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तांती : रामदीन की आखिर क्या थी इच्छा

चलतेचलते रामदीन के पैर ठिठक गए. उस का ध्यान कानफोड़ू म्यूजिक के साथ तेज आवाज में बजते डीजे की तरफ चला गया. फिल्मी धुनों से सजे ये भजन उस के मन में किसी भी तरह से श्रद्धा का भाव नहीं जगा पा रहे थे. बस्ती के चौक में लगे भव्य पंडाल में नौजवानों और बच्चों का जोश देखते ही बनता था.

रामदीन ने सुना कि लोक गायक बहुत ही लुभावने अंदाज में नौलखा बाबा की महिमा गाता हुआ उन के चमत्कारों का बखान कर रहा था.

रामदीन खीज उठा और सोचने लगा, ‘बस्ती के बच्चों को तो बस जरा सा मौका मिलना चाहिए आवारागर्दी करने का… पढ़ाईलिखाई छोड़ कर बाबा की महिमा गा रहे हैं… मानो इम्तिहान में यही उन की नैया पार लगाएंगे…’

तभी पीछे से रामदीन के दोस्त सुखिया ने आ कर उस की पीठ पर हाथ रखा, ‘‘भजन सुन रहे हो रामदीन. बाबा की लीला ही कुछ ऐसी है कि जो भी सुनता है बस खो जाता है. अरे, जिस के सिर पर बाबा ने हाथ रख दिया समझो उस का बेड़ा पार है.’’

रामदीन मजाकिया लहजे में मुसकरा दिया, ‘‘तुम्हारे बाबा की कृपा तुम्हें ही मुबारक हो. मुझे तो अपने हाथों पर ज्यादा भरोसा है. बस, ये सलामत रहें,’’ रामदीन ने अपने मजबूत हाथों को मुट्ठी बना कर हवा में लहराया.

सुखिया को रामदीन का यों नौलखा बाबा की अहमियत को मानने से इनकार करना बुरा तो बहुत लगा मगर आज कुछ कड़वा सा बोल कर वह अपना मूड खराब नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और दोनों बस्ती की तरफ चल दिए.

विनोबा बस्ती में चहलपहल होनी शुरू हो गई थी. नौलखा बाबा का सालाना मेला जो आने वाला है. शहर से तकरीबन 250 किलोमीटर दूर देहाती अंचल में बनी बाबा की टेकरी पर हर साल यह मेला लगता है. 10 दिन तक चलने वाले इस मेले की रौनक देखते ही बनती है.

रामदीन को यह सब बिलकुल भी नहीं सुहाता था. पता नहीं क्यों मगर उस का मन यह बात मानने को कतई तैयार नहीं होता कि किसी तथाकथित बाबा के चमत्कारों से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं. अरे, जिंदगी में अगर कुछ पाना है तो अपने काम का सहारा लो न. यह चमत्कारवमत्कार जैसा कुछ भी नहीं होता…

रामदीन बस्ती में सभी को समझाने की कोशिश किया करता था मगर लोगों की आंखों पर नौलखा बाबा के नाम की ऐसी पट्टी बंधी थी कि उस की सारी दलीलें वे हवा में उड़ा देते थे.

बाबा के सालाना मेले के दिनों में तो रामदीन से लोग दूरदूर ही रहते थे. कौन जाने, कहीं उस की रोकाटोकी से कोई अपशकुन ही न हो जाए…

विनोबा बस्ती से हर साल बाल्मीकि मित्र मंडल अपने 25-30 सदस्यों का दल ले कर इस मेले में जाता है. सुखिया की अगुआई में रवानगी से पहली रात बस्ती में बाबा के नाम का भव्य जागरण होता है जिस में संघ को अपने सफर पर खर्च करने के लिए भारी मात्रा में चढ़ावे के रूप में चंदा मिल जाता है. अलसुबह नाचतेगाते भक्त अपने सफर पर निकल पड़ते हैं.

इस साल सुखिया ने रामदीन को अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर मेले में चलने के लिए राजी कर ही लिया… वह भी इस शर्त पर कि अगर रामदीन की मनोकामना पूरी नहीं हुई तो फिर सुखिया कभी भी उसे अपने साथ मेले में चलने की जिद नहीं करेगा…

अपने दोस्त का दिल रखने और उस की आंखों पर पड़ी अंधश्रद्धा की पट्टी हटाने की खातिर रामदीन ने सुखिया के साथ चलने का तय कर ही लिया, मगर शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था. इन्हीं दिनों ही छुटकी को डैंगू हो गया और रामदीन के लिए मेले में जाने से ज्यादा जरूरी था छुटकी का बेहतर इलाज कराना…

सुखिया ने उसे बहुत टोका कि क्यों डाक्टर के चक्कर में पड़ता है, बाबा के दरबार में माथा टेकने से ही छुटकी ठीक हो जाएगी मगर रामदीन ने उस की एक न सुनी और छुट्की का इलाज सरकारी डाक्टर से ही कराया.

रामदीन की इस हरकत पर तो सुखिया ने उसे खुल्लमखुल्ला अभागा ऐलान करते हुए कह ही दिया, ‘‘बाबा का हुक्म होगा तो ही दर्शन होंगे उन के… यह हर किसी के भाग्य में नहीं होता… बाबा खुद ही ऐसे नास्तिकों को अपने दरबार में बुलाना नहीं चाहते जो उन पर भरोसा नहीं करते…’’

रामदीन ने दोस्त की बात को बचपना समझते हुए टाल दिया.

सुखिया और रामदीन दोनों ही नगरनिगम में सफाई मुलाजिम हैं. रामदीन ज्यादा तो नहीं मगर 10वीं जमात तक स्कूल में पढ़ा है. उसे पढ़ने का बहुत शौक था मगर पिता की हुई अचानक मौत के बाद उसे स्कूल बीच में ही छोड़ना पड़ा और वह परिवार चलाने के लिए नगरनिगम में नौकरी करने लगा.

रामदीन ने केवल स्कूल छोड़ा था, पढ़ाई नहीं… उसे जब भी वक्त मिलता था, वह कुछ न कुछ पढ़ता ही रहता था. खुद का स्कूल छूटा तो क्या, वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहता था.

सुखिया और रामदीन में इस नौलखा बाबा के मसले को छोड़ दिया जाए तो खूब छनती है. दोनों की पत्नियां भी आपस में सहेलियां हैं और आसपास के फ्लैटों में साफसफाई का काम कर के परिवार चलाने में अपना सहयोग देती हैं.

एक दिन रामदीन की पत्नी लक्ष्मी को अपने माथे पर बिंदी लगाने वाली जगह पर एक सफेद दाग सा दिखाई दिया. उस ने इसे हलके में लिया और बिंदी थोड़ी बड़ी साइज की लगाने लगी.

मगर कुछ दिनों बाद जब दाग बिंदी से बाहर झांकने लगा तो सुखिया की पत्नी शांति का ध्यान उस पर गया. उस ने पूछा, ‘‘लक्ष्मी, यह तुम्हारे माथे पर दाग कैसा है?’’

‘‘पता नहीं, यह कैसे हो गया. मैं ने तो कई देशी इलाज कर लिए मगर यह तो ठीक ही नहीं हो रहा, आगे से आगे बढ़ता ही जा रहा है,’’ कहते हुए लक्ष्मी रोंआसी सी हो गई.

‘‘अरे, बस इतनी सी बात. तुम नौलखा बाबा के नाम की तांती क्यों नहीं बांध लेती? इसे अपने दाएं हाथ पर बांध कर मन्नत मांग लो कि ठीक होते ही बाबा के दरबार में पैदल जा कर धोक लगा कर आओगी… फिर देखो चमत्कार… सफेद दाग जड़ से न चला जाए तो कहना…’’ शांति ने दावे से कहा.

‘‘क्या ऐसा करने से यह दाग सचमुच ठीक हो जाएगा?’’ लक्ष्मी ने हैरानी से पूछा.

‘‘यही तो परेशानी है… रामदीन भैया की तरह तुम्हें भी बाबा पर भरोसा नहीं… अरे, बाबा तो अंधों को आंखें, लंगड़ों को पैर और बांझ को बेटा देने वाले हैं… देखती नहीं, हर साल लाखों भक्त कैसे उन के दर पर दौड़े चले आते हैं… अगर उन में कोई अनहोनी ताकत न होती तो कोई जाता क्या?’’ शांति ने उस की कमअक्ली पर तरस खाते हुए समझाया.

लक्ष्मी को अब भी सफेद दाग के इतनी आसानी से खत्म होने का भरोसा नहीं था. उस ने शक की निगाह से शांति की तरफ देखा.

