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शौचालय सस्ते में बनाएं कुछ इस तरह

भारत में खुले में शौच की समस्या आज भी चुनौती बनी हुई है, जबकि सरकार जोरजोर से खुले में शौच मुक्त होने के ढोल पीट रही है. सरकार शौचालय बनवाने के लिए रुपए भी देती है, लेकिन यह पैसे भ्रष्टाचार के चलते जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं पाते हैं. खुले में शौच की समस्या का सीधा सामना औरतों और लड़कियों को ज्यादा करना पड़ता है. इस दौरान किसी जंगली जानवर के हमले या जहरीले जीव के काटने से भी मौत होना आम बात है. कई बार उन्हें बलात्कार का शिकार तक होना पड़ता है.

बूढ़े और लाचार बीमार लोगों का बाहर शौच के लिए जाना और भी मुश्किल काम है. बारिश के दौरान या आपदा के समय में यह और भी भयावह हो जाता है. खुले में किए गए शौच से संक्रमण फैलने और बीमारियां होने का खतरा बना रहता है क्योंकि यहीं से मक्खियां मल से फैलने वाले कीटाणुओं को घरों और खाने की चीजों तक पहुंचा देती हैं.

लिहाजा, यह जरूरी हो जाता है कि गांवों या शहरों में खुले में शौच में कमी लाने के लिए शौचालय बनाने की सस्ती तकनीक का सहारा लिया जाए जिस के तहत बने शौचालय सस्ते होने के साथसाथ टिकाऊ भी हों. सोख्ता शौचालय सोख्ता गड्ढों वाले शौचालयों को महज 10 से 12 हजार रुपए में तैयार किया जा सकता है. इस में 2 गड्ढे बनाए जाते हैं. इन की गहराई सवा मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि मल को खाने वाले कीड़े जमीन के अंदर सवा मीटर की गहराई में ही पैदा होते हैं. ज्यादा गहराई होने पर कीड़े पैदा नहीं हो पाते हैं और जमीन के अंदर तक पीने का पानी खराब होने का खतरा भी बढ़ जाता है. प्रधानमंत्री के हाथों ‘गौरवग्राम पुरस्कार’ हासिल कर चुके स्मार्ट विलेज हसुड़ी औसानपुर के ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि अगर सोख्ता गड्ढों वाले शौचालय का इस्तेमाल ज्यादा समय तक करना चाहते हैं तो शौचालय की सीट के पास 2 गड्ढे बनाने चाहिए. इन्हें समयसमय पर साफ कर के 10 से 12 सदस्यों वाले परिवार के लिए सालों तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

इस तरह के शौचालयों को बनाते समय यह ध्यान देना चाहिए कि शौचालय के गड्ढे पीने के पानी के चांपाकल वगैरह से कम से कम 10 मीटर की दूरी पर हों.

2 गड्ढों वाले शौचालय व एक चबूतरे को बनाने के लिए 1,000 ईंटें, डेढ़ से 3 बोरी सीमेंट, 10 से 12 बोरी बालू, 4 फुट पाइप, एक लैट्रिन सीट व गड्ढा ढकने के लिए ढक्कन की जरूरत पड़ती है. इस तरह के शौचालय को बनाने के लिए सरकार से 12,000 रुपए की मदद भी मुहैया कराई जाती है. बांस से बने सस्ते शौचालय अगर सस्ते में शौचालय बनवाने की बात की जाए तो बांस से बने शौचालयों का सहारा ले सकते हैं. इन में बहुत कम खर्च आता है. गोरखपुर जिले के जंगल कौडि़या ब्लौक के कई गांवों में इस तरह की तकनीक से लोगों ने अपने घरों में शौचालयों को बनवाया है जिन में शौचालय की दीवारों और छत को बांस से बना कर उस पर मिट्टी का लेप लगा दिया जाता है और नीचे सीमेंट, ईंट के साथ चबूतरा बना कर लैट्रिन सीट बिठाई जाती है. इसी के बगल में गड्ढा बनाया जाता है. यह गड्ढा सोख्ता गड्ढों की तरह ही बनता है.

इस तरह की शौचालय तकनीक को ईजाद करने वाली संस्था गोरखपुर ऐनवायरनमैंटल ऐक्शन ग्रुप से विजय पांडेय बताते हैं कि गरीब परिवारों के लिए यह तकनीक बहुत ही कारगर है और इस में मुश्किल से 4,930 रुपए की लागत आती है जिसे कोई भी परिवार आसानी से अपने घरों में बनवा सकता है. यह जगह भी कम घेरता है. सैप्टिक टैंक शौचालय

ऐसे शौचालयों को भी कम लागत में बनाया जा सकता है लेकिन यह उस जगह के लिए ज्यादा मुफीद माना जाता है जहां सीवर लाइन हो या ढकी हुई नालियां हों. शौचालय बनाने के कारोबार से जुड़े राकेश बताते हैं कि सैप्टिक टैंक शौचालय को महज एक दिन में बना कर इस्तेमाल में लाया जा सकता?है. इस के लिए पहले से बने सीसी पाइप को जमीन के अंदर फिट किया जाता है और फिर उस के बगल में चबूतरा बना कर शौच जाने के लिए चालू कर दिया जाता है.

ऐसे शौचालयों से निकलने वाले पानी को खुले में नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इस से मच्छर, कीड़ेमकोड़ों के पनपने का डर बढ़ जाता है और खुले में पानी छोड़ने से आबोहवा पर बुरा असर पड़ सकता है. ऐसे शौचालय बनाने के लिए 15 से 17 हजार रुपए की लागत आती है. 5 से 10 सदस्यों वाले परिवारों के लिए इसे 50 साल तक शौच जाने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

भारत नेपाल बौर्डर : जारी है लड़कियों की खरीदफरोख्त

भारत नेपाल बौर्डर के लौकहा बीओपी इलाके से 24 मई, 2018 को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने 8 नेपाली नागरिकों को हिरासत में लिया तो एक बार फिर बौर्डर इलाके में मानव तस्करी का भंडाफोड़ हुआ. इन में 2 नौजवान दोनों देशों के बौर्डर की हिफाजत में लगे सुरक्षा बलों की आंखों में धूल झोंक कर अपने साथ 6 नेपाली लड़कियों को ले कर भारत की सरहद में घुस गए थे. भारतीय इलाके में घुसने के बाद वे सभी तेजी से बसस्टैंड की ओर बढ़ रहे थे कि उसी समय कुछ लोगों को उन के हावभाव पर शक हुआ. सीमा सुरक्षा बल को इस की जानकारी दी गई और उन लोगों को दबोच लिया गया.

उन दोनों नौजवानों से पूछताछ के बाद खुलासा हुआ कि वे मानव तस्करों के एक गैंग के लिए काम करते हैं और 6 नेपाली लड़कियों को दिल्ली पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी. इस के लिए उन्हें 2 लाख रुपए मिलने वाले थे. इस वारदात ने बौर्डर पर चाकचौबंद निगरानी का दावा करने वाले सुरक्षा बलों की भी पोल खोल दी.

सीमा सुरक्षा बल की 18वीं बटालियन के कमांडैंट अजय कुमार ने बताया कि दोपहर के तकरीबन डेढ़ बजे 8 लोग भारत की सरहद में दाखिल हुए और सभी लौकहा बसस्टैंड की ओर बढ़ने लगे. उसी समय सीमा सुरक्षा बल को सूचना मिली थी कि उन में से 2 नौजवान मानव तस्करी गिरोह के लिए काम करते हैं. तुरंत ही उन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया.

सख्ती से पूछताछ के बाद उन दोनों नौजवानों ने कबूल किया कि वे मानव तस्करी के धंधे में लगे हुए हैं. वे 6 लड़कियों को दिल्ली ले जा रहे थे. ये सभी लड़कियां नेपाल की राजधानी काठमांडू के सिंधुपाल चौक की रहने वाली हैं.

गिरफ्तार नौजवानों में से एक का नाम परमानंद चौधरी है और वह नेपाल के सप्तरी जिले के कनकपुरा गांव का रहने वाला है. दूसरे नौजवान का नाम दिनेश राम है और वह सप्तरी जिले के ही लक्ष्मीपुर गांव का रहने वाला है. सीमा सुरक्षा बल के अफसर बताते हैं कि साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप के बाद से वहां लड़कियों की तस्करी में काफी तेजी आई है. इस पर काबू पाना इसलिए मुश्किल हो गया है कि ज्यादातर लड़कियों के मांबाप की मरजी से ही उन्हें बेचा जा रहा है.

