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11 खौफनाक मौतें अंधविश्वास की पराकाष्ठा

दिल्ली के संतनगर बुराड़ी इलाके में अंधविश्वास का भयावह रूप सामने आया है. 11 सदस्यों का एक संपन्न, शिक्षित, संयुक्त परिवार आत्मापरमात्मा के भ्रमजाल में फंस कर अपनी जान गंवा बैठा.  इसे देख, सुन कर समूचा देश सन्न रह गया. इस घटना ने देश की तमाम सामाजिक, शैक्षिक और वैज्ञानिक तरक्की को धता बता कर समाज के उस अंधकार को उजागर कर दिया है जिस के भीतर यह देश सदियों से डूबा रहा है.

घटना किसी दूरदराज के इलाके में नहीं, बल्कि देश की राजधानी में घटित हुई है जहां सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के बड़ेबड़े दावे किए जाते हैं. पहली जुलाई को संतनगर की गली नंबर 2 के एक घर में जब 11 सदस्यों के फांसी पर लटके मिलने की खबर मिली तो चारों तरफ सनसनी फैल गई. 100 वर्गगज एरिया में बना दोमंजिला मकान भोपाल सिंह भाटिया का था. भोपाल सिंह की करीब 11 साल पहले मौत हो गई थी. अब इस घर में भोपाल सिंह की विधवा नारायणी देवी (78), उन के 2 बेटे भुवनेश (47), ललित (43), इन की पत्नियां सविता और टीना, विधवा पुत्री प्रतिभा, प्रतिभा की बेटी प्रियंका, भुवनेश के 3 बच्चे नीतू, मीनू और ध्रुव तथा ललित का बेटा शिवम रहते थे.

भाटिया परिवार का एक बेटा दिनेश राजस्थान में और एक बेटी सुजाता पानीपत में अपनेअपने परिवार के साथ रहते थे.

परिवार के सभी 11 लोगों की मौत की पुलिस ने जांच की. घर की मुखिया नारायणी देवी की लाश फर्श पर पड़ी मिली. उन्हें गला घोंट कर मारा गया था. बाकी सभी शव घर में लगे जाल में लटके मिले. उन की आंखों पर पट्टी बंधी थी, मुंह में कपड़ा ठुंसा था और हाथ बंधे हुए थे.

शुरू में इन लोगों की हत्या पर संदेह जताया गया पर बाद में सुबूतों और पूछताछ के आधार पर एक ऐसे परिवार की कहानी सामने आई जो अंधविश्वास के खौफनाक अंधकार में इस कदर फंसा हुआ था कि उस में विवेक नाम की जरा भी शक्ति नहीं बची थी.

पुलिस को छानबीन में घर से कईर् डायरियां मिलीं. डायरियों में इन मौतों की पूरी पटकथा लिखी मिली. पुलिस ने कडि़यां जोड़ीं तो इस परिवार द्वारा मृत पिता भोपाल सिंह की ‘आत्मा’ के आदेश पर ‘परमात्मा’ से मिल कर वापस लौट आने के झूठे भ्रम का खुलासा हुआ.

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दरअसल, परिवार के मझले बेटे ललित के सिर में कुछ साल पहले चोट लगी थी. इस से उस की आवाज चली गई और दिमाग पर गहरा असर पड़ा. कुछ समय बाद वह थोड़ाथोड़ा बोलने लगा था.  इसे वह चमत्कार मानता था. 2011 से उस ने डायरी लिखनी शुरू की जिस में वह धार्मिक आदेशात्मक बातें लिखता था. वह कहता था कि उस पर पिता की आत्मा आती है जो उसे परिवार के सुखी रखने व दुख दूर करने के उपाय बताती है.

पर असल में ललित मानसिकरूप से बीमार था और इस बात का किसी को पता नहीं चला. परिवार सोचता था कि ललित पर उस के पिता भोपाल सिंह की आत्मा आती है. पिता ही उस के मुंह से बोलते हैं. ललित पर जब पिता की ‘आत्मा’ आती थी तो वह उन की आवाज की नकल कर के बोलता था. पिता जो आदेश देते थे उस पर पूरा परिवार अमल करता था.

भाटिया परिवार काफी धार्मिक प्रवृत्ति का था और पूजापाठ में डूबा रहता था, हद दर्जे का अंधविश्वासी था. पूरा परिवार दिन में 3 बार पूजापाठ करता था. सुबह 8 बजे, दोपहर 12 बजे और रात को 10 बजे.

पुलिस को मिले सुबूतों के अनुसार, ललित ने अंधविश्वासी क्रियाएं जुलाई 2007 से शुरू कीं. ललित पूजापाठ से परिवार की समस्याएं दूर करता था. ललित की पत्नी टीना भी पूरी धार्मिक थी.

क्राइम ब्रांच को 5 जून, 2013 से 30 जून, 2018 तक की तारीखों में लिखीं 11 डायरियां मिली हैं. डायरियों में अलगअलग तरह की लिखावटें हैं. इन में अधिकतर लिखावट प्रियंका की है. ललित पर जब पिता का साया आता था, तो वह जो बोलता था यानी पिता जो आदेश देते थे, उसे प्रियंका नोट करती थी. परिवार को भरोसा था कि उन के मृतक पिता परिवार की मदद कर रहे हैं. यह विश्वास इसलिए बढ़ा क्योंकि घर के बाहर दोनों भाइयों की 2 दुकानें चल पड़ी थीं.

भुवनेश किराने की दुकान चलाता था और ललित प्लाईवुड की. भाइयों के बच्चे अच्छे मार्क्स से पास होते थे. इन के अलावा ललित की भांजी प्रियंका को मांगलिक बताया गया था. इस के बावजूद उस का रिश्ता तय हो गया था. 17 जून को ही प्रियंका की सगाई नोएडा के एक इंजीनियर लड़के से तय हुईर् थी और परिवार में सगाई का कार्यक्रम बड़ी खुशी के साथ मनाया गया था.

इस से पहले ललित ने प्रियंका का रिश्ता न होने पर उसे मांगलिक मान कर घर में हवनपूजा की थी जिस में उस ने दावा किया था कि इस पूजा में उस के पिता भी मौजूद थे. ललित ने उज्जैन जा कर भी प्रियंका के मांगलिक होने पर पूजापाठ कराया था.

जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. इन 11 पाइपों में से 4 बड़े हैं जो सीधे हैं और 7 अन्य पाइपों के मुंह नीचे की ओर झुके हैं. अभी तक किसी को यह रहस्य समझ नहीं आया कि ये पाइप किसलिए लगाए गए थे. ये पाइप ललित ने लगवाए थे जबकि इन की जरूरत नहीं थी. मरने वालों में 4 पुरुष और 7 महिलाएं थीं इसलिए इस के पीछे ललित की तंत्रमंत्र क्रिया का पागलपन माना जा रहा है.

आत्मा का एंगल

पूरा परिवार पढ़ालिखा था. 32 साल की प्रियंका एमबीए थी. उस की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई. उस की मां प्रतिभा घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी.  प्रियंका नोएडा की सीपीएम ग्लोबल कंपनी में नौकरी करती थी. इस से पहले वह एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में थी. उस की धर्म, ज्योतिष और धार्मिक नेताओं में रुचि थी. वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी. जन्म के 2 साल बाद प्रियंका के पिता की मृत्यु हो गईर् थी. तब से वह राजस्थान से अपनी मां के साथ यहां आ कर संतनगर में रहने लगी थी.

मांगलिक होने के बावजूद प्रियंका का रिश्ता हो जाने पर ललित ने परिवार सहित अपने पिता और भगवान का धन्यवाद करने के लिए 7 दिनों की पूजाक्रिया का कार्यक्रम तय किया था जो 24 से 30 जून तक करना था. इस बात की तसदीक डायरी में लिखी बातों से होती है. डायरी में एक सप्ताह पहले लिखा गया था कि इस पूजा का उद्देश्य भगवान को धन्यवाद देना था, क्योंकि परिवार का मानना था कि भगवान उस पर आशीर्वाद बनाए हुए है.

कुछ वर्षों के दौरान ललित अपने परिवार को यह समझाने में सफल हो गया था कि पिता की आत्मा की वजह से हमारा परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है.

डायरी में परिवार के सदस्यों की मौत का पूरा ब्योरा लिखा गया है. पुलिस को मिली एक डायरी में लिखा है :

घटना वाले दिन परिवार की एक महिला और बच्ची फंदे पर लटकने के लिए इस्तेमाल किए गए स्टूलों को बाजार से ले कर आई थीं. मुंह पर चिपकाने के लिए टेप, अलगअलग रंग की चुन्नियां और तार खरीदे गए थे.

डायरी में लिखे गए आदेश के अनुसार, 30 जून की रात को परिवार ने 11 बजे के बाद मोक्ष की क्रिया शुरू की. रात 10 बजे के करीब बाहर से रोटियां मंगाई गईं. परिवार के पास एक कुत्ता था जिसे छत के ऊपर जाल से बांध दिया गया और फिर परिवार के सभी 11 सदस्य फंदे बना कर लटक गए. घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया गया था. डायरी में लिखी बातों से पता चलता है कि दरवाजा इसलिए खुला रखा गया ताकि ‘पिता की आत्मा’ दरवाजे से प्रवेश कर सके.

मरने वाले इन सभी लोगों को जरा भी एहसास नहीं था कि  ईश्वर से मिलने के लिए वे जो क्रिया कर रहे हैं उस से वे सचमुच मौत के मुंह में जा रहे हैं और उन्हें पिताजी बचाने नहीं आएंगे. परिवार के लोग मरना नहीं चाहते थे पर ललित ने इन लोगों को बताया था कि जब वे यह क्रिया पूरी कर लेंगे तब पिताजी उन्हें बचा लेंगे.

डायरी में लिखी बातों से पता चला कि ललित को उस के पिता ने बताया था कि वह उन के साथसाथ घर के 7 अन्य सदस्यों की आत्मा को भी मोक्ष दिलाए. डायरी में 9 जून को लिखा था, ‘‘आप क्रिया की गति में सुधार करो. आप भटक रहे हो. सभी एक छत के नीचे मेलमिलाप कर इसे सुधारो. अभी 7 आत्माएं मेरे साथ भटक रही हैं. क्रिया में सुधार करोगे तो गति मिलेगी. मैं इस चीज के लिए भटक रहा हूं ऐसे ही सज्जन सिंह, हीरा, दयानंद, कर्मचंद, राहुल और गंगा मेरे सहयोगी बने हुए हैं. ये भी यही चाहते हैं कि तुम सब सही कर्म कर जीवन सफल बनाओे. जब हमारे काम पूरे हो जाएंगे तो हम वापस लौट जाएंगे.’’

ललित ने 30 जून की रात को एक कप में पानी रखा था. डायरी में लिखा गया कि कप के पानी का रंग जैसेजैसे बदलेगा, वैसेवैसे उन सदस्यों को मोक्ष की प्राप्ति होगी.

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भाटिया परिवार की दुकान सुबह

6 बजे खुल जाती थी पर जब 7 बजे तक दुकान नहीं खुली तो  पड़ोसी गुरचरण सिंह उन्हें बुलाने घर की पहली मंजिल पर गए तो वहां 11 शवों को देख कर वे हक्केबक्के रह गए. बाहर आ कर उन्होंने अन्य लोगों को बताया और फिर पुलिस को इस की सूचना दी गई.

