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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : रागी परांठा

रागी परांठा

सामग्री आटा बनाने की

  • 1 कप रागी का आटा
  • थोड़ा सा घी
  • नमक स्वादानुसार

सामग्री स्टफिंग की

पनीर, अनारदाना, धनियापत्ती कटी.

विधि

सब से पहले रागी में नमक, घी व पानी डाल कर डो तैयार करें. उस के बाद पनीर को मैश कर के उस में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस स्टफ को डो में भर कर रोल बनाएं और तवे पर सेक कर दही के साथ गरमगरम सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

घातक है स्वास्थ्य सेवा का व्यापारीकरण

आप की सेहत पर कंपनियां अब मोटा नहीं बहुत मोटा पैसा बना रही हैं. देश में अपोलो, मैक्स और फोर्टिस जैसे मल्टी स्पैश्यलिटी अस्पतालों पर खरीदार 5,000 करोड़ से 10,000 करोड़ खर्चने को तैयार बैठे हैं और उन के मूल प्रमोटर अब बापदादाओं की मेहनत का बहुत मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. अब स्वास्थ्य सेवा स्वास्थ्य सेवा नहीं रह गई है, कमाऊ गाय बन गई है जिसे आधुनिक तकनीक व नित नए शोधों से भरपूर खिलायापिलाया जा रहा है.

इन स्वास्थ्य कंपनियों को पैसा उन आम लोगों की जेबों से आता है जो अपनी या अपने अजीजों की जान बचाने के लिए अपनी आखिरी कौड़ी तक कुरबान करने को तैयार हो जाते हैं. बढ़ते प्रदूषण और बदलते लाइफस्टाइल से नित नई बीमारियां पैदा हो रही हैं. इन की वजह से लोगों को पहले से कई गुना ज्यादा पैसा खर्चना पड़ रहा है और इसी की वजह से अस्पतालों की चेनें बन रही हैं, जिन्हें खुले बाजार में बेचा जा रहा है. फोर्टिस अस्पतालों को खरीदने के लिए देशीविदेशी कंपनियां 2,500 करोड़ तक लगाने को

तैयार हैं और 10-20 दिन में जब यह डील हो जाएगी तो इन अस्पतालों के कर्ताधर्ता एक बार फिर बदल जाएंगे. स्वाभाविक है कि अब अस्पतालों के नए मालिकों को अपनी लगाई पूंजी का लाभ चाहिए होगा, मरीजों का हित नहीं.

स्वास्थ्य तो असल में सरकार यानी समाज के हाथों में रहना चाहिए ताकि हर मरीज को इलाज मिल सके और बीमारियों के कारण लोग न मरें. इन महंगे अस्पतालों ने तो लाखों की आखिरी आस भी छीन ली.

सरकारी अस्पतालों में धांधलियों, निकम्मेपन और लापरवाही के कारण लोगों का इन पर से विश्वास ही उठ गया है. निजी अस्पताल कंपनियां अच्छे डाक्टरों को मोटा वेतन व कमीशन दे कर आकर्षित कर लेती हैं और इसीलिए सरकारी अस्पतालों के योग्य डाक्टर भी उन की शरण में चले जाते हैं. सरकारी अस्पतालों में योग्य डाक्टर कम ही रह जाते हैं, जिन्हें या तो ऊपरी कमाई के अवसर मिल जाते हैं या सरकारी तंत्र जिन्हें मकानों, यात्राओं की सुविधा दे देते हैं.

फोर्टिस के बिकने का मामला इसलिए चिंता की बात है कि इस से सारे देश के अस्पतालों को फर्क पड़ेगा. जहां भी डाक्टर निजी छोटे अस्पताल सफलता से चला रहे हैं उन का अस्तित्व अब खतरे में है. बड़े अस्पताल उन्हें लपकने को दौड़ेंगे. चिकित्सा का प्रबंध अब डाक्टरों के हाथों से निकल कर काले कोटधारी अकाउंटैंटों के हाथों में आ जाएगा जिन्हें सिर्फ पैसे से मतलब होगा.

सरकार लाख कोशिश कर ले कि इन अस्पतालों की कुछ आय गरीबों को इलाज के रूप में मिले पर यह संभव नहीं दिखता. सरकार ने अपने कर्मचारियों को ही अपने खर्च पर इन अस्पतालों में भेजना शुरू कर दिया है. सरकार पर असल गरीबों का दबाव फिर कौन कराएगा? गरीबों को तो फिर से झाड़फूंक वालों के पास जाना पड़ेगा. इतना पक्का है कि गायों और कुत्तों की चिकित्सा सुविधाओं की कमी नहीं रहेगी, गरीबों को नहीं मिलेगी.