‘‘मेरा अपना ही किस्सा सुन… मेरी शादी के बाद 4 साल तक भी मेरी गोद हरी नहीं हुई थी. हम सारे उपाय कर के निराश हो चुके थे. डाक्टर और हकीम भी हार मान गए थे. एक डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया था कि मैं कभी मां नहीं बन सकती क्योंकि इन में ही कुछ कमी है. तब हमें किसी ने बाबा के दरबार में जाने की भली सलाह दी.

‘‘हारे का सहारा… नौलखा बाबा हमारा… और हम दोनों गिर पड़े बाबा के चरणों में… पुजारीजी से बाबा के नाम की तांती बंधवाई और सब दवादारू छोड़ कर हर महीने उन के दर्शनों को जाते रहे. और देखो बाबा का चमत्कार… अगले साल ही हरिया मेरी गोद में खेल रहा था,’’ शांति ने पूरे यकीन से कहा.

शाम को अब रामदीन घर आया तो लक्ष्मी ने उसे अपने सफेद दाग के बारे में बताया और बाबा की तांती का भी जिक्र किया.

लक्ष्मी की सफेद दाग वाली बात सुन कर रामदीन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने पत्नी को समझा कर शहर के चमड़ी के किसी अच्छे डाक्टर को दिखाने की बात की मगर लक्ष्मी पर तो जैसे शांति की बातों का जादू चला हुआ था.

लक्ष्मी ने कहा, ‘‘ठीक है. डाक्टर और अस्पताल अपनी जगह हैं और आस्था अपनी जगह… एक बार शांति की बात मान कर तांती बांधने में हर्ज

ही क्या है? अगर फायदा न हुआ तो डाक्टर कहां भागे जा रहे हैं… बाद में दिखा देंगे.’’

रामदीन को गुस्से के साथसाथ हंसी भी आ गई. उस ने अपने बचपन का एक किस्सा लक्ष्मी को सुनाया कि उस की बड़ी बहन रानी की गरदन पर छोटेछोटे मस्से हो गए थे. मां ने उस की बांह पर तांती बांध कर मन्नत मांगी कि मस्से ठीक होते ही वे बाबा के मंदिर में 2 झाड़ू चढ़ा कर आएंगी. उन्हें बाबा के चमत्कार पर पूरा भरोसा था और सचमुच कुछ ही दिनों में रानी की गरदन से सारे मस्से गायब हो गए.

मां ने बहन के साथ बाबा के मंदिर में जा कर धोक लगाई और श्रद्धा से 2 झाड़ू वहां देवरे पर चढ़ाईं.

मेरा हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया था जब रानी ने मुझे बताया कि उस ने चुपकेचुपके चमड़ी के माहिर डाक्टर की सलाह पर दवाएं खाई थीं.

रामदीन को हंसता देख लक्ष्मी आगबबूला हो गई. शांति से होते हुए बात सुखिया तक पहुंची तो वह भी आया रामदीन को समझाने के लिए. मगर रामदीन ने वहां जाने से साफ इनकार कर दिया.

लक्ष्मी ने उसे पति धर्म का वास्ता दिया और एक आखिरी बार अपनी बात मानने की गुजारिश की तो आखिर में रामदीन को रिश्तों के आगे झुकना ही पड़ा और वह न चाहते हुए भी अपनों का मन रखने के लिए सुखिया के साथ लक्ष्मी को ले कर नौलखा बाबा के देवरे पर जा पहुंचा.

मंदिर के पीछे ही बड़े पुजारी का बड़ा सा कमरा बना हुआ था. चूंकि वह सुखिया को पहले से ही जानता था इसलिए तुरंत ही उसे भीतर बुला लिया.

बाहर खड़ा रामदीन कमरे का मुआयना करने लगा. एक ही कमरे में पुजारीजी ने सारी मौडर्न सुखसुविधाएं जुटा रखी थीं. गजब की ठंडक थी अंदर… रामदीन का ध्यान दीवार पर लगे एयरकंडीशनर की तरफ चला गया. दीवार पर एक बड़ा सा टैलीविजन भी लगा था.

अभी रामदीन अचंभे से सबकुछ देख ही रहा था कि सुखिया ने उसे और लक्ष्मी को अंदर आने का इशारा किया. पुजारी ने लक्ष्मी पर एक भरपूर नजर डाल कर देखा, फिर उस ने कुछ मंत्रों का जाप करते हुए लक्ष्मी के दाएं हाथ पर काले धागे की तांती बांध दी.

तांती बांधते समय जिस तरह से पुजारी लक्ष्मी का हाथ सहला रहा था, उसे देख कर रामदीन की त्योरियां चढ़ गईं. लक्ष्मी भी थोड़ी परेशान हो गई तो पुजारी ने माहौल की नजाकत को भांपते हुए बाबा के चरणों में से थोड़ी सी भस्म ले कर उसे चटा दी और आशीर्वाद के बदले में एक मोटी रकम दक्षिणा के रूप में वसूल ली.

लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘पुजारीजी, यह दाग कितने दिन में ठीक हो जाएगा?’’

‘‘यह तो बाबा की मेहर पर है… और साथ ही ही भक्त के भरोसे पर भी… कृपा तो वे ही करेंगे… मगर हां, जिन के मन में बाबा के प्रति जरा भी शक हो, उन पर बाबा की मेहर नहीं होती…’’ लक्ष्मी उस की गोलमोल बातों से कुछ समझी कुछ नहीं समझी और पुजारी को प्रणाम कर के कमरे से बाहर निकल आई.

रास्तेभर जहां सुखिया तो बाबा की ही महिमा का बखान करता रहा वहीं रामदीन की आंखों के सामने पुजारी का लक्ष्मी का हाथ सहलाना ही घूमता रहा.

2 महीने हो गए मगर दाग मिटने या कम होने के बजाय बढ़ ही रहा था. हालांकि लक्ष्मी को तांती पर पूरा भरोसा था, मगर रामदीन को चिंता होने लगी. उस ने सुखिया के सामने अपनी चिंता जाहिर की और लक्ष्मी को भी डाक्टर के पास चलने को कहा, तो सुखिया उखड़ गया.

वह बोला, ‘‘तुम्हारा यह अविश्वास ही भाभी की बीमारी ठीक नहीं होने दे रहा… तुम कल ही चलो मेरे साथ पुजारीजी के पास… तुम्हारा सारा शक दूर हो जाएगा.’’

‘‘तुम रहने दो, बेकार क्यों अपनी छुट्टी खराब करते हो… मैं और लक्ष्मी ही हो आएंगे,’’ रामदीन ने हथियार डालते हुए कहा. वह अपने दोस्त को नाराज नहीं करना चाहता था.

रामदीन को वहां जाने के लिए छुट्टी लेनी पड़ी. लक्ष्मी की तनख्वाह से भी एक दिन नागा होने से मालकिन ने पैसे काट लिए.

मंदिर पहुंचतेपहुंचते दोपहर हो चली थी. पुजारीजी अपने कमरे में एयरकंडीशनर चला कर आराम फरमा रहे थे. उन्हें अपने आराम में खलल अच्छा नहीं लगा. पहले तो उन्होंने रामदीन को पहचाना ही नहीं, फिर लक्ष्मी को देख कर खिल उठे.

अपने बिलकुल पास बिठा कर तांती को छूने के बहाने उस का हाथ पकड़ते हुए बोले, ‘‘अरे तुम… क्या, तुम्हारा दाग तो बढ़ रहा है.’’

‘‘वही तो मैं भी जानना चाहता हूं. आप ने तो कितने भरोसे के साथ कहा था कि यह ठीक हो जाएगा,’’ रामदीन जरा तेज आवाज में बोला.

‘‘लगता है कि तुम ने तांती के नियमों की पालना नहीं की,’’ पुजारीजी ने अब भी लक्ष्मी का हाथ थाम रखा था.

‘‘अब इस में भी नियमकायदे होते हैं क्या?’’ इस बार लक्ष्मी अपना हाथ छुड़ाते हुए धीरे से बोली.

‘‘और नहीं तो क्या. क्या जो दक्षिणा तुम ने बाबा के चरणों में चढ़ाई थी वह दान का पैसा नहीं था?’’ पुजारी ने पूछा.

‘‘दान का पैसा… क्या मतलब?’’ रामदीन ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि तांती दान के पैसे से ही बांधी जाती है, वरना उस का असर नहीं होता. तुम एक काम करो, अपने पासपड़ोसियों और रिश्तेदारों से कुछ दान मांगो और वह रकम दक्षिणा के रूप में यहां भेंट करो… तब तांती सफल होगी,’’ पुजारीजी ने समझाया.

‘‘यानी हाथ पर बंधी यह तांती बेकार हो गई,’’ कहते हुए लक्ष्मी परेशान हो गई.

