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लाइव हुई यूट्यूब सब्सक्रिप्शन सेवा, वीडियो देखने के लिए देना होगा पैसा

अगर आप यूट्यूब पर अपना चैनल चलाते हैं और आपके चैनल के ठीक-ठाक सब्सक्राइबर भी हैं तो अब गूगल ने आपको पैसे कमाने का एक नया तरीका दे दिया है. अब आप अपने यूट्यूब चैनल के जरिए अपने सब्सक्राइबर और दर्शकों से पैसे ले सकते हैं. अभी तक यह फीचर भारत में शुरू नहीं हुआ था लेकिन अब यह लाइव हो गया है.

यूट्यूब के इस फीचर के लाइव होने के बाद चैनल चलाने वाला शख्स सब्सक्रिप्शन सर्विस शुरू कर सकता है और एक्सक्लूसिव कंटेंट के लिए दर्शकों से पैसे मांग सकता है. उदाहरण के तौर पर अगर आपको किसी यूट्यूबर के वीडियो पंसद आते हैं और आपने उसके चैनल को सब्सक्राइब किया है तो वह चैनल वाला आपसे पैसे मांग सकता है. ऐसे में आपको पैसे देने होंगे या फिर आप उसके वीडियो को नहीं देख पाएंगे.

गैजेट्स टू यूज चैनल के 1 महीने के सब्सक्रिप्शन के लिए 159 रुपये का विकल्प है. हालांकि इसके लिए वे ही चैनल काबिल हैं जिनके पास 1,00,000 से अधिक सब्सक्राइबर हैं. वे लोग पे सब्सक्रिप्शन भी शुरू कर सकते हैं और अपने सब्सक्राइबर से 4.99 डालर यानी लगभग 320 रुपये मासिक शुल्क ले सकते हैं. गूगल ने यह भी कहा है कि वीडियो बनाने वाले शर्ट या फोन के कवर जैसी वस्तुएं भी अपने चैनल पर बेच सकेंगे.

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खाने पीने के शौकीन लोगों के लिये रेलवे उठाने जा रहा है ये कदम

चुनावी साल 2019 में रेल मुसाफिरों का दिल जीतने के लिए रेल मंत्रालय बडा कदम उठाने जा रहा है. राजधानी, शताब्दी और दुरंतों में खान-पान का तरीका बदलने के अलावा ट्रेनों की लेट-लतीफी में सुधार, हाइजीन यानी सफाई व्यवस्था का भी ध्यान रखेगा. दरअसल, प्रधानमंत्री कार्यालय ने रेल मंत्रालय को यह निर्देश दिए हैं. पीएमओ हर महीने 9 इंफ्रा सेक्टर्स की मीटिंग लेता है. इस मीटिंग में मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा की जाती है. जरूरी सुधार या बदलाव के दिशा-निर्देश दिए जाते हैं. पीएमओ ने रेल मंत्रालय को साफ निर्देश दिया कि रेलवे की गिरती छवि को सुधारने के लिए तीन दिशाओं में काम करना होगा.

कौम्बो मील देने की तैयारी

रेलवे ने अपना पूरा ध्यान फिलाहल राजधानी, शताब्दी और दुरंतों पर केंद्रित किए हुए है. पीएमओ के निर्देश के बाद रेलवे का केटरिंग में सुधार को लेकर जबरदस्त जोर है. रेलवे सभी शताब्दी ट्रेन में कौम्बो मील को मेन्यू में शामिल करने की तैयारी कर रही है. कौम्बो मील के तहत छोले भठूरे, इडली सांभर से लकेर लोकल क्यूजीन को ज्याद से ज्यादा शामिल करना चाहती है. पूरी-सब्जी के कौम्बो को भी फिर से मेन्यू में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है.

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सूखे और ड्राई आइटम पर जोर

इसी तरह राजधानी और दुरंतो में बदलाव के तहत मेन्यू में ग्रीन टी शामिल करना, चौकलेट, पैक्जड आइटम की संख्या बढाने पर अमल किया जा रहा है. सूखे या ड्राई आइटम पर जोर रहेगा. इसके तहत रेलवे एअरलाइनस मौडल को अपनाना चाहती है. मेन्यू में वेज बिरयानी, रोटी- सूखी सब्जी और एक तरल सब्जी या दाल ही मिलेगी.

परोसने के तरीके में भी होगा बदलाव

रेलवे में सिर्फ खाने-पीने की चीजें ही नहीं बल्कि उसे परोसने के तरीके में भी बदलाव करने की योजना है. तीन महीने के भीतर सभी खाना परोसने वाले एक सी ड्रेस में नजर आएंगे, जिसमें आईआरसीटीसी अंकित होगा और साथ में शिकायत करने वाला मोबाइल नंबर भी ड्रेस पर साफ-साफ अंकित होगा.

खाने के साथ हैंड सैनेटाइजर भी मिलेगा

इस सबके साथ बच्चों के लिए खाने में कुछ आइटम शामिल करने की योजना है लेकिन, फिलहाल उस पर रेलवे में एकमत सहमति नहीं बनी है. क्योंकि, इससे ना केवल कौस्टिंग बढेगी बल्कि फूड वेस्टेड का भी ज्यादा मामला बन सकता है. खास बात यह है कि खाने के साथ ही यात्रियों को हाथ साफ रखने के लिए हैंड सैनेटाइजर भी दिया जाएगा. सरकार चुनावी साल में चाहती है कि यात्रियों की नजर में रेलवे की छवि में सुधार हो.

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इस मामले में धोनी हैं दुनिया के सबसे महान विकेटकीपर

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान व इस वक्त टी20 और वनडे टीम के विकेटकीपर-बल्लेबाज महेंद्र सिंह धौनी की चपलता विकेट के पीछे अब भी देखते ही बनती है. इंग्लैंड के खिलाफ पहले टी20 मैच में धौनी ने कमाल की विकेटकीपिंग करते हुए एक नया विश्व रिकौर्ड अपने नाम पर कर लिया. उन्होंने कई विकेटकीपरों को पीछे छोड़ते हुए ये कीर्तिमान अपने नाम किया.

धौनी का नया विश्व रिकौर्ड

इंग्लैंड के खिलाफ पहला टी20 मुकाबला धौनी के लिए बेहद यादगार बन गया. इस मैच के दौरान वो दुनिया के पहले ऐसे विकेटकीपर बन गए जिन्होंने टी 20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बल्लेबाजों को सबसे ज्यादा स्टंप आउट किया है. धौनी से पहले ये रिकौर्ड पाकिस्तान के विकेटकीपर कामरान अकमल के नाम पर था लेकिन अब धौनी ने उन्हें पीछे छोड़ते हुए खुद को टौप पोजीशन पर स्थापित कर दिया है. टी 20 क्रिकेट में सबसे ज्यादा स्टंप करने वाले पांच विकेटकीपर्स की लिस्ट पर एक नजर.

महेंद्र सिंह धौनी- 33 स्टंप

कामरान अकमल- 32 स्टंप

मो. शहजाद- 28 स्टंप

मुशफीकुर रहीम- 26 स्टंप

कुमार संगकारा- 20 स्टंप

दो खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया धौनी ने

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इंग्लैंड के खिलाफ पहले टी 20 मैच में धौनी ने विकेट के पीछे दो इंग्लिश बल्लेबाजों के स्टंप आउट किया. उन्होंने अपना पहला शिकार कुलदीप यादव की गेंद पर जौनी ब्रिस्टो का किया. ब्रिस्टो इस मैच में खाता भी नहीं खोल पाए और स्टंप होकर पवेलियन लौट गए. इसके बाद इंग्लैंड टीम के दिग्गज बल्लेबाज जो रूट भी कुलदीप यादव की ही गेंद पर धौनी के हाथों स्टंप आउट हुए. जो रूट भी अपना खाता तक नहीं खोल पाए. इस मैच में वो विकेट के पीछे एक भी कैच नहीं कर पाए. धौनी बात करें तो उन्होंने अपने करियर में अब तक कुल 91 मैच खेले हैं जिसमें उन्होंने विकेट के पीछे 49 खिलाड़ियों को कैच आउट किया है जबकि 33 बल्लेबाजों को स्टंप आउट किया है.

आयरलैंड के खिलाफ भी दो खिलाड़ियों को किया था स्टंप आउट

इंग्लैंड के खिलाफ टी 20 सीरीज से पहले भारतीय टीम ने आयरलैंड के खिलाफ दो टी 20 मैचों की सीरीज खेली थी. इस सीरीज के पहले मैच में भी धौनी ने आयरलैंड के दो बल्लेबाजों को स्टंप आउट किया था. हालांकि आयरलैंड के खिलाफ उन्हें दूसरे मैच में खेलने का मौका नहीं मिल सका था और उनकी जगह दिनेश कार्तिक को टीम में जगह दी गई थी.

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अब आ रहा है 9 कैमरे वाला स्मार्टफोन

इन दिनों स्मार्टफोन का जमाना है, लोग स्मार्टफोन खरीदते समय उसके कैमरे पर विशेष ध्यान देते हैं. अभी तक बाजार में डुअल और ट्रिपल रियर कैमरे का ट्रेंड ही चल रहा था. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां तो इससे भी संतुष्टि नहीं है. क्योंकि अब एक ऐसा स्मार्टफोन लौन्च होने वाला है जिसमें एक, दो, तीन नहीं बल्कि 9 कैमरे होंगे.