क्या है नौकरी के बाद आपका विशेष लक्ष्य

वास्तव में, एक व्यक्ति को रिटायरमेंट को एक विशेष लक्ष्य के तौर पर लेना चाहिए और उसके हिसाब से ही निवेश करना चाहिए. अपनी भविष्य निधि (पीएफ) के समान ही अपने पहले वेतन के समय से ही आप को म्यूचुअल फंड के माध्यम से इक्विटी में निवेश करना चाहिए.

इक्विटी फंड में सिस्टेमेटिक इन्वेस्ट प्लान (एसआईपी) नियमित एवं अनुशासित बचत का मार्ग प्रशस्त करती है और साथ ही साथ दीर्घकालिक तौर पर उच्च स्तरीय रिटर्न प्रदान कर मंहगाई से निजात पाने में सहायता करती है.

जैसे वेतन बढ़ने पर पीएफ की राशि में बढ़ोतरी होती है, वैसे ही वेतन बढ़ने पर एसआईपी में भी बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए. एक व्यक्ति को पीएफ एवं एसआइपी दोनों में समान योगदान करने की नीति अपनानी चाहिए.

वास्तव में इन राशियों में जितनी ही वृद्धि होगी, रिटायरमेंट के बाद उतना ही सुख प्राप्त होगा. एसआईपी के अतिरिक्त व्यक्ति को इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए एक इक्विटी फंड में वार्षिक बोनस, इंसेंटिव के एक भाग का भी निवेश करना चाहिए.

बचत के एक हिस्से को ईएलएसएस (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) फंड में निवेश करना चाहिए, जो वर्तमान समय में आयकर अधिनियम, 1961 के अनुभाग 80 सी के अंतर्गत कर में छूट प्रदान करता है. यह आप के रिटायरमेंट के लिए एक और अच्छी बचत हो सकती है.

कैसे लगाएं रिटायरमेंट कोष का अनुमान

वास्तविक रिटायरमेंट कोष का पूर्वानुमान लगाना कई बार मुश्किल लगता है, लेकिन एक अनुमानित महंगाई दर के आधार पर आप अपने वर्तमान खर्चे को नियंत्रित कर सकते हैं और आप को इस आधार पर रिटायरमेंट के लिए आवश्यक कोष की अनुमान लगा सकते हैं.

आप इस राशि तक पहुंचने के लिए अपने मासिक निवेश को भी निर्धारित कर सकते हैं. यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि किसी भी स्थिति में एसआईपी में अवरोध नहीं आना चाहिए, क्योंकि इससे अंतिम कोष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. निवेश के नियमित होने पर ब्याज के बेहतर होने की संभावना बढ़ जाती है.

ग्लाइड पाथ की नीति का करें पालन

हालांकि इक्विटी एक उथल-पुथल वाला निवेश है. इसमें रिटर्न के मामले में कुछ वर्ष बहुत अच्छे होते हैं, जबकि कुछ मामूली. इस समस्या पर विजय प्राप्त करने के लिए आप को कम अवस्था में ही बड़ी राशि का निवेश करना चाहिए और रिटायरमेंट के निकट आने पर इक्विटी आवंटन में क्रमिक रूप से कमी करनी चाहिए.

इसे ‘ग्लाइड पाथ’ कहते हैं, इससे आप रिटायरमेंट के नजदीक पहुंचने के समय इक्विटी की उथल-पुथल से बच सकते हैं और इक्विटी आवंटनो को अपेक्षाकृत कम उथल-पुथल वाले फिक्स्ड आय सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) द्वारा अंजाम दिया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त आप को इक्विटी से पूरी तरह बाहर निकलने की आवश्यकता नहीं है. जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार रिटायरमेंट के दौरान मार्जिनल एलोकेशन पर ध्यान देना चाहिए.

नियमित खर्चों के लिए आप एक फिक्स्ड मासिक राशि को निर्धारित कर पोर्टफोलियो से एक सिस्टेमेटिक विड्रॉल प्लान (एसडब्लूपी) को भी शुरू कर सकते हैं. इससे आवश्यकतानुसार यूनिटों का नगदीकरण हो जाएगा और राशि प्रत्येक माह बैंक खाते में जमा हो जाएगी. रिटायरमेंट कोष से एक फिक्स्ड राशि को निकाल कर आप खर्च के अनुशासन को अपना सकते हैं.