‘‘हां, अब इस का कोई मोल नहीं रहा. अब तुम जाओ और जब दक्षिणा लायक दान जमा हो जाए तब आ जाना… नई तांती बांधेंगे. और हां, नास्तिक लोगों को जरा इस से दूर ही रखना,’’ पुजारी ने कहा तो रामदीन उस का मतलब समझ गया कि उस का इशारा किस की तरफ है.

दोनों अपना सा मुंह ले कर लौट आए. सुखिया को जब पता चला तो वह बोला, ‘‘ठीक ही तो कह रहे हैं पुजारीजी…

तांती भी कोई जेब के पैसों से बांधता है क्या, तुम्हें इतना भी नहीं पता?’’

तांती के लिए दान जमा करतेकरते फिर से बाबा के सालाना मेले के दिन आ गए. इस बार सुखिया के रामदीन से कह दिया कि चाहे नगरनिगम से लोन लेना पड़े मगर उसे और भाभी को पैदल संघ के साथ चलना ही होगा.

रामदीन जाना तो नहीं चाहता था, उस ने एक बार फिर से लक्ष्मी को समझाने की कोशिश की कि चल कर डाक्टर को दिखा आए मगर लक्ष्मी को तांती की ताकत पर पूरा भरोसा था. वह इस बार पूरे विधिविधान के साथ इसे बांधना चाहती थी ताकि नाकाम होने की कोई गुंजाइश ही न रहे.

रामदीन को एक बार फिर अपनों के आगे हारना पड़ा. हमेशा की तरह रातभर के जागरण के बाद तड़के ही नाचतेगाते संघ रवाना हो गया. बस्ती पार करते ही मेन सड़क पर आस्था का सैलाब देख कर लक्ष्मी की आंखें हैरानी से फैल गईं. उस ने रामदीन की तरफ कुछ इस तरह से देखा मानो उसे अहसास दिला रही हो कि इतने सालों से वह क्या खोता आ रहा है. दूर निगाहों की सीमा तक भक्त ही भक्त… भक्ति की ऐसी हद उस ने पहली बार ही देखी थी.

अगले ही चौराहे पर सेवा शिविर लगा था. संघ को देखते ही सेवादार उन की ओर लपके और चायकौफी की मनुहार करने लगे. सब ने चाय पी और आगे चले. कुछ ही दूरी पर फ्रूट जूस और चाट की सेवा लगी थी. सब ने जीभर कर खाया और कुछ ने महंगे फल अपने साथ लाए झोले के हवाले किए. पानी का टैंकर तो पूरे रास्ते चक्कर ही लगा रहा था.

दिनभर तरहतरह की सेवा का मजा लेते हुए शाम ढलने पर संघ ने वहीं सड़क के किनारे अपना तंबू लगाया और सभी आराम करने लगे.

तभी अचानक कुछ सेवादार आ कर उन के पैर दबाने लगे. लक्ष्मी के लिए यह सब अद्भुत था. उसे वीआईपी होने जैसा गुमान हो रहा था.

उधर रामदीन सोच रहा था, ‘लक्ष्मी की मनोकामना पूरी होगी या नहीं पता नहीं मगर बच्चों की कई अधूरी कामनाएं जरूर पूरी हो जाएंगी. ऐसेऐसे फल, मिठाइयां, शरबत और मेवे खाने को मिल रहे हैं जिन के उन्होंने केवल नाम ही सुने थे.’

10 दिन मौजमस्ती करते, सेवा करवाते आखिर पहुंच ही गए बाबा के धाम… 3 किलोमीटर लंबी कतार देख कर रामदीन के होश उड़ गए. दर्शन होंगे या नहीं… वह अभी सोच ही रहा था कि सुखिया ने कहा, ‘‘वह देख. ऊपर बाबा के मंदिर की सफेद ध्वजा के दर्शन कर ले… और अपनी यात्रा को सफल मान.’’

‘‘मगर दर्शन?’’

‘‘मेले में ऐसे ही दर्शन होते हैं… चल पुजारीजी के पास भाभी को ले कर चलते हैं,’’ सुखिया ने समझाया.

पुजारीजी बड़े बिजी थे मगर लक्ष्मी को देखते ही खिल उठे. वे बोले, ‘‘अरे तुम. आओआओ… इस बार विधिवत तरीके से तुम्हें तांती बांधी जाएगी…’’ फिर अपने सहायक को इशारा कर के लक्ष्मी को भीतर आने को कहा.

रामदीन और सुखिया को बाहर ही इंतजार करने को कहा गया. काफी देर हो गई मगर लक्ष्मी अभी तक बाहर नहीं आई थी. सुखिया शांति और बच्चों को मेला घुमाने ले गया.

रामदीन परेशान सा वहीं बाबा के कमरे में चहलकदमी कर रहा था. एकदो बार उस ने भीतर कोठरी में झांकने की कोशिश भी की मगर बाबा के सहायकों ने उसे कामयाब नहीं होने दिया. अब तो उस का सब्र जवाब देने लगा था. मन अनजाने डर से घबरा रहा था.

रामदीन हिम्मत कर के कोठरी के दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए. सहायकों ने उसे रोकने की कोशिश की मगर रामदीन उन्हें धक्का देते हुए कोठरी में घुस गया.

कोठरी के भीतर नीम अंधेरा था. एक बार तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया. धीरेधीरे नजर साफ होने पर उसे जो सीन दिखाई दिया वह उस के होश उड़ाने के लिए काफी था. लक्ष्मी अचेत सी एक तख्त पर लेटी थी. वहीं बाबा अंधनगा सा उस के ऊपर तकरीबन झुका हुआ था.

रामदीन ने बाबा को जोर से धक्का दिया. बाबा को इस हमले की उम्मीद नहीं थी, वह धक्के के साथ ही एक तरफ लुढ़क गया.

रामदीन के शोर मचाने पर बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और गुस्साए लोगों ने बाबा और उस के चेलों की जम कर धुनाई कर दी.

खबर लगते ही मेले का इंतजाम देख रही पुलिस आ गई और रामदीन की लिखित शिकायत पर बाबा को गिरफ्तार कर के ले गई.

तब तक लक्ष्मी को भी होश आ चुका था. घबराई हुई लक्ष्मी को जब पूरी घटना का पता चला तो वह शर्म और बेबसी से फूटफूट कर रो पड़ी.

रामदीन ने उसे समझाया, ‘‘तू क्यों रोती है पगली. रोना तो अब उस पाखंडी को है जो धर्म और आस्था की आड़ ले कर भोलीभाली औरतों की अस्मत से खेलता आया है.’’

सुखिया को जब पता चला तो वह दौड़ादौड़ा पुजारी के कमरे की तरफ आया. वह भी इस सारे मामले के लिए अपने आप को कुसूरवार ठहरा रहा था क्योंकि उसी की जिद के चलते रामदीन न चाहते हुए भी यहां आया था और लक्ष्मी इस वारदात का शिकार हुई थी.

सुखिया ने रामदीन से माफी मांगी तो रामदीन ने उसे गले से लगा कर कहा, ‘‘तुम क्यों उदास होते हो? अगर आज हम यहां न आते तो यह हवस का पुजारी पुलिस के हत्थे कैसे चढ़ता? इसलिए खुश रहो… जो हुआ अच्छा हुआ…’’

‘‘हम घर जाते ही किसी अच्छे डाक्टर को यह सफेद दाग दिखाएंगे,’’ लक्ष्मी ने अपने हाथ पर बंधी तांती तोड़ कर फेंकते हुए कहा और सब घर जाने के लिए बसस्टैंड की तरफ बढ़ गए.

शांति अपने बेटे हरिया की शक्ल के पीछे झांकती पुजारी की परछाईं को पहचानने की कोशिश कर रही थी.

फिट रहने के लिए खाएं हैल्दी

हर महिला अपने परिवार को खुश देखना चाहती है और इस के लिए वह अपनी हर खुशी को कुरबान करने के लिए तैयार भी रहती है. एक महिला की प्राथमिकता होती है कि वह खाने में जो भी सर्व करे पौष्टिकता से भरपूर हो. इसी कड़ी में दिल्ली प्रैस द्वारा आईटीसी आशीर्वाद सर्वगुण संपन्न कार्यक्रम का आयोजन 29 मई, 2018 को दिल्ली के सुभाषनगर के सैक्टर 17 में किया गया. इस कार्यक्रम को उपस्थित लोगों ने काफी सराहा.

कार्यक्रम की शुरुआत ऐंकर अंकिता मंडल ने हैल्दी व फिट रहने के गुणों पर प्रकाश डालते हुए आशीर्वाद आटे की खासीयत बताते हुए की. उन्होंने अपने कई ऐक्टिविटीज द्वारा महिलाओं में जोश भरा है.