हो सकता है कि आपके लिए ये यकीन करना मुश्किल हो लेकिन यही सच है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लाइट नाम की एक कंपनी 9 कैमरे वाले स्मार्टफोन पर काम कर रही है और जल्द ही यह फोन बाजार में उपलब्ध होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लाइट नाम की कंपनी ने 9 कैमरे वाले स्मार्टफोन की कौन्सेप्ट फोटो भी सोशलमीडिया पर शेयर की है.

कंपनी का दावा है कि 9 कैमरे वाले फोन के जरिए 64 मेगापिक्सल से फोटो क्लिक किए जा सकेंगे. फोटो की गुणवत्ता उच्च होगी और डेफ्थ इफेक्ट भी शानदार होगा. इससे कम रौशनी में भी डीएसएलआर कैमरे जैसी फोटो क्लिक कर सकेंगे.

वैसे 9 कैमरे वाला फोन बाजार में कब आएगा इसकी कोई पक्की खबर तो नहीं है लेकिन हुवावे ने हाल ही में 3 रियर वाले हुवावे पी20 प्रो को बाजार में पेश कर दिया है. इस फोन में रियर पैनल पर 3 कैमरे हैं. इनमें से एक कैमरा 8 मेगापिक्सल, दूसरा कैमरा 40 मेगापिक्सल और तीसरा कैमरा 20 मेगापिक्सल का है.

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मुंबई में डिब्बावालों ने बंद की टिफिन सर्विस, क्या हैं इसके नुकसान

मुंबई के डब्बावालाओं की सर्विस दुनिया भर में मशहूर है. यह औफिस में लंच बौक्स सही समय पर पहुंचाते हैं. लाखों लोग रोजाना इस सर्विस के जरिए अपनी भूख मिटाते हैं. लोकल से सफर कर मुंबई के अलग-अलग इलाकों में डब्बावाला अपनी सर्विस देते हैं. मुंबई की तकरीबन आधी कामकाजी आबादी इन डब्बावालों पर आश्रित है. लेकिन, अब मुंबई वालों के लिए एक बुरी खबर है. यह सर्विस फिलहाल (एक दिन) के लिए बंद कर दी गई है. मुंबई में ब्रिज गिरने की वजह से यह सर्विस सस्पेंड है. अब सवाल है कि सर्विस बंद होने पर मुंबई की भूख कौन मिटाएगा?

डब्बावालों ने बंद की सर्विस

दो दिन से हो रही बारिश और पिछली रात को हुई भारी बारिश ने मुंबई की लाइफलाइन लोकल के पहिए थाम दिए. पानी भरने की वजह से अंधेरी स्टेशन के पास ब्रिज गिर गया. रेलवे की वेस्टर्न लाइन पूरी तरह से ठप है. ऐसे में मुंबई की जिंदगी की रफ्तार धीमी पड़ गई है. लेकिन, उससे भी ज्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है, जो टिफिन सर्विस पर निर्भर हैं. क्योंकि, ब्रिज गिरने की वजह से डब्बावाला ने अपनी सर्विस को एक दिन के लिए पूरी तरह ठप कर दिया है.

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रोजाना डिलिवर होते हैं 2 लाख टिफिन

मुंबई में डब्बावाला कि सर्विस काफी विश्वस्त ब्रांड है. इसका बेहतरीन डिलीवरी सिस्टम काफी अच्छा रहा है. दरअसल, डब्बावाला की सर्विस मुंबई की लोकल पर आधारित है. यह घर का खाना पैक कर डिलिवरी करते हैं. पूरी मुंबई में इनकी डिलिवरी सर्विस चलती है. करीब 5000 लोग रोजाना 2 लाख टिफिन की

40-45 करोड़ की इंडस्ट्री

डब्बावाला की सर्विस 125 साल पहले शुरू हुई थी, आज की तारीख में यह 40-45 करोड़ रुपए की बड़ी इंडस्ट्री है. एक अनुमान के मुताबिक, एक बौक्स का अनुमानित मासिक शुल्क 450 रुपए है. खास बात यह है कि हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ही एकलौती ऐसी जगह है जहां डब्बावालाओं पर अध्ययन किया गया. इस अध्ययन से यह बात सामने आई कि डब्बावालाओं के सर्विस में खामियां काफी कम है, इसके करीब 6 मिलियन (60 लाख डब्बों) में एक ही कमी हो सकती है.

मुंबई डब्बावाला से जुड़ी खास जानकारी

–  1890 में मुंबई डब्बावाला की शुरुआत

– 2 लाख लोगों को खाने की सप्लाई

– 3 घंटे के अंदर खाना घर से लेकर दफ्तर तक पहुंचता है

– हर रोज 60 से 70 किलोमीटर तक का सफर तय

– खाने की सप्लाई के लिए 450-600 रुपए महीना खर्च

– खाने की सप्लाई में साइकिल और मुंबई की लोकल ट्रेन की मदद होती है

– काम में जुड़े प्रत्येक कर्मचारी को 9 से 10 हजार रुपए मासिक मिलता है

– साल में एक महीने का अतिरिक्त वेतन बोनस की तौर पर लेते है.

– नियम तोड़ने पर एक हजार फाइन लगता है

एक दिन बंद होने पर क्या नुकसान

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर डब्बावाला की सर्विस मुंबई में एक दिन के लिए बंद होती है तो तकरीबन 2 लाख लोगों पर इसका असर दिखता है. हालांकि, 3 जुलाई को अंधेरी में ब्रिज गिरने से टिफिन सर्विस सिर्फ वेस्टर्न लाइन पर बंद की गई है. लेकिन, अगर पूरी मुंबई में यह सर्विस बंद हो तो एक दिन में करीब 30 लाख रुपए का नुकसान होता है. डब्बावाला के लिए यह बहुत बड़ी राशि है.

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भोजपुरी गायक व अभिनेता रितेश पांडे के नए रिकार्ड

भोजपुरी अभिनेता व गायक रितेश पांडे ने अपनी मधुर आवाज के बल पर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. भोजपुरी संगीत जगत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी गायक के म्यूजिक वीडियो के गाने को महज नौ माह के अंदर सौ मिलियन दर्शक/श्रोता मिले हों. मशहूर संगीत कंपनी ‘वेब’ के आफिशियल यू ट्यूब चैनल पर प्रदर्शित रितेश पांडे द्वारा स्वरबद्ध गीत ‘‘पियवा से पहले’’ को सौ मिलियन से अधिक दर्शक मिले हैं. यह गाना इसी नाम के म्यूजिक वीडियो अलबम का शीर्षक गीत है. इस एलबम का आडियो काफी पहले सफल हो गया था. पर अब वीडियो ने भी नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. इस एलबम को शहर ही नहीं गांवों में भी काफी पसंद किया जा रहा है.

म्यूजिक वीडियो ‘‘पियवा से पहले’’ के गीतकार अरूण बिहारी, संगीतकार आशीष वर्मा, वीडियो निर्देशक आशीष यादव व नृत्य निर्देशक सुनील रौक हैं.

इस संगीत वीडियो एलबम की सफलता पर रितेश पांडे कहते हैं- ‘‘मैं तो अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ अंजाम देने का प्रयास करता हूं. बाकी तो दर्शकों व प्रशंसकों का प्यार है कि इस एलबम ने नया कीर्तिमान स्थापित कर डाला.’’

इतना ही नहीं रितेश पांडे व अभिनेत्री अक्षरा सिंह की मधुर आवाज में स्वर बद्ध कांवर गीत ‘‘पइसा का दिहे तोर पापा’’ को महज एक दिन के अंदर छह लाख लोगों ने ‘वेब’संगीत कंपनी के अधिकृत यूट्यूब चैनल पर सुना. यह पहला मौका है, जब अक्षरा सिंह के साथ रितेश पांडे ने कोई कांवर गीत गाया हो. अभी तक इसका वीडियो बाजार में नहीं आया है. इस कांवर गीत के लेखक आलम दिलशाद, संगीतकार आशीष वर्मा हैं. यह कांवर गीत संगीत अलबम ‘‘आया सावन झूम’’ का हिस्सा है.

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टीम का कैसे करें धन्यवाद, तरीका हम आप को बताते हैं

जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब हमें दूसरों के सहयोग व सहभागिता की जरूरत पड़ती है. मकान बनवा रहे हैं तो आर्किटैक्ट से ले कर प्लंबर, इलैक्ट्रीशियन, दफ्तर में काम कर रहे हैं तो अपने सहकर्मियों और कोई सामाजिक कार्य हो तो परिवार के सदस्यों से ले कर कैटरर, टैंट हाउस वाले व घर के सेवकों के सहयोग की जरूरत पड़ती ही है. इंसानियत का तकाजा यह है कि मदद का हाथ थामने में हिचकिचाएं नहीं. हां, मदद करने वाले का शुक्रिया अदा करते हुए उसे एहसास कराएं कि सचमुच यदि उन का साथ न मिलता तो आप कामयाब न हो पाते. हो सके तो उन्हें कोई गिफ्ट भी दें.