रियल लाइफ में ठीक विपरीत हैं बौलीवुड के ये पिता और बेटे

बौलीवुड बदल रहा है, इस इंडस्ट्री में नए चेहरे सामने आ रहे हैं. कोई बाहर से तो कोई अपने ही पिता के नक्शे कदम पर चल रहा है. इन्हें लोग स्टार किड के नाम से जानते हैं. और जब स्टार किड फिल्मों में कदम रखते हैं तो उनके और उनके पिता के बीच तुलनाएं शुरू होना भी लाजमी है. इन स्टार बेटों का फिल्मों की चॉइस से लेकर एक्टिंग करने का तरीका, लुक्स और स्टाइल तो अपने पापा से अलग होता ही है बल्कि रियल लाइफ में भी वो अपने पिता से ठीक ओपोजिट होते हैं.

‘पिता रात है तो बेटे दिन’, यही सच है. फिल्में और स्टाइल कितना अलग है यह तो आप सभी जानते हैं, हम आपको बतातें हैं रियल लाइफ में ये बेटे अपने पिता से ओपोजिट कैसे हैं.

ऋषि कपूर और रणबीर कपूर

ऋषि कपूर जो सोशल मीडिया पर कमाल के एक्टिव रहते हैं और वहीं उनके बेटे रणबीर का सोशल मीडिया से दूरऔरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. स्वभाव की बात की जाए तो शॉर्ट टेम्पर ऋषि के स्वभाव से कौन वाकिफ नहीं है, लेकिन उनके ओपोजिट रणबीर काफी शांत किस्म के इंसान हैं. ऋषि अपने फैन्स से जरा दूरी बनाए रखते हैं वहीं, सुना है रणबीर कभी किसी को ना नहीं कहते.

धर्मेन्द्र और सनी देओल

धर्मेन्द्र के बेटे सनी देओल और बॉबी देओल के बीच प्यार तो खूब है मगर, बहुत कम लोग जानते हैं कि धर्मेन्द्र और सनी के बीच दिनऔररात का अंतर है. जहां धर्मेन्द्र पार्टीज करने और हर पल को दिल से जीने में विश्वास करते हैं वहीं सनी थोड़े प्रैक्टिकल हैं. पार्टीज में धर्मेन्द्र और बॉबी तो खूब एन्जॉय करते हैं मगर सनी पार्टीज में जाना ही पसंद नहीं करते.

सुनील दत्त और संजय दत्त

सुनील दत्त थे एक शांत स्वभाव के इंसान, जो हर किसी से बड़े आराम और फ्रेंडली होकर बात करते थे. हालांकि, संजय भी लोगों से खुल कर बात करते हैं मगर, कहीं न कहीं उनका अग्रेशन दिखाई देता है. संजय का जेल जाना भी उन्हें अपने पिता सुनील से ओपोजिट बनाता है.

जैकी श्रॉफ और टाइगर श्रॉफ

जैकी श्रॉफ और उनके बेटे टाइगर के बीच भी दिन रात का अंतर है. जैकी एक मुंबईया मैन हैं, वो हर किसी से बड़े ही बिंदास तरीके से, ‘भिडु’ शब्द का इस्तेमाल करके बात करते हैं वहीं टाइगर उनके ओपोजिट सभी से सर या मैडम कहकर बातें करते हैं. शर्मीले, शांत और लाइट हार्टेड टाइगर अपने पिता से बहुत अलग हैं.

विनोद खन्ना और अक्षय खन्ना

हर एक लड़की का क्रश थे विनोद खन्ना, बड़े बिंदास, फ्रेंडली और जमीन से जुड़े विनोद के ओपोजिट उनके बेटे अक्षय खन्ना लोगों से कम ही बातें करते हैं. मीडिया से बात करने में भी विनोद कभी हिचकिचाए नहीं मगर अक्षय का स्वभाव इस मामले में जरा अलग है. अक्षय हर सवाल का जवाब एक ही लाइन में दे देते हैं, ज्यादा बातें नहीं करते और ना ही किसी से घुलते मिलते हैं.

बचें आंखों पर डिजिटल इफैक्ट से

यदि आपको आंखों में लाली, खुजलाहट, आंखों से पानी आना, थकान और बार बार सिरदर्द जैसी समस्याएं सताती है, तो सावधान हो जाएं क्योंकि ऐसा कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टैबलेट, ईरीडर जैसी डिजिटल डिवाइसेज पर लगातार नजर गड़ाए रखने के कारण हो सकता है.

लोग आंखों की थकान जैसे लक्षण बढ़ने की शिकायत कर रहे हैं. डिवाइसेज पर कई बार हम एकटक नजर गड़ाए रहते हैं और इस के कारण हमारी आंखों पर बहुत ज्यादा जोर पड़ता है. लोग अपने लैपटॉप पर काम करते हुए टेलीविजन भी साथ साथ देखते रहते हैं और साथ ही बीच बीच में सोशल मीडिया अपडेट के लिए अपने स्मार्टफोन में भी झांकते रहते हैं.

