौराणिक कथाओं में दान के विविध रूप धनदान, अन्नदान, अंगदान, शस्त्रदान जैसे कई तरह के दान से जुड़ी कथाएं पढ़ने को मिलती हैं लेकिन अब तकनीक और शोध के कारण इस में रक्तदान, गुर्दादान जैसी नई बातें भी जुड़ चुकी हैं.

मंदिरों में वस्त्रदान, अन्नदान, स्वर्णदान, धनदान के साथ दानियों से और उगाही के लिए अब बौंड और शेयर दान का रास्ता अपनाया जा रहा है. शेयर दान की यह परंपरा हाल ही में मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में शुरू हुई है.

मंदिर में शेयर दान के लिए दानी कंपनियों के अपने शेयर मंदिर प्रबंधन के डीमैट अकाउंट में जमा करा सकते हैं. इस से पहले यह व्यवस्था तिरुपति बालाजी के मंदिर में लागू की गई थी. बहरहाल, धर्म के ठेकेदारों ने पढ़ेलिखे अथवा संपन्न अंधभक्तों को लूटने का यह नया तरीका ईजाद किया है. इन अंधभक्तों को शेयर के जरिए दान करना आसान लगेगा तो लूटने वाले भविष्य में दानवसूली के लिए कोई नया जरिया और भी ईजाद कर लेंगे.

मंदिरों को दान दिया जाना गलत नहीं है लेकिन मंदिरों में मिले दान का बड़े स्तर पर दुरुपयोग होता रहा है. वित्तीय अनियमितताएं मंदिरों में बड़े स्तर पर होती हैं, उन को ले कर हत्या जैसी घटनाएं भी हुई हैं. यह हाल तब है जब मंदिर के ट्रस्टों की निगरानी सरकारी स्तर पर की जाती है.

गलत इरादे से छूने वाले पुरुष हो जाएं सावधान

आज के समय में जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं से जुड़े अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. इसीलिए महिलाओं पर होने वाले अपराध को रोकने के लिए नएनए कानून सेफ्टी व ऐप्स बनाए गए हैं. जिस से समय पर उन की सुरक्षा की जा सके, पर क्या आप को पता है कि इन सब कानून व ऐप्स के अलावा चैन्नई के श्री रामास्वामी मैमोरियल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट ने ‘शी’ (सोसाइटी हारनेसिंग सिस्टम) नामक एक ऐसे इनरवियर का निर्माण किया है जो महिलाओं की सुरक्षा में मददगार साबित होगा.

‘शी’ का कार्य

इस इनरवियर को पहनने वाली महिला को गलत इरादे से छूने वाले व्यक्ति को 3,800 किलोवोल्ट का करैंट लगेगा. यानी झटके से वह दूर जा गिरेगा. तो महिला को वहां से भागने का मौका मिल जाएगा. साथ ही इस में जीपीएस और जीएसएम सिस्टम भी लगा है. जिस से तुरंत 100 नंबर पर पुलिस और महिला के घर वालों को इमरजैंसी मैसेज चला जाएगा जो महिला की लोकेशन भी बताएगा.

महिलाओं की सुरक्षा के स्मार्ट ऐप्स

जो संकट के समय महिलाओं की सुरक्षा कर सकते हैं. ये मोबाइल ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं तथा कई ऐप्स फ्री में डाउनलोड किए जा सकते हैं.

ऐंड्रौएड ऐप्स

ज्यादातर ऐप्स एक ही तरीके से काम करते हैं. ये यूजर द्वारा तय किए गए इमरजैंसी कौट्रैक्ट्स को अलर्ट और जीपीएस लोकेशन भेज देते हैं. मगर नए ऐप्स न सिर्फ इस्तेमाल करने में सुविधाजनक है, स्मार्ट भी हैं.

महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े इस ऐप से किसी भी खतरे के समय आप के द्वारा रजिस्टर्ड किए गए नंबरों पर मैसेज चला जाएगा. साथ ही एक्टिवेट होने के बाद यह उस जगह की फोटो खींचना शुरू कर देगा. थोड़ी देर में इन्हें रजिस्टर्ड नंबरों पर भेजता है. जीपीएस के माध्यम से आप की लोकेशन भी इन नंबरों तक जाती रहेगी.

