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महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर की डिग्री है फर्जी

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की टी-20 फौर्मेट की कैप्टन हरमनप्रीत कौर की मार्कशीट के फर्जी होने की पुष्टि के बाद अब हरमनप्रीत कौर की पंजाब में पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) की नौकरी पर तलवार लटक गई है. क्रिकेट की दुनिया में शानदार प्रदर्शन करके देश का मान बढ़ाने पर उन्हें रेलवे ने नौकरी दी गई थी और उसके बाद उन्हें पंजाब पुलिस में डीएसपी की नौकरी दी गई थी, लेकिन अब उनका डिमोशन तय माना जा रहा है. उन्हें डीएसपी से सिपाही के पद पर डिमोट करने पर विचार किया जा रहा है. बता दें कि हाल ही में हरमनप्रीत कौर को 2016-17 के सत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला क्रिकेटर चुना गया है.

एक खबर के मुताबिक, पंजाब सरकार अर्जुन अवौर्ड खिलाड़ी से सम्मानित हरमनप्रीत कौर से डीएसपी का पद छीनकर सिपाही लगाने की पेशकश की है. पंजाब सरकार के सूत्रों का कहना है कि हरमनप्रीत कौर ने सिर्फ 12वीं क्लास ही पास की है. ऐसे में उन्हें सिर्फ सिपाही का पद ही दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि हमने हरमनप्रीत कौर से कह दिया है कि अगर वह सिपाही पद पर रहना चाहती हैं तो हमें बता दें, लेकिन बीए पास नहीं होने की वजह से उन्हें डीएसपी का पद नहीं दिया जा सकता है.

हालांकि, हरमनप्रीत कौर के मैनेजर का इस बारे में कहना है, ”हमें पंजाब पुलिस की तरफ से नौकरी को लेकर कोई आधिकारिक पत्र नहीं मिला है. हरमनप्रीत की यह वही डिग्री है, जो रेलवे में नौकरी के दौरान जमा की गई थी तो यह झूठी और फर्जी कैसे हो सकती है?”

सूत्रों के मुताबिक, गृह विभाग के अतिरिक्त प्रधान सचिव एन.एस. कलसी ने पुलिस विभाग को लिख दिया है कि हरमनप्रीत कौर को सिपाही लगा दिया जाए. बता दें कि हाल ही में सीसीएस विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार जीपी श्रीवास्तव ने बताया कि मार्च महीने में पंजाब पुलिस ने सत्यापन के लिए उनकी मार्कशीट मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह (सीसीएस) विश्वविद्यालय भेजी थी. जांच के बाद उनकी बीए फाइनल की मार्कशीट फर्जी पाई गई है. उनकी मार्कशीट का वहां कोई रिकौर्ड नहीं मिला.

उन्होंने बताया था, “जांच में पाया गया कि मार्कशीट में छपा रोल नंबर और नोमिनेशन नंबर हमारे रिकौर्ड में उपलब्ध नहीं हैं.’’ बकौल श्रीवास्तव विश्वविद्यालय ने इस आशय की रिपोर्ट अप्रैल महीने में भेज दी थी.

रेलवे की नौकरी को लेकर भी रही थीं विवादों में

महिला विश्व कप-2017 में औस्ट्रेलिया के खिलाफ धमाकेदार 171 रनों की पारी खेलते हुए भारत को फाइनल में पहुंचाने वाली हरमनप्रीत कौर पहले भी विवादों में फंस चुकी हैं. गौरतलब है कि पंजाब के मोगा की रहने वाली हरमनप्रीत को 1 मार्च, 2018 को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा ने प्रदेश पुलिस में डीएसपी के रूप में ज्वाइन कराया था. पंजाब पुलिस ज्वाइन करने से पहले वह पश्चिम रेलवे में कार्यरत थीं. वहां उनका 5 साल का बौन्ड था. इसके बावजूद उन्होंने पिछले साल नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था.

हरमनप्रीत को रेलवे में नौकरी करते हुए 3 साल ही हुए थे. ऐसे में बौन्ड की शर्तों के अनुसार, उन्हें पांच साल का वेतन रेलवे को वापस देना था, इसके चलते उन्हें रिलीव नहीं किया गया था. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रेल मंत्री पीयूष गोयल के समक्ष उठाया, इसके बाद ही हरमनप्रीत पंजाब पुलिस में नौकरी ज्वाइन कर सकी थीं.

पिता ने कहा, गलत है जांच

उधर, हरमनप्रीत कौर के पिता हरमिंदर सिंह ने इस जांच को गलत ठहराया था. उनका कहना था कि उनकी बेटी की डिग्री सही है. हरमनप्रीत ने इसी डिग्री के आधार पर रेलवे में नौकरी की तो अब यह डिग्री फर्जी कैसे हो सकती है. हरमिंदर सिंह ने कहा कि वे खुद मेरठ जाकर सच पता लगाएंगे. हरमनप्रीत की डिग्री रेगुलर थी या फिर पत्राचार से की गई, पिता ने इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.

हरमिंदर सिंह ने कहा था कि बेटी ने 12वीं की पढ़ाई मोगा से की. उसके बाद हरमनप्रीत का चयन भारतीय महिला क्रिकेट में हो गया तो इस बीच उसने बीए की डिग्री मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से ली. उन्होंने बेटी से फोन पर बात की तो उसने भी डिग्री जाली होने से इनकार किया. वहीं, हरमनप्रीत कौर की मां सतविंदर कौर खुलकर नहीं बोलीं.

नहीं रहे ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के डा. हंसराज हाथी

मशहूर टीवी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में लोगों को अपने शानदार अभिनय से हंसाने वाले कवि कुमार आजाद अब हमारे बीच नहीं रहे. इस टीवी सीरियल में वह डा. हंसराज हाथी का किरदार निभाते थे. मीडिया में आई खबरो के अनुसार सोमवार को महाराष्ट्र के मीरा रोड वाकहार्ट हास्पिटल में उनका हार्टअटैक से निधन हो गया. बताया जा रहा है कि कवि कुमार आजाद का जिस वक्त दिल का दौरा पड़ा वे घर पर थे. कवि कुमार की हुई निधन की जानकारी आरजे आलोक ने अपने आफिशियल ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर दी.

बता दें कि कवि कुमार काफी समय से छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक सक्रिय थे. उन्होंने आमिर खान की फिल्म ‘मेला’ और परेश रावल के साथ फिल्म ‘फंटूश’ जैसी कई फिल्मों में काम किया. कवि कुमार आजाद के नाम से ही जाहिर है कि वे कवि थे, और जब वे एक्टिंग में मशगूल नहीं होते तो कविताएं लिखा करते थे. शो में वे पूरी गोकुल धाम सोसाइटी के साथ बहुत ही मिलनसारिता के साथ पेश आते थे. दर्शकों खासकर बच्चों में वे बहुत लोकप्रिय थे. ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में कवि कुमार शो में डाक्टर थे, लेकिन ओवरवेट डाक्टर थे. उन्हें हर कोई बहुत प्यार करता था.

मौनसून में खरीद सकते हैं ये वाटरप्रूफ स्मार्टफोन

बारिश का मौसम शुरू हो गया है. अक्सर ऐसा होता है कि आप कहीं बारिश में फंस जाते हैं और आपके पास ऐसी कोई चीज नहीं होती जिसमें आप फोन छिपाकर बारिश से बचाएं. ऐसे में अपने स्मार्टफोन की सुरक्षा भी जरूरी है. वैसे अगर आपका फोन ही वाटरप्रूफ है तो फिर क्या बात है. आइए आज ऐसे ही स्मार्टफोन के बारे में जानते हैं जो 3.3 मीटर गहरे पानी में 30 मिनट तक रह सकते हैं. इन सभी स्मार्टफोन को IP67 और IP68 रेटिंग मिली है.