डिजिटल डिवाइसेज के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए बाजार में आप की आंखों की सुरक्षा के लिए कई उत्पाद पेश किए हैं, जिन में डिजिटल ओवरलोड का असर कम करने वाले उत्पाद भी शामिल हैं, लेकिन आंखों की बढ़ती थकान से बचने के लिए कुछ बेसिक उपायों का भी पालन करना जरूरी है. प्रस्तुत हैं, कुछ खास टिप्स:

बीच बीच में उठ कर ब्रेक लेते रहें

आजकल सारा काम कंप्यूटर पर ही निर्भर हो गया है इसलिए लोग औफिस और घर में भी घंटों कंप्यूटर से चिपके रहते हैं. ऐसे में आंखों को आराम देने के लिए बीचबीच में बे्रक लिया जा सकता है. दिन के वक्त मीटिंग और विचारविमर्श के सत्रों में हिस्सा लें, साथ ही लंच के दौरान अपनी स्क्रीन से दूर रहें. हर एक घंटे बाद कुछ देर के लिए अपने डैस्क से हटना तथा अपने कंप्यूटर से दूरी बनाए रखना भी जरूरी है.

स्क्रीन की रोशनी कम करें

मौनिटर की अधिक रोशनी आप की आंखों पर दबाव बढ़ा सकती है. खिड़कियों में परदे लगाने, अपने कमरे में तेज रोशनी वाले स्रोत से बचने तथा मौनिटर स्क्रीन पर ग्लेयर फिल्टर लगा कर आप इस की चमक कम कर सकते हैं. स्क्रीन पर जितनी कम चमक रहेगी, उतना ही आप की आंखों पर तनाव भी कम पड़ेगा.

सोशल मीडिया की लत कम करें

हमारे डिजिटल डिवाइसेज से कई जरूरी काम निबट जाते हैं, लेकिन वहीं इन में समय का एक बड़ा हिस्सा हम फेसबुक, ट्विटर तथा व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया नैटवर्क पर भी खर्च करते हैं. युवाओं को तो हर समय अपने स्मार्टफोन से चिपके  देखा जा सकता है. यदि आप इस तरह की लत को कमकर लें तो प्रतिदिन बेवजह डिजिटल डिवाइस से चिपके रहने का एक घंटा बचा सकते हैं.

सुरक्षात्मक चश्मे का इस्तेमाल करें

जरूरत के अनुकूल चश्मे का लैंस इस्तेमाल करें जो आप की आंखों को डिजिटल ओवरलोड, नुकसानदेह नीली रोशनी, तनाव और थकान से सुरक्षा प्रदान करेगा. ऐसी जरूरतों के लिए इनोवेटिव लैंस तैयार किए गए हैं. इन लैंसों के इस्तेमाल से आंखों को बचाया जा सकता है. ऐसे लैंस हमारी आंखों को नुकसानदेह नीली रोशनी तथा यूवी किरणों से बचाते हैं.

स्मार्टफोन बिस्तर पर न ले जाएं

यह भी एक ऐसी आदत है जो न सिर्फ आंखों पर डिजिटल तनाव बढ़ाती है बल्कि हमारी नींद में भी खलल डालती है. अत: बिस्तर पर जाने से आधा घंटा पहले ही अपने फोन को दूर रख दें.

जिंदगी के रिंग में डटे रहना सीखा : कविता चहल

भारत के पुरुषप्रधान समाज में आज भी महिलाओं को चारदीवारी में कैद कर चूल्हेचौके तक सिमटाए रखने की दकियानूसी सोच हावी है, मगर जब वक्त पड़ता है, तो बेटियां भी किसी भी क्षेत्र में बेटों के मुकाबले पीछे नहीं रहती हैं. बहुत सी बेटियों ने तो उन क्षेत्रों में भी विश्व स्तर पर वाहवाही बटोरी है, जिन्हें मर्दों के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है.

मुक्केबाजी के बारे में कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है. लेकिन मर्दों के  दबदबे वाले इस खेल में भारत की बहुत महिलाओं ने इंटरनैशनल लैवल पर नाम कमाया है. उन्हीं में से एक हैं कविता चहल. 5 फुट, 9 इंच लंबी हरियाणा पुलिस में काम कर रही इस खूबसूरत महिला मुक्केबाज ने 2013 में ‘अर्जुन अवार्ड’ हासिल कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था. आइए, इन के बारे में इन्हीं से विस्तार से जानते हैं:

रिंग में उतरने की कैसे सोची?