दफ्तर की टीम का आभार : दफ्तर का काम टीमवर्क पर आधारित होता है. क्लास वन से ले कर क्लास फोर तक हर कर्मचारी कोई भी काम एकदूसरे के सहयोग के बिना पूरा नहीं कर सकता. मान लीजिए, आप को एक प्रैजेंटेशन अपने सीनियर अधिकारियों के सामने पेश करना है. आप की प्रमोशन और वेतनवृद्धि सबकुछ इसी प्रैंजेंटेशन पर निर्भर है. निश्चितरूप से आप को कुछ आंकड़ों और कुछ मैटीरियल की जरूरत होगी. हालांकि यह युग कंप्यूटर का है, फिर भी आप को संबंधित विभाग के कर्मचारियों से मदद लेनी ही पड़ेगी. यदि ऐनवक्त पर कंप्यूटर खराब हो गया तो आप को हैल्प डैस्क और सर्विस डैस्क से भी संपर्क करना पड़ सकता है. ऐसे में जब भी काम पूरा हो जाए, आप अपनी पूरी टीम को धन्यवाद देना न भूलें. बच्चों की टीम को धन्यवाद : दिल्ली की मशहूर बाल मनोवैज्ञानिक शैलजा सिंह कहती हैं कि बच्चों की जरा सी गलती पर हम उन्हें डांटना या भाषण देना शुरू कर देते हैं. उन्हें सुधारने के बहाने उन की आलोचनाएं शुरू कर देते हैं. यह नहीं सोचते कि वे हर काम हमारी तरह कैसे कर सकते हैं. इस से कुछ फायदा तो होता है नहीं, बल्कि बच्चों का मनोबल गिर जाता है. काम से उन का मन हट जाता है. यहां तक कि कुछ बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं.

घर हो या स्कूलकालेज, जब भी आप बच्चों की मदद लेते हैं, उन के विकल्पों को ध्यान से सुनें, उन से चर्चा करें. उन के छोटेबड़े फैसले लेने पर उन की मेहनत व उन के प्रयासों को सराहें. मजबूत रिश्तों की बुनियाद है, मजबूत संवाद. बात करते रहिए, दिल से धन्यवाद देते रहिए. शैलजा सिंह बताती हैं, ‘‘एक बार मैं अपने पति के साथ एक सिल्वर जुबली समारोह में भाग लेने के लिए खड़गपुर आईआईटी गई. वहां विद्यार्थियों द्वारा किया गया आतिथ्यसत्कार सराहनीय था, उस से भी अधिक सराहनीय था प्रोफैसरों द्वारा विद्यार्थियों के प्रति प्रकट किया गया आभार. जरा सोचिए, विद्यार्थियों को प्रोफैसरों से अपनी प्रशंसा सुन कर कितना अच्छा लगा होगा.’’ आप घर शिफ्ट कर रहे हैं या किसी पार्टी का आयोजन कर रहे हैं, गौर से देखें, बच्चे किस तरह दौड़भाग कर आप का हाथ बंटाते हैं. उन की पीठ थपथपा कर तो देखिए, वे दोगुने उत्साह से आप की मदद करेंगे. रिश्तेदारों को करें धन्यवाद : मेरे जीजाजी की दुकान में शौर्ट सर्किट के चलते आग लग गई. भारी नुकसान हुआ. खबर मिलते ही उन के दोनों भाई घटनास्थल पर पहुंच गए. एक भाई ने दुकान संभाली, दूसरे ने दौड़भाग कर के बीमा कंपनी से पैसा दिलवाया. उन की दोनों बहनें छोटी थीं, फिर भी अपनी एफडी तुड़वा कर, गहने गिरवी रख कर उन्होंने भाई की मदद की. लेकिन जीजाजी के मुख से एक भी शब्द धन्यवाद का नहीं निकला. वे यही कहते रहे कि थोड़ीबहुत सहायता कर भी दी तो क्या हुआ. रिश्तेदार सहायता नहीं करेंगे तो कौन करेगा.

दूसरी ओर शीला का उदाहरण देखिए. अपनी बेटी की शादी उस ने भोपाल से दिल्ली आ कर की. नया शहर नए लोग. घबराहट के मारे उस का बुरा हाल था. दिल्ली में उस की बहन की ससुराल थी. बहन के ससुरालपक्ष के लोगों ने उन के ठहरने के इंतजाम से ले कर बैंक्वेट हौल, कैटरर, शादी के छोटेछोटे काम तक का पूरा प्रबंध उन लोगों के दिल्ली पहुंचने से पहले ही कर दिया था. कहना न होगा शीला और उन के घर वालों को इस प्रबंध से कितनी सुविधा हुई, समय की बचत हुई, वह अलग. शादी शानदार ढंग से संपन्न हो गई. भोपाल वापस लौटते समय शीला ने बहन की ससुराल के हर सदस्य को धन्यवाद तो दिया ही, साथ ही, चांदी के गिलास का जोड़ा भी दिया. सेवकों का भी करें धन्यवाद : मेरी एक परिचिता घर के हर काम के लिए अलगअलग मेड रखती हैं. कारण पूछने पर बताती हैं कि कभी एक छुट्टी करती है तो उस का काम दूसरी मेड कर देती है. इस बदली के काम का वह अलग से मेहनताना तो देती ही है, दिल से उन का धन्यवाद भी करती हैं. वे अपने सेवकों को तीजत्योहार पर उपहार भी देती हैं. उन का कहना है मित्रसंबंधी तो बाद में पहुंचते हैं, जरूरत पड़ने पर ये सेवक ही सब से पहले हमारे काम आते हैं.

अब काम करने वालों को चाबुक से साध कर रखने का जमाना गया. डांटफटकार के बजाय मीठा बोल कर, पुचकार कर आप उन्हें अपना बनाएं. कुछ लोगों का मानना है, ‘काम करते हैं तो उन्हें पैसा भी तो देते हैं. प्रशंसा कर के इन्हें सिर पर थोड़े ही चढ़ाना है.’ अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो गलत है. मानवता के नजरिए से सोचा जाए तो आप ने पैसा उन्हें उन के काम का दिया, लेकिन आप के प्रति उन की निष्ठा का मोल क्या पैसे से चुकाया जा सकता है? आप मकान बना रहे हैं या घर का नवीकरण कर रहे हैं, कारीगरों को डांटनेफटकारने के बजाय उन के काम की प्रशंसा करें. हमारे पड़ोसी जब भी घर का नवीकरण करवाते हैं उन के कारीगर बीच में ही काम छोड़ कर भाग जाते हैं. एक दिन तो हद हो गई, उन की पानी की टंकी पूरी खाली हो गई और कोई पलंबर उन के बारबार बुलाने पर भी घर नहीं आया. कितनी असुविधा हुई होगी उन्हें, आप अनुमान लगा सकते हैं.

छोटे से शब्द ही तो हैं धन्यवाद, शुक्रिया, थैंक्यू. विदेशों में तो सामने वाला चालक यदि आप को गाड़ी ओवरटेक करने देता है तो भी मुसकरा कर, अंगूठा दिखा कर धन्यवाद करने की मुद्रा में. अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते? याद रखें, इंसान के मीठे बोल उस के आगे का मार्ग प्रशस्त करते हैं.

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संत की आत्महत्या : पलायनवादी बनाता है धर्म

कलियुग में धर्म ही तारता है, ऐसा कहा जाता है. जीवन, मृत्यु और सांसारिक चक्र व छलप्रपंचों में फंसे लोग तरने के लिए मंदिरों व बाबाओं की शरण में जा कर अपनी परेशानियों का हल ढूंढ़ते हैं. तरने की यह आदिम इच्छा धर्म की ही देन है, इसलिए तारने के लिए लाखों की तादाद में साधुसंत मौजूद हैं. ये बाबा लोग तारने और पापमुक्ति के नाम पर तगड़ी फीस लेते हैं, जिस की दुकान ज्यादा चल जाती है उस के भाव बढ़ जाते हैं. देखते ही देखते एक वक्त ऐसा भी आता है कि बड़े हो गए ब्रैंडेड बाबा के अनुयायियों की संख्या करोड़ों में और कमाई खरबों में पहुंच जाती है.

ऐसे धर्मगुरुओं की पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में होता है. चढ़ावे की वित्तीय व्यवस्था और प्रवाह के लिए ये जगहजगह आश्रम और ट्रस्ट खोल लेते हैं, जिन में उन के विश्वसनीय लोग पाईपाई का हिसाब रखते हैं और गुरु को बताते रहते हैं कि इस तिमाही में कितना नफा हुआ और कुल तामझाम में कितना पैसा खर्च हुआ. इन के नजदीकियों की जिंदगी भी बगैर कुछ किएधरे ऐशोआराम से गुजरती है. इन बाबाओं और संतों की शाही जिंदगी देख अकसर बेरोजगार युवा आह भरते नजर आते हैं कि पढ़ाईलिखाई में वक्त और पैसा जाया करने से तो बेहतर था कि बाबा बन कर ऐश और मौज की जिंदगी गुजारते. पर इन युवाओं को यह अंदाजा या एहसास नहीं होता कि ब्रैंडेड बाबा बनने के लिए सिर्फ भगवा कपड़े पहन कर कथा, प्रवचन, यज्ञ व हवन करना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि और भी बहुतकुछ करना पड़ता है, तब कहीं जा कर मोक्ष और मुक्तिकी दुकान चमकती है.