सर्किल औफ सिक्स ऐप

यह ऐप 6 लोगों को संदेश भेजने में सक्षम है. जिन को मुश्किल घड़ी में संपर्क किया जा सकता है. इस में आप अलगअलग संदेश भी भेज सकते हैं. यह बहुत आसान है. लेकिन सारे फीचर इस्तेमाल करने के लिए आप को पैसे देने पड़ते हैं.

बी सेफ ऐप

यह हमेशा आप की गतिविधियों पर नजर ख्राता है. इस की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यदि आप ने इस ऐप में पहले से निर्देर्शित समय के अनुसार चैकइन नहीं किया है तो यह अपने आप ही आप के दोस्तों को आप के स्थान अनुरूप संकट के समय संदेश भेज देगी पर इस विशेषता के लिए आप को पैसे देने पउ़ेंगे.

दूसरी विशेषता कि आप झूठमूठ अपने फोन की घंटी बजा सकते हैं. जिस से न सिर्फ आप को परेशान करने वालों का ध्यान बंट सकता है और आप मुसीबत से बाहर निकलने का अच्छा तरीका है.

विद् यू ऐप

यह ऐप हर पल सुरक्षा की गारंटी देता है. इस में सिर्फ पावर बटन को दबाना है और हर 2 मिनट में उन दोस्तों को अलर्ट संदेश जाएगा. जिन्हें आप ने पहले से निर्देशित किया हुआ है. वो भी आप की स्थानीय जानकारी के साथ. और इस ऐप में आप को संदेश भेजने के लिए फोन में इंटरनैट कनैक्शन की जरूरत है.

हिम्मत ऐप

यह फ्री सैफ्ट ऐप है. जिसे दिल्ली पुलिस ने महिलाओं के लिए रेकमंड किया है. इस ऐप को यूज करने के लिए दिल्ली पुलिस वेबसाइट पर यूजर को रजिस्ट्रेशन करना होगा. रजिस्ट्रेशन पूरा होने के बाद यूजर को ओटीपी मिलेगा, जिसे ऐप को कौन्फिगर करते समय एंटर करना होगा मुश्किल हालात में यूजर को ऐप में एसओएस अलर्ट करना होगा. इस से लोकेशन की इंर्फौमेशन और आडियोवीडियो सीधा कंट्रोल रूम को मिल जाएगी. इस से पुलिस मौके पर पहुंचने के लिए इस्तेमाल करेगी.

वूमन सेफ्टी ऐप

वूमन सेफ्टी ऐप में 3 रंग के बटन होते हैं. जो हालात की गंभीरता पर आधारित हैं. इसे आप परिस्थितियों के आधार पर बटन दबा सकते हैं. एक बटन दबाने पर हय लोकेशन की जानकारी भेज देगा. पहले से डाले गए नंबर्स पर यह एसएमएस के जरिए आप की लोकेशन और गूगल मैप्स का लिंक भी भेज देता है. यह फ्रंट और रियर कैमरे से तस्वीर लेता है, जो सीधे सर्वर में अपलोड हो जाती है.

स्मार्ट – 24×7 ऐप

इस ऐप को कई राज्यों की पुलिस सपोर्ट करती है. यह महिलाओं और सीनियर सिटीजंस की सैफ्टी के लिए है. यह मुश्किल हालात में इमरजैंसी कौंटैक्ट्स को पैनिक अलर्ट भेजता है. यह आवाज रिकार्ड करता है और फोटो भी लेता है. इस ऐप के लिए कौल सैंटर सपोर्ट भी है, जो यूजर की प्राइमरी मूवमेंट्स को ट्रैक करता है. यूजर को बस पैनिक बटन टैप होगा और चुनना होगा कि उसे कौन सी सर्विस चाहिए. इस के बाद सबमिट बटन टैब करना होगा.

