डौलर के मुकाबले रुपए की लगातार गिरती कीमत भारत की कमजोर होती अर्थव्यवस्था की पोल खोलती है. सरकार चाहे जितना कह ले कि यह दुर्दशा दुनियाभर की घटनाओं के कारण है, असलियत यह है कि भारत के व्यापार का उठाव बैठ गया है. 2014 के आम चुनावों में मध्यवर्ग और व्यापारियों के धुरंधर प्रचार के बल पर सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था और व्यापार को किसी यज्ञहवन की तरह समझ लिया कि सुख, समृद्घि के लिए कुछ मंत्र पढ़े, कुछ व्रत किए और ईश्वर प्रसन्न हो कर लक्ष्मी घर भेज देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उन के सहयोगी अपनी पाखंडभरी सोच के इतने ज्यादा गुलाम बने रहे कि उन्हें अर्थव्यवस्था की वास्तविकता का एहसास तक न हुआ और नोटबंदी व जीएसटी को महामंत्र बना कर देश पर अपनी बेवकूफी लाद दी जिस ने पूरे बाजार की चूलें ढीली कर दीं.

तेल के बढ़ते दामों और अमेरिका व चीन का व्यापार युद्ध इस के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है पर ज्यादा बड़ी वजह है 46,197 करोड़ रुपए के लायक विदेशी मुद्रा का 2018 में देश से बाहर चला जाना. यह विदेशी मुद्रा भारत में निवेश की गई थी ताकि निवेशकों को अच्छा लाभ और ब्याज मिल सके पर जैसे ही भारत का व्यापार कमजोर होता दिखा, विदेशी अपना पैसा ले कर चलते बने. वे यहां अच्छे दिनों के लिए आए थे, भारत को संकट से उबारने के लिए नहीं. डौलर का 69 रुपए का हो जाने का अर्थ है कि देश में कुछ ठीक नहीं चल रहा. यह देशवासी खुद महसूस भी कर रहे हैं. देश के इतिहास में डौलर के मुकाबले रुपया पहली बार इतना गिरा है. सरकार व्यापारियों की सुन ही नहीं रही है. नरेंद्र मोदी को बातें बनाने से फुरसत नहीं. स्वघोषित वित्तमंत्री अरुण जेटली कांग्रेस के पीछे लट्ठ ले कर ज्यादा पड़े रहे, वित्त मंत्रालय का काम, बीमारी से पहले भी उन्होंने कम संभाला.

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