ऐसे ही एक संत थे इंदौर के भय्यूजी महाराज, जो देखते ही देखते अरबों की दौलत के मालिक बन बैठे थे. भय्यूजी महाराज ने सब को चौंकाते हुए 12 जून को इंदौर के सिल्वर स्प्रिंग स्थित अपने घर के एक बैडरूम में कनपटी पर गोली मार कर आत्महत्या कर ली, तो इस खुदकुशी की खासी चर्चा हुई थी. इस हाईप्रोफाइल आत्महत्या की वजहों के साथसाथ यह सवाल आम लोगों को हमेशा मथता और सालता रहेगा कि जब करोड़ों लोगों को जीवन जीने का पाठ सिखाने वाले, धर्म की राह दिखाने वाले और जिंदादिली से परेशानियों का सामना करने का सबक सिखाने वाले ही बुजदिलों की तरह यों खुदकुशी करेंगे तो धर्म के माने क्या और इस से क्या संदेश समाज में जाएगा.

कौन थे भय्यूजी महाराज भय्यूजी महाराज मौजूदा संतों में सब से ज्यादा हैंडसम और स्मार्ट थे, इस में कोई शक नहीं. पहली ही नजर में वे भक्तों को अगर भगवान टाइप के संत नजर आते थे तो इस की एक अहम वजह उन का गोरा रंग, चौड़े माथे पर लगा लाल तिलक, घने बाल और चमकता चेहरा था. कला और साहित्य मेें रुचि रखने वाले भय्यूजी महाराज भजन भी अच्छा गाते थे.

50 वर्षीय इस संत की मौत जितनी फिल्मी स्टाइल में हुई उतनी ही उतारचढ़ाव वाली उन की जिंदगी भी थी. भय्यूजी महाराज का वास्तविक या सांसारिक नाम उदय सिंह देशमुख था. मध्य प्रदेश के मालवांचल इलाके के शहर शुजालपुर में जन्मे उदय की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी क्योंकि वे एक जमींदार परिवार में पैदा हुए थे. उदय यदि दूसरे युवाओं की तरह महत्त्वाकांक्षी था तो यह कोई हर्ज की बात नहीं थी. बिलाशक वह एक प्रतिभाशाली युवक था. पढ़ाई पूरी करने के बाद उदय ने मुंबई की एक नामी कंपनी में नौकरी कर ली थी. मुंबई में रहते ही उसे मौडलिंग का शौक चर्राया तो सियाराम जैसी नामी सूटिंग कंपनी ने उसे मौका दिया.

छोटे से कसबे से निकले उदय को मुंबई की तड़कभड़क व चमकदमक ने इतना प्रभावित किया था कि उसे लगने लगा कि कलियुग में पैसा ही सबकुछ है. नौकरी या थोड़ी सी मौडलिंग से इतनी आमदनी नहीं होती कि उदय जैसे बड़े ख्वाब देखने वाले युवाओं के अरमान पूरे हो सकें. फिर उदय ने वही कर डाला जो आज के युवा सोच रहे होते हैं. एक दिन उदय को लगा कि कोई उसे प्रेरणा दे रहा है तो वह संत बन गया और अपना नाम भय्यू रख लिया. वह जगहजगह धार्मिक व आध्यात्मिक प्रवचन देने लगा.

भय्यूजी महाराज की दुकान चल निकली तो फिर उन्होंने वापस मुड़ कर नहीं देखा. उन के गिनेचुने भक्त ही इस बात को समझ पाते थे कि दरअसल, वे निराकार की बात ज्यादा करते हैं, साकार और विष्णु के अवतारों का उल्लेख वे प्रसंगवश ही करते हैं. यह वह दौर था जब धर्म के नाम पर पैसा लुटाने वाले भक्त भागवत, राम और कृष्ण कथाओं व लीलाओं से बोर होने लगे थे. उन्हें जो नया चाहिए था वह भय्यू महाराज से मिलने लगा तो भीड़ उन की तरफ दौड़ने लगी.

भय्यूजी महाराज की एक और विशेषता गृहस्थ संत होने की थी. कृष्ण ने गीता में गृहस्थ संन्यास का विस्तार से उल्लेख किया है कि जिस से कलियुग में साधुसंत घर में रहते ही पैसा कमा सकें, उन्हें नदीनालों के घाटों की खाक न छाननी पड़े और न ही हिमालय पर जा कर तपस्या करनी पड़े. भय्यूजी महाराज की पहली शादी औरंगाबाद की माधवी निंबालकर से हुई थी. माधवी एक अच्छी पत्नी साबित हुईं और अकसर सार्वजनिक समारोहों में उन के साथ दिखती थीं. भय्यूजी महाराज उस वक्त खुशी से झूम उठे थे जब माधवी ने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया जिस का नाम उन्होंने प्यार से कुहू रखा था.

यों चमकी दुकान भय्यूजी महाराज को वक्त रहते ही यह भी समझ आ गया था कि अगर पैसा कमाना है तो राजनेताओं के अलावा फिल्मी सितारों से भी संबंध बनाना जरूरी है. साल 2000 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख से उन की मुलाकात हुई थी. इस के बाद विलासराव देशमुख उन के अनुयायी हो गए थे.

मध्य प्रदेश के निमाड़ और मालवांचल से ज्यादा उन की पैठ महाराष्ट्र में थी. उन के अनुयायियों में जो दिग्गज हस्तियां शुमार हुईं वे ज्यादातर महाराष्ट्र की ही थीं. भय्यू महाराज के कई राजनीतिक व फिल्मी हस्तियों से गहरे संबंध थे. उन में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, मनसे मुखिया राज ठाकरे, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, मशहूर गायिका लता मंगेशकर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पंकजा मुंडे और रामदास अठावले के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल भी शामिल हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी उन की नजदीकियां जगजाहिर हैं. भय्यूजी महाराज पहली दफा तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने दिल्ली में मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाया था. दिल्ली के जंतरमंतर पर तबअन्ना हजारे के इर्दगिर्द कई नामी संतों का जमावड़ा था. उन के बीच माथे पर लाल तिलक लगाए इस युवा संत का चेहरा अलग ही चमक रहा था. इस से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी का सद्भावना उपवास तुड़वाने वाले भी भय्यू महाराज ही थे जिन्हें खुद नरेंद्र मोदी ने आमंत्रित किया था. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी उन के मुरीदों में से एक हैं.

उपवास तुड़वाऊ विशेषज्ञ होते जा रहे भय्यूजी महाराज को युवा राष्ट्रीय संत भी कहा जाने लगा और इंदौर स्थित उन के आश्रम सूर्योदय में नामीगिरामी फिल्मी व सियासी हस्तियों का आनाजाना शुरू हुआ तो उन पर पैसों की बरसात होने लगी. इस युवा संत ने पैसे का जीभर कर हर तरह से इस्तेमाल किया. अच्छी बात यह रही कि उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने के इंतजाम किए. गरीब किसानों को खादबीज बांटे और तालाब वगैरह भी खुदवाए.

दानदक्षिणा का कुछ पैसा जरूरतमंदों के लिए खर्च किया तो बड़ा हिस्सा भय्यूजी महाराज ने अपने आश्रमों के विस्तार और खुद पर भी खर्च किया. मर्सिडीज कार में चलने के आदी भय्यूजी महाराज नएनए मौडल्स की कार के अलावा रोलैक्स जैसी महंगी गाडि़यों के भी शौकीन थे. दूसरी शादी बनी जंजाल

साल 2015 की जनवरी में लंबी बीमारी के बाद पुणे में उन की पहली पत्नी माधवी की मौत हुई तो भय्यूजी महाराज में वाकई में विरक्ति आने लगी थी और वे सांसारिकता छोड़ने की बात कहने लगे थे. यह एक नितांत स्वाभाविक बात थी. बेटी कुहू को उन्होंने पुणे पढ़ने भेज दिया था. भय्यूजी महाराज की दूसरी शादी ग्वालियर के नजदीक शिवपुरी की आयुषी शर्मा से हुई, जो एक मामूली खातेपीते घर की महत्त्वाकांक्षी और आकर्षक नैननक्श वाली युवती है. इस शादी की पहल उन की मां व बहनों रेणुका और अनुराधा ने की थी जिन्हें आयुषी अक्का कह कर बुलाती है. अपनी पीएचडी के सिलसिले में आयुषी का भय्यूजी महाराज के आश्रम में आनाजाना शुरू हुआ था.

व्यस्तता के चलते भय्यूजी महाराज उसे वक्त नहीं दे पाते थे. वह उन की मां के पास घंटों बैठी बतियाती रहती थी और अकसर अक्का से भी मिलती रहती थी. भय्यूजी महाराज का दिल दुनियादारी में लगाए रखने के लिए मां व बहन ने जोर डाला तो भय्यूजी महाराज ने शादी के लिए हामी भर दी. अप्रैल 2017 में दोनों इंदौर में एक सादगी भरे समारोह में शादी के बंधन में बंध गए.

यह वह गलती थी जो अधिकांश भारतीय विधुर करते हैं. अपने से उम्र में आधी आयुषी की खूबसूरती और अदाओं पर फिदा भय्यूजी महाराज ने अपनी किशोर होती बेटी की भावनाओं की परवा यह सोचते नहीं की कि वह वक्त रहते आयुषी को मां मान लेगी. पर अधिकांश मामलों की तरह इस मामले में भी ऐसा हुआ नहीं. कुहू उन की शादी में शामिल नहीं हुई. इस के बाद तो सौतेली मां और बेटी में रोजरोज की खटपट होने लगी. भय्यूजी महाराज की दिक्कत यह थी कि वे दोनों को एकसाथ नहीं संभाल पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे. देखते ही देखते वे 2 पाटों के बीच पिसने लगे. इधर आयुषी जल्द ही मां बन गई. उस ने 4 महीने पहले ही एक बेटी को जन्म दिया तो कुहू और भी बिफर गई. कुहू के गुस्से और डर के चलते भय्यूजी महाराज आधी रात में आयुषी से चोरीछिपे मिलने ससुराल जाते थे.