शेक 2 सैफ्टी

यह सब से आसान ऐप है. यूजर को बस अपने स्मार्टफोन को शेक करना है या फिर 4 बार पावर बटन दबाना है. इस से रजिस्टर्ड नंबर्स को एसओएस अलर्ट चला जाएगा. यह लौक स्क्रीन पर भी कौल करता है और बिना इंटरनैट के भी काम करता है. यूजर्स अलर्ट भेजने के लिए शेक करने के औप्शन को ऐक्टिवेट और डी ऐक्टिवेट भी कर सकते है. यह ऐप ऐक्सीडैंट, छेड़छाड़, लूट और आपदाओं में इस्तेमाल किया जाता है.

8 सैफ्टी पिन

यह बैस्ट ऐप है इसे पर्सनल सैफ्टी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. इस में जीपीएस ट्रैकिंग, इमरजैंसी कौंटैक्ट नंबर और सेफ लोकेशन का रास्ता बताने जैसे सभी जरूरी फीचर है. इस में सुरक्षित और असुरक्षित जगहे पिन चिंहित होती है. आप खुद भी. इस से उन सुरक्षित जगहों को पिन कर सकते हैं.

निर्भया ऐप

यह ऐप गैंग पीडि़त निर्भया के बाद बनाया गया है. इसे ऐंड्रौएड फोन पर डाउनलोड किया जा सकता है. इस के एक टच पर जितने भी नंबर इस मोबाइल ऐप में से है उन में मैसेज और कौल चला जाएगा.

55100 सर्विस ऐप

इस सर्विस की सब से बड़ी बात यह है कि अगर आप के फोन में 0 बैलेंस है तो भी आप इसे यूज कर सकती हैं. इस का एक टोल फ्री नंबर है इस सर्विस के जरिए कोई भी महिला 55100 नंबर पर कौल कर के अपने परिचित 5 से 10 सदस्यों को अपने साथ जोड़ सकती है. आपात स्थिति में इस नंबर पर कौल करने के बाद उन सदस्यों को मैसेज या एसएमएस अलर्ट के जरिए सूचित किया जाता है.

होला बैक ऐप

आप इस ऐप्लीकेशन की मदद से छेड़खानी करने वाले व्यक्ति की फोटो ले कर इसे फौरन शेयर कर सकती हैं. इस से लोग इस व्यक्ति को पहचान जाएंगे. आप इस बार सड़क पर होने वाली छेड़खानी की खबरों और फोटो को अपलोड कर के शेयर कर सकती हैं. साथ ही ऐप्लीकेशन आप को उस जगह के बारे में जानकारी देता है. जहां छेड़खानी की घटनाएं सब से ज्यादा हो रही हैं.

स्क्रीन अलार्म ऐप

यह ऐप एक औरत की बहुत तेज आवाज में चीख पैदा करता है. अगर आप किसी मुश्किल में हैं तब आप एक बटन दबा कर तेज आवाज पैदा कर सकते हैं और आसपास के लोगों को अलर्ट कर सकते हैं.

विभिन्न सैफ्टी अलर्ट

यह ऐप सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि महिलाएं हमेशा सुरक्षित रहें. इस में एक बटन है, जो आप के प्रियजन को लोकेशन और समस्या की स्थिति के बारे में बता देता है. आप कौंटैक्ट चुन सकते हैं जो आप की लोकेशन देख सकते हैं. अगर आप के ऐप न खोला हो, तब भी आप वौल्यूम को 3 सैकेंड तक प्रैस करने पर अलर्ट भेज सकते हैं. इस में एसओएस फंक्शन भी हैं, जिस से आप बिना इंटरनैट वाले एरिया में फंस जाने पर एसएमएस भेज सकते हैं.

युवा अब भी फैन हैं फिल्मी सितारों के

कुछ रिश्ते खून से होते हैं लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून से नहीं बल्कि दिल से बनते हैं और इसी दिल के रिश्ते में एक रिश्ता होता है स्टार और फैन का.

इतिहास गवाह है कि एक स्टार जिस को उस का फैन दूरदूर तक नहीं जानता, वह उस से इतना प्यार करता है कि उस के लिए अपनी जान तक देने को भी तैयार हो जाता है. अपने प्यारे स्टार की एक झलक पाने के लिए वह उस के घर के बाहर घंटों खड़ा रहता है.