मानव तस्करी में लगे लोग लड़कियों के मांबाप, भाई वगैरह को बहलाफुसला कर इस बात के लिए राजी कर लेते हैं कि वे ही अपनी बेटियों को बौर्डर पार करा दें. इस के लिए उन्हें अलग से कुछ और पैसे दे दिए जाते हैं. इस से जहां एक ओर तस्करों का काम आसान हो जाता है, वहीं दूसरी ओर बौर्डर पर तैनात सुरक्षा बलों को शक नहीं हो पाता है. अगर सीमा सुरक्षा बल शक के आधार पर किसी से पूछताछ करता है तो लोग बता देते हैं कि वे अपनी बेटी को ले कर कुछ काम से भारत जा रहे हैं. लड़की भी कबूल करती है कि उस के साथ उस का पिता, भाई या चाचा है.

लड़की को उस के घर से लेने के बाद एजेंट लड़की को बौर्डर पार करने में मदद पहुंचाने वालों के हाथों में 10,000 से 12,000 तक रुपए थमा देते हैं. भारत और नेपाल के बीच 1751 किलोमीटर का खुला बौर्डर है और दोनों देशों के लोग बेरोकटोक इधर से उधर आतेजाते रहते हैं.

नेपालभारत की सरहद पर पिछले 12 सालों से ‘कैरियर’ (तस्करों के सामान को आरपार करने वाले को नेपाल में कैरियर कहा जाता है) का काम कर रहे एक नेपाली ने बताया कि वह पिछले 7-8 सालों से तस्करों के सामान को आरपार पहुंचाने का काम कर रहा है और कभी भी पकड़ा नहीं गया है. ऐसे लोगों को गांजा, अफीम, हेरोइन, विदेशी सामान समेत लड़कियों और बच्चों को इधरउधर पहुंचाने का काम सौंपा जाता है. इस के बदले में तस्कर उन्हें मोटी रकम देते हैं. साथ ही, वे पुलिस और कस्टम वालों से भी बचाते हैं.

भारतनेपाल बौर्डर पर मानव तस्करी की रोकथाम का काम करने वाली एक एनजीओ ‘भूमिका विहार’ की डायरैक्टर शिल्पी सिंह बताती हैं कि मानव तस्करी के मामले में बिहार का सरहदी इलाका ट्रांजिट पौइंट बन चुका है. इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 सालों में 519 बच्चे गायब हुए हैं, जिन में ज्यादातर लड़कियां थीं. शादी और नौकरी का लालच दे कर लड़कियों की तस्करी की जाती है. बच्चों को गायब करने के बाद उन्हें वेश्यालयों में पहुंचा कर देह धंधे के दलदल में धकेल दिया जाता है.

दोनों देशों के लोगों को आनेजाने के लिए पासपोर्ट, वीजा वगैरह की जरूरत नहीं पड़ती है. सीमा सुरक्षा बलों का मानना है कि सिक्योरिटी के लिए दोनों देशों के बीच कुल 26 चौकियां बनी हुई हैं और रोजाना तकरीबन 15,000 लोग आरपार होते हैं. पिछले कुछ समय से यह देखा गया है कि मानव तस्करों ने अपने काम को आसान बनाने के लिए 14-15 साल के बच्चों तक को भी तस्करी के धंधे में झोंक रखा है. बच्चेबच्चियों को कुछ लालच दे कर बौर्डर पार करने के लिए कहा जाता है और वे हंसतेखेलते बौर्डर पार कर जाते हैं. दिक्कत यह है कि खुला बौर्डर होने की वजह से दोनों देशों के लोगों के इधरउधर आनेजाने का कोई रिकौर्ड भी नहीं रखा जाता है. इस से यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि किस देश से कितने लोगों ने बौर्डर पार किया और कितने वापस लौटे.

मानव तस्कर लड़कियों को बौर्डर पार कराने के बाद पटना लाते हैं और उस के बाद रेलगाड़ी से उन्हें दिल्ली, मुंबई, गोवा, पुणे वगैरह बड़े शहरों में ले जाते हैं. पिछले साल पटना में 15 साल की मासूम नेपाली लड़की ने मानव तस्करों के चंगुल से भाग कर पुलिस को जो कहानी सुनाई, उस से पुलिस वालों के भी होश उड़ गए थे.

वह लड़की नेपाल के रौतहट जिले की रहने वाली थी. उस ने बताया कि वह अपने स्कूल में ही पढ़ने वाले किशन नाम के लड़के से प्यार करती थी और उस से ब्याह रचाना चाहती थी. किशन भी उस से शादी करने को तैयार था. किशन ने उसे समझाया कि उन के घर वाले उन की शादी नहीं होने देंगे, इसलिए घर से भाग कर ही शादी की जा सकती है.

उस लड़की पर मुहब्बत का भूत इस कदर हावी था कि वह बगैर कुछ सोचेसमझे किशन के साथ भाग कर पटना आ गई. किशन का असली चेहरा तब सामने आया, जब पटना पहुंचते ही उस का रंग ही बदल गया. लड़की ने पुलिस को बताया कि वह किशन से रोज कहती कि जल्दी शादी करें, पर वह 30-35 दिनों तक टालता रहा. उस के बाद तो जब भी वह शादी की बात कहती तो वह भड़क जाता.

उस के बाद किशन उस से गंदेगंदे काम करने के लिए कहता था. कुछ दिनों के बाद वह अपने साथ 2-4 लड़कों को ले कर आने लगा. वे उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे. लड़की किशन को अपनी मुहब्बत की दुहाई देती तो वह उसे पीटने लगता था. वह चुपचाप किशन की बातों को मानने के लिए मजबूर थी. लेकिन एक दिन मौका मिलते ही वह वहां से भाग निकली.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, मानव तस्करों ने अपने धंधे में तेजी लाने के लिए कई दलालों को भी लगा रखा है. दलाल लोकल लोग ही होते हैं, जिस से वे आमतौर पर गरीब बच्चों के मांबाप को यह समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उन के बच्चों को मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसे बड़े शहरों में नौकरी लगवा देंगे या ऊंची पढ़ाई का इंतजाम करवा देंगे. इस से अच्छा पैसा मिलेगा. गरीबी में सिर से पैर तक डूबे गरीब लोग अपने बच्चों की बेहतरी के लिए दलालों के चंगुल में फंस जाते हैं. कस्टम अफसर आरके सिंह कहते हैं कि तस्कर पढ़ाई, खाना और बेहतर जिंदगी देने का वादा करते हैं. नेपाल में भूकंप और गरीबी की दोहरी मार झेल रहे मांबाप आसानी से दलालों के झांसे में फंस जाते हैं. बेटी को बेहतर जिंदगी देने और कुछ रुपयों के चक्कर में उस की जिंदगी को बदतर बना रहे हैं. उस के बाद कभी भी न तो वह अपनी बेटी से बात कर पाते हैं और न ही कभी बेटी वापस लौट कर आती है.

वे दलालों के सामने रोतेगिड़गिड़ाते रहते हैं कि कम से कम बेटी से बात तो करा दें, पर दलाल उन्हें टका सा जवाब देते हैं कि बेटी सही जगह पर है और अच्छी जिंदगी जी रही है. किसी तरह की टैंशन न लें. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, वेश्यालयों के साथ ही डांस गर्ल, बार गर्ल और मसाज गर्ल के रूप में भी नेपाली लड़कियों को आसानी से खपाया जाता है. पटना, मुजफ्फरपुर, रांची, कोलकाता वगैरह शहरों के कई मसाज पार्लरों में नेपाली लड़कियां काम करती हुई आसानी से दिख जाती हैं.

भारत में सैक्स का यह कारोबार तकरीबन 4 लाख करोड़ रुपए का है. दिल्ली के जीबी रोड, कोलकाता के सोनागाछी, मुंबई के कमाठीपुरा, पुणे के पेठ, इलाहाबाद के मीरगंज, बनारस के शिवदासपुर, मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान, मुंगेर के श्रवण बाजार आदि रेड लाइट इलाकों में पिछले 3-4 महीने के दौरान नेपाली लड़कियों की तादाद तेजी से बढ़ी है.