मेरे पिता भूप सिंह सेना में मुक्केबाज थे. एक दिन वे प्रैक्टिस के लिए जा रहे थे कि उन का ऐक्सीडैंट हो गया. उन्हें गंभीर चोटें आईं. वे कई दिनों तक कोमा में रहे.

वे धीरेधीरे ठीक हुए. एक दिन घर पर आराम करते हुए उन्होंने टैलीविजन पर देखा कि लड़कियां भी मुक्केबाजी कर रही हैं. अत: वे मुझे भिवानी में मुक्केबाजी के ‘द्रोणाचार्य अवार्ड’ से सम्मानित कोच जगदीश सिंह के पास ले गए. तब मेरी उम्र 18 साल थी और उस समय स्कूल में कबड्डी खेलती थी.

इस के बाद मैं 1 महीने तक गांव से ही भिवानी प्रैक्टिस के लिए जाती रही. फिर भिवानी में रहने लगी. 2007में मैं ने मुक्केबाजी के नैशनल कंपीटिशन में गोल्ड मैडल जीता, जिस से पिता का हौसला और ज्यादा बढ़ गया.

शुरू शुरू में गांव के कुछ लोगों ने कहा कि मैं इस खेल में जा कर बिगड़ जाऊंगी. लेकिन जब मुझे मैडल मिलने लगे, तो किसी ने कुछ नहीं कहा, बल्कि तारीफ ही की. शुरू में मैं 64 किलोग्राम भारवर्ग में खेलती थी.

फिर 81 किलोग्राम भारवर्ग में कैसे खेलने लगीं?

एक दिन मेरे कोच ने राय दी चूंकि तुम्हारा कद लंबा है, इसलिए अपना भारवर्ग बढ़ाओ. तब मैं अपना भारवर्ग बढ़ा कर 81 किलोग्राम भारवर्ग में खेलने लगी और अब इस भारवर्ग में वर्ल्ड में मेरी 11वीं रैंकिंग है.

शादी के बाद आप की जिंदगी में क्या खास बदलाव आया?

मेरी शादी  7 मार्च, 2011 को हुई थी. अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन मेरे पति सुधीर के घर वाले और मेरे परिवार वाले एकदूसरे को पहले से जानते थे. मेरी शादी बिना दहेज के हुई थी. ससुराल वालों ने 1 रुपए का रिश्ता लिया था. नए परिवार में जाने के बाद जिम्मेदारियां बढ़ीं. जब तक शादी नहीं होती तब तक  लड़कियां आसानी से खेलों से जुड़ी रहती हैं. लेकिन शादी और बच्चे पैदा होने के बाद उन का खेलों से रिश्ता धीरेधीरे टूटने लगता है. पर मेरे सासससुर व पति ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. शादी के बाद मैं नैशनल चैंपियनशिप में लगातार 4 बार गोल्ड मैडलिस्ट बनी. मुझे ‘अर्जुन अवार्ड’ पाने का गौरव हासिल हुआ.

8 दिसंबर, 2015 को मैं विराज की मां बनी. हर मां बेटे की तरह उस की और मेरी बौंडिंग शानदार है. वह मेरे बहुत करीब है. प्रैगनैंसी की वजह से मुझे करीब 2 साल तक मुक्केबाजी से दूर रहना पड़ा. विराज के पैदा होने के बाद दोबारा रिंग में उतरना और एक के बाद एक चैंपियनशिप खेलना व खुद को फिट रखना आसान नहीं है. अपने करीब डेढ़ साल के बेटे को परिवार के पास छोड़ कर मैं दोबारा तैयारी कर रही हूं. इस सब में सुधीर ने मेरी बड़ी मदद की है. मुझे जिंदगी के रिंग में डटे रहना सिखाया.

यही वजह है कि केवल 1 महीने की प्रैक्टिस के बाद मैं ने 2 हरियाणा स्टेट चैंपियनशिप खेलीं और दोनों में गोल्ड जीता. इस के बाद पटना, बिहार में औल इंडिया पुलिस खेलों में भी गोल्ड मैडल जीता.

फेसबुक ने चीनी मोबाइल कंपनियों के साथ साझा किया यूजर डेटा, सरकार ने मांगा जवाब

फेसबुक पहले से ही कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल में फस चुका है और अब भी वह सवालों के घेरे में है. उसने भले ही कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल के लिए माफी मांग ली हो लेकिन लगता है कि वह अपने कारनामों से इतनी जल्दी बाज आने वाला नहीं है. तभी तो डेटा लीक के मामले में माफी मांगने के बाद भी वह वापस ले एक और मामले में फंस गया है. हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि मोबाइल कंपनियों के साथ भी फेसबुक यूजर डेटा शेयर कर रहा है जिनमें चीनी स्मार्टफोन मेकर्स भी शामिल हैं. अब भारत सरकार ने इन रिपोर्ट्स को गंभीरता से लेते हुए फेसबुक से इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी मांगी है.