अंधविश्वास का डेरा

मनोचिकित्सकों का मानना है कि ललित को मानसिक बीमारी थी जो धार्मिक मान्यता व अंधविश्वास से जुड़ी थी. पीडि़त व्यक्ति किसी अदृश्य शक्ति के वश में होने का एहसास करता है और अपने अस्तित्व  को कुछ देर के लिए भूल जाता है. मनोचिकित्सक इसे शेयर्ड साइकोथिक डिस्और्डर या डिल्यूशन कहते हैं. पूरा परिवार ही इस का शिकार था. ललित जो भी बात बताता था, समूचा परिवार उस का आदेश मानता था.

असल में संतनगर की इस घटना में कोई आश्चर्र्य नहीं है. आज समूचे देश में जिस तरह के धार्मिक अंधविश्वास का माहौल बना हुआ है उस में भाटिया परिवार का कोई दोष नहीं है. वर्तमान में समाज में समस्याओं के समाधान के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ, तंत्रमंत्र, टोनेटोटकों का चलन चरम पर है. पगपग पर व्यक्ति, परिवार की परेशानियां दूर करने के दावे करने वाले पंडेपुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक, साधु, गुरु, प्रवाचक अंधविश्वास का डेरा जमाए बैठे हैं.

हर दूसरी गली में जीवन के तथाकथित मार्गदर्शक बैठे हैं जो दिनरात अंधभक्तों को उन रास्तों की जानकारी देते रहते हैं और बदले में मोटा चढ़ावा मांगते हैं. चारों ओर अंधविश्वास का जाल फैला हुआ है, उस में हर व्यक्ति, हर परिवार बुरी तरह उलझा हुआ है. हर गांव, कसबे, शहर और महानगर में अंधविश्वास फैलाने वाली दुकानों की भरमार है. हर दुकान में वह शख्स बैठा है जो लोगों कोे उन की समस्याएं, दुख दूर करने और खुशहाल बनाने के भ्रमजाल में फंसा रहा है.

भाग्य की राशि का बाजार

यही नहीं, टैलीविजन और अखबार भी दिनरात अंधविश्वास की सामग्री परोसने में लगे हुए हैं. राष्ट्रीय राजधानी का कोई भी दैनिक अखबार देख लीजिए, पारिवारिक समस्याओं के समाधान हेतु पंडितों, तांत्रिकों, ओझाओं, गुरुओं के विज्ञापनों से भरा हुआ मिलेगा.

दैनिक हिंदुस्तान में गुरुदेव जी डी वशिष्ठ भविष्यफल बताते हैं. उन के राशिफल के साथ ही एक ऐप का भी प्रचार है. लिखा है, भगवान ने क्या लिखा है आप की किस्मत में, जानने के लिए डाउनलोड करें, टेल माई लक ऐप. इस के साथ ही पंडित वेणीमाधव गोस्वामी द्वारा पंचांग दिया जाता है जिस में ग्रहों के अच्छेबुरे होने का दावा किया जाता है.

इसी अखबार में पंडित के के शास्त्री द्वारा हर समस्या का समाधान का दावा किया गया है. ज्योतिषी रामधन स्वामी का विज्ञापन भी है. इस में प्यार, मुहब्बत, सौतन, वशीकरण समाधान की गारंटी का दावा  है.

दैनिक भास्कर के 9 जुलाई के अंक में चौथे पेज पर वर्गीकृत विज्ञापनों में ज्योतिष कौलम में 6 विज्ञापन हैं जिन में पंडित विजय द्वारा गृहक्लेश, दुश्मन से छुटकारा, मनचाही शादी, गड़ा धन पाने के घर बैठे समाधान के दावे हैं. पंडित विशाल शास्त्री के विज्ञापन में प्रेमविवाह, तलाक और शक्ति के चमत्कार देखने का दावा किया गया है.

दैनिक जागरण में पंडित अर्जुन शर्मा, बाबा अजमेरी, गुरु सिकंदर भारती, गुरु रिहानजी, बाबा अमन बंगाली जैसे कई लोगों के विज्ञापन हैं जो हर घरेलू, पारिवारिक समस्या के समाधान का दावा करते हैं.

टीवी टुडे के न्यूज चैनल तेज और आजतक पर ‘किस्मत कनैक्शन’ नामक एक घंटे का कार्यक्रम रोजाना प्रसारित किया जाता है जिस में लोगों को उन की दिक्कतें दूर करने के उपाय के रूप में ऊलजलूल टोनेटोटके बताए जाते हैं. राशिफल बता कर लोगों को भयभीत किया जाता है.

इस में 7 जुलाई को शैलेंद्र पांडेय, ज्योतिषी बता रहे हैं, ‘‘आज हम बात करेंगे पितृदोष की. अकसर लोग यह सवाल करते हैं कि मेरी कुंडली में पितृदोष है या नहीं. क्या होता है पितृदोष और इस दोष के होने पर क्या करना चाहिए.’’

ज्योतिषी महोदय आगे बताते हैं, ‘‘अगर कुंडली में शनि के कारण सेहत की समस्या हो तो लोहे की बालटी में पानी भर कर रखें. कुछ समय बाद उस पानी से स्नान करें. जीवन की उन्नति में कई चीजें बाधा पैदा करती हैं. कुछ दोष जानेपहचाने होते हैं और कुछ दोष अज्ञात. इन्हीं अज्ञात दोषों में से एक दोष पितृदोष है. आमतौर पर इस दोष के पीछे राहु ही होता है. राहु की अलगअलग  स्थिति को हम पूर्वजन्म और पितरों से जोड़ देते हैं.’’

अंधविश्वास का जाल अब गरीब, गांवों के दायरे से बढ़ कर शहरों, महानगरों में शिक्षित युवाओं और विदेशों तक पहुंच चुका है. विज्ञान से ज्यादा आज लोग टोनेटोटकों के अंधविश्वास और तंत्रमंत्र में अपनी मुसीबतों का इलाज तलाश रहे हैं. झूठ से अंधविश्वास की दुकानों में खूब नफा कमाया जा रहा है. अंधविश्वास का यह करोबार खूब फलफूल रहा है.

इस परिवार की एक सदस्य प्रियंका मांगलिक है, आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, मुक्ति, पाप, पुण्य की बातें कौन बताता है? निश्चित ही ये बातें कोई न कोई पंडित ही बताता है. लड़कियों के मांगलिक होने, सर्पदोष होने जैसे कई अंधविश्वासों में समाज की न जाने कितनी लड़कियां और उन के परिवार भय की आशंका में दिनरात मर रहे हैं. आत्मा, परमात्मा, पाप, पुण्य के फेर में न जाने कितने लोग भयभीत हो कर रोज मर रहे हैं.

इस तरह व्यक्ति और परिवार दिनभर आने वाली विपत्तियों की आशंका से घिरा रहता है. उपाय करने की चिंता में हर दिन मर रहा है.

धार्मिक अंधविश्वास फैलाने के लिए टैलीविजन चैनल, अखबार दिनरात जुटे नजर आते हैं. इस के लिए वैबसाइटें हैं, ब्लौग्स हैं जिन पर गरीबी, बीमारी को दूर करने से ले कर हर समस्या के समाधान की बातें लिखी होती हैं. साथ ही, एक लंबी फेहरिस्त उन दावों की होती है जिस से प्रभावित हो कर लोग इस के जाल में फंसते हैं.

हर टीवी चैनल एकदूसरे से होड़ लेते हुए नजर आते हैं. कोई स्वर्ग की सीढि़यां दिखा रहा है तो कोई मोक्ष का द्वार दिखा रहा है, कोई मुक्ति के उपाय सुझा रहा है, कोई ईश्वर को प्राप्त करने के तरीके समझा रहा है, कोई सुखसमृद्धि के साधन बता रहा है. हर जगह बुरी आत्माओं को भगाने के टोनेटोटके परोसे जा रहे हैं.

इसी तरह न्यूज 24 पर ‘कालचक्र’, एनडीटीवी इमेजिन पर ‘राज पिछले जन्म का’, सोनी टीवी पर ‘फिअर फाइल’, पत्रिका टीवी पर ‘एस्ट्रो अंकल’ जैसे कार्यक्रम लोगों को अंधविश्वासों की ओर धकेल रहे हैं.

यही नहीं, हैरानी की बात यह है कि हमारी सरकारें, चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की, पौराणिक बातों को पुख्ता करने में जुटी दिखाई देती हैं. मंत्री पुराने मिथकों का प्रचार कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई के एक कार्यक्रम में कहा था कि हाथी का सिर गणेश को लगाना यानी प्लास्टिक सर्जरी का हमारे पुराणों में उदाहरण है यानी हम उस जमाने में यह ज्ञान जानते थे. यह दावा कितना खोखला है, स्पष्ट करना जरूरी नहीं.

युवा मुख्यमंत्री बिप्लव देव ने महाभारत काल में गूगल और इंटरनैट होने का दावा करते हुए कहा था कि उस समय धृतराष्ट्र को संजय महाभारत का आंखोंदेखा हाल सुनाते थे.

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा रामायणकाल की सीता का घड़े में मिलना परखनली शिशु की अवधारणा बताते हैं.

उधर हमारे राष्ट्रपति मंदिरों की परिक्रमा कर रहे हैं. वे अजमेर, पुष्कर, वैष्णोदेवी मंदिरों में पूजापाठ कर के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या राष्ट्रपति धर्मस्थलों पर जाजा कर देश के लिए सुखशांति की कामना कर रहे हैं? क्या उन का यह काम संविधान में कहीं लिखा है?

भारत में जितनी मौतें तरहतरह के धार्मिक अंधविश्वासों के चलते होती हैं उतनी किसी अन्य कारण से नहीं. हर साल मंदिरों, तीर्थों में हजारों यात्रियों की मौतें होती हैं. जादूटोना, डायन, भूतप्रेत, बलि, पूजापाठ और तंत्रमंत्र के नाम पर न जाने

कितने लोग आएदिन मर रहे हैं. बच्चियों का यौनशोषण धार्मिक अंधविश्वास के चलते होता है. जादूटोने, संतानोत्पत्ति के नाम पर अनगिनत औरतों के साथ बलात्कार किए जाते हैं. ऐसे में संतनगर, बुराड़ी जैसी घटनाएं होती हैं तो ताज्जुब कैसा?

मजे की बात यह है कि वैज्ञानिक और तर्क की बात करने वालों को दबाया जाता है. वैज्ञानिक और तार्किक विचारों पर हमले किए जाते हैं.

अज्ञानता का अंधेरा

संतनगर, बुराड़ी की इस घटना से भारत की विश्व में बड़ी बदनामी हुई है. भारत के नेता आध्यात्मिक उन्नति का दावा करते हैं, देश को विश्वगुरु बनाने का दंभ भरते हैं. क्या इसी तरह की घटनाएं ही हमारी प्रगति को दर्शाने वाली हैं. वास्तविकता यह है कि आज भी समाज में अज्ञानता के अंधकार का साम्राज्य है. यूरोप में पिछली सदियों में समाज ने चर्च के बताए मिथकों के अंधेरे में रहने से इनकार कर ज्ञान के प्रकाश में जीना सीख लिया है. क्या हमारा समाज भी धार्मिक अंधविश्वास के अंधकार से बाहर निकलने का साहस कर पाएगा?

धर्म की अमानवीयता : दलित और स्त्री पर पौराणिक सोच का शिकंजा

बिहार में खगडि़या के जिला जज द्वारा अंतर्जातीय प्रेमविवाह करने पर घर में नजरबंद रखी गई बेटी को पटना हाईकोर्ट ने पुलिस को सुरक्षित पेश करने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने यह आदेश लीगल पोर्टल ‘बार ऐंड बैंच’ में प्रकाशित खबर पर संज्ञान लेते हुए दिया है.