पिछले साल पुणे, महाराष्ट्र के पेठ इलाके में छापामारी कर पुलिस ने तकरीबन 700 नेपाली लड़कियों को बरामद किया था. इस के बाद भी भारत सरकार लड़कियों की तस्करी को रोकने के नाम पर केवल दावे और वादे ही करती रही है. बिहार के किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जिलों के जरीए नेपाल से मानव तस्करी का धंधा फलफूल रहा है. ज्यादातर बच्चे गरीब और अनपढ़ परिवारों के ही गायब होते हैं. ऐसे बच्चों के मांबाप अपने बच्चे के गायब होने की शिकायत पुलिस थानों में दर्ज करने से घबराते हैं. उधर पुलिस महकमा भी मानव तस्करी को ले कर लापरवाह बना हुआ है.

संयुक्त राष्ट्र संघ की पिछले साल की रिपोर्ट साफतौर पर बता देती है कि नेपाल में किस कदर गरीबी है और भूकंप आने के बाद उस में कई गुना इजाफा हुआ है. रिपोर्ट यह भी कहती है कि भूकंप आने के बाद नेपाल में लड़कियों को भेड़बकरियों की तरह बेचा जा रहा है. भूकंप राहत शिविरों में 15 लाख से ज्यादा लड़कियों को जानवरों की तरह ठूंसठूंस कर रखा गया है और उन की हिफाजत का कोई पुख्ता इंतजाम ही

नहीं है. तकरीबन 40,000-45,000 तो ऐसी लड़कियां हैं जिन के परिवार के सभी लोग भूकंप में मारे गए. उन के सिर पर किसी का साया नहीं है. कुछ रुपयों और दो वक्त की रोटी के लिए वे कुछ भी करगुजरने को तैयार हो जाती हैं. दलाल उन्हें नौकरी दिलाने के झांसे में आसानी से फंसा लेते हैं.

नेपाल और भारत के बौर्डर के आसपास सैकड़ों ट्रैवल एजेंसी, प्लेसमैंट एजेंसी और मैरिज ब्यूरो बेरोकटोक लड़कियों और मानव तस्करी के खेल में लगे हुए?हैं. लड़कियों की शादी कराने, नौकरी दिलाने, भारत में सैर कराने वगैरह का झांसा दे कर वे गरीब और भोलेभाले मांबाप को अपने जाल में फंसा लेते हैं. नेपाल की राजधानी काठमांडू में तो इस तरह की सैकड़ों एजेंसी कुकुरमुत्तों की तरह उग चुकी हैं. उन पर लगाम लगाने का कोई इंतजाम नहीं है.

एजेंसी के दलाल गरीब मांबाप को समझाते हैं कि गरीबी की वजह से वे अपनी बेटी का ब्याह तो कर नहीं सकते हैं, ऐसे में मैरिज ब्यूरो के जरीए अच्छा लड़का मिल सकता है. पोखरा का रहने वाला सुरेश दहाल बताता है कि उस की बेटी की शादी दिल्ली के किसी कारोबारी से कराने की बात कही गई थी. उस ने मैरिज ब्यूरो के एजेंट की बात मान ली.

गरीबी की वजह से वह अपनी बेटी रीना का ब्याह किसी अच्छे लड़के से नहीं कर सकता था, इसलिए वह अपनी बेटी को शादी के लिए दिल्ली भेजने के लिए मन मार कर तैयार हो गया. सुरेश कहता?है, ‘‘जब एजेंट रीना को ले कर जाने लगा तो उस ने मेरे हाथ में 2,000 रुपए थमाए थे. उसी समय मेरा माथा ठनका था कि उस ने 2,000 रुपए क्यों दिए? कुछ रुपए तो हमें ही बेटी को देने चाहिए थे, पर उस समय कुछ कह नहीं सका.’’

सुरेश आगे बताता है कि उस की बेटी को घर से गए 2 साल से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन उस के ठौरठिकाने का कुछ भी पता नहीं है. मैरिज ब्यूरो के लोगों से वह जब भी बेटी के बारे में पूछता है तो उसे यही जवाब मिलता है कि वह ससुराल में राज कर रही है और अगर वह अपने घर वालों से बात नहीं करती है तो इस में ब्यूरो क्या कर सकता है?

मोतिहारी सिविल कोर्ट के सीनियर वकील अभय कुमार बताते हैं कि नेपाल में लड़कियों को औनेपौने दामों पर खरीद कर उन्हें वेश्यालयों तक पहुंचाने वाले दलाल जम कर पैसा बना रहे हैं. नेपाली लड़कियां 1-2 हजार रुपए में भी बेच दी जा रही हैं. कुछ दिनों के लिए पेट की आग बुझाने के लिए गरीब मांबाप अपनी लाड़ली बेटियों को दरिंदों के हाथों बेच देते हैं. वहीं तस्कर लड़कियों को दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के देह बाजार में डेढ़ से ढाई लाख रुपए तक में बेच डालते हैं.

ज्यादातर नेपाली लड़कियों को वहां से सऊदी अरब, हौंगकौंग, जापान, कोरिया, अफ्रीका, मलयेशिया, थाईलैंड वगैरह दूसरे देशों में पहुंचा दिया जाता है. वहां लड़की के सारे दस्तावेजों को जब्त कर लिया जाता है, ताकि वह कहीं भाग नहीं सके. लड़की के सामने जिल्लत की जिंदगी जीने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है.

मैंने अपने ब्वायफ्रैंड के साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए. अब मेरी शादी होने वाली है. अगर सैक्स करते वक्त पति को पहली रात को ही मेरे संबंधों के बारे में पता चल गया तो क्या होगा.

सवाल
मैं 20 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती थी. हम दोनों ने कई बार शारीरिक संबंध भी बनाए. 2 वर्ष पूर्व हमारे संबंधों में काफी खटास आने लगी थी. हम जब भी मिलते थे तो और बातें कम लड़ाईझगड़ा ज्यादा होने लगा था. जल्द ही हमें समझ में आ गया कि हमारा रिश्ता लंबा नहीं चल सकता, क्योंकि दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का फर्क था. तब हम ने तय किया कि इस रिश्ते को बेवजह ढोते रहने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए हम ने ब्रेकअप कर लिया.

अब जबकि मेरे घर में मेरी शादी की बात चल रही है मैं तनावग्रस्त रहने लगी हूं. यह सोचसोच कर कि यदि मेरी शादी  हुई तो पति को पहली रात को ही पता चल जाएगा कि मेरा विवाह पूर्व किसी से संबंध रहा है.

कोई भी व्यक्ति किसी बदचलन लड़की को पत्नी के रूप में क्यों स्वीकार करेगा. इतना बड़ा रहस्योद्घाटन होने के बाद मुझे जलील कर के लौटा दिया जाएगा. इस से मेरी और मेरे परिवार की जो बेइज्जती होगी उस की कल्पना कर के ही मैं कांपने लगती हूं. इस से तो अच्छा है कि मैं शादी ही न करूं. पर मेरे अलावा मेरी 2 छोटी बहनें भी हैं. इसलिए मैं शादी के लिए इनकार नहीं कर सकती. मांबाप शादी न करने की वजह पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगी. दिनरात इसी चिंता से घिरी रहती हूं. कभी मन करता है कि आत्महत्या कर लूं. इस से सारी उलझनों से छुटकारा मिल जाएगा. बताएं क्या करूं?

जवाब
विवाहपूर्व के संबंध चिंता का सबब तो बनते ही हैं. जो गलती आप कर चुकी हैं उसे सुधारा नहीं जा सकता. इसलिए घर वालों की इच्छानुसार विवाह कर लें. पति से अपने अतीत के बारे में कुछ न कहें. जब तक आप मुंह नहीं खोलेंगी वे नहीं जान पाएंगे कि अतीत में आप के किसी के साथ संबंध रह चुके हैं.

पोर्न फिल्में सैक्स का खुला बाजार

सनी लियोनी को जिस तरह से भारतीय फिल्मों में कैरियर बनाने में कामयाबी मिली है, उस के बाद से कई पोर्न स्टार लड़कियां भारतीय इंडस्ट्री में आ कर कैरियर बनाना चाहती हैं.

रशियन पोर्न स्टार मिया मालकोवा हिंदी फिल्मों के जानेमाने फिल्मकार व डायरैक्टर रामगोपाल वर्मा की वैब सीरीज ‘गौड, सैक्स ऐंड ट्रुथ’ में काम कर चुकी हैं.

