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स्वप्न नगरी के जहरीले सपने : मीनाक्षी को किस ने दिया धोखा

9 मई, 2018, दिन बुधवार. उस दिन मुंबई की सेशन कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस.जी. शेट्टी की अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. वजह यह थी कि न्यायाधीश शेट्टी उस दिन अभिनेत्री मीनाक्षी थापा के अपहरण और हत्या के आरोपियों को दोषी, निर्दोष या संदेह का लाभ देने का फैसला सुनाने वाले थे.

अदालत सबूतों को देखने परखने के साथसाथ केस के 36 गवाहों की गवाही सुन चुकी थी. दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की ओर से बहस भी पूरी हो चुकी थी. इस केस में अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता थे विशेष लोक अभियोजक उज्जवल निकम, जो अपनी धारदार दलीलों के लिए महाराष्ट्र ही नहीं, देश भर में मशहूर हैं. उज्जवल निकम की दलीलों ने ही मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को फांसी के तख्ते तक पहुंचाया था.

न्यायाधीश एस.जी. शेट्टी 10 बजे ही अदालत में पहुंच गए थे. दोनों पक्षों के अधिवक्ता, दोनों आरोपी, मीनाक्षी थापा के परिवार वाले, कुछ मुख्य गवाहों और दर्शकों की अच्छीभली भीड़ अदालत में मौजूद थी. सुनवाई शुरू हुई तो बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कुछ दलीलें अदालत के सामने रखीं. फिर नंबर आया विशेष लोक अभियोजक उज्जवल निकम का.

उन्होंने अपनी अंतिम दलीलों से पहले मीनाक्षी थापा के दोस्त आलोक थापा को पुन: अदालत के सामने खड़ा किया. आलोक थापा ने पहले हुई गवाही की तरह अदालत को बताया, ‘‘12 मार्च, 2012 को मीनाक्षी ने मुझ से कहा था कि वह प्रीति एल्विन और अमित जायसवाल के साथ एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में गोरखपुर जा रही है. इतना ही नहीं, मीनाक्षी ने 12 मार्च, 2012 को लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन पर मुझे प्रीति एल्विन और अमित जायसवाल से मिलवाया भी था.’’

आरोपी प्रीति एल्विन के पिता नवीन सुरीन ने अदालत को बताया, ‘‘मैं अदालत को पहले भी बता चुका हूं और अब फिर बता रहा हूं कि 14 मार्च, 2012 को प्रीति और अमित इलाहाबाद स्थित हमारे घर आए थे.’’

मीनाक्षी थापा की मां कमला थापा ने अपनी गवाही में बताया, ‘‘14 मार्च, 2012 को मीनाक्षी ने मुझे फोन कर के बताया था कि वह इलाहाबाद पहुंच चुकी है और प्रीति के घर जा रही है, रात का खाना वह उसी के घर खाएगी. इस के अगले दिन मीनाक्षी की भाभी ने मैसेज कर के मुझे बताया कि मीनाक्षी को ले कर घर के सब लोग चिंतित हैं और उस के लापता होने की शिकायत दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं.’’

कमला थापा ने अपने बयान में आगे बताया, ‘‘इस के बाद अपहरणकर्ताओं की ओर से मैसेज आया कि मीनाक्षी को जिंदा देखना है तो उस के खाते में 15 लाख रुपए जमा कर दो. मैसेज पढ़ कर हम लोग घबरा गए और मुंबई के थाना अंबोली में एफआईआर दर्ज करा दी. बाद में दोनों आरोपियों को 14 अप्रैल, 2012 को गिरफ्तार कर लिया गया.’’

महत्त्वपूर्ण गवाहियां दोबारा हो जाने के बाद विशेष लोक अभियोजक उज्जवल निकम ने अपनी दलील देते हुए अदालत से कहा, ‘‘सर, इन गवाहियों और पेश किए गए सबूतों के बाद, साफ हो जाता है कि मीनाक्षी थापा के अपहरण और हत्या के गुनहगार प्रीति एल्विन और अमित जायसवाल ही हैं.

‘‘मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि दोनों आरोपियों को दोषी करार दे कर कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, क्योंकि ऐसा नहीं हुआ तो इस तरह के अपराधी बचते रहेंगे और मीनाक्षी थापा, जो मुंबई में अपना कैरियर बनाने आई थी, जैसी लड़कियां छलावे में आ कर मारी जाती रहेंगी.’’

सुनवाई पूरी हो चुकी थी. न्यायाधीश एस.जी. शेट्टी ने एकएक पौइंट पर ध्यान देते हुए प्रीति एल्विन और अमित जायसवाल पर एक नजर डाली और अपना फैसला सुना दिया, ‘‘तमाम सबूतों को देखनेपरखने और गवाहों की बात सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मीनाक्षी थापा के अपहरण और हत्या के दोषी प्रीति एल्विन और अमित जायसवाल ही हैं. यह अदालत दोनों को दोषी करार देती है और साथ ही घोषणा करती है कि दोनों दोषियों को 11 मई शुक्रवार को सजा सुनाई जाएगी.’’

अमित जायसवाल और प्रीति एल्विन की किस्मत का फैसला क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए इस पूरे केस के बारे में जान लें.

मूलरूप से नेपाल की रहने वाली मीनाक्षी के पिता तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ओएनजीसी) देहरादून में पोस्टेड थे. वर्षों पहले वह देहरादून आ कर बस गए थे. उन की पत्नी कमला थापा भी फौरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में सरकारी नौकरी में थीं. परिवार में उन के 2 बेटे नवराज और विक्की के अलावा 2 बेटियां हेमू और मीनाक्षी थीं. हेमू की शादी अजय थापा से हो चुकी थी. नवराज मिलिट्री में था.

मीनाक्षी ने देहरादून के मशहूर दून स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी. इस के बाद उस ने फेंकसिन इंस्टीट्यूट से एविएशन में डिप्लोमा किया. मीनाक्षी खूबसूरत थी, इसलिए उस के मन में फिल्मों में काम करने की इच्छा जागृत हुई. इस के लिए उस ने विधिवत डांस सीखा और सेंट जोसेफ एकेडमी में डांस टीचर बन गई. लेकिन उस की मंजिल यह नहीं मुंबई थी.

मीनाक्षी को अभिनय का भी शौक था. इसलिए कुछ दिनों तक स्थानीय स्तर पर मौडलिंग करने के बाद वह फिल्मों में किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चली गई. मुंबई में स्ट्रगल करने पर उसे फिल्म ‘बंगला नंबर 404 एरर नौट फाउंड’ में एक छोटा सा रोल मिला.

इस रोल का भले ही उसे मेहनताना ज्यादा नहीं मिला, लेकिन पहली बार फिल्म में काम मिलने पर वह बहुत खुश थी. उसे 1-2 फिल्मों में छोटीछोटी भूमिकाओं के अलावा कुछ विज्ञापन भी मिले. हालांकि मीनाक्षी को ग्लैमर की लाइन में आगे बढ़ने का सही मौका नहीं मिल पा रहा था, फिर भी वह अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए कोशिश कर रही थी.

मीनाक्षी मुंबई में रह जरूर रही थी, लेकिन वह लगभग रोजाना फोन पर अपनी मां कमला थापा से बात करती थी. कह सकते हैं कि वह फोन द्वारा बराबर मां के संपर्क में रहती थी. 12 मार्च, 2012 को मीनाक्षी ने मां को फोन कर के कहा कि वह 2-3 दिनों के लिए इलाहाबाद जा रही है.

मां के पूछने पर उस ने बताया कि उसे एक भोजपुरी फिल्म में काम मिलने की संभावना है, लेकिन इस के लिए उसे इलाहाबाद जा कर फिल्म निर्माता से बात करनी होगी. चूंकि मीनाक्षी को फिल्म लाइन में काम करना था और उस के बारे में वह खुद बेहतर जानती थी, इसलिए कमला थापा ने कुछ नहीं कहा. बाद में मीनाक्षी ने 14 मार्च, 2012 को मां को फोन कर के कहा कि वह इलाहाबाद पहुंच चुकी है और प्रीति के घर जा रही है.

अचानक लापता हुई मीनाक्षी

इस के बाद 2 दिनों तक कमला थापा के पास मीनाक्षी का कोई फोन नहीं आया तो उन्होंने उस का मोबाइल ट्राई किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला. मीनाक्षी कभी भी अपना फोन बंद नहीं करती थी. यह पहला मौका था, जब कमला को बेटी का फोन बंद मिला. बेटी से बात न होने पर कमला थापा को चिंता हुई.

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उन्होंने कई बार मीनाक्षी का फोन ट्राई किया, लेकिन उस का फोन बंद ही मिला. तीसरे दिन कमला थापा का माथा तब घूम गया जब उन के मोबाइल पर एक मैसेज आया. मैसेज में लिखा था, ‘मीनाक्षी हमारे कब्जे में है, हम ने उस का अपहरण कर लिया है. अगर उसे जिंदा देखना चाहते हो तो उस के खाते में तुरंत 15 लाख रुपए जमा कर दो. अगर हमारी बात नहीं मानोगे तो हम उस की हत्या कर देंगे.’

उस एसएमएस को पढ़ कर कमला थापा को एक बारगी विश्वास नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. उन्होंने तुरंत बेटी के नंबर पर फोन मिला दिया. इस बार उस के फोन की घंटी बज रही थी. कमला थापा ने सोचा कि अब बात होने पर ही सच्चाई पता चलेगी. लेकिन काल रिसीव करने के बजाए किसी ने तुरंत फोन काट दिया. बात के बदले दूसरी ओर से फिर मैसेज आया, ‘‘जो भी बात करनी है, एसएमएस से करो.’’

इस से कमला थापा की चिंता बढ़नी स्वाभाविक ही थी. उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने फोन कर के यह बात अपने बेटे नवराज को बताई. नवराज उस समय देहरादून में ही था. वह शाम तक घर आ गया. बहन के बारे में जान कर नवराज भी बहुत चिंतित हुआ.

उस ने भी मीनाक्षी के नंबर पर बात करने की कोशिश की, लेकिन दूसरी ओर फोन रिसीव नहीं किया जा रहा था. इस से परिवार के लोगों को लगा कि मीनाक्षी का सचमुच अपहरण हो चुका है और अपहर्त्ता फिरौती के लिए उसी का मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं.

मीनाक्षी के अपहरण ने उस के घर वालों के होश उड़ा दिए. उन की माली हालात ऐसी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं की मांग को पूरा किया जा सकता. चूंकि मीनाक्षी उन लोगों के कब्जे में थी. इसलिए वह कोई रिस्क भी नहीं लेना चाहते थे. अपहर्त्ताओं की बात मानने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. लेकिन सवाल उस रकम का था, जो वे मांग रहे थे.

नवराज ने अपने हालातों का हवाला दे कर एसएमएस भेज कर कहा कि वह थोड़ाथेड़ा कर के पैसा दे सकते हैं. एसएमएस के जरिए ही तय हुआ कि फिरौती की रकम किस्तों में दी जा सकती है. अपहर्त्ता इस के लिए तैयार हो गए तो नवराज ने पहली किस्त के रूप में मीनाक्षी के बैंक में 30 हजार रुपए जमा कर दिए.