जिला जज सुभाष चंद्र चौरसिया की बेटी यशस्विनी ने सुप्रीम कोर्ट के वकील सिद्धार्थ बंसल से प्रेमविवाह किया. दिल्ली जुडीशियल सर्विसेज की परीक्षा देने आई बेटी को मां ने होटल के बाहर सिद्धार्थ के साथ देख लिया. मां ने फिर दोनों को मिलने नहीं दिया और बेटी को होटल से बाहर नहीं निकलने दिया. यहां तक कि यशस्विनी परीक्षा तक नहीं दे पाई. इस तरह परीक्षा दिलाए बिना  वे बेटी यशस्विनी को ले कर चली गईं.

कुछ समय बाद सिद्धार्थ के पास यशस्विनी के परिजनों के फोन आए जिन में वे सिद्धार्थ को धमका रहे थे. युवती की मां का फोन भी आया, उन्होंने सिद्धार्थ को यशस्विनी से दूर रहने की हिदायत दी.

उत्तर प्रदेश के बागपत के अहीर गांव में हिंदू धर्म के छुआछूत व ऊंचनीच के बरताव से तंग आ कर करीब आधा दर्जन दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म अपना लिया. इन परिवारों का कहना है कि उन्हें बातबात पर तंग किया जाता है, उन से भेदभाव बरता जाता है, जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया जाता है. बौद्ध धर्म से आए भंते महाराज ने हमारे परिवारों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलवाई और उन्होंने बौद्ध धर्र्म में शामिल होने का लिखित पत्र दिया.

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में 21 जून को दलित दयाराम अहीरवार को सरपंच के घर के सामने से मोटरसाइकिल ले जाने पर मारापीटा गया. दयाराम मोटरसाइकिल से अपने घर जा रहा था. उस के घर की तरफ जाने वाली सड़क सरपंच के घर के आगे से निकलती है. आरोप है कि सरपंच हेमंत कुर्मी और उस के भाइयों ने उस के बाल पकड़ कर थप्पड़ मारे और खूब पिटाई की.

भेदभाव के मारे ये बेचारे

देश में दलितों और स्त्रियों में लगातार भय का माहौल बढ़ता जा रहा है. सिर्फ दलित उत्पीड़न की घटनाओं को देखा जाए तो पिछले 3-4 वर्षों में दलितों पर हिंसा और सामाजिक बहिष्कार की अनगिनत घटनाएं हुई हैं. यौनशोषण की वारदातों का सिलसिला कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है.

देशभर में आएदिन दलितों द्वारा हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण करने की खबरें सुर्खियों में रहती हैं. उन पर भेदभाव, हिंसा की घटनाएं रोज होती हैं. 2016 में जातिगत भेदभाव के 40 हजार मामले दर्ज हुए थे. एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 18 मिनट पर एक दलित के साथ अपराध घटित होता है.

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48 प्रतिशत गांवों में पानी के स्रोतों पर दलितों के जाने की मनाही है. 40 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को

कतार से अलग बैठ कर भोजन करना पड़ता है. 54 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. प्रति एक हजार दलित परिवारों में 83 बच्चे जन्म के एक साल के भीतर मर जाते हैं. 45 प्रतिशत बच्चे निरक्षर रह जाते हैं.

समाज में महिलाओं के साथ अपराध की तसवीर भयावह है. यौन अपराध, घरेलू हिंसा के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. नैशनल अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, रोज 60 बलात्कार के मामले सामने आते हैं. हर घंटे महिलाओं से छेड़छाड़ की 15 घटनाएं दर्ज की जाती हैं.

पिछली सरकारें भी दलितों और स्त्रियों पर होने वाले अपराधों पर अंकुश नहीं लगा पाईं, जबकि उन की नीतियां उदार थीं. भाजपा के केंद्र में आने के बाद इन तबकों पर अपराध की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि भाजपा के सक्रिय नेता पौराणिकवादी हैं और संतोंमहंतों के छलफरेब में पड़े रहते हैं. पार्र्टी ने 2014 के घोषणापत्र में दलितों के लिए सामाजिक न्याय और खुशहाली की प्रतिबद्धता जताई थी. दावा था कि सत्ता में आने के बाद

पार्र्टी दलितों का शिक्षा, रोजगार, स्किल डैवलपमैंट के जरिए उत्थान करेगी. दलितों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने पर भी जोर दिया गया था पर सत्ता में आने के बाद भाजपापरस्त धार्मिक ताकतें शक्तिशाली हो गईं और वे चारगुना दम से दलितों व स्त्रियों पर जुल्म के लिए टूट पड़ीं.

धर्म की कट्टरता

देशभर में हो रही घटनाओं के पीछे जो कारण उभर कर सामने आ रहे हैं उन से जाहिर है कि धर्म के रखवाले आज भी इन तबकों को धर्म के अमानवीय कायदों के शिकंजे में कस कर रखना चाहते हैं. आज भी समाज में पुरानी मानसिकता कायम है.

भारत में दलित और स्त्रियों में चेतना के उभार के बीच इन पर अत्याचार के किस्से भी भयावह होते जा रहे हैं. दलितों और स्त्रियों में जागृति आ रही है पर उन पर नए तरह के हमले भी हो रहे हैं.

हिंदू धर्म दलितों और स्त्रियों के खिलाफ अपना दबदबा बनाए रखने के लिए पूरी ताकत के साथ जुटा हुआ है. दलित और स्त्री के जो काम धर्मग्रंथों में बताए गए हैं, धर्म के रखवाले उसे कायम रखने के प्रयास कर रहे हैं. नजर रखी जा रही है कि स्त्री और दलित वर्ग अपनेअपने धर्म से च्युत न हो जाएं. धर्म के बेरहम डंडे से अब भी इन्हें हांकने की कोशिशें जारी हैं.

धर्म में जातीय आधार पर भेदभाव व असमानता तो है ही, लिंग के आधार पर भी गैरबराबरी है. संविधान में समानता का अधिकार मिलने के बावजूद दलितों और स्त्रियों के प्रति सदियों पुरानी सड़ीगली पौराणिक सोच हावी है. इन के प्रति अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे.

भारतीय संस्कृति और धार्मिक वातावरण में लगातार घटती घटनाओं  से स्पष्ट है कि धर्म के धंधेबाज धर्म के नियमकायदों के नाम पर भय बनाए रखना चाहते हैं. धर्म का यह अमानवीय पक्ष है जो समानता का दुश्मन तो है ही, मानवता का संहारक भी है.

देश कितनी भी तरक्की का डंका पीटे, पढ़ाईलिखाई का जश्न मना ले, पर वैचारिक रूप से अभी भी रूढि़वादी जकड़नों से बाहर नहीं निकल पाया है. यहां की धार्मिक वर्णव्यवस्था की संरचना में जातिवादी दुराग्रह और वर्चस्ववादी पूर्वाग्रह धंसे हुए हैं.

स्त्रियों का मजाक

दुनिया के सभी धर्म और समाज स्त्रियों पर अत्याचार के लिए हमेशा दोषी रहे हैं. वे मध्ययुगीन सोच से ऊपर नहीं उठ पाए हैं. अरब देशों में स्त्रियों की हालत खराब है. सऊदी अरब में महिलाएं धर्र्म के शिकंजे से मुक्ति के लिए जद्दोजेहद कर रही हैं. हालांकि नए युवा शासक सुलतान बिन सलमान महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए कुछ करना चाहते हैं, पर कट्टरपंथियों के आगे उन्हें जूझना पड़ रहा है.

सऊदी अरब में अब भी महिलाओं को पुरुष की गार्जियनशिप में रहना पड़ता है. पुरुष की इच्छा के विरुद्ध वे शादी नहीं कर सकतीं. विदेश नहीं जा सकतीं. गैरपुरुष से मित्रता नहीं कर सकतीं. न ही उस के साथ कहीं जा सकती हैं. सार्वजनिक स्थल पर महिलाओं का लंबे व ढीले वस्त्रों के अलावा हिजाब पहनना जरूरी है. महिला डाक्टर पुरुष डाक्टर की अनुमति के बगैर पुरुषों का इलाज नहीं कर सकती. महिलाएं अकेले घूम नहीं सकतीं. ऐसा करने से रोकने के लिए धार्मिक पुलिस उन पर निगरानी रखती है.

भारत में भी स्त्री की आजादी को ले कर तरहतरह के फतवे जारी किए जाते हैं. ये फतवे कुछ उसी तरह के होते हैं जो धर्मग्रंथों में लिखे हैं. हिंदू धर्र्म में महिलाओं और दलितों को पशुओं से भी नीच समझा गया है.

हिंदुओं के पूजनीय आदिशंकराचार्य ने स्त्री को नरक का द्वार बताया था.

याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है, उस स्त्री के सारे अधिकार छीन लेने चाहिए जो अपना सतीत्व खुद खोए. इन में उसे जिंदा रहने लायक भोजन देने, उस की उपेक्षा करने, जमीन पर सोने, गंदे कपड़े पहनने की सजा शामिल है.

मजे की बात यह है कि ऐसी सजा चरित्रहीन पुरुष के लिए नहीं है.

हिंदू समाज में जहां पति को परंपरा और धर्मग्रंथों में परमेश्वर का दर्जा प्राप्त है वहीं पत्नी को तरहतरह के व्रतपूजा करनी होती है. अगर ऐसा नहीं होता तो लंबी उम्र की कामना केवल पत्नी न करती, पति भी पत्नी के लिए ऐसी कामना करता.

मनुस्मृति-9-3 में लिखा है,

‘‘स्त्री सदा किसी न किसी के अधीन रहती है, क्योंकि वह स्वतंत्र रहने के योग्य नहीं है.’’

मनुस्मृति-9-45 में इस तरह दर्ज है-

‘‘स्त्रियां स्वभाव से ही परपुरुषों पर रीझने वाली, चंचल और अस्थिर अनुराग वाली होती हैं.’’

चाणक्य नीति-16-2 में कहा गया है,

‘‘झूठ, दुसाहस, मूर्खता, लालच, अपवित्रता और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं.’’

मैत्रायणी संहिता में फरमाया गया है,

‘‘नारी अशुभ है. यज्ञ के समय नारी, कुत्ते और शूद्र को देखना नहीं चाहिए.’’

हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित इस तरह की सीखें आज भी समाज के जेहन में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं. दलित हिंदुओं की मानसिक गुलामी की जकड़न से निकलने की कोशिश तो कर रहा है पर वह खुद अपने बनाए किसी दूसरे धार्मिक जाल में फंस रहा है.

आरक्षण और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों ने दलितों के प्रति ऊंची जातियों में नफरत भर दी है. उन्हें लगता है कि दलित उन के अवसरों को हथिया रहे हैं.

अच्छी बात यह है कि दलितों और स्त्रियों के खिलाफ जितना शोषण, अत्याचार हो रहा है और उन्हें दबाने, कुचलने के प्रयास हो रहे हैं, ये वर्ग अब उतना ही प्रतिरोध करते दिखाई दे रहे हैं. आएदिन महिलाएं और दलित संगठन हिंदू रूढि़वादी सोच का खुल कर विरोध करने लगे हैं. भारत सहित दुनियाभर की महिलाएं ‘मी टू’ जैसा अभियान चला कर पुरुषों की भोगवादी सोच का भंडाफोड़ कर दकियानूसी समाज की आंखें खोल रही हैं. दलित युवा छुआछूत, भेदभाव, हिंसा जैसे मुद्दों को ले कर संघर्षरत नजर आते हैं.