वैसे तो फैन और स्टार का रिश्ता बहुत पवित्र और निस्वार्थ है, लेकिन एक सच यह भी है कि यह रिश्ता भी तब तक ही चरम पर होता है जब तक कि वह स्टार लोकप्रिय है. जैसे ही उस की लोकप्रियता खत्म होती है वैसे ही फैन्स भी उस से दूरी बना लेते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है कि फैन और स्टार का रिश्ता भी लोकप्रियता के आधार पर ही केंद्रित होता है.

इतिहास गवाह है कि जो सितारे लाखोंकरोड़ों फैन्स से घिरे रहते थे, उन्होंने गुमनामी की जिंदगी में अपना आखिरी समय गुजारा. फिर वे चाहे भगवान दादा हों या राजेश खन्ना या फिर परवीन बौबी ही क्यों न हों, आखिरी वक्त में इन के चाहने वाले इन से काफी दूर थे.

राजेश खन्ना के कैरियर में एक समय ऐसा था कि वे जहां से भी गुजरते थे वहां की धूलमिट्टी युवतियां माथे पर लगा लेती थीं. इतना ही नहीं, जब राजेश खन्ना की शादी डिंपल कापडि़या से हुई थी तब कई युवतियों ने अपनी चूडि़यां तोड़ डाली थीं और कइयों ने तो आत्महत्या करने की भी नाकाम कोशिश की थी.

ऐसे लोकप्रिय स्टार राजेश खन्ना अपने आखिरी समय में तनहा थे. दूरदूर तक उन का कोई हमदर्द उन के साथ नहीं था.

राजेश खन्ना की तरह ही ट्रैजडी किंग  दिलीप कुमार का इतना ज्यादा क्रेज था कि उन की दीवानी सायरा बानो फिल्मों में आईं ही इसलिए थीं ताकि वे दिलीप साहब के साथ काम कर सकें और उन का सामीप्य पा सकें, लेकिन आखिर में यह फैन वाला प्यार पतिपत्नी वाले प्यार में बदल गया और आज भी सायरा बानो दिलीप साहब की उतनी ही दीवानी हैं जितनी कि फिल्मों में आने से पहले हुआ करती थीं.

सवाल यह है कि क्या आज भी स्टार्स के प्रति फैन्स का प्यार वैसे ही बरकरार है? क्या आज भी स्टार्स के लिए फैन्स अपनी जान देने को तैयार हैं या फिर आज के युग में युवा अब काफी आगे बढ़ गए हैं और सचेत हो गए हैं.

इसी सवाल का जवाब पाने के लिए जब हम ने सब से पहले बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से बात की तो उन्होंने बड़ी गंभीरता से कहा कि फैन और स्टार का एक अटूट रिश्ता है, जो कभी नहीं टूट सकता. फैन्स हैं तो हम हैं वरना यदि फैन्स ही नहीं होंगे तो हमारी क्या औकात, जो हम इंडस्ट्री में टिक पाएं.

यदि आप गौर करें तो इंटरनैट और सोशल मीडिया की वजह से फैन्स और स्टार्स का रिश्ता और मजबूत हो गया है. आज ट्विटर पर फेसबुक के जरिए हम अपने फैन्स के साथ डायरैक्ट बात कर सकते हैं और वे भी हमें गाइड कर देते हैं कि हमें अपने में क्या सुधार करना चाहिए.

फैन्स अगर हमारी तारीफ करते हैं तो वे बेहिचक हमारी बुराई भी बता देते हैं ताकि हम अपने काम में सुधार कर सकें. यदि मैं अपनी बात करूं तो आज मैं अगर इस इंडस्ट्री में जिंदा हूं तो अपने फैन्स की बदौलत हूं वरना मैं तो कब का खत्म हो जाता. आज इस उम्र में भी मुझे अपने फैन्स का इतना प्यार मिला है कि मैं अपनेआप को धन्य समझता हूं.