Huawei P20 Pro

Huawei P20 Pro में 6.1 इंच की फुल एचडी OLED डिस्प्ले है और इसे IP67 रेटिंग मिली है. इसमें 4000mAh की बैटरी मिलेगी जो फास्ट चार्जिंग को सपोर्ट करेगी. इस फोन की सबसे बड़ी खासियत इसके रियर पैनल पर दिए गए 3 कैमरे हैं. इनमें से एक कैमरा 8 मेगापिक्सल का है जिसमें 3x औप्टिकल जूम और Leica टेलीफोटो लेंस मिलेगा. वहीं दूसरा कैमरा 40 मेगापिक्सल का और तीसरा कैमरा 20 मेगापिक्सल का है. इसमें फ्रंट कैमरा 24 मेगापिक्सल का है.इस फोन में किरिन 970 प्रोसेसर, 6 जीबी रैम और 128 जीबी तक की स्टोरेज मिलेगी. Huawei P20 Pro की भारत में कीमत 64,999 रुपये है.

Nokia 8 Sirocco

Nokia 8 Sirocco में एंड्रायड ओरियो 8.1, 5.5 इंच की क्वाड एचडी pOLED डिस्प्ले है जिसका आस्पेक्ट रेशियो 16:9 होगी. डिप्ले पर 3डी कौर्निंग गोरिल्ला ग्लास का प्रोटेक्शन है. इसके अलावा फोन में क्वालकौम का स्नैपड्रैगन 835 प्रोसेसर, 6GB रैम और 128 जीबी की स्टोरेज मिलेगी. फोन में डुअल रियर कैमरा है इसमें एक कैमरा 12 मेगापिक्सल का वाइड एंगल वाला है जिसका अपर्चर f/1.75 और दूसरा कैमरा 13 मेगापिक्सल का है जिसका अपर्चर f/2.6 है. वहीं फ्रंट कैमरा 5 मेगापिक्सल का है. इसके अलावा फोन में 4G VoLTE, Wi-Fi 802.11ac, ब्लूटूथ v5.0, GPS/A-GPS, NFC, फिंगरप्रिंट सेंसर और वायरलेस चार्जिंग के साथ 3260mAh की बैटरी है. Nokia 8 Sirocco की भारत में कीमत 49,999 रुपये है.

Apple iPhone X

iPhone X के 64 जीबी वेरियंट की भारत में कीमत 89,000 रुपये और 256GB वेरियंट की कीमत 1,02,000 रुपये है. आईफोन X में डिस्प्ले- 5.8 इंच की है. इसमें रैम- 3GB, स्टोरेज- 64/256GB, प्रोसेसर- A11, रियर कैमरा- 12 मेगापिक्सल का डुअल कैमरा सेटअप, फ्रंट कैमरा- 7 मेगापिक्सल, बैटरी- 21 घंटे का टौकटाइम, वायरलेस चार्जिंग और फेशियल रिकौग्निशन दिया गया है.

iPhone 8, 8 Plus

शानदार डिस्प्ले और दमदार कैमरा के साथ Apple iPhone 8 Plus एप्पल लवर्स की पहली पसंद हो सकता है. इस फोन के स्पेसिफिकेशन की बात करें तो इसमें 5.5 इंच की डिस्प्ले, 3GB रैम, 64/256GB स्टोरेज, A11 प्रोसेसर, 12 मेगापिक्सल का डुअल रियर कैमरा, 7 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा, 21 घंटे का बैटरी बैकअप, वायरलेस चार्जिंग सपोर्ट है. फोन के 64 जीबी वेरियंट की कीमत 73,000 रुपये और 256 जीबी वेरियंट की कीमत 86,000 रुपये है.

Samsung Galaxy Note 8

इस फोन में डुअल-सिम सपोर्ट, एंड्रायड 7.1.1 नूगट, 6.3 इंच की क्वाडएचडी+ सुपर एमोलेड डिस्प्ले है. बता दें कि इस फोन में डिस्प्ले डिफौल्ट रूप से फुलएचडी+ रहता है लेकिन इसे क्वाडएचडी+ में सेटिंग से बदला जा सकता है. इस फोन में सैमसंग का एक्सीनास 8895 प्रोसेसर, 6 जीबी रैम और 64 जीबी स्टोरेज है जिसे 256 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है. फोन के कैमरे की बात करें तो इसमें डुअल रियर कैमरा सेटअप है जिसमें रियर पर 12 मेगापिक्सल के दो सेंसर हैं जो औप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन को सपोर्ट करते हैं. वहीं फ्रंट कैमरा 8 मेगापिक्सल का दिया गया है. फोन में 3300mAh की बैटरी दी गई है. इसके अलावा फोन में 4जी वीओएलटीई, डुअल-बैंड, वाई-फाई 802.11एसी, ब्लूटूथ 5.0,यूएसबी टाइप-सी, एनफएफसी जैसे फीचर्स हैं. कीमत  64,900 रुपये रुपये हो गई है.

सैमसंग गैलेक्सी एस 8 और एस8 प्लस

सैमसंग गैलेक्सी एस8 में 5.8 इंच की क्वाडएचडी 1440×2960 पिक्सल रेजाल्यूशन वाली सुपर एमोलेड डिस्प्ले है. फोन में 12 मेगापिक्सल का ‘डुअल पिक्सल’ रियर कैमरा और सेल्फी कैमरा 8 मेगापिक्सल का है जिसका फ्रंट पर्चर f/1.7 है. प्रोसेसर क्वालकौम का लेटेस्ट वर्जन स्नैपड्रैगन 835, रैम 4 जीबी और 64 जीबी स्टोरेज है जिसे 256 जीबी तक स्टोरेज बढ़ा सकते हैं. इसकी कीमत 57,900 रुपये है. यह फोन वायरलेस चार्जिंग को भी सपोर्ट करता है. इसके अलावा आईफोन 7, 7 प्लस, सैमसंग गैलेक्सी एस9, एस9 प्लस, वनप्लस 5टी, वनप्लस 6 जैसे स्मार्टफोन के भी नाम हैं.

Google Pixel 2, XL

इस फोन में पतले बेजल वाला 6 इंच का कर्व्ड क्वाडएचडी डिस्प्ले है जिसका आस्पेक्ट रेशियो 18:9 है. इसमें क्वालकौम स्नैपड्रगैन 835 प्रोसेसर, 4 जीबी रैम, 64 जीबी और 128 जीबी स्टोरेज और 3520 एमएएच की बैटरी है. फोन के कैमरे की बात करें तो इसमें एफ/1.8 अपर्चर वाला 12.2 मेगापिक्सल का रियर कैमरा है जो औप्टिकल और इलेक्ट्रानिक स्टेबलाइजेशन से लैस है. वहीं फ्रंट कैमरा 8 मेगापिक्सल का है जिसका अपर्चर एफ/2.4 है. Google Pixel 2 XL के 64GB वेरियंट की कीमत 73,000 रुपये और इसके 128GB वेरियंट की कीमत 83,000 रुपये है.

क्या आप जानते हैं व्हाट्सऐप के इन दो खास फीचर के बारें में..!