जानें क्या है पूरा मामला मामला

एक रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक ने हाल ही में कहा था कि कंपनी ने चार चीनी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप की है, जिसमें डेटा शेयर भी होता है. इनमें हुआवे भी शामिल है जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी है. उल्लेखनीय है कि चीनी मोबाइल कंपनी हुआवे को अमेरिका सुरक्षा एजेंसियों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना गया है. हुआवे पर पहले से ही अमेरिका में जांच चल रही है और वहां इसके मोबाइल फोन्स को बैन भी किया गया है. अमेरिकी सांसदों ने फेसबुक द्वारा चीनी कंपनियों के साथ किए गए इस तरह के समझौतों को लेकर चिंता जताई है.

फेसबुक ने कहा है कि हुआवे, लेनोवो ग्रुप, ओप्पो और टीसीएल ग्रुप्स दुनिया भर की उन 60 कंपनियों में से हैं, जो कौन्ट्रैक्ट्स के तहत फेसबुक का कुछ यूजर डेटा ऐक्सेस करती हैं. फेसबुक ने यह भी बताया कि चीनी कंपनियों के साथ समझौता उन्हें (कंपनियों) दोनों उपकरणों के उपयोगकर्ताओं और उनके दोस्तों के धार्मिक और राजनीतिक झुकाव, काम एवं शैक्षिक जानकारी तथा रिलेशनशिप स्टेट्स सहित विस्तृत जानकारी तक पहुंचने की अनुमति देता है. इस तरह की अनुमति की पेशकश ब्लैकबेरी को भी की गई है. फेसबुक का कहना है कि, ‘ये समझौते 2010 से पुराने हैं लेकिन हुआवे के साथ समझौता सप्ताह के अंत तक खत्म हो जाएगा.’

भारत सरकार ने फेसबुक से स्पष्टीकरण मांगा

भारत सरकार ने पहले भी कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल के बाद फेसबुक से नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. और अगर आपको याद हो तो जवाब में फेसबुक ने सरकार से माफी मांगी थी और फेसबुक प्लेटफौर्म पर यूजर्स की प्राइवेसी को सुरक्षित रखने का भरोसा दिया था. ऐसे में हालिया रिपोर्ट फेसबुक द्वारा दिए गए भरोसे पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं. इसी को ध्यान में रखकर मिनिस्ट्री औफ इलेक्ट्रोनिक्स एंड इंफार्मेशन टेक्नोलाजी ने मोबाइल कंपनियों के साथ फेसबुक द्वारा साझा किए गए डेटा के संबंध में विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगा है. कंपनी से 20 जून तक जवाब देने को कहा गया है.

वेबसाइट पर औटो प्ले होने वाले वीडियो से पाएं छुटकारा

गूगल द्वारा क्रोम ब्राउजर के लिए एक नया अपडेट जारी किया जा चुका है. इसके तहत आपको औटो प्ले वीडियो से निजात मिल सकेगी. हालांकि पिछले महीने के अपडेट के साथ ही कंपनी वर्जन 66 का अपडेट जारी किया है. इस अपडेट में औटो प्ले वीडियो को ब्लौक करने का फीचर है. हालांकि यह अपडेट आम अपडेट से अलग है. इसे कंपनी लोगों की दिलचस्पी के हिसाब से जारी कर रही है. यानी आपकी प्राथमिकता औटो प्ले वीडियो देखना है तो ऐसे में इसे ब्लौक नहीं किया जाएगा.

अगर आप औटो प्ले वीडियो को बंद करेंगे तो इस तरह के व्यवहार को देखते हुए गूगल क्रोम में औटो प्ले फीचर ब्लौक कर देगा. इससे आपको कई फायदे होंगे, आप परेशान नहीं होंगे और जरूरी काम में आडियो या वीडियो की वजह से कोई दखलअंदाजी भी नहीं होगी.

उदाहरण के तौर पर अगर आपके गूगल क्रोम में कोई भी ब्राउजिंग हिस्ट्री नहीं है तो यह ब्राउजर 1,000 पौपुलर वेबसाइट्स से भी ज्यादा पर वीडियो औटो प्ले करेगा, क्योंकि यहां विजिटर्स आम तौर पर यहां साउंड और वीडियोज चलाते हैं.