दलित और स्त्री पर धर्र्म की अमानवीय प्रथाओं का अंत तो तभी होगा जब ये वर्ग धर्म का त्याग करने का साहस दिखाएंगे.

जम्मूकश्मीर की महिलाओं पर आतंकवाद का असर

‘जहां पहुंची नहीं हैं सड़कें, वहां पहुंचा है आतंकवाद,

दशहत ही दशहत बस गई है दिलों में.’

इन पंक्तियों में जम्मूकश्मीर के बाशिंदों का दर्द छिपा है. आएदिन आतंकी वारदातों के चलते उन के दिलों में दहशत भरी हुई है. आतंकवाद की दशहत में यहां के लोग मुश्किलभरी जिंदगी गुजार रहे हैं. आतंकी घटनाओं का भयावह असर इंसानों के साथसाथ यहां की आबोहवा पर भी पड़ा है.

पिछले 15 सालों के दौरान कश्मीर के अलावा जम्मू और इस के आसपास के इलाकों में भी आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. 20 मार्च, 2002 को जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर, 26 मार्च, 2002 को जम्मू के कालूचक्क इलाके में, 22 जुलाई, 2013 को जम्मू के अखनूर में, 26 जुलाई, 2013 को जम्मू के सांबा जिले में और 14 फरवरी, 2015 को कठुआ जिले के लखनपुर क्षेत्र में आतंकियों ने हमले किए. 28 मार्च, 2017 को जम्मूकश्मीर की पंजाब सीमा से लगते बम्याल में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई जो कई दिनों तक चली. जम्मू रीजन के कठुआ, पुंछ, राजौरी, उधमपुर इलाकों में अकसर आतंकी हमले होते रहते हैं.

दहशत की दस्तक

जम्मू क्षेत्र का 70 फीसदी हिस्सा पहाड़ी और पिछड़ा हुआ है. इस हिस्से के गांवों तक टेढ़ेमेढ़े रास्तों से हो कर जाना पड़ता है. सरकार की योजनाएं भले ही वहां न पहुंची हों, लेकिन आतंकवाद वहां अपनी दस्तक दे रहा है. आतंकवाद ने स्थानीय लोगों को बेबस जिंदगी गुजारने को मजबूर कर दिया है.

नवंबर 2013 को जम्मू के राजौरी इलाके में रात को रुखसाना के घर में घुस कर कुछ आतंकी उस के परिवार के साथ मारपीट करने लगे. तभी 13 साल की रुखसाना ने बहादुरी से उन का मुकाबला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इस घटना का बुरा असर यह हुआ कि अब स्थानीय लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने के  बजाय उन की जल्दी शादी कराने लगे हैं.

पुंछ की परवीन कौसर ने बताया, ‘‘जब यहां आतंकी घटनाएं होती हैं तो हमारे बुजुर्ग हमें घर से बाहर नहीं निकलने देते. इन्हीं घटनाओं के चलते उन्होंने मेरी और मेरी छोटी बहनों की पढ़ाई बीच में छुड़ा कर हमें मौसी के घर पंजाब भेज दिया.’’

इसी तरह डोडा के नायबखान ने बताया, ‘‘मस्तराम मेरा करीबी दोस्त था, एक दिन रात का खाना खाने के बाद किसी ने उस के घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलने पर 5 नकाबपोश उस के घर के अंदर घुस गए और उस पर बंदूक तान दी. वे परिवार की लड़कियों के साथ जोरजबरदस्ती करने लगे. विरोध करने पर उस के परिवार के 4 सदस्यों की गोली मार कर हत्या कर दी गई. दोस्त की बीमार पत्नी के साथ उन्होंने बलात्कार किया. आखिर में मासूम बेटियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया.

‘‘इस घटना के बाद मैं ने अपनी बेटियों को जम्मू में अपने नजदीकी रिश्तेदार के यहां छोड़ दिया. मस्तराम की बेटियों के साथ मेरी बेटियां भी चीड़ की लकड़ी के खिलौने बनाने का काम करती थीं लेकिन खिलौने बनाने का वह काम अब हमेशा के लिए बंद हो गया और इस लघु उद्योग से जुड़े सभी लोग बेरोजगार हो गए हैं.’’

रोजी, सेहत प्रभावित

आएदिन घाटी में घट रही इन घटनाओं ने लड़कियों की पढ़ाई को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि लोगों की रोजीरोटी के साधन भी छीन लिए. आतंकवादियों और सेना की अकसर होती मुठभेड़ों के कई दिनों तक चलने से जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. महिलाओं के कामधंधे पर इस का सब से ज्यादा असर पड़ता है. जम्मू की ज्यादातर महिलाएं पशुपालन के साथसाथ खेतीबाड़ी का काम करती हैं. यहां का अधिकांश हिस्सा सुनसान और पहाड़ों का दुर्गम पैदल रास्ता है. ऐसे में आतंकी घटनाएं महिलाओं को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं.

society

सांबा जिले के रेड़मा गांव की सुनीता बताती है, ‘‘हमारा गांव पाकिस्तानी सीमा पर है. यहां हमेशा युद्ध का सा माहौल रहता है, जिस वजह से हम यहां पर कोई भी काम नहीं कर सकते.’’ इन घटनाओं का असर हर वर्ग और धर्म की महिलाओं पर पड़ता है.

हाल में जम्मूकश्मीर की महिलाओं के स्वास्थ्य पर रिसर्च हुई है जिस में पता चला है कि हृदय संबंधी बीमारियों में जम्मूकश्मीर की महिलाओं की संख्या पूरे विश्व में सब से ज्यादा है. मानसिक तनाव और अन्य दिमागी बीमारियों में भी इन की संख्या दुनिया में सर्वाधिक है. एशिया महाद्वीप की बात करें तो यहां विधवाओं की संख्या भी सब से अधिक है.

कश्मीर की रौसाना कौसर अपनी व्यथा बताते हुए कहती है, ‘‘कुछ दिनों पहले मेरे पति असलम अपनी अम्मी की दवा लेने बाजार गए थे. तभी धमाकेदार आवाज सुनाई दी. मैं ने बाहर आ कर देखा तो सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ चल रही थी. असलम के बारे में सोच कर मेरा कलेजा मुंह को आने लगा था. एक घंटे तक हम घर के अंदर परेशान रहे. जब गोलीबारी बंद हुई तो बाहर निकल कर मैं ने सेना से असलम की तसवीर ले कर पूछताछ की, परंतु उन का कोई पता नहीं चला. फिर हम ने खुद ही तलाश करनी शुरू कर दी. मैं ने असलम के गले में पड़ी तावीज से उन्हें पहचान लिया. असलम का चेहरा इतना बुरी तरह जख्मी था कि पहचान पाना मुश्किल था. उन का पूरा शरीर छलनी हो चुका था. जेब से निकले आधारकार्ड से ही असलम की पूरी पहचान हो पाई थी.’’

रौसाना ने आगे बताया कि असलम कपड़े की दुकान पर काम करते थे और उन पर हमारे 4 बच्चे और मांबाप निर्भर थे. अब घर चलाने में बड़ी दिक्कत आ रही है.

यह एक रौसाना की ही कहानी नहीं है बल्कि यह कहानी है जम्मूकश्मीर की हर महिला की, जो इन हालात से जूझती हैं. अकसर यहां की हर मां, पत्नी, बेटी व बहन परेशान रहती है कि घर से निकला हुआ बेटा, पति, बाप या भाई वापस आएगा भी या नहीं. ऐसी हालत में महिलाएं कैसे रह सकती हैं. राज्य और केंद्र सरकारें भले ही योजनाएं चलाएं लेकिन उन का फायदा रौसाना जैसी औरतों को नहीं मिलता. योजनाओं का फायदा तो शहरी महिलाएं उठाती हैं.

जागरूकता न होने के कारण पहाड़ी व दूरदराज के गांवों की महिलाएं इन से आज भी वंचित हैं. यदि आम महिलाओं को इन योजनाओं की जानकारी हो तो उन की दशा कुछ बेहतर हो सकती है.

कठुआ के वनी इलाके की एक महिला ने बताया कि उस के गांव में आज तक कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. हम अपने गांव से कई किलोमीटर पैदल चल कर दूसरे गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर स्वास्थ्य की देखभाल या गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण कराते हैं. कई बार तो मौसम खराब होने या सेना की आतंकियों से मुठभेड़ होने के कारण रास्ते बंद होने से हमें घर पर ही महिलाओं की डिलिवरी करानी पड़ती है. यदि किसी महिला की हालत ज्यादा नाजुक हो तो गांव के नौजवान उसे चारपाई पर बैठा कर दूसरे गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाते हैं.

जम्मूकश्मीर की पारुल जसरोटिया ने पहली पर्वतारोही बन कर क्षेत्र का नाम रोशन किया है. वहीं दूरदराज के गांवों में महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उक्त महिला का यह भी कहना है कि यदि सरकारी योजनाओं की पूरी जानकारी हम महिलाओं को भी मिले, तो लघु उद्योग लगा कर हम अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकती हैं.

ताकि हौसला बना रहे

जम्मू के लोग हस्तकला, चित्रकला और चीड़ की लकड़ी से खिलौने बनाने में माहिर हैं. उन के इन उत्पादों की मांग भारत में ही नहीं, विदेशों में भी है. जम्मू के सांबा और कठुआ जिलों में ‘बेटी बचाओ,

बेटी पढ़ाओ’ अभियान पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लेकिन छोटी उम्र में शादी और भ्रूणहत्या के मामले भी इसी जिले में ज्यादा पाए गए हैं.

स्वच्छ भारत अभियान के तहत घरघर में शौचालय का अन्य राज्यों के मुकाबले जम्मूकश्मीर में सब से कम निर्माण हुआ है. यहां आज भी महिलाएं खुले और सुनसान जगह पर शौच के लिए जा रही हैं. बरसात में गांव की महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जम्मू क्षेत्र के इस 70 फीसदी हिस्से की बस्तियों में रह रही महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की बहुत जरूरत है. सरकार के साथसाथ समाज को भी इन के प्रति अच्छी सोच रखने की जरूरत है, ताकि इन में घुटनभरे माहौल से जूझने की ताकत आ सके.

लव इन सिक्सटीज स्पेशल : एज डिफरैंस लव नहीं रहा टैबू

बंगलादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का मानना है कि जब भी वे यह कहती हैं कि प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती तो इस का अर्थ यह निकाला जाता है कि वे 60 वर्ष के बुजुर्ग और 20 वर्षीय लड़की के बीच प्रेमप्रसंग की बात को जायज ठहरा रही हैं, जबकि उन के इस कथन को दूसरे माने के साथ भी समझा जा सकता है जिस की ओर कभी किसी का ध्यान ही नहीं जाता, यानी प्यार जब होता है तो उस समय उम्र का हिसाबकिताब नहीं लगाया जाता है. सच यह है कि  प्यार सोचसमझ कर शायद ही कभी किया जाता हो.