29 मई को हुए इवैंट में उन्होंने रोटी मेकिंग की ऐक्टिविटी करवाई. यह ऐक्टिविटी सुनने में जितनी मजेदार है उतनी ही करने में भी. इस में रैंडमली 3 महिलाओं को बुलाया गया जिस में उन्हें आशीर्वाद सलैक्ट आटे से रोटी बनानी थी. प्रतियोगिता में सिर्फ रोटी बनाना ही उद्देश्य नहीं था बल्कि दिखने में बेहतर होने के साथसाथ टैस्टी व सौफ्ट भी होनी थी. वैसे तो तीनों ही प्रतिभागियों- दीपाली, प्रियंका सेठी और अंजू ने इस में बैस्ट परफौर्म किया लेकिन विजेता वही रोटी रही जो आशीर्वाद सलैक्ट आटे से बनी थी.

इस के बाद शैफ सैशन शुरू हुआ, जिस में शैफ निधि चौहान चड्ढा ने आशीर्वाद शुगर रिलीज कंट्रोल आटे से आटा ग्रेनोला डस्ट बना कर शुगर के मरीजों के लिए बेहतर डिश प्रस्तुत की.

शैफ की हैल्दी डिश की तारीफ करते हुए न्यूट्रिशनिस्ट आशु आर्या ने बताया कि आज हमारा खानपान इतना खराब हो गया है जिस की वजह से हम जल्दीजल्दी बीमार हो जाते हैं और डायबिटीज और ब्लडप्रैशर तो कौमन प्रौब्लम बन गई है. ऐसे में आशीर्वाद मल्टीग्रेन आटा हमारे शरीर की कमियों को दूर कर हमें स्वस्थ रखने का काम करता है. सिर्फ यही नहीं बल्कि आप खुद को फिट रखने के लिए थोड़ीथोड़ी देर में खाएं व पानी भरपूर पीते रहें. फिर देखिए आप की खुद की बौडी में बदलाव.

इस के बाद पौपुलर दीवा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिस में दोनों प्रतिभागियों को आशीर्वाद पौपुलर आटा के साथ कुछ इनग्रीडिऐंट्स दिए गए थे, जिन से उन्हें 15 मिनट में डिश बनानी थी. इस में कमिका आहूजा ने हैल्दी काठी रोल बना कर प्रथम पुरस्कार जीता. रितू मल्होत्रा ने इटैलियन स्पैगैथी बना कर द्वितीय पुरस्कार जीता.

इस प्रतियोगिता के बाद रैसिपी कौंटैस्ट के विनर्स की घोषणा की गई, जिस में जय भारती ने आटा शुगरफ्री बरफी बना कर प्रथम पुरस्कार जीता, वहीं पूजा राघव ने आटा चाप बना कर द्वितीय पुरस्कार और हेमलता ने आटा कबाब बना कर तृतीय पुरस्कार जीता. इवैंट को सभी ने खूब ऐंजौय किया.

अंत में सभी को गुड्डी बैग्स दिए गए. आगामी इवैंट्स दिल्ली व नोएडा में आयोजित किए जाएंगे.

स्लिमट्रिम दिखना चाहती हैं तो ये टिप्स आप के लिए ही हैं

अगर आप वजन कम करने की बारबार कोशिश करती हैं पर असफल रहती हैं तो चिंता न करें, अपनी कोशिशों में थोड़ा सा बदलाव कर के देखिए, आप को मनचाहा परिणाम दिखेगा. स्लिम और फिट रहना चाहती हैं तो इन बातों पर ध्यान अवश्य दें:

– ईमानदारी से यह बात स्वीकारें कि वजन ज्यादा होने के 2 कारण होते हैं- पहला हम जंक फूड खाते रहते हैं और दूसरा हम वर्कआउट नहीं करते. इसलिए कैलोरीज बाहर निकलने के बजाय शरीर में इकट्ठी होती चली जाती है. इस बात पर विश्वास करें कि हम टैक्नोलौजी के गुलाम हो गए हैं. ज्यादा ऐक्टिव होने का प्रण लें. घर के काम करती रहें, कम से कम दिन में 10 हजार कदम चलने से शुरुआत करें. कम दूरी के लिए स्कूटी, बाइक प्रयोग न करें.

– फिटनैस का कोई शौर्टकट नहीं है. जिम जाएं, सीखें और वेट  ट्रेनिंग की प्रैक्टिस करें. पर्सनल ट्रेनर लेने से हिचकें नहीं, क्योंकि वही आप की सामर्थ्य को देख कर आप से जिम फ्लोर पर सही ऐक्सरसाइज करवा पाएगा. वह आप को और अच्छी तरह ट्रेन करता हुआ उत्साहित करता रहेगा. आप जब एक अच्छे कोच के साथ काम करती हैं तो आप की डाइट और वर्कआउट पर भी वह उचित ध्यान देता है. आप बहुत कुछ सीखती हैं.

– अपने आहार में प्रोटीन ज्यादा लें. 60% भारतीयों में प्रोटीन की कमी रहती है. प्रोटीन लेने से ज्यादा देर तक आप को पेट भरा हुआ लगता है. आप ज्यादा अच्छी ऐक्सरसाइज कर पाएंगी, जिस से आप अपने उद्देश्य को अच्छी तरह पूरा कर पाएंगी.

– बिस्तर पर जाने के बाद अपना दिमाग फोन में न उलझाएं. सोने के समय हाथ में फोन लेने से आप का सोने का समय प्रभावित हो सकता है और आप को पता भी नहीं चलेगा कि आप की नींद डिस्टर्ब करने में फोन का बड़ा हाथ है. एक बार आप सोने के लिए लेट गईं, तो अपना फोन एक तरफ रख दें और केवल सोने पर अपना ध्यान केंद्रित करें.

– इंस्टाग्राम फिटनैस एक झूठ होता है. इस में सच बहुत कम होता है. अच्छे स्वास्थ्य का ध्यान रखें. आप अपनी तरफ से कोशिश करें, किसी फिटनैस मौडल की नकल न करें. उन में से काफी स्टेराइड लेती हैं और आप को इस से दूर ही रहना है. शांत रहें और वास्तविक जीवन में जाएं. ये मौडल सालों से फिटनैस की ट्रेनिंग ले रही होती हैं और अधिकांश मौडल सालभर स्टेराइड लेती हैं. इस बात को समझें कि उन की फिगर ही उन की पहचान है. 2 महीने में किसी मौडल जैसी फिगर पाने की आशा न करें. वैसी फिगर पाने में सालों लगते हैं. सोशल मीडिया पर दिखने वाले मौडल्स की नकल में अपनी ऐनर्जी न लगाएं.

– आप वजन कम कर के फिटनैस पर ध्यान देना चाहती हैं, तो उन लोगों के आसपास रहें, जो फिटनैस को गंभीरतापूर्वक लेते हैं. अनुभवी और ट्रेंड दोस्तों से इस पर बात करती रहें. विश्वास कीजिए, आप को फायदा होगा. फिटनैस के शौकीन अपने दोस्त को अपना वजन कम करने का संकल्प बताएं. उस से कहें कि वह आप की मदद करे. फिर देखिए फिटनैस का शौकीन दोस्त आप की कैसे मदद करेगा. ऐंजौय करतेकरते स्लिम और फिट होते जाने का मजा लें.

– एक समय तय करें. व्यावहारिक रूप से सोच कर अव्यावहारिक डैडलाइन न सैट करें. जैसे यह न सोचें कि 2 हफ्ते में 15 किलोग्राम वजन कम करना है. यह निरर्थक है. इस से आप की निराशा ही बढ़ेगी और फिटनैस का सारा उत्साह खत्म हो जोएगा, क्योंकि यह अव्यावहारिक है.

आप का कैरियर भी संवार सकता है आप का फिगर

मौडलिंग और ऐक्टिंग में ही नहीं आज के दौर में और भी बहुत से ऐसे कैरियर औप्शन हैं जहां लड़कियां अपनी बौडी के जरीए कमाई कर रही हैं. सैल्स गर्ल, औरकैस्ट्रा डांसर, वेटर, लेडीज बाउंसर, रिसैप्शनिस्ट, मसाज गर्ल, टैलीकौलिंग, डांस आर्टिस्ट, लेडी बौडी बिल्डर जैसे बहुत सारे रास्ते हैं. इन में कुछ पेशेवर हैं तो कुछ गैर पेशेवर.

गैरपेशेवर वह काम है जो समाज में खूब होता है पर एक वर्ग इस की आलोचना भी करता है. अगर यह काम गैरकानूनी तरह से न किए जाए तो कानून भी इसे गलत नहीं मानता है. इन कैरियर्स में लड़कियां अपने शरीर का प्रयोग पैसा कमाने के लिए करती है. हर लड़की अपने क्षेत्र में ऐक्सपर्ट होती है. उस के लिए उस की बौडी ही उस का टेलैंट होती है.