सोशल मीडिया पर इस के फोटो वायरल होने के बाद लोगों की बढ़ी दिलचस्पी से साफ है कि मिया मालकोवा को भी सनी लियोनी जैसी लोकप्रियता हासिल हो सकती है.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि भारतीय समाज अब पोर्न स्टार को ले कर अपनी पुरानी दकियानूसी सोच से बाहर निकल रहा है. सनी लियोनी को कलाकार के रूप में पैसा और शोहरत दोनों मिल रहे हैं.

सनी लियोनी को जब टैलीविजन के एक शो ‘बिग बौस’ में लाया गया था तो शो बनाने वालों पर आरोप लगा था कि वे अपने कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाने के लिए सनी लियोनी का सहारा ले रहे हैं. उस समय पहली बार हिंदुस्तानी दर्शकों को पता चला था कि सनी लियोनी पोर्न फिल्मों की बहुत बड़ी कलाकार हैं.

पोर्न फिल्मों और उस के कलाकारों को हिंदुस्तानी दर्शक पसंद करेंगे, इस बात को ले कर एक शक सा सभी के मन में था. फिल्मी दुनिया के जानकार मान रहे थे कि पोर्न फिल्मों का विरोधी देश सनी लियोनी को कभी पसंद नहीं करेगा. खुद सनी लियोनी को भी यही लगता था.

कनाडा में पैदा हुई सनी लियोनी भारतीय मूल की पंजाबी लड़की हैं.

5 फुट, 4 इंच लंबी सनी लियोनी गोरे रंग की 50 किलो वजन की हैं. पोर्न फिल्मों में आने से पहले वे जरमन बेकरी में काम करती थीं. इस के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए एक टैक्स फर्म में काम किया था. फिर उन की मुलाकात एक फोटोग्राफर से हुई जो पोर्न फोटो खींचता था.

उस फोटोग्राफर के कहने पर सनी लियोनी ने पोर्न फोटो शूट कराए, फिर यहीं से उन की पोर्न फिल्मों का सफर शुरू हो गया.

साल 2011 में सनी लियोनी ने डेनियल वेबर से शादी की. भारतीय फिल्म उद्योग में आने के बाद उन्हें भारी कामयाबी मिली.

पोर्न का देशी बाजार

सनी लियोनी के बाद भारतीय दर्शकों में पोर्न फिल्मों का क्रेज तेजी से बढ़ा है. विदेशों में पोर्न फिल्मों का उद्योग हिंदी फिल्मों जैसा ही है. इन फिल्मों के भी कलाकार होते हैं, जो दूसरे कलाकारों  जैसे होते हैं. उन का अपना घरपरिवार होता है.

अमेरिका के लौस एंजिल्स में पोर्न फिल्मों की शूटिंग के लिए पूरी तरह से कानूनी इजाजत दी जाती है. वहां साल में जितनी फिल्मों की शूटिंग के लिए इजाजत ली जाती है उन में से 5 फीसदी पोर्न फिल्में होती हैं.

भारत में भले ही पोर्न फिल्में बनाने के लिए कानूनी इजाजत न हो, पर चोरीछिपे पिछले 20 सालों से ऐसी फिल्मेंबनती रही हैं.

टैक्नोलौजी में बदलाव के साथसाथ पोर्न फिल्मों के कारोबार में भी बदलाव आया है. आज इंटरनैट, सीडी और मोबाइल फोन के जरीए पोर्न फिल्मों का मजा देश के हर तबके के लोग ले रहे हैं.

एक सर्वे के मुताबिक, इंटरनैट का इस्तेमाल करने वाले 80 फीसदी लोग कभी न कभी पोर्न फिल्में जरूर देखते हैं. 60 फीसदी लोग इस के पक्के दर्शक हैं. 20 फीसदीलोग इंटरनैट से पोर्न फिल्मों की खरीदारी करते हैं.

ज्यादातर लोग इंटरनैट पर ऐसी फिल्में देखते हैं, जिन के लिए उन को अलग से पैसा देने की जरूरत नहीं पड़ती है.

ज्यादातर हिंदुस्तानी दर्शक विदेशी पोर्न फिल्मों को पसंद करते हैं. कुछ ऐसे लोग भी हैं जो देशी पोर्न फिल्में देखने के आदी हैं. यही वजह है कि इंटरनैट पर देशी पोर्न फिल्मों की अलग साइटें तैयार होने लगी हैं.

विदेशों में बनती देशी पोर्न

अभी तक ज्यादातर देशी पोर्न फिल्में चोरीछिपे बनती थीं, जिन की फोटोग्राफी अच्छी नहीं होती थी. अब हिंदुस्तानी लड़केलड़कियों को ले कर विदेशों में फिल्में बनने लगी हैं. इन को सीडी और इंटरनैट के जरीए बेचा जा रहा है.

मुंबई में चोरीछिपे पोर्न फिल्में बनाने वाले भारतीय फिल्मकारों के लिए अब विदेशों में यह काम करना आसान हो गया है.

एक ऐसे ही फिल्मकार का कहना है, ‘‘अब पोर्न फिल्मों में काम करनेसे देशी लड़कियों को कोई परहेज नहीं है. कुछ शादीशुदा लड़कियां भी इस के लिए तैयार होती हैं.

‘‘देश के तमाम हिस्सों से मुंबई में काम की तलाश में आने वाली कुछ लड़कियां ऐसी फिल्मों में काम कर के पैसे कमाना चाहती हैं. सनी लियोनी के बाद इन को लगता है कि देश के लोग इन्हें भी इज्जत की नजर से देख सकते हैं. ये लड़कियां विदेशों में पोर्न फिल्मों की शूटिंग को तवज्जुह देती हैं.’’

देशी पोर्न फिल्मों में कालगर्ल भी काम करने को तैयार हो जाती हैं. इन में से ज्यादातर को अपना चेहरा दिखाने से कोई गुरेज भी नहीं होता है. ये विदेशी पोर्न फिल्में देख कर देशी पोर्न फिल्में तैयार कर लेती हैं.

देशी पोर्न फिल्मों का एक बड़ा क्षेत्र बैंकौक बन गया है. वहां पर देशी लड़कियों को ले कर पोर्न फिल्में तैयार हो रही हैं. इन लड़कियों को केवल शूटिंग करने के लिए ही बैंकौक भेजा जाता है. ऐसी पोर्न फिल्मों की बड़ी मांग अपने देश के अलावा पाकिस्तान, अरब देशों और नेपाल में होती है.

अरब देशों में पोर्न फिल्मों की शूटिंग भले ही न होती हो, पर वहां पर भी पोर्न फिल्मों की मांग सब से ज्यादा है. वे लोग पोर्न फिल्में खरीदने के लिए पैसा भी खर्च करते हैं.

कौमार्य भंग होती पोर्न फिल्मों की ज्यादा मांग अरब देशों में होती है. इस के साथ ही वहां सैक्स के दूसरे क्रूर तरीके दिखाने वाली फिल्में भी देखी जाती हैं.

ऐसे में अरब देश की औरतों के किरदार निभाने के लिए भी भारतीय लड़कियों का सहारा लिया जाता है. इन को मेकअप और कपड़ों से अरब देश की औरतों का लुक भी देने की कोशिश की जाती है.

भारतीय लड़कियां टूरिस्ट वीजा ले कर विदेशों में जाती हैं. वहां पोर्न फिल्मों की शूटिंग कर के वापस चली आती हैं.

इंटरनैट पर पोर्न फिल्मों के सहारे तमाम तरह के दूसरे सैक्स के सामान बेचने का सहारा भी लिया जाता है. इन के लिए पोर्न फिल्मों की साइटें सब से बड़ा सहारा बन गई हैं. इन सैक्सी इतिश्हारों में मर्द के अंग को लंबा और मोटा करने के लिए दवा, सैक्सी बातचीत करने वाली लड़कियों का प्रचार, पोर्न फिल्मों के कुछ सीन दिखा कर पूरी फिल्में और सैक्सी खिलौने बेचने का काम खूब होता है.

हर उम्र को लुभाती हैं

नैट बैंकिंग के शुरू होने के बाद इस क्षेत्र में भुगतान करना आसान हो गया है. इन फिल्मों का सब से बड़ा दीवाना आज का नौजवान तबका है.

इस के अलावा 40 साल के बाद की उम्र के लोग भी पोर्न फिल्मों का पूरा मजा लेते हैं. अब लड़के ही नहीं लड़कियां भी इन को खूब देखती हैं.