बिहार के जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के धोवनघाट निवासी, 77 साल के प्रवासी भारतीय शत्रुघ्न प्रसाद सिंह कोलकाता से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जरमनी में नौकरी की और वहीं हैम्बर्ग क्रोनेनबर्ग में बस गए. कई वर्षों तक नौकरी करने के बाद वे कुछ साल पहले रिटायर हो गए. इसी बीच उन की पत्नी की मृत्यु हो गई.

पत्नी के गुजर जाने के सदमे और अकेलेपन से निकलने की कोशिश में फेसबुक के जरिए उन की दोस्ती जरमनी की 75 वर्षीय इडलटड्र हबीब से हुई. इडलटड्र हैमबर्ग की रहने वाली हैं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी. फेसबुक पर हुई दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई और फिर उन दोनों ने साथ जिंदगी गुजारने का फैसला कर लिया.

फिल्म अभिनेता व अभिनेत्रयों की जिंदगियों पर गौर करें तो ऐसे रिश्तों की भरमार है और उन का आज तक का सफल वैवाहिक जीवन दर्शाता है कि प्यार के लिए आपसी सामंजस्य, समझदारी, समर्पण व सम्मान जरूरी है न कि उम्र.

ऐसा नहीं है कि यदि आप को अपने से दोगुनी उम्र की लड़की या लड़के से प्यार हुआ है और आप उसे अपने भावी पार्टनर के रूप में देखते हैं तो आप मोह या इन्फैचुरेशन से ग्रस्त हैं. हां, कभीकभी यह मोह या इन्फैचुरेशन हो भी सकता है पर समय के साथ आप समझ जाते हैं कि यह प्यार नहीं, बल्कि मात्र आकर्षण है. किंतु जब इस प्रकार के रिश्ते तमाम दिक्कतों व चुनौतियों को पार कर और सचाई को स्वीकार कर के भी अटूट बंधन में बंधने की इच्छा रखते हैं तब वह सच्चा प्यार कहलाता है. दरअसल, आसक्ति यानी मन का लगाव व प्यार में बहुत बारीक सा फर्क होता है, जिसे एज डिफरैंस वाले रिश्तों में समझदारी से संभालना जरूरी होता है.

बौलीवुड और हौलीवुड में ऐसे कई जोड़े

हिंदी फिल्मों के ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार ने जब अभिनेत्री सायरा बानो से विवाह किया था तो उन की उम्र 45 साल व सायरा बानो की 22 थी. 1966 में ये दोनों परिणयसूत्र में बंधे पर 1980 में इन के रिश्ते की डोर कुछ समय के लिए टूटी लेकिन जो प्यार व विश्वास इन के रिश्ते में था, उस ने इन्हें एक बार फिर हमेशा के लिए जोड़ दिया और तब से अब तक इन का रिश्ता बेहद मजबूत व मधुरता से चल रहा है.

हेमा मालिनी व धर्मेंद्र की जोड़ी भी एज गैप रिलेशन की सफलता बयान करती है. ‘शोले’ फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र को हेमा से प्यार हुआ और तब वे हेमा से 13 साल सीनियर थे. साथ ही पहले से शादीशुदा. पर बताने की जरूरत नहीं कि इन का वैवाहिक जीवन आज भी कायम है और ईशा व अहाना नाम की 2 बेटियां उस रिश्ते की परिणति हैं.

ऐसा ही संजय दत्त व मान्यता का रिश्ता है. संजय मान्यता से 19 साल बड़े हैं. पर इस का प्रभाव कहीं भी इन के रिश्ते पर पड़ा नहीं दिखता. करीना कपूर ने भी अपने से 11 साल बड़े सैफ अली खान से शादी की. हालांकि सैफ अली खान के लिए एज गैप रिलेशन कोई नई बात नहीं थी. उन की पहली पत्नी अमृता सिंह शादी के समय 33 साल की थीं जबकि सैफ 21 के. 13 साल तक इन का रिश्ता चला पर फिर टूट गया. हालांकि रिश्ता टूटने का कारण उम्र कतई नहीं थी.

इसी तरह बौलीवुड दिग्गज अभिनेता कबीर बेदी ने अपनी दोस्त परवीन दुसांज से चौथी शादी की. कबीर जहां 70 पार कर चुके हैं वहीं परवीन 41 पार कर चुकी हैं.

हाल ही में मौडल व ऐक्टर 53 वर्षीय मिलिंद सोमण ने अपनी गर्लफ्रैंड अंकिता कुंवर से शादी रचा ली. 27 वर्ष की अंकिता असम की रहने वाली हैं जबकि मिलिंद मराठी हैं. बता दें अंकिता एक एयरलाइन में केबिन क्रू एग्जिक्यूटिव थीं.

इमरान खान जैसे पाकिस्तानी लोकप्रिय क्रिकेट खिलाड़ी के बारे में जब खबर आई कि उन्होंने 21 साल की लड़की के साथ ब्याह रचा लिया तो दक्षिण एशिया सहित दुनियाभर के देशों के समाजों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. अमेरिका के प्रैसिडैंट डोनाल्ड ट्रंप और उन की पत्नी मेलानिया की उम्र में 24 साल का अंतर है.

हौलीवुड में अपने से बड़ी उम्र की महिला से प्यार व शादी का ट्रैंड शुरू करने का श्रेय डैमी मूर व एशन कूचर को जाता है. जब पौप सिंगर मडोना ने ऐक्टर गाय रिची से शादी की तब वो उन से 10 साल छोटा था. ये तमाम उदाहरण बताते हैं कि उम्र के बड़े फासलों को लांघ कर लोग परिणय बंधन में बंध रहे हैं और विवाह नामक संस्था की परिभाषा को बदल रहे हैं.

महत्त्व रखता है मैच्योर होना

मशहूर उपन्यासकार मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘‘उम्र कोई विषय होने के बजाय दिमाग की उपज है. अगर आप इस पर ज्यादा सोचते नहीं हैं तो यह माने भी नहीं रखती.’’ शायद यही वजह है कि आज 21वीं सदी के समाज के लिए एज डिफरैंस बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है. पर हां, आज भी इस प्रकार के संबंधों के लिए राह चुनौतीपूर्ण है. वहीं हमउम्र साथी के साथ रिश्ते में बंधना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है.

कंप्रोमाइज और अंडरस्टैंडिंग वहां भी चाहिए होती है. वैसे भी एक सफल रिश्ते के लिए किसी एक का मैच्योर होना महत्त्व रखता है, रूप से नहीं दिमाग से, ताकि रिश्ता पूरी समझदारी व धैर्य से निभाया जा सके. वहीं, हमउम्र कपल्स में अकसर ईगो प्रौब्लम ज्यादा देखी गई है कि वह नहीं झुकता तो मैं क्यों झुकूं. बस, यहीं से शुरू होती है रिश्तों में दरार. लेकिन एक मैच्योर साथी धैर्य से रिश्ते की कमजोरियों पर गौर करता है. आप का प्यार, आपसी सामंजस्य, विश्वास एकदूसरे की परवा व समझदारी. इन की नींव से खड़ा रिश्ता जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी आप का हाथ थामे रखता है. चूंकि उस की बुनियाद उम्र नहीं, आप का सच्चा प्यार होता है.

जिंदगी में यदि ऐसा कोई आप को मिलता है जिस से मिलने के बाद आप खुद को पूरा समझने लगते हैं. आप का माइंडसैट, नेचर, बिहेवियर, खूबियां व खामियां सब वह अच्छे से समझता है या कहें कि आप को लगता है कि उस के साथ सब मैच करता है, पर अगर कुछ मैच नहीं करता है तो वह है आप दोनों की उम्र. यदि इस को ले कर आप पसोेपेश में हैं तो यकीन मानिए कि मात्र इस आधार पर आप अपना सच्चा हमसफर खो रहे हैं.

क्या है वजह

अकसर देखा गया है कि पुरुष 60 वर्ष की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते कम उम्र की औरत के साथ प्यार में पड़ जाते हैं या पत्नी के गुजर जाने के बाद वे साथी की तलाश करने लगते हैं, बेशक चाहे वह एक दोस्त के रूप में ही क्यों न हो, ताकि उस के साथ वे अपनी छोटीबड़ी बातें शेयर कर अपने मन के बोझ को हलका कर सकें. जब यह साथ उन्हें भाने लगता है तो वे विवाह करने का फैसला ले लेते हैं.

काफी एज गैप होने के बावजूद स्त्री और पुरुष साथ जिंदगी गुजारने का फैसला क्यों लेते हैं, यह सवाल लोगों को चौंकाता रहा है. इस का जवाब लगातार ढूंढ़ा भी जा रहा है. कुछ लोग मानते हैं कि स्त्रियां अपने लिए आर्थिक सुरक्षा चाहती हैं और इसलिए वे उम्र के अंतर को नजरअंदाज कर देती हैं जबकि कुछ यह कहने से नहीं चूकते कि अधिक उम्र में पुरुष के मन में आकर्षण पक्ष जोर मारता है. बहरहाल, कोई सही रिजल्ट नहीं निकल सकता है क्योंकि हर इंसान की भावनात्मक जरूरतें अलगअलग होती हैं और इसलिए निर्णय का आधार भी अलग ही होता है.

मनोवैज्ञानिक पल्लवी शाह मानती हैं कि संबंधों में उम्र का फर्क  न के बराबर होता है. 60 वर्ष के बाद बहुत सी महिलाओं को ठोस व मजबूत सहारे के साथ जिस्मानी चाहत भी शादी के लिए प्रेरित करती है. स्त्री जिस शारीरिक संतुष्टि की चाह को युवावस्था में दबा लेती है वह उम्र बढ़ने के साथ स्त्रीग्रंथि के उभरने से तीव्र हो जाती है. ऐसा ही कुछ पुरुषों के साथ भी होता है. अधेड़ावस्था में पुरुष फिर से किशोर हो उठते हैं और वे शादी जैसी संस्था का सहारा ढूंढ़ते हैं.

आप मशहूर प्लेबैक सिंगर आशा भोंसले की 16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी गणपत राव भोंसले के साथ घर से पलायन कर, पारिवारिक इच्छा के खिलाफ शादी करने को क्या कहेंगे? गणपत राव लता मंगेशकर के यहां ड्राइवर थे. 1960 के आसपास इस विवाह का दुखांत हो गया. 1980 में आशा भोंसले ने राहुल देव बर्मन (आरडी बर्मन) से शादी की.

सायरा बानो कहती हैं, ‘‘हम दोनों ने उम्र के फर्क को कभी महसूस ही नहीं किया. उलटा, अब मुझे यह लगने लगा है कि दिलीप साहब मुझ से छोटे हैं. उम्र के इस पड़ाव पर आ कर एक बीवी होने के साथसाथ मैं उन की एक मां की तरह भी देखभाल करने लगी हूं.’’

क्यों हो आपत्ति

बड़ी सरलता और सहजता के साथ प्रेम की परिभाषा को परिवर्तित कर यह मान लिया जाता है कि प्रेम भावनाओं पर कभी कोई रोक नहीं लगाई जा सकती. प्यार किसी उम्र का मुहताज नहीं होता. हालांकि इस का सीधा अर्थ यह है कि हम उम्र के किसी भी मुकाम पर पहुंचने के बाद अपने साथी से उतना ही प्रेम और लगाव रख सकते हैं जितना हम संबंध के शुरुआती दौर में रखते थे.