गूगल ने अपने आफिशियल ब्लौग में कहा है, ‘आप जैसे ही वेब ब्राउज करते हैं लिस्ट चेंज होती है और वेबसाइट पर औटो प्ले एनेबल हो जाते हैं जहां आप वीडियोज देखना चाहते हैं.  जहां आप वीडियोज नहीं दखते हैं वहां से औटो प्ले ब्लौक कर दिया जाता है. लेकिन यह पौलिसी लगभग आधे अनचाहे औटो प्ले को ब्लौक करते हैं ताकि आपको कम सरप्राइज और न्वाइज मिले, जब आप पहली बार वेबसाइट पर आएं.

आपकी कबाड़ पड़ी गाड़ी के भी पैसे देगी यह कंपनी

अगर आपके पास कोई ऐसी कार है जिसे आपने कई सालों से इस्तेमाल नहीं किया है और वो खड़े-खड़े कबाड़ बनती जा रही है तो हमारी यह खबर आपके काम की है. आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन आपकी कबाड़ हो चुकी कार भी आपको अच्छे खासे पैसे दिला सकती है. दरअसल महिंद्रा एक्सेलो ने सरकारी कंपनी MSTC के साथ देश की पहली औटोमेटेड और और्गेनाइज्ड व्हीकल स्क्रैपिंग और रीसाइकलिंग प्लांट शुरू किया है. इस प्लांट को ग्रेटर नोएडा में खोला गया है.

खोली CERO नाम की कंपनी: महिंद्रा एक्सेलो और सरकारी कंपनी MSTC ने मिलकर कबाड़ कारों की स्क्रैपिंग और रीसाइकलिंग के लिए CERO नाम से कंपनी की शुरुआत की है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आने वाले वर्षों में कंपनी देशभर में अपने इस प्लांट के विस्तार की योजना बना रही है. बता दें इस नई कंपनी में महिंद्र एक्सेलो और MSTC की एक समान हिस्सेदारी है. दोनों कंपनियों ने इस प्लांट को 5 एकड़ जमीन में बनाया है और यहां पुराने वाहनों को लाकर उन्हें स्क्रैप और रीसाइकिल किया जाता है.

कैसे ले सकते हैं पुरानी कार की कीमत?

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अगर आपके पास कोई पुराना वाहन है और वह बिल्कुल खराब पड़ा है तो इसके बारे में आप CERO को जानकारी दें. इसमें आप ब्रैंड, मौडल, रजिस्ट्रेशन का साल, रनिंग कंडीशन, पुराने वाहन का लोकेशन आदि शामिल हैं. कंपनी को ये सभी जानकारी देने के बाद आपके वाहन पर जो बेस्ट कौस्ट सामने आएगी वह आपको दी जाएगी. इतना ही नहीं कंपनी की और से आपके दूसरे औफर्स भी दिए जाएंगे. हालांकि, यह औफर्स सिर्फ दिल्ली-NCR के लिए ही है. कंपनी द्वारा दिए जा रहे औफर्स से अगर आप सहमत हैं तो आपके द्वारा दिए गए समय और लोकेशन पर आ जाएगी. इसके बाद कंपनी आपके पुराने वाहन और सभी दस्तावेजों की ठीक से जांच करने के बाद आगे का प्रोसेस शुरू कर दिया जाएगा.

कंपनी खुद करेगी सारा काम: CERO की वेबसाइट के मुताबिक कंपनी की ओर से पुराने वाहन की आकर्षक कीमत के साथ-साथ दूसरी सेवाएं जैसे बिना अतिरिक्त शुल्क के टोइंग दी जाएगी. कार के सभी दस्तावेजों को चेक करके उसे स्क्रैप करने के लिए ग्रेटर नोएडा स्थित प्लांट में ले जाया जाता है और फिर उन वाहनों को वर्ल्ड क्लास टेक्नोलौजी के जरिए तोड़ा और नष्ट किया जाता है. यह टेक्नोलौजी कंपनी को यूरोप और अमेरिका से इंपोर्ट की गई है. बता दें, कंपनी स्क्रैप कार का डीरजिस्ट्रेशन भी करती है और कार मालिक को डीरजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट भी देती है.

टैक्स पर मिलेगी छूट: आपकी स्क्रैप कार की कीमत वाहन के कंडीशन, उसकी उम्र के हिसाब से अलग-अलग दी जाएगी. इतना ही नहीं कार मालिक अपनी कार CERO को दान में भी दे सकते हैं. महिंद्रा NGO से CERO का टाईअप है, जो वंचित तबके की लड़कियों की शिक्षा के लिए काम करता है. इस NGO के जरिए कार मालिक को 80G सर्टिफिकेट दिया जाता है, ताकि उसे टैक्स की छूट मिल सके.