वैसे तो भारत में सैक्स को ले कर ज्यादा भरोसे लायक सर्वे नहीं होते हैं, फिर भी जो होते हैं उन में से एक सर्वे से पता चलता है कि 30 फीसदी लड़कियां पोर्न फिल्में देखने का शौक रखती हैं. 38 फीसदी शादीशुदा लड़के और 20 फीसदी लड़कियां पोर्न फिल्मों को देखते हैं.

गांव और शहर के आधार पर जब इस का सर्वे किया गया तो पता चला कि शहरों के 35 फीसदी और गांव के 26 फीसदी लड़के पोर्न फिल्में देखते हैं.

लड़के जहां शादी से पहले अपने साथियों के साथ पोर्न फिल्में देखने की शुरुआत करते हैं, वहीं लड़कियां शादी के बाद पतियों की पहल पर पोर्न फिल्में देखती हैं.

शादीशुदा लड़कियों ने सर्वे में बताया कि उन के  पतिउन्हें पोर्न फिल्में सैक्स में बढ़ावा देने के लिए दिखाते हैं.

सर्वे से यह भी पता चलता है कि गांव के 17 फीसदी और शहरों में रहने वाले 10 फीसदी लड़के शादी से पहले सैक्स का अनुभव ले चुके थे.

गांव में रहने वाली 4 फीसदी लड़कियां और शहरों में रहने वाली 2 फीसदी लड़कियां शादी से पहले ही सैक्स का अनुभव कर चुकी होती हैं.

गांव हो या शहर, पोर्न फिल्मों का चलन बढ़ाने में मोबाइल फोन का सब से अहम रोल रहा है. मोबाइल फोन पर ऐसी फिल्में लोड करने का अलग कारोबार चल पड़ा है. 1,500 से 2,000 रुपए की कीमत में ऐसे मोबाइल फोन बाजार में आ गए हैं जिन में 2 जीबी से ले कर 10 जीबी तक के मैमोरी कार्ड लगते हैं. ये कार्ड 200 रुपए की कीमत में मिल जाते हैं. इस कार्ड में ऐसी पोर्न फिल्में आसानी से लोड कराई जा सकती हैं.

जिन लोगों के पास कंप्यूटर या लैपटौप जैसे महंगे साधन नहीं हैं उन के लिए मोबाइल फोन सब से अच्छा साधन बन गया है. पहले कुछ लोग साइबर शौप पर जाते थे, पर वहां परेशानी होती थी. अब जिन लोगों के मोबाइल फोन में इंटरनैट चलाने की सुविधा है वे सीधे पोर्न फिल्में देख सकते हैं.

जागरूक करतीं पोर्न फिल्में    

पोर्नोग्राफी और सैक्स ऐजूकेशन की किताबों के बीच एक बहुत ही महीन सी दीवार होती है. इस तरह की जानकारी काफी हद तक पतिपत्नी के बीच जिस्मानी संबंधों को ले कर फैली हुई भ्रांतियों को दूर करती है. इस को गलत तब कहा जा सकता है जब इस को गलत लोग देखें या फिर जबरदस्ती किसी लड़की या लड़के को दिखाएं.

पहले बड़ा परिवार होता था. इन में भाभी, बड़ी ननद, बूआ और बड़ी बहन जैसे तमाम रिश्ते होते थे जो लड़की को शादी के बाद जिस्मानी संबंधों के बारे में बताती थीं.

अब इस तरह के रिश्ते कम हो गए हैं. लड़कियां अपने कैरियर और दूसरे मसलों में इतना उलझी हुई होती हैं कि वे अपने परिवार के लोगों से इतना नहीं घुलमिल पाती हैं कि उन से जिस्मानी संबंधों पर बात कर सके. इस के चलते शादी के बाद जिस्मानी संबंधों को ले कर वे अनजान ही बनी रहती हैं.

जिन दोस्तों या सहेलियों के जरीए उन को पता चलता है, वह भी सही जानकारी नहीं दे पाते हैं. कभीकभी इन जानकारियों की कमी में लड़कियों को कुंआरी मां बनने तक की नौबत आ जाती है.

आमतौर पर अपने देश में इस तरह की सैक्स ऐजूकेशन को गलत माना जाता है. इस की कमी में लड़कियां सैक्स से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

अपने देश में भले ही सैक्स सिखाने वाली किताबों को पोर्नोग्राफी माना जाता हो लेकिन दूसरे देशों में इस को इलाज के रूप में लिया जाता है.

एक डाक्टर बताते हैं, ‘‘जब मेरे पास कोई लड़का इस बात की शिकायत ले कर आता है कि वह नामर्दी का शिकार है, उस के अंग में तनाव नहीं आता है तो यह देखना पड़ता है कि यह तनाव हमेशा नहीं आता या फिर कभीकभी आता भी है.

‘‘जब लड़का कहता है कि सैक्स की किताबें पढ़ कर या फिर ब्लू फिल्में देख कर तनाव आता है, तब यह पता चलता है कि उस लड़के की नामर्दी केवल मन का वहम है. अगर इस हालत में भी तनाव नहीं आता है तो उस का इलाज थोड़ा मुश्किल हो जाता है.’’

विदेशों में पोर्नोग्राफी को ले कर कई तरह की रिसर्च होती रहती हैं. इसी तरह की एक रिसर्च बताती है कि ब्लू फिल्में देखने से आदमी के शुक्राणुओं की गति तेज हो जाती हैं.पोर्नोग्राफी को विदेशों में  एक कला की तरह देखा जाता है. कुछ कलाकार तो दूसरी फिल्मों में भी काम कर के अपना नाम कमाते हैं.

सैक्स संबंधों की काउंसलिंग करने वाले कुछ डाक्टरों का कहना है कि अपने देश में भी पोर्न फिल्मों को दिखा कर नामर्दी का इलाज करना कानूनी रूप से सही माना जाना चाहिए. कानून को इस बात की इजाजत देने के बारे में सोचना चाहिए. जब नामर्दी दूर करने के लिए दवाएं बनाई जाती हैं तो उन का असर देखने के लिए भी ब्लू फिल्मों का इस्तेमाल किया जाता है.

पोर्नोग्राफी का इस्तेमाल जब पतिपत्नी आपसी समझदारी के साथ करते हैं तो उन के रिश्ते रोचक हो जाते हैं. सैक्स संबंध शादीशुदा जोड़ों की बड़ी जरूरत होते हैं. कभीकभी जब ये संबंध टूटते हैं तो इन का असर शादीशुदा जिंदगी पर भी पड़ता है.

हमारे समाज में औरतों को सैक्स के बारे में अपनी बात कहने से रोका जाता है. इस के उलट आदमी सैक्स को ले कर हर तरह का प्रयोग करना चाहता है.

जब पतिपत्नी के बीच इस तरह की परेशानी आती है तो पति दूसरी औरत की तरफ भागने लगता है. अगर दूसरी औरत वाले मामले को देखें तो उस की सब से बड़ी वजह सैक्स ही है.

हमारे समाज में औरतों को कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया. कभी उस को देवी बना दिया गया तो कभी कोठे पर बिठा दिया गया. उस को अपनी जिंदगी जीने के बारे में सिखाया ही नहीं गया.

आज भी सैक्स को ले कर पत्नी में एक झिझक रहती है. उस को लगता है कि अगर सैक्स को ले कर उस ने पहल की तो उसे ही बदचलन मान लिया जाएगा. इसलिए वह चुप ही रहती है.

इस तरह के जोड़ों में तनाव और लड़ाईझगड़ा ज्यादा होता है. जिन लोगों की सैक्स जिंदगी ठीक होती है, वे हंसीखुशी व तालमेल के साथ रहते हैं.

सैक्सिज्म और फ्रीकी फीफा 2018

रूस की राजधानी मास्को के ल्युजनियाकी स्टेडियम में खेले गए फीफा विश्वकप 2018 के फाइनल मुकाबले में फ्रांस के जीतते ही जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति स्टेडियम में ही खुशी के मारे नाच रहे थे तब वहां से करीब 5,000 किलोमीटर दूर भारत के नेता हमेशा की तरह इस खेल में भी राजनीति का गोल और पैनल्टी कार्ड ढूंढ़ रहे थे. दरअसल, पुद्दुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी ने ट्वीट कर फ्रांस की जीत पर बधाई देते हुए यह लिख दिया, ‘हम पुद्दुचेरीवासियों (जो पूर्व में फ्रांस का हिस्सा थे) ने वर्ल्डकप जीत लिया है. बधाई दोस्तो. फ्रांस की क्या शानदार मिक्स्ड टीम थी. खेल जोड़ता है.’