एक वक्त था जब कपल्स में एज डिफरैंस एक टैबू माना जाता था. मैट्रो सिटीज को छोड़ दें तो काफी हद तक छोटे शहरों में आज भी इस बात को सुन कर परिवार व समाज की भौंहें तन जाती हैं. पर देखने में आया है कि एज गैप का प्यार भी बहुत बार सफल हुआ है. हालांकि आज भी समाज एक बार लड़के का उम्र में बड़ा होना तो स्वीकार कर लेता है पर लड़की का उम्र में बड़ा होना उस की नाराजगी का सबब बन ही जाता है.

समय आ गया है कि सारी वर्जनाओं को तोड़ते हुए, बस, इतना समझ लिया जाए कि प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है जो 2 लोगों को बहुत गहराई से आपस में जोड़ता है.

अगर कोई बड़ी उम्र का पुरुष या स्त्री किसी के प्रति अपनी भावनाओं का इजहार करता है या उसे अपने प्रेम का एहसास करवाता है तो हमें उन की आपसी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए. बूढ़ा होने, चेहरे पर झुर्रियां पड़ने और बाहरी सुंदरता खो जाने के बाद भी अगर वे एकदूसरे के लिए प्यार महसूस करते हैं तो निश्चित ही उन का प्रेम सच्चा है और फिर ऐेसे में उम्र तो वैसे भी माने नहीं रखती.

लव इन सिक्सटीज स्पेशल : 60 के बाद रोमांस का पुनरागमन

75 वर्ष के प्रेमनारायण साहू भोपाल के बागसेवनिया इलाके में रहते हैं और इस उम्र में भी वे खासे फिट हैं. उन की शादी 50 साल पहले कलावती साहू से हुई थी. वैवाहिक जीवन ठीकठाक गुजरा और उन के 3 बेटे हुए जो शादी के बाद सैटल हो गए. भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भोपाल से आर्टिजन के पद से रिटायर होतेहोते उन्होंने भोपाल में ही 3 मकान ले लिए थे जिन की कीमत अब डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक है.

प्रेमनारायण ने मेहनत व ईमानदारी से नौकरी की और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां एक आदर्श गृहस्थ की तरह निभाईं. अब से 30 साल पहले कलावती उन्हें तनहा छोड़ कर बेटे के साथ रहने लगीं तो अकेलापन उन्हें काटने को दौड़ने लगा. मगर तनहाई और पारिवारिक अनदेखी के शिकार प्रेमनारायण टूटे या झुके नहीं और न ही उन्होंने ओम जय जगदीश हरे… या जय हनुमान ज्ञान गुण सागर…जैसे धार्मिक भजन सुने बल्कि उन्होंने सुने, न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन… जैसे रोमांटिक गाने.

4 दिसंबर, 2017 को कलावती ने बागसेवनिया थाने में जा कर पति के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. उन्होंने इस का विरोध किया तो पति ने उन्हें मारपीट कर भगा दिया. बकौल कलावती, उन के पति के नाम 3 मकान हैं जिन में से एक वे अपनी दूसरी कथित पत्नी के नाम कर चुके हैं और दूसरा करने वाले हैं. लिहाजा, रिपोर्ट दर्ज कर उचित कार्यवाही की जाए.

पुलिस वालों के लिए मामला दिलचस्प था और उन लोगों के लिए भी जिन्होंने यह सुना कि एक 75 वर्षीय बुजुर्ग ने अपनी नौकरानी से शादी कर ली है. प्रेमनारायण की कथित नौकरानी सुलोचना (बदला नाम) की उम्र लगभग 60 साल है और 15 साल से वह उन के यहां नौकरी कर रही थी. तभी उन्हें उस से प्यार हो गया और उन्होंने दीनदुनिया की परवा न करते हुए सुलोचना से शादी कर ली.

कलावती ने रिपोर्ट लिखाई तो प्रेमनारायण आगबबूला हो गए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने कोई दूसरी शादी नहीं की है, पत्नी मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. रही बात मकानों की, तो वे मेरे हैं और यह मेरा हक है कि उन्हें मैं जिसे चाहूं उसे दूं.’’

फसाद या विवाद रोमांस का ज्यादा था या जायदाद का, यह तय कर पाना मुश्किल नहीं, लेकिन एक बात जो पुरजोर तरीके से उजागर हुई वह यह है कि 70 की उम्र के बाद भी रोमांस होना हैरत की बात नहीं है और प्यार हो जाने के बाद आम प्रेमियों की तरह पुरुष किसी की परवा नहीं करता.

दिल तो है दिल…

बढ़ती यानी भजनपूजन और तीर्थयात्रा की उम्र में रोमांस अब कतई हैरत की बात नहीं रह गया है, आएदिन उजागर होते मामले इस सच की पुष्टि करते हैं.

ऐसे मामलों में एक अच्छी और गौरतलब बात यह है कि पुरुष अपने अफेयर को नकारते नहीं हैं. जाहिर है बात दिल की है जो कभी भी किसी पर भी आ सकता है. लंबे वैवाहिक और पारिवारिक जीवन के बाद ऊब के शिकार हो चले पुरुष अगर अपनी हमउम्र या उम्र में कुछ छोटी महिला से प्यार कर बैठते हैं तो वे कोई गुनाह नहीं करते. तय है कोई खालीपन उन के भीतर समा गया होता है जिसे भरने के लिए कोई महिला आ जाती है, तो वे जवान हो उठते हैं.

यह महिला कोई भी हो सकती है. मसलन, कोई पुरानी परिचित सहकर्मी या बेसहारा जो एक भावनात्मक जरूरत बन जाती है. ऐसे में पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों के कोई माने उन के लिए नहीं रह जाते और वे उन बंदिशों से बगावत कर बैठते हैं जिन के कभी खुद हिमायती हुआ करते थे.

नैतिकता की बातें भी इन पुरुषों को बेमानी लगती हैं, खासतौर से विधुरों को, जब संतानें अपना घर बसा कर अलग रहने लगती हैं और दोस्त व नातेरिश्तेदार कहने भर को बचते हैं. ऐसे में कोई आती है और उन का दिल धड़काने लगती है तो उन्हें जिंदगी के माने फिर मिलने लगते हैं और वे सही मानों में जिंदगी फिर से जीने लगते हैं.

दिग्विजय सिंह से ली प्रेरणा

बढ़ती उम्र के अफेयर या रोमांस अब बड़े शहरों के पौश इलाकों तक ही सिमट कर नहीं रह गए हैं, बल्कि ये गांवदेहातों में भी देखने में आने लगे हैं. इन्हें देख कर लगता है कि प्यार में बंधन या वर्जनाएं युवा ही नहीं, बल्कि बुजुर्ग भी तोड़ने लगे हैं.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ के परवट गांव के 75 वर्षीय बादू भूरिया अपनी 70 वर्षीया प्रेमिका भूरीबाई मकवाना को ले कर थाने पहुंचे. उन का मकसद था अपने अफेयर की स्वीकारोक्ति जिस से भूरीबाई का पति या ससुराल वाले कोई फसाद खड़ा न करें. बादू और भूरी ने अपने बयान में माना कि वे दोनों प्यार करते हैं और अब साथ रहना चाहते हैं. पुलिस ने बयान दर्ज कर लिए तो दोनों खेतों में जा कर मजदूरी करने लगे.

बयान दर्ज करते मीडियाकर्मियों की चुहलबाजी के दौरान जब बादू से किसी ने इस उम्र में प्यार और शादी के बाबत सवाल किया तो वे बोले, ‘‘जब दिग्विजय सिंह इतने बड़े नेता हो कर बड़ी उम्र में शादी कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते,’’ यानी दिग्विजय सिंह अब रोमांस के मामले में भी लोगों के आदर्श बनने लगे हैं.

साल 2018 की पहली तारीख को जब ये प्रेमी थाने से लौटे तो खासे खुश और बेफ्रिक थे. आदिवासी समुदाय का एक रिवाज यह भी है कि अगर पत्नी अपने पति को छोड़ कर किसी दूसरे के साथ रहना चाहे तो उस के दूसरे पति को पहले वाले पति को वह राशि देनी पड़ती है जो शादी के वक्त पति ने पत्नी को या उस के परिवार वालों को दी थी. गुजरात की रहने वाली भूरीबाई को पहले पति ने सालों पहले 3,500 रुपए दिए थे, जो अब बादू देने को तैयार है.

भूरीबाई की परेशानी पहले पति का शराबी होना थी जो नशे में उस से मारपीट करता था. उस की हरकतों से आजिज आ कर वह मायके आ गई थी. एक साल पहले उस की मुलाकात अपनी ही तरह कपास बीनने वाले बादू से हुई और दोनों में प्यार हो गया जो अब शादी में तबदील होने जा रहा है. भूरीबाई किसी किशोरी की तरह यह बताने से नहीं चूकती कि अगर बादू भी पहले पति की तरह शराब पिएगा तो वह उसे भी छोड़ देगी.

हर्ज क्या

सीनियर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सार्वजनिक जीवन जीते हुए 70 साल की उम्र के बाद प्यार और शादी कर सकते हैं तो मध्यवर्गीय गृहस्थ प्रेमनारायण साहू को भी पत्नी के चले जाने पर प्यार हो जाना कतई हैरत की बात नहीं. इसी तरह बादू भूरिया को प्यार हो गया तो बात न तो हैरत की है और न ही हर्ज की.

ये तीनों पुरुष अलगअलग परिवेश के हैं, फिर भी दिल और दिल्लगी के मामले में एक हैं. तीनों ने ही दिल की बात सुनी और अपनी प्रेमिका को पत्नी का दर्जा दिया. ऐसे कई मामले अब आएदिन उजागर होने लगे हैं जिन्हें देखसमझ आता है कि इस उम्र में रोमांस हर्ज की बात नहीं, बल्कि युवावस्था की तरह एक जरूरत है.

बदलते समाज के ये नए दस्तूर हैं कि बुजुर्ग बुरी तरह उपेक्षा के शिकार हैं. जिंदगीभर वे बैल की तरह अपनी जिम्मेदारियां ढोते हैं, बुढ़ापे में उन्हें भावनात्मक असुरक्षा घेर लेती है. ऐसे में जहां से विश्वसनीय तरीके से इन्हें सुरक्षा का आश्वासन मिलता है वहां वे टूट जाते हैं या प्यार कर बैठते हैं, बात एक ही है.

इस उम्र में भी प्यार करना इन का हक है. इन से आदर्शों व सामाजिक मूल्यों को निभाने की उम्मीद की जाए तो यह इन के साथ ज्यादती ही है जिन से हर स्तर पर लोग बगावत कर रहे हैं. उक्त तीनों मामले इस के उदाहरण हैं.

सावधानी भी जरूरी

जिस्मी जरूरतें इस उम्र में आ कर खत्म नहीं हो जातीं. आमतौर पर हिंदुस्तानी पत्नियां 60 वर्ष की उम्र के बाद तो दूर बल्कि पहले से ही पति से शारीरिक संबंध बनाना बंद कर देती हैं, जिस से पति खीझने लगते हैं और अपनी इस जरूरत को पूरी करने के लिए वे इधरउधर ताकझांक करने लगते हैं.

दिक्कत तब खड़ी होती है जब वे अपने से काफी छोटी उम्र की लड़कियों की तरफ शारीरिक आकर्षण के चलते झुक जाते हैं. यह बेमेल रिश्ता अकसर युवती के स्वार्थ की देन होता है. भोपाल के शाहपुरा थाने के एक सब इंस्पैक्टर की मानें तो नए भोपाल के पौश इलाकों के अधिकांश बंगलों में बुजुर्ग अकेले ही रहते हैं, उन की संतानें या तो दूसरे शहरों में नौकरी कर रही हैं या फिर विदेशों में बस गई हैं.