अमिताभ बच्चन की तरह सलमान खान की भी फैन फौलोइंग कुछ ज्यादा ही है. सलमान खान के चाहने वालों में सिर्फ लड़कियां ही नहीं बल्कि जवान, बच्चे, बूढ़े, और शादीशुदा सभी शामिल हैं. शायद यही वजह है कि उन की फैन फौलोइंग का फायदा उठाते हुए उन की कही बात को ज्यादा तूल दे दिया जाता है और उन का एक गलत स्टेटमैंट भी विवाद खड़ा कर देता है.

कई बार तो यह भी कहा जाता है कि सलमान द्वारा कही बात को जानबूझ कर तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है ताकि उस बात की वजह से उन की रिलीज फिल्म की पब्लिसिटी हो जाए. ज्यादातर देखा गया है कि सलमान का कोई न कोई स्टेटमैंट तभी हाईलाइट होता है जब उन की फिल्म रिलीज होने वाली होती है.

सलमान के फैन्स का तो यह आलम है कि सलमान के जेल जाने की खबर से ही उन के बीच इतना हड़कंप मच गया था कि उन के चाहने वाले एक फैन ने कोर्ट के बाहर जहर पी कर आत्महत्या करने की कोशिश की. इस से आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सलमान को किस सीमा तक चाहता होगा.

इतना ही नहीं, सलमान को चाहने वाली 2 जुड़वां बहनों ने सलमान की सलामती के लिए रात भर कामना की कि सलमान जमानत पर रिहा हो जाएं.

इसी तरह सलमान का एक फैन सलमान की हर फिल्म रिलीज का फर्स्ट शो मुफ्त में सब को दिखाता है यानी सलमान की हर फिल्म का पहला शो वह अपने पैसों से बुक करता है, जो सलमान के फैन्स के लिए फ्री में होता है.

सलमान और अमिताभ बच्चन के फैन सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में हैं. सलमान की तरह ही माधुरी दीक्षित के भी लाखोंकरोड़ों फैन्स हैं, जिन की वजह से माधुरी दीक्षित पर एक फिल्म तक बन गई थी, ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं…’

माधुरी दीक्षित की फैन फौलोइंग आम लोगों में ही नहीं बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में भी बहुत ज्यादा है. कैटरीना कैफ से ले कर करोड़ों का बिजनैस करने वाली फिल्म ‘सैराट’ की हीरोइन रिंकू राजगुरु जोकि अभी 10वीं में है, भी माधुरी दीक्षित की जबरदस्त फैन हैं.

फिल्मों को अलविदा कहने के बाद और 2 बच्चों की मां बन कर फिल्मों में वापसी के बाद भी माधुरी दीक्षित की फैन फौलोइंग में कोई कमी नहीं आई.

एक टीवी शो को होस्ट करने वाले ऐंकर कपिल शर्मा की भी इतनी ज्यादा फैन फौलोइंग हो गई कि वे रातोंरात स्टार बन गए.

कलर्स चैनल पर प्रसारित ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ से प्रसिद्ध हुए कपिल शर्मा को इतनी ज्यादा लोकप्रियता मिली कि वे देशविदेश में प्रसिद्ध हो गए और उन की फैन फौलोइंग देख कर फिल्म स्टार्स भी अचंभित रह गए.

फैन्स का फायदा स्टार्स को इतना ज्यादा होता है जिस से उन की फैन फौलोइंग बढ़ती है. उन का पारिश्रमिक भी बढ़ जाता है, जिस के चलते स्टार्स किसी फंक्शन में आने का और रिबन काटने का भी करोड़ों रुपए मांग लेते हैं. किसी शहर में अगर किसी स्टार को परफौर्म करना हो तो वह उस की अच्छीखासी कीमत वसूल कर लेते हैं.

कहने का तात्पर्य है कि एक जमाने में स्टार्स और फैन का रिश्ता जहां दिल तक सीमित था वहीं वह अब जेब तक पहुंच गया है.

सलमान खान की फैन फौलोइंग का नतीजा यह है कि वे ‘बिगबौस’ को होस्टिंग करने के लिए एक एपीसोड का करोड़ों में पारिश्रमिक लेते हैं और हर नए सीजन में उन का रेट बढ़ जाता है, लेकिन फिर भी चैनल उन को ही यह जिम्मेदारी देता है, क्योंकि दर्शक ‘बिगबौस’ सलमान की वजह से ही देखते हैं और इसी के चलते बिगबौस शो कितना ही कमजोर क्यों न हो, को अच्छी टीआरपी मिल ही जाती है.