शरीर बना रहा कैरियर

लड़कियों ने शरीर को अपने कैरियर का रास्ता बना लिया है. आज के दौर में प्रचार के लिए सब से अधिक महिलाओं को जरीया बनाया जा रहा है. ऐसे में महिलाओं के लिए कैरियर के औप्शन खुल गए हैं. स्टेज शो में भले ही महिला को गाना न आता हो वह केवल डांस कर के ही कमाई करने लगी है.

शादियों में औरकैस्ट्रा डांसर से ले कर खाना परोसने वाली वेटर तक के काम में लड़की को प्राथमिकता दी जा रही है. अब शादी में दुल्हन की सहेली के रूप में उसे साथ ले कर पंडाल में ऐंट्री करने के लिए लड़कियों का होना जरूरी होता है. सहेली के गैटअप में लड़कियां वैडिंग इवेंट मैनेजर ले कर आते हैं.

इवेंट प्लानर शिप्रा आशीष कहती हैं कि आज हर इवेंट में ऐंट्री सब से अहम होने लगी है. यही वह समय होता है जब सब से स्पैशल व्यक्ति पहली बार अंदर आ रहा होता है. इस पल को खास बनाने की चाहत सब को होती है. एक छोटे से बच्चे का पहला जन्मदिन था. उस की और मां की ऐंट्री एकसाथ होनी थी. मां ने जो गाउन पहना था उस के साथ बच्चे को लेना मुश्किल था. बेबी वाकर में बच्चे को ले कर चलने में वह स्पैशल फील नहीं आ रहा था. ऐसे में एक खूबसूरत लड़की को बुलाया गया जो बच्चे को गोद में ले कर मां के साथ चलते हुए समारोह में आती है. इस तरह के कई औफर लड़कियों के लिए कैरियर बन रहे हैं.

म्यूजिक और डांस बड़ा जरीया

म्यूजिक और डांस बड़ा जरीया है कैरियर का जिस में लड़कियां अपने शरीर का सब से अधिक प्रयोग कर रही हैं. आज के दौर में गायक कितना भी सुरीला क्यों न गाता हो, स्टेज पर या फिर डांस वीडियो पर उस के साथ थिरकने के लिए लड़कियों का होना जरूरी होता है. पंजाबी, हरियाणवी, भोजपुरी गानों में गाने वाले से अधिक थिरकने वाले की डिमांड बढ़ गई है.

हरियाणा की सपना चौधरी अपने एक स्टेज शो का क्व8 लाख लेती हैं. इसी तरह से भोजपुरी की गायिका और स्टेज पर डांस करने वाली निशा की भी खूब डिमांड है. स्टेज और डांस के क्षेत्र में कम बजट वाले लोग भी लड़कियों को बुलाते हैं.

भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री में सब से अधिक डांसर की डिमांड बढ़ी है. इस में काम करने के लिए किसी तरह की ज्यादा टे्रनिंग की जरूरत नहीं होती है. केवल स्टेज पर अच्छे से थिरकना आता हो. अब यहां यह बात कोई मुद्दा नहीं रह गई कि डांसर ने क्या पहना हुआ है.

जो फिट वह हिट

मौडलिंग के सहारे अपना कैरियर बना रही पूनम कहती हैं, ‘‘मैं ऐक्टिंग के लिए मुंबई आई थी. वहां काम नहीं मिला. अपना खर्च चलाने के लिए मैं ने मौडलिंग करनी शुरू कर दी. मेरी फिगर अच्छी थी तो ऐसे औफर आने लगे.

जब एक वीडियो में केवल आंख मार कर प्रिया प्रकाश लाखों दिलों तक पहुंच सकती है तो साफ है कि लड़कियां अपने शरीर और अदाओं के सहारे कैसे कैरियर बना सकती हैं. पैसा कमाने के लिए आज शरीर सब से बड़ी पूंजी बन गई है. असल में जब शरीर का नाम लिया जाता है तो केवल गलत धारणा ही मन में आती है. शरीर का प्रयोग करना मतलब शरीर बेचना नहीं होता है.

अगर लड़की की बौडी अच्छी है तो वह किसी भी क्षेत्र में कैरियर बना सकती है. कई लड़कियों को अब महिला सैलिब्रिटी के साथ सुरक्षा के लिए बौडी गार्ड के रूप में भी रखा जाने लगा है. यह भी एक तरह का रोजगार बन गया है. अब ऐसे सुरक्षा चक्र की मांग लगातार बढ़ने लगी है.

बौडी बिल्डिंग के क्षेत्र में काम कर रही अर्चना तिवारी कहती हैं, ‘‘आज महिलाएं अपने शरीर को ले कर जागरूक हैं, क्योंकि यही उन की सब से बड़ी पूंजी है. ऐसे में वे फिटनैस के लिए पूरी मेहनत करती हैं. जिम जाने की ही बात नहीं, लड़कियां बौडी बिल्डिंग के क्षेत्र में भी आ रही हैं जहां बौडी को शो करना ही पड़ता है.’’

पीछे छोड़ रहीं उम्र का असर फिटनैस का ही नतीजा है कि औरतें उम्र के असर को पीछे छोड़ रही हैं. इस की एक प्रमुख वजह भी है. बौडी से जुडे़ कैरियर में जब तक बौडी सुंदर और फिट होती है तभी तक डिमांड में होती है. ऐसे में हर कोई उम्र को पीछे छोड़ने की चाहत में रहती है ताकि कैरियर लंबा चल सके. तमाम गृहिणियां 40 की उम्र के पार भी इतनी सुंदर दिखती हैं कि उन की उम्र का पता ही नहीं चल पाता है.

पहले फिल्म अभिनेत्रियों को जल्द ही रिटायर होना पड़ता था. अब वे भी खुद को फिट रख कर 50 के पार तक अपना जलवा बिखेरती हैं. माधुरी दीक्षित, जूही चावला, काजोल जैसी प्रमुख महिलाओं को देख कर सीख ली जाती है. आज के समय में सब से अधिक सौंदर्य प्रतियोगिताएं मिसेज को ले कर हो रही हैं. केवल बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी यह चलन बढ़ रहा है.

सोशल मीडिया के प्रभावी होने के बाद अवसर और भी बढ़ गए हैं. वीडियो से ले कर छोटेबड़े विज्ञापनों और डांस शोज में ऐसी सुंदर महिलाओं की मांग बढ़ रही है. एकदूसरे को देख कर प्रेरणा भी मिलती है. इस के साथ ही साथ समाज का नजरिया भी बदल रहा है. आज आगे बढ़ रही औरतों पर पाबंदियां कम हो रही हैं. उन्हें घरपरिवार से सहयोग भी मिलने लगा है.

अब अपने शरीर का उपयोग कर के पैसा कमाने के अवसर बढ़ रहे हैं. यह जरूर है कि एक बड़ा वर्ग अभी भी पाबंदी के दायरे में है. जहां बंदिशें टूटी हैं वहां औरतों के पास अपने को साबित करने के मौके मिले हैं. औरतों ने अपने को साबित भी किया है. खुद को साबित करने की होड़ में वे आगे निकल रही हैं. जरूरत इस बात की है कि वे इस काम को पूरे आत्मविश्वास के साथ करें. आलोचनाओं की परवाह न करें. तभी अपने कैरियर का मजबूत निर्माण कर सकती हैं.

पाइये फोन हैंग होने की समस्या से छुटकारा

आप भी अगर अपने फोन के बार बार हैंग होने से परेशान हैं तो जरूर कुछ गलतियां कर रहे हैं. इसलिए फोन हैंग होने पर बस इन पांच बातों का ध्यान रखें और देखें कि किस तरह से आपका फोन आपको बिना तंग किये मक्खन की तरह चलता है.

सबसे पहले आप अपने फोन से उन सारी चीजों को डिलीट कर दें जिनकी जरूरत नहीं पड़ती. इसके अलावा फोन की सेटिंग्स में जा कर स्टोरेज पर क्लिक करें, नीचे कैश डाटा (Cache data) का विकल्प आता है, उसे भी साफ कर दें. समय समय पर ये करते रहना चाहिए, ताकि फोन में अनावश्यक चीजे स्टोर ना हो.

अगर आपके फोन में कई सारी ऐपलीकेशन हैं तो बेहतर होगा कि उनमें से कुछ को एक्सटर्नल मेमोरी में ट्रांस्फर कर दें. इससे इंटर्नल मेमोरी में जगह बनती रहेगी. चाहें तो ऐप्लीकेशन इंस्टौल करते वक्त सीधे एक्सटर्नल मेमोरी मे ही डालें. सेटिंग्स में जाकर स्टोरेज पर जाएं, वहां एसडी कार्ड का विकल्प चुनें. यह सुविधा उन्हीं के लिए है जिनके फोन में दोनों मेमोरी होती हैं.