इस सब इंस्पैक्टर के मुताबिक, कई बुजुर्ग लड़कियों के चक्कर में फंस जाते हैं जिन की नजर इन के पैसों पर रहती है. चूंकि ऐसे बुजुर्गों के पास पैसों की कमी नहीं होती, इसलिए वे लड़कियों पर पैसा खूब लुटाते हैं, लेकिन बाद में पछताते भी हैं. वजह कई बार लड़कियां ब्लैकमेलिंग करने लगती हैं. यह ब्लैकमेलिंग इमोशनल भी हो सकती है.

इस तरह की लड़कियां नौकरानियां भी होती हैं और सेल्सगर्ल्स भी, जिन के दिल में प्यार नहीं, बल्कि फरेब होता है. दिक्कत यह है कि ठगे जाने के बाद ये बुजुर्ग रिपोर्ट भी नहीं लिखा पाते, क्योंकि समाज में उन की खासी इज्जत जो होती है.

वैसे भी, 70 साल का कोई बूढ़ा 20-21 साल की लड़की से प्यार करे, यह बात गले नहीं उतरती, क्योंकि लड़की किसी बूढ़े से प्यार नहीं कर सकती. उसे प्यार में जो चाहिए होता है वह हमउम्र युवा से ही मिल सकता है. हां, अगर उस का मकसद पैसा ही है तो कहा जा सकता है कि तनहा हो रहे बूढ़े उन के लिए सौफ्ट टारगेट ही होते हैं, प्रेमी नहीं.

यह बात अधिकांश बूढ़े भी समझने लगे हैं, इसलिए वे प्यार वहीं कर पाते हैं जहां उम्र लगभग बराबरी की हो और प्रेमिका का सामाजिक स्तर भी उन की बराबरी का हो. प्यार में जरूरी नहीं कि वे शादी करें ही, बल्कि कई बूढ़े तो पूरे जोशोखरोश से, चोरीछिपे ही सही, रोमांस कर जिंदगी का उत्तरार्ध जिंदादिली से जी रहे हैं.

लव इन सिक्सटीज स्पेशल : 60 की उम्र के बाद कैसे कायम रखें सैक्स

शादी के बाद जब पतिपत्नी एकसाथ अपने अंतरंग क्षणों में होते हैं तो उस समय उन के बीच जिस्म प्रधान होता है, एकदूसरे को पाने की इच्छा, एकदूसरे में खो जाने की चाहत होती है. उस समय दिल है कि मानता नहीं वाली हालत होती है. वे दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर, बस, एकदूसरे में आकंठ डूबे रहना चाहते हैं. एकदूसरे के जिस्म के प्रति आकर्षण तो होता ही है, साथ ही होता है समर्पण का भाव. फिर धीरेधीरे जीवन यथार्थ पर आता है.

जीवन में बच्चे आते हैं, जिम्मेदारियां बढ़ने लगती हैं. प्यार व समर्पण धीरेधीरे हवा होने लगता है. ऐसे में अपने प्यार को बचाए रखना दोनों के लिए ही चुनौती होती है. समझदार दंपती इस दौर में भी अपनी भावनाओं को समाप्त नहीं होने देते और सैक्सुअल जीवन का आनंद लेते रहते हैं.

60 वर्ष की उम्र तक आतेआते तो अधिकांश जोड़े घरगृहस्थी में इतना रम जाते हैं कि उन का सैक्सुअल जीवन समाप्तप्राय हो जाता है. वे पारिवारिक जिम्मेदारियों में इस कदर डूब जाते हैं कि अपने सैक्ससुख के बारे में तो उन्हें सोचने का वक्त ही नहीं मिलता. कुछ तो इस उम्र तक दादादादी और नानानानी भी बन जाते हैं और मन में भाव आ जाता है कि अब इस उम्र में क्या सैक्ससुख भोगना.

परंतु जिस तरह पेट की भूख के लिए खाने की जरूरत होती है उसी तरह जिस्म की भूख को शांत करने के लिए सैक्स की जरूरत होती है. कई बार जब दोनों में से किसी की भी घर में संतुष्टि नहीं हो पाती तो वे बाहर का रुख करते हैं.

सैक्स की जरूरत को समझें

आमतौर पर सैक्स के बारे में महिलाएं कुछ शांत जबकि पुरुष कामुक और जिज्ञासु रहते हैं. घरों में महिलाएं उम्र और जिम्मेदारियां बढ़ने के साथसाथ इस ओर से दूर होने लगती हैं और जब पति रोमांस व सैक्स की ख्वाहिश जाहिर करते हैं तो वे कहती हैं, ‘अरे, इस उम्र में आप को जवानी सूझ रही है. अब अपनी तो उम्र निकल गई, बच्चों को खेलनेखाने दो.’

ऐसा व्यवहार कर के आप उन की भावनाओं का मजाक न उड़ाएं बल्कि आप को यह समझना होगा कि यह तो एक तरह की भूख है जिस की पूर्ति पति अपनी पत्नी से ही करेगा. इसलिए इस बात को प्यार से हैंडिल करें और जितना हो सके उन्हें सहयोग करें.

ध्यान रखें कि प्यार और सैक्स में उम्र की कोई डैडलाइन नहीं होती. अच्छा है कि जीवन के इस फेज का आप खुद भी आनंद लें और पति को भी लेने दें. बच्चे यदि बाहर हैं तो भी आजादी से अपनी सैक्सुअल लाइफ को एंजौय करें.

भावनाओं को समझें

शादी के बरसों बाद पतिपत्नी एकदूसरे के जिस्म से परिचित हो चुके हैं, इसलिए अब जिस्म प्रधान नहीं रहता. शादी के शुरुआती दिनों में तो रोटी बनाती पत्नी को भी पति प्यार से खींच कर ले जाता है और पत्नी खुश हो कर खिंची चली जाती है परंतु 60 वर्ष की उम्र में पत्नी को इस तरह खींच कर बैड पर नहीं ले जाया जा सकता.

ऐसे में आप दोनों एकदूसरे की भावनाओं को समझ कर, छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर और प्यारभरी बातों से एकदूसरे के मन में प्यार व समर्पण का भाव जगाएं ताकि सैक्स की इच्छा जाग्रत हो जाए और इस अवस्था में भी एकदूसरे के लिए कुछ करगुजरने का भाव दोनों के मन में रहे.

ध्यान रखें जिस्म कितना ही बूढ़ा हो जाए, मन हमेशा जवान रहना चाहिए. ‘बागबान’ फिल्म में अमिताभ बच्चन हेमा मालिनी से जिस रोमांटिक अंदाज में बातचीत करता है उस से भला किस के मन में एकदूसरे के प्रति प्यार की भावना जाग्रत नहीं होगी.

समय निकालें

चाहे आप संयुक्त परिवार में रहें या एकाकी परिवार में, सैक्स और रोमांस के लिए कब व कैसे समय निकालना है, यह आप को ही तय करना है. 50 वर्षीया अणिमा की बेटी 11वीं में है. वह कहती है, जब भी हम में से किसी का मूड होता है, मेरे पति सुबह से मेरा काम जल्दी करवा देते हैं और फिर उन के औफिस जाने से पूर्व हम अपने लिए वक्त निकालते हैं.

रोमांस के बिना पति के साथ का मजा कैसा? इस अवस्था तक बच्चे भी बड़े हो जाते हैं. इसलिए पतिपत्नी के लिए सैक्सुअल संबंधों को बनाए रखना वास्तव में चुनौती से कम नहीं होता. खुशहाल घरेलू जिंदगी और प्यार की गरमाहट को बनाए रखने के लिए सैक्स के लिए समय निकालना जरूरी है.

खुद पर दें ध्यान

अकसर महिलाएं उम्र का रोना रो कर अपने प्रति लापरवाह हो जाती हैं. बेतरतीब बाल, अस्तव्यस्त वस्त्र, निस्तेज चेहरा लिए रहती हैं. ऐसा लगता है मानो सारे जमाने का दुख उन्हें ही है. इस की अपेक्षा अपने प्रति सचेत हो कर अपनेआप को कुछ समय दे कर व्यवस्थित और स्मार्ट रहें ताकि आप को देख कर वे हमेशा कुछ करगुजरने को तैयार रहें.

संतुलित भाषा का प्रयोग करें

रीना और उस के पति ने बड़ी मुश्किल से बेटे के ट्यूशन जाने के बाद अपने लिए वक्त निकाला. ऐनवक्त पर रीना ने पति से मोबाइल के बारे में पूछा. पति झुंझला कर बोला, ‘‘देख नहीं सकतीं, सामने ही तो पड़ा है.’’ रीना के पति का अच्छाभला मूड खराब हो

गया और बात बनतेबनते रह गई. सो, छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दें, एकदूसरे की भावनाओं का ध्यान रखें और कटाक्ष व व्यंग्यात्मक भाषा के स्थान पर एकदूसरे के लिए संतुलित व सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करें.

एकदूसरे से बात करें

सैक्स के बारे में आपस में खुल कर बातचीत करें. पुराने और उबाऊ तरीकों को छोड़ कर नए तरीके ईजाद करें ताकि सैक्स के प्रति आप की जिज्ञासा बनी रहे. आप चाहें तो इस बारे में इंटरनैट का सहारा लें. सैक्स को महज एक खानापूर्ति के स्थान पर एकदूसरे को खुश करने के लिए करें. दूसरी बातों की तरह सैक्स पर भी सहज व स्वाभाविक बातचीत करें. एकदूसरे की तारीफ करें, रोमांटिक बातें करें, एकदूसरे को सैक्स में अपनी पसंदनापसंद बताएं क्योंकि छोटीछोटी बातें ही अकसर टौनिक का काम कर के सैक्सुअल लाइफ के साथसाथ आप की शादीशुदा जिंदगी को भी हैल्दी बनाए रखती हैं.

कुल मिला कर 60 वर्ष की उम्र के बाद भी अपनी सैक्सुअल लाइफ को बचाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को ही कोशिश करनी चाहिए. हालिया रिसर्च से यह सिद्ध हो चुका है कि 50 वर्ष की उम्र के बाद भी हैल्दी सैक्सुअल लाइफ जीने वाले दंपती अधिक स्वस्थ व सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं. सैक्स अपनेआप में एक बहुत अच्छी ऐक्सरसाइज होने के साथसाथ आप के रिश्ते को भी मजबूती प्रदान करता है. सैक्स में उम्र को कभी बाधक न बनाएं और एक हैल्दी सैक्सुअल लाइफ का आनंद उठाएं.

दिल्ली सरकार के अधिकार

संवैधानिक अधिकारों के नाम पर केंद्र सरकार दिल्ली के उपराज्यपाल का अनुचित प्रयोग कर के अरविंद केजरीवाल की सरकार को उस दिन से तंग कर रही थी जिस दिन से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, मई 2014 के आम चुनावों के बाद हुए दिल्ली के चुनावों में 70 में से 67 सीटें पा कर विधानसभा में काबिज हो गई थी. लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केजरीवाल की जीत कहीं गहरे खा गई. उन्होंने संविधान में उपराज्यपाल को मात्र निगरानी के लिए दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग करा कर उपराज्यपाल को चौकीदार से मालिक बना दिया था.