मीनाक्षी के घर वालों के लिए इस बात का पता लगाना बहुत मुश्किल था कि मीनाक्षी कहां है. और उस के फोन से कहां से मैसेज आ रहे हैं.

कोई रास्ता न देख नवराज ने देहरादून के थाना बसंत विहार जा कर पुलिस को पूरी बात बताई. साथ ही आए हुए मैसेज भी पुलिस को दिखाए. लेकिन देहरादून पुलिस ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि यह मामला मुंबई का है, इसलिए मुंबई पुलिस ही कुछ कर सकती है.

बहन की तलाश में नवराज पहुंचा मुंबई

नवराज किसी भी तरह बहन को बचाना चाहता था, सो वह उसी दिन मुंबई के लिए रवाना हो गया. मीनाक्षी मुंबई के अंधेरी स्थित अंबोली थानाक्षेत्र में रहती थी, इसलिए नवराज ने थाना अंबोली जा कर पुलिस को पूरी बात बताई.

फिरौती के एसएमएस पढ़ कर मुंबई पुलिस को यह मामला अपहरण का लगा. 18 मार्च को मुंबई पुलिस ने मीनाक्षी के अपहरण का मामला दर्ज तो कर लिया, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया.

उसी दिन पैसे के लिए जब अपहर्त्ताओं का एसएमएस फिर आया तो नवराज ने मीनाक्षी के खाते में 10 हजार रुपए और जमा किए. तीसरी किस्त के तौर पर उस ने 20 हजार रुपए फिर जमा करा दिए. इस सब के चलते अपहर्त्ता एसएमएस के जरिए इस बात पर अड़े थे कि मीनाक्षी को छोड़ने की एवज में उन्हें पूरे 15 लाख रुपए ही चाहिए.

अपहर्त्ताओं को जिद पर अड़ा देख कर नवराज ने एसएमएस कर के कहा, ‘‘जब तक मेरी बात मीनाक्षी से नहीं कराई जाएगी, तब तक मैं कोई पैसा नहीं दूंगा.’’ इस के बाद अपहर्त्ताओं की ओर से कोई जवाब नहीं आया. उन्होंने मीनाक्षी के मोबाइल का स्विच भी औफ कर दिया. जब बातचीत का रास्ता बंद हो गया तो नवराज को बहन के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी.

अंबोली पुलिस द्वारा कोई काररवाई न करने पर नवराज ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से गुहार लगाई. इस पर यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. इस बीच अपहर्त्ताओं से पूरी तरह संपर्क टूट चुका था. न उन का कोई एसएमएस आ रहा था और न ही फोन. मीनाक्षी ने जब आखिरी बार अपनी मां से बात की थी तो इलाहाबाद जाने की बात कही थी.

मोबाइल की काल डिटेल्स के सहारे क्राइम ब्रांच ने शुरू की जांच

क्राइम ब्रांच ने नवराज से पूछताछ के बाद इसी बात को ध्यान में रख कर अपनी जांच शुरू की. इस के लिए पुलिस ने सब से पहले मीनाक्षी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से यह तो साफ हो गया कि वह इलाहाबाद गई थी, लेकिन किस के साथ गई थी, यह पता नहीं लग सका.

मीनाक्षी के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को उस में 2 नंबर ऐसे मिले, जिन पर मीनाक्षी की ज्यादा देर तक बातें होती थीं. पुलिस ने उन नंबरों का पता लगाया तो वे नंबर अमित जायसवाल और प्रीति एल्विन सुरीन के निकले.

छानबीन करने पर पता चला कि अमित और प्रीति इलाहाबाद के रहने वाले थे और फिल्मों में काम करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. उन का इलाहाबाद का पता भी मिल गया.

अमित और प्रीति के बारे में जानकारी मिलते ही मुंबई क्राइम ब्रांच की एक टीम 29 मार्च को इलाहाबाद के लिए रवाना हो गई. अमित ममफोर्डगंज, निवासी सुरेंद्र जायसवाल का बेटा था. पता चला कि वह अपनी किस्मत आजमाने मुंबई गया था और मौडलिंग के साथसाथ फिल्मों में छोटीमोटी भूमिकाएं करता था.

प्रीति एल्विन उस की प्रेमिका थी, जिस के लिए उस ने अपना घर छोड़ दिया था. अमित न केवल विवाहित था, बल्कि 2 बच्चों का बाप भी था. उस की पत्नी का नाम भी प्रीति ही था. सुरेंद्र जायसवाल ने पुलिस को बताया कि अमित से उन का ज्यादा संपर्क नहीं है.

प्रीति एल्विन इलाहाबाद की ही दरभंगा कालोनी के दुर्गापूजा पार्क के सामने स्थित एक बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में रहा करती थी. उस के पिता नवीन मूलत: झारखंड के रहने वाले थे और एक स्कूल में मामूली सी नौकरी करते थे. वह पिछले 30 साल से सपरिवार इलाहाबाद की दरभंगा कालोनी स्थित एक बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में रह रहे थे.

प्रीति की मां कई साल पहले घर छोड़ कर चली गई थी. नवीन ने पुलिस को बताया   कि वह अपनी एकलौती बेटी प्रीति की हरकतों से परेशान थे. उस के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार था और समझाने पर भी उस ने उन की बात नहीं मानी थी.

नवीन ने मुंबई क्राइम ब्रांच को बताया कि उन्हें बंगले के चौकीदार भोलाराम पांडे से पता चला था कि प्रीति 13 मार्च को अमित के साथ आई थी और एक रात वहां रुकी थी. उन दोनों के साथ खूबसूरत सी एक अन्य लड़की भी थी. वह लड़की कौन थी, इस बारे में न तो नवीन को पता था और न भोलाराम पांडे को.

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भोलाराम पांडे ने मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम को अमित और प्रीति के साथ आई लड़की का हुलिया बताया तो क्राइम ब्रांच अफसरों ने पक्का यकीन हो गया कि वह लड़की मीनाक्षी ही रही होगी. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन लोगों ने मीनाक्षी की हत्या कर के उस की लाश इधरउधर फेंक दी हो.

इसी आशंका की वजह से मुंबई क्राइम ब्रांच ने जिला पुलिस से अज्ञात शवों के बारे में जानकारी हासिल की. लेकिन इस तरह के किसी शव की जानकारी नहीं मिली. निराश हो कर मुंबई पुलिस वापस लौट गई.

मुंबई क्राइम ब्रांच की पहली सफलता

मुंबई पुलिस को अमित जायसवाल और प्रीति एल्विन पर ही शक था. उन दोनों के फोन भी बंद थे. कोई और रास्ता न देख क्राइम ब्रांच ने उन दोनों के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि 14 मार्च को उन दोनों की लोकेशन भी इलाहाबाद थी.

14 मार्च को अमित, प्रीति और मीनाक्षी के फोन की लोकेशन इलाहाबाद में ही थी. इस का मतलब अमित और प्रीति से बात कर के ही मीनाक्षी के बारे में जाना जा सकता था. इसलिए क्राइम ब्रांच अमित और प्रीति तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी.

इस के लिए अमित के मोबाइल की काल डिटेल्स में ऐसे नंबरों को जांचा गया, जिन पर वह ज्यादा फोन किया करता था. उन नंबरों में ज्यादातर उस के दोस्तों के थे. उन नंबरों पर संपर्क किया गया तो पुलिस को अमित का नया नंबर मिल गया. उस के साथ ही प्रीति का नंबर भी मिल गया.

दोनों के फोन नंबर मिल जाने के बाद पुलिस ने दोनों की लोकेशन सर्च की तो पता चला कि दोनों मुंबई में ही हैं. इस के बाद क्राइम ब्रांच की टीम ने 15 अप्रैल, 2012 को जाल बिछा कर दोनों को हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए अंबोली पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने उन से मीनाक्षी के बारे में पूछताछ की. शुरू में दोनों कहते रहे कि उन्हें मीनाक्षी के बारे में कोई पता नहीं है, लेकिन जब उन के साथ सख्ती बरती गई तो वे टूट गए. उन्होंने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सब के रोंगटे खड़े हो गए. पता चला कि अमित और प्रीति ने मीनाक्षी को इलाहाबाद ले जा कर उस की हत्या कर दी थी और सिर व धड़ अलगअलग जगहों पर फेंक दिए थे.

पुलिस ने अमित और प्रीति के खिलाफ अपहरण व हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच इंसपेक्टर सुजीत कुमार गोविस्कर को सौंपी गई. पुलिस पूछताछ में मीनाक्षी की हत्या की जो कहानी पता चली, वह चौंकाने वाली तो थी ही, उन युवाओं के लिए नसीहत भरी भी थी, जो बिना आगापीछा सोचे सपनों के पीछे भागते हैं.

मीनाक्षी के सपनों की उड़ान

देहरादून के एक मध्यमवर्गीय परिवार की मीनाक्षी थापा खूबसूरत और हुनरमंद लड़की थी. जवानी की दहलीज पर आतेआते उस की खूबसूरती ने उस के सपनों को पंख लगा दिए थे. जब वह इंटरमीडिएट में थी, तभी उस ने सोच लिया था कि वह फिल्मों में हीरोइन बनेगी.

इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने स्थानीय स्तर पर आयोजित होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था. इस के साथसाथ वह मौडलिंग भी करती थी.

चूंकि देहरादून में बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं, इसलिए उस ने मायानगरी मुंबई जाने का फैसला कर लिया. लेकिन बिना परिवार वालों की मरजी के वह मुंबई नहीं जा सकती थी. इस बारे में उस ने मां से बात की तो उन्होंने दो टूक मना कर दिया.

भैयाभाभी ने भी साफ कह दिया कि वह कहीं नहीं जाएगी. लेकिन मीनाक्षी फिल्म लाइन में जाने का फैसला कर चुकी थी, इसलिए उस ने घर वालों को समझाने की कोशिश की. जब उस की यह कोशिश कमयाब नहीं हुई तो उस ने जिद पकड़ ली.

अंतत: घर वालों को उस की जिद के सामने झुकना पड़ा. 2 साल पहले मीनाक्षी अपने एक परिचित के माध्यम से मुंबई चली गई. मायानगरी मुंबई में हजारों लोग फिल्मों में किस्मत आजमाने आते हैं. इन में से चंद खुशकिस्मत वालों की बात छोड़ दें तो ज्यादातर के सपने टूटते ही हैं.

लाखों की भीड़ में अपनी अलग पहचान बनाना जंग जीतने से कम नहीं है. मीनाक्षी ने भी मुंबई में अपने पैर जमाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी. देखतेदेखते 2 वर्ष गुजर गए. इन 2 सालों में उसे निम्न स्तर की एकाध फिल्म, मौडलिंग और कुछ विज्ञापनों में ही काम करने का मौका मिल पाया.

मीनाक्षी संघर्ष करना चाहती थी. उस ने आगे बढ़ने के लिए अपने सपने को मरने नहीं दिया था. उसे बी ग्रेड की फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के छोटेमोटे रोल मिलने लगे थे. इस से वह इतना कमाने लगी थी कि अपनी जिंदगी आराम से चला सके. मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया में बने रहने के लिए स्टेटस की जरूरत होती है.