आजकल हर कोई व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करता है और इस ऐप के द्वारा अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से संपर्क मे रहता है. वैसे तो आप व्हाट्सऐप के हर फीचर को बखूबी जानते होंगे, लेकिन हम जिन दों फीचर की बात कर रहे हैं उन्हें आप शायद ही जानते हों. इन फीचर्स के नाम हैं लास्ट सीन और ब्लू टिक. आप चाहें तो इन दोनों फीचर्स को बंद भी कर सकते हैं लेकिन कई लोग इसे बंद करने का तरीका नहीं जानते हैं तो चलिए आज हम आपको इनके तरीके बताते हैं.

ब्लू टिक और लास्ट सीन को कैसे बंद करें?

सबसे पहले व्हाट्सऐप की सेटिंग्स में जाएं और अकाउंट पर क्लिक करें. इसके बाद प्राइवेसी सेटिंग्स पर क्लिक करें और लास्ट सीन के विकल्प पर क्लिक करें. अब आपको तीन विकल्प एवरीवन (सभी लोग), माय कॉन्टेक्ट्स (मेरे सम्पर्क) और नोबडी (कोई नहीं) के विकल्प मिलेंगे. अब आप अपनी स्वेच्छा से किसी एक विकल्प पर क्लिक कर दें. अगर आप चाहते हैं कि आपका लास्ट सीन कोई ना देखे तो आप आखिरी विकल्प नो बडी पर क्लिक कर सकते हैं.

ब्लू टिक को बंद करने का तरीका यह है कि व्हाट्सऐप की सेटिंग्स में जाएं और फिर से अकाउंट पर क्लिक करके प्राइवेसी में जाएं. अब आपको सबसे नीचे read receipts का विकल्प मिलेगा और उसके आगे टिक का ऑप्शन होगा. अगर आप चाहते हैं कि आपके मैसेज के साथ ब्लू टिक ना दिखे तो आप इस विकल्प से टिक हटा दें और ऑन करने के लिए टिक कर दें. इस फीचर को ऑफ कर देने के बाद आपको भी पता नहीं चलेगा कि आपका मैसेज पढ़ा गया या नहीं. इस फीचर को ऑन करने से मैसेज पढ़ लिए जाने के बाद दो ब्लू टिक आ जाते हैं.

रेप के आरोप के बाद रद्द हुई मिथुन के बेटे की शादी

बौलीवुड अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाअक्षय उर्फ मिमोह चक्रवर्ती रेप और जबरन अबार्शन के आरोप में इतनी बुरी तरह फंसे कि शादी के मंडप पर पहुंचने के बाद भी उनकी शादी ना हो सकी. दरअसल, बीते शनिवार यानी 7 जुलाई को मिमोह की शादी होने ही वाली थी, लेकिन शिकायत के बाद दिल्ली पुलिस शादी के मंडप में पहुंच गई, जिसके चलते शादी टालनी पड़ी.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम के पहुंचने के बाद शादी को रद्द कर दिया गया और दुल्हन का परिवार मौके से चला गया. महाअक्षय की शादी शनिवार को उधगमंडलम में अभिनेता के पॉश होटल में होनी थी.

दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई कथित बलात्कार और धोखाधड़ी की शिकायत के मामले में शनिवार को अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की पत्नी और पुत्र को अग्रिम जमानत दे दी थी. विशेष न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने चक्रवर्ती की पत्नी योगिता बाली और उनके बेटे महाअक्षय को यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी कि उनकी समाज में गहरी जड़ें हैं और उनके फरार होने की आशंका नहीं है.

न्यायाधीश ने कहा कि तदनुसार यह आदेश दिया जाता है कि गिरफ्तारी की स्थिति में दोनों आवेदकों को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही दो जमानत राशियों पर रिहा किया जायेगा.

गौरतलब है कि एक महिला ने दर्ज कराई शिकायत में आरोप लगाया था कि महाअक्षय ने शादी का झांसा देकर उससे करीब चार साल तक शारीरिक संबंध बनाकर उसे धोखा दिया और उससे बलात्कार किया. इस शिकायत के बाद अदालत के आदेश पर इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.

अदालत ने कहा था कि पहली नजर में मिथुन की पत्नी योगिता बाली और बेटे महाअक्षय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने तथा कानून के अनुसार आगे बढने के पर्याप्त आधार हैं. महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि जब वह गर्भवती हुई तो महाअक्षय ने उसे कुछ दवाइयां दी जिसके कारण गर्भपात हुआ. उसने अपनी शिकायत में दावा किया कि योगिता बाली ने उसे धमकी दी थी कि यदि उसने रिश्ते को जारी रखा तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.

इंडिया बनाम इंग्लैंड : रोहित शर्मा T20I फौर्मेट में तीन शतक लगाने वाले दूसरे खिलाड़ी बने

रोहित शर्मा ने ब्रिस्टल में तीसरे और अंतिम T20I में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाद शतक लगाकर भारत की T20I श्रृंखला जीतने में मदद की. यह T20I में रोहित का तीसरा शतक था. 2 हफ्ते पहले रोहित ने आयरलैंड के खिलाफ 97 रन बनाए थे, लेकिन इस बार दाहिने हाथ के इस बैट्समैन ने सुनिश्चित किया कि वह तीन अंकों के आंकड़े को छुएं. संयोग से, रोहित शर्मा हर प्रारूप में तीन शतक बनाने वाले पहले खिलाड़ी बने – टेस्ट, ओडीआई और T20I। अपने मैच जिताऊ शानदार शतक की बदौलत उन्हें मैन औफ द मैच चुना गया.

रोहित के 100 रन जो सिर्फ 56 गेंदों पर आए, 11 चौके और 5 छक्के की बदौलत थे. उनका अर्धशतक 28 गेंदों में पूरा हुआ और अगली 28 गेंदों में उन्होंने अपना शतक पूरा किया. इससे पहले, उस दिन रोहित शर्मा 2000 से अधिक T20I रन बनाने वाले पांचवें बल्लेबाज बने. भारत के कप्तान विराट कोहली, पाकिस्तान के शोएब मलिक और न्यूजीलैंड के ब्रेंडन मैकुलम और मार्टिन गुपटिल भी इस सूची में शामिल हैं.

श्रीसंथ का बौडी मेकओवर देख हैरान हुए फैन्स, हरभजन को बनाया ट्विटर पर निशाना

पूर्व क्रिकेटर श्रीसंथ के वायरल हो रहे जिम वीडियो को लेकर ट्विटर पे इन दिनों हरभजन का मजाक बनाया जा रहा है.

गौरतलब है कि दोनों खिलाड़ी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2008 के दौरान एक विवाद में शामिल थे जब मुंबई इंडियंस और किंग्स इलेवन पंजाब (केएक्सआईपी) के बीच एक खेल में हरभजन ने श्रीसंथ को थप्पड़ जड़ दिया था. बाद में आईपीएल के उस सत्र से हरभजन को प्रतिबंधित कर दिया गया और बीसीसीआई ने उनपर पांच एक दिवसीय मैच में प्रतिबंध लगा दिया था.

 

श्रीसंथ ने कसरत करते हुए अपनी कुछ इमेज भी शेयर की हैं. कुछ ने उनकी सराहना की, कुछ ने इसे लेकर ट्विटर पर मजाक बनाया. पूर्व में हुए तमाम विवादों के बाद से श्रीसंत ने काफी अच्छा बैकअप किया है और एक शानदार शरीर के मालिक बन गए हैं. हाल ही में उन्होंने अपने Instagram एकाउंट से अपनी लेटेस्ट फोटो पोस्ट की.