अमिताभ बच्चन, सलमान खान, माधुरी के अलावा अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा जैसे कई स्टार्स की जबरदस्त फैन फौलोइंग है, जिस की वजह से उन को देश में ही नहीं विदेश में भी शो के जरिए पैसा कमाने का मौका मिल रहा है और उस से काफी फायदा हो रहा है.

स्टार्स और फैन्स के बढ़ते रिश्ते का तो आलम यह है कि आज फैंस और स्टार्स का रिश्ता सिर्फ बौलीवुड तक ही सीमित नहीं है यह हौलीवुड तक भी पहुंच गया है. आज का युवावर्ग न सिर्फ हौलीवुड की फिल्मों का कायल है बल्कि वहां के स्टार्स का भी जबरदस्त फैन है.

शायद यही वजह है कि आज अगर ऐंटरटेनमैंट बिजनैस की बात करें तो सिर्फ बौलीवुड ही नहीं हौलीवुड फिल्मों का भी हिंदुस्तान में अच्छाखासा बिजनैस हो रहा है.

इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि युग चाहे जो भी हो, लेकिन फैन्स और कलाकार का रिश्ता हमेशा अटूट रहेगा.

जब वेस्टइंडीज के इस दिग्गज क्रिकेटर ने कटवा दी थी अपनी उंगली

वेस्ट इंडीज के दिग्गज क्रिकेटर रहे गैरी सोबर्स 80 साल के हो गए हैं. क्रिकेट इतिहास में एक ओवर में 6 छक्के लगाने वाले वो पहले क्रिकेटर हैं. कम ही लोग जानते होंगे कि सोबर्स के दोनों हाथ में पांच नहीं, बल्कि 6 उंगली थीं.

जब सोबर्स ने कटवा दी थीं एक्स्ट्रा उंगली

सोबर्स के दोनों हाथ में जन्म से ही एक-एक उंगली ज्यादा थी. बचपन में लोग उन्हें इसके लिए चिढ़ाते भी थे. वहीं, कुछ कहते थे कि वो लकी हैं.

सोबर्स के अनुसार, ‘एक एक्स्ट्रा उंगली काफी जल्दी निकल गई थी.’ तब वे 9 या 10 साल के थे. उन्होंने  अपना पहला क्रिकेट मैच 11 उंगलियों के साथ खेला था. करीब 14 साल की उम्र में दूसरी एक्स्ट्रा उंगली भी निकलवा दी थी.

लेकिन कुछ ही दिनों बाद जहां कट लगा था, वहां से एक और उंगली निकल आई. ये बिल्कुल वैसा था जैसे बच्चों के दूध के दांत निकलने के बाद नया दांत आ जाता है.

सोबर्स ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में उंगली के इस किस्से का जिक्र किया था.

जानें क्रिकेट वर्ल्ड के कुछ ऐसे ही और प्लेयर्स के बारे में…

अजीम हफीज (पाकिस्तान)

जन्म से ही दो उंगलियां कम थी.

वकार यूनिस (पाकिस्तान)

बचुन में ही क्रिकेट खेलते समय बांए हाथ की सबसे छोटी उंगली इतनी बुरी तरह टूट गई की डॉक्टर को उसे काटना पड़ा.

मार्टिन गुप्टिल (न्यूजीलैंड)

मार्टिन छोटे थे तब ही उनके पैर के ऊपर से एक भाड़ी गाड़ी गुजर गई थी तब उनका बांए पैर की तीन उंगली काटनी पड़ी थी. तब से उनके बांए पैर में तीन उंगली नहीं है.

बी एस चंद्रशेखर (भारत)

पोलियो अटैक के कारण दांए हाथ की ऊपरी हिस्सा कमजोर और पिचका हुआ है.

मंसूर अली खां पटौदी (भारत)

20 साल की उम्र में एक एक्सीडेंट में आंख में कांच घुस गया था. तब दांए आंख की रौशनी चली गई थी.

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