अपना स्टेटस बनाए रखने के लिए मीनाक्षी ब्रांडेड कपड़े पहनती थी. उस के लाइफस्टाइल में वह सब झलकता था, जो ऊंचे घराने की लड़कियों में होता है. इस सब के बीच वह अपने घर वालों से बराबर संपर्क बनाए रखती थी. सन 2010 में उसे हिंदी फिल्म ‘404: एरर नौट फाउंड’ में काम करने का मौका मिला.

अमित और प्रीति भी उसी की तरह फिल्मी दुनिया में संघर्ष करने मायानगरी आए थे. अमित व प्रीति की मीनाक्षी से मुलाकात मधुर भंडारकर की फिल्म ‘हीरोइन’ के सेट पर हुई थी, जिस की मुख्य भूमिका में करीना कपूर थीं. मीनाक्षी को इस फिल्म में छोटा सा रोल मिला था. फिल्म हीरोइन में अमित और प्रीति की भी छोटीछोटी भूमिकाएं थीं. अमित ने मीनाक्षी से खुद को भोजपुरी फिल्मों का फिल्म प्रोड्यूसर बताया और प्रीति को मौडल.

मीनाक्षी भी इस मामले में कहां पीछे रहने वाली थी, उस ने भी खुद को नेपाल राजघराने से संबंधित बता दिया. फलस्वरूप जल्दी ही तीनों की दोस्ती हो गई.

मुंबई आने के पीछे अमित व प्रीति की अपनी अलग कहानी थी. अमित इलाहाबाद के ममफोर्डगंज निवासी अधिवक्ता सुरेंद्र जायसवाल का बेटा था. सुरेंद्र चाहते थे कि अमित भी उन्हीं की तरह नामी वकील बने, इसीलिए उन्होंने उसे एलएलबी कराई थी.

पिता की बात मान कर अमित ने वकालत की पढ़ाई तो कर ली, लेकिन उस की ख्वाहिश थी कि वह फिल्मों में काम करे.

अमित के घर वालों ने 7 साल पहले उस का विवाह प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले ओमप्रकाश जायसवाल की बेटी प्रीति जायसवाल के साथ कर दिया था. वह 1 बेटे और 1 बेटी का पिता भी बन गया था.

इस के बावजूद अमित की फिल्मों में काम करने की हसरत मरी नहीं थी. इसी चाह में वह हीरो की तरह बनठन कर रहता था और शरीर को फिट रखने के लिए रोजाना व्यायाम भी करता था. उस ने छिटपुट मौडलिंग भी की थी और अपना प्रोफाइल भी बनवा रखा था.

अमित की असलियत और चाहत

पूर्वी उत्तर प्रदेश में यदाकदा भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग होती रहती थी. अमित को अगर किसी भोजपुरी फिल्म की शूटिंग की जानकारी मिलती तो वह वहां पहुंच जाता और डायरेक्टरों को अपना हुनर दिखाने की कोशिश करता. लेकिन इस से बात नहीं बन पाती थी. फिर भी उस ने अपनी कोशिश जारी रखी. इसी बीच वह भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाले कुछ लोगों के संपर्क में आया तो उन की बदौलत उसे जूनियर आर्टिस्ट के रोल मिलने लगे.

ये छोटीछोटी भूमिकाएं न तो गुजारे लायक थीं और न ही उस की इच्छाओं के अनुरूप. वैसे तो अमित संपन्न परिवार से था. उस का परिवार फाफामऊ, इलाहाबाद के अपने मकान में रहता था. उन का ममफोर्डगंज वाला मकान खाली था. अपनी जीविका चलाने के लिए अमित ने उस मकान में डांस स्कूल खोल लिया था.

जब इस में भी उस का मन नहीं लगा तो उस ने उसी मकान में तिरुपति एकेडमी के नाम से कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया. छात्रछात्राओं को वह खुद तो पढ़ाता ही था, साथ ही उस ने कुछ अन्य शिक्षकों को भी अपने यहां नौकरी पर रख लिया था.

अमित की एकेडमी में प्रीति एल्विन सुरीन भी पढ़ने के लिए आती थी. प्रीति गरीब परिवार की लड़की थी. जवानी की दहलीज तक पहुंचतेपहुंचते उसे गरीबी से नफरत होने लगी थी. वह महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने मन ही मन ठान लिया था कि चाहे कुछ भी करना पड़े. वह अपनी तकदीर खुद लिखेगी. परिवार की हालत खस्ता होते हुए भी पिता नवीन सुरीन उसे पढ़ा रहे थे.

चूंकि प्रीति खूबसूरत थी, इसलिए उस ने मौडलिंग करने का फैसला कर लिया. यह बात अलग है कि इस काम में वह ज्यादा सफल नहीं हो पाई. प्रीति की इच्छा मुंबई जाने की थी. इस के लिए वह अपनी अंगरेजी में सुधार करना चाहती थी. अंगरेजी सीखने के लिए उस ने तिरुपति एकेडमी में दाखिला ले लिया था.

बाद में प्रीति को पता चला कि तिरुपति एकेडमी का मालिक अमित अच्छा डांसर है और भोजपुरी फिल्मों में भी काम करता है. प्रीति को लगा कि अमित के सहयोग से वह भी आगे बढ़ सकती है. इसलिए उस ने जल्दी ही अमित से नजदीकी बढ़ा ली.

अमित व प्रीति फिल्मों व मौडलिंग को ले कर अकसर बातें किया करते थे. बातोंमुलाकातों के इसी दौर में दोनों के दिलों में चाहत ने जन्म ले लिया. बातोंबातों में एक दिन अमित ने प्रीति के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया.

बन गई अमित और प्रीति एल्विन की जोड़ी

प्रीति को अमित की बात पर कोई हैरत नहीं हुई, बल्कि उस के दिल की कलियां खिल उठीं. उस ने भी मुसकरा कर जाहिर कर दिया कि वह भी उसे प्यार करती है. प्रीति जानती थी कि अमित शादीशुदा है, लेकिन हीरोइन बनने के सपने ने उस की आंखों पर पट्टी बांध दी थी.

आगे बढ़ने के लिए अमित बहुत बड़ा सहारा बन सकता था, इसलिए प्रीति ने उस के शादीशुदा होने की बात को नजरअंदाज कर दिया. अमित जो कमाता था, उस का ज्यादातर हिस्सा अपनी प्रेमिका प्रीति एल्विन सुरीन पर खर्च करने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.

दोनों प्यार के नाम पर एक नैया पर सवार तो हो गए थे, लेकिन जब उन की नैया जन सागर में उतरी तो उस पर लोगों की नजर पड़ गई. कानोंकान हो कर यह बात अमित की पत्नी तक भी पहुंची. पति की करतूत सुनते ही वह आगबबूला हो उठी. उस ने अमित को लताड़ा तो उस ने सफाई दी कि चूंकि प्रीति और वह एक ही पेशे में हैं, इसलिए दोनों में केवल दोस्ती है और कुछ नहीं.

लेकिन प्रीति जायसवाल के मन में संदेह घर कर चुका था. इसलिए परिवार में कलह रहने लगी. सुरेंद्र जायसवाल को भी बेटे की करतूत का पता चल गया था. उन्होंने भी उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन अमित ने अपनी सफाई दे कर बात खत्म कर दी.

प्रीति एल्विन के पिता को भी अमित और अपनी बेटी के चक्कर की बात पता चल चुकी थी. बेटी के बहकते कदमों से उन्हें चिंता हुई. उन्होंने उसे जमाने की ऊंचनीच समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ, पिता के बारबार समझाने पर भी वह अमित का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुई.

अमित और प्रीति की एक जैसी सोच थी. दोनों ने मिल कर तय किया कि वे उस शहर को ही छोड़ देंगे. जहां के लोग उन के प्यार, उन के सपनों की कीमत नहीं समझते. उन के सपनों का शहर मुंबई था.

सपनों की उस दुनिया में अपने हिस्से की जमीन तलाशने के लिए अगस्त, 2011 में दोनों इलाहाबाद छोड़ कर मुंबई चले गए और लिव इन रिलेशन में रहने लगे. काफी भागदौड़ के बाद दोनों को कुछ फिल्मों में छोटेमोटे रोल भी मिले, जिस के सहारे गुजरबसर होने लगी.

उधर अमित की पत्नी प्रीति जायसवाल को जब यह पता चला कि उस का पति प्रीति सुरीन के साथ मुंबई में रह रहा है तो उसे बहुत दुख हुआ. अमित अपने घर फोन करता रहता था. उस के पिता फोन पर उसे समझाते, लेकिन वह उन की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देता था. जब सुरेंद्र जायसवाल ने समझ लिया कि अमित नहीं आएगा तो उन्होंने ममफोर्डगंज वाला मकान किराए पर उठा दिया.

सितंबर, 2011 में अमित को जब पता चला कि उस के पिता बीमार हैं और अस्पताल में एडमिट हैं तो वह उन्हें देखने के लिए इलाहाबाद आया और 2 दिनों बाद मुंबई लौट गया. नवंबर के महीने में वह फिर घर लौटा तो पिता ने उस से पूछा, ‘‘तुम मुंबई में क्या करते हो?’’

‘‘पापा, मैं एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करता हूं और मुझे 16 हजार रुपए सैलरी मिलती है.’’ अमित ने बताया.

‘‘मुंबई जैसे शहर में इतने पैसों में क्या होता होगा. तुम घर चले आओ. ममफोर्डगंज वाले मकान के किराए के जो 25 हजार रुपए मिलते हैं, उन पैसों को तुम ही लेते रहना. कम से कम तुम हमारी आंखों के सामने तो रहोगे.’’ सुरेंद्र ने अमित को समझाने की कोशिश की. लेकिन अमित पर पिता के समझाने का कोई असर नहीं हुआ और वह मुंबई लौट गया.

प्रीति के लिए तो पिता के मायने ही खत्म हो गए थे. मुंबई जा कर वह पूरी तरह आजाद खयाल हो चुकी थी. इसी दौरान अमित और प्रीति को मधुर भंडारकर की करिश्मा कपूर स्टारर मूवी ‘हीरोइन’ में काम मिल गया था, जहां मीनाक्षी भी काम कर रही थी.

मीनाक्षी से मुलाकात के बाद तीनों अच्छे दोस्त बन गए. तीनों का सपना एक था और सोच भी लगभग एक जैसी थी. इसलिए तीनों अकसर साथ घूमतेफिरते, खातेपीते. कुछ दिनों तक सब ठीक चला. फिर अचानक प्रीति को लगने लगा कि मीनाक्षी उस के मुकाबले सुंदरता में भी अव्वल है और काम में भी. इसलिए उसे मन ही मन उस से जलन सी होने लगी.

अमित अच्छा डांसर था, मीनाक्षी उस से डांस सीखती थी. उन दोनों को डांस करते देख प्रीति मन ही मन कुढ़ कर रह जाती थी. उन  दोनों का हंसनाबोलना भी उसे बिलकुल पसंद नहीं था. दोनों की नजदीकियों की वजह से कई बार मीनाक्षी से उस की तकरार भी हो जाती थी. एक तो वे दोनों आर्थिक तंगियों से जूझ रहे थे, ऊपर से अमित और मीनाक्षी की नजदीकी प्रीति को कांटे की तरह चुभती थी.

बंधने लगी भविष्य की खतरनाक भूमिका

प्रीति जानती थी कि मीनाक्षी खूबसूरती और अपने टैलेंट से कोई अच्छा मुकाम हासिल कर लेगी. ऐसे में अमित उस के प्यार में पड़ कर आगे बढ़ने के चक्कर में उसे छोड़ देगा. यही सोच कर उस ने मन ही मन एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. वह अपनी इस योजना में किसी तरह अमित को भी शामिल करना चाहती थी.

अमित और प्रीति ने एकदूसरे का साथ पाने और कैरियर बनाने के लिए ही घर छोड़ा था. दोनों भले ही पैसे के लिए परेशान थे, लेकिन जब भी मीनाक्षी को देखते थे तो उस के रहनसहन, खानपान व पहनावे को देख कर जरूर चौंकते थे. उस का लाइफ स्टाइल बिलकुल मुंबईया और पैसे वालों जैसा था. मीनाक्षी ने उन्हें बता रखा था कि उस का परिवार भले ही देहरादून में रहता है, वह नेपाल के राजघराने से ताल्लुक रखती है.

साथ ही उस ने यह भी बताया था कि अनबन की वजह से उस के पिता उन के साथ नहीं रहते. एक बार बातोंबातों में इलाहाबाद का जिक्र आया तो मीनाक्षी ने कहा, ‘‘सुना है, इलाहाबाद बड़ा अच्छा शहर है. 3 नदियों का संगम होता है वहां. मेरा मन है, इलाहाबाद जा कर संगम देखूं.’’

मीनाक्षी के मुंह से अपने शहर की तारीफ सुन कर अमित को अच्छा लगा. उस ने बिना सोचेसमझे कह दिया, ‘‘जब चाहो चलो, मैं तुम्हें पूरा शहर घुमाऊंगा.’’

दरअसल, अमित मीनाक्षी के साथ मौजमस्ती करना चाहता था, जो प्रीति के रहते संभव नहीं था. इसलिए उस ने बिना सोचेसमझे उसे इलाहाबाद ले जाने की बात कह दी थी. लेकिन बाद में जब उस ने इस मुद्दे पर सोचा तो उसे लगा कि बिना प्रीति की सहमति के वह मीनाक्षी को इलाहाबाद नहीं ले जा सकता. सोचविचार कर एक दिन अमित ने प्रीति से कहा, ‘‘मैं सोच रहा हूं कि 1-2 दिन के लिए इलाहाबाद हो आऊं. पैसे की परेशानी है, घर से पैसे भी ले जाऊंगा.’’

पैसे की वाकई परेशानी थी. दोनों साथसाथ जाते तो आनेजाने में ज्यादा खर्च होता. इसलिए प्रीति ने उसे अकेले जाने की स्वीकृति दे दी, लेकिन जब अमित ने उसे बताया कि मीनाक्षी भी इलाहाबाद घूमने जाना चाहती है, तो उस के कान खड़े हो गए. वह जानती थी कि जब उस ने अमित को उस की पत्नी से छीन लिया है तो मीनाक्षी भी अमित को उस से छीन सकती है. मनचले आदमी का क्या भरोसा?

अगर वह उस के हाथ से निकल गया तो वह न घर की रहेगी न घाट की. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए उस ने अमित से दो टूक कह दिया, ‘‘हम दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर घर छोड़ा था. अब हम साथ जिएंगे साथ मरेंगे. मैं तुम्हें मीनाक्षी के साथ जाने की छूट नहीं दे सकती. अगर तुम उसे साथ ले कर जाओगे तो मैं भी साथ चलूंगी.’’

अमित ने प्रीति को समझाया, खर्चे का वास्ता दिया, लेकिन प्रीति अपनी बात पर अड़ गई. परेशानी यह थी कि अमित मीनाक्षी को इलाहाबाद ले जाने का वायदा कर चुका था. जब बात खर्चे की आई तो प्रीति अपनी योजना के पहले हिस्से को ध्यान में रख कर बोली, ‘‘मीनाक्षी को इलाहाबाद घुमाना है न, कोई बात नहीं. हम अपना खर्च उसी से वसूल करेंगे.’’

‘‘मतलब, मैं कुछ समझा नहीं?’’ अमित ने पूछा तो प्रीति बोली, ‘‘तुम इलाहाबाद चलने की योजना बनाओ. मीनाक्षी पैसे वाले घर की लड़की है. हम उस का अपहरण कर के मोटी रकम वसूलेंगे.’’

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अमित प्रीति की बात सुन कर चौंका तो वह उसे समझाते हुए बोली, ‘‘देखो अमित, हम यहां कैरियर बनाने के लिए आए हैं. भावनाओं में बहने नहीं. कैरियर बनाने के लिए पैसा चाहिए, जो हमारे पास है नहीं. प्रीति का अपहरण कर के हम मोटी रकम वसूल करेंगे और फिर आराम से मुंबई में रह कर कैरियर बनाएंगे.’’

प्रीति की बात सुन कर अमित का दिमाग घूम गया. उसे भी लगा कि प्रीति जो कह रही है, वह सही है. जबकि प्रीति का मकसद मीनाक्षी के घर वालों से पैसा वसूलना ही नहीं, बल्कि उसे अमित की जिंदगी से पूरी तरह दूर करना था. चूंकि अमित को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह प्रीति की बातों में आ गया.

मीनाक्षी के मन में बोया हीरोइन बनने का सपना

जब दोनों एक मत हो गए तो उन्होंने मिल कर एक ऐसी योजना बनाई, जो बहुत ही खतरनाक थी. मीनाक्षी उन दोनों को अपना दोस्त मानती थी और उन पर हर तरह से विश्वास करती थी. इसी का फायदा उठा कर वे दोनों उसे अपने जाल में फांसना चाहते थे.

उन की योजना थी कि मीनाक्षी को इलाहाबाद ले जा कर मार डालेंगे और फिर उस के घर वालों से मनचाहा पैसा वसूलेंगे. वे दोनों सोच भी नहीं सकते थे कि जिस मीनाक्षी को वे किसी अमीर खानदान की समझ रहे हैं, वह एक मामूली घर की लड़की है.

जब योजना तैयार हो गई तो एक दिन अमित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मीनाक्षी इलाहाबाद में एक भोजपुरी फिल्म की शूटिंग चल रही है. मेरे पास फोन आया था, मुझे वहां काम के सिलसिले में बात करने जाना है. मेरी जानपहचान के लोग हैं. तुम चाहो, तो मैं डायरेक्टर से कहसुन कर तुम्हें काम दिलवा सकता हूं. बाद में वह तुम्हें हीरोइन का रोल दे देगा.’’

मुंबई में जमे रहने के लिए मीनाक्षी को काम की जरूरत थी. स्ट्रगलर छोटामोटा काम कर के ही आगे बढ़ते हैं, इसलिए वह इलाहाबाद जाने के लिए तैयार हो गई.

मीनाक्षी के हां करते ही अमित और प्रीति के चेहरों पर चमक आ गई. वे दोनों पहले ही सारी योजना बना चुके थे. योजनानुसार 13 मार्च को तीनों इलाहाबाद के लिए रवाना हो गए.

अमित और प्रीति के सपनों को तब झटका लगना शुरू हुआ, जब सफर के दौरान मीनाक्षी ने उन्हें अपनी असलियत बताई. उस ने उन्हें बताया कि ग्लैमर की दुनिया में बने रहने के लिए कदमकदम पर झूठ बोलने पड़ते हैं. पेट भले ही खाली हो, पर दिखावे के लिए अच्छे कपड़े पहनने पड़ते हैं.

ऐसा न हो तो कोई पूछेगा ही नहीं. बातों के दौरान उस ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में भी बताया. यह सब मीनाक्षी ने इसलिए बताया था, जिस से अमित उस की मजबूरी को समझ कर उसे भोजपुरी फिल्म में काम दिला दे.

मीनाक्षी की हकीकत जानने के बाद अमित और प्रीति को वह सोने का अंडा देने वाली मुरगी की जगह बिना पंखों की चिडि़या दिखने लगी. उन्होंने सोचा था कि काम दिलाने के नाम पर भी मीनाक्षी के घर वालों से पैसा लेंगे, लेकिन यहां तो कहानी ही उलटी निकली. मीनाक्षी की सच्चाई जान कर उन दोनों को बहुत गुस्सा आया.

14 मार्च, 2012 की शाम तीनों इलाहाबाद पहुंच गए. रेलवे स्टेशन से वे दरभंगा कालोनी स्थित बंगले के उस सर्वेंट क्वार्टर में पहुंचे, जहां प्रीति के पिता रहते थे, लेकिन उस समय उस के पिता क्वार्टर में नहीं थे. क्वार्टर पर प्रीति का चचेरा भाई जौन सुरीन मिला.

कुछ देर रुक कर प्रीति ने जौन को गोरखपुर जाने के लिए चौरीचौरा ट्रेन के 2 साधारण टिकट लेने इलाहाबाद जंक्शन भेज दिया. उस ने जौन से कहा कि टिकिट ले कर वह जंक्शन के सामने ही मिले, वह वहीं पहुंच कर उस से टिकिट ले लेगी.

जौन के जाने के बाद जब अमित, प्रीति और मीनाक्षी अंदर बैठे थे तो प्रीति ने खिन्न हो कर कहा, ‘‘मीनाक्षी, तुम्हारी सारी बात तो हम ने सुन ली. अब मैं भी तुम्हें सच्चाई बता देना चाहती हूं. सच्चाई यह है कि तुम्हें भोजपुरी फिल्मों मे काम नहीं मिल पाएगा.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ मीनाक्षी ने चौंक कर पूछा तो प्रीति बोली, ‘‘क्योंकि इस के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जो तुम्हारे पास नहीं हैं.’’

‘‘यह बात तो तुम मुझे मुंबई में भी बता सकते थे. मुझे पता होता, तो मैं यहां आती ही क्यों?’’

‘‘बताते कैसे, हम तो सोच रहे थे कि तुम रईस परिवार की हो. हमें क्या पता था कि तुम बिलकुल फटीचर हो.’’

‘‘तुम हद से आगे बढ़ रही हो प्रीति. रईस तो तुम भी नहीं हो, तुम्हारा फटीचरपन यहां साफ दिख रहा है. रही बात मेरी तो मैं चाहे जो भी हूं, मैं ने तुम लोगों पर इतने अहसान किए हैं, जिन्हें तुम लोग कभी नहीं उतार पाओगे. मीनाक्षी ने प्रीति को ही नहीं, अमित को भी खूब खरीखोटी सुनाई.

मौत आ खड़ी हुई मीनाक्षी के सिर पर

मीनाक्षी और प्रीति के बीच इतनी गरमागरमी हुई कि नौबत मारपीट तक पहुंच गई. किसी तरह अमित ने दोनों को समझाबुझा कर शांत किया. जब बात आई गई हो गई तो तीनों ने खाना खाया. खाना खा कर तीनों लेट गए. थोड़ी देर में मीनाक्षी तो सो गई, लेकिन अमित और प्रीति की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वे दोनों उस के सोने का इंतजार कर रहे थे. जब उन्हें विश्वास हो गया कि मीनाक्षी सो गई है तो अमित ने उस के गले में दुपट्टे का फंदा कस दिया. सांसें रुकीं, तो मीनाक्षी की आंखें खुल गईं.

उस ने देखा कि अमित और प्रीति के रूप में उस की मौत सामने खड़ी है. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे दोनों इस तरह उस की जान के दुश्मन बन जाएंगे. गले पर दबाव और बढ़ा तो मीनाक्षी ने छटपटाते हुए हाथपैर चलाए. कहीं वह बेकाबू न हो जाए, यह सोच कर प्रीति ने उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. अमित उस के गले पर तब तक दबाव बनाए रहा, जब तक उस की सांसों की डोर नहीं टूट गई.

प्रीति और अमित मीनाक्षी की हत्या कर चुके थे. अब उन्हें उस की लाश को ठिकाने लगाना था. इस मुद्दे पर बात हुई तो तय हुआ कि चाहे जो भी करना पड़े, मीनाक्षी की लाश की शिनाख्त नहीं होनी चाहिए. जिस बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में मीनाक्षी की हत्या की गई थी, उस के पीछे एक पतली नालीनुमा गली थी. वे दोनों मीनाक्षी की लाश को उठा कर वहां ले गए.

प्रीति रसोई से चापड़ उठा लाई थी. उसी गली में रख कर दोनों ने मीनाक्षी की गरदन काट कर अलग कर दी. उस वक्त प्रीति उस का सिर पकड़े हुए थी, ऐसा करते वक्त उस का दिल जरा भी नहीं कांपा. सिर काटने के बाद दोनों ने सीवर का ढक्कन खोल कर मीनाक्षी का धड़ उस में डाल दिया और उस का कटा सिर व चापड़ 2 अलगअलग पौलीथीन में रख लिए.

मीनाक्षी का पर्स, मोबाइल फोन व एटीएम कार्ड कमरे में ही रखा था. प्रीति और अमित को विश्वास था कि मीनाक्षी की लाश सीवर में गल जाएगी और उन तक कोई भी नहीं पहुंच पाएगा. उस के सिर को उन्होंने कहीं दूर जा कर ठिकाने लगाने का फैसला किया.

अमित और प्रीति दोनों थैला थामे इलाहाबाद जंक्शन पहुंचे. वहां प्रीति ने जौन से गोरखपुर जाने के रेलवे टिकट ले लिए. फिर जौन के वहां से जाने के बाद प्रीति ने गोरखपुर जाने का कार्यक्रम बदल कर रेलवे टिकिट वापस कर दिए और इलाहाबाद बसअड्डे की तरफ चल दिए.

बसअड्डे जा कर दोनों ने लखनऊ जाने वाली एसी बस पकड़ी. उन्होंने सोचा था कि रास्ते में कोई सुनसान जगह देख कर मीनाक्षी के सिर को फेंक देंगे लेकिन चाह कर भी वे ऐसा नहीं कर सके. क्योंकि एसी बस में शीशा खोलने की व्यवस्था नहीं थी. वह रात दोनों ने लखनऊ में ही बिताई. अगले दिन दोनों ने लखनऊ से बनारस जाने वाली बस पकड़ी. रास्ते में मीनाक्षी के सिर व चापड़ वाली पौलीथिन उन्होंने अलगअलग जगहों पर फेंक दीं, वह जगह इलाहाबाद से 108 किलोमीटर दूर थीं.

इस तरह मीनाक्षी की लाश को ठिकाने लगने के बाद अमित और प्रीति ने उस के ही मोबाइल से उस के घर वालों से फिरौती वसूलने के लिए मैसेज भेजने शुरू किए. मीनाक्षी के एकाउंट में पैसा डालने के लिए उन्होंने इसलिए कहा था, क्योंकि उन के पास उस का एटीएम कार्ड तो था ही, उस का पिन नंबर भी था. जब मीनाक्षी के भाई ने उस के एकाउंट में पैसे डाल दिए तो एटीएम से पैसे निकाल कर दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए.

मीनाक्षी का सिर या शव तो बरामद नहीं हुआ, यह जानने के लिए अमित और प्रीति 25 मार्च को फिर इलाहाबाद आए थे. इंटरनेट और समाचार पत्रों में भी दोनों इस मामले से जुड़ी खबरें देखते रहते थे.

जब मीनाक्षी का भाई उस से बात कराने के बाद ही फिरौती देने की जिद करने लगा तो अमित और प्रीति को लगा कि शायद अब बात आगे नहीं बढ़ पाएगी. इसलिए उन्होंने मीनाक्षी का मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया. इसी के साथ दोनों ने अपने फोन नंबर भी बदल दिए.

अपराध से पीछा छुड़ाने की कोशिश

हैवानियत भरा कृत्य कर के अमित और प्रीति अपने पाप से पीछा छुड़ाने के लिए फिरौती के पैसों से वैष्णो देवी व शिरडीधाम भी घूमने गए थे. कई शहरों में घूमने के बाद वे लोग मुंबई लौटे और जगह बदल कर रहने लगे. उन दोनों को लग रहा था कि मीनाक्षी के घर वाले मुंबई आ कर ज्यादा पूछताछ नहीं करेंगे. लेकिन उन की सोच गलत निकली और वे पुलिस के शिकंजे में फंस गए.

पुलिस के लिए मीनाक्षी का शव और वह हथियार बरामद करना जरूरी था, जिस से कत्ल हुआ था. इस के लिए मुंबई पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को इलाहाबाद ले जाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम के इलाहाबाद रवाना होने से पहले इलाहाबाद पुलिस से बात कर ली गई थी.

इंसपेक्टर सुजीत कुमार के नेतृत्व वाली मुंबई पुलिस की टीम में 2 सबइंसपेक्टर, 3 कांस्टेबल और 2 महिला कांस्टेबल शामिल थीं. 17 अप्रैल की दोपहर यह पुलिस टीम अमित और प्रीति को ले कर गोदान एक्सप्रेस से इलाहाबाद पहुंच गई. इस पुलिस टीम ने सब से पहले इलाहाबाद के तत्कालीन एसएसपी नवीन अरोड़ा से मुलाकात की. एसएसपी ने स्थानीय पुलिस की एक टीम मुंबई पुलिस के साथ लगा दी.

18 अप्रैल को मुंबई व स्थानीय पुलिस दोनों अभियुक्तों को ले कर उन के बताए स्थान पर पहुंची और सीवर से मीनाक्षी का धड़ बरामद कर लिया. उस का शव सड़गल चुका था. काररवाई के बाद पुलिस ने मीनाक्षी के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. वीडियोग्राफी के बीच उसी दिन शव का पोस्टमार्टम कर दिया गया. पता चला मीनाक्षी की हत्या गला दबा कर की गई थी.

उस के दाएं पैर की हड्डी टूटी हुई थी. यह हड्डी संभवत: लाश सीवर में डालने के दौरान टूटी होगी. हालांकि शव की शिनाख्त मीनाक्षी के रूप में ही हुई थी, लेकिन सबूत पुख्ता करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने का फैसला किया गया. इस के लिए उस के खून, बाल व हड्डी के नमूने ले कर डीएनए टेस्ट के लिए भेजे गए.

मीनाक्षी के शव को उस के भाई नवराज व जीजा अजय थापा के हवाले कर दिया गया. शव की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे देहरादून ले जाया जा सकता, इसलिए उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में इलाहाबाद के दारागंज घाट पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

पुलिस ने चापड़ रायबरेली के ऊंचाहार के पास झाडि़यों से बरामद कर लिया. मृतका का सिर बरामद करने के लिए पुलिस ने अमित और प्रीति को साथ ले कर गोरखपुर, लखनऊ व वाराणसी रोड के किनारे 2 दिनों तक तलाशी अभियान चलाया. लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका. निराश हो कर पुलिस टीम मुंबई लौट गई.

बौलीवुड में सपने पूरे करने की चाह ले कर मुंबई आई मीनाक्षी की खूबसूरती और साथियों पर आंख मूंद कर किया गया विश्वास ही उस की जान का दुश्मन बन गया. महत्त्वाकांक्षा के चक्कर में उस की जान तो गई ही, साथ ही उस की तरह बौलीवुड के रुपहले परदे पर अपनी पहचान बनाने के सपने देखने वाले अमित और प्रीति भी कहीं के नहीं रहे.

मुंबई पुलिस ने विस्तृत पूछताछ के बाद दोनों आरापियों को अदालत पर पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जांच के बाद पुलिस ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में दोनों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया, जहां लंबी सुनवाई के बाद यह मामला फैसले के लिए सत्र न्यायालय पहुंचा.

सत्र न्यायालय में इस की सुनवाई करीब 5 साल चली. अभियोजन पक्ष की ओर से फोरैंसिक रिपोर्ट, मृतका की डीएनए रिपोर्ट और हत्या में इस्तेमाल हथियार के साथसाथ तमाम सबूत पेश किए गए. इस केस में 36 गवाहों की गवाहियां भी हुईं. न्यायाधीश महोदय ने इस केस को रेयरेस्ट औफ रेयर नहीं माना.

लंबी सुनवाई के बाद अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.जी. शेट्टी ने 9 मई, 2018 को अमित जायसवाल और प्रीति एल्विन सुरीन को अपहरण, हत्या और साजिश रचने का दोषी करार दिया. 11 मई, 2018 को न्यायाधीश जी.एस. शेट्टी ने अमित जायसवाल और प्रीति एल्विन सुरीन को आजन्म कारावास की सजा सुनाई. सजा सुनाने के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया.

प्रीत किए दुख होए: भाग 4

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
काजल और सुंदर बचपन से एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर ऊंची जाति का था और काजल दलित थी. सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का शोषण हुआ. वह वापस आ गया. इसी बीच उस की मुलाकात मीनाक्षी से हुई. वह उसी की जाति की थी. काजल पढ़ाई में होशियार निकली और पढ़ने शहर जा पहुंची. मीनाक्षी सुंदर को चाहती थी.

अब पढ़िए आगे…

यह बात सुंदर के भी कानों में पड़ी कि पूरे ही गांव का कायाकल्प हो रहा है और वह भी काजल की बदौलत. सुंदर पिंजरे में बंद पंछी की तरह तड़प उठा. सुंदर की यह तड़प देख कर मीनाक्षी उस पर हंस पड़ती, ताने देती. एक बार तो सुंदर ने मीनाक्षी को पीट दिया क्योंकि उस ने काजल के लिए बेहूदा बात कही थी. लेकिन एक सच्ची प्रेमिका की तरह वह यह सब झेल गई और परिवार को इस की भनक तक न लगने दी.

‘‘सुंदर, तुम मेरी जान भी ले लोगे न तो भी मैं उफ न करूंगी,’’ रोने के बजाय मीनाक्षी ने बेबाक हो कर कहा था. सुंदर घबराया और मीनाक्षी के पैर पकड़ लिए, ‘‘मुझे माफ कर दो. मेरे दिल को समझो. मैं अपना दिल काजल के नाम कर चुका हूं.’’

मीनाक्षी ने आंसू पोंछे, ‘‘अगर तेरा प्यारा सच्चा होगा तो तुझे मिल जाएगी काजल.’’ ‘‘नहीं मीनाक्षी, मैं इस जेल में बेकुसूर कैदी हूं. मुझे तुम आजाद कर दो. मीनाक्षी, तुम मेरी प्रेरणा हो तो मंजिल

है काजल. मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमंद रहूंगा, अगर मुझे मंजिल तक पहुंचाने में मदद कर दी.’’ ‘‘जब कुदरत तेरे साथ होगा तो कोई रोक सकता है क्या?’’

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‘‘चलो, अपने कमरे में. मां शायद इधर ही आ रही हैं,’’ दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए. कुछ दिन बाद सुंदर के कालेज में टूर का प्रोग्राम बना. सरकारी फंड से एक बस की गई. उस में पहले साल के सभी छात्रछात्राएं सवार हो शहर घूमने चले. गाइड के रूप में 2 टीचर साथ थे, जिन में एक मिश्राजी भी थे.

शहर घूमने के बाद तकरीबन 4 बजे बस जिले के राजकीय महाविद्यालय परिसर में रुक गई. सभी छात्रछात्राएं बाहर निकल कर घूमने लगे. गाइड से सुंदर को पता चला कि वह जिले का सब से अच्छा कालेज है जहां टौपर छात्रछात्राएं ही पढ़ते हैं. उस ने अंदाजा लगाया कि हो सकता है कि काजल भी यहीं पढ़ती हो.

सुंदर काजल को ढूंढ़ने लगा. काजल अभीअभी क्लास में से बाहर निकली. सिक्योरिटी गार्ड भी पीछेपीछे था. सुंदर को गार्ड का पता नहीं था, सो उस ने धीरे से पुकारा, ‘‘काजल…’’

इतना सुनना था कि काजल दौड़ कर उस के गले लग गई. ‘‘तू ने मुझे भुला दिया काजल?’’

‘‘नहीं रे, कहां भूली हूं मैं? देख मेरी हालत. क्या ऐसी थी मैं?’’ और काजल ने सुंदर को जोर से भींच लिया. सुरक्षा गार्ड ने देखा तो उस ने दौड़ कर सुंदर को पकड़ा और गेट के पास बने थाने में डीएसपी अंजन कुमार को सौंप दिया.

डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर की बेरहमी से पिटाई कर दी और थाने में बंद कर दिया. सारे छात्रछात्राएं धरने पर बैठ गए और नारेबाजी करने लगे. मामला गंभीर होता देख कर डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर को छोड़ दिया और मिश्राजी ने राजकीय अस्पताल में उसे भरती करा दिया.

थाने में सुंदर की इतनी पिटाई की गई थी कि 3 महीने तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा. मीनाक्षी कभीकभी अस्पताल आती तो उस पर ताना कसती, ‘‘दिल दिया, दर्द लिया. वही थी न तुम्हारी काजल…? अच्छी है तुम्हारी पसंद.’’ सुंदर कुछ नहीं बोला, बस सिसकता रहा. आखिर डाक्टरों के इलाज और मीनाक्षी की सेवा से वह घर जाने लायक हो गया. छुट्टी के दिन वह किसी

की निगरानी न देख चुपके से अपने घर आ गया. उधर मीनाक्षी अस्पताल पहुंची तो बिस्तर खाली देख बगल वाले से पूछा. पता चला कि सुंदर अभीअभी घर चला गया है.

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मीनाक्षी ने घर जा कर अपने पिता को बताया तो मिश्राजी के तनबदन में आग लग गई. उन्होंने प्रण किया कि चाहे जान चली जाए, सुंदर को मीनाक्षी से शादी करनी ही पड़ेगी. उधर, डीएसपी अंजन कुमार भी काजल की चाहत में दीवाने हो गए थे.

कालेज में 15 दिन की छुट्टियां हुईं. काजल के मन में आया कि मां के साथ गांव घूम लिया जाए. दोनों मांबेटी गांव आ गईं. बदलाव देख कर वे दंग रह गईं. काजल के कच्चे घर के बजाय वहां पक्का बड़ा घर बन गया था. ठेकेदार ने आ कर घर की चाबी देते हुए सारी बातें बताईं कि यह काजल का ही कमाल है.

फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : ब्लैक ग्रेप गजपाचो

ब्लैक ग्रेप गजपाचो

सामग्री

  • 50 ग्राम काले अंगूर
  • 5 कालीमिर्च
  • 1 चम्मच नीबू का रस
  • 11/2 कप व्हाइट अंगूरों का रस
  • 20 एमएल रैड वाइन
  • 10 ग्राम चीनी
  • 10 ग्राम बादाम बारीक कटे
  • 5 एमएल लालमिर्च की चटनी

विधि

अंगूरों के जूस और बादाम का पेस्ट तैयार करें. फिर वाइन में अंगूरों का रस और चीनी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस मिक्स्चर को मलमल के कपड़े में छान कर नीबू का रस और कुटी कालीमिर्च डालें. फिर इस सूप को एक बाउल में डाल कर ठंडा कर लाल मिर्च की चटनी और नमक डाल कर सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : बालिनेज रा मैंगो प्रौंस

सामग्री रा मैंगो स्ला की

  • 100 ग्राम कच्चे आम के टुकड़े
  • 3 ग्राम फ्रैश रैड चिली जूलिएन
  • 10 ग्राम गाजर कटी
  • 4 पत्तियां काफिरलाइम की
  • 15 ग्राम धनियापत्ती कटी
  • 10 ग्राम पात्र जिग्गेरी
  • 10 एमएल सेब का सिरका

सामग्री फ्राई की

  • 250 ग्राम मीडियम आकार के प्रौंस
  • 20 ग्राम प्याज का जूलिएन
  • 5 ग्राम अदरक का जूलिएन
  • थोड़ा से करी पत्ते
  • 10 ग्राम अंकुरित फलियां
  • 10 ग्राम हरा प्याज
  • 5 ग्राम मूंगफली भुनी
  • 10 एमएल लाइट सोया सौस
  • 5 एमएल फिश सौस
  • 15 ग्राम भीगी गिलास नूडल्स
  • 8 ग्राम मद्रास करी पाउडर
  • थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी
  • 20 एमएल औयल
  • 2 चम्मच पानी
  • नमक स्वादानुसार

विधि

रा मैंगो स्ला बनाने के लिए सारी सामग्री को अच्छी तरह मिक्स कर के 2 घंटों के लिए एक तरफ रख दें. फिर एक कड़ाही में तेल डाल कर प्याज, अदरक और कड़ी पत्ते डाल कर 2 मिनट तक भूनें. फिर इस में प्रौंस और अंकुरित फलियों में 2 चम्मच पानी डाल कर पकने तक चलाएं. फिर मूंगफली, काजू, सोया सौस, फिश सौस, नमक, हरा प्याज, नूडल्स, मद्रास करी पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. जब प्रौंस मिक्सचर अच्छी तरह पक जाए तो उसे आंच से उतार कर उस में रा मैंगो स्ला डाल कर 10 सैकंड तक पकाएं फिर धनिया व पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा 

एक ही आग में : एक विधवा क्या किसी से संबंध नहीं रख सकती

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’

‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’’

‘‘हां है.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो

55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’

मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब सुगंधा बोली, ‘‘जवाब नहीं दिया तू ने?’’

‘‘तू ने जो कहा सच कहा है,’’ मीना अपनी रजामंदी देते हुए बोली.

‘‘औरत अगर विधवा है तो उस के साथ यह सामाजिक बंधन क्यों?’’ उलटा सुगंधा ने सवाल पूछते हुए कहा. तब मीना पलभर के लिए कोई जवाब नहीं दे पाई.

सुगंधा बोली, ‘‘अगर किसी की पत्नी गुजर जाती है तो वह इधरउधर मुंह मारता फिरे, तब यह समाज उसे कुछ न कहे, क्योंकि वह मर्द है. मगर औरत किसी के साथ संबंध बनाए, तब वह गुनाह हो जाता है.’’

‘‘तो फिर तू पवन के साथ शादी क्यों नहीं कर लेती?’’ मीना ने सवाल किया.

‘‘आजकल लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है,’’ सुगंधा बोली, ‘‘क्या दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं?’’

‘‘ठीक है, ठीक है, तेरी मरजी जो आए वह कर. मैं ने जो सुना था कह दिया,’’ नाराज हो कर मीना बोली, ‘‘मगर तू 3 बच्चों की मां है. वे सुनेंगे तब उन पर क्या गुजरेगी, यह सोचा है?’’

‘‘हां, सब सोच लिया है. क्या बच्चे नहीं जानते हैं कि मां के दिल में भी एक दिल छिपा हुआ है. उस की इच्छा जागती होगी,’’ समझाते हुए सुगंधा बोली, ‘‘देखो मीना, इस बारे में मत सोचो. तुम अपनी लगी प्यास भाई साहब से बुझा लेती हो. काश, ऐसा न हो, मगर तुम मुझ जैसी अकेली होती तो तुम भी वही सबकुछ करती जो आज मैं कर रही हूं. समाज के डर से अगर नहीं भी करती तो तेरे भीतर एक आग उठती जो जला कर तुझे भीतर ही भीतर भस्म करती.’’

‘‘ठीक है बाबा, अब इस बारे में तुझ से कुछ नहीं पूछूंगी. तेरी मरजी जो आए वह कर,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने जोकुछ सुगंधा के बारे में कहा है, सच है. सुगंधा पवन के साथ संबंध बना लेती है. यह भी सही है कि सुगंधा 3 बच्चों की मां है. उस ने तीनों की शादी कर गृहस्थी भी बसा दी है. सब से बड़ी बेटी शीला है, जिस की शादी कोटा में हुई है. सुगंधा के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं. एक सागर में इंजीनियर है तो दूसरा कटनी में तहसीलदार.

सुगंधा खुद अपने पुश्तैनी शहर जावरा में अकेली रहती है. अकेले रहने के पीछे यही वजह है कि मकान किराए पर दे रखा है.

सुगंधा के दोनों बेटे कहते हैं कि अम्मां अकेली मत रहो. हमारे साथ आ कर रहो, तब वह कभीकभी उन के पास चली जाती है. महीने दो महीने तक जिस बेटे के पास रहना होता है रह लेती है. मगर रहतेरहते यह एहसास हो जाता है कि उस के रहने से वहां उन की आजादी में बाधा आ रही है, तब वह वापस पुश्तैनी शहर में आ जाती है.

यहां बड़ा सा मकान है सुगंधा का, जिस के 2 हिस्से किराए पर दे रखे हैं, एक हिस्से में वह खुद रहती है. पति की पैंशन भी मिलती है. उस के पति शैलेंद्र तहसील दफ्तर में बड़े बाबू थे. रिटायरमैंट के सालभर के भीतर उन का दिल की धड़कन रुकने से देहांत हो गया.

आज 3 साल से ज्यादा समय बीत गया है, तब से वह खुद को अकेली महसूस कर रही है. अभी उस के हाथपैर चल रहे हैं. सामाजिक जिम्मेदारी भी वह निभाती है. जब हाथपैर चलने बंद होंगे, तब वह अपने बेटों के यहां रहने चली जाएगी. फिर किराएदारों से किराया भी समय पर वसूलना पड़ता है. इसलिए उस का यहां रहना भी जरूरी है.

ज्यादातर सुगंधा अकेली रहती है, मगर जब गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बेटीबेटों के बच्चे आ जाते है. पूरा सूना घर कोलाहल से भर जाता है. अकेले में दिन तो बीत जाता है, मगर रात में घर खाने को दौड़ता है. तब बेचैनी और बढ़ जाती है. तब आंखों से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में शैलेंद्र के साथ गुजारी रातें उस के सामने चलचित्र की तरह आ जाते हैं. मगर जब से वह विधवा हुई है, शैलेंद्र की याद और उन के साथ बिताए गए पल उसे सोने नहीं देते.

पवन सुगंधा का किराएदार है. वह अकेला रहता है. वह पौलीटैक्निक में सिविल मेकैनिक पद पर है. उस की उम्र 56 साल के आसपास है. उस की पत्नी गुजर गई है. वह अकेला ही रहता है. उस के दोनों बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और उज्जैन में रहते हैं. दोनों की शादी कर के उन का घर बसा दिया है.

रिटायरमैंट में 6 साल बचे हैं. वह किराए का मकान तलाशने आया था. धीरेधीरे दोनों के बीच खिंचाव बढ़ने लगा. जिस दिन चपरासी रोटी बनाने नहीं आता, उस दिन सुगंधा पवन को अपने यहां बुला लेती थी या खुद ही वहां बनाने चली जाती थी.

पवन ऊपर रहता था. सीढि़यां सुगंधा के कमरे के गलियारे से ही जाती थीं. आनेजाने के बीच कई बार उन की नजरें मिलती थीं. जब सुगंधा उसे अपने यहां रोटी खाने बुलाती थी, तब कई बार जान कर आंचल गिरा देती थी. ब्लाउज से जब उभार दिखते थे तब पवन देर तक देखता रहता था. वह आंचल से नहीं ढकती थी.

अब सुगंधा 58 साल की विधवा है, मगर फिर भी टैलीविजन पर अनचाहे सीन देखती है. उस के भीतर भी जोश पैदा होता है. जोश कभीकभी इतना ज्यादा हो जाता है कि वह छटपटा कर रह जाती है.

एक दिन सुगंधा ने पवन को अपने यहां खाना खाने के लिए बुलाया. उसे खाना परोस रही थी और कामुक निगाहों से देखती भी जा रही थी. वह आंचल भी बारबार गिराती जा रही थी. मगर पवन संकेत नहीं समझ पा रहा था. वह उम्र में उस से बड़ी भी थी. उस की आंखों पर लाज का परदा पड़ा हुआ था.

सुगंधा ने पहल करते हुए पूछ लिया, ‘‘पवन, अकेले रहते हो. बीवी है नहीं, फिर भी रात कैसे गुजारते हो?’’

पवन कोई जवाब नहीं दे पाया. एक विधवा बूढ़ी औरत ने उस से यह सवाल पूछ कर उस के भीतर हलचल मचा दी. जब वह बहुत देर तक इस का जवाब नहीं दे पाया, तब सुगंधा फिर बोली, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘तकिया ले कर तड़पता रहता हूं,’’ पवन ने मजाक के अंदाज में कहा.

‘‘बीवी की कमी पूरी हो सकती है,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन हैरान रह गया, ‘‘आप क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं हूं न आप के लिए,’’ इतना

कह कर सुगंधा ने कामुक निगाहों से पवन की तरफ देखा.

‘‘आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं.’’

‘‘बड़ी हुई तो क्या हुआ? एक औरत का दिल भी है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है, आप खुद कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं.’’

इस के बाद तो वे एकदूसरे के बैडरूम में जाने लगे. जल्दी ही उन के संबंधों को ले कर शक होने लगा. मगर आज मीना ने उन के संबंधों को ले कर जो बात कही, उसे साफसाफ कह कर सुगंधा ने अपने मन की सारी हालत बता दी. मगर एक विधवा हो कर वह जो काम कर रही है, क्या उसे शोभा देता है? समाज को पता चलेगा तब सब उस की बुराई करेंगे. उस पर ताने कसेंगे.

मीना ने तो सुगंधा के सामने पवन से शादी करने का प्रस्ताव रखा. उस का प्रस्ताव तो अच्छा है, शादी समाज का एक लाइसैंस है. दोनों के भीतर एक ही आग सुलग रही है.

मगर इस उम्र में शादी करेंगे तो मजाक नहीं उड़ेगा. अगर इस तरह से संबंध रखेंगे तब भी तो मजाक ही बनेगा.

सुगंधा बड़ी दुविधा में फंस गई. उस ने आगे बढ़ कर संबंध बनाए थे. इस से अच्छा है कि शादी कर लो. थोड़े दिन लोग बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. उस ने ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस उम्र में जा कर शादी भी करते हैं. क्यों न पवन से बात कर के शादी कर ले?

‘‘अरे सुगंधा, आप कहां खो गईं?’’ पवन ने आ कर जब यह बात कही, तब सुगंधा पुरानी यादों से आज में लौटी, ‘‘लगता है, बहुत गहरे विचारों में खो गई थीं?’’

‘‘हां पवन, मैं यादों में खो गई थी.’’

‘‘लगता है, पुरानी यादों से तुम परेशानी महसूस कर रही हो.’’

‘‘हां, सही कहा आप ने.’’

‘‘देखो सुगंधा, यादों को भूल जाओ वरना ये जीने नहीं देंगे.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं पवन, आप से आगे रह कर जो संबंध बनाए… मैं ने अच्छा नहीं किया,’’ अपनी उदासी छिपाते हुए सुगंधा बोली. फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘लोग हम पर उंगली उठाएंगे, उस के पहले हमें फैसला कर लेना चाहिए.’’

‘‘फैसला… कौन सा फैसला सुगंधा?’’ पवन ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हमारे बीच जो संबंध है, उसे तोड़ दें या परमानैंट बना लें.’’

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘मतलब यह कि या तो आप मकान खाली कर के कहीं चले जाएं या फिर हम शादी कर लें.’’

सुगंधा ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब पवन भीतर ही भीतर खुश हो गया. मगर यह संबंध कैसे होगा. वह बोला, ‘‘हम शादी कर लें, यह बात तो ठीक है सुगंधा. मगर आप की और हमारी औलादें सब घरगृहस्थी वाली हो गई हैं. ऐसे में शादी का फैसला…’’

‘‘नहीं हो सकता है, यही कहना चाहते हो न,’’ पवन को रुकते देख सुगंधा बोली, ‘‘मगर, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारी औलादें अपनेअपने घर में बिजी हैं. अगर हम शादी कर लेंगे, तब वे हमारी चिंता से मुक्त हो जाएंगे. जवानी तो मौजमस्ती और बच्चे पैदा करने की होती है. मगर जब पतिपत्नी बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. आज हमें एकदूसरे की जरूरत है. आप इस बात को क्यों नहीं समझते हो?’’

‘‘आप ने ठीक सोचा है सुगंधा. मेरी पत्नी गुजर जाने के बाद मुझे अकेलापन खूब खलने लगा. मगर जब से आप मेरी जिंदगी में आई हैं, मेरा वह अकेलापन दूर हो गया है.’’

‘‘सच कहते हो. मुझे भी अपने पति की रात को अकेले में खूब याद आती है,’’ सुगंधा ने भी अपना दर्द उगला.

‘‘मतलब यह है कि हम दोनों एक ही आग में सुलग रहे हैं. अब हमें शादी किस तरह करनी चाहिए, इस पर सोचना चाहिए.’’

‘‘आप शादी के लिए राजी हो गए?’’ बहुत सालों के बाद सुगंधा के चेहरे पर खुशी झलकी थी. वह आगे बोली, ‘‘शादी किस तरह करनी है, यह सब मैं ने सोच लिया है.’’

‘‘क्या सोचा है सुगंधा?’’

‘‘अदालत में गुपचुप तरीके से खास दोस्तों की मौजूदगी में शादी करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मगर, इस की हवा किसी को भी नहीं लगनी चाहिए. यहां तक कि अपने बच्चों को भी नहीं.’’

‘‘मगर, बच्चों को तो बताना ही पड़ेगा,’’ पवन ने कहा, ‘‘जब हमारे हाथपैर नहीं चलेंगे, तब वे ही संभालेंगे.’’

‘‘शादी के बाद एक पार्टी देंगे. जिस का इंतजाम हमारे बच्चे करेंगे,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन भी सहमत हो गया.

इस के ठीक एक महीने बाद कुछ खास दोस्तों के बीच अदालत में शादी कर के वे जीवनसाथी बन गए. सारा महल्ला हैरान था. उन्होंने अपनी शादी की जरा भी हवा न लगने दी थी. 2 बूढ़ों की अनोखी शादी पर लोगों ने उन की खिल्ली उड़ाई. मगर उन्होंने इस की जरा भी परवाह नहीं की.

कोई खुश हो या न हो, मगर उन की औलादें इस शादी से खुश थीं, क्योंकि उन्हें मातापिता की नई जोड़ी जो मिल गई थी.

सावित्री के सत्य वचन से कैसे निपटेगी भाजपा

उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से भाजपा की सांसद सावित्री फुले की हेयरस्टाइल और नैननक्श तो कुछकुछ बसपा प्रमुख मायावती से मिलतेजुलते हैं ही लेकिन दिलचस्प इत्तफाक यह भी है कि उन के विचार भी वैसे ही हो चले हैं जैसे राजनीतिक कैरियर की शुरुआत में मायावती के हुआ करते थे.

फर्क इतनाभर है कि तेजतर्रार सावित्री अभी सीधे यह नहीं कह पा रहीं कि तिलक, तराजू और तलवार इन को मारो जूते चार. 2 अप्रैल के हिंसक भारतबंद के बाद से दलित हितों को ले कर अपनी ही पार्टी पर निशाना साध रहीं सावित्री का ताजा दुख यह है कि जिन्ना विवाद का मकसद गरीबी और भुखमरी जैसे मुद्दों पर से जनता का ध्यान भटकाना है और संविधान की समीक्षा के बहाने आरक्षण हटाने की साजिश हो रही है.

सावित्री फुले अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने वालों को बचाने वालों पर भी सवाल उठाने लगी हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान उन्हें कैसे मैनेज करता है.

फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : रागी परांठा

रागी परांठा

सामग्री आटा बनाने की

  • 1 कप रागी का आटा
  • थोड़ा सा घी
  • नमक स्वादानुसार

सामग्री स्टफिंग की

पनीर, अनारदाना, धनियापत्ती कटी.

विधि

सब से पहले रागी में नमक, घी व पानी डाल कर डो तैयार करें. उस के बाद पनीर को मैश कर के उस में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस स्टफ को डो में भर कर रोल बनाएं और तवे पर सेक कर दही के साथ गरमगरम सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

घातक है स्वास्थ्य सेवा का व्यापारीकरण

आप की सेहत पर कंपनियां अब मोटा नहीं बहुत मोटा पैसा बना रही हैं. देश में अपोलो, मैक्स और फोर्टिस जैसे मल्टी स्पैश्यलिटी अस्पतालों पर खरीदार 5,000 करोड़ से 10,000 करोड़ खर्चने को तैयार बैठे हैं और उन के मूल प्रमोटर अब बापदादाओं की मेहनत का बहुत मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. अब स्वास्थ्य सेवा स्वास्थ्य सेवा नहीं रह गई है, कमाऊ गाय बन गई है जिसे आधुनिक तकनीक व नित नए शोधों से भरपूर खिलायापिलाया जा रहा है.

इन स्वास्थ्य कंपनियों को पैसा उन आम लोगों की जेबों से आता है जो अपनी या अपने अजीजों की जान बचाने के लिए अपनी आखिरी कौड़ी तक कुरबान करने को तैयार हो जाते हैं. बढ़ते प्रदूषण और बदलते लाइफस्टाइल से नित नई बीमारियां पैदा हो रही हैं. इन की वजह से लोगों को पहले से कई गुना ज्यादा पैसा खर्चना पड़ रहा है और इसी की वजह से अस्पतालों की चेनें बन रही हैं, जिन्हें खुले बाजार में बेचा जा रहा है. फोर्टिस अस्पतालों को खरीदने के लिए देशीविदेशी कंपनियां 2,500 करोड़ तक लगाने को

तैयार हैं और 10-20 दिन में जब यह डील हो जाएगी तो इन अस्पतालों के कर्ताधर्ता एक बार फिर बदल जाएंगे. स्वाभाविक है कि अब अस्पतालों के नए मालिकों को अपनी लगाई पूंजी का लाभ चाहिए होगा, मरीजों का हित नहीं.

स्वास्थ्य तो असल में सरकार यानी समाज के हाथों में रहना चाहिए ताकि हर मरीज को इलाज मिल सके और बीमारियों के कारण लोग न मरें. इन महंगे अस्पतालों ने तो लाखों की आखिरी आस भी छीन ली.

सरकारी अस्पतालों में धांधलियों, निकम्मेपन और लापरवाही के कारण लोगों का इन पर से विश्वास ही उठ गया है. निजी अस्पताल कंपनियां अच्छे डाक्टरों को मोटा वेतन व कमीशन दे कर आकर्षित कर लेती हैं और इसीलिए सरकारी अस्पतालों के योग्य डाक्टर भी उन की शरण में चले जाते हैं. सरकारी अस्पतालों में योग्य डाक्टर कम ही रह जाते हैं, जिन्हें या तो ऊपरी कमाई के अवसर मिल जाते हैं या सरकारी तंत्र जिन्हें मकानों, यात्राओं की सुविधा दे देते हैं.

फोर्टिस के बिकने का मामला इसलिए चिंता की बात है कि इस से सारे देश के अस्पतालों को फर्क पड़ेगा. जहां भी डाक्टर निजी छोटे अस्पताल सफलता से चला रहे हैं उन का अस्तित्व अब खतरे में है. बड़े अस्पताल उन्हें लपकने को दौड़ेंगे. चिकित्सा का प्रबंध अब डाक्टरों के हाथों से निकल कर काले कोटधारी अकाउंटैंटों के हाथों में आ जाएगा जिन्हें सिर्फ पैसे से मतलब होगा.

सरकार लाख कोशिश कर ले कि इन अस्पतालों की कुछ आय गरीबों को इलाज के रूप में मिले पर यह संभव नहीं दिखता. सरकार ने अपने कर्मचारियों को ही अपने खर्च पर इन अस्पतालों में भेजना शुरू कर दिया है. सरकार पर असल गरीबों का दबाव फिर कौन कराएगा? गरीबों को तो फिर से झाड़फूंक वालों के पास जाना पड़ेगा. इतना पक्का है कि गायों और कुत्तों की चिकित्सा सुविधाओं की कमी नहीं रहेगी, गरीबों को नहीं मिलेगी.

क्या है नौकरी के बाद आपका विशेष लक्ष्य

वास्तव में, एक व्यक्ति को रिटायरमेंट को एक विशेष लक्ष्य के तौर पर लेना चाहिए और उसके हिसाब से ही निवेश करना चाहिए. अपनी भविष्य निधि (पीएफ) के समान ही अपने पहले वेतन के समय से ही आप को म्यूचुअल फंड के माध्यम से इक्विटी में निवेश करना चाहिए.

इक्विटी फंड में सिस्टेमेटिक इन्वेस्ट प्लान (एसआईपी) नियमित एवं अनुशासित बचत का मार्ग प्रशस्त करती है और साथ ही साथ दीर्घकालिक तौर पर उच्च स्तरीय रिटर्न प्रदान कर मंहगाई से निजात पाने में सहायता करती है.

जैसे वेतन बढ़ने पर पीएफ की राशि में बढ़ोतरी होती है, वैसे ही वेतन बढ़ने पर एसआईपी में भी बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए. एक व्यक्ति को पीएफ एवं एसआइपी दोनों में समान योगदान करने की नीति अपनानी चाहिए.

वास्तव में इन राशियों में जितनी ही वृद्धि होगी, रिटायरमेंट के बाद उतना ही सुख प्राप्त होगा. एसआईपी के अतिरिक्त व्यक्ति को इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए एक इक्विटी फंड में वार्षिक बोनस, इंसेंटिव के एक भाग का भी निवेश करना चाहिए.

बचत के एक हिस्से को ईएलएसएस (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) फंड में निवेश करना चाहिए, जो वर्तमान समय में आयकर अधिनियम, 1961 के अनुभाग 80 सी के अंतर्गत कर में छूट प्रदान करता है. यह आप के रिटायरमेंट के लिए एक और अच्छी बचत हो सकती है.

कैसे लगाएं रिटायरमेंट कोष का अनुमान

वास्तविक रिटायरमेंट कोष का पूर्वानुमान लगाना कई बार मुश्किल लगता है, लेकिन एक अनुमानित महंगाई दर के आधार पर आप अपने वर्तमान खर्चे को नियंत्रित कर सकते हैं और आप को इस आधार पर रिटायरमेंट के लिए आवश्यक कोष की अनुमान लगा सकते हैं.

आप इस राशि तक पहुंचने के लिए अपने मासिक निवेश को भी निर्धारित कर सकते हैं. यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि किसी भी स्थिति में एसआईपी में अवरोध नहीं आना चाहिए, क्योंकि इससे अंतिम कोष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. निवेश के नियमित होने पर ब्याज के बेहतर होने की संभावना बढ़ जाती है.

ग्लाइड पाथ की नीति का करें पालन

हालांकि इक्विटी एक उथल-पुथल वाला निवेश है. इसमें रिटर्न के मामले में कुछ वर्ष बहुत अच्छे होते हैं, जबकि कुछ मामूली. इस समस्या पर विजय प्राप्त करने के लिए आप को कम अवस्था में ही बड़ी राशि का निवेश करना चाहिए और रिटायरमेंट के निकट आने पर इक्विटी आवंटन में क्रमिक रूप से कमी करनी चाहिए.

इसे ‘ग्लाइड पाथ’ कहते हैं, इससे आप रिटायरमेंट के नजदीक पहुंचने के समय इक्विटी की उथल-पुथल से बच सकते हैं और इक्विटी आवंटनो को अपेक्षाकृत कम उथल-पुथल वाले फिक्स्ड आय सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) द्वारा अंजाम दिया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त आप को इक्विटी से पूरी तरह बाहर निकलने की आवश्यकता नहीं है. जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार रिटायरमेंट के दौरान मार्जिनल एलोकेशन पर ध्यान देना चाहिए.

नियमित खर्चों के लिए आप एक फिक्स्ड मासिक राशि को निर्धारित कर पोर्टफोलियो से एक सिस्टेमेटिक विड्रॉल प्लान (एसडब्लूपी) को भी शुरू कर सकते हैं. इससे आवश्यकतानुसार यूनिटों का नगदीकरण हो जाएगा और राशि प्रत्येक माह बैंक खाते में जमा हो जाएगी. रिटायरमेंट कोष से एक फिक्स्ड राशि को निकाल कर आप खर्च के अनुशासन को अपना सकते हैं.

रियल लाइफ में ठीक विपरीत हैं बौलीवुड के ये पिता और बेटे

बौलीवुड बदल रहा है, इस इंडस्ट्री में नए चेहरे सामने आ रहे हैं. कोई बाहर से तो कोई अपने ही पिता के नक्शे कदम पर चल रहा है. इन्हें लोग स्टार किड के नाम से जानते हैं. और जब स्टार किड फिल्मों में कदम रखते हैं तो उनके और उनके पिता के बीच तुलनाएं शुरू होना भी लाजमी है. इन स्टार बेटों का फिल्मों की चॉइस से लेकर एक्टिंग करने का तरीका, लुक्स और स्टाइल तो अपने पापा से अलग होता ही है बल्कि रियल लाइफ में भी वो अपने पिता से ठीक ओपोजिट होते हैं.

‘पिता रात है तो बेटे दिन’, यही सच है. फिल्में और स्टाइल कितना अलग है यह तो आप सभी जानते हैं, हम आपको बतातें हैं रियल लाइफ में ये बेटे अपने पिता से ओपोजिट कैसे हैं.

ऋषि कपूर और रणबीर कपूर

ऋषि कपूर जो सोशल मीडिया पर कमाल के एक्टिव रहते हैं और वहीं उनके बेटे रणबीर का सोशल मीडिया से दूरऔरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. स्वभाव की बात की जाए तो शॉर्ट टेम्पर ऋषि के स्वभाव से कौन वाकिफ नहीं है, लेकिन उनके ओपोजिट रणबीर काफी शांत किस्म के इंसान हैं. ऋषि अपने फैन्स से जरा दूरी बनाए रखते हैं वहीं, सुना है रणबीर कभी किसी को ना नहीं कहते.

धर्मेन्द्र और सनी देओल

धर्मेन्द्र के बेटे सनी देओल और बॉबी देओल के बीच प्यार तो खूब है मगर, बहुत कम लोग जानते हैं कि धर्मेन्द्र और सनी के बीच दिनऔररात का अंतर है. जहां धर्मेन्द्र पार्टीज करने और हर पल को दिल से जीने में विश्वास करते हैं वहीं सनी थोड़े प्रैक्टिकल हैं. पार्टीज में धर्मेन्द्र और बॉबी तो खूब एन्जॉय करते हैं मगर सनी पार्टीज में जाना ही पसंद नहीं करते.

सुनील दत्त और संजय दत्त

सुनील दत्त थे एक शांत स्वभाव के इंसान, जो हर किसी से बड़े आराम और फ्रेंडली होकर बात करते थे. हालांकि, संजय भी लोगों से खुल कर बात करते हैं मगर, कहीं न कहीं उनका अग्रेशन दिखाई देता है. संजय का जेल जाना भी उन्हें अपने पिता सुनील से ओपोजिट बनाता है.

जैकी श्रॉफ और टाइगर श्रॉफ

जैकी श्रॉफ और उनके बेटे टाइगर के बीच भी दिन रात का अंतर है. जैकी एक मुंबईया मैन हैं, वो हर किसी से बड़े ही बिंदास तरीके से, ‘भिडु’ शब्द का इस्तेमाल करके बात करते हैं वहीं टाइगर उनके ओपोजिट सभी से सर या मैडम कहकर बातें करते हैं. शर्मीले, शांत और लाइट हार्टेड टाइगर अपने पिता से बहुत अलग हैं.

विनोद खन्ना और अक्षय खन्ना

हर एक लड़की का क्रश थे विनोद खन्ना, बड़े बिंदास, फ्रेंडली और जमीन से जुड़े विनोद के ओपोजिट उनके बेटे अक्षय खन्ना लोगों से कम ही बातें करते हैं. मीडिया से बात करने में भी विनोद कभी हिचकिचाए नहीं मगर अक्षय का स्वभाव इस मामले में जरा अलग है. अक्षय हर सवाल का जवाब एक ही लाइन में दे देते हैं, ज्यादा बातें नहीं करते और ना ही किसी से घुलते मिलते हैं.

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