किरण बेदी के इस ट्वीट पर कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन समेत कई नेताओं ने भावनाएं आहत होने का पुराना राग अलापते हुए इसे राष्ट्रविरोधी बयान करार दिया और प्रधानमंत्री मोदी से उन्हें तुरंत बरखास्त करने की मांग करने लगे. क्या करें, हमारे देशी नेता अपनी आदत से मजबूर हैं, लेकिन क्षेत्रफल में करीब हिमाचल प्रदेश के बराबर क्रोएशिया का जबरदस्त खेल और परफौर्मेंस देख कर हर कोई यही कह रहा था कि पहली बार वर्ल्डकप खेल रही इस टीम ने इतनी बड़ीबड़ी धुरंधर टीमों को किस तरह धूल चटा दी.

जहां दुनिया ने क्रोएशिया जैसे छोटे से देश का शानदार गेम देखा, वहीं मजबूत टीमों और नामी खिलाडि़यों को धराशायी होते भी देखा गया. फीफा वर्ल्डकप देखने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रैबर कितारोविक और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी पहुंचे थे. मास्को से ले कर मुंबई तक इस खेल का जादू सिर चढ़ कर बोला. भारत से भी बड़ी तादाद में फुटबौलप्रेमी फाइनल मैच देखने रूस पहुंचे.

हार कर भी जीता क्रोएशिया

15 जुलाई को खिताबी मुकाबले में एक तरफ 6.69 करोड़ की आबादी वाला पूर्व विश्वकप विजेता फ्रांस था तो दूसरी तरफ सिर्फ 40 लाख की आबादी का नौसिखिया देश क्रोएशिया था. 68 साल बाद पहली बार कोई इतना छोटा देश वर्ल्डकप फाइनल में पहुंचा. 1950 में उरुग्वे ने भी कुछ ऐसा ही उलटफेर किया था. बहरहाल, फ्रांस 20 वर्षों बाद एक बार फिर से वर्ल्डकप फुटबौल चैंपियन बन गया है. फ्रांस ने वर्ल्डकप की ट्रौफी भले ही जीती हो, लेकिन क्रोएशिया ने दुनियाभर के फुटबौल फैंस के दिल जीत कर यह साबित कर दिया कि हार कर जीतने वाले को ही बाजीगर कहते हैं.

हाई वोल्टेज ड्रामा वाले इस रोमांचक मुकाबले में फ्रांस ने क्रोएशिया को 4-2 से शिकस्त दी. फ्रांस की टीम के पहले हाफ में अच्छा खेल दिखाने के कारण क्रोएशिया की टीम बढ़त नहीं बना सकी, लेकिन दूसरे हाफ में फ्रांस ने शानदार वापसी की और 2 और गोल दाग कर विश्व खिताब अपने नाम कर लिया. फ्रांस के लिए फाइनल में गोल ग्रीजमैन, पौल पोग्बा और एमबापे ने किए. खेल के शुरुआती 10 मिनट में तो दोनों टीमों में से कोई भी गोल नहीं कर सकी, लेकिन क्रोएशिया का खेल फ्रांस की तुलना में ज्यादा बेहतर था.

18वें मिनट में बढ़त औन गोल के रूप में फ्रांस को मिली. हालांकि ग्रीजमैन ने शानदार किक लगाई जो सीधे गोलपोस्ट के सामने पहुंची, लेकिन सैमीफाइनल में क्रोएशिया की जीत के हीरो रहे मारियो मांडजुकिक के सिर पर लग कर बौल सीधे गोलपोस्ट के अंदर पहुंच गई.

यही वह आत्मघाती गोल था जो क्रोएशिया के मारियो मांडजुकिक ने किया. यह विश्वकप के फाइनल में हुआ पहला आत्मघाती गोल था, जिस ने क्रोएशिया को निराश कर दिया. इसी गोल से क्रोएशिया की उलटी गिनती शुरू हो गई. हालांकि इवान पेरिसिक ने उसे बराबर कर दिया था, लेकिन फ्रांस को 38वें मिनट में मिली पैनल्टी ने इशारा कर दिया था कि फ्रांस जीत के करीब है. क्रोएशिया ने बेशक हार झेली हो, लेकिन टीम दुनियाभर के फुटबौलप्रेमियों का दिल जीतने में सफल रही.

रेसिज्म बनाम सैक्सिज्म 

मैच से इतर रूस की मेजबानी वाले इस वर्ल्डकप में रेसिज्म और सैक्सिज्म का खूब बोलबाला रहा. यों तो पहले से कयास लगाए जा रहे थे कि विश्वकप जैसे बड़े टूर्नामैंट में रेसिज्म और सैक्सिज्म से जुड़ी घटनाएं होने की आशंका है, लेकिन पुरुष फुटबौल प्रशंसकों की रशियन महिलाओं के साथ अभद्रता, रूस की महिलाओं का विदेशी पर्यटकों के साथ रोमांस, सैक्स विवाद, स्टेडियम में मौजूद महिला दर्शकों पर  कैमरे का एक्स्ट्रा जूम और द टाइम्स औफ व्होर्स जैसे विवादित आर्टिकल ने इस खिताब में रेसिज्म से ज्यादा सैक्सिज्म को चर्चा में रखा.

खास कर, प्लाटोन बेसेडिन के उस आर्टिकल पर बवाल मचा जो टाइम्स औफ व्होर्स शीर्षक से प्रकाशित हुआ. इस में वे कह रहे थे कि रूसी महिलाएं विदेशी फैंस के साथ सैक्स कर देश की नाक कटा रही हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया कि चंद डौलर्स के लिए रूसी महिलाएं किसी के भी साथ व्होर्स (वेश्या) की तरह सोने को तैयार रहती हैं. हालांकि इस आर्टिकल को ले कर उन की खूब खिंचाई हुई और महिलाओं को सैक्स को ले कर अपनी पसंद के हक की बात कही गई.

इस के अलावा जब फीफा वर्ल्डकप के मेजबान देश की 70 वर्षीय सांसद तमारा प्लेटेनयोवा ने मास्को के एक रेडियो कार्यक्रम में रूसी महिलाओं को विदेशियों के साथ सैक्स न करने की हिदायत और सैक्स के लिए अपनी ही नस्ल का पार्टनर तलाशने की बात कही तो उन्हें भी आड़े हाथों लिया गया.

मामला इतना बढ़ गया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को रूसी महिलाओं के विदेशी टूरिस्ट्स के साथ सोने से परहेज करने की बातों को खारिज कर कहना पड़ा कि रूस की महिलाएं फीफा वर्ल्डकप के दौरान पर्यटकों के साथ संबंध बना सकती हैं.

फीफा विश्वकप में कई ऐसी कई घटनाएं भी सामने आईं जिन में महिला प्रैस रिपोर्टर को पुरुष फुटबौल प्रशंसकों ने जकड़ लिया और जबरदस्ती किस करने का प्रयास किया. गौरतलब है कि इसी विश्वकप में फोटो एजेंसी गेटी इमेज ने युवा फीमेल फैंस की एक गैलरी बनाई थी, जिसे बाद में माफी मांगते हुए हटा लिया गया.

बहरहाल, मेजबान देश में फुटबौल के फीवर के साथसाथ सैक्स का फीवर भी सिर चढ़ कर बोला. भारत में भी कौमनवैल्थ खेलों के दौरान वेश्यावृत्ति बढ़ने और कंडोम्स की खपत में बढ़ोतरी की बात सामने आई थी. दरअसल, अब खेल सिर्फ खेल नहीं, बल्कि ग्लैमर, नशा और पार्टीज कौकटेल बन चुका है, जहां खेल की आड़ में सैक्स और नशा दोनों परोसा जाता है. यह एक तरह से टूरिज्म की कमाई का मोटा हिस्सा भी बन चुका है, इसलिए इस पर कोई भी मेजबान देश रोक नहीं लगाना चाहता.

भारत में फुटबौल की दीवानगी

फुटबौल दुनियाभर में सब से ज्यादा देखा और पसंद किया जाने वाला खेल है. पिछले फुटबौल वर्ल्डकप को करीब 302 करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा था जबकि इस बार इसे 4 अरब से ज्यादा दर्शक मिले. नील्सन के एक सर्वे के अनुसार, दुनिया में इस खेल को ले कर सब से ज्यादा दर्शक और रुचि यूएई में है. यहां की 80 फीसदी आबादी की फुटबौल में रुचि है.