भारतीय टीम के पूर्व पतले सदस्य श्रीसंथ, एक मौडल में बदल गए हैं क्योंकि कुछ ही दिनों में उनकी आगामी फिल्म फ्लोर पर जाने वाली है. खबरों के मुताबिक, श्रीसंथ जल्द ही कन्नड़ फिल्म केम्पेगोड़ा 2 में अभिनय करते नजर आएंगे. वह केरल के एक जाने माने राजनितिक हस्ती भी हैं.

#hard work# love

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Keep working hard and keep at it..BE THE BEST YOU..

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जेल में मारा गया मुन्ना बजरंगी

उत्तर प्रदेश में सडक से लेकर जेल तक में अपराध बढ रहे हैं. बागपत जेल में बंद माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या सुबह 6 बजे हो गई. मुन्ना बजरंगी झांसी जेल से पेशी पर आया था. बागपत जेल में बंद गैंगस्टर सुनील राठी पर हत्या का आरोप है. कुछ समय पहले ही मुन्ना बजरंगी की पत्नी ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपने पति की हत्या की साजिश रचे जाने का अंदेशा जताते हुये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सुरक्षा की अपील की थी. एडीजी जेल चन्द्र प्रकाश ने कहा कि सुबह 6 बजे झगड़े के दौरान गोली मारी गई. मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या से जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हुये हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आननफानन में जेलर उदय प्रताप सिंह, डिप्टी जेलर शिवाजी यादव, हेड वार्डन अरजिदंर सिंह, वार्डन माधव कुमार को सस्पेंड कर दिया. इसके साथ ही साथ ज्यूडिशियल इंक्वायरी गठित की गई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मामले की जांच सख्ती से होगी जो दोषी होगा उसको बक्शा नहीं जायेगा.

मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह था. उसका जन्म 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ था. उसके पिता पारसनाथ सिंह उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे. मगर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने उनके अरमानों को कुचल दिया. मुन्ना बजरंगी को पढ़ने की जगह पर हथियार रखने का शौक हो गया था. वह फिल्मों की तरह एक बड़ा गैंगेस्टर बनना चाहता था. यही वजह थी कि 17 साल की नाबालिग उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. जौनपुर के सुरेही थाना में उसके खिलाफ मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद मुन्ना अपराध के दलदल में धंसता चला गया.

मुन्ना अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगा था. इसी दौरान उसे जौनपुर के स्थानीय दबंग माफिया गजराज सिंह का संरक्षण हासिल हो गया. मुन्ना अब उसके लिए काम करने लगा था. इसी दौरान 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या कर दी. उसके मुंह खून लग चुका था. इसके बाद उसने गजराज के इशारे पर ही जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या करके पूर्वांचल में अपना दम दिखाया. उसके बाद उसने कई लोगों की जान ली.

पूर्वांचल में अपनी साख बढ़ाने के लिए मुन्ना बजरंगी 90 के दशक में पूर्वांचल के बाहुबली माफिया और राजनेता मुख्तार अंसारी के गैंग में शामिल हो गया. मुख्तार ने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा और 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधायक निर्वाचित हुए. इसके बाद इस गैंग की ताकत बहुत बढ़ गई. मुन्ना सीधे तौर पर सरकारी ठेकों को प्रभावित करने लगा था. वह लगातार मुख्तार अंसारी के निर्देशन में काम कर रहा था.

पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के कारोबार पर मुख्तार अंसारी का कब्जा था. लेकिन इसी दौरान तेजी से उभरते बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय उनके लिए चुनौती बनने लगे. उन पर मुख्तार के दुश्मन ब्रजेश सिंह का हाथ था. उसी के संरक्षण में कृष्णानंद राय का गैंग फल फूल रहा था. इसी वजह से दोनों गैंग अपनी ताकत बढ़ा रहे थे. इनके संबंध अंडरवर्ल्ड के साथ भी जुड़े गए थे. कृष्णानंद राय का बढ़ता प्रभाव मुख्तार को रास नहीं आ रहा था. उन्होंने कृष्णानंद राय को खत्म करने की जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को सौंप दी.

मुख्तार से फरमान मिल जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को खत्म करने की साजिश रची और उसी के चलते 29 नवंबर 2005 को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के कहने पर मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत की नींद सुला दिया. उसने अपने साथियों के साथ मिलकर लखनऊ हाइवे पर कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर गोलियां बरसाई थी. इस हमले में गाजीपुर से विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे 6 अन्य लोग भी मारे गए थे. पोस्टमार्टम के दौरान हर मृतक के शरीर से 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थी. इस हत्याकांड ने सूबे के सियासी हलकों में हलचल मचा दी. हर कोई मुन्ना बजरंगी के नाम से खौफ खाने लगा. इस हत्या को अंजाम देने के बाद वह मोस्ट वान्टेड बन गया था.

भाजपा विधायक की हत्या के अलावा कई मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस, एसटीएफ और सीबीआई को मुन्ना बजरंगी की तलाश थी. इसलिए उस पर सात लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया. उस पर हत्या, अपहरण और वसूली के कई मामलों में शामिल होने के आरोप हैं. वो लगातार अपनी लोकेशन बदलता रहा. पुलिस का दबाव भी बढ़ता जा रहा था. यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार मुन्ना बजरंगी की तलाश कर रही थी. उसका यूपी और बिहार में रह पाना मुश्किल हो गया था. दिल्ली भी उसके लिए सुरक्षित नहीं था. इसलिए मुन्ना भागकर मुंबई चला गया. उसने एक लंबा अरसा वहीं गुजारा. इस दौरान उसका कई बार विदेश जाना भी होता रहा. उसके अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ते भी मजबूत होते जा रहे थे. वह मुंबई से ही फोन पर अपने लोगों को दिशा निर्देश दे रहा था.

एक बार मुन्ना ने लोकसभा चुनाव में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना एक डमी उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश की. मुन्ना बजरंगी एक महिला को गाजीपुर से भाजपा का टिकट दिलवाने की कोशिश कर रहा था. जिसके चलते उसके मुख्तार अंसारी के साथ संबंध भी खराब हो रहे थे. यही वजह थी कि मुख्तार उसके लोगों की मदद भी नहीं कर रहे थे. बीजेपी से निराश होने के बाद मुन्ना बजरंगी ने कांग्रेस का दामन थामा. वह कांग्रेस के एक कद्दावर नेता की शरण में चला गया. कांग्रेस के वह नेता भी जौनपुर जिले के रहने वाले थे. मगर मुंबई में रह कर सियासत करते थे. मुन्ना बजरंगी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नेता जी को सपोर्ट भी किया था.

उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मुन्ना बजरंगी के खिलाफ मुकदमे दर्ज थे. वह पुलिस के लिए परेशानी का सबब बन चुका था. उसके खिलाफ सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हैं. लेकिन 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मलाड इलाके में नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया था. माना जाता है कि मुन्ना को अपने एनकाउंटर का डर सता रहा था. इसलिए उसने खुद एक योजना के तहत दिल्ली पुलिस से अपनी गिरफ्तारी कराई थी.