दुनियाभर को आध्यात्म, दर्शन और मनोविज्ञान का पाठ पढ़ा कर खासी दौलत बनाने वाले इस युवा संत का जीना दूभर हो गया. इस से धर्म के उन के धंधे पर तो खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन धीरेधीरे उन्होंने प्रवचन, जिन्हें उन के पढ़ेलिखे भक्त लैक्चर कहते थे, देना कम कर दिया था. अपने वक्त के मशहूर संत दत्तात्रेय को अपना आदर्श मानने वाले भय्यूजी महाराज भीषण तनाव में जी रहे थे. यह बात आश्रम में रह रहे चुनिंदा लोग ही जानते थे जिन्हें महलनुमा आश्रम के हर कमरे में झांकने की इजाजत थी.

दूसरी पत्नी और बेटी की कलह जब सुलझाए नहीं सुलझी और असहनीय हो गई तो भय्यूजी महाराज ने पलायन करते आत्महत्या कर ली. इतना खतरनाक फैसला लेने से पहले उन्होंने सुसाइड नोट लिखने की भी रस्म निभाई जिस का सार यह था कि बरदाश्त के बाहर हो चले भीषण तनाव के चलते वे यह आत्मघाती कदम उठा रहे हैं. खुदकुशी के बाद

एक नामी संत की खुदकुशी से हर कोई हतप्रभ था कि आखिर यह क्या हो गया पर जो हुआ था वह कड़वे सच की शक्ल में सामने था कि करोड़ों भक्तों को शांति और व्यावहारिकता की घुट्टी पिलाने वाले भय्यूजी महाराज अपने घर का ही मसला नहीं सुलझा पाए. खुदकुशी को ले कर तरहतरह की बातें भी हुईं. कांग्रेस ने अपना राजनीतिक धर्म निभाते यह आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के दबाव के चलते भय्यूजी महाराज ने यह घातक कदम उठाया है. गौरतलब है कि इसी साल अप्रैल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिन 5 बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था, भय्यूजी महाराज उन में से एक थे. हालांकि उन्होंने यह दर्जा लेने से इनकार कर दिया था. शिवराज सिंह चौहान की चर्चित नर्मदा यात्रा में जो घोटाले हुए थे उन्हें उजागर करने वालों में से एक भय्यूजी महाराज भी थे.

कांग्रेस का यह दावं कारगर साबित नहीं हुआ, क्योंकि 13 जून को शवयात्रा के दौरान ही आयुषी और कुहू की कलह व खटास पूरी तरह उभर कर सामने आ गईं. दोनों ने एकदूसरे से बात करना तो दूर, एकदूसरे की शक्ल देखना भी गवारा नहीं समझा. पुलिस को दिए अपने बयान में कुहू ने साफ कहा कि वह आयुषी को मां नहीं मानती. उनकी वजह से ही पिता ने यह कदम उठाया, इसलिए उन्हें जेल में डाल देना चाहिए.

दूसरी तरफ आयुषी के बयान से भी कलह साफसाफ झलकी. बकौल आयुषी, कुहू उन्हें और उन की बेटी को पसंद नहीं करती थी, इसलिए अपनी बेटी के जन्म के बाद से वे मायके में रह रही थीं. वे और महाराज तो अच्छे से रह रहे थे. दरअसल, कुहू अपने पिता को कहीं भी बंटते नहीं देख पा रही थी, तो आयुषी चाहती थी कि भय्यूजी महाराज कुहू पर जरूरत से ज्यादा ध्यान न दें. हादसे के पहले कुहू के कमरे की साफसफाई को ले कर भी पतिपत्नी में विवाद हुआ था. भय्यूजी महाराज ने आयुषी को तबीयत से डांटा कि आज कुहू आने वाली है और उस का कमरा अस्तव्यस्त पड़ा है. आयुषी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तो नौकरों से कमरा व्यवस्थित करवाया गया था.

इस के थोड़ी ही देर बाद भय्यूजी महाराज ज्ञान, ध्यान, विज्ञान, प्रवचन और आध्यात्म भूलभाल कर खुद की कनपटी पर गोली मार कर दुनिया छोड़ गए. आयुषी और कुहू दोनों बिलखती रहीं कि अब उन का क्या होगा. बिलाशक यह नजारा दुखद था पर इन दोनों ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की कलह का भय्यूजी महाराज पर यह असर पड़ेगा.

दाहसंस्कार के पहले से ही जायदाद और आश्रमों को संभालने की भी बात होने लगी. जल्द ही भय्यूजी महाराज की लिखी दूसरी चिट्ठी भी सामने आ गई, जिस में उन्होंने अपने सारे वित्तीय अधिकार अपने विश्वसनीय सेवक विनायक को हस्तांतरित कर दिए थे. इस पर बिल्लियों की तरह लड़ती ये दोनों समझौते के लिए तैयार हो गईं, जिस के तहत आयुषी को पति की संपत्ति का 30 और कुहू को 70 फीसदी हिस्सा मिलना तय हुआ. लेकिन आश्रम के प्रवक्ता तुषार पाटिल ने इसे अफवाह बताते हुए इस का खंडन किया है. यह सिखाता है धर्म

इस फिल्मी सी कहानी में मुद्दे की बात भय्यूजी महाराज का संत जीवन है. जिस में वे जगहजगह तरहतरह से भक्तों को जीवन जीना सिखाते रहे थे और इस बाबत आध्यात्म और धर्म का हवाला देते रहे थे. इस संत की बुजदिली एक सबक है कि धर्मगुरुओं की कथनी और करनी में जमीनआसमान का फर्क होता है. कहीं ब्रह्मचारी, व्यभिचारी और बलात्कारी निकलते हैं तो कहीं अपरिग्रह का उपदेश देने वाले नोटों के बिस्तर पर सोते हैं. इस मामले में तो जीने के तरीके सिखाने वाला संत खुद ही आम लोगों की तरह खुदकुशी कर बैठा.

इस में कोई शक नहीं कि समाजसेवा के मामले में भय्यूजी महाराज अग्रणी थे, पर यह कोई मानवसेवा नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिए एक तरह का इन्वैस्टमैंट था जो आजकल सभी संत करते हैं. अगर धर्म कोई परेशानी सुलझाता होता तो कम से कम भय्यूजी महाराज जैसे संत के खुदकुशी करने की नौबत न आती. भगवान कहीं होता तो अपने इस भक्त के सारे दुख एक झटके में दूर कर देता. हकीकत तो यह है कि ईश्वर या भगवान एक गप भर है जिस के नाम पर हरेक संत पैसा कमाता है.

दिक्कत यह है कि ऐसे सच कई तरह से उजागर होने के बाद भी लोग सबक नहीं लेते, तो लगता है धर्म वाकई अफीम है जिस के नशे में धुत्त हो कर लोग वक्ती तौर पर अपनी परेशानियों को भूल जाते हैं, लेकिन इस नशे की तगड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है. तो, इस के जिम्मेदार भी वही हैं.

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जीवन सरिता : निंदक नियरे राखिए

अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता. इस में संदेह नहीं कि तारीफ का असर सकारात्मक होता है. परंतु किसी व्यक्ति की गलतियों पर भी उस की तारीफ की जाए तो यह संभव नहीं है. बिना गुण के तारीफ अकसर इंसान को गुमराह भी कर सकती है, उस के अंदर झूठा अहं पैदा कर सकती है. इसीलिए, संत कबीर दास ने कहा था –

‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय

बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय.’

आलोचक किसी को भी अच्छे नहीं लगते. अपनी बुराई सुन कर कौन खुश होता है? पर अगर गहराई से सोचा जाए तो हमारी बुराई और आलोचना के परिणाम कभीकभी सुधारवादी व सकारात्मक भी हो सकते हैं. सकारात्मक परिणाम

नीमा को खाना बनाना अच्छा नहीं लगता था, इसीलिए उस ने कभी भी तरहतरह के व्यंजन बनाने नहीं सीखे. शादी के बाद पता चला कि उस के पति को तरहतरह के व्यंजन खाने का शौक है. पर उसे तो कुछ आता ही नहीं था, जबकि उस की जेठानी पाककला में निपुण थी. नीमा का पति अपनी भाभी के खाने की तारीफ करते नहीं थकता था. नीमा कुछ भी बनाती तो वह उस में कुछ न कुछ मीनमेख निकालता रहता था. इस बात से नीमा खिन्न रहती थी, तिस पर उस की जेठानी उसे इस बात के लिए खूब ताने मारती रहती. एक दिन तो उस ने यहां तक कह दिया, ‘‘नीमा, तुम्हारे हाथ का बना खाना तो कुत्ते को भी पसंद नहीं आएगा.’’ हालांकि इस बात ने नीमा को अंदर तक आहत कर दिया था और उसे बहुत गुस्सा आ रहा था पर उस ने अपनी जेठानी को कभी कोई जवाब नहीं दिया और मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब वह जेठानी से भी अच्छा खाना बनाएगी और सचमुच उस ने यह कर दिखाया. उस ने कुकिंग क्लास जौइन की और आज वह पाककला में इतनी निपुण है कि हर कोई उस के हाथ के बने खाने की तारीफ करता है.