बात अगर भारत की करें तो यहां की करीब आधी से थोड़ा कम आबादी फुटबौल को ले कर दीवानी है. भारत में 45 फीसदी दर्शक फुटबौल देखते हैं. अगर राज्यों के लिहाज से देखें तो फुटबौल का सब से बड़ा बाजार पश्चिम बंगाल में है जहां 175 लाख फुटबालप्रेमी हैं, जबकि केरल में 158 लाख, पूर्वोत्तर में 93 लाख और महाराष्ट्र व गोवा में यह आंकड़ा 90 लाख का है.

इतना ही नहीं, भारत में कुल दर्शक संख्या 15.32 करोड़ है. इस में टीवी दर्शक 12.32 करोड़ हैं तो औनलाइन देखने वालों की तादाद 3 करोड़ है. ग्रामीण इलाकों में 5.15 करोड़ दर्शक हैं. ये आंकड़े साबित करते हैं कि देशभर में फुटबौलप्रेमियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

कुल मिला कर भारत में फुटबौल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता भले ही हासिल न हो, लेकिन टीवी और इंटरनैट की आसान उपलब्धता ने इसे यहां भी पौपुलर कर दिया है. कुछ समय बाद इस का बाजार भी भारत में घुसपैठ करेगा.

फिलहाल देशी और राष्ट्रीय खेल हाशिए पर रहेंगे, क्योंकि हम सामान हो या खेल, हमेशा आयातित माल ही पसंद करते हैं. मेहनत और सृजन से हम दूर भागते हैं. और फास्टफूड की तर्ज पर सबकुछ रेडी टू ईट खाना, देखना व खरीदने को ही तरक्की का पैमाना समझते हैं. इसीलिए क्षेत्रफल में हम से कई गुना छोटे देश आज हम से कहीं ज्यादा उन्नत व खुशहाल हैं और हम सिर्फ दर्शक बन कर तालियां पीटने को ही हुनर मान बैठे हैं.

बाजार में आया ‘स्मार्ट वालेट’, जानें कैसे बचाएगा पाकेटमारों से

अमेरिका के नेवार्क की एक कंपनी पाकेटमारों से निपटने के लिए एक स्मार्ट बटुआ लेकर आई है. कंपनी का दावा है कि इस स्मार्ट वालेट को चुराना किसी पाकेट मार के बस की बात नहीं है. इंटरनेट से प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस स्मार्ट वालेट को अवार्ड विनिंग डिजाइनर्स और इंजीनियर्स ने तैयार किया है. बटुए में पावरबैंक, डिस्टेंस अलार्म सिस्टम, वर्ल्डवाइड जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम, थीफ डिटेक्शन कैमरा और ग्लोबल वाईफाई हौटस्पौट मिलता है.

कंपनी ने यह भी दावा किया है कि यह बटुआ काफी हद तक हल्का और पतला है. ब्लूटूथ सिग्नल के जरिये यह बटुआ आपको बता देता है कि उसे आपने कहां छोड़ा है. यह न केवल आपको फोन पर नोटिफाई करता है, बल्कि कहीं छूट जाने पर फोन पर अलार्म भी बजा देता है.

कंपनी का कहना है कि बटुए की पावरबैंक 2000 से 5000 mAh में उपलब्ध हैं और एक बार में मोबाइल फोन को पूरा चार्ज कर देती है. पावरबैंक दो तरीके से काम करती है-

  1. आप बटुए में केबल लगाकर फोन चार्ज कर सकते हैं,
  2. वायरलैस तरीके से भी यह बटुआ आपका फोन चार्ज कर देता है.

इसमें ग्लोबल वाईफाई हौटस्पौट के जरिये आपके पास सस्ती दरों में इंटरनेशनल रोमिंग के दौरान इंटनेट का विकल्प रहता है. कंपनी दावा करती है रैग्युलर रोमिंग कीमतों के मुकाबले वोल्टरमैन के साथ इंटरनेट की कीमत तीन गुना कम होती है.

बटुए में ग्लोबल जीपीएस सिस्टम दिया गया है, यानी बटुआ दुनिया में कहीं भी रहे आप उसे रियल टाइम में ट्रैक कर सकते हैं. वालेट में एक बहुत छोटा से कैमरा लगाया गया है. किसी के हाथ लगने की स्थिति में बटुए में लगा कैमरा उस शख्स की तस्वीर खींच लेता है और आपके फोन पर वह तस्वीर भेज देता है.

ये सारी खासियतें इस स्मार्ट बटुए में आपका पैसा और तमाम कार्ड्स काफी हद तक सुरक्षित कर देती हैं. कुलमिलाकर दुनिया का कोई भी चोर अगर यह स्मार्ट बटुआ चुराना चाहे तो उसे इससे भी कहीं ज्यादा स्मार्ट होना पड़ेगा. इस बटुए को औनलाइन और्डर किया जा सकता है. वर्तमान में इसकी कीमत 169 डालर यानी करीब साढ़े ग्यारह हजार रुपये है और यह आई फोन यानी एप्पल फोन के लिए काम करता है.

डिजिटल लेनदेन से हो रहा जीवनस्तर में सुधार

नोटबंदी के कदम से सब की आलोचना झेलने के बाद डिजिटल इंडिया को ले कर आ रही रिपोर्ट सरकार के लिए राहत देने वाली बन रही है. डिजिटल का तेजी से प्रयोग हो रहा है. सरकार ने भी इस को बढ़ावा देने के लिए इस साल के बजट आवंटन को 3,075 करोड़ कर दोगुना किया है.

डिजिटल भारत के लिए इस आवंटन का इस्तेमाल सब से ज्यादा देश के दूरदराज के गांवों को हौटस्पौट से जोड़ने के लिए किया जा रहा है. इस के तहत 10 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा. सरकार का प्रयास गांव को ब्रौडबैंड सेवा दे कर डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देना है.

डिजिटल इंडिया को ले कर वैश्विक रिपोर्ट उत्साह बढ़ाने वाली है. सेवाप्रदाता कंपनी मोर्गन स्टेनली ने अपनी एक रिपोर्ट में हाल ही में कहा है कि डिजिटल क्षेत्र में लंबी छलांग का भारतीय जीवन पर व्यापक असर हो रहा है और इस से सामाजिक बदलाव आ रहा है. इस से नागरिकों की असमानता घटेगी, वित्तीय समावेशन बढ़ेगा, लोगों के जीवनस्तर में सुधार आएगा और पारदर्शिता तथा कृषि आदि क्षेत्रों में इस का व्यापक असर देखने को मिलेगा.

रिपोर्ट में, हालांकि, देशवासियों के डेटा की गोपनीयता से जुड़े जोखिम को सही मानते हुए आधार और बायोमैट्रिक प्रणाली में डेटा लीक की आशंका से इनकार नहीं किया गया है.

रिपोर्ट का सार यह है कि डिजिटल इंडिया में जो तेजी आई है उस से देशवासियों के जीवनस्तर में सुधार आएगा. डिजिटल लेनदेन की प्रक्रिया में तेजी नोटबंदी के बाद आई है. बाजार में नकदी की भारी कमी के कारण लोगों ने डिजिटल को अपनाया और बड़े स्तर पर लेनदेन शुरू हुआ जो धीरेधीरे लोगों के स्वभाव का हिस्सा बनने लगा.

सरकार अब गांवों में वाईफाई हौटस्पौट को बढ़ावा दे कर ग्रामीण इलाकों तक इस का विस्तार करेगी.

बंद होंगे आइडिया और वोडाफोन के पुराने सिम?

टेलीकौम कंपनी वोडाफोन और आइडिया लिमिटेड अपने यूजर्स के लिए कुछ अहम बदलाव करने जा रही है. आइडिया सेल्युलर और वोडाफोन इंडिया के मर्जर को अंतिम मंजूरी मिलने के बाद कंपनियां जरूरी फेरबदल कर रही हैं. मैनेजमेंट में बड़ा बदलाव हो रहा है. हालांकि, अभी तक कंपनी की ओर से किसी तरह की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन, कंपनी नए नाम से ही नए सिम जारी करेगी या यूजर्स को उन्हीं के सिम पर नए औफर्स देंगी. इसे लेकर सबके मन में सवाल जरूर उठ रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि मर्जर के बाद दोनों कंपनियों के यूजर्स के लिए क्या बदलाव होंगे.