मुन्ना की गिरफ्तारी के इस औपरेशन में मुंबई पुलिस को भी ऐन वक्त पर शामिल किया गया था. बाद में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि दिल्ली के विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या में मुन्ना बजरंगी का हाथ होने का शक है. इसलिए उसे गिरफ्तार किया गया. तब से उसे अलग अलग जेल में रखा जा रहा था. इस दौरान भी उसे जेल से लोगों को धमकाने, वसूली करने जैसे मामले सामने आ रहे थे. बताया जाता है कि अपने 20 साल के अपराधिक जीवन में उसने 40 हत्याएं की है.

प्रियंका को मिली एक और हिंदी फिल्म

बौलीवुड से हौलीवुड तक का सफर तय करने वाली देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा अब एक और वजह से सुर्खियों में आ गई हैं. खबर आई है कि प्रियंका के पास फिल्म ‘भारत’ ही नहीं बल्कि एक और हिंदी फिल्म है, जिसकी तैयारियां उन्होंने शुरू कर दी हैं. दरअसल, प्रियंका चोपड़ा ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम पर इंस्टा स्टोरी के जरिए एक नई जानकारी साझा की है. यह जानकारी उनकी दूसरी हिंदी फिल्म से जुड़ी है. प्रियंका ने फिल्म की कहानी के कवरपेज की एक फोटो शेयर की है जिसमें हिंदी फिल्म का नाम ‘द स्काई इज पिंक’ लिखा हुआ है. वे लिखती हैं इसकी शुरुआत हो गई है.

आपकी जानकारी लिए बता दें कि, अली अब्बास जफर की फिल्म भारत की शूटिंग 17 जुलाई से शुरू हो रही है और इसी दौरान होली का एक गाना शूट किया जाएगा. जानकारी के मुताबिक इसकी शूटिंग मुंबई के एक स्टूडियो में होगी और गाना तीन दिन में खत्म होगा. फिल्म का पहला शेड्यूल 11 दिनों का होगा और इसके बाद पूरी टीम पंजाब जायेगी जहां फिल्म के अहम हिस्से फिल्माये जाएंगे. भारत में दिशा पटानी, तब्बू, सुनील ग्रोवर और आसिफ शेख भी कास्ट किये गए हैं. सलमान खान के बहनोई अतुल अग्निहोत्री के प्रोडक्शन में बनने वाली ये फिल्म दक्षिण कोरिया की फिल्म ‘ओड टू माय फादर’ का हिंदी वर्जन है. फिल्म अगले साल ईद के मौके पर रिलीज होगी.

बताते चलें कि, प्रियंका चोपड़ा ने साल 2016 में प्रकाश झा की फिल्म जय गंगाजल में काम किया था और उसके बाद वो अमेरिका चली गई थीं. प्रियंका ने अमेरिका में टीवी शो क्वांटिको के तीन सीजन किये.

सड़क पर कोई शौक से नहीं रहता

पहले बसाई जाती है, फिर खाली कराई जाती है, झुग्गी बस्ती से कुछ ऐसे वफा निभाई जाती है.

यह खेल न जाने कितने सालों से बदस्तूर चल रहा है. अब तो अतिक्रमण को ले कर सुप्रीम कोर्ट के तेवर भी तीखे हैं. वह कहता है कि दिल्ली की सड़कें साफ चाहिए ताकि सड़क व फुटपाथों पर चलने वालों को राहत मिले.

अदालत ने यह भी कहा कि सार्वजनिक जगहों और अनऔथराइज्ड कालोनियों मे गैरकानूनी निर्माण पर फौरन रोक लगे.

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी से दिल्ली की सियासत में एक तरह की लड़ाई चल रही है. भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों के बीच एकदूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है.

आरोपप्रत्यारोप की इस राजनीति में गरीब लोगों का नुकसान होता है. बड़ी गाज तो उन गरीबों पर पड़ती है जो रहते भी कब्जाई जगह पर हैं और खातेकमाते भी कब्जाई जगह पर ही.

मान लीजिए कोई आदमी किसी झुग्गीझोंपड़ी बस्ती में रहता है, जहां उस पर यह तलवार हमेशा लटकती रहती है कि कब सिर से छत हट जाए. अगर किसी सड़क किनारे वह छोलेकुलचे बेचने का ठेला लगाता है, तो वहां भी उसे यही डर सताता रहेगा कि कब ‘कमेटी वाले’ अपनी गाड़ी लेकर आ धमकेंगे और उस का तामझाम फेंक कर सामान अपने साथ ले कर चलते बनेंगे या कभी ऐसा सरकारी फरमान ही न आ जाए कि भविष्य में कोई भी सड़क किनारे, फुटपाथ पर अपना?ठेला लगा कर सामान नहीं बेच पाएगा.

यहां पर ऐसे लोगों का कतई पक्ष नहीं लिया जा रहा है जो कानून या सरकार के बनाए कानून की धज्जियां उड़ा कर सड़कों पर अतिक्रमण करते हैं पर अगर सभी को रोजीरोटी कमाने, सिर पर छत होने का बुनियादी हक है, तो फिर ऐसे लोगों के साथ तो ज्यादती ही कही जाएगी जो मेहनत की कमाई से अपनी जिंदगी गुजरबसर करना चाहते हैं. उन का कुसूर बस इतना है कि उन्हें अपनी ईमानदारी की कमाई सड़क या फुटपाथ का एक छोटा सा हिस्सा घेर कर करनी पड़ रही है.

यहां एक और बात गौरतलब है कि सड़कों पर सामान बेचने वालों के ग्राहक भी गरीब या मिडिल क्लास होते हैं. इन में से बहुत से ऐसे होते हैं जो अपने घरगांव से आ कर दिल्ली जैसे बड़े शहर में छोटी नौकरी और कम तनख्वाह पर अपना परिवार पालते हैं. बहुत से तो रोजाना ऐसे ठेलों पर खाना खाते हैं, क्योंकि यहां से उन्हें खाना सस्ता जो पड़ता है.

मिसाल के तौर पर कोई आदमी सड़क किनारे छोलेभटूरे का ठेला लगाता है और एक प्लेट 30 रुपए की देता है. अगर कोई आदमी जिस की तनख्वाह 12 हजार रुपए महीना है, 25 दिन नौकरी करने आता है और रोजाना उसी आदमी से छोलेभटूरे खाता है तो वह 25 दिन में 30 रुपए प्लेट के हिसाब से 750 रुपए के छोलेभटूरे खाता है.

अब अगर सड़क पर से सभी ठेले वालों को हटा दिया जाए तो उस आदमी को किसी रैस्टोरैंट में जाना पड़ेगा जहां हो सकता है कि छोलेभटूरे की एक प्लेट की कीमत 60 रुपए हो यानी 25 दिन में वह आदमी 1500 रुपए का खाना खाएगा. मतलब उस का खर्चा दोगुना हो जाएगा.

अगर अपने दफ्तर से रैस्टोरैंट तक बस से आनेजाने में 20 रुपए खर्च होंगे तो 25 दिन के हिसाब से उस का 500 रुपए का ऐक्स्ट्रा खर्च बढ़ जाएगा. छोलेभटूरे वाला तो बेरोजगार हुआ ही इस गरीब ग्राहक का भी खर्चा बढ़ गया. 750 और 500 रुपए जोड़ लो तो 1250 रुपए महीना की चपत.

अब छोलेभटूरे का ठेला लगाने वाले की बात करते हैं. सड़क से ठेला उठा तो रोजगार गया. अगर वह किसी ऐसी झुग्गी बस्ती में रहता है जो सरकारी जमीन पर गैरकानूनी तौर पर बनी है तो उसे यह डर भी लगा रहेगा कि कल को झुग्गी खाली करने का सरकारी फरमान न आ जाए.