इसके अलावा हमेशा फोन में गाने, वीडियो, तस्वीरें और बाकी डाटा एक्सटर्नल मेमोरी में ही सेव करें. अगर ये इंटर्नल में हैं भी तो इन्हें एक्सटर्नल में डाल दें. अगर आप एक्सटर्नल मेमोरी को डीफौल्ट मेमोरी चुन लेंगे तो वे खुद ब खुद उसी में जाएंगी और आपको बार बार मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.

फैक्ट्री रीसेट का विकल्प तभी इस्तेमाल करें जब सारे तरीके अपनाकर थक चुके हों. ये वेबसाइट, ऐप्स और ब्राउजर से आने वाले उस सारे डाटा को हटा देगा जिसकी जरूरत नहीं पड़ती. चूंकि ये सारी ही ऐप्स, फोन नंबर, फोटो, गाने हटा देता है इसलिए इसे आम तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. लेकिन अगर आप ऐसा करने वाले हैं तो बेहतर है कि पहले सारी चीजें कहीं और सेव कर लें. चाहें तो एसडी कार्ड में ट्रांस्फर कर लें.

फोन के साथ साथ अपना सारा जरूरी डाटा ईमेल, गूगल ड्राइव या क्लाउड पर सेव करते रहें. ये जिंदगी भर के लिए सुरक्षित हो जाएगा और अगर फोन खराब भी हो जाए या कुछ डिलीट हो जाए तो चिंता की बात नहीं रहेगी. ईमेल में सेव करने के बाद उस डाटा को फोन से हटा दें ताकि मेमोरी में जगह बन जाए.

फोन चार्ज करते समय ध्यान दें कि उसे रातभर लगाकर ना सोए, उसकी बैटरी 15% पर ही चार्जिंग में लगा दें और हफ्ते में एक बार फोन को स्वीच्ड आफ करके ही चार्ज करें.

इन सब उपाय को अपनाने के बाद आप काफी हद तक फोन हैंग होने की समस्या से छुटकारा पा सकेंगे.

सेंसर्स बनाते हैं फोन को स्मार्ट, जानिए इसके बारे में

स्मार्टफोन्स में आने वाले सेंसर्स हमारे फोन, उसमें मौजूदा डाटा और वीडियो ऐप्स को और भी अधिक स्मार्ट और आधुनिक बनाते हैं. आप सेंसर को सीधा सीधा ऐसे समझ सकते हैं कि इलेक्ट्रानिक प्रोडक्ट में यदि कोई काम अपने आप हो जाता है, तो उसमें सेंसर का ही हाथ होता है. कुछ महत्वपूर्ण सेंसर हैं, जो लगभग सभी तरह के स्मार्टफोन में इस्तेमाल होते हैं-

स्मार्टफोन में इस्तेमाल होने वाले सेंसर्स

प्रोक्सिमिटी सेंसर: जब कोई वस्तु स्मार्टफोन के समीप होती है, तो यह सेंसर उसकी मौजूदगी का पता लगा लेता है. यह सेंसर मुख्य रूप से स्मार्टफोन के ऊपरी हिस्से में फ्रंट कैमरे के पास लगा होता है. आमतौर पर जब आप कौल आने या कौल करने के लिए स्मार्टफोन को कान के पास ले जाते हैं, तो यह सेंसर स्मार्टफोन के डिस्प्ले की लाइट को स्वत: औफ कर देता है.

एंबिएंट लाइट सेंसर: यह सेंसर स्मार्टफोन के डिस्प्ले की ब्राइटनेस को रोशनी के हिसाब से एडजस्ट तो करता ही है साथ ही डिस्प्ले की ब्राइटनेस को स्वत: कम या ज्यादा करने में भी मदद करता है.

एक्सीलरोमीटर और जाइरोस्कोप सेंसर: यह सेंसर मुख्य रूप से स्मार्टफोन किस दिशा में घूमा हुआ है, उसके बारे में बताता है. जब भी हम कोई वीडियो स्मार्टफोन में देख रहे होते हैं, तो उसे पोर्ट्रेट मोड की जगह लैंडस्केप मोड में में देखने के लिए अपना फोन घुमाते हैं तो एक्सीलरोमीटर और जाइरोस्कोप सेंसर की मदद से वीडियो फुल स्क्रीन पर आ जाता है. ध्यान रहे, यह सेंसर तभी काम करता है, जब आपने फोन में औटो-रोटेशन इनेबल किया हो. आपको बता दें कि स्मार्टफोन में रोटेशन के लिए दो सेंसर्स की जरूरत होती है, जिसमें एक्सीलरोमीटर इसके रेखीय त्वरण को और जाइरोस्कोप इसके घूर्णी कोण की गति को निंयत्रित करता है.

बायोमैट्रिक सेंसर: इसका इस्तेमाल आजकल लगभग सभी तरह के मिड रेंज और हाई रेंज के स्मार्टफोन्स में किया जा रहा है. इसकी मदद से स्मार्टफोन की सुरक्षा के लिए दिया गया फिंगरप्रिंट सेंसर काम करता है. यह सेंसर स्मार्टफोन में दर्ज किए गए अंगूठे या उंगली को स्कैन करके डाटा इकट्ठा कर लेता है. दूसरी बार, उसी अंगूठे या उंगली को इस सेंसर के पास रखा जाता है, तो वह इसकी जानकारी को इकट्ठा की गई जानकारी में मिलाकर सही अंगूठे या उंगली की पहचान कर लेता है. बायोमैट्रिक सेंसर में फिंगरप्रिंट के अलावा रेटिना स्कैनर भी आता है, जो फ्रंट कैमरे के साथ जुड़ा होता है. इसकी मदद से स्मार्टफोन के लौक को रेटिना के स्कैन की मदद से भी लौक-अनलौक किया जा सकता है.

डिजिटल कम्पास: इसमें मैग्नेटोमीटर सेंसर का इस्तेमाल किया जाता है, जो जमीन के चुंबकीय क्षेत्र के अनुसार काम करता है. इस सेंसर की मदद से स्मार्टफोन में इंस्टौल डिजिटल कम्पास सही दिशा के बारे में जानकारी देता है.

जीपीएस सेंसर: यह सेंसर आमतौर पर सभी स्मार्टफोन में इस्तेमाल किया जाता है. जीपीएस का मतलब होता है, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी भूमंडलीय स्थिति निर्धारण प्रणाली. इस सेंसर की मदद से डिवाइस की लोकेशन पता करने में मदद मिलती है. यह सेंसर कई तरह के सैटेलाइट के साथ जुड़कर काम करता है. इस सेंसर के लिए स्मार्टफोन में इंटरनेट कनेक्टिविटी होना जरूरी है. यानी अगर आपके स्मार्टफोन में इंटरनेट डाटा बंद होता है, तो यह सेंसर काम नहीं करेगा.

बैरोमीटर: यह सेंसर मूलरूप से स्मार्टफोन में इनबिल्ट जीपीएस चिप की मदद से काम करता है. इसकी मदद से ऊंचाई पर त्वरित गति से स्थान को लौक करके डाटा इकट्ठा किया जा सकता है.

वर्चुअल रियलिटी सेंसर: वर्चुअल रियलिटी सेंसर मूलरूप से स्मार्टफोन के कैमरे के साथ मिलकर रियलिटी ऐप्स के साथ काम करता है. यह सेंसर स्मार्टफोन में कैमरा ऐप्स की मदद से एनिमेटेड तस्वीर भी निकाल सकता है. इसी के साथ यह सेंसर कई तरह के मोबाइल गेम्स खेलने में भी मददगार है.

जाह्नवी की बहन पर चढ़ा ‘धड़क’ का खुमार, वीडियो हुआ वायरल

आज श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर की डेब्यू बौलीवुड फिल्म ‘धड़क’ रिलीज हो गई है. फिल्म को लेकर दर्शकों में खासा एक्साइटमेंट हैं. इस फिल्म के बौक्स औफिस पर पहले ही दिन 7-10 करोड़ के बीच कमाई करने की उम्मीद जताई जा रही है. फिल्म ‘धड़क’ की रिलीज के समय जाह्नवी की छोटी बहन खुशी काफी उत्साहित नजर आईं. वो अपनी खुशी को अपनी बहन की फिल्म के गाने पर डांस कर व्यक्त कर रही हैं. सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो खूब शेयर किया गया जिसमें खुशी गाड़ी के अंदर धड़क के गाने पर झूम रही हैं.

वीडियो में खुशी बड़ी बहन जाह्नवी की फिल्म धड़क के गाने झिंगाट पर झूम रही हैं. जाह्नवी कपूर के बौलीवुड डेब्यू के बाद फैन्स अब खुशी कपूर के बौलीवुड डेब्यू को लेकर उत्साहित हैं. हालांकि श्रीदेवी की छोटी बेटी खुशी ने अब तक अपने बौलीवुड डेब्यू को लेकर कोई ऐसी इच्छा नहीं जताई है.