नहीं बदलना होगा सिम

आइडिया और वोडाफोन के मर्जर के बाद नया सिम लेने की जरूरत नहीं होगा. कंपनी अपने सिस्टम में ही पुराने यूजर्स का डाटा अपडेट करेगी. साथ ही उन्हें पुराने नंबर और सिम पर ही नए औफर्स मिलेंगे. हालांकि, सोशल मीडिया पर यह चर्चा उठी थी कि मर्जर के बाद यूजर्स को नया सिम लेना होगा. हालांकि, यह संभावना है कि कंपनी नए नाम के साथ नए सिम भी जारी करेगी. लेकिन, यह सिम नए यूजर्स के लिए होंगे. मौजूदा यूजर्स की कंपनी खुद बदल जाएगी. लेकिन, उन्हें सिम नहीं बदलना होगा. कंपनी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि दोनों ही कंपनियां पहले ही सिस्टम को 4 जी सेवा के अनुरूप अपडेट कर चुकी हैं. ऐसे में पुराने यूजर्स को सिम बदलने की कोई जरूरत नहीं होगी.

कब से मिलेंगे औफर्स

चर्चा है कि अब वोडाफोन और आइडिया अपने यूजर्स के लिए बड़े औफर्स पेश कर सकती है. हालांकि, कंपनी से जुड़े सूत्रों की मानें तो औपचारिक घोषणा होने और प्रक्रिया पूरी होने तक दोनों कंपनियों के ग्राहक अलग ही रहेंगे. दोनों के औफर्स भी अलग होंगे. फिलहाल के लिए औफर्स में बदलाव नहीं होगा. नई कंपनी बनने के बाद ही ग्राहकों के लिए नए प्लान निकाले जाएंगे. हालांकि, यह प्लांस पहले की तरह ही होंगे या नहीं इसको लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. मर्जर के बाद ही स्थिति साफ होगी.

टेलीकौम सेक्टर में फिर होगा प्राइस वार

रिलायंस जियो की एंट्री के बाद से टेलीकौम सेक्टर में प्राइस वार जारी है. ऐसे में वोडाफोन-आइडिया के मर्जर के बाद एक बार फिर प्राइस वार छिड़ेगा. वोडाफोन-आइडिया के पास सबसे ज्यादा यूजर्स होंगे. साथ ही अब उनके पास यह स्पेस होगा कि वह सस्ती दरों पर लोगों को बेहतर औफर पेश कर सकें. जियो के आने के बाद से ही कंपनियों ने अपने दाम में बड़ी कटौती की थी. अब फिर से नए प्लान्स की भरमार होगी. एयरटेल और जियो भी अपने यूजर्स को रोके रखने के लिए नए प्लान्स पेश कर सकती हैं.

टावर्स होंगे अपडेट

मर्जर के बाद बनने वाली नई कंपनी पुराने टावर्स को भी अपग्रेड करेगी. दरअसल, वोडाफोन-आइडिया के पास पहले के मुकाबले ज्यादा स्पेक्ट्रम होगा. फिलहाल, कंपनी 2 जी और 3 जी कम्पैटिबल टावर्स का इस्तेमाल करती है. नई कंपनी बनने से वह भी 4 जी टावर्स में जाएगी. इससे उसे स्पीड बढ़ाने में फायदा मिलेगा. जियो की टक्कर में कंपनी के पास यूजर्स बेस बढ़ाने का मौका होगा. एयरटेल पहले ही अपने टावर अपग्रेड करने में जुट गई है.

सुधरेगा नेटवर्क

देश की सबसे बड़ी टेलीकौम कंपनी के पास नेटवर्क सुधारने का भी मौका होगा. क्योंकि, स्पेक्ट्रम के मामले में भी कंपनी के पास सबसे बड़ा नेटवर्क होगा. इससे कौल ड्राप और कनेक्टिविटी की समस्या नहीं होगी. खास बात यह है कि वोडाफोन और आइडिया के मिलने से शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में कंपनी की पकड़ होगी. ऐसे में यूजर्स को बड़ा फायदा मिलेगा. 4जी कनेक्टिविटी में भी बड़ी सुधार देखने को मिलेगा.

साक्षी की ड्रेस को लेकर मचा हंगामा, माही को मिलने लगी नसीहतें

कुछ समय पहले महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक फोटो शेयर की थी. लेकिन माही के फैंस को साक्षी की यह तस्वीर जरा भी पसंद नहीं आई. उनके फोटो को लेकर सोशल मीडिया में काफी हंगामा मच गया. साक्षी की इस तस्वीर पर इतना बवाल हुआ कि लोगों ने महेंद्र सिंह धोनी को ही नसीहतें देनी शुरू कर दीं.

बता दें कि साक्षी की जिस फोटो को लेकर सोशल मीडिया पर हंगाम मच रहा है, उसमें उन्होंने जो ड्रेस पहनी थी, उसका टौप स्किन कलर का था. साक्षी ने जैसे ही इस ड्रेस के साथ अपनी फोटो को इंस्टाग्राम पर डाला, उसके तुरंत बाद से लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया.

साक्षी की इस तस्वीर पर लोगों ने धोनी को सलाह देते हुए लिखा कि धोनी सर का तो ध्यान रख लेती कुछ भी अपलोड कर देते हो. कुछ यूजर्स ने कहा कि हम धोनी सर का सम्मान करते हैं, लेकिन यह कपड़े पश्चिमी संस्कृति के हैं और हमें ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए बस…

बता दें कि महेंद्र सिंह धोनी और साक्षी हाल ही में खत्म हुई 3 मैचों की टी-20 और वन-डे सीरीज के बाद इंग्लैंड से लौटे हैं. इंग्लैंड से लौटते ही महेंद्र सिंह धोनी जीवा और साक्षी के साथ पूर्णा पटेल की शादी के हर फंक्शन में शरीक हुए. इसके अलावा धोनी ने खाली वक्त में फुटबौल भी खेल रहे हैं.

नौ साल बाद इस फिल्म में साथ दिखेंगे अक्षय और करीना

बौलीवुड अदाकारा करीना कपूर मां बनने के बाद तैमूर की परवरिश के चलते लम्बे समय तक फिल्मों से दूर रहीं. इसके बाद उन्होंने इस साल फिल्म “वीरे दी वेडिंग” से वापसी की. अब वो अपनी अगली फिल्म की भी तैयारी में लग गई हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि करीना कपूर अब करण जौहर के बैनर तले बनने वाली फिल्म का हिस्सा होंगी. यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित होगी. इस फिल्म में वो अक्षय कुमार के साथ दिखेंगी और फिल्म का नाम फिल्म होगा “गुड न्यूज”.

फिल्म में अक्षय कुमार करीना के पति का रोल निभाएंगे. फिल्म में एक और जोड़ी भी नजर आएगी. इसके लिए अब तक कार्तिक आर्यन से लेकर जाह्नवी कपूर तक कई नाम आये लेकिन बताया जा रहा है कि दिलजीत दोसांझ और कियारा आडवाणी को फाइनल कर लिया गया है. फिल्म इस साल दिसंबर में रिलीज होगी.

ये अक्षय और करीना की नौ साल बाद वापसी होगी. आखिरी बार दोनों ने “कमबख्त इश्क” में काम किया था. हालांकि उसके बाद करीना ने अक्षय कुमार की दो फिल्मों “गब्बर इज बैक” और “ब्रदर्स” में आइटम सांग किया था.

खबरों के मुताबिक इस फिल्म को निर्देशक शशांक खेतान के असिस्टेंट राज मेहता डायरेक्ट करने वाले हैं. वो धर्मा प्रोडक्शन की तरफ से लौन्च किये जाने वाले 11वें डायरेक्टर होंगे. इस फिल्म के लिए करीना को एक मां के रोल में चुना गया है. दरअसल काफी समय से करण जौहर चाह रहे थे कि करीना फिर से उनके बैनर के लिए फिल्म करें. फिल्म “की एंड का” के दौरान उन्होंने प्रस्ताव भी भेजा था लेकिन करीना तैमूर की परवरिश के लिए फिल्मों से दूर हो गईं. ये फिल्म शादी और रिलेशनशिप को लेकर अलग सी कहानी कहेगी.

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