अगर उस की जेठानी उसे ताने न मारती और उस के खाने में मीनमेख न निकाली जाती तो शायद ही वह कभी इतना अच्छा खाना बना पाती. इसीलिए कहते हैं कि हमें अपनी बुराई सुन कर आए गुस्से की एनर्जी का उपयोग खुद को सुधारने में करना चाहिए. खुद को कमतर न आंकें

एक दार्शनिक का कहना है कि कोई आप को नीचा नहीं दिखा सकता, जब तक स्वयं आप की उस के लिए सहमति न हो. इस दुनिया में हमें कदमकदम पर आलोचक या निंदा करने वाले मिलेंगे. कुछ लोगों की तो दूसरों की आलोचना करने की प्रवृत्ति ही होती है. ऐसे लोग किसी को नहीं छोड़ते. दूसरों का मजाक उड़ाने में इन लोगों को बहुत मजा आता है. वैसे देखा जाए तो इस तरह के लोग खुद हीनभावना के शिकार होते हैं लेकिन कुछ चापलूसों की झूठी तारीफें सुन कर ये खुशफहमी और झूठा अहं पाल लेते हैं. अपने इसी झूठे अहं को संतुष्ट करने के लिए ये लोग दूसरों की कमियां गिनाते रहते हैं, खासकर उन लोगों की जो असलियत में उन से हर बात में बेहतर होते हैं.

ऐसे लोग दूसरों को आलोचना कर के उन का आत्मविश्वास तोड़ उन से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. अगर ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न दे कर यदि अपने काम पर ध्यान दिया जाए और खुद की योग्यता पहचान कर आगे बढ़ा जाए तो यह इस तरह के लोगों को हराने का सब से बेहतर तरीका है. हम वह नहीं हैं जो हमें दूसरे लोग बताते हैं, बल्कि हम वह हैं जिसे हम पहचानते हैं- औरों से बेहतर, औरों से श्रेष्ठ, औरों से गुणवान. अपने भीतर छिपे इन गुणों को पहचान कर व्यर्थ की आलोचनाओं पर ध्यान न दे कर चुपचाप अपना कार्य करते रहिए, खुद को और बेहतर बनाने की कोशिश करते रहिए. एक दिन ऐसा आएगा जब आप इतनी ऊंचाई पर पहुंच जाएंगे कि आप पर पत्थर फेंकने वाले लोगों पर वे ही पत्थर वापस आ कर गिरेंगे. आलोचना स्वीकारें

आलोचना को हम स्वीकार नहीं करते, परंतु यह एक आवश्यक चीज है. इस की तुलना हम अपने शरीर में होने वाले दर्द से कर सकते हैं जो किसी अस्वस्थ चीज की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करता है. यदि किसी व्यक्ति के शरीर के किसी अंग में कैंसर की शुरुआत हो चुकी है और इस रोग के फर्स्ट स्टेज पर ही डाक्टर को पता चल जाए और सिर्फ मरीज को खुश करने के लिए डाक्टर कहे कि आप को कोईर् रोग नहीं, आप बिलकुल स्वस्थ हैं तो उस व्यक्ति का रोग बढ़ कर सारे शरीर में फैल जाएगा और इस की वजह से उस की मौत भी हो सकती है.

इसी तरह यदि हमारे अवगुणों की तरफ कोई हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं करेगा तो हमारे अंदर अवगुण बढ़ते जाएंगे और ये हमारे पतन का कारण बन जाएंगे. इसीलिए आलोचना को स्वीकार करना सीखें और उस से आहत न हों, बल्कि दृढ़ निश्चय की ओर बढ़ें कि हमें अपनी कमियां दूर कर बेहतर इंसान बनना है. खुद को कमजोर न होने दें

अकसर देखा गया है कि कुछ लोग आलोचना सहन नहीं कर पाते तथा आहत हो कर अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं और फिर अवसाद के शिकार हो जाते हैं. यह स्थिति कभीकभी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर कर देती है. हमारी कमियां बताने वाले कभीकभी हमें विश्वास दिला देते हैं कि हम वो हैं जो उन्होंने हमें बताया है. रमा अपनी सहेलियों में सब से सुंदर थी. पर उस की सहेलियां हमेशा उस में कोई न कोई कमी निकालती रहतीं, जैसे तेरी लंबाई कितनी कम है, तेरे चेहरे पर कितने पिंपल्स हैं आदि. ये सब सुन कर रमा को सच में लगने लगा कि वह सुंदर नहीं है. एक दिन वह घर आ कर खूब रोई. उस की मम्मी ने उसे आईने के सामने ले जा कर खुद को ध्यान से देखने को कहा और उसे बताया कि वह अपनी सहेलियों से बहुत अधिक सुंदर है, इसलिए वे सब उस से जलती हैं.

रमा ने खुद को आईने में देखा तो सच में उसे लगा कि वह सुंदर है, और फिर उस ने अपनी सहेलियों की हर आलोचना को जवाब देना शुरू कर दिया. ऐसे में उस का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया. धीरेधीरे उस की सहेलियों ने उस की आलोचना करनी बंद कर दी. अगर वह कमजोर पड़ जाती तो शायद सारी जिंदगी हीनभावना से ग्रसित रहती. इसलिए किसी भी स्थिति में खुद को कमजोर न पड़ने दें. जिस तरह खाने में हमें मीठी चीजें पसंद होती हैं पर ज्यादा मीठा सेहत

के लिए नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए करेले और नीम जैसी कड़वी चीजें खाने की सलाह दी जाती है ताकि सेहत दुरुस्त रहे, उसी तरह अपनी तारीफ के साथ बुराई भी सुनने की आदत डालनी चाहिए. जीवन में ऐसे लोगों का होना भी जरूरी है जो हमारी कमियां बता कर हमें अपनी असलियत बताएं, ताकि हमारा व्यक्तित्व और निखरे तथा हम बेहतर इंसान बन सकें.

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बस तुम्हारी हां की देर है : सुहागरात पर दिव्या के साथ क्या हुआ

अपनीशादी की बात सुन कर दिव्या फट पड़ी. कहने लगी, ‘‘क्या एक बार मेरी जिंदगी बरबाद कर के आप सब को तसल्ली नहीं हुई जो फिर से… अरे छोड़ दो न मुझे मेरे हाल पर. जाओ, निकलो मेरे कमरे से,’’ कह कर उस ने अपने पास पड़े कुशन को दीवार पर दे मारा.

नूतन आंखों में आंसू लिए कुछ न बोल कर कमरे से बाहर आ गई. आखिर उस की इस हालत की जिम्मेदार भी तो वे ही थे. बिना जांचतड़ताल किए सिर्फ लड़के वालों की हैसियत देख कर उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को उस हैवान के संग बांध दिया. यह भी न सोचा कि आखिर क्यों इतने पैसे वाले लोग एक साधारण परिवार की लड़की से अपने बेटे की शादी करना चाहते हैं? जरा सोचते कि कहीं दिव्या के दिल में कोई और तो नहीं बसा है… वैसे दबे मुंह ही, पर कितनी बार दिव्या ने बताना चाहा कि वह अक्षत से प्यार करती है, लेकिन शायद उस के मातापिता यह बात जानना ही नहीं चाहते थे.

अक्षत और दिव्या एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों अंतिम वर्ष के छात्र थे. जब कभी अक्षत दिव्या के संग दिख जाता, नूतन उसे ऐसे घूर कर देखती कि बेचारा सहम उठता. कभी उस की हिम्मत ही नहीं हुई यह बताने की कि वह दिव्या से प्यार करता है पर मन ही मन दिव्या की ही माला जपता रहता था और दिव्या भी उसी के सपने देखती रहती थी. ‘‘नीलेश अच्छा लड़का तो है ही, उस की हैसियत भी हम से ऊपर है. अरे, तुम्हें तो खुश होना चाहिए जो उन्होंने अपने बेटे के लिए तुम्हारा हाथ मांगा, वरना क्या उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी है इस दुनिया में?’’

दिव्या के पिता मनोहर ने उसे समझाते हुए कहा था, पर एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि दिव्या मन से इस शादी के लिए तैयार है भी या नहीं. मांबाप की मरजी और समाज में उन की नाक ऊंची रहे, यह सोच कर भारी मन से ही सही पर दिव्या ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी. वह कभी नहीं चाहेगी कि उस के कारण उस के मातापिता दुखी हों. कहने को तो लड़के वाले बहुत पैसे वाले थे लेकिन फिर भी उन्होंने मुंहमांगा दहेज पाया.

‘अब हमारी एक ही तो बेटी है. हमारे बाद जो भी है सब उस का ही है. तो फिर क्या हरज है अभी दें या बाद में’ यह सोच कर मनोहर और नूतन उन की हर डिमांड पूरी करते रहे, पर उन में तो संतोष नाम की चीज ही नहीं थी. अपने नातेरिश्तेदार को वे यह कहते अघाते नहीं थे कि उन की बेटी इतने बड़े घर में ब्याह रही है. लोग भी सुन कर कहते कि भई मनोहर ने तो इतने बड़े घर में अपनी बेटी का ब्याह कर गंगा नहा ली. दिल पर पत्थर रख दिव्या भी अपने प्यार को भुला कर ससुराल चल पड़ी. विदाई के वक्त उस ने देखा एक कोने में खड़ा अक्षत अपने आंसू पोंछ रहा था. ससुराल पहुंचने पर नववधू का बहुत स्वागत हुआ. छुईमुई सी घूंघट काढ़े हर दुलहन की तरह वह भी अपने पति का इंतजार कर रही थी. वह आया तो दिव्या का दिल धड़का और फिर संभला भी़ लेकिन सोचिए जरा, क्या बीती होगी उस लड़की पर जिस की सुहागरात पर उस का पति यह बोले कि वह उस के साथ सबंध बनाने में सक्षम नहीं है और वह इस बात के लिए उसे माफ कर दे.