मालूम हो कि एक अखबार ने जब जाह्नवी से बातचीत के दौरान पूछा कि खुशी कब बौलीवुड डेब्यू कर रही हैं तो जाह्नवी ने कहा, “मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब खुशी को ही देना चाहिए.” बता दें कि जाह्नवी कपूर और उनके भाई ईशान खट्टर की फिल्म धड़क आज 20 जुलाई को रिलीज हो रही है. जिसका निर्देशन शशांक खेतान कर रहे हैं.

धड़कः मराठी फिल्म ‘सैराट’ की औनर कीलिंग

2016 की मराठी भाषा की सुपरहिट फिल्म ‘‘सैराट’’ का शशांक खेतान ने हिंदी रीमेक ‘‘धड़क’’ बनाया है, जिसे देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार ने ‘सैराट’ की ही औनर कीलिंग कर डाली. ‘धड़क’ से ‘सैराट’ की रूह गायब है. कहा जाता है कि ‘समरथ को नहीं दोष गोसांई’.. इसीलिए ‘धड़क’ के फिल्मसर्जक ने अपने धन बल का भरपूर उपयोग करते हुए क्षेत्रीय भाषा की अति संवेदनशील व औनर कीलिंग के साथ राजनीतिक व सामाजिक परिवेश पर कुठाराघात करने वाली फिल्म ‘‘सैराट’’ को ‘धड़क’ में तहस नहस कर दिया. फिल्मकार नागराज मंजुले ने जिस कौशल व गहराई के साथ ‘सैराट’ में जातिगत व क्लास के चलते भेदभाव व औनर कीलिंग को पेशकर लोगों को सोचने पर मजबूर किया था, उसमें शशांक खेतान बुरी तरह से पस्त नजर आते हैं. ‘सैराट’ की तरह‘धड़क’ में प्रेमी जोड़े में डर व निराशा का अहसास उभरता ही नही है.

फिल्म की कहानी झीलों की नगरी उदयपुर में रहने वाले मधुकर बागला (इशान खट्टर) और राजशाही परिवार के तथा राजनेता रतन सिंह (आशुतोष राणा) की बेटी पार्थवी (जान्हवी कपूर) के इर्द गिर्द घूमती है. मधुकर के पिता का रेस्टोरेंट है. मधुकर अच्छा कुक और टूर गाइड है. फिल्म की शुरुआत मधुकर के घर से होती है, वह सुबह सुबह सपना देख रहा है कि एक लड़की ने उसके पास आकर कहा कि इसबगोल पी लो, आज जीत उसी की होगी और उसे पुरस्कार वही देगी. खैर, प्रतियोगिता स्थल पर पहुंचने में देर होने के बावजूद जीत मधुकर बागला की होती है. पुरस्कार देने के लिए रतन सिंह अपने पूरे परिवार के साथ आए हैं. रतन सिंह अपनी बेटी पार्थवी से कहते हैं कि वह मधुकर को पुरस्कार दे. यहीं पर दोनों एक नजर में ही एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं.

बाद में रतन सिंह अपने भाषण में अपनी प्रतिद्वंदी सुलेखा पर तीखे हमले करते हैं. इधर मधुकर और पार्थवी की मुलाकातें बढ़ती हैं. पता चलता है कालेज में दोनों को एक ही कक्षा में प्रवेश मिला है. जब मधुकर के पिता को इस प्रेम संबंध के बारे में पता चलता है, तो वह मधुकर से कहते हैं कि पार्थवी का परिवार उंची जाति का है, इसलिए उससे दूर रहो. यहां तक कि मधुकर के पिता मधुकर से अपने सिर की कसम ले लेते हैं कि वह अब पार्थवी से बात नहीं करेगा. उधर पार्थवी को मधुकर का साथ चाहिए. उसे अपनी बात मनवानी आती है. अंततः मधुकर और पार्थवी की मुलाकातें, प्यार की तीखी नोकझोक चलती रहती है. इसकी भनक पार्थवी के भाई व रतन सिंह के बेटे रूप (आदित्य कुमार) को चलती है, तो वह मधुकर को सबक सिखाना चाहता है. पर चुनाव नजदीक होने के कारण मामला ठंडा हो जाता है.

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इधर रूप की जन्मदिन पर कोठी में आयोजित पार्टी में मधुकर के आने पर मधुकर को ‘किस’ देने की शर्त पार्थवी रखती है. अपने दोस्तों के साथ पहुंचकर मधुकर गाना भी गाता है. अब पार्थवी अपना वादा पूरा करने के लिए मधुकर को लेकर कोठी के एक कोने में जाती है. वह ‘किस’ दे इससे पहले ही रतन सिंह व रूप सिंह पहुंचकर पार्थवी को पकड़कर ले जाते हैं और कमरे में बंद कर देते हैं. इधर मधुकर व उसके दोस्त भागकर अपने घर पहुंच जाते हैं. चुनाव जीतने के बाद रतन सिंह पुलिस पर दबाव डालकर मधुकर और उसके दोनों दोस्तों को पुलिस थाने मे खुब पिटवाते हैं. इसकी खबर जब पार्थवी को मिलती है, तो वह विद्रोही हो जाती है.

पुलिस स्टेशन पहुंचकर अपनी कनपटी पर बंदूक रखकर अपने पिता रतन सिंह, भाई रूप सिंह व पुलिस वालों को दूर रहने के लिए कह कर मधुकर के साथ भागती है. मधुकर व पार्थवी पहले मुंबई, फिर नागपुर होते हुए कोलकता पहुंचते है. वहां पर दोनों एक होस्टल में किराए पर कमरा लेकर रहना शुरू करते हैं. मधुकर को एक होटल में तथा पार्थवी को भी एक कंपनी में नौकरी मिल जाती है. उसके बाद दोनो शादी कर लेते हैं. उनका बेटा आदित्य दो साल का हो गया है. उधर पांच साल बाद हुए चुनाव में रतन सिंह चुनाव हार चुके हैं. बीच बीच में पार्थवी अपनी मां से बातें करती रहती है. इधर पार्थवी व मधुकर ने नया मकान खरीदा है और गृहप्रवेश की पूजा है. पार्थवी मां से फोन पर बात करती है, अचानक रतन सिंह फोन छीनकर पार्थवी की बातें सुनते हैं और फिर पार्थवी को जीती रहने का आशीर्वाद दे देते हैं. पर कुछ देर में पार्थवी का भाई रूप सिंह चार पांच लोगों के साथ पार्थवी के घर उपहार लेकर पहुंचते हैं. पार्थवी व मधुकर उनकी आवभगत करते हैं. फिर पूजा के लिए पार्थवी मिठाई लेने जाती है और जब वापस आती है, तो उसके सामने इमारत के नीचे उसके मकान से उसके पति मधुकर व बेटे आदित्य की लाश नीचे गिरती है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ के प्रमोशन के दौरान निर्देशक शशांक खेतान सीना ठोककर दावा कर रहे थे कि यह फिल्म उनकी अपनी व उनकी आवाज वाली फिल्म है. अपनी इसी बात को साबित करने तथा वर्तमान सरकार की ‘बेटी बचाओ’ मुहीम की वकालत करते हुए शशांक खेतान ने ‘धड़क’ में हीरेो व उसके बेटे को मारकर हीरोईन को जिंदा रखा? पर क्या एक इमानदार फिल्मकार के तौर पर उन्हें यह जायज लगा? ज्ञातव्य है कि फिल्म ‘सैराट’ में हीरो व हीरोईन दोनों को हीरोइन का भाई मार देता है और उनका बेटा अनाथ हो जाता है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ न तो संवेदनशील फिल्म बन सकी और न ही इसमें इंसानी भावनाएं ही उभर सकी. कम से कम ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ जैसी फिल्मों के निर्देशक से इस तरह की उम्मीद नहीं थी. ‘धड़क’ देखकर अहसास होता है कि शशांक खेतान के अंदर की रचनात्मकता खत्म हो चुकी है. परिणामतः दो किरदारों के बीच का प्रेम भी दर्शकों के दिलों तक नही पहुंचता. हां! फिल्म के परदे पर सिर्फ जोधपुर की सुंदर व खूबसूरत लोकेशन की चमक जरुर है, जिसके लिए शशांक खेतान की बजाय फिल्म के कैमरामैन विष्णु राव बधाई के पात्र हैं. पटकथा के स्तर पर भी कुछ किरदारों को सही ढंग से तवज्जो नहीं दी गयी. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो फिल्म का अंत ही है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ की शुरुआत बहुत ही धीमी व बोझिल गति से होती है. शायद ‘सैराट’ से अलग ‘धड़क’ लगे इस प्रयास में शशांक खेतान फिल्म व विषय वस्तु के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाए. इंटरवल तक यह फिल्म ‘सैराट’ की तुलना में शून्य साबित होती है. दर्शकों पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं डालती. इंटरवल के बाद फिल्म काफी नाटकीय हो जाती है. फिर भी मानवीय संवेदनाएं व भावनाएं अपना आकार लेती नजर नहीं आती हैं. रोमांस व औनर कीलिंग के साथ क्लास का अंतर, जातिगत भेदभाव, राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते लिए जाने वाले निर्णय जैसे मुद्दे भी ठीक से उभर नहीं पाए. फिल्मकार ने जाति के अंतर को महज एक संवाद में कह कर अपना दायित्व निभा लिया है. समसामयिक भारत के सामाजिक परिवेश में जाति का मुद्दा किस तरह गर्म है, इसे दृष्यों के माध्यम से चित्रित करना भी निर्देशक ने उचित नहीं समझा.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो बेहतर काम करते हुए जान्हवी कपूर काफी खूबसूरत लगी हैं. मगर कई दृश्यों में उन्हें काफी मेहनत करने की जरुरत थी.