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झुग्गी बस्तियों की बदहाली

इस मुद्दे पर बात करने से पहले यह जान लें कि अतिक्रमण क्यों होता है. दरअसल, यह समस्या देश की तरक्की के मौडल में खामियों और उस से गांवदेहात के लोगों का अपना घरबार छोड़ने से जुड़ी है. आजादी के बाद से धीरेधीरे लोगों का शहरों की ओर भागना देखा गया है. आजादी के बाद यह कानून तो बना दिया गया कि हमारे देश के किसी भी नागरिक को कहीं भी बसने का हक है लेकिन जो गरीब पहले जंगली इलाकों में रहते थे उन को नैशनल पार्क या अभयारण्य घोषित करते वक्त यह तय नहीं किया गया कि अब वहां रहने वाले लोग कहां बसाए जाएंगे. ऐसे लोगों के पास जमीन का कोई पट्टा नहीं था, इसलिए न वे घर के रहे और न घाट के.

जंगलों का दोहन भी लोगों को शहरों की ओर भागने की वजह बना. ईंधन, फर्नीचर और घर बनाने के लिए शहरों में लकडि़यों की मांग बढ़ गई. इस से आदिवासियों को सब से ज्यादा नुकसान हुआ.

पिछले 20 सालों में तो गांवदेहात के लोगों का बड़े शहरों की ओर भागना हद से ज्यादा बढ़ा है. रोजगार की कमी, पढ़ाईलिखाई की बदहाली और डाक्टरी इलाज में खामियां इस की खास वजहें रही हैं.

जातिवाद के जहर की तो पूछिए ही मत. शहरों में जानवरों की तरह गंदी बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग निचले तबके के होते हैं. वे गांव में भी सताए जाते हैं और शहरों में भी उन्हें इज्जत की जिंदगी नहीं मिल पाती है. इस की वजह यह रही है कि गांवदेहात में खेतीबारी महंगी होती गई तो इस के साथसाथ हस्तशिल्प, कुटीर व लघु उद्योग भी उजड़ते गए.

नतीजतन, लोग बसों, रेलों में लद कर, ठुंसठुंसा कर शहरों की ओर भागने लगे. वहां रहने की समस्या आई तो जिस को जहां जगह मिली उस ने वहां अपना तंबू तान दिया. नेताओं को ऐसे लोग पकेपकाए वोट लगे तो पुलिस और दूसरे सरकारी विभागों को आमदनी का आसान जरीया.

नौकरशाही ने तिकड़में लड़ा कर ऐसे लोगों को सरकारी जमीनों पर झुग्गियों के रूप में बसा दिया, तो नेताओं ने उन्हें अपनी सरपरस्ती में बेखौफ रहने की इजाजत दे दी. अमीरों को सस्ते में नौकर, सब्जी वाले, प्रैस वाले, चौकीदार, साफसफाई करने वाले मिलने लगे तो उन्होंने भी ऐसी बस्तियों पर कभी नाकभौं नहीं सिकोड़ी.

लेकिन जब बेतरतीब बसी ऐसी सड़ांध मारती बस्तियों की बदबू आसपास के इलाकों में फैलने लगी, लोग बीमार होने लगे, अपराध बढ़ने लगे, आबोहवा खराब होने लगी तो ये गरीब शहर पर कोढ़ की तरह दिखने लगे.

धरती पर अगर नरक देखना हो तो गैरकानूनी तौर पर बसी ऐसी झुग्गी बस्तियों में आप का स्वागत है. यहां के ज्यादातर परिवार चूंकि छोटी जाति के होते हैं इसलिए उन के सपने भी झुग्गी की टुच्ची औकात के बन कर रह जाते हैं. मर्द रोजीरोटी के लिए खोमचा लगाते हैं, दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, कहीं किस्मत अच्छी हुई तो ठेकेदारी या ड्राइवरी कर लेते हैं. औरतें बड़े घरों में बरतन मांजने, साफसफाई का काम करती हैं तो बच्चे सरकारी स्कूल में इसलिए भेज दिए जाते हैं ताकि सारा दिन आवारागर्दी करने से बच जाएं.

दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में जी ब्लौक की झुग्गी बस्ती बहुत पुरानी है. यह एक नाले के आसपास बसी है, जिस में बदहाली का आलम अपनी हद पर है. पहले जो झुग्गियां तिरपाल या कच्ची छत की बनी थीं अब पक्के घरों में तबदील हो चुकी हैं. किसी भी गली में घुस जाओ, दड़बों से बेतरतीब बने छोटेछोटे घर आप को घूरते नजर आएंगे. कुछ ने तो 3-4 मंजिलें भी खड़ी कर दी?हैं.

वहां तकरीबन 30-35 साल से रह रही एक माई ने बताया, ‘‘हम जब यहां आए, तब 2-3 झुग्गियां थीं. नाले की जमीन थी, इसलिए सड़क से 6-7 फुट नीची थी. बरसात के मौसम में पानी भर जाता था. एक तरह से जंगल ही था. हमारे गांव में जमीन नहीं थी. खाने के लाले पड़ने लगे तो काम की तलाश में यहां आ गए. अब तो यही हमारा घर है.’’

यहां तकरीबन सभी लोगों के आधारकार्ड बन चुके?

हैं. घरों में बिजलीपानी के मीटर हैं पर सीवर नहीं डाले गए हैं. शौचालय की समस्या है. पास में ही एक सार्वजनिक शौचालय जरूर है, जहां एक आदमी की ड्यूटी भी लगती है. पर औरतों की समस्या यह है कि देर रात में वे अपने बच्चों खासकर लड़कियों को कैसे वहां शौच के लिए भेजें.

अंधेरा होने के बाद तो वहां नशेडि़यों का जमघट लग जाता है. शौचालय की देखभाल करने वाला आदमी अगर उन्हें जाने को कहता है तो वे लड़ाईझगड़े पर उतारू हो जाते हैं.

एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाले दीपक ने बताया, ‘‘इस झुग्गी बस्ती में सब से बड़ी समस्या सीवर की है. कुछ लोगों ने बड़े नाले में कनैक्शन करा कर अपना शौचालय बनवा लिया तो ठीक, नहीं तो बाहर सार्वजनिक शौचालय में जाना पड़ता है. अगर घर के नीचे गड्ढा खुदवा कर बनवाना चाहें तो बाद में सफाई कराने में दिक्कत आती है.

‘‘अगर सरकार इसी जमीन पर यहां रहने वाले लोगों को 12-12 गज के प्लाट किसी कालोनी की तरह काट कर दे दे तो यहां का नक्शा बदल सकता है. स्मार्ट शहर से पहले स्मार्ट झुग्गी बस्तियां बनाना जरूरी है.’’

सरकारी लोगों के रवैए से गुस्साई एक औरत सरला देवी ने बताया, ‘‘अगर हम अपनी समस्याएं ले कर सरकारी विभाग में जाते हैं तो वे कहते हैं कि यह हमारा काम नहीं है. पहला दूसरे के पास और दूसरा तीसरे के पास भेज देता?

है. नेता के नुमांइदे आते हैं, नाले की भी सफाई के फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर डाल कर वाहवाही बटोर लेते हैं, लेकिन गंदगी वहीं की वहीं रहती है.

‘‘हम औरतों ने अपनी मेहनत से कच्ची झुग्गियों को इन छोटेछोटे घरों में बदला है. अगर हमें यहां से हटा दिया गया तो हम कहीं के नहीं रहेंगे. गांव में जमीन नहीं है. यहां छत नहीं है. हम गरीबों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है.’’