सुन कर धक्क रह गया दिव्या का कलेजा. आखिर क्या बीती होगी उस के दिल पर जब उसे यह पता चला कि उस का पति नामर्द है और धोखे में रख कर उस ने उसे ब्याह लिया? पर क्यों, क्यों जानबूझ कर उस के साथ ऐसा किया गया? क्यों उसे और उस के परिवार को धोखे में रखा गया? ये सवाल जब उस ने अपने पति से पूछे तो कोई जवाब न दे कर वह कमरे से बाहर चला गया. दिव्या की पूरी रात सिसकतेसिसकते ही बीती. उस की सुहागरात एक काली रात बन कर रह गई.

सुबह नहाधो कर उस ने अपने बड़ों को प्रमाण किया और जो भी बाकी बची रस्में थीं, उन्हें निभाया. उस ने सोचा कि रात वाली बात वह अपनी सास को बताए और पूछे कि क्यों उस के जीवन के साथ खिलवाड़ किया गया? लेकिन उस की जबान ही नहीं खुली यह कहने को. कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे कि करे तो करे क्या, क्योंकि रिसैप्शन पर भी सब लोगों के सामने नीलेश उस के साथ ऐसे बिहेव कर रहा था जैसे उन की सुहागरात बहुत मजेदार रही. हंसहंस कर वह अपने दोस्तों को कुछ बता रहा था और वे चटकारे लेले कर सुन रहे थे. दिव्या समझ गई कि शायद उस के घर वालों को नीलेश के बारे में कुछ पता न हो. उन सब को भी उस ने धोखे में रखा हुआ होगा. पगफेर पर जब मनोहर उसे लिवाने आए और पूछने पर कि वह अपनी ससुराल में खुश है, दिव्या खून का घूंट पी कर रह गई. फिर उस ने वही जवाब दिया जिस से मनोहर और नूतन को तसल्ली हो.

एक अच्छे पति की तरह नीलेश उसे उस के मायके से लिवाने भी आ गया. पूरे सम्मान के साथ उस ने अपने साससुसर के पांव छूए और कहा कि वे दिव्या की बिलकुल चिंता न करें, क्योंकि अब वह उन की जिम्मेदारी है. धन्य हो गए थे मनोहर और नूतन संस्कारी दामाद पा कर. लेकिन उन्हें क्या पता कि सचाई क्या है? वह तो बस दिव्या ही जानती थी और अंदर ही अंदर जल रही थी. दिव्या को अपनी ससुराल आए हफ्ते से ऊपर का समय हो चुका था पर इतने दिनों में एक बार भी नीलेश न तो उस के करीब आया और न ही प्यार के दो बोल बोले, हैरान थी वह कि आखिर उस के साथ हो क्या रहा है और वह चुप क्यों है. बता क्यों नहीं देती सब को कि नीलेश ने उस के साथ धोखा किया है? लेकिन किस से कहे और क्या कहे, सोच कर वह चुप हो जाती.

एक रात नींद में ही दिव्या को लगा कि कोई उस के पीछे सोया है. शायद नीलेश है, उसे लगा लेकिन जिस तरह से वह इंसान उस के शरीर पर अपना हाथ फिरा रहा था उसे शंका हुई. जब उस ने लाइट जला कर देखा तो स्तब्ध रह गई, क्योंकि वहां नीलेश नहीं बल्कि उस का पिता था जो आधे कपड़ों में उस के बैड पर पड़ा उसे गंदी नजरों से घूर रहा था. ‘‘आ…आप, आप यहां मेरे कमरे में… क… क्या, क्या कर रहे हैं पिताजी?’’ कह कर वह अपने कपड़े ठीक करने लगी. लेकिन जरा उस का ढीठपन तो देखो, उस ने तो दिव्या को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया और उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा. दिव्या को अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उस का ससुर ही उस के साथ…

‘‘मैं, मैं आप की बहू हूं. फिर कैसे आप मेरे साथ…’’ वह डर के मारे हकलाते हुए बोली. ‘‘ बहू,’’ ठहाके मार कर हंसते हुए वह बोला, ‘‘क्या तुम्हें पता नहीं है कि तुम्हें मुझ से ही वारिस पैदा करना है और इसीलिए ही तो हम तुम्हें इस घर में बहू बना कर लाए हैं.’’

सुन कर दिव्या को लगा जैसे किसी ने उस के कानों में पिघला शीशा डाल दिया हो. वह कहने लगी, ‘‘यह कैसी पागलों सी बातें कर रहे हैं आप? क्या शर्मोहया बेच खाई है?’’ पर वह कहां कुछ सुननेसमझने वाला था. फिर उस ने दिव्या के ऊपर झपट्टा मारा. लेकिन उस ने अपनेआप को उस दरिंदे से बचाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला, सामने ही नीलेश और उस की मां खड़े मिले. घबरा कर वह अपनी सास से लिपट गई और रोते हुए कहने लगी कि कैसे उस के ससुर उस के साथ जबरदस्ती करना चाह रहे हैं… उसे बचा ले.

‘‘बहुत हो चुका यह चूहेबिल्ली का खेल… कान खोल कर सुन लो तुम कि ये सब जो हो रहा है न वह सब हमारी मरजी से ही हो रहा है और हम तुम्हें इसी वास्ते इस घर में बहू बना कर लाए हैं. ज्यादा फड़फड़ाओ मत और जो हो रहा है होने दो.’’

अपनी सास के मुंह से भी ऐसी बात सुन कर दिव्या का दिमाग घूम गया. उसे लगा वह बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘तो क्या आप को भी पता है कि आप का बेटा…’’ ‘‘हां और इसीलिए तो तुम जैसी साधारण लड़की को हम ने इस घर में स्थान दिया वरना लड़कियों की कमी थी क्या हमारे बेटे के लिए.’’

‘‘पर मैं ही क्यों… यह बात हमें बताई क्यों नहीं गईं. ये सारी बातें शादी के पहले…

क्यों धोखे में रखा आप सब ने हमें? बताइए, बताइए न?’’ चीखते हुए दिव्या कहने लगी, ‘‘आप लोगों को क्या लगता है मैं यह सब चुपचाप सहती रहूंगी? नहीं, बताऊंगी सब को तुम सब की असलियत?’’ ‘‘क्या कहा, असलियत बताएगी? किसे? अपने बाप को, जो दिल का मरीज है…सोच अगर तेरे बाप को कुछ हो गया तो फिर तेरी मां का क्या होगा? कहां जाएगी वह तुझे ले कर? दुनिया को तो हम बताएंगे कि कैसे आते ही तुम ने घर के मर्दों पर डोरे डलने शुरू कर दिए और जब चोरी पकड़ी गई तो उलटे हम पर ही दोष मढ़ रही है,’’ दिव्या के बाल खींचते हुए नीलेश कहने लगा, ‘‘तुम ने क्या सोचा कि तू मुझे पसंद आ गई थी, इसलिए हम ने तुम्हारे घर रिश्ता भिजवाया था? देख, करना तो तुम्हें वही पड़ेगा जो हम चाहेंगे, वरना…’’ बात अधूरी छोड़ कर उस ने उसे उस के कमरे से बाहर निकाल दिया.

पूरी रात दिव्या ने बालकनी में रोते हुए बिताई. सुबह फिर उस की सास कहने लगी, ‘‘देखो बहू, जो हो रहा है होने दो… क्या फर्क पड़ता है कि तुम किस से रिश्ता बना रही हो और किस से नहीं. आखिर हम तो तुम्हें वारिस जनने के लिए इस घर में बहू बना कर लाए हैं न.’’ इस घर और घर के लोगों से घृणा होने लगी थी दिव्या को और अब एक ही सहारा था उस के पास. उस के ननद और ननदोई. अब वे ही थे जो उसे इस नर्क से आजाद करा सकते थे. लेकिन जब उन के मुंह से भी उस ने वही बातें सुनीं तो उस के होश उड़ गए. वह समझ गई कि उस की शादी एक साजिश के तहत हुई है.

3 महीने हो चुके थे उस की शादी को. इन 3 महीनों में एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब दिव्या ने आंसू न बहाए हों. उस का ससुर जिस तरह से उसे गिद्ध दृष्टि से देखता था वह सिहर उठती थी. किसी तरह अब तक वह अपनेआप को उस दरिंदे से बचाए थी. इस बीच जब भी मनोहर अपनी बेटी को लिवाने आते तो वे लोग यह कह कर उसे जाने से रोक देते कि अब उस के बिना यह घर नहीं चल सकता. उन के कहने का मतलब था कि वे लोग दिव्या को बहुत प्यार करते हैं. इसीलिए उसे कहीं जाने नहीं देना चाहते हैं. मन ही मन खुशी से झूम उठते मनोहर यह सोच कर कि उन की बेटी का उस घर में कितना सम्मान हो रहा है. लेकिन असलियत से वे वाकिफ नहीं थे कि उन की बेटी के साथ इस घर में क्याक्या हो रहा है…दिव्या भी अपने पिता के स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती थी, इसलिए चुप थी. लेकिन उस रात तो हद हो गई जब उसे उस के ससुर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया गया. वह चिल्लाती रही पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला. क्या करती बेचारी? उठा कर फूलदान उस दरिंदे के सिर पर दे मारा और जब उस के चिल्लाने की आवाजों से वे सब कमरे में आए तो वह सब की नजरें बचा कर घर से भाग निकली.