मधुकर बागला के किरदार में ईशान खट्टर का अभिनय उनकी पिछली फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’ के मुकाबले कमजोर ही नजर आता है. मधुकर के दोस्तों के किरदार में दोनों कलाकारों ने बेहतर काम किया है.

जहां तक फिल्म के संगीत का सवाल है, तो फिल्म का पार्श्व संगीत ठीक है. मगर फिल्म के गाने प्रभावित नहीं करते. यहां तक ‘सैराट’ के मूल गाने ‘झिंगाट’ का भी ‘धड़क’ में बंटाधार हो गया. यह गाना ‘धड़क’ में परदे पर भी पसंद नहीं आता.

कुल मिलाकर ‘‘सैराट’’ संग तुलना किए जाने पर ‘धड़क’ कहीं नहीं ठहरती. ‘सैराट’ देख चुके दर्शकों की उम्मीदों पर ‘धड़क’ खरी नहीं उतरती है.

दो घंटे 17 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘धड़क’’ का निर्माण ‘धर्मा प्रोडक्शन’ और जी स्टूडियो ने किया है. फिल्म के निर्देशक शशांक खेतान, कहानीकार नागराज मंजुले, फिल्म ‘सैराट’ पर आधारित, पटकथा लेखक शशांक खेतान, संगीतकार अजय अतुल, कैमरामैन विष्णु राव तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- ईशान खट्टर, जान्हवी कपूर, आशुतोष राणा, अंकित बिस्ट, श्रीधर वाटसर, आदित्य कुमार, ऐश्वर्या नारकर, खरज मुखर्जी व अन्य.

बच्चों को क्रिकेट के पैंतरे सिखाएंगे सचिन तेंदुलकर

भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर से क्रिकेट सीखने वालों की कमी नहीं है. टीम इंडिया से रिटायर होने के बाद अभी तक सचिन ने औपचारिक तौर पर अपनी खुद की कोई कोचिंग एकेडमी नहीं खोली है. लेकिन अब सचिन खुद की ही एक एकेडमी खोलने जा रहे हैं. सचिन ने बुधवार को खुद के मिडिलसेक्स क्रिकेट से जुड़ने की घोषणा की है. सचिन मिडिलसेक्स क्रिकेट के साथ मिलकर अब तेंदुलकर मिडिलसेक्स ग्लोबल एकेडमी (टीएमजीए) खोलने जा रहे हैं.

टीएमजीए एसआरटी स्पोर्ट्स मैनेजमैंट लिमि़टेड और मिडिलसेक्स क्रिकेट के बीच एक संयुक्त उपक्रम होगा. एकेडमी की शुरुआत इंग्लैंड के नार्थवुड मके मर्चेंट टेलर्स स्कूल में आगामी 6 से 9 अगस्त तक होगी. इसके बाद सचिन मुंबई और लंदन में अलग अलग जगहों पर भी बच्चों को अपने अनुभवों का लाभ देंगें. एकेडमी में 9 से 14 साल के बच्चों को प्रशिक्षण किया जाएगा. इस एकेडमी का कोर्स दिग्गज कोचों के साथ सचिन ने खुद तैयार किया है. एकेडमी प्रतिभाशाली गरीब बच्चों को सौ प्रतिशत स्कौलरशिप भी देगी.

उल्लेखनीय है कि मि़डिलसेक्स क्रिकेट से एंड्रयू स्ट्रौस, माइक गैटिंग, डेनिस कामप्टन, जौन एंबुरी, माइक ब्रेयर्ले जैसे दिग्गज खिलाड़ी निकले हैं. सचिन ने इस मौके पर कहा, “मुझे मिडिलसेक्स के साथ इस नए उपक्रम के लिए साझेदारी करने पर खुशी है. एकेडमी का उद्देश्य केवल अच्छे क्रिकेटर ही नहीं बल्कि बढ़िया वैश्विक नागरिक बनाना भी है. अपने छात्रों के लिए हम अपना ध्यान श्रेष्ठ क्रिकेटीय शिक्षा देने पर केंद्रित कर रहे हैं.”

मिडिलसेक्स के सीईओ रिचर्ड गोटले ने कहा, “ यह हमारा सौभाग्य है कि पिछले छह महीने में हमें सचिन तेंदुलकर के साथ काम करने का मौका मिला जिससे हम दुनिया का सबसे बेहतरीन कोचिंग प्रोग्राम तैयार कर सके. हमारा प्रतिष्ठित एकेडमी प्रोग्राम, जिसमें सचिन के अनुभव,ज्ञान और क्षमताओं का खास समावेश है, बच्चों का ऐसा प्रशिक्षण देंगे जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे.”

शानदार रिकौर्ड का फायदा मिलेगा बच्चों को

तेंदुलकर ने 463 वनडे मैचों की 452 पारियों में कुल 18426 रन बनाए हैं, जिसमें नाबाद 200 रन उनका सर्वोच्च स्कोर है. सचिन ने वनडे में कुल 49 शतक लगाए हैं. वहीं 200 टेस्ट मैचों में सचिन ने 15921 रन बनाए हैं. जिसमें 51 शतक शामिल हैं. सचिन के नाम बहुत से रिकौर्ड हैं लेकिन उनमें सबसे खास यह है कि उन्होंने संन्यास लेने से पहले तक टेस्ट खेलने वाले सभी देशों के खिलाफ उन्हीं की धरती पर 40 से ज्यादा की औसत से रन बनाए हैं. दुनिया का कोई भी खिलाड़ी सभी टेस्ट खेलने वाले देशों में जाकर उनके ही खिलाफ इस रफ्तार से रन नहीं बना पाया है.

इस तरह से माना जाता है कि सचिन को दुनिया के लगभग हर मैदान और हर देश की परिस्थितियों का खासा अनुभव है और इसका लाभ बच्चों को जरूर मिलेगा.

अमर हो गए मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज

अपनी काव्य रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने वाले मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने कल शाम 7 बजकर 35 मिनट पर दिल्‍ली के एम्‍स अस्पताल में आखिरी सांस ली.  गोपालदास नीरज के पुत्र शशांक प्रभाकर ने बताया कि वो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. बुधवार की शाम को तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आगरा से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन डाक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका.

शशांक ने बताया कि उनकी पार्थिव देह को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा. शशांक ने कहा कि उनके पिता नीरज ने अलीगढ़ के एक मेडिकल कालेज को देहदान कर दिया था. इसलिए बौडी कालेज को दी जाएगी. अगर कालेज ने किसी तकनीकी या मेडिकल वजह से नहीं ली तो दाह संस्कार अलीगढ़ में ही होगा.

गौरतलब है कि उनका पूरा नाम गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ था. वह एक मशहूर हिन्दी साहित्यकार ही नहीं बल्कि फिल्मों के गीत लेखक के लिए भी पहचाने जाते थे. 93 वर्षीय नीरज पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें भारत सरकार ने शिक्षा और साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर दो-दो बार पद्मश्री और पद्मभूषण नवाजा. उन्हें फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.

उन्होंने बौलीवुड की कई फिल्मों के लिए गाने भी लिखे. उनके लिखे हुए गाने ‘लिखे जो खत तुझे…’, ‘आज मदहोश हुआ जाए…’, ‘ए भाई जरा देखके चलो…’, ‘दिल आज शायर है, गम आज नगमा है…’, ‘शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब..’ जैसे तमाम गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं. नीरज द्वारा लिखे गए गीत आज भी काफी लोकप्रिय हैं. उनके निधन से साहित्य जगत को जो हानि हुई है, उसकी भरपाई कर पाना बेहद कठिन है.

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