भारत सरकार के सर्वे 2011 के मुताबिक, दिल्ली की तकरीबन 15 फीसदी आबादी झुग्गी बस्तियों में रहती है. आंकड़ों की बात करें तो दिल्ली में तकरीबन 7 सौ एकड़ एरिया में झुग्गियां हैं, जिन में 10 लाख के आसपास लोग रहते हैं. दिल्ली में तकरीबन 90 फीसदी झुग्गियां सरकारी जमीन पर बसी हैं, जिन में से 40 फीसदी दिल्ली नगरनिगम और लोक निर्माण विभाग, 28 फीसदी रेलवे और 16 फीसदी दिल्ली सरकार की जमीन पर कायम हैं.

इस तरह दिल्ली में तकरीबन 860 झुग्गी बस्तियां हैं. तकरीबन 1700 ऐसी कच्ची कालोनियां हैं जो हमेशा से सरकार की अनदेखी का शिकार रही हैं.

राजनीतिक दल इन लोगों की भलाई की तो छोडि़ए, इन के नाम पर अपनी सियासी रोटियां सेंकते हैं. भारतीय जनता पार्टी आरोप लगाती है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं का फायदा दिल्ली की पुनर्वास बस्तियों और झुग्गीझोंपड़ी में रहने वालों तक पहुंचने ही नहीं देती है.

इस पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार के अर्बन रिनुअल फंड से कई राज्यों के साथ ही नोएडा व गुड़गांव में भी झुग्गी बस्तियों में तरक्की के काम किए हैं या कराए जा रहे हैं, पर दिल्ली के झुग्गी वालों को इस फंड से कोई फायदा नहीं मिला है.

इस के उलट दिल्ली सरकार कहती है कि केंद्र सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल उसे कोई काम ही नहीं करने देते हैं. नगरनिगम पर विपक्ष

का कब्जा है जो उस के द्वारा किए जाने वाले काम खासकर गरीबों की भलाई के कामों में हमेशा अड़ंगा अड़ाता है.

ऐसे में जब कभी सुप्रीम कोर्ट अतिक्रमण को ले कर सख्त होता है तो आननफानन झुग्गी बस्तियों का वजूद मिटाने और वहां के बाशिंदों को कहीं दूसरी जगह बसाने की कवायद शुरू हो जाती है. लेकिन यह सब करना क्या आसान काम है?

यह एक कड़वी सचाई है कि दिल्ली में गैरकानूनी तरीके से बसाई गई झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों को खाली कराने और वहां के बाशिंदों को दोबारा कहीं ओर बसाने का तरीका बड़ा पेचीदा है. इस में तमाम तरह की प्रशासनिक चुनौतियां होती हैं.

2 बड़ी समस्याएं इस तरह हैं. पहली, एक नोडल एजेंसी होने के बावजूद ऐसी बस्तियों को दोबारा बसाने का काम विभिन्न सरकारी एजेंसियों के जिम्मे होता है, जिन के बीच तालमेल की कमी दिखाई देती है, जिस से इस सब में तमाम तरह की रुकावटें पैदा होती हैं. दूसरी, इस तरह की झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों में रहने वालों को अपने हकों का पता नहीं होता है. मसलन, हटाए गए लोगों में से किसकिस को दोबारा बसाया जाएगा? बस्ती खाली कराने का कानूनी तरीका क्या है? इन सब बातों की उन्हें जानकारी नहीं होती है.

सरकारी जमीन पर बसी झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों को वहां से हटाने और कहीं ओर बसाने की जिम्मेदारी दिल्ली नगरनिगम, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड, लोक निर्माण विभाग, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग जैसी सरकारी संस्थाओं पर होती है.

मान लीजिए सरकार को कोई सड़क चौड़ी करनी है और इस की जिम्मेदारी वह लोक निर्माण विभाग को सौंपती है. लेकिन वहीं पर एक ऐसी झुग्गीझोंपड़ी बस्ती है जिस का कुछ हिस्सा सड़क को चौड़ा करने में रुकावट पैदा कर रहा है तो लोक निर्माण विभाग उस हिस्से से अतिक्रमण हटाने के लिए क्या करेगा? क्या वह उन लोगों को कोई आधिकारिक नोटिस भेजेगा या किसी तरह का आदेश दिखाएगा या वहां जा कर इतना कह देगा कि हम यह हिस्सा ढहाने जा रहे हैं, आप अपना इंतजाम कर लो. अगर बस्ती वाले लोग समय मांगते हैं तो क्या उन्हें कानूनन समय दिया जाता?है या आपसी समझ से जगह खाली करने पर सहमति बन जाती है?

‘सैंटर फौर पौलिसी रिसर्च’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के आरके पुरम सैक्टर 7 इलाके में सोनिया गांधी कैंप झुग्गीझोंपड़ी बस्ती थी. 25 फरवरी, 2013 को लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने इस कैंप के बाशिंदों को बताया कि वे बस्ती का उत्तरपूर्वी हिस्सा ढहाने जा रहे?हैं.

लोगों को बताया गया कि बस्ती का यह हिस्सा लोक निर्माण विभाग की जमीन पर था और एक सड़क चौड़ी करने के लिए उन्हें उस की जरूरत थी.

हालांकि लोगों को न तो कोई आधिकारिक नोटिस और न ही किसी तरह का कोई आदेश दिखाया गया. जब इंजीनियरों ने कहा कि वे मकान ढहाने का काम फौरन शुरू करना चाहते हैं तो बस्ती के लोगों ने थोड़ा समय मांगा. इंजीनियर मान गए.

एक हफ्ते बाद यानी 6 मार्च, 2013 को इंजीनियर निर्माण ढहाने का काम शुरू करने के लिए कैंप पहुंचे. कुछ लोगों ने थोड़ा समय और मांगा तो 30 मार्च, 2013 तक साजोसामान हटाने वाली एक चिट्ठी पर उन के दस्तखत करा लिए गए. चिट्ठी में लिखा था कि अगर वे 30 मार्च तक ऐसा नहीं करेंगे तो लोक निर्माण विभाग उन के घरों को ढहा देगा.

यहां मामले में पेंच था कि बस्ती वालों के मुताबिक लोक निर्माण विभाग ने वह चिट्ठी खुद तैयार की थी और उन से दस्तखत करने को कहा था, जबकि विभाग के स्टाफ का दावा था कि बस्ती के लोग चिट्ठी तैयार करने में भागीदार थे.

बस्ती वालों ने यह भी बताया कि उन्होंने उस जमीन से, जिसे लोक निर्माण विभाग अपनी बता रहा था, 30 मार्च, 2013 तक अपना सामान हटा लिया था. पर न तो उस दिन लोक निर्माण विभाग की तरफ से झुग्गियां ढहाने के लिए कोई आया और न ही अप्रैल महीने के शुरुआती दिनों में ही कोई आया. लिहाजा, लोग अपनी झुग्गियों में वापस आ गए.

15 अप्रैल, 2013 को लोक निर्माण विभाग ने बिना कोई सूचना दिए तकरीबन 35 झुग्गियों को ढहा दिया. झुग्गियां तोड़े जाने के साथसाथ कैंप के बाशिंदों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालयों में पानी की सप्लाई वाले पाइप हटा दिए गए. इस से शौचालय बेकार हो गए.