अपनी बेटी को यों अचानक अकेले और बदहवास अवस्था में देख कर मनोहर और नूतन हैरान रह गए, फिर जब उन्हें पूरी बात का पता चली तो जैसे उन के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई. आननफानन में वे अपनी बेटी की ससुराल पहुंच गए और जब उन्होंने उन से अपनी बेटी के जुल्मों का हिसाब मांगा और कहा कि क्यों उन्होंने उन्हें धोखे में रखा तो वे उलटे कहने लगे कि ऐसी कोई बात नहीं. उन्होंने ही अपनी पागल बेटी को उन के बेटे के पल्ले बांध दिया. धोखा तो उन के साथ हुआ है. ‘‘अच्छा तो फिर ठीक है, आप अपने बेटे की जांच करवाएं कि वह नपुंसक है या नहीं और मैं भी अपनी बेटी की दिमागी जांच करवाता हूं. फिर तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा न? तुम लोग क्या समझे कि हम चुप बैठ जाएंगे? नहीं, इस भ्रम में मत रहना. तुम सब ने अब तक मेरी शालीनता देखी है पर अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि मैं क्या कर सकता हूं. चाहे दुनिया की सब से बड़ी से बड़ी अदालत तक ही क्यों न जाना पड़े हमें, पर छोड़ूंगा नहीं…तुम सब को तो जेल होगी ही और तुम्हारा बाप, उसे तो फांसी न दिलवाई मैं ने तो मेरा भी नाम मनोहर नहीं,’’ बोलतेबोलते मनोहर का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

मनोहर की बातें सुन कर सब के होश उड़ गए, क्योंकि झूठे और गुनहगार तो वे लोग थे ही अत: दिन में ही तारे नजर आने लगे उन्हें. ‘‘क्या सोच रहे हो रोको उसे. अगर वह पुलिस में चला गया तो हम में से कोई नहीं बचेगा और मुझे फांसी पर नहीं झूलना.’’ अपना पसीना पोछते हुए नीलेश के पिता ने कहा.

उन लोगों को लगने लगा कि अगर यह बात पुलिस तक गई तो इज्जत तो जाएगी ही, उन का जीवन भी नहीं बचेगा. बहुत गिड़गिड़ाने पर कि वे जो चाहें उन से ले लें, जितने मरजी थप्पड़ मार लें, पर पुलिस में न जाएं. ‘कहीं पुलिसकानून के चक्कर में उन की बेटी का भविष्य और न बिगड़ जाए,’ यह सोच कर मनोहर को भी यही सही लगा, लेकिन उन्होंने उन के सामने यह शर्त रखी कि नीलेश दिव्या को जल्द से जल्द तलाक दे कर उसे आजाद कर दे.

मरता क्या न करता. बगैर किसी शर्त के नीलेश ने तलाक के पेपर साइन कर दिए, पहली सुनवाई में ही फैसला हो गया.

वहां से तो दिव्या आजाद हो गई, लेकिन एक अवसाद से घिर गई. जिंदगी पर से उस का विश्वास उठ गया. पूरा दिन बस अंधेरे कमरे में पड़ी रहती. न ठीक से कुछ खाती न पीती और न ही किसी से मिलतीजुलती. ‘कहीं बेटी को कुछ हो न जाए, कहीं वह कुछ कर न ले,’ यह सोचसोच कर मनोहर और नूतन की जान सूखती रहती. बेटी की इस हालत का दोषी वे खुद को ही मानने लगे थे. कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या करें जो फिर से दिव्या पहले की तरह हंसनेखिलखिलाने लगे. अपनी जिंदगी से उसे प्यार हो जाए.

‘‘दिव्या बेटा, देखो तो कौन आया है,’’ उस की मां ने लाइट औन करते हुए कहा तो उस ने नजरें उठा कर देखा पर उस की आंखें चौंधिया गईं. हमेशा अंधेरे में रहने और एकाएक लाइट आंखों पर पड़ने के कारण उसे सही से कुछ नहीं दिख रहा था, पर जब उस ने गौर से देखा तो देखती रह गई, ‘‘अक्षत,’’ हौले से उस के मुंह से निकला.

नूतन और मनोहर जानते थे कि कभी दिव्या और अक्षत एकदूसरे से प्यार करते थे पर कह नहीं पाए. शायद उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया और खुद ही वे उस की जिंदगी का फैसला कर बैठे. ‘लेकिन अब अक्षत ही उन की बेटी के होंठों पर मुसकान बिखेर सकता था. वही है जो जिंदगी भर दिव्या का साथ निभा सकता है,’ यह सोच कर उन्होंने अक्षत को उस के सामने ला कर खड़ा कर दिया. बहुत सकुचाहट के बाद अक्षत ने पूछा, ‘‘कैसी हो दिव्या?’’ मगर उस ने कोई जवाब

नहीं दिया. ‘‘लगता है मुझे भूल गई? अरे मैं अक्षत हूं अक्षत…अब याद आया?’’ उस ने उसे हंसाने के इरादे से कहा पर फिर भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. धीरेधीरे अक्षत उसे पुरानी बातें, कालेज के दिनों की याद दिलाने लगा. कहने लगा कि कैसे वे दोनों सब की नजरें बचा कर रोज मिलते थे. कैसे कैंटीन में बैठ कर कौफी पीते थे. अक्षत उसे उस के दुख भरे अतीत से बाहर लाने की कोशिश कर रहा था, पर दिव्या थी कि बस शून्य में ही देखे जा रही थी.

दिव्या की ऐसी हालत देख कर अक्षत की आंखों में भी आंसू आ गए. कहने लगा, ‘‘आखिर तुम्हारी क्या गलती है दिव्या जो तुम ने अपनेआप को इस कालकोठरी में बंद कर रखा है? ऐसा कर के क्यों तुम खुद को सजा दे रही हो? क्या अंधेरे में बैठने से तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी या जिस

ने तुम्हारे साथ गलत किया उसे सजा मिल जाएगी, बोलो?’’ ‘‘तो मैं क्या करूं अक्षत, क्या कंरू मैं? मैं ने तो वही किया न जो मेरे मम्मीपापा ने चाहा, फिर क्या मिला मुझे?’’ अपने आंसू पोंछते हुए दिव्या कहने लगी. उस की बातें सुन कर नूतन भी फफकफफक कर रोने लगीं.

दिव्या का हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा कर अक्षत कहने लगा, ‘‘ठीक है, कभीकभी हम से गलतियां हो जाती हैं. लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं है कि हम उन्हीं गलतियों

को ले कर अपने जीवन को नर्क बनाते रहें… जिंदगी हम से यही चाहती है कि हम अपने उजाले खुद तय करें और उन पर यकीन रखें. जस्ट बिलीव ऐंड विन. अवसाद और तनाव के अंधेरे को हटा कर जीवन को खुशियों के उजास से भरना कोई कठिन काम नहीं है, बशर्ते हम में बीती बातों को भूलने की क्षमता हो. ‘‘दिव्या, एक डर आ गया है तुम्हारे

अंदर… उस डर को तुम्हें बाहर निकालना होगा. क्या तुम्हें अपने मातापिता की फिक्र नहीं है कि उन पर क्या बीतती होगी, तुम्हारी ऐसी हालत देख कर. अरे, उन्होंने तो तुम्हारा भला ही चाहा था न… अपने लिए, अपने मातापिता के लिए,

तुम्हें इस गंधाते अंधेरे से निकलना ही होगा दिव्या…’’ अक्षत की बातों का कुछकुछ असर होने लगा था दिव्या पर. कहने लगी, ‘‘हम अपनी खुशियां, अपनी पहचान, अपना सम्मान दूसरों से मांगने लगते हैं. ऐसा क्यों होता है अक्षत?’’

‘‘क्योंकि हमें अपनी शक्ति का एहसास नहीं होता. अपनी आंखें खोल कर देखो गौर से…तुम्हारे सामने तुम्हारी मंजिल है,’’ अक्षत की बातों ने उसे नजर उठा कर देखने पर मजबूर कर दिया. जैसे वह कह रहा हो कि दिव्या, आज भी मैं उसी राह पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, जहां तुम मुझे छोड़ कर चली गई थी. बस तुम्हारी हां की देर है दिव्या. फिर देखो कैसे मैं तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा. अक्षत के सीने से लग दिव्या बिलखबिलख कर रो पड़ी जैसे सालों का गुबार निकल रहा हो उस की आंखों से बह कर. अक्षत ने भी उसे रोने दिया ताकि उस के सारे दुखदर्द उन आंसुओं के सहारे बाहर निकल जाएं और वह अपने डरावने अतीत से बाहर निकल सके.

बाहर खड़े मनोहर और नूतन की आंखों से भी अविरल आंसू बहे जा रहे थे पर आज ये खुशी के आंसू थे.

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