अजय जायसवाल व दिनेश दुबे की वेब सीरीज ‘‘प्रौब्लम…नो प्रौब्लम’’

इंटरनेट और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ ही फिल्मकारों के बीच वेब सीरीज बनाने का जोश बढ़ता ही जा रहा है. कुछ फिल्मकार सेंसरशिप मुक्त होने की वजह से इंटरनेट के लिए सेक्सी व फूहड़ वेब सीरीज बना रहे हैं, तो कुछ फिल्मकार साफ सुथरी पारिवारिक वेब सीरीज बना रहे हैं. अब लगभग 18 वर्ष पहले ‘‘दो और दो चार’’ जैसे हास्य सीरियल का निर्माण कर चुके अजय जायसवाल और कई सीरियलों के लेखक व निर्देशक दिनेश दुबे भी एक पारिवारिक हास्य वेब सीरीज ‘‘प्रौब्लम नो प्रौब्लम’’ लेकर आए हैं. इस हास्य वेब सीरीज के दस एपीसोड होंगे. हर एपीसोड दस मिनट का होगा. इसका पहला एपीसोड छह जून को कलाकारों और पत्रकारों की मौजूदगी में एक खास समारोह में आयोजित कर प्रसारित किया गया. हर दस दिन के बाद नया एपीसोड आएगा. यह वेब सीरीज अजय जायसवाल के वेब पोर्टल ‘‘डब्लू डब्लू डब्लू अपेक्षा फिल्मस डौट कौम’’ पर प्रसारित हो रही है.

इस अवसर पर अजय जायसवाल ने कहा- ‘‘इन दिनों वेब सीरीज का चलन तेजी से बढ़ा है. मगर मैंने पाया कि हर कोई सेक्स से लबालब या हौरर या रोमांचक अथवा ईरोटिक वेब सीरीज ही बना रहा है. तो मैने सोचा कि पूरे परिवार के लिए एक हास्य वेब सीरीज का निर्माण किया जाना चाहिए. इसी बीच मेरे मित्र और लेखक व निर्देशक दिनेश दुबे ने मुझे हास्य कथा ‘प्रौब्लम ..नो प्रौब्लम’ सुनायी तो मुझे लगा कि हर इंसान के लिए यह बहुत उपयोगी रहेगी. इसलिए मैंने यह वेब सीरीज बनायी है. इसे देखते हुए हर उम्र का दर्शक आनंद की अनुभूति कर सकेगा. वैसे ही आज की युवा पीढ़ी मोबाइल पर हास्य कार्यक्रम ही देखते हुए नजर आती है.’’

‘‘दो और दो चार’, ‘प्रेम नगर’, ‘कैसे कहूं’ जैसे कई सीरियल और ‘‘जब से हुआ है प्यार’’ व ‘‘वनली डालर्स’ जैसी फीचर फिल्में निर्देशित कर चुके दिनेश दुबे ने ही वेब सीरीज ‘‘प्रौब्लम ..नो प्रौब्लम’’ का लेखन व निर्देशन किया है. खुद दिनेश दुबे कहते हैं- ‘‘यह वेब सीरीज आम इंसानों की समस्याओं को हास्य के माध्यम से पेश करती है. इस वेब सीरीज के किरदारो के साथ हर आम आदमी खुद को जोड़कर देख सकेगा. अब तक इस तरह की वेब सीरीज किसी ने नहीं बनायी है.

मुंबई से दूर पुणे में फिल्मायी गयी वेब सीरीज ‘‘प्रौब्लम..नो प्रौब्लम’’ में जयशंकर त्रिपाठी और उपासना सिंह पति पत्नी की भूमिका में है. जयशंकर त्रिपाठी सरकारी संस्थान में पीआरओ थे. अब अवकाश ले लिया है और अपनी खुद की सलाह देने वाली संस्था बनाकर लोगों की समस्याओं का हल बताना शुरू किया है. इसमें एक एपीसोड में एक चोर जयशंकर त्रिपाठी के पास सलाह मांगने आता है कि वह चोर है और बार बार पुलिस उसके घर पर पहुंच जाती है. इससे कैसे बचा जाए. जयशंकर उस चोर को सलाह देते हैं, पर पाते हैं कि चोर उन्ही के घर पर चोरी करके चला गया.

इस वेब सीरीज में हेमंत पांडे, उदय दहिया सहित कई दूसरे हास्य कलाकार भी लोगों को हंसाते हुए नजर आएंगे. इस वेब सीरीज के कैमरामैन सुरेश वर्मा तथा संगीतकार ललित मिश्रा हैं.

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