यह भगवा सोच का पुराना तरीका था. हमारा पौराणिक इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जहां सत्ता पर पंडित या गुरुओं का इतना अधिक कंट्रोल होता था कि राजा असहाय रह जाता था. नरेंद्र मोदी उन्हीं पौराणिक गुरुओं की तरह उपराज्यपाल अनिल बैजल के माध्यम से दिल्ली सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर रहे थे ताकि अरविंद केजरीवाल खुद भारतीय जनता पार्टी के चरणों में झुक जाएं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की सही व्याख्या करते हुए नरेंद्र मोदी और अनिल बैजल के पर अब कुतर डाले हैं.

अरविंद केजरीवाल कुशल प्रशासक हैं या कुशल ऐक्टिविस्ट, कहना कठिन है पर दिल्ली का शासन, जो अरविंद केजरीवाल के हाथों में आया है, खासा ठीक चला है. लोगों को जो शिकायतें हैं वे उन के काम के तरीकों से हैं, काम से नहीं. महल्ला क्लिनिक, राशन, शिक्षा आदि के मामलों में अरविंद केजरीवाल की नीतियां लीक से हट कर रही हैं और लोगों को उन से शिकायत नहीं है. इसीलिए वे विधानसभा उपचुनाव जीतते रहे, चाहे नगर निगम पर कब्जा न कर पाए हों.

राजनीति में अरविंद केजरीवाल की आप जैसी छोटी पार्टियों के होने से बहुत फायदे होते हैं क्योंकि इन से बड़ी पार्टियों पर अंकुश बना रहता है, उन का अहंकार टूटता रहता है. अखिल भारतीय बड़ी पार्टियों को शहरों की गलियों और आम लोगों की कठिनाइयों का एहसास नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की सरकार को अधिकार दे कर देश में लोकतंत्र को बचाने का सही कदम उठाया है. उम्मीद करें कि नरेंद्र मोदी अब कोई और बहाना न बनाएं.

ई कौमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी में है सरकार

ई कौमर्स कंपनियों को लेकर उपभोक्ताओं की बढ़ती शिकायतों के बाद अब इन कंपनियों को लेकर सरकार अपना रुख सख्त करने जा रही है. जिस तेजी से औनलाइन का बाजार बढ़ा है, उतनी ही तेजी से इन कंपनियों के खिलाफ शिकायतों का दायरा भी बढ़ा है. उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार इन कंपनियों के खिलाफ शिकायतों के मामले पिछले एक साल में 42 प्रतिशत बढ़े हैं.

इस कारण अब सरकार मौनसून सत्र उपभोक्ता संरक्षण विधेयक लाने की तैयारी में हैं. इसके साथ ही मौनसून सत्र के बाद नए नियमों के जरिए इन कंपनियों पर अंकुश लगाने की तैयारी चल रही है. इसके साथ ही वाणिज्य मंत्रालय ने एक थिंक टैक भी बनाया है, जो इस मामले में दिशानिर्देश तय करेगा. नए नियमों के तहत गलत या खराब सामान बेचने पर दो सप्ताह में कंज्यूमर को रिफंड देना होगा और 30 दिन में उसकी शिकायत दूर करनी होगी.

सामान लौटाना होगा आसान

इसके तहत अब सिर्फ एक मेल आईडी पर शिकायत नहीं दर्ज की जाएगी. बल्कि स्टेप बाई स्टेप कंज्यूमर कहां शिकायत करे इसकी पूरी जानकारी देनी होगी. नए नियमों में टूटा हुआ सामान, गलत, नकली या जैसा विवरण वेबसाइट पर दिया था, वैसा सामान नहीं होने पर उपभोक्ता को उसे लौटाने का अधिकार होगा. इस स्थिति में उपभोक्ता को 14 दिन में रिफंड देना होगा. कंपनी को वेबसाइट पर सामान लौटाने की पौलिसी भी प्रदर्शित करनी होगी.

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पंजीकरण के नियम होंगे सख्त

इसके अलावा ई कौमर्स कंपनियों के पंजीकरण के नियम भी सख्त किए जा रहे हैं और रजिस्टर से पहले कंपनी को पूरी जानकारी साइट पर देनी होगी. कंज्यूमर की शिकायतों के लिए एक डायरेक्ट नंबर मुहैया कराना होगा. नए नियमों के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया को बहुत सरल किया जाएगा और कोर्ट के चक्कर नहीं लगाने होंगे.

अब तक प्रोडक्ट्स के ऊपर उसकी कीमत, मैन्यूफैक्चर की तारीख और बाकी जानकारी लिखी रहती थी, लेकिन अब वेबसाइट पर भी पूरी जानकारी देनी होगी. इसके साथ ही कंपनियों को बेजे जा रहे प्रोडक्ट की पूरी जानकारी देनी होगी. प्रोडक्ट की एमआरपी, कहां प्रोडक्ट बना है, सेल प्राइस है और औरिजिनल प्राइस बतानी होगी.

ई-कौमर्स कंपनियों की वेबसाइट पर इस समय केवल विक्रेता का नाम होता है. नए नियमों के तहत सामान मुहैया कराने वाले विक्रेता की पूरी जानकारी देनी होगी. औनलाइन कंपनी थर्ड पार्टी कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती है. कोई सामान जाली निकलता है या उसकी क्वालिटी ठीक नहीं होती है, तो यह ई-कॉमर्स और विक्रेता दोनों की जिम्मेदारी होगी. अभी तक कंपनियां यह कहकर पल्ला झाड़ लेती थी कि वह सिर्फ प्लेटफार्म मुहैया कराती हैं. सामान की गुणवत्ता को लेकर उनकी जिम्मेदारी नहीं है.

नए नियमों के मुताबिक किसी सामान को बढ़ा चढ़ाकर पेश करना या झूठे ग्राहकों के जरिए समीक्षा लिखना कानूनी तौर पर अनुचित वाणिज्यिक गतिविधि के दायरे में आएगा. प्रतिस्पर्धी से मुकाबले के लिए सामान को नए या गलत नाम से बेचना भी कानूनी तौर पर अपराध के दायरे में होगा.

अब फेसबुक कंटेंट पर होगी 7500 समीक्षकों की नजर, ये है वजह

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आजकल लोग फेक न्यूज और आपत्तिजनक पोस्ट्स के जरिए आवाम को भड़काने का काम कर रहे हैं. इस तरह की खबरों पर लगाम लगाने के लिए अब फेसबुक ने बड़ा कदम उठाने का निर्णय लिया है. फेसबुक अब 7,500 से अधिक कंटेंट समीक्षक तैयार कर रही है, जो नफरत फैलानेवाले विचारों, आतंकवाद और बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी सामग्रियों की समीक्षा उसके प्लेटफौर्म पर करेंगे. सामग्री समीक्षक कर्मचारियों में पूर्णकालिक और ठेके के कर्मचारी शामिल हैं. इसमें फेसबुक के भागीदार कंपनियों के कर्मचारी भी होंगे, जो दुनिया के सभी टाइम जोन में 50 भाषाओं में काम करेंगे.

फेसबुक के परिचालन उपाध्यक्ष एलेन सिल्वर ने अपने एक ब्लाग पोस्ट के जरिए कहा, “भाषा दक्षता महत्वपूर्ण है और यह हमें चौबीस घंटे सामग्री की समीक्षा करने में सक्षम बनाती है. अगर कोई हमें किसी ऐसी भाषा की सामग्री की जानकारी देता है, जिसकी हम चौबीस घंटे निगरानी नहीं कर रहे हैं तो उसके लिए हम अनुवाद कंपनियों और अन्य विशेषज्ञों की सेवाएं लेते हैं, ताकि वे समीक्षा करने में सलाह दे सकें.”

सिल्वर ने आगे कहा, “इतने बड़े पैमाने पर सामग्री की समीक्षा पहले कभी नहीं की गई थी. आखिरकार इससे पहले ऐसा प्लेटफार्म भी तो नहीं था, जहां अलग-अलग भाषाओं के अलग-अलग देशों के ढेर सारे लोग आपस में संवाद करते हैं. हम इस चुनौती की विशालता और जिम्मेदारी को समझते हैं.”

इंडिया और इंग्लैंड के पहले टेस्ट में खाली रहेंगी पवेलियन की सीटें

काउंटी क्रिकेट के मुख्य कार्यकारी ने कहा कि भारत और इंग्लैंड के बीच टेस्ट सीरीज के लिए टिकटों की बिक्री कम होने का कारण गलत कार्यक्रम (शेड्यूल) है. एजबेस्टन टेस्ट के पहले दो दिन लगभग 10000 सीटें खाली रहेंगी. पहला टेस्ट मैच बुधवार को शुरू होगा जबकि तीसरा टेस्ट मैच ट्रेंटब्रिज में शनिवार को जबकि पांचवां टेस्ट मैच ओवल में शुक्रवार को शुरू होगा. काउंटी चाहती हैं कि टेस्ट मैच गुरुवार से शुरू हों.

भारत को पांचवें टेस्ट मैच के कुछ दिन बाद ही एशिया कप में खेलना है और इसलिए पांच मैचों की यह सीरीज छह सप्ताह में समेट दी गई.काउंटी के मुख्य कार्यकारी नील स्नोबौल ने ‘डेली टेलीग्राफ’ से कहा, ‘‘हम पर बुधवार को मैच शुरू किए जाने का प्रभाव पड़ा है. पहले और दूसरे दिन के टिकटों की उतनी बिक्री नहीं हो पायी जितनी हमें उम्मीद थी.’’

बता दें भारत और इंग्लैंड के बीच पांच टेस्ट मैचों की सीरीज एक अगस्त से शुरू होने जा रही है और टी-20 सीरीज और वनडे सीरीज खत्म हो चुकी, जिसमें भारत ने टी-20 में जीत हासिल की तो वहीं इंग्लैंड ने भारत को 2-1 हरा कर वापसी की थी.

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उल्लेखनीय है कि यह टेस्ट मैच इंग्लैंड का 1000वां टेस्ट मैच है. इंग्लैंड टेस्ट में इस मुकाम तक पहुंचने वाली पहली टीम है. अभी तक खेले 999वें टेस्ट मैचों में से इंग्लैंड ने 357 मैच जीते हैं जबकि 297 में उसे हार मिली है और 345 मैच ड्रौ रहे हैं. इंग्लैंड ने अपना पहला टेस्ट मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड (एमसीजी) में औस्ट्रेलिया के खिलाफ मार्च 1877 में खेला था. सिर्फ एजबेस्टन में ही इंग्लैंड ने अभी तक 50 टेस्ट मैच खेले हैं, जिसमें से 27 में उसे जीत मिली है जबकि आठ में हार और 15 मैच ड्रौ रहे हैं. इस मैदान पर इंग्लैंड ने अपना पहला मैच मई 1902 में खेला था.

117 मैच हुए हैं भारत और इंग्लैंड के बीच

इंग्लैंड और भारत के बीच पहला टेस्ट मैच जून 1932 में खेला गया था. इंग्लैंड और भारत के बीच अभी तक कुल 117 टेस्ट मैच हुए हैं जिसमें से इंग्लैंड 43 मैच जीतने में सफल रहा और भारत के हिस्से 25 में जीत आई है. घर में इंग्लैंड ने भारत के खिलाफ 30 टेस्ट मैचों में जीत दर्ज की है तो वहीं भारत के हिस्से छह मैचों जीत आई है. 21 मैच का कोई परिणाम नहीं निकला. एजबेस्टन ने दोनों देशों के बीच छह टेस्ट मैचों की मेजबानी की है जहां इंग्लैंड पांच मैच अपने नाम करने में सफल रहा है, जबकि एक ड्रौ रहा.

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