22 अप्रैल, 2013 को लोक निर्माण विभाग के 2 इंजीनियर आए और एक नई चौड़ी सड़क के लिए जमीन का सीमांकन कर गए. बस्ती वालों के कहने के बावजूद उन्हें सीमा दिखाने वाला कोई भी दस्तावेज या नक्शा नहीं दिखाया गया. तभी लोक निर्माण विभाग द्वारा किराए पर रखा हुआ एक प्राइवेट ठेकेदार कुछ मजदूरों और सामान के साथ वहां पहुंचा और उस ने तय की गई सीमा के साथसाथ एक दीवार बनानी शुरू कर दी. एक बुलडोजर और एक ट्रक में ढहाई हुई झुग्गियों का मलबा हटाने का काम भी शुरू कर दिया.

इस तरह झुग्गियां ढहाने के मामले में लोक निर्माण विभाग, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड और इलाके के विधायक की ओर से अलगअलग जवाब आए. लोक निर्माण विभाग के एक सीनियर इंजीनियर ने एक इंटरव्यू में दावा किया कि उन के विभाग ने किसी झुग्गी को नहीं हटाया है, बल्कि सिर्फ ‘अतिक्रमण को हटाया’ है. उन्होंने आगे कहा कि विभाग की जमीन से अतिक्रमण हटाना उन का काम था.

जिस इंजीनियर की निगरानी में झुग्गियों को ढहाया गया था, वह इस बात पर कायम रहा कि उजड़े परिवारों को दोबारा बसाने में लोक निर्माण विभाग का कोई रोल नहीं है और इस की जिम्मेदारी दिल्ली विकास प्राधिकरण या दिल्ली नगरनिगम की थी.

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के एक बड़े अफसर ने बताया कि अगर किसी सरकारी प्रोजैक्ट के लिए कोई बस्ती ढहाए जाने की जरूरत है तो जिस एजेंसी की जमीन पर वह बस्ती बसी है, उसे ऐसा कदम उठाने की ठोस वजह देनी पडे़गी. इस के साथ ही एजेंसी को बस्ती के बाशिंदों के रहने के लिए कोई औप्शनल इंतजाम करते हुए उन्हें दोबारा बसाना होगा.

लोक निर्माण विभाग के मुताबिक, ‘राइट औफ वे’ के आधार पर यह पूरी प्रक्रिया जायज थी. यह कदम मौजूदा सड़कों के अतिक्रमण हटाने की मंशा से उठाया गया था.

‘राइट औफ वे’ के नियमों के चलते झुग्गियों को हटाते वक्त वहां के लोगों और बाकी एजेंसियों को सूचित करना लोक निर्माण विभाग के लिए जरूरी नहीं था. अतिक्रमण हटाने के लिए विभाग को नोटिस देने की जरूरत नहीं, चाहे अतिक्रमण एक झुग्गी का हो या एक बंगले का. विभाग को सिर्फ इलाके के एसएचओ को पुलिस मुहैया कराने के लिए कहना पड़ता है, ताकि झुग्गियों को ढहाने के दौरान कोई हिंसा न भड़के.

इस के बाद विधायक ने लोगों की तोड़ी गई झुग्गियों की लिस्ट तैयार करने को कहा और लिस्ट के साथ अपनी पहचान से जुड़े दस्तावेज भी लगाने को कहा. कुछ दिन बाद कैंप से विस्थापित हुए लोगों ने ढहाई गई झुग्गियों का ब्योरा विधायक के दफ्तर जा कर जमा करा दिया. विधायक ने कहा कि किसी भी तरह की मदद मिलने में कुछ महीने का समय लग सकता है.

8 मई, 2013 को झुग्गी वाले विधायक के पास दोबारा पहुंचे. विधायक ने उन्हें आश्वासन दिया कि तोड़ी गई झुग्गियों के बदले उन्हें पुनर्वास नीति के तहत नरेला में फ्लैट दिए जाएंगे. 10 मई या 15 मई, 2013 को सोनिया गांधी कैंप में एक रजिस्ट्रेशन कैंप लगाया जाएगा जहां पर जिन लोगों की झुग्गियां तोड़ी गई हैं उन को ‘टाइम ऐलौटमैंट स्लिप’ दी जाएगी. लाभार्थी परिवार को फ्लैट लेने के लिए 72 हजार रुपए देने होंगे. फ्लैट हासिल करने के लिए तोड़ी गई झुग्गियों के मालिकों को अपने मतदान प्रमाणपत्र देने होंगे जो यह साबित कर सकें कि वे पिछले 8-10 सालों से सोनिया गांधी कैंप में रह रहे थे.

लेकिन बताई गई किसी तारीख पर कोई भी रजिस्ट्रेशन कैंप नहीं लगाया गया. झुग्गी वाले दोबारा विधायक की चौखट पर गए. विधायक ने बताया कि उन्होंने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड से पूछा था कि जिन परिवारों की झुग्गियां तोड़ी गई हैं उन्हें पुनर्वास के तौर पर दूसरी जगह क्यों नहीं दी गई है?

विधायक के मुताबिक, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड ने जवाब में कहा था कि झुग्ग्यों को ढहाने का काम लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया और जिस के बारे में उस विभाग ने उन्हें कोई सूचना नहीं दी. इसी के चलते दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड ने प्रभावित परिवारों के लिए कोई पुनर्वास योजना तैयार नहीं की.

जब एक झुग्गीझोंपड़ी बस्ती की केवल 35 तोड़ी गई झुग्गियों को दोबारा बसाने में इतना झमेला था, तो सोचिए कि पूरी दिल्ली की ऐसी बस्तियों में रहने वाले लोगों को कहीं दूसरी जगह बसाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे.

सुप्रीम कोर्ट दिल्ली को खूबसूरत बनाना चाहता है, सड़कें साफसुथरी देखना चाहता है, वह सरकार को चेतावनी देते हुए यह भी कहता है कि दिल्ली के आम लोग मवेशी नहीं हैं पर दिल्ली की जो एकतिहाई जनता कब्जाई गई कालोनियों या झुग्गी बस्तियों में रहती है, क्या उसे एक झटके में दिल्ली से बाहर फेंक दिया जाए?

लोग अपना घरबार छोड़ कर शहरों में मस्ती मारने नहीं आते हैं. वहां उन्हें रोजगार नहीं मिलता इसलिए उन्हें कंक्रीट के जंगल में बंधुआ मजदूर बनना भी मंजूर होता है, ताकि उन के परिवार का पेट पल सके. शहर में जहां वे अपना छोटा सा आशियाना बसाते?हैं वहां उन्हें रोजमर्रा की चीजों की जरूरत होती है, सस्ती चीजों की, इसलिए शहरों में यह अतिक्रमण दिखाई देता है. गैरकानूनी बस्तियां बस रही?हैं, सरकार की नाक के नीचे. सड़कों पर ठेले वालों का मजमा लगता है, ताकि दूसरे गरीब भी अपनी जरूरतों का सामान कम दाम पर खरीद सकें, कम पैसों में वे अपने पेट की आग बुझा सकें.

ऐसे लाखों लोगों को शहर की खूबसूरती बढ़ाने के लिए बलि का बकरा बनाना कहां की अक्लमंदी है, जबकि इस देश में किसी को कहीं भी रहनेबसने का बुनियादी हक मिला हुआ है. क्या ऐसे लोगों की कीमत उस गमले से भी गईगुजरी है जो शहर की शान बढ़ाने के लिए सड़क किनारे फुटपाथ की शोभा बढ